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भाग ९६
ननद की सास, और सास का प्लान
२२, ११,११९
मैंने झट से उनके मुंह पे हाथ रख दिया, घर की बिटिया, कहीं मुंह से उलटा सीधा, अशकुन,... और सर सहलाती रही।
हम दोनों चुप चाप बैठे रहे, धीमे से मेरी ननद बोलीं
" हम सुने थे की मायका माई से होता है लेकिन हमार मायका तो भौजी से है "
मुझे देख रही थीं और उनकी बड़ी बड़ी आँखे डबडबा रही थीं, मैंने चूम के उन पलकों को बंद कर दिया।
बोलना मैं भी बहुत कुछ चाहती थी बहुत कुछ वो भी,... पर कई बादल उमड़ घुमड़ के रह जाते हैं बिना बरसे,
तबतक मेरी सास की आवाज आई रसोई में से ननद को बुलाती, किसी काम में हेल्प के लिए। ननद रसोई में चली गयी और मैं भी निकली तो ननदोई जी के कमरे के बाहर
ननद अपनी माँ के पास रसोई में और मैं भी ,
तभी ननदोई जी के कमरे से फोन की आवाज आयी।नन्दोई जी और ननद की सास की बात, बात तो टेलीफोन पे हो रही थी, वही स्पीकर फोन आन था और दोनों ओर की बात सुनाई पड़ रही थी
मैं ठिठक गयी, कान पार के सुनने लगी।
मेरे पैरों के नीचे से जमीन सरक गयी। आँखों के आगे अँधेरा छा गया, किसी तरह दीवाल पकड़ के खड़ी हो गयी।
उधर से ननद की सास की चीखने, चिल्लाने की आवाज आ रही थी। मैं सुन सब रही थी, बस समझ नहीं पा रही थी, बार बार मेरे सामने मेरी ननद की सूरत आ रही थी। अभी पल भर पहले कितनी खुश आ रही थी और यहाँ उनकी सास, क्या क्या प्लान,
बेचारी मेरी ननद। \
-----
नन्दोई जी की एक अच्छी आदत थी, एक साथ कई काम करने की, फोन करते समय भी वो कुछ पढ़ते रहेंगे, किसी और काम भी और फोन स्पीकर फोन पे,
और इस समय भी फोन स्पीकरफोन पे था, और आवाज मेरे कमरे में भी आ रही थी। वैसे तो मैं ध्यान नहीं देती लेकिन ननद जी की सास की आवाज सुन के मैं दीवाल से चिपक गयी, ननद की सास थोड़े गुस्से में लग रही थी,
" कल क्यों नहीं आयी महरानी जी " सास उनकी गुस्से में बोल रही थीं।
" अरे कल उसके सर में दर्द बहुत था, मैं हस्पताल से आया तो हम लोग आ ही जाते, लेकिन, " नन्दोई जी बोलने की कोशिश कर रहते थे पर ननद की सास ने बात बीच में काट दी,
" सुख रोग लगा है महरानी को, भौजाई गोड़ दबा रही होगी, महतारी मूँड़, सब नौटंकी, आने दो आते ही, अब पूरे घर का काम, झाड़ू पोंछा, गोबर उठावे, कण्डा पाथे, जितने कामवाली हैं सबको आज ही से हटा देतीं हूँ,... जो काम बहू का है वो तो कर नहीं रही, वंश का चिराग देने का,... तो यही काम करें, कुल मूड़ पिराना ठीक हो जाएगा। "
नन्दोई ने कोई जवाब नहीं दिया, सास ही उनकी फिर से बोलीं,
" तुम भी न उसको बहुत सर चढ़ाये रहते हो, एक तो गोर चमड़ी, और ऊपर से मुंह में शहद,अस मीठ बोली, ऐसा लुभाय हो और सीधे भी हो तुमको तो ऊँगली पे नचाती है लेकिन अब बोल दे रही हूँ, अब मैं कुछ बोलूंगी, कहूँगी, करुँगी, तो सोच लेना, माई की मेहरारू "
" नहीं नहीं माई, आप की बात हम जिन्नगी में कभी काटे की अबे, तोहार बात सबसे ऊपर वो तो हम हस्पताल में इतने दिन, वहां भी हमरे साले की वजह से इतना आराम हो गया, "
" तो कौन बड़ा काम हो गया " ननद की सास ने ऐसा जहर उगला की मुझे लगा की पिछले जन्म में पक्की नागिन रही होंगी,
" अरे ओकरे बहन की हम अपने घर लाये हैं दो जून की रोटी देते हैं, कपडा देते हैं, महरानी बन के रहती हैं ठाठ से, तो तानी हस्पताल में, ससुराल वालों का काम है, एक ठो दमाद है इतना भी नहीं करेंगे, और बिटिया भी कैसी दिए हैं ....किसी काम लायक नहीं, तीन साल हो गए ,..."
