• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Erotica छाया ( अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम) (completed)

Alok

Well-Known Member
11,360
28,019
258
Atayant Adhbudh Lovely Anand ji.........

Iss kahani ki jitni prashansa ki jaye woh bhi kam hai, bahut samay baad koi aise kahani padh rahe hai jis mein sambhog ka samay bhi pyaar jhalakta hain.........


Aise hi likhte rahiye........ :love3::love3::love3::love3::love3::love3::love3:
 
340
679
108
आगे क्या होगा इसकी उत्सुकता चरम पर है,
कौन है जो ब्लैकमेल करना चाह रहा है।

खैर अब अगले पोस्ट पर ही यह सब सामने आ पायेगा इसलिए अगले अपडेट के इंतेजार में।
 
  • Like
Reactions: kamdev99008

karan77

Member
201
215
58
छाया भाग 1
प्रस्तावना
कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही मिलते हैं उन रिश्तो में एक अलग आत्मीयता होती है और कुछ रिश्ते सामाजिक मजबूरियों की वजह से थोप दिए जाते हैं पर कामुकता से उत्पन्न हुआ प्रेम इन थोपे गए रिश्तो को नजरअंदाज कर देता है. "छाया" इन्हीं थोपे गए रिश्तो के बीच पनपते प्रेम का चित्रण है.
भारतवर्ष में 80 और 90 के दशकों में लड़कियों के कौमार्य की बहुत अहमियत थी. विवाह पूर्व और विवाहेत्तर सेक्स समाज में था तो अवश्य पर आम नहीं था. इस प्रेम कथा के पात्रों ने इन्हीं परिस्थितियों में अपने आपसी सामंजस्य से अपनी सारी उचित या अनुचित कामुक कल्पनाओं को खूबसूरती से जीया है.
कथा के पात्र काल्पनिक हैं उनका किसी जीवित या मृत किसी व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है. कथा में वर्णित दृश्यों से यदि किसी पाठक की भावनाएं आहत हुयीं हो तो कथाकार क्षमा प्रार्थी है.
परिचय
हर इंसान के जीवन में अनचाहे रिश्तों हों यह जरूरी नहीं. मेरे जीवन में इनकी प्रमुख भूमिका रही है. आज उम्र के इस पड़ाव पर आकर पीछे देखने पर यह महसूस होता है कि कैसे कुछ अनचाहे रिश्ते प्यार और काम वासना के बीच झूलते रह जाते हैं.
मुझे आज भी दुर्गा अष्टमी का वो दिन याद है, जब मैं पहली बार इस कथा की नायिका से मिला था. दुर्गा पूजा घूम कर थका हुआ मैं अपने घर के अहाते में प्रवेश करते समय घर के बाहर और अंदर की दुनिया के बीच फर्क के बारे में सोच रहा था. एक तरफ जहां दोस्तों के साथ जीवन का आनंद आता था वहीँ घर पर एकदम एकांत था. जेब से घर की चाभी निकाल कर दरवाजे की ओर बढ़ा. दरवाजा खुला देखकर ये यकीन ही नहीं हुआ की पापा आज घर जल्दी आ गए थे. दरवाजा अन्दर से बंद नहीं था और मैं सीधा हाल में दाखिल हो गया जहां पापा के अलावा एक महिला को देखकर आश्चर्यचकित हो गया. कुछ कहने से पहले पापा बोले...
“बेटा ये माया जी हैं और आज से ये यहीं रहेंगी मैंने इनसे विवाह कर लिया है” .
मैं अनमने मन से उनको ध्यान से देखे बिना , नमस्ते कर सीधा अपने कमरे में चला गया. शायद इस जल्दी की वजह मुझे आई हुई लघुशंका थी. जैसे ही मैंने अपने बाथरूम के दरवाजे को खोलने की कोशिश की तभी अंदर किसी के होने की आवाज आई. मैं आश्चर्यचकित हो कर पीछे हटा पर लघुशंका जोर से लगे होने के कारण दरवाजे को तेजी से पीटने लगा. तभी अंदर से आवाज आई “एक मिनट”. आवाज किसी बच्ची जैसी थी. मैंने जैसे ही मुड़कर आपने बिस्तर की ओर देखा वहां पड़ा सूटकेस देख कर कुछ अंदाज लगाने की कोशिश की तभी बाथरूम के दरवाजे के खुलने की आवाज हुई और उसमे से एक लड़की को चहरे पर तौलिया डाले निकलते हुए देखकर मैं कुछ भी बोल नहीं पाया.
शायद आप सभी को यह इस समय मेरी मनोस्थिति का आभास हो रहा होगा. मुझे इस शादी की जानकारी पहले से ही थी और इस रिश्ते को मैं पहले ही अस्वीकार कर चुका था. पर यह सब इतनी जल्दी घटेगा और ये इतनी जल्दी यहाँ आ जाएंगी ये मैंने नहीं सोचा था.
जैसे जैसे मैं लघुशंका समाप्ति की ओर बढ़ रहा था वैसे वैसे घर में आये इस परिवर्तन के बारे में सोच रहा था. अभी अभी जो लड़की गयी थी वो कौन है ? कही ये माया जी की बेटी तो नहीं.
मैं तो इतनी जल्दी में घर में आया था कि उन्हें देख भी नहीं पाया था इसलिए इस निष्कर्ष पर पहुचना मुश्किल था. बाथरूम से बाहर आकर मैं अपने बिस्तर पर पड़ गया. मेरे दिमाग में बहुत हलचल थी. कुछ ही देर में पापा ने आवाज लगायी तो मैं धडकते हृदय से वापस हाल में प्रवेश किया.
सोफे पर एक ३०-३२ साल की एक खूबसूरत महिला बैठी हुई थी और उसके बगल में एक वही मासूम लड़की बैठी थी. शायद यह वही लड़की थी जो अभी- अभी मेरे बाथरूम से निकल कर आयी थी.
आप सभी को मैं अपना और अपने परिवार का परिचय दे दूं. मेरा नाम मानस है और मेरी उम्र उस समय १८ बर्ष की थी. मैं उस समय १२वीं पास करने के बाद इंजीनीयरींग प्रवेश परीक्षा के लिए तैयारी कर रह१५था. मेरे पिता शासकीय कॉलेज में प्रोफेसर थे और उनकी उम्र लगभग ५० बर्ष थी. मेरी माँ का देहांत आज से १० वर्ष पूर्व हो गया था. हम लोग एक मध्यमवर्गीय परिवार से थे. मेरा गाँव शहर से ८ किलोमीटर दूर था. यह एक विकसित गाँव के जैसा था. माँ के जाने के बाद घरेलू कार्यों का सारा बोझ दादी पर आ गया था. दुर्भाग्यवश २ वर्ष पूर्व वो भी चल बसीं थी.
पापा, माँ के जाने के बाद अकेले तो थे पर दुबारा शादी की लिए कभी इच्छुक नहीं थे. उन्होंने अपना समय शराब के हवाले कर दिया था. हाँ दादी के जाने के बाद वो परेशान रहते थे. घर आने के बाद खाना बनाना और अन्य घरेलू कार्य करना ये सब बहुत कठिन हो रहा था. मैं अपनी पढ़ाई की वजह से उनका साथ कम ही दे पाता था. शायद इन्हीं परिस्थितियों की वजह से उन्होंने माया जी को पत्नी रूप में घर ले आये थे. मुझे पूरा विश्वास था की इसमें स्त्री सुख भोगने जैसी कोई बात नहीं थी. दरअसल वो पापा से उम्र में लगभग १५-२० वर्ष छोटी थी. उम्र का यह अंतर और पापा का सामाजिक कद एवं उनका स्वास्थ्य इस स्त्री सुख का भोग करने की इजाजत नहीं देता था. आस पास में सभी लोग यह जानते थे की मेरे पापा एक चरित्रवान व्यक्ति थे और उन्होंने माया जी को लाकर सिर्फ उनके सर पर एक छत दी थी और उन्हें एक सम्मान पूर्वक जीने का हक़ दिया था. इसके एवज में मेरे पिता को घरेलू कार्यौं से मुक्ति मिलनी थी.
शायद आप सब कहानी की नायिका के बारे में जानने को उत्सुक हो रहे है? धीरज रखिये. यदि आप इस कहानी को पढ़कर तुरंत निष्कर्ष पर पहुचने को लालायित हैं तो शायद आप को दूसरी कहानियों पढ़नी चाहिए. क्षमा कीजिएगा पर धीरज का फल हमेशा मीठा होता है.
इस कथा का नायक मैं, उस समय अपने भविष्य निर्माण के लिए पिछले कई वर्षों से अपनी पढ़ाई पूरी ईमानदारी से कर रहा था. लड़कियों में मेरी विशेष दिलचस्पी नही थी. ऐसा नहीं था कि मैंने उस समय तक सेक्स कभी अनुभव न किया हो पर मैं इसका आदि कभी नहीं था.
मेरे पड़ोस में रहने वाली मंजुला चाची की जेठानी चंडीगढ़ में रहतीं थीं. उनकी लड़की सीमा बहुत ही खूबसूरत थी. वह अक्सर छुट्टियों के समय अपने पैतृक निवास यानि गांव पर आया करती थी. इसी दौरान वह हर साल मेरे संपर्क में आती थी. हम सब अन्य पडोस के बच्चों रोहन, रिया, साहिल, सौरभ आदि के साथ खेलते कूदते थे और अपने बचपन का आनंद लेते थे.


पहला अनुभव
एक बार हम सब मेरी छत के सीढ़ी रूम में लूडो का गेम खेल रहे थे. खेल की शुरूआत में सीमा, मैं और दो अन्य बच्चे खेल रहे थे पर बाद में सिर्फ मैं और सीमा ही बचे. सीमा का बदन थोडा थुलथुल किस्म का था. उभरता यौवन एवं पेट में जैसे होड़ लगी हुई थी की कौन आगे निकलता है. वो गोरी और चेहरे पर नूर लिए थी.
आम तौर पर घर में सम्पन्नता और सुख को आप उस घर की लड़कियों के नूर से अंदाज सकते है.
खेलते खेलते बातें होने लगीं और अंत में लड़कों और लड़कियों में अंतर पर आ गयी। सीमा मेरे से ज्यादा समझदार थी और सेक्स के बारे में ज्यादा उत्सुक थी । उसने मुझसे पूछा की
“क्या तुम्हें अपने शरीर और मेरे शरीर के अंतर के बारे में पता है?” मैंने हाँ में सर हिलाया तो उसका साहस बढ़ गया और उसने पूछा
“अच्छा बताओ क्या क्या अंतर है?” उसके प्रश्न के उत्तर में मैं क्या जवाब दूं यह सोच नहीं पा रहा था फिर भी मैंने उसके स्तनों और जांघों की ओर इशारा किया. वह समझ गई और बोली..
“मानस मैंने आज तक किसी लड़के का वह भाग नहीं देखा है. क्या तुम मुझे एक बार दिखाओगे?”
मैं सकुचाया पर वह प्लीज प्लीज रटती रही. अंततः मैंने कहा
“ठीक है. पर बदले में मुझे क्या मिलेगा” तो उसने कहा कि
“मैं भी वही काम तुम्हारे लिए करूंगी.”
मैंने स्वयं आज तक कभी किसी लड़की का वह भाग नहीं देखा था यहां तक की किसी फोटो में भी नहीं. वह उतावली हो रही थी.
“दिखाओ ना... क्यों शर्मा रहे हो.”
उसके बार बार कहने पर मैंने धीरे से अपना पैजामा नीचे कर दिया और अपने लिंग को बाहर ले आया जो कि इन सब बातों के दौरान काफी कड़ा हो गया था. मेरा लिंग सामान्य युवा था पर एकदम साफ सुथरा था. लिंग का रंग गोरा था. सीमा अपनी उत्सुकता ना रोक पायी और बोली
“क्या मैं इसे छू सकती हूं?”
मेरे उत्तर का इंतज़ार किये बिना उसने अपना हाथ सीधा लिंग पर रख कर उसे महसूस करना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर में मेरा लिंग इतना कड़ा हो गया जैसे कि फट जाएगा. मेरे लिंग के ऊपरी भाग में मुझे हल्का दर्द का अनुभव हुआ. मुझे लगता है इसके पहले शायद दो या तीन बार मैंने अपने लिंग को इतना कड़ा महसूस किया था. उसके हाथों का स्पर्श पाकर आज जैसी अनुभूति शायद पहले कभी नहीं हुई थी. वह बार-बार मेरे लिंग की तारीफ करती और हल्के हल्के सहलाती जा रही थी. मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मैंने देखा कि सीमा का दूसरा हाथ उसकी जांघों के बीच है। मुझे अब विश्वास हो चुका था की सीमा ये काम पहले भी किसी के साथ कर चुकी है. मैंने उससे कहा...
“मुझे भी देखना है”
उसने कुछ देर सोचा और कहा...
“ठीक है रुको”
उसने धीरे से मेरे से लिंग के अग्रभाग पर अपनी हथेलियों का प्रेशर बढ़ा दिया. उसके इस कार्य से उत्तेजना की एक तीव्र लहर मेरे शरीर में दौड़ गई. मेरा शरीर बुरी तरह कांप रहा था. शायद उसे मेरी स्थिति का अंदाजा था. उसने अपना कार्य जारी रखा और धीरे-धीरे मेरे और पास आ गई. पास आने के बाद उसने अपना बाया हाथ अपनी जांघों के बीच से हटा लिया और मेरे कान में धीरे से कहा ...
“अपनी आँखें बंद कर लो.”

Smart-Select-20201218-110502-Chrome
उसने मेरे लिंग को सहलाना जारी रखा। जब वह लिंग की चमड़ी को पीछे की तरफ खींचती थी तो शिश्नाग्र में बहुत सनसनाहट होती और हल्का दर्द भी होता। चमड़ी को पीछे करके उसने जब सुपाड़े को छुआ तो मेरी जान ही निकल गयी. अग्रभाग इतना संवेदनशील था की उसे सीधा सहलाना मुझे बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मैंने सीमा का हाथ पकड़ लिया. वो यह जान चुकी थी की मेरे सुपाड़े को शायद पहली बार हस्तमैथुन के लिए छुआ गया था. वो अपने हथेली में मेरे कोमल पर अत्यंत सख्त हो चुके लिंग को पकड़कर आगे पीछे करने लगी. मैं आनंद की पराकाष्ठा में था. मैंने स्खलित होने के पहले सीमा को जोर से पकड़ लिया और लिंग के अन्दर धधक रहे ज्वालामुखी ने लावा उड़ेल दिया.

इससे पहले कि मैं यथार्थ में वापस आता, उसने हाथ में लगे वीर्य रस को मेरे बनियान में पोछा और “आती हूँ” कह कर भाग गयी.
सीमा इस कला में उस उम्र के हिसाब से शायद पारंगत थी. मुझे नहीं पता की उसे इस क्रिया में क्या मिला पर वो खुश थी.
सुनहरी यादों में एक खूबी होती है की उन्हें व्यक्त या याद करते समय समय तेजी से निकल जाता है.

Smart-Select-20201218-112648-Chrome
नए मेहमान
मेरे लिए माया जी और उनकी बेटी का कोई महत्व नहीं था. मैं उस समय पूरी तरह अपनी पढ़ाई में मशगूल था. अतत: मैं शांति से हाल में आकर बैठ गया. पापा ने एक बार फिर माया जी को मेरे बारे में बताया और बाद में उस प्यारी लड़की की तरफ इशारा करके बोले ये छाया है माया जी की बेटी. वो तुरंत उठकर मेरे पास आई और मेरे पैर छूए. मुझे कुछ अटपटा सा लगा, मैं “ठीक है” कह कर थोड़ा पीछे हटा.
बाद में मुझे पता चला की माया जी पापा के ससुराल के गांव की थी. पति के देहांत के बाद माया जी और उनकी बेटी का गाँव में कोई न था. पापा के ससुराल पक्ष वालों की सहमति से मंदिर में शादी कर वे उनके साथ चली आयीं थीं. शायद यही नियति को मंजूर था. मैं और पापा दोनों ही उनको माया जी कहकर ही संबोधित करते थे. यह इस बात का भी परिचायक था की वो हमारे घर में जरूर थीं पर हमारे मन में उनका कोई विशेष स्थान नहीं था.
जैसे माया जी घरेलू कार्य में निपुण थी और वैसे ही उनकी बेटी छाया. पापा भी खुश रहने लगे और घर एक में एक बार फिर रौनक हो गयी.
नारी की उपस्थिति घर के सजीव और निर्जीव दोनों में जान डाल देती है.
घर की कुर्सियां परदे एवं अन्य साजो सामान चमकने लगे. पापा और मैं भी खुश थे हमें घर का कोई काम नहीं करना पड़ता था. पापा को अब घर की कोई चिंता नहीं थी. वक्त काटने के लिए शराब अपनी जगह थी ही. मैं उस समय न तो माया जी से न ही छाया से कोई रिश्ता रखने को उत्सुक था. दरअसल मेरे पास पढाई के अलावा वक्त ही नहीं था खास कर इस नए रिश्ते के लिए.
माया जी समय से मेरे रूम में ही नाश्ता व खाना दे जाया करतीं थी. इसके अलावा उनसे बात करने का कोई तुक भी नहीं था.
जब स्वीकार्यता नहीं होती तो अक्सर आदमी बातचीत से दूर भागता है यही हाल मेरा था.
परीक्षा अच्छे से देने के बाद मैं बहुत खुश था और घर आने पर उस दिन मैंने माया जी से पहली बार बात की. उन्होंने अपने गाँव के बारे में बताया और अपने पहले पति को याद कर दुखी ही गयीं. मैंने बात बदल कर वापस उन्हें वर्तमान में ले आया. छाया की बात करते हुए उन्होंने कहा कि उसे भी अपने जैसा होशियार बना दो. मैंने बात को सुनकर भी अनसुना कर दिया वैसे भी ये सब पापा को ही करना था. छाया भी मुझसे दूर ही रहती थी.
पनपती कामुकता
अगले कुछ दिनों में मैंने सीमा को बहुत याद किया उसका स्पर्श और उसके कोमल हाथों में मेरे लिंग के एहसास मात्र से मेरा लिंग उत्तेजित हो जाता था. अब जब पढाई का तनाव न था तो सिर्फ सीमा के साथ एक बार किया गया हस्तमैथुन ही एक सुनहरी याद थी. मैंने उसे याद कर कर के कई बार हस्तमैथुन किया. मैंने उस समय तक कभी किसी लड़की के उपरी या निचले भाग को नही देखा था. सीमा ने मुझसे वादा तो किया पर वो बिना पूरा किये ही चली गयी थी.
जब आप स्त्री अंगों से परिचित न हो तो आपकी कल्पना भी अजीब होती है. मैं चाहकर भी योनि की बनावट और कोमलता की कल्पना नहीं कर पा रहा था.
पर युवावस्था में अपना हाथ ही किसी काल्पनिक योनि की तरह चरमावस्था देने में निपुण होता है. अगले एक महीने में मैंने कई बार अपने लिंग को सुखद एहसास दिलाया जैसे उसे आने वाली जिन्दगी के लिए तैयार कर रहा था. कई बार हस्तमैथुन करने से मेरे लिंग की चमड़ी आसानी से आगे पीछे होने लगी थी और अब हस्तमैथुन करते समय होने वाला हल्का दर्द आनंद में बदल चुका था. शिश्नाग्र की सवेंदना भी कुछ कम हो गयी थी.
कुछ ही दिनों में मेरा एडमिशन दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कालेज में हो गया. घर से जाते समय छाया भी मुझे छोड़ने आई थी. मैंने पहली बार उसे ध्यान से देखा था. वो बहुत मासूम थी और थोडा दुखी भी लग रही थी. सुनहरे सपने लिए मैं दिल्ली के लिए निकल चुका था.
होस्टल की दुनिया निराली थी. मेरे लिए यहाँ सब कुछ नया था. नए वातावरण में ढलने में मुझे १० – १५ दिन लगे. जिंदगी को जैसे पर लग गए थे. दोस्तों के साथ घूमना फिरना, शहर की लड़कियों को देखना एक अलग ही अनुभव था. कुछ दोस्त अपने सेक्स के अनुभव भी शेयर करते थे पर मैंने कभी भी सीमा के साथ हुए अपने छोटे अनुभव को साझा नहीं किया था.
होस्टल के टीवी रूम में एक रात काफी लोगों के होने की आवाज आ रही थी. मैं और मेरा रूम पार्टनर उत्सुकता वश उधर की तरफ गए तो देखा कि टीवी रूम खचाखच भरा हुआ था. टीवी पर एक ब्लू फ़िल्म चल रही थी जिसमे सम्भोग क्रिया जारी थी. मेरी तो आंखें फटी रह गयीं. मैंने आज तक यह दृश्य नहीं देखा था न ही कभी कल्पना कर पाया था.

Smart-Select-20201218-110150-Gallery
पर आज नारी शरीर के नग्न अवस्था में साक्षात दर्शन कर समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या देखूं क्या छोडू. ह्रदय की धड़कन तेज हो गयी थी. पर लिंग में कोई हलचल नहीं थी. दिमाग में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे. सामाजिक वर्जनाएं एक झटके में खंडित हो रही थी. बायोलॉजी की क्लास से स्तन और योनि के बारे में ज्ञान तो था पर इस तरह विदेशी नायिका के नग्न अंगो का दर्शन अप्रत्याशित था. चार पांच मिनट बाद मन की ग्लानि को मिटा कर नायिका के अंगों को मैंने भावविभोर होकर नहाना शुरू किया तो साक्षात कामदेव लिंग में प्रवेश कर गए. बिना हाँथ लगाये ही लिंग की धड़कन बढती गयी और वीर्य प्रवाह हो गया. इसके बाद मैं वहां से चला आया पर इन १० - १५ मिनट में मेरे जेहन में नग्नता की इतनी तश्वीरें कैद हो गई थी जो २ -४ महीने तक मेरे हस्तमैथुन को जीवंत बनाए रखती.

फ़िल्म की वयस्क नायिका को नग्न देखने के उपरांत मेरी कल्पना सातवे आसमान पर पहुच गई. नायक के साथ सम्भोग करते हुए नायिका को देखकर अविस्मरणीय अनुभूति हुई थी. अब मेरा एकांत मेरे लिए सुखद होता था तथा मैं अपनी सेक्स की कल्पनाओ को नयी नयी ऊंचाइयां देने लगा. दोस्तों से प्राप्त नग्न किताबें एवं कामुक साहित्य ने छ; सात महीनों में मुझे मेरी नजर में आज का वात्स्यायन ( कामसूत्र के रचयिता) बना दिया. मैंने नायिका के शरीर और उससे की जाने वाली छेड़छाड़ के बारे में इतना सोचने लगा की प्रतिदिन एक या दो बार हस्तमैथुन अवस्य करता था. इस दौरान मेरी सेहत भी गिरने लगी थी.
धीरे धीरे मेरी कल्पनाओं में आसपास के लोगो ने अपनी जगह बनाई.
ब्लू फ़िल्मो का एक ख़राब असर यह भी है कि सुन्दर और सुडौल नायिका की उस मदमस्त जवानी के सामने आसपास की लड़कियां या युवतियां फीकी दिखाई पड़ती है. आप चाह कर भी उन्हें अपने विचारों में नग्न नहीं कर सकते आपका मन खट्टा हो जाएगा.
मैं तो और भी भावुक था. सेक्स अब मेरे लिए जीवन में एक अहम् भाग हो गया था. मेरी कल्पना आसमान छू रही थी. एक साल बीतने को आ रहा था. इस साल भर में मैंने सिर्फ अपनी एक प्यारी सहपाठी राधिका और एक टीचर को अपने ख्वाबों में नग्न किया था और उनके साथ शरमाते हुए जमकर संभोग किया था. वो दोनों मुझसे बात चीत करती थी पर शायद उन्हें इस बात का इल्म भी न हो की एक सीधा साधा लड़का न जाने अपनी कल्पना में कितनी बार उनका योनि मर्दन कर चुका है.
सीमा और गुरुदक्षिणा
पहली छुट्टियाँ
परीक्षाओ के बाद मैं वापस अपने घर आया. एक सीधा साधा लड़का अब बदल चूका था. सफर में मिलने वाली सुन्दर युवतियों को अपनी कल्पना में नग्न कर उनके यौवन एवं योनि प्रदेश की कोमलता का मन में अनुभव करते हुए सफर का समय तेजी से बीत गया. अब नारी अंगों को छूने का मन तो बहुत करता था पर हिम्मत नहीं होती थी. जितना मैं अपने खयालों में नंगा था शायद वो मासूम सी युवतियां एवं लड़कियां नहीं होंगी यह मुझे पूरा विश्वाश था.
मैं अब १९ वर्ष का हो चुका था. चेहरे पर मासूमियत कायम थी पर कद काठी ठीक हो चली थी. लम्बाई ५ फुट ११ इंच, रंग भी साफ था. ज्यादा हस्तमैथुन से लिंग अब समय से पहले वयस्क हो गया तथा उस पर नसें अब साफ दिखाई पड़ती थी. इन साल भर में सबसे ज्यादा किसी ने मेहनत की थी तो वह यही बहादुर था. जितना वीर्यदान इसने साल भर में किया था उसमें तो मेरी प्यारी सहपाठी राधिका आराम के एक बार स्नान कर लेती.
घर पहुँचने पर सभी खुश थे . माया जी ने मेरे पसंदीदा पकवान बनाए थे. मैंने उन्हें शुक्रिया कहा तथा दिल्ली से लायी मिठाई उन्हें दी जो उन्होने छाया को दे दी. छाया भी खुश थी. छाया से अभी तक मेरी कोई बातचीत नहीं थी. वो फिर मेरे पैर छूने आई और मैं “ठीक है, ठीक है” कहकर पीछे हटा. पापा से मिलकर मैंने कॉलेज के बारे में कई बातें की. मैं उनका अभिमान था वो मुझे बहुत मानते थे.
‘’मानस भैया चाय ले आऊं’’ रसोई से आवाज आई तो मैं आश्चर्यचकित था की किसने मुझे आवाज दी वो भी मानस भैया कहकर? “भैया” शब्द अपने से छोटे लड़कों के नाम के साथ लगाना सम्मान देने के लिए एक आम बात थी. पर माया जी से ये शब्द मुझे अच्छे नहीं लगे. मुझे अचानक उनके चार की कामवाली जैसे होने का अहसास हुआ. वो चाय लेकर आयीं तो मैंने उनसे कहा “आप मुझे मानस ही बुला सकती है.”
दो तीन दिनों में मैं नए परिवेश में अपने आप को व्यवस्थित कर लिया. पापा ने छत पर एक नया कमरा भी बनवा दिया था जिसमे मेरे पसंद की सारी चीजें थी. खिड़की घर के आगन में खुलती थी. वहां से नीचे किसी से भी आसानी से बात हो सकती थी. मेरा कमरा वास्तव में बहुत सुन्दर हो गया था. मेरे पुराने कमरे में माया और छाया साथ में रहतीं थी. छाया ने उसे अपने अनुसार व्यवस्थित कर लिया था. उसका कमरा पुराना होने के बावजूद सुन्दर लग रहा था.
वैसे भी काबिल लड़कियों का कमरा हमेशा साफसुथरा और सजा हुआ होता है.
मुझे राजकुमार जैसा महसूस हो रहा था. छत का खुला खुला वातावरण मुझे बहुत पसंद था. पापा अब भी अपने कमरे में एकांत में रहते थे तथा अपनी किताबों और शराब में मस्त रहते थे. छाया का एडमिशन भी पापा ने अपने ही कॉलेज में करा दिया था. वो समय निकल का उसे पढ़ा भी दिया करते थे. कुल मिलाकर अब घर घर जैसा लगने लगा था.
रात्रि में खाना खाकर सोने गया तो इस घर में बिताए सारे पल एक एक कर याद आते गए. माँ को याद कर मन रुआंसा भी हुआ पर धीरे धीरे वर्तमान में वापस आ गया. आज मैं नए कमरे में बहुत खुश था. यहाँ गर्मियों में ही मौषम खुशनुमां होता था और जाड़े में कडाके की ठण्ड पड़ती थी.
मानसिक सुख और एकांत दिमाग में सेक्स को जीवंत कर देते है.
धीरे धीरे मेरा हाथ अपने लिंग का हाल चाल लेने लगा. उसका साथ देने के लिए चंचल मन एक वयस्क नायिका की तलाश में भटकने लगा जिसे मैं अपनी कल्पना में निर्वस्त्र कर अपनी काम पिपासा को शांत कर सकूं.
घटना या दुर्घटना
मुझे सीमा की याद आई. काश वो भी यहाँ छुट्टियाँ मनाने आई होती. मैंने उसे आज अपनी नायिका बनाने की कोशिश की पर वो मेरी यादों में बहुत छोटी थी. मैंने उसे भूल कर आज रात की नायिका के लिए कई और चेहरों को दिमाग में लाया पर अंततः वीर्यस्खलन का श्रेय मेरी सहपाठी राधिका को ही मिला.
अगले दिन मैं बहाने से पड़ोस में मंजुला चाची से मिलने गया. उन्होंने कहा आओ मानस बेटा हम लोग अभी तुम्हारी ही बात कर रहे थे. सीमा की मम्मी का फ़ोन आया था वो लोग भी परसों आ रहे हैं. सीमा आगे की पढाई के बारे में तुम्हारा मार्गदर्शन चाह रही थी. तुमने तो हम सब का नाम रोशन कर दिया है. थोडा ज्ञान सीमा को भी दे देना.
यही होता है तकदीर जब मेहरबान होती है तो खुशियाँ आपको खोजती हुई आ जाती हैं.
सीमा मुझसे मिलने आ रही थी वो भी अपने परिवार वालों की सहमति से. यहाँ मिलने का उद्देश्य अलग अलग हो सकता है मेरा उद्देश्य आप समझते ही होंगे. परिवार वालों की मंशा स्पष्ट थी पर सीमा के उद्देश्य पर अभी प्रश्नचिन्ह था.
दो दिनों के बाद सीमा आ गई. शाम को अपनी मां के साथ हमारे घर आई इस बार सीमा को देखकर एक नया अनुभव हो रहा था. अब मेरी आंखें लड़कियों को देखने का नजरिया बदल चुकीं थीं. यौवन का उतार चढाव वरीयता प्राप्त कर चुका था. सीमा जो पहले एक थुलथुली लड़की थी अब वह काफी सुंदर हो गई थी. उसमें काफी शारीरिक बदलाव आ चुका था. उसका पेट और वक्षस्थल अब अलग दिखाई दे रहे थे. वक्षस्थल उभरा हुआ और पेट सपाट था. उसका कद लगभग 5 फीट 2 इंच था. अभी भी वह सामान्य लड़कियों से थोड़ी मोटी थी, पर अब शरीर उसका व्यवस्थित लग रहा था.
मैं उसे देख कर मुस्कुराया और वो भी मुझे देखकर वैसे ही मुस्कुराई. उसकी मां ने कहा…
“बेटा मानस, सीमा भी तुम्हारी तरह इंजीनियर बनाना चाहती है जब तक वो यहाँ है तुम उसकी मदद कर देना वो तुम्हें बहुत मानती है.”
हम उसकी पढाई के बारे में बात करने लगे. कुछ देर बाद सीमा की मम्मी माया जी के साथ किचन में चली गई. सीमा बात करते करते काफी खुल चुकी थी. हम सब हंसी मजाक की बात भी कर रहे थे. मैंने बात ही बात में उसके साथ छत पर बिताए उन पलों का भी जिक्र कर दिया. वह बहुत शर्मा गई और अपनी नजरें नीची कर ली. मैंने उसके अधूरे वादे का भी जिक्र किया जिसे सुनकर वह उठ गई और सीधा किचन में चली गई.
मैं मन ही मन सोच रहा था कि यह मैंने क्या कर दिया. इतना उतावलापन शायद ठीक नहीं था.
पर जब सेक्स दिमाग में भरा हो तो उतावलापन स्वाभाविक रूप से आ जाता है.
वैसे भी मैं अभी इस क्षेत्र का नया खिलाड़ी था. तीर कमान से निकल चुका था अब उसकी प्रतिक्रिया ही आगे का मार्ग प्रशस्त करती. वह अपनी मम्मी और माया जी के साथ चाय और स्नैक्स लेकर आई. हम सब ने चाय पी इस दौरान दो तीन बार मेरी नजरें सीमा से मिली पर वह नजर हटा लेती थी. आखिर में जाते समय सीमा की मम्मी ने कहा बेटा दिन में जब भी खाली रहो तो सीमा को बुला लिया करो तुमसे मिलकर कुछ सीख लेगी. मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुराया तो इस बार वह भी मुस्कुरा दी.
मेरे दिल से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया और आशा की एक नई किरण जाग उठी. रात बड़ी बेचैनी से कटी . रात में मैंने पिछले साल सीमा के साथ बिताए गए उन अंतरंग पलों को याद किया तो मेरा लिंग अपनी मालकिन सीमा को सलामी देने को उठ खड़ा हुआ. उसकी नसें तन गई उसके कष्ट को कम करने के लिए हाथ स्वयं ही उसे सहलाने लगे . परंतु जितना ही हाथ उसे सहलाते वह और तन जाता. मैंने अपने दिमाग में सीमा को निर्वस्त्र करना शुरू कर दिया था. सीमा ब्रा का प्रयोग करती थी या यह प्रश्नचिन्ह था, परंतु मेरे दिमाग में एक नई तस्वीर बन रही थी. मैं उसके छोटे छोटे स्तनों की खूबसूरती की पूरी कल्पना तो नहीं कर पा रहा था तुरंत उसका एहसास बड़ा सुखद था. इसका कारण शायद इस बात की आशा थी कि शायद उन के साक्षात दर्शन हो सके. वक्षस्थल से नाभि प्रदेश होते हुए कमर तक पहुंचने के पूर्व ही लिंग लावा उगलने के लिए के लिए तैयार हो गया था. मैंने उसे शांत करने के लिए अपना ध्यान सीमा की कमर से हटाकर उसके चेहरे की तरफ ले गया. मुझे लगा उसकी मासूमियत मेरे लिंग को थोड़ा नरम कर देगी पर सीमा की हंसी और उसके बाद करने के अंदाज ने मेरे सब्र का बांध तोड़ दिया. मेरा लिंग के अंदर का लावा एकदम मुहाने पर आ गया. मेरे हाथों ने लिंग को कसकर दबाया ताकि वह शांत हो सके पर हुआ उसका उल्टा ही. निकलने वाले वीर्य की गति दोगुनी हो गई और उसकी धार लगभग चार फुट उपर जाने के बाद वापस मेरे ही चेहरे पर आ गिरी.
चेहरे पर वीर्य गिरने कि यह घटना मुझे ताउम्र याद रहेगी. वीर्य स्खलन के दौरान ही दरवाजे पर नॉक हुआ. सामान्यतः इतनी रात को कोई मेरे कमरे में कोई नहीं आता था. मैं फटाफट अपने बिस्तर से उठा और अपने लिंग (जो अभी भी उछल रहा था) को व्यवस्थित करने के बाद जल्दी जल्दी अपने चेहरे को पोछा एवं दरवाजे को खोला . माया जी कटोरी में दो रसगुल्ले लेकर खड़ी थी. मैंने पूछा ….
“इतनी रात को?”
उन्होंने कहा आपके पापा आपके लिए लाए थे . उन्होंने ही जिद की कि अभी ही मानस को दे दो वह सोया नहीं होगा. माया जी ने मेरी झल्लाहट को पहचान लिया था. रसगुल्ले की कटोरी देने के बाद अचानक उन्हें मेरे माथे पर मेरे वीर्य की एक मोटी लकीर दिखाई दी. उन्होंने कहा…
“माथे पर यह क्या लगा है?” मेरे कहने से पहले ही उन्होंने हाथ बढ़ाकर उसे पोंछ लिया. हे भगवान यह क्या हो गया ? उन्हें एहसास भी नहीं था ली उन्होंने क्या छू लिया था. माया जी ने अपना हाथ अपनी साड़ी के पल्लू में पोछ लिया. वापस जाते समय मैंने देखा की वो अपनी उंगलियों को नाक के पास ले गयीं जैसे पहचानने की कोशिश कर रही हो कि वो क्या चीज थी. मुझे यह बात दो तीन वर्षों बाद मालुम चली कि माया जी ने उसे सूंघने के बाद पहचान लिया था कि वो मेरा वीर्य ही था.
हस्तमैथुन के दौरान कुछ घटनाएं या दुर्घटनाएं इस तरह घट जाती है की हमेशा याद रहतीं है. यह उन्हीं में से एक थी.
छुपन- छुपाई
हमारे यहाँ ज्यादा जगह होने के कारण मोहल्ले के छोटे बच्चे खेलने के लिए आया करते थे. उनमे सीमा का भाई सौरभ , साहिल, पड़ोस में रहने वाला रोहन, रिया मुख्य थे और बाद में छाया भी जुड़ गई थी. बचपन में मैं और सीमा भी इसी टोली का हिस्सा थे. हालाँकि, अब हम लोग थोडा बड़े हो चुके थे पर बच्चे अभी भी हम लोगों को अपने साथ खेलने के लिए आग्रह करते रहते थे.
गांवों से संबंध रखने वाले सभी लोग यह जानते होंगे कि दोपहर में खाना खाने के पश्चात सभी बड़े लोग आराम करते हैं और यही समय हम बच्चों के लिए खेलने के लिए उपयुक्त होता है. हम सब इसी समय इकट्ठा होकर कई प्रकार के खेल खेलते. कभी लूडो, कभी चाइनीस चेकर तो कभी कभी छुपन छुपाई खेलने का भी आनंद लेते. सीमा के भाई सौरभ और साहिल बहुत ही मासूम थे. उन्हें छुपन छुपाई में ज्यादा मजा आता था. बच्चों में रोहन सबसे छोटा था. बच्चे अपनी दुनिया मे थे बड़े अपनी दुनिया मे
अगले दिन मैं नाश्ता करके अपने बेड पर लेटा हुआ था और सीमा के बारे में ही सोच रहा था तभी नीचे से नमस्ते आंटी की मधुर आवाज आई.
“ मानस कहां है ?”
बेटा वह ऊपर अपने कमरे में ही होगा.
“ठीक है आंटी, मैं वहीं चली जाती हूँ.” मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि सीमा इतनी जल्दी चली जाएगी. मैंने तुरंत अपने हाथ में पड़ी पुस्तक को तकिए के नीचे रखा और उसका इंतजार करने लगा.
सीमा ने दरवाजे पर दस्तक दी. मैंने कहा...
“आ जाओ”
उसने कमरे में घुसते ही कहा
“कमरा तो बहुत ही खूबसूरत है”
मैंने भी उसे छेड़ा
“तुमसे ज्यादा नहीं” वह हंसने लगी.
वह अपने हाथ में एक डायरी और एक किताब लेकर आई थी . मैंने उसे अपनी कुर्सी खींच कर बैठने के लिए दी. और मैं भी उसके पास एक स्टूल खींच कर बैठ गया. वह बोली
“आप कुर्सी पर बैठ जाइए”
“नहीं नहीं तुम आराम से बैठो. मैं ठीक हूं.” मैंने लड़कियों को सम्मान देना सीख लिया था.
“ मुझे बताइए ना इंजीनीयरिंग की तैयारी में मुझे किन चैप्टर्स पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.”
मैं समझ गया कि वह अभी पढ़ाई की बातों को लेकर संजीदा है. मैंने उसे कई सारी टिप्स दीं तथा जितना मेरा ज्ञान था उसके हिसाब से उसे भरपूर मदद की. उसने मेरी टिप्स को अपनी डायरी में लिखा. धीरे-धीरे वह अपने बारे में बताने लगी. वह अब बातूनी हो चुकी थी. उसने मुझे अपने स्कूल, अपनी सहेलियां और जाने क्या क्या बताया. बातचीत के दौरान अधिकतर उसका चेहरा खिड़की की तरफ रहता कभी-कभी वह मेरी तरफ देखती पर तुरंत ही अपना चेहरा वापस खिड़की की तरफ घुमा लेती. शायद वो नजरें मिलाकर बात करने में सहज नहीं हो पा रही थी. जब वह खिड़की की तरफ देख रही होती तब मेरी निगाहें उसके शरीर का नाप ले रहीं होती.
सीमा के बाल कंधे तक आ रहे थे उसने एक पिंक टॉप तथा काले रंग की पजामी पहनी थी. उसके वक्ष स्थल पर निगाह पड़ते ही मैंने अपनी निगाहों से यह जानने की कोशिश की कि क्या वह ब्रा का उपयोग करती है?
साथ बैठकर आपस में बात कर रहे दो इंसानो की मानसिक अवस्था अलग अलग हो सकती है.
जहां सीमा अभी पढ़ाई पर केंद्रित थी पर मैं कामुक हो रहा था. सीमा की जांघें थोड़ी मोटी लग रही थी. शायद कुर्सी पर बैठने की वजह से जांघों की चौड़ाई बढ़ गई थी. अचानक सीमा ने मेरी तरफ नजर घुमाई और मेरी निगाहों को नीचे देखते हुए पकड़ लिया. उसने सीधा प्रश्न किया
“आप वहां क्या देख रहे हैं?”
मेरे मुंह से अचानक निकला
“जिसे तुमने दिखाने का वादा किया था.”
यह उत्तर अप्रत्याशित था. मैंने भी यह सोच समझकर नहीं बोला था. वह बुरी तरह झेंप गई. न वह कुछ बोल पा रही थी न मैं.
हम हम दोनों लगभग एक मिनट तक मौन रहे. अचानक सीढ़ियों पर बच्चों के आने की आवाज आई. साहिल दरवाजे के पास पहुंचते ही बोला..
“अरे सीमा दीदी भी यहीं पर है. चलिए सब लोग नीचे , हम लोग छुपन छुपाई खेलेंगे.”
उस बच्चे का आर्डर सुनकर सीमा खुश हो गई और उठ कर नीचे जाने लगी और मौन तोड़ते हुए बोली आप भी चलिए.
हम दोनों में काफी कुछ बदल चुका था. सीमा का मन और तन जवान हो चुका था. वो समझदार हो चुकी थी. मैं स्वयं सेक्स और उससे संबंधित क्रियाकलापों में काफी ज्ञान प्राप्त कर चुका था. सीमा द्वारा किया गया हस्तमैथुन एक सुनहरी याद थी पर आज की परिस्थितियों में दोबारा यह अवसर मिलेगा या नहीं यह प्रश्न चिन्ह था. हम सब नीचे आ गए थे.
आप में से शायद कुछ लोगों ने गांव में अपना समय बिताया हो. वे लोग गांव के घरों और उनके आसपास की जगह जैसे दालान गौशाला आदि से परिचित होंगे. मेरे घर के सामने एक बड़ी सी दालान थी इसमें कुल तीन कमरे थे दो कमरे आपस में जुड़े हुए थे तथा एक कमरा अलग था. जुड़े हुए कमरों में से एक कमरे में भूसा और पुवाल रखा रहता था तथा उस कमरे में काफी अंधेरा रहता था. उसके साथ वाले कमरे में पुरानी अलमारियां पड़ी हुई थी. दालान के सामने आम और नीम के पेड़ थे. सीमा का घर हमारी दालान के ठीक पीछे था.
छुपन छुपाई में छुपने के लिए दालान के दोनों कमरे , पेड़ की ओट, छत, आँगन एवं सीमा के घर का बाहरी कमरा था. इसमें भी बड़ी-बड़ी अलमारियां पड़ी थी जिनके पीछे आदमी आसानी से छुप सकता था एक पुरानी खाट भी थी जिसे खड़ा किया हुआ था उसके पीछे भी छुपा जा सकता था. सीमा दालान की परिस्थितियों से परिचित थी. यह खेल हम बचपन में भी खेला करते थे. यह खेल मैं और सीमा बचपन से खेलते आ रहे थे. भूसा वाले अंधेरे कमरे के बगल वाला कमरा छुपने के लिए मेरी और सीमा की पसंदीदा जगह थी.

