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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग ९८

अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६

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भाग 98

अगली परेशानी…, नन्दोई जी

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नन्दोई -ककोल्ड



मेरे मन में अभी भी ननद की सास की, साधू के आश्रम का डर था, हिम्मत कर के मेरे मुंह से बोल फूटे,

" लेकिन कोई जबरदस्ती करके,..”

“ हाथ टूट जाएगा, भस्म हो जाएगा, ….अब चिंता जिन करा, नौ महीना बाद सोहर गावे क तैयारी करा, कउनो बाधा, बिघन नहीं पडेगा। " माई बोलीं बिहँस के

मैंने और ननद जी दोनों ने आँख बंद कर के हाथ जोड़ लिया, और आँख खोला तो वहां कोई नहीं था, सिर्फ ननद रानी की गोरी गोरी बाहों पे वो काला धागा बंधा था,

जिधर पेड़ हिल रहे थे, जहाँ लग रहा था वहां से कोई गुजरा होगा, उधर हाथ फिर मैंने जोड़ लिए।



और लौटते हुए हम ननद भौजाई के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, मारे ख़ुशी के,



एक तो ननद हमार तीन साल के बाद गाभिन हो गयी थीं, और ऊपर से सत्ती माई का आशिर्बाद साक्षात, खुद, और असली बात थी

डर जो हम ननद भौजाई के मन में था, सास उसकी जबरदस्ती आश्रम भेजतीं और जो उनकी देह नोची जाती, गिद्ध सब, जीते जी रौरव नरक, ….और ननद जो बात बोली थीं,…. मारे डर के हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे, भौजी ताल पोखर में मिलब,…. अब के बिछुड़े,

लेकिन तालाब की काई की तरह सब डर गायब, असली खुसी

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लेकिन घर लौटते ही मुझे फिर अगली परेशानी ने घेर लिया, नन्दोई जी।

कल उनकी सास ने जिस तरह नन्दोई जी को हड़काया था और बोला था की,... कुछ भी हो दोपहर के पहले वो अपनी पत्नी के साथ घर में दाखिल हो जाएँ।

तो बस मुझे लगता था की ननदोई जी आते ही बिदाई बिदाई चिल्लायेंगे और कहीं अगर ननद को आज बिदा करा के ले गए तो मेरा सब किया धरा, ….कम से कम आज की रात उन्हें यहाँ रुकना जरूरी था, और उसके लिए जितना देर से आएं उतना अच्छा,



मैं थोड़ा सा मुस्करायी, सोच के। अपने मरद को, बहुत दुष्ट है और उतना ही प्यारा।

शहर की हूँ लेकिन अब तो पक्की गाँव वाली हो गयी हूँ, चिड़िया चिंगुर, जानवर सब का किस्सा देख देख के सुन के, …मुझे कोयल का किस्सा याद आया। कैसे वो फुदक फुदक के चुदवाती है, गाभिन होती है और कैसे चतुराई से अपना अंडा सेने के लिए कौए के घोंसले में, और कोए की किस्मत में दूसरे का अंडा,… दूसरे ने जो मजा लिया उसके फल को पकने तक सेना, पता तो तब भी नहीं चलता है, जब अंडा फूटता है।

वो तो जब कोयल की बिटिया बड़ी होकर डाली डाली अमराई में कूकने लगती है तब खुलता है राज, …तो बस ननदोई जी भी उसी तरह।
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मजा मेरे मरद ने लिया. हचक हचक के नन्दोई की मेहरारू को लिटाय के, निहुराय के, कुतिया बनाय के पेला,


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फाड़ी उसकी बुर, उसे गाभिन किया,

लेकिन सेने का काम,... ननदोई के जिम्मे ।

चोद के, आपन बीज डाल के, गाभिन कर के , ….जब पेट फूलने लगेगा तो अपने बहनोई के हवाले, ....और जब बिटिया बड़ी होगी, धीरे धीरे जवान होगी, खिलेगी, और गाँव जवार क सब कहेगें इसके लच्छन तो एकदम अपनी महतारी पे गए हैं, बल्कि उससे भी दो हाथ आगे, पर चेहरा हूबहू अपने मामा पे, शर्तिया अपने मामा की जाई। बीज बोलता है।

और नन्दोई सोचेंगे,… की ससुराल है लोग मजाक तो करेंगे ही और भांजी को मामा से जोड़ के तो मजाक चलता ही है। लेकिन ये बात भी सही है की सूरत एकदम साले पे गयी है, पर चलो बंश तो चल रहा है, माई तो खुश है।

कौवे की तरह, जो कोयल के पहचानने के बाद भी मन को दिलासा देता है,

ककोल्ड शब्द उसी से तो निकला है। मरद जो अपनी मेहरारू को किसी और मरद के नीचे देख के खुश हो, तो मेरे ननदोई पक्के ककोल्ड,

और मेरा मरद भी,…

अगले नौ महीने के अंदर ही आदरणीय नन्दोई जी की बहिनिया को, उस दर्जा ११ में पढ़ने वाली गोरी नागिन की भी लेगा, और हचक के लेगा,


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उसकी महतारी की भी लेगा और फिर महतारी बिटिया की साथ साथ लेगा, दोनों नागिनों का फन अपने मोटे मूसल से कुचलेगा, जिससे बिस न उगल पाएं

और मेरे ननदोई की बीबी तो छठी का दूध भी एक चूँची से अपनी नयी बियाई बछिया को पिलायेंगी, और दूसरे से मेरे मरद सांड को और अपनी बछिया से बोलेंगी,

“देख ले इस सांड़ को यही चढ़ेगा तोहरे ऊपर, यही है तेरा बाप, इसी के बीज की जाई है तू। "
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और जब भी मायके आएँगी अपनी बिटिया के सामने मेरे मरद से गपागप,



लेकिन लेकिन , सबसे बड़ी बात

वो स्साला कौवा, अपने घोंसले में कोयल का अंडा डालने दे तब न,

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नन्दोई जी ककोल्ड तो तभी बनेंगे जब उन्हें पक्का विशवास होगा की होने वाली बेटी उन्ही के बीज की है, लेकिन कैसे



कैसे, कैसे यही चिंता मुझे साल रही थी और ख़ुशी अब आधी रह गयी थी । अगर ननदोई जी को जरा भी शक हो गया न तो फिर ननद की जिंदगी जहर हो जायेगी, पति -पत्नी के बीच शक से बड़ी बिषबेल कोई नहीं है, इसलिए आज की रात ननदोई का ननद के साथ यहाँ सोना बहुत जरूरी है,
कैसे हो, कैसे हो,



मैं ऊँगली पर जोड़ने लगी, ननद ने कब बाल धोये थे, कब उनकी पांच दिन वाली छुट्टी ख़तम हुयी थी। और उसके बाद कितनी बार ननदोई उनके पास सोये थे।

पिछले पांच दिन तो मैंने खुद ननद नन्दोई को दूर रखा था, और उसके पहले भी वो एक दो दिन अपनी महतारी के पास गए थे और होली में तो सब कुछ छोड़ के मेरे पीछे, और मैं खुद उन्हें ललचा ललचा के, कितने बारे मेरे अगवाड़े, पिछवाड़े और कौन है जो ननदोई ने कितनी बार नंबर लगाया गिनती है वो भी होली में। होली के बाद जब मैं मायके से अपनी छोटी बहिनिया को छुटकी को ले आयी तो उस दर्जा नौ वाली के छोट छोट चूतड़ के पीछे तो वो ऐसे मोहाये थे, कितनी बार



तो अगर ननद उन्हें खुशखबरी सुनाती तो उन्हें क्या किसी को भी शक होता

और बाल धोने के कुछ दिन बाद हर मरद जानता है कितना पेलो, कुछ भी नहीं होने वाला, हाँ चार पांच दिन के बाद, ले

किन तबसे तो ननदोई जी मेरे और मेरी बहन के पीछे

कुछ तो करना पड़ेगा, उन्हें पक्का ककोल्ड बनाने के लिए, उन्हें सिर्फ बिश्वास न हो बल्कि घमंड हो की मैंने ही अपनी मेहरारू को पेल पेल के गाभिन कर दिया है

मरद को सबसे ज्यादा घमंड जिस बात का है वही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है, उसके कमर का जोर

तो ननदोई जी को आज रात में रुकना होगा, ननद जी की उन्हें खूब हचक के लेनी होगी और रोज से अलग, एकदम थेथर कर दें

जिससे कल सबेरे जब ननद उन्हें ख़ुशख़बरी दें तो उन्हें लगे की कल रात कुछ अलग हुआ था, ये सब उनकी कमर की ताकत, हचक के पेलने का नतीजा है की मेरी ननद गाभिन हुयी है, उन्ही के बीज से

और ये तभी हो सकता है की जब ननदोई आज रात रुके, ननद के साथ सोएं पर उनकी महतारी ने जिस तरह हड़काया था कल, उनकी हिम्मत नहीं है आते ही चलने की जिद करेंगे और फिर सब गड़बड़

