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Incest चाची - भतीजे के गुलछर्रे

Ek number

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मुन्नी ने मन भर कर भाभी की चूचियाँ चूसीं और बीच में ही मुंह से निकाल कर बोली. "भाभी अब जल्दी से माँ बन जाओ, जब इनमें दूध आएगा तो मैं ही पिया करूंगी, अपने बच्चे के लिये और कोई इन्तजाम कर लेना." और फ़िर मन लगा कर उन मुलायम स्तनों का पान करने लगी. "जरूर पिलाऊँगी मेरी रानी, तेरे भैया भी यही कहते हैं. एक चूची से तू पीना और एक से तेरे भैया." मेनका मुन्नी के मुंह को अपने स्तन पर दबाते हुए बोली.

अपने निप्पल में उठती मीठी चुभन से मेनका निहाल हो गई थी. अपनी पेन्टी उसने उतार फ़ेकी और फ़िर दोनों जांघों में मुन्नी के शरीर को जकडकर उसे हचकते हुए मेनका अपनी बुर उस की कोमल जांघों पर रगडने लगी. मेनका के कडे मदनमणि को अपनी जांघ पर रगडता महसूस करके मुन्नी अधीर हो उठी. "भाभी, मुझे अपनी चूत चूसने दो ना प्लीज़"

"तो चल आजा मेरी प्यारी बहन, जी भर के चूस अपनी भाभी की बुर, पी जा उसका नमकीन पानी" कहकर मेनका अपनी मांसल जांघें फैला कर पलंग पर लेट गयी. एक तकिया उसने अपने नितंबों के नीचे रख लिया जिससे उसकी बुर ऊपर उठ कर साफ़ दिखने लगी.


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वासना से तडपती वह कमसिन लडकी अपनी भाभी की टांगों के बीच लेट गयी. मेनका की रसीली बुर ठीक उसकी आँखों के सामने थी. घनी काली झांटों के बीच की गहरी लकीर में से लाल लाल बुर का छेद दिख रहा था. "हाय भाभी, कितनी घनी और रेशम जैसी झांटें हैं तुम्हारी, काटती नहीं कभी?" उसने बालों में उँगलियाँ डालते हुए पूछा.

"नहीं री, तेरे भैया मना करते हैं, उन्हें घनी झांटें बहुत अच्छी लगती हैं." मेनका मुस्कुराती हुई बोली. "हाँ भाभी, बहुत प्यारी हैं, मत काटा करो, मेरी भी बढ जाएं तो मैं भी नहीं काटूँगी." मुन्नी बोली. उससे अब और न रहा गया. अपने सामने लेटी जवान भरी पूरी औरत की गीली रिसती बुर में उसने मुंह छुपा लिया और चाटने लगी. मेनका वासना से कराह उठी और मुन्नी का मुंह अपनी झांटों पर दबा कर रगडने लगी. वह इतनी गरम हो गयी थी कि तुरंत झड गयी.

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"हाय मर गयी रे मुन्नी बिटिया, तेरे प्यारे मुंह को चोदूँ, साली क्या चूसती है तू, इतनी सी बच्ची है फ़िर भी पुरानी रंडी जैसी चूसती है. पैदाइशी चुदैल है तू, ऐसा लगा ही नहीं की तू पहली बार कर रही है... कहीं तूने पहले किसी ओर की... "

“नहीं भाभी... मुझे भला ऐसा मौका कहाँ मिलेगा!!” मुन्नी ने घबराते हुए कहा

दो मिनट तक वह सिर्फ़ हाँफते हुए झडने का मजा लेती रही. फ़िर मुस्कुराकर उसने मुन्नी को बुर चूसने का सही अंदाज सिखाना शुरू किया. उसे सिखाया कि पपोटे कैसे अलग किये जाते हैं, जीभ का प्रयोग कैसे एक चम्मच की तरह रस पीने को किया जाता है और बुर को मस्त करके उसमे से और अमृत निकलने के लिये कैसे क्लिटोरिस को जीभ से रगडा जाता है.

थोडी ही देर में मुन्नी को चूत का सही ढंग से पान करना आ गया और वह इतनी मस्त चूत चूसने लगी जैसे बरसों का ज्ञान हो. मेनका पडी रही और सिसक सिसक कर बुर चुसवाने का पूरा मजा लेती रही. "चूस मेरी प्यारी बहना, और चूस अपनी भाभी की बुर, जीभ से चोद मुझे, आ ऽ ह ऽ , ऐसे ही रानी बिटिया ऽ , शा ऽ बा ऽ श."

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काफ़ी झडने के बाद उसने मुन्नी को अपनी बाहों में समेट लिया और उसे चूम चूम कर प्यार करने लगी. मुन्नी ने भी भाभी के गले में बाहें डाल दीं और चुंबन देने लगी. एक दूसरे के होंठ दोनों चुदैलें अपने अपने मुंह में दबा कर चूसने लगीं. मेनका ने अपनी जीभ मुन्नी के मुंह में डाल दी और मुन्नी उसे बेतहाशा चूसने लगी. भाभी के मुख का रसपान उसे बहुत अच्छा लग रहा था.

