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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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Woww kya mast solution nikala hai Komal bhabhi ne.उपाय - साध्वी
फिर हम दोनों थोड़ी देर चुप रहे, फिर मैंने अपनी बात शुरू की,
" एही बारे में एक बात मैं कहना चाहती थी,
लेकिन दो बात है, पहली ये बात ननदोई सलहज की अपनी बात है, किसी को मालूम नहीं होना चाहिए, खास कर मेरी ननद या सास को," और मैं नन्दोई का रिएक्शन देखने के लिए चुप हो गयी।
" एकदम, हमारी आप की बात, इस कमरे के बाहर नहीं जायेगी, माई कसम " और नन्दोई जी उत्सुक थे अगली बात सुनने के लिए,
" अगली बात, सलहज की बात सुननी ही नहीं पड़ेगी, माननी भी पड़ेगी, और सहलज की बात मानने का हरदम फायदा ही होता है, " मुस्कराते हुए मैं बोली और वो इशारा समझ गए, और मुस्कराते बोले,
" मुझसे कह रही हैं, अरे मेरी हिम्मत है सलहज का हुकुम टालूँ, बोलिये न "
और मैं एक बार फिर चुप हो गयी फिर एकदम गुरु गंभीर आवाज में बोली,
" हमको भी यही चिंता था, आपकी और ननद की, तो हम ननद को ले गए थे एक साध्वी हैं, बगल के गाँव में, ननद को बताया नहीं था, किस काम के लिए जा रहे हैं, बस यही की चलो देख के आते हैं। सबसे मिलती भी नहीं, कोई खास ठिकाना भी नही। सब लोग कहते हैं की हिमालय में रहती हैं, कभी कभार, मेरी सास बोलती हैं की जिस साल वो गौने उतरी थीं तो उस साल आयी थीं, एकदम सफ़ेद, बाल क्या जटा जूट एकदम पैर तक, एक बरगद का पुराना पेड़ है, सैकड़ों सालपुराना , मिलना होता है तो उसी के पास, ....और किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं होती,
मन की बात जान लेती हैं और बोलना होता है तो वही खुद, लेकिन बहुत कम,
नन्दोई जी के मन में उनकी माँ की तरह साधू साध्वी में बहुत आस्था थी, उनके आंख्ने आधी बंद हो चुकी थीं, श्रद्धा से उन्होंने हाथ जोड़ लिए
फिर धीरे से वो बोले, मिलीं क्या ?
" हाँ " मैं बोली। फिर आगे का किस्सा बताया,
" ननद जी को तो खूब दुलार किया, कोख पे हाथ फैरा, फिर पाँव उठा के बायां पैर देखा, फिर इशारे ननद जी को बाहर जाने को कहा और मुझसे वो बोलीं,
" मुझे मालूम है तेरी परेशानी, तेरे ननद को, खूब डाक्टर हकीम दिखाया होगा, झाड़ फूँक भी, लेकिन असली बात है बिना रोग पता किये इलाज नहीं हो सकता और रोग पता चल जाये तो सही डाक्टर और सही इलाज। देह में कुछ होगा तो डाक्टर हकीम करेंगे और कुछ बुरी आत्मा हो नजर हो तो झाड़ फूँक, लेकिन न उनकी देह में कोई परेशानी है न कोई साया न बुरी आत्मा है, इसलिए पहले सही रोग का, क्यों ये हाल है पता करना जरूरी है। "
और मैं चुप हो गयी, ननदोई उम्मीद भरी निगाह से मेरी ओर देख रहे थे। उन्हें देख के मैं बोली
" गलती आपके यहाँ की, ननद के ससुराल की नहीं है, ननद की है, यही की उनके मायके की। लेकिन ननद का भी क्या दोष, लड़कपन की उमर, पैर हवा में चलते है। बियाह के कुछ महीने पहले, वो अपनी सहेली के यहाँ गयी थीं , बाइस पुरवा में नहीं बगल के गाँव में, बस ध्यान नहीं था, गाँव के घूर के पास, उस उमर में तो पैर यहाँ रखो वहां पड़ता है। तो कोई टोनहिन थी, उतारा की थी, शायद कोई बाँझिन का, या चलावा था, एक निम्बू में सुई गाड़ के, उसी को लांघ गयी। लांघने पे तो असर उतना नहीं पड़ता, लेकिन पैर पड़ गया उनका और वो सुई बाएं पैर में धंस गयी। बस वही सुई। "
और मैं एक बार फिर चुप हो गयी, सर झुकाये उदास और नन्दोई भी चुप। फिर मैंने उसी तरह ननदोई को देखा और आगे की बात शुरू की
" कुछ देर बाद जब ननद को चुभा, पहले तो उन्हें लगा की कोई काँटा होगा, फिर थोड़ा आगे चलने के बाद उन्होंने उस सुई को निकाल दिया ।
मैं फिर चुप हो गयी और फिर बहुत धीमे धीमे बोली,
" वही सूई है रोग। सूई सीधे कोख में पहुँच गयी और वहीँ अटक गयी। सूई की नोक हैं वहां पे और इतनी महीन की किसी मशीन में पकड़ में नहीं आ सकती। बस बीज जैसे कोख में पहुँचने की कोशिश करता है वो बीज के सर में चुभ के काट देती है, और कहीं एकाध टुकड़ा अंदर तो वहां गर्भ बनने के पहले। दूसरे कोख में लोहे का असर हो गया है तो बच्चे के लिए जो मुलायमियत होनी चाहिए जो पेट फुलाती है, वो भी उसी सूई के असर से, तो जब तक सूई की वो नोक और लोहे का असर कोख से नहीं निकलेगा, तब तक, और वो इलाज बड़ा, मुश्किल है "
ये कह के मैं चुप भी हो गई और उदास।
और ननदोई जी भी चुप और उदास, उसी तरह हाथ जोड़े, बड़ी मुश्किल से उसी तरह हाथ जोड़े बोले बहुत धीमे से
" तो कुछ इलाज बतायीं "
