amanforyouonly
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aha too good..... lets see aagey kya hota hai... waiting for next update now
Gjb yar. Bro.... bahut khub..... Lajawab..Update 37
वीरेंद्र सिंह को गजसिंह औऱ कर्मा डाकू का कोई नाम औऱ निशान नहीं मिला तो थक्कर महल लौट के आ गया..
जब वीरेंद्र सिंह महल आया तो उसके सिपाही भी उसकी बटाइ गई चीज पश्चिम की रेतीली जमीन से लेकर आ चुके थे..
दो दिन पहले सवान की पहली बारिश ने सैनिको के लम्बे इंतजार को समाप्त कर दिया था.. बैरागी को उसकी मगई चीज लाकर दे दी गई थी औऱ अब बैरागी अपने काम में लग गया था..
वीरेंद्र सिंह जागीर की सीमाओ पर चौकसी बढाकर बैरागी के कार्य के सफल होने की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा था..
रुक्मा अब पूरी तरफ सकुशल हो गई थी औऱ उसने अपने कश के बाहर खड़े समर से बहुत बार बहाने बहाने से बात करने की कोशिश की थी मगर समर अपनी असली जगह जानता था औऱ उसने राजकुमारी के प्रेम भरे आग्रह औऱ सन्देश का कोई जवाब नहीं दिया औऱ राजकुमारी को हर बार अपने दूर करते हुए अनदेखा कर दिया.. रुक्मा समर का ये व्यवहार समझ पाने में असमर्थ थी.. उसके मन में समर रमाया हुआ था रुक्मा किसी भी शर्त औऱ तर्क पर समर को पाना चाहती थी..
वैद्य ज़ी की आँख लगी तो रुक्मा चुपके से अपने बिस्तर से उठकर कश के बाहर आ गई औऱ इधर उधर देखकर कश के बाहर पहरेदारी पर तैनात समर के गले लगते हुए बोली..
रुक्मा - कल एक चिट्टी रखी थी मैंने तुम्हारे कमरबंध की गठरी में.. तुमने पढ़ी?
समर रुक्मा को अपने से अलग करता हुआ - माफ़ करिये राजकुमारी ज़ी.. मैं आपकी इच्छा पूर्ण नहीं कर सकता..
रुक्मा - मैं तुमसे तुम्हारा जवाब नहीं मांगा.. केवल अपने मन की बात तुम्हें बताइ है. मैं जानती हूं तुम मेरा प्रस्ताव स्वीकार क्यों नहीं कर रहे. तुम्हें इसी बात का भय है ना कि जब मेरे पिता को हमारे प्रेम का पता लगेगा तो क्या करेंगे? समर तुम उनकी चिंता मुझ पर छोड़ दो.. मैं तुमसे प्रेम करती हूं और अब तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकती..
समर - राजकुमारी ज़ी आपकक्ष के भीतर जाइये.. यदि आपको यहां पर किसी ने मेरे साथ खड़ा हुआ देख लिया तो बिना करण ही लोग आपके और मेरे बारे में भ्रान्ति फैलाने लगेंगे..
रुक्मा - समर मैं तुमसे प्रेम करती हूं.. और मेरा प्रेम इतना कमजोर नहीं है कि किसी के कुछ भी कह देने से उसे हानि हो जाए.. मैंने तुमसे प्रेम किया है और मैं तुमसे वादा करती हूं कि मैं हमारे प्रेम के बीच आने वाली हर चुनौती को स्वीकार करके उस चुनौती का सामना कर सकती हूं और हमारे प्रेम को सुरक्षित रख सकती हूँ इसके लिए मुझे अपने पिता के विरोध में खड़ा होना पड़े तो मैं हो जाउंगी..
समर - किन्तु मैं आपसे प्रेम नहीं करता राजकुमारी.. आपको मेरे जैसे साधारण सिपाही के पास बार-बार आना शोभा नहीं देता..