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जो बार सोच सोच के मैं घबड़ा रही थी, वही डर मेरी ननद को भी खा रहा था। बोल नहीं रही थीं वो लेकिन अपनी कातर हिरणी की तरह निगाह से बार बार मुझे देख रही थीं मानो कह रही हो

भौजी कुछ करो, भौजी कुछ करो


मेरी माँ ने मेरी सब परेशानी सुलझाने के लिए एक चाभी दी थी,

मेरी सास का बेटा, और वो अब आ गए थे,
 
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ननदोई जी, रुकेंगे, …नहीं रुकेंगे रात में ?
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साजन से मन की बात कहनी पड़े तो क्या,

साजन वो जो बिना कहे समझ जाए, बस उन्होंने नन्दोई जी को फ़ोन लगा दिया और मैंने स्पीकर फोन ऑन, कर दिया, साले बहनोई की बात मैं सुनना चाहती थी, नन्दोई जी जितना देर से आएं उतना अच्छा, अभी मुझे और ननद जी को थोड़ी देर में मंदिर जाना था, लौट के बारह एक तो बज ही जाता,



फोन पर ननदोई जी की आवाज से लग रहा था अभी सो के उठे हैं,

" अरे जीजा अभी आप सो के उठे हैं नौ बज रहे हैं " ये बोले

अब नन्दोई जी चौंके, " अरे नौ बज गए, माई ने बोला था की दोपहर तक घर, लेकिन रात भर, “

हल्की सी मुस्कराहट के साथ वो बोले जैसे उनके साले कोंच कोंच के रात का हाल जरूर पूछे, और उन्होंने पूछ भी लिया,

" पुरनीकि नरसिया था या कउनो नयी भी "

नन्दोई जी खिलखिलाये और सब सुना दिया,

" अरे पुरनिकी ही तो बोली थी की आज एक एकदम कच्ची कली दिलवाएगी, मुझे लगा की मजाक कर रही है लेकिन सच में एकदम कच्ची, वही ले आयी थी, कोई ट्रेनिंग करने आयी है, देखने में भी मस्त, फूल बस आ ही रहे थे, एकदम कोरी कच्ची, थोड़ा हाथ पैर पटकी,


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क्या बताऊँ, समझिये पचासों की झिल्ली फाड़ा होऊंगा, लेकिन ऐसी कम उमर वाली कच्ची, आज तक, नहीं मिली। ये समझ लो, झांटे बस आना शुरू ही हुयी थीं, खूब चिचिंया रही थी, हाथ पैर पटक रही लेकिन वो पुरनकी ऐसे कस के दबोचे थे, जैसे चील गौरेया को पकडे हो और हमसे बोल रही थी,' चिचियाने दीजिये स्साली को, पेलिए पूरी ताकत से,


लेकपुरनिकी पहले ही समझा बुझा के लायी थी, ‘जीजा है, जीजा का हक होता है,"
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दो बार आगे एक बार पीछे,


फिर पुरनिकी भी गरमा गयी थी, तो एक बार,… सबेरे पांच बजे के बाद गयीं दोनों तो सोये हैं। वो कोर्ट वाला काम तनी जल्दी हो जाता तो निकला आते "



मैंने आँख से इन्हे इशारा किया कोई जल्दी की जरूरत नहीं है आएं शाम तक ननदोई जी,

" इसी लिए तो आपको फोन किया था, सी ओ का फोन आया था, आपकी क्लोजर रिपोर्ट बना दिया है, सबसे ऊपर फ़ाइल आपकी है बस मजिस्ट्रेट बैठेंगे साइन कर देंगे। लेकिन आज वो मजिस्ट्रेट ही १२ बजे के बाद बैठेंगे, और एक बार उनका दस्तखत हो जाए, केस बंद तो वो आपका डी एल और बाकी कागज दे देंगे, एक बजे तक आप फ्री हो जाएंगे "

" फिर तो, " नन्दोई जी ने ठंडी सांस ली और बोले एक बात और है

" वो मैनेजर, बहुत हेल्प किया वो कह रहे थे की जीजा जी आप खाना हमारे साथ खा के जाइये, आपके लिए भुना गोश्त और बटेर का इंतजाम किया है, मैंने कुछ बोला नहीं, लेकिन माई बोली थी जल्दी घर पहुँचने के लिए "

" अरे नहीं जीजा जी, उनकी दावत मत मना कीजियेगा, वो लोग बहुत बुरा मान जाएंगे , अब देखिये आप तो मेहमान है आप से कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन मुझसे रिश्ता खट्टा हो जाएगा, फिर मैंने खाया है, भुना गोश्त तो वो जबरदस्त बनाते हैं
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और बटेर आजकल मिलती कहाँ है आपके लिए कहीं से मंगवाया होगा।
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फिर सोचिये कोर्ट में ही आपको डेढ़ दो बजेगा, और खाने में कितना आधा घंटा तो चार के पहले आ पा जाइयेगा, और माई को बोल दीजियेगा कोर्ट की बात "

मैं सुन रही थी, ननद भी बगल में खड़ी मुस्करा रही थीं

मैं और ननद दोपहर को मंदिर गए,



नन्दोई जी चार बजे के बाद ही आये, करीब साढ़े चार बजे,

नन्दोई जी आये घोड़े पर चढ़े, आते ही ननद के ऊपर, " अरे तुम अभी तैयार नहीं हो, माई बोली थी, दोपहर के पहले पहुंच जाना है और अब, चलो तुरंत चलना है "

नन्दोई एकदम आज्ञाकारी और उससे बढ़कर माँ के आगे मुंह खोलने की हिम्मत नहीं थी, मैं तो फोन पे सुन ही चुकी थी, हड़काने से लेकर इमोशनल अत्याचार तक सब कुछ करके अपने लड़के को उन्होंने अभी भी मुट्ठी में रखा था।


ननद बेचारी क्या बोलतीं, उनको दिखाते हुए सामान बांधने लगी, लेकिन वो बार बार मेरी ओर देखतीं की मैं कुछ करूँ,



मेरी सास बीच में आयीं,

" अरे भैया, अब इतना देर हो गयी हैं, निकलते निकलते सांझ हो जायेगी, रात बिरात, हम ये नहीं कहते की माई की बात टालो, लेकिन सुबह, दुपहर तक आ जाते तो निकल जाते, लेकिन तुम भी का करते, कोर्ट कचहरी का काम, आदमी के हाथ में तो नहीं होता न, जब छुट्टी मिले, हमार बात मान लो अभी रुक जाओ, सबेरे ठन्डे ठन्डे निकल जाना, टाइम पे पहुँच जाओगे, "


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लेकिन नन्दोई की हिम्मत जो अपनी माँ की बात, तो मेरे सास से भी बोले, " आप की सब बात ठीक, लेकिन माई बहुत गुस्सा हो रही थीं कल, अब आपसे क्या कहें, कही थीं की दोपहर तक जरूर, और अब नहीं निकले तो कहेंगी, कोर्ट का काम तो दो बजे हो गया, चार बजे पहुँच भी गए तो चले क्यों नहीं, …हम दोनों पे बहुत, …वैसे तो बहुत सीधी हैं लेकिन जब गुस्सा होती हैं,…। "

ननद सामने रखी अपनी चप्प्पल, पलंग के नीचे झुक के ढूंढ रही थीं। बस किसी तरह जितना समय मायके में मिल जाए, वहां पहुँच के पता नहीं क्या हो,

छुपाते छुपाते भी एक कतरा आंसू आँख से निकल ही गया।


कुछ भी हो मुझे आज की रात ननदोई को रोकना ही था यहाँ वरना सब किया धरा गड़बड़ हो जाता। आज दिनभर की ख़ुशी को ग्रहण लग गया था, ननद बस बार बार मुझे देख रही थीं।
 
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रुक गए नन्दोई जी
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मैं आज अपना मोहिनी रूप बना के आयी थी, नन्दोई को लुभाने, सोलहो सिंगार के साथ, एकदम टाइट लो कट चोली, दोनों उभार बाहर झांकते, पतली कमर पर चांदी की करधन, और चौड़े नितम्ब टाइट नाभि दर्शना साडी कूल्हे के नीचे से बाँधी ज्सिअस ननदोई जी की जान मारने वाले दोनों नितम्ब साफ़ साफ़….

