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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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Kamaal Karti Ho Komal Di ..भाग 98 –
अगली परेशानी…, नन्दोई जी
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नन्दोई -ककोल्ड
मेरे मन में अभी भी ननद की सास की, साधू के आश्रम का डर था, हिम्मत कर के मेरे मुंह से बोल फूटे,
" लेकिन कोई जबरदस्ती करके,..”
“ हाथ टूट जाएगा, भस्म हो जाएगा, ….अब चिंता जिन करा, नौ महीना बाद सोहर गावे क तैयारी करा, कउनो बाधा, बिघन नहीं पडेगा। " माई बोलीं बिहँस के
मैंने और ननद जी दोनों ने आँख बंद कर के हाथ जोड़ लिया, और आँख खोला तो वहां कोई नहीं था, सिर्फ ननद रानी की गोरी गोरी बाहों पे वो काला धागा बंधा था,
जिधर पेड़ हिल रहे थे, जहाँ लग रहा था वहां से कोई गुजरा होगा, उधर हाथ फिर मैंने जोड़ लिए।
और लौटते हुए हम ननद भौजाई के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, मारे ख़ुशी के,
एक तो ननद हमार तीन साल के बाद गाभिन हो गयी थीं, और ऊपर से सत्ती माई का आशिर्बाद साक्षात, खुद, और असली बात थी
डर जो हम ननद भौजाई के मन में था, सास उसकी जबरदस्ती आश्रम भेजतीं और जो उनकी देह नोची जाती, गिद्ध सब, जीते जी रौरव नरक, ….और ननद जो बात बोली थीं,…. मारे डर के हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे, भौजी ताल पोखर में मिलब,…. अब के बिछुड़े,
लेकिन तालाब की काई की तरह सब डर गायब, असली खुसी
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लेकिन घर लौटते ही मुझे फिर अगली परेशानी ने घेर लिया, नन्दोई जी।
कल उनकी सास ने जिस तरह नन्दोई जी को हड़काया था और बोला था की,... कुछ भी हो दोपहर के पहले वो अपनी पत्नी के साथ घर में दाखिल हो जाएँ।
तो बस मुझे लगता था की ननदोई जी आते ही बिदाई बिदाई चिल्लायेंगे और कहीं अगर ननद को आज बिदा करा के ले गए तो मेरा सब किया धरा, ….कम से कम आज की रात उन्हें यहाँ रुकना जरूरी था, और उसके लिए जितना देर से आएं उतना अच्छा,
मैं थोड़ा सा मुस्करायी, सोच के। अपने मरद को, बहुत दुष्ट है और उतना ही प्यारा।
शहर की हूँ लेकिन अब तो पक्की गाँव वाली हो गयी हूँ, चिड़िया चिंगुर, जानवर सब का किस्सा देख देख के सुन के, …मुझे कोयल का किस्सा याद आया। कैसे वो फुदक फुदक के चुदवाती है, गाभिन होती है और कैसे चतुराई से अपना अंडा सेने के लिए कौए के घोंसले में, और कोए की किस्मत में दूसरे का अंडा,… दूसरे ने जो मजा लिया उसके फल को पकने तक सेना, पता तो तब भी नहीं चलता है, जब अंडा फूटता है।
वो तो जब कोयल की बिटिया बड़ी होकर डाली डाली अमराई में कूकने लगती है तब खुलता है राज, …तो बस ननदोई जी भी उसी तरह।
मजा मेरे मरद ने लिया. हचक हचक के नन्दोई की मेहरारू को लिटाय के, निहुराय के, कुतिया बनाय के पेला,
फाड़ी उसकी बुर, उसे गाभिन किया,
लेकिन सेने का काम,... ननदोई के जिम्मे ।