मेनका अपनी जीभ से मुन्नी के मुंह के अंदर के हर हिस्से को चाट रही थी, उस बच्ची के गाल, मसूडे, तालू, गला कुछ भी नहीं छोडा मेनका ने. शैतानी से उसने मुन्नी के हलक में अपनी लंबी जीभ उतार दी और गले को अंदर से चाटने और गुदगुदाने लगी. उस बच्ची को यह गुदगुदी सहन नहीं हुई और वह खाँस पडी. मेनका ने उसके खाँसते हुए मुंह को अपने होंठों में कस कर दबाये रखा और मुन्नी की अपने मुंह में उडती रसीली लार का मजा लेती रही.

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आखिर जब मेनका ने उसे छोडा तो मुन्नी का चेहरा लाल हो गया थी. "क्या भाभी, तुम बडी हरामी हो, जान बूझ कर ऐसा करती हो." मेनका उसका मुंह चूमते हुए हंसकर बोली. "तो क्या हुआ रानी? तेरा मुखरस चूसने का यह सबसे आसान उपाय है. मैने एक ब्लू फ़िल्म में देखा था."

फ़िर उस जवान नारी ने उस किशोरी के पूरे कमसिन बदन को सहलाया और खास कर उसके कोमल छोटे छोटे उरोजों को प्यार से हौले हौले मसला. फिर उसने मुन्नी को सिखाया कि कैसे निप्पलों को मुंह में लेकर चूसा जाता है. बीच में ही वह हौले से उन कोमल निप्पलों को दाँत से काट लेती थी तो मुन्नी दर्द और सुख से हुमक उठती थी. "निप्पल काटो मत ना भाभी, दुखता है, नहीं , रुको मत, हा ऽ य, और काटो, अच्छा लगता है."

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अंत में उसने मुन्नी को हाथ से हस्तमैथुन करना सिखाया."देख मुन्नी बहन, हम औरतों को अपनी वासना पूरी करने के लिये लंड की कोई जरूरत नहीं है. लंड हो तो बडा मजा आता है पर अगर अकेले हों, तो कोई बात नहीं."

मुन्नी भाभी की ओर अपनी बडी बडी आँखों से देखती हुई बोली "भाभी मैंने काफी बार गाजर डालकर मूठ मारी हुई है ." मेनका हंस कर बोली "हाँ मेरी रानी बिटिया, ककडी, केले, गाजर, मूली, लंबे वाले बैंगन इन सब से मुट्ठ मारी जा सकती है. मोटी मोमबत्ती से भी बहुत मजा आता है. धीरे धीरे सब सिखा दूँगी पर आज नहीं. आज तुझे उंगली करना सिखाती हूँ. मेरी तरफ़ देख."

मेनका रंडीयों जैसी टांगें फ़ैलाकर बैठ गयी और अपनी अंगूठे से अपने क्लिटोरिस को सहलाना शुरू कर दिया. मुन्नी ने भी ऐसा ही किया और आनंद की एक लहर उसकी बुर में दौड गयी. मेनका ने फ़िर बीच की एक उंगली अपनी खुली लाल चूत में डाल ली और अन्दर बाहर करने लगी.

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भाभी की देखादेखी मुन्नी भी उंगली से हस्तमैथुन करने लगी. पर उसका अंगूठा अपने क्लिट पर से हट गया. मेनका ने उसे समझाया. "रानी, उंगली से मुट्ठ मारो तो अंगूठा चलता ही रहना चाहिये अपने मणि पर." धीरे धीरे मेनका ने दो उंगली घुसेड लीं और अन्त में वह तीन उंगली से मुट्ठ मारने लगी. फ़चाफ़च फ़चाफ़च ऐसी आवाज उसकी गीली चूत में से निकल रही थी.

मुन्नी को लगा कि वह तीन उंगली नहीं घुसेड पायेगी पर आराम से उसकी तीनों उँगलियाँ जब खुद की कोमल बुर में चली गईं तो उसके मुंह से आश्चर्य भरी एक किलकारी निकल पडी. मेनका हंसने लगी. "अभी अभी भैया के मोटे लंड से चुदी है इसलिये अब तेरी चारों उँगलियाँ चली जाएंगी अन्दर. वैसे मजा दो उंगली से सबसे ज्यादा आता है."

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दोनों अब एक दूसरे को देख कर अपनी अपनी मुट्ठ मारने लगीं. मेनका अपने दूसरे हाथ से अपने उरोज दबाने लगी और निप्पलों को अंगूठे और एक उंगली में लेकर मसलले लगी. मुन्नी ने भी ऐसा ही किया और मस्ती में झूम उठी. अपनी चूचियाँ खुद ही दबाते हुए दोनों अब लगातार सडका लगा रही थी.