लेकिन इस मोहिनी रूप का भी असर ननदोई पर,.. बचपन से उनकी माँ ने जो ट्रेनिंग दे रखी थी, उसके चलते आज फीका पड़ रहा था. मैं देवता पितर मना रही थी, कुछ हो जाए, आज वो कंटाइन, छिनार क महतारी को सद्बुद्धि आ जाए, सब को याद किया, होलिका माई, सत्ती माई और जब मेरी सास की अरज मिनती सब फेल हो गयी तो मैं मैदान में आयी और मैंने ननदोई जी से उन्ही की तरह बात की,

" आप एकदम सही कह रहे हैं, जो माई जन्म दी, नौ महीने पेट में रखीं, पाल पास के बड़ा की, और अभी भी इतना ख्याल करती है उनकी बात काटने की तो सपने में भी नहीं सोचना चाहिए,"

नन्दोई जी खुश, पहली बात उनकी निगाह चोली से झांकते मेरे जोबन पर गयी। चेहरा चमक गया, बोले

," आप एकदम मेरे दिल की बात समझती हैं, जो मैं नहीं कह पाता, वो भी। अपनी ननद को समझाइये न, माई की बात तो माई की बात है न। जिंदगी भर मैंने उनकी एक बात पे बोला तक नहीं और अगर अब, फिर सबेरे जाएँ अभी जाएँ क्या फरक पड़ेगा। दोपहर को नहीं जा पाए कोर्ट में फंस गए थे लेकिन इस का क्या जवाब दूंगा मैं की रात में क्यों रुक गए ? और कुछ उल्टा सीधा माई के मुंह से निकल गया, …थोड़ा उनका स्वभाव तेज है, जो मन में वही मुंह पे …और जो ठान लेती हैं कर के रहती हैं, ….लेकिन हैं तो मेरी माई न, "



ननद मुझे देख रही थीं, चेहरा एकदम मुरझाया, बड़ी बड़ी दीये सी आँखे, जैसे दीया तेल से लबालब भरा हो वैसे ही आंसू से वो आँखे भी,



बस जैसे कसाई के पास ले जाय मेमना मुड़ मुड़ के देखता है, मिमियाता है, ननद तो मिमीया भी नहीं सकती थीं। सास उनकी उस आश्रम में भेजने के पीछे, मैं खुद फोन पर सुन" चुकी थी, उनकी सास के मुंह पे, बस दो दिन बाद,



ननद ने बोला था अगर मैं आश्रम गयी, ….और मैंने उनका मुंह बंद करा दिया था।

मैंने ननदोई जी की हाँ में हाँ मिलाई,

" एकदम, मैं भी ननद जी से यही कहती हूँ, की सास तो माँ से भी बढ़कर, माँ की बात टालने की तो सोचना भी नहीं चाहिए। मन तो मेरा नहीं कह रहा है आपको जाने देने को ( और मेरा आँचल लुढ़का, कामदेव के पांचो तीर मैंने एक साथ छोड़े ),


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लेकिन, मैं ये कह रही हूँ की माई को एक बार फोन कर दीजिये की आप लोग निकल रहे हैं, कोर्ट में देरी हो गयी थी, अभी आये हैं तुरंत निकल रहे हैं। उन को भी लगेगा न आप उन की बात का लिहाज कर रहे हैं और जैसे आये वैसे ही तुरंत, फिर आप के भले के लिए ही तो परेशान होती हैं, उनका मन भी थोड़ा हल्का हो जाएगा। "

और मेरी बात सुनते ही नन्दोई जी का सारा टेंशन गायब हो गया, मुस्कराकर मेरी ननद से बोले,


" देखो मैं कहता हूँ न की मेरी सलहज से अच्छी दुनिया में कोई है नहीं, न रूप में न जोबन में न समझदारी में"

मेरी ननद ने भी हाँ में हाँ मिलाई " मेरी भौजी, दुनिया में सच में सबसे अच्छी है "

और दुलार से उन्होंने मुझे जकड़ लिया और मैं उनकी पीठ सहलाते समझाते कान में बुदबुदा रही थी, होलिका माई सत्ती माई,… बिस्वास रखिये "

ननदोई जी की जैसे आदत थी उन्होंने ननद की सास को फोन लगाया लेकिन स्पीकर फोन आन करके,



कई बार हॉरर फिल्मो में कोई राक्षस या इस टाइप की किसी चीज के आने के पहले जैसे बादल कड़कने, की आवाज आती है, एकदम डरावनी, बस वैसे ही, ननद मेरे सीने में दुबक गयीं थीं

और मैं भी जानती थी ननद की सास फोन पर बात नहीं करती सिर्फ हुकुम सुनाती है, जैसे पुराने जमाने के जालिम राजा लोग, जल्लाद से कहते थे,

' इसका सर काट के ले आओ " और जल्लाद के जाने के पहले ही दूसरा हुकुम भी नाचने वाली से, " नाच चालु करो "

बस एकदम उसी तरह से,

और नन्दोई की माई की आवाज गूंजी । मैंने ननद की सास को देखा नहीं था पर आवाज से ही पूतना छाप लग रही थीं,

" अभी तक चले नहीं हो तो आज मत चलो। मैं गुरु जी के पास आ गयी हूँ, कल सुबह आउंगी। गुरु जी ने कुछ कागज दिया है, कल आओगे तो साइन कर देना। बिट्टी ( ननद की ननद ) अपने मौसी के यहाँ गयी है परसों शाम तक आएगी, घर में कोई है नहीं। लेकिन कल देर मत करना, मैं दस बजे तक घर पहुँच जाउंगी, तुम लोग भी बारह के पहले पहुँच जाना। "

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जब तक नन्दोई जी जी माई कहते, उनकी माई ने फोन काट दिया।

मैं समझ गयी, ननद की सास उनमे थी जो सिर्फ हुकुम देतीं बाकी जनता का काम तालीम करना होता था।



एकदम से माहोल बदल गया। सारा तनाव घुल गया।

सबसे ज्यादा तनाव में तो नन्दोई जी थे वो आने के बाद पहली बार मुस्कराये । ननद मेरी जो डरी सहमी, मेरी बाहों में दुबकी एकदम खिल उठीं,

और सबसे पहले बोली मेरी सास, मौके पे वो बात बनाने में नेता को भी मात करती थी

" हमार समधन एकदम सही कहती हैं, बेटे से ज्यादा बहू का ख्याल है उन्हे। उन्हें मालूम था की इस समय भद्रा लगी है और भद्रा में बिटिया बहू नहीं बिदा करते, कल सबेरे सबेरे निकल जाइयेगा "
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लेकिन मेरे सास की बहू बोलने में बिश्वास नहीं करती थी, मैंने सीधे नन्दोई जी को दबोच लिया मेरा आँचल लुढ़क गया और दोनों गोलाइयाँ सीधे नन्दोई जी के सीने पे और ननद को दिखाते हुए मैंने नन्दोई जी को कस के चूम लिया।

" इत्ती ख़ुशी की बात, कुछ मीठा हो जाए, आज रात पाहुन ससुराल में "

और अबकी जो चुम्मी ली तो मेरी जीभ ननदोई जी के मुंह में, बड़ी देर से मैं मुंह में पान रचा बसा रही थी, वो कुचले खाये पान का टुकड़ा भी मेरे मुंह से ननदोई के मुंह में, मेरी सास और ननद दोनों सामने खड़ी देख रही थी सीने पर का आँचल तो नन्दोई को देख के ही सलहज का सरक जाता है तो मेरा कैसे बचता हां, जोबन की उनके सीने पर रगड़ा रगड़ी में चोली के ऊपर के दो बटन भी खुल गए और गोरे गोरे उभार के साथ कबूतर की चोंचे भी दिखने लगी।

ननदोई जी मेरी जिस चीज पर लहालोट रहते थे, मेरे पिछवाड़े पर, उनका एक हाथ और उस मस्ती में ' वो ' खड़ा भी होने लगा।


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मैंने ननद को दिखाते हुए नन्दोई जी के तम्बू में उठ रहे बम्बू को कस के दबा दिया और नन्दोई जी से बोली,

" कहीं कुछ सुलगने की महक आ रही है न "



नन्दोई जी भी अब खुल के मजा ले रहे थे, बोले, " हूँ,.. लेकिन क्या साफ़ साफ़ बोलिये न "

वो मेरे मुंह से ननद और मेरी सास के सामने सुनना चाहते थे, और मेरे मुंह से झांट निकला भी नहीं था पूरा की ननद बोल पड़ीं,

" ऐ भौजी, सुलगने वाली चीज मैंने पहले ही अच्छी तरह साफ़ कर दी है "
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बस मुझे मौका मिल गया ननद ननदोई दोनों को रगड़ने का, और मैं सास को सुनाते बोली

" अब मैं समझी आप के दामाद और बिटिया को रात में अपने घर पहुँचने की जल्दी क्यों थी, आपकी समधन बेचारी तो बहाना थीं . आपकी बिटिया और मेरी ननद,… भतार के बिना दुबरायी थीं, देखिये खुद ही कह रही है आपन चम्पाकली को साफ वाफ करके पहले से तैयार करके रखी हैं की कब भतार आये और डूबकी लगाए। दुपहर से गर्मायी बछीया अस हुड़क रही हैं,… की कब आएंगे कब आएंगे, "



फिर मैंने तोप का मुंह ननदोई की ओर कर दिया,

" नन्दोई जी तो ये चक्कर था रात में पहुँच के ननद के साथ कबड्डी खेलने का मन कर रहा था, अरे तो यही खेल लीजिये न अरे मैं तो कहती हूँ ननद मेरी ऐसी गरमा रही हैं तो आज इनकी ऐसी हचक के लीजिये की इनके मायके में सब को मालूम हो जाए ससुराल में कैसे रगड़ाई होती है। गौने की रात याद दिला दीजिये। "