चोद के, आपन बीज डाल के, गाभिन कर के , ….जब पेट फूलने लगेगा तो अपने बहनोई के हवाले, ....और जब बिटिया बड़ी होगी, धीरे धीरे जवान होगी, खिलेगी, और गाँव जवार क सब कहेगें इसके लच्छन तो एकदम अपनी महतारी पे गए हैं, बल्कि उससे भी दो हाथ आगे, पर चेहरा हूबहू अपने मामा पे, शर्तिया अपने मामा की जाई। बीज बोलता है।
और नन्दोई सोचेंगे,… की ससुराल है लोग मजाक तो करेंगे ही और भांजी को मामा से जोड़ के तो मजाक चलता ही है। लेकिन ये बात भी सही है की सूरत एकदम साले पे गयी है, पर चलो बंश तो चल रहा है, माई तो खुश है।
कौवे की तरह, जो कोयल के पहचानने के बाद भी मन को दिलासा देता है,
ककोल्ड शब्द उसी से तो निकला है। मरद जो अपनी मेहरारू को किसी और मरद के नीचे देख के खुश हो, तो मेरे ननदोई पक्के ककोल्ड,
और मेरा मरद भी,…
अगले नौ महीने के अंदर ही आदरणीय नन्दोई जी की बहिनिया को, उस दर्जा ११ में पढ़ने वाली गोरी नागिन की भी लेगा, और हचक के लेगा,
उसकी महतारी की भी लेगा और फिर महतारी बिटिया की साथ साथ लेगा, दोनों नागिनों का फन अपने मोटे मूसल से कुचलेगा, जिससे बिस न उगल पाएं
और मेरे ननदोई की बीबी तो छठी का दूध भी एक चूँची से अपनी नयी बियाई बछिया को पिलायेंगी, और दूसरे से मेरे मरद सांड को और अपनी बछिया से बोलेंगी,
“देख ले इस सांड़ को यही चढ़ेगा तोहरे ऊपर, यही है तेरा बाप, इसी के बीज की जाई है तू। "
और जब भी मायके आएँगी अपनी बिटिया के सामने मेरे मरद से गपागप,
लेकिन लेकिन , सबसे बड़ी बात
वो स्साला कौवा, अपने घोंसले में कोयल का अंडा डालने दे तब न,
नन्दोई जी ककोल्ड तो तभी बनेंगे जब उन्हें पक्का विशवास होगा की होने वाली बेटी उन्ही के बीज की है, लेकिन कैसे
कैसे, कैसे यही चिंता मुझे साल रही थी और ख़ुशी अब आधी रह गयी थी । अगर ननदोई जी को जरा भी शक हो गया न तो फिर ननद की जिंदगी जहर हो जायेगी, पति -पत्नी के बीच शक से बड़ी बिषबेल कोई नहीं है, इसलिए आज की रात ननदोई का ननद के साथ यहाँ सोना बहुत जरूरी है,
कैसे हो, कैसे हो,
मैं ऊँगली पर जोड़ने लगी, ननद ने कब बाल धोये थे, कब उनकी पांच दिन वाली छुट्टी ख़तम हुयी थी। और उसके बाद कितनी बार ननदोई उनके पास सोये थे।
पिछले पांच दिन तो मैंने खुद ननद नन्दोई को दूर रखा था, और उसके पहले भी वो एक दो दिन अपनी महतारी के पास गए थे और होली में तो सब कुछ छोड़ के मेरे पीछे, और मैं खुद उन्हें ललचा ललचा के, कितने बारे मेरे अगवाड़े, पिछवाड़े और कौन है जो ननदोई ने कितनी बार नंबर लगाया गिनती है वो भी होली में। होली के बाद जब मैं मायके से अपनी छोटी बहिनिया को छुटकी को ले आयी तो उस दर्जा नौ वाली के छोट छोट चूतड़ के पीछे तो वो ऐसे मोहाये थे, कितनी बार
तो अगर ननद उन्हें खुशखबरी सुनाती तो उन्हें क्या किसी को भी शक होता
और बाल धोने के कुछ दिन बाद हर मरद जानता है कितना पेलो, कुछ भी नहीं होने वाला, हाँ चार पांच दिन के बाद, ले
किन तबसे तो ननदोई जी मेरे और मेरी बहन के पीछे