सास ननद की, गुस्से के मारे बोल नहीं पा रही थीं, और नन्दोई की हिम्मत नहीं हो रही थी न वो फोन काट सकते थे।
फिर उनकी सास की ही आवाज आयी, गुस्से से फुफकार रही थी,
" पहले क ज़माना होता, तो झोंटा पकड़ के महतारी के सामने ओकरे पटक आती, और ओहि दिन दूसर ले आती,... सोना अस हमार लड़का, केतना लोग आपन आपन बिटिया ले के, दरवाजा खोद डारे थे, जउने दिन नयकी आती, ठीक नववें महीने पोता पोती निकाल देती, और का समझती हैं वो तो हम इतना तोपे ढांके,.... नहीं तो कुलच्छिनी बाँझिन को मायके में भी जगह नहीं मिलती, भौजाई, भौजाई इतना करती हैं वही भौजाई दुरदुरा के निकाल देखती, शक्ल देख के दरवाजा बंद कर लेती की कहीं बाँझिन क परछाई पड़े से, अरे एक गयी दूसरी आती, "
लेकिन अबकी नन्दोई जी से नहीं रहा गया,
" नहीं माई ये सब नहीं आज, कल के ज़माने में बड़ी " बड़ी मुश्किल से वो बोले।
लेकिन बेटे का बदला सुर देख माँ ने भी अपना सुर बदल दिया
" मैं जानती नहीं का, अब वो सब, अरे हमरे मायके के बगल में एक हमरे रिश्तेदार ही थे, नयी भी नहीं बियाहे के तीन साल बाद, रसोई में कुछ, साडी में उसके, लापरवाही वो की भुगती सास ननद, थाना कचहरी कुल हुआ, साल भर बाद छूटीं, अभी भी मुकदमा चल रहा है , हमहुँ को मालूम है वो जमाना बाद नहीं है, लेकिन ये सोचो न की हमरे ससुर क तोहरे बाबू क कमाई, इतना खेत, बगीचा, इतना बड़ा घर, कल कोई चिराग जलाने वाला भी नहीं, अरे हम अमर घुट्टी नहीं पी के आये हैं, बस इहे एक साध थी, जाए के पहले पोती पोता का मुंह देख लेती तो,..."