मेनका बीच बीच में अपनी उंगली अपने मुंह में डालकर अपना ही चिपचिपा रस चाट कर देखती और फिर मुट्ठ मारने लगती. मुन्नी ने भी ऐसा ही किया तो उसे अपनी खुद की चूत का स्वाद बहुत प्यारा लगा. मेनका ने शैतानी से मुस्कुराते हुए उसे पास खिसकने और मुंह खोलने को कहा. जैसे ही मुन्नी ने अपना मुंह खोला, मेनका ने अपने चूत रस से भरी चिपचिपी उँगलियाँ उसके मुंह में दे दीं.

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मेनका ने भी मुन्नी का हाथ खींच कर उसकी उँगलियाँ मुंह में दबा लीं और चाटने लगी. "यही तो अमृत है जिसके लिये यह सारे मर्द दीवाने रहते हैं. बुर का रस चूसने के लिये साले हरामी मादरचोद मरे जाते हैं. बुर के रस का लालच दे कर तुम इनसे कुछ भी करवा सकती हो. तेरे भैया तो रात रात भर मेरी बुर चूसकर भी नहीं थकते."

कई बार मुट्ठ मारने के बाद मेनका बोली. "चल छोटी अब नहीं रहा जाता. अब तुझे सिक्सटी - नाईन का आसन सिखाती हूँ. दो औरतों को आपस में संभोग करने के लिये यह सबसे मस्त आसन है. इसमें चूत और मुंह दोनों को बडा सुख मिलता है." मेनका अपने बाऐं करवट पर लेट गयी और अपनी मांसल दाहिनी जांघ उठा कर बोली. "आ मेरी प्यारी बच्ची, भाभी की टांगों में आ जा." मुन्नी उल्टी तरफ़ से मेनका की निचली जांघ पर सिर रख कर लेट गयी. पास से मेनका की बुर से बहता सफ़ेद चिपचिपा स्त्राव उसे बिल्कुल साफ़ दिख रहा था और उसमें से बडी मादक खुशबू आ रही थी. वैसे मुन्नी यह आसन आजमा ही चुकी थी पर भाभी के सामने अनजान बनने का नाटक कर रही थी।

मेनका ने उसका सिर पकड कर उसे अपनी चूत में खींच लिया और अपनी बुर के पपोटे मुन्नी के मुंह पर रख दिये. "चुंबन ले मेरे निचले होंठों का जैसे कि मेरे मुंह का ले रही थी." जब मुन्नी ने मेनका की चूत चूमना शुरू कर दिया तो मेनका बोली. "अब जीभ अन्दर डाल रानी बिटिया" मुन्नी अपनी जीभ से भाभी को चोदने लगी और उसके रिसते रस का पान करने लगी. मेनका ने अब अपनी उठी जांघ को नीचे करके मुन्नी का सिर अपनी जांघों मे जकड लिया और टांगें साइकिल की तरह चला के उसके कोमल मुंह को सीट बनाकर उसपर मुट्ठ मारने लगी.

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भाभी की मांसल जांघों में सिमट कर मुन्नी को मानो स्वर्ग मिल गया. मुन्नी मन लगा कर भाभी की चूत चूसने लगी. मेनका ने बच्ची की गोरी कमसिन टांगें फैला कर अपना मुंह उस नन्ही चूत पर जमा दिया और जीभ घुसेड घुसेड कर रसपान करने लगी. मुन्नी ने भी अपनी टांगों के बीच भाभी का सिर जकड लिया और टांगें कैंची की तरह चलाती हुई भाभी के मुंह पर हस्तमैथुन करने लगी.

दस मिनट तक कमरे में सिर्फ़ चूसने, चूमने और कराहने की आवाजें उठ रही थी. मेनका ने बीच में मुन्नी की बुर में से मुंह निकालकर कहा. "रानी मेरा क्लिटोरिस दिखता है ना?" मुन्नी ने हामी भरी. "हाँ भाभी, बेर जितना बडा हो गया है, लाल लाल है." "तो उसे मुंह में ले और चॉकलेट जैसा चूस, उसपर जीभ रगड, मुझे बहुत अच्छा लगता है मेरी बहना, तेरे भैया तो माहिर हैं इसमें."

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मेनका ने जोर जोर से साइकिल चला कर आखिर अपनी चूत झडा ली और आनंद की सिसकारियाँ भरती हुई मुन्नी के रेशमी बालों में अपनी उँगलियाँ चलाने लगी. मुन्नी को भाभी की चूत मे से रिसते पानी को चाटने में दस मिनट लग गये. तब तक वह खुद भी मेनका की जीभ से चुदती रही. मेनका ने उसका जरा सा मटर के दाने जैसा क्लिटोरिस मुंह में लेके ऐसा चूसा कि वह किशोरी भी तडप कर झड गयी. मुन्नी का दिल अपनी भाभी के प्रति प्यार और कामना से भर उठा क्योंकी उसकी प्यारी भाभी अपनी जीभ से उसे दो बार झडा चुकी थी. एक दूसरे की बुर को चाट चाट कर साफ़ करने के बाद ही दोनों चुदैल भाभी ननद कुछ शांत हुई
Nice update
 

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vakharia

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भगवान दुनिया की सारी चाचियों को रसवंती, रूपवंती और कामवंती बना दे।