राजकुमार और घायल राजकुमारी
खेल शुरू हुआ, सबसे पहले मैंने खुद ही चोर बनना स्वीकार किया. सब बच्चे अलग-अलग जगहों पर छुप गए. मैंने खेल का आनन्द लेते हुए सबसे पहले छोटे रोहन को फिर बाकी सबको ढूंढ लिया.
सबसे छोटा रोहन इस बार चोर बना था और हम सब की छिपने की बारी थी. सारे बच्चे अपनी अपनी जगहों पर छिपने चले गए. मैंने सीमा को दालान के दूसरे वाले कमरे की तरफ जाते हुए देख लिया था. यह ऐसी जगह थी कि कोई भी छोटा बच्चा उधर जाने की हिम्मत नहीं करता था. मैं भी सीमा के पीछे हो लिया. सीमा ने मुझे आते हुए देख लिया था पर फिर भी वो चुपचाप रही. मुझे बड़ी अलमारी के पीछे थोड़ी हलचल सी लगी. मैं पीछे से गया और सीमा को पकड़ लिया. मैंने अपना एक हाथ उसके मुंह पर रखा ताकि वह आवाज न निकाल दे. सीमा ने कहा..
“आप यहां कैसे आ गए?” मैंने कहा..
“कुछ मत बोलो रोहन आता ही होगा”
इस समय मेरा एक हाथ सीमा के मुंह पर था तथा दूसरा हाथ उसके पेट पर था. कुछ ही सेकंड में हमें अपनी स्थिति का एहसास हुआ. मैंने महसूस किया कि सीमा भी असहज थी. सीमा के नितंब मेरे लिंग से सटे हुए थे. सीमा मुझसे सटी हुयी थी. इसका एहसास होते हुए ही मेरे लिंग में तनाव उत्पन्न हो गया. इस तनाव की अनुभूति सीमा को बखूबी हो रही थी पर वह कुछ नहीं बोल रही थी. धीमे-धीमे यह तनाव असहनीय हो गया. मैंने अपनी कमर को थोड़ा पीछे कर अपने लिंग को आरामदायक स्थिति में लाने की कोशिश की. पर लिंग और तन चुका था. सीमा से चिपकने पर लिंग सीधा सीमा की कमर में छेद करने को आतुर दिखा. सीमा ने हँसते हुए कहा…
“राजा जी जाग गए हैं क्या?”
“राजा जी” मैं सोच नहीं पा रहा था कि सीमा ने किसे राजा जी कहा. मैंने धीरे से कान में पूछा…
“कौन राजा जी” इस पर वह अपना हाथ पीछे ले गई और मेरे लिंग को अपनी उंगलियों से दबा दिया. मैं भी हँस पड़ा. मैंने उसके कान में धीरे से कह..

Smart-Select-20201218-111212-Chrome
“राजा जी अपनी रानी खोज रहे हैं.”
बात करते समय मैंने अपनी पजामी को थोड़ा नीचे कर दिया अब लिंग खुल खुल बाहर आ चुका था. मैंने अपनी कमर को और नीचे किया ताकि वो सीमा के की जांघों के बीच आ जाए. बाहर बच्चों की आवाज आ रही थी अब सीमा से यह स्थिति बर्दाश्त नहीं हो रही थी. उसने भी अपनी कमर को हिलाया तथा मेरे लिंग को अपनी जांघों के बीच जगह दे दी. उसकी जांघों और मेरे लिंग के बीच में उसकी पजामी थी. मेरा लिंग सीमा की जांघों के बीच से होते हुए बाहर की तरफ आ गया था. सीमा की जांघों का तनाव मेरे लिंग पर पड़ रहा था. वो मेरे इरादे जान चुकी थी तभी रोहन के दरवाजे पर आने की आवाज हुई.
सीमा में मुझे चिकोटी काटकर अपनी पकड़ से छुड़ाया और धीरे से रोहन की नजर में आ गयी और बाहर आकर खुद बोली
“चलो अब मानस भैया को ढूंढते हैं”.
सारे बच्चे उस कमरे से बाहर चले आए. मैंने भी अपनी पजामी ठीक की और मौका देख कर कमरे से बाहर आ गया और एक पेड़ के पीछे छुप गया.
अगली बार में मैं सीमा को देख नहीं पाया कि वह किधर छुपी है. वो अलमारी के पीछे नहीं थी. अतः मुझे भी किसी दूसरी जगह पर छुपना पड़ा. दूसरी बार का खेल समाप्त हो गया. तीसरे दौर में मैंने सीमा को फिर उसी कमरे की तरफ जाते देखा और मैं भी उसके पीछे हो लिया. मैंने बिना समय गवाएं फिर से सीमा को पीछे से पकड़ लिया. सीमा के सहयोग से पहले वाली स्थिति पुनः बन चुकी थी. लिंग पूर्ण तनाव में था सिर्फ उसे सीमा के सहलाने का इंतजार था. सीमा ने मेरा इंतजार खत्म करते हुए अपनी हथेली मेरे लिंग पर पर रख दी और प्यार से सहलाने लगी. मैं सातवें आसमान पर पहुंच चुका था. मैंने अपना हाथ उसके पेट पर से हटा कर उसके स्तनों पर रखने की कोशिश की तो उसने मेरा हाथ रोक लिया. शायद वह निर्णय नहीं कर पा रही थी पर उसने मेरे लिंग को सहलाना जारी रखा. मैंने सीमा को छेड़ते हुए कहा
“ “राजा जी” अपनी “रानी” को खोज रहे है.” मेरे इस संबोधन से वो हँस पड़ी.
सीमा ने मुस्कुराते हुए कहा…
“यदि रानी की तलाश है तो आपको शादीशुदा महिलाओं के पास जाना पड़ेगा. यहां पर तो सिर्फ राजकुमारी है”
मैं उसकी बात समझ गया. मैंने उससे कहा..
“तुम चाहोगी तो राजकुमारी को रानी बना देते हैं”
“अभी राजकुमारी को रानी बनने में समय है”
“इस हिसाब से तो मेरा राजा भी अभी राजकुमार ही है” वह खिलखिला कर हंस पड़ी और अपनी हथेली से शिश्नाग्र पर दबाव बढ़ा दिया. मैंने फिर आग्रह किया किया कि राजकुमार राजकुमारी से मिल तो सकता है राजा रानी की तरह ना सही दोस्त की तरह ही सही. वह मेरा आशय समझ रही थी. उसने कहा..
“ठीक है.. पर अभी राजकुमारी घायल है. तीन-चार दिन बाद मुलाकात कराएंगे.”
मैं स्खलित होने ही वाला था तभी रोहन के आने की आहट हुई. सीमा मुझे छोड़कर पहले की भांति अलग हो गयी. रोहन ने फिर से उसे पहचान लिया. वह रोहन को लेकर कमरे से बाहर आ गयी, ताकि हम दोनों एक साथ थे यह बच्चे न जान सकें और मुझे समय मिल सके अपने आप को व्यवस्थित करने का. सीमा की यह समझदारी मुझे बहुत प्रभावित कर गई थी.
हम सब बाहर आ गए थे. खेल खत्म हो गया था, सब लोग जाने लगे मैंने सीमा को रोकना चाहा पर वह हंसते-हंसते जाने लगी. मैं उसके पीछे भागा और बिलकुल पास पहुचने पर वो रुकी. मैंने उससे पूछ लिया
“राजकुमारी घायल कैसे हो गयी?”
उसने मुझे पलट कर देखा और हंस कर बोली..
“आप बुद्धू हैं…..आराम से सोचियेगा” कह कर वो अपने घर भाग गई.

गुरुदक्षिणा की तैयारी
मैं मन मसोसकर रह गया पर आज सीमा के साथ गुजारे पलों ने मुझे गर्मियों की छुट्टियों के यादगार बनने की उम्मीदें बढ़ा दी.
मैं वापस अपने कमरे में आकर सीमा द्वारा दिए गए इन नए संबोधनों के बारे में सोचने लगा. मैं मन ही मन खुश भी हो रहा था कि सीमा मुझसे खुलकर बात कर रही थी. राजकुमारी के घायल होने की बात मैं अभी भी नहीं समझ पा रहा था. अचानक मुझे महिलाओं के रजस्वला होने की बात याद आई. मुझे अब पूरी बात समझ में आ गई. सीमा का यह अंदाज निराला था. मेरे लिए आज का दिन बहुत अच्छा था. धीरे-धीरे दिन गुजर गया अगले 2 दिन 3 दिनों तक सीमा रोज मेरे पास आती. मैं उसकी पढ़ाई में दिल से मदद करता और कभी कभी हम इधर उधर की बातें करते और बच्चों के साथ खेलते. कभी-कभी बातों ही बातों में राजकुमार और राजकुमारी का जिक्र हो जाता. मैंने भी अपने आपको नियंत्रित कर लिया था कि जब तक राजकुमारी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाती तब तक इंतजार करूंगा. मेरे राजकुमार का क्या था उसकी तो रोज रात में मालिश हो जाया करती थी और वह वीर्य दान कर सो जाया करता था. मैंने सीमा को अपने नोट्स एवं अपनी किताबें भी दी ताकि वह पढ़कर इसका लाभ ले सके. वह मेरे से बहुत प्रभावित थी. उसने मुझसे कहा…
“आपने मेरी पढ़ाई में इतनी मदद की है. आप मेरे गुरु है.”
मैंने मुस्कुराकर पूछा
“गुरुदक्षिणा कब मिलेगी?” उसने सर झुका लिया और अपनी उंगलियों पर कुछ गिन कर बोली..
“परसों” इतना कह कर वो मुस्कुराते हुए सीढियों की तरफ बढ़ गई. परसों का दिन मेरे लिए क़यामत का दिन होने वाला था.
आपको यह जानकर हर्ष होगा की इस उपन्यास को लिखते समय सीमा मेरे साथ थी. उसने उस समय अपने मन में चल रही भावनाओं को मुझे बताया . आगे की कहानी को मैं उसकी उसकी यादों के अनुसार प्रस्तुत करता हूँ.

[मैं सीमा]
सोमवार का दिन था. मेरी राजकुमारी अब पूरी तरह ठीक हो चुकी थी. पिछली दोपहर से ही मैं सामान्य हो चुकी थी. आज सुबह नहाने के पश्चात मैंने बहुत ध्यान से अपनी राजकुमारी का निरीक्षण किया. कहीं पर भी लालिमा नहीं थी. मैं खुश थी और आज होने वाले नए अनुभव के लिए अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी.
अभी दोपहर होने में दो-तीन घंटे का वक्त था. मेरी राजकुमारी के चारों तरफ हल्के हल्के बाल आ गए थे जैसे उसकी दाढ़ी मूछ आ गई हो. बाल बहुत कोमल थे. मैंने आज तक इन बालों को नहीं हटाया था. पर आज राजकुमारी, राजकुमार से मुलाकात करने वाली थी. एक बार के लिए मैंने सोचा कि इन्हें हटा दूँ पर संसाधनों की कमी की वजह से यह विचार त्याग दिया। मैंने मानस भैया के राजकुमार के लिए एक अलग ही गुरुदाक्षिणा सोच रखी थी.

राजकुमारों को काबू में रखने की कला मुझे बखूबी आती थी. दरअसल चंडीगढ़ में मेरा एक दोस्त सोमिल था. (आज के समय में आप उसे ब्याय फ्रेंड कह सकते हैं) वो मेरे स्कूल में ही पढ़ता था एवं मेरे पड़ोस में रहता था.. मैंने उसके राजकुमार की पिछले २ सालों में बहुत सेवा की थी. लेकिन मैंने उसे अपनी राजकुमारी से नहीं मिलवाया था. उसने मुझे हर जगह छुआ था पर हमेशा कपड़ो के साथ. मैंने उससे यही करार किया हुआ था. दरअसल वो इन मामलों में संयम खो बैठता था. मुझे हमेशा डर लगता था की कही वो मेरी राजकुमारी को देख कर उग्र न हो जाए और मेरा कौमार्य भंग कर दे. मेरी राजकुमारी पिछले दो वर्षों से अक्सर समय-समय पर लार टपकाती रहती थी और मुझे उस समय बहुत अच्छा भी लगता था. इस दौरान मैं तकिया या रजाई को अपने पैरों के बीच फंसा लेती और थोड़ा बहुत उछल कूद करने से मेरी राजकुमारी ख़ुशी के आसूं बहती और मैं आनंदित हो जाती.

मानस मानस भैया अपेक्षाकृत शांत स्वभाव के थे. वो सामाजिक ताने बाने को समझते थे. पहले भी जब मैंने मानस भैया के राजकुमार को हाथ लगाया था तभी मैं जान गयी थी की वो उस समय तक हस्तमैथुन भी नहीं करते थे. उस दिन भी उनका सुपाडा ठीक से नहीं खुल पाया था. आज भी मेरे मन का कौतूहल वैसा ही था. अब मानस भैया का राजकुमार कैसा होगा इसकी मैं कल्पना नहीं कर पा रही थी.

मैं अच्छे से तैयार हुई. मैने रेड कलर की टॉप और ब्लैक कलर की एंकल लेंथ स्कर्ट पहनी. अलमारी से जाकर लाल रंग की पेंटी निकाली और मन ही मन मुस्कुराने लगी. मम्मी के कमरे में जाकर अपने बाल बनाएं परफ्यूम लगाया और सजधज कर तैयार हो गइ. अभी दोपहर में समय था . मैं अभी भी मानस भैया से मिलने के लिए उचित जगह की तलाश कर रही थी. मानव भैया का कमरा एक आदर्श जगह थी परंतु वह मेरी राजकुमारी के साक्षात दर्शन करते मैं इसके लिए तैयार नहीं थी. मैंने अभी तक सेक्स करने का मन नहीं बनाया था. मैं अपने कौमार्य को मैं हर हाल में सुरक्षित रखना चाहती थी. उनके राजकुमार को अपने हाथों में लेने के बाद मुझे यह महसूस हो गया था कि सारे राजकुमार एक जैसे नहीं होते और इस राजकुमार के लिए मुझे कुछ खास करना पडेगा.

चार पांच दिन पहले आलमारी के पीछे मानस भैया के राजकुमार से मुलाकात को याद करते समय मुझे नया विचार आया. और मैं उठकर मुस्कुराते हुए मानस भैया के घर की तरफ बढ़ चली . मैंने सबकी नजर से बचकर दालान में पड़ी अलमारी के पीछे वाली जगह को थोड़ा साफ किया. वहां पर एक पुराना ड्रम ( स्टूल की उचाई का) पड़ा हुआ था जिसे साफ कर मैंने अलमारी के पीछे रख दिया. मैं खुश होकर मुस्कुराते हुए मानस भैया के कमरे में गई मानस भैया मुझे बहुत अच्छे लगते थे मैं मन ही मन उन्हें बहुत प्यार करती थी पर इस समय मेरे ऊपर सिर्फ हवस हावी थी.

गुरुदक्षिणा
मैं मानस भैया के कमरे में पहुंची वो मुझे देखते ही बोले.. .
“सीमा मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था.”
मैंने मजाक किया
“सच में मेरा या राजकुमारी का?” वो हँस पड़े.
“सच में आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो.”
मैं मुस्कुरा दी. मैंने यह बात नोटिस की थी इस बार मेरे गांव आने के बाद से मानस भैया मेरे ऊपर बहुत ध्यान देते थे. हम सब इधर-उधर की बातें करने लगे. तभी मेरा छोटा भाई साहिल जल्दी-जल्दी सीढ़ियां चढ़ता हुआ आया और बोला आप लोग नीचे चलिए सब लोग आपका इंतजार कर रहे हैं.
छुपन छुपाई का खेल शुरू हो रहा था. पहले दौर में छाया चोर बनी सभी बच्चे इधर उधर छुपने चले गए. मैं भी मानस से नजर बचाकर दालान की जगह सीढ़ी रूम में जाकर छुप गई . मैंने मानस को दालान की तरफ जाते देखा मुझे हंसी छूट गयी. वो अधीर हो रहे थे. धीरे-धीरे छाया ने सब को ढूंढ लिया. मानस मुझे अलमारी के पीछे न पा कर बगल वाले कमरे में छुप गए. छाया ने अंत में उन्हें भी ढूंढ लिया . अगले दौर के लिए सबका प्यारा रोहन चोर बना. रोहन बहुत छोटा था और सब को ढूंढने में ज्यादा समय लगाता था यही मानस भैया और मेरे लिए उपयुक्त समय था . बच्चों के इधर-उधर छुपने के बाद मैं अलमारी की तरफ गई मानस ने मुझे जाते हुए देख लिया था और वो धीरे से मेरे पीछे पीछे आ गए. मैं अलमारी के पीछे धड़कते ह्रदय के साथ खड़ी थी. उन्होंने पीछे से आकर बिना कुछ कहे मुझे पकड़ लिया. आज उनके दोनों हाथ मेरे पेट पर ही थे मेरा मुंह ढकने की कोई आवश्यकता नहीं थी. वह भी जान रहे थे कि मैं स्वेक्छा से यहां आई हूं. यहाँ पर्याप्त अँधेरा था.
वासना अँधेरे में जवान होती है.
वह मेरी पीठ और गले को चूमने लगे मैं भी भाव विभोर हो गई थी. धीरे-धीरे उनके हाँथ एक दूसरे से दूर होने लगे. एक हाथ ऊपर की तरफ तो दूसरा नीचे की तरफ बढ़ने लगा. उनका बाया हाथ मेरे दाहिने स्तन पर आ चुका था और दूसरा मेरी राजकुमारी की तलाश कर रहा था. उनके उतावलेपन को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे यह उनके लिए भी पहली बार था. उनका राजकुमार अब पूरी तरह तन चुका था और मेरी कमर में गड रहा था. उन्होंने पिछली बार की तरह अपनी कमर पीछे की. मैं समझ रही थी कि वह अपने राजकुमार को आजाद कर रहे हैं. ठीक वैसा ही हुआ और उनका राजकुमार मेरे नितम्बों में अपने लिए उपयुक्त जगह ढूंढने लगा. मानस भैया ने अपने घुटने मोड़े. पर इस बार राजकुमार का मेरी जांघों के बीच आ पाना इतना आसान नहीं था. इस बार मैंने स्कर्ट पहनी हुई थी. वह परेशान थे मेरी स्कर्ट को ऊपर कर पाने की हिम्मत नहीं थी. मैंने उनकी मदद करने के लिए अपने ही हाथों से अपने स्कर्ट को ऊपर किया.
मानस में अपनी कमर को थोड़ा और नीचे किया अब उनका राजकुमार मेरी नंगी जांघों के स्पर्श से उछलने लगा. उसकी धड़कन मुझे अपने जांघो पर महसूस हो रही थी. मानस भैया ने मुझे अपनी तरफ और तेजी से चिपका लिया था. धीरे-धीरे उनका राजकुमार मेरी जांघों के बीच से होते हुए सामने की तरफ आ चुका था. मेरी राजकुमारी और उसके बीच लगभग थोड़ी जगह ही बची होगी .
उनका बायां हाथ मेरे दाहिने स्तन को धीरे-धीरे सहला रहा था तथा दाहिना हाथ राजकुमारी को तलाश करते हुए उनके उनके राजकुमार से टकरा गया जहां पर मेरी उंगलियां उसे पहले से ही सहला रही थी. मैंने उनकी उँगलियों को अपनी राजकुमारी के सिर पर रखा और उनकी उंगलियों से उसे धीरे धीरे सहलाया ताकि वह समझ सके कि उन्हें क्या करना है. वो अंदाज़ पर ही अपनी उंगलियों को मेरी राजकुमारी के उपर फिराने लगे. पैंटी पहने होने के कारण उन्हें राजकुमारी का एहसास नहीं हो पा रहा था. परन्तु मैं नंगे राजकुमार के सुपाडे को अपनी उँगलियों से सहला कर आनंदित हो रही थी. राजकुमार और राजकुमारी दोनों ही लगातार खुशी के आंसू बहा रहे थे. मेरी पेंटी अब गीली हो चुकी थी तथा जांघों के बीच का हिस्सा भी चिपचिपा और गीला हो गया था. राजकुमार को सहलाने से मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. मानस ने अपना हाथ बारी-बारी से दोनों स्तनों पर घूमना शुरू कर दिया था. मेरा मन हुआ कि उनका हाथ पकड़ कर अपनी टॉप के नीचे से अपने स्तनों पर रख दूं पर मेरी हिम्मत नहीं हुई. धीरे-धीरे उनके लिंग का तनाव चरम पर पहुंच रहा था और उनकी धड़कन बढ़ती जा रही थी. जैसे जैसे उनके लिंग में उत्तेजना बढ़ रही थी उसी तरह उनके हृदय की गति भी बढ़ रही थी. मेरे पीठ पर उनकी धड़कन का एहसास लगातार हो रहा था.
थोड़ी ही देर में मैंने उनकी उंगलियों को अपनी पेंटी के इलास्टिक को पकड़कर नीचे खींचते हुए पाया. मैं घबरा रही थी पर मैंने उन्हें इस बात का एहसास नहीं होने दिया. जैसे ही पैंटी मेरे नितंबों से नीचे आई मैंने उनका हाथ पकड़ लिया. उन्होंने बिना किसी जोर-जबर्दस्ती के पैंटी को वापस ऊपर कर दिया और वापस मेरी राजकुमारी को सहलाने लगे. मैं उनके इस व्यवहार से बहुत खुश थी. उपहार स्वरूप मैंने उनका बाया हाथ स्तनों पर से हटा कर अपने टॉप के अंदर कर दिया. इससे पहले कि वह मेरे नग्न स्तन छू पाते बाहर रोहन के आने की आहट हुई. मैं बहुत अस्त व्यस्त थी मैंने मानस को बोला आप जाइए मैं रुकती हूँ. उन्होंने अपने राजकुमार को अंडरवियर में व्यवस्थित किया और अपने कपड़े ठीक करते हुए रोहन की निगाह में आ गए. रोहन पकड़ लिया - पकड़ लिया करते हुए खुश हो गया. वह सब बच्चों को लेकर बाहर चले गए मैंने अपने आप को ठीक किया. आधी चढ़ी पैंटी के बारे में सोचने लगी. मेरे मन में मानस की शराफत नया उत्साह भर रही थी. मैंने हिम्मत करके अपनी पेंटी उतार दी और उसे वहीं स्टूल जैसे पुराने ड्रम पर रख दिया. अपने टॉप को नीचे और उसके सिलवटों को दूर करने के बाद मैं भी बाहर आ गई. पहली बार बिना पैंटी के सिर्फ स्कर्ट में मैं दालान के बाहर खड़ी थी मेरी राजकुमारी और जांघों के बीच का हिस्सा गीला हो चुका था. बाहर चलने वाली हल्की हल्की हवा वहां ठंडक का अहसास करा रही थी.
इस बार मेरा छोटा भाई साहिल चोर बना था. सारे बच्चे फिर अपनी अपनी जगह पर छिपने चले गए. और मैं भी वापस अलमारी के पीछे आ गई. मानस भी बिना देर किए वापस मेरे पास आ गए. आने के पश्चात उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी टॉप के नीचे से मेरे स्तनों पर ले गए तथा दोनों स्तनों को पकड़ लिया.
उनके हाथों का नग्न स्पर्श पाकर स्तन और कड़े हो गए. स्तनों के निप्पल पत्थर की तरह हो गए थे. जब उनकी उंगलियों निप्पलों से टकराती मेरी राजकुमारी कांप उठती तथा शरीर में एक अजीब सी लहर दौड़ जाती. नग्न स्तनों की संवेदना से उनका लिंग वापस पूरे उफान पर आ चुका था और मेरी जांघों के बीच आने की कोशिश कर रहा था. उनके दोनों स्तनों पर व्यस्त थे. मैं नहीं चाहती थी कि वह अपना हाथ हटाए इसलिए मैंने खुद ही अपनी स्कर्ट ऊपर कर दी. अब उनका लिंग मेरी जांघों के बीच से सामने की तरफ आने लगा. पैंटी हट जाने की वजह से लिंग का रास्ता बिल्कुल आसान हो गया था वह मेरी योनि से सटते हुए आगे की तरफ आ गया था. उनके लिंग से निकल रहे द्रव्य ने मेरी जांघों के बीच के उस हिस्से को पूरी तरह गीला कर दिया था. राजकुमार राजकुमारी के बिल्कुल समीप पहुंच चुका था. अभी तक मानस को मेरी पैंटी हटाने का एहसास नहीं था पर लिंग के चारो ओर मिल रही चिकनाहट से वो उत्तेजित थे.
मानस अपना एक हाथ स्तनों से हटाकर राजकुमारी के समीप ला रहे थे. नाभि के नीचे आते आते मेरी धड़कनें तेज हो गई. जैसे ही उनकी उँगलियाँ ने आगे का सफर किया उन्हें कोई रूकावट नहीं मिली. पैंटी पहले ही हट चुकी थी. पैंटी के हटने का एह्साह होते ही मानस ने मेरे गाल पर चुम्बनों की बारिश कर दी तथा कान में धीरे से कहा “ थैंक यू”. मैंने भी अपनी उंगलियों से राजकुमार को सहलाकर उन्हें खुस किया. उनकी उंगलियां मेरी राजकुमारी के बिल्कुल समीप पहुंच चुकीं थी. धीरे-धीरे यह इंतजार खत्म हो गया उनकी उंगलियां मेरे दरार के बीच में पहुंच गयीं. उत्तेजना अपने चरम पर थी इस अद्भुत और नई चीज को उनकी उंगलियां महसूस करना चाह रहीं थीं.. जैसे ही वह दरार में थोड़ा नीचे गए उनकी तर्जनी मेरी राजकुमारी के मुह में चली गयी. मैंने उन्हें धीरे से कहा…
“अन्दर मत ले जाइएगा.” वो समझ गए. मैं भी उनके लिंग को प्यार से सहलाने लगी. मुझे याद आया की मानस अभी तक अपने घुटने मोड़े हुए थे. मैंने “एक मिनट” कहकर अपने आप को उनसे अलग किया. तथा उनकी तरफ घूमी. उनका राजकुमार अब काफी बड़ा हो गया था. वह अँधेरे में भी आकर्षक लग रहा था. मैंने उन्हें स्टूल पर बैठने को कहा.
मानस स्टूल पर बैठ चुके थे. उन्होंने अपने राजकुमार को व्यवस्थित कर लिया था. मानस भैया ने अपनी पीठ दीवाल से लगा ली थी और वह आरामदायक स्थिति में आ गए थे उनकी कमर अब स्टूल पर थी. उनका नाभि प्रदेश बिल्कुल सपाट था. उनका राजकुमार उर्ध्व स्थिति में छत की तरफ देख रहा था. मैंने वापस अपनी पीठ मानस भैया की तरफ की तथा अपना एक पैर उठाकर उन्हें अपने दोनों पैरों के बीच ले लिया. अपने आप को संतुलित करते हुए मैंने अपनी कमर को नीचे करना शुरू किया. जैसे जैसे मैं नीचे आ रही थी मेरी धड़कन तेज हो रही थी. और नीचे आने पर राजकुमार ने मेरी राजकुमारी को छू लिया. राजकुमारी पूरी तरह प्रेम रस में डूबी हुई थी. राजकुमार भी अपने चेहरे पर प्रेम रस लपेटे हुए था. मैंने राजकुमार का मुखड़ा अपनी राजकुमारी के मुंह में जाने दिया. दोनों ने एक दूसरे का स्पर्श किया. मैंने महसूस किया की मानस भैया का हाथ मेरे नितंबों को सहला रहा है. इस उत्तेजना की घड़ी में भी मैं पूरी तरह सतर्क थी. मैं किसी भी स्थिति में अपना कौमार्य नहीं खोना चाहती थी .
कुछ ही देर में राजकुमारी के प्रेम रस में राजकुमार पूरी तरह डूब चुका था. मेरी जांघों पर भी चिपचिपपा सा महसूस हो रहा था. मेरे पैर अब दर्द करने लगे थे. मैंने राजकुमार को थोड़ा आगे किया और मानस की नाभि और लिंग के बीच के भाग में बैठ गई. मैंने पीछे मुड़ कर मानस की तरफ देखा वह आनंद में डूबे हुए थे. उन्होंने अपने दोनों पैर आपस में सटा लिए थे ताकि मुझे अपने पैर ज्यादा न फैलाने पड़े. उनके हाथ वापस मेरे स्तनों तक आ चुके थे. मेरी उंगलियां उनके राजकुमार को छू रही थी. मैंने अपनी हथेली और योनि के बीच में एक रास्ता जैसा बना दिया था. उनका राजकुमार इसी पतली गली में उछल कूद कर रहा था. मैं इस गली की चौड़ाई कम ज्यादा करती और वह खुद उछलने लगता. बीच-बीच में मैं उसे राजकुमारी के पास भी ले जाती तथा दोनों की मुलाकात कराती. मिलन के समय राजकुमार का उछलना तेजी से बढ़ जाता. (जिन्दा मछली पकड़ते समय मुझे कभी कभी इस समय की याद आती है.)
मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था मैंने राजकुमार को अपनी राजकुमारी के मुख पर रगड़ना शुरु कर दिया. अपनी हथेली से राजकुमार को सहारा देकर अपनी राजकुमारी को आगे पीछे करने लगी. मेरी कमर में हरकत देख कर मानस सतर्क हो गए थे. राजकुमार मेरे हाथों से भी ज्यादा मुलायम था उसके स्पर्श से राजकुमारी बहुत प्रफुल्लित थी और थोड़ी देर में उसका कंपन भी अतिरेक तक पहुंच गया. मेरे पैर तनने लगे थे. मैंने मानस भैया के पैरों में भी तनाव देखा. उनकी पकड़ मेरे स्तनों पर और ज्यादा हो गई थी. कुछ ही पलों में राजकुमार में लावा उड़ेल दिया. राजकुमारी से भी खुशी के आंसू झर झर बह रहे थे. मेरे छोटे हाथ इतने सारे काम रस को समेट पाने में असमर्थ थे. मानस का भी हाथ भी कुरुक्षेत्र में आ गया था उनका हाथ भी प्रेम रस से सराबोर हो चुका था. उन्होंने राजकुमारी के चेहरे पर उंगलियां फेरी पर मैंने उनका हाथ पकड़ लिया. राजकुमारी बहुत संवेदनशील हो गई थी. आज उसके साथ कुछ अद्भुत हुआ था. वह अभी तक फड़क रही थी.
मैं धीरे से उठी. मानस भी उठ गए. मैंने स्टूल पर पड़ी अपनी पेंटी को उठाया. मैंने उससे मानस के राजकुमार को पोछा इसके बाद मैंने अपनी राजकुमारी तथा जांघों को साफ किया. पेंटी लगभग आधी गीली हो चुकी थी. मेरे हाथ पोछे के बाद मानस ने भी पैंटी मांगी. हाथ पोछने के बाद वह पेंटी को अपनी जेब में रखने लगे. मैंने उनका हाथ पकड़ने की कोशिश की तो वह बोले…
“ मैं इसे रख लेता हूं” मैंने पूछा ..
“क्यों “ तो उन्होंने कहा
“गुरु दक्षिणा”
यह सुनकर मैं निरुत्तर हो गयी तथा बाहर आ गई. साहिल मुझे देख कर खुस हो गया मैंने खेल समाप्ति की घोषणा की तथा अपने घर आ गई.
ग्रामीण परिवेश में भी काम वासना उसी तरह फलती फूलती है जिस तरह शहरों और विदेशों में. अंतर सिर्फ इतना होता है की गांवों में सेक्स में इतना नंगापन नहीं होता.