और फिर सास चुप होगयी, हलकी सी सिसकने की आवाज, पता नहीं सच या नौटंकी थोड़ी देर दोनों ओर से कोई आवाज नहीं आयी फिर सास हलकी आवाज में बोलीं
" अरे बहुरिया लाख गुन आगर होय, लेकिन, अरे हम जिनको गौने में उतारे हमसे चार पांच साल छोट, और ओकरे आंगन में तीन तीन पोती पोता, एक दिन ओकरे घर के सामने से जा रहे थे, वो अपनी पोती को बुकवा लगा रही थी, जान बुझ के पूछी " अरे दीदी कउनो खुस खबर," जी हमारा जर गया, तोहरे चार महीने बाद गौना उतरा था उसकी बहु का, "
" हां मालूम है मनोजवा न " बड़ी बुझी आवाज में ननदोई बोले,
" असली बात तो बताये नहीं जो करेजवा में आग लगाने वाली तोहार चाची बोलीं, " अब नन्दोई की माँ एक बार फिर से चहक रही थी " मनोजवा की मेहरिया, फिर खट्टा मांग रही है और मनोजवा क माई हमें जलाने के लिए बोली की हम तो बहु जउने दिन उतरी थी ओहि दिन बोल दिए थे बहू और कुछ नहीं लेकिन गोली ओली यह घरे में ना चली, हमरे कउनो कमी न है हार साल एक होई तो भी नहीं, बस हमरे आंगन में , बस हम चुपचाप, " ननद की सास चुप हो गयी और फिर बोलीं
" अरे हम भी तो एक्के चीज मांगे थे तोहरी मेहरारू से, जब दुल्हिन गोड़ छुई तबे हम बोल दिए थे, हमें नौ महीने में पोती पोता चाहिए, पोती हो, या पोता लेकिन, ..." और फिर उन्होंने ऐसी ठंडी सांस ली की नागिन की फुंफकार झूठ।
इतनी तेज फुफकार थी की उसका जहर दीवाल पार कर मेरे कमरे में फ़ैल गया। आवाज फिर से चाबुक ऐसी कड़क,
' कब आओगे, "
" आज फिर हस्पताल जाना है और पुलिस वाला काम भी है शाम को बुलाया है, कल सुबह, नहीं तो दोपहर तक " नन्दोई एकदम मेमना बन गए थे "
" कल सोमवार है न, तो एकदम दोपहर के पहले घर में तुम और वो महरानी, ये नहीं की सरहज के हाथ का खाना खाने के लालच में, बहुत ससुरार हो गया, आने तो दो रानी जी को, मैं साफ़ कह रही हूँ दोपहर तक तुम दोनों, "
एकदम ठंडी लेकिन असरदार आवाज और ननदोई जी पर जो असर हुआ, उससे ज्यादा दीवाल पार कर के मेरे ऊपर हुआ, जोर का झटका जोर से लगा,
ननद की सास, और सास का प्लान
२२, ११,११९
मैंने झट से उनके मुंह पे हाथ रख दिया, घर की बिटिया, कहीं मुंह से उलटा सीधा, अशकुन,... और सर सहलाती रही।
हम दोनों चुप चाप बैठे रहे, धीमे से मेरी ननद बोलीं
" हम सुने थे की मायका माई से होता है लेकिन हमार मायका तो भौजी से है "
मुझे देख रही थीं और उनकी बड़ी बड़ी आँखे डबडबा रही थीं, मैंने चूम के उन पलकों को बंद कर दिया।
बोलना मैं भी बहुत कुछ चाहती थी बहुत कुछ वो भी,... पर कई बादल उमड़ घुमड़ के रह जाते हैं बिना बरसे,
तबतक मेरी सास की आवाज आई रसोई में से ननद को बुलाती, किसी काम में हेल्प के लिए। ननद रसोई में चली गयी और मैं भी निकली तो ननदोई जी के कमरे के बाहर
ननद अपनी माँ के पास रसोई में और मैं भी ,
तभी ननदोई जी के कमरे से फोन की आवाज आयी।नन्दोई जी और ननद की सास की बात, बात तो टेलीफोन पे हो रही थी, वही स्पीकर फोन आन था और दोनों ओर की बात सुनाई पड़ रही थी
मैं ठिठक गयी, कान पार के सुनने लगी।
मेरे पैरों के नीचे से जमीन सरक गयी। आँखों के आगे अँधेरा छा गया, किसी तरह दीवाल पकड़ के खड़ी हो गयी।
उधर से ननद की सास की चीखने, चिल्लाने की आवाज आ रही थी। मैं सुन सब रही थी, बस समझ नहीं पा रही थी, बार बार मेरे सामने मेरी ननद की सूरत आ रही थी। अभी पल भर पहले कितनी खुश आ रही थी और यहाँ उनकी सास, क्या क्या प्लान,
बेचारी मेरी ननद। \
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नन्दोई जी की एक अच्छी आदत थी, एक साथ कई काम करने की, फोन करते समय भी वो कुछ पढ़ते रहेंगे, किसी और काम भी और फोन स्पीकर फोन पे,