चाची की चूत के चरमोत्कर्ष का रस जब बहता हुआ चूत से चरणों तक का सफर पूरा कर लेता है, तो वो चरणामृत कहलाता है.
👍👍❤️❤️
 

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मेनका ने जोर जोर से साइकिल चला कर आखिर अपनी चूत झडा ली और आनंद की सिसकारियाँ भरती हुई मुन्नी के रेशमी बालों में अपनी उँगलियाँ चलाने लगी. मुन्नी को भाभी की चूत मे से रिसते पानी को चाटने में दस मिनट लग गये. तब तक वह खुद भी मेनका की जीभ से चुदती रही. मेनका ने उसका जरा सा मटर के दाने जैसा क्लिटोरिस मुंह में लेके ऐसा चूसा कि वह किशोरी भी तडप कर झड गयी. मुन्नी का दिल अपनी भाभी के प्रति प्यार और कामना से भर उठा क्योंकी उसकी प्यारी भाभी अपनी जीभ से उसे दो बार झडा चुकी थी. एक दूसरे की बुर को चाट चाट कर साफ़ करने के बाद ही दोनों चुदैल भाभी ननद कुछ शांत हुई.

थोडा सुस्ताने के लिये दोनों रुकीं तब मेनका ने पूछा. "मुन्नी बेटी, मजा आया?" मुन्नी हुमक कर बोली "हाय भाभी कितना अच्छा लगता है बुर चूसने और चुसवाने में." मेनका बोली "अपनी प्यारी प्रेमिका के साथ सिक्सटी - नाइन करने से बढकर कोई सुख नहीं है हम जैसी चुदैलो के लिये, कितना मजा आता है एक दूसरे की बुर चूस कर. य़ह क्रीडा हम अब घंटों तक कर सकते हैं."

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"भाभी चलो और करते हैं ना" मुन्नी ने अधीरता से फ़रमाइश की और मेनका मान गयी. ननद भाभी का चूत चूसने का यह कार्यक्रम दो तीन घन्टे तक लगातार चला जब तक दोनों थक कर चूर नहीं हो गईं. मौसी के घर से लौटने के बाद पहली बार मुन्नी इतना झडी थी. आखिर लस्त होकर बिस्तर पर निश्चल पड गई. दोनों एक दूसरे की बाहों में लिपटकर प्रेमियों जैसे सो गईं.

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शाम को मेनका ने चूम कर बच्ची को उठाया. "चल मुन्नी, उठ, तेरे भैया के आने का समय हो गया. कपडे पहन ले नहीं तो नंगा देखकर फ़िर तुझ पर चढ पड़ेंगे" मुन्नी घबरा कर उठ बैठी. "भाभी मुझे बचा लो, भैया को मुझे चोदने मत देना, बहुत दुखता है."

मेनका ने उसे डांटा "पर मजे से हचक के हचक के चुदा भी तो रही थी बाद में, ’हाय भैया, चोदो मुझे’ कह कह के". मुन्नी शरमा कर बोली. "भाभी बस आज रात छोड दो, मेरी बुर को थोडा आराम मिल जाये, कल से जो तुम कहोगी, वह करूंगी". "चल अच्छा, आज तेरी चूत नहीं चुदने दूँगी." मेनका ने वादा किया और मुन्नी खुश होकर उससे लिपट गयी.

विवेक वापस आया तो तन्नाया हुआ लंड लेकर. उसके पेन्ट में से भी उसका आकार साफ़ दिख रहा था. मुन्नी उसे देख कर शरमाती हुई और कुछ घबरा कर मेनका के पीछे छुप गयी. दोपहर की चुदाई की पीडा याद कर उसका दिल भय से बैठा जा रहा था. "भाभी, भैया से कहो ना कि अब मुझे ना चोदे, मेरी बुर अभी तक दुख रही है. अब चोदा तो जरूर फ़ट जायेगी!"

मेनका ने आँख मारते हुए विवेक को झूठा डाँटते हुए कहा कि वह मुन्नी की बुर आज न चोदे.

विवेक समझ गया कि सिर्फ़ बुर न चोदने का वादा है, गांड के बारे में तो कुछ बात ही नहीं हुई. वह बोला "चलो, आज तुम्हारी चूत नहीं चोदूँगा मेरी नन्ही बहन, पर आज से तू हमारे साथ हमारे पलंग पर सोयेगी और मै और तेरी भाभी जैसा कहेंगे वैसे खुद को चुदवाएगी और हमें अपनी यह कमसिन जवानी हर तरीके से भोगने देगी."

विवेक के कहने पर मेनका ने मुन्नी की मदद से जल्दी जल्दी खाना बनाया और भोजन कर किचन की साफ़ सफाई कर तीनों नौ बजे ही बेडरूम में घुस गये. विवेक ने अपने सारे कपडे उतार दिये और अपना खडा लंड हाथ में लेकर उसे पुचकारता हुआ खुद कुर्सी में बैठ गया और भाभी ननद को एक दूसरे को नंगा करने को कहकर मजा देखने लगा.

