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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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219
बहुत जबर्दस्त फ़्लैशबैक लिखने का अंदाज है आपका
बैरागी का अंत बड़े बाबा यानि वीरेंद्र सिंह ने याद किया
और बैरागी की पत्नी और गृहस्थ जीवन हमारे हीरो को सपने में दिखा

समय मृदुला का जुड़वां भाई था, जिस
 

kamdev99008

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Update 14

बिस्तर पर चादर के नीचे सुमन और गौतम कमर के ऊपर नंगे एक दूसरे से लिपटे हुए एकदूसरे को बाहों में भरकर सोने लगे थे. सुमन प्यार से गौतम का चेहरा अपने सीने से लगाकर उसके सर के ऊपर हाथ फेर कर उसके बाल सहलाती हुई उसे सुला रही थी जिससे गौतम को कुछ ही देर में नींद आ गई और वह सपनों के सागर में खो गया.. वह सपना देखने लगा औऱ सपने में उसने देखा की एक औरत जो करीब 60 साल की है जल्दी में दूसरी औरत से बात करती हुई कहीं जा रही थी..

अरे कहा था ना ताई वही रुक जाओ.. अब देखो कैसी हालात हो गई है लता की..
तू ज्यादा बात मत कर शान्ति.. जल्दी से गर्म पानी करवा के ले आ.. लगता है कुछ ही देर में बच्चा होने वाला है..
शान्ति - ठीक है ताई.. अभी करवा के लाती हूँ..

शांति ताई को अंदर लता के पास छोड़कर खुद बाहर आ जाती है और बाहर परेशानी में इधर-उधर घूम रहे लता के पति धूपसिंह से कहती है कि उसे गर्म पानी चाहिए धूपसिंह शांति को चूल्हे की तरफ इशारा करते हुए कहता है गर्म पानी किया हुआ पड़ा है.. लता चूल्हे से गर्म पानी का भगोना उठा कर कमरे के अंदर आ जाती है और लल्ली ताई को पानी का भगोना दे देती है..

कुछ देर बाद लता एक जुड़वा भाई बहन को जन्म देती है जिसे हाथ में लेकर ताई शांति को देखती और शांति भी ताई को देखने लगती है..

लता बच्चों को जन्म देकर बेहोश हो चुकी थी और उसे हो रहे दर्द से थोड़ा आराम मिल गया था..
शान्ति - ताई.. मैं धुप भाईसाब को बता के आती हूँ..
लल्ली ताई - अरे रुक कम्भख्त..
शांति - क्या हुआ ताई इतनी ख़ुशी की खबर है धुप भाईसाब कुछ ना कुछ इनाम जरूर दे देंगे खुश होकर..
लल्ली ताई - अरे इनाम से कब तक काम चलेगा?
शान्ति - तो ताई?

लल्ली ताई - एक काम कर.. इस बच्ची को तू पीछे के दरवाजे से बाहर ले जा औऱ घर में रख, 11 कोस पर जो नोगी गाँव है वहा के साहूकार के यहां बच्चा नहीं है उसने कहा भी था बच्चा लेने के लिए.. वो बड़ी औऱ मोटी रकम देगा. जिससे हम आराम से बैठके खा पी सकते है..

शान्ति - सही कह रही हो ताई.. वैसे भी कोनसा धुप भाईसाब औऱ लता को पता लगने वाला है इस बात का.. लाओ दो मुझे बच्ची मैं अभी पीछे के रास्ते से उसे ले जाती हूँ..

लल्ली ताई - संभालके.. बहुत ध्यान से कोई देख ना ले.. बड़ी जिम्मेदारी का काम है.. मैं बच्चे को धुप सिंह के पास बाहर ले जाती हूँ.. थोड़ी देर में लता को भी होश में आ जायेगी..
शांति - हां ताई.. चलो..

लल्ली ताई हाथ में बच्चा लिए कमरे से बाहर आ जाती है और दूर पेड़ के नीचे दांतों में उंगलियां दबाए इधर से उधर घूम रहे धूप सिंह को बुलाते हुए कहती है..
लल्ली ताई - अरे ओ धुपया.. आ जाओ.. लल्ला हुआ है लल्ला.. देख केसा चाँद खिला है तेरे आँगन में..

धुपसिंह लल्ली ताई के पास आ कर मुस्कुराते हुए बच्चे को अपनी गोद में ले लेता है औऱ अपने हाथ से सोने की अंगूठी निकालकर लल्ली को दे देता है..
लल्ली ताई - अरे इस अंगूठी से क्या होगा धुपया.. पहली बार में लल्ला हुआ है कुछ औऱ भी दिओ..
धुपसिंह बच्चे को देखता हुआ - क्या चाहिए ताई..
लल्ली ताई - अब तुझे क्या कहु धुपया.. तू जानता है मेरी हालात ना खाने को है ना पहनने को.. इस अंगूठी से कुछ दिन काम चल जाएगा मगर फिर वही हालात होगी.. तू तो जागीरदार के दिए खेत भी जोतता है.. 3-4 महीने का अनाज दे दे तो बरसात के दिन आराम से कटे..

धुपसिंह - 3-4 महीने क्यों ताई तू साल भर का अनाज लेजा..
लल्ली ताई - तेरा भाला हो धुपया.. आज तेरे माँ बापू जिन्दा होते तो बहुत खुश होते.. अब जा अपनी लुगाई के पास.. थोड़ी देर में वो होश में आ जायेगी.. अब तुझे ही ख्याल रखना है माँ बेटे दोनों का..

इतना कहकर ताई वहां से चली जाती है और धूपसिंह कमरे के अंदर जाकर लता के करीब बैठ जाता है और बच्चे को खिलाता हुआ लता के होश में आने का इंतजार करता है कुछ ही पलों में लता भी होश में आ जाती है और दर्द से राहत पाकर मुस्कुराती हुई धूपसिंह और उसके गोद में बच्चे को देखती हैं.

धुपसिंह - बेटा हुआ है लता.. शकल तेरे ऊपर गई है..
लेता - मैंने कहा था मैं माइके से किसीको बुला लेती हूँ आपको कितना कस्ट हो रहा है मेरे कारण..
धुपसिंह - तू आराम कर.. ये बातें फिर कभी करना..

दूसरी ओर जैसे ही शांति बच्चों को लेकर घर के पिछले दरवाजे से निकली वह इधर-उधर से छुपती छुपाती हुई जंगल के मुहाने पर पहुंच गई. शान्ति को सामने से जागीरदार के सैनिक करते हुए दिखाई दिए तो वह थोड़ा सा जंगल के अंदर आ गई और वहीं से किनारे किनारे अपने गंतव्य तक पहुंचाने के लिए चलने लगी.. मगर शांति को पता ही नहीं चला कि वह जंगल के अंदर किनारे किनारे नहीं बल्कि थोड़ा सा और अंदर आ चुकी है जहां जंगल के जानवर उसके आसपास मंडरा रहे थे और परिंदे रात के इस पहर जंगल को अपनी आवाजों से और भयानक कर रहे.

