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ThanksSuper update
ThanksSuper update
Shaandar jabardast super hot Romanchak Update
Samar ko sari sachhai pata chal gaya par Rukma ke pyar ka pata nahi chala
Leelawati ant tak sudhri bete ko marne ka koshish ki ab der ho chuki hai shayad Samar se rishte sudharne me
Thanksबहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
Thanksसपना था या हॉलीवुड की कोई फिल्म पढ़कर मजा आ गया क्या कहानी लिख रहे हो भैया बहुत ही शानदार
Update 30
समर का मन बार बार उसे गजसिंह की बातों पर यक़ीन करने रोक रहा था.. मगर कहीं ना कहीं समर गजसिंह की कही हुई बातों में छुपी सच्चाई की तलाश कर लेना चाहता था.. समर अपने मन में ये प्राथना कर रहा था कि गजसिंह की कहीं हर बात झूठ निकले औऱ उसके मन की जीत हो.. मगर गजसिंह ने जो जो बात समर को बताइ थी उनमे से कुछ ऐसी बात थी जो सिर्फ समर जानता था औऱ उसने अपनी माँ लता को बताइ थी..
समर गजसिंह का कटा हुआ सर लेकर जब अपने घर पहुंचा तब लता धान साफ कर रही थी औऱ बाहर द्वार पर किसी के आने की आहट पाकर लता उठ खड़ी हुई औऱ बाहर झाँक कर देखी तो उसे समर खून से लथपथ दिखाई दिया.. लता द्वार पर जाकर ही समर को देखने लगी..
लता - इतना लहू? कहा चोट लगी है? मैं जाकर वैद को बुला लाती है तू बैठ यहां..
समर - मैं ठीक हूँ माँ.. ये खून उन शत्रुओ का है जिन्होंने रास्ते में राजकुमारी पर हमला किया था..
लता - तेरे ऊपर हमला हुआ था?
समर थैले से गजसिंह का सर निकालते हुए - हाँ माँ.. मैंने कहा था ना.. तेरे दोषियों को सजा दूंगा.. देख उस चांडाल का सर..
लता गजसिंह का कटा हुआ सर देखकर कुछ भी नहीं बोल सकी औऱ सन्न खड़ी रह गई..
समर अपनी माँ के चेहरे पर गजसिंह का कटा सर देखने के बाद भी ख़ुशी औऱ उल्लास के स्थान पर एक फ़िक्र औऱ बेकसी देखकर हैरान था उसके मन की हार होने लगी थी औऱ वो अब औऱ भी चिंता में डूबे जा रहा था लता के हावभाव उसके मन के मेड़ को बहा ले जा रहे थे..
लता सन्न खड़ी हुई उस कटे सर को देखकर ऐसे चुप थी जैसे जमींदार का फरमाबरदार डांट खाकर हो जाता है.. अपनी माँ की ऐसी हालत देखकर समर का शक अब यकीन में बदलने लगा था मगर अब भी उसके मन में कहीं ना कहीं अपनी माँ के लिए इज़्ज़त औऱ सम्मान था जिसके करण वो अब भी पूरी तरह यक़ीन करने में असमर्थ था..
समर - ख़ुशी नहीं हुई माँ आपको?
लता सन्नाटे से बाहर आती हुई - समर तूने सच में गजसिंह को मार डाला..
समर - माँ आपका अपमान करने वाले को मैं कैसे छोड़ सकता हूँ? मेंने कहा था ना मैं इस जालिम को एक ना एक दिन जरूर ढूंढ़ के मौत के घाट उतार दूंगा.. मैंने उतार दिया..
लता आगे कुछ नहीं बोलती औऱ भीतर चली जाती है.. समर लता का ये व्यवहार समझ नहीं पाया था उसके मन में लता के मन के भाव जानने की इच्छा थी जो अब पूरी नहीं उसी थी.. समर ने गजसिंह का सर घर से थोड़ा दूर लेकर लकड़ियों के साथ जला दिया औऱ वापस घर आ गया..
रात होने पर लता ने खाना पकाया था मगर अब तक लता ने समर से कुछ बात ना की थी.. रात का खाना खाते हुए समर ने लता से कहा..
समर - माँ आप इतनी बेचैन क्यों है?
लता मुस्कुराते का नाटक करती हुई - नहीं तो बेटा.. मैं तो बहुत खुश हूँ तूने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेकर साबित कर दिया कि तू भी सच्चा मर्द है.. एक माँ को इससे ज्यादा औऱ क्या ख़ुशी होगी.. ले.. खा ना.. आज स्वाद नहीं बना भोजन?
समर लता की बातों के पीछे उसके भाव उसके बनावटी चेहरे से बखूबी पढ़ रहा था उसने खाना खाया औऱ उठकर सोने चला गया.. अब उसके मन में गजसिंह की बातें पूरी तरह उतर चुकी थी.. उसे लग्ने लेगा था कि गजसिंह जो कुछ कह रहा था सब सच औऱ सत्य है..