और इस समय भी फोन स्पीकरफोन पे था, और आवाज मेरे कमरे में भी आ रही थी। वैसे तो मैं ध्यान नहीं देती लेकिन ननद जी की सास की आवाज सुन के मैं दीवाल से चिपक गयी, ननद की सास थोड़े गुस्से में लग रही थी,
" कल क्यों नहीं आयी महरानी जी " सास उनकी गुस्से में बोल रही थीं।
" अरे कल उसके सर में दर्द बहुत था, मैं हस्पताल से आया तो हम लोग आ ही जाते, लेकिन, " नन्दोई जी बोलने की कोशिश कर रहते थे पर ननद की सास ने बात बीच में काट दी,
" सुख रोग लगा है महरानी को, भौजाई गोड़ दबा रही होगी, महतारी मूँड़, सब नौटंकी, आने दो आते ही, अब पूरे घर का काम, झाड़ू पोंछा, गोबर उठावे, कण्डा पाथे, जितने कामवाली हैं सबको आज ही से हटा देतीं हूँ,... जो काम बहू का है वो तो कर नहीं रही, वंश का चिराग देने का,... तो यही काम करें, कुल मूड़ पिराना ठीक हो जाएगा। "
नन्दोई ने कोई जवाब नहीं दिया, सास ही उनकी फिर से बोलीं,
" तुम भी न उसको बहुत सर चढ़ाये रहते हो, एक तो गोर चमड़ी, और ऊपर से मुंह में शहद,अस मीठ बोली, ऐसा लुभाय हो और सीधे भी हो तुमको तो ऊँगली पे नचाती है लेकिन अब बोल दे रही हूँ, अब मैं कुछ बोलूंगी, कहूँगी, करुँगी, तो सोच लेना, माई की मेहरारू "
" नहीं नहीं माई, आप की बात हम जिन्नगी में कभी काटे की अबे, तोहार बात सबसे ऊपर वो तो हम हस्पताल में इतने दिन, वहां भी हमरे साले की वजह से इतना आराम हो गया, "
" तो कौन बड़ा काम हो गया " ननद की सास ने ऐसा जहर उगला की मुझे लगा की पिछले जन्म में पक्की नागिन रही होंगी,
" अरे ओकरे बहन की हम अपने घर लाये हैं दो जून की रोटी देते हैं, कपडा देते हैं, महरानी बन के रहती हैं ठाठ से, तो तानी हस्पताल में, ससुराल वालों का काम है, एक ठो दमाद है इतना भी नहीं करेंगे, और बिटिया भी कैसी दिए हैं ....किसी काम लायक नहीं, तीन साल हो गए ,..."
सास ननद की, गुस्से के मारे बोल नहीं पा रही थीं, और नन्दोई की हिम्मत नहीं हो रही थी न वो फोन काट सकते थे।
फिर उनकी सास की ही आवाज आयी, गुस्से से फुफकार रही थी,
" पहले क ज़माना होता, तो झोंटा पकड़ के महतारी के सामने ओकरे पटक आती, और ओहि दिन दूसर ले आती,... सोना अस हमार लड़का, केतना लोग आपन आपन बिटिया ले के, दरवाजा खोद डारे थे, जउने दिन नयकी आती, ठीक नववें महीने पोता पोती निकाल देती, और का समझती हैं वो तो हम इतना तोपे ढांके,.... नहीं तो कुलच्छिनी बाँझिन को मायके में भी जगह नहीं मिलती, भौजाई, भौजाई इतना करती हैं वही भौजाई दुरदुरा के निकाल देखती, शक्ल देख के दरवाजा बंद कर लेती की कहीं बाँझिन क परछाई पड़े से, अरे एक गयी दूसरी आती, "
लेकिन अबकी नन्दोई जी से नहीं रहा गया,
" नहीं माई ये सब नहीं आज, कल के ज़माने में बड़ी " बड़ी मुश्किल से वो बोले।
लेकिन बेटे का बदला सुर देख माँ ने भी अपना सुर बदल दिया
" मैं जानती नहीं का, अब वो सब, अरे हमरे मायके के बगल में एक हमरे रिश्तेदार ही थे, नयी भी नहीं बियाहे के तीन साल बाद, रसोई में कुछ, साडी में उसके, लापरवाही वो की भुगती सास ननद, थाना कचहरी कुल हुआ, साल भर बाद छूटीं, अभी भी मुकदमा चल रहा है , हमहुँ को मालूम है वो जमाना बाद नहीं है, लेकिन ये सोचो न की हमरे ससुर क तोहरे बाबू क कमाई, इतना खेत, बगीचा, इतना बड़ा घर, कल कोई चिराग जलाने वाला भी नहीं, अरे हम अमर घुट्टी नहीं पी के आये हैं, बस इहे एक साध थी, जाए के पहले पोती पोता का मुंह देख लेती तो,..."