शांति ने रात के अंधेरे में भी अपने से थोड़ा सा दूर एक बाघ को देख लिया जिसकी आंखें चमक रही थी मगर उस बाघ का ध्यान कहीं और था. शांति की हालत खराब हो गई उसके बदन में कंपन होने लगा और उसे डर था की कहीं बच्ची अब रो ना दे.. क्योंकि अगर उसने रोना शुरू कर दिया तो बाघ निश्चित ही उसके यहां होने का अनुमान लगा लगा और अपने नुकीले पंजों और दातों से उसकी हत्या करके उसे खा जाएगा..

शांति धीरे-धीरे पीछे हटने लगी और पीछे हटते हुए उसका पर एक पत्थर से टकरा गया जिससे वह जमीन पर गिर गई और बच्ची भी नीचे गिर गई और रोने लगी.. बच्ची की आवाज करने पर शांति डर से तिलमिला गई और अपनी जान बचाने के लिए बच्ची को वहीं छोड़कर पीछे की ओर भागने लगी.

शांति तब तक भागती रही जब तक उसके पैरों ने उसका साथ नहीं छोड़ दिया.. शांति भगते भगते जंगल से बाहर आ चुकी थी और सड़क से एक किनारे आकर एक जगह बैठ गई औऱ लम्बी लम्बी सांस लेने लगी.. शांति की साँसे बहुत तेज ऊपर नीचे हो रही थी और उसका मन घबराहट के मारे उथल-पुथल हो रहा था. शांति अपनी जान बचाकर भाग आई थी मगर उसे यह ध्यान नहीं था कि वह उस बच्ची को वहीं छोड़कर आ चुकी है और बाघ उसकी आवाज सुनकर उसके निश्चित ही करीब आ जाएगा और उसे मार डालेगा.

शांति ये सोच सोच कर रोने लगी थी कि उसने एक बच्ची को मौत के मुंह में डाल दिया है और वह खुद डरपोक की भांति अपनी जान बचाकर भाग आई है.

लल्ली ताई जब धूपसिंह के घर से निकली और अपने घर आ रही थी तभी उस रास्ते में शांति डगर के किनारे बैठी हुई रोती हुई दिखाई पड़ी.. ताई ने आगे बढ़कर शांति से उसके रोने की वजह पूछी और उसे चुप करते हुए क्या हुआ बताने को कहा तो ताई के पूछने पर शांति ने साफ-साफ शब्दों में अपने साथ जो कुछ हुआ उस कहानी को बयां कर दिया जिससे ताई भी शांति के साथ में वही बैठ गई और जो कुछ हुआ उसपर अफसोस करने लगी. दोनों ने काफी देर तक वहीं बैठकर एक दूसरे को संभाला और फिर दोनों ने एक मत होकर वापस जंगल में जाकर उसे बच्ची को तलाशने की सोची.. दोनों डरते-डरते धीरे-धीरे जंगल में कदम बढ़ाती हुई जा रही थी..


शांति के बच्ची को छोड़कर भाग जाने के बाद बाघ के कानों में जब बच्ची के रोने की आवाज पड़ी तब बाघ उस बच्ची के करीब आने लगा और जब बाघ ने उस बच्ची को जमीन पर पड़ा रोता हुआ देखा तो उस बाग ने बच्ची जिस कपड़े में थी उस कपड़े को अपने मुंह से पकड़ लिया और कपडे के साथ बच्ची को उठाकर थोड़ा सा दूर जंगल की जमीन पर बेसुध होकर सो रहे एक आदमी के पास ले आ गया..

आदमी मटमेली जमीन पर इस तरह लेटा हुआ सो रहा था जैसे कोई राजा मखमली बिस्तर पर सोता है. बच्ची के रोने की आवाज से उस आदमी की नींद नहीं खुली मगर बाघ के पंजों की छुअन से उस आदमी की नींद टूटी गई.. आदमी ने जब बच्ची के रोने की आवाज सुनी तो वह उठ कर बैठ गया और अपने पास रखें एक पानी के भरे सुराही जैसे चमड़े के अंदर से पानी निकाल कर अपने मुंह पर मरता हुआ अपने सामने खड़े बाग और बगल में जमीन पर पड़ी रोती हुई बच्ची को देखने लगा..

आदमी ने बाघ को देखते हुए उससे पूछा - यह किसे अपने साथ ले आया बालम.. और फिर उस बाघ के सर पर हाथ रखकर अपनी आंखें बंद करते हुए जो कुछ घटा था सारा दृश्य देख लिया औऱ माजरा समझ लिया..

आदमी के बदन पर फटे पुराने मट मेले कपड़े थे सर औऱ दाढ़ी पर बाल बड़े-बड़े और देखने से लगता था कि आदमी कई दिनों से नहीं नहाया है हालत से दिन हीन लगने वाला ये आदमी इतने भयानक जंगल में अकेला एक कुटिया बनाकर रहता था और उसने जिस बाघ को पाला हुआ था उसका नाम बालम रखा था.. जिस तरह से उस आदमी ने बाघ के सर पर हाथ रखकर बाग के दिमाग की याददास्त देख ली थी उससे यह आदमी कोई साधारण व्यक्ति नहीं मालूम पड़ता था.. कद काठी और चेहरे से साधारण औऱ सामान्य से भी कम दिखने वाला यह आदमी जिस तरह से इतनी बेपरवाही और निडरता से इतने बयानक जंगल में विहार कर रहा था उससे लगता था कि यह कोई चमत्कारी आदमी है..

आदमी ने बच्ची को उठा कर लिया और अपनी गोद में लेकर अपनी कुटिया की तरफ आ गया जहां पीछे-पीछे बाघ भी उसके साथ आ चूका था.. उस कुटिया और उसके आसपास की जगह को देखने से ऐसा लगता था जैसे वह आदमी कई बरसो से कोई कठोर साधना कर रहा है और उसी में तनलीन रहता है.. आदमी को कुछ भी कहा जा सकता था लेकिन कोई भी संज्ञा उसके लिए परिपूर्ण नहीं थी वह तांत्रिक अघोरि या औघड़ कुछ भी हो सकता था.

लल्ली ताई औऱ शान्ति उस जगह तक आ गए जहां बच्ची गिरी थी लल्ली ताई और शांति को बच्ची कहीं नहीं मिली.. काफी देर तक ढूंढने के बाद दोनों ने यह समझा कि वह बाघ उस बच्ची को उठाकर ले गया है और उसको मार के खा चुका है वापस जंगल से बाहर आ गई और इस बारे में किसी से भी बात न करने और कुछ भी नहीं बोलने का निश्चय किया और एक दूसरे से वादा करते हुए इस बात को यहीं पर भूल जाने का निर्णय किया.