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मेरी सास समझ गयीं, मामला अब ज्यादा गरम हो रहा है इसलिए बहाना बना कर निकल गयीं



" चलती हूँ चाय वाय का इंतजाम करने, दामाद जी को बैगन की पकौड़ी बहुत पंसद है। " और उनके हटते ही तो मेरी जुबान और खुल गयी,

लेकिन मैं अपनी सास को कहाँ बख्शने वाली, जब तक माँ को सुना सुना के बिटिया न गरियाई जाए, और मेरी आवाज सास तक पक्का पहुँच रही थी, भले मैं बोल अपनी ननद नन्दोई से रही थी,

" अरे ऐसी चुदवासी हो रही है, की सुबह से ही चूत साफ़ चिक्कन कर के, देखिये हमरे ननदोई क लंड केतना गजब का खड़ा है, "

सच में खड़ा था, मेरे जोबन की रगड़ाई और चुम्मे का असर, बस उसे पकड़ के मसलते हुए मैंने ननद को दिखाया,

ननद भी अब मस्ता रही थीं, आँख मटकाते बोलीं, " भौजी आप ही घोंटिये "

" एहमे कउनो पूछने की बात है, सलहज का हक पहले हैं, लेकिन आज तोहिरी बुरिया में अस आग लगी है, सुबह से दस बार हमसे पूछ चुकीं, भौजी तोहरे नन्दोई कब आएंगे, जाने की देर हो रही है, बीस बार दरवाजे पे जा के खड़ी हो के रास्ता निहोर रही हैं, भिन्सारे से ससुरार जाने के लिए समान बाँध के बैठीं, असली खेल अब समझ में आया, रात में हमरे नन्दोई से चुदवाने के लिए, आग लगी थी, तो यही पेलवाइये हम लोग भी चीख पुकार सुने, और नन्दोई जी आप को आपकी सलहज की कसम, मैं बगल के ही कमरे में हूँ , अगर मेरी बात का मान रख लीजियेगा न तो पूरी जिन्नगी के लिए ये दोनों जुबना और पिछवाड़ा आपके पास गिरवी, आज मेरी ननद को गौने की रात याद दिला दीजिये, ऐसे रगड़ रगड़ के चीखे मेरे कमरे में क्या पूरे घर में,


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ननद जो थोड़ी देर पहले उदास थीं अब एकदम खिलखिला रही थीं, जैसे सावन में धूप निकल आयी हो। मुझे चिढ़ा के बोलीं,

" तो हमार भैया तोहे छोड़ेंगे क्या, अइसन गजब जोबन, आपकी चीख हमसे भी तेज निकलेगी "

" तो हो जाए आज साले बहनोई का मुकाबला, अगली बार आमने सामने बल्कि अद्ल बदल कर, " मैंने ननद को चिढ़ाया और सब ननदो की तरह उन्होंने वही जवाब दिया,

" मेरे भैया भी, मेरे सैंया भी दोनों चढ़ेंगे एक साथ, दोनों का मजा लीजिये अगवाड़े पिछवाड़े साथ साथ "



" ले लूंगी लेकिन मेरी शर्त वही, आज नन्दोई जी रात भर चीख निकलवाएंगे, क्यों नन्दोई जी मंजूर ? " मैंने अब साफ़ साफ़ अपने नन्दोई जी से पूछ लिया।

" एकदम मंजूर " हंस के वो बोले, फिर जोड़ा ' अपने सलहज की बात तो मैं सपने में भी नहीं टाल सकता, "

पायल झनकाते हम ननद भौजाई रसोई में, सास अपने दामाद का पसंद निक नेउर बना रही थीं, बनाती भी मटन दो प्याजा बहुत बढ़िया थीं ।



खाना भी जल्दी हो गया, और ननद को आज मैंने अपने हाथों से सजाया, सोलह सिंगार में कुछ बचा नहीं और उन्हें बहुत कुछ समझया भी उन्हें क्या कहना है, कैसे करना है,

लेकिन ननद के पहले मैं नन्दोई के कमरे में गयी और नन्दोई जी चौंक गए मुझे ननद जी की जगह देखकर और ऊपर से जो मैंने कमरा बंद किया, लेकिन मेरा सीरियस चेहरा देखकर वो भी सीरियस हो गए,
 
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नन्दोई का दर्द
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" ननद जी के आने में अभी टाइम है, अपनी माँ के पास बैठ के कुछ गप्प मार रही हैं। आप से कुछ बहुत जरूरी और सीरियस बातें करनी थी इसलिए, लेकिन आप को एक कसम खानी होगी, ये बाते सिर्फ मेरे और आप के बीच रहेंगी और ये आप किसी को भी नहीं बताएँगे, मेरी ननद को भी नहीं "

एक पल वो चुप रहे, दिमाग में तो उनकी माँ चल रही होंगी लेकिन मान गए। और मैंने उसी टोन में बात शुरू की,

" ननद जी की शादी को तीन साल हो गए, मेरी शादी से दो ढाई साल पहले, लेकिन अभी कुछ, मेरा मतलब आप समझ रहे होंगे "

" हाँ लेकिन, " ननदोई कुछ बोलते की मैंने चुप करा दिया,

" पहले आप मेरी बात सुन लीजिये की मैं क्यों कह रही हूँ, मेरा क्या मतलब है, अब आपके साले भी चाहते हैं, मैं भी चाहती हूँ, लेकिन मुझे लगता है की ननद के पहले, ये ठीक नहीं लगेगा, उनकी शादी मुझसे पहले हुयी है तो पहले उनका नंबर लगे, उसके बाद मैं नंबर लगाऊं "
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अब ननदोई जी एकदम खुल गए .

जो मैं चाहती थी, पहले वो अपने मन की कह दें, उसके बाद उनके लिए मेरी बात सुनना और मानना दोनों आसान रहेगा।

" यही बात मैं भी चाहता हूँ और माई भी, मैं लेकिन जब भी आपकी ननद से कहता हूँ तो कहती हैं की मैं रोज रात को टांग तो फैला देती हूँ , और क्या करूँ, "

वो दुखी होकर बोले और मैं नन्दोई जी का साथ देती हुयी बोली,

" तो कौन बड़ा काम करती हैं कोई औरत गौने आती है तो उसकी महतारी भौजाई यही बोल के भेजती हैं औरत का असली काम यही है, इसलिये वो गौने जा रही है और फिर ननद तो किस्मत वाली, ऐसा मोटा मूसल मिला है, उनकी बुर खुद हरदम लासा रहती है, पक्की चुदवासी, कहीं गोली वोली तो नहीं खातीं? किसी डाक्टर वाकटर को दिखाया, ?"


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और अब बात ननदोई जी के पाले में थी , वो भी एक दोस्त की तरह अब एकदम खुल के बता रहे थे,

" नहीं,... गोली वोली तो साल डेढ़ साल से बंद है, माई खुद एक बार देखी थी की कहीं गलती से पेट दर्द,सर दर्द की गोली की जगह ये वाली गोली तो नहीं,.... कुछ मिली भी तो वो सब उन्होंने खुद हटा दी।

और डाक्टर एक नहीं कई. गाँव में आशा बहू रहती हैं, माई को उनपे बहुत विशवास है उसको भी,.... वो क्या कहते हैं पेट की फोटो, हाँ अल्ट्रा साउंड एक लेडीज डाक्टर को भी दिखाया, वो भी बोलीं सब ठीक है। माई तो ओझा सोखा भी,

अब ये कहती हैं की आप भी दिखा लूँ . क्या मेरा खड़ा नहीं होता या छोटा है, क्या दिखाऊं मैं ? "



नन्दोई जी की हाँ में हाँ मिलाते मैं बोली,

" छोटा,.... अरे पूरा मूसल है. मुझसे कोई पूछे, साल भर से ज्यादा हो गए मुझे गौने उतरे लेकिन जिस दिन आप का नंबर लगना होता है, न सच नन्दोई जी, आपकी कसम, अपनी कुप्पी में पाव भर सरसों का तेल, पहले से भर लेती हूँ और उसके बाद भी दो दिन तक चिल्ख रहती है। कटोरी भर से कम का मलाई निकलती होगी आपकी, मुझसे पूछे कोई, …अरे मरद में कोई दोष हुआ है आज तक "


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अब ननदोई जी एकदम खुश. मरद अपने औजार की तारीफ़ सुन के खुस न हो ऐसा मर्द हो नहीं सकता, करोडो की फर्जी दवाई इसी बात पे बिक जाती है।

और अब नन्दोई जी ने वो बात खोली, जिसका दर ननद और मुझे था वो साधू और आश्रम की बात। लेकिन मैं उन्हें बोल लेने देना चाहती थी।

और नन्दोई जी के चेहरे पर भक्ति भावना छा गयी, आँखे आधी बंद हाथ अपने आज जुड़ गए और आवाज भी धीमे धीमे,