और फिर सास चुप होगयी, हलकी सी सिसकने की आवाज, पता नहीं सच या नौटंकी थोड़ी देर दोनों ओर से कोई आवाज नहीं आयी फिर सास हलकी आवाज में बोलीं
" अरे बहुरिया लाख गुन आगर होय, लेकिन, अरे हम जिनको गौने में उतारे हमसे चार पांच साल छोट, और ओकरे आंगन में तीन तीन पोती पोता, एक दिन ओकरे घर के सामने से जा रहे थे, वो अपनी पोती को बुकवा लगा रही थी, जान बुझ के पूछी " अरे दीदी कउनो खुस खबर," जी हमारा जर गया, तोहरे चार महीने बाद गौना उतरा था उसकी बहु का, "
" हां मालूम है मनोजवा न " बड़ी बुझी आवाज में ननदोई बोले,
" असली बात तो बताये नहीं जो करेजवा में आग लगाने वाली तोहार चाची बोलीं, " अब नन्दोई की माँ एक बार फिर से चहक रही थी " मनोजवा की मेहरिया, फिर खट्टा मांग रही है और मनोजवा क माई हमें जलाने के लिए बोली की हम तो बहु जउने दिन उतरी थी ओहि दिन बोल दिए थे बहू और कुछ नहीं लेकिन गोली ओली यह घरे में ना चली, हमरे कउनो कमी न है हार साल एक होई तो भी नहीं, बस हमरे आंगन में , बस हम चुपचाप, " ननद की सास चुप हो गयी और फिर बोलीं
" अरे हम भी तो एक्के चीज मांगे थे तोहरी मेहरारू से, जब दुल्हिन गोड़ छुई तबे हम बोल दिए थे, हमें नौ महीने में पोती पोता चाहिए, पोती हो, या पोता लेकिन, ..." और फिर उन्होंने ऐसी ठंडी सांस ली की नागिन की फुंफकार झूठ।
इतनी तेज फुफकार थी की उसका जहर दीवाल पार कर मेरे कमरे में फ़ैल गया। आवाज फिर से चाबुक ऐसी कड़क,
' कब आओगे, "
" आज फिर हस्पताल जाना है और पुलिस वाला काम भी है शाम को बुलाया है, कल सुबह, नहीं तो दोपहर तक " नन्दोई एकदम मेमना बन गए थे "
" कल सोमवार है न, तो एकदम दोपहर के पहले घर में तुम और वो महरानी, ये नहीं की सरहज के हाथ का खाना खाने के लालच में, बहुत ससुरार हो गया, आने तो दो रानी जी को, मैं साफ़ कह रही हूँ दोपहर तक तुम दोनों, "
एकदम ठंडी लेकिन असरदार आवाज और ननदोई जी पर जो असर हुआ, उससे ज्यादा दीवाल पार कर के मेरे ऊपर हुआ, जोर का झटका जोर से लगा,
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