वही आदमी ने बच्ची को अपने साथ रख लिया और उसे अपने बच्चे की तरह पढ़ने लगा. बच्ची जैसे-जैसे बड़ी हुई वो उस आदमी को बाबा कहकर पुकारने लगी और अपना असली बाप समझती थी. बच्ची ने उस आदमी से उसकी विद्या सीख ली.. दोनों जंगल में किसी कुटिया में रहने लगे थे और हंसी खुशी से अपना जीवन जी रहे थे आदमी ने बच्ची को एक नाम भी दिया था.. आदमी बच्ची को उसके शीतल स्वाभाव के कारण मृदुला कह बुलाता था.. मृदुला ने कुटिया को महल की तरह सजाया था औऱ अब उस आदमी जिसे बाप वो मानती थी उसको रोज़ नहाने धोने औऱ साफ रहने को मजबूर करती थी.. आदमी भी अपने जीवन में मृदुला के आने से बहुत खुश था उसकी साधना पहले से अच्छी होने लगी थी औऱ उसने मृदुला को अपनी बेटी मानकर जीना शुरू कर दिया था उसने मृदुला को बहुत कुछ ऐसा सीखा दिया था जिससे मृदुला अकेली ही पूरी फौज का काम तमाम कर सकती थी औऱ बड़े बड़े भूत प्रेत को अपनी मुट्ठी में कर सकती थी..

दिन गुजरते गए, मौसम बदलते गए, साल दर साल बीतते गए औऱ मृदुला का जोबन खिलने लगा.. उसके अंग इस तरह खिलकर फूटने लगे जैसे गुलाब की कली खिलकर फुटती है.. मृदुला के उतार चढाव कामदेवी का वरदान थे जो अब मृदुला के मन को काम की औऱ बढ़ाने लगे थे.. वो अब अपनी उम्र के अठरवे साल पर आ चुकी थी..

आदमी को इसकी बिल्कुल भी भनक नहीं थी वह इसी तरह अपनी साधना में तनलीन रहता और सुबह शाम मृदुल के हाथ का पकाया भोजन खाकर आराम करता.. मृदुला ने अक्सर उस आदमी से जंगल के बाहर की दुनिया देखने के लिए आग्रह किया.. मगर आदमी अपनी साधना अधूरी छोड़कर जाने को बिल्कुल भी तैयार नहीं था और हर बार मृदुला को कुछ ना कुछ कह कर या बहाना बनाकर उसकी बात को टाल देता.

एक दिन जब मृदुल पानी का घड़ा लिए नदी की तरफ जा रही थी तभी उसने अपने जीवन में पहली बार अपने पिता के अतिरिक्त किसी आदमी को देखा जो नदी के मुहाने पर बैठा हुआ पानी पी रहा था. रंगरूप और कदकाटी में हसीन तरीन दिखने वाला यह लड़का मृदुला के मन को पहली नज़र में ही भा गया था..

लड़का देखने से करीब 22 साल का लगता था चेहरे पर दाढ़ी मूछ नहीं थी चेहरा साफ औऱ खिला हुआ था और कंधे तक लंबे बाल थे एक नई सी शाल उसने ओढ़ रखी थी.. अपनी हथेलियों में नदी का पानी भरके पिता हुआ वह लड़का मृदुला के मन को लुभा रहा था. मृदुला 18 साल की हो चुकी थी और अब उसे कामइच्छा औऱ प्रेम का भाव परेशान करने लगा था.

मृदुला ने जब उसे लड़के को पानी पीकर नदी से दूर जाने के खड़ा होता देखा तब वह उस लड़के के पास आ गई और उसके पीछे कुछ दूर खड़ी होकर कर बोली..

मृदुला - कौन हो तुम?
लड़का हैरानी से - तुम कौन हो औऱ इतने घने के बीच यहां क्या कर रही हो? तुम्हे पता नहीं यहां कितने खूंखार जानवर रहते है.. (लड़का मृदुला के जोबन को देखकर उसपर मोहित हो चूका था मगर उसके अंदर हैरत भी थी)
मृदुला - यहां पहली बार आये हो?
लड़का - हाँ पर तुम अकेली यहां क्या कर रही हो?
मृदुला - मैं यही रहती हूँ अपने बाबा के साथ.
लड़का हैरानी से - इस जंगल में?
मृदुला - हाँ.. तुम कहा रहते हो?
लड़का - मैंरा तो कोई ठिकाना नहीं.. यहां वहा घूमता हूँ.. गलती से जंगल में आ गया औऱ रास्ता भूल गया. प्यास लगी थी तो पानी पिने लगा..
मृदुला करीब आते हुए - नाम क्या है तुम्हारा?
लड़का - रागी..
मृदुला हसते हुए - नाम रागी है औऱ बैरागी सा भेस बनाया है..
लड़का मुस्कुराते हुए - तो फिर बैरागी ही कहकर पुकार लो.. तुम्हारा नाम क्या है?
मृदुला - मेरा नाम मृदुला है बैरागी..
बैरागी - ठीक है मृदुला चलता हूँ.. अगर वापस कभी मिलना हुआ जरूर मिलूंगा.
मृदुला - पर तुमने तो कहा कि तुम्हारा कोई ठिकाना नहीं है.. फिर कहा जा रहे हो..
बैरागी - बंजारा हूँ एक जगह ज्यादा देर तक रुकू तो ज़ी उचटने लगता है.. जाना तो पड़ेगा..
मृदुला के चेहरे पर ख़ुशी का जो भाव था वो अब गंभीर हो गया था.. उसने बैरागी के औऱ करीब आते हुए कहा - अगर मैं ना जाने दू तो?
बैरागी मुस्कुराते हुए - मुझे यहां रोक कर क्या करोगी.. मैं तुम्हारे किस काम आ सकता हूँ?
मृदुला - बाबा ने बताया था इस जंगल के बाहर लोग शादी ब्याह करके साथ रहते है.. तुम मुझसे ब्याह कर लो.. फिर हम भी साथ रहेंगे..
बैरागी हसते हुए - तुम्हे शर्म नहीं आती लड़की होकर ऐसी बात करते हुए?
मृदुला - शर्म क्यों आएगी.. मैंने कुछ गलत तो नहीं किया..
बैरागी - ठीक है.. मेरे तो आगे पीछे कोई नहीं है.. तुम्हारे तो बाबा है उनसे तो पूछ लो..
मृदुला - चलो साथ में चलकर पूछते है..
बैरागी - अगर मैंने झूठ बोलकर तुम्हारे बाबा को मना लिया तो?
मृदुला - तुम मेरे बाबा के सामने झूठ बोल ही नहीं सकते..
बैरागी - ऐसा क्यों?
मृदुला - मेरे बाबा आँख पढ़कर अतीत जान लेते है.
बैरागी - ऐसी बात है तो चलो.

मृदुला जब बैरागी को अपने साथ लेकर अपनी कुटिया के बाहर आई तब उसे उसके पिता कहीं जाने की तैयारी करते हुए दिखे.
मृदुला ने अपने पिता से पूछा कि वो कहां जाने की तैयारी में है उसके पिता ने सामने खड़े बैरागी और मृदुल को साथ में देखकर सारा माजरा समझ लिया और उनसे कहा की उनकी साधना का ये चरण पूरी हो चुकी है और उन्हें अपनी साधना की आखिरी चरण पूरी करने के लिए यहां से बहुत दूर जाना पड़ेगा.
इसीके साथ उन्होंने यह भी कहा कि वह बैरागी और मृदुला दोनों के मन से सहमत है और वो आज शाम जाने से पहले पुरानी रीती से दोनों ब्याह करवा देगा..

