kamdev99008
FoX - Federation of Xossipians
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तो अगला अपडेट दे दो जल्दी से, सिमरन को मैं भेजता हूं कॉल कर केरुक जा सिमरन आएगी दुबारा तेरी लेने अगले update के बाद सिम्मी वापस गांड मारेगी
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समर का मन बार बार उसे गजसिंह की बातों पर यक़ीन करने रोक रहा था.. मगर कहीं ना कहीं समर गजसिंह की कही हुई बातों में छुपी सच्चाई की तलाश कर लेना चाहता था.. समर अपने मन में ये प्राथना कर रहा था कि गजसिंह की कहीं हर बात झूठ निकले औऱ उसके मन की जीत हो.. मगर गजसिंह ने जो जो बात समर को बताइ थी उनमे से कुछ ऐसी बात थी जो सिर्फ समर जानता था औऱ उसने अपनी माँ लता को बताइ थी..
समर गजसिंह का कटा हुआ सर लेकर जब अपने घर पहुंचा तब लता धान साफ कर रही थी औऱ बाहर द्वार पर किसी के आने की आहट पाकर लता उठ खड़ी हुई औऱ बाहर झाँक कर देखी तो उसे समर खून से लथपथ दिखाई दिया.. लता द्वार पर जाकर ही समर को देखने लगी..
लता - इतना लहू? कहा चोट लगी है? मैं जाकर वैद को बुला लाती है तू बैठ यहां..
समर - मैं ठीक हूँ माँ.. ये खून उन शत्रुओ का है जिन्होंने रास्ते में राजकुमारी पर हमला किया था..
लता - तेरे ऊपर हमला हुआ था?
समर थैले से गजसिंह का सर निकालते हुए - हाँ माँ.. मैंने कहा था ना.. तेरे दोषियों को सजा दूंगा.. देख उस चांडाल का सर..
लता गजसिंह का कटा हुआ सर देखकर कुछ भी नहीं बोल सकी औऱ सन्न खड़ी रह गई..
समर अपनी माँ के चेहरे पर गजसिंह का कटा सर देखने के बाद भी ख़ुशी औऱ उल्लास के स्थान पर एक फ़िक्र औऱ बेकसी देखकर हैरान था उसके मन की हार होने लगी थी औऱ वो अब औऱ भी चिंता में डूबे जा रहा था लता के हावभाव उसके मन के मेड़ को बहा ले जा रहे थे..
लता सन्न खड़ी हुई उस कटे सर को देखकर ऐसे चुप थी जैसे जमींदार का फरमाबरदार डांट खाकर हो जाता है.. अपनी माँ की ऐसी हालत देखकर समर का शक अब यकीन में बदलने लगा था मगर अब भी उसके मन में कहीं ना कहीं अपनी माँ के लिए इज़्ज़त औऱ सम्मान था जिसके करण वो अब भी पूरी तरह यक़ीन करने में असमर्थ था..
समर - ख़ुशी नहीं हुई माँ आपको?
लता सन्नाटे से बाहर आती हुई - समर तूने सच में गजसिंह को मार डाला..
समर - माँ आपका अपमान करने वाले को मैं कैसे छोड़ सकता हूँ? मेंने कहा था ना मैं इस जालिम को एक ना एक दिन जरूर ढूंढ़ के मौत के घाट उतार दूंगा.. मैंने उतार दिया..
लता आगे कुछ नहीं बोलती औऱ भीतर चली जाती है.. समर लता का ये व्यवहार समझ नहीं पाया था उसके मन में लता के मन के भाव जानने की इच्छा थी जो अब पूरी नहीं उसी थी.. समर ने गजसिंह का सर घर से थोड़ा दूर लेकर लकड़ियों के साथ जला दिया औऱ वापस घर आ गया..
रात होने पर लता ने खाना पकाया था मगर अब तक लता ने समर से कुछ बात ना की थी.. रात का खाना खाते हुए समर ने लता से कहा..
समर - माँ आप इतनी बेचैन क्यों है?
लता मुस्कुराते का नाटक करती हुई - नहीं तो बेटा.. मैं तो बहुत खुश हूँ तूने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेकर साबित कर दिया कि तू भी सच्चा मर्द है.. एक माँ को इससे ज्यादा औऱ क्या ख़ुशी होगी.. ले.. खा ना.. आज स्वाद नहीं बना भोजन?
समर लता की बातों के पीछे उसके भाव उसके बनावटी चेहरे से बखूबी पढ़ रहा था उसने खाना खाया औऱ उठकर सोने चला गया.. अब उसके मन में गजसिंह की बातें पूरी तरह उतर चुकी थी.. उसे लग्ने लेगा था कि गजसिंह जो कुछ कह रहा था सब सच औऱ सत्य है..
समर को गजसिंह की एक बात याद आने लगी.. गजसिंह ने कहा था उसके बाजू पर बना निशान लता की गांड पर भी है गौतम ने तय करलिया था की वो अपनी माँ के गांड के निशान को देखकर रहेगा..
आधी से ज्यादा का समय बीत चूका था समर चारपाई से उठकर भीतर सो रही अपनी माँ लता के पास जाने लगा.. अंदर दिए की रोशनी में उसे लता सोती दिखी.. देखने से लगता था कि लता सो गई है मगर वो सोइ नहीं थी.. समर लता के करीब जाकर चटाई पर लेट गया जिसका आभास लता को हो चूका था औऱ उसका मन उथल पुथल मचाने लगा था.
लता ये सोच कर शाम से ही डरही थी कहीं गजसिंह ने समर को सारी सच्चाई ना बता दी हो वही समर इस बात से डर रहा था कि गजसिह की बटाइ बातें सच ना हो..
समर बाती की रोशनी जमीन पर चटाई पर सो रही अपने माँ लता की गांड के पास लेजाकर अपनी माँ लता के घाघरे को धीरे धोरे ऊपर करने लगा.. लता समझ गई थी की समर निशान देखने की कोशिश कर रहा है..
समर ने धीरे धीरे जांघो तक घाघरा उठा लिया औऱ अब उसे गांड पर बना निशान हल्का सा दिखने लगा था कि लता ने समर का हाथ पकड़ते हुए उसे अपना घाघरा औऱ ऊपर उठाने से रोक दिया औऱ बोली..
लता - औऱ ऊपर मतकर समर.. रात बहुत हो गई है.. यही मेरे पास सो जा..
समर अपनी माँ लता के बदल में चटाई पर लेटते हुए - यानी जो कुछ गजसिंह कह रहा था सब सच है.. (समर की आँखों से आंसू बहने लगे थे)
लता समर के आंसू पोंछकर - मैंने अबतक जो भी किया कभी मज़बूरी में तो कभी हमारी भलाई के लिए किया है समर..
समर - आपने बाबूजी को..
लता समर का गाल सहलाती हुई - अगर मैं नहीं मारती तो वो मुझे मार देता बेटा..
समर - उस रात जो हुआ सब आपकी मर्ज़ी से हुआ?
लता - उन बातों को भूला दे समर.. उनसे किसी का भला नहीं होगा..
समर - वापसी का रास्ता भी आपने ही बताया था गजसिंह को?
लता समर को बाहों में लेकर सर सहलाती हुई - मैं मजबूर थी बेटा..
समर - माँ राजकुमारी को कुछ भी हो सकता था. वो डर गई थी..
लता - वो तो राजकुमारी है समर.. हम जेसो का क्या? इतने बड़े खतरे को टालने के बाद भी जागीरदार ने तुझे याद तक नहीं किया..
समर लता को देखकर - मैंने किसी को नहीं बताया कि मैंने गजसिंह औऱ कर्मा को मार दिया है.. इसलिए सब उन दोनों को ढूंढ़ रहे है..
लता - बता भी देगा तो कोनसा वीरेंद्र सिंह तेरे लिए महल के दरवाजे खोल देगा? समर मैंने दुनिया देखी है मुझे परख है सबकी.. तू मुझसे प्रेम करता है ये तुझे अब साबित करना होगा.. मेरी गलती के लिए तू मुझे माफ़ कर.. और मेरी बात सुन समर.. वीरेंद्र सिंह औऱ जागीर के प्रति तेरी निष्ठा तुझे तकलीफ ही देगी..
ये कहते हुए लता ने समर को अपने गले से लगा लिया औऱ उसके समर के सर को अपनी चाती में घुसाती हुई बातों में हाथ फेरकार सुलाने लगी.. समर थका हुआ बोझाल आँखों के साथ नींद के हवाले होने लगा था. कुछ देर बाद उसे लता की बाहों में नींद आ गई..
सुबह समर उठा तो लता ने उसके आगे रसोई परोस दी जिसे ठुकराते हुए समर ने लता से कहा..
समर - मैं अब आपके हाथ का खाना नहीं खा सकता.. मेरी निष्ठा औऱ कर्त्तग्यता जागीरदार के प्रति है.. मैं उनसे गद्दारी नहीं कर सकता है.. आपने जो किया गलत किया.. मैं आपके साथ अब औऱ नहीं रह सकता..
लता चिंता से सुबकती हुई - समर तू जागीरदार को अपनी माँ के बारे में सब बता देगा? बेटा तू जानता है गद्दार को कैसी सजा मिलती है.. मेरी बात सुन बेटा.. मैं तेरी माँ हूँ.. मेरे साथ ऐसा मत कर..
समर - मेरा हाथ छोड़ दो.. मैं अब औऱ यहां नहीं रुकने वाला.. रात को सच्चाई जानने के बाद एक पाल के लिए में गुम राह जरूर हुआ था मगर अब मुझे होश आ गया है..
लता भय चिंता औऱ क्रोध से भरते हुए बोली - समर अगर तूने घर से कदम बाहर रखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.. मैं आखिरी बार कहती हूँ रुक जा समर..
समर लता की बात नहीं सुनता औऱ घर से चला जाता वही लता सोचने लगती है की समर जागीरदार को उसके सच्चाई बता देगा औऱ जागीरदार गद्दारों को मिलने वाली दर्दनाक मौत की सजा लता को भी देगा.. मगर समर के मन में लता के प्रति प्रेम औऱ सम्मान पूरी तरह से नहीं निकला था.. उसने लता के बारे में जागीरदार को बताने के बारे में नहीं सोचा था औऱ ना ही वो अपनी माँ की जासूसी के बारे में बताना चाहता था.. वो जानता था की जागीरदार को अगर वो लता की सच्चाई बता देगा तो लता कितनी कड़ी सजा मिलेगी..
लता को समर पर क्रोध आ रहा था वही उसके चिंता भी थी की समर्थन अब जागीरदार को सब सच बता देगा औऱ भय इस बात का था कि जागीरदार उसे एक दर्दनाक भयानक मौत देगा.. लता ने अपने एक साथी लंगड़ू के पास चली गई जिसे समर अपने मामा के रूप में जानता था क्युकी लता ने बचपन से लंगड़ू को अपना भाई बनाकर समर से मिलवाया था...