राजकुमारी दर्शन
अपने रूम में पहुंचने के बाद मैं बिस्तर पर लेट गया. आज जो हुआ था उसकी कल्पना भी मुझे नहीं थी. लड़कियों का वह अंग इतना कोमल होता है मैं नहीं जानता था. उसकी राजकुमारी अत्यंत कोमल तथा रसभरी थी तथा दोनों स्तन भी अत्यंत कोमल थे. मैंने अपनी हाथ की उंगलियों को चुम्मा जो अभी-अभी राजकुमारी से मिलकर आयीं थीं. उंगलियों पर राजकुमारी के खुशी के आंसू तथा मेरा लावा दोनों मिले हुए थे. ब्लू फिल्मों में मैंने देखा था की नायिका वीर्य को अपने मुंह में ले लेती है तथा नायक नायिका की योनि अपनी जिह्वा से छूता है. मेरे लिए यह एक घृणास्पद क्रिया थी परंतु आज सीमा की योनि छूने के बाद उससे एक अजीब किस्म के आत्मीयता हो रही थी ना चाहते हुए भी मैंने उसका स्वाद को जानने की कोशिश की. मेरी उंगलियां गीली होकर वापस चिपचिपी हो गयीं पर स्वाद के बारे में मैं कोई राय नहीं बना पाया.
अगली सुबह सीमा नहीं आई. मैं समझ गया था कि वह कल की घटना के बाद मुझसे मिलने में कुछ समय अंतराल चाह रही थी. सीमा ने कल जो किया था वह उस उम्र की लड़की के लिए बहुत बड़ी बात थी. मुझे इस बात का पूरा एहसास था कि मेरे राजकुमार के अलावा उसने और भी राजकुमारों की सेवा की थी परंतु उसका कौमार्य सुरक्षित था ऐसा मुझे प्रतीत होता था. उसका पढ़ाई में संजीदा होना भी इस बात का परिचायक था. 2 दिनों बाद सीमा फिर आई अपनी पढ़ाई के संबंध में और कुछ बातें की. मैंने पूरी तन्मयता से उस विषय को समझाया वह खुश हो गयी. उसके संतुष्ट होने के बाद मैंने उसे छेड़ा “राजकुमारी कुशल मंगल से तो है ना?” वह हंसने लगी और बोली…
“आपके राजकुमार ने उसे इतनी चुम्मियाँ ली है कि वह बार-बार खुशी के आंसू बहाती रहती है” मैं उसकी भाषा समझने लगा था. आज वह फिर से स्कर्ट और टॉप पहन कर आई थी छोटा रोहन सीढ़ियों से आकर सीमा से बोला….
“दीदी आप 2 दिनों से खेलने नहीं आयीं. आज चलिए ना. मानस भैया आप भी आइए”
“ चलिए आइए बच्चों का मन रख लेते हैं” हम सब नीचे आ गए. सीमा को फिर अलमारी की तरफ छुपते देख मन प्रफुल्लित हो उठा था आज भी मैं उसी उत्साह के साथ सीमा के पीछे हो लिया. अब हम दोनों इस खेल के खिलाड़ी हो चुके थे. हमने 2 - 3 बार खेल के दौरान अपनी काम पिपासा बुझाई और वापस आ गए. सीमा ने इस बार हमारे प्रेम रस को अपनी स्कर्ट में ही पोछ लिया आज वह पैंटी नहीं पहने हुयी थी.
अगले कुछ दिनों तक सीमा लगातार मेरे पास आती रही और अपनी पढ़ाई के बारे में मुझसे कई चीजें समझती रही. कई बार वह पजामी पहन कर आती थी तो कई बार स्कर्ट पहनकर. मैंने नोटिस किया कि जब वह पजामी पहन कर आती थी तो छुपन छुपाई खेल से बचती थी और जब स्कर्ट पहन कर आती थी तो खुशी-खुशी छुपन छुपाई खेलने को तैयार हो जाती. मेरे लिए या इशारा बन चुका था कि यदि मैंने उसे स्कर्ट में आते हुए देखा तो मेरे राजकुमार को आज सुख मिलना पक्का लगता था. कुछ ही दिनों में हमारा यह सुख ख़त्म होने वाला था.
सीमा के दिल्ली जाने का वक्त करीब आ रहा था. सीमा ने बताया कि 3 दिनों के बाद वह वापस जा रही है. मैं दुखी हो गया मैंने कहा ….
“सीमा तीन-चार दिन और रुक जाओ मैं भी तुम्हारे साथ वापस चलूंगा”..
“उसने कहा मानस भैया पापा टिकट करा चुके हैं” उसने मुझे खुश करने के लिए मेरे साथ बिताए पलों को याद किया और कहा ..
“आपके राजकुमार ने तो राजकुमारी से मुलाकात कर ली”
मैंने उसे याद दिलाया कि उसने मुझे राजकुमारी को दिखाने का वचन 2 वर्ष पूर्व दिया था. वह पशोपेश में पड़ गयी. हमारे पास बहुत कम वक्त बचा था सीमा ने कहा अच्छा मैं कोशिश करूंगी . 2 दिन बाद अचानक सुबह-सुबह माया जी की तबीयत खराब हो गई उनके पेट में दर्द हो रहा था. पापा उनको शहर में डॉक्टर से दिखाने ले गए छाया भी साथ में जाने की जिद करने लगी और वह भी गाड़ी में बैठ कर चली गयी. पापा ने कहा…
“ बेटा कुछ बना कर खा लेना हम लोग दोपहर तक लौट आएंगे” जाते समय मंजुला चाची भी वहां थीं. वो पापा की बात सुनकर यह समझ गयीं थीं कि मैंने नाश्ता नहीं किया है .
[मैं सीमा]
चाची ने कहा…
“ मानस ने नाश्ता नहीं किया है. तुम जाकर मानस को नाश्ता दे आवो वह घर पर अकेला है” मैं यह सुनकर बहुत खुश हो गई और बोली.. “चाची मैं नहा कर जाती हूं उन्होंने कहा बेटा वह भूखा होगा मैंने कहा बस 5 मिनट लगेगा”
“ ठीक है” मैं फटाफट बाथरूम में चली गयी. बाथरूम जाने के बाद मैंने यह निर्णय कर लिया कि आज अपनी राजकुमारी के दर्शन मानस भैया को करा ही दूंगी पता नहीं फिर कभी मौका मिले ना मिले. अपनी राजकुमारी की दाढ़ी मूछें मैं 2 दिन पहले ही साफ कर चुकी थी. मेरी राजकुमारी अब अत्यंत सुंदर और चमकदार लग रही थी. शीशे में मैं खुद को देखकर शरमा गयी. मैंने अपनी राजकुमारी को साबुन से धोया और नहाकर वापस बाहर आ गयी. मैं सीधा मम्मी के कमरे में गई अपनी पहले दिन वाली स्कर्ट और टॉप पहनी. मम्मी का वही परफ्यूम लगाया और चाची के पास आकर बोली..
“लाइए चाची दीजिए” चाची ने मानस भैया के लिए नाश्ता निकाल कर रखा था जिसे लेकर में धड़कते ह्रदय के साथ मानस भैया के पास पहुंच गयी. मानस भैया थोड़े दुखी थे क्योंकि माया जी और उनके पापा सभी लोग शहर गए हुए थे. मैं उनकी स्थिति समझ सकती थी. मैंने कहा…
“छोटी मोटी तकलीफ होगी. वह जल्दी ठीक हो जाएंगीं आप प्रेम से नाश्ता कर लीजिए.” मैंने उन्हें अपने हाथों से एक रोटी खिलाई. मैं अभी अभी नहा कर आई थी वह मुझे एकटक देख रहे थे. नाश्ता करने के बाद मैंने उनसे कहा कि कल मैं चली जाऊंगी. वो मेरे जाने की बात से ज्यादा दुखी हो गए. मैंने उनके हांथों को अपने हाँथ में ले लिया और उनसे कहा…
“मेरी राजकुमारी आपको दर्शन देना चाहती है” उनका गम एक पल में गायब हो गया. तभी फ़ोन की घंटी बजी. मानस नीचे गए और वापस आकर बताया ..
“पापा का फोन था. माया जी ठीक हैं. ड्रिप लग रहा है एक दो घंटे में वापस घर आ जाएंगें.” वो खुश हो गए थे. उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में खींच लिया. मैंने उनसे कहा ..
“आप आखें बंद कर लीजिए जब मैं कहूं तब खोलिएगा.”
उन्होंने अपनी आखें बंद कर लीं. मैंने अपनी स्कर्ट उतार दी पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैंने अपना टॉप भी उतार दिया अब मैं उनके सामने पूर्ण नग्न खड़ी थी. मेरे मन में एक और शरारत सूची मैंने मानस भैया से कहा अपनी आंख बंद किए रहिए और अपने राजकुमार को भी आजाद कर दीजिए. उन्होंने मुस्कुराते हुए अपनी पजामी को अलग कर दिया. मैंने उनसे कहा आप अपना कुर्ता भी हटा दीजिए.मेरे कहने पर अब वह पूरी तरह मेरे सामने नग्न खड़े थे. मैं उन्हें देख कर मन ही मन उत्तेजित हो रही थी. वो नग्न अवस्था में और भी सुन्दर लग रहे थे. मैं भी नग्न थी पर वह मुझे देख नहीं पा रहे थे. उन्होंने ईमानदारी से अपनी आंखें बंद की थी. मैं बिस्तर पर बैठी हुई थी. मैं खड़ी हुई और उनसे कहा आप अपनी आंखें खोल सकते हैं.
आंखें खोलने के पश्चात उन्होंने अपने जीवन में पहली बार किसी लड़की को नग्न देखा था. उनका राजकुमार तो इस परिस्थिति की कल्पना में पहले ही तन कर खड़ा हो चुका था. राजकुमार पहले से बड़ा हो चुका था यह मैंने पहले ही नोटिस कर लिया था. वह मुझे एकटक देखते रहे मैं शर्म से अपनी आंखें नीचे की हुई थी पर मेरी आंखें उनके राजकुमार पर ही टिकी थी. लगभग एक मिनट तक देखने के बाद वह धीरे धीरे मेरे पास आए और बोले “सीमा तुम बहुत ही खूबसूरत हो मैं तुम्हें जी भर कर देखना चाहता हूँ.” मैंने फिर वही प्रश्न किया ..
“मैं या राजकुमारी?”
“ दोनों” उन्होंने मुझे सहारा देकर बिस्तर पर लिटा दिया. उन्होंने मेरे पैरों को छुआ. धीरे-धीरे उनके हाथ मेरी जांघों तक आ गए. उन्होंने अपने गाल मेरी जांघों पर सटा दिए. उन्होंने मुझसे पूछा ..
“ क्या लड़कियां इतनी कोमल होती है?” यह कहते हुए वह धीरे धीरे मेरे राजकुमारी के पास आ गये.
राजकुमारी को देखकर वह अपनी नजरें नहीं हटा पा रहे थे. वो बहुत देर तक उसे देखते रहे फिर मेरी अनुमति से उन्होंने उसे छुआ. मैंने जानबूझकर अपनी जांघें अलग कर दी. वह आश्चर्य से मेरी राजकुमारी को देखते रहे राजकुमारी अपनी लार टपका रही थी. वह धीरे धीरे अपना ध्यान नाभि प्रदेश से होते हुए स्तनों की ओर तरफ ले आये. मेरे दोनों स्तन तने हुए थे. मेरे स्तनों को वह पहले भी छू चुके थे इसलिए उन्होंने मेरी इजाजत के बिना ही उन दोनों को छू लिया. कुछ देर उन्हें सहलाने के बाद उन्होंने मेरे दोनों निप्पलों को भी अपनी उंगलियों में लेकर महसूस किया. वो अपने हाथ मेरी गर्दन से होते हुए मेरे चेहरे पर ले गए और दोनों हाथों में मेरा चेहरा लेकर मुझे माथे पर चूम लिया और बोले..
“ सीमा तुम मेरे जीवन की पहली लड़की हो जिसे मैंने नग्न देखा है मैं तुम्हारा ऋणी हूँ. काश तुम मेरी जीवनसंगिनी बन पाती.” उन्होंने मुझे होठों पर चुम्बन नहीं दिया. वह वापस मेरी राजकुमारी की तरफ गए तथा अपनी हथेलियों के दबाव से मेरी जाँघों को अलग कर रहे थे. मैं समझ गई थी वह क्या चाहते है मैंने उनका सहयोग करने के लिए अपने दोनों हाथों से अपने पैरों को पकड़ लिया और जितना संभव हो सकता था उसे फैला दिया. . राजकुमारी की दरार अब बढ़ गई थी वो पूरी तरह रस में डूबी हुई थी ठीक उसी तरह जिस तरह
किसी ताजे फल में चीरा लगाने के बाद उस का रस छलक कर बाहर आ जाता है.

मानस ने मेरी तरफ देखा और अपनी उंगलियों को मेरी राजकुमारी के पास ले आये और मेरी इजाजत के लिए धीमी आवाज में पूछा…
“क्या मैं इसे छू सकता हूं?” मैंने सिर हिला कर इसकी सहमति दे दी. वह अपनी उंगलियों से राजकुमारी का मुआयना करने लगे. पहले उन्होंने अपनी तर्जनी से मेरी दरार को ऊपर से नीचे तक छुआ. ऐसा लग रहा था जैसे वो उसके रस को बराबर से बांट देना चाहते हैं. उनकी तर्जनी पूरी तरह गीली हो गई थी. अगली बार उन्होंने तर्जनी का दबाव बढ़ाया तो दरार अपने आप फैल गई उन्हें अंदर और भी गीलापन महसूस हुआ. हमारी उंगलियों के 3 भाग होते हैं उन्होंने उन्होंने अपनी तर्जनी का पहला भाग मेरी दरार के अंदर डाल दिया था. अब उनकी तर्जनी नीचे से ऊपर की तरफ आ रही थी. जैसे ही उनकी उंगली मेरी भग्नासा से टकराई मैं तड़प उठी. मेरे पैरों की हरकत से उन्हें मेरे इस भाग की अहमियत का अंदाजा हुआ. उन्होंने अपनी उंगली पीछे कर ली. भग्नासा से नीचे आने के बाद तर्जनी राजकुमारी के मुख में प्रविष्ट होने लगी. वह आगे बढ़ना चाह रहे थे उन्होंने अपनी तर्जनी का दबाव बढ़ाया. यदि मैं उन्हें न रुकती तो वह अपनी अज्ञानता में अपनी तर्जनी से ही मेरा कौमार्य भेदन कर देते. वह अपनी इन क्रियाओं के दौरान बीच-बीच में मेरी तरफ देखते थे शायद मेरी रजामंदी के लिए.
मैंने उन्हें सिर हिला कर मना कर दिया था उन्होंने मेरी दरार के दोनों होंठों को अब अपने दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी तर्जनी से और फैलाने की कोशिश की ताकि वह अनजानी गुफा के रहस्य से परिचित हो सकें. दरार को फैलाते ही अंदर गुलाबी गुफा दिखाई दे गई.
गुफा के शीर्ष पर स्थित भग्नासा को भी उन्होंने बहुत ध्यान से देखा. उनका अंगूठा गुफा में प्रवेश करने को आतुर हो रहा था. मैंने इशारे से उन्हें रोक दिया. उन्होंने अपने हाथों के सहारे मुझे करवट लेटने को कहा. फिर धीरे-धीरे मुझे पेट के बल लिटा दिया. कभी कभी मुझे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे कोई डॉक्टर मेरा मुआयना कर रहा हो. लड़कियों के शरीर में कोमलता हर जगह होती है. मेरे नितंब देखकर बिना कहे उन्होंने अपने गाल उससे सटा दिए. उन्होंने अपने दोनों हाथों से नितंबों को नापा तथा उन को अलग कर अलग करके देखने की कोशिश. मेरे दूसरे द्वार को देखते ही उन्होंने अपेक्षाकृत तेज आवाज में बोला…
“दासी भी राजकुमारी जितनी ही खूबसूरत है” उन्होंने उसे छुआ नहीं और मेरी पीठ से सहलाते और गर्दन पर चुंबन करते हुए बालों के पास आ गए और मेरे कान में धीरे से कहा….

“सीमा मैं राजकुमारी को एक अभूतपूर्व उपहार देना चाहता हूं” मैंने कुछ नहीं बोला बस सहमति में सर हिला दिया. मानस भैया पर मुझे पूरा विश्वास था.
इस वक्त मैं भी वासना में पूरी तरह घिरी हुई थी. स्वीकृति पाकर वह मेरी पीठ सहलाते हुए नितंबों तक आ गए और मेरी कमर को पकड़ कर मुझे एक बार फिर पीठ के बल लिटा दिया. उन्होंने मुझे आंखे बाद करने के लिये कहा और अगले दो मिनट तक आंखें खोलने के लिए मना किया. मै उनके चमत्कारी उपहार की प्रतीक्षा करने लगी.
अचानक मेरी राजकुमारी की दरार में में किसी मोटी पर चिपचिपी चीज के रेंगनें का एहसास हुआ. वह दरारों के बीच से होते हुए मेरी भग्नासा तक गयी और वापस लौट आयी. यह बड़ा ही उत्तेजक एहसास था. एक दो बार इस यही क्रिया को दोहराने की बाद उस रहस्यमई चीजें ने गुफा के द्वार पर दस्तक दी और प्रवेश करने की कोशिश की. यह इतनी मुलायम थी कि मेरा कि मेरा कौमार्य भेदन इसके बस का नहीं था. मैं निश्चिंत थी. उसने मेरी गुफा में मैं प्रवेश पाने की भरसक कोशिश की तथा कुछ देर प्रयास करने के पश्चात मेरी भग्नासा पर थिरकने लगी. मेरी राजकुमारी के लिए यह बिल्कुल नई चीज थी. इस स्पर्श से राजकुमारी के अंदर धड़कन बढ़ गई थी. मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसका साथ देने के लिए उसके साथी भी आ गए हैं. मेरी राजकुमारी पर तीन तरफ से वार हो रहा था. वह रहस्यमई चीज कभी मेरी दरारों को फैलाती कभी भग्नाशा पर थिरकती. मैं उत्तेजना के चरम पर थी मेरी राजकुमारी स्खलित होने लगी. मैं अपने पैरों को अपने सीने की तरफ तेजी से खींचे हुए थी. उत्तेजना के अंतिम पड़ाव पर मैं अपने पैरों को छोड़कर अपने हाथ अपनी राजकुमारी तक ले जा रही थी ताकि उसकी मदद कर सकूं. . मेरे हाथ वहां तक मेरे हाथ वहां तक पहुंचते, इससे पहले वह मानस भैया के बालों से टकरा गए. मैं सारी बात समझ चुकी थी.

मैंने उनका सिर अपनी जांघों के बीच से हटाने की. उन्होंने अंत में मेरी राजकुमारी को दोनों होठों से चुंबन लिया एवं एवं अपनी जीभ को दरारों के बीच से ले जाते हुए मेरी भग्नासा को छू लिया. मैं एक फिर उछल पड़ी. उत्तेजना के बाद भग्नासा बहुत संवेदनशील हो जाती है. मैंने अपनी जाँघों को वापस सटा लिया और धीरे से उठ कर बैठ गयी.
मानस की आखों में वासना थी. उनके होठों पर मेरा प्रेम रस दिखाई पड़ रहा था. वह कमरे से सटे बाथरूम में चले गए मैं बिस्तर पर अभी भी नग्न बैठी थी. अब मेरी राजकुमारी की धड़कन शांत हो चुकी थी.
मैंने आज तक सोमिल ( मेरा चंडीगढ़ वाला दोस्त) के साथ इतने खुले मन से सेक्स नहीं किया था. हमने आज तक एक दूसरे को नग्न नहीं देखा था मैंने उसका हस्तमैथुन कई तरीकों से किया था तथा इसमें महारत हासिल कर चुकी थी. वह बार-बार अपना वीर्य मेरे शरीर पर गिराने को उत्सुक रहता पर मैं हमेशा उसे अपनी रुमाल या उसकी रुमाल में गिरा देती थी. कभी कभार लापरवाही बरतने पर उसने अपना वीर्य मेरे कपड़ों पर गिरा दिया था. दरअसल सोमिल में धीरज नहीं था. वह सेक्स को बहुत जल्दी जी लेना चाहता था. उसने मुझे नग्न करने के लिए कई प्रकार के प्रलोभन दिए थे पर मैं हमेशा टाल जाती थी. वह मुझसे बहुत प्यार करता था और मुझे सर आंखों पर बिठाये रखता था. उसने आज तक मेरी कोई बात नहीं टाली. मैं अपनी सोच में डूबी हुयी थी तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और मानस भैया बाहर आ गये.
उनके लिंग का तनाव कुछ कम हो गया था वह चेहरा धोकर वापस आए थे. वापस आकर वह वापस कुर्सी पर बैठ गए मुझे अभी तक नग्न देखकर उनकी उम्मीदें जाग उठी थी. मैंने अपने कपड़े क्यों नहीं पहने थे शायद वो यही सोच रहे थे. मैं धीरे से उठ कर उनके पास गई. पास पहुंच कर मैंने बिना उनसे पूछे उनके राजकुमार को अपने हाथों में ले लिया. राजकुमार तुरंत अपनी तनी हुई अवस्था में आ गया. मैंने देखा कि राजकुमार 2 सालों में पर्याप्त बड़ा हो गया था. सुनील के जितना तो नहीं पर उससे थोड़ा ही कम था. यह राजकुमार बहुत ही कोमल था. मैंने उसे प्यार से आगे पीछे करना शुरू किया. मैं स्टूल लेकर उनके दोनों पैरों के बीच बैठ गई और अपने हाथों से राजकुमार को खिलाने लगी मैंने अपनी सारी कार्यकुशलता और अनुभव जो सोमिल ने मुझे सिखाया था उसका प्रयोग करने लगी. हर बार नए अंदाज से मानस भैया खुश हो जाते तथा स्खलित होने के लिए तैयार हो जाते . फिर मैं उनका तनाव कम करती.
इस प्रक्रिया में राजकुमार के दोनों अन्डकोशों के वीर्य उत्पादन की गति बढ़ती जा रही थी. कुछ वीर्य तो राजकुमार के मुंह से लार की तरह टपक रहा था यही राजकुमार को सहलाने में मेरी मदद कर रहा था. जरूरत पड़ने पर मैं अपनी राजकुमारी के प्रेम रस का उपयोग भी कर ले रही थी. मानस भैया अपने हाथ कभी मेरे पीठ पर रखते कभी स्तनों पर. राजकुमार का उछलना बढ़ चुका था मानव भैया का चेहरा लाल हो चुका था और वह अपनी गर्दन को इधर-उधर कर रहे थे तथा कमर को ऊंचा कर राजकुमार को मेरी तरफ लाने का प्रयास कर रहे थे. मैं समझ गयी मैंने भी उन्हें ज्यादा परेशान ना करते हुए राजकुमार के शिश्नाग्र के नीचे वाले भाग पर अपनी रगड़ बढ़ा थी.
ज्वालामुखी का विस्फोट हो गया वीर्य की पहली धार मेरे गालों पर पड़ी. इस अप्रत्याशित विस्फोट से लिंग पर मेरी पकड़ ढीली हुई. उसके मुख पर जब तक मैं अपना हाथ लगाती तब तक वह वीर्य वर्षा प्रारंभ कर चुका था मैंने तुरंत ही अपनी हथेली राजकुमार के मुख पर रख दी अब वीर्य मेरी हथेलियों से टकराकर वापस राजकुमार पर ही गिर रहा था ऐसा लग रहा था जैसे उसका दुग्ध स्नान हो रहा हो. मानस भैया मेरे एक स्तन को तेजी से दबाए हुए थे तथा मेरे कंधे पर उनका हाथ कसा हुआ था. लिंग से हो रहे वीर्य प्रवाह के रुकने के पश्चात मैंने अपना हाथ लिंग पर से हटा लिया.
मानस भैया के चेहरे पर संतुष्टि थी. उनकी आंखें बंद थी मेरे हाथ हटाने के बाद उन्होंने आंखें खोलीं और मुस्कुराते हुए मुझे देखा उनका वीर्य मेरे गाल गर्दन तथा स्तनों पर गिरा हुआ था. मैं उसे पोछने के लिए किसी उचित वस्त्र की तलाश में इधर उधर देख रही थी तभी मानस भैया ने हाथ पकड़ कर मुझे अपनी जांघ पर बैठा लिया. उन्होंने अपने हाथों से मेरे शरीर पर गिरे हुए वीर्य को पोछा और स्तनों पर मलने लगे. मुझे थोड़ी असमंजस हो रही थी. मेरे गाल पर गिरा हुआ वीर्य मेरे होठों तक आ चुका था मानस भैया की नजर पड़ते ही तुरंत उन्होंने अपने हाथों से पोछा पर तब तक वीर्य मेरे होठों के रास्ते अंदर प्रवेश कर चुका था. वीर्य का अजीब सा स्वाद मेरे चेहरे घृणा का भाव उत्पन्न करता इससे पहले ही उनके होंठ मेरे होंठों पर आकर चिपक गए. जैसे अपने वीर्य की इस गुस्ताखी पर वह उसे सजा देना चाह रहे हैं और उसे मेरे मुख में प्रवेश करने से पहले ही रोक लेना चाहते हैं. मैं इस अप्रत्याशित कदम से हतप्रभ थी. इतने दिनों में कभी भी होठों पर चुंबन की स्थिति नहीं आई थी. मानस भैया मेरे होंठ चूस रहे थे मैं खुद को रोक नहीं पाई और इसमें सहयोग करने लगी.
राजकुमारी में एक अजीब सी हलचल हुई राजकुमार का तनाव भी मुझे महसूस होने लगा था. कुछ ही पलों में मैंने अपने आपको उनसे दूर किया. मेरी नजरें अभी भी झुकी हुई थी. मैंने अपने वस्त्रों की तरफ देखा जो उपेक्षित से पड़े हुए थे. शायद इस रासलीला में उनकी अहमियत नहीं रह गई थी.
मैं अपने वस्त्र लेकर बाथरूम में चली गई. वापस आकर मैंने देखा मानस भैया ने भी अपने कपड़े पहन लिए थे. अभी मैं बात कर पाने की स्थिति में नहीं थी. अतः मैंने नाश्ते की थाली उठाई बिना कुछ बोले अपने घर की तरफ आ गई . मानस भैया ने भी कुछ नहीं बोला पर मुझे छोड़ने सीढ़ियों तक आए. अंततः आज उन्होंने राजकुमारी के दर्शन उसके प्रेम रस एवं स्पर्श का पूर्ण आनंद लिया था.
युवाओं का शांत और सौम्य व्यवहार चंचल युवतियों की उत्तेजना जगाने में मददगार होता है. वो जब अपने साथी पर पूर्ण विश्वास कर लेतीं हैं तो नग्नता का उतना ही आनंद लेतीं है जितना कि उनके साथी युवा .

मंजुला चाची ने मुझे देखते ही पूछा
“बेटा कितनी देर लगा दी” मुझे लगा मेरी चोरी पकड़ी गई. मैंने तुरंत अपने कपड़े ठीक करते हुए कहा.
“चाची वह भैया से कुछ पढ़ाई की बातें होने लगी” मेरी यह दलील उन्हें पसंद ना आयी पर मानस भैया पे शक करने का कोई कारण नहीं था. मैं अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गई . आज की घटना से मेरे हृदय में मानस भैया के लिए प्रेम उत्पन्न हो गया था. मेरे मन में सोमिल और मानस को लेकर पशोपेश की स्थिति हो गई थी. मुझे यह भी नहीं पता था कि इसके बाद मानस भैया से अगले साल ही मुलाकात होगी कि नही .
मानस से 1 महीने में हुई अंतरंग मुलाकातों मैं उनका कामुक परंतु सहज व्यवहार मेरे दिल को प्रभावित कर गया था.
प्रेम में बिताए गए कुछ पल आपके दिल पर एक गहरी छाप छोड़ जाते हैं. कामुकता से जन्म लिए इस प्यार का अपना महत्व था.

[मैं मानस]
सीमा को छोड़कर आने के बाद मेरा ध्यान सिर्फ होंठों के चुम्बन पर केंद्रित हो गया था. होठों के चुम्बनों के दौरान सीमा ने मेरा बराबरी से साथ दिया था. मेरे मन में उसके प्रति प्यार पनप रहा था. 1 महीने में उसने मेरी काम पिपासा को एक अलग ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया था. पिछले 1 महीने में वह कई बार मेरा वीर्य प्रवाह कर चुकी थी. क्या उसकी भी कामुकता मेरे ही जितनी थी प्रबल थी? परंतु सीमा को यह सब कैसे पता था? यह मेरे लिए प्रश्न चिन्ह था.
मुझे ऐसा प्रतीत होता था कि वह किसी और के साथ भी यह सब करती है. परंतु राजकुमारी को छूने के दौरान उसकी प्रतिक्रिया अलग ही थी. इससे भ्रम होता था जैसे यह सब उसके लिए पहली बार हुआ था. . उसका कौमार्य सुरक्षित था यह बात अलग थी परंतु उसे अपनी प्रेमिका का स्थान दे पाना पाना कठिन था. लेकिन सीमा ने मेरे हृदय में अपना स्थान बना लिया था.
माया जी दोपहर के पश्चात डॉक्टर से मिलने के बाद घर वापस आ चुकी थी. उनकी तबीयत अब ठीक लग रही थी शाम तक सब कुछ सामान्य हो गया.
सीमा को वापस जाना था मैं बहुत दुखी था. अगले दिन मैं बाजार गया और उसके लिए कुछ गिफ्ट खरीदे. सीमा जाने से पहले मुझसे मिलने आई आज भी उसने स्कर्ट पहनी थी पर मुझे पता था आज हम दोनों को वह सुख नहीं मिलने वाला था. मैंने उसे अगले साल होने वाले एग्जाम के लिए शुभकामनाएं दीं और मुस्कुराते हुए राजकुमारी दर्शन के लिए उसका धन्यवाद क्या. उसनें मुस्कुराते हुए कहा..
“ आपने तो दासी के भी दर्शन कर लिए थे” मैं भी मुस्कुरा पड़ा. मैंने उसे गिफ्ट वाला बैग पकड़ाया. इससे पहले कि वह वापस मुड़ती मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया तथा उसके गालों को चुमते हुए होठों पर आ गया. होठों पर चुंबन लेने के पश्चात वह मुझसे अलग हुई आज कामुकता का कोई स्थान नहीं था. हमारी आंखें नाम थीं. मैं सीमा के साथ नीचे आ गया. सब सीमा का ही इंतजार कर रहे थे. वह अपनी जीप में पीछे बैठी और जीप धूल उड़ आती हुई नजरों से ओझल हो गई. मेरी सीमा भी इसी धूल में खो गई.. मै रुवांसा हो कर अपने कमरे में वापस आ गया




20201221-195125971
bahut badhiya
 

Elon Musk_

Let that sink in!
Supreme
45,641
27,180
304
छाया भाग 1
प्रस्तावना
कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही मिलते हैं उन रिश्तो में एक अलग आत्मीयता होती है और कुछ रिश्ते सामाजिक मजबूरियों की वजह से थोप दिए जाते हैं पर कामुकता से उत्पन्न हुआ प्रेम इन थोपे गए रिश्तो को नजरअंदाज कर देता है. "छाया" इन्हीं थोपे गए रिश्तो के बीच पनपते प्रेम का चित्रण है.
भारतवर्ष में 80 और 90 के दशकों में लड़कियों के कौमार्य की बहुत अहमियत थी. विवाह पूर्व और विवाहेत्तर सेक्स समाज में था तो अवश्य पर आम नहीं था. इस प्रेम कथा के पात्रों ने इन्हीं परिस्थितियों में अपने आपसी सामंजस्य से अपनी सारी उचित या अनुचित कामुक कल्पनाओं को खूबसूरती से जीया है.
कथा के पात्र काल्पनिक हैं उनका किसी जीवित या मृत किसी व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है. कथा में वर्णित दृश्यों से यदि किसी पाठक की भावनाएं आहत हुयीं हो तो कथाकार क्षमा प्रार्थी है.
परिचय
हर इंसान के जीवन में अनचाहे रिश्तों हों यह जरूरी नहीं. मेरे जीवन में इनकी प्रमुख भूमिका रही है. आज उम्र के इस पड़ाव पर आकर पीछे देखने पर यह महसूस होता है कि कैसे कुछ अनचाहे रिश्ते प्यार और काम वासना के बीच झूलते रह जाते हैं.
मुझे आज भी दुर्गा अष्टमी का वो दिन याद है, जब मैं पहली बार इस कथा की नायिका से मिला था. दुर्गा पूजा घूम कर थका हुआ मैं अपने घर के अहाते में प्रवेश करते समय घर के बाहर और अंदर की दुनिया के बीच फर्क के बारे में सोच रहा था. एक तरफ जहां दोस्तों के साथ जीवन का आनंद आता था वहीँ घर पर एकदम एकांत था. जेब से घर की चाभी निकाल कर दरवाजे की ओर बढ़ा. दरवाजा खुला देखकर ये यकीन ही नहीं हुआ की पापा आज घर जल्दी आ गए थे. दरवाजा अन्दर से बंद नहीं था और मैं सीधा हाल में दाखिल हो गया जहां पापा के अलावा एक महिला को देखकर आश्चर्यचकित हो गया. कुछ कहने से पहले पापा बोले...
“बेटा ये माया जी हैं और आज से ये यहीं रहेंगी मैंने इनसे विवाह कर लिया है” .
मैं अनमने मन से उनको ध्यान से देखे बिना , नमस्ते कर सीधा अपने कमरे में चला गया. शायद इस जल्दी की वजह मुझे आई हुई लघुशंका थी. जैसे ही मैंने अपने बाथरूम के दरवाजे को खोलने की कोशिश की तभी अंदर किसी के होने की आवाज आई. मैं आश्चर्यचकित हो कर पीछे हटा पर लघुशंका जोर से लगे होने के कारण दरवाजे को तेजी से पीटने लगा. तभी अंदर से आवाज आई “एक मिनट”. आवाज किसी बच्ची जैसी थी. मैंने जैसे ही मुड़कर आपने बिस्तर की ओर देखा वहां पड़ा सूटकेस देख कर कुछ अंदाज लगाने की कोशिश की तभी बाथरूम के दरवाजे के खुलने की आवाज हुई और उसमे से एक लड़की को चहरे पर तौलिया डाले निकलते हुए देखकर मैं कुछ भी बोल नहीं पाया.
शायद आप सभी को यह इस समय मेरी मनोस्थिति का आभास हो रहा होगा. मुझे इस शादी की जानकारी पहले से ही थी और इस रिश्ते को मैं पहले ही अस्वीकार कर चुका था. पर यह सब इतनी जल्दी घटेगा और ये इतनी जल्दी यहाँ आ जाएंगी ये मैंने नहीं सोचा था.
जैसे जैसे मैं लघुशंका समाप्ति की ओर बढ़ रहा था वैसे वैसे घर में आये इस परिवर्तन के बारे में सोच रहा था. अभी अभी जो लड़की गयी थी वो कौन है ? कही ये माया जी की बेटी तो नहीं.
मैं तो इतनी जल्दी में घर में आया था कि उन्हें देख भी नहीं पाया था इसलिए इस निष्कर्ष पर पहुचना मुश्किल था. बाथरूम से बाहर आकर मैं अपने बिस्तर पर पड़ गया. मेरे दिमाग में बहुत हलचल थी. कुछ ही देर में पापा ने आवाज लगायी तो मैं धडकते हृदय से वापस हाल में प्रवेश किया.
सोफे पर एक ३०-३२ साल की एक खूबसूरत महिला बैठी हुई थी और उसके बगल में एक वही मासूम लड़की बैठी थी. शायद यह वही लड़की थी जो अभी- अभी मेरे बाथरूम से निकल कर आयी थी.
आप सभी को मैं अपना और अपने परिवार का परिचय दे दूं. मेरा नाम मानस है और मेरी उम्र उस समय १८ बर्ष की थी. मैं उस समय १२वीं पास करने के बाद इंजीनीयरींग प्रवेश परीक्षा के लिए तैयारी कर रह१५था. मेरे पिता शासकीय कॉलेज में प्रोफेसर थे और उनकी उम्र लगभग ५० बर्ष थी. मेरी माँ का देहांत आज से १० वर्ष पूर्व हो गया था. हम लोग एक मध्यमवर्गीय परिवार से थे. मेरा गाँव शहर से ८ किलोमीटर दूर था. यह एक विकसित गाँव के जैसा था. माँ के जाने के बाद घरेलू कार्यों का सारा बोझ दादी पर आ गया था. दुर्भाग्यवश २ वर्ष पूर्व वो भी चल बसीं थी.
पापा, माँ के जाने के बाद अकेले तो थे पर दुबारा शादी की लिए कभी इच्छुक नहीं थे. उन्होंने अपना समय शराब के हवाले कर दिया था. हाँ दादी के जाने के बाद वो परेशान रहते थे. घर आने के बाद खाना बनाना और अन्य घरेलू कार्य करना ये सब बहुत कठिन हो रहा था. मैं अपनी पढ़ाई की वजह से उनका साथ कम ही दे पाता था. शायद इन्हीं परिस्थितियों की वजह से उन्होंने माया जी को पत्नी रूप में घर ले आये थे. मुझे पूरा विश्वास था की इसमें स्त्री सुख भोगने जैसी कोई बात नहीं थी. दरअसल वो पापा से उम्र में लगभग १५-२० वर्ष छोटी थी. उम्र का यह अंतर और पापा का सामाजिक कद एवं उनका स्वास्थ्य इस स्त्री सुख का भोग करने की इजाजत नहीं देता था. आस पास में सभी लोग यह जानते थे की मेरे पापा एक चरित्रवान व्यक्ति थे और उन्होंने माया जी को लाकर सिर्फ उनके सर पर एक छत दी थी और उन्हें एक सम्मान पूर्वक जीने का हक़ दिया था. इसके एवज में मेरे पिता को घरेलू कार्यौं से मुक्ति मिलनी थी.
शायद आप सब कहानी की नायिका के बारे में जानने को उत्सुक हो रहे है? धीरज रखिये. यदि आप इस कहानी को पढ़कर तुरंत निष्कर्ष पर पहुचने को लालायित हैं तो शायद आप को दूसरी कहानियों पढ़नी चाहिए. क्षमा कीजिएगा पर धीरज का फल हमेशा मीठा होता है.
इस कथा का नायक मैं, उस समय अपने भविष्य निर्माण के लिए पिछले कई वर्षों से अपनी पढ़ाई पूरी ईमानदारी से कर रहा था. लड़कियों में मेरी विशेष दिलचस्पी नही थी. ऐसा नहीं था कि मैंने उस समय तक सेक्स कभी अनुभव न किया हो पर मैं इसका आदि कभी नहीं था.
मेरे पड़ोस में रहने वाली मंजुला चाची की जेठानी चंडीगढ़ में रहतीं थीं. उनकी लड़की सीमा बहुत ही खूबसूरत थी. वह अक्सर छुट्टियों के समय अपने पैतृक निवास यानि गांव पर आया करती थी. इसी दौरान वह हर साल मेरे संपर्क में आती थी. हम सब अन्य पडोस के बच्चों रोहन, रिया, साहिल, सौरभ आदि के साथ खेलते कूदते थे और अपने बचपन का आनंद लेते थे.


