अपडेट-15
राजू और अंबर की जिंदगी में सबकुछ ठीक चल रहा था उन्हें घर के सभी रिश्ते भी समझ में आ गए थे उन्हें यह भी पता चल गया था कि गांव में किसी के साथ आशिकी या अंतरंग संबंध बनाए तो धोखा हो सकता है मां बाप कि इज्जत मट्टी में मिल जाएगी। लेकिन आयु की वजह से लंड आए दिन रात के दूसरे पहर में उल्टी कर ही देता था लेकिन क्या किया जा सकता है बेचारों ने सह लिया और अपनी किस्मत समझ कर खुद को दिलासा देते रहे। सविता और प्रेमा को भी धीरे धीरे विश्वास हो गया था कि औषधि का सेवन बंद कर दिया गया है लंड की अधिक लंबाई धीरे धीरे उसके बच्चे समायोजित (एडजस्ट) कर लेंगे। जमुना प्रसाद आज फिर दोनो बछड़ों को खेत पर ले जा रहा था प्रेमा किसी काम में लगी थी सविता ने राजू से खोलने को बोल दिया बछड़ा रस्सी खुलते ही राजू को खींचने लगा प्रेमा या सजिया होतीं तो रस्सी छोड़ देतीं लेकिन राजू मर्द था उसने उसे नियंत्रित करने का प्रयास किया लेकिन उस बिगड़ैल बछड़े ने एक झटका दिया कि रस्सी राजू के हाथ से छूट जाए लेकिन राजू दुर्भाग्य से झटके में गिर गया और करीब दो मीटर तक घसीट उठा। सविता को शुरुआत में ही लगा था कि रस्सी छोड़ने को बोल दे लेकिन बाद में उसे भरोसा हो गया था कि राजू इसे संभाल लेगा। अचानक हुए घटनाक्रम में सविता ने राजू को हाथ देकर उठाया और चुप रहने का इशारा करते हुए अपने घर ले गई।
सविता: राजू थोड़ी देर बैठ मै आती हूं।
राजू: चाची! सुनो तो......
सविता: कंचन के पापा! राजू का बछड़ा मुझसे रस्सी छुड़ा के भाग लिया।
जमुना: अभी देखता हूं। ई ससुरा बहुत बिगड़ैल है .....खेत में चलना सीख जाए तो जल्दी ही इसको चंद्रभान भइया से पूछकर इसको बेंच आऊंगा।....और जाकर बछड़े को कुछ देर दौड़ाया ताकि थक जाय फिर उसे हाथ से ही दो हाथ मारा क्योंकि खेत में ले जा रहा था इसलिए पीटना सही नही समझा।
सविता भागते भागते वापिस आई।
सविता: हे राजू! राजू: हां चाची.....क्या हुआ?
सविता: कुछ नही रे! तुझे कहीं चोट तो नही लगी?