" बतायीं, लेकिन आधा। बोलीं इलाज तो मैं बता रही हूँ लेकिन डाक्टर तुमको ढूंढना पडेगा। असली परेशानी है कोख में कोई दवा पहुँच नहीं सकती, सब पेट में फिर वहां से खून में, तो इसलिए कोख में सिर्फ एक चीज ही सीधे पहुँचती है और सबसे ज्यादा
" मरद का बीज " नन्दोई जी खुद बोले।
और अब मैं मुस्करायी, और ननदोई से बोली, " अच्छा अब मुंह खोलिये तो आगे की बात बताती हूँ "
उन्होंने मुंह खोला और मैंने गप्प से एक लड्डू डाल दिया और बोली,
" यही इलाज था और आप ही डाक्टर हैं।
इस का असर पंद्रह बीस मिनट में हो जाएगा और दो घंटे तक रहेगा। इस में जो प्रसाद है उससे बीज में तेज़ाब का असर आ जाएगा और जब आपका पानी ननद के अंदर जाएगा, धीरे धीरे उनकी कोख सोखेगी, तो उसी तेज़ाब के असर से वो सूई घुल जायेगी और कोख का लोहा भी।
और असर पता करने का भी तरीका है। अगर सूई घुलेगी तो ननद को आपका पानी घोंटने के दस मिनट के अंदर बहुत जोर की मुतवास लगेगी। उनको रोकियेगा मत।
बस मूत के साथ वो सुई की नोक और कोख का लोहा घुल के गाल के निकल जाएगा। और डाक्टर आप इसलिए हैं की वो बोली थीं की मरद ऐसा होना चाहिए की जिसका घोड़े ऐसा तगड़ा लिंग हो, ढेर सारा वीर्य निकलता हो और सबसे बढ़कर लिंग के बाएं ओर तिल हो। बस मैं समझ गयी आप से बढ़िया कौन होगा, सब चीज मैं देख चुकी हूँ और वो तिल भी । हाँ एक बात और वो आपके पहले पानी में वो ताकत रहेगी की बच्चेदानी को अच्छी तरह से साफ़ कर देगी, कोई बिमारी रोग दोष, कुछ भी नहीं,जैसे कुँवारी कन्या ऐसा "
ननदोई के चहेरे पे मुस्कान आ गयी।
मैं भी मुस्करायी और बोली ननदोई बाबू, जैसे खेत तैयार करते हैं न बीज डालने के पहले, तो जो आप लड्डू खाये हैं वो खेत तैयार करने के लिए, और जब ननद हमार मूत के आएँगी न तो वो एक लड्डू और दी हैं, मैं यही रख दे रही हूँ, वो मेरी ननद अपने हाथ से आपको खिलाएंगी, और उसके दो फायदे हैं। एक तो पहले वाले का सफाई वाला असर ख़त्म हो जाएगा, दूसरे बीज का असर जबरदस्त होगा । उन्होंने कुछ और बतया है लेकिन वो सब तब बताना है, जब इन दोनों लड्डुओं का असर हो जाएगा। आज कल चेक करने वाली पट्टी आती हैं न,
मेरी बात काट के नन्दोई जी बोले,
" हमे मालूम है, केतना हम लाये थे। जब जब डाक्टर के यहां से आते थे, रोज सबेरे मूतवा के चेक करवाते थे, लेकिन वही एक लाइन। दो लाइन देखने को तरस गए। "
" अरे तो अबकी सलहज हैं न आपके साथ, ....कल दिखाउंगी दो लाइन आपको, अभी भेजती हूँ ननद रानी को , आज ज़रा उन्हें गौने की रात याद दिलाइएगा, हचक हचक के, कल दो लाइन होगी तो नेग तो लूंगी ही मेरी दो शर्त है, " मैं बोल ही रही थी की नन्दोई जी काट के बोले
" एडवांस में मंजूर "
" और भी कुछ बात है लेकिन वो सब दो लाइन दिखने के बाद "
और मैं बाहर निकल गयी।
Awesome updateउपाय - साध्वी
फिर हम दोनों थोड़ी देर चुप रहे, फिर मैंने अपनी बात शुरू की,
" एही बारे में एक बात मैं कहना चाहती थी,
लेकिन दो बात है, पहली ये बात ननदोई सलहज की अपनी बात है, किसी को मालूम नहीं होना चाहिए, खास कर मेरी ननद या सास को," और मैं नन्दोई का रिएक्शन देखने के लिए चुप हो गयी।
" एकदम, हमारी आप की बात, इस कमरे के बाहर नहीं जायेगी, माई कसम " और नन्दोई जी उत्सुक थे अगली बात सुनने के लिए,
" अगली बात, सलहज की बात सुननी ही नहीं पड़ेगी, माननी भी पड़ेगी, और सहलज की बात मानने का हरदम फायदा ही होता है, " मुस्कराते हुए मैं बोली और वो इशारा समझ गए, और मुस्कराते बोले,
" मुझसे कह रही हैं, अरे मेरी हिम्मत है सलहज का हुकुम टालूँ, बोलिये न "
और मैं एक बार फिर चुप हो गयी फिर एकदम गुरु गंभीर आवाज में बोली,
" हमको भी यही चिंता था, आपकी और ननद की, तो हम ननद को ले गए थे एक साध्वी हैं, बगल के गाँव में, ननद को बताया नहीं था, किस काम के लिए जा रहे हैं, बस यही की चलो देख के आते हैं। सबसे मिलती भी नहीं, कोई खास ठिकाना भी नही। सब लोग कहते हैं की हिमालय में रहती हैं, कभी कभार, मेरी सास बोलती हैं की जिस साल वो गौने उतरी थीं तो उस साल आयी थीं, एकदम सफ़ेद, बाल क्या जटा जूट एकदम पैर तक, एक बरगद का पुराना पेड़ है, सैकड़ों सालपुराना , मिलना होता है तो उसी के पास, ....और किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं होती,
मन की बात जान लेती हैं और बोलना होता है तो वही खुद, लेकिन बहुत कम,
नन्दोई जी के मन में उनकी माँ की तरह साधू साध्वी में बहुत आस्था थी, उनके आंख्ने आधी बंद हो चुकी थीं, श्रद्धा से उन्होंने हाथ जोड़ लिए
फिर धीरे से वो बोले, मिलीं क्या ?