पहला अनुभव
एक बार हम सब मेरी छत के सीढ़ी रूम में लूडो का गेम खेल रहे थे. खेल की शुरूआत में सीमा, मैं और दो अन्य बच्चे खेल रहे थे पर बाद में सिर्फ मैं और सीमा ही बचे. सीमा का बदन थोडा थुलथुल किस्म का था. उभरता यौवन एवं पेट में जैसे होड़ लगी हुई थी की कौन आगे निकलता है. वो गोरी और चेहरे पर नूर लिए थी.
आम तौर पर घर में सम्पन्नता और सुख को आप उस घर की लड़कियों के नूर से अंदाज सकते है.
खेलते खेलते बातें होने लगीं और अंत में लड़कों और लड़कियों में अंतर पर आ गयी। सीमा मेरे से ज्यादा समझदार थी और सेक्स के बारे में ज्यादा उत्सुक थी । उसने मुझसे पूछा की
“क्या तुम्हें अपने शरीर और मेरे शरीर के अंतर के बारे में पता है?” मैंने हाँ में सर हिलाया तो उसका साहस बढ़ गया और उसने पूछा
“अच्छा बताओ क्या क्या अंतर है?” उसके प्रश्न के उत्तर में मैं क्या जवाब दूं यह सोच नहीं पा रहा था फिर भी मैंने उसके स्तनों और जांघों की ओर इशारा किया. वह समझ गई और बोली..
“मानस मैंने आज तक किसी लड़के का वह भाग नहीं देखा है. क्या तुम मुझे एक बार दिखाओगे?”
मैं सकुचाया पर वह प्लीज प्लीज रटती रही. अंततः मैंने कहा
“ठीक है. पर बदले में मुझे क्या मिलेगा” तो उसने कहा कि
“मैं भी वही काम तुम्हारे लिए करूंगी.”
मैंने स्वयं आज तक कभी किसी लड़की का वह भाग नहीं देखा था यहां तक की किसी फोटो में भी नहीं. वह उतावली हो रही थी.
“दिखाओ ना... क्यों शर्मा रहे हो.”
उसके बार बार कहने पर मैंने धीरे से अपना पैजामा नीचे कर दिया और अपने लिंग को बाहर ले आया जो कि इन सब बातों के दौरान काफी कड़ा हो गया था. मेरा लिंग सामान्य युवा था पर एकदम साफ सुथरा था. लिंग का रंग गोरा था. सीमा अपनी उत्सुकता ना रोक पायी और बोली
“क्या मैं इसे छू सकती हूं?”
मेरे उत्तर का इंतज़ार किये बिना उसने अपना हाथ सीधा लिंग पर रख कर उसे महसूस करना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर में मेरा लिंग इतना कड़ा हो गया जैसे कि फट जाएगा. मेरे लिंग के ऊपरी भाग में मुझे हल्का दर्द का अनुभव हुआ. मुझे लगता है इसके पहले शायद दो या तीन बार मैंने अपने लिंग को इतना कड़ा महसूस किया था. उसके हाथों का स्पर्श पाकर आज जैसी अनुभूति शायद पहले कभी नहीं हुई थी. वह बार-बार मेरे लिंग की तारीफ करती और हल्के हल्के सहलाती जा रही थी. मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मैंने देखा कि सीमा का दूसरा हाथ उसकी जांघों के बीच है। मुझे अब विश्वास हो चुका था की सीमा ये काम पहले भी किसी के साथ कर चुकी है. मैंने उससे कहा...
“मुझे भी देखना है”
उसने कुछ देर सोचा और कहा...
“ठीक है रुको”
उसने धीरे से मेरे से लिंग के अग्रभाग पर अपनी हथेलियों का प्रेशर बढ़ा दिया. उसके इस कार्य से उत्तेजना की एक तीव्र लहर मेरे शरीर में दौड़ गई. मेरा शरीर बुरी तरह कांप रहा था. शायद उसे मेरी स्थिति का अंदाजा था. उसने अपना कार्य जारी रखा और धीरे-धीरे मेरे और पास आ गई. पास आने के बाद उसने अपना बाया हाथ अपनी जांघों के बीच से हटा लिया और मेरे कान में धीरे से कहा ...
“अपनी आँखें बंद कर लो.”

Smart-Select-20201218-110502-Chrome
उसने मेरे लिंग को सहलाना जारी रखा। जब वह लिंग की चमड़ी को पीछे की तरफ खींचती थी तो शिश्नाग्र में बहुत सनसनाहट होती और हल्का दर्द भी होता। चमड़ी को पीछे करके उसने जब सुपाड़े को छुआ तो मेरी जान ही निकल गयी. अग्रभाग इतना संवेदनशील था की उसे सीधा सहलाना मुझे बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मैंने सीमा का हाथ पकड़ लिया. वो यह जान चुकी थी की मेरे सुपाड़े को शायद पहली बार हस्तमैथुन के लिए छुआ गया था. वो अपने हथेली में मेरे कोमल पर अत्यंत सख्त हो चुके लिंग को पकड़कर आगे पीछे करने लगी. मैं आनंद की पराकाष्ठा में था. मैंने स्खलित होने के पहले सीमा को जोर से पकड़ लिया और लिंग के अन्दर धधक रहे ज्वालामुखी ने लावा उड़ेल दिया.

इससे पहले कि मैं यथार्थ में वापस आता, उसने हाथ में लगे वीर्य रस को मेरे बनियान में पोछा और “आती हूँ” कह कर भाग गयी.
सीमा इस कला में उस उम्र के हिसाब से शायद पारंगत थी. मुझे नहीं पता की उसे इस क्रिया में क्या मिला पर वो खुश थी.
सुनहरी यादों में एक खूबी होती है की उन्हें व्यक्त या याद करते समय समय तेजी से निकल जाता है.

Smart-Select-20201218-112648-Chrome
नए मेहमान
मेरे लिए माया जी और उनकी बेटी का कोई महत्व नहीं था. मैं उस समय पूरी तरह अपनी पढ़ाई में मशगूल था. अतत: मैं शांति से हाल में आकर बैठ गया. पापा ने एक बार फिर माया जी को मेरे बारे में बताया और बाद में उस प्यारी लड़की की तरफ इशारा करके बोले ये छाया है माया जी की बेटी. वो तुरंत उठकर मेरे पास आई और मेरे पैर छूए. मुझे कुछ अटपटा सा लगा, मैं “ठीक है” कह कर थोड़ा पीछे हटा.
बाद में मुझे पता चला की माया जी पापा के ससुराल के गांव की थी. पति के देहांत के बाद माया जी और उनकी बेटी का गाँव में कोई न था. पापा के ससुराल पक्ष वालों की सहमति से मंदिर में शादी कर वे उनके साथ चली आयीं थीं. शायद यही नियति को मंजूर था. मैं और पापा दोनों ही उनको माया जी कहकर ही संबोधित करते थे. यह इस बात का भी परिचायक था की वो हमारे घर में जरूर थीं पर हमारे मन में उनका कोई विशेष स्थान नहीं था.
जैसे माया जी घरेलू कार्य में निपुण थी और वैसे ही उनकी बेटी छाया. पापा भी खुश रहने लगे और घर एक में एक बार फिर रौनक हो गयी.
नारी की उपस्थिति घर के सजीव और निर्जीव दोनों में जान डाल देती है.
घर की कुर्सियां परदे एवं अन्य साजो सामान चमकने लगे. पापा और मैं भी खुश थे हमें घर का कोई काम नहीं करना पड़ता था. पापा को अब घर की कोई चिंता नहीं थी. वक्त काटने के लिए शराब अपनी जगह थी ही. मैं उस समय न तो माया जी से न ही छाया से कोई रिश्ता रखने को उत्सुक था. दरअसल मेरे पास पढाई के अलावा वक्त ही नहीं था खास कर इस नए रिश्ते के लिए.
माया जी समय से मेरे रूम में ही नाश्ता व खाना दे जाया करतीं थी. इसके अलावा उनसे बात करने का कोई तुक भी नहीं था.
जब स्वीकार्यता नहीं होती तो अक्सर आदमी बातचीत से दूर भागता है यही हाल मेरा था.
परीक्षा अच्छे से देने के बाद मैं बहुत खुश था और घर आने पर उस दिन मैंने माया जी से पहली बार बात की. उन्होंने अपने गाँव के बारे में बताया और अपने पहले पति को याद कर दुखी ही गयीं. मैंने बात बदल कर वापस उन्हें वर्तमान में ले आया. छाया की बात करते हुए उन्होंने कहा कि उसे भी अपने जैसा होशियार बना दो. मैंने बात को सुनकर भी अनसुना कर दिया वैसे भी ये सब पापा को ही करना था. छाया भी मुझसे दूर ही रहती थी.
पनपती कामुकता
अगले कुछ दिनों में मैंने सीमा को बहुत याद किया उसका स्पर्श और उसके कोमल हाथों में मेरे लिंग के एहसास मात्र से मेरा लिंग उत्तेजित हो जाता था. अब जब पढाई का तनाव न था तो सिर्फ सीमा के साथ एक बार किया गया हस्तमैथुन ही एक सुनहरी याद थी. मैंने उसे याद कर कर के कई बार हस्तमैथुन किया. मैंने उस समय तक कभी किसी लड़की के उपरी या निचले भाग को नही देखा था. सीमा ने मुझसे वादा तो किया पर वो बिना पूरा किये ही चली गयी थी.
जब आप स्त्री अंगों से परिचित न हो तो आपकी कल्पना भी अजीब होती है. मैं चाहकर भी योनि की बनावट और कोमलता की कल्पना नहीं कर पा रहा था.
पर युवावस्था में अपना हाथ ही किसी काल्पनिक योनि की तरह चरमावस्था देने में निपुण होता है. अगले एक महीने में मैंने कई बार अपने लिंग को सुखद एहसास दिलाया जैसे उसे आने वाली जिन्दगी के लिए तैयार कर रहा था. कई बार हस्तमैथुन करने से मेरे लिंग की चमड़ी आसानी से आगे पीछे होने लगी थी और अब हस्तमैथुन करते समय होने वाला हल्का दर्द आनंद में बदल चुका था. शिश्नाग्र की सवेंदना भी कुछ कम हो गयी थी.
कुछ ही दिनों में मेरा एडमिशन दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कालेज में हो गया. घर से जाते समय छाया भी मुझे छोड़ने आई थी. मैंने पहली बार उसे ध्यान से देखा था. वो बहुत मासूम थी और थोडा दुखी भी लग रही थी. सुनहरे सपने लिए मैं दिल्ली के लिए निकल चुका था.
होस्टल की दुनिया निराली थी. मेरे लिए यहाँ सब कुछ नया था. नए वातावरण में ढलने में मुझे १० – १५ दिन लगे. जिंदगी को जैसे पर लग गए थे. दोस्तों के साथ घूमना फिरना, शहर की लड़कियों को देखना एक अलग ही अनुभव था. कुछ दोस्त अपने सेक्स के अनुभव भी शेयर करते थे पर मैंने कभी भी सीमा के साथ हुए अपने छोटे अनुभव को साझा नहीं किया था.
होस्टल के टीवी रूम में एक रात काफी लोगों के होने की आवाज आ रही थी. मैं और मेरा रूम पार्टनर उत्सुकता वश उधर की तरफ गए तो देखा कि टीवी रूम खचाखच भरा हुआ था. टीवी पर एक ब्लू फ़िल्म चल रही थी जिसमे सम्भोग क्रिया जारी थी. मेरी तो आंखें फटी रह गयीं. मैंने आज तक यह दृश्य नहीं देखा था न ही कभी कल्पना कर पाया था.

Smart-Select-20201218-110150-Gallery
पर आज नारी शरीर के नग्न अवस्था में साक्षात दर्शन कर समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या देखूं क्या छोडू. ह्रदय की धड़कन तेज हो गयी थी. पर लिंग में कोई हलचल नहीं थी. दिमाग में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे. सामाजिक वर्जनाएं एक झटके में खंडित हो रही थी. बायोलॉजी की क्लास से स्तन और योनि के बारे में ज्ञान तो था पर इस तरह विदेशी नायिका के नग्न अंगो का दर्शन अप्रत्याशित था. चार पांच मिनट बाद मन की ग्लानि को मिटा कर नायिका के अंगों को मैंने भावविभोर होकर नहाना शुरू किया तो साक्षात कामदेव लिंग में प्रवेश कर गए. बिना हाँथ लगाये ही लिंग की धड़कन बढती गयी और वीर्य प्रवाह हो गया. इसके बाद मैं वहां से चला आया पर इन १० - १५ मिनट में मेरे जेहन में नग्नता की इतनी तश्वीरें कैद हो गई थी जो २ -४ महीने तक मेरे हस्तमैथुन को जीवंत बनाए रखती.

फ़िल्म की वयस्क नायिका को नग्न देखने के उपरांत मेरी कल्पना सातवे आसमान पर पहुच गई. नायक के साथ सम्भोग करते हुए नायिका को देखकर अविस्मरणीय अनुभूति हुई थी. अब मेरा एकांत मेरे लिए सुखद होता था तथा मैं अपनी सेक्स की कल्पनाओ को नयी नयी ऊंचाइयां देने लगा. दोस्तों से प्राप्त नग्न किताबें एवं कामुक साहित्य ने छ; सात महीनों में मुझे मेरी नजर में आज का वात्स्यायन ( कामसूत्र के रचयिता) बना दिया. मैंने नायिका के शरीर और उससे की जाने वाली छेड़छाड़ के बारे में इतना सोचने लगा की प्रतिदिन एक या दो बार हस्तमैथुन अवस्य करता था. इस दौरान मेरी सेहत भी गिरने लगी थी.
धीरे धीरे मेरी कल्पनाओं में आसपास के लोगो ने अपनी जगह बनाई.
ब्लू फ़िल्मो का एक ख़राब असर यह भी है कि सुन्दर और सुडौल नायिका की उस मदमस्त जवानी के सामने आसपास की लड़कियां या युवतियां फीकी दिखाई पड़ती है. आप चाह कर भी उन्हें अपने विचारों में नग्न नहीं कर सकते आपका मन खट्टा हो जाएगा.
मैं तो और भी भावुक था. सेक्स अब मेरे लिए जीवन में एक अहम् भाग हो गया था. मेरी कल्पना आसमान छू रही थी. एक साल बीतने को आ रहा था. इस साल भर में मैंने सिर्फ अपनी एक प्यारी सहपाठी राधिका और एक टीचर को अपने ख्वाबों में नग्न किया था और उनके साथ शरमाते हुए जमकर संभोग किया था. वो दोनों मुझसे बात चीत करती थी पर शायद उन्हें इस बात का इल्म भी न हो की एक सीधा साधा लड़का न जाने अपनी कल्पना में कितनी बार उनका योनि मर्दन कर चुका है.
सीमा और गुरुदक्षिणा
पहली छुट्टियाँ
परीक्षाओ के बाद मैं वापस अपने घर आया. एक सीधा साधा लड़का अब बदल चूका था. सफर में मिलने वाली सुन्दर युवतियों को अपनी कल्पना में नग्न कर उनके यौवन एवं योनि प्रदेश की कोमलता का मन में अनुभव करते हुए सफर का समय तेजी से बीत गया. अब नारी अंगों को छूने का मन तो बहुत करता था पर हिम्मत नहीं होती थी. जितना मैं अपने खयालों में नंगा था शायद वो मासूम सी युवतियां एवं लड़कियां नहीं होंगी यह मुझे पूरा विश्वाश था.
मैं अब १९ वर्ष का हो चुका था. चेहरे पर मासूमियत कायम थी पर कद काठी ठीक हो चली थी. लम्बाई ५ फुट ११ इंच, रंग भी साफ था. ज्यादा हस्तमैथुन से लिंग अब समय से पहले वयस्क हो गया तथा उस पर नसें अब साफ दिखाई पड़ती थी. इन साल भर में सबसे ज्यादा किसी ने मेहनत की थी तो वह यही बहादुर था. जितना वीर्यदान इसने साल भर में किया था उसमें तो मेरी प्यारी सहपाठी राधिका आराम के एक बार स्नान कर लेती.
घर पहुँचने पर सभी खुश थे . माया जी ने मेरे पसंदीदा पकवान बनाए थे. मैंने उन्हें शुक्रिया कहा तथा दिल्ली से लायी मिठाई उन्हें दी जो उन्होने छाया को दे दी. छाया भी खुश थी. छाया से अभी तक मेरी कोई बातचीत नहीं थी. वो फिर मेरे पैर छूने आई और मैं “ठीक है, ठीक है” कहकर पीछे हटा. पापा से मिलकर मैंने कॉलेज के बारे में कई बातें की. मैं उनका अभिमान था वो मुझे बहुत मानते थे.
‘’मानस भैया चाय ले आऊं’’ रसोई से आवाज आई तो मैं आश्चर्यचकित था की किसने मुझे आवाज दी वो भी मानस भैया कहकर? “भैया” शब्द अपने से छोटे लड़कों के नाम के साथ लगाना सम्मान देने के लिए एक आम बात थी. पर माया जी से ये शब्द मुझे अच्छे नहीं लगे. मुझे अचानक उनके चार की कामवाली जैसे होने का अहसास हुआ. वो चाय लेकर आयीं तो मैंने उनसे कहा “आप मुझे मानस ही बुला सकती है.”
दो तीन दिनों में मैं नए परिवेश में अपने आप को व्यवस्थित कर लिया. पापा ने छत पर एक नया कमरा भी बनवा दिया था जिसमे मेरे पसंद की सारी चीजें थी. खिड़की घर के आगन में खुलती थी. वहां से नीचे किसी से भी आसानी से बात हो सकती थी. मेरा कमरा वास्तव में बहुत सुन्दर हो गया था. मेरे पुराने कमरे में माया और छाया साथ में रहतीं थी. छाया ने उसे अपने अनुसार व्यवस्थित कर लिया था. उसका कमरा पुराना होने के बावजूद सुन्दर लग रहा था.
वैसे भी काबिल लड़कियों का कमरा हमेशा साफसुथरा और सजा हुआ होता है.
मुझे राजकुमार जैसा महसूस हो रहा था. छत का खुला खुला वातावरण मुझे बहुत पसंद था. पापा अब भी अपने कमरे में एकांत में रहते थे तथा अपनी किताबों और शराब में मस्त रहते थे. छाया का एडमिशन भी पापा ने अपने ही कॉलेज में करा दिया था. वो समय निकल का उसे पढ़ा भी दिया करते थे. कुल मिलाकर अब घर घर जैसा लगने लगा था.
रात्रि में खाना खाकर सोने गया तो इस घर में बिताए सारे पल एक एक कर याद आते गए. माँ को याद कर मन रुआंसा भी हुआ पर धीरे धीरे वर्तमान में वापस आ गया. आज मैं नए कमरे में बहुत खुश था. यहाँ गर्मियों में ही मौषम खुशनुमां होता था और जाड़े में कडाके की ठण्ड पड़ती थी.
मानसिक सुख और एकांत दिमाग में सेक्स को जीवंत कर देते है.
धीरे धीरे मेरा हाथ अपने लिंग का हाल चाल लेने लगा. उसका साथ देने के लिए चंचल मन एक वयस्क नायिका की तलाश में भटकने लगा जिसे मैं अपनी कल्पना में निर्वस्त्र कर अपनी काम पिपासा को शांत कर सकूं.
घटना या दुर्घटना
मुझे सीमा की याद आई. काश वो भी यहाँ छुट्टियाँ मनाने आई होती. मैंने उसे आज अपनी नायिका बनाने की कोशिश की पर वो मेरी यादों में बहुत छोटी थी. मैंने उसे भूल कर आज रात की नायिका के लिए कई और चेहरों को दिमाग में लाया पर अंततः वीर्यस्खलन का श्रेय मेरी सहपाठी राधिका को ही मिला.
अगले दिन मैं बहाने से पड़ोस में मंजुला चाची से मिलने गया. उन्होंने कहा आओ मानस बेटा हम लोग अभी तुम्हारी ही बात कर रहे थे. सीमा की मम्मी का फ़ोन आया था वो लोग भी परसों आ रहे हैं. सीमा आगे की पढाई के बारे में तुम्हारा मार्गदर्शन चाह रही थी. तुमने तो हम सब का नाम रोशन कर दिया है. थोडा ज्ञान सीमा को भी दे देना.
यही होता है तकदीर जब मेहरबान होती है तो खुशियाँ आपको खोजती हुई आ जाती हैं.
सीमा मुझसे मिलने आ रही थी वो भी अपने परिवार वालों की सहमति से. यहाँ मिलने का उद्देश्य अलग अलग हो सकता है मेरा उद्देश्य आप समझते ही होंगे. परिवार वालों की मंशा स्पष्ट थी पर सीमा के उद्देश्य पर अभी प्रश्नचिन्ह था.
दो दिनों के बाद सीमा आ गई. शाम को अपनी मां के साथ हमारे घर आई इस बार सीमा को देखकर एक नया अनुभव हो रहा था. अब मेरी आंखें लड़कियों को देखने का नजरिया बदल चुकीं थीं. यौवन का उतार चढाव वरीयता प्राप्त कर चुका था. सीमा जो पहले एक थुलथुली लड़की थी अब वह काफी सुंदर हो गई थी. उसमें काफी शारीरिक बदलाव आ चुका था. उसका पेट और वक्षस्थल अब अलग दिखाई दे रहे थे. वक्षस्थल उभरा हुआ और पेट सपाट था. उसका कद लगभग 5 फीट 2 इंच था. अभी भी वह सामान्य लड़कियों से थोड़ी मोटी थी, पर अब शरीर उसका व्यवस्थित लग रहा था.
मैं उसे देख कर मुस्कुराया और वो भी मुझे देखकर वैसे ही मुस्कुराई. उसकी मां ने कहा…
“बेटा मानस, सीमा भी तुम्हारी तरह इंजीनियर बनाना चाहती है जब तक वो यहाँ है तुम उसकी मदद कर देना वो तुम्हें बहुत मानती है.”
हम उसकी पढाई के बारे में बात करने लगे. कुछ देर बाद सीमा की मम्मी माया जी के साथ किचन में चली गई. सीमा बात करते करते काफी खुल चुकी थी. हम सब हंसी मजाक की बात भी कर रहे थे. मैंने बात ही बात में उसके साथ छत पर बिताए उन पलों का भी जिक्र कर दिया. वह बहुत शर्मा गई और अपनी नजरें नीची कर ली. मैंने उसके अधूरे वादे का भी जिक्र किया जिसे सुनकर वह उठ गई और सीधा किचन में चली गई.
मैं मन ही मन सोच रहा था कि यह मैंने क्या कर दिया. इतना उतावलापन शायद ठीक नहीं था.
पर जब सेक्स दिमाग में भरा हो तो उतावलापन स्वाभाविक रूप से आ जाता है.
वैसे भी मैं अभी इस क्षेत्र का नया खिलाड़ी था. तीर कमान से निकल चुका था अब उसकी प्रतिक्रिया ही आगे का मार्ग प्रशस्त करती. वह अपनी मम्मी और माया जी के साथ चाय और स्नैक्स लेकर आई. हम सब ने चाय पी इस दौरान दो तीन बार मेरी नजरें सीमा से मिली पर वह नजर हटा लेती थी. आखिर में जाते समय सीमा की मम्मी ने कहा बेटा दिन में जब भी खाली रहो तो सीमा को बुला लिया करो तुमसे मिलकर कुछ सीख लेगी. मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुराया तो इस बार वह भी मुस्कुरा दी.
मेरे दिल से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया और आशा की एक नई किरण जाग उठी. रात बड़ी बेचैनी से कटी . रात में मैंने पिछले साल सीमा के साथ बिताए गए उन अंतरंग पलों को याद किया तो मेरा लिंग अपनी मालकिन सीमा को सलामी देने को उठ खड़ा हुआ. उसकी नसें तन गई उसके कष्ट को कम करने के लिए हाथ स्वयं ही उसे सहलाने लगे . परंतु जितना ही हाथ उसे सहलाते वह और तन जाता. मैंने अपने दिमाग में सीमा को निर्वस्त्र करना शुरू कर दिया था. सीमा ब्रा का प्रयोग करती थी या यह प्रश्नचिन्ह था, परंतु मेरे दिमाग में एक नई तस्वीर बन रही थी. मैं उसके छोटे छोटे स्तनों की खूबसूरती की पूरी कल्पना तो नहीं कर पा रहा था तुरंत उसका एहसास बड़ा सुखद था. इसका कारण शायद इस बात की आशा थी कि शायद उन के साक्षात दर्शन हो सके. वक्षस्थल से नाभि प्रदेश होते हुए कमर तक पहुंचने के पूर्व ही लिंग लावा उगलने के लिए के लिए तैयार हो गया था. मैंने उसे शांत करने के लिए अपना ध्यान सीमा की कमर से हटाकर उसके चेहरे की तरफ ले गया. मुझे लगा उसकी मासूमियत मेरे लिंग को थोड़ा नरम कर देगी पर सीमा की हंसी और उसके बाद करने के अंदाज ने मेरे सब्र का बांध तोड़ दिया. मेरा लिंग के अंदर का लावा एकदम मुहाने पर आ गया. मेरे हाथों ने लिंग को कसकर दबाया ताकि वह शांत हो सके पर हुआ उसका उल्टा ही. निकलने वाले वीर्य की गति दोगुनी हो गई और उसकी धार लगभग चार फुट उपर जाने के बाद वापस मेरे ही चेहरे पर आ गिरी.
चेहरे पर वीर्य गिरने कि यह घटना मुझे ताउम्र याद रहेगी. वीर्य स्खलन के दौरान ही दरवाजे पर नॉक हुआ. सामान्यतः इतनी रात को कोई मेरे कमरे में कोई नहीं आता था. मैं फटाफट अपने बिस्तर से उठा और अपने लिंग (जो अभी भी उछल रहा था) को व्यवस्थित करने के बाद जल्दी जल्दी अपने चेहरे को पोछा एवं दरवाजे को खोला . माया जी कटोरी में दो रसगुल्ले लेकर खड़ी थी. मैंने पूछा ….
“इतनी रात को?”
उन्होंने कहा आपके पापा आपके लिए लाए थे . उन्होंने ही जिद की कि अभी ही मानस को दे दो वह सोया नहीं होगा. माया जी ने मेरी झल्लाहट को पहचान लिया था. रसगुल्ले की कटोरी देने के बाद अचानक उन्हें मेरे माथे पर मेरे वीर्य की एक मोटी लकीर दिखाई दी. उन्होंने कहा…
“माथे पर यह क्या लगा है?” मेरे कहने से पहले ही उन्होंने हाथ बढ़ाकर उसे पोंछ लिया. हे भगवान यह क्या हो गया ? उन्हें एहसास भी नहीं था ली उन्होंने क्या छू लिया था. माया जी ने अपना हाथ अपनी साड़ी के पल्लू में पोछ लिया. वापस जाते समय मैंने देखा की वो अपनी उंगलियों को नाक के पास ले गयीं जैसे पहचानने की कोशिश कर रही हो कि वो क्या चीज थी. मुझे यह बात दो तीन वर्षों बाद मालुम चली कि माया जी ने उसे सूंघने के बाद पहचान लिया था कि वो मेरा वीर्य ही था.
हस्तमैथुन के दौरान कुछ घटनाएं या दुर्घटनाएं इस तरह घट जाती है की हमेशा याद रहतीं है. यह उन्हीं में से एक थी.
छुपन- छुपाई
हमारे यहाँ ज्यादा जगह होने के कारण मोहल्ले के छोटे बच्चे खेलने के लिए आया करते थे. उनमे सीमा का भाई सौरभ , साहिल, पड़ोस में रहने वाला रोहन, रिया मुख्य थे और बाद में छाया भी जुड़ गई थी. बचपन में मैं और सीमा भी इसी टोली का हिस्सा थे. हालाँकि, अब हम लोग थोडा बड़े हो चुके थे पर बच्चे अभी भी हम लोगों को अपने साथ खेलने के लिए आग्रह करते रहते थे.
गांवों से संबंध रखने वाले सभी लोग यह जानते होंगे कि दोपहर में खाना खाने के पश्चात सभी बड़े लोग आराम करते हैं और यही समय हम बच्चों के लिए खेलने के लिए उपयुक्त होता है. हम सब इसी समय इकट्ठा होकर कई प्रकार के खेल खेलते. कभी लूडो, कभी चाइनीस चेकर तो कभी कभी छुपन छुपाई खेलने का भी आनंद लेते. सीमा के भाई सौरभ और साहिल बहुत ही मासूम थे. उन्हें छुपन छुपाई में ज्यादा मजा आता था. बच्चों में रोहन सबसे छोटा था. बच्चे अपनी दुनिया मे थे बड़े अपनी दुनिया मे
अगले दिन मैं नाश्ता करके अपने बेड पर लेटा हुआ था और सीमा के बारे में ही सोच रहा था तभी नीचे से नमस्ते आंटी की मधुर आवाज आई.
“ मानस कहां है ?”
बेटा वह ऊपर अपने कमरे में ही होगा.
“ठीक है आंटी, मैं वहीं चली जाती हूँ.” मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि सीमा इतनी जल्दी चली जाएगी. मैंने तुरंत अपने हाथ में पड़ी पुस्तक को तकिए के नीचे रखा और उसका इंतजार करने लगा.
सीमा ने दरवाजे पर दस्तक दी. मैंने कहा...
“आ जाओ”
उसने कमरे में घुसते ही कहा
“कमरा तो बहुत ही खूबसूरत है”
मैंने भी उसे छेड़ा
“तुमसे ज्यादा नहीं” वह हंसने लगी.
वह अपने हाथ में एक डायरी और एक किताब लेकर आई थी . मैंने उसे अपनी कुर्सी खींच कर बैठने के लिए दी. और मैं भी उसके पास एक स्टूल खींच कर बैठ गया. वह बोली
“आप कुर्सी पर बैठ जाइए”
“नहीं नहीं तुम आराम से बैठो. मैं ठीक हूं.” मैंने लड़कियों को सम्मान देना सीख लिया था.
“ मुझे बताइए ना इंजीनीयरिंग की तैयारी में मुझे किन चैप्टर्स पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.”
मैं समझ गया कि वह अभी पढ़ाई की बातों को लेकर संजीदा है. मैंने उसे कई सारी टिप्स दीं तथा जितना मेरा ज्ञान था उसके हिसाब से उसे भरपूर मदद की. उसने मेरी टिप्स को अपनी डायरी में लिखा. धीरे-धीरे वह अपने बारे में बताने लगी. वह अब बातूनी हो चुकी थी. उसने मुझे अपने स्कूल, अपनी सहेलियां और जाने क्या क्या बताया. बातचीत के दौरान अधिकतर उसका चेहरा खिड़की की तरफ रहता कभी-कभी वह मेरी तरफ देखती पर तुरंत ही अपना चेहरा वापस खिड़की की तरफ घुमा लेती. शायद वो नजरें मिलाकर बात करने में सहज नहीं हो पा रही थी. जब वह खिड़की की तरफ देख रही होती तब मेरी निगाहें उसके शरीर का नाप ले रहीं होती.
सीमा के बाल कंधे तक आ रहे थे उसने एक पिंक टॉप तथा काले रंग की पजामी पहनी थी. उसके वक्ष स्थल पर निगाह पड़ते ही मैंने अपनी निगाहों से यह जानने की कोशिश की कि क्या वह ब्रा का उपयोग करती है?
साथ बैठकर आपस में बात कर रहे दो इंसानो की मानसिक अवस्था अलग अलग हो सकती है.
जहां सीमा अभी पढ़ाई पर केंद्रित थी पर मैं कामुक हो रहा था. सीमा की जांघें थोड़ी मोटी लग रही थी. शायद कुर्सी पर बैठने की वजह से जांघों की चौड़ाई बढ़ गई थी. अचानक सीमा ने मेरी तरफ नजर घुमाई और मेरी निगाहों को नीचे देखते हुए पकड़ लिया. उसने सीधा प्रश्न किया
“आप वहां क्या देख रहे हैं?”
मेरे मुंह से अचानक निकला
“जिसे तुमने दिखाने का वादा किया था.”
यह उत्तर अप्रत्याशित था. मैंने भी यह सोच समझकर नहीं बोला था. वह बुरी तरह झेंप गई. न वह कुछ बोल पा रही थी न मैं.
हम हम दोनों लगभग एक मिनट तक मौन रहे. अचानक सीढ़ियों पर बच्चों के आने की आवाज आई. साहिल दरवाजे के पास पहुंचते ही बोला..
“अरे सीमा दीदी भी यहीं पर है. चलिए सब लोग नीचे , हम लोग छुपन छुपाई खेलेंगे.”
उस बच्चे का आर्डर सुनकर सीमा खुश हो गई और उठ कर नीचे जाने लगी और मौन तोड़ते हुए बोली आप भी चलिए.
हम दोनों में काफी कुछ बदल चुका था. सीमा का मन और तन जवान हो चुका था. वो समझदार हो चुकी थी. मैं स्वयं सेक्स और उससे संबंधित क्रियाकलापों में काफी ज्ञान प्राप्त कर चुका था. सीमा द्वारा किया गया हस्तमैथुन एक सुनहरी याद थी पर आज की परिस्थितियों में दोबारा यह अवसर मिलेगा या नहीं यह प्रश्न चिन्ह था. हम सब नीचे आ गए थे.
आप में से शायद कुछ लोगों ने गांव में अपना समय बिताया हो. वे लोग गांव के घरों और उनके आसपास की जगह जैसे दालान गौशाला आदि से परिचित होंगे. मेरे घर के सामने एक बड़ी सी दालान थी इसमें कुल तीन कमरे थे दो कमरे आपस में जुड़े हुए थे तथा एक कमरा अलग था. जुड़े हुए कमरों में से एक कमरे में भूसा और पुवाल रखा रहता था तथा उस कमरे में काफी अंधेरा रहता था. उसके साथ वाले कमरे में पुरानी अलमारियां पड़ी हुई थी. दालान के सामने आम और नीम के पेड़ थे. सीमा का घर हमारी दालान के ठीक पीछे था.
छुपन छुपाई में छुपने के लिए दालान के दोनों कमरे , पेड़ की ओट, छत, आँगन एवं सीमा के घर का बाहरी कमरा था. इसमें भी बड़ी-बड़ी अलमारियां पड़ी थी जिनके पीछे आदमी आसानी से छुप सकता था एक पुरानी खाट भी थी जिसे खड़ा किया हुआ था उसके पीछे भी छुपा जा सकता था. सीमा दालान की परिस्थितियों से परिचित थी. यह खेल हम बचपन में भी खेला करते थे. यह खेल मैं और सीमा बचपन से खेलते आ रहे थे. भूसा वाले अंधेरे कमरे के बगल वाला कमरा छुपने के लिए मेरी और सीमा की पसंदीदा जगह थी.