रुक्मा - क्या शोभा देता है और क्या नहीं.. इसका फैसला तुम मत करो समर.. मैं तुमसे प्रेम करती हूं और बदले में तुम्हें भी मुझसे प्रेम करना पड़ेगा..मेरा प्रेम प्रस्ताव कोई आग्रह नहीं है जिसे तुम ठुकरा कर चले जाओगे.. मैं तुम्हारी राजकुमारी हूं.. औऱ तुम्हारी राजकुमार होने के नाते मेरा तुम पर आधीपत्य है.. तुम्हे मेरा हर आदेश मानना होगा औऱ मेरे कहे अनुसार ही आचरण भी करना होगा..
समर - रानी माँ के आने का समय हो गया है राजकुमारी.. अब आपको भीतर कश में जाना चाहिए..
रुक्मा फिर से समर के गले लगते हुए - मेरे पहले मिलन का भी समय आ चूका है समर.. मैं चाहती हूँ तुम मुझे भोगो.. औऱ मैं तुम्हे..
समर - कैसी बातें कर ही हो आप राजकुमारी.. मैं आपके योग्य नहीं.. अगर किसी को आपकी बातों का पता चला तो मेरा सर धड से अलग कर दिया जाएगा..आप अपने कश में जाइये..
रुक्मा - अभी के लिए मैं जाती हूँ समर.. तुम्हे जोखिम में डालना मेरा उद्देश्य नहीं है.. पर तुम याद रखना मैं तुम्हे अपनेआप से अलग नहीं होने दूंगी..
ये कहकर रुक्मा कश में चली जाती है...
समर के पहरेदारी का समय समाप्त होता है औऱ वो महल में एक जगह बैठकर आराम करने लगता है..
जयसिंह - क्या हुआ समर आज भी यही रुकने की मंशा है? तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तुम्हारी माँ तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही होगी..
समर - मैं बस जाने ही वाला था जयसिंह काका.. बस थोड़ा आराम करने यहां ठहर गया था..
जयसिंह - कोई समस्या है क्या समर.. पिछले 4-5 दिनों से तुम्हे देख रहा हूँ बहुत बुझे बुझे रहते हो..
समर उठते हुए - नहीं काका.. कुछ नहीं.. मैं तो बस यही सोच रहा था कि गजसिंह को कैसे पकड़ा जाए..
जयसिंह - उसकी चिंता तुम छोड़ दो समर.. इस बार उसके लगभग सभी साथी मारे गए है.. अब वो हमले की हिम्मत नहीं करेगा.. मुझे तो बस इस बात का आश्चर्य है कि इतने गुप्त रास्ते के बारे में उसे बताया किसने? जो भी हो.. तुमने अपनी बहादुरी साबित कर दी.. अकेले ही इतने दुश्मनों का खात्मा करना एक वीर योद्धा कि चरम सुक्ति है जिसे तुमने पा लिया है..
समर - आप आराम कीजिये.. अभी आपकी चोट के घाव नहीं भर पाए है.. आपका इतना चलना फिरना ठीक नहीं..
जयसिंह - तुम मेरी चिंता मत करो.. अब तुम जाओ समर..
समर - ठीक है काका..
समर जयसिंह के पास से उठकर अपने घर की तरफ चल देता है और रास्ते में यही सोचता रहता है कि वह घर जाकर अकेला क्या करेगा किस तरह रहेगा अब उसके घर में उसका इंतजार करने के लिए और कोई भी तो नहीं है अगर नियति उसके साथ यह खेल नहीं खेलती और जिस तरह से उसका परिवार पहले था वैसा ही चलता रहता तो कितना अच्छा होता..
समर की मां लता की सच्चाई अगर उससे हमेशा छुपी रहती तो कितना अच्छा होता समर कितनी आसानी से और चैन से जीवन जीता..