" हाँ " मैं बोली। फिर आगे का किस्सा बताया,
" ननद जी को तो खूब दुलार किया, कोख पे हाथ फैरा, फिर पाँव उठा के बायां पैर देखा, फिर इशारे ननद जी को बाहर जाने को कहा और मुझसे वो बोलीं,
" मुझे मालूम है तेरी परेशानी, तेरे ननद को, खूब डाक्टर हकीम दिखाया होगा, झाड़ फूँक भी, लेकिन असली बात है बिना रोग पता किये इलाज नहीं हो सकता और रोग पता चल जाये तो सही डाक्टर और सही इलाज। देह में कुछ होगा तो डाक्टर हकीम करेंगे और कुछ बुरी आत्मा हो नजर हो तो झाड़ फूँक, लेकिन न उनकी देह में कोई परेशानी है न कोई साया न बुरी आत्मा है, इसलिए पहले सही रोग का, क्यों ये हाल है पता करना जरूरी है। "
और मैं चुप हो गयी, ननदोई उम्मीद भरी निगाह से मेरी ओर देख रहे थे। उन्हें देख के मैं बोली
" गलती आपके यहाँ की, ननद के ससुराल की नहीं है, ननद की है, यही की उनके मायके की। लेकिन ननद का भी क्या दोष, लड़कपन की उमर, पैर हवा में चलते है। बियाह के कुछ महीने पहले, वो अपनी सहेली के यहाँ गयी थीं , बाइस पुरवा में नहीं बगल के गाँव में, बस ध्यान नहीं था, गाँव के घूर के पास, उस उमर में तो पैर यहाँ रखो वहां पड़ता है। तो कोई टोनहिन थी, उतारा की थी, शायद कोई बाँझिन का, या चलावा था, एक निम्बू में सुई गाड़ के, उसी को लांघ गयी। लांघने पे तो असर उतना नहीं पड़ता, लेकिन पैर पड़ गया उनका और वो सुई बाएं पैर में धंस गयी। बस वही सुई। "
और मैं एक बार फिर चुप हो गयी, सर झुकाये उदास और नन्दोई भी चुप। फिर मैंने उसी तरह ननदोई को देखा और आगे की बात शुरू की
" कुछ देर बाद जब ननद को चुभा, पहले तो उन्हें लगा की कोई काँटा होगा, फिर थोड़ा आगे चलने के बाद उन्होंने उस सुई को निकाल दिया ।
मैं फिर चुप हो गयी और फिर बहुत धीमे धीमे बोली,
" वही सूई है रोग। सूई सीधे कोख में पहुँच गयी और वहीँ अटक गयी। सूई की नोक हैं वहां पे और इतनी महीन की किसी मशीन में पकड़ में नहीं आ सकती। बस बीज जैसे कोख में पहुँचने की कोशिश करता है वो बीज के सर में चुभ के काट देती है, और कहीं एकाध टुकड़ा अंदर तो वहां गर्भ बनने के पहले। दूसरे कोख में लोहे का असर हो गया है तो बच्चे के लिए जो मुलायमियत होनी चाहिए जो पेट फुलाती है, वो भी उसी सूई के असर से, तो जब तक सूई की वो नोक और लोहे का असर कोख से नहीं निकलेगा, तब तक, और वो इलाज बड़ा, मुश्किल है "
ये कह के मैं चुप भी हो गई और उदास।
और ननदोई जी भी चुप और उदास, उसी तरह हाथ जोड़े, बड़ी मुश्किल से उसी तरह हाथ जोड़े बोले बहुत धीमे से
" तो कुछ इलाज बतायीं "
" बतायीं, लेकिन आधा। बोलीं इलाज तो मैं बता रही हूँ लेकिन डाक्टर तुमको ढूंढना पडेगा। असली परेशानी है कोख में कोई दवा पहुँच नहीं सकती, सब पेट में फिर वहां से खून में, तो इसलिए कोख में सिर्फ एक चीज ही सीधे पहुँचती है और सबसे ज्यादा
" मरद का बीज " नन्दोई जी खुद बोले।
और अब मैं मुस्करायी, और ननदोई से बोली, " अच्छा अब मुंह खोलिये तो आगे की बात बताती हूँ "
उन्होंने मुंह खोला और मैंने गप्प से एक लड्डू डाल दिया और बोली,
" यही इलाज था और आप ही डाक्टर हैं।
इस का असर पंद्रह बीस मिनट में हो जाएगा और दो घंटे तक रहेगा। इस में जो प्रसाद है उससे बीज में तेज़ाब का असर आ जाएगा और जब आपका पानी ननद के अंदर जाएगा, धीरे धीरे उनकी कोख सोखेगी, तो उसी तेज़ाब के असर से वो सूई घुल जायेगी और कोख का लोहा भी।
और असर पता करने का भी तरीका है। अगर सूई घुलेगी तो ननद को आपका पानी घोंटने के दस मिनट के अंदर बहुत जोर की मुतवास लगेगी। उनको रोकियेगा मत।
बस मूत के साथ वो सुई की नोक और कोख का लोहा घुल के गाल के निकल जाएगा। और डाक्टर आप इसलिए हैं की वो बोली थीं की मरद ऐसा होना चाहिए की जिसका घोड़े ऐसा तगड़ा लिंग हो, ढेर सारा वीर्य निकलता हो और सबसे बढ़कर लिंग के बाएं ओर तिल हो। बस मैं समझ गयी आप से बढ़िया कौन होगा, सब चीज मैं देख चुकी हूँ और वो तिल भी । हाँ एक बात और वो आपके पहले पानी में वो ताकत रहेगी की बच्चेदानी को अच्छी तरह से साफ़ कर देगी, कोई बिमारी रोग दोष, कुछ भी नहीं,जैसे कुँवारी कन्या ऐसा "
ननदोई के चहेरे पे मुस्कान आ गयी।