"एकदम दिव्यात्मा, चेहरे पर तेज, और असर इतना की शहर के एक से एक, कलेक्टर दरोगा से लेकर एक से एक बड़मनई, लेकिन मुश्किल से दर्शन देते हैं, वो तो माई का असर, और माई के ऊपर इतना स्नेह है, नहीं तो कौन मिल पाता है उनसे, माई उनका गोड़ पकड़ ली, गुरु जी, जिंदगी भर आपका गोड़ धोऊंगी, जो कहिएगा वो, पूरा परिवार, बस हमारा बंस चले, बेटा, बिटिया कुछ भी, "
 
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ननद मेरी,…. बाँझिन !
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और नन्दोई चुप हो गए, मैं भी कुछ नहीं बोली, मैंने उनको बोल लेने देना चाहती थी,



" माई का करे, वो तो पहले दिन से ही कह रही थी, हमको पोती पोता चाहिए, लेकिन आजकल तो साल भर हम भी बोल दिए, साल क डेढ़ साल लेकिन, और गली मोहल्ला, पास पड़ोस, किसका मुंह बंद कराएंगी,

हमरे रिश्ते के चाची, उनके लड़के की शादी हुयी थी, दुल्हिन देखने क बुलौवा था, तो सब जगह सास बहू सब, लेकिन चाची खुदे आयीं और हलके से बोलीं, की आप अकेले आइये बहुरिया को मत लाइयेगा साथ, फिर कभी वो,

तो माई पूछीं की का बात है।

चाची पहले तो चुप रही, फिर बोलीं हम तो घर के हैं लेकिन पास पड़ोसिन बोली हैं की बाँझिन को जिन बुलाइयेगा, आपकी दुल्हिन भी,... और हम जिद्द किये तो बोलीं की फिर हम सब लोग वो जैसे आएगी बाँझिनिया….उठ के चले जाएंगे। "



मेरे तो सांप सूंघ गया, हमारी सास होतीं तो जलता चेला ले के दाग देतीं,

जैसे कोई गरम चिमटे से जांघ पे दाग दे, जिंदगी भर के लिए

गोली मार दे लेकिन ऐसी गाली न दे, कोख की गाली। जैसे कोई लहलहाते धान के खेत को शाप दे दे, ऊसर होने का।



मैं सन्न रह गयी। बेचारी मेरी ननद, कैसा लगा होगा उन्हें
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बड़ी हिम्मत कर के मैंने पूछा तो माई गयीं ?



नन्दोई धीरे से बोले,

" बुरा तो मुझे भी बहुत लगा, माई को भी लेकिन माई बोलीं की का करी। केकर केकर मुंह बंद करबा फिर हमरो एक बिटिया है, कल ओकर बियाह ठानब तो ओकरे हल्दी, चुमावन में कौन आएगा। तो अब हर जगह अकेले, … उनकी भी मज़बूरी। "



ये बाँझिन वाली बात ननद ने मुझे भी नहीं बतायी, कितना कठिन गरल वो पी गयीं हँसते खेलते, और होली में आयीं तो सबसे ज्यादा मजाक मस्ती में वही,… औरत माँ की बाप की भाई की गाली बर्दास्त कर लेगी, मजाक में सब औरतें एक दूसरे को भाईचोदी बोलती हैं लेकिन बाँझिन तो शाप है, मैं चुप थी अपने गुस्से को घोंट रही थी,

फिर ननदोई जी ने एक और बात बताई, एक कामवाली की बेटी, तो गाँव वाली के रिश्ते से इनकी बहन और मेरी ननद की ननद,

और सबसे खुल के मजाक तो काम वाली ही करती हैं, ननद जी से दोस्ती भी थी खूब खुल के हंसी मजाक भी, लेकिन एक दिन उसने बोल दिया


" भौजी लगता है मायके में दो चार बार गरभ गिरवाई हैं, इसलिए अब बच्चा वच्चा होने की कोई उम्मीद नहीं है "
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ननदोई जी बोले, तोहार ननद अब उसकी बात का बुरा मान गयी, उससे तो कुछ नहीं बोलीं, लेकिन फिर उसके मजाक का जवाब देना बंद कर दिया, अब बच्चा नहीं हो रहा तो आप किस किस का मुंह, …..और एक दिन मेरी छोटी बहन उससे गुस्सा,

वो तो मेरे सामने वो बोल मुझसे रही थी,

" भैया अब ये भौजी हमको बुआ नहीं बना रही है नेग न देना पड़े इस लालच में,... तो आप दूसरी भौजी लाइए जो हमको बुआ बना दे, "
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बस ये पलट के बोल दी तो ठीक है वो नयकी दुसरकी भौजी से अपना काम करवाना। बस अब वो नाराज, हमने बहुत समझाया, उसको अभी छोटी है,… कितने दिन बाद मानी "

नन्दोई जी एक बार फिर चुप हो गए थे, मैं भी चुप थी,

अपनी ननद के बारे में सोच रही थी, पल पल तिल तिल कितना दुःख और कोई दुःख बांटने वाला नहीं,
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गुरु जी - आश्रम
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फिर ननदोई बोले

" देखिये ये सब किसी से कहता नहीं, आपकी ननद की भी कोई गलती नहीं, लेकिन घर ससुराल दोनों जगह आप ही ऐसी हैं जो मेरा मन समझती हैं, जिनसे मैं खुल के बोल सकता हूँ। अब माई भी वो तो अपनी ओर से, नन्दोई का दर्द से बहुत मिनती की तो गुरु जी मान गए, उनकी कुछ प्रमुख सेविका हैं, माई की उनसे अच्छी पटती है, तो एक बार आपकी ननद माई के साथ गयीं भी आश्रम, वहां एक थीं उन्होंने देखा भी, फिर गुरु जी ने माई से कहा की बहू को दो चार दिन के लिए आश्रम छोड़ दो, "



" फिर ननद जी गयीं क्या " जानते हुए भी मैंने पूछा।

" नहीं, माई ने लाख कहा, ले

किन ननद आपकी बस एक जिद मैं अकेले कभी कहीं नहीं रही, जबतक सास जी रहेंगी तक लेकिन उन्ही के साथ लौट आएँगी,

आपकी ननद में सब बात अच्छी है लेकिन, ...अब माई, ठीक है मानता हूँ जबान की कड़वी हैं लेकिन शुरू से हैं और हम सबके साथ है और उनकी बात कहने से पहले पूरी हो जाए ये उनकी आदत है, और आज से थोड़ी। लेकिन चाहती तो भला ही हैं न, पाल के बड़ा किया,

गुरु जी को बोल के आयी थीं मैं अपनी बहू को खुद ले के आउंगी और छोड़ के जाउंगी, फिर जब तक इलाज न हो जाए दो दिन चार दिन सात दिन रखिये,

अब ये जाने को तैयार नहीं और माँ की बात खाली जाना उनको भी अच्छा नहीं लग रहा, "



" गुरु जी के आशीर्वाद से वहां के इलाज से किसी औरत को बच्चा हुआ, " मैंने जानना चाहा,


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" एकदम, कितनो को,... लोग तो लाइन लगा के अपनी बहू को,... बेटी को आश्रम के बाहर, हफ़्तों इन्तजार करते हैं,

हमारे गाँव में ही तीन को तो मैं जानता हूँ , एकदम बाँझिन, सबेरे मुंह देख लो तो दिन में खाना न मिले. जिनको डाक्टर हकीम सब मना कर दिए,ओझा सोखा फेल, हजारों लाखों खर्च किये लेकिन कुछ नहीं

लेकिन कोई चार दिन. कोई हफ्ता दस दिन आश्रम में रही और सब के सब, नौ महीना के अंदर, एक के तो जुड़वां बिटिया,…वही बात माई भी कह रही है अब जो सिस्टम है गुरु जी का, आश्रम का, कुछ दिन तो आश्रम में रहना ही पड़ेगा न और सब सुख सुविधा है वहां, लेकिन पूजा पाठ में टाइम तो लगेगा, लेकिन,आपकी ननद, दो चार दिन भी आश्रम में रहने को तैयार नहीं। आखिर माँ है मेरी कोई दुश्मन तो नहीं, अपनी एकलौती बहू का बुरा तो नहीं चाहेंगी न "



अब ननदोई जी चुप भी हो गए, उदास भी।



उनको सपोर्ट में मैं भी आ गयी, ठंडी सास ले के मैं बोली,

"ननद ने मेरी पिछले जनम में कुछ अच्छे करम किये होंगे तो ऐसी सास मिली। ऐसी सास का तो रोज गोड़ धोके पीना चाहिए, फिर सास भी अपने बेटा बहू का ख्याल रखती हैं, सास की बात तो भगवान क आदेश,"
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उपाय - साध्वी
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फिर हम दोनों थोड़ी देर चुप रहे, फिर मैंने अपनी बात शुरू की,