समर को लग रहा था कि उसकी मां लता को अपने किये का पछतावा हो रहा होगा औऱ वो शर्म से घर छोड़कर कहीं चली गई होगी, वह अब उससे कभी नहीं मिलेगी.. समर भी अपनी उदासी पर कायम था.. समर को अब लता पर उतना गुस्सा नहीं आ रहा था जितना उसे पहले आ रहा था वह जानता था कि लता ने अपनी जिंदगी बचाने के लिए और अपने जीवन को आसान बनाने के लिए बहुत सारे पाप किए हैं लेकिन उसका असली गुस्सा इस बात पर था कि उसने अपने ही बेटे को मारने की कोशिश की थी.
समर घर जाते हुए रास्ते में यही सोच रहा था कि उसकी मा लता कहां होगी कैसी होगी और किस हाल में होगी.. आखिर वह अकेली जाएगी भी कहां उसके सभी साथियों की मौत हो चुकी है और अब उसके पास कौन सा नया ठोर ठिकाना होगा.. क्या वो वापस अपनी असली जगह चली जाएगी या फिर अब भी कहीं उसका कोई परिचित या कोई साथी बचा होगा जिसके पास लता जाकर शरण लगी..
समर को कहीं ना कहीं अब लता की याद आने लगी थी और वह सोचने लगा था कि क्या वो लता को माफ कर सकता है क्या वो लता था के साथ एक नई शुरुआत कर सकता है और फिर से उसी तरह जिस तरह से वह पहले लता के साथ रहता आया था वापस रह सकता है? समर के दिमाग में बहुत सारी बातें चल रही थी और बहुत सारे ख्याल दौड़ रहे थे ख्यालों से उथल-पुथल होकर उसका सर चकरा रहा था और भारी होने लगा था रास्ते में ही उसने कई बार अपने आप को अलग-अलग बातों में उलझाया हुआ रखा था..
घर पहुंचने में जब कुछ ही फैसला रह गया तब समर यह सोचकर परेशान होने लगा था कि अब उसे कभी अपने घर में उसकी मां लता नजर नहीं आएगी और अब वो कभी लता से नहीं मिल पाएगा इसी के साथ समर लता के साथ बिताये हसीन पलों को और उन यादो को याद कर रहा था जो दोनों ने मां बेटे के तौर पर बिताये थे.. समर को रह रहकर अब लता की याद आने लगी थी और उससे भी ज्यादा समर को अब लता के साथ जंगल पहले सम्भोग का मनोरम दृश्य भी याद आने लगा था जिससे वो कामुकता से भरने लगा था.. समर और लता के बीच बने रिश्ते की नई शुरुआत जंगल के उस जगह से हुई थी जहां लता ने अपने बेटे समर की जान लेने की कोशिश की थी..
समर को लता के बदन का स्पर्श और उसकी कोमलता के साथ-साथ उसके बदन से उठती गंध का भी अहसास होने लगा था.. समर को उस वक़्त गुस्से में कुछ नहीं सुझा तो उसने अपनी माँ लता के साथ सम्भोग कर लिया लेकिन बाद में वही सब उसके दिमाग में चलने लगा.. उसे लगा था की वो लता उर्फ़ लीलावती को सजा दे रहा है मगर जिस तरह लता ने उसके साथ संभोग में भागीदारी निभाई थी उसे लता को किसी बात का पछतावा ना होने का अंदाजा समर को लग चुका था और को जानता था कि लता को उसके साथ संभोग में मजा आया था..
समर लता की तरफ आकर्षित हो चुका था और वह लता को वापस पाना चाहता था लेकिन लता के किए कुकर्मों की वजह से वह लता को ना तो ढूंढने जाने को तैयार था ना उसका मुंह वापस देखने को.. समर ने लता को भूलाने का तय कर लिया और अब आगे से समर ने लता के बारे में और कोई ख्याल नहीं सोचने का भी तय कर लिया..
समर घर की चौखट पर आ पहुंचा और दरवाजा खोलते हुए अंदर घुसा तो उसने देखा कि लता आँगन में पानी का बर्तन लिये खड़ी थी औऱ उसीको देखे जा रही थी.. जब समर आँगन में आया तो लता ने पानी देते हुए कहा..
