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Incest घर-पड़ोस की चूत और गांड़, घर के घोड़े देंगे फाड़

Sanju@

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दोपहर हुई दोनो निकल पड़ी बाबा की कुटिया की ओर। सविता तो मन ही मन मुस्कुरा रही थी यह सोचकर की बाबाजी आज प्रेमा की कसके बजाएंगे और मै जैसे गाय के ऊपर सांड चढ़वाते हैं वैसे ही प्रेमा के ऊपर बाबाजी चढ़ेंगे। लेकिन प्रेमा ऊहापोह की स्थिति में थी उसे शर्म आ रही थी बदन में झुरझरी। भी छूट रही थी क्योंकि बाबाजी का ऊपर बदन तो लगभग नंगा ही रहता था जिसे प्रेमा ने आते जाते देखा था। बाबाजी का बदन कसरत करने की वजह से बिलकुल ठोस और चिकना था लेकिन सीने पर घने बाल थे झांट में तो एक दम जंगल लगा हुआ था।​
प्रेमा और सविता बाबाजी की सुनसान कुटिया पर पहुंच गई, बाबाजी वहीं अपना लंगोट ढीला करके विश्राम कर रहे थे।​
सविता: बाबाजी! मै प्रेमा को लेकर आ गई।​
बाबाजी ने चालाकी से लंड को पीछे खींच लिया, लंगोट सही किया और बोले आ जाओ सविता आई प्रेमा।​
सविता: चल प्रेमा अंदर​
प्रेमा: मुझे असहज लग रहा है।​
सविता: चल मै भी तो चाल रही हूं।​
दोनो अंदर गईं, बाबाजी ने एक बार फिर से पूरा वाकया प्रेमा को सुनाया तो उसे भी अब ये काम उसकी जिम्मेदारी लगने लगी । उसने कहा ठीक है बाबाजी । हालांकि इतनी दोपहर में कोई वहां नही जाता था लेकिन फिर भी बाबाजी ने कुटिया के गेट पर बांस की फट्टी से बनाया हुआ गेट रख दिया।बाबाजी ने पेट अंदर खींचकर लंड को पीछे खींच रखा था लेकिन लंड से वीर्यरस लगातार इस रहा था । बाबाजी ने सविता को इशारा किया उसने प्रेमा को घोड़ी बनने के लिए कहा। प्रेमा सविता से कहने लगी मुझे डर लग रहा है पहले मै देखूंगी कितना बड़ा है तो बाबाजी ने वही मुरझाया हुआ लंड दिखा दिया बाबाजी का बिना खड़ा हुआ आठ इंच लंबा और साढ़े तीन इंच मोटे लंड को प्रेमा झांटों के जंगल के कारण साढ़े छः इंच का समझ बैठी और घोड़ी बन गई । सविता ने प्रेमा की साड़ी और पेटीकोट एक साथ पकड़कर ऊपर खींच दिया । बाबाजी को चुदाई का कोई खास ज्ञान नहीं था लेकिन हथियार तगड़ा था और उन्हें तो सिर्फ लंड की आग बुझाने थी । बाबाजी प्रेमा के पीछे आकर खड़े हुए । बाबा ने प्रेमा की चूत हाथ से ढूंढना चाही लेकिन उन्हें गांड़ का छेद हाथ लगा क्योंकि प्रेमा ठीक से झुकी नही थी प्रेमा की गांड़ गरम गरम महसूस हुई । बाबाजी ने छेद ढूंढने के चक्कर में गांड़ में ही उंगली डाल दी। प्रेमा कसमसाने लगी। बाबाजी ने प्रेमा की रीढ़ पकड़ कर दबाई जिससे उसकी चूत थोड़ा और ऊपर आई और सविता से कहकर प्रेमा के बिलाउज का बटन खुलवा दिया क्यूंकि बाबाजी को पकड़ने के लिए कुछ नही मिल रहा था। आखिरकार बाबाजी के हाथ ने चूत का छेद ढूंढ ही लिया लेकिन बाबाजी के हाथ की दो उंगलियां प्रेमा की चूत में फिसल कर घुस गईं प्रेमा छटपटाकर मूतने लगी। बाबाजी ने उसके मूतने का इंतजार किया और सोचने लगे ये मां बेटियां दोनो मूतने में बड़ी तेज हैं और ध्वनि गजब निकलती है। प्रेमा से अब बर्दाशप्रे से बाहर हो रहा था और उसने सविता से कहा अब खड़ी क्या है जल्दी डलवा दे रे । प्रेमा की चूत का आकार बड़ा था क्यूंकि वो दो बच्चों की मां थी लेकिन बाबाजी जी को पता था कि उनका खड़ा लंड प्रेमा की चूत में नही जाएगा। तो उन्होंने एक बार फिर अपने पेट को अंदर खींचा और आधे लंड को हाथ से धकेलकर अंदर कर दिया प्रेमा बोली आह! बाबाजी ऐसे ही। प्रेमा की चूत में जाते ही बाबाजी का लंड कंट्रोल से बाहर हो गया बाबाजी जी का पेट बाहर आया और लंड फूलने लगा बाबाजी ने तुरंत पूरे लंड को अंदर कर दिया अब लंड फूलकर चार इंच का हो गया । अब प्रेमा की चूत की दीवारें चरचराने लगी जब लंड ने पूरा 12 x 4.5 इंच का आकार लिया तो प्रेमा के मुंह से तेज आवाज निकली अरे माई रे जिससे बाहर नीम के पेड़ पर बैठे पंछी भी उड़ गए । बाबा जी ने लंड को बाहर निकालना चाहा लेकिन उनका लंड प्रेमा की बुर में फंस गया था और बुर के आस पास खून रिस रहा था। प्रेमा को चक्कर आ गया। सविता और बाबा दोनो डर गए। फिर सविता ने प्रेमा की ब्लाउज और साड़ी उतार फेंकी पेटीकोट को भी सिर के रास्ते निकाल लिया। उसके बाद किसी गाय की तरह उसके सिर को सहलाने लगी और बाबाजी को उसकी दोनो चूंचियां पकड़ाई और मसलने के लिए कहा। बाबाजी ने दोनो चुचियों को पकड़कर मसला और सविता ने प्रेमा की चूत के पास सहलाना शुरू कर दिया। अब जाकर प्रेमा को थोड़ा होश आया ।