दोनों चुदैलो के मुंह में उस रसीले लंड को देखकर पानी भर आया. मुन्नी फ़िर थोडी डर भी गई थी क्योंकी वह कुछ देर के लिये भूल ही गई थी कि विवेक का लंड कितना महाकाय है. पर उसके मन में एक अजीब वासना भी जाग उठी. वह मन ही मन सोचने लगी कि अगर भैया फ़िर से उसे जबरदस्ती चोद भी डालें तो दर्द तो होगा पर मजा भी आयेगा.

मेनका ने पहले अपने कपडे उतारे. ब्रेसियर और पेन्टी मुन्नी से उतरवाई जिससे मुन्नी भी भाभी के नंगे शरीर को पास से देखकर फ़िर उत्तेजित हो गयी. फ़िर मेनका ने हंसते हुए शरमाती हुई उस किशोरी की स्कर्ट और पेन्टी उतारी. ब्रेसियर उसने दोपहर की चुदाई के बाद पहनी ही नहीं थी. मेनका उस खूबसूरत छोकरी के नग्न शरीर को बाहों में भरकर बिस्तर पर लेट गयी और चूमने लगी. मेनका की बुर मुन्नी का कमसिन शरीर बाहों में पाकर गीली हो गई थी. साथ ही मेनका जानती थी कि आज रात मुन्नी की कैसी चुदाई होने वाली है और इसलिये उसे मुन्नी की होने वाले ठुकाई की कल्पना कर कर के और मजा आ रहा था.

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वह विवेक को बोली. "क्यों जी, वहाँ लंड को पकडकर बैठने से कुछ नहीं होगा, यहाँ आओ और इस मस्त चीज़ को लूटना शुरू करो." विवेक उठ कर पलंग पर आ गया और फ़िर दोनों पति पत्नी मिलकर उस कोमल सकुचाती किशोरी को प्यार करने के लिये उसपर चढ गये.

मेनका मुन्नी का प्यारा मीठा मुखडा चूमने लगी और विवेक ने अपना ध्यान उसके नन्हें उरोजों पर लगाया. झुक कर उन छोटे गुलाब की कलियों जैसे निप्पलों को मुंह में लिया और चूसने लगा. मुन्नी को इतना अच्छा लगा कि उसने अपनी बाहें अपने बडे भाई के गले में डाल दीं और उसका मुंह अपनी छाती पर भींच लिया कि और जोर से निप्पल चूसे.

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उधर मेनका ने मुन्नी की रसीली जीभ अपने मुंह में ले ली और उसे चूसते हुए अपने हाथों से धीरे धीरे उसकी कमसिन बुर की मालिश करने लगी. अपनी उंगली से उसने मुन्नी के क्लिटोरिस को सहलाया और चूत के पपोटॉ को दबाया और खोलकर उनमें उंगली करनी लगी.

उधर विवेक भी बारी बारी से मुन्नी के चूचुक चूस रहा था और हाथों में उन मुलायम चूचियों को लेकर प्यार से सहला रहा था. असल में उसका मन तो हो रहा था कि दोपहर की तरह उन्हें जोर जोर से बेरहमी के साथ मसले और मुन्नी को रुला दे पर उसने खुद को काबू में रखा. गांड मारने में अभी समय था और वह अभी से अपनी छोटी बहन को डराना नहीं चाहता था. उसने मन ही मन सोचा कि गांड मारते समय वह उस खूबसूरत कमसिन गुड़िया के मम्मे मन भर कर भोंपू जैसे दबाएगा.

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मुन्नी अब तक मस्त हो चुकी थी और भाभी के मुंह को मन लगा कर चूस रही थी. उसकी कच्ची जवान बुर से अब पानी बहने लगा था. मेनका ने विवेक से कहा. "लडकी मस्त हो गयी है, बुर तो देखो क्या चू रही है, अब इस अमृत को तुम चूसते हो या मैं चूस लू?"

विवेक ने उठ कर मुन्नी के सिर को अपनी ओर खींचते हुआ कहा "मेरी रानी, पहले तुम चूस लो अपनी ननद को, मैं तब तक थोडा इसके मुंह का स्वाद ले लूँ, फ़िर इसे अपना लंड चुसवाता हूँ. दोपहर को रह ही गया, यह भी बोल रही होगी कि भैया ने लंड का स्वाद भी नहीं चखाया"

विवेक ने अपने होंठ मुन्नी के कोमल होंठों पर जमा दिये और चूस चूस कर उसे चूमता हुआ अपनी छोटी बहन के मुंह का रस पीने लगा. उधर मेनका ने मुन्नी की टांगें फैलाईं और झुक कर उसकी बुर चाटने लगी. उसकी जीभ जब जब बच्ची के क्लिटोरिस पर से गुजरती तो एक धीमी सिसकी मुन्नी के विवेक के होंठों के बीच दबे मुंह से निकल जाती. उस कमसिन चूत से अब रस की धार बह रही थी और उसका पूरा फ़ायदा उठा कर मेनका बुर में जीभ घुसेड घुसेड कर उस अमृत का पान करने लगी.

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विवेक ने मुन्नी को एक आखरी बार चूम कर उसका सिर अपनी गोद में ले लिया. फ़िर अपना बडा टमाटर जैसा सुपाडा उसके गालों और होंठों पर रगडने लगा.