उस बूढ़ा हो चुके आदमी ने मृदुला और बैरागी का ब्याह एक पुरानी रीति से करवा दिया और खुद कुटिया से जरूरी सामान लेकर एक रास्ते चल दिया.. बूढ़े आदमी ने मृदुला से वापस मिलने का वादा किया और उसे भरोसा दिया कि वह जहां भी रहेगा मृदुला से मिलने जरूर आएगा.. मृदुला ने भी रोते हुए अपने पिता को विदाई दी और अपना नया जीवन शुरू करने के लिए बैरागी के साथ उस कुटिया में रहने लगी..

एक दोपहर के उजाले में जब कुटिया के अंदर बैरागी और मृदुला प्रेम प्रसंग कर रहे थे तब उन्हें कुछ लोगों के आने की आहट सुन दी और दोनों प्रेम करना छोड़कर बाहर आ गए.. दोनों ने देखा की कुटिया के आसपास बहुत सारे डाकू इकट्ठा थे जिनमें से कई डाकू के बदन पर घाव के निशान थे औऱ उनके पास लूट का सामान भी था डाकू की संख्या करीब 20-25 होगी..

डाकूओ ने भी दोनों को देख लिया और मृदुला बैरागी औऱ डाकू आमने सामने खड़े हो गए. डाकुओं के मुखिया ने जैसे ही मृदुला को देखा वह उसे पर लट्टू हो गया और कामुकता से भरकर बैरागी से कहा कि है उस लड़की को उनके हवाले कर दे और वहां से चला जाए. बैरागी ने जवाब में पास में पड़े गंडासे को उठाकर उस डाकू के ऊपर फेंक दिया.. गंडासा डाकू की छाती में धंस गया औऱ डाकू एक पल में ही प्राण त्याग कर जमीन पर गिर गया. अपने मुखिया की मौत देखकर बाकी सारे डाकू गुस्से से दिलमिला गए और चिल्लाते हुए बैरागी को मारने के लिए जपटे मगर जैसे ही सारे डाकू एक साथ बैरागी को करने के लिए झपटे मृदुला ने जमीन की मिट्टी उठाकर उन डाकुओ पर फेंक दी.. जैसे मृदुला ने जमीन की मिट्टी उठाकर डाकूओ पर फ़ेंकी मृदुला की फ़ेंकी मिट्टी का एक-एक कण एक एक प्रेत में बदल गया औऱ उन प्रेतो ने एक पल में ही सारे डाकुओ के सर उनके कंधे से उतार दिए औऱ वापस मिट्टी बनकर जमीन पर गिर पड़े.. बैरागी ने जब इस तरह से मृदुला को क्रोध में देखा औऱ उसके द्वारा की गई इस भयावह घटना को देखा वो आश्चर्य डर औऱ जिज्ञासा के भाव से भरते हुए मृदुला को देखने लगा..

मृदुला ने जब बैरागी को तरह से खड़ा हुआ देखा तो उसने अपने गले से एक ताबीज निकाल कर बैरागी को पहना दिया और कहा ये ताबिज़ उसे चोट पहुंचाने वाले इंसान को कभी चैन से जीने नहीं देगा..


20 साल बीत जाने के बाद धुपसिंह औऱ लता को इस बात की भनक तक नहीं लगी थी कि लता ने उस रात जुड़वा भाई बहनों को जन्म दिया था जिसमें से बच्ची को लल्ली औऱ शांति ने चुरा लिया था जो अभी बैरागी के साथ जंगल में उस कुटिया में रहती थी.. धुपसिंह औऱ लता ने अपने बेटे का नाम समर रखा था औऱ समर अब अपने पिता कि तरह ही जागीरदार की हिफाज़त में लगी राजा की सेना की टुकड़ी में था..

बैरागी और मृदुला को उस कुटिया में रहते 2 साल हो चुके थे औऱ अब मृदुला 8 माह की गर्भवती थी उसका बच्चा होने वाला था बैरागी ने मृदुला से बार बार जंगल बाहर चलने औऱ किसी गाँव में रहने की गुहार की मगर मृदुला ने मना कर दिया औऱ बैरागी के साथ जंगल से बाहर जाने को इंकार कर दिया बैरागी ने बार बार मृदुला को समझया था कि उसे इस्त्री रोग औऱ बच्चे के जन्म का उपचार नहीं आता मगर मृदुला ने उसकी एक ना सुनी औऱ जंगल ना छोड़ने की अपनी ज़िद पर अड़ी रही..

आखिरकार वही हुआ जिसका बैरागी को डर था बच्चा पैदा करने के दौरान मृदुला औऱ उसके बच्चे दोनों की मौत हो गई और बैरागी फिर से अकेला हो गया. उसके मन में एक बार फिर से दुख दर्द तकलीफ का बसेरा हो गया.. बैरागी मृदुला औऱ बच्चे का अंतिम संस्कार करके जंगल छोड़ दिया और पागलों की तरह भटकने लगा. बैरागी किसी फकीर की तरह दिन बताने लगा और भूख लगने पर भिखारी की तरह मांग कर खाने लगा.. 2 महीना इसी तरह बिताने के बाद जब उसने गांव में इसी तरह एक और महिला को मारते देखा तो उसने इस रोग का इलाज करने के लिए दवा बनाने का निश्चय किया. उसे शरीर की समझ थी उसके मुताबिक जदिबूती से लोगों का इलाज़ करने लगा औऱ घूम घूम के जदिबूती औऱ इलाज़ की खोज करने लगा..

बैरागी ने मृदुला के साथ रहकर बहुत सी चीज सीखी थी जो उसके इस कार्य में उसकी बहुत मदद कर रही थी बैरागी ना गांव-गांव घूम कर बहुत से लोगों का इलाज किया और बहुत सी आज के समय छोटीमोटी कही जाने वाली बीमारी को ठीक किया. बदले में कुछ लोगों ने उसे भरपेट खाना खिलाया तो कुछ लोगों ने वहीं रहने के लिए जमीन देनी चाहिए लेकिन बैरागी ने एक जगह रहने से इनकार कर दिया और अपना मकसद पूरा करने के लिए एक बैलगाड़ी ले ली और उस पर बैठकर गांव गांव घूमते हुए स्त्री रोग का इलाज ढूंढने निकल पड़ा

बैरागी को अब किसी बात की फ़िक्र नहीं थी वह अपने आप में मस्त अपनी पत्नी मृदुला को याद करते हुए प्रेम से भरे गीत गाते हुए और अपनी पत्नी के साथ बिताये प्रेम से परिपूर्ण उन पलों को याद करते हुए मुसाफिरों की तरह घूमने लगा और बीमारियों का इलाज ढूंढने लगा किसी एक पुराने वैद्य के कहने पर उसने एक खास किस्म की जड़ीबूटी तलाश करने का निर्णय किया जिसके लिए वह बहुत दूर सफर पर निकल पड़ा लेकिन रास्ते में ही वीरेंद्र सिंह के पहरेदारो ने उसे पकड़ कर क़ैद कर लिया..

सुबह के 4:00 बजे गौतम इस सपने से बाहर निकल आया और अपने सपने की हकीकत को झूठ मानते हुए यह बस उसका एक वहम समझ कर इसे भूल जाने का निर्णय कर वापस सो गया..