क्रोध भय औऱ चिंता से भरी हुई लता ने लंगड़ू से कुछ बात की औऱ उसके 4-5 साथियो से साथ हो गई वही समर महल के जनाना कश के बाहर पहरेदारी ओर खड़ा हो गया..
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सुन रे कागा नगर बता
जहा जाकर ढूँढू मीत पुराना
कबतक औऱ किस-किस को सुनाये
मिलन की रतिया गीत पुराना
विराह की बाते कर मो से
उ याद दिलावे भीत पुराना
हाय रे बैरी ज़ी ना छोड़े
ज़ी से गावे संगीत पुराना
सुन रे कागा नगर बता
जहा जाकर ढूँढू मीत पुराना
बैरागी सांझ ढले महल के पीछे उद्यान में बैठे हुए गीत गुनगुना रहा था..
उसके आस पास औऱ कोई नहीं था.. रात्रि का काला प्रकाश उजाले को निगलने ही वाला था.. बैरागी बंद आँख से अपने अतीत की स्वर्णिम यादो की मिठास में खोया हुआ था उसे कब सुबह से दिन हुआ औऱ दिन से रात हुई पता ही नहीं चल सका था.. बैरागी बस गीत गाता हुआ एक नीम की ठंडी चाव में सुबह का बैठा रात तक बैठा ही रहा था..
प्रेम अगर रोग बन जाए तो रोग का उपचार आवश्यकत बन जाता है.. आपके मधुरम गीत.. सुनने वाले के कान में मिश्री सी मिठास घोल देते है मगर इसके पीछे की विराह को जानना उनके लिए चोसर के खेल से कम नहीं..
समर ने बैरागी के समीप बैठते हुए उससे कहा तो समर की बात का प्रतिउत्तर देते हुए बैरागी बोला..
प्रेम तो अपनेआप में उपचार है.. जिसके होने से फूल खिल उठता है औऱ बारिश बरसने लगती है.. पपीहे गाने लगते है औऱ पंछी गुनगुनाने.. प्रेम तो जीवन का आधार है.. प्रेम के बिना तो सब वासना है..
समर - प्रेम औऱ वासना में अंतर मनुष्य के लिए आसान नहीं रागी भईया..
बैरागी - प्रकृति के लिए तो है समर.. प्रेम करुणा है औऱ वासना क्रोध.. प्रेम कोमल है वासना क्रूर.. प्रेम कुछ देता है वासना कुछ मांगती है.. प्रेम किसी के साथ भी हो सकता है वासना हर किसी पे नहीं होती..
समर - प्रेम औऱ सम्बन्ध का अल्पज्ञान मेरी सोच की सीमाओ को सिमित रखता है रागी भईया.. आपकी बातें मेरे जैसे साधारण योद्धा के कहा समझा आ सकती है..
बैरागी - तो फिर आने का प्रयोजन बताओ समर.. बिना कारण ही तुम मुझे इस तरह मेरे एकान्त से नहीं निकालोगे.. अभी तो रात्रि भोजन में भी समय है..
समर - रानी माँ.. मेरे आने का करण रानी माँ है बरागी भईया.. उन्होंने आपको अविलम्ब उनके समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया है..
बैरागी खड़ा होता हुआ - तो चलिए.. चलकर उनके बुलावे का करण जान लेते है..
समर साथ चलते हुए आसमान देखकर - लगता है पहली बारिश कभी भी हो सकती है.. बदल मंडराने लगे है..
बैरागी - बदलो के आने से वर्षा नहीं होती समर.. ये तो बस एक ऊपरी दिखावा है जों कुछ पल उम्मीद दे चला जाता है..
समर - इतना निराश होना मृत्यु के सामान है रागी भईया.. जयसिंह ज़ी कहते है.. औऱ आप देखना आज पहली बारिश होकर ही रहेगी..
बैरागी - तुमसे किसने कहा मैं निराश हूँ? मैं तो हर पल अपने मीत की प्रीत में गीत गाते हुए आनंदित रहता हूँ.. आशातीत रहता हूँ.. उसके साथ भी उसका था उसके बाद भी उसका हूँ..
समर - कुछ बताओ ना उनके बारे में..
बैरागी - क्या बताऊ समर.. उसके बारे में कुछ भी तो शब्दो से बयाँ कर पाना कठिन है.. हाँ बस एक बात मुझे आश्चर्य की लगती है.. मृदुला का मुख तुम्हारे मुख से बिलकुल मेल खाता है.. उसके नयननक्श, रंग औऱ आँखे बिलकुल तुम्हारे जैसी थी.. जैसे तुम्हारी जुड़वाँ बहन हो..
समर - उस दिन परछाई में मैं अपना अक्स देखा था.. तब से मैं यही सोच रहा था की ये कैसे संभव है? मैं औऱ आपकी मृदुला एक सामान मुख वाले कैसे हो सकते है?
बैरागी - मुझे ये जानने में कोई रूचि नहीं समर.. हाँ तुम चाहो तो अपनी संतुस्टी के लिए जान लो.. मृदुला ने बताया था की उसे कोई औरत जंगल में छोड़ कर चली गई थी.. उसके बाद जंगल में एक साधना करने वाले आदमी ने उसे पाला.. जिसे मृदुला बाबा बोलती थी.. औऱ वो आदमी भी मृदुला को बेटी ही समझता था.. लो.. हम पहुंच गए..
बैरागी महल के जनाना हिस्से में रानी सुजाता के साथ चला जाता है औऱ समर बैरागी से बात करके महल के जनाना हिस्से के बाहर पहरेदारी पर खड़ा हो जाता है..
समर के सर में बैरागी की कही एक एक बात वापस घूमने लगी औऱ वो सोचने लगा कि क्या सच में ऐसा हो सकता है कि उसकी कोई जुड़वाँ बहन हो?
समर को रह रह कर उस पागल की याद आ रही थी जो ये बात बताता था की उस रात उसने शान्ति को बच्चा ले जाते देखा था.. समर ने ये तय कर लिया था की अब वो शान्ति से इस सच्चाई को उगलवा के रहेगा.. चाहे कुछ भी हो जाये वो सच्चाई जानकार रहेगा.. वो अधीरता से अपने पहरेदारी के समय की समाप्ति का इंतजार करने लगा..
बैरागी जब जनाना महल में पंहुचा तो उसे सुजाता रुक्मा के कश में ले गई जहा रुक्मा ज्वार में थी वैद्य भी वही बैठा था..
बैरागी के आते ही वैद्य ने कहा - मेरी उम्र तुमसे तीन गुना है बैरागी.. मगर मैं जानता हूँ मेरा ज्ञान तुमसे उतना ही अल्प है..
बैरागी - बात क्या है वैद्य ज़ी.. कुछ बताएंगे..
सुजाता - रुक्मा जब से गढ़ से वापस आई है रागी.. उसपर ज्वार चढ़ा हुआ है.. तीन दिनों से ना ठीक से खाया है ना पिया है.. बस नींद में राजकुमार कहकर चुप हो जाती है.. मुझे तो लगता है रास्ते में जो कुछ हुआ उसका भय रुक्मा के मन में बैठ गया है.. जागीरदार भी गजसिंह औऱ कर्मा की तलाश में जा चुके है उन्हें संदेसा भिजवाया है पर उनका कोई पता नहीं.. अब मुझे समझ नहीं आ रहा रागी मैं क्या करू?
वैद्य - ज्वार में जो औषधि दी जाती है मैं राजकुमारी को दे चूका हूँ पर ये ज्वार तो जाने का नाम ही नहीं लेता.. तुम ही कुछ उपाए बताओ बेटा..
बैरागी नींद में लेटी रुक्मा की जांच करके - ज्वार तो बहुत तेज़ है औऱ आपकी दी हुई औषधि भी सही है.. फिर राजकुमारी के स्वास्थ्य में सुधार क्यों नहीं हो रहा? ये आश्चर्य की बात है रानी माँ..
सुजाता - रागी अब तुम ही कोई उपाय करो..
बैरागी - मैं कुछ करता हूँ रानी माँ.. आप बाहर से समर को बुलवा दीजिये.. मुझे उससे कुछ मँगवाना है..
सुजाता ने एक पहरेदार से समर को अंदर भेजनें को कहा..
समर अंदर आकर सर झुकाते हुए - रानी माँ..
समर की आवाज रुक्मा के कानो में जाते ही उसकी आँख खुल गई औऱ उसकी नज़र समर पर पड़ते ही रुक्मा की आँखों में चमक आ गई..
बैरागी की नज़र भी रुक्मा पर पड़ गई औऱ रुक्मा जिस प्रेम लगाव औऱ तृष्णा की भावना से भरकर समर को देख रही थी उससे बैरागी को समझते देर न लगी कि रुक्मा का ज्वार किसी औषधि से नहीं बल्कि समर की उपस्थिति से ठीक होगा..
सुजाता बैरागी से - रागी.. बताओ क्या लिवाना है.. समर उपस्थित है..
बैरागी मुस्कुराते हुए - अब कुछ लिवाने की आवश्यकता नहीं है रानी माँ.. आप खाने का आदेश दीजिये.. राजकुमारी को भूख लगी है..
रुक्मा समर को देखे जा रही थी औऱ अब समर की नज़र भी रुक्मा से मिल चुकी थी मगर समर ने होनी आँख नीचे झुका ली..
सुजाता ये बात नहीं समझ सकी थी वो बोली - क्या कह रहे हो रागी? रुक्मा ने तीन दिनों से खुश नहीं खाया..
बैरागी मुस्कुराते हुए - रानी माँ.. अब आप खिलाइये.. राजकुमार सब खा लेगी.. औऱ वैद्य ज़ी के साथ समर को भी यही रहने दीजिये.. उसे राजकुमारी के कश की पहरेदारी पर लगा दीजिये.. वैद्य ज़ी को आसानी होगी..
सुजाता खाना मंगवाती है औऱ रुक्मा को खिलाने लगती है रुक्मा कश के बाहर तैनात समर को खिड़की के झरोखे से देखती हुई खाना खा लेती है..
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बैरागी बाहर आ जाता है औऱ बाहर होती बरखा देखकर मुस्कुराता आसमान औऱ फिर धरती की तरफ देखता है..
रुक्मा को खाना खिलाने के बाद सुजाता वहा से आ जाती है औऱ बैरागी को गलियारे के किनारे पर खड़ा देखकर उसके पास आ जाती है..
सुजाता - सावन की पहली बरखा.. कितनी मनोरम होती है.. मन में मोर नाचते हुए प्रतीत होते है.. कोयल की मधुर आवाज औऱ पपीहे की कुहू ह्रदय को कितना सुख देती है.. ऐसे में साजन या सजनी साथ ना ही तो सावन भी जेठ लगने लगता है..
बैरागी सुजाता को देखकर - रानी माँ.. सावन प्रेम के बंजर को हरा भरा रखने के लिए प्रकृति का वरदान है.. किसी के लिए ये वियोग का विलाप है तो किसी के लिए मिलन की मधुर बेला.. इसे देखना अपनी अपनी आँख की बात है.. जिसे जैसा लगता है वैसा कहता है.. मेरे लिए तो ये आज भी मृदुला की मनमोहक यादो से जुडा हुआ है..