मैं भी मुस्करायी और बोली ननदोई बाबू, जैसे खेत तैयार करते हैं न बीज डालने के पहले, तो जो आप लड्डू खाये हैं वो खेत तैयार करने के लिए, और जब ननद हमार मूत के आएँगी न तो वो एक लड्डू और दी हैं, मैं यही रख दे रही हूँ, वो मेरी ननद अपने हाथ से आपको खिलाएंगी, और उसके दो फायदे हैं। एक तो पहले वाले का सफाई वाला असर ख़त्म हो जाएगा, दूसरे बीज का असर जबरदस्त होगा । उन्होंने कुछ और बतया है लेकिन वो सब तब बताना है, जब इन दोनों लड्डुओं का असर हो जाएगा। आज कल चेक करने वाली पट्टी आती हैं न,
मेरी बात काट के नन्दोई जी बोले,
" हमे मालूम है, केतना हम लाये थे। जब जब डाक्टर के यहां से आते थे, रोज सबेरे मूतवा के चेक करवाते थे, लेकिन वही एक लाइन। दो लाइन देखने को तरस गए। "
" अरे तो अबकी सलहज हैं न आपके साथ, ....कल दिखाउंगी दो लाइन आपको, अभी भेजती हूँ ननद रानी को , आज ज़रा उन्हें गौने की रात याद दिलाइएगा, हचक हचक के, कल दो लाइन होगी तो नेग तो लूंगी ही मेरी दो शर्त है, " मैं बोल ही रही थी की नन्दोई जी काट के बोले
" एडवांस में मंजूर "
" और भी कुछ बात है लेकिन वो सब दो लाइन दिखने के बाद "
और मैं बाहर निकल गयी।
कोमल मैमउपाय - साध्वी
फिर हम दोनों थोड़ी देर चुप रहे, फिर मैंने अपनी बात शुरू की,
" एही बारे में एक बात मैं कहना चाहती थी,
लेकिन दो बात है, पहली ये बात ननदोई सलहज की अपनी बात है, किसी को मालूम नहीं होना चाहिए, खास कर मेरी ननद या सास को," और मैं नन्दोई का रिएक्शन देखने के लिए चुप हो गयी।
" एकदम, हमारी आप की बात, इस कमरे के बाहर नहीं जायेगी, माई कसम " और नन्दोई जी उत्सुक थे अगली बात सुनने के लिए,
" अगली बात, सलहज की बात सुननी ही नहीं पड़ेगी, माननी भी पड़ेगी, और सहलज की बात मानने का हरदम फायदा ही होता है, " मुस्कराते हुए मैं बोली और वो इशारा समझ गए, और मुस्कराते बोले,
" मुझसे कह रही हैं, अरे मेरी हिम्मत है सलहज का हुकुम टालूँ, बोलिये न "
और मैं एक बार फिर चुप हो गयी फिर एकदम गुरु गंभीर आवाज में बोली,
" हमको भी यही चिंता था, आपकी और ननद की, तो हम ननद को ले गए थे एक साध्वी हैं, बगल के गाँव में, ननद को बताया नहीं था, किस काम के लिए जा रहे हैं, बस यही की चलो देख के आते हैं। सबसे मिलती भी नहीं, कोई खास ठिकाना भी नही। सब लोग कहते हैं की हिमालय में रहती हैं, कभी कभार, मेरी सास बोलती हैं की जिस साल वो गौने उतरी थीं तो उस साल आयी थीं, एकदम सफ़ेद, बाल क्या जटा जूट एकदम पैर तक, एक बरगद का पुराना पेड़ है, सैकड़ों सालपुराना , मिलना होता है तो उसी के पास, ....और किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं होती,
मन की बात जान लेती हैं और बोलना होता है तो वही खुद, लेकिन बहुत कम,
नन्दोई जी के मन में उनकी माँ की तरह साधू साध्वी में बहुत आस्था थी, उनके आंख्ने आधी बंद हो चुकी थीं, श्रद्धा से उन्होंने हाथ जोड़ लिए
फिर धीरे से वो बोले, मिलीं क्या ?
" हाँ " मैं बोली। फिर आगे का किस्सा बताया,
" ननद जी को तो खूब दुलार किया, कोख पे हाथ फैरा, फिर पाँव उठा के बायां पैर देखा, फिर इशारे ननद जी को बाहर जाने को कहा और मुझसे वो बोलीं,
" मुझे मालूम है तेरी परेशानी, तेरे ननद को, खूब डाक्टर हकीम दिखाया होगा, झाड़ फूँक भी, लेकिन असली बात है बिना रोग पता किये इलाज नहीं हो सकता और रोग पता चल जाये तो सही डाक्टर और सही इलाज। देह में कुछ होगा तो डाक्टर हकीम करेंगे और कुछ बुरी आत्मा हो नजर हो तो झाड़ फूँक, लेकिन न उनकी देह में कोई परेशानी है न कोई साया न बुरी आत्मा है, इसलिए पहले सही रोग का, क्यों ये हाल है पता करना जरूरी है। "
और मैं चुप हो गयी, ननदोई उम्मीद भरी निगाह से मेरी ओर देख रहे थे। उन्हें देख के मैं बोली
" गलती आपके यहाँ की, ननद के ससुराल की नहीं है, ननद की है, यही की उनके मायके की। लेकिन ननद का भी क्या दोष, लड़कपन की उमर, पैर हवा में चलते है। बियाह के कुछ महीने पहले, वो अपनी सहेली के यहाँ गयी थीं , बाइस पुरवा में नहीं बगल के गाँव में, बस ध्यान नहीं था, गाँव के घूर के पास, उस उमर में तो पैर यहाँ रखो वहां पड़ता है। तो कोई टोनहिन थी, उतारा की थी, शायद कोई बाँझिन का, या चलावा था, एक निम्बू में सुई गाड़ के, उसी को लांघ गयी। लांघने पे तो असर उतना नहीं पड़ता, लेकिन पैर पड़ गया उनका और वो सुई बाएं पैर में धंस गयी। बस वही सुई। "