राजू: कुछ नही दाहिने पैर का घुटना थोड़ा छिल गया है। और बाएं हाथ के बल झटके से गिरने पर ज्यादा जोर आ गया था मरोड़ जैसा दर्द है इसमें। लेकिन आप इतनी क्यों परेशान हो रही हो।
सविता: अरे राजू बेटवा! अगर चोट अंबर को लगी होती तो मैं परेशान नहीं होती । तुम्हारी मम्मी को पता चल जाएगा तो मुझे बहुत सुनाएंगी कि मेरे बेटे को इसी ने चोटिल करवा दिया।
राजू: कुछ नही होगा चाची।
सविता: तुम हाथ की चोट एक दो दिन छिपा लेना बस बाकी घुटने में दर्द होगा नही उसमे भी जल्दी पपड़ी बन कर निकल जाएगी।
राजू: ठीक है चाची मै चलता हूं।
सविता: रुक हल्दी तेल लगा देती हूं। एक घंटे रुक जा फिर हल्दी धुल कर चले जाना और घुटने में एक मरहम है वो लगा देती हूं।
राजू अब जब बड़ा होकर महिलाओं से दूर हुआ था उसके बाद से अचानक आज ही किसी महिला के इतने करीब आया था वह भी कोठरी में जिस बिस्तर पर सविता रात को सोती थी.....हां वहीं ले आई थी सविता सबसे छिपा के जो रखना था । उसने बहुत नियंत्रण की कोशिश की लेकिन उसके नागराज ने चाची के पसीने से चूत तक की खुशबू सूंघ ली थी इसीलिए बाहर झांकने का प्रयास करने लगे । राजू फंस गया था खड़ा लंड लेकर खाट पर से उठ भी नही सकता था और उधर सविता हल्दी तेल लाने गई थी। उसे जैसे ही सविता के कदमों की आहट सुनाई दी उसने अपना पेट खींच कर किसी तरह नागराज को चित कर दिया लेकिन उसने गलती कर दी थी.......वह नागराज के अगले दांव से अनजान था जैसे ही सविता राजू के पास आकर खाट पर बैठी नागराज ने दोगुनी तेजी से सिर उठाया बाहर झांकने के लिए अब एकमात्र बचे विकल्प का इस्तेमाल किया उसने एक हाथ से चुपके से लंड को दबाए रखा लेकिन इस बार दोबारा और बड़ी गलती हो गई दूसरे हाथ में दर्द था ।
सविता: पैंट ऊपर करले बेटा घुटने में मरहम लगा देती हूं।
राजू: पहले हाथ में हल्दी लगा दीजिए।
अगर दाएं हाथ से लंड को नही दबाए होता तो खुद ही हल्दी लगा लेता इसलिए ऊपर लिखे वाक्य को उसने इतने प्यार भरे लहजे में पहली बार बोला था उसमें अजीब आकर्षण और लड़कपन था। सविता जैसे मोहित सी हो गई ।
सविता: ला बेटा पहले हाथ में ही लगा देती हूं।
सविता राजू का ऐसे इलाज कर रही थी जैसे वह वैद्य हो पूरी जिम्मेदारी से, इसीलिए ज्यादा प्यार बरसाने के कारण राजू की निगाहें सविता के वक्षस्थल का अवलोकन करने ही लगीं । सविता ने राजू को शांत देखकर उसका चेहरा देखा तब उसे समझ आया कि वह एक जवान का हाथ मल रही है न कि किसी बच्चे का उसने इस काम को फौरन समेटा और मरहम के लिए पैंट उठाने के लिए बोला। अब उसे बायां हाथ हटाना ही पड़ा, अंदर नागराज तड़फड़ा रहे थे सविता को शक था कि इसके बाएं हाथ में भी चोट है इसलिए उसके हाथ हटाने पर नजर गई तो ऊंचे उभार और कसक को देखकर वह कारण नही समझ सकी कि आखिर इसका लंड खड़ा क्यों है क्या यह मेरे बारे में .........नही नही राजू मेरे अंबर की तरह अच्छा बेटा है ......फिर उसे समझ आया उसे दया आ गई बेचारे गबरू जवान मेरे राजू और अंबर इनकी अभी शादी भी हाल ही में नही होने वाली इनका भी क्या कसूर है ऊपर से सजिया ने और तंग कर दिया।
राजू: ठीक है मैं चलता हूं।
सविता: रुक कहां जा रहा है आराम कर ले ।
राजू: नही चाची चलता हूं देर हो गई अभी मम्मी पूछेंगी कहां था।
सविता: तो क्या कहेगा।