कुछ तो करना पड़ेगा, उन्हें पक्का ककोल्ड बनाने के लिए, उन्हें सिर्फ बिश्वास न हो बल्कि घमंड हो की मैंने ही अपनी मेहरारू को पेल पेल के गाभिन कर दिया है
मरद को सबसे ज्यादा घमंड जिस बात का है वही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है, उसके कमर का जोर
तो ननदोई जी को आज रात में रुकना होगा, ननद जी की उन्हें खूब हचक के लेनी होगी और रोज से अलग, एकदम थेथर कर दें
जिससे कल सबेरे जब ननद उन्हें ख़ुशख़बरी दें तो उन्हें लगे की कल रात कुछ अलग हुआ था, ये सब उनकी कमर की ताकत, हचक के पेलने का नतीजा है की मेरी ननद गाभिन हुयी है, उन्ही के बीज से
और ये तभी हो सकता है की जब ननदोई आज रात रुके, ननद के साथ सोएं पर उनकी महतारी ने जिस तरह हड़काया था कल, उनकी हिम्मत नहीं है आते ही चलने की जिद करेंगे और फिर सब गड़बड़
जो बार सोच सोच के मैं घबड़ा रही थी, वही डर मेरी ननद को भी खा रहा था। बोल नहीं रही थीं वो लेकिन अपनी कातर हिरणी की तरह निगाह से बार बार मुझे देख रही थीं मानो कह रही हो
भौजी कुछ करो, भौजी कुछ करो
मेरी माँ ने मेरी सब परेशानी सुलझाने के लिए एक चाभी दी थी,
मेरी सास का बेटा, और वो अब आ गए थे,
Nandoi Ko Rokne me Jo Asali Bhumika Thee Vo thee Nurse Raani Ki .. .. Beech me bhee ek Do Din aur Fir Yaha par Apne Sath Nayaki Nurse ka Bhee Jugaad Kiya .ननदोई जी, रुकेंगे, …नहीं रुकेंगे रात में ?
साजन से मन की बात कहनी पड़े तो क्या,
साजन वो जो बिना कहे समझ जाए, बस उन्होंने नन्दोई जी को फ़ोन लगा दिया और मैंने स्पीकर फोन ऑन, कर दिया, साले बहनोई की बात मैं सुनना चाहती थी, नन्दोई जी जितना देर से आएं उतना अच्छा, अभी मुझे और ननद जी को थोड़ी देर में मंदिर जाना था, लौट के बारह एक तो बज ही जाता,
फोन पर ननदोई जी की आवाज से लग रहा था अभी सो के उठे हैं,
" अरे जीजा अभी आप सो के उठे हैं नौ बज रहे हैं " ये बोले
अब नन्दोई जी चौंके, " अरे नौ बज गए, माई ने बोला था की दोपहर तक घर, लेकिन रात भर, “
हल्की सी मुस्कराहट के साथ वो बोले जैसे उनके साले कोंच कोंच के रात का हाल जरूर पूछे, और उन्होंने पूछ भी लिया,
" पुरनीकि नरसिया था या कउनो नयी भी "
नन्दोई जी खिलखिलाये और सब सुना दिया,
" अरे पुरनिकी ही तो बोली थी की आज एक एकदम कच्ची कली दिलवाएगी, मुझे लगा की मजाक कर रही है लेकिन सच में एकदम कच्ची, वही ले आयी थी, कोई ट्रेनिंग करने आयी है, देखने में भी मस्त, फूल बस आ ही रहे थे, एकदम कोरी कच्ची, थोड़ा हाथ पैर पटकी, लेकिन पुरनिकी पहले ही समझा बुझा के लायी थी, ‘जीजा है, जीजा का हक होता है, ‘दो बार आगे एक बार पीछे, फिर पुरनिकी भी गरमा गयी थी, तो एक बार,… सबेरे पांच बजे के बाद गयीं दोनों तो सोये हैं। वो कोर्ट वाला काम तनी जल्दी हो जाता तो निकला आते "
मैंने आँख से इन्हे इशारा किया कोई जल्दी की जरूरत नहीं है आएं शाम तक ननदोई जी,