और मैं एक बार फिर चुप हो गयी, सर झुकाये उदास और नन्दोई भी चुप। फिर मैंने उसी तरह ननदोई को देखा और आगे की बात शुरू की
" कुछ देर बाद जब ननद को चुभा, पहले तो उन्हें लगा की कोई काँटा होगा, फिर थोड़ा आगे चलने के बाद उन्होंने उस सुई को निकाल दिया ।
मैं फिर चुप हो गयी और फिर बहुत धीमे धीमे बोली,
" वही सूई है रोग। सूई सीधे कोख में पहुँच गयी और वहीँ अटक गयी। सूई की नोक हैं वहां पे और इतनी महीन की किसी मशीन में पकड़ में नहीं आ सकती। बस बीज जैसे कोख में पहुँचने की कोशिश करता है वो बीज के सर में चुभ के काट देती है, और कहीं एकाध टुकड़ा अंदर तो वहां गर्भ बनने के पहले। दूसरे कोख में लोहे का असर हो गया है तो बच्चे के लिए जो मुलायमियत होनी चाहिए जो पेट फुलाती है, वो भी उसी सूई के असर से, तो जब तक सूई की वो नोक और लोहे का असर कोख से नहीं निकलेगा, तब तक, और वो इलाज बड़ा, मुश्किल है "
ये कह के मैं चुप भी हो गई और उदास।
और ननदोई जी भी चुप और उदास, उसी तरह हाथ जोड़े, बड़ी मुश्किल से उसी तरह हाथ जोड़े बोले बहुत धीमे से
" तो कुछ इलाज बतायीं "
" बतायीं, लेकिन आधा। बोलीं इलाज तो मैं बता रही हूँ लेकिन डाक्टर तुमको ढूंढना पडेगा। असली परेशानी है कोख में कोई दवा पहुँच नहीं सकती, सब पेट में फिर वहां से खून में, तो इसलिए कोख में सिर्फ एक चीज ही सीधे पहुँचती है और सबसे ज्यादा
" मरद का बीज " नन्दोई जी खुद बोले।
और अब मैं मुस्करायी, और ननदोई से बोली, " अच्छा अब मुंह खोलिये तो आगे की बात बताती हूँ "
उन्होंने मुंह खोला और मैंने गप्प से एक लड्डू डाल दिया और बोली,
" यही इलाज था और आप ही डाक्टर हैं। इस का असर पंद्रह बीस मिनट में हो जाएगा और दो घंटे तक रहेगा। इस में जो प्रसाद है उससे बीज में तेज़ाब का असर आ जाएगा और जब आपका पानी ननद के अंदर जाएगा, धीरे धीरे उनकी कोख सोखेगी, तो उसी तेज़ाब के असर से वो सूई घुल जायेगी और कोख का लोहा भी।
और असर पता करने का भी तरीका है। अगर सूई घुलेगी तो ननद को आपका पानी घोंटने के दस मिनट के अंदर बहुत जोर की मुतवास लगेगी। उनको रोकियेगा मत।
बस मूत के साथ वो सुई की नोक और कोख का लोहा घुल के,... गल के निकल जाएगा।
और डाक्टर आप इसलिए हैं की वो बोली थीं की मरद ऐसा होना चाहिए की जिसका घोड़े ऐसा तगड़ा लिंग हो, ढेर सारा वीर्य निकलता हो और सबसे बढ़कर लिंग के बाएं ओर तिल हो। बस मैं समझ गयी आप से बढ़िया कौन होगा, सब चीज मैं देख चुकी हूँ और वो तिल भी ।
हाँ एक बात और वो आपके पहले पानी में वो ताकत रहेगी की बच्चेदानी को अच्छी तरह से साफ़ कर देगी, कोई बिमारी रोग दोष, कुछ भी नहीं,जैसे कुँवारी कन्या ऐसा "
ननदोई के चहेरे पे मुस्कान आ गयी।
मैं भी मुस्करायी और बोली ननदोई बाबू, जैसे खेत तैयार करते हैं न बीज डालने के पहले, तो जो आप लड्डू खाये हैं वो खेत तैयार करने के लिए, और जब ननद हमार मूत के आएँगी न तो वो एक लड्डू और दी हैं, मैं यही रख दे रही हूँ, वो मेरी ननद अपने हाथ से आपको खिलाएंगी, और उसके दो फायदे हैं। एक तो पहले वाले का सफाई वाला असर ख़त्म हो जाएगा, दूसरे बीज का असर जबरदस्त होगा । उन्होंने कुछ और बतया है लेकिन वो सब तब बताना है, जब इन दोनों लड्डुओं का असर हो जाएगा। आज कल चेक करने वाली पट्टी आती हैं न,
मेरी बात काट के नन्दोई जी बोले,
" हमे मालूम है, केतना हम लाये थे। जब जब डाक्टर के यहां से आते थे, रोज सबेरे मूतवा के चेक करवाते थे, लेकिन वही एक लाइन। दो लाइन देखने को तरस गए। "
" अरे तो अबकी सलहज हैं न आपके साथ, ....कल दिखाउंगी दो लाइन आपको, अभी भेजती हूँ ननद रानी को , आज ज़रा उन्हें गौने की रात याद दिलाइएगा, हचक हचक के, कल दो लाइन होगी तो नेग तो लूंगी ही मेरी दो शर्त है, " मैं बोल ही रही थी की नन्दोई जी काट के बोले
" एडवांस में मंजूर "
" और भी कुछ बात है लेकिन वो सब दो लाइन दिखने के बाद "
और मैं बाहर निकल गयी।
Gyanvardhk kamuk updateभाग 98 –
अगली परेशानी…, नन्दोई जी
22, 75,728
नन्दोई -ककोल्ड
मेरे मन में अभी भी ननद की सास की, साधू के आश्रम का डर था, हिम्मत कर के मेरे मुंह से बोल फूटे,
" लेकिन कोई जबरदस्ती करके,..”