समर को गजसिंह की एक बात याद आने लगी.. गजसिंह ने कहा था उसके बाजू पर बना निशान लता की गांड पर भी है गौतम ने तय करलिया था की वो अपनी माँ के गांड के निशान को देखकर रहेगा..
आधी से ज्यादा का समय बीत चूका था समर चारपाई से उठकर भीतर सो रही अपनी माँ लता के पास जाने लगा.. अंदर दिए की रोशनी में उसे लता सोती दिखी.. देखने से लगता था कि लता सो गई है मगर वो सोइ नहीं थी.. समर लता के करीब जाकर चटाई पर लेट गया जिसका आभास लता को हो चूका था औऱ उसका मन उथल पुथल मचाने लगा था.
लता ये सोच कर शाम से ही डरही थी कहीं गजसिंह ने समर को सारी सच्चाई ना बता दी हो वही समर इस बात से डर रहा था कि गजसिह की बटाइ बातें सच ना हो..
समर बाती की रोशनी जमीन पर चटाई पर सो रही अपने माँ लता की गांड के पास लेजाकर अपनी माँ लता के घाघरे को धीरे धोरे ऊपर करने लगा.. लता समझ गई थी की समर निशान देखने की कोशिश कर रहा है..
समर ने धीरे धीरे जांघो तक घाघरा उठा लिया औऱ अब उसे गांड पर बना निशान हल्का सा दिखने लगा था कि लता ने समर का हाथ पकड़ते हुए उसे अपना घाघरा औऱ ऊपर उठाने से रोक दिया औऱ बोली..
लता - औऱ ऊपर मतकर समर.. रात बहुत हो गई है.. यही मेरे पास सो जा..
समर अपनी माँ लता के बदल में चटाई पर लेटते हुए - यानी जो कुछ गजसिंह कह रहा था सब सच है.. (समर की आँखों से आंसू बहने लगे थे)
लता समर के आंसू पोंछकर - मैंने अबतक जो भी किया कभी मज़बूरी में तो कभी हमारी भलाई के लिए किया है समर..
समर - आपने बाबूजी को..
लता समर का गाल सहलाती हुई - अगर मैं नहीं मारती तो वो मुझे मार देता बेटा..
समर - उस रात जो हुआ सब आपकी मर्ज़ी से हुआ?
लता - उन बातों को भूला दे समर.. उनसे किसी का भला नहीं होगा..
समर - वापसी का रास्ता भी आपने ही बताया था गजसिंह को?
लता समर को बाहों में लेकर सर सहलाती हुई - मैं मजबूर थी बेटा..
समर - माँ राजकुमारी को कुछ भी हो सकता था. वो डर गई थी..
लता - वो तो राजकुमारी है समर.. हम जेसो का क्या? इतने बड़े खतरे को टालने के बाद भी जागीरदार ने तुझे याद तक नहीं किया..
समर लता को देखकर - मैंने किसी को नहीं बताया कि मैंने गजसिंह औऱ कर्मा को मार दिया है.. इसलिए सब उन दोनों को ढूंढ़ रहे है..
लता - बता भी देगा तो कोनसा वीरेंद्र सिंह तेरे लिए महल के दरवाजे खोल देगा? समर मैंने दुनिया देखी है मुझे परख है सबकी.. तू मुझसे प्रेम करता है ये तुझे अब साबित करना होगा.. मेरी गलती के लिए तू मुझे माफ़ कर.. और मेरी बात सुन समर.. वीरेंद्र सिंह औऱ जागीर के प्रति तेरी निष्ठा तुझे तकलीफ ही देगी..
ये कहते हुए लता ने समर को अपने गले से लगा लिया औऱ उसके समर के सर को अपनी चाती में घुसाती हुई बातों में हाथ फेरकार सुलाने लगी.. समर थका हुआ बोझाल आँखों के साथ नींद के हवाले होने लगा था. कुछ देर बाद उसे लता की बाहों में नींद आ गई..
सुबह समर उठा तो लता ने उसके आगे रसोई परोस दी जिसे ठुकराते हुए समर ने लता से कहा..
समर - मैं अब आपके हाथ का खाना नहीं खा सकता.. मेरी निष्ठा औऱ कर्त्तग्यता जागीरदार के प्रति है.. मैं उनसे गद्दारी नहीं कर सकता है.. आपने जो किया गलत किया.. मैं आपके साथ अब औऱ नहीं रह सकता..
लता चिंता से सुबकती हुई - समर तू जागीरदार को अपनी माँ के बारे में सब बता देगा? बेटा तू जानता है गद्दार को कैसी सजा मिलती है.. मेरी बात सुन बेटा.. मैं तेरी माँ हूँ.. मेरे साथ ऐसा मत कर..
समर - मेरा हाथ छोड़ दो.. मैं अब औऱ यहां नहीं रुकने वाला.. रात को सच्चाई जानने के बाद एक पाल के लिए में गुम राह जरूर हुआ था मगर अब मुझे होश आ गया है..
लता भय चिंता औऱ क्रोध से भरते हुए बोली - समर अगर तूने घर से कदम बाहर रखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.. मैं आखिरी बार कहती हूँ रुक जा समर..