"ले मुन्नी, जरा अपने भैया के लंड का मजा ले, चूस कर देख क्या मजा आयेगा. डालू तेरे मुंह में?" उसने पूछा.

मुन्नी को भी सुपाडे की रेशमी मुलायम चमडी का स्पर्श बडा अच्छा लग रहा था. "हाय भैया, बिलकुल मखमल जैसा चिकना और मुलायम है." वह किलकारी भरती हुई बोली. विवेक ने उसका उत्साह बढ़ाया और लंड को मुन्नी के मुंह में पेलने लगा.

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"चूस कर तो देख, स्वाद भी उतना ही अच्छा है." मेनका ने मुन्नी की जांघों में से जरा मुंह उठाकर कहा और फ़िर बुर का पानी चूसने में लग गयी. मुन्नी अब मस्ती में चूर थी. वह अपनी जीभ निकालकर इस लंड और सुपाडे को चाटने लगी. विवेक ने काफ़ी देर उसका मजा लिया और फ़िर मुन्नी के गाल दबाता हुआ बोला. "चल बहुत खेल हो गया, अब मुंह में ले और चूस."

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गाल दबाने से मुन्नी का मुंह खुल गया और विवेक ने उसमें अपना सुपाडा घुसेड दिया. सुपाडा बडा था इस लिये मुन्नी को अपना मुंह पूरी तरह खोलना पडा. पर सुपाडा अंदर जाते ही उसे इतना मजा आया कि मुंह बंद कर के वह उसे एक बडे लोलिपोप जैसे चूसने लगी. विवेक ने एक सुख की आह भरी, अपनी छोटी बहन के प्यारे मुंह का स्पर्श उसके लंड को सहन नहीं हो रहा था. "हाय मेनका, मैं झडने वाला हूँ इस छोकरी के मुंह में. निकाल लूँ लौडा? आगे का काम शुरू करते हैं."

मेनका को मालूम था कि विवेक अपनी छोटी बहन की गांड मारने को लालायित है. उसने जब लंड का साइज़ देखा तो समझ गई कि अगर झडाया नहीं गया और इसी लंड से बच्ची की गांड मारी गई तो जरूर फ़ट जाएगी. इसलिये वह भी बोली. "ऐसा करो, मुट्ठ मार लो मुन्नी के मुंह में, उसे भी जरा इस गाढे गाढे वीर्य का स्वाद चखने दो. मै तो रोज ही पाती हूँ, आज मेरी ननद को पाने दो यह प्रसाद."
 

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मेनका ने जोर जोर से साइकिल चला कर आखिर अपनी चूत झडा ली और आनंद की सिसकारियाँ भरती हुई मुन्नी के रेशमी बालों में अपनी उँगलियाँ चलाने लगी. मुन्नी को भाभी की चूत मे से रिसते पानी को चाटने में दस मिनट लग गये. तब तक वह खुद भी मेनका की जीभ से चुदती रही. मेनका ने उसका जरा सा मटर के दाने जैसा क्लिटोरिस मुंह में लेके ऐसा चूसा कि वह किशोरी भी तडप कर झड गयी. मुन्नी का दिल अपनी भाभी के प्रति प्यार और कामना से भर उठा क्योंकी उसकी प्यारी भाभी अपनी जीभ से उसे दो बार झडा चुकी थी. एक दूसरे की बुर को चाट चाट कर साफ़ करने के बाद ही दोनों चुदैल भाभी ननद कुछ शांत हुई.

थोडा सुस्ताने के लिये दोनों रुकीं तब मेनका ने पूछा. "मुन्नी बेटी, मजा आया?" मुन्नी हुमक कर बोली "हाय भाभी कितना अच्छा लगता है बुर चूसने और चुसवाने में." मेनका बोली "अपनी प्यारी प्रेमिका के साथ सिक्सटी - नाइन करने से बढकर कोई सुख नहीं है हम जैसी चुदैलो के लिये, कितना मजा आता है एक दूसरे की बुर चूस कर. य़ह क्रीडा हम अब घंटों तक कर सकते हैं."

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"भाभी चलो और करते हैं ना" मुन्नी ने अधीरता से फ़रमाइश की और मेनका मान गयी. ननद भाभी का चूत चूसने का यह कार्यक्रम दो तीन घन्टे तक लगातार चला जब तक दोनों थक कर चूर नहीं हो गईं. मौसी के घर से लौटने के बाद पहली बार मुन्नी इतना झडी थी. आखिर लस्त होकर बिस्तर पर निश्चल पड गई. दोनों एक दूसरे की बाहों में लिपटकर प्रेमियों जैसे सो गईं.

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शाम को मेनका ने चूम कर बच्ची को उठाया. "चल मुन्नी, उठ, तेरे भैया के आने का समय हो गया. कपडे पहन ले नहीं तो नंगा देखकर फ़िर तुझ पर चढ पड़ेंगे" मुन्नी घबरा कर उठ बैठी. "भाभी मुझे बचा लो, भैया को मुझे चोदने मत देना, बहुत दुखता है."