( प्रेमा: बहुत धीमी आवाज में) सविता तूने आज मुझे मरवा दिया आज मै पता नही घर जा पाऊंगी या नहीं। सविता के सहलाने की वजह से प्रेमा की चूत थोड़ी ढीली हुई और प्रेमा ने इतना भावुक हो कर चार शब्द बोले थे तो उसने प्रेमा की पीठ पकड़कर उसे आगे खींच लिया बाबाजी का लंड टप्प की आवाज के साथ निकल गया । प्रेमा वहीं गिर गई। कुछ देर में उसे फिर होश आया और उसने बाबाजी का लंड देख लिया । प्रेमा डर के मारे सविता के पीछे छुप गई। बाबाजी का लंड फूलकर दर्द कर रहा था। बाबाजी ने अपने संदूक से एक लेप निकाला और सविता को दे दिया उसने प्रेमा की चूत कर लगाया प्रेमा की चूत का दर्द गायब हो गया । दोनो ने पकड़कर प्रेमा को फिर से खड़ा किया रीढ़ दबाई और लंड अंदर तक डाल दिया प्रेमा फिर बेहोश हो गई लेप ने दर्द तो गायब कर दिया लेकिन घाव को तुरंत नही ठीक कर सकता था। सविता के पास दो जिम्मेदारी थी गाय को भी घर भी ले जाना था और सांड को भी चढ़वाना था। सविता ने रिस्क लिया और प्रेमा की बेहोशी में ही बाबाजी को लंड चलाने के लिए कहा ताकि रास्ता बन जाए। बाबाजी ने लंड चलाना शुरू किया तो बिलकुल जाम था।​
सविता: बाबाजी लंड को एक बार बाहर निकालो इस पर ढेर सारा थूक लगाकर प्रेमा के उठने से पहले पेल दो।​
बाबाजी ने लंड निकाला देर सारा थूक लगाया और दोबारा लंड प्रेमा की चूत में पेल दिया।​
सविता: धक्के लगाओ बाबाजी नही तो गड़बड़ हो जाएगी।​
बाबाजी ने धक्के लगाने शुरू किए धीरे धीरे रास्ता बनना शुरू हुआ, दर्द खत्म करने वाला लेप तो लगा ही हुआ था। सविता ने बाबाजी को लंड चूत में ही डालकर चुपचाप खड़ा रहने की सलाह दी और दोनो प्रेमा के होश आने का इंतजार करती रहे। इस बीच बाबा प्रेमा की दोनो चूंचियों को मसलते रहे और सविता प्रेमा की चूत और गांड़ के इलाके को सहलाकर नरम करती रही । आखिरकार प्रेमा को होश आया उसकी चूत कई जगह छिल गई थी लेकिन दर्द गायब था। लंड अंदर बाहर होने से प्रेमा की चूत से भी काम रस बह रहा था अब उसे भी लंड का अंदर होना अच्छा लग रहा था लेकिन घोड़ी बनने के कारण वो कुछ कर नही सकती थी। उसने खुद को आगे बढ़ाया और बाबा का लंड टप्प से कर के फिर बाहर आ गया। इस बार प्रेमा ने आगे से लंड लेने के लिए मुड़ी तो सविता ने उसकी आंखे ढंक दी। बाबाजी ने दोनो हाथों से प्रेम को पकड़ा और लंड को नीचे से घुसेड़ते हुए ताबड़तोड़ धक्कों की बौछार कर दी इस बार प्रेमा को चक्कर नही आया इसलिए वो छटपटाने चिल्लाने लगी।​
प्रेमा: अअ अ रे मा आ आ आ ईईई रे कंचअ अ नवा के माई आज मरवावे ले आई है।​
आह आ ईई ईई ऊऊह आ आ आ सी ईई आह​
जब उसकी चूत चर्राने लगी तो उसने बाबाजी को नोचना शुरू कर दिया तो सविता ने उसका दोनो हाथ पकड़ रस्सी से बांध दिया । सविता ने बाबाजी को बताया और वो चोदते चोदते प्रेमा का दूध पीने लगे अब प्रेमा भी धक्के में साथ देने लगी और अब विरोध करना बंद कर दिया।​
बाबा का पूरे जीवन का वीर्य इकट्ठा था । आधे घंटे चली चुदाई में दो बार झड़ने के बावजूद बैठा नही इतने में प्रेमा पांच बार झड़ चुकी थी और वहीं गिर के सोने लगी चूत पूरी जलते वीर्य से भर गई थी। अब क्या किया जा सकता था । एक ही विकल्प था सविता की चूत मारी जाए लेकिन समस्या ये थी उसे कौन पकड़ता । फिर दोनो वापिस कैसे जाएंगी।​
सविता ने कहा प्रेमा की गांऽऽऽऽऽऽड और चुप हो गई। जब दो बच्चे निकालने वाली चूत न सह पाई बाबाजी के खूंटे तो गांड़ कैसे सह सकती थी तो यह विकल्प भी नहीं था।​
फिर सविता ने बाबाजी को प्रेमा को फिर से तैयार करने की सलाह दी । बाबाजी ने प्रेमा की दोनो चूंचियों से जबरदस्ती 200-200 ml दूध खींचा, उसके बाद सविता की सलाह पर चूत को चाटना शुरू किया। बाबाजी ने चूत को चाटने की बजाय चूसना शुरू कर दिया जिससे अंदर की कोशिकाएं बाहर की ओर खिंचने लगीं और प्रेमा को तेज गुदगुदी लगी वह आह आह आह बाबाजी अपना मूसल डाल दो आह बाबाजी इस बार अपने आसन पर बैठकर प्रेमा को अपनी गोद में बिठा लिया और उसके होंठों को चूसने लगे ।बाबाजी का लंड प्रेमा की गांड़ की दरार में घुस रहा था। प्रेमा ने मदहोशी में बाबाजी जी का लंड चूत पर लगाकर धीरे बैठ गई। इस बार बाबाजी होंठ और चूंची चाटते रहे प्रेमा ने खुद ही उछल उछलकर चुदाई की और झड़ गई । बाबाजी प्रेमा की चूत में लंड डाले हुए ही उठे साथ में ही प्रेमा को भी दोनों हाथों से उठाया और सविता को प्रेमा के दोनो हाथ पकड़ने को कहा जो इन दोनो की चुदाई देखकर अपनी चूत में उंगली कर रही थी। बाबाजी ने रफ्तार पकड़ी और सटा सट सटा सट चोदना शुरू कर दिया प्रेमा आह आह करती रही उसके आंख से आंसू भी ढुलकते रहे। करीब 35 मिनट चोदने के बाद बाबाजी का लंड झुक गया। उन्होंने तुरंत ही अपना लंगोट बांध लिया। प्रेमा निढाल हो गई । बाबाजी ने एक कपड़े से प्रेमा की बुर पोंछी और लेप लगाया, चुंचियो पर भी लेप लगाया। उसे सविता से कपड़ा पहनवाया और अपने बिस्तर पर लिटा दिया माथे पर थोड़ा पानी छिड़क दिया।​