" एही बारे में एक बात मैं कहना चाहती थी,


लेकिन दो बात है, पहली ये बात ननदोई सलहज की अपनी बात है, किसी को मालूम नहीं होना चाहिए, खास कर मेरी ननद या सास को," और मैं नन्दोई का रिएक्शन देखने के लिए चुप हो गयी।

" एकदम, हमारी आप की बात, इस कमरे के बाहर नहीं जायेगी, माई कसम " और नन्दोई जी उत्सुक थे अगली बात सुनने के लिए,


" अगली बात, सलहज की बात सुननी ही नहीं पड़ेगी, माननी भी पड़ेगी, और सहलज की बात मानने का हरदम फायदा ही होता है, " मुस्कराते हुए मैं बोली और वो इशारा समझ गए, और मुस्कराते बोले,

" मुझसे कह रही हैं, अरे मेरी हिम्मत है सलहज का हुकुम टालूँ, बोलिये न "



और मैं एक बार फिर चुप हो गयी फिर एकदम गुरु गंभीर आवाज में बोली,

" हमको भी यही चिंता था, आपकी और ननद की, तो हम ननद को ले गए थे एक साध्वी हैं, बगल के गाँव में, ननद को बताया नहीं था, किस काम के लिए जा रहे हैं, बस यही की चलो देख के आते हैं। सबसे मिलती भी नहीं, कोई खास ठिकाना भी नही। सब लोग कहते हैं की हिमालय में रहती हैं, कभी कभार, मेरी सास बोलती हैं की जिस साल वो गौने उतरी थीं तो उस साल आयी थीं, एकदम सफ़ेद, बाल क्या जटा जूट एकदम पैर तक, एक बरगद का पुराना पेड़ है, सैकड़ों सालपुराना , मिलना होता है तो उसी के पास, ....और किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं होती,

मन की बात जान लेती हैं और बोलना होता है तो वही खुद, लेकिन बहुत कम,




नन्दोई जी के मन में उनकी माँ की तरह साधू साध्वी में बहुत आस्था थी, उनके आंख्ने आधी बंद हो चुकी थीं, श्रद्धा से उन्होंने हाथ जोड़ लिए

फिर धीरे से वो बोले, मिलीं क्या ?



" हाँ " मैं बोली। फिर आगे का किस्सा बताया,

" ननद जी को तो खूब दुलार किया, कोख पे हाथ फैरा, फिर पाँव उठा के बायां पैर देखा, फिर इशारे ननद जी को बाहर जाने को कहा और मुझसे वो बोलीं,

" मुझे मालूम है तेरी परेशानी, तेरे ननद को, खूब डाक्टर हकीम दिखाया होगा, झाड़ फूँक भी, लेकिन असली बात है बिना रोग पता किये इलाज नहीं हो सकता और रोग पता चल जाये तो सही डाक्टर और सही इलाज। देह में कुछ होगा तो डाक्टर हकीम करेंगे और कुछ बुरी आत्मा हो नजर हो तो झाड़ फूँक, लेकिन न उनकी देह में कोई परेशानी है न कोई साया न बुरी आत्मा है, इसलिए पहले सही रोग का, क्यों ये हाल है पता करना जरूरी है। "

और मैं चुप हो गयी, ननदोई उम्मीद भरी निगाह से मेरी ओर देख रहे थे। उन्हें देख के मैं बोली

" गलती आपके यहाँ की, ननद के ससुराल की नहीं है, ननद की है, यही की उनके मायके की। लेकिन ननद का भी क्या दोष, लड़कपन की उमर, पैर हवा में चलते है। बियाह के कुछ महीने पहले, वो अपनी सहेली के यहाँ गयी थीं , बाइस पुरवा में नहीं बगल के गाँव में, बस ध्यान नहीं था, गाँव के घूर के पास, उस उमर में तो पैर यहाँ रखो वहां पड़ता है। तो कोई टोनहिन थी, उतारा की थी, शायद कोई बाँझिन का, या चलावा था, एक निम्बू में सुई गाड़ के, उसी को लांघ गयी। लांघने पे तो असर उतना नहीं पड़ता, लेकिन पैर पड़ गया उनका और वो सुई बाएं पैर में धंस गयी। बस वही सुई। "
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और मैं एक बार फिर चुप हो गयी, सर झुकाये उदास और नन्दोई भी चुप। फिर मैंने उसी तरह ननदोई को देखा और आगे की बात शुरू की

" कुछ देर बाद जब ननद को चुभा, पहले तो उन्हें लगा की कोई काँटा होगा, फिर थोड़ा आगे चलने के बाद उन्होंने उस सुई को निकाल दिया ।

मैं फिर चुप हो गयी और फिर बहुत धीमे धीमे बोली,


" वही सूई है रोग। सूई सीधे कोख में पहुँच गयी और वहीँ अटक गयी। सूई की नोक हैं वहां पे और इतनी महीन की किसी मशीन में पकड़ में नहीं आ सकती। बस बीज जैसे कोख में पहुँचने की कोशिश करता है वो बीज के सर में चुभ के काट देती है, और कहीं एकाध टुकड़ा अंदर तो वहां गर्भ बनने के पहले। दूसरे कोख में लोहे का असर हो गया है तो बच्चे के लिए जो मुलायमियत होनी चाहिए जो पेट फुलाती है, वो भी उसी सूई के असर से, तो जब तक सूई की वो नोक और लोहे का असर कोख से नहीं निकलेगा, तब तक, और वो इलाज बड़ा, मुश्किल है "



ये कह के मैं चुप भी हो गई और उदास।


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और ननदोई जी भी चुप और उदास, उसी तरह हाथ जोड़े, बड़ी मुश्किल से उसी तरह हाथ जोड़े बोले बहुत धीमे से


" तो कुछ इलाज बतायीं "



" बतायीं, लेकिन आधा। बोलीं इलाज तो मैं बता रही हूँ लेकिन डाक्टर तुमको ढूंढना पडेगा। असली परेशानी है कोख में कोई दवा पहुँच नहीं सकती, सब पेट में फिर वहां से खून में, तो इसलिए कोख में सिर्फ एक चीज ही सीधे पहुँचती है और सबसे ज्यादा

" मरद का बीज " नन्दोई जी खुद बोले।



और अब मैं मुस्करायी, और ननदोई से बोली, " अच्छा अब मुंह खोलिये तो आगे की बात बताती हूँ "

उन्होंने मुंह खोला और मैंने गप्प से एक लड्डू डाल दिया और बोली,

" यही इलाज था और आप ही डाक्टर हैं। इस का असर पंद्रह बीस मिनट में हो जाएगा और दो घंटे तक रहेगा। इस में जो प्रसाद है उससे बीज में तेज़ाब का असर आ जाएगा और जब आपका पानी ननद के अंदर जाएगा, धीरे धीरे उनकी कोख सोखेगी, तो उसी तेज़ाब के असर से वो सूई घुल जायेगी और कोख का लोहा भी।

और असर पता करने का भी तरीका है। अगर सूई घुलेगी तो ननद को आपका पानी घोंटने के दस मिनट के अंदर बहुत जोर की मुतवास लगेगी। उनको रोकियेगा मत।

बस मूत के साथ वो सुई की नोक और कोख का लोहा घुल के,... गल के निकल जाएगा।

और डाक्टर आप इसलिए हैं की वो बोली थीं की मरद ऐसा होना चाहिए की जिसका घोड़े ऐसा तगड़ा लिंग हो, ढेर सारा वीर्य निकलता हो और सबसे बढ़कर लिंग के बाएं ओर तिल हो। बस मैं समझ गयी आप से बढ़िया कौन होगा, सब चीज मैं देख चुकी हूँ और वो तिल भी ।

हाँ एक बात और वो आपके पहले पानी में वो ताकत रहेगी की बच्चेदानी को अच्छी तरह से साफ़ कर देगी, कोई बिमारी रोग दोष, कुछ भी नहीं,जैसे कुँवारी कन्या ऐसा "

ननदोई के चहेरे पे मुस्कान आ गयी।



मैं भी मुस्करायी और बोली ननदोई बाबू, जैसे खेत तैयार करते हैं न बीज डालने के पहले, तो जो आप लड्डू खाये हैं वो खेत तैयार करने के लिए, और जब ननद हमार मूत के आएँगी न तो वो एक लड्डू और दी हैं, मैं यही रख दे रही हूँ, वो मेरी ननद अपने हाथ से आपको खिलाएंगी, और उसके दो फायदे हैं। एक तो पहले वाले का सफाई वाला असर ख़त्म हो जाएगा, दूसरे बीज का असर जबरदस्त होगा । उन्होंने कुछ और बतया है लेकिन वो सब तब बताना है, जब इन दोनों लड्डुओं का असर हो जाएगा। आज कल चेक करने वाली पट्टी आती हैं न,


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मेरी बात काट के नन्दोई जी बोले,

" हमे मालूम है, केतना हम लाये थे। जब जब डाक्टर के यहां से आते थे, रोज सबेरे मूतवा के चेक करवाते थे, लेकिन वही एक लाइन। दो लाइन देखने को तरस गए। "

" अरे तो अबकी सलहज हैं न आपके साथ, ....कल दिखाउंगी दो लाइन आपको, अभी भेजती हूँ ननद रानी को , आज ज़रा उन्हें गौने की रात याद दिलाइएगा, हचक हचक के, कल दो लाइन होगी तो नेग तो लूंगी ही मेरी दो शर्त है, " मैं बोल ही रही थी की नन्दोई जी काट के बोले

" एडवांस में मंजूर "

" और भी कुछ बात है लेकिन वो सब दो लाइन दिखने के बाद "

और मैं बाहर निकल गयी।
 
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Real@Reyansh

हसीनो का फेवरेट
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भाग 98

अगली परेशानी…, नन्दोई जी

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नन्दोई -ककोल्ड



मेरे मन में अभी भी ननद की सास की, साधू के आश्रम का डर था, हिम्मत कर के मेरे मुंह से बोल फूटे,

" लेकिन कोई जबरदस्ती करके,..”