मेनका ने उसे डांटा "पर मजे से हचक के हचक के चुदा भी तो रही थी बाद में, ’हाय भैया, चोदो मुझे’ कह कह के". मुन्नी शरमा कर बोली. "भाभी बस आज रात छोड दो, मेरी बुर को थोडा आराम मिल जाये, कल से जो तुम कहोगी, वह करूंगी". "चल अच्छा, आज तेरी चूत नहीं चुदने दूँगी." मेनका ने वादा किया और मुन्नी खुश होकर उससे लिपट गयी.

विवेक वापस आया तो तन्नाया हुआ लंड लेकर. उसके पेन्ट में से भी उसका आकार साफ़ दिख रहा था. मुन्नी उसे देख कर शरमाती हुई और कुछ घबरा कर मेनका के पीछे छुप गयी. दोपहर की चुदाई की पीडा याद कर उसका दिल भय से बैठा जा रहा था. "भाभी, भैया से कहो ना कि अब मुझे ना चोदे, मेरी बुर अभी तक दुख रही है. अब चोदा तो जरूर फ़ट जायेगी!"

मेनका ने आँख मारते हुए विवेक को झूठा डाँटते हुए कहा कि वह मुन्नी की बुर आज न चोदे.

विवेक समझ गया कि सिर्फ़ बुर न चोदने का वादा है, गांड के बारे में तो कुछ बात ही नहीं हुई. वह बोला "चलो, आज तुम्हारी चूत नहीं चोदूँगा मेरी नन्ही बहन, पर आज से तू हमारे साथ हमारे पलंग पर सोयेगी और मै और तेरी भाभी जैसा कहेंगे वैसे खुद को चुदवाएगी और हमें अपनी यह कमसिन जवानी हर तरीके से भोगने देगी."

विवेक के कहने पर मेनका ने मुन्नी की मदद से जल्दी जल्दी खाना बनाया और भोजन कर किचन की साफ़ सफाई कर तीनों नौ बजे ही बेडरूम में घुस गये. विवेक ने अपने सारे कपडे उतार दिये और अपना खडा लंड हाथ में लेकर उसे पुचकारता हुआ खुद कुर्सी में बैठ गया और भाभी ननद को एक दूसरे को नंगा करने को कहकर मजा देखने लगा.

दोनों चुदैलो के मुंह में उस रसीले लंड को देखकर पानी भर आया. मुन्नी फ़िर थोडी डर भी गई थी क्योंकी वह कुछ देर के लिये भूल ही गई थी कि विवेक का लंड कितना महाकाय है. पर उसके मन में एक अजीब वासना भी जाग उठी. वह मन ही मन सोचने लगी कि अगर भैया फ़िर से उसे जबरदस्ती चोद भी डालें तो दर्द तो होगा पर मजा भी आयेगा.

मेनका ने पहले अपने कपडे उतारे. ब्रेसियर और पेन्टी मुन्नी से उतरवाई जिससे मुन्नी भी भाभी के नंगे शरीर को पास से देखकर फ़िर उत्तेजित हो गयी. फ़िर मेनका ने हंसते हुए शरमाती हुई उस किशोरी की स्कर्ट और पेन्टी उतारी. ब्रेसियर उसने दोपहर की चुदाई के बाद पहनी ही नहीं थी. मेनका उस खूबसूरत छोकरी के नग्न शरीर को बाहों में भरकर बिस्तर पर लेट गयी और चूमने लगी. मेनका की बुर मुन्नी का कमसिन शरीर बाहों में पाकर गीली हो गई थी. साथ ही मेनका जानती थी कि आज रात मुन्नी की कैसी चुदाई होने वाली है और इसलिये उसे मुन्नी की होने वाले ठुकाई की कल्पना कर कर के और मजा आ रहा था.

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वह विवेक को बोली. "क्यों जी, वहाँ लंड को पकडकर बैठने से कुछ नहीं होगा, यहाँ आओ और इस मस्त चीज़ को लूटना शुरू करो." विवेक उठ कर पलंग पर आ गया और फ़िर दोनों पति पत्नी मिलकर उस कोमल सकुचाती किशोरी को प्यार करने के लिये उसपर चढ गये.

मेनका मुन्नी का प्यारा मीठा मुखडा चूमने लगी और विवेक ने अपना ध्यान उसके नन्हें उरोजों पर लगाया. झुक कर उन छोटे गुलाब की कलियों जैसे निप्पलों को मुंह में लिया और चूसने लगा. मुन्नी को इतना अच्छा लगा कि उसने अपनी बाहें अपने बडे भाई के गले में डाल दीं और उसका मुंह अपनी छाती पर भींच लिया कि और जोर से निप्पल चूसे.

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उधर मेनका ने मुन्नी की रसीली जीभ अपने मुंह में ले ली और उसे चूसते हुए अपने हाथों से धीरे धीरे उसकी कमसिन बुर की मालिश करने लगी. अपनी उंगली से उसने मुन्नी के क्लिटोरिस को सहलाया और चूत के पपोटॉ को दबाया और खोलकर उनमें उंगली करनी लगी.