सुजाता - इतना प्रेम? रागी.. मैं ये कहने की अधिकारी तो नहीं, मगर तुम मेरे पुत्र सामान हो तो कह देती हूँ.. प्रेम अविरल बहने की रीत है.. रुकने पर जैसे नदी का पानी सड़ जाता है वैसे ही प्रेम भी रुकने पर मानव के सम्पूर्ण जीवन को सड़ा कर नस्ट कर देता है.. जो हो गया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ो.. मृदुला के प्रति तुम्हारा प्रेम, मृदुला के बाद तुम्हारे जीवन को नस्ट कर रहा है.. केवल 24 वर्ष की आयु मैं यूँ बैराग धारण करना सही नहीं है.. तुम अब भी फिर से प्रेम करने औऱ प्रेम पाने के योग्य हो.. अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे विवाह योग्य स्त्री ढूंढती हूँ.. किसी के जाने से जीवन नहीं समाप्त होता..
बैरागी मुस्कुराते हुए - मिलन औऱ विरह दोनों ही प्रेम के पूरक है रानी माँ.. मैंने जितना मेरे प्रियतम के साथ मिलन का सुख भोगा है उतनी ही उसके वियोग में विराह की पीड़ा भी भोगने का पात्र हूँ..
सुजाता बैरागी के करीब आकर - रागी.. मैं कामना करती हूँ तुम्हारी पीड़ा का जल्द ही समापन हो. औऱ कोई तुम्हे उसी तरह चाहे जैसे तुम मृदुला से प्रेम करते हो..
बैरागी मुस्कुराते हुए सुजाता को देखता है औऱ सुजाता भी मुस्कुराते हुए बैरागी को देखकर वहा से चली जाती है..
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जब समर के पहरदारी करने का समय समाप्त हुआ था वो सीधा शान्ति के पास चला गया.. शांति घर के अंदर थी औऱ उसका पति खेत में गया हुआ था.. आँगन में उसके 14 का बेटा औऱ 9 की बेटी खेल रहे था.. समर ने लड़के को अपने पास बैठा लिया औऱ लड़की को अंदर शान्ति को बुलवाने भेजा..
शान्ति जब बाहर आई तो उसने समर को देखकर कहा..
शान्ति - अरे समर तू कब आया? कुछ काम था?
समर अपनी कटार निकाल कर लड़के की हथेली पर चुभाते हुए - हाँ.. मौसी.. काम तो था.. औऱ बहुत जरुरी काम था..
शान्ति - समर क्या कर रहा है.. उसे लगेगा.. रक्त आ जाएगा..
समर - आएगा.. मगर तब जब आप झूठ बोलोगी..
शान्ति - मैं समझी नहीं समर तू क्या कह रहा है?
समर - वो बुढ़ा पागल.. जो कहता ये था कि उसने तुम्हे मेरे जन्म की रात मेरे घर से एक बच्चा ले जाते हुए देखा था.. कहा ले गई थी आप वो बच्चा?
शान्ति हड़बड़ाती हुई - कोनसा बच्चा समर? क्या कह रहा है.. देख उसे लग जाएगा..
समर लड़की की हथेली पर कटार चुबो कर रक्त निकाल देता है औऱ कटार अब लड़के के गले पर लगा देता है..
समर - एक औऱ झूठ औऱ ये यही चित... मैं वापस नहीं बताऊंगी मौसी.. कहा लेकर गई थी आप वो बच्चा?
शान्ति डर से चिल्लाते हुए - जंगल.. समर छोड़ उसे..
समर - मुझे पूरी बात जाननी है मौसी..
शान्ति डरते हुए जमीन पर बैठकर समर को सारी सच्चाई बता देती है.. औऱ समर सच्चाई जानने के बाद लड़के को छोड़कर शांति के घर से निकल जाता है औऱ जंगल की तरफ उसी दिशा में जाने लगता है जहा शान्ति ने उसे बताया है..
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समर के पीछे उसकी माँ लता औऱ उसके 4-5 साथी लंगड़ू के साथ समर का पीछा कर रहे थे..
जंगल में एक जगह समर जाकर खड़ा हुआ औऱ जमीन पर गिरे हुए जामुन को खाने की नियत से उठाने के लिए नीचे झुका की पीछे से लंगड़ू का चलाया तीर समर के झुकने से उसे ना लगकर पेड़ को लगा औऱ समर अपनी तलवार निकालकर पीछे मुड़ गया जहा उसने 6 लोगो को खड़ा देखा.. लता पेड़ के पीछे छुप गई थी..
उन लोगों ने आव देखा ना ताव.. औऱ समर को मारने के लिए उसपर कुच कर दी मगर सभी लोग एक एक करके समर की तलवार के वार से जीवन को छोड़ कर चले गए.. लंगड़ू घायल होकर जमीन पर था..
लंगड़ू - समर मुझे छोड़ दे समर.. मैं तेरा मामा हूँ ना.. देख मैं तुझे नहीं मारना चाहता था.. समर... मुझे तो तेरी माँ यहाँ लाई थी..
लता एक मरे हुए साथी की तलवार उठा कर पीछे से समर पर हमला कर देती है मगर समर उसके तलवार का वार नाकाम करके एक जोरदार थप्पड़ लता के गाल पर मार देता है जिससे लता के हाथ से तलवार छुटकरा गिर जाती है औऱ लेता भी जमीन पर गिर जाती है..
समर लंगड़ू को मार देता है औऱ लेता जब वापस समर पर हमला करती है तो समर वापस उसके गाल पर थप्पड़ जड़ देता है औऱ एक लात लता की गांड पर मारकर उसको जमीन पर गिरा देता है..
लेता गुस्से में देखते हुए - खड़ा खड़ा देख क्या रहा है मार दे मुझे भी.. जागीरदार की सजा से तड़पकर मरू उससे अच्छा है तेरे हाथो से मर जाऊ...
गौतम लता की ओढ़ानी खींचकर उससे अपनी तलवार साफ करता हुआ कहता है - वैश्या को मारा नहीं जाता.. उसके साथ बदन की आग बुझाई जाती है..
ये कहते हुए समर ने अपनी तलवार एक तरफ रख दी औऱ अपनी माँ के ऊपर आ जाता है औऱ उसकी चोली फाड़ देता है..
लता एक थप्पड़ मारकर - छोड़ मुझे..
समर लेता का घाघरा उठा कर उसकी झंगिया नीचे सरका देता है औऱ अपना फंफनता हुआ लंड अपनी माँ की चुत में घुसा देता है औऱ अपनी माँ को चोदने लगता है..
लता लंड घुसते ही - समर.. अह्ह्ह्ह...
समर लगातार लता की चुत में झटके पर झटके मारके अपनी माँ लता उर्फ़ लीलावती को चोदने लगता है जिससे लता भी अब कामुक होने लगती है.. पहलेपहल विरोध औऱ बगावत करने वाली लता अब काम पीपासा से भर गई थी.. उसकी सारी चिंता, भय औऱ क्रोध अब काम की अग्नि में जलकर स्वाह हो गई थी...
कुछ देर पहले तक लता अपने बेटे समर के प्राण लेने पर उतारु थी मगर अब वो समर के नीचे पड़ी हुई समर की मर्दानगी से प्रभावित होकर समर को देख रही थी.. समर के सुन्दर मुखमंडल को देखते हुए लता चुदाई का सुख भोगने लगी थी अभी तक उसने अपनी औऱ से कोई शुरुआत नहीं की थी मगर अब उसने समर का विरोध करना भी छोड़ दिया था.
समर लगातार चोदते हुए अपनी माँ को गुस्से की नज़र से देख रहा था मगर अब लता की आँखों में समर के प्रति गुस्सा नहीं था बल्कि प्रेम उतर चूका था..
समर के मजबूत औऱ बड़े लंड की चोट खाकर लता गजसिंह के बूढ़े पतले औऱ अदमरे लंड को भूल चुकी थी..
समर के लंड की ठोकरे खाकर लता की चुत ने अपने बाँध का पानी छोड़ दिया औऱ वो झड़ गई जिससे अब समर का लंड औऱ आसानी से लता की चुत में अंदर बाहर होने लगा औऱ थप थप घप घप की आवाज का औऱ भी अधिक मधुरम संगीत आस पास सुनाई देने लगा..
समर चोदते हुए लता का एक बोबा पकड़कर मसलते हुए पहली बार अपने होंठ लता के होंठों ओर रख देता है जिसे लता अपने होंठों से चूमने लगती है औऱ अपने दोनों हाथ समर के गले में डालकर उसके बाल सहलाते हुए समर के मुंह में अपनी जीभ डाल देती है औऱ समर एक दम से लता के इस व्यवहार से चौंक जाता है मगर लता की कामकला में पारंगत होने के करण समर लता को रोक नहीं पाता औऱ लता के मुख का स्वाद लेने लगता है..
समर को चोदते हुए काफी देर हो गई थी मगर उसका निकला नहीं था लता ने समर को धक्का देते हुए पलट दिया औऱ उसके ऊपर आकर जोर जोर से अपनी गांड हिलाने लगी जिससे समर सम्भोग के जाल में बुरी तरह फंस गया.. स्मार्ट अब लता को अपनी माँ या गद्दार के रूप में नहीं बल्कि एक चुदाई के सामान के रूप में देखने लगा था..
उसे लगा था की वो लता को चोद कर सजा देगा मगर अब लता ही समर को चोद रही थी औऱ उसके साथ अपनी भी काम इच्छा संतुष्ट कर रही थी..
लता फिर से झड़ने की कगार पर थी औऱ समर भी लता के गांड हिलाने की कला से अब झड़ने के नज़दीक था..
दोनों एक साथ झड़ते हुए सम्भोग के शिखर तक पहुंच गए.. फिर लता समर के ऊपर ही गिर गई...
लता के चुचक समर के सीने में चुभ रहे थे.. जो उसे एक मीठा औऱ दिलकश अहसास देने लगे थे.. समर का सारा गुस्सा लता की चुत ने शांत कर दिया था औऱ अब समर को केवल लता से नाराजगी थी..
वही लता का भी सारा डर चिंता औऱ भय समाप्त हो चूका था.. उसके मन में अब अपने बेटे समर के प्रति काम इच्छा का उदय हो चूका था..
कुछ देर यूँही पड़े रहे के बाद समर लता को अपने ऊपर हटाते हुए खड़ा हो गया औऱ अपने वस्त्र ठीक करने लगा.. लता ने भी कपडे पहन लिए औऱ समर के हाथो में उसकी तलवार देकर बोली - जान नहीं लेगा मेरी?
समर लता का घाघरा उठाकर उससे अपना लंड साफ करता हुआ - मुझे अगर तुम्हारी जान लेनी होती तो मैं सुबह ही ले लेता लीलावती... या जागीरदार को सच्चाई बताकर तुझे क़ैद करवा लिया होता..