सविता की चूत बेचारी तड़पती रही।​
सविता ने बीस मिनट बाद प्रेमा को उठाया वह उठ गई बाबा जी ने दोनो को हल्का भोजन करवाया, शरबत पिलाया तब जाकर प्रेमा का चित सही हुआ।​
बाबाजी: ठीक है फिर तुम लोग जाओ अब फिर मिलेंगे।​
प्रेमा: नही ऐसे कैसे चली जाऊंगी।​
सविता की चूत में तो आग लगी ही थी वह बोल पड़ी।​
सविता: तो क्या अपनी गांड़ फी फड़वाएगी।​
प्रेमा: नही सविता बुरचोदी... तुमने मुझे लाकर फंसा दिया ... जान तेरी चूत बाबाजी नही फाड़ेंगे तब तक नहीं जाऊंगी। प्रेमा हाथ धोने के लिए बाहर जाने को उठी लेकिन लठखड़ाकर गिर पड़ी।​
सविता: प्रेमा गांड़चोदव तुम्हे घर तक कौन छोड़ेगा।​
बाबाजी: प्रेमा! सविता सही कह रही है।​
प्रेमा: ठीक है लेकिन बाबाजी वादा करो कि एकदिन इसकी भी चूत के साथ ही गांड़ भी फाड़ोगे।​
बाबाजी: इसके बारे में सविता से पूछो।​
प्रेमा: क्यों रे सविता रण्डी मुझे क्यों बहलाकर ले आई ।​
सविता: ठीक है मै तैयार हूं जब तू कहे प्रेमा बुरचोदी ।​
प्रेमा: अब बताओ बाबाजी! जब इसे लाऊंगी तो इसकी चूत फाड़ोगे की नही?​
बाबाजी: (मन में सोचते हुए सविता ने आज मेरी बहुत मदद की है) ठीक है सविता तैयार हो तभी लाना।​
सविता सहारा देते हुए प्रेमा को घर लाई। और चंद्रभान को कमर में मोच का बहाना बता दिया ।​
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ये पांचों तो नित अलग अलग अनुभव कर ही रहे थे। राजू और अंबर को एक और काम सौंपा गया था गोरू {गाय, बछरू (बछड़े) या भैंस} चराने का जिन्हे घर से डेढ़ किलोमीटर दूर तालाब के इर्द गिर्द चराना होता था हालांकि बरसात के दिनों में इतनी दूर नहीं जाना पड़ता था क्योंकि उस समय घर के आस पास और खाली खेतों में घनी घास उग आती थी। तालाब बड़ा था इसी तरह तालाब के उस तरफ से भी एक डेढ़ किलोमीटर दूर गांवों से लोग जानवर चराने ले आते थे। फिर जब शाम के पांच बजते तो मिट्टी के रास्ते जानवर वापिस आते और धूल उड़ने लगती इसलिए आज भी शाम का समय जब अंधेरा हो रहा होता है को अवधी लोग गौधिरिया (हिंदी -गोधूलि) कहते हैं। इसका अपना अलग ही आनंद होता था । कभी कभार जब खेत में बहुत जरूरी काम होता और मांओं को भी फुरसत न रहती तो अंजली और किरन जानवर चराने ले जाती हठ करके कंचन भी साथ हो लेती। हालांकि गांवों में उस समय इतना ईमान होता था कि अकेली लड़की भी सुनसान जगह पर मिल जाए तो कोई जबरदस्ती नहीं करता लेकिन फिर भी प्रेमा और सविता उन्हें समझा बुझा के समय से घर आने की हिदायत दे देतीं। एक बात और थी घर से एक -डेढ़ किलोमीटर दूर तालाब से जब राजू और अंबर वापिस जानवरों के ले आते तो जब घर छः सात सौ मीटर दूर रह जाता उस समय तक सब अपनी अपनी ओर निकल चुके होते अब 700 मीटर की दूरी सिर्फ राजू और अंबर के जानवर तय करते थे। वहीं पर एक बाबा तपस्या करते थे, मिट्टी की छोटी दीवार और सरपत से छाई हुई कुटिया में रहते थे बाहर एक नीम का पेड़ था। एक बार एक ब्लॉक प्रमुख ने सरकारी नल भी लगवा दिया था। बाबा ज्यादातर चैत (चैत्र या अप्रैल) और कातिक (कार्तिक या नवंबर) में क्रमशः गेहूं और धान के संचय हेतु मांगने निकलते थे। सुबह जल्दी उठना, कसरत और योग करना, प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन और तपस्या ही उनकी दिनचर्या थी। कुछ लोग उन्हें माठा (लस्सी) या खेत उगी सब्जी दे जाया करते थे। लौटते समय राजू और अंबर भी प्यास लगने पर पानी पी लिया करते थे। बाबा शाम पांच बजे तक भोजन बनाकर रख देते थे और उसके बाद विश्राम करते थे । कुटिया में दिन भर तो सूर्य का प्रकाश रहता था लेकिन साढ़े चार बजे के बाद जब सूरज पश्चिम की ओर ढलता तो प्रकाश में तीव्रता नही रह जाती थी और बाहर लगे नीम की घनेरी शाखाएं प्रकाश के रास्ते को और अवरुद्ध कर देती। एक दिन अंजली, किरन और कंचन जानवरों को लेकर वापस आ रही थी तभी कंचन ने प्यास लगने की बात कही और बाबा जी की कुटिया के पास लगे नल से पानी पीने लगी। कुटिया में कोई हलचल नहीं थी क्योंकि बाबा जी विश्राम कर रहे थे। वहीं किरन ने अपनी सलवार और चढ्ढी निकाली और नल की नाली के पास मूतने लगी नाली की मिट्टी बिल्कुल कीचड़ जैसी थी इसलिए पेशाब कीचड़ में रास्ता बनाने लगा और एक मधुर ध्वनि कंपन के साथ निकल पड़ी सुर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्र सुर्रर्रर्र ऽऽऽ. बाबा जी ने पहले सोचा था कि अंबर और राजू पानी पीने आए होंगे लेकिन अब उन्होंने सोचा कि नीलबैल (नीलगाय का नर रूप) गोबर करने आया है और आज उसको नही छोडूंगा। अक्सर नीलबैल बाबाजी की कुटिया