उधर विवेक भी बारी बारी से मुन्नी के चूचुक चूस रहा था और हाथों में उन मुलायम चूचियों को लेकर प्यार से सहला रहा था. असल में उसका मन तो हो रहा था कि दोपहर की तरह उन्हें जोर जोर से बेरहमी के साथ मसले और मुन्नी को रुला दे पर उसने खुद को काबू में रखा. गांड मारने में अभी समय था और वह अभी से अपनी छोटी बहन को डराना नहीं चाहता था. उसने मन ही मन सोचा कि गांड मारते समय वह उस खूबसूरत कमसिन गुड़िया के मम्मे मन भर कर भोंपू जैसे दबाएगा.

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मुन्नी अब तक मस्त हो चुकी थी और भाभी के मुंह को मन लगा कर चूस रही थी. उसकी कच्ची जवान बुर से अब पानी बहने लगा था. मेनका ने विवेक से कहा. "लडकी मस्त हो गयी है, बुर तो देखो क्या चू रही है, अब इस अमृत को तुम चूसते हो या मैं चूस लू?"

विवेक ने उठ कर मुन्नी के सिर को अपनी ओर खींचते हुआ कहा "मेरी रानी, पहले तुम चूस लो अपनी ननद को, मैं तब तक थोडा इसके मुंह का स्वाद ले लूँ, फ़िर इसे अपना लंड चुसवाता हूँ. दोपहर को रह ही गया, यह भी बोल रही होगी कि भैया ने लंड का स्वाद भी नहीं चखाया"

विवेक ने अपने होंठ मुन्नी के कोमल होंठों पर जमा दिये और चूस चूस कर उसे चूमता हुआ अपनी छोटी बहन के मुंह का रस पीने लगा. उधर मेनका ने मुन्नी की टांगें फैलाईं और झुक कर उसकी बुर चाटने लगी. उसकी जीभ जब जब बच्ची के क्लिटोरिस पर से गुजरती तो एक धीमी सिसकी मुन्नी के विवेक के होंठों के बीच दबे मुंह से निकल जाती. उस कमसिन चूत से अब रस की धार बह रही थी और उसका पूरा फ़ायदा उठा कर मेनका बुर में जीभ घुसेड घुसेड कर उस अमृत का पान करने लगी.

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विवेक ने मुन्नी को एक आखरी बार चूम कर उसका सिर अपनी गोद में ले लिया. फ़िर अपना बडा टमाटर जैसा सुपाडा उसके गालों और होंठों पर रगडने लगा.

"ले मुन्नी, जरा अपने भैया के लंड का मजा ले, चूस कर देख क्या मजा आयेगा. डालू तेरे मुंह में?" उसने पूछा.

मुन्नी को भी सुपाडे की रेशमी मुलायम चमडी का स्पर्श बडा अच्छा लग रहा था. "हाय भैया, बिलकुल मखमल जैसा चिकना और मुलायम है." वह किलकारी भरती हुई बोली. विवेक ने उसका उत्साह बढ़ाया और लंड को मुन्नी के मुंह में पेलने लगा.

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"चूस कर तो देख, स्वाद भी उतना ही अच्छा है." मेनका ने मुन्नी की जांघों में से जरा मुंह उठाकर कहा और फ़िर बुर का पानी चूसने में लग गयी. मुन्नी अब मस्ती में चूर थी. वह अपनी जीभ निकालकर इस लंड और सुपाडे को चाटने लगी. विवेक ने काफ़ी देर उसका मजा लिया और फ़िर मुन्नी के गाल दबाता हुआ बोला. "चल बहुत खेल हो गया, अब मुंह में ले और चूस."

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गाल दबाने से मुन्नी का मुंह खुल गया और विवेक ने उसमें अपना सुपाडा घुसेड दिया. सुपाडा बडा था इस लिये मुन्नी को अपना मुंह पूरी तरह खोलना पडा. पर सुपाडा अंदर जाते ही उसे इतना मजा आया कि मुंह बंद कर के वह उसे एक बडे लोलिपोप जैसे चूसने लगी. विवेक ने एक सुख की आह भरी, अपनी छोटी बहन के प्यारे मुंह का स्पर्श उसके लंड को सहन नहीं हो रहा था. "हाय मेनका, मैं झडने वाला हूँ इस छोकरी के मुंह में. निकाल लूँ लौडा? आगे का काम शुरू करते हैं."

मेनका को मालूम था कि विवेक अपनी छोटी बहन की गांड मारने को लालायित है. उसने जब लंड का साइज़ देखा तो समझ गई कि अगर झडाया नहीं गया और इसी लंड से बच्ची की गांड मारी गई तो जरूर फ़ट जाएगी. इसलिये वह भी बोली. "ऐसा करो, मुट्ठ मार लो मुन्नी के मुंह में, उसे भी जरा इस गाढे गाढे वीर्य का स्वाद चखने दो. मै तो रोज ही पाती हूँ, आज मेरी ननद को पाने दो यह प्रसाद."
Nice &sexy👙👠💋 update
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