राजकुमार और घायल राजकुमारी
खेल शुरू हुआ, सबसे पहले मैंने खुद ही चोर बनना स्वीकार किया. सब बच्चे अलग-अलग जगहों पर छुप गए. मैंने खेल का आनन्द लेते हुए सबसे पहले छोटे रोहन को फिर बाकी सबको ढूंढ लिया.
सबसे छोटा रोहन इस बार चोर बना था और हम सब की छिपने की बारी थी. सारे बच्चे अपनी अपनी जगहों पर छिपने चले गए. मैंने सीमा को दालान के दूसरे वाले कमरे की तरफ जाते हुए देख लिया था. यह ऐसी जगह थी कि कोई भी छोटा बच्चा उधर जाने की हिम्मत नहीं करता था. मैं भी सीमा के पीछे हो लिया. सीमा ने मुझे आते हुए देख लिया था पर फिर भी वो चुपचाप रही. मुझे बड़ी अलमारी के पीछे थोड़ी हलचल सी लगी. मैं पीछे से गया और सीमा को पकड़ लिया. मैंने अपना एक हाथ उसके मुंह पर रखा ताकि वह आवाज न निकाल दे. सीमा ने कहा..
“आप यहां कैसे आ गए?” मैंने कहा..
“कुछ मत बोलो रोहन आता ही होगा”
इस समय मेरा एक हाथ सीमा के मुंह पर था तथा दूसरा हाथ उसके पेट पर था. कुछ ही सेकंड में हमें अपनी स्थिति का एहसास हुआ. मैंने महसूस किया कि सीमा भी असहज थी. सीमा के नितंब मेरे लिंग से सटे हुए थे. सीमा मुझसे सटी हुयी थी. इसका एहसास होते हुए ही मेरे लिंग में तनाव उत्पन्न हो गया. इस तनाव की अनुभूति सीमा को बखूबी हो रही थी पर वह कुछ नहीं बोल रही थी. धीमे-धीमे यह तनाव असहनीय हो गया. मैंने अपनी कमर को थोड़ा पीछे कर अपने लिंग को आरामदायक स्थिति में लाने की कोशिश की. पर लिंग और तन चुका था. सीमा से चिपकने पर लिंग सीधा सीमा की कमर में छेद करने को आतुर दिखा. सीमा ने हँसते हुए कहा…
“राजा जी जाग गए हैं क्या?”
“राजा जी” मैं सोच नहीं पा रहा था कि सीमा ने किसे राजा जी कहा. मैंने धीरे से कान में पूछा…
“कौन राजा जी” इस पर वह अपना हाथ पीछे ले गई और मेरे लिंग को अपनी उंगलियों से दबा दिया. मैं भी हँस पड़ा. मैंने उसके कान में धीरे से कह..

Smart-Select-20201218-111212-Chrome
“राजा जी अपनी रानी खोज रहे हैं.”
बात करते समय मैंने अपनी पजामी को थोड़ा नीचे कर दिया अब लिंग खुल खुल बाहर आ चुका था. मैंने अपनी कमर को और नीचे किया ताकि वो सीमा के की जांघों के बीच आ जाए. बाहर बच्चों की आवाज आ रही थी अब सीमा से यह स्थिति बर्दाश्त नहीं हो रही थी. उसने भी अपनी कमर को हिलाया तथा मेरे लिंग को अपनी जांघों के बीच जगह दे दी. उसकी जांघों और मेरे लिंग के बीच में उसकी पजामी थी. मेरा लिंग सीमा की जांघों के बीच से होते हुए बाहर की तरफ आ गया था. सीमा की जांघों का तनाव मेरे लिंग पर पड़ रहा था. वो मेरे इरादे जान चुकी थी तभी रोहन के दरवाजे पर आने की आवाज हुई.
सीमा में मुझे चिकोटी काटकर अपनी पकड़ से छुड़ाया और धीरे से रोहन की नजर में आ गयी और बाहर आकर खुद बोली
“चलो अब मानस भैया को ढूंढते हैं”.
सारे बच्चे उस कमरे से बाहर चले आए. मैंने भी अपनी पजामी ठीक की और मौका देख कर कमरे से बाहर आ गया और एक पेड़ के पीछे छुप गया.
अगली बार में मैं सीमा को देख नहीं पाया कि वह किधर छुपी है. वो अलमारी के पीछे नहीं थी. अतः मुझे भी किसी दूसरी जगह पर छुपना पड़ा. दूसरी बार का खेल समाप्त हो गया. तीसरे दौर में मैंने सीमा को फिर उसी कमरे की तरफ जाते देखा और मैं भी उसके पीछे हो लिया. मैंने बिना समय गवाएं फिर से सीमा को पीछे से पकड़ लिया. सीमा के सहयोग से पहले वाली स्थिति पुनः बन चुकी थी. लिंग पूर्ण तनाव में था सिर्फ उसे सीमा के सहलाने का इंतजार था. सीमा ने मेरा इंतजार खत्म करते हुए अपनी हथेली मेरे लिंग पर पर रख दी और प्यार से सहलाने लगी. मैं सातवें आसमान पर पहुंच चुका था. मैंने अपना हाथ उसके पेट पर से हटा कर उसके स्तनों पर रखने की कोशिश की तो उसने मेरा हाथ रोक लिया. शायद वह निर्णय नहीं कर पा रही थी पर उसने मेरे लिंग को सहलाना जारी रखा. मैंने सीमा को छेड़ते हुए कहा
“ “राजा जी” अपनी “रानी” को खोज रहे है.” मेरे इस संबोधन से वो हँस पड़ी.
सीमा ने मुस्कुराते हुए कहा…
“यदि रानी की तलाश है तो आपको शादीशुदा महिलाओं के पास जाना पड़ेगा. यहां पर तो सिर्फ राजकुमारी है”
मैं उसकी बात समझ गया. मैंने उससे कहा..
“तुम चाहोगी तो राजकुमारी को रानी बना देते हैं”
“अभी राजकुमारी को रानी बनने में समय है”
“इस हिसाब से तो मेरा राजा भी अभी राजकुमार ही है” वह खिलखिला कर हंस पड़ी और अपनी हथेली से शिश्नाग्र पर दबाव बढ़ा दिया. मैंने फिर आग्रह किया किया कि राजकुमार राजकुमारी से मिल तो सकता है राजा रानी की तरह ना सही दोस्त की तरह ही सही. वह मेरा आशय समझ रही थी. उसने कहा..
“ठीक है.. पर अभी राजकुमारी घायल है. तीन-चार दिन बाद मुलाकात कराएंगे.”
मैं स्खलित होने ही वाला था तभी रोहन के आने की आहट हुई. सीमा मुझे छोड़कर पहले की भांति अलग हो गयी. रोहन ने फिर से उसे पहचान लिया. वह रोहन को लेकर कमरे से बाहर आ गयी, ताकि हम दोनों एक साथ थे यह बच्चे न जान सकें और मुझे समय मिल सके अपने आप को व्यवस्थित करने का. सीमा की यह समझदारी मुझे बहुत प्रभावित कर गई थी.
हम सब बाहर आ गए थे. खेल खत्म हो गया था, सब लोग जाने लगे मैंने सीमा को रोकना चाहा पर वह हंसते-हंसते जाने लगी. मैं उसके पीछे भागा और बिलकुल पास पहुचने पर वो रुकी. मैंने उससे पूछ लिया
“राजकुमारी घायल कैसे हो गयी?”
उसने मुझे पलट कर देखा और हंस कर बोली..
“आप बुद्धू हैं…..आराम से सोचियेगा” कह कर वो अपने घर भाग गई.

गुरुदक्षिणा की तैयारी
मैं मन मसोसकर रह गया पर आज सीमा के साथ गुजारे पलों ने मुझे गर्मियों की छुट्टियों के यादगार बनने की उम्मीदें बढ़ा दी.
मैं वापस अपने कमरे में आकर सीमा द्वारा दिए गए इन नए संबोधनों के बारे में सोचने लगा. मैं मन ही मन खुश भी हो रहा था कि सीमा मुझसे खुलकर बात कर रही थी. राजकुमारी के घायल होने की बात मैं अभी भी नहीं समझ पा रहा था. अचानक मुझे महिलाओं के रजस्वला होने की बात याद आई. मुझे अब पूरी बात समझ में आ गई. सीमा का यह अंदाज निराला था. मेरे लिए आज का दिन बहुत अच्छा था. धीरे-धीरे दिन गुजर गया अगले 2 दिन 3 दिनों तक सीमा रोज मेरे पास आती. मैं उसकी पढ़ाई में दिल से मदद करता और कभी कभी हम इधर उधर की बातें करते और बच्चों के साथ खेलते. कभी-कभी बातों ही बातों में राजकुमार और राजकुमारी का जिक्र हो जाता. मैंने भी अपने आपको नियंत्रित कर लिया था कि जब तक राजकुमारी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाती तब तक इंतजार करूंगा. मेरे राजकुमार का क्या था उसकी तो रोज रात में मालिश हो जाया करती थी और वह वीर्य दान कर सो जाया करता था. मैंने सीमा को अपने नोट्स एवं अपनी किताबें भी दी ताकि वह पढ़कर इसका लाभ ले सके. वह मेरे से बहुत प्रभावित थी. उसने मुझसे कहा…
“आपने मेरी पढ़ाई में इतनी मदद की है. आप मेरे गुरु है.”
मैंने मुस्कुराकर पूछा
“गुरुदक्षिणा कब मिलेगी?” उसने सर झुका लिया और अपनी उंगलियों पर कुछ गिन कर बोली..
“परसों” इतना कह कर वो मुस्कुराते हुए सीढियों की तरफ बढ़ गई. परसों का दिन मेरे लिए क़यामत का दिन होने वाला था.
आपको यह जानकर हर्ष होगा की इस उपन्यास को लिखते समय सीमा मेरे साथ थी. उसने उस समय अपने मन में चल रही भावनाओं को मुझे बताया . आगे की कहानी को मैं उसकी उसकी यादों के अनुसार प्रस्तुत करता हूँ.

[मैं सीमा]
सोमवार का दिन था. मेरी राजकुमारी अब पूरी तरह ठीक हो चुकी थी. पिछली दोपहर से ही मैं सामान्य हो चुकी थी. आज सुबह नहाने के पश्चात मैंने बहुत ध्यान से अपनी राजकुमारी का निरीक्षण किया. कहीं पर भी लालिमा नहीं थी. मैं खुश थी और आज होने वाले नए अनुभव के लिए अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी.
अभी दोपहर होने में दो-तीन घंटे का वक्त था. मेरी राजकुमारी के चारों तरफ हल्के हल्के बाल आ गए थे जैसे उसकी दाढ़ी मूछ आ गई हो. बाल बहुत कोमल थे. मैंने आज तक इन बालों को नहीं हटाया था. पर आज राजकुमारी, राजकुमार से मुलाकात करने वाली थी. एक बार के लिए मैंने सोचा कि इन्हें हटा दूँ पर संसाधनों की कमी की वजह से यह विचार त्याग दिया। मैंने मानस भैया के राजकुमार के लिए एक अलग ही गुरुदाक्षिणा सोच रखी थी.

राजकुमारों को काबू में रखने की कला मुझे बखूबी आती थी. दरअसल चंडीगढ़ में मेरा एक दोस्त सोमिल था. (आज के समय में आप उसे ब्याय फ्रेंड कह सकते हैं) वो मेरे स्कूल में ही पढ़ता था एवं मेरे पड़ोस में रहता था.. मैंने उसके राजकुमार की पिछले २ सालों में बहुत सेवा की थी. लेकिन मैंने उसे अपनी राजकुमारी से नहीं मिलवाया था. उसने मुझे हर जगह छुआ था पर हमेशा कपड़ो के साथ. मैंने उससे यही करार किया हुआ था. दरअसल वो इन मामलों में संयम खो बैठता था. मुझे हमेशा डर लगता था की कही वो मेरी राजकुमारी को देख कर उग्र न हो जाए और मेरा कौमार्य भंग कर दे. मेरी राजकुमारी पिछले दो वर्षों से अक्सर समय-समय पर लार टपकाती रहती थी और मुझे उस समय बहुत अच्छा भी लगता था. इस दौरान मैं तकिया या रजाई को अपने पैरों के बीच फंसा लेती और थोड़ा बहुत उछल कूद करने से मेरी राजकुमारी ख़ुशी के आसूं बहती और मैं आनंदित हो जाती.

मानस मानस भैया अपेक्षाकृत शांत स्वभाव के थे. वो सामाजिक ताने बाने को समझते थे. पहले भी जब मैंने मानस भैया के राजकुमार को हाथ लगाया था तभी मैं जान गयी थी की वो उस समय तक हस्तमैथुन भी नहीं करते थे. उस दिन भी उनका सुपाडा ठीक से नहीं खुल पाया था. आज भी मेरे मन का कौतूहल वैसा ही था. अब मानस भैया का राजकुमार कैसा होगा इसकी मैं कल्पना नहीं कर पा रही थी.

मैं अच्छे से तैयार हुई. मैने रेड कलर की टॉप और ब्लैक कलर की एंकल लेंथ स्कर्ट पहनी. अलमारी से जाकर लाल रंग की पेंटी निकाली और मन ही मन मुस्कुराने लगी. मम्मी के कमरे में जाकर अपने बाल बनाएं परफ्यूम लगाया और सजधज कर तैयार हो गइ. अभी दोपहर में समय था . मैं अभी भी मानस भैया से मिलने के लिए उचित जगह की तलाश कर रही थी. मानव भैया का कमरा एक आदर्श जगह थी परंतु वह मेरी राजकुमारी के साक्षात दर्शन करते मैं इसके लिए तैयार नहीं थी. मैंने अभी तक सेक्स करने का मन नहीं बनाया था. मैं अपने कौमार्य को मैं हर हाल में सुरक्षित रखना चाहती थी. उनके राजकुमार को अपने हाथों में लेने के बाद मुझे यह महसूस हो गया था कि सारे राजकुमार एक जैसे नहीं होते और इस राजकुमार के लिए मुझे कुछ खास करना पडेगा.

चार पांच दिन पहले आलमारी के पीछे मानस भैया के राजकुमार से मुलाकात को याद करते समय मुझे नया विचार आया. और मैं उठकर मुस्कुराते हुए मानस भैया के घर की तरफ बढ़ चली . मैंने सबकी नजर से बचकर दालान में पड़ी अलमारी के पीछे वाली जगह को थोड़ा साफ किया. वहां पर एक पुराना ड्रम ( स्टूल की उचाई का) पड़ा हुआ था जिसे साफ कर मैंने अलमारी के पीछे रख दिया. मैं खुश होकर मुस्कुराते हुए मानस भैया के कमरे में गई मानस भैया मुझे बहुत अच्छे लगते थे मैं मन ही मन उन्हें बहुत प्यार करती थी पर इस समय मेरे ऊपर सिर्फ हवस हावी थी.

गुरुदक्षिणा
मैं मानस भैया के कमरे में पहुंची वो मुझे देखते ही बोले.. .
“सीमा मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था.”
मैंने मजाक किया
“सच में मेरा या राजकुमारी का?” वो हँस पड़े.
“सच में आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो.”
मैं मुस्कुरा दी. मैंने यह बात नोटिस की थी इस बार मेरे गांव आने के बाद से मानस भैया मेरे ऊपर बहुत ध्यान देते थे. हम सब इधर-उधर की बातें करने लगे. तभी मेरा छोटा भाई साहिल जल्दी-जल्दी सीढ़ियां चढ़ता हुआ आया और बोला आप लोग नीचे चलिए सब लोग आपका इंतजार कर रहे हैं.
छुपन छुपाई का खेल शुरू हो रहा था. पहले दौर में छाया चोर बनी सभी बच्चे इधर उधर छुपने चले गए. मैं भी मानस से नजर बचाकर दालान की जगह सीढ़ी रूम में जाकर छुप गई . मैंने मानस को दालान की तरफ जाते देखा मुझे हंसी छूट गयी. वो अधीर हो रहे थे. धीरे-धीरे छाया ने सब को ढूंढ लिया. मानस मुझे अलमारी के पीछे न पा कर बगल वाले कमरे में छुप गए. छाया ने अंत में उन्हें भी ढूंढ लिया . अगले दौर के लिए सबका प्यारा रोहन चोर बना. रोहन बहुत छोटा था और सब को ढूंढने में ज्यादा समय लगाता था यही मानस भैया और मेरे लिए उपयुक्त समय था . बच्चों के इधर-उधर छुपने के बाद मैं अलमारी की तरफ गई मानस ने मुझे जाते हुए देख लिया था और वो धीरे से मेरे पीछे पीछे आ गए. मैं अलमारी के पीछे धड़कते ह्रदय के साथ खड़ी थी. उन्होंने पीछे से आकर बिना कुछ कहे मुझे पकड़ लिया. आज उनके दोनों हाथ मेरे पेट पर ही थे मेरा मुंह ढकने की कोई आवश्यकता नहीं थी. वह भी जान रहे थे कि मैं स्वेक्छा से यहां आई हूं. यहाँ पर्याप्त अँधेरा था.
वासना अँधेरे में जवान होती है.
वह मेरी पीठ और गले को चूमने लगे मैं भी भाव विभोर हो गई थी. धीरे-धीरे उनके हाँथ एक दूसरे से दूर होने लगे. एक हाथ ऊपर की तरफ तो दूसरा नीचे की तरफ बढ़ने लगा. उनका बाया हाथ मेरे दाहिने स्तन पर आ चुका था और दूसरा मेरी राजकुमारी की तलाश कर रहा था. उनके उतावलेपन को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे यह उनके लिए भी पहली बार था. उनका राजकुमार अब पूरी तरह तन चुका था और मेरी कमर में गड रहा था. उन्होंने पिछली बार की तरह अपनी कमर पीछे की. मैं समझ रही थी कि वह अपने राजकुमार को आजाद कर रहे हैं. ठीक वैसा ही हुआ और उनका राजकुमार मेरे नितम्बों में अपने लिए उपयुक्त जगह ढूंढने लगा. मानस भैया ने अपने घुटने मोड़े. पर इस बार राजकुमार का मेरी जांघों के बीच आ पाना इतना आसान नहीं था. इस बार मैंने स्कर्ट पहनी हुई थी. वह परेशान थे मेरी स्कर्ट को ऊपर कर पाने की हिम्मत नहीं थी. मैंने उनकी मदद करने के लिए अपने ही हाथों से अपने स्कर्ट को ऊपर किया.
मानस में अपनी कमर को थोड़ा और नीचे किया अब उनका राजकुमार मेरी नंगी जांघों के स्पर्श से उछलने लगा. उसकी धड़कन मुझे अपने जांघो पर महसूस हो रही थी. मानस भैया ने मुझे अपनी तरफ और तेजी से चिपका लिया था. धीरे-धीरे उनका राजकुमार मेरी जांघों के बीच से होते हुए सामने की तरफ आ चुका था. मेरी राजकुमारी और उसके बीच लगभग थोड़ी जगह ही बची होगी .
उनका बायां हाथ मेरे दाहिने स्तन को धीरे-धीरे सहला रहा था तथा दाहिना हाथ राजकुमारी को तलाश करते हुए उनके उनके राजकुमार से टकरा गया जहां पर मेरी उंगलियां उसे पहले से ही सहला रही थी. मैंने उनकी उँगलियों को अपनी राजकुमारी के सिर पर रखा और उनकी उंगलियों से उसे धीरे धीरे सहलाया ताकि वह समझ सके कि उन्हें क्या करना है. वो अंदाज़ पर ही अपनी उंगलियों को मेरी राजकुमारी के उपर फिराने लगे. पैंटी पहने होने के कारण उन्हें राजकुमारी का एहसास नहीं हो पा रहा था. परन्तु मैं नंगे राजकुमार के सुपाडे को अपनी उँगलियों से सहला कर आनंदित हो रही थी. राजकुमार और राजकुमारी दोनों ही लगातार खुशी के आंसू बहा रहे थे. मेरी पेंटी अब गीली हो चुकी थी तथा जांघों के बीच का हिस्सा भी चिपचिपा और गीला हो गया था. राजकुमार को सहलाने से मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. मानस ने अपना हाथ बारी-बारी से दोनों स्तनों पर घूमना शुरू कर दिया था. मेरा मन हुआ कि उनका हाथ पकड़ कर अपनी टॉप के नीचे से अपने स्तनों पर रख दूं पर मेरी हिम्मत नहीं हुई. धीरे-धीरे उनके लिंग का तनाव चरम पर पहुंच रहा था और उनकी धड़कन बढ़ती जा रही थी. जैसे जैसे उनके लिंग में उत्तेजना बढ़ रही थी उसी तरह उनके हृदय की गति भी बढ़ रही थी. मेरे पीठ पर उनकी धड़कन का एहसास लगातार हो रहा था.
थोड़ी ही देर में मैंने उनकी उंगलियों को अपनी पेंटी के इलास्टिक को पकड़कर नीचे खींचते हुए पाया. मैं घबरा रही थी पर मैंने उन्हें इस बात का एहसास नहीं होने दिया. जैसे ही पैंटी मेरे नितंबों से नीचे आई मैंने उनका हाथ पकड़ लिया. उन्होंने बिना किसी जोर-जबर्दस्ती के पैंटी को वापस ऊपर कर दिया और वापस मेरी राजकुमारी को सहलाने लगे. मैं उनके इस व्यवहार से बहुत खुश थी. उपहार स्वरूप मैंने उनका बाया हाथ स्तनों पर से हटा कर अपने टॉप के अंदर कर दिया. इससे पहले कि वह मेरे नग्न स्तन छू पाते बाहर रोहन के आने की आहट हुई. मैं बहुत अस्त व्यस्त थी मैंने मानस को बोला आप जाइए मैं रुकती हूँ. उन्होंने अपने राजकुमार को अंडरवियर में व्यवस्थित किया और अपने कपड़े ठीक करते हुए रोहन की निगाह में आ गए. रोहन पकड़ लिया - पकड़ लिया करते हुए खुश हो गया. वह सब बच्चों को लेकर बाहर चले गए मैंने अपने आप को ठीक किया. आधी चढ़ी पैंटी के बारे में सोचने लगी. मेरे मन में मानस की शराफत नया उत्साह भर रही थी. मैंने हिम्मत करके अपनी पेंटी उतार दी और उसे वहीं स्टूल जैसे पुराने ड्रम पर रख दिया. अपने टॉप को नीचे और उसके सिलवटों को दूर करने के बाद मैं भी बाहर आ गई. पहली बार बिना पैंटी के सिर्फ स्कर्ट में मैं दालान के बाहर खड़ी थी मेरी राजकुमारी और जांघों के बीच का हिस्सा गीला हो चुका था. बाहर चलने वाली हल्की हल्की हवा वहां ठंडक का अहसास करा रही थी.
इस बार मेरा छोटा भाई साहिल चोर बना था. सारे बच्चे फिर अपनी अपनी जगह पर छिपने चले गए. और मैं भी वापस अलमारी के पीछे आ गई. मानस भी बिना देर किए वापस मेरे पास आ गए. आने के पश्चात उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी टॉप के नीचे से मेरे स्तनों पर ले गए तथा दोनों स्तनों को पकड़ लिया.
उनके हाथों का नग्न स्पर्श पाकर स्तन और कड़े हो गए. स्तनों के निप्पल पत्थर की तरह हो गए थे. जब उनकी उंगलियों निप्पलों से टकराती मेरी राजकुमारी कांप उठती तथा शरीर में एक अजीब सी लहर दौड़ जाती. नग्न स्तनों की संवेदना से उनका लिंग वापस पूरे उफान पर आ चुका था और मेरी जांघों के बीच आने की कोशिश कर रहा था. उनके दोनों स्तनों पर व्यस्त थे. मैं नहीं चाहती थी कि वह अपना हाथ हटाए इसलिए मैंने खुद ही अपनी स्कर्ट ऊपर कर दी. अब उनका लिंग मेरी जांघों के बीच से सामने की तरफ आने लगा. पैंटी हट जाने की वजह से लिंग का रास्ता बिल्कुल आसान हो गया था वह मेरी योनि से सटते हुए आगे की तरफ आ गया था. उनके लिंग से निकल रहे द्रव्य ने मेरी जांघों के बीच के उस हिस्से को पूरी तरह गीला कर दिया था. राजकुमार राजकुमारी के बिल्कुल समीप पहुंच चुका था. अभी तक मानस को मेरी पैंटी हटाने का एहसास नहीं था पर लिंग के चारो ओर मिल रही चिकनाहट से वो उत्तेजित थे.
मानस अपना एक हाथ स्तनों से हटाकर राजकुमारी के समीप ला रहे थे. नाभि के नीचे आते आते मेरी धड़कनें तेज हो गई. जैसे ही उनकी उँगलियाँ ने आगे का सफर किया उन्हें कोई रूकावट नहीं मिली. पैंटी पहले ही हट चुकी थी. पैंटी के हटने का एह्साह होते ही मानस ने मेरे गाल पर चुम्बनों की बारिश कर दी तथा कान में धीरे से कहा “ थैंक यू”. मैंने भी अपनी उंगलियों से राजकुमार को सहलाकर उन्हें खुस किया. उनकी उंगलियां मेरी राजकुमारी के बिल्कुल समीप पहुंच चुकीं थी. धीरे-धीरे यह इंतजार खत्म हो गया उनकी उंगलियां मेरे दरार के बीच में पहुंच गयीं. उत्तेजना अपने चरम पर थी इस अद्भुत और नई चीज को उनकी उंगलियां महसूस करना चाह रहीं थीं.. जैसे ही वह दरार में थोड़ा नीचे गए उनकी तर्जनी मेरी राजकुमारी के मुह में चली गयी. मैंने उन्हें धीरे से कहा…
“अन्दर मत ले जाइएगा.” वो समझ गए. मैं भी उनके लिंग को प्यार से सहलाने लगी. मुझे याद आया की मानस अभी तक अपने घुटने मोड़े हुए थे. मैंने “एक मिनट” कहकर अपने आप को उनसे अलग किया. तथा उनकी तरफ घूमी. उनका राजकुमार अब काफी बड़ा हो गया था. वह अँधेरे में भी आकर्षक लग रहा था. मैंने उन्हें स्टूल पर बैठने को कहा.
मानस स्टूल पर बैठ चुके थे. उन्होंने अपने राजकुमार को व्यवस्थित कर लिया था. मानस भैया ने अपनी पीठ दीवाल से लगा ली थी और वह आरामदायक स्थिति में आ गए थे उनकी कमर अब स्टूल पर थी. उनका नाभि प्रदेश बिल्कुल सपाट था. उनका राजकुमार उर्ध्व स्थिति में छत की तरफ देख रहा था. मैंने वापस अपनी पीठ मानस भैया की तरफ की तथा अपना एक पैर उठाकर उन्हें अपने दोनों पैरों के बीच ले लिया. अपने आप को संतुलित करते हुए मैंने अपनी कमर को नीचे करना शुरू किया. जैसे जैसे मैं नीचे आ रही थी मेरी धड़कन तेज हो रही थी. और नीचे आने पर राजकुमार ने मेरी राजकुमारी को छू लिया. राजकुमारी पूरी तरह प्रेम रस में डूबी हुई थी. राजकुमार भी अपने चेहरे पर प्रेम रस लपेटे हुए था. मैंने राजकुमार का मुखड़ा अपनी राजकुमारी के मुंह में जाने दिया. दोनों ने एक दूसरे का स्पर्श किया. मैंने महसूस किया की मानस भैया का हाथ मेरे नितंबों को सहला रहा है. इस उत्तेजना की घड़ी में भी मैं पूरी तरह सतर्क थी. मैं किसी भी स्थिति में अपना कौमार्य नहीं खोना चाहती थी .
कुछ ही देर में राजकुमारी के प्रेम रस में राजकुमार पूरी तरह डूब चुका था. मेरी जांघों पर भी चिपचिपपा सा महसूस हो रहा था. मेरे पैर अब दर्द करने लगे थे. मैंने राजकुमार को थोड़ा आगे किया और मानस की नाभि और लिंग के बीच के भाग में बैठ गई. मैंने पीछे मुड़ कर मानस की तरफ देखा वह आनंद में डूबे हुए थे. उन्होंने अपने दोनों पैर आपस में सटा लिए थे ताकि मुझे अपने पैर ज्यादा न फैलाने पड़े. उनके हाथ वापस मेरे स्तनों तक आ चुके थे. मेरी उंगलियां उनके राजकुमार को छू रही थी. मैंने अपनी हथेली और योनि के बीच में एक रास्ता जैसा बना दिया था. उनका राजकुमार इसी पतली गली में उछल कूद कर रहा था. मैं इस गली की चौड़ाई कम ज्यादा करती और वह खुद उछलने लगता. बीच-बीच में मैं उसे राजकुमारी के पास भी ले जाती तथा दोनों की मुलाकात कराती. मिलन के समय राजकुमार का उछलना तेजी से बढ़ जाता. (जिन्दा मछली पकड़ते समय मुझे कभी कभी इस समय की याद आती है.)
मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था मैंने राजकुमार को अपनी राजकुमारी के मुख पर रगड़ना शुरु कर दिया. अपनी हथेली से राजकुमार को सहारा देकर अपनी राजकुमारी को आगे पीछे करने लगी. मेरी कमर में हरकत देख कर मानस सतर्क हो गए थे. राजकुमार मेरे हाथों से भी ज्यादा मुलायम था उसके स्पर्श से राजकुमारी बहुत प्रफुल्लित थी और थोड़ी देर में उसका कंपन भी अतिरेक तक पहुंच गया. मेरे पैर तनने लगे थे. मैंने मानस भैया के पैरों में भी तनाव देखा. उनकी पकड़ मेरे स्तनों पर और ज्यादा हो गई थी. कुछ ही पलों में राजकुमार में लावा उड़ेल दिया. राजकुमारी से भी खुशी के आंसू झर झर बह रहे थे. मेरे छोटे हाथ इतने सारे काम रस को समेट पाने में असमर्थ थे. मानस का भी हाथ भी कुरुक्षेत्र में आ गया था उनका हाथ भी प्रेम रस से सराबोर हो चुका था. उन्होंने राजकुमारी के चेहरे पर उंगलियां फेरी पर मैंने उनका हाथ पकड़ लिया. राजकुमारी बहुत संवेदनशील हो गई थी. आज उसके साथ कुछ अद्भुत हुआ था. वह अभी तक फड़क रही थी.
मैं धीरे से उठी. मानस भी उठ गए. मैंने स्टूल पर पड़ी अपनी पेंटी को उठाया. मैंने उससे मानस के राजकुमार को पोछा इसके बाद मैंने अपनी राजकुमारी तथा जांघों को साफ किया. पेंटी लगभग आधी गीली हो चुकी थी. मेरे हाथ पोछे के बाद मानस ने भी पैंटी मांगी. हाथ पोछने के बाद वह पेंटी को अपनी जेब में रखने लगे. मैंने उनका हाथ पकड़ने की कोशिश की तो वह बोले…
“ मैं इसे रख लेता हूं” मैंने पूछा ..
“क्यों “ तो उन्होंने कहा
“गुरु दक्षिणा”
यह सुनकर मैं निरुत्तर हो गयी तथा बाहर आ गई. साहिल मुझे देख कर खुस हो गया मैंने खेल समाप्ति की घोषणा की तथा अपने घर आ गई.
ग्रामीण परिवेश में भी काम वासना उसी तरह फलती फूलती है जिस तरह शहरों और विदेशों में. अंतर सिर्फ इतना होता है की गांवों में सेक्स में इतना नंगापन नहीं होता.