लता - 5 दिनों से यहां तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ.. जागीरदार से ऐसी भी क्या निष्ठा औऱ जुड़ाव की घर आने की याद ही नहीं रही..
समर पानी का बर्तन लेकर फेंकते हुए - कहा था वापस अपना मुख मत दिखलाना.. क्यों आई हो तुम यहां?
लता प्यार समर के करीब आते हुए - सजा लेने.. मैं जानती हूँ मेरा कार्य क्षमा के योग्य नहीं है लेकिन तुम अपनी माँ को उसके कार्य की जो सजा देना चाहो, मुझे मंज़ूर है..
समर गुस्से में - अपने बेटे की जान लेने की कोशिश करने वाली माँ नहीं होती लीलावती.. अपना ये ढोंग मेरे आगे मत करो.. अगर तुम यहां से नहीं जाती तो मैं ही चला जाता हूँ..
यह कहकर जैसे ही समर घर के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ा लीलावती भाग कर दरवाजा बंद करते हुए दरवाजे से चिपक गई औऱ समर से बोली - ऐसा मत कहो समर.. तुम्हारी माँ अब बदल चुकी है.. चाहे जो इंतिहान ले लो.. तुम कहो तो मैं ही बीरेंद्र सिंह को अपना सच बता दूंगी.. फिर मुझे जो सजा मिले मंज़ूर है.. लेकिन तुम इस तरह मुझे मत धुतकारो..
लता के भागने और दीवार से चिपकने के बीच उसकी ओढ़नी उसके माथे से और उसके आंचल से सरक गई थी जिससे उसके बदन के सुडोल उन्नत उभार, चिकनी नाभी औऱ गर्दन के आसपास लटकती जुल्फे दिख गई औऱ समर के तन बदन में फिर से लता को पाने की लहर दौड़ गई.. समर एक टक लता के बदन को देखने लगा औऱ लता को भी इस बात की खबर थी की समर उसपर मोहित होने लगा है..
लता - मेरा मरना अगर लिखा है तो मैं तुम्हारे हाथों से मरना पसंद करुँगी समर.. तुम ही मेरी जान लेलो.. अगर उससे मुझे माफ़ी मिलती है तो मुझे प्रसन्नता होगी..
समर अपना ध्यान लता के बदन से हटाते हुए - मेरे मार्ग से हटो लीलावती.. मैं तुम्हे औऱ नहीं देखना चाहता..
लता समर को देखकर अपनी चोली उतारते हुए - देखना तो तू चाहता है समर.. आज मैं खुलके दिखा देती हूँ..
लता अपनी चोली उतारकार समर के करीब आती है औऱ उसे अपनी बाहों में भरते हुए उसके होंठों पर अपने होंठ लगा देती है औऱ समर भी लता के प्रभाव में बहक जाता है..
समर के मन में लता को पाने की दबी हुई इच्छा उसके बाहर आ जाती है और वह अपनी लीलावती की कमर में हाथ डालकर उसे अपने करीब खींचते हुए उठा लेता है और भीतर ले जाकर बिछोने पर पटक देता है..
समर लता के ऊपर आ जाता है और लता भी समर को अपने ऊपर खींच कर लेटा लेती है और उसके मुख से अपने मुख को लगाकर चुंबन शुरू कर देती है दोनों एक दूसरे को भी बेतहाशा चूमते हैं इस तरह की जैसे एक दूसरे को खा जाने की नियत रखते हो.. दोनों के मन में एक दूसरे को पाने की चाहत भरी हुई थी और इसी चाहत का असर था जो दोनों को अब एक दूसरे पर दिखाई दे रहा था दोनों ही एक दूसरे को अपनी अपनी बाहों में जकड़ कर ऐसे चूम रहे थे जैसे दोनों पिछले जन्म के बिछड़े प्रेमी हो..