समर लता की बात नहीं सुनता औऱ घर से चला जाता वही लता सोचने लगती है की समर जागीरदार को उसके सच्चाई बता देगा औऱ जागीरदार गद्दारों को मिलने वाली दर्दनाक मौत की सजा लता को भी देगा.. मगर समर के मन में लता के प्रति प्रेम औऱ सम्मान पूरी तरह से नहीं निकला था.. उसने लता के बारे में जागीरदार को बताने के बारे में नहीं सोचा था औऱ ना ही वो अपनी माँ की जासूसी के बारे में बताना चाहता था.. वो जानता था की जागीरदार को अगर वो लता की सच्चाई बता देगा तो लता कितनी कड़ी सजा मिलेगी..
लता को समर पर क्रोध आ रहा था वही उसके चिंता भी थी की समर्थन अब जागीरदार को सब सच बता देगा औऱ भय इस बात का था कि जागीरदार उसे एक दर्दनाक भयानक मौत देगा.. लता ने अपने एक साथी लंगड़ू के पास चली गई जिसे समर अपने मामा के रूप में जानता था क्युकी लता ने बचपन से लंगड़ू को अपना भाई बनाकर समर से मिलवाया था...
क्रोध भय औऱ चिंता से भरी हुई लता ने लंगड़ू से कुछ बात की औऱ उसके 4-5 साथियो से साथ हो गई वही समर महल के जनाना कश के बाहर पहरेदारी ओर खड़ा हो गया..
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सुन रे कागा नगर बता
जहा जाकर ढूँढू मीत पुराना
कबतक औऱ किस-किस को सुनाये
मिलन की रतिया गीत पुराना
विराह की बाते कर मो से
उ याद दिलावे भीत पुराना
हाय रे बैरी ज़ी ना छोड़े
ज़ी से गावे संगीत पुराना
सुन रे कागा नगर बता
जहा जाकर ढूँढू मीत पुराना
बैरागी सांझ ढले महल के पीछे उद्यान में बैठे हुए गीत गुनगुना रहा था..
उसके आस पास औऱ कोई नहीं था.. रात्रि का काला प्रकाश उजाले को निगलने ही वाला था.. बैरागी बंद आँख से अपने अतीत की स्वर्णिम यादो की मिठास में खोया हुआ था उसे कब सुबह से दिन हुआ औऱ दिन से रात हुई पता ही नहीं चल सका था.. बैरागी बस गीत गाता हुआ एक नीम की ठंडी चाव में सुबह का बैठा रात तक बैठा ही रहा था..
प्रेम अगर रोग बन जाए तो रोग का उपचार आवश्यकत बन जाता है.. आपके मधुरम गीत.. सुनने वाले के कान में मिश्री सी मिठास घोल देते है मगर इसके पीछे की विराह को जानना उनके लिए चोसर के खेल से कम नहीं..
समर ने बैरागी के समीप बैठते हुए उससे कहा तो समर की बात का प्रतिउत्तर देते हुए बैरागी बोला..
प्रेम तो अपनेआप में उपचार है.. जिसके होने से फूल खिल उठता है औऱ बारिश बरसने लगती है.. पपीहे गाने लगते है औऱ पंछी गुनगुनाने.. प्रेम तो जीवन का आधार है.. प्रेम के बिना तो सब वासना है..
समर - प्रेम औऱ वासना में अंतर मनुष्य के लिए आसान नहीं रागी भईया..
बैरागी - प्रकृति के लिए तो है समर.. प्रेम करुणा है औऱ वासना क्रोध.. प्रेम कोमल है वासना क्रूर.. प्रेम कुछ देता है वासना कुछ मांगती है.. प्रेम किसी के साथ भी हो सकता है वासना हर किसी पे नहीं होती..
समर - प्रेम औऱ सम्बन्ध का अल्पज्ञान मेरी सोच की सीमाओ को सिमित रखता है रागी भईया.. आपकी बातें मेरे जैसे साधारण योद्धा के कहा समझा आ सकती है..
बैरागी - तो फिर आने का प्रयोजन बताओ समर.. बिना कारण ही तुम मुझे इस तरह मेरे एकान्त से नहीं निकालोगे.. अभी तो रात्रि भोजन में भी समय है..
समर - रानी माँ.. मेरे आने का करण रानी माँ है बरागी भईया.. उन्होंने आपको अविलम्ब उनके समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया है..
बैरागी खड़ा होता हुआ - तो चलिए.. चलकर उनके बुलावे का करण जान लेते है..
समर साथ चलते हुए आसमान देखकर - लगता है पहली बारिश कभी भी हो सकती है.. बदल मंडराने लगे है..
बैरागी - बदलो के आने से वर्षा नहीं होती समर.. ये तो बस एक ऊपरी दिखावा है जों कुछ पल उम्मीद दे चला जाता है..
समर - इतना निराश होना मृत्यु के सामान है रागी भईया.. जयसिंह ज़ी कहते है.. औऱ आप देखना आज पहली बारिश होकर ही रहेगी..