लता समर के हाथ से घाघरा लेकर खुद समर का लंड साफ करते हुए शर्म औऱ पछतावे भरे स्वर में - मुझे क्षमा कर दे समर.. मैं तेरी दोषी हूँ.. मैंने तेरी जान लेने की कोशिश की है..
समर जाते हुए - तुम मेरे लिए मर चुकी हो लीलावती.. अच्छा होगा कि तुम भी मुझे अब मरा हुआ मान लो.. तुम्हे जैसे जिसके साथ भी जीना है जाओ जिओ..
लता खड़ी खड़ी समर को जाते हुए देखती रहती है औऱ तब तक देखती जबतक समर आँखों से ओझल नहीं हो जाता.. फिर लता जंगल से निकलकर घर चली जाती है औऱ समर को मनाने का निर्णय करने लगी.. समर भी जंगल में इधर उधर घूमकर वापस आ जाता है उसे कहीं मृदुला के निशान नहीं मिले थे. समर घर जाने बजाये किसी औऱ के पास जाकर रात बिताता है औऱ सुबह फिर पहरेदारी पर तैनात हो जाता है..
समर पहरेदारी पर तैनात था.. रुकमा अपने कक्ष से रह रहकर समर को देख रही थी.. खिड़की से मिलती समर की झलक रुकमा के मन में प्रेम की छाप आपको और प्रगाढ़ कर रही थी.. रुक्मा अब तक समर से बात नहीं की थी वह समर से बात करना चाहती थी मगर वेद जी की उपस्थिति सुजाता के आने जाने और अन्य पहरेदारों के होने से उसकी हिम्मत समर से बात करने की नहीं हो रही थी.. रुकमा की बीमारी में सुधार आया था ये वैध जी की औषधि ने काम नहीं किया किंतु समर की उपस्थिति में रुकमा के स्वास्थ्य को सुधारने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई..
समर अपने प्रति रुकमा के मन में भरे प्रेम से पूरी तरह अनजान था.. समर को अब तक नहीं पता लगता था कि रुकमा उसे पर पूरी तरह से अपना दिल और जान हार बैठी है..
पहरेदारी के दौरान जब बैरागी और समर की बातचीत हुई तब समर ने बैरागी को बताया कि किस तरह शांति ने जन्म के दौरान उसकी जुड़वा बहन को जंगल में ले जाकर छोड़ दिया था.. बैरागी ये जानकार कर पूरी तरह समझ हो चुका था कि समर मृदुला का ही जुड़वाँ भाई है.. समर ने बैरागी से मृदुला के बारे में जानने की कोशिश की.. और बैरागी ने बड़े इत्मीनान और ठहराव के साथ समर को मृदुला के स्वभाव और गुणो के बारे में बताना शुरू कर दिया.. समय मृदुला की एक मनोरम छवि अपने हृदय में बना कर उसके बारे में सोचने लगा.. जिस तरह बैरागी में मृदुला का गुणगान किया था उससे समर को अपनी बहन से ना मिल पाने और उसे ना देख पाने का पछतावा और दुख हो रहा था.. उसे लग रहा था कि क्यों उसने उस बूढ़े आदमी कि बात पर पहले विश्वास नहीं किया और पहले अपनी बहन को नहीं खोजा..
बैरागी बैठा हुआ पौधों को देखा और परख रहा था.. विरेंद्र सिंह की बताई हुई जगह पर बैठकर बैरागी ने चार दिनों के भीतर कई रोग का इलाज ढूंढ लिया था जिसमें से एक स्त्री रोग भी था.. बैरागी किसी और रोग का उपचार ढूंढ रहा था कि वहां सुजाता आ गई और बैरागी को देखकर उससे बात करने लगी.. बैरागी और सुजाता की बात बैरागी के काम के साथ चलने लगी बैरागी पौधों की जांच और परख करता हुआ औषधि निर्माण कर रहा था और सुजाता उससे उस बारे में बातचीत करते हुए औषधीय और पौधों के बारे में जानकारी ले रही थी..
वीरेंद्र सिंह गजसिंह और कर्मा डाकू को ढूंढने के लिए निकल चुका था मगर उसे दोनों कहीं नहीं मिले.. और ना ही उसे इस बात की खबर मिली कि समर में उन दोनों को पहले ही मार गिराया है.. वीरेंद्र सिंह जंगल में यहां वहां भटकता हुआ जागीर की सीमा के बाहर भीतर आ जा रहा था और गजसिंह और कर्मा के सारे ठिकानों पर ढाबा बोल रहा था जहां उसे कोई नहीं मिल रहा था.. हर जगह बस उसे गजसिंह औऱ कर्मा के गांब होने की खबर मिल रही थी..
वीरेंद्र सिंह ने जिन सैनिको को पश्चिम में भेजा था वो लोग वही ठहर कर पहली बारिश का इंतजार कर रहे थे औऱ बटाइ गई चीज लाने को आतुर थे.. पश्चिम में अभी सावन की पहली बरखा नहीं गिरी थी..
लता समर के साथ सम्भोग के बाद पूरी तरफ बदल गई थी औऱ अब वो समर से माफ़ी मांगकर उसे अपने पचाताप का अहसास दिलाना चाहती थी.. इसके साथ ही लता चाहती थी की समर उसके जोबन की अभिलाषा को शांत कर उसके साथ नया रिश्ता कायम करें..
गौतम ने सपने में इतना सब देखा औऱ फिर उसकी नींद खुल गई.. उसने सपने के बारे में कुछ देर सोचा फिर उसे एक सामान्य सपना मानकर अपने ख्याल से निकाल दिया..
Jabardas Gand fard Update......Update 22
शाम के पांच बज चुके थे होटल की छत पर गौतम सुमन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. सुमन भी छत पर आने के लिए निकल चुकी थी गौतम यह सोच रहा था कि वह आज अपनी मां से अपने प्यार का इजहार कर देगा और उसे अपनी दुल्हन बनाने का प्रस्ताव रखेगा. गौतम यह जानता था कि जो वह करने जा रहा है इसमें उसे सफलता नहीं मिलने वाली है लेकिन वह फिर भी एक बार सुमन को अपने प्यार का इजहार करके मानना चाहता था और चाहता था कि सुमन उसे अपने प्रेमी के रूप में अपना ले.. अब तक जो सुमन और गौतम के बीच में हो रहा था वह केवल सुमन के मातृत्व प्रेम के कारण हो रहा था जिसमें वह गौतम को अपना बेटा मानकर सब कुछ कर रही थी भले इसमें उसे आनंद और काम संतुस्टी की प्रति हो रही थी लेकिन वह अब तक गौतम को अपने प्रेमी के रूप में स्वीकृत नहीं कर पाई थी ना ही उसे यह अधिकार दिया था कि गौतम उसके पूरे शरीर पर अधिकार जताये..
सुमन का नारीत्व और काम इच्छा उफान पर थी जिसे वो गौतम के साथ शांत कर लेती थी मगर इस अधूरी शांति से गौतम और सुमन दोनों ही काम के शिखर पर पहुंच कर उस अद्भुत और अतुल्य सुख से वंचित ही रहे जिसे पाना दोनों के मन में लंबित था. सुमन अपने मन की आखिरी दीवार को नहीं गिराना चाहती थी. सुमन चाहती थी कि गौतम की हर इच्छा और हर मनोकामना पूरी हो लेकिन वह खुद इसके लिए अपनी चुत की कुर्बानी देने को तैयार नहीं थी. सुमन अब यही चाहती थी कि जैसे गौतम और सुमन के बीच एक रिश्ता कायम हो चुका है वह इस तरह कायम रहे और अब सुमन ना तो इससे आगे बढ़ना चाहती थी और ना ही इससे पीछे हटाना चाहती थी.
गौतम ने भी अपने मन में ये तय कर लिया था कि वह सुमन को किसी भी शर्त पर अपना बना कर रहेगा और उसके लिए वह आज पहली-पहल कर देगा. भले इसमें उसे सफलता मिले या वह असफल रहे. गौतम अब मन ही मन सुमन को पाने की चाहत में जलने लगा था और उसे आप सुमन को भोगने की इच्छा पूरी उफान ले चुकी थी. मगर वह इस बात से भली-भांति परिचित था की सुमन को भोगना और उसे पाना इतना आसान नहीं होगा और जो दीवार सुमन ने अपने मन में उसके और खुद के बीच में बना रखी है उसे गिराना भी आसान नहीं होगा. दोनों के बदनों के मिलन के बीच सुमन ने अपने मन में उसके औऱ गौतम के रिस्ते को रोड़ा बना लिया था जिसे दूर करना आसान नहीं था. मगर गौतम ने ये तय कर लिया था जो किसी भी तरह से उसके मन से इस दीवार को गिरा कर रहेगा और उसे अपना बना कर रहेगा इसके लिए भले ही उसे कुछ भी करना पड़े. गौतम और सुमन के बीच सब कुछ हो रहा था मगर बाकी था वही सबसे जरूरी था और वहीं गौतम करना चाहता था मन ही मन सुमन भी ऐसा ही चाहती थी मगर उसने अपने मन में रिश्ते की दीवार को बीच में खड़ा कर दिया था जिसे वह नहीं गिराना चाहती थी.
सुमन अकेली चुपके चुपके सीडीओ से होती हुई छत के दरवाजे तक आ पहुंची.. सुमन के मन में अजीब अजीब ख्याल आ रहे थे और अजीब सवाल वह अपने आप से पूछ रही थी जिसके जवाब खुद ही अपने आप को देती हुई वह छत के दरवाजे पर खड़ी हुई थी गौतम भी सुमन के इंतजार में छत के कोने में खाली पड़ी की जगह पर खड़ा हुआ सुमन का इंतजार कर रहा था उसके मन में भी कई बातें चल रही थी जिसे वह सोचकर सही और गलत तय करने में लगा हुआ था. गौतम ने सुमन को छत के दरवाजे पर खड़ा हुआ देख लिया और सुमन की नजर भी गौतम से मिल गई. गौतम ने सुमन को इशारे से अपने पास आने के लिए कहा औऱ सुमन गौतम के पास धीरे धीरे कदमो से चली आई..
गौतम ने उसी नज़र से अपनी माँ के बदन को ऊपर से नीचे तक देखा जिस तरह वो बाकी लड़कियों औऱ औरतों को ताड़ता था. सुमन इस नज़र को अच्छे से समझ गई थी मगर काम के भाव से भारी हुई सुमन को इस नज़र का बुरा कतई नहीं लगा.. गौतम ने सुमन की कमर में हाथ डालकर उसे अपने सीने से लगाकर बाहों में भर लिया औऱ फिर अपने होंठों से सुमन के होंठ मिलाकर जंग शुरू कर दी.. इस जंग में दोनों ही एक दूसरे को हराने के लिए भर्षक प्रयास कर रहे थे और एक दूसरे के लबों को चूमते हुए खींच कर काटते हुए ऐसे चुम रहे थे जैसे उनके बीच ये प्यार का पहला चुम्बन हो..