“ हाथ टूट जाएगा, भस्म हो जाएगा, ….अब चिंता जिन करा, नौ महीना बाद सोहर गावे क तैयारी करा, कउनो बाधा, बिघन नहीं पडेगा। " माई बोलीं बिहँस के

मैंने और ननद जी दोनों ने आँख बंद कर के हाथ जोड़ लिया, और आँख खोला तो वहां कोई नहीं था, सिर्फ ननद रानी की गोरी गोरी बाहों पे वो काला धागा बंधा था,

जिधर पेड़ हिल रहे थे, जहाँ लग रहा था वहां से कोई गुजरा होगा, उधर हाथ फिर मैंने जोड़ लिए।



और लौटते हुए हम ननद भौजाई के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, मारे ख़ुशी के,



एक तो ननद हमार तीन साल के बाद गाभिन हो गयी थीं, और ऊपर से सत्ती माई का आशिर्बाद साक्षात, खुद, और असली बात थी

डर जो हम ननद भौजाई के मन में था, सास उसकी जबरदस्ती आश्रम भेजतीं और जो उनकी देह नोची जाती, गिद्ध सब, जीते जी रौरव नरक, ….और ननद जो बात बोली थीं,…. मारे डर के हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे, भौजी ताल पोखर में मिलब,…. अब के बिछुड़े,

लेकिन तालाब की काई की तरह सब डर गायब, असली खुसी

----



लेकिन घर लौटते ही मुझे फिर अगली परेशानी ने घेर लिया, नन्दोई जी।

कल उनकी सास ने जिस तरह नन्दोई जी को हड़काया था और बोला था की,... कुछ भी हो दोपहर के पहले वो अपनी पत्नी के साथ घर में दाखिल हो जाएँ।

तो बस मुझे लगता था की ननदोई जी आते ही बिदाई बिदाई चिल्लायेंगे और कहीं अगर ननद को आज बिदा करा के ले गए तो मेरा सब किया धरा, ….कम से कम आज की रात उन्हें यहाँ रुकना जरूरी था, और उसके लिए जितना देर से आएं उतना अच्छा,



मैं थोड़ा सा मुस्करायी, सोच के। अपने मरद को, बहुत दुष्ट है और उतना ही प्यारा।

शहर की हूँ लेकिन अब तो पक्की गाँव वाली हो गयी हूँ, चिड़िया चिंगुर, जानवर सब का किस्सा देख देख के सुन के, …मुझे कोयल का किस्सा याद आया। कैसे वो फुदक फुदक के चुदवाती है, गाभिन होती है और कैसे चतुराई से अपना अंडा सेने के लिए कौए के घोंसले में, और कोए की किस्मत में दूसरे का अंडा,… दूसरे ने जो मजा लिया उसके फल को पकने तक सेना, पता तो तब भी नहीं चलता है, जब अंडा फूटता है।

वो तो जब कोयल की बिटिया बड़ी होकर डाली डाली अमराई में कूकने लगती है तब खुलता है राज, …तो बस ननदोई जी भी उसी तरह।
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मजा मेरे मरद ने लिया. हचक हचक के नन्दोई की मेहरारू को लिटाय के, निहुराय के, कुतिया बनाय के पेला,


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फाड़ी उसकी बुर, उसे गाभिन किया,

लेकिन सेने का काम,... ननदोई के जिम्मे ।

चोद के, आपन बीज डाल के, गाभिन कर के , ….जब पेट फूलने लगेगा तो अपने बहनोई के हवाले, ....और जब बिटिया बड़ी होगी, धीरे धीरे जवान होगी, खिलेगी, और गाँव जवार क सब कहेगें इसके लच्छन तो एकदम अपनी महतारी पे गए हैं, बल्कि उससे भी दो हाथ आगे, पर चेहरा हूबहू अपने मामा पे, शर्तिया अपने मामा की जाई। बीज बोलता है।

और नन्दोई सोचेंगे,… की ससुराल है लोग मजाक तो करेंगे ही और भांजी को मामा से जोड़ के तो मजाक चलता ही है। लेकिन ये बात भी सही है की सूरत एकदम साले पे गयी है, पर चलो बंश तो चल रहा है, माई तो खुश है।

कौवे की तरह, जो कोयल के पहचानने के बाद भी मन को दिलासा देता है,

ककोल्ड शब्द उसी से तो निकला है। मरद जो अपनी मेहरारू को किसी और मरद के नीचे देख के खुश हो, तो मेरे ननदोई पक्के ककोल्ड,

और मेरा मरद भी,…

अगले नौ महीने के अंदर ही आदरणीय नन्दोई जी की बहिनिया को, उस दर्जा ११ में पढ़ने वाली गोरी नागिन की भी लेगा, और हचक के लेगा,


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उसकी महतारी की भी लेगा और फिर महतारी बिटिया की साथ साथ लेगा, दोनों नागिनों का फन अपने मोटे मूसल से कुचलेगा, जिससे बिस न उगल पाएं

और मेरे ननदोई की बीबी तो छठी का दूध भी एक चूँची से अपनी नयी बियाई बछिया को पिलायेंगी, और दूसरे से मेरे मरद सांड को और अपनी बछिया से बोलेंगी,

“देख ले इस सांड़ को यही चढ़ेगा तोहरे ऊपर, यही है तेरा बाप, इसी के बीज की जाई है तू। "
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और जब भी मायके आएँगी अपनी बिटिया के सामने मेरे मरद से गपागप,



लेकिन लेकिन , सबसे बड़ी बात

वो स्साला कौवा, अपने घोंसले में कोयल का अंडा डालने दे तब न,

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नन्दोई जी ककोल्ड तो तभी बनेंगे जब उन्हें पक्का विशवास होगा की होने वाली बेटी उन्ही के बीज की है, लेकिन कैसे



कैसे, कैसे यही चिंता मुझे साल रही थी और ख़ुशी अब आधी रह गयी थी । अगर ननदोई जी को जरा भी शक हो गया न तो फिर ननद की जिंदगी जहर हो जायेगी, पति -पत्नी के बीच शक से बड़ी बिषबेल कोई नहीं है, इसलिए आज की रात ननदोई का ननद के साथ यहाँ सोना बहुत जरूरी है,
कैसे हो, कैसे हो,



मैं ऊँगली पर जोड़ने लगी, ननद ने कब बाल धोये थे, कब उनकी पांच दिन वाली छुट्टी ख़तम हुयी थी। और उसके बाद कितनी बार ननदोई उनके पास सोये थे।

पिछले पांच दिन तो मैंने खुद ननद नन्दोई को दूर रखा था, और उसके पहले भी वो एक दो दिन अपनी महतारी के पास गए थे और होली में तो सब कुछ छोड़ के मेरे पीछे, और मैं खुद उन्हें ललचा ललचा के, कितने बारे मेरे अगवाड़े, पिछवाड़े और कौन है जो ननदोई ने कितनी बार नंबर लगाया गिनती है वो भी होली में। होली के बाद जब मैं मायके से अपनी छोटी बहिनिया को छुटकी को ले आयी तो उस दर्जा नौ वाली के छोट छोट चूतड़ के पीछे तो वो ऐसे मोहाये थे, कितनी बार



तो अगर ननद उन्हें खुशखबरी सुनाती तो उन्हें क्या किसी को भी शक होता

और बाल धोने के कुछ दिन बाद हर मरद जानता है कितना पेलो, कुछ भी नहीं होने वाला, हाँ चार पांच दिन के बाद, ले

किन तबसे तो ननदोई जी मेरे और मेरी बहन के पीछे

कुछ तो करना पड़ेगा, उन्हें पक्का ककोल्ड बनाने के लिए, उन्हें सिर्फ बिश्वास न हो बल्कि घमंड हो की मैंने ही अपनी मेहरारू को पेल पेल के गाभिन कर दिया है

मरद को सबसे ज्यादा घमंड जिस बात का है वही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है, उसके कमर का जोर

तो ननदोई जी को आज रात में रुकना होगा, ननद जी की उन्हें खूब हचक के लेनी होगी और रोज से अलग, एकदम थेथर कर दें

जिससे कल सबेरे जब ननद उन्हें ख़ुशख़बरी दें तो उन्हें लगे की कल रात कुछ अलग हुआ था, ये सब उनकी कमर की ताकत, हचक के पेलने का नतीजा है की मेरी ननद गाभिन हुयी है, उन्ही के बीज से

और ये तभी हो सकता है की जब ननदोई आज रात रुके, ननद के साथ सोएं पर उनकी महतारी ने जिस तरह हड़काया था कल, उनकी हिम्मत नहीं है आते ही चलने की जिद करेंगे और फिर सब गड़बड़

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जो बार सोच सोच के मैं घबड़ा रही थी, वही डर मेरी ननद को भी खा रहा था। बोल नहीं रही थीं वो लेकिन अपनी कातर हिरणी की तरह निगाह से बार बार मुझे देख रही थीं मानो कह रही हो

भौजी कुछ करो, भौजी कुछ करो


मेरी माँ ने मेरी सब परेशानी सुलझाने के लिए एक चाभी दी थी,

मेरी सास का बेटा, और वो अब आ गए थे,
Kamaal Karti Ho Komal Di ..