“ हाथ टूट जाएगा, भस्म हो जाएगा, ….अब चिंता जिन करा, नौ महीना बाद सोहर गावे क तैयारी करा, कउनो बाधा, बिघन नहीं पडेगा। " माई बोलीं बिहँस के
मैंने और ननद जी दोनों ने आँख बंद कर के हाथ जोड़ लिया, और आँख खोला तो वहां कोई नहीं था, सिर्फ ननद रानी की गोरी गोरी बाहों पे वो काला धागा बंधा था,
जिधर पेड़ हिल रहे थे, जहाँ लग रहा था वहां से कोई गुजरा होगा, उधर हाथ फिर मैंने जोड़ लिए।
और लौटते हुए हम ननद भौजाई के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, मारे ख़ुशी के,
एक तो ननद हमार तीन साल के बाद गाभिन हो गयी थीं, और ऊपर से सत्ती माई का आशिर्बाद साक्षात, खुद, और असली बात थी
डर जो हम ननद भौजाई के मन में था, सास उसकी जबरदस्ती आश्रम भेजतीं और जो उनकी देह नोची जाती, गिद्ध सब, जीते जी रौरव नरक, ….और ननद जो बात बोली थीं,…. मारे डर के हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे, भौजी ताल पोखर में मिलब,…. अब के बिछुड़े,
लेकिन तालाब की काई की तरह सब डर गायब, असली खुसी
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लेकिन घर लौटते ही मुझे फिर अगली परेशानी ने घेर लिया, नन्दोई जी।
कल उनकी सास ने जिस तरह नन्दोई जी को हड़काया था और बोला था की,... कुछ भी हो दोपहर के पहले वो अपनी पत्नी के साथ घर में दाखिल हो जाएँ।
तो बस मुझे लगता था की ननदोई जी आते ही बिदाई बिदाई चिल्लायेंगे और कहीं अगर ननद को आज बिदा करा के ले गए तो मेरा सब किया धरा, ….कम से कम आज की रात उन्हें यहाँ रुकना जरूरी था, और उसके लिए जितना देर से आएं उतना अच्छा,
मैं थोड़ा सा मुस्करायी, सोच के। अपने मरद को, बहुत दुष्ट है और उतना ही प्यारा।
शहर की हूँ लेकिन अब तो पक्की गाँव वाली हो गयी हूँ, चिड़िया चिंगुर, जानवर सब का किस्सा देख देख के सुन के, …मुझे कोयल का किस्सा याद आया। कैसे वो फुदक फुदक के चुदवाती है, गाभिन होती है और कैसे चतुराई से अपना अंडा सेने के लिए कौए के घोंसले में, और कोए की किस्मत में दूसरे का अंडा,… दूसरे ने जो मजा लिया उसके फल को पकने तक सेना, पता तो तब भी नहीं चलता है, जब अंडा फूटता है।
वो तो जब कोयल की बिटिया बड़ी होकर डाली डाली अमराई में कूकने लगती है तब खुलता है राज, …तो बस ननदोई जी भी उसी तरह।
मजा मेरे मरद ने लिया. हचक हचक के नन्दोई की मेहरारू को लिटाय के, निहुराय के, कुतिया बनाय के पेला,
फाड़ी उसकी बुर, उसे गाभिन किया,
लेकिन सेने का काम,... ननदोई के जिम्मे ।
चोद के, आपन बीज डाल के, गाभिन कर के , ….जब पेट फूलने लगेगा तो अपने बहनोई के हवाले, ....और जब बिटिया बड़ी होगी, धीरे धीरे जवान होगी, खिलेगी, और गाँव जवार क सब कहेगें इसके लच्छन तो एकदम अपनी महतारी पे गए हैं, बल्कि उससे भी दो हाथ आगे, पर चेहरा हूबहू अपने मामा पे, शर्तिया अपने मामा की जाई। बीज बोलता है।
और नन्दोई सोचेंगे,… की ससुराल है लोग मजाक तो करेंगे ही और भांजी को मामा से जोड़ के तो मजाक चलता ही है। लेकिन ये बात भी सही है की सूरत एकदम साले पे गयी है, पर चलो बंश तो चल रहा है, माई तो खुश है।
कौवे की तरह, जो कोयल के पहचानने के बाद भी मन को दिलासा देता है,
ककोल्ड शब्द उसी से तो निकला है। मरद जो अपनी मेहरारू को किसी और मरद के नीचे देख के खुश हो, तो मेरे ननदोई पक्के ककोल्ड,
और मेरा मरद भी,…
अगले नौ महीने के अंदर ही आदरणीय नन्दोई जी की बहिनिया को, उस दर्जा ११ में पढ़ने वाली गोरी नागिन की भी लेगा, और हचक के लेगा,
उसकी महतारी की भी लेगा और फिर महतारी बिटिया की साथ साथ लेगा, दोनों नागिनों का फन अपने मोटे मूसल से कुचलेगा, जिससे बिस न उगल पाएं
और मेरे ननदोई की बीबी तो छठी का दूध भी एक चूँची से अपनी नयी बियाई बछिया को पिलायेंगी, और दूसरे से मेरे मरद सांड को और अपनी बछिया से बोलेंगी,
“देख ले इस सांड़ को यही चढ़ेगा तोहरे ऊपर, यही है तेरा बाप, इसी के बीज की जाई है तू। "
और जब भी मायके आएँगी अपनी बिटिया के सामने मेरे मरद से गपागप,
लेकिन लेकिन , सबसे बड़ी बात
वो स्साला कौवा, अपने घोंसले में कोयल का अंडा डालने दे तब न,
नन्दोई जी ककोल्ड तो तभी बनेंगे जब उन्हें पक्का विशवास होगा की होने वाली बेटी उन्ही के बीज की है, लेकिन कैसे
कैसे, कैसे यही चिंता मुझे साल रही थी और ख़ुशी अब आधी रह गयी थी । अगर ननदोई जी को जरा भी शक हो गया न तो फिर ननद की जिंदगी जहर हो जायेगी, पति -पत्नी के बीच शक से बड़ी बिषबेल कोई नहीं है, इसलिए आज की रात ननदोई का ननद के साथ यहाँ सोना बहुत जरूरी है,
कैसे हो, कैसे हो,
मैं ऊँगली पर जोड़ने लगी, ननद ने कब बाल धोये थे, कब उनकी पांच दिन वाली छुट्टी ख़तम हुयी थी। और उसके बाद कितनी बार ननदोई उनके पास सोये थे।