गौतम ने चुम्बन के दौरान एक जोरदार थप्पड़ सुमन की गांड पर मारा औऱ फिर उसकी गांड को जोर से मसलते हुए इतना तेज़ दबाया की सुमन चुम्बन तोड़कर सिसक उठी औऱ गौतम को शिकायत की नज़र से देखते हुए बोली..
सुमन - आराम से ग़ुगु.. माँ को दर्द होता है ना.
गौतम - ग़ुगु नहीं सुमन.. गौतम.. मुझे गौतम कहकर पुकारो.. मैं अब आपके इन गुलाबी होंठों से अपना नाम सुनना चाहता हूँ..
सुमन हैरानी से - तू क्या कह रहा है ग़ुगु औऱ मुझे नाम से क्यों बुला रहा है.. मैं तेरी माँ हूँ.. तू भूल गया है क्या?
गौतम - मुझे सब याद है सुमन.. (अपना हाथ सुमन की चुत पर रखते हुए) आपने 20 साल पहले मुझे अपनी इसी चुत से निकाला था.. आपने इन 20 सालों में जितना मुझे प्यार किया है उतना शायद कोई औऱ कभी ना कर पाए.. मेरी ख़ुशी के लिए आप मेरे सामने नंगी तक हो गई.. मेरी हर ज़िद पूरी की मगर अब सुमन.. मैं आपको खुश रखना चाहता हूँ.. प्यार करना चाहता हूँ.. मैं चाहता हूँ आप मुझे नाम से बुलाओ.. हर शाम घर पर मेरा इंतज़ार करो औऱ जब मैं काम से वापस आउ तो आप मुझसे लिपटकर अपने होंठ मेरे होंठ पर रख दो.. मुझे गौतम ज़ी कहकर बुलाओ.. बिलकुल जैसे आप पापा को बुलाती थी..
सुमन - तू पागल हो गया है क्या गौतम? ये सब क्या बकवास कर रहा है.. तू अच्छी तरह जानता है मैं तेरे साथ ये सब नहीं कर सकती.. माँ हूँ मैं तेरी औऱ तू मेरा ग़ुगु.. समझा?
गौतम - आप सब करोगी सुमन.. मुझे यक़ीन है मेरी मोहब्बत आपको ये सब करने पर मजबूर कर देगी.. आप मुझे अपने दिल में वही जगह दोगी जो जगह तुमने पापा की दी थी..
सुमन गौतम के सामने घुटनो पर बैठकर उसकी पेंट खोलते हुए - तू ये मुझे चिढ़ाने के लिए बोल रहा है ना? पर मैं नहीं चिढ़ने वाली समझा? मैं अभी तुझे चूसकर ठंडा कर देती हूँ फिर तेरा सारा भुत उतर जाएगा औऱ तू फिर से मुझे सुमन नहीं माँ कहकर बुलायेगा..
गौतम कंडोम देते हुए - लो सुमन.. बिना कंडोम तुम्हे उल्टी हो जायेगी..
सुमन कंडोम लेकर फेंक देती है औऱ गौतम का लंड हाथ में पकड़कर उससे कहती है - उल्टी होती है तो हो जाए.. तुझे बिना कंडोम के अच्छा लगता है मैं उसी तरह तुझे खुश कर देती हूँ..
ये कहकर सुमन गौतम के लंड को मुंह में भरकर चूसने लगी औऱ गौतम सुमन को प्यार से देखता हुआ उसके सर पर हाथ फेरने लगा..
गौतम - जानती हो सुमन जब आप सुबह नाच रही तब मेरा दिल आपको देखकर क्या कह रहा था मुझसे? मेरा दिल कह रहा था कि मैं आपको अपनी दुल्हन बना लू.. औऱ जो सुख पापा आपको सालों से नहीं दे पाये वो सुख मैं आपको हर रात दू.. सुबह तो मैंने अपनी खुली आँखों से हमारे बच्चों तक के नाम सोच लिए थे.. लड़का हुआ तो निखिल लड़की हुई तो निकिता..
सुमन लंड को पूरी मेहनत औऱ काम कला के साथ चूस रही थी मगर गौतम कि बात सुनकर वो बोली..
सुमन मुंह से लोडा निकालकर - गौतम तूने अब एक औऱ शब्द अपने मुंह से निकाला तो अच्छा नहीं होगा.. मैं तेरी माँ हूँ और माँ ही रहूंगी.. मुझे अपनी दुल्हन बनाने का ख्याल अपने दिल औऱ दिमाग से निकाल दे..
गौतम - मैं आप से प्यार करता हूँ सुमन..
सुमन - जितना तू मुझसे करता है उससे कहीं ज्यादा प्यार मैं तुझसे करती हूँ बेटू..
गौतम - सुमन मैं आपको अपनी माँ नहीं अपनी दुल्हन की तरह प्यार करता हूँ..
सुमन - ये ज़िद छोड़ दे ग़ुगु.. ये मुमकिन नहीं है.. मैं तुझे कभी भी वो सब नहीं दे सकती..
ये कहकर सुमन गौतम के लंड को वापस मुंह में भर लेती है औऱ चूसने लगती है
मगर अब गौतम सुमन के मुंह से अपना लंड निकाल लेता है औऱ अपनी पेंट पहनने लगता है लेकिन सुमन गौतम के हाथ पकड़ कर उसे पेंट पहनने से रोक देती है औऱ कहती है.
सुमन - गौतम ये ज़िद छोड़ दे.. मैंने तेरी हर बात मानी है मगर ये बात मैं नहीं मान सकती.. तू चाहता है मैं अपनी ही नज़रो में गिर जाऊ? कभी खुदसे आँख भी ना मिला पाउ? कैसी जिद पर तू अड़ गया है गौतम.. तू चाहता है तो मैं आज से तुझे तेरे नाम से बुलाऊंगी.. तेरे मुंह से माँ की जगह सुमन भी सुन लुंगी.. मगर ये ज़िद छोड़ दे मेरे शहजादे..
गौतम सुमन से अपने हाथ छुड़वाकर अपनी पेंट पहन लेता है औऱ छत की रेलिंग के पास जाकर सुमन से कहता है..
गौतम - आप नीचे जाओ माँ.. मुझे अब आपसे कुछ नहीं चाहिए.. शादी एन्जॉय करो..
सुमन अपने घुटनो पर से पैरो पर खड़ी हो जाती है औऱ गौतम के पास आकर अपने ब्लाउज में सिगरेट का पैकेट निकालकर एक सिगरेट गौतम के होंठों पर लगा देती है औऱ लाइटर से जलाते हुए कहती है..
सुमन - मुझे माफ़ कर दे गौतम मैं तेरी ये इच्छा पूरी नहीं कर सकती.. तू चाहे तो मुझे अभी नंगा कर दे मैं उफ़ तक नहीं करुगी मगर मेरे शहजादे अपनी माँ को इस तरह जलील मत कर..
गौतम सिगरेट का एक लम्बा कश लेकर अपनी माँ के मुंह पर धुआँ छोड़ते हुए - माफ़ तो आप मुझे कर दो माँ.. मैं हमारे रिस्ते को भूल गया था.. पर अब आप भरोसा रखो मैं आपसे इस बारे में कुछ नहीं कहने वाला...
सुमन मुस्कुराते हुए गौतम के लंड पर पेंट के ऊपर से हाथ रखते हुए - चल गौतम.. मैं अपने छोटे ग़ुगु को थोड़ा प्यार कर लेती हूँ.. नीचे ना सही ऊपर से तो मैं तेरी हर ख्वाहिश पूरी कर सकती हूँ..
गौतम सिगरेट का कश लेकर सुमन का हाथ लंड पर से हटाते हुए - रहने दो माँ.. छोटा ग़ुगु सो चूका है.. आप जाओ नीचे..
सुमन गौतम के हाथ से सिगरेट लेकर कश लेती है औऱ गौतम के लंड को इस बार जोर से हाथों में पकड़कर मसलते हुए गौतम से कहती है..
सुमन - छोटे ग़ुगु को नींद से जगाना औऱ खड़ा करना मुझे अच्छे से आता है.. तू फ़िक्र मतकर मैं छोटे ग़ुगु को खुश करने में ज्यादा वक़्त नहीं लगाउंगी..
सुमन कहते हुए अपने घुटनों पर बैठ जाती है गौतम की पेंट उतारने लगती है लेकिन गौतम सुमन के हाथों से अपनी पेंट छुड़वाते हुए उसे कहते हैं..
गौतम - मन नहीं माँ.. रहने दो..
सुमन गुस्से से - मैं अच्छी तरह जानती हूँ तेरा मन क्यों नहीं है? तू मुझसे नाराज़ है ना.. मैंने तेरी ज़िद पूरी नहीं की इसलिए? तूने अगर अपनी ज़िद नहीं छोडी तो मैं यही से नीचे कूद कर अपनी जान दे दूंगी..
ये कहते हुए सुमन छत की रेलिंग की तरफ बढ़ती है और उससे पार करने की कोशिश करने लगती है मगर पीछे से गौतम उसका हाथ पकड़ कर सुमन को अपनी तरफ खींच लेता है और एक जोरदार थप्पड़ सुमन के गाल पर मरता हुआ उसे अपनी बाहों में भर लेता है औऱ सुमन से कहता है..
गौतम - अगली बार मरने की बात भी की, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा समझी आप?
सुमन थप्पड़ खाकर भी मुस्कुरा पडती है औऱ गौतम के होंठों को चुमकर कहती है - अपनी माँ के गाल पर इतना जोर से थप्पड़ मारना जरुरी था?
गौतम अपनी माँ सुमन को बाहों में भरके छत पर बने फालतू सामान से भरे कमरे की तरफ उठाकर ले जाते हुए - अभी तो सिर्फ एक ही पड़ा है अगली बार ऐसा कुछ किया ना आपने तो बहुत पिटोगी आप..
इतना कहते हुए गौतम सुमन को कमरे में एक चारपाई पर बैठा देता है औऱ सुमन का पल्लू हटाकर उसकी ब्लाउज के सारे बटन खोलकर ब्रा ऊपर सरकातें हुए सुमन के कबूतर आजाद कर देता है औऱ फिर अपनी पेंट खोलकर लंड को लहराते हुए सुमन के मुंह में घुसा देता है औऱ सुमन भी मुस्कुराते हुए गौतम के लंड को बिना कंडोम लगाए चूसने लगती है औऱ लंड चूसते हुए गौतम को देखने लगती है..
गौतम अपनी माँ के इस रूप से उत्तेजित औऱ कामुकता के शिखर पर जा चूका था उसे झड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा औऱ उसने सारा वीर्य सुमन के मुंह में भरके उसे अपना वीर्यपान करवा दिया औऱ सुमन न चाहते हुए भी गौतम को खुश करने के लिए उसका वीर्य पी गई...
गौतम झड़ने के बाद सुमन के बगल में बैठ जाता औऱ औऱ गले में हाथ डाल कर सुमन की एक चूची पकड़कर मसलते हुए कहता है..
गौतम - काश आप मेरी माँ नहीं बीवी होती सुमन.. मैं आपको बिस्तर से उठने ही नहीं देता..