के पास ही शाम को आकर नल के गड्ढे में पानी पीता थोड़ा इधर उधर अंगड़ाई लेता फिर गोबर करता और कभी कभी मूत कर चला जाता फिर बाबा जी को साफ करके फेंकना पड़ता नही तो उसमे गुबरैले उसमे गोली बनाते और बाबा जी कुटिया में ढकेल कर ले जाते। लेकिन जब बाबाजी ने आंख खोलकर करवट ली और बाहर झांक कर देखा तो कोई नीलबैल नही था जबकि एक सुंदर कन्या बीस तीस मीटर दूर लगे नल की नाली के पास मूत रही थी जिसकी एक दम गोरी सुडौल नरम गांड़ बाबा जी को बिल्कुल साफ दिख रही थी । किंतु कंचन अभी कच्ची थी सो बाबाजी ने ओह! अपने मन बच्ची लघुशंका कर रही है । कह कर अपना ध्यान पूरी तरह हटा लिया। किंतु इसी तरह जब एक दिन अंजली ने सलवार और चढ्ढी उतारकर गांड़ खोली और मूतने लगी तब बाबाजी की दोबारा ध्यान गया किंतु आज बाबा जी का ध्यान हटाए नही हट रहा था गोल गोल दो चबूतरे गोरी गांड़ के बीच एक सांवला छिद्र और उसके पास उगे छोटे छोटे बाल और मूतने की मधुर ध्वनि ने बाबाजी को मोह लिया आज पहली बार बाबाजी ने अपने जीवन में इस प्रकार कुंवारी कन्या की स्पष्ट गांड़ देखी थी जिसे मनभर कर देखा जा सकता था। वरना तो बाबाजी को महिलाएं रस्ता विरस्ता आते जाते मूतते हुए दिख ही जाती थी किंतु वहां ध्यान नहीं केंद्रित किया जा सकता था। खैर बाबाजी ने अपने लंड को कंट्रोल किया लेकिन थोड़ी ही देर में जैसे कछुआ अपना मुंह खोल से निकालता है लंड भी बाबा जी के ढीले लंगोट से बाहर निकल आया। बाबा जी को पता चल गया की इसमें इतने वर्षों से वीर्य संचित है अब यह बैठेगा नही और अंजली को पकड़कर या बहलाकर या मनाकर चोद भी दिया तो बेहोश हो जायेगी क्योंकि बाबा जी का बिना खड़ा हुआ एकदम काला लंड आठ इंच लंबा और साढ़े तीन इंच मोटा लटका रहता था। खड़े होने पर कितना बड़ा होगा ये बाबाजी को ही नही पता था सो बाबाजी ने लंड को लंगोट में बांधा और चुपके से निकलकर कुटिया के पीछे से जाकर उन तीनों से मिले ताकि उन्हें शक न हो बाबाजी ने देख लिया है और किरन को एक किनारे ले जाकर कहा कि अपनी मम्मी से कह देना बाबाजी ने किसी जरूरी काम के लिए बुलाया है। उसने कहा ठीक है बाबाजी।​
किरण ने यह बात अपनी मम्मी को बताई सविता ने सोचा बाबाजी ने बुलाया है तो जरूर कोई गंभीर बात होगी। दूसरे दिन सुबह शौच के उपरांत वहीं से ही सविता बाबाजी जी कुटिया के लिए निकल गई । सविता: बाबाजी आपने बुलाया था ?किरन कह रही थी। क्या हुआ? दाल वगैरह चाहिए क्या?​
बाबा: नही सविता।अब कैसे बताऊं तुम्हारे बच्चियों ने मेरी इंद्रियों का वश तुड़वा दिया।​
सविता: क्या हुआ मैं कुछ समझी नही।​
बाबा: तुम्हारी दोनो लड़कियां और प्रेमा की लड़की कल इस नल के पास,,,​
सविता: नल के पास क्या बाबाजी नल खराब कर दिया क्या बताओ मैं अभी इन हरामजादियों को दुरुस्त करके आती हूं।​
बाबाजी: वो नल के पास सलवार खोल के मूत रही थीं।​
सविता: कोई बात नही मैं उन दोनो को मना कर दूंगी।​
बाबा: लेकिन उससे मेरा मेरी इंद्रिय पर से वश छूट गया। मेरा लिंग आज चालीस साल की उम्र तक मेरे वश में था लेकिन कल शाम से आज तक बैठ नही रहा इसका क्या करूं दर्द ऊपर से हो रहा है। बीच बीच में थोड़ा सा वीर्य रिस जाता है ।​
सविता: तो मैं इसमें क्या करूं?​
बाबा: उस प्रेमा की बेटी ने मेरा इंद्रियवश भंग किया है तो मैं सोच रहा हूं की सजा भी उसे ही दूं। मै उसे ही बुला लेता लेकिन मेरा खूंटे जैसा लिंग वो संभाल नहीं पाएगी इसलिए उसे पकड़ने के लिए एक महिला जरूर चाहिए। इसलिए आपको बुलाया है। उसे लिंग के बारे में छोड़कर पूरी बात बताकर उसे सहमत करके आज दोपहर में ले आना खेत में काम के बहाने।​
सविता: अजीब आफत है । मै कोशिश करूंगी।​
और सविता जल्दी जल्दी घर आ गई​
खाना पीना करने के बाद जब फुर्सत मिली तो प्रेमा के घर गई।​
सविता : प्रेमा! क्या कर रही है।​
प्रेमा: आजा बहिनी सीधा (गेहूं पीसने के लिए पछोरकर तैयार करना) बना रही हूं आटा सिर्फ कल सुबह तक का बचा है।​
सविता : वो सब तो ठीक है पता है तुम्हरी बेटी ने बाबा जी का इंद्रियवश भंग कर दिया।​
प्रेमा: क्या बक रही है तू मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा है।​
सविता: तेरी बेटी बाबाजी की कुटी के सामने गांड़ खोलकर मूत रही थी अब उनका लंड काबू से बाहर हो गया बिना किसी योनि में गए अब शांत नही होगा।​
प्रेमा: तो मै क्या करूं?​
सविता: तेरी बेटी ने ये सब किया है तो तुम्हे ही कोई समाधान करना पड़ेगा आसमान से परी तो आयेगी नही।​
सविता ने प्रेमा को किसी तरह तैयार कर लिया।​
प्रेमा: चल एक ही बार की तो बात है।​
सविता: हां अंजली के पापा के साथ साथ एक और सही का कुछू घट जाएगा।​
प्रेमा: धत !​