बहुत जबर्दस्त फ़्लैशबैक लिखने का अंदाज है आपका
बैरागी का अंत बड़े बाबा यानि वीरेंद्र सिंह ने याद किया
और बैरागी की पत्नी मृदुला और गृहस्थ जीवन हमारे हीरो को सपने में दिखा

समर मृदुला का जुड़वां भाई था, जिसका दूसरा जन्म गौतम के रूप में हुआ

अब सुमन और रुपा की मुलाकात भी करा देनी चाहिए गौतम को
 
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बिस्तर पर चादर के नीचे सुमन और गौतम कमर के ऊपर नंगे एक दूसरे से लिपटे हुए एकदूसरे को बाहों में भरकर सोने लगे थे. सुमन प्यार से गौतम का चेहरा अपने सीने से लगाकर उसके सर के ऊपर हाथ फेर कर उसके बाल सहलाती हुई उसे सुला रही थी जिससे गौतम को कुछ ही देर में नींद आ गई और वह सपनों के सागर में खो गया.. वह सपना देखने लगा औऱ सपने में उसने देखा की एक औरत जो करीब 60 साल की है जल्दी में दूसरी औरत से बात करती हुई कहीं जा रही थी..

अरे कहा था ना ताई वही रुक जाओ.. अब देखो कैसी हालात हो गई है लता की..
तू ज्यादा बात मत कर शान्ति.. जल्दी से गर्म पानी करवा के ले आ.. लगता है कुछ ही देर में बच्चा होने वाला है..
शान्ति - ठीक है ताई.. अभी करवा के लाती हूँ..

शांति ताई को अंदर लता के पास छोड़कर खुद बाहर आ जाती है और बाहर परेशानी में इधर-उधर घूम रहे लता के पति धूपसिंह से कहती है कि उसे गर्म पानी चाहिए धूपसिंह शांति को चूल्हे की तरफ इशारा करते हुए कहता है गर्म पानी किया हुआ पड़ा है.. लता चूल्हे से गर्म पानी का भगोना उठा कर कमरे के अंदर आ जाती है और लल्ली ताई को पानी का भगोना दे देती है..

कुछ देर बाद लता एक जुड़वा भाई बहन को जन्म देती है जिसे हाथ में लेकर ताई शांति को देखती और शांति भी ताई को देखने लगती है..

लता बच्चों को जन्म देकर बेहोश हो चुकी थी और उसे हो रहे दर्द से थोड़ा आराम मिल गया था..
शान्ति - ताई.. मैं धुप भाईसाब को बता के आती हूँ..
लल्ली ताई - अरे रुक कम्भख्त..
शांति - क्या हुआ ताई इतनी ख़ुशी की खबर है धुप भाईसाब कुछ ना कुछ इनाम जरूर दे देंगे खुश होकर..
लल्ली ताई - अरे इनाम से कब तक काम चलेगा?
शान्ति - तो ताई?

लल्ली ताई - एक काम कर.. इस बच्ची को तू पीछे के दरवाजे से बाहर ले जा औऱ घर में रख, 11 कोस पर जो नोगी गाँव है वहा के साहूकार के यहां बच्चा नहीं है उसने कहा भी था बच्चा लेने के लिए.. वो बड़ी औऱ मोटी रकम देगा. जिससे हम आराम से बैठके खा पी सकते है..

शान्ति - सही कह रही हो ताई.. वैसे भी कोनसा धुप भाईसाब औऱ लता को पता लगने वाला है इस बात का.. लाओ दो मुझे बच्ची मैं अभी पीछे के रास्ते से उसे ले जाती हूँ..

लल्ली ताई - संभालके.. बहुत ध्यान से कोई देख ना ले.. बड़ी जिम्मेदारी का काम है.. मैं बच्चे को धुप सिंह के पास बाहर ले जाती हूँ.. थोड़ी देर में लता को भी होश में आ जायेगी..
शांति - हां ताई.. चलो..

लल्ली ताई हाथ में बच्चा लिए कमरे से बाहर आ जाती है और दूर पेड़ के नीचे दांतों में उंगलियां दबाए इधर से उधर घूम रहे धूप सिंह को बुलाते हुए कहती है..
लल्ली ताई - अरे ओ धुपया.. आ जाओ.. लल्ला हुआ है लल्ला.. देख केसा चाँद खिला है तेरे आँगन में..

धुपसिंह लल्ली ताई के पास आ कर मुस्कुराते हुए बच्चे को अपनी गोद में ले लेता है औऱ अपने हाथ से सोने की अंगूठी निकालकर लल्ली को दे देता है..
लल्ली ताई - अरे इस अंगूठी से क्या होगा धुपया.. पहली बार में लल्ला हुआ है कुछ औऱ भी दिओ..
धुपसिंह बच्चे को देखता हुआ - क्या चाहिए ताई..
लल्ली ताई - अब तुझे क्या कहु धुपया.. तू जानता है मेरी हालात ना खाने को है ना पहनने को.. इस अंगूठी से कुछ दिन काम चल जाएगा मगर फिर वही हालात होगी.. तू तो जागीरदार के दिए खेत भी जोतता है.. 3-4 महीने का अनाज दे दे तो बरसात के दिन आराम से कटे..

धुपसिंह - 3-4 महीने क्यों ताई तू साल भर का अनाज लेजा..
लल्ली ताई - तेरा भाला हो धुपया.. आज तेरे माँ बापू जिन्दा होते तो बहुत खुश होते.. अब जा अपनी लुगाई के पास.. थोड़ी देर में वो होश में आ जायेगी.. अब तुझे ही ख्याल रखना है माँ बेटे दोनों का..

इतना कहकर ताई वहां से चली जाती है और धूपसिंह कमरे के अंदर जाकर लता के करीब बैठ जाता है और बच्चे को खिलाता हुआ लता के होश में आने का इंतजार करता है कुछ ही पलों में लता भी होश में आ जाती है और दर्द से राहत पाकर मुस्कुराती हुई धूपसिंह और उसके गोद में बच्चे को देखती हैं.

धुपसिंह - बेटा हुआ है लता.. शकल तेरे ऊपर गई है..
लेता - मैंने कहा था मैं माइके से किसीको बुला लेती हूँ आपको कितना कस्ट हो रहा है मेरे कारण..
धुपसिंह - तू आराम कर.. ये बातें फिर कभी करना..

दूसरी ओर जैसे ही शांति बच्चों को लेकर घर के पिछले दरवाजे से निकली वह इधर-उधर से छुपती छुपाती हुई जंगल के मुहाने पर पहुंच गई. शान्ति को सामने से जागीरदार के सैनिक करते हुए दिखाई दिए तो वह थोड़ा सा जंगल के अंदर आ गई और वहीं से किनारे किनारे अपने गंतव्य तक पहुंचाने के लिए चलने लगी.. मगर शांति को पता ही नहीं चला कि वह जंगल के अंदर किनारे किनारे नहीं बल्कि थोड़ा सा और अंदर आ चुकी है जहां जंगल के जानवर उसके आसपास मंडरा रहे थे और परिंदे रात के इस पहर जंगल को अपनी आवाजों से और भयानक कर रहे.