सुमन हसते हुए गौतम का लंड साफ करती हुई - ये नहीं होने वाला बच्चू.. तेरे नसीब मेरे ऊपर का छेद है नीचे का नहीं.. चल अब जाती हूँ..
वरना तू फिर से शुरू हो जाएगा..
सुमन जैसे ही उठने लगती है गौतम सुमन को अपनी गोद में बैठा लेता है औऱ कहता है - थोड़ी देर बैठो ना माँ मेरे साथ.. नीचे जाकर क्या करोगी.. कितनी भीड़ औऱ शोर है नीचे..
सुमन - शादी में भीड़ औऱ शोरगुल तो होता ही है.. जब तेरी शादी होगी तब भी इतना ही ऐसे ही भीड़ औऱ शोर होगा..
गौतम - नहीं होगा माँ.. मेरी शादी में सिर्फ दो लोग ही रहेंगे.. एक मैं औऱ दूसरी आप.. हमारी शादी ख़ास होगी..
सुमन - गौतम देख तू वापस वही बात मत शुरू कर देना.. मैं तुझे अपना फैसला बता चुकी हूँ..
गौतम - मैं तो मज़ाक़ कर रहा था मेरी प्यारी सी सेक्सी सुमन..
सुमन सिगरेट सुलगाते हुए - रूपा का फोन आया था कह रही थी तेरा फ़ोन बंद है..
गौतम - हाँ अब इतने चाहने वाले है मेरे.. किस किस से बात करता तो सोच कुछ बंद ही कर देता हूँ..
सुमन सिगरेट का कश लेकर सिगरेट गौतम को देती हुई - एक बार बात कर ले बेचारी बहुत परवाह करती है तेरी..
गौतम कश लेकर - पता है माँ.. वापस जाकर रूपा मम्मी के साथ ही रहेंगे हम दोनों..
सुमन - मम्मी? माँ सिर्फ मैं हूँ तेरी औऱ कोई नहीं.. समझा?
गौतम - आप माँ हो रूपा मम्मी औऱ माधुरी छोटी माँ.. मैंन छोटी माँ को सब बता दिया..
सुमन - फिर क्या कहा उसने?
गौतम - पहले तो कुछ नहीं बोली मगर फिर थोड़ा डांटने लगी औऱ बोली आपसे बात करनी है उसे..
सुमन - बात करवा ना फिर..
गौतम - वापस चलकर बात कर लेना माँ सीधा घर चले जाएंगे उनके..
सुमन - उनका घर कैसे हुआ? तेरे पापा ने लिया है घर.. हमारा भी हक़ है उसपर.. मैं तो जाकर उससे यही बात करुँगी औऱ तेरे पापा से भी यही बात कहूँगी..
गौतम - पर हम खुश है ना वहा भी..
सुमन - खुश? उस शुरू होते ही ख़त्म होने वाली जगह में रहकर खुश है तू? मैं खुश नहीं हूँ.. मेरा हक़ कोई औऱ चुड़ैल नहीं खा सकती..
गौतम सिगरेट सुमन को देते हुए - गुस्से में कितनी प्यारी लगती हो माँ..
सुमन कश लेकर - तेरा भी हक़ है उस घर पर.. हम वापस जाकर रूपा नहीं माधुरी के साथ रहेंगे.. देखती हूँ वो कैसे रोकती है हमें..
गौतम - वो क्यों रोकने लगी माँ.. वो तो शायद यही चाहती है औऱ इसीलिए आपसे बात भी करना चाहती है.. वैसे मेरे लिए भी अच्छा है.. आप तो अपनी चुत को छुपा के रखो.. छोटी माँ तो मुझे अच्छे से प्यार करेंगी उस घर में..
सुमन गुस्से में - चुत के चककर में अपनी माँ की सौतन से प्यार करेगा तू..
गौतम मुस्कुराते हुए - सौतन होगी आपकी मेरी तो छोटी माँ है.. कैसे भी चोदू बुरा नहीं मानती उल्टा बराबर का साथ देती है..
सुमन उदासी से - देख रही हूँ उस डायन ने मेरा पति तो छीन ही लिया है मेरा बेटा भी मुझसे छीन रही है..
गौतम सुमन की उंगलियों में सुलगती सिगरेट को अपनी उंगलियों में लेकर सुमन के होंठों पर सिगरेट लगाते हुए - ऐसा नहीं है मेरी सेक्सी सुमन.. आपसे मुझे कोई नहीं छीन सकता..
सुमन सिगरेट का कश लेकर गौतम को देखते हुए - भाभी का बहुत बुरा हाल किया है तूने.. बेटी की शादी में चलने ठीक से लायक नहीं छोड़ा..
गौतम - कुछ सीखो अपनी भाभी से माँ.. आप आगे के लिए मना कर रही हो मामी तो आगे पीछे दोनों तरफ ले गई थी मेरा..
सुमन चौंकते हुए - तूने भाभी की गांड..
गौतम हस्ते हुए - हाँ.. मारी है मैंने आपकी प्यारी भाभी की गांड..
सुमन - भाभी ने मना नहीं किया? बहुत दर्द हुआ होगा उनको तो..
गौतम - मना तो किया पर.. बदले में गांड मारना तो जायज था.. सुबह यहां आने के बाद भी एक बार औऱ मरवाई थी मामी ने..
सुमन - तभी ये हाल है भाभी का.. तुझे शर्म नहीं आई.. इतना सब करते हुए...
गौतम मुस्कुराते हुए - भाभी तो फिर भी चल पा रही है माँ..एक बार आप हाँ कर दो फिर देखना आपको तो चलने लायक भी नहीं छोडूंगा.. वैसे माँ मुझे तो इस शादी में कई चुत मिल जायेगी.. आप कहो तो आपकी इस चुत के लिए लोड़ो का बंदोबस्त करू?
सुमन हसते हुए - अपनी माँ का दल्ला बनेगा तू.. बेशर्म..
गौतम - जब आप मेरी ख़ुशी के लिए ये सब कर सकती हो तो में क्यों नहीं कर सकता.. मुझसे नहीं चुदना तो किसी औऱ से चुदलो.. मैं बुरा नहीं मानुगा..
सुमन जोर से हँस्ती हुई - अब नीचे जाने दे वरना तू मुझे सच में किसीसे चुदवा देगा..
गौतम सुमन के दोनों चुचे अपने हाथों में पकड़कर मसलते हुए - आपके जैसी खूबसूरत औरत बिना चुदे अपने दिन बिताये ये तो बहुत गलत बात है माँ..
discrete math symbols
सुमन - कितना जोर से दबाता है तू गौतम मेरे बोबो को.. अब तो सारे ब्लाउज औऱ ब्रा भी टाइट हो गई है.. लगता है तूने दबा दबा के मेरे बोबो का साइज बढ़ा दिया है.. अब नए ब्रा औऱ ब्लाउज बनवाने पड़ेगे.. बाबाजी से तेरी शिकायत करनी पड़ेगी.. छोड़ अब..
ये कहकर सुमन नीचे चली जाती है औऱ गौतम छत पर ही ठहलने लगता है फिर कुछ देर बाद वो भी नीचे आ जाता है..
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फ़ोन क्यों नहीं उठा रहे थे?
सो रहा था..
इतनी देर तक सो रहे थे? ऐसा क्या कर रहे थे रातभर?
अरे यार.. बताया था ना कल फंक्शन था यहां.. इतना शोर गुल था नींद ही नहीं आई.. सुबह 4 बजे सोया था..
तो बताना चाहिए था ना मुझे.. मैं अपनी बाहों में भरके सुला लेती तुम्हे..
ओह हो.. फिर अगर मैंने तेरे बदन को इधर उधर से पकड़कर छू लिया होता औऱ तेरे साथ जोर जबरदस्ती करने की कोशिश की होती, तब तू क्या करती?
तब मैं तुम्हे चुम लेती औऱ कहती कि अगर तुमने मेरे साथ जबरदस्ती नहीं की तो मैं तुम्हारे साथ जबरदस्ती कर लुंगी.. औऱ फिर तुम्हारी इज़्ज़त लुटकर अपनी हवस मिटा लेती..
अच्छा ज़ी.. 4 दिनों में ही इतनी मोहब्बत हो गई मुझसे?
एक बार मिलने तो आओ मुझसे तुम.. फिर बताउंगी ये कबाड़ी वाले की बेटी कितनी मोहब्बत करती है तुमसे..
2-3 दिन की औऱ बात है रेशमा.. फिर देखना तेरा ये आशिक कैसे तेरी चुत की खुजली मिटाता है..
मुझसे तो रहा ही नहीं जा रहा तेरे बिना मेरे कुत्ते.. मन कर रहा है इस फ़ोन में घुसके तेरे पास आ जाऊ औऱ तुझे अपने गले से लगा लू..
अच्छा ये चैटिंग छोड़ वीडियो कॉल कर ना रेशमा.. देखना है तुझे..
एक मिनट.. हाँ.. कॉल कर रही हूँ..
गौतम वीडियो कॉल उठाके - आज तो बहुत प्यारी लग रही हो..
रेशमा हस्ते हुए - कुछ पहन तो लो.. कैसे नंगे होके बैठे हो..
गौतम केमेरा में अपना रेशमा को लंड दिखाकर - देखो ना ये बेचारा तुमसे मिलने की आस में कैसे खड़ा है.. बोलता है जब तक तुझसे नहीं मिलेगा तब तक नहीं बैठेगा..
रेशमा अपनी कुर्ती उतारकर अपने चूचियाँ मसलते हुए - गौतम इससे कहो कि ये खड़ा हुआ ही अच्छा लगता है.. जब हमारी मुलाक़ात होगी तब अगर ये बैठ गया तो बहुत मार खायेगा मुझसे..
गौतम - रेशमा तुम तो कह रही थी असलम बात तक नहीं करता तुमसे फिर तुम्हारे चुचे इतने कैसे बड़े होते जा रहे है? कोई औऱ तो इनपर मेहनत नहीं कर रहा ना?
रेशमा - कमीने फ़ोन पर बड़े लग रहे होंगे तुझे.. तीन साल से ब्रा का साइज वही है..
गौतम - फ़िक्र मत कर मेरी फुलझड़ी.. बहुत जल्दी तेरी चूची औऱ चुत्तड़ का साइज बढ़ने वाला है..
रेशमा अपनी चुत में ऊँगली करती हुई - गौतम देखो ना.. कैसे ये कमीनी तुम्हे देखकर गीली हो गई है.. लगता है तुमसे दुरी इसे भी बर्दाश्त नहीं है..
गौतम - तो तुम ही क्यों नहीं आ जाती मुझसे मिलने यहां? परसो की शादी है.. औऱ कोनसा तू दूर रहती है.. दो घंटे का ही तो सफर है..
रेशमा - पर आउ किसके साथ? क्या कहूँगी असलम से?
गौतम - बोल देना तेरी सहेली की शादी है.. कार्ड मैं तुझे व्हाट्सप्प कर देता हूँ..