" इसी लिए तो आपको फोन किया था, सी ओ का फोन आया था, आपकी क्लोजर रिपोर्ट बना दिया है, सबसे ऊपर फ़ाइल आपकी है बस मजिस्ट्रेट बैठेंगे साइन कर देंगे। लेकिन आज वो मजिस्ट्रेट ही १२ बजे के बाद बैठेंगे, और एक बार उनका दस्तखत हो जाए, केस बंद तो वो आपका डी एल और बाकी कागज दे देंगे, एक बजे तक आप फ्री हो जाएंगे "
" फिर तो, " नन्दोई जी ने ठंडी सांस ली और बोले एक बात और है
" वो मैनेजर, बहुत हेल्प किया वो कह रहे थे की जीजा जी आप खाना हमारे साथ खा के जाइये, आपके लिए भुना गोश्त और बटेर का इंतजाम किया है, मैंने कुछ बोला नहीं, लेकिन माई बोली थी जल्दी घर पहुँचने के लिए "
" अरे नहीं जीजा जी, उनकी दावत मत मना कीजियेगा, वो लोग बहुत बुरा मान जाएंगे , अब देखिये आप तो मेहमान है आप से कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन मुझसे रिश्ता खट्टा हो जाएगा, फिर मैंने खाया है, भुना गोश्त तो वो जबरदस्त बनाते हैं और बटेर आजकल मिलती कहाँ है आपके लिए कहीं से मंगवाया होगा। फिर सोचिये कोर्ट में ही आपको डेढ़ दो बजेगा, और खाने में कितना आधा घंटा तो चार के पहले आ पा जाइयेगा, और माई को बोल दीजियेगा कोर्ट की बात "
मैं सुन रही थी, ननद भी बगल में खड़ी मुस्करा रही थीं
मैं और ननद दोपहर को मंदिर गए,
नन्दोई जी चार बजे के बाद ही आये, करीब साढ़े चार बजे, लेकिन आते ही घोड़े पर चढ़े
नन्दोई जी आये घोड़े पर चढ़े, आते ही ननद के ऊपर, " अरे तुम अभी तैयार नहीं हो, माई बोली थी, दोपहर के पहले पहुंच जाना है और अब, चलो तुरंत चलना है "
नन्दोई एकदम आज्ञाकारी और उससे बढ़कर माँ के आगे मुंह खोलने की हिम्मत नहीं थी, मैं तो फोन पे सुन ही चुकी थी, हड़काने से लेकर इमोशनल अत्याचार तक सब कुछ करके अपने लड़के को उन्होंने अभी भी मुट्ठी में रखा था।
ननद बेचारी क्या बोलतीं, उनको दिखाते हुए सामान बांधने लगी, लेकिन वो बार बार मेरी ओर देखतीं की मैं कुछ करूँ,
मेरी सास बीच में आयीं,
" अरे भैया, अब इतना देर हो गयी हैं, निकलते निकलते सांझ हो जायेगी, रात बिरात, हम ये नहीं कहते की माई की बात टालो, लेकिन सुबह, दुपहर तक आ जाते तो निकल जाते, लेकिन तुम भी का करते, कोर्ट कचहरी का काम, आदमी के हाथ में तो नहीं होता न, जब छुट्टी मिले, हमार बात मान लो अभी रुक जाओ, सबेरे ठन्डे ठन्डे निकल जाना, टाइम पे पहुँच जाओगे, "
लेकिन नन्दोई की हिम्मत जो अपनी माँ की बात, तो मेरे सास से भी बोले, " आप की सब बात ठीक, लेकिन माई बहुत गुस्सा हो रही थीं कल, अब आपसे क्या कहें, कही थीं की दोपहर तक जरूर, और अब नहीं निकले तो कहेंगी, कोर्ट का काम तो दो बजे हो गया, चार बजे पहुँच भी गए तो चले क्यों नहीं, …हम दोनों पे बहुत, …वैसे तो बहुत सीधी हैं लेकिन जब गुस्सा होती हैं,…। "
ननद सामने रखी अपनी चप्प्पल, पलंग के नीचे झुक के ढूंढ रही थीं। बस किसी तरह जितना समय मायके में मिल जाए, वहां पहुँच के पता नहीं क्या हो, छुपाते छुपाते भी एक कतरा आंसू आँख से निकल ही गया।
कुछ भी हो मुझे आज की रात ननदोई को रोकना ही था यहाँ वरना सब किया धरा गड़बड़ हो जाता। आज दिनभर की ख़ुशी को ग्रहण लग गया था, ननद बस बार बार मुझे देख रही थीं।