बैरागी - तुमसे किसने कहा मैं निराश हूँ? मैं तो हर पल अपने मीत की प्रीत में गीत गाते हुए आनंदित रहता हूँ.. आशातीत रहता हूँ.. उसके साथ भी उसका था उसके बाद भी उसका हूँ..
समर - कुछ बताओ ना उनके बारे में..
बैरागी - क्या बताऊ समर.. उसके बारे में कुछ भी तो शब्दो से बयाँ कर पाना कठिन है.. हाँ बस एक बात मुझे आश्चर्य की लगती है.. मृदुला का मुख तुम्हारे मुख से बिलकुल मेल खाता है.. उसके नयननक्श, रंग औऱ आँखे बिलकुल तुम्हारे जैसी थी.. जैसे तुम्हारी जुड़वाँ बहन हो..
समर - उस दिन परछाई में मैं अपना अक्स देखा था.. तब से मैं यही सोच रहा था की ये कैसे संभव है? मैं औऱ आपकी मृदुला एक सामान मुख वाले कैसे हो सकते है?
बैरागी - मुझे ये जानने में कोई रूचि नहीं समर.. हाँ तुम चाहो तो अपनी संतुस्टी के लिए जान लो.. मृदुला ने बताया था की उसे कोई औरत जंगल में छोड़ कर चली गई थी.. उसके बाद जंगल में एक साधना करने वाले आदमी ने उसे पाला.. जिसे मृदुला बाबा बोलती थी.. औऱ वो आदमी भी मृदुला को बेटी ही समझता था.. लो.. हम पहुंच गए..
बैरागी महल के जनाना हिस्से में रानी सुजाता के साथ चला जाता है औऱ समर बैरागी से बात करके महल के जनाना हिस्से के बाहर पहरेदारी पर खड़ा हो जाता है..
समर के सर में बैरागी की कही एक एक बात वापस घूमने लगी औऱ वो सोचने लगा कि क्या सच में ऐसा हो सकता है कि उसकी कोई जुड़वाँ बहन हो?
समर को रह रह कर उस पागल की याद आ रही थी जो ये बात बताता था की उस रात उसने शान्ति को बच्चा ले जाते देखा था.. समर ने ये तय कर लिया था की अब वो शान्ति से इस सच्चाई को उगलवा के रहेगा.. चाहे कुछ भी हो जाये वो सच्चाई जानकार रहेगा.. वो अधीरता से अपने पहरेदारी के समय की समाप्ति का इंतजार करने लगा..
बैरागी जब जनाना महल में पंहुचा तो उसे सुजाता रुक्मा के कश में ले गई जहा रुक्मा ज्वार में थी वैद्य भी वही बैठा था..
बैरागी के आते ही वैद्य ने कहा - मेरी उम्र तुमसे तीन गुना है बैरागी.. मगर मैं जानता हूँ मेरा ज्ञान तुमसे उतना ही अल्प है..
बैरागी - बात क्या है वैद्य ज़ी.. कुछ बताएंगे..
सुजाता - रुक्मा जब से गढ़ से वापस आई है रागी.. उसपर ज्वार चढ़ा हुआ है.. तीन दिनों से ना ठीक से खाया है ना पिया है.. बस नींद में राजकुमार कहकर चुप हो जाती है.. मुझे तो लगता है रास्ते में जो कुछ हुआ उसका भय रुक्मा के मन में बैठ गया है.. जागीरदार भी गजसिंह औऱ कर्मा की तलाश में जा चुके है उन्हें संदेसा भिजवाया है पर उनका कोई पता नहीं.. अब मुझे समझ नहीं आ रहा रागी मैं क्या करू?
वैद्य - ज्वार में जो औषधि दी जाती है मैं राजकुमारी को दे चूका हूँ पर ये ज्वार तो जाने का नाम ही नहीं लेता.. तुम ही कुछ उपाए बताओ बेटा..
बैरागी नींद में लेटी रुक्मा की जांच करके - ज्वार तो बहुत तेज़ है औऱ आपकी दी हुई औषधि भी सही है.. फिर राजकुमारी के स्वास्थ्य में सुधार क्यों नहीं हो रहा? ये आश्चर्य की बात है रानी माँ..
सुजाता - रागी अब तुम ही कोई उपाय करो..
बैरागी - मैं कुछ करता हूँ रानी माँ.. आप बाहर से समर को बुलवा दीजिये.. मुझे उससे कुछ मँगवाना है..
सुजाता ने एक पहरेदार से समर को अंदर भेजनें को कहा..
समर अंदर आकर सर झुकाते हुए - रानी माँ..
समर की आवाज रुक्मा के कानो में जाते ही उसकी आँख खुल गई औऱ उसकी नज़र समर पर पड़ते ही रुक्मा की आँखों में चमक आ गई..
बैरागी की नज़र भी रुक्मा पर पड़ गई औऱ रुक्मा जिस प्रेम लगाव औऱ तृष्णा की भावना से भरकर समर को देख रही थी उससे बैरागी को समझते देर न लगी कि रुक्मा का ज्वार किसी औषधि से नहीं बल्कि समर की उपस्थिति से ठीक होगा..