राजू: यही कि अंबर की मम्मी के पास।
सविता मन में ( हे भगवान ये अजीब लड़का है बातें बचकानी करता है और औजार पैंट में नही समा रहा....प्रेमा ये सब सुन गई तो पता नही क्या मतलब निकालेगी)
सविता: नही बेटा कह देना अंबर के साथ बातें कर रहा था।
राजू: लेकिन वह तो मेरी मम्मी के साथ गया है बीज बोने में मदद करने.......वह बराबर दाने छिड़कता है न! मुझसे ज्यादा कम हो जाता है।
सविता निरुत्तर हो गई ।
सविता: ठीक है बेटा फिर तो तू बोल देना मै घर ही था और तेरी मम्मी आ गई हों तो बोल देना यही टहल के आ रहा हूं।
प्रेमा: अंबर! इधर आ बेटा।
अंबर: क्या हुआ बड़की मम्मी।
प्रेमा: मै पूछ रही थी वो खेत में बीज बोना था राजू के पापा रिश्तेदारी गए हैं बीज भिगोया हुआ है सड़ जाएगा फुरसत हो तो साथ चलेगा।
अंबर: क्यों नही चलूंगा? चलो।
बड़ी मम्मी के साथ चलने के कारण अंबर को ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई बड़ी जिम्मेदारी संभालने जा रहा है ।
प्रेमा और अंबर बीज बोने आए थे दोनो के मध्य कोई अश्लील विचार नहीं था किंतु अंबर का बड़ा लंड फास्फोरस का घर था कोई तीली लगा दे तो आग बन जाए उससे तो जवानी इतनी बर्दाश्त नहीं होती थी कि वह सविता को भी चोरी छिपे पेशाब करते हुए देखने की सोचता था लेकिन कभी सफलता हाथ नहीं लगी। कई घंटे बीत गए घर से खाया हुआ खाना पाचन ग्रंथियों ने पचाकर गुर्दे ने पानी अलग कर दिया प्रेमा को पेशाब लग गई बाग दूर था । उसकी बेचैनी से अंबर का अश्लील मस्तिष्क जाग गया वह भांप गया बड़ी मम्मी को पेशाब लगी है आज उसे चुदी चुदाई ही सही किसी बुर के दर्शन तो हो जायेंगे। प्रेमा ने भी अंबर से यह कहने में हिचकिचाहट महसूस की कि बेटा थोड़ा उधर देखना मै पेशाब करती हूं। प्रेमा को लगा कि सामान्यतः पेशाब करूंगी तो अंबर का भी ध्यान नहीं जाएगा।
अंततः प्रेमा कम से कम बीस कदम दूर मेड़ के बगल बैठकर पेशाब करने लगी। अंबर के शातिर दिमाग ने इतनी तेज काम किया कि वह बीज छींटकते हुए मेड़ के किनारे से ही गुजरा हालांकि नजर बिलकुल सीधी थी किंतु तीन सेकंड के लिए उसने नजर प्रेमा की गांड़ पर टिका दी थी लेकिन आधी गांड़ ही दिख रही थी आधी तो साड़ी से ढकी हुई थी। लेकिन पेशाब की धार से पता चल रहा था कि प्रेमा चावल खा कर आई थी तभी उसे पेशाब पहले लग गई और कुकर की सीटी खेत में चूत बजा रहा थी।
अंबर का लंड आधी गांड़ देखकर ही पूरा बाहर आने का प्रयास करने लगा किंतु अंबर तो चल रहा था इसलिए लंड नीचे से बाहर निकलने का असफल प्रयत्न कर रहा था क्योंकि पैर की लंबाई तो बेहद अधिक थी। प्रेमा ने देखा तो सोचा कि ई अंबरवा कौन पेन रखा है जेब में ई तौ बहुत मोटी दिखाई पड़ रही है।
अंबर: राजू के मम्मी चलो हो गया बीज भी खतम हो गया और पूरे खेत में पड़ भी गया।
प्रेमा: एक बात बता ई कौन सा पेन रखा है जेब में छोटा रेडियो है का?
इतना सुनते ही लंड महोदय अंबर की मदद के लिए चुपके से छिप गए।
अंबर: कुछ तो नही है ।
प्रेमा ने दोबारा देखा तो वहां कुछ नही था बेचारी बोल के पछता रही थी।
प्रेमा (मन में): अरे ये तो लिंग था अंबर का प्रेमा तू भी बिना सोचे समझे फट से प्रश्न पूछ बैठती है। लेकिन इसका लिंग खेत में मेहनत करते हुए कैसे सख्त हो सकता है कहीं मेरी गांड़ देखकर तो नही......