शांति ने रात के अंधेरे में भी अपने से थोड़ा सा दूर एक बाघ को देख लिया जिसकी आंखें चमक रही थी मगर उस बाघ का ध्यान कहीं और था. शांति की हालत खराब हो गई उसके बदन में कंपन होने लगा और उसे डर था की कहीं बच्ची अब रो ना दे.. क्योंकि अगर उसने रोना शुरू कर दिया तो बाघ निश्चित ही उसके यहां होने का अनुमान लगा लगा और अपने नुकीले पंजों और दातों से उसकी हत्या करके उसे खा जाएगा..

शांति धीरे-धीरे पीछे हटने लगी और पीछे हटते हुए उसका पर एक पत्थर से टकरा गया जिससे वह जमीन पर गिर गई और बच्ची भी नीचे गिर गई और रोने लगी.. बच्ची की आवाज करने पर शांति डर से तिलमिला गई और अपनी जान बचाने के लिए बच्ची को वहीं छोड़कर पीछे की ओर भागने लगी.

शांति तब तक भागती रही जब तक उसके पैरों ने उसका साथ नहीं छोड़ दिया.. शांति भगते भगते जंगल से बाहर आ चुकी थी और सड़क से एक किनारे आकर एक जगह बैठ गई औऱ लम्बी लम्बी सांस लेने लगी.. शांति की साँसे बहुत तेज ऊपर नीचे हो रही थी और उसका मन घबराहट के मारे उथल-पुथल हो रहा था. शांति अपनी जान बचाकर भाग आई थी मगर उसे यह ध्यान नहीं था कि वह उस बच्ची को वहीं छोड़कर आ चुकी है और बाघ उसकी आवाज सुनकर उसके निश्चित ही करीब आ जाएगा और उसे मार डालेगा.

शांति ये सोच सोच कर रोने लगी थी कि उसने एक बच्ची को मौत के मुंह में डाल दिया है और वह खुद डरपोक की भांति अपनी जान बचाकर भाग आई है.

लल्ली ताई जब धूपसिंह के घर से निकली और अपने घर आ रही थी तभी उस रास्ते में शांति डगर के किनारे बैठी हुई रोती हुई दिखाई पड़ी.. ताई ने आगे बढ़कर शांति से उसके रोने की वजह पूछी और उसे चुप करते हुए क्या हुआ बताने को कहा तो ताई के पूछने पर शांति ने साफ-साफ शब्दों में अपने साथ जो कुछ हुआ उस कहानी को बयां कर दिया जिससे ताई भी शांति के साथ में वही बैठ गई और जो कुछ हुआ उसपर अफसोस करने लगी. दोनों ने काफी देर तक वहीं बैठकर एक दूसरे को संभाला और फिर दोनों ने एक मत होकर वापस जंगल में जाकर उसे बच्ची को तलाशने की सोची.. दोनों डरते-डरते धीरे-धीरे जंगल में कदम बढ़ाती हुई जा रही थी..


शांति के बच्ची को छोड़कर भाग जाने के बाद बाघ के कानों में जब बच्ची के रोने की आवाज पड़ी तब बाघ उस बच्ची के करीब आने लगा और जब बाघ ने उस बच्ची को जमीन पर पड़ा रोता हुआ देखा तो उस बाग ने बच्ची जिस कपड़े में थी उस कपड़े को अपने मुंह से पकड़ लिया और कपडे के साथ बच्ची को उठाकर थोड़ा सा दूर जंगल की जमीन पर बेसुध होकर सो रहे एक आदमी के पास ले आ गया..

आदमी मटमेली जमीन पर इस तरह लेटा हुआ सो रहा था जैसे कोई राजा मखमली बिस्तर पर सोता है. बच्ची के रोने की आवाज से उस आदमी की नींद नहीं खुली मगर बाघ के पंजों की छुअन से उस आदमी की नींद टूटी गई.. आदमी ने जब बच्ची के रोने की आवाज सुनी तो वह उठ कर बैठ गया और अपने पास रखें एक पानी के भरे सुराही जैसे चमड़े के अंदर से पानी निकाल कर अपने मुंह पर मरता हुआ अपने सामने खड़े बाग और बगल में जमीन पर पड़ी रोती हुई बच्ची को देखने लगा..

आदमी ने बाघ को देखते हुए उससे पूछा - यह किसे अपने साथ ले आया बालम.. और फिर उस बाघ के सर पर हाथ रखकर अपनी आंखें बंद करते हुए जो कुछ घटा था सारा दृश्य देख लिया औऱ माजरा समझ लिया..

आदमी के बदन पर फटे पुराने मट मेले कपड़े थे सर औऱ दाढ़ी पर बाल बड़े-बड़े और देखने से लगता था कि आदमी कई दिनों से नहीं नहाया है हालत से दिन हीन लगने वाला ये आदमी इतने भयानक जंगल में अकेला एक कुटिया बनाकर रहता था और उसने जिस बाघ को पाला हुआ था उसका नाम बालम रखा था.. जिस तरह से उस आदमी ने बाघ के सर पर हाथ रखकर बाग के दिमाग की याददास्त देख ली थी उससे यह आदमी कोई साधारण व्यक्ति नहीं मालूम पड़ता था.. कद काठी और चेहरे से साधारण औऱ सामान्य से भी कम दिखने वाला यह आदमी जिस तरह से इतनी बेपरवाही और निडरता से इतने बयानक जंगल में विहार कर रहा था उससे लगता था कि यह कोई चमत्कारी आदमी है..

आदमी ने बच्ची को उठा कर लिया और अपनी गोद में लेकर अपनी कुटिया की तरफ आ गया जहां पीछे-पीछे बाघ भी उसके साथ आ चूका था.. उस कुटिया और उसके आसपास की जगह को देखने से ऐसा लगता था जैसे वह आदमी कई बरसो से कोई कठोर साधना कर रहा है और उसी में तनलीन रहता है.. आदमी को कुछ भी कहा जा सकता था लेकिन कोई भी संज्ञा उसके लिए परिपूर्ण नहीं थी वह तांत्रिक अघोरि या औघड़ कुछ भी हो सकता था.

लल्ली ताई औऱ शान्ति उस जगह तक आ गए जहां बच्ची गिरी थी लल्ली ताई और शांति को बच्ची कहीं नहीं मिली.. काफी देर तक ढूंढने के बाद दोनों ने यह समझा कि वह बाघ उस बच्ची को उठाकर ले गया है और उसको मार के खा चुका है वापस जंगल से बाहर आ गई और इस बारे में किसी से भी बात न करने और कुछ भी नहीं बोलने का निश्चय किया और एक दूसरे से वादा करते हुए इस बात को यहीं पर भूल जाने का निर्णय किया.