सुजाता बैरागी से - रागी.. बताओ क्या लिवाना है.. समर उपस्थित है..
बैरागी मुस्कुराते हुए - अब कुछ लिवाने की आवश्यकता नहीं है रानी माँ.. आप खाने का आदेश दीजिये.. राजकुमारी को भूख लगी है..
रुक्मा समर को देखे जा रही थी औऱ अब समर की नज़र भी रुक्मा से मिल चुकी थी मगर समर ने होनी आँख नीचे झुका ली..
सुजाता ये बात नहीं समझ सकी थी वो बोली - क्या कह रहे हो रागी? रुक्मा ने तीन दिनों से खुश नहीं खाया..
बैरागी मुस्कुराते हुए - रानी माँ.. अब आप खिलाइये.. राजकुमार सब खा लेगी.. औऱ वैद्य ज़ी के साथ समर को भी यही रहने दीजिये.. उसे राजकुमारी के कश की पहरेदारी पर लगा दीजिये.. वैद्य ज़ी को आसानी होगी..
सुजाता खाना मंगवाती है औऱ रुक्मा को खिलाने लगती है रुक्मा कश के बाहर तैनात समर को खिड़की के झरोखे से देखती हुई खाना खा लेती है..
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बैरागी बाहर आ जाता है औऱ बाहर होती बरखा देखकर मुस्कुराता आसमान औऱ फिर धरती की तरफ देखता है..
रुक्मा को खाना खिलाने के बाद सुजाता वहा से आ जाती है औऱ बैरागी को गलियारे के किनारे पर खड़ा देखकर उसके पास आ जाती है..
सुजाता - सावन की पहली बरखा.. कितनी मनोरम होती है.. मन में मोर नाचते हुए प्रतीत होते है.. कोयल की मधुर आवाज औऱ पपीहे की कुहू ह्रदय को कितना सुख देती है.. ऐसे में साजन या सजनी साथ ना ही तो सावन भी जेठ लगने लगता है..
बैरागी सुजाता को देखकर - रानी माँ.. सावन प्रेम के बंजर को हरा भरा रखने के लिए प्रकृति का वरदान है.. किसी के लिए ये वियोग का विलाप है तो किसी के लिए मिलन की मधुर बेला.. इसे देखना अपनी अपनी आँख की बात है.. जिसे जैसा लगता है वैसा कहता है.. मेरे लिए तो ये आज भी मृदुला की मनमोहक यादो से जुडा हुआ है..
सुजाता - इतना प्रेम? रागी.. मैं ये कहने की अधिकारी तो नहीं, मगर तुम मेरे पुत्र सामान हो तो कह देती हूँ.. प्रेम अविरल बहने की रीत है.. रुकने पर जैसे नदी का पानी सड़ जाता है वैसे ही प्रेम भी रुकने पर मानव के सम्पूर्ण जीवन को सड़ा कर नस्ट कर देता है.. जो हो गया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ो.. मृदुला के प्रति तुम्हारा प्रेम, मृदुला के बाद तुम्हारे जीवन को नस्ट कर रहा है.. केवल 24 वर्ष की आयु मैं यूँ बैराग धारण करना सही नहीं है.. तुम अब भी फिर से प्रेम करने औऱ प्रेम पाने के योग्य हो.. अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे विवाह योग्य स्त्री ढूंढती हूँ.. किसी के जाने से जीवन नहीं समाप्त होता..
बैरागी मुस्कुराते हुए - मिलन औऱ विरह दोनों ही प्रेम के पूरक है रानी माँ.. मैंने जितना मेरे प्रियतम के साथ मिलन का सुख भोगा है उतनी ही उसके वियोग में विराह की पीड़ा भी भोगने का पात्र हूँ..
सुजाता बैरागी के करीब आकर - रागी.. मैं कामना करती हूँ तुम्हारी पीड़ा का जल्द ही समापन हो. औऱ कोई तुम्हे उसी तरह चाहे जैसे तुम मृदुला से प्रेम करते हो..
बैरागी मुस्कुराते हुए सुजाता को देखता है औऱ सुजाता भी मुस्कुराते हुए बैरागी को देखकर वहा से चली जाती है..
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जब समर के पहरदारी करने का समय समाप्त हुआ था वो सीधा शान्ति के पास चला गया.. शांति घर के अंदर थी औऱ उसका पति खेत में गया हुआ था.. आँगन में उसके 14 का बेटा औऱ 9 की बेटी खेल रहे था.. समर ने लड़के को अपने पास बैठा लिया औऱ लड़की को अंदर शान्ति को बुलवाने भेजा..
शान्ति जब बाहर आई तो उसने समर को देखकर कहा..
शान्ति - अरे समर तू कब आया? कुछ काम था?
समर अपनी कटार निकाल कर लड़के की हथेली पर चुभाते हुए - हाँ.. मौसी.. काम तो था.. औऱ बहुत जरुरी काम था..
शान्ति - समर क्या कर रहा है.. उसे लगेगा.. रक्त आ जाएगा..
समर - आएगा.. मगर तब जब आप झूठ बोलोगी..