राजकुमारी दर्शन
अपने रूम में पहुंचने के बाद मैं बिस्तर पर लेट गया. आज जो हुआ था उसकी कल्पना भी मुझे नहीं थी. लड़कियों का वह अंग इतना कोमल होता है मैं नहीं जानता था. उसकी राजकुमारी अत्यंत कोमल तथा रसभरी थी तथा दोनों स्तन भी अत्यंत कोमल थे. मैंने अपनी हाथ की उंगलियों को चुम्मा जो अभी-अभी राजकुमारी से मिलकर आयीं थीं. उंगलियों पर राजकुमारी के खुशी के आंसू तथा मेरा लावा दोनों मिले हुए थे. ब्लू फिल्मों में मैंने देखा था की नायिका वीर्य को अपने मुंह में ले लेती है तथा नायक नायिका की योनि अपनी जिह्वा से छूता है. मेरे लिए यह एक घृणास्पद क्रिया थी परंतु आज सीमा की योनि छूने के बाद उससे एक अजीब किस्म के आत्मीयता हो रही थी ना चाहते हुए भी मैंने उसका स्वाद को जानने की कोशिश की. मेरी उंगलियां गीली होकर वापस चिपचिपी हो गयीं पर स्वाद के बारे में मैं कोई राय नहीं बना पाया.
अगली सुबह सीमा नहीं आई. मैं समझ गया था कि वह कल की घटना के बाद मुझसे मिलने में कुछ समय अंतराल चाह रही थी. सीमा ने कल जो किया था वह उस उम्र की लड़की के लिए बहुत बड़ी बात थी. मुझे इस बात का पूरा एहसास था कि मेरे राजकुमार के अलावा उसने और भी राजकुमारों की सेवा की थी परंतु उसका कौमार्य सुरक्षित था ऐसा मुझे प्रतीत होता था. उसका पढ़ाई में संजीदा होना भी इस बात का परिचायक था. 2 दिनों बाद सीमा फिर आई अपनी पढ़ाई के संबंध में और कुछ बातें की. मैंने पूरी तन्मयता से उस विषय को समझाया वह खुश हो गयी. उसके संतुष्ट होने के बाद मैंने उसे छेड़ा “राजकुमारी कुशल मंगल से तो है ना?” वह हंसने लगी और बोली…
“आपके राजकुमार ने उसे इतनी चुम्मियाँ ली है कि वह बार-बार खुशी के आंसू बहाती रहती है” मैं उसकी भाषा समझने लगा था. आज वह फिर से स्कर्ट और टॉप पहन कर आई थी छोटा रोहन सीढ़ियों से आकर सीमा से बोला….
“दीदी आप 2 दिनों से खेलने नहीं आयीं. आज चलिए ना. मानस भैया आप भी आइए”
“ चलिए आइए बच्चों का मन रख लेते हैं” हम सब नीचे आ गए. सीमा को फिर अलमारी की तरफ छुपते देख मन प्रफुल्लित हो उठा था आज भी मैं उसी उत्साह के साथ सीमा के पीछे हो लिया. अब हम दोनों इस खेल के खिलाड़ी हो चुके थे. हमने 2 - 3 बार खेल के दौरान अपनी काम पिपासा बुझाई और वापस आ गए. सीमा ने इस बार हमारे प्रेम रस को अपनी स्कर्ट में ही पोछ लिया आज वह पैंटी नहीं पहने हुयी थी.
अगले कुछ दिनों तक सीमा लगातार मेरे पास आती रही और अपनी पढ़ाई के बारे में मुझसे कई चीजें समझती रही. कई बार वह पजामी पहन कर आती थी तो कई बार स्कर्ट पहनकर. मैंने नोटिस किया कि जब वह पजामी पहन कर आती थी तो छुपन छुपाई खेल से बचती थी और जब स्कर्ट पहन कर आती थी तो खुशी-खुशी छुपन छुपाई खेलने को तैयार हो जाती. मेरे लिए या इशारा बन चुका था कि यदि मैंने उसे स्कर्ट में आते हुए देखा तो मेरे राजकुमार को आज सुख मिलना पक्का लगता था. कुछ ही दिनों में हमारा यह सुख ख़त्म होने वाला था.
सीमा के दिल्ली जाने का वक्त करीब आ रहा था. सीमा ने बताया कि 3 दिनों के बाद वह वापस जा रही है. मैं दुखी हो गया मैंने कहा ….
“सीमा तीन-चार दिन और रुक जाओ मैं भी तुम्हारे साथ वापस चलूंगा”..
“उसने कहा मानस भैया पापा टिकट करा चुके हैं” उसने मुझे खुश करने के लिए मेरे साथ बिताए पलों को याद किया और कहा ..
“आपके राजकुमार ने तो राजकुमारी से मुलाकात कर ली”
मैंने उसे याद दिलाया कि उसने मुझे राजकुमारी को दिखाने का वचन 2 वर्ष पूर्व दिया था. वह पशोपेश में पड़ गयी. हमारे पास बहुत कम वक्त बचा था सीमा ने कहा अच्छा मैं कोशिश करूंगी . 2 दिन बाद अचानक सुबह-सुबह माया जी की तबीयत खराब हो गई उनके पेट में दर्द हो रहा था. पापा उनको शहर में डॉक्टर से दिखाने ले गए छाया भी साथ में जाने की जिद करने लगी और वह भी गाड़ी में बैठ कर चली गयी. पापा ने कहा…
“ बेटा कुछ बना कर खा लेना हम लोग दोपहर तक लौट आएंगे” जाते समय मंजुला चाची भी वहां थीं. वो पापा की बात सुनकर यह समझ गयीं थीं कि मैंने नाश्ता नहीं किया है .
[मैं सीमा]
चाची ने कहा…
“ मानस ने नाश्ता नहीं किया है. तुम जाकर मानस को नाश्ता दे आवो वह घर पर अकेला है” मैं यह सुनकर बहुत खुश हो गई और बोली.. “चाची मैं नहा कर जाती हूं उन्होंने कहा बेटा वह भूखा होगा मैंने कहा बस 5 मिनट लगेगा”
“ ठीक है” मैं फटाफट बाथरूम में चली गयी. बाथरूम जाने के बाद मैंने यह निर्णय कर लिया कि आज अपनी राजकुमारी के दर्शन मानस भैया को करा ही दूंगी पता नहीं फिर कभी मौका मिले ना मिले. अपनी राजकुमारी की दाढ़ी मूछें मैं 2 दिन पहले ही साफ कर चुकी थी. मेरी राजकुमारी अब अत्यंत सुंदर और चमकदार लग रही थी. शीशे में मैं खुद को देखकर शरमा गयी. मैंने अपनी राजकुमारी को साबुन से धोया और नहाकर वापस बाहर आ गयी. मैं सीधा मम्मी के कमरे में गई अपनी पहले दिन वाली स्कर्ट और टॉप पहनी. मम्मी का वही परफ्यूम लगाया और चाची के पास आकर बोली..
“लाइए चाची दीजिए” चाची ने मानस भैया के लिए नाश्ता निकाल कर रखा था जिसे लेकर में धड़कते ह्रदय के साथ मानस भैया के पास पहुंच गयी. मानस भैया थोड़े दुखी थे क्योंकि माया जी और उनके पापा सभी लोग शहर गए हुए थे. मैं उनकी स्थिति समझ सकती थी. मैंने कहा…
“छोटी मोटी तकलीफ होगी. वह जल्दी ठीक हो जाएंगीं आप प्रेम से नाश्ता कर लीजिए.” मैंने उन्हें अपने हाथों से एक रोटी खिलाई. मैं अभी अभी नहा कर आई थी वह मुझे एकटक देख रहे थे. नाश्ता करने के बाद मैंने उनसे कहा कि कल मैं चली जाऊंगी. वो मेरे जाने की बात से ज्यादा दुखी हो गए. मैंने उनके हांथों को अपने हाँथ में ले लिया और उनसे कहा…
“मेरी राजकुमारी आपको दर्शन देना चाहती है” उनका गम एक पल में गायब हो गया. तभी फ़ोन की घंटी बजी. मानस नीचे गए और वापस आकर बताया ..
“पापा का फोन था. माया जी ठीक हैं. ड्रिप लग रहा है एक दो घंटे में वापस घर आ जाएंगें.” वो खुश हो गए थे. उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में खींच लिया. मैंने उनसे कहा ..
“आप आखें बंद कर लीजिए जब मैं कहूं तब खोलिएगा.”
उन्होंने अपनी आखें बंद कर लीं. मैंने अपनी स्कर्ट उतार दी पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैंने अपना टॉप भी उतार दिया अब मैं उनके सामने पूर्ण नग्न खड़ी थी. मेरे मन में एक और शरारत सूची मैंने मानस भैया से कहा अपनी आंख बंद किए रहिए और अपने राजकुमार को भी आजाद कर दीजिए. उन्होंने मुस्कुराते हुए अपनी पजामी को अलग कर दिया. मैंने उनसे कहा आप अपना कुर्ता भी हटा दीजिए.मेरे कहने पर अब वह पूरी तरह मेरे सामने नग्न खड़े थे. मैं उन्हें देख कर मन ही मन उत्तेजित हो रही थी. वो नग्न अवस्था में और भी सुन्दर लग रहे थे. मैं भी नग्न थी पर वह मुझे देख नहीं पा रहे थे. उन्होंने ईमानदारी से अपनी आंखें बंद की थी. मैं बिस्तर पर बैठी हुई थी. मैं खड़ी हुई और उनसे कहा आप अपनी आंखें खोल सकते हैं.
आंखें खोलने के पश्चात उन्होंने अपने जीवन में पहली बार किसी लड़की को नग्न देखा था. उनका राजकुमार तो इस परिस्थिति की कल्पना में पहले ही तन कर खड़ा हो चुका था. राजकुमार पहले से बड़ा हो चुका था यह मैंने पहले ही नोटिस कर लिया था. वह मुझे एकटक देखते रहे मैं शर्म से अपनी आंखें नीचे की हुई थी पर मेरी आंखें उनके राजकुमार पर ही टिकी थी. लगभग एक मिनट तक देखने के बाद वह धीरे धीरे मेरे पास आए और बोले “सीमा तुम बहुत ही खूबसूरत हो मैं तुम्हें जी भर कर देखना चाहता हूँ.” मैंने फिर वही प्रश्न किया ..
“मैं या राजकुमारी?”
“ दोनों” उन्होंने मुझे सहारा देकर बिस्तर पर लिटा दिया. उन्होंने मेरे पैरों को छुआ. धीरे-धीरे उनके हाथ मेरी जांघों तक आ गए. उन्होंने अपने गाल मेरी जांघों पर सटा दिए. उन्होंने मुझसे पूछा ..
“ क्या लड़कियां इतनी कोमल होती है?” यह कहते हुए वह धीरे धीरे मेरे राजकुमारी के पास आ गये.
राजकुमारी को देखकर वह अपनी नजरें नहीं हटा पा रहे थे. वो बहुत देर तक उसे देखते रहे फिर मेरी अनुमति से उन्होंने उसे छुआ. मैंने जानबूझकर अपनी जांघें अलग कर दी. वह आश्चर्य से मेरी राजकुमारी को देखते रहे राजकुमारी अपनी लार टपका रही थी. वह धीरे धीरे अपना ध्यान नाभि प्रदेश से होते हुए स्तनों की ओर तरफ ले आये. मेरे दोनों स्तन तने हुए थे. मेरे स्तनों को वह पहले भी छू चुके थे इसलिए उन्होंने मेरी इजाजत के बिना ही उन दोनों को छू लिया. कुछ देर उन्हें सहलाने के बाद उन्होंने मेरे दोनों निप्पलों को भी अपनी उंगलियों में लेकर महसूस किया. वो अपने हाथ मेरी गर्दन से होते हुए मेरे चेहरे पर ले गए और दोनों हाथों में मेरा चेहरा लेकर मुझे माथे पर चूम लिया और बोले..
“ सीमा तुम मेरे जीवन की पहली लड़की हो जिसे मैंने नग्न देखा है मैं तुम्हारा ऋणी हूँ. काश तुम मेरी जीवनसंगिनी बन पाती.” उन्होंने मुझे होठों पर चुम्बन नहीं दिया. वह वापस मेरी राजकुमारी की तरफ गए तथा अपनी हथेलियों के दबाव से मेरी जाँघों को अलग कर रहे थे. मैं समझ गई थी वह क्या चाहते है मैंने उनका सहयोग करने के लिए अपने दोनों हाथों से अपने पैरों को पकड़ लिया और जितना संभव हो सकता था उसे फैला दिया. . राजकुमारी की दरार अब बढ़ गई थी वो पूरी तरह रस में डूबी हुई थी ठीक उसी तरह जिस तरह
किसी ताजे फल में चीरा लगाने के बाद उस का रस छलक कर बाहर आ जाता है.

मानस ने मेरी तरफ देखा और अपनी उंगलियों को मेरी राजकुमारी के पास ले आये और मेरी इजाजत के लिए धीमी आवाज में पूछा…
“क्या मैं इसे छू सकता हूं?” मैंने सिर हिला कर इसकी सहमति दे दी. वह अपनी उंगलियों से राजकुमारी का मुआयना करने लगे. पहले उन्होंने अपनी तर्जनी से मेरी दरार को ऊपर से नीचे तक छुआ. ऐसा लग रहा था जैसे वो उसके रस को बराबर से बांट देना चाहते हैं. उनकी तर्जनी पूरी तरह गीली हो गई थी. अगली बार उन्होंने तर्जनी का दबाव बढ़ाया तो दरार अपने आप फैल गई उन्हें अंदर और भी गीलापन महसूस हुआ. हमारी उंगलियों के 3 भाग होते हैं उन्होंने उन्होंने अपनी तर्जनी का पहला भाग मेरी दरार के अंदर डाल दिया था. अब उनकी तर्जनी नीचे से ऊपर की तरफ आ रही थी. जैसे ही उनकी उंगली मेरी भग्नासा से टकराई मैं तड़प उठी. मेरे पैरों की हरकत से उन्हें मेरे इस भाग की अहमियत का अंदाजा हुआ. उन्होंने अपनी उंगली पीछे कर ली. भग्नासा से नीचे आने के बाद तर्जनी राजकुमारी के मुख में प्रविष्ट होने लगी. वह आगे बढ़ना चाह रहे थे उन्होंने अपनी तर्जनी का दबाव बढ़ाया. यदि मैं उन्हें न रुकती तो वह अपनी अज्ञानता में अपनी तर्जनी से ही मेरा कौमार्य भेदन कर देते. वह अपनी इन क्रियाओं के दौरान बीच-बीच में मेरी तरफ देखते थे शायद मेरी रजामंदी के लिए.
मैंने उन्हें सिर हिला कर मना कर दिया था उन्होंने मेरी दरार के दोनों होंठों को अब अपने दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी तर्जनी से और फैलाने की कोशिश की ताकि वह अनजानी गुफा के रहस्य से परिचित हो सकें. दरार को फैलाते ही अंदर गुलाबी गुफा दिखाई दे गई.
गुफा के शीर्ष पर स्थित भग्नासा को भी उन्होंने बहुत ध्यान से देखा. उनका अंगूठा गुफा में प्रवेश करने को आतुर हो रहा था. मैंने इशारे से उन्हें रोक दिया. उन्होंने अपने हाथों के सहारे मुझे करवट लेटने को कहा. फिर धीरे-धीरे मुझे पेट के बल लिटा दिया. कभी कभी मुझे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे कोई डॉक्टर मेरा मुआयना कर रहा हो. लड़कियों के शरीर में कोमलता हर जगह होती है. मेरे नितंब देखकर बिना कहे उन्होंने अपने गाल उससे सटा दिए. उन्होंने अपने दोनों हाथों से नितंबों को नापा तथा उन को अलग कर अलग करके देखने की कोशिश. मेरे दूसरे द्वार को देखते ही उन्होंने अपेक्षाकृत तेज आवाज में बोला…
“दासी भी राजकुमारी जितनी ही खूबसूरत है” उन्होंने उसे छुआ नहीं और मेरी पीठ से सहलाते और गर्दन पर चुंबन करते हुए बालों के पास आ गए और मेरे कान में धीरे से कहा….

“सीमा मैं राजकुमारी को एक अभूतपूर्व उपहार देना चाहता हूं” मैंने कुछ नहीं बोला बस सहमति में सर हिला दिया. मानस भैया पर मुझे पूरा विश्वास था.
इस वक्त मैं भी वासना में पूरी तरह घिरी हुई थी. स्वीकृति पाकर वह मेरी पीठ सहलाते हुए नितंबों तक आ गए और मेरी कमर को पकड़ कर मुझे एक बार फिर पीठ के बल लिटा दिया. उन्होंने मुझे आंखे बाद करने के लिये कहा और अगले दो मिनट तक आंखें खोलने के लिए मना किया. मै उनके चमत्कारी उपहार की प्रतीक्षा करने लगी.
अचानक मेरी राजकुमारी की दरार में में किसी मोटी पर चिपचिपी चीज के रेंगनें का एहसास हुआ. वह दरारों के बीच से होते हुए मेरी भग्नासा तक गयी और वापस लौट आयी. यह बड़ा ही उत्तेजक एहसास था. एक दो बार इस यही क्रिया को दोहराने की बाद उस रहस्यमई चीजें ने गुफा के द्वार पर दस्तक दी और प्रवेश करने की कोशिश की. यह इतनी मुलायम थी कि मेरा कि मेरा कौमार्य भेदन इसके बस का नहीं था. मैं निश्चिंत थी. उसने मेरी गुफा में मैं प्रवेश पाने की भरसक कोशिश की तथा कुछ देर प्रयास करने के पश्चात मेरी भग्नासा पर थिरकने लगी. मेरी राजकुमारी के लिए यह बिल्कुल नई चीज थी. इस स्पर्श से राजकुमारी के अंदर धड़कन बढ़ गई थी. मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसका साथ देने के लिए उसके साथी भी आ गए हैं. मेरी राजकुमारी पर तीन तरफ से वार हो रहा था. वह रहस्यमई चीज कभी मेरी दरारों को फैलाती कभी भग्नाशा पर थिरकती. मैं उत्तेजना के चरम पर थी मेरी राजकुमारी स्खलित होने लगी. मैं अपने पैरों को अपने सीने की तरफ तेजी से खींचे हुए थी. उत्तेजना के अंतिम पड़ाव पर मैं अपने पैरों को छोड़कर अपने हाथ अपनी राजकुमारी तक ले जा रही थी ताकि उसकी मदद कर सकूं. . मेरे हाथ वहां तक मेरे हाथ वहां तक पहुंचते, इससे पहले वह मानस भैया के बालों से टकरा गए. मैं सारी बात समझ चुकी थी.

मैंने उनका सिर अपनी जांघों के बीच से हटाने की. उन्होंने अंत में मेरी राजकुमारी को दोनों होठों से चुंबन लिया एवं एवं अपनी जीभ को दरारों के बीच से ले जाते हुए मेरी भग्नासा को छू लिया. मैं एक फिर उछल पड़ी. उत्तेजना के बाद भग्नासा बहुत संवेदनशील हो जाती है. मैंने अपनी जाँघों को वापस सटा लिया और धीरे से उठ कर बैठ गयी.
मानस की आखों में वासना थी. उनके होठों पर मेरा प्रेम रस दिखाई पड़ रहा था. वह कमरे से सटे बाथरूम में चले गए मैं बिस्तर पर अभी भी नग्न बैठी थी. अब मेरी राजकुमारी की धड़कन शांत हो चुकी थी.
मैंने आज तक सोमिल ( मेरा चंडीगढ़ वाला दोस्त) के साथ इतने खुले मन से सेक्स नहीं किया था. हमने आज तक एक दूसरे को नग्न नहीं देखा था मैंने उसका हस्तमैथुन कई तरीकों से किया था तथा इसमें महारत हासिल कर चुकी थी. वह बार-बार अपना वीर्य मेरे शरीर पर गिराने को उत्सुक रहता पर मैं हमेशा उसे अपनी रुमाल या उसकी रुमाल में गिरा देती थी. कभी कभार लापरवाही बरतने पर उसने अपना वीर्य मेरे कपड़ों पर गिरा दिया था. दरअसल सोमिल में धीरज नहीं था. वह सेक्स को बहुत जल्दी जी लेना चाहता था. उसने मुझे नग्न करने के लिए कई प्रकार के प्रलोभन दिए थे पर मैं हमेशा टाल जाती थी. वह मुझसे बहुत प्यार करता था और मुझे सर आंखों पर बिठाये रखता था. उसने आज तक मेरी कोई बात नहीं टाली. मैं अपनी सोच में डूबी हुयी थी तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और मानस भैया बाहर आ गये.
उनके लिंग का तनाव कुछ कम हो गया था वह चेहरा धोकर वापस आए थे. वापस आकर वह वापस कुर्सी पर बैठ गए मुझे अभी तक नग्न देखकर उनकी उम्मीदें जाग उठी थी. मैंने अपने कपड़े क्यों नहीं पहने थे शायद वो यही सोच रहे थे. मैं धीरे से उठ कर उनके पास गई. पास पहुंच कर मैंने बिना उनसे पूछे उनके राजकुमार को अपने हाथों में ले लिया. राजकुमार तुरंत अपनी तनी हुई अवस्था में आ गया. मैंने देखा कि राजकुमार 2 सालों में पर्याप्त बड़ा हो गया था. सुनील के जितना तो नहीं पर उससे थोड़ा ही कम था. यह राजकुमार बहुत ही कोमल था. मैंने उसे प्यार से आगे पीछे करना शुरू किया. मैं स्टूल लेकर उनके दोनों पैरों के बीच बैठ गई और अपने हाथों से राजकुमार को खिलाने लगी मैंने अपनी सारी कार्यकुशलता और अनुभव जो सोमिल ने मुझे सिखाया था उसका प्रयोग करने लगी. हर बार नए अंदाज से मानस भैया खुश हो जाते तथा स्खलित होने के लिए तैयार हो जाते . फिर मैं उनका तनाव कम करती.
इस प्रक्रिया में राजकुमार के दोनों अन्डकोशों के वीर्य उत्पादन की गति बढ़ती जा रही थी. कुछ वीर्य तो राजकुमार के मुंह से लार की तरह टपक रहा था यही राजकुमार को सहलाने में मेरी मदद कर रहा था. जरूरत पड़ने पर मैं अपनी राजकुमारी के प्रेम रस का उपयोग भी कर ले रही थी. मानस भैया अपने हाथ कभी मेरे पीठ पर रखते कभी स्तनों पर. राजकुमार का उछलना बढ़ चुका था मानव भैया का चेहरा लाल हो चुका था और वह अपनी गर्दन को इधर-उधर कर रहे थे तथा कमर को ऊंचा कर राजकुमार को मेरी तरफ लाने का प्रयास कर रहे थे. मैं समझ गयी मैंने भी उन्हें ज्यादा परेशान ना करते हुए राजकुमार के शिश्नाग्र के नीचे वाले भाग पर अपनी रगड़ बढ़ा थी.
ज्वालामुखी का विस्फोट हो गया वीर्य की पहली धार मेरे गालों पर पड़ी. इस अप्रत्याशित विस्फोट से लिंग पर मेरी पकड़ ढीली हुई. उसके मुख पर जब तक मैं अपना हाथ लगाती तब तक वह वीर्य वर्षा प्रारंभ कर चुका था मैंने तुरंत ही अपनी हथेली राजकुमार के मुख पर रख दी अब वीर्य मेरी हथेलियों से टकराकर वापस राजकुमार पर ही गिर रहा था ऐसा लग रहा था जैसे उसका दुग्ध स्नान हो रहा हो. मानस भैया मेरे एक स्तन को तेजी से दबाए हुए थे तथा मेरे कंधे पर उनका हाथ कसा हुआ था. लिंग से हो रहे वीर्य प्रवाह के रुकने के पश्चात मैंने अपना हाथ लिंग पर से हटा लिया.
मानस भैया के चेहरे पर संतुष्टि थी. उनकी आंखें बंद थी मेरे हाथ हटाने के बाद उन्होंने आंखें खोलीं और मुस्कुराते हुए मुझे देखा उनका वीर्य मेरे गाल गर्दन तथा स्तनों पर गिरा हुआ था. मैं उसे पोछने के लिए किसी उचित वस्त्र की तलाश में इधर उधर देख रही थी तभी मानस भैया ने हाथ पकड़ कर मुझे अपनी जांघ पर बैठा लिया. उन्होंने अपने हाथों से मेरे शरीर पर गिरे हुए वीर्य को पोछा और स्तनों पर मलने लगे. मुझे थोड़ी असमंजस हो रही थी. मेरे गाल पर गिरा हुआ वीर्य मेरे होठों तक आ चुका था मानस भैया की नजर पड़ते ही तुरंत उन्होंने अपने हाथों से पोछा पर तब तक वीर्य मेरे होठों के रास्ते अंदर प्रवेश कर चुका था. वीर्य का अजीब सा स्वाद मेरे चेहरे घृणा का भाव उत्पन्न करता इससे पहले ही उनके होंठ मेरे होंठों पर आकर चिपक गए. जैसे अपने वीर्य की इस गुस्ताखी पर वह उसे सजा देना चाह रहे हैं और उसे मेरे मुख में प्रवेश करने से पहले ही रोक लेना चाहते हैं. मैं इस अप्रत्याशित कदम से हतप्रभ थी. इतने दिनों में कभी भी होठों पर चुंबन की स्थिति नहीं आई थी. मानस भैया मेरे होंठ चूस रहे थे मैं खुद को रोक नहीं पाई और इसमें सहयोग करने लगी.
राजकुमारी में एक अजीब सी हलचल हुई राजकुमार का तनाव भी मुझे महसूस होने लगा था. कुछ ही पलों में मैंने अपने आपको उनसे दूर किया. मेरी नजरें अभी भी झुकी हुई थी. मैंने अपने वस्त्रों की तरफ देखा जो उपेक्षित से पड़े हुए थे. शायद इस रासलीला में उनकी अहमियत नहीं रह गई थी.
मैं अपने वस्त्र लेकर बाथरूम में चली गई. वापस आकर मैंने देखा मानस भैया ने भी अपने कपड़े पहन लिए थे. अभी मैं बात कर पाने की स्थिति में नहीं थी. अतः मैंने नाश्ते की थाली उठाई बिना कुछ बोले अपने घर की तरफ आ गई . मानस भैया ने भी कुछ नहीं बोला पर मुझे छोड़ने सीढ़ियों तक आए. अंततः आज उन्होंने राजकुमारी के दर्शन उसके प्रेम रस एवं स्पर्श का पूर्ण आनंद लिया था.
युवाओं का शांत और सौम्य व्यवहार चंचल युवतियों की उत्तेजना जगाने में मददगार होता है. वो जब अपने साथी पर पूर्ण विश्वास कर लेतीं हैं तो नग्नता का उतना ही आनंद लेतीं है जितना कि उनके साथी युवा .

मंजुला चाची ने मुझे देखते ही पूछा
“बेटा कितनी देर लगा दी” मुझे लगा मेरी चोरी पकड़ी गई. मैंने तुरंत अपने कपड़े ठीक करते हुए कहा.
“चाची वह भैया से कुछ पढ़ाई की बातें होने लगी” मेरी यह दलील उन्हें पसंद ना आयी पर मानस भैया पे शक करने का कोई कारण नहीं था. मैं अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गई . आज की घटना से मेरे हृदय में मानस भैया के लिए प्रेम उत्पन्न हो गया था. मेरे मन में सोमिल और मानस को लेकर पशोपेश की स्थिति हो गई थी. मुझे यह भी नहीं पता था कि इसके बाद मानस भैया से अगले साल ही मुलाकात होगी कि नही .
मानस से 1 महीने में हुई अंतरंग मुलाकातों मैं उनका कामुक परंतु सहज व्यवहार मेरे दिल को प्रभावित कर गया था.
प्रेम में बिताए गए कुछ पल आपके दिल पर एक गहरी छाप छोड़ जाते हैं. कामुकता से जन्म लिए इस प्यार का अपना महत्व था.

[मैं मानस]
सीमा को छोड़कर आने के बाद मेरा ध्यान सिर्फ होंठों के चुम्बन पर केंद्रित हो गया था. होठों के चुम्बनों के दौरान सीमा ने मेरा बराबरी से साथ दिया था. मेरे मन में उसके प्रति प्यार पनप रहा था. 1 महीने में उसने मेरी काम पिपासा को एक अलग ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया था. पिछले 1 महीने में वह कई बार मेरा वीर्य प्रवाह कर चुकी थी. क्या उसकी भी कामुकता मेरे ही जितनी थी प्रबल थी? परंतु सीमा को यह सब कैसे पता था? यह मेरे लिए प्रश्न चिन्ह था.
मुझे ऐसा प्रतीत होता था कि वह किसी और के साथ भी यह सब करती है. परंतु राजकुमारी को छूने के दौरान उसकी प्रतिक्रिया अलग ही थी. इससे भ्रम होता था जैसे यह सब उसके लिए पहली बार हुआ था. . उसका कौमार्य सुरक्षित था यह बात अलग थी परंतु उसे अपनी प्रेमिका का स्थान दे पाना पाना कठिन था. लेकिन सीमा ने मेरे हृदय में अपना स्थान बना लिया था.
माया जी दोपहर के पश्चात डॉक्टर से मिलने के बाद घर वापस आ चुकी थी. उनकी तबीयत अब ठीक लग रही थी शाम तक सब कुछ सामान्य हो गया.
सीमा को वापस जाना था मैं बहुत दुखी था. अगले दिन मैं बाजार गया और उसके लिए कुछ गिफ्ट खरीदे. सीमा जाने से पहले मुझसे मिलने आई आज भी उसने स्कर्ट पहनी थी पर मुझे पता था आज हम दोनों को वह सुख नहीं मिलने वाला था. मैंने उसे अगले साल होने वाले एग्जाम के लिए शुभकामनाएं दीं और मुस्कुराते हुए राजकुमारी दर्शन के लिए उसका धन्यवाद क्या. उसनें मुस्कुराते हुए कहा..
“ आपने तो दासी के भी दर्शन कर लिए थे” मैं भी मुस्कुरा पड़ा. मैंने उसे गिफ्ट वाला बैग पकड़ाया. इससे पहले कि वह वापस मुड़ती मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया तथा उसके गालों को चुमते हुए होठों पर आ गया. होठों पर चुंबन लेने के पश्चात वह मुझसे अलग हुई आज कामुकता का कोई स्थान नहीं था. हमारी आंखें नाम थीं. मैं सीमा के साथ नीचे आ गया. सब सीमा का ही इंतजार कर रहे थे. वह अपनी जीप में पीछे बैठी और जीप धूल उड़ आती हुई नजरों से ओझल हो गई. मेरी सीमा भी इसी धूल में खो गई.. मै रुवांसा हो कर अपने कमरे में वापस आ गया




20201221-195125971

Great narration. Pahle update me hi maza aa gaya
 

Alok

Well-Known Member
11,360
28,019
258
Superb writing@Lovely Anand bhai.......
 
  • Like
Reactions: pawanqwert

Lovely Anand

Love is life
1,324
6,479
159
Superb writing@Lovely Anand bhai.......
प्रेम कथा कुछ ज्यादा लंबी तो नहीं हो रही है .....?
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
1,324
6,479
159
छाया और सीमा के प्रयास
(मैं मानस)

छाया और सीमा ने अपने कॉलेज के दोस्तों और फ्रेंड सर्किल में उस अनजान लड़की की तस्वीरें प्रसारित कर दीं थीं। छाया ने उस फोटो में से सोमिल की फोटो हटाकर सिर्फ उस लड़की की फोटो रखी थी वह समझदार तो थी ही।

हॉस्टल की लड़कियों का नेटवर्क जबरदस्त था। उन्होंने उस खूबसूरत लड़की की तस्वीर अपने सभी फ्रेंड्स को भेज दी यह सिलसिला चलता गया और अंततः हमें यह मालूम चल चुका था कि वह लड़की लक्ष्मी थी जो होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर चुकी थी। वह पैसों के लिए कभी-कभी वह हाई प्रोफाइल कॉल गर्ल बन कर कामुक गतिविधियां भी किया करती थी।

हमें जबरदस्त सफलता हाथ लगी थी छाया और सीमा अपनी इस सफलता से खुश थे। हमें सोमिल जल्द ही मिलने वाला था।

अब आगे .....
मैंने विवाह भवन के मैनेजर से मुलाकात कर उस बाथरूम को देखना चाहा। उसने मुझे बताया कि कल ही कोई आदमी उस कैमरे के बारे में पूछता हुआ यहां आया था। हम लोगों ने बाथरूम में चेक करवाया वहां पर कोई कैमरा नहीं था। हालांकि अभी परसों से ही उस लाइन के कमरों की पेंटिंग शुरू हुई है। हो सकता है पेंटर ने उसे निकाल कर कहीं रखा हो। कल पेंटर नहीं आया था मैं आज उससे बात करता हूं। मैंने वहीं इंतजार करना उचित समझा। कुछ देर बाद वह पेंटर आया और मुझे ले जाकर एक तरफ रखा हुआ वह कैमरा दिखाया। मैंने वह कैमरा ले लिया। मैंने होटल मैनेजर को धन्यवाद देते हुए वहां से बाहर आ गया। यह कैमरा एक वाईफाई कैमरा था जिसकी फोटो को दूर बैठे कंप्यूटर पर देखा जा सकता था। इस तरह का कैमरा बेचने वाले बेंगलुरु में कई दुकानें पर जिस एरिया में हम थे वहां पर सिर्फ दो दुकाने थीं। थोड़ा ही प्रयास करने पर मुझे इस कैमरा खरीदने वाले का नाम मालूम चल गया। यह कैमरा हमारे विवाह भवन में प्रवेश करने के ठीक एक दिन पहले खरीदा गया था और हो सकता है उसी दिन उसे इंस्टॉल भी किया गया हो।

जिस आदमी ने यह कैमरा खरीदा था मैं उससे भली भांति जानता था पर अभी उसका फोन नहीं लग रहा था। हम इस साजिशकर्ता के काफी करीब थे बस कुछ समय का इंतजार था।

उधर पुलिस स्टेशन में इस केस के नए इंचार्ज इंस्पेक्टर रॉबिन 30-32 वर्ष का नया और तेज नवयुवक था। वह डिसूजा का असिस्टेंट था जिसे अब इस केस का प्रभारी बना दिया गया था। डिसूजा के अब तक किए गए जांच के बारे में उसे पूरी जानकारी थी। उसने लक्ष्मण को पकड़ने की कोशिश तेज कर दी थी। उसे लक्ष्मण का सुराग भी मिल चुका था सिर्फ उसे पकड़ना बाकी था। सोमिल की खबर उसे नहीं लग पाई पर एक बार लक्ष्मण पकड़ में आ जाता तो सारी बातें स्वयं ही सामने आ जाती रॉबिन यह बात जानता था। मुझमे छाया और सीमा में कामुक संबंध है यह बात भी उसे मालूम थी पर वह जानता था की वयस्कों के बीच में इस तरह के संबंध होना सामाजिक अपराध तो हो सकता है पर कानूनी नहीं। वह इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था।

उसने डिसूजा की जांच की इस दिशा को वहीं पर रोक दिया था। वह सिर्फ और सिर्फ कातिल तक पहुंचना चाहता था और पैसों के गबन करने वाले को पकड़ना चाहता था। गुप्तचर की सूचना के अनुसार लक्ष्मण मुंबई में था। रोबिन और उसकी टीम ने उसे मुंबई से गिरफ्तार कर लिया और हवाई जहाज से बेंगलुरु ले आए। शर्मा जी के दबाव की वजह से डीआईजी ने रोबिन को फ्री हैंड दे दिया था।

रॉबिन ने लक्ष्मण से पूछताछ शुरू कर दी थी।

सोमिल का कैदखाना

( मैं शांति उर्फ लक्ष्मी )

आज मैंने सोमिल सर से दिन भर तरह-तरह की बातें की और उन्हें खुश करती रही। आज शाम को स्नान किया और वापस वही शर्ट पहन लिया। मैं उनसे संभोग करने के लिए आतुर हो चुकी थी मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैंने शाम को फिर उन्हें शराब पीने के लिए आमंत्रित किया पर आज उन्होंने मना कर दिया। मैंने आज हल्का खाना बनाया और उन्हें आज भी वियाग्रा एक डोज फिर से दे दिया।

आज मैं हर हद तक जाना चाहते थी। मैंने मन ही मन सोच लिया था चाहे मेरी असलियत ही क्यों न सामने आ जाए पर मैं आज उनसे संभोग कर करके ही रहूंगी।

मैं कल रात उनके साथ बिस्तर पर सो चुकी थी मुझे पता था मुझे आज भी बिस्तर पर ही सोना है। किचन का काम निपटाने के बाद मैं वापस सोफे पर सोने जाने लगी। उन्होंने कहा शांति यही ऊपर सो जाओ। मैंने थोड़ी है ना नुकुर की और कुछ ही देर में बिस्तर पर आ गयी। मैन कहा

"सर टीवी ऑन कीजिए ना"

"अरे उसमें सब उन्होंने बकवास फिल्में रखी हैं"

"कोई बात नहीं लगाइए तो"

मैने रिमोट अपने हाथों में ले लिया और कोई उचित वीडियो की तलाश में लग गयी। मुझे एक इंग्लिश फिल्म दिखाएं पड़ गई मैंने उसे प्ले कर दिया। फिल्म के शुरुआती दृश्यों में कोई नग्नता नहीं थी। हम दोनों फिल्म देखने लगे। मैंने उनसे कहा कुछ फिल्में अच्छी भी होती है। वह मुस्कुरा रहे थे धीरे धीरे फिल्म में कामुकता आने लगी। जैसे-जैसे हीरो हीरोइन पास आ रहे थे सुनील सर के पाजामे में हरकत हो रही थी। मैंने भी अपनी चादर हटा दी। मेरी जाँघें अब नग्न थीं पर मेरी योनि अभी ढकी हुई थी।

जैसे-जैसे नायक नायिका करीब आते गए उनका लिंग आकार में बढ़ता गया और मेरी जाँघों का फैलाव भी। हम दोनों अपने अपने यौन अंगों पर ध्यान केंद्रित किए हुए थे। मेरी मुनिया भी प्रेम रस छोड़ने लगी वह अपने लिंग को बीच-बीच में मेरी नजर बचाकर सहला देते। यही काम मैं अपनी मुनिया के साथ भी कर रही थी।

फिल्म की कामुकता अश्लीलता में बदल चुकी थी। नायक और नायिका पूरी तरह नग्न हो गए थे। इधर मेरी शर्ट भी मेरी कमर तक आ गई थी मेरी मुनिया पूरी तरह नग्न होकर ऊपर चल रहे पंखे की हवा खा रही थी। अचानक उनकी नजर मुझ पर पड़ी मुझे इस तरह अपनी देख कर वह उत्तेजित हो गए। कमरे में लाइट पहले ही कम थी उन्होंने भी अपना लिंग बाहर निकाल लिया। मेरी नजर बचाकर वह अपने लिंग को बार-बार सहलाने लगे।

मैं भी अपनी मुनिया को धीरे धीरे प्यार कर रही थी। मैंने अपनी शर्ट के बटन भी खोल दिए थे। अब वह मेरे स्तनों के सहारे ही मेरे शरीर पर ठीके हुए थे। थोड़ी भी तेज हवा का झोंका मेरे शर्ट को दो भागों में बांट देता। और वो ऊपर से पूरी तरह नग्न हो जाते।

सोमिल सर की हथेलियाँ अपने लिंग पर तेजी से चल रहीं थी। मैं धीरे-धीरे से सरकते हुए उनके बिल्कुल समीप आ गयी। वह मेरा सरकना महसूस कर रहे थे पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की। कुछ ही देर में मेरे पैर उनके पैरों से सट रहे थे। उन्होंने अभी भी पैजामा पहन रखा था। मेरे पैरों का स्पर्श वह पूरी तरह महसूस नहीं कर पा रहे थे। उन्हें भी इस स्पर्श का इंतजार था। धीरे-धीरे उनका पैजामा नीचे की तरफ खिसकता गया और हमारी जाँघें एक दूसरे में सटने लगीं।

उनका हाथ अभी भी लिंग पर था मैंने करवट ली। और अपनी जाँघें उनके ऊपर रख दीं। मेरे जांघों का निचला हिस्सा उनके लिंग से छू राजा था। उन्होंने अपने हाथ लिंग से हटा लिये और मेरी जांघों को छूने लगे। मुझे अपनी सफलता पर गर्व होने लगा। मैंने अपनी हथेलियां आगे बढ़ायीं और उनके लिंग को सहला दिया।

उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की। मैंने अपनी हथेलियों से रह रह कर उनके लिंग को छूना शुरु कर दिया था। वह अपने हथेलियों से मेरी जांघों को सहलाते सहलाते मेरे नितंबों तक आ गए। अचानक उन्होंने करवट ले ली और मेरी आंखों में देखा। मेरी आंखों में भी प्रेम की भूख थी। उन्होंने मुझे अपनी आगोश में खींच लिया।

मेरी शर्ट खुल चुकी थी। मेरे नग्न स्तन उनके सीने से सट रहे थे। मैंने उनकी हथेलियों को अपने नितंबों पर महसूस किया। मैंने भी उनके लिंग को अपने हाथों में ले लिया और उसे सहलाने लगी। उनकी हथेलियां मेरे नितंबों को छूते छूते मेरी रानी के मुख तक आ गयीं।

उन्होंने रानी के गीलेपन को अपनी उंगलियों पर स्पष्ट रूप से महसूस किया होगा। मैं उठ कर उनके ऊपर आना चाहती थी और यथाशीघ्र संभोग रत होना चाहती थी।

वह अभी मेरी योनि को अपनी उंगलियों से सहला रहे थे और मैं उनके लिंग को अपनी हथेलियों से उत्तेजित कर रही थी।

मैं उठकर उनके ऊपर आ गयी और लिंग पर बैठने का प्रयास करने लगी। वह पूरी तरह उत्तेजित थे। जैसे ही मुनिया ने उनके लिंग को छुआ वह उठकर बैठने लगे। मैं अव्यवस्थित हो गई। उन्होंने अपने लिंग को मेरी मुनिया से दूर कर दिया था। अब वह हम दोनों के पेट के बीच में आ गया था। मेरे स्तन उनके सीने से सट रहे थे मैं उनकी गोद में आ चुकी थी वह मुझे सहलाए जा रहे थे।

मेरा चेहरा उनके चेहरे के बिल्कुल समेत था मैंने उनसे पूछा "सर क्या हुआ"

उन्होंने मुझे गालों पर चूम लिया और बोला "शांति मैं यह नहीं कर सकता मैंने अपनी प्रेमिका को वचन दिया था कि मैं पहला संभोग उसके साथ ही करूंगा। मुझे माफ कर देना। तुम्हारे जैसी सुंदरी के साथ संभोग को ठुकरा कर मैं अपराधबोध से ग्रसित हूँ। उम्मीद करता हूं तुम मुझे माफ कर दोगी। मैं उनकी दुविधा समझ गयी।

मुझे पता था वह एक आदर्श पुरुष थे वह अपना वचन नहीं तोड़ेंगे। मैंने फिर कहा

"पर हम एक दूसरे को खुश तो कर ही सकते हैं" वह प्रसन्न हो गए. मैंने उन्हें होठों पर चुंबन लेने की कोशिश की जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. वह दूसरे पुरुष थे जिन्हें मैंने होठों पर चुंबन दिया था. मेरे बॉयफ्रेंड ने जबरदस्ती मेरे होठों को मेरी किशोरावस्था में चुम्मा था. वह मेरे होठों को बेसब्री से चूमने लगे। मेरी हथेलियां एक बार फिर उनके लिंग को सहला रहीं थीं और वह अपनी उंगलियों से मेरे नितंबों के नीचे से मेरी मुनिया को सहला रहे थे। हमारी उत्तेजना चरम पर थी।हमें स्खलित होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा।

उनके लिंग से निकली हुई वीर्य की धार हम दोनों को गीला कर गई थी। पर हमने उस पर बिल्कुल ध्यान नही दिया। हम एक दूसरे को प्यार करने में व्यस्त थे। हम दोनों उसी अवस्था में ही बिस्तर पर सो गए।

शनिवार
(मैं शांति उर्फ लक्ष्मी)

सुबह उनके प्यारे लिंग को देखकर मेरे मन में एक बार फिर उत्तेजना पैदा हुई। मैंने अपने होठों से उसे मुखमैथुन देने की सोची। मैंने बिना उनकी सहमति के अपने होठों से उसे छूना शुरु कर दिया। सोमिल सर की आंखें खुल चुकी थी पर उन्होंने जानबूझकर अपनी आंखें बंद कर लीं।

मेरे होठों ने अपनी प्यास बुझाना शुरू कर दिया था। सोमिल सर का लिंग एक बार फिर स्खलन के लिए तैयार था। मैं उनके अद्भुत लिंग के साथ बिताए पल को जी लेना चाहती थी । मेरे जीवन में वह एक अद्भुत पुरुष के रूप में आए थे मैं उनके साथ बिताए पलों को अपनी यादों में संजो लेना चाहती थी। लिंग के वीर्य स्खलन करने के पश्चात मेरा चेहरा और मुह उनके वीर्य से भर गया था। सोमिल सर ने मुझे एक बार फिर अपनी गोद में ले लिया वह मुझसे प्यार करने लगे थे।

मैंने उनसे कोई बात नहीं छुपाई और अपनी असलियत खुलकर बता दीं। वो बिल्कुल नाराज नहीं थे। उन्होंने मुझसे कहा शांति तुम एक अच्छी लड़की हो मैं शादीशुदा हूं। तुम्हारे साथ तीन-चार दिनों में मुझे नारी शरीर और उसके सुखद साथ का एहसास हुआ है मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूँ। मैं तुम्हारी खुशी के लिए जरूरत पड़ने पर तुम्हारी मदद कर सकता हूं। तुम मुझे अपना एक दोस्त मान सकती हो। मैं उनकी सादगी की कायल हो गयी और फिर एक बार उनसे चिपक गयी।

मैंने सुनील सर से कहा

"मुझे आपसे एक बात करनी है पर मुझे शर्म आ रही है"

"बेशक कहो अब हमारे तुम्हारे बीच में कोई पर्दा नहीं है"

"मैं आपसे एक बार संभोग करना चाहती हूं यह मेरी और मेरी मुनिया की दिली इच्छा है"

मैंने अपनी जाँघों के बीच इशारा कर दिया। वो मुस्कुराने लगे।

" मुझे पता है आप यह आज नहीं करेंगे पर अपने वचन पूरा करने के बाद क्या आप मेरी इच्छा का मान रखेंगे?.