प्रेमा ने खेत में मदद करवाई थी इसलिए उसने अंबर को पहले राजू के बिस्तर पर बिठाया बेना ( पंख) झला उसके बाद गुड़ देकर पानी पिलाया ।
प्रेमा: पान सुपाड़ी तो खाता नही होगा बेटा?
अंबर: नही नही आप परेशान मत होओ.
प्रेमा: बेटा थोड़ी देर आराम कर ले तो मुझे भी अच्छा लगेगा संतुष्टि मिलगी ख्वामखाह धूप में तुझे परेशान कर दिया।
आराम के दौरान विश्राम कर रहे लंड महाशय फिर विचरण करने निकल पड़े फूलकर पैंट में ही गुबार बन गए।
प्रेमा (मन में): सजिया तूने तो कमाल कर दिया राजू और अंबर अब किसी घोड़े से कम नहीं बस इन बेचारों की जवानी संभल जाय ।
ये दोनो ही घटनाएं प्रेमा और सविता के लिए सामान्य थीं लेकिन राजू और अंबर के लिए डूबते को तिनके का सहारा लग रहा था। एक बार मन कह रहा था ये सब गलत है तभी लंड की प्रेरणा से अश्लील मस्तिष्क कहता था भोग तो नही सकता लेकिन एक बार दर्शन करने में क्या हर्ज है फिर मैं अपनी मम्मी के मम्मों का दर्शन करने की थोड़ी सोच रहा हूं मैं तो राजू की मम्मी / अंबर की मम्मी के मम्मों का दर्शन करने की सोच रहा हूं।
अरहर में प्रेमा शौच के लिए गई थी कि शौच से निवृत्त होकर बाहर आई अरहर और गेहूं के बीच बने मेढ़ पर चल कर वापिस जा रही थी कि तभी अंबर जो कि शाम की वजह से दूर शौच करने गया था सिर नीचे की ओर करके मस्ती में आ रहा था कि तभी एक नीलबैल (नीलगाय का नर रूप जिसके नुकीले सींग होते हैं) उसकी ओर दौड़ता हुआ दिखाई दिया यह वही नील बैल था जो बाबा की कुटिया के पास गोबर करता था । दरअसल नीलबैल को किसी ने अपने खेत में चरते हुए देख कर उसे ह् वा ह् वा कर के भगा दिया था रास्ते में छिपने की जगह न पाकर वह अरहर की ओर भागा था लेकिन अंबर को देखकर उसे लगा कि लोग उसे घेर रहे हैं और वह सरपट बाग की ओर भागा । नीलबैल और बाग के बीच ऐसा कोण बन रहा था कि अंबर को लगा वह उसकी ओर आ रहा है। अचानक अंबर गांव की ओर भागा जब प्रेमा से पांच फीट दूरी रह रह गई तब उसका ध्यान प्रेमा की ओर गया।
प्रेमा पीछे मुड़ी राजू ने अपनी रफ्तार पर ब्रेक लगाई और अनियंत्रित होकर प्रेमा को लेकर गेंहू के खेत में ही लोट गया ।
अंबर ऊपर होता तो झट से उठ जाता लेकिन वह नीचे आ गया था ऊपर प्रेमा थी पहले तो दोनो को कुछ समझ ही नही आया प्रेमा का वक्षस्थल अंबर के सीने पर रख उठा वह प्रेमा के उठने का इंतजार करने लगा प्रेमा की साड़ी अस्त व्यस्त हो गई थी ...... दोनों को एक दूसरी के शरीर की गरमी महसूस हो रही थी....जोर लगाकर किसी तरह प्रेमा उठ गई अपना आंचल ठीक किया ।
प्रेमा जब उठने के लिए जोर लगाई तो अंबर का मन कह रहा था कि दोनो हाथ से पकड़ के इसी गेहूं में बेलन की तरह घूम जाए लेकिन हिम्मत नही हुई।
अंबर ने पूरा घटना क्रम सुनाया।
प्रेमा: अंबर बेटा तुझे बुखार है क्या?
अंबर: नही तो।
प्रेमा (मन में): शरीर तो इसकी दहक रही थी।