बहुत ही शानदार अपडेट है
 
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अरहर के खेत में अरहर के खूब पत्ते गिरे होते हैं जिससे खेत में बैठकर मूतने पर आवाज नही आती। एक दिन राजू और अंबर मुट्ठ मारने गए थे उसी में कंचन और अंजली भी गईं हुई थी अंजली ने तेजधार से मूतना शुरू किया वहां पर पत्ते के बजाय मिट्टी थी और से तेज आवाज बनी और राजू और अंबर के कानों तक पहुंच गई। दोनों ने देखा दोनो की नंगी चिकनी गोरी गांड़ साफ दिख रही थी अंबर ने कहा जैसे मैं तेरी गांड़ मारता हूं वैसे चल अंजलि की भी मारूं । राजू: चुप साले। अंबर: तो तू जैसे मेरी गांड़ मारता है वैसे कंचन की मारना दोनो हो सकता है हम दोनो का लंड भी चूस लें और दोनो तब तक उनकी गांड़ देखते रहे जब तक चली नही गई । राजू और अम्बर दोनो ने कहा हां यार बहुत मजा आएगा और दोनो ने खूब रगड़ रगड़ के मुट्ठ मारी और खूब पानी निकला।​
एक दिन राजू अकेला गया था खेत और कंचन अकेले जा रही थी वह उसी रास्ते पर पहुंच गई जहां राजू बैठा हुआ था । राजू आ जा कंचन यहीं कर ले कहां दूर जायेगी शाम हो गई है जंगली सुअर घूमते रहते हैं। कंचन राजू के बहकावे में आ तो गई लेकिन अपनी सलवार नही खोल रही थी कह रही थी मुझे शर्म आ रही है। राजू ने कहा मुझसे कैसी शर्म पहले भी तो हम दोनो साथ जाते थे। आखिरकार उसने अपनी सलवार और चढ्ढी खोलकर बैठ गई बिल्कुल नरम चूत देखकर राजू का लंड झटके देने लग गया। तो कंचन ने कहा ये क्या हुआ तुम्हे पहले तो इससे सिर्फ पेशाब निकलता था और अब इतने ज्यादा बाल कैसे आ गए अब ये इस तरह कैसे झटका दे रहा है। राजू हां कंचन जैसे पहले ये तुम्हारे दोनो गुब्बारे जैसे नही थे अब आ गए। कंचन: ,राजू तुम्हे पता है मैं अंजली और किरण ने एक जगह इसी में बनाई है जहां हम लोग बाल बनाते हैं कहो तो मैं तुम्हारा भी बना दूंगी। ठीक है कल शाम साढ़े तीन बजे ।दोनो अलग अलग समय और निकलकर अरहर में खेत में मिल गए। कंचन राजू को वहां ले गई जहां उन्होंने जगह बना रखी थी। वहीं पर राजू को नंगा लिटाया और उसकी झांटे बनाने लगी झांटे तो बन गई लेकिन उसका लंड झटके मारने लगा। मै तो इसपर थूक भी लगाती हूं तुम भी लगवावोगे हां लगा दो उसने जैसे ही थूका राजू के लंड ने उसके ही मुंह पर थूक दिया। लंड के पानी निकलते समय राजू होश खो बैठा और उसने कंचन के मुंह को अपने लंड पर दबा दिया। मुंह की गर्माहट पाते ही लंड भी फिर खड़ा हो गया ।राजू ने आंखें बंद की और कंचन के मुंह में ही लंड को चोदने लगा और कुछ ही देर में कसकर दबाते हुए उसके आहार नाल के पास झड़ गया जिससे पूरा वीर्य उसके पेट में चला गया। कंचन कुछ समझ नहीं पाई लेकिन उसकी चूत में खुजली होने लगी किरण और अंजलि तो थी नहीं इसलिए उसने राजू से चाटने के लिए कहा। राजू को तो मजा आ गया उसने जैसे ही चूत पर मुंह रक्खा पहले से गरम चूत ने मर्द का स्पर्श पाते ही लावा उड़ेल दिया। इस प्रकार कंचन आज दो बार झड़कर खुश होकर घर चली गई।​