पिछले पांच दिन तो मैंने खुद ननद नन्दोई को दूर रखा था, और उसके पहले भी वो एक दो दिन अपनी महतारी के पास गए थे और होली में तो सब कुछ छोड़ के मेरे पीछे, और मैं खुद उन्हें ललचा ललचा के, कितने बारे मेरे अगवाड़े, पिछवाड़े और कौन है जो ननदोई ने कितनी बार नंबर लगाया गिनती है वो भी होली में। होली के बाद जब मैं मायके से अपनी छोटी बहिनिया को छुटकी को ले आयी तो उस दर्जा नौ वाली के छोट छोट चूतड़ के पीछे तो वो ऐसे मोहाये थे, कितनी बार
तो अगर ननद उन्हें खुशखबरी सुनाती तो उन्हें क्या किसी को भी शक होता
और बाल धोने के कुछ दिन बाद हर मरद जानता है कितना पेलो, कुछ भी नहीं होने वाला, हाँ चार पांच दिन के बाद, ले
किन तबसे तो ननदोई जी मेरे और मेरी बहन के पीछे
कुछ तो करना पड़ेगा, उन्हें पक्का ककोल्ड बनाने के लिए, उन्हें सिर्फ बिश्वास न हो बल्कि घमंड हो की मैंने ही अपनी मेहरारू को पेल पेल के गाभिन कर दिया है
मरद को सबसे ज्यादा घमंड जिस बात का है वही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है, उसके कमर का जोर
तो ननदोई जी को आज रात में रुकना होगा, ननद जी की उन्हें खूब हचक के लेनी होगी और रोज से अलग, एकदम थेथर कर दें
जिससे कल सबेरे जब ननद उन्हें ख़ुशख़बरी दें तो उन्हें लगे की कल रात कुछ अलग हुआ था, ये सब उनकी कमर की ताकत, हचक के पेलने का नतीजा है की मेरी ननद गाभिन हुयी है, उन्ही के बीज से
और ये तभी हो सकता है की जब ननदोई आज रात रुके, ननद के साथ सोएं पर उनकी महतारी ने जिस तरह हड़काया था कल, उनकी हिम्मत नहीं है आते ही चलने की जिद करेंगे और फिर सब गड़बड़
जो बार सोच सोच के मैं घबड़ा रही थी, वही डर मेरी ननद को भी खा रहा था। बोल नहीं रही थीं वो लेकिन अपनी कातर हिरणी की तरह निगाह से बार बार मुझे देख रही थीं मानो कह रही हो
भौजी कुछ करो, भौजी कुछ करो
मेरी माँ ने मेरी सब परेशानी सुलझाने के लिए एक चाभी दी थी,
मेरी सास का बेटा, और वो अब आ गए थे,
बिलकुल सही कहा. माई ने साक्षात आशीर्वाद तो दे दिए. पर अब ये नई समस्या आन पड़ी. नन्दोई जी और नांदिया छिनार का भी मौसम बना ना जरूर हो गया. एक बार वो खुद के भकरोसे मे हो जाए तो बस. उसके बाद तो जन के बिटिया अपने मामा का ही भला करेंगी. वैसे भी मामा का ताना सच हो जाएगा. और नन्दोई जी ताव मे.भाग 98 –
अगली परेशानी…, नन्दोई जी
22, 75,728
नन्दोई -ककोल्ड
मेरे मन में अभी भी ननद की सास की, साधू के आश्रम का डर था, हिम्मत कर के मेरे मुंह से बोल फूटे,
" लेकिन कोई जबरदस्ती करके,..”
“ हाथ टूट जाएगा, भस्म हो जाएगा, ….अब चिंता जिन करा, नौ महीना बाद सोहर गावे क तैयारी करा, कउनो बाधा, बिघन नहीं पडेगा। " माई बोलीं बिहँस के
मैंने और ननद जी दोनों ने आँख बंद कर के हाथ जोड़ लिया, और आँख खोला तो वहां कोई नहीं था, सिर्फ ननद रानी की गोरी गोरी बाहों पे वो काला धागा बंधा था,
जिधर पेड़ हिल रहे थे, जहाँ लग रहा था वहां से कोई गुजरा होगा, उधर हाथ फिर मैंने जोड़ लिए।
और लौटते हुए हम ननद भौजाई के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, मारे ख़ुशी के,
एक तो ननद हमार तीन साल के बाद गाभिन हो गयी थीं, और ऊपर से सत्ती माई का आशिर्बाद साक्षात, खुद, और असली बात थी
डर जो हम ननद भौजाई के मन में था, सास उसकी जबरदस्ती आश्रम भेजतीं और जो उनकी देह नोची जाती, गिद्ध सब, जीते जी रौरव नरक, ….और ननद जो बात बोली थीं,…. मारे डर के हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे, भौजी ताल पोखर में मिलब,…. अब के बिछुड़े,
लेकिन तालाब की काई की तरह सब डर गायब, असली खुसी
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लेकिन घर लौटते ही मुझे फिर अगली परेशानी ने घेर लिया, नन्दोई जी।
कल उनकी सास ने जिस तरह नन्दोई जी को हड़काया था और बोला था की,... कुछ भी हो दोपहर के पहले वो अपनी पत्नी के साथ घर में दाखिल हो जाएँ।
तो बस मुझे लगता था की ननदोई जी आते ही बिदाई बिदाई चिल्लायेंगे और कहीं अगर ननद को आज बिदा करा के ले गए तो मेरा सब किया धरा, ….कम से कम आज की रात उन्हें यहाँ रुकना जरूरी था, और उसके लिए जितना देर से आएं उतना अच्छा,
मैं थोड़ा सा मुस्करायी, सोच के। अपने मरद को, बहुत दुष्ट है और उतना ही प्यारा।
शहर की हूँ लेकिन अब तो पक्की गाँव वाली हो गयी हूँ, चिड़िया चिंगुर, जानवर सब का किस्सा देख देख के सुन के, …मुझे कोयल का किस्सा याद आया। कैसे वो फुदक फुदक के चुदवाती है, गाभिन होती है और कैसे चतुराई से अपना अंडा सेने के लिए कौए के घोंसले में, और कोए की किस्मत में दूसरे का अंडा,… दूसरे ने जो मजा लिया उसके फल को पकने तक सेना, पता तो तब भी नहीं चलता है, जब अंडा फूटता है।
वो तो जब कोयल की बिटिया बड़ी होकर डाली डाली अमराई में कूकने लगती है तब खुलता है राज, …तो बस ननदोई जी भी उसी तरह।
मजा मेरे मरद ने लिया. हचक हचक के नन्दोई की मेहरारू को लिटाय के, निहुराय के, कुतिया बनाय के पेला,