दोनों के बीच मां बेटे का रिश्ता समाप्त हो चुका था और अब जो रिश्ता बन चुका था वह एक प्रेमी और प्रेमिका का था जो एक घर में एक कमरे में एक बिछोने में एक दूसरे को अपने-अपने बदन की नुमाइश करते हुए जकड़े हुए थे..
लता ने बिना चुंबन को तोड़े हुए समर के बदन से उसके वस्त्र उतार फेक और अपना घाघरा भी खोलकर नीचे सरकार दिया जिससे दोनों अपनी प्राकृतिक अवस्था में आ गए..
दोनों के मिलन की संक्रमानता पूरे कमरे में फैल रही थी और जिससे पूरा घर मादकता के वातावरण से भरा जा रहा था.. कभी लता समीर को अपने ऊपर खींचकर चूमती तो कभी समर लता को अपने ऊपर खींचकर चूमता.. दोनों एक दूसरे को चूमते हुए अब होठों के आसपास और गर्दन के हिस्से को भी चूमने लगे थे और समर जैसे कामुकता के शिखर पर पहुंचकर अपनी जीभ औऱ होंठ से लता के चेहरे और गर्दन को चूमता हुआ चाटने लगा था..
लता से भी अब ना रहा गया औऱ वो समर का लंड पकड़कर अपनी चुत में घुसाती हुई गांड उठा उठा के चुदवाने लगी.. अपनी माँ की काम कला से प्रभावित समर भी लता की चुत को अपने लंड से जोर जोर से पीटने लगा.. चुदाई की आवाजे चारो तरफ फैलने लगी थी..
समर ने अपनी मां के चेहरे पर काम के प्रभाव में आ रहे ऐसे हाव भाव देखे की समर लीलावती पर पूरी तरह से मोहित हो गया और अब समर का दिल लीलावती पर पूरी तरह से आ गया..
समर ने लीलावती की चुत से लंड निकालकर उसे पलटने को कहा औऱ लीलावती ने बिना कुछ कहे पलटकर समर को देखते हुए एक हाथ से अपनी गांड खोलकर समर के आगे परोस दी.. समर ने लीलावती के चेहरे को देखते हुए उसकी चुत में वापस लंड पेल दिया औऱ लीलावती के बाल पकड़ कर चोदने लगा.. इस बार लीलावती की चुदाई के शोर में लीलावती की कामनीय सिस्कारी भी शामिल थी..
समर पीछे से अपनी मां लीलावती की ले रहा था और लीलावती अपने बेटे समर को पीछे से दे रही थी.. दोनों के मन में आपस में एक दूसरे के प्रति प्रेम लगाव आकर्षक और मोह वापस आ चुका था मगर उसने अब माँ बेटे का रूप ना लेकर एक प्रेमी और प्रेमिका का रूप लिया था..
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लीलावती झड़ चुकी थी मगर समर अब झड़ने वाला था और लीलावती घोड़ी बनाकर समर के आगे ऐसे चुदवा रही थी जैसे वो उसकी माँ नहीं कोई औऱ हो.. समर लीलावती की चुत में झड़ गया औऱ उसीके ऊपर गिर गया..
लीलावती समर के नीचे से निकलते हुए - तुझे भूक लगी होगी ना समर.. मैं भोजन पका देती हूँ..
समर ताने मारता हुआ - ज़हर तो नहीं मिलाओगी लीलावती?
लीलावती अपना घाघरा उठाते हुए - अब भी रूठें हुए हो अपनी माँ से.. सजा देना चाहते हो..
समर लीलावती का घाघरा छीनकर - सजा तो पूरी रात मिलेगी.. अभी जा पका दे भोजन.. औऱ ये वस्त्र रहने दे.. जब उतारने ही है तो पहनने की क्या आवश्यकता?
लीलावती हसते हुए चले जाती है..
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60 like prGjb yar. Bro.... bahut khub..... Lajawab..
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Next. Kab tak
Hmm mujhe bhi yahi lgta hai..Lagata h jald hi gugu k maa ki chut milne wali...
बहुत ही शानदार राजा जवाब अपडेट