बहुत ही कामुक अपडेट है
 
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अपडेट -5​
प्रेमा को जितनी चोट दिन में महसूस हुई थी अंदर से कहीं अधिक चोट लगी थी। सुबह उसकी बच्चेदानी तक दुख रही थी । चूत में तो बहुत ज्यादा दर्द था विशेषकर किनारों पर जहां चूत की दरारें फट गईं थी। ..... प्रेमा ने इतना सब झेलने के कारण मन ही मन सोच लिया था की जल्दी ही सविता से बदला लूंगी। और इस हरामजादी अंजली को भी सबक सिखाऊंगी । धीरे धीरे एक हफ्ते में प्रेमा पहले जैसी हो गई।​
राजू के यहां एक गोशाला थी जिसमें दो गायें एक बछिया और एक बछड़ा था। बछड़ा कमजोर और कद में छोटा था लेकिन बछिया से उमर में बड़ा था और वह भी जवानी में नया कदम रख रहा था इसलिए कभी कभी बछिया पर चढ़ जाता था लेकिन उसका लंड नहीं निकलता था, लेकिन कुछ महीनों बाद वह बछिया गाय या कोई चारा डालने आता जैसे राजू या चंद्रभान पर भी चढ़ने की कोशिश करता शुरुआत में बछड़े ऐसे ही करते हैं और अब तो उसका नुकीला सवा फीट लंबा लंड भी निकलने लगा था। गोशाला में दोनो ओर चरही (चौकोर हौद) बनी थी और बीच में थोड़ी जगह खाली थी । बछड़ा उसी खाली जगह वाले किनारे पर बांधा जाता था और उस बीच में कोई चारा देकर वापस जा रहा होता तब एक बार चढ़कर उतर जाता। जब अचानक चढ़कर उतरता तब उसका लंड केवल चार इंच बिल्कुल नुकीला लाल लाल निकलता था। एक दिन गांव में किसी की बछिया गरम थी और चिल्ला रही थी उसे सुनकर बछड़ा बार बार अपने खूंटे पर घूम रहा था उसी समय प्रेमा चारा देने आई प्रेमा जैसे ही चारा देकर दूसरी ओर जाने के लिए बीच से निकल रही थी तभी बछड़े ने डेढ़ फीट लंबा लंड निकालते हुए प्रेमा पर चढ़ गया बछड़े के वजन से प्रेमा झुक गई बछड़े का लंड साड़ी सहित ढाई तीन इंच प्रेमा की गांड़ में घुस गया। प्रेमा घूमी और उसे छोटी सी डंडी से मारकर भाग आई। प्रेमा के लिए यह घटना अनोखी थी बाद में प्रेमा सोचने लगी की सविता ने बाबाजी के घोड़े जैसे लंड से मेरी चूत का भोसड़ा बनवाया था क्यों न इसकी गांड़ अपने बछड़े से मरवा दूं। उसने सोचा बदला लेने का ये तरीका सहर रहेगा । लेकिन उसे यह नहीं सूझ रहा था कि योजना कैसे बनाई जाए।​
.... इधर बाबा जी के सामने आने से अंजली, किरन और कंचन भी पता चल गया था कि इसमें बाबाजी आते हैं अब अगर उन्हें पानी पीने के बाद पेशाब लगती तो बाबाजी की कुटिया की दीवार की ओट में बैठकर मूतती । लेकिन बाबाजी के दिमाग में अंजली की गोरी गांड़ का दोबारा दर्शन करने की प्रबल इच्छा हो रही थी। सो बाबाजी ने दीवार में एक छेद बना लिया। आज किरन ने सलवार और चढ्ढी उतारकर गांड़ खोली और दीवार की ओट में मूतने लगी बाबाजी ने उन सब को दौर से आते देख लिया था उन्होंने छेद से देखा तो उस दिन से भी जादा नरम गांड़ गोल गोल गोरी गोरी दिख रही थी जिसके बीचोबीच काला सुराख था और मूतने की मधुर ध्वनि सुनाई दे रही थी आज बाबाजी का लौड़ा लंगोट से बाहर आ गया और झटके मारने लगा किसी तरह दोनों हाथों से पकड़कर बाबाजी ने मुट्ठ मारी और लौड़े को शांत किया। बाबाजी ने इस प्रकार अलग अलग दिन तीनों की गांड़ के दर्शन कर लिए थे और मुट्ठें भी मारी थी। लेकिन अब बाबाजी को फिर से चूत का भूत चढ़ रहा था ।​
इधर राजू और अंबर शौच करने गए तो अंबर आश्चर्यचकित रह गया राजू की झांटे तो बिलकुल साफ थी ।​
अंबर: तेरे ये बाल कहां गए। तू नाई के यह गया था? मुझे भी साथ ले चलता।​
राजू: ये बाल तेरी बहन कंचन ने साफ किए हैं।​
अंबर: साले तूने मेरी बहन से झांट के बाल बनवा लिए।​
राजू: कल तूने ही तो उन सबकी गांड़ मारने की बात की थी। चल तुझे वो जगह दिखाता हूं जहां कंचन ने झांट बनाई थी।​
राजू और अंबर जैसे ही वहां पहुंचे। पूरी तरह नंगी लेटी हुई अंजली और उसकी चूत मसल रही किरन दंग रह गए उसकी चूंचियों का मसाज कर रही कंचन तो राजू के साथ आ ही चुकी थी एक बार।​
अंजली: तुम सब यहां क्या कर रहे हो?​
अंबर: हम तो शौच के लिए आए थे । लेकिन तुम ये नंगी क्यों लेटी हो और ये अपनी मूतने की जगह को क्यों रगड़वा रही हो।​
अंजली: ऐसे ही मजा आता है । तुम सब जाओ यहां से मुझे शर्म आ रही है।​
अंबर: मुझसे कैसी शर्म कुछ साल पहले हम सब एक साथ ही बैठकर तो शौच करते थे किसका मूत कितनी दूर जाएगा शर्त लगाते थे।​
अंबर राजू की चढ्ढी नीचे खींच देता है जिससे उसका खड़ा लंड नीचे झूलने लगता है।​
राजू भी अंबर की शरारत का जवाब देता है और अंबर की चढ्ढी नीचे खींच देता है।​
अंबर: राजू कह रहा था तुम तीनों में से किसी ने इसकी झांट के बाल बनाए थे किसने बनाया था?​
कंचन खुशी से: मैंने बनाया था परसों।​
अंबर: कंचन ने राजू की झांट बनाई थी तो अंजली अब तुम मेरी झांट बनाओगी प्लीज।​
तीनों का ये खेल इतने दिन से चल रहा था कि अंजली ने शेविंग मशीन भी अरहर में ही छुपा रखी थी।​
वो थोड़ी दूर गई और शेविंग मशीन लाकर अंबर की झांट बना दी।​
अंबर को खूब गुदगुदी हुई और उसके लंड ने अंजली के मुंह पर पिचकारी मार दी । अंजली की चूत भी खुजला रही थी वह फिर नंगी लेट गई और कंचन से चूत रगड़वाने लगी । राजू बेचारा अकेले खड़ा था ।​
तो उसने किरन से कहा तुम भी लेट जाओ।​
किरन भी सलवार और कच्छी उतारकर लेट गई । थोड़ी देर कंचन के रगड़ने के बाद अंजली की आंखे बंद हो गईं तो कंचन को हटाकर अंबर ने उसकी चूत रगड़ने शुरू कर दी। इससे अंजली ने जल्दी ही पानी छोड़ दिया। राजू ने तो कंचन की चूत मुंह से भी चूस रखी थी तो उसने किरन की चूत पर मुंह रखा और दूध की तरह पीने लगा किरन को जवानी के बाद पहली बार किसी मर्द ने टच किया था उससे बर्दास्त नही हुआ और बह भी झड़ गई। धीरे धीरे सब को समझ में आ गया की चूत में लंड जाता है और लंड चूत में जाता है। इसके लिए सबने योजना बनाई कि जिस दिन दोनो के घर पर कोई न हो उस दिन हम लोग चुदम चुदाई का खेल खेलेंगे।​
लेकिन इस तरह का मौका नहीं मिल रहा था। इसलिए ये सब अरहर में ही मिलते रहे ।​