फाड़ी उसकी बुर, उसे गाभिन किया,
लेकिन सेने का काम,... ननदोई के जिम्मे ।
चोद के, आपन बीज डाल के, गाभिन कर के , ….जब पेट फूलने लगेगा तो अपने बहनोई के हवाले, ....और जब बिटिया बड़ी होगी, धीरे धीरे जवान होगी, खिलेगी, और गाँव जवार क सब कहेगें इसके लच्छन तो एकदम अपनी महतारी पे गए हैं, बल्कि उससे भी दो हाथ आगे, पर चेहरा हूबहू अपने मामा पे, शर्तिया अपने मामा की जाई। बीज बोलता है।
और नन्दोई सोचेंगे,… की ससुराल है लोग मजाक तो करेंगे ही और भांजी को मामा से जोड़ के तो मजाक चलता ही है। लेकिन ये बात भी सही है की सूरत एकदम साले पे गयी है, पर चलो बंश तो चल रहा है, माई तो खुश है।
कौवे की तरह, जो कोयल के पहचानने के बाद भी मन को दिलासा देता है,
ककोल्ड शब्द उसी से तो निकला है। मरद जो अपनी मेहरारू को किसी और मरद के नीचे देख के खुश हो, तो मेरे ननदोई पक्के ककोल्ड,
और मेरा मरद भी,…
अगले नौ महीने के अंदर ही आदरणीय नन्दोई जी की बहिनिया को, उस दर्जा ११ में पढ़ने वाली गोरी नागिन की भी लेगा, और हचक के लेगा,
उसकी महतारी की भी लेगा और फिर महतारी बिटिया की साथ साथ लेगा, दोनों नागिनों का फन अपने मोटे मूसल से कुचलेगा, जिससे बिस न उगल पाएं
और मेरे ननदोई की बीबी तो छठी का दूध भी एक चूँची से अपनी नयी बियाई बछिया को पिलायेंगी, और दूसरे से मेरे मरद सांड को और अपनी बछिया से बोलेंगी,
“देख ले इस सांड़ को यही चढ़ेगा तोहरे ऊपर, यही है तेरा बाप, इसी के बीज की जाई है तू। "
और जब भी मायके आएँगी अपनी बिटिया के सामने मेरे मरद से गपागप,
लेकिन लेकिन , सबसे बड़ी बात
वो स्साला कौवा, अपने घोंसले में कोयल का अंडा डालने दे तब न,
नन्दोई जी ककोल्ड तो तभी बनेंगे जब उन्हें पक्का विशवास होगा की होने वाली बेटी उन्ही के बीज की है, लेकिन कैसे
कैसे, कैसे यही चिंता मुझे साल रही थी और ख़ुशी अब आधी रह गयी थी । अगर ननदोई जी को जरा भी शक हो गया न तो फिर ननद की जिंदगी जहर हो जायेगी, पति -पत्नी के बीच शक से बड़ी बिषबेल कोई नहीं है, इसलिए आज की रात ननदोई का ननद के साथ यहाँ सोना बहुत जरूरी है,
कैसे हो, कैसे हो,
मैं ऊँगली पर जोड़ने लगी, ननद ने कब बाल धोये थे, कब उनकी पांच दिन वाली छुट्टी ख़तम हुयी थी। और उसके बाद कितनी बार ननदोई उनके पास सोये थे।
पिछले पांच दिन तो मैंने खुद ननद नन्दोई को दूर रखा था, और उसके पहले भी वो एक दो दिन अपनी महतारी के पास गए थे और होली में तो सब कुछ छोड़ के मेरे पीछे, और मैं खुद उन्हें ललचा ललचा के, कितने बारे मेरे अगवाड़े, पिछवाड़े और कौन है जो ननदोई ने कितनी बार नंबर लगाया गिनती है वो भी होली में। होली के बाद जब मैं मायके से अपनी छोटी बहिनिया को छुटकी को ले आयी तो उस दर्जा नौ वाली के छोट छोट चूतड़ के पीछे तो वो ऐसे मोहाये थे, कितनी बार
तो अगर ननद उन्हें खुशखबरी सुनाती तो उन्हें क्या किसी को भी शक होता
और बाल धोने के कुछ दिन बाद हर मरद जानता है कितना पेलो, कुछ भी नहीं होने वाला, हाँ चार पांच दिन के बाद, ले
किन तबसे तो ननदोई जी मेरे और मेरी बहन के पीछे
कुछ तो करना पड़ेगा, उन्हें पक्का ककोल्ड बनाने के लिए, उन्हें सिर्फ बिश्वास न हो बल्कि घमंड हो की मैंने ही अपनी मेहरारू को पेल पेल के गाभिन कर दिया है
मरद को सबसे ज्यादा घमंड जिस बात का है वही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है, उसके कमर का जोर
तो ननदोई जी को आज रात में रुकना होगा, ननद जी की उन्हें खूब हचक के लेनी होगी और रोज से अलग, एकदम थेथर कर दें
जिससे कल सबेरे जब ननद उन्हें ख़ुशख़बरी दें तो उन्हें लगे की कल रात कुछ अलग हुआ था, ये सब उनकी कमर की ताकत, हचक के पेलने का नतीजा है की मेरी ननद गाभिन हुयी है, उन्ही के बीज से
और ये तभी हो सकता है की जब ननदोई आज रात रुके, ननद के साथ सोएं पर उनकी महतारी ने जिस तरह हड़काया था कल, उनकी हिम्मत नहीं है आते ही चलने की जिद करेंगे और फिर सब गड़बड़
जो बार सोच सोच के मैं घबड़ा रही थी, वही डर मेरी ननद को भी खा रहा था। बोल नहीं रही थीं वो लेकिन अपनी कातर हिरणी की तरह निगाह से बार बार मुझे देख रही थीं मानो कह रही हो
भौजी कुछ करो, भौजी कुछ करो
मेरी माँ ने मेरी सब परेशानी सुलझाने के लिए एक चाभी दी थी,
मेरी सास का बेटा, और वो अब आ गए थे,
तथास्तुबिलकुल सही कहा. माई ने साक्षात आशीर्वाद तो दे दिए. पर अब ये नई समस्या आन पड़ी. नन्दोई जी और नांदिया छिनार का भी मौसम बना ना जरूर हो गया. एक बार वो खुद के भकरोसे मे हो जाए तो बस. उसके बाद तो जन के बिटिया अपने मामा का ही भला करेंगी. वैसे भी मामा का ताना सच हो जाएगा. और नन्दोई जी ताव मे.
और नांदिया का जिम्मा अपनी नांदिया को अपने मरद मतलब की कोमलिया के नन्दोई से पिलवाना. हा नागिन मुँह वाली उनकी महतारी भी. माझा आ गया कोमलजी.
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