रेशमा - ठीक है मैं बात करके देखती हूँ असलम से.. वैसे उम्मीद तो बहुत कम वो मेरी बात मानेगा..
गौतम - वैसे रेशमा.. एक बात बताऊ.. मैंने आदिल के फ़ोन से तेरे नंबर नहीं लिए थे.. आदिल ने खुद मुझे तेरे नम्बर दिए थे..
रेशमा चुत में ऊँगली करती हुई - क्यों दिए थे उसने तुझे मेरे नंबर?
गौतम - ताकि मैं तेरी चुत की खुजली को मिटा सकूँ..
रेशमा झड़ने लगती है फिर संभलकर कहती है - तूने अब तक हमारे बीच जो हुआ वो आदिल को तो नहीं बताया ना..
गौतम - अभी तक हुआ ही क्या है हमारे बीच.. जो मैं किसी को बताऊंगा.. पहले कुछ हो तो जाए..
रेशमा मुस्कुराते हुए - होने के बाद भी अगर तुमने किसी से कुछ कहा तो बहुत मार खाओगे देखना..
गौतम - अच्छा अब रखता हूँ.. नहाना है मुझे..
रेशमा - आई लव यू मेरे कुत्ते..
गौतम - आई लव यू मेरी कुत्तिया.. फ़ोन कट हो जाता है..
गौतम नहाने लगता है और नहा कर जब बाहर आता है तो उसे अपने सामने खड़ी हुई आरती कप मैं चाय लिए दिखती है जो गौतम को सिर्फ टावल में देखकर अपनी आँखे सेकती हुई बार-बार गौतम को ऊपर से नीचे तक देख कर अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए उसे आंखों से अश्लील इशारे कर रही थी जिसे गौतम अच्छे से समझ रहा था और आरती के मन की दशा भी उसे अब अच्छे से समझ आ रही थी...
गौतम में नाराज होने का नाटक करते हुए आरती से चाय का कप नहीं लिया और अपने गीले बाल सुखाने लगा.. आरती ने चाय का कप टेबल पर रखते हुए गौतम के हाथ से तोलिया ले लिया और उसे बेड पर बिठाते हुए अपने हाथ से उसके बाल सुखाने लगी.. गौतम को आरती से इस तरह की कोई उम्मीद नहीं थी मगर जिस तरह से आरती उसके सर के बाल जो गीले थे उन को तौलिये से सुखा रही थी.. गौतम जान रहा था कि आरती पूरी तरह से गौतम के ऊपर लट्टू है और गौतम से आकर्षित है.. आरती बहाने बहाने से गौतम के बदन को छू रही थी और गौतम आरती से बचते हुए ऐसा दिखा रहा था जैसे वह आरती से दूर जाना चाहता हो मगर आरती उसे अपने से दूर नहीं करना चाहती थी..
आरती - क्या बात है देवर ज़ी? गले औऱ सीने पर इतने निशान.. लगता है कई बिल्लीओ ने आपका ये हाल किया है..
गौतम आरती से तौलिया लेकर - रहने दो भाभी मैं सूखा लूंगा अपने बाल..
आरती - अरे अरे.. नहीं बताना तो मत बताओ.. देवर ज़ी.. पर ऐसे क्या करते हो.. अपनी भाभी को कम से कम इतना तो करने दो..
यह कहते हुए आरती गौतम के बेहद करीब आ जाती है और उसके होठों से अपने होंठ लगभग लगाते हुए उसके बाल साफ करने लगती है मगर गौतम अपना चेहरा मोड़ते हुए आरती से मुंह फेर लेता है औऱ आरती से कहता है.
गौतम - भईया याद कर रहे होंगे आपको भाभी.. अब रहने दो.. मैं कर लूंगा..
आरती उदासी से - तुम्हारे भईया ही तो याद नहीं करते मुझे.. देवर ज़ी.. वो तो बस दूकान ही सँभालते है मुझे सँभालने के लिए उनके पास ना तो वक़्त है ना उनमे इतनी ताकत..
गौतम बाल बनाते हुए - तभी मेरे पीछे पड़ी हो आप.. पर ये ख्याल छोड़ दो भाभी.. मैं नहीं पटने वाला..
आरती अपना पल्लू गिराकर गौतम के करीब आते हुए - अरे देवर ज़ी.. पटाना अभी शुरू ही कहा किया है मैंने आपको.. शादी का माहौल है.. सबकी इच्छा पूरी हो रही है.. मेरी मुराद भी पूरी हो जाए तो आपका क्या बिगड़ जाएगा.. इतनी बुरी भी नहीं है आपकी भाभी.. आपके गले औऱ सीने पर कुछ निशान छोड़ने का हक़ तो आपकी इस भाभी का भी है..
ये कहते हुए आरती ने गौतम की कमर पर बंधे हुए तोलिया को अपनी उंगली के दबाव से एकदम से झटके से खोल दिया और गौतम को इसका अंदाजा भी नहीं था. गौतम ने अभी तौलिये के नीचे अंडरवियर नहीं पहना था जिससे तोलिया हटाने पर वह पूरी तरह अपनी प्राकृतिक अवस्था में आ गया और आरती के सामने उसका विशालकाय हथियार लहराते हुए झूलने लगा.. गौतम का हथियार देखकर आरती के जैसे रोंगटे खड़े हो गए और वह कामुकता से भर्ती हुई सन रह गई उसने आज से पहले इस तरह की कोई चीज नहीं देखी थी आरती अश्लील फिल्में देखने की शौकीन थी और अक्सर वह फिल्मों में इस तरह के लंड देखती थी मगर आज उसने हकीकत में ऐसा कुछ देख लिया था और उसे देखकर उसकी आंखें खुली की खुली रह गई थी और वह हैरत से गौतम को देख रही थी.
गौतम का आरती से ऐसा कुछ करने की उम्मीद नहीं थी मगर आरती ने जब ऐसा कुछ कर दिया तो उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करें वह पहले तो एक दो पल के लिए भूत बना हुआ खड़ा रहा मगर फिर अपने तोड़ने को फर्ष से उठाकर वापस अपनी कमर पर बांध लिया और आरती पर गुस्सा होते हुए चिल्लाते हुए कहा..
गौतम - भाभी पागल हो क्या? ये क्या हरकत है?
आरती तो जैसे अभी तक गौतम के हथियार में ही खोई हुई थी उसे तौलिये के ऊपर से भी गौतम के हथियार की हल्की झलक मिल रही थी जो अभी तक सोया हुआ था.. आरती के कानों में गौतम की आवाज पड़ी ही नहीं और वह बस गौतम के लंड पर अपनी नजर डालें खड़ी हुई सिर्फ गौतम के लंड की ओर देख रही थी, गौतम ने आरती को ऐसा करते हुए देखा तो फिर से चिल्लाकर उसका कंधा पकड़कर झकझोरते हुए कहा..
गौतम - भाभी... भाभी...
आरती - देवर ज़ी.. आपका इतना बड़ा..
गौतम शरमाते हुए - भाभी आप जाओ यहां से..
आरती वापस अपने हाथ से गोतम का तौलिया खींचने लगती है मगर इस बार गौतम आरती का हाथ पकड़ लेता है..
गोतम - भाभी पागल हो गई हो क्या आप.. क्या कर रही हो..
आरती उत्सुकता से - देवर ज़ी बस एक बार वापस देख लेने दीजिये.. मैं चली जाउंगी..
गौतम - दरवाजा खुला हुआ है भाभी, कोई देख लेगा आप जाओ यहाँ से..
आरती - कोई नहीं देखेगा ग़ुगु.. मैं दरवाजा बंद करके आती हूँ..
आरती दरवाजा बंद करने के लिए मुड़ जाती है और दरवाजा बंद करने लगती है आरती के दरवाजा बंद करते ही बाहर हाल में डीजे की आवाज बजनी शुरू हो जाती है जिसमें आज शादी का महिला संगीत था.. डीजे पर पहला गाना बजते ही होटल में चारों तरफ शोर गुल मच जाता है जिसमें हर किसी को एक दूसरे की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी हर कोई एक दूसरे से जोर से कहकर बात कर रहा था और एक दूसरे को इशारों से अपनी बात समझ रहा था इसका फायदा उठाकर आरती ने दरवाजा बंद कर वापस गौतम के पास आ गई और उसका तोलिया खींचने की नीयत से अपना हाथ बढ़ा दिया..
गौतम हाथ पकड़ते हुए - भाभी क्या मज़ाक है.. जाओ आप यहां से..
आरती अपना हाथ छुड़ाकर अपनी साडी उतारते हुए - देवर ज़ी आज तो चाहे कयामत आ जाए.. मैं यहां से नहीं जाने वाली..
आरती जब अपनी साड़ी उतार रही होती है गौतम की नजर आरती के ब्लाउज में चली जाती है जहां दो मस्त-मस्त मौसम कड़क होकर सामने की तरफ तनी हुई थी और उनको देखने से लगता था कि उन पर अब तक किसी के हाथ नहीं पड़े हैं और ना ही आरती ने इन पर किसी और को हुकूमत करने का आदेश ही दिया था..
गौतम का सोया हुआ लैंड धीरे-धीरे उठने लगता है और वह आरती को अपने कपड़े उतारते हुए देखने लगता है आरती साड़ी के बाद अपना ब्लाउज और फिर पेटिकोट उतार कर ब्रा औऱ पेंटी में आ जाती है और फिर गौतम की ओर बढ़ने लगती है.. इस बार गौतम ने आरती से बिना किसी शर्म और लिहाज़ के मिलने का निश्चय कर लिया था और वह अपनी और आती हुई आरती को कामुक नजरों से देखने लगा था..
गौतम ने अपनी और आती हुई आरती को देखते हुए अपना तोलिया अपने हाथों से ही हटाकर साइड में रखे सोफे पर फेंक दिया और आरती की कमर में हाथ डालकर उसे अपने करीब खींचते हुए उठाकर एक साथ बिस्तर पर पटक दिया... वहां से गौतम आरती के ऊपर चढ़ा और उसे छूने लगा.. आरती भी गौतम के इस व्यवहार से हक्की बक्की रह गई और चौंकते हुए वह गौतम को चूमने लगी और उसकी आंखों में देखी हुई अपनी आंखों के इशारों से उसे पूछने लगी कि एकदम से उसे यह क्या हुआ है मगर गौतम ने उसकी आंखों के इशारे का कोई प्रति उत्तर नहीं दिया और चुपचाप आरती के होठों का स्वाद लेने लगा दोनों के होंठ आपस में इस तरह मिल रहे थे जैसे दो बिछड़े हुए दोस्त लिपटकर एक साथ मिल जाते हैं दोनों के बीच होठों की जंग जुबानी हो चुकी थी गौतम और आरती ने एक दूसरे की जीभ को अपने-अपने मुंह से निकाल कर एक दूसरे की जीभ से लड़ाना और मिलना चालू कर दिया था..
आरती को जो सुख अपने पति चेतन से नहीं मिल पाया था वह गौतम से पा लेना चाहती थी और किसी नियत से गौतम को चूम रही थी..