Very ,hot update
 
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ajey11

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प्रिय मित्र ajey11

कृपया कहानी में तस्वीरों का प्रयोग अवश्य करें, इससे पढ़ने में अधिक आनंद आता है|
अगली update की प्रतीक्षा में,

आपका पाठक
मेरा भी यही विचार था, किंतु लिखने के कारण व्यस्तता अधिक हो जाती है और मेरे पास कोई ऐसा संग्रह भी नही है, मुझे तस्वीरें ढूंढनी पड़ती है। इसीलिए पूर्व में मैने अनुरोध किया था कि किसी के पास कहानी से मिलती जुलती कामुक छवियों का संग्रह हो तो कमेंट के साथ एक दो पोस्ट कर दिया करें। फिर भी प्रयास करूंगा।
 

Rockstar_Rocky

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मेरा भी यही विचार था, किंतु लिखने के कारण व्यस्तता अधिक हो जाती है और मेरे पास कोई ऐसा संग्रह भी नही है, मुझे तस्वीरें ढूंढनी पड़ती है। इसीलिए पूर्व में मैने अनुरोध किया था कि किसी के पास कहानी से मिलती जुलती कामुक छवियों का संग्रह हो तो कमेंट के साथ एक दो पोस्ट कर दिया करें। फिर भी प्रयास करूंगा।