शान्ति - मैं समझी नहीं समर तू क्या कह रहा है?
समर - वो बुढ़ा पागल.. जो कहता ये था कि उसने तुम्हे मेरे जन्म की रात मेरे घर से एक बच्चा ले जाते हुए देखा था.. कहा ले गई थी आप वो बच्चा?
शान्ति हड़बड़ाती हुई - कोनसा बच्चा समर? क्या कह रहा है.. देख उसे लग जाएगा..
समर लड़की की हथेली पर कटार चुबो कर रक्त निकाल देता है औऱ कटार अब लड़के के गले पर लगा देता है..
समर - एक औऱ झूठ औऱ ये यही चित... मैं वापस नहीं बताऊंगी मौसी.. कहा लेकर गई थी आप वो बच्चा?
शान्ति डर से चिल्लाते हुए - जंगल.. समर छोड़ उसे..
समर - मुझे पूरी बात जाननी है मौसी..
शान्ति डरते हुए जमीन पर बैठकर समर को सारी सच्चाई बता देती है.. औऱ समर सच्चाई जानने के बाद लड़के को छोड़कर शांति के घर से निकल जाता है औऱ जंगल की तरफ उसी दिशा में जाने लगता है जहा शान्ति ने उसे बताया है..
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समर के पीछे उसकी माँ लता औऱ उसके 4-5 साथी लंगड़ू के साथ समर का पीछा कर रहे थे..
जंगल में एक जगह समर जाकर खड़ा हुआ औऱ जमीन पर गिरे हुए जामुन को खाने की नियत से उठाने के लिए नीचे झुका की पीछे से लंगड़ू का चलाया तीर समर के झुकने से उसे ना लगकर पेड़ को लगा औऱ समर अपनी तलवार निकालकर पीछे मुड़ गया जहा उसने 6 लोगो को खड़ा देखा.. लता पेड़ के पीछे छुप गई थी..
उन लोगों ने आव देखा ना ताव.. औऱ समर को मारने के लिए उसपर कुच कर दी मगर सभी लोग एक एक करके समर की तलवार के वार से जीवन को छोड़ कर चले गए.. लंगड़ू घायल होकर जमीन पर था..
लंगड़ू - समर मुझे छोड़ दे समर.. मैं तेरा मामा हूँ ना.. देख मैं तुझे नहीं मारना चाहता था.. समर... मुझे तो तेरी माँ यहाँ लाई थी..
लता एक मरे हुए साथी की तलवार उठा कर पीछे से समर पर हमला कर देती है मगर समर उसके तलवार का वार नाकाम करके एक जोरदार थप्पड़ लता के गाल पर मार देता है जिससे लता के हाथ से तलवार छुटकरा गिर जाती है औऱ लेता भी जमीन पर गिर जाती है..
समर लंगड़ू को मार देता है औऱ लेता जब वापस समर पर हमला करती है तो समर वापस उसके गाल पर थप्पड़ जड़ देता है औऱ एक लात लता की गांड पर मारकर उसको जमीन पर गिरा देता है..
लेता गुस्से में देखते हुए - खड़ा खड़ा देख क्या रहा है मार दे मुझे भी.. जागीरदार की सजा से तड़पकर मरू उससे अच्छा है तेरे हाथो से मर जाऊ...
गौतम लता की ओढ़ानी खींचकर उससे अपनी तलवार साफ करता हुआ कहता है - वैश्या को मारा नहीं जाता.. उसके साथ बदन की आग बुझाई जाती है..
ये कहते हुए समर ने अपनी तलवार एक तरफ रख दी औऱ अपनी माँ के ऊपर आ जाता है औऱ उसकी चोली फाड़ देता है..
लता एक थप्पड़ मारकर - छोड़ मुझे..
समर लेता का घाघरा उठा कर उसकी झंगिया नीचे सरका देता है औऱ अपना फंफनता हुआ लंड अपनी माँ की चुत में घुसा देता है औऱ अपनी माँ को चोदने लगता है..
लता लंड घुसते ही - समर.. अह्ह्ह्ह...
समर लगातार लता की चुत में झटके पर झटके मारके अपनी माँ लता उर्फ़ लीलावती को चोदने लगता है जिससे लता भी अब कामुक होने लगती है.. पहलेपहल विरोध औऱ बगावत करने वाली लता अब काम पीपासा से भर गई थी.. उसकी सारी चिंता, भय औऱ क्रोध अब काम की अग्नि में जलकर स्वाह हो गई थी...
कुछ देर पहले तक लता अपने बेटे समर के प्राण लेने पर उतारु थी मगर अब वो समर के नीचे पड़ी हुई समर की मर्दानगी से प्रभावित होकर समर को देख रही थी.. समर के सुन्दर मुखमंडल को देखते हुए लता चुदाई का सुख भोगने लगी थी अभी तक उसने अपनी औऱ से कोई शुरुआत नहीं की थी मगर अब उसने समर का विरोध करना भी छोड़ दिया था.
समर लगातार चोदते हुए अपनी माँ को गुस्से की नज़र से देख रहा था मगर अब लता की आँखों में समर के प्रति गुस्सा नहीं था बल्कि प्रेम उतर चूका था..