वही आदमी ने बच्ची को अपने साथ रख लिया और उसे अपने बच्चे की तरह पढ़ने लगा. बच्ची जैसे-जैसे बड़ी हुई वो उस आदमी को बाबा कहकर पुकारने लगी और अपना असली बाप समझती थी. बच्ची ने उस आदमी से उसकी विद्या सीख ली.. दोनों जंगल में किसी कुटिया में रहने लगे थे और हंसी खुशी से अपना जीवन जी रहे थे आदमी ने बच्ची को एक नाम भी दिया था.. आदमी बच्ची को उसके शीतल स्वाभाव के कारण मृदुला कह बुलाता था.. मृदुला ने कुटिया को महल की तरह सजाया था औऱ अब उस आदमी जिसे बाप वो मानती थी उसको रोज़ नहाने धोने औऱ साफ रहने को मजबूर करती थी.. आदमी भी अपने जीवन में मृदुला के आने से बहुत खुश था उसकी साधना पहले से अच्छी होने लगी थी औऱ उसने मृदुला को अपनी बेटी मानकर जीना शुरू कर दिया था उसने मृदुला को बहुत कुछ ऐसा सीखा दिया था जिससे मृदुला अकेली ही पूरी फौज का काम तमाम कर सकती थी औऱ बड़े बड़े भूत प्रेत को अपनी मुट्ठी में कर सकती थी..

दिन गुजरते गए, मौसम बदलते गए, साल दर साल बीतते गए औऱ मृदुला का जोबन खिलने लगा.. उसके अंग इस तरह खिलकर फूटने लगे जैसे गुलाब की कली खिलकर फुटती है.. मृदुला के उतार चढाव कामदेवी का वरदान थे जो अब मृदुला के मन को काम की औऱ बढ़ाने लगे थे.. वो अब अपनी उम्र के अठरवे साल पर आ चुकी थी..

आदमी को इसकी बिल्कुल भी भनक नहीं थी वह इसी तरह अपनी साधना में तनलीन रहता और सुबह शाम मृदुल के हाथ का पकाया भोजन खाकर आराम करता.. मृदुला ने अक्सर उस आदमी से जंगल के बाहर की दुनिया देखने के लिए आग्रह किया.. मगर आदमी अपनी साधना अधूरी छोड़कर जाने को बिल्कुल भी तैयार नहीं था और हर बार मृदुला को कुछ ना कुछ कह कर या बहाना बनाकर उसकी बात को टाल देता.

एक दिन जब मृदुल पानी का घड़ा लिए नदी की तरफ जा रही थी तभी उसने अपने जीवन में पहली बार अपने पिता के अतिरिक्त किसी आदमी को देखा जो नदी के मुहाने पर बैठा हुआ पानी पी रहा था. रंगरूप और कदकाटी में हसीन तरीन दिखने वाला यह लड़का मृदुला के मन को पहली नज़र में ही भा गया था..

लड़का देखने से करीब 22 साल का लगता था चेहरे पर दाढ़ी मूछ नहीं थी चेहरा साफ औऱ खिला हुआ था और कंधे तक लंबे बाल थे एक नई सी शाल उसने ओढ़ रखी थी.. अपनी हथेलियों में नदी का पानी भरके पिता हुआ वह लड़का मृदुला के मन को लुभा रहा था. मृदुला 18 साल की हो चुकी थी और अब उसे कामइच्छा औऱ प्रेम का भाव परेशान करने लगा था.

मृदुला ने जब उसे लड़के को पानी पीकर नदी से दूर जाने के खड़ा होता देखा तब वह उस लड़के के पास आ गई और उसके पीछे कुछ दूर खड़ी होकर कर बोली..

मृदुला - कौन हो तुम?
लड़का हैरानी से - तुम कौन हो औऱ इतने घने के बीच यहां क्या कर रही हो? तुम्हे पता नहीं यहां कितने खूंखार जानवर रहते है.. (लड़का मृदुला के जोबन को देखकर उसपर मोहित हो चूका था मगर उसके अंदर हैरत भी थी)
मृदुला - यहां पहली बार आये हो?
लड़का - हाँ पर तुम अकेली यहां क्या कर रही हो?
मृदुला - मैं यही रहती हूँ अपने बाबा के साथ.
लड़का हैरानी से - इस जंगल में?
मृदुला - हाँ.. तुम कहा रहते हो?
लड़का - मैंरा तो कोई ठिकाना नहीं.. यहां वहा घूमता हूँ.. गलती से जंगल में आ गया औऱ रास्ता भूल गया. प्यास लगी थी तो पानी पिने लगा..
मृदुला करीब आते हुए - नाम क्या है तुम्हारा?
लड़का - रागी..
मृदुला हसते हुए - नाम रागी है औऱ बैरागी सा भेस बनाया है..
लड़का मुस्कुराते हुए - तो फिर बैरागी ही कहकर पुकार लो.. तुम्हारा नाम क्या है?
मृदुला - मेरा नाम मृदुला है बैरागी..
बैरागी - ठीक है मृदुला चलता हूँ.. अगर वापस कभी मिलना हुआ जरूर मिलूंगा.
मृदुला - पर तुमने तो कहा कि तुम्हारा कोई ठिकाना नहीं है.. फिर कहा जा रहे हो..
बैरागी - बंजारा हूँ एक जगह ज्यादा देर तक रुकू तो ज़ी उचटने लगता है.. जाना तो पड़ेगा..
मृदुला के चेहरे पर ख़ुशी का जो भाव था वो अब गंभीर हो गया था.. उसने बैरागी के औऱ करीब आते हुए कहा - अगर मैं ना जाने दू तो?
बैरागी मुस्कुराते हुए - मुझे यहां रोक कर क्या करोगी.. मैं तुम्हारे किस काम आ सकता हूँ?
मृदुला - बाबा ने बताया था इस जंगल के बाहर लोग शादी ब्याह करके साथ रहते है.. तुम मुझसे ब्याह कर लो.. फिर हम भी साथ रहेंगे..
बैरागी हसते हुए - तुम्हे शर्म नहीं आती लड़की होकर ऐसी बात करते हुए?
मृदुला - शर्म क्यों आएगी.. मैंने कुछ गलत तो नहीं किया..
बैरागी - ठीक है.. मेरे तो आगे पीछे कोई नहीं है.. तुम्हारे तो बाबा है उनसे तो पूछ लो..
मृदुला - चलो साथ में चलकर पूछते है..
बैरागी - अगर मैंने झूठ बोलकर तुम्हारे बाबा को मना लिया तो?
मृदुला - तुम मेरे बाबा के सामने झूठ बोल ही नहीं सकते..
बैरागी - ऐसा क्यों?
मृदुला - मेरे बाबा आँख पढ़कर अतीत जान लेते है.
बैरागी - ऐसी बात है तो चलो.

मृदुला जब बैरागी को अपने साथ लेकर अपनी कुटिया के बाहर आई तब उसे उसके पिता कहीं जाने की तैयारी करते हुए दिखे.
मृदुला ने अपने पिता से पूछा कि वो कहां जाने की तैयारी में है उसके पिता ने सामने खड़े बैरागी और मृदुल को साथ में देखकर सारा माजरा समझ लिया और उनसे कहा की उनकी साधना का ये चरण पूरी हो चुकी है और उन्हें अपनी साधना की आखिरी चरण पूरी करने के लिए यहां से बहुत दूर जाना पड़ेगा.
इसीके साथ उन्होंने यह भी कहा कि वह बैरागी और मृदुला दोनों के मन से सहमत है और वो आज शाम जाने से पहले पुरानी रीती से दोनों ब्याह करवा देगा..