उन्होंने कहा

"एक ही शर्त पर यदि तुम मुझसे वादा करो कि किसी भी पुरुष से संभोग तभी करोगी जब तुम्हारी अंतरात्मा और तुम्हारी इस प्यारी सी मुनिया का मन होगा। किसी लालच या प्रलोभन में नहीं। तुम्हारी मुनिया प्रकृति का दिया हुआ अनुपम वरदान है इसे पैसों के लालच में व्यर्थ प्रताड़ित मत करना। इसकी संवेदना और प्यार ही जीवन का रस है।"

मैं उनकी बात समझ चुकी थी।

मैंने कहा "मैं आपसे मिलन की प्रतीक्षा करूंगी"

सोमिल सर द्वारा कही गई बात मेरे दिलो-दिमाग पर छा गई थी वह कुंवारे होने के बावजूद यह बात कैसे जानते थे कि मुनिया सिर्फ और सिर्फ प्रेम से ही उत्तेजित होती है पैसों से नहीं। उनका यह गूढ़ ज्ञान मेरी समझ से परे था पर मैंने मन ही मन यह ठान लिया था कि भविष्य में कभी भी लालच और पैसों के लिए मुनिया को तंग नहीं करूंगी। मैंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की कि एक बार मेरी मुनिया को सोमिल सर से संभोग सुख प्राप्त हो, और मुस्कुराती हुई बाथरूम की तरफ चल पड़ी।

शानिवार, मानस का घर 6.00 बजे

(मैं मानस)

लक्ष्मी का पता चलते ही मैंने इंस्पेक्टर रॉबिंन से बात की वह बहुत खुश हो गए। हम सुबह सुबह 7:00 बजे ही उस लड़की के घर जाने के लिए निकल गए। वह बेंगलुरु शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर रहती थी।

अचानक आई पुलिस को देख कर लक्ष्मी के घर से निकलकर एक आदमी भागने लगा। रॉबिन की टीम ने उसे दौड़ाकर पकड़ लिया। कुछ ही देर की पिटाई में उसने शांति बनी लक्ष्मी को पहचान लिया और सोमिल के बारे में भी साफ-साफ बता दिया।

पुलिस टीम ने उसे अपने साथ ले लिया और हम सोमिल को कैद की गयी जगह के लिए निकल पड़े। मेरे चेहरे पर खुशी थी। सोमिल मिलने वाला था। मैंने फोन लगाकर छाया को इस बात की सूचना देनी चाही पर तब तक हम नेटवर्क से बाहर आ चुके थे। छाया उस समय निश्चित ही तनाव में होगी। अब से चंद घंटों बाद उसे उस अपरिचित आदमी की हवस मिटाने होटल में जाना था। मुझे धीरे-धीरे यह विश्वास हो चला था कि उस समय से पहले ही हम अपराधी का पता लगा लेंगे।

एक-दो घंटे के सफर के पश्चात हम सोमिल के ठिकाने पर आ गए थे। पुलिस ने बाहर खड़े दोनों गार्डों को अरेस्ट कर लिया। बाहर हुई हलचल से सोमिल और शांति सहम गए थे।

हम अंदर आ चुके थे। लक्ष्मी ने शरीर पर चादर ओढ़ रखी थी। सोमिल सिर्फ पायजामा पहने खड़ा हुआ था। उसका शरीर का ऊपरी भाग नग्न था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह दोनों नग्न अवस्था में एक-दूसरे को बाहों में लिए सो रहे थे और बाहर की हलचल से उठ खड़े हुए थे। शांति ने अपने शरीर पर चादर लपेट ली थी और सोमिल बमुश्किल अपना पजामा पहन पाया था।

यह मेरे मन की सोच थी। पुलिस ने लक्ष्मी को अरेस्ट कर लिया। सोमिल ने उसे रोकना चाहा। लक्ष्मी रो रही थी उसने अपनी कहानी फिर दोहरा दी।

रॉबिन ने कहा आप लोग चिंता मत कीजिए यदि यह निर्दोष है में तो मैं इसे छोड़ दूंगा सोमिल ने शांति से कहा।

"तुम परेशान मत हो तुम सच्ची हो तो तुम्हें निश्चय ही न्याय मिलेगा" वह संतुष्ट हो गयी और बाथरूम की तरफ कपड़े पहनने चली गई। मैंने उसकी खूबसूरती एक नजर में ही पहचान ली थी। वह सच में छाया का कुछ अंश अपने अंदर संजोये हुए थी।

कुछ ही देर में हम वापस बेंगलुरु के लिए निकल गए। मैंने छाया को इस बात की सूचना दे दी। सोमिल के सकुशल मिल जाने पर घर में खुशी का माहौल था बस एक ही कष्ट था कि छाया को कुछ घंटे बाद उस अनजान आदमी से संभोग करने के लिए जाना था। उसके पास सिर्फ एक ही सहारा था वह खत में लिखी हुई भाषा जिससे उस अनजान व्यक्ति का छाया के प्रति प्यार झलकता था। उससे ऐसा प्रतीत होता था जैसे छाया द्वारा किया गया एक बार का संभोग हमारे सब राज गुप्त रखने के लिए पर्याप्त था पर ये हमे स्वीकार नही था। यही सब बातें सोचते हुए मैं खिड़की के बाहर देख रहा था।

बेंगलुरु शहर अब कुछ दूर ही रह गया था तभी मेरे फोन पर घंटी बजी

"हां कुछ पता चला क्या?

उत्तर सुनकर मेरी आंखें आश्चर्य से फटी रह गई। मैंने रॉबिन से बात की उन्होंने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी। उन्होंने थाने से फोन कर कुछ और पुलिस फोर्स मंगा लिया। मेरे कहने पर उन्होंने सोमिल को घर भेज दिया। मैं नहीं चाहता था कि छाया के इस कदम की जानकारी उसको अभी हो।

लक्ष्मी और उसके भाई को अपनी दूसरी टीम को हैंड ओवर कर रोबिन और मैं उनके विश्वस्त सिपाहियों के साथ होटल मानसरोवर की तरफ बढ़ चले। यह वही होटल था जहां उस अनजान व्यक्ति ने मेरी छाया को संभोग के लिए बुलाया था।

मानस का घर (सुबह 9 बजे)

(मैं सीमा)

छाया के मोबाइल पर मैसेज आ चुका था मानसरोवर होटल, दोपहर 1:00 बजे। वह रोते हुए मेरे पास आयी।

आखिर वह दिन आ ही गया था जब छाया को उस अनजान व्यक्ति के पास संभोग के लिए जाना था. नियति के इस निष्ठुर प्रहार से छाया का मन मस्तिक आहत हो चुका था। वह समाज में कुत्सित विचार के लोगों के प्रति अत्यधिक क्रोधित थी जो अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए इस तरह का गलत कार्य करते थे। छाया को कामुकता ऊपर वाले ने स्वभाविक रूप में दी थी। जिसे उसका भोग करना था वह उससे प्यार करता और उसके मन मस्तिष्क पर काबिज हो जाता छाया अपनी कामुकता और अपने यौवन के साथ उसकी बाहों में चली आती। उसका तो जन्म ही पुरुषों की कामुकता शांत करने के लिए हुआ था। पर बिना उससे प्रेम किये इस तरह उसे डरा कर संभोग करना सर्वाधिक अनुचित था। मैं मन ही मन उस दुष्ट व्यक्ति को कोस रही थी।

मैंने और छाया दोनों ने आज सुबह से ही व्रत रखा हुआ था। हम भगवान से यही प्रार्थना कर रहे थे कि हे प्रभु मेरी छाया की रक्षा करना। उसकी कोमल रानी किसी अपरिचित के साथ संभोग के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। छाया का रोम रोम हमेशा खिला रहता था उसके स्तन और यौनांग हमेशा खुश और खिले खिले दिखाई पड़ते थे। जब मैं छाया की रानी को अपने होठों से झूमती तुम मुझे अपने होंठ हमेशा खुरदुरे लगते। छाया के शरीर और यौनांगो में गजब की कोमलता थी।

छाया की हरदम खुश रहने की आदत उसकी कामुकता का प्रमुख कारण थी पर आज छाया दुखी थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी पौधे को कई दिनों से पानी न दिया गया हो। उसने स्नान किया और सादे वस्त्र पहन लिए। उसकी मायूसी देखकर मेरी आंखें भर आयीं थी। एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा जैसे छाया को फांसी पर लटकाया जा रहा है।

मेरी अंतरात्मा रो रही थी। मुझे लग रहा था मैं चीख चीख कर इस दुनिया से कह दूं छाया और मानस एक दूसरे के लिए ही बने हैं इन्हें अलग मत करो। जब मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है तो समाज को क्यों आपत्ति होनी चाहिए। छाया को ब्लैकमेल करना सर्वाधिक अनुचित था।

धीरे-धीरे समय हो चला था मैं और छाया उस अनजान को कोसते हुए उससे मिलने निर्धारित स्थल की ओर चल पड़े थे।

(मैं मानस)

हम मानसरोवर होटल पहूच चुके थे। पुलिस ने बिना हल्ला गुल्ला किए होटल के सारे दरवाजे सील कर दिए। छाया और सीमा चौथी मंजिल पर अनजान व्यक्ति के एसएमएस का इंतजार कर रहे थे। छाया मुझ से लगातार संपर्क मे थी। कमरा नंबर का मैसेज उसके फोन पर आते ही उसने हमें सूचित कर दिया। मैंने और रोबिन की टीम ने उस कमरे को घेर लिया। छाया कमरे के अंदर चली गई जैसे ही उस व्यक्ति ने छाया को छुआ, छाया ने मोबाइल से टाइप किया मैसेज भेज दिया जो उसने पहले से टाइप किया हुआ था।

हमें स्पष्ट इशारा मिल चुका था कि वह व्यक्ति छाया के बिल्कुल करीब है। हमारे साथ आए सिपाही ने एक जोरदार लात दरवाजे पर मारी और दरवाजा खुल गया। अंदर मेरी छाया थी और वह आदमी। उसे देख कर मैं हतप्रभ था।
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
1,324
6,479
159
भाग -31

छाया और सीमा के प्रयास
(मैं मानस)

छाया और सीमा ने अपने कॉलेज के दोस्तों और फ्रेंड सर्किल में उस अनजान लड़की की तस्वीरें प्रसारित कर दीं थीं। छाया ने उस फोटो में से सोमिल की फोटो हटाकर सिर्फ उस लड़की की फोटो रखी थी वह समझदार तो थी ही।

हॉस्टल की लड़कियों का नेटवर्क जबरदस्त था। उन्होंने उस खूबसूरत लड़की की तस्वीर अपने सभी फ्रेंड्स को भेज दी यह सिलसिला चलता गया और अंततः हमें यह मालूम चल चुका था कि वह लड़की लक्ष्मी थी जो होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर चुकी थी। वह पैसों के लिए कभी-कभी वह हाई प्रोफाइल कॉल गर्ल बन कर कामुक गतिविधियां भी किया करती थी।

हमें जबरदस्त सफलता हाथ लगी थी छाया और सीमा अपनी इस सफलता से खुश थे। हमें सोमिल जल्द ही मिलने वाला था।

अब आगे .....
मैंने विवाह भवन के मैनेजर से मुलाकात कर उस बाथरूम को देखना चाहा। उसने मुझे बताया कि कल ही कोई आदमी उस कैमरे के बारे में पूछता हुआ यहां आया था। हम लोगों ने बाथरूम में चेक करवाया वहां पर कोई कैमरा नहीं था। हालांकि अभी परसों से ही उस लाइन के कमरों की पेंटिंग शुरू हुई है। हो सकता है पेंटर ने उसे निकाल कर कहीं रखा हो। कल पेंटर नहीं आया था मैं आज उससे बात करता हूं। मैंने वहीं इंतजार करना उचित समझा। कुछ देर बाद वह पेंटर आया और मुझे ले जाकर एक तरफ रखा हुआ वह कैमरा दिखाया। मैंने वह कैमरा ले लिया। मैंने होटल मैनेजर को धन्यवाद देते हुए वहां से बाहर आ गया। यह कैमरा एक वाईफाई कैमरा था जिसकी फोटो को दूर बैठे कंप्यूटर पर देखा जा सकता था। इस तरह का कैमरा बेचने वाले बेंगलुरु में कई दुकानें पर जिस एरिया में हम थे वहां पर सिर्फ दो दुकाने थीं। थोड़ा ही प्रयास करने पर मुझे इस कैमरा खरीदने वाले का नाम मालूम चल गया। यह कैमरा हमारे विवाह भवन में प्रवेश करने के ठीक एक दिन पहले खरीदा गया था और हो सकता है उसी दिन उसे इंस्टॉल भी किया गया हो।

जिस आदमी ने यह कैमरा खरीदा था मैं उससे भली भांति जानता था पर अभी उसका फोन नहीं लग रहा था। हम इस साजिशकर्ता के काफी करीब थे बस कुछ समय का इंतजार था।

उधर पुलिस स्टेशन में इस केस के नए इंचार्ज इंस्पेक्टर रॉबिन 30-32 वर्ष का नया और तेज नवयुवक था। वह डिसूजा का असिस्टेंट था जिसे अब इस केस का प्रभारी बना दिया गया था। डिसूजा के अब तक किए गए जांच के बारे में उसे पूरी जानकारी थी। उसने लक्ष्मण को पकड़ने की कोशिश तेज कर दी थी। उसे लक्ष्मण का सुराग भी मिल चुका था सिर्फ उसे पकड़ना बाकी था। सोमिल की खबर उसे नहीं लग पाई पर एक बार लक्ष्मण पकड़ में आ जाता तो सारी बातें स्वयं ही सामने आ जाती रॉबिन यह बात जानता था। मुझमे छाया और सीमा में कामुक संबंध है यह बात भी उसे मालूम थी पर वह जानता था की वयस्कों के बीच में इस तरह के संबंध होना सामाजिक अपराध तो हो सकता है पर कानूनी नहीं। वह इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था।

उसने डिसूजा की जांच की इस दिशा को वहीं पर रोक दिया था। वह सिर्फ और सिर्फ कातिल तक पहुंचना चाहता था और पैसों के गबन करने वाले को पकड़ना चाहता था। गुप्तचर की सूचना के अनुसार लक्ष्मण मुंबई में था। रोबिन और उसकी टीम ने उसे मुंबई से गिरफ्तार कर लिया और हवाई जहाज से बेंगलुरु ले आए। शर्मा जी के दबाव की वजह से डीआईजी ने रोबिन को फ्री हैंड दे दिया था।

रॉबिन ने लक्ष्मण से पूछताछ शुरू कर दी थी।

सोमिल का कैदखाना

( मैं शांति उर्फ लक्ष्मी )

आज मैंने सोमिल सर से दिन भर तरह-तरह की बातें की और उन्हें खुश करती रही। आज शाम को स्नान किया और वापस वही शर्ट पहन लिया। मैं उनसे संभोग करने के लिए आतुर हो चुकी थी मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैंने शाम को फिर उन्हें शराब पीने के लिए आमंत्रित किया पर आज उन्होंने मना कर दिया। मैंने आज हल्का खाना बनाया और उन्हें आज भी वियाग्रा एक डोज फिर से दे दिया।

आज मैं हर हद तक जाना चाहते थी। मैंने मन ही मन सोच लिया था चाहे मेरी असलियत ही क्यों न सामने आ जाए पर मैं आज उनसे संभोग कर करके ही रहूंगी।

मैं कल रात उनके साथ बिस्तर पर सो चुकी थी मुझे पता था मुझे आज भी बिस्तर पर ही सोना है। किचन का काम निपटाने के बाद मैं वापस सोफे पर सोने जाने लगी। उन्होंने कहा शांति यही ऊपर सो जाओ। मैंने थोड़ी है ना नुकुर की और कुछ ही देर में बिस्तर पर आ गयी। मैन कहा

"सर टीवी ऑन कीजिए ना"

"अरे उसमें सब उन्होंने बकवास फिल्में रखी हैं"

"कोई बात नहीं लगाइए तो"

मैने रिमोट अपने हाथों में ले लिया और कोई उचित वीडियो की तलाश में लग गयी। मुझे एक इंग्लिश फिल्म दिखाएं पड़ गई मैंने उसे प्ले कर दिया। फिल्म के शुरुआती दृश्यों में कोई नग्नता नहीं थी। हम दोनों फिल्म देखने लगे। मैंने उनसे कहा कुछ फिल्में अच्छी भी होती है। वह मुस्कुरा रहे थे धीरे धीरे फिल्म में कामुकता आने लगी। जैसे-जैसे हीरो हीरोइन पास आ रहे थे सुनील सर के पाजामे में हरकत हो रही थी। मैंने भी अपनी चादर हटा दी। मेरी जाँघें अब नग्न थीं पर मेरी योनि अभी ढकी हुई थी।

जैसे-जैसे नायक नायिका करीब आते गए उनका लिंग आकार में बढ़ता गया और मेरी जाँघों का फैलाव भी। हम दोनों अपने अपने यौन अंगों पर ध्यान केंद्रित किए हुए थे। मेरी मुनिया भी प्रेम रस छोड़ने लगी वह अपने लिंग को बीच-बीच में मेरी नजर बचाकर सहला देते। यही काम मैं अपनी मुनिया के साथ भी कर रही थी।

फिल्म की कामुकता अश्लीलता में बदल चुकी थी। नायक और नायिका पूरी तरह नग्न हो गए थे। इधर मेरी शर्ट भी मेरी कमर तक आ गई थी मेरी मुनिया पूरी तरह नग्न होकर ऊपर चल रहे पंखे की हवा खा रही थी। अचानक उनकी नजर मुझ पर पड़ी मुझे इस तरह अपनी देख कर वह उत्तेजित हो गए। कमरे में लाइट पहले ही कम थी उन्होंने भी अपना लिंग बाहर निकाल लिया। मेरी नजर बचाकर वह अपने लिंग को बार-बार सहलाने लगे।

मैं भी अपनी मुनिया को धीरे धीरे प्यार कर रही थी। मैंने अपनी शर्ट के बटन भी खोल दिए थे। अब वह मेरे स्तनों के सहारे ही मेरे शरीर पर ठीके हुए थे। थोड़ी भी तेज हवा का झोंका मेरे शर्ट को दो भागों में बांट देता। और वो ऊपर से पूरी तरह नग्न हो जाते।

सोमिल सर की हथेलियाँ अपने लिंग पर तेजी से चल रहीं थी। मैं धीरे-धीरे से सरकते हुए उनके बिल्कुल समीप आ गयी। वह मेरा सरकना महसूस कर रहे थे पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की। कुछ ही देर में मेरे पैर उनके पैरों से सट रहे थे। उन्होंने अभी भी पैजामा पहन रखा था। मेरे पैरों का स्पर्श वह पूरी तरह महसूस नहीं कर पा रहे थे। उन्हें भी इस स्पर्श का इंतजार था। धीरे-धीरे उनका पैजामा नीचे की तरफ खिसकता गया और हमारी जाँघें एक दूसरे में सटने लगीं।

उनका हाथ अभी भी लिंग पर था मैंने करवट ली। और अपनी जाँघें उनके ऊपर रख दीं। मेरे जांघों का निचला हिस्सा उनके लिंग से छू राजा था। उन्होंने अपने हाथ लिंग से हटा लिये और मेरी जांघों को छूने लगे। मुझे अपनी सफलता पर गर्व होने लगा। मैंने अपनी हथेलियां आगे बढ़ायीं और उनके लिंग को सहला दिया।

उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की। मैंने अपनी हथेलियों से रह रह कर उनके लिंग को छूना शुरु कर दिया था। वह अपने हथेलियों से मेरी जांघों को सहलाते सहलाते मेरे नितंबों तक आ गए। अचानक उन्होंने करवट ले ली और मेरी आंखों में देखा। मेरी आंखों में भी प्रेम की भूख थी। उन्होंने मुझे अपनी आगोश में खींच लिया।

मेरी शर्ट खुल चुकी थी। मेरे नग्न स्तन उनके सीने से सट रहे थे। मैंने उनकी हथेलियों को अपने नितंबों पर महसूस किया। मैंने भी उनके लिंग को अपने हाथों में ले लिया और उसे सहलाने लगी। उनकी हथेलियां मेरे नितंबों को छूते छूते मेरी रानी के मुख तक आ गयीं।

उन्होंने रानी के गीलेपन को अपनी उंगलियों पर स्पष्ट रूप से महसूस किया होगा। मैं उठ कर उनके ऊपर आना चाहती थी और यथाशीघ्र संभोग रत होना चाहती थी।

वह अभी मेरी योनि को अपनी उंगलियों से सहला रहे थे और मैं उनके लिंग को अपनी हथेलियों से उत्तेजित कर रही थी।

मैं उठकर उनके ऊपर आ गयी और लिंग पर बैठने का प्रयास करने लगी। वह पूरी तरह उत्तेजित थे। जैसे ही मुनिया ने उनके लिंग को छुआ वह उठकर बैठने लगे। मैं अव्यवस्थित हो गई। उन्होंने अपने लिंग को मेरी मुनिया से दूर कर दिया था। अब वह हम दोनों के पेट के बीच में आ गया था। मेरे स्तन उनके सीने से सट रहे थे मैं उनकी गोद में आ चुकी थी वह मुझे सहलाए जा रहे थे।

मेरा चेहरा उनके चेहरे के बिल्कुल समेत था मैंने उनसे पूछा "सर क्या हुआ"

उन्होंने मुझे गालों पर चूम लिया और बोला "शांति मैं यह नहीं कर सकता मैंने अपनी प्रेमिका को वचन दिया था कि मैं पहला संभोग उसके साथ ही करूंगा। मुझे माफ कर देना। तुम्हारे जैसी सुंदरी के साथ संभोग को ठुकरा कर मैं अपराधबोध से ग्रसित हूँ। उम्मीद करता हूं तुम मुझे माफ कर दोगी। मैं उनकी दुविधा समझ गयी।

मुझे पता था वह एक आदर्श पुरुष थे वह अपना वचन नहीं तोड़ेंगे। मैंने फिर कहा

"पर हम एक दूसरे को खुश तो कर ही सकते हैं" वह प्रसन्न हो गए. मैंने उन्हें होठों पर चुंबन लेने की कोशिश की जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. वह दूसरे पुरुष थे जिन्हें मैंने होठों पर चुंबन दिया था. मेरे बॉयफ्रेंड ने जबरदस्ती मेरे होठों को मेरी किशोरावस्था में चुम्मा था. वह मेरे होठों को बेसब्री से चूमने लगे। मेरी हथेलियां एक बार फिर उनके लिंग को सहला रहीं थीं और वह अपनी उंगलियों से मेरे नितंबों के नीचे से मेरी मुनिया को सहला रहे थे। हमारी उत्तेजना चरम पर थी।हमें स्खलित होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा।


उनके लिंग से निकली हुई वीर्य की धार हम दोनों को गीला कर गई थी। पर हमने उस पर बिल्कुल ध्यान नही दिया। हम एक दूसरे को प्यार करने में व्यस्त थे। हम दोनों उसी अवस्था में ही बिस्तर पर सो गए।

शनिवार
(मैं शांति उर्फ लक्ष्मी)

सुबह उनके प्यारे लिंग को देखकर मेरे मन में एक बार फिर उत्तेजना पैदा हुई। मैंने अपने होठों से उसे मुखमैथुन देने की सोची। मैंने बिना उनकी सहमति के अपने होठों से उसे छूना शुरु कर दिया। सोमिल सर की आंखें खुल चुकी थी पर उन्होंने जानबूझकर अपनी आंखें बंद कर लीं।

मेरे होठों ने अपनी प्यास बुझाना शुरू कर दिया था। सोमिल सर का लिंग एक बार फिर स्खलन के लिए तैयार था। मैं उनके अद्भुत लिंग के साथ बिताए पल को जी लेना चाहती थी । मेरे जीवन में वह एक अद्भुत पुरुष के रूप में आए थे मैं उनके साथ बिताए पलों को अपनी यादों में संजो लेना चाहती थी। लिंग के वीर्य स्खलन करने के पश्चात मेरा चेहरा और मुह उनके वीर्य से भर गया था। सोमिल सर ने मुझे एक बार फिर अपनी गोद में ले लिया वह मुझसे प्यार करने लगे थे।

मैंने उनसे कोई बात नहीं छुपाई और अपनी असलियत खुलकर बता दीं। वो बिल्कुल नाराज नहीं थे। उन्होंने मुझसे कहा शांति तुम एक अच्छी लड़की हो मैं शादीशुदा हूं। तुम्हारे साथ तीन-चार दिनों में मुझे नारी शरीर और उसके सुखद साथ का एहसास हुआ है मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूँ। मैं तुम्हारी खुशी के लिए जरूरत पड़ने पर तुम्हारी मदद कर सकता हूं। तुम मुझे अपना एक दोस्त मान सकती हो। मैं उनकी सादगी की कायल हो गयी और फिर एक बार उनसे चिपक गयी।

मैंने सुनील सर से कहा

"मुझे आपसे एक बात करनी है पर मुझे शर्म आ रही है"

"बेशक कहो अब हमारे तुम्हारे बीच में कोई पर्दा नहीं है"

"मैं आपसे एक बार संभोग करना चाहती हूं यह मेरी और मेरी मुनिया की दिली इच्छा है"

मैंने अपनी जाँघों के बीच इशारा कर दिया। वो मुस्कुराने लगे।

" मुझे पता है आप यह आज नहीं करेंगे पर अपने वचन पूरा करने के बाद क्या आप मेरी इच्छा का मान रखेंगे?.

उन्होंने कहा

"एक ही शर्त पर यदि तुम मुझसे वादा करो कि किसी भी पुरुष से संभोग तभी करोगी जब तुम्हारी अंतरात्मा और तुम्हारी इस प्यारी सी मुनिया का मन होगा। किसी लालच या प्रलोभन में नहीं। तुम्हारी मुनिया प्रकृति का दिया हुआ अनुपम वरदान है इसे पैसों के लालच में व्यर्थ प्रताड़ित मत करना। इसकी संवेदना और प्यार ही जीवन का रस है।"

मैं उनकी बात समझ चुकी थी।

मैंने कहा "मैं आपसे मिलन की प्रतीक्षा करूंगी"

सोमिल सर द्वारा कही गई बात मेरे दिलो-दिमाग पर छा गई थी वह कुंवारे होने के बावजूद यह बात कैसे जानते थे कि मुनिया सिर्फ और सिर्फ प्रेम से ही उत्तेजित होती है पैसों से नहीं। उनका यह गूढ़ ज्ञान मेरी समझ से परे था पर मैंने मन ही मन यह ठान लिया था कि भविष्य में कभी भी लालच और पैसों के लिए मुनिया को तंग नहीं करूंगी। मैंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की कि एक बार मेरी मुनिया को सोमिल सर से संभोग सुख प्राप्त हो, और मुस्कुराती हुई बाथरूम की तरफ चल पड़ी।

शानिवार, मानस का घर 6.00 बजे

(मैं मानस)

लक्ष्मी का पता चलते ही मैंने इंस्पेक्टर रॉबिंन से बात की वह बहुत खुश हो गए। हम सुबह सुबह 7:00 बजे ही उस लड़की के घर जाने के लिए निकल गए। वह बेंगलुरु शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर रहती थी।

अचानक आई पुलिस को देख कर लक्ष्मी के घर से निकलकर एक आदमी भागने लगा। रॉबिन की टीम ने उसे दौड़ाकर पकड़ लिया। कुछ ही देर की पिटाई में उसने शांति बनी लक्ष्मी को पहचान लिया और सोमिल के बारे में भी साफ-साफ बता दिया।

पुलिस टीम ने उसे अपने साथ ले लिया और हम सोमिल को कैद की गयी जगह के लिए निकल पड़े। मेरे चेहरे पर खुशी थी। सोमिल मिलने वाला था। मैंने फोन लगाकर छाया को इस बात की सूचना देनी चाही पर तब तक हम नेटवर्क से बाहर आ चुके थे। छाया उस समय निश्चित ही तनाव में होगी। अब से चंद घंटों बाद उसे उस अपरिचित आदमी की हवस मिटाने होटल में जाना था। मुझे धीरे-धीरे यह विश्वास हो चला था कि उस समय से पहले ही हम अपराधी का पता लगा लेंगे।

एक-दो घंटे के सफर के पश्चात हम सोमिल के ठिकाने पर आ गए थे। पुलिस ने बाहर खड़े दोनों गार्डों को अरेस्ट कर लिया। बाहर हुई हलचल से सोमिल और शांति सहम गए थे।

हम अंदर आ चुके थे। लक्ष्मी ने शरीर पर चादर ओढ़ रखी थी। सोमिल सिर्फ पायजामा पहने खड़ा हुआ था। उसका शरीर का ऊपरी भाग नग्न था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह दोनों नग्न अवस्था में एक-दूसरे को बाहों में लिए सो रहे थे और बाहर की हलचल से उठ खड़े हुए थे। शांति ने अपने शरीर पर चादर लपेट ली थी और सोमिल बमुश्किल अपना पजामा पहन पाया था।

यह मेरे मन की सोच थी। पुलिस ने लक्ष्मी को अरेस्ट कर लिया। सोमिल ने उसे रोकना चाहा। लक्ष्मी रो रही थी उसने अपनी कहानी फिर दोहरा दी।

रॉबिन ने कहा आप लोग चिंता मत कीजिए यदि यह निर्दोष है में तो मैं इसे छोड़ दूंगा सोमिल ने शांति से कहा।

"तुम परेशान मत हो तुम सच्ची हो तो तुम्हें निश्चय ही न्याय मिलेगा" वह संतुष्ट हो गयी और बाथरूम की तरफ कपड़े पहनने चली गई। मैंने उसकी खूबसूरती एक नजर में ही पहचान ली थी। वह सच में छाया का कुछ अंश अपने अंदर संजोये हुए थी।

कुछ ही देर में हम वापस बेंगलुरु के लिए निकल गए। मैंने छाया को इस बात की सूचना दे दी। सोमिल के सकुशल मिल जाने पर घर में खुशी का माहौल था बस एक ही कष्ट था कि छाया को कुछ घंटे बाद उस अनजान आदमी से संभोग करने के लिए जाना था। उसके पास सिर्फ एक ही सहारा था वह खत में लिखी हुई भाषा जिससे उस अनजान व्यक्ति का छाया के प्रति प्यार झलकता था। उससे ऐसा प्रतीत होता था जैसे छाया द्वारा किया गया एक बार का संभोग हमारे सब राज गुप्त रखने के लिए पर्याप्त था पर ये हमे स्वीकार नही था। यही सब बातें सोचते हुए मैं खिड़की के बाहर देख रहा था।

बेंगलुरु शहर अब कुछ दूर ही रह गया था तभी मेरे फोन पर घंटी बजी

"हां कुछ पता चला क्या?