समर के मजबूत औऱ बड़े लंड की चोट खाकर लता गजसिंह के बूढ़े पतले औऱ अदमरे लंड को भूल चुकी थी..
समर के लंड की ठोकरे खाकर लता की चुत ने अपने बाँध का पानी छोड़ दिया औऱ वो झड़ गई जिससे अब समर का लंड औऱ आसानी से लता की चुत में अंदर बाहर होने लगा औऱ थप थप घप घप की आवाज का औऱ भी अधिक मधुरम संगीत आस पास सुनाई देने लगा..
समर चोदते हुए लता का एक बोबा पकड़कर मसलते हुए पहली बार अपने होंठ लता के होंठों ओर रख देता है जिसे लता अपने होंठों से चूमने लगती है औऱ अपने दोनों हाथ समर के गले में डालकर उसके बाल सहलाते हुए समर के मुंह में अपनी जीभ डाल देती है औऱ समर एक दम से लता के इस व्यवहार से चौंक जाता है मगर लता की कामकला में पारंगत होने के करण समर लता को रोक नहीं पाता औऱ लता के मुख का स्वाद लेने लगता है..
समर को चोदते हुए काफी देर हो गई थी मगर उसका निकला नहीं था लता ने समर को धक्का देते हुए पलट दिया औऱ उसके ऊपर आकर जोर जोर से अपनी गांड हिलाने लगी जिससे समर सम्भोग के जाल में बुरी तरह फंस गया.. स्मार्ट अब लता को अपनी माँ या गद्दार के रूप में नहीं बल्कि एक चुदाई के सामान के रूप में देखने लगा था..
उसे लगा था की वो लता को चोद कर सजा देगा मगर अब लता ही समर को चोद रही थी औऱ उसके साथ अपनी भी काम इच्छा संतुष्ट कर रही थी..
लता फिर से झड़ने की कगार पर थी औऱ समर भी लता के गांड हिलाने की कला से अब झड़ने के नज़दीक था..
दोनों एक साथ झड़ते हुए सम्भोग के शिखर तक पहुंच गए.. फिर लता समर के ऊपर ही गिर गई...
लता के चुचक समर के सीने में चुभ रहे थे.. जो उसे एक मीठा औऱ दिलकश अहसास देने लगे थे.. समर का सारा गुस्सा लता की चुत ने शांत कर दिया था औऱ अब समर को केवल लता से नाराजगी थी..
वही लता का भी सारा डर चिंता औऱ भय समाप्त हो चूका था.. उसके मन में अब अपने बेटे समर के प्रति काम इच्छा का उदय हो चूका था..
कुछ देर यूँही पड़े रहे के बाद समर लता को अपने ऊपर हटाते हुए खड़ा हो गया औऱ अपने वस्त्र ठीक करने लगा.. लता ने भी कपडे पहन लिए औऱ समर के हाथो में उसकी तलवार देकर बोली - जान नहीं लेगा मेरी?
समर लता का घाघरा उठाकर उससे अपना लंड साफ करता हुआ - मुझे अगर तुम्हारी जान लेनी होती तो मैं सुबह ही ले लेता लीलावती... या जागीरदार को सच्चाई बताकर तुझे क़ैद करवा लिया होता..
लता समर के हाथ से घाघरा लेकर खुद समर का लंड साफ करते हुए शर्म औऱ पछतावे भरे स्वर में - मुझे क्षमा कर दे समर.. मैं तेरी दोषी हूँ.. मैंने तेरी जान लेने की कोशिश की है..
समर जाते हुए - तुम मेरे लिए मर चुकी हो लीलावती.. अच्छा होगा कि तुम भी मुझे अब मरा हुआ मान लो.. तुम्हे जैसे जिसके साथ भी जीना है जाओ जिओ..
लता खड़ी खड़ी समर को जाते हुए देखती रहती है औऱ तब तक देखती जबतक समर आँखों से ओझल नहीं हो जाता.. फिर लता जंगल से निकलकर घर चली जाती है औऱ समर को मनाने का निर्णय करने लगी.. समर भी जंगल में इधर उधर घूमकर वापस आ जाता है उसे कहीं मृदुला के निशान नहीं मिले थे. समर घर जाने बजाये किसी औऱ के पास जाकर रात बिताता है औऱ सुबह फिर पहरेदारी पर तैनात हो जाता है..
समर पहरेदारी पर तैनात था.. रुकमा अपने कक्ष से रह रहकर समर को देख रही थी.. खिड़की से मिलती समर की झलक रुकमा के मन में प्रेम की छाप आपको और प्रगाढ़ कर रही थी.. रुक्मा अब तक समर से बात नहीं की थी वह समर से बात करना चाहती थी मगर वेद जी की उपस्थिति सुजाता के आने जाने और अन्य पहरेदारों के होने से उसकी हिम्मत समर से बात करने की नहीं हो रही थी.. रुकमा की बीमारी में सुधार आया था ये वैध जी की औषधि ने काम नहीं किया किंतु समर की उपस्थिति में रुकमा के स्वास्थ्य को सुधारने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई..