उस बूढ़ा हो चुके आदमी ने मृदुला और बैरागी का ब्याह एक पुरानी रीति से करवा दिया और खुद कुटिया से जरूरी सामान लेकर एक रास्ते चल दिया.. बूढ़े आदमी ने मृदुला से वापस मिलने का वादा किया और उसे भरोसा दिया कि वह जहां भी रहेगा मृदुला से मिलने जरूर आएगा.. मृदुला ने भी रोते हुए अपने पिता को विदाई दी और अपना नया जीवन शुरू करने के लिए बैरागी के साथ उस कुटिया में रहने लगी..

एक दोपहर के उजाले में जब कुटिया के अंदर बैरागी और मृदुला प्रेम प्रसंग कर रहे थे तब उन्हें कुछ लोगों के आने की आहट सुन दी और दोनों प्रेम करना छोड़कर बाहर आ गए.. दोनों ने देखा की कुटिया के आसपास बहुत सारे डाकू इकट्ठा थे जिनमें से कई डाकू के बदन पर घाव के निशान थे औऱ उनके पास लूट का सामान भी था डाकू की संख्या करीब 20-25 होगी..

डाकूओ ने भी दोनों को देख लिया और मृदुला बैरागी औऱ डाकू आमने सामने खड़े हो गए. डाकुओं के मुखिया ने जैसे ही मृदुला को देखा वह उसे पर लट्टू हो गया और कामुकता से भरकर बैरागी से कहा कि है उस लड़की को उनके हवाले कर दे और वहां से चला जाए. बैरागी ने जवाब में पास में पड़े गंडासे को उठाकर उस डाकू के ऊपर फेंक दिया.. गंडासा डाकू की छाती में धंस गया औऱ डाकू एक पल में ही प्राण त्याग कर जमीन पर गिर गया. अपने मुखिया की मौत देखकर बाकी सारे डाकू गुस्से से दिलमिला गए और चिल्लाते हुए बैरागी को मारने के लिए जपटे मगर जैसे ही सारे डाकू एक साथ बैरागी को करने के लिए झपटे मृदुला ने जमीन की मिट्टी उठाकर उन डाकुओ पर फेंक दी.. जैसे मृदुला ने जमीन की मिट्टी उठाकर डाकूओ पर फ़ेंकी मृदुला की फ़ेंकी मिट्टी का एक-एक कण एक एक प्रेत में बदल गया औऱ उन प्रेतो ने एक पल में ही सारे डाकुओ के सर उनके कंधे से उतार दिए औऱ वापस मिट्टी बनकर जमीन पर गिर पड़े.. बैरागी ने जब इस तरह से मृदुला को क्रोध में देखा औऱ उसके द्वारा की गई इस भयावह घटना को देखा वो आश्चर्य डर औऱ जिज्ञासा के भाव से भरते हुए मृदुला को देखने लगा..

मृदुला ने जब बैरागी को तरह से खड़ा हुआ देखा तो उसने अपने गले से एक ताबीज निकाल कर बैरागी को पहना दिया और कहा ये ताबिज़ उसे चोट पहुंचाने वाले इंसान को कभी चैन से जीने नहीं देगा..


20 साल बीत जाने के बाद धुपसिंह औऱ लता को इस बात की भनक तक नहीं लगी थी कि लता ने उस रात जुड़वा भाई बहनों को जन्म दिया था जिसमें से बच्ची को लल्ली औऱ शांति ने चुरा लिया था जो अभी बैरागी के साथ जंगल में उस कुटिया में रहती थी.. धुपसिंह औऱ लता ने अपने बेटे का नाम समर रखा था औऱ समर अब अपने पिता कि तरह ही जागीरदार की हिफाज़त में लगी राजा की सेना की टुकड़ी में था..

बैरागी और मृदुला को उस कुटिया में रहते 2 साल हो चुके थे औऱ अब मृदुला 8 माह की गर्भवती थी उसका बच्चा होने वाला था बैरागी ने मृदुला से बार बार जंगल बाहर चलने औऱ किसी गाँव में रहने की गुहार की मगर मृदुला ने मना कर दिया औऱ बैरागी के साथ जंगल से बाहर जाने को इंकार कर दिया बैरागी ने बार बार मृदुला को समझया था कि उसे इस्त्री रोग औऱ बच्चे के जन्म का उपचार नहीं आता मगर मृदुला ने उसकी एक ना सुनी औऱ जंगल ना छोड़ने की अपनी ज़िद पर अड़ी रही..

आखिरकार वही हुआ जिसका बैरागी को डर था बच्चा पैदा करने के दौरान मृदुला औऱ उसके बच्चे दोनों की मौत हो गई और बैरागी फिर से अकेला हो गया. उसके मन में एक बार फिर से दुख दर्द तकलीफ का बसेरा हो गया.. बैरागी मृदुला औऱ बच्चे का अंतिम संस्कार करके जंगल छोड़ दिया और पागलों की तरह भटकने लगा. बैरागी किसी फकीर की तरह दिन बताने लगा और भूख लगने पर भिखारी की तरह मांग कर खाने लगा.. 2 महीना इसी तरह बिताने के बाद जब उसने गांव में इसी तरह एक और महिला को मारते देखा तो उसने इस रोग का इलाज करने के लिए दवा बनाने का निश्चय किया. उसे शरीर की समझ थी उसके मुताबिक जदिबूती से लोगों का इलाज़ करने लगा औऱ घूम घूम के जदिबूती औऱ इलाज़ की खोज करने लगा..

बैरागी ने मृदुला के साथ रहकर बहुत सी चीज सीखी थी जो उसके इस कार्य में उसकी बहुत मदद कर रही थी बैरागी ना गांव-गांव घूम कर बहुत से लोगों का इलाज किया और बहुत सी आज के समय छोटीमोटी कही जाने वाली बीमारी को ठीक किया. बदले में कुछ लोगों ने उसे भरपेट खाना खिलाया तो कुछ लोगों ने वहीं रहने के लिए जमीन देनी चाहिए लेकिन बैरागी ने एक जगह रहने से इनकार कर दिया और अपना मकसद पूरा करने के लिए एक बैलगाड़ी ले ली और उस पर बैठकर गांव गांव घूमते हुए स्त्री रोग का इलाज ढूंढने निकल पड़ा

बैरागी को अब किसी बात की फ़िक्र नहीं थी वह अपने आप में मस्त अपनी पत्नी मृदुला को याद करते हुए प्रेम से भरे गीत गाते हुए और अपनी पत्नी के साथ बिताये प्रेम से परिपूर्ण उन पलों को याद करते हुए मुसाफिरों की तरह घूमने लगा और बीमारियों का इलाज ढूंढने लगा किसी एक पुराने वैद्य के कहने पर उसने एक खास किस्म की जड़ीबूटी तलाश करने का निर्णय किया जिसके लिए वह बहुत दूर सफर पर निकल पड़ा लेकिन रास्ते में ही वीरेंद्र सिंह के पहरेदारो ने उसे पकड़ कर क़ैद कर लिया..

सुबह के 4:00 बजे गौतम इस सपने से बाहर निकल आया और अपने सपने की हकीकत को झूठ मानते हुए यह बस उसका एक वहम समझ कर इसे भूल जाने का निर्णय कर वापस सो गया..

Nice update
 
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