Pahle Nanad Ki Ghodi Banaya .. Fir Nanad Ki Saas ko Naagin Ki Upadhi Di .. Chalo Yaha Tak Bhee Theek Tha

Lekin Fir Nanad Ki Nadad Ko Kutiya Banane ka Plan Banaya .. Aur Ab Nandoi Ko Kauva Bana Diya ..


Nanad Ki Sasuraal Ko Pura chidiya Ghar bana Daala aapne . GREAT
 
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Real@Reyansh

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ननदोई जी, रुकेंगे, …नहीं रुकेंगे रात में ?
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साजन से मन की बात कहनी पड़े तो क्या,

साजन वो जो बिना कहे समझ जाए, बस उन्होंने नन्दोई जी को फ़ोन लगा दिया और मैंने स्पीकर फोन ऑन, कर दिया, साले बहनोई की बात मैं सुनना चाहती थी, नन्दोई जी जितना देर से आएं उतना अच्छा, अभी मुझे और ननद जी को थोड़ी देर में मंदिर जाना था, लौट के बारह एक तो बज ही जाता,



फोन पर ननदोई जी की आवाज से लग रहा था अभी सो के उठे हैं,

" अरे जीजा अभी आप सो के उठे हैं नौ बज रहे हैं " ये बोले

अब नन्दोई जी चौंके, " अरे नौ बज गए, माई ने बोला था की दोपहर तक घर, लेकिन रात भर, “

हल्की सी मुस्कराहट के साथ वो बोले जैसे उनके साले कोंच कोंच के रात का हाल जरूर पूछे, और उन्होंने पूछ भी लिया,

" पुरनीकि नरसिया था या कउनो नयी भी "

नन्दोई जी खिलखिलाये और सब सुना दिया,

" अरे पुरनिकी ही तो बोली थी की आज एक एकदम कच्ची कली दिलवाएगी, मुझे लगा की मजाक कर रही है लेकिन सच में एकदम कच्ची, वही ले आयी थी, कोई ट्रेनिंग करने आयी है, देखने में भी मस्त, फूल बस आ ही रहे थे, एकदम कोरी कच्ची, थोड़ा हाथ पैर पटकी, लेकिन पुरनिकी पहले ही समझा बुझा के लायी थी, ‘जीजा है, जीजा का हक होता है, ‘दो बार आगे एक बार पीछे, फिर पुरनिकी भी गरमा गयी थी, तो एक बार,… सबेरे पांच बजे के बाद गयीं दोनों तो सोये हैं। वो कोर्ट वाला काम तनी जल्दी हो जाता तो निकला आते "



मैंने आँख से इन्हे इशारा किया कोई जल्दी की जरूरत नहीं है आएं शाम तक ननदोई जी,

" इसी लिए तो आपको फोन किया था, सी ओ का फोन आया था, आपकी क्लोजर रिपोर्ट बना दिया है, सबसे ऊपर फ़ाइल आपकी है बस मजिस्ट्रेट बैठेंगे साइन कर देंगे। लेकिन आज वो मजिस्ट्रेट ही १२ बजे के बाद बैठेंगे, और एक बार उनका दस्तखत हो जाए, केस बंद तो वो आपका डी एल और बाकी कागज दे देंगे, एक बजे तक आप फ्री हो जाएंगे "

" फिर तो, " नन्दोई जी ने ठंडी सांस ली और बोले एक बात और है

" वो मैनेजर, बहुत हेल्प किया वो कह रहे थे की जीजा जी आप खाना हमारे साथ खा के जाइये, आपके लिए भुना गोश्त और बटेर का इंतजाम किया है, मैंने कुछ बोला नहीं, लेकिन माई बोली थी जल्दी घर पहुँचने के लिए "

" अरे नहीं जीजा जी, उनकी दावत मत मना कीजियेगा, वो लोग बहुत बुरा मान जाएंगे , अब देखिये आप तो मेहमान है आप से कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन मुझसे रिश्ता खट्टा हो जाएगा, फिर मैंने खाया है, भुना गोश्त तो वो जबरदस्त बनाते हैं और बटेर आजकल मिलती कहाँ है आपके लिए कहीं से मंगवाया होगा। फिर सोचिये कोर्ट में ही आपको डेढ़ दो बजेगा, और खाने में कितना आधा घंटा तो चार के पहले आ पा जाइयेगा, और माई को बोल दीजियेगा कोर्ट की बात "

मैं सुन रही थी, ननद भी बगल में खड़ी मुस्करा रही थीं

मैं और ननद दोपहर को मंदिर गए,



नन्दोई जी चार बजे के बाद ही आये, करीब साढ़े चार बजे, लेकिन आते ही घोड़े पर चढ़े





नन्दोई जी आये घोड़े पर चढ़े, आते ही ननद के ऊपर, " अरे तुम अभी तैयार नहीं हो, माई बोली थी, दोपहर के पहले पहुंच जाना है और अब, चलो तुरंत चलना है "

नन्दोई एकदम आज्ञाकारी और उससे बढ़कर माँ के आगे मुंह खोलने की हिम्मत नहीं थी, मैं तो फोन पे सुन ही चुकी थी, हड़काने से लेकर इमोशनल अत्याचार तक सब कुछ करके अपने लड़के को उन्होंने अभी भी मुट्ठी में रखा था।



ननद बेचारी क्या बोलतीं, उनको दिखाते हुए सामान बांधने लगी, लेकिन वो बार बार मेरी ओर देखतीं की मैं कुछ करूँ,



मेरी सास बीच में आयीं,

" अरे भैया, अब इतना देर हो गयी हैं, निकलते निकलते सांझ हो जायेगी, रात बिरात, हम ये नहीं कहते की माई की बात टालो, लेकिन सुबह, दुपहर तक आ जाते तो निकल जाते, लेकिन तुम भी का करते, कोर्ट कचहरी का काम, आदमी के हाथ में तो नहीं होता न, जब छुट्टी मिले, हमार बात मान लो अभी रुक जाओ, सबेरे ठन्डे ठन्डे निकल जाना, टाइम पे पहुँच जाओगे, "



लेकिन नन्दोई की हिम्मत जो अपनी माँ की बात, तो मेरे सास से भी बोले, " आप की सब बात ठीक, लेकिन माई बहुत गुस्सा हो रही थीं कल, अब आपसे क्या कहें, कही थीं की दोपहर तक जरूर, और अब नहीं निकले तो कहेंगी, कोर्ट का काम तो दो बजे हो गया, चार बजे पहुँच भी गए तो चले क्यों नहीं, …हम दोनों पे बहुत, …वैसे तो बहुत सीधी हैं लेकिन जब गुस्सा होती हैं,…। "



ननद सामने रखी अपनी चप्प्पल, पलंग के नीचे झुक के ढूंढ रही थीं। बस किसी तरह जितना समय मायके में मिल जाए, वहां पहुँच के पता नहीं क्या हो, छुपाते छुपाते भी एक कतरा आंसू आँख से निकल ही गया।



कुछ भी हो मुझे आज की रात ननदोई को रोकना ही था यहाँ वरना सब किया धरा गड़बड़ हो जाता। आज दिनभर की ख़ुशी को ग्रहण लग गया था, ननद बस बार बार मुझे देख रही थीं।
Nandoi Ko Rokne me Jo Asali Bhumika Thee Vo thee Nurse Raani Ki .. .. Beech me bhee ek Do Din aur Fir Yaha par Apne Sath Nayaki Nurse ka Bhee Jugaad Kiya .

Uske is Maha Punya kaarya ke Liye Komal Ki Nanad ko aur komal Di ko abhar Vyakt karne ke sath Sammanit bhee karna Chahiye . Aur kuch inam Bhee 🫠🫡🤐🫣
 
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