उत्तर सुनकर मेरी आंखें आश्चर्य से फटी रह गई। मैंने रॉबिन से बात की उन्होंने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी। उन्होंने थाने से फोन कर कुछ और पुलिस फोर्स मंगा लिया। मेरे कहने पर उन्होंने सोमिल को घर भेज दिया। मैं नहीं चाहता था कि छाया के इस कदम की जानकारी उसको अभी हो।

लक्ष्मी और उसके भाई को अपनी दूसरी टीम को हैंड ओवर कर रोबिन और मैं उनके विश्वस्त सिपाहियों के साथ होटल मानसरोवर की तरफ बढ़ चले। यह वही होटल था जहां उस अनजान व्यक्ति ने मेरी छाया को संभोग के लिए बुलाया था।

मानस का घर (सुबह 9 बजे)

(मैं सीमा)

छाया के मोबाइल पर मैसेज आ चुका था मानसरोवर होटल, दोपहर 1:00 बजे। वह रोते हुए मेरे पास आयी।

आखिर वह दिन आ ही गया था जब छाया को उस अनजान व्यक्ति के पास संभोग के लिए जाना था. नियति के इस निष्ठुर प्रहार से छाया का मन मस्तिक आहत हो चुका था। वह समाज में कुत्सित विचार के लोगों के प्रति अत्यधिक क्रोधित थी जो अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए इस तरह का गलत कार्य करते थे। छाया को कामुकता ऊपर वाले ने स्वभाविक रूप में दी थी। जिसे उसका भोग करना था वह उससे प्यार करता और उसके मन मस्तिष्क पर काबिज हो जाता छाया अपनी कामुकता और अपने यौवन के साथ उसकी बाहों में चली आती। उसका तो जन्म ही पुरुषों की कामुकता शांत करने के लिए हुआ था। पर बिना उससे प्रेम किये इस तरह उसे डरा कर संभोग करना सर्वाधिक अनुचित था। मैं मन ही मन उस दुष्ट व्यक्ति को कोस रही थी।

मैंने और छाया दोनों ने आज सुबह से ही व्रत रखा हुआ था। हम भगवान से यही प्रार्थना कर रहे थे कि हे प्रभु मेरी छाया की रक्षा करना। उसकी कोमल रानी किसी अपरिचित के साथ संभोग के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। छाया का रोम रोम हमेशा खिला रहता था उसके स्तन और यौनांग हमेशा खुश और खिले खिले दिखाई पड़ते थे। जब मैं छाया की रानी को अपने होठों से झूमती तुम मुझे अपने होंठ हमेशा खुरदुरे लगते। छाया के शरीर और यौनांगो में गजब की कोमलता थी।

छाया की हरदम खुश रहने की आदत उसकी कामुकता का प्रमुख कारण थी पर आज छाया दुखी थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी पौधे को कई दिनों से पानी न दिया गया हो। उसने स्नान किया और सादे वस्त्र पहन लिए। उसकी मायूसी देखकर मेरी आंखें भर आयीं थी। एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा जैसे छाया को फांसी पर लटकाया जा रहा है।

मेरी अंतरात्मा रो रही थी। मुझे लग रहा था मैं चीख चीख कर इस दुनिया से कह दूं छाया और मानस एक दूसरे के लिए ही बने हैं इन्हें अलग मत करो। जब मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है तो समाज को क्यों आपत्ति होनी चाहिए। छाया को ब्लैकमेल करना सर्वाधिक अनुचित था।

धीरे-धीरे समय हो चला था मैं और छाया उस अनजान को कोसते हुए उससे मिलने निर्धारित स्थल की ओर चल पड़े थे।

(मैं मानस)

हम मानसरोवर होटल पहूच चुके थे। पुलिस ने बिना हल्ला गुल्ला किए होटल के सारे दरवाजे सील कर दिए। छाया और सीमा चौथी मंजिल पर अनजान व्यक्ति के एसएमएस का इंतजार कर रहे थे। छाया मुझ से लगातार संपर्क मे थी। कमरा नंबर का मैसेज उसके फोन पर आते ही उसने हमें सूचित कर दिया। मैंने और रोबिन की टीम ने उस कमरे को घेर लिया। छाया कमरे के अंदर चली गई जैसे ही उस व्यक्ति ने छाया को छुआ, छाया ने मोबाइल से टाइप किया मैसेज भेज दिया जो उसने पहले से टाइप किया हुआ था।

हमें स्पष्ट इशारा मिल चुका था कि वह व्यक्ति छाया के बिल्कुल करीब है। हमारे साथ आए सिपाही ने एक जोरदार लात दरवाजे पर मारी और दरवाजा खुल गया। अंदर मेरी छाया थी और वह आदमी। उसे देख कर मैं हतप्रभ था।


Smart-Select-20201219-075719-Chrome
 
Last edited:

Mr. Perfect

"Perfect Man"
1,434
3,733
143
Behad hi shandar update tha Lovely Anand bhai______
Ek musibat se chhutkara mila to dusri musibat khadi ho chuki hai. Chhaya to sach me kamdevi hai kyo ki uske chahne wale ab is tarah se samne aa rahe hain. Shadi ke din to teeno ne masti ki thi lekin blackmailer ne sirf chhaya ko hi kyo chuna. Sima ko bhi to blackmail kar sakta tha wo______
Sharma to apna farj nibha raha hai magar maya ji ke sath jab wo sambhog kar raha tha tab wo chhaya ka soch kar kuch jyada hi garam tha. Uske baad usne chhaya ka sapna bhi dekha jisme wo use kamdevi ke roop me dikh rahi thi. Mujhe lagta hai ki Sharma par chhaya ka asar kuch jyada hi hua hai aur is baat se wo shak ke ghere me bhi hai_______
Somil aur laxmi ka apna alag hi matter chal raha hai. Ye baat saaf ho chuki hai ki laxmi ko somil ke paas rakha hi is liye gaya hai taaki dono me sex relation bane. Is baat se use bhi aage chal kar blackmail kiya hi jayega. Ab sawal ye hai ki ye sab kar kaun raha hai_______


भाग- 30
यह कौन व्यक्ति था जिसने बाथरूम में कैमरा लगाया हुआ था? कहीं इसमें कोई साजिश तो नहीं थी? या फिर होटल वाले ने अपनी कामुकता शांत करने के लिए ऐसा किया था. मुझे बहुत क्रोध आ रहा था. मैंने विवाह भवन के मैनेजर को फोन करने की कोशिश की पर फोन नहीं लगा. मैंने अश्विन को फोन लगाया. (अश्विन मनोहर चाचा का दामाद था जिसकी शादी में हम लोग दो वर्ष पहले शरीक होने गए थे और उसी के बाद से मेरा और छाया का विछोह हो गया था हमारे प्रेम पर हमारा अनचाहा रिश्ता भारी पड़ गया था.) विवाह भवन की सारी व्यवस्था उसी ने की थी.

अश्विन ने फोन उठा लिया था

"जी, मानस भैया"

" तुम मेरे घर आ सकते हो क्या? हमें विवाह भवन चलना है."

"क्या बात हो गयी मानस भैया?"

"यहां आ जाओ फिर बात करते हैं"

"पर भैया मैं तो बेंगलुरु से बाहर हूं"

"ठीक है, मुझे उसके मैनेजर का कोई और नंबर हो तो भेज दो और आने के बाद मुझसे मिलना"

हम समझ चुके थे कि किसी ने बाथरूम में कैमरा लगाया था और वह छाया की नग्न तस्वीरें खींचना चाहता था. हमारी रासलीला के कारण मेरी और छाया की तस्वीरें भी छाया के साथ आ गई थी. हम तीनों ने विवाह भवन में जिस कामुकता का आनंद लिया था फोटो में उसकी एक झलक स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. माया आंटी इन फोटो को देखकर शर्मसार हो रही थी और उन्होंने वहां से हट जाना ही उचित समझा.

तभी मेरी नजर नीचे पड़े खत पर पड़ी. वहां पर हम तीनों ही थे और हमारे बीच कोई पर्दा नहीं था. मैने खत पढ़ना शुरू कर दिया


"प्यारी छाया,

मैंने आज तक जितनी भी लड़कियां देखी है उनमें तुम सबसे ज्यादा सुंदर हो, तुम मेरे लिए साक्षात कामदेवी रति का अवतार हो. मुझे सिर्फ और सिर्फ एक बार तुम्हारे साथ संभोग करना है. मुझे पता है मैं तुम्हारे लायक बिल्कुल भी नहीं हूं पर मन की भावनाएं तर्कों पर नहीं चलती. तुमसे संभोग किए बिना मेरे जीवन की बेचैनी कम नहीं होगी.

मानस के साथ होटल में मनाए गए सुहागरात से मुझे तुम्हारी कामुकता का अंदाजा हो गया है. मानस के साथ निश्चय ही तुम्हारे संबंध पिछले कई वर्षों से रहे होंगे. यूं ही कोई अपने सौतेले भाई के साथ सुहागरात नहीं मनाता.

मैं तुम्हारी इसी अदा का कायल हो गया हूँ. जिस प्रकार तुमने मानस के साथ रहते हुए भी अपने कौमार्य को बचा कर रखा था और उसे अपने विवाह उपरांत ही त्याग किया है मुझे यह बात भी प्रभावित कर गई है. मुझे यह भी पता है कि सोमिल इस समय कहां है और क्या कर रहा है. मेरा विश्वास रखो मैं तुम्हें ब्लैकमेल करना नहीं चाहता हूं पर तुमसे संभोग किए बिना मैं रह भी नहीं सकता हूँ.

तुम कामदेवी हो और अब तुमने अपना कौमार्य भी परित्याग कर दिया है अब तुम्हें किसी पर पुरुष से संभोग से आपत्ति नहीं होनी चाहिए. वैसे भी मैं तुम्हारे लिए इतना पराया नहींहूँ। मुझे सिर्फ और सिर्फ एक बार अपनी उत्तेजना का कुछ अंश देकर मुझे हमेशा के लिए तृप्त कर दो. संभोग के दौरान मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी कामुकता का आनंद लेना चाहता हूं तुम्हें आहत करना नहीं.

उम्मीद करता हूं कि तुम मेरी इस उचित या अनुचित याचना को पूरा करोगी. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं की होटल में हुई सुहागरात की घटना तुम तीनों के बीच ही रहेगी. मैं दोबारा कभी इस बात का जिक्र नहीं करूंगा. मेरे पास तुम्हारे कई सारे नग्न छायाचित्र है भविष्य के लिए तुम्हारी वही यादें ही मेरे लिए पर्याप्त होंगी।

उम्मीद करता हूं कि तुम मुझ पर विश्वास करोगी आज से 2 दिन बाद हमारा मिलन होगा मैं तुम्हें समय और स्थान ई-मेल पर सूचित कर दूंगा. सोमिल स्वस्थ और सामान्य है तथा अपनी कामुकता को जागृत कर रहा है जिसका सुख तुम्हें शीघ्र ही प्राप्त होगा.

मिलन की प्रतीक्षा में

तुम्हारा …..

छाया डरी हुई थी. आज ही वह डिसूजा के चंगुल से छूटी थी और फिर उसी भंवर जाल में फस रही थी. मैं एक बार तो पत्र लिखने वाले की संवेदना का कायल हो गया. उसने छाया की सुंदरता में इतने कसीदे पढ़ दिए थे कि मुझे उससे होने वाली नफरत थोड़ा कम हो गई थी.

पर वह मेरी छाया को भोगना चाहता था वह भी बिना उसकी इच्छा के यह बिल्कुल गलत था. छाया की कामुकता और उत्तेजना का भोग उसकी इच्छा के बिना लगाना नितांत जघन्य कृत्य था. वह काम देवी थी उससे बल प्रयोग करना या उसे बाध्य करना सर्वाधिक अनुचित था.

हमारे मन में तरह-तरह की बातें आने लगीं. माया जी को हमने यह बात नहीं बताई. यह बात हम तीनों के बीच ही थी और इसका निर्णय भी हम तीनों को ही करना था.


(मैं छाया)

शर्मा जी लगभग 8:00 बजे घर लौटे उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी. हम सभी ने उनका भव्य स्वागत किया. सच में आज उन्होंने डिसूजा को इस केस से हटवा कर हम सभी की इच्छा को पूरा कर दिया था. आज वह इस घर के मुखिया के रूप में दिखाई पड़ रहे थे. वह एक बार फिर मेरे पास आये और मेरे माथे को चूम लिया. मेरे दोनों गाल उनकी हथेलियों में थे उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में लेने की भी कोशिश की. मुझे उनका कल का आलिंगन याद था जिसमें मेरे स्तन उनके सीने से सट गए थे. आज सावधानी बरतते हुए मैं आगे झुक गई थी और सिर्फ अपने कंधों को उनके सीने से टकराने दिया.

उन्होंने फिर कहा

"कोई मेरे परिवार पर और खासकर मेरी छाया बेटी पर बुरी नजर डालेगा मैं उसे नहीं छोडूंगा." उनके उदघोष से मां का सीना गर्व से फूल गया था. उन्हें शर्मा जी को अपना जीवनसाथी चुनने पर आज अभिमान हो रहा था. मा ने उन पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. मां को इस खत की जानकारी नहीं थी इसलिए वह बहुत खुश थीं। हम तीनों के चेहरों पर अभी भी तनाव थे. यह बात हमने शर्मा जी से भी बताना उचित नहीं समझा.

(मैं माया)

दो-तीन दिन की तनाव भरी जिंदगी के बाद आज का दिन सुखद था। मेरी बेटी के चेहरे पर आज हंसी दिखाई पड़ी थी। शर्मा जी को मैंने आज अपने हाथों से खिलाया। आज मैं उन्हें हर तरह से खुश करना चाहती थी। मैंने अपनी अलमारी में उत्तेजक वस्त्रों की तलाश की पर मेरे मन मुताबिक कोई भी वस्त्र ना मिला। मैंने छाया की अलमारी से एक सुंदर नाइटी निकाल ली मेरी उम्र के हिसाब से वह कुछ ज्यादा ही कामुक थी। शर्मा जी भी कम कामुक न थे वह बार-बार मुझे ऐसे वस्त्र पहनने के लिए बोलते थे। आज मैंने उनकी मन की इच्छा पूरी करने की ठान ली थी। बच्चों के अपने-अपने कमरे में जाने के बाद मैं नहाने चली गई। जैसे ही मैं बाथरूम से बाहर निकली शर्मा जी मुझे एकटक देखते रह गए। यह ड्रेस वास्तव में बहुत आकर्षक और कामुक थी। मेरा बदन छाया से लगभग मिलता-जुलता था मुझ में उतनी चमक और कोमलता तो नहीं थी पर बदन के उतार-चढ़ाव छाया से मिलते थे। वो मुझे एक टक देखते रह गए। उन्होंने कहा "तुमने छाया की ड्रेस पहनी है ना"

मैं मुस्कुराने लगी वह मेरी चोरी पकड़ चुके थे. उन्होंने उठकर मुझे अपने आलिंगन में ले लिया मेरे बाल गीले थे मैंने उनसे कुछ समय मांगा पर वह सुनने को तैयार नहीं थे। जब तक मैं अपने बाल हेयर ड्रायर से सुखा रही थी तब तक वह मेरे स्तनों और जांघों से खेलना शुरू कर चुके थे। आज उनकी हथेलियों में गजब की उत्तेजना थी। उनका ल** मेरी नितंबों से लगातार टकरा रहा था वह नाइटी के ऊपर से ही मुझे सहलाए जा रहे थे। कभी-कभी वह उसके अंदर हाथ डाल कर मेरी जांघों को सहलाते। मैं भी उत्तेजित हो रही थी कुछ ही देर में हम दोनों बिस्तर पर थे। उन्होंने कहा

"तुमने छाया की नाइटी पहनी है उसे मालूम चल गया तो?"

"उसे कैसे मालूम चलेगा. मैं सुबह वापस रख दूंगी"

"पर इस नाइटी में तुम मुझे छाया जैसी दिखाई दोगी तो मैं तुमसे संभोग कैसे कर पाऊंगा"

"ठीक है लाइए मैं इसे उतार देती हूँ।" उन्होंने मेरे हाथ रोक लिए उन्होंने पूछा "छाया खुश तो है ना?"

"हां, आज वह बहुत खुश थी. और आपकी बहुत तारीफ कर रही थी"

"मैं भी उसे बहुत मानता हूं और उससे बहुत प्यार करता हूं" इतना कहकर उन्होंने मुझे दबोच लिया. उनके होंठ मेरे होठों को अपने बीच ले चुके थे। उनके लिंग का कड़ापन मेरे पेट को महसूस हो रहा था। उन्होंने फिर कहा

"आज तुम छाया की नाइटी पहन कर और भी जवान हो गई हो"

मेरी नाइटी मेरी कमर तक आ चुकी थी. मैंने उसे बाहर निकालने की कोशिश की पर शर्मा जी ने रोक दिया. वह उसी अवस्था में मेरे ऊपर आ गए और उनका लिंग मेरी योनि में टकरा गया.

आज मैं उन्हें भरपूर सुख देना चाहती थी यह बात सोचते हुए मेरी योनि में पहले से ही पर्याप्त गीलापन आ चुका था। शर्मा जी का लिंग के छूते ही मेरी प्यास बढ़ गई और शर्मा जी ने बिना देर करते हुए अपने लिंग को मेरी गहराइयों में उतार दिया। वह मेरे स्तनों को तेजी से मसल रहे थे और अपनी कमर से लगातार धक्के लगाए जा रहे थे। मैं भी उनकी उत्तेजना में उनका साथ दे रही थी कुछ ही देर में मुझे लगा कि मैं स्खलित हो जाऊंगी। शर्मा जी के रंग ढंग से ऐसा लग नहीं रहा था जैसे उन्हें पूरी संतुष्टि हुई हो। मैंने उन्हें नीचे आने का इशारा किया वह नीचे आ गए मैं उनकी कमर पर बैठकर अपनी योनि को आगे पीछे करने लगी। आज मैं स्वयं बहुत उत्तेजित थी और कुछ ही देर में मैं स्खलित होने लगी।

स्खलित होने के पश्चात उन्होंने मुझे अपने सीने से सटा लिया और मेरे माथे को चूमने लगे। मेरे दोनों गालों को सहलाते हुए वह बार-बार बोल रहे थे

मेरी प्यारी माया और माथे पर झूम रहे थे। मैं हारी हुई खिलाड़ी की तरह उनके पेट पर लेटी हुई थी। मेरी पराजित योनि में उनका लिंग अभी भी गर्व से खड़ा था। वह बार-बार मुझे सहलाए जा रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने से उम्र में बड़े आदमी की सीने पर लेटी हुई हूं और वह मुझे बच्चों जैसा प्यार कर रहा है। पर जब मेरा ध्यान मेरी कमर के नीचे जाता मेरी नग्नता उस प्यार की परिभाषा बदल देती थी। शर्मा जी का लिंग अब मेरी योनि में धीरे-धीरे हिलना शुरू हो रहा था कुछ देर बाद शर्मा जी ने मुझे अपने ऊपर से उतरने का इशारा किया। मैं वापस एक बार फिर पीठ के बल लेटने लगी। शर्मा जी बिस्तर से उठ कर नीचे खड़े हो गए वह मुझे डॉगी स्टाइल में आने का इशारा कर रहे थे। आज वह भी पूरे मूड में थे। मैं उन्हें खुश करने के लिए बिस्तर पर डॉगी स्टाइल में आ गई। शर्मा जी ने नाइटी को उठाया और मेरी कमर पर रख दिया मेरे दोनों नितम्ब उनकी आंखों के ठीक सामने थे। नितंबों के बीच से झांक रही मेरी योनि के होंठ भी उन्हें अवश्य नजर आ रहे होंगे।

उनका मजबूत लिंग मेरे नितंबों पर टकरा रहा था। वह कामुक तरीके से मेरी पीठ सहला रहे थे और मेरे नितंबों को चूम रहे थे। अचानक ही उन्होंने मेरी योनि के होठों को चूम लिया मुझे उनसे यह आशा नहीं है आज यह पहली बार हुआ था मेरी योनि एक बार संभोग कर चुकी थी मुझे इस अवस्था में यह कार्य अनुचित लगा मैंने अपनी कमर हिला दी। शायद वह मेरा इशारा समझ गए थे वह वापस खड़े हो गए।

उनके लिंग में आज अद्भुत उत्तेजना थी। कुछ ही देर में लिंग मेरी योनि के मुख से सट गया। मेरी योनि संवेदनशील हो चुकी थी। उसके मुख पर गीलापन अभी भी कायम था। शर्मा जी धीरे-धीरे अपने लिंग का दबाव बढ़ाते गए और वह मेरी योनि में प्रविष्ट होता चला गया। इस अवस्था में शर्मा जी का लिंग मुझे और भी मजबूत और मोटा महसूस हो रहा था। वह मेरे गर्भाशय के मुख तक पहुंच गया था। शर्मा जी अपनी कमर को आगे पीछे करने लगे वह बार-बार मेरी नाइटी को छूते और नाइटी के ऊपर से ही मेरी पीठ को सहलाए जा रहे थे। कभी-कभी वह अपने हाथ नीचे कर नाइटी में ही कैद मेरे स्तनों को छूते। मुझे अद्भुत एहसास हो रहा था। मैं एक बार फिर उत्तेजित हो रही थी। कुछ ही देर में उनके कमर के धक्के बढ़ते गए उनकी लिंग के आने-जाने की गति में अद्भुत इजाफा हो गया था। वह काफी तेजी से अपने लिंग को मेरे योनि में आगे पीछे कर रहे थे। मैं उत्तेजना से कांपने लगी वह मेरी कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़े हुए थे कुछ ही देर में मैने उनके लिंग को अपनी योनि में फूलता पचकता हुआ महसूस करने लगी इस अद्भुत एहसास से मैं भी स्खलित होने लगी। उन्होंने मेरी कमर को पकड़कर तेजी से अपनी तरफ खींचा और अपने लिंग को पूरी ताकत से अंदर तक ले गए जो मेरे गर्भाशय के मुख को फैलाने की कोशिश कर रहा था। मैं उनके इस तीव्र उत्तेजना को पहचान गई थी मैंने उन्हें रोका नहीं । मेरी योनि में वीर्य वर्षा हो रही थी जिसकी मुझे अनुभूति भी हो रही थी शर्मा जी के पैर कांप रहे थे और उनका कंपन मुझे अपने नितंबों पर महसूस हो रहा था उनके मुख से धीमी आवाज आई।

छाया…..…………...की नाइटी बहुत सुंदर है मायाजी आप हमेशा ऐसे ही रहा कीजीए।

उनके मुंह से छाया शब्द सुनकर मैं अचानक डर गई पर पूरी बात सुनकर मैं संतुष्ट हो गई थी। छाया की यह नाइटी निश्चय ही उत्तेजक थी। इसने आज मेरी उत्तेजना में आग में घी का काम किया था। मैंने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि उनकी खुशी के लिए ऐसे कई सारे वस्त्र अपनी भी अलमारी में रखूंगी।

वह अपना लिंग बाहर निकाल चुके थे मैंने उनके चेहरे की तरफ देखा वह तृप्त लग रहे थे। उन्होंने मुझे एक बार फिर अपने आलिंगन में ले लिया और मेरे दोनों गालों को सहलाते हुए मेरे माथे को चूम लिया।

मैं उनके आलिंगन में कुछ देर वैसे ही खड़ी रही। उन्होंने कहा तुमने और छाया ने मेरे जीवन में आकर मेरी वीरान जिंदगी में रंग भर दिए हैं। मैं भगवान से हमेशा तुम दोनों की खुशी मांगता हूँ और मानस की भी। उन्हें पता था, मानस भी हम दोनों को उतना ही प्यारा था।

(मैं शशिकांत शर्मा उर्फ शर्मा जी)

आज माया से संभोग करके मुझे जीवन का अद्भुत आनंद आया था. छाया की उत्तेजक नाइटी माया पर भी खूब खिल रही थी। यह पिछले 2 वर्षों से हो रहे हमारे मिलन से कुछ अलग था. आज माया ने पूरे तन मन से मुझे स्वीकार कर लिया था। आज उसका यह समर्पण मुझे अत्यंत आत्मीय लगा था और वह मेरे हृदय में आत्मसात हो गयी थी।

मैंने भी डिसूजा को इस केस से हटाकर अपने दायित्व का निर्वहन किया था मैं भगवान को शुक्रिया अदा कर रहा था कि आज मेरे संबंधों की वजह से मैं माया और उसकी बच्ची छाया के लिए कुछ कर पाया था।

संभोग के उपरांत मेरी आंख लग गई

मैंने अपने आप को बादलों में पाया मेरे पैर बादलों में थे पर मैं गिर नहीं रहा था। मैं अपने पैरों से बादलों को हटाता और वह हटकर कुछ दूर चले जाते और अगल-बगल के बादल उस जगह को भरने आ जाते। मुझे अद्भुत आनंद आ रहा था कभी मैं स्वयं को एक किशोर की भांति पाता कभी अपनी वर्तमान उम्र में। चारों तरफ पूर्ण सन्नाटा था पर उस दिव्य दृश्य को देखकर मैं आनंद में डूब गया था तभी अचानक मुझे एक दिव्य स्वरूप दिखाई दिया। मुझे बादलों से एक आकार अपनी तरफ आता हुआ दिखाई पड़ रहा था जैसे-जैसे का आकार मेरी तरफ आता मेरा कोतुहल बढ़ता जाता।

वह एक स्त्री थी जैसे जैसे वह करीब आ रही थी उसकी काया अब दिखाई पड़ने लगी थी पर वह अभी भी विशालकाय थी। सामान्य आकार से लगभग कई गुना विशाल। जैसे-जैसे वा मेरे करीब आती गई मुझे उसका आकार और बड़ा दिखाई पड़ने लगा यह निश्चय हो चुका था कि वह युवती की ही काया थी सफेद बादलों के बीच से गेंहुए हुए रंग की उसकी दिव्य काया अपना अद्भुत रूप दिखा रही थी। कामुक अंगो को बादलों ने घेर रखा था परंतु उस सुंदर काया की कामुकता को रोक पाने में बादल नाकाम हो रहे थे। उसके चेहरे , स्तन, नाभि प्रदेश और जाँघों के योग पर बादलों ने अपना आवरण दे दिया था। उस युवती के पूरे शरीर पर कोई भी वस्त्र नहीं था उसका मुख मंडल प्राकृतिक आभा से दमक रहा था। मैं उसे पहचान नहीं पा रहा था वह मेरे काफी करीब आ चुके थी। अचानक उसके चेहरे पर से बादल हटे मुझे वह कोई देवी स्वरूप प्रतीत हुई । मुझे अपनी गंदी सोच पर घृणा हुई मैं इस दिव्य शक्ति की जांघों और स्तनों पर अपना ध्यान केंद्रित किया हुआ था यह सोचकर मुझे शर्म और लज्जा आने लगी। मेरी गर्दन चुकी थी । तभी उस युवती की गूंजती हुई आवाज आई

"क्या हुआ आपने गर्दन क्यों झुका ली" मैं कुछ उत्तर न दे सका मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे व दिव्य शक्ति नाराज होकर मुझे कोई श्राप न दे दे। मैंने सर झुकाए हुए ही कहा

"मैं आपके दिव्य स्वरुप को नहीं पहचान पाया मेरा ध्यान भटक गया था मुझे क्षमा कर दीजिए"

"क्षमा मत मांगिए आपने कोई गलती नहीं की है जिस दृश्य को आप देखना चाहते थे आपने वही देखा. स्त्री शरीर के वही अंग आप को प्रभावित करते हैं जो आप पसंद करते हैं यदि आपने मेरे स्तनों और जांघों को देखने की चेष्टा की है तो निश्चय ही आपके मन में वासना ने जन्म लिया है. मैं तो स्वयं कामवासना की देवी रति हूं. धरती पर सभी वयस्क पुरुष मुझे ही ध्यान करते हैं कभी-कभी वह अपने साथी में मेरा स्वरूप पा लेते हैं। कभी पूर्ण तृप्त ना होने पर वह अपनी भावनाओं में मुझे याद कर लेते हैं। कभी मैं उनके समीप ही किसी और रूप में विद्यमान रहती हूँ। मैं उनकी कामवासना संतुष्ट करने में पूरी मदद करती हूं। जिन्हें कोई साथी नहीं मिल पाता वह मेरे ही अंगों पर ध्यान केंद्रित कर अपनी वासना की पूर्ति करते हैं और चरम सुख प्राप्त करते हैं"

मैं कामदेवी का विशाल हृदय देखकर गदगद हो गया. मैंने उन्हें प्रणाम किया उन्होंने फिर कहा

"यदि तुम इस प्रकार नतमस्तक रहोगे तो इस अद्भुत दिव्य दर्शन का आनंद कैसे ले पाओगे?"

मैंने अपनी नजरें उठा दीं वह मुस्कुराती हुई साक्षात मेरे सामने थीं। उनके इस विशाल रूप को देख पाने की मेरी क्षमता नहीं थी मैंने फिर एक बार कहा

"आपके इस दिव्य स्वरूप को मेरी आंखें देख पाने में नाकाम हो रही है. मेरी आंखें इस दिव्य रुप के चकाचौंध में दृष्टि हीन हो रहीं हैं कृपया अपना स्वरूप छोटा करें और मुझे दर्शन दें।"

उनका कद छोटा होता चला गया कुछ ही देर में वह सामान युवती की भांति मेरे सामने खड़ी थीं। चेहरे पर अद्भुत नूर था शरीर की बनावट आदर्श थी स्तनों को अभी भी बादल ने घेरा हुआ था पर उनका आकार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था ऐसा लगता था सांची के स्तूपों को छोटा करके उनके दोनों स्तनों की जगह रख दिया गया हो।सीने से कमर तक आते आते हैं कमर की चौड़ाई अद्भुत रूप से कम हो गई थी और उसके तुरंत ही पश्चात वह बढ़ते हुए उनके नितंब का रूप ले रही थी।

उनकी जाँघें बेदाग और सुडोल थी ऐसी दिव्य काया को मैं ज्यादा देर नहीं देख पाया। मेरी आँखें फिर झुक गई। उन्होंने फिर कहा

"यदि आपकी तृप्ति से हो गई हो तो मैं अंतर्ध्यान ही जाऊं"

" आपसे कोई आपसे कैसे तृप्त हो सकता है मेरी आंखें फिर खुल गई थी उनके चेहरे और शरीर से बादल हट चुके थे सुंदर सुडोल स्तन मेरी आंखों के सामने थे जांघों के जोड़ पर दो खूबसूरत होठ अपने बीच थोड़ी जगह बनाए हुए दर्शनीय थे। नाभि और जांघों के जोड़ के बीच की जगह एकदम सपाट और बेदाग थी। मैं उस अद्भुत काया को निहार रहा था। तभी मेरी नजर देवी के चेहरे पर गए मेरे मुख से निकल गया "छाया"

वह हंसने लगी

अचानक छाया का चेहरा गायब हो गया और वह चेहरा एक दिव्य स्वरुप में परिवर्तित हो गया. जब जब मैं अपना ध्यान चेहरे से हटाता और कामुक अंगो की तरफ लाता मेरे जेहन में कभी वह दिव्य चेहरा आता कभी छाया का चेहरा दिखाई पड़ता। मैंने एक बार फिर चेहरे की तरफ ध्यान लगाया और फिर छाया का ही चेहरा सामने आयाम

मैं इस दुविधा से निकल पाता तभी एक बार गूंजती हुई आवाज फिर आई

"आइए मेरे आगोश में आ जाइए. मैं धरती पर हर जगह अलग-अलग रूपों में उपलब्ध हूं. मेरी उपासना सारी मानव जाति करती है आप भी उनमें से एक हैं।"

मैं धीरे-धीरे उस अद्भुत काया की तरफ बढ़ने लगा। जैसे ही मैं उनके स्तनों को छु पाता मेरी नींद खुल गई।

मैं बिस्तर पर उठ कर बैठ गया। मैं मन ही मन डरा हुआ भी था पर अपने लिंग पर निगाह जाते हैं मेरा डर गायब हो चुका था। वह पूर्ण रूप से उत्तेजित था। शायद यह कामदेवी का ही आशीर्वाद था।


मैं माया जी की नाइटी हटाकर उनके कोमल नितंबों से अपने लिंग को सटा दिया और उन्हें अपने आगोश में लेकर सो गया। यश स्वप्न अद्भुत और अविश्वसनीय था उसने मेरे मन मे प्रश्न उत्पन्न कर दिया था.... क्या छाया कामदेवी रति की अवतार थी....???

शुक्रवार (पांचवा दिन)
(सोमिल का कैदखाना)
(मैं शांति उर्फ लक्ष्मी)

यहां आने से पहले मेरे मन में भी इस बात का डर था की जिस व्यक्ति के साथ मुझे रहना था वह किस स्वभाव का होगा। मैंने पैसों के लालच में हा तो कर दिया था पर मैं डरी हुई थी। मैंने इससे पहले एक या दो बार ही अपरिचित मेहमानों से सेक्स किया था। वह भी उम्र में मुझसे काफी बड़े थे। उनके साथ सेक्स कर कर मुझे स्वयं को कोई अनुभूति नहीं हुई थी। मैंने सेक्स का आनंद अपने पुराने बॉयफ्रेंड के साथ ही लिया था जो अब दुबई भाग गया था।

भगवान ने मुझे खूबसूरत और हसीन बनाया था पर मेरी गरीबी ने मुझे ऐसे कार्य करने पर बाध्य किया था। मेरी पढ़ाई अब पूरी हो चुकी थी। पैसों के लालच में मैंने आखरी बार यह कार्य करने के लिए स्वयं को तैयार कर लिया था।

मुझे मेरे भाई ने बताया था जो व्यक्ति यहां आ रहा है वह उस रात सुहागरात मनाने वाला था और उसे उसी अवस्था से किडनैप कर लिया गया है। तुम्हें उसका ख्याल रखना है और उसे अगले कुछ दिनों तक उत्तेजित कर उसका मन लगाए रखना है। यदि तुम उसके साथ संभोग कर लेती हो तो यह तुम्हारी विजय मानी जाएगी। इसके लिए तुम्हें उचित इनाम भी दिया जाएगा। पर तुम्हें यह बात ध्यान रखनी होगी कि वह एक सभ्य इंसान है यदि उसे तनिक भी भ्रम हो गया कि तुम एक कॉल गर्ल हो तो वह तुम्हारे पास भी नहीं आएगा।

यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम उसे किस तरह प्रभावित करती हो पर यदि तुमने उसके साथ संभोग कर लिया तो निश्चय ही तुम्हारे ईनाम की राशि बढ़ा दी जाएगी। मैं मन ही मन इस अनोखे चैलेंज को स्वीकार कर चुकी थी। सोमिल सर को देखने के बाद मैं उनकी मर्दानगी की कायल हो गई थी। लंबा चौड़ा शरीर और चेहरे पर आकर्षण एक लड़की को संभोग के लिए जो कुछ भी चाहिए था सोमिल सर में कूट कूट कर भरा था।

मैं उनसे पहली नजर में ही प्रभावित हो गई थी। मुझे मेरे भाई द्वारा दिया गया चैलेंज मेरा खुद का चैलेंज बन गया था। मुझे वियाग्रा की कुछ गोलियां भी दी गई थी जिन्हें निश्चित अंतराल पर मुझे सुनील सर को देना था। मैंने दर्द निवारक दवाओं के साथ उस गोली को भी उन्हें देना शुरू कर दिया था। जिससे उनके लिंग में हमेशा उत्तेजना कायम रहती थी। उनका अंडरवियर हम लोगों ने जानबूझकर हटा दिया था तथा मेरी नाइटी के गायब होने की कहानी भी मैंने स्वयं ही गढ़ ली थी।

उनकी सफेद शर्ट में जब मैं बाहर निकली तो मुझे उनकी उत्तेजना का एहसास हो गया था उनके पजामे से उनके लिंग का आकार स्पष्ट दिखाई पड़ता था। उन्हें उत्तेजित करते-करते मैं स्वयं उत्तेजित होने लगी थी। बीती रात मैंने बिस्तर पर सोते हुए हर जतन किए कि वह मेरी चू** को देखकर मुझसे संभोग का मन बना लें। मैं चाहती थी वह मुझे अपनी बाहों में खींच ले और जी भर कर अपनी और मेरी प्यास बुझाएं। पर वह निहायत ही शरीफ थे। मैंने कुछ सफलता तो अवश्य पाई जब वो मेरे सामने ही हस्तमैथुन कर रहे थे। उनकी आंखें बंद थी पर मैं खुली आंखों से उनके सभ्य और सुसंस्कृत ल** को उनकी हथेलियों में हिलते देख रही थी। मेरी इच्छा हो रही थी कि मैं उसे अपने हाथों में ले लूं और स्वयं उन्हें स्खलित कर दूं पर मुझे सब्र से काम लेना था।

मेरी एक गलती भी उन्हें मेरी हकीकत का एहसास दिला देती और मैं चैलेंज हार जाती। उनके वीर्य की धार जब मेरे स्तनों पर पड़ी तब मुझे अद्भुत एहसास हुआ। मेरी योनि पूरी तरह चिपचिपी हो गई थी। बिस्तर पर बैठे रहने की वजह से उस से निकला प्रेम रस चादर पर अपने निशान बना चुका था। जब वह करवट लेकर सो गए तो मैं बिस्तर से उठी और उस निशान को देख कर मुस्कुराने लगी। मैंने बाथरूम में जाकर अपनी उत्तेजना शांत की और उनके बगल में आकर सो गयी। मेरे पास कुछ ही दिन शेष थे मुझे उनके साथ संभोग करना था यह मेरे लिए चैलेंज कम मेरी दिली इच्छा ज्यादा थी।

आज सुबह नहाने के बाद मुझे उनकी शर्ट उतारने पड़ी। यह शर्ट मेरी कामुकता में चार चांद लगा रही थी। मैं नहाकर नाइटी पहन कर बाहर आ गई। इस नाइटी में मैं चाह कर भी अपने सोमील सर को आकर्षित नहीं कर पा रही थी।

छाया और सीमा के प्रयास
(मैं मानस)

छाया और सीमा ने अपने कॉलेज के दोस्तों और फ्रेंड सर्किल में उस अनजान लड़की की तस्वीरें प्रसारित कर दीं थीं। छाया ने उस फोटो में से सोमिल की फोटो हटाकर सिर्फ उस लड़की की फोटो रखी थी वह समझदार तो थी ही।

हॉस्टल की लड़कियों का नेटवर्क जबरदस्त था। उन्होंने उस खूबसूरत लड़की की तस्वीर अपने सभी फ्रेंड्स को भेज दी यह सिलसिला चलता गया और अंततः हमें यह मालूम चल चुका था कि वह लड़की लक्ष्मी थी जो होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर चुकी थी। वह पैसों के लिए कभी-कभी वह हाई प्रोफाइल कॉल गर्ल बन कर कामुक गतिविधियां भी किया करती थी।

हमें जबरदस्त सफलता हाथ लगी थी छाया और सीमा अपनी इस सफलता से खुश थे। हमें सोमिल जल्द ही मिलने वाला था।
 

Lovely Anand

Love is life
1,324
6,479
159
Behad hi shandar update tha Lovely Anand bhai______
Ek musibat se chhutkara mila to dusri musibat khadi ho chuki hai. Chhaya to sach me kamdevi hai kyo ki uske chahne wale ab is tarah se samne aa rahe hain. Shadi ke din to teeno ne masti ki thi lekin blackmailer ne sirf chhaya ko hi kyo chuna. Sima ko bhi to blackmail kar sakta tha wo______
Sharma to apna farj nibha raha hai magar maya ji ke sath jab wo sambhog kar raha tha tab wo chhaya ka soch kar kuch jyada hi garam tha. Uske baad usne chhaya ka sapna bhi dekha jisme wo use kamdevi ke roop me dikh rahi thi. Mujhe lagta hai ki Sharma par chhaya ka asar kuch jyada hi hua hai aur is baat se wo shak ke ghere me bhi hai_______
Somil aur laxmi ka apna alag hi matter chal raha hai. Ye baat saaf ho chuki hai ki laxmi ko somil ke paas rakha hi is liye gaya hai taaki dono me sex relation bane. Is baat se use bhi aage chal kar blackmail kiya hi jayega. Ab sawal ye hai ki ye sab kar kaun raha hai_______
धन्यवाद । उस दिन मस्ती मानस और छाया ने की थी सीमा तो दूसरे कमरे में बेहोश पड़ी थी वह मानस की पत्नी थी उसे ब्लैकमेल करने का कोई कारण भी नहीं था......
 
Top