समर अपने प्रति रुकमा के मन में भरे प्रेम से पूरी तरह अनजान था.. समर को अब तक नहीं पता लगता था कि रुकमा उसे पर पूरी तरह से अपना दिल और जान हार बैठी है..
पहरेदारी के दौरान जब बैरागी और समर की बातचीत हुई तब समर ने बैरागी को बताया कि किस तरह शांति ने जन्म के दौरान उसकी जुड़वा बहन को जंगल में ले जाकर छोड़ दिया था.. बैरागी ये जानकार कर पूरी तरह समझ हो चुका था कि समर मृदुला का ही जुड़वाँ भाई है.. समर ने बैरागी से मृदुला के बारे में जानने की कोशिश की.. और बैरागी ने बड़े इत्मीनान और ठहराव के साथ समर को मृदुला के स्वभाव और गुणो के बारे में बताना शुरू कर दिया.. समय मृदुला की एक मनोरम छवि अपने हृदय में बना कर उसके बारे में सोचने लगा.. जिस तरह बैरागी में मृदुला का गुणगान किया था उससे समर को अपनी बहन से ना मिल पाने और उसे ना देख पाने का पछतावा और दुख हो रहा था.. उसे लग रहा था कि क्यों उसने उस बूढ़े आदमी कि बात पर पहले विश्वास नहीं किया और पहले अपनी बहन को नहीं खोजा..
बैरागी बैठा हुआ पौधों को देखा और परख रहा था.. विरेंद्र सिंह की बताई हुई जगह पर बैठकर बैरागी ने चार दिनों के भीतर कई रोग का इलाज ढूंढ लिया था जिसमें से एक स्त्री रोग भी था.. बैरागी किसी और रोग का उपचार ढूंढ रहा था कि वहां सुजाता आ गई और बैरागी को देखकर उससे बात करने लगी.. बैरागी और सुजाता की बात बैरागी के काम के साथ चलने लगी बैरागी पौधों की जांच और परख करता हुआ औषधि निर्माण कर रहा था और सुजाता उससे उस बारे में बातचीत करते हुए औषधीय और पौधों के बारे में जानकारी ले रही थी..
वीरेंद्र सिंह गजसिंह और कर्मा डाकू को ढूंढने के लिए निकल चुका था मगर उसे दोनों कहीं नहीं मिले.. और ना ही उसे इस बात की खबर मिली कि समर में उन दोनों को पहले ही मार गिराया है.. वीरेंद्र सिंह जंगल में यहां वहां भटकता हुआ जागीर की सीमा के बाहर भीतर आ जा रहा था और गजसिंह और कर्मा के सारे ठिकानों पर ढाबा बोल रहा था जहां उसे कोई नहीं मिल रहा था.. हर जगह बस उसे गजसिंह औऱ कर्मा के गांब होने की खबर मिल रही थी..
वीरेंद्र सिंह ने जिन सैनिको को पश्चिम में भेजा था वो लोग वही ठहर कर पहली बारिश का इंतजार कर रहे थे औऱ बटाइ गई चीज लाने को आतुर थे.. पश्चिम में अभी सावन की पहली बरखा नहीं गिरी थी..
लता समर के साथ सम्भोग के बाद पूरी तरफ बदल गई थी औऱ अब वो समर से माफ़ी मांगकर उसे अपने पचाताप का अहसास दिलाना चाहती थी.. इसके साथ ही लता चाहती थी की समर उसके जोबन की अभिलाषा को शांत कर उसके साथ नया रिश्ता कायम करें..
गौतम ने सपने में इतना सब देखा औऱ फिर उसकी नींद खुल गई.. उसने सपने के बारे में कुछ देर सोचा फिर उसे एक सामान्य सपना मानकर अपने ख्याल से निकाल दिया..
हो भी सकता है औऱ नहीं भी..Gazab ki update he moms_bachha Bro,
Samar ke prati rukma ka pyar abhi ek tarfa hi he.......samar abhi bhi rukma ko ek rajkumari ki tarah se hi dekhta he.....
Leelawati aakhirkar ek dhokhebaz hi nikli, apne sathiyo ke sath samar ki hatya karne chale thi......
lekin samar ne bhi apna sara gussa uski chut me nikaal diya.........
Aakhirkar samar ko pata chal hi gaya ki vo aur mridula judwa bhai bahan he............
Bairagi ne bhi use mridula ke baare me bahut kuch bataya.........
Mujhe lagta he bairagi ki mrityu ka karan samar aur rukma ka pyar hi hoga..............
Keep rocking Bro
Wo to teri gand m hai dard.... tabhi to tujhe yaad aa gya ...वो सब ठीक है भाई.. पर पहले ये बता तेरी गांड का दर्द केसा है? सिमरन को बुलाऊ तेरे लिए?
रुक जा सिमरन आएगी दुबारा तेरी लेने अगले update के बाद सिम्मी वापस गांड मारेगीWo to teri gand m hai dard.... tabhi to tujhe yaad aa gya ...