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Sanju@

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अपडेट- 7.......
चंद्रभान ने 11वीं तक पढ़ाई की थी युवावस्था में चाहता तो सरकारी नौकरी मिल जाती लेकिन उसने खेती चुनी और वर्ष भर किसानी और पशुपालन में ही लगा रहता था, इन्ही सब कारण से उसका शरीर बलिष्ठ था लंड भी मोटा और आठ इंच लम्बा था। खेत की सिंचाई के लिए लगे इंजन की रिपेयरिंग भी स्वयं ही करता था पशुपालन के कारण ही उसकी अच्छी खासी आय हो जाती थी जिससे उसका परिवार अभाव में नही था उसके दोनो बच्चे प्रारंभ में सरकारी स्कूल में पढ़ने के बाद गांव से सात किलोमीटर दूर कस्बे में पढ़ने जाते थे वह शिक्षा की कीमत जानता था । उसकी एक अजीब मानसिकता थी वह अपनी गायों (या जब भैंसे रखता था) को कृत्रिम विधि से गर्भाधान नही करवाता था वह इसके लिए तर्क भी देता था कि इससे सांडों का हक मारा जा रहा है और वह परंपरागत विधि से गाय को बांधकर सांड़ को गाय के ऊपर चढ़वाता था। किंतु चंद्रभान की पशुशाला में बनी हौद की ऊंचाई जादा नही थी इसलिए गाय या बछिया जब गरम होती और सांड़ उन पर छोड़ा जाता तो उनके दूसरी तरफ कूदने का डर रहता था उनका गला कस सकता था या गंभीर चोट आ सकती थी इसलिए गाय जब गरम होती तो उसे सविता भाभी की पशुशाला में गाय बांधनी पड़ती। उसे गुस्सा जल्दी नहीं आता था लेकिन जब आ जाता था तो वह क्या कर जाए कुछ नही पता।​
सीधे शब्दों में चंद्रभान पढ़ा लिखा मेहनती और सीधा साधा आदमी था लेकिन जवानी में लंड को एक ही तरफ रखने के कारण उसका लंड थोड़ा टेढ़ा हो गया था इसलिए वह जब प्रेमा की चुदाई करता उसकी गांड़ फट जाती कारण ये था कि जब चंद्रभान प्रेमा को सामने से चोदता तो उसका लंड प्रेमा की चूत की बाईं साइड ले लेता और जब पीछे से चोदता तो चूत की दाईं साइड । इस कारण से एक तरफ लंड का दबाव कम हो जाता और एक तरफ दबाव ज्यादा बढ़ जाता। चूत का एक हिस्सा हलाल हो जाता जबकि दूसरा हिस्सा कम चुदने के कारण तरसता रहता। इसलिए चंद्रभान ज्यादातर प्रेमा की एक ही तरफ से चुदाई करता था जिससे प्रेमा झड़ भी जाती और उत्तेजना भी बनी रहती जिससे प्रेमा अगले दिन मना नहीं करती थी।​
आज चंद्रभान को खेत पर कोई खास काम नहीं करना पड़ा था..... लेकिन आज जब वह खेत अपने और एक खेत के बीच की मेड़ पर बैठा फसल निहार रहा था उसी समय एक खेत जो पास के ही दूसरे गांव के एक व्यक्ति का था । उस खेत में लाल साड़ी पहने घूंघट काढ़े एक महिला निराई कर रही थी जब वह थक जाती बीच में उठकर अपनी कमर सीधी करने के लिए उठती उसके बदन में गजब का उत्साह था वह निश्छल भाव से निराई कर रही थी लेकिन उसका गदराया बदन, कसी चूंचियां गांड़ की सीमित किंतु स्पष्ट गोलाई किसी भी मर्द की नियत खराब कर सकता था। चंद्रभान तुरंत समझ गया कि उसे जरूर उसकी सास लाई होगी खेत दिखाने.... लेकिन बहू गजब मिली है कसम से (मन में) । दोनो के निराई करने के कारण घास ज्यादा इकट्ठा हो गई इस वजह से बहू ने सास का गट्ठर तो उठा दिया लेकिन बहू का गट्ठर कौन उठाए, चंद्रभान उनकी इस समस्या को भांप गया और मेड़ पर खड़ा होकर फसल का मुआयना करने के बहाने घूमने लगा। महिला ने चंद्र भान को बुलाया चंदर तनिक ये घास का गट्ठर उठा दो ......उसकी बहू ने शरम के मारे पूरा घूंघट काढ़ लिया नाभि के आसपास के हिस्से को भी छिपा लिया। चंद्रभान उसका चेहरा तो न देख सका लेकिन गट्ठर उठाते समय उसके हाथ को टच करके और उसकी गरम सांसों का कायल हो गया।​
....चंद्रभान भोजन करके बिस्तर पर आ गया और लाइट बुझा दी मन में सोचने लगा आज प्रेमा को नहीं छोडूंगा। शाम को सविता से कामुक बातें और इन लड़कियों की गांड़ का दर्शन और दस दिन से चूत में लंड न जाने के कारण प्रेमा की चूत की कोशिकाएं लगातार दिमाग को सिग्नल भेज रही थीं कि कोई लंड आकर उन्हें मसले उनकी खुजली मिटाए। प्रेमा ने रात्रि को भोजन आदि किया और बिस्तर पर जाने के लिए आंगन से कमरे में गई वहां बिल्कुल अंधेरा। प्रेमा: राजू के पापा लाइट इतनी जल्दी क्यों बुझा दी।​
चंद्रभान: ऐसे ही आ जाओ प्रेमा आवाज से दिशा पहचानकर प्रेमा बिस्तर पर आ गई लेकिन रोज की भांति आज उसका शरीर बिस्तर पर शांत नहीं था उसकी चूत में हो रही कुलबुलाहट के कारण आज वह असहज थी .....बार बार कभी इस करवट लेटती कभी उस करवट.... कभी दोनो पैरों को दबाकर चूत को सिकोड़ देती लेकिन दोबारा जब पैर खोलती तो चूत लार टपकाते हुए दोगुनी उत्तेजित हो जाती।​
चंद्रभान: तेरी कमर सही हुई की नही।​
प्रेमा: अब तो ठीक हो गई है जी।आई​
अब चंद्रभान ने बिना हलचल किए सारे कपड़े उतारकर बेड के नीचे फेंक दिया पूरा नंगा हो गया ।​
उसके बाद दूर से ही प्रेमा की साड़ी पेटीकोट सहित ऊपर कर दी।​
प्रेमा:क्या कर रहे हो।​
चंद्रभान: कुछ नही रात में कपड़े पहन कर क्या करोगी । और धीरे धीरे करके प्रेमा की चूत को आजाद कर दिया।​
और धीरे से उठकर प्रेमा की गांड़ में हाथ लगाकर उसे उठाया और अचानक अपने लंड पर बैठा दिया प्रेमा चौंक गई उसकी चूत की बाईं साइड छिलती चली गई । कुछ देर ऐसे ही बैठाए रखा और ब्लाउज उतारकर फेंक दिया और उसके दूध मसलने लगा होंठ चूमने लगा आह ओह आह ऐसे ही आह करते हुए चंदर की पीठ चूमने लगी और धीरे धीरे लंड पर उठना बैठना शुरू कर दिया। अब चंद्रभान ने भी धक्का लगाना शुरू कर दिया और सट्ट सट्ट फच्च फच्च की आवाज आने लगी। प्रेमा बड़बड़ाने लगी और जोर से और जोर से आहि आहि सीईईईई आआह । चंद्रभान: ले बुरचोदी । इस तरह पंद्रह मिनट तक रस्साकसी का दौर चलता रहा आखिरकार दोनो दो बार झड़कर लेट गए।​
लेकिन इस चुदाई में प्रेमा को किसी तरह की परेशान नहीं हुई मजा खूब आया । कारण दो थे एक तो बुर सांझ से ही पनिया रही थी और बाबाजी के घोड़े जैसे लंड ने तो प्रेमा को घोड़ी बना ही दिया था।​
चंद्रभान ने पूछा भी: प्रेमा आज मेरा लंड तेरी चूत में बहुत सरक रहा था जबकि टेढ़ा भी है।​
प्रेमा: दस दिन से उसे लंड नही मिला था न इसलिए।​
चंद्रभान ने लाइट जलाई प्रेमा की साड़ी और पेटीकोट को दूर फेंक दिया ...…. चूत चाट कर साफ कर दिया । साफ करने के बाद चूत का अवलोकन किया तो उसने पाया की चूत में टाइट पन तो है लेकिन छेद ज्यादा बड़ा हो गया है। उसका माथा ठनक गया लेकिन वह समझ नही सका कि दस दिन में ही छेद इतना बड़ा कैसे हो गया थोड़ा सा उसे गुस्सा जैसा आ गया । उसने प्रेमा की गांड़ में दो उंगली डाली और ऊपर की ओर खींचने लगा । प्रेमा : अरे आह क्या कर रहे हो।​
चंद्रभान: बुरचोदी घोड़ी बन।​
प्रेमा घोड़ी बन गई उसकी दोनो टाइट चूंचियां हवा में लटकने लगीं।​
चंद्रभान ने दोनो छुचीय को दुहा लेकिन ज्यादा दूध नही निकला क्योंकि पहली चुदाई में उसने खूब दूध खींचा था।का लंड फिर से खड़ा हो गया​
प्रेमा इस सब से तो वाकिफ थी ।​
लेकिन चंद्रभान पीछे आकर खड़ा हुआ और गांड़ की दोनो गोलाईयों को सहलाते हुए चार थप्पड़ चट्ट चट्ट लगाए।​
अचानक हुए हमले से प्रेमा ने चिल्लाते हुए पीठ को नीचे झुका लिया। उसकी गांड़ और ऊपर हो गई और चूत चंद्रभान के लंड के सामने आ गई। चंद्रभान ने लंड को चूत पर लगाया और असीमित रफ्तार से चोदने लगा। और दोनो दूधों को पकड़कर पीछे खींचने लगा बीच बीच में गांड़ पर तेज थप्पड़ मारता।​
प्रेमा: आह आराम से चोद लो क्या कर रहे हो आज।​
चंद्रभान ने आठ दस बार लंड को बच्चेदानी पर टकराया।तभी​
प्रेमा: आह...समय रहते निकाल लेना... आई आइ।​
चंद्रभान: निकालकर अपनी बहन की गांड़ में डालेगी क्या।​
प्रेमा: पेट से हो गई तो गजब हो जाएगा आ आह।​
चंद्रभान: गजब क्या हो जाएगा गाभिन हो जायेगी तो दूध तो देगी गायों के साथ तेरा भी दूध बेचूंगा।​
प्रेमा: आह.....लोग क्याआआ कहेंगेेेे े ेे और अकड़ते हुए झड़ गई ।​
तभी चंद्रभान ने हांफते हुए अपना लंड निकाला और चूतड़ पर एक तेज थप्पड़ मारा प्रेमा ने पीछे की ओर मुंह किया और बोली छोड़ दो अब हाथ जोड़ती हूं। तभी चंद्रभान ने प्रेमा का मुंह पकड़कर लंड आहारनाल के मुहाने तक घुसेड़ दिया।​
प्रेमा सारा वीर्य पी गई। चूत के तो दर्द नहीं था लेकिन थप्पड़ की वजह से प्रेमा की गांड़ लाल हो गई।​
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