चुंबन के दौरान गौतम ने आरती की ब्रा निकाल कर फेंक दी जिससे उसके नुकीले सूचक गौतम के सीने पर चुभने लगे और इसमें गौतम को एक अजीब और मीठा अहसास होने लगा, उसकी कामुकता और ऊपर उठने लगी और हवाओं में तैरने लगी..
गौतम चुम्बन तोड़कर आरती से कहा - भाभी एक बार फिर सोच लो.. कल दीदी की शादी है औऱ एक बार मेरे साथ ये सब करने के बाद आप कुछ दिन ठीक से चल भी नहीं पाओगी.
आरती - मुझे फर्क नहीं पड़ता देवर ज़ी.. आप बस मुझे ऐसा रगड़ के रख दो कि मैं तृप्त हो जाऊ..
गौतम - जैसा आप चाहो भाभी..
गौतम इतना कह कर आरती कि छाती की तरफ आ जाता है और उसकी छतिया पर खड़े हुए चूचक अपने मुंह में लेकर चूसने लगता है और अपने हाथों से उन्हें मसलने और दबाने लगता है जिससे आरती के मनोभावों में कामुकता कि हवा में घूमती महक की तरह उठकर फैलने लगती है और तैरने लगती है जिससे आसपास का वातावरण काममई हो जाता है..
आरती गौतम का चेहरा पकडे हुए उसे अपनी छाती के उभार का मज़ा देने लगती है.. आरती के कड़क उठे हुए और तीर की तरह चुभने वाले चुचक गौतम अपने मुंह में लेकर इस तरह चूस रहा था जैसे वह बच्चे बचपन में अपनी माँ की चूची पकड़ के उनमे से दूध चूसते हैं...
आरती सीस्कारियां लेते हुए गौतम के चेहरे को पकड़े हुए उसके बालों में हाथ फिराती हुई उसे अपनी छाती का पूरा मजा दे रही थी और वह चाहती थी कि गौतम उसकी छाती से भरपूर मजे लेकर उसपर लट्टू हो जाए, उससे खेले जिससे उसकी ब्रा का साइज औऱ उसकी मादकता दोनों बढ़ जाए..
गौतम आरती के चुचे से खेलते हुए एक हाथ से उसकी पेंटिंग नीचे सरकार कर उतार देता है और फिर उसकी टांगों के बीच में आ जाता है और उसकी टांगें खोलकर उसकी जांघों की जोड़ पर अपना हाथ रखकर आरती की चुत को मसलने लगता है जिससे आरती अब खुलकर सिसकने औऱ आहे भरने लगती है..
आरती की चुत से गौतम के हाथ लगाते ही पानी निकलने लगा था औऱ वो झड़ गई थी मगर फिर गौतम ने अपने लंड पर थूककर अपने लंड को आरती की चुत में घुसने के लिए सेट कर दिया औऱ धक्का देने लगा..
आरती को चेतन ने सुहागरात से लेकर अब तक एक बार भी तृप्त नहीं किया था ना ही उसके साथ अच्छे से संभोग किया था जिससे आरती काम की अग्नि में जल रही थी और उसने शादी के इतने सालों तक अपनी चुत को घर में रखें गाजर मूली बैंगन यहां तक की बेलन से भी ठंडा किया था इसलिए उसकी चुत खुल तो चुकी थी मगर चुदी नहीं थी..
गौतम का लोहे की तरह मजबूत औऱ ठोस लंड अपनी पूरी औकात में खड़ा होकर आरती की चुत में घुसने लगा था औऱ आरती की सिस्कारिया अब उसकी चिंखो में बदलने लगी थी मगर यहां उसकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं था.. ऊपर से उसकी आवाज नीचे बज रहे dj के शोर में इस तरह खो गई थी जैसे भुंसे के ढेर में सुई खो जाती है.
गौतम ने आरती पर रहम करते हुए अपना हथियार धीरे-धीरे उसकी गुफा में गुस्सा आया था मगर अब आधा हथियार अंदर जाने के बाद गौतम को आरती की शक्ल देखने में मजा आने लगा..
आरती की सूरत इस तरह की थी जैसे कोई बिन पानी मछली की होती है आरती की शक्ल देखते हुए गौतम को उसकी कही हुई हर बात याद आने लगी कि किस तरह से आरती कुछ दिनों से गौतम का दिल दुखाने की पूरी पूरी कोशिश कर रही थी हालांकि आरती उन बातों को मीन नहीं करती थी ना ही उसने वह बात जानबूझकर कही थी..
उसका मकसद सिर्फ गौतम का दिल दुखाना था जिसमें वह कामयाब भी नहीं हो पाई थी मगर गौतम को आप सब याद आ रहा था और वह आरती के चेहरे पर उभरते इस भाव को देखकर सुकून महसूस कर रहा था कि अब आरती का सारा घमंड और सारी अकड़ चकनाचूर हो चुकी है..
गौतम - क्या हुआ भाभी अभी तो आधा ही अंदर गया है औऱ आप तड़पने लगी..
आरती सिसकते हुए - देवर ज़ी मैं कोई रांड थोड़ी हूँ जो इतना बड़ा लोडा एक बार में ले जाउंगी..
गौतम - चिंता क्यों करती हो भाभी.. मैं हूँ ना आपका देवर.. आपको अपने लंड से चोदकर पक्का रांड बना दूंगा..
आरती - ग़ुगु धीरे धीरे करना.. अब दर्द भी होने लगा है..
गौतम - ऐसा लगता है तीन साल में चेतन भईया ने आपको हाथ तक नहीं लगाया.. बिलकुल नाजुक हो आप तो.. देखो सील टूट गई आपकी...
आरती - उसे तो सिर्फ खाना औऱ सोना है.. साला सो किलो का ढ़ोल है.. दूकान पर बैठने के अलावा कुछ नहीं आता..
गौतम - ये बात तो है भाभी.. चेतन आप जैसी हसीन नाजुक औऱ प्यारी लड़की के लायक़ नहीं है..
आरती धीरे धीरे अपनी गांड उठाकर चुदवाते हुए - तो देवर ज़ी.. आप क्यों नहीं बना लेटे मुझे अपना.. ले चलो अपनी भाभी को भगा के.. मैं मना थोड़ी करुँगी..
गौतम धीरे धीरे आधे लंड से चोदते हुए - रहने दो भाभी.. ये ऐश औऱ आराम छोड़कर जाना आपके बस की बात नहीं है..
आरती - ऐसा नहीं है देवर ज़ी.. मैं तो आपके साथ फुटपाथ पर भी रह लुंगी. बस आप अपने इस लंड से मेरी चुत की सर्विस टाइम से करते रहना..
गौतम एक जोरदार धक्का मारके आरती की चुत में अब पूरा लंड घुसा देता है औऱ आरती चिल्लाते हुए गौतम से लिपटकर सिसकियाँ लेने लगती है..
गौतम - भाभी दर्द तो नहीं हुआ ना..
आरती - देवर ज़ी आपने तो आज असली में सील तोड़ दी..
गौतम मिशनरी पोज़ में आरती की चुदाई करता है और फिर आरती को अपने आगे घोड़ी बनाकर उसकी सवारी करने लगता है..
आरती खुलकर गौतम के साथ अपनी हवस बुझा रही थी उसे अब किसी की फिक्र नहीं थी आरती खुल के गौतम को अपना चुकी थी और उसके साथ मजाक मस्तियां करते हुए कामसुख भोग रही थी..
गौतम ने घोड़ी के बाद आरती को अपनी गोद में उठा लिया औऱ उठा उठा के चोदने लगा..
आरती ने गौतम का बराबर साथ दिया औऱ चुदाई लीला में गौतम को भी पूरा मज़ा मिलरहा था.. आरती बार बार गौतम के होंठों को चूमकर उससे अपने प्यार का इज़हार कर रही थी औऱ चुदाई के चरम पर पहुंचकर झड़ चुकी थी.. इस चुदाई में कई बार चुत से झड़ने के बाद आरती ने गौतम को अपनी चुत में घुसा कर लंड पर दबाब बनाते हुए गौतम को भी अपने अंदर अपना पानी निकालने पर मजबूर कर दिया औऱ दोनोंअपनी इस चुदाई के महासंगम के महामिलन से तृप्त होकर एक दूसरे की बाहों में लेट गए थे..
आरती - देवर ज़ी.. आप तो बहुत बुरे हो..
गौतम - क्यों भाभी.. मज़ा नहीं आया आपको?
आरती - प्यार से प्यार करने को कहा था मैंने औऱ आपने.. एक झटके में अपना ये अजगर मेरी बिल में घुसा दिया.. देखो कितनी फ़ैल गई है मेरी चुत..
गौतम - भाभी ऐसी फैली हुई चुत तो हमारे प्यार की निशानी है..
आरती मुस्कुराते हुए - बड़े आये प्यार की निशानी देने वाले.. मैं जानती हूँ तुमने मेरी बातों का बदला लिया है मुझसे..
गौतम - भाभी आपसे बदला? आप किस बात का बदला लूंगा मैं? मैं जानता था कि आप बस मेरा दिल दुखाने के लिए ही बोल रही थी जो आपने बोला.. मैं तो आपसे कभी नाराज़ था ही नहीं..
आरती मुस्कुराते हुए - अच्छा देवर ज़ी.. अब जाने दीजिये.. मौका मिलते ही वापस प्यार झरने आउंगी आपसे.
गौतम - जैसा आप चाहो भाभी.. आपका देवर हमेशा आपकी सेवा के लिए तरयार रहेगा...
आरती बेड से खड़े होते ही लड़खड़ा जाती है हसते हुए गौतम को देखती है..
गौतम सिगरेट सुलगाते हुए - मैंने तो पहले ही कहा था भाभी.. चुदने के बाद ठीक से चल भी नहीं पाओगी..
आरती लड़खड़ाकर दो कदम चलती है उसके मन में वापस चुदने की तलब थी मगर जुबान से इस बात को कहना आरती के बस में अब नहीं था वो कमरे के दरवाजे पर रूकते हुए मुस्कुराते हुए गौतम से कहती है - देवर ज़ी मुझे मेरे रूम तक छोड़ दोगे?
गौतम सिगरेट का एक कश लेकर आरती से कहता है - ये भी तो आपका रूम है भाभी यही आराम कर लो.. शाम तक तो वैसे भी कोई नहीं है पूछने वाला..
आरती लड़खड़ाती हुई वापस बेड के करीब आ जाती है जहाँ गौतम आरती का हाथ पकड़कर उसे अपने ऊपर खींच लेता है औऱ आरती गौतम के ऊँगली में सुलगती सिगरेट लेकर एक लम्बा सा कश भरती है औऱ फिर सिगरेट बुझाकार गौतम को फिर से चूमने लगता है..
Q abhi तेरी gand मार रहीं हैं क्यारुक जा सिमरन आएगी दुबारा तेरी लेने अगले update के बाद सिम्मी वापस गांड मारेगी
O bhai gm yar
Mast kahani he bro.... Mom ke sath chink tpak dam dam