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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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वाह री कोमलिया मान गए तुझे. अनजान बनकर क्या सही वक्त पर दाव खेला. खुद नन्दोई जी से ही पूछ लिया. कब करोगे. हमारा भी बाद मे नम्बर आए. पहले नांदिया ब्याही तो उसका ही पहले होना चाहिये. नहीं तो लोग ताना मरेंगे.नन्दोई का दर्द
" ननद जी के आने में अभी टाइम है, अपनी माँ के पास बैठ के कुछ गप्प मार रही हैं। आप से कुछ बहुत जरूरी और सीरियस बातें करनी थी इसलिए, लेकिन आप को एक कसम खानी होगी, ये बाते सिर्फ मेरे और आप के बीच रहेंगी और ये आप किसी को भी नहीं बताएँगे, मेरी ननद को भी नहीं "
एक पल वो चुप रहे, दिमाग में तो उनकी माँ चल रही होंगी लेकिन मान गए। और मैंने उसी टोन में बात शुरू की,
" ननद जी की शादी को तीन साल हो गए, मेरी शादी से दो ढाई साल पहले, लेकिन अभी कुछ, मेरा मतलब आप समझ रहे होंगे "
" हाँ लेकिन, " ननदोई कुछ बोलते की मैंने चुप करा दिया,
" पहले आप मेरी बात सुन लीजिये की मैं क्यों कह रही हूँ, मेरा क्या मतलब है, अब आपके साले भी चाहते हैं, मैं भी चाहती हूँ, लेकिन मुझे लगता है की ननद के पहले, ये ठीक नहीं लगेगा, उनकी शादी मुझसे पहले हुयी है तो पहले उनका नंबर लगे, उसके बाद मैं नंबर लगाऊं "
अब ननदोई जी एकदम खुल गए .
जो मैं चाहती थी, पहले वो अपने मन की कह दें, उसके बाद उनके लिए मेरी बात सुनना और मानना दोनों आसान रहेगा।
" यही बात मैं भी चाहता हूँ और माई भी, मैं लेकिन जब भी आपकी ननद से कहता हूँ तो कहती हैं की मैं रोज रात को टांग तो फैला देती हूँ , और क्या करूँ, "
वो दुखी होकर बोले और मैं नन्दोई जी का साथ देती हुयी बोली,
" तो कौन बड़ा काम करती हैं कोई औरत गौने आती है तो उसकी महतारी भौजाई यही बोल के भेजती हैं औरत का असली काम यही है, इसलिये वो गौने जा रही है और फिर ननद तो किस्मत वाली, ऐसा मोटा मूसल मिला है, उनकी बुर खुद हरदम लासा रहती है, पक्की चुदवासी, कहीं गोली वोली तो नहीं खातीं? किसी डाक्टर वाकटर को दिखाया, ?"
और अब बात ननदोई जी के पाले में थी , वो भी एक दोस्त की तरह अब एकदम खुल के बता रहे थे,
" नहीं,... गोली वोली तो साल डेढ़ साल से बंद है, माई खुद एक बार देखी थी की कहीं गलती से पेट दर्द,सर दर्द की गोली की जगह ये वाली गोली तो नहीं,.... कुछ मिली भी तो वो सब उन्होंने खुद हटा दी।
और डाक्टर एक नहीं कई. गाँव में आशा बहू रहती हैं, माई को उनपे बहुत विशवास है उसको भी,.... वो क्या कहते हैं पेट की फोटो, हाँ अल्ट्रा साउंड एक लेडीज डाक्टर को भी दिखाया, वो भी बोलीं सब ठीक है। माई तो ओझा सोखा भी,
अब ये कहती हैं की आप भी दिखा लूँ . क्या मेरा खड़ा नहीं होता या छोटा है, क्या दिखाऊं मैं ? "
नन्दोई जी की हाँ में हाँ मिलाते मैं बोली,
" छोटा,.... अरे पूरा मूसल है. मुझसे कोई पूछे, साल भर से ज्यादा हो गए मुझे गौने उतरे लेकिन जिस दिन आप का नंबर लगना होता है, न सच नन्दोई जी, आपकी कसम, अपनी कुप्पी में पाव भर सरसों का तेल, पहले से भर लेती हूँ और उसके बाद भी दो दिन तक चिल्ख रहती है। कटोरी भर से कम का मलाई निकलती होगी आपकी, मुझसे पूछे कोई, …अरे मरद में कोई दोष हुआ है आज तक "
अब ननदोई जी एकदम खुश. मरद अपने औजार की तारीफ़ सुन के खुस न हो ऐसा मर्द हो नहीं सकता, करोडो की फर्जी दवाई इसी बात पे बिक जाती है।
और अब नन्दोई जी ने वो बात खोली, जिसका दर ननद और मुझे था वो साधू और आश्रम की बात। लेकिन मैं उन्हें बोल लेने देना चाहती थी।
और नन्दोई जी के चेहरे पर भक्ति भावना छा गयी, आँखे आधी बंद हाथ अपने आज जुड़ गए और आवाज भी धीमे धीमे,
"एकदम दिव्यात्मा, चेहरे पर तेज, और असर इतना की शहर के एक से एक, कलेक्टर दरोगा से लेकर एक से एक बड़मनई, लेकिन मुश्किल से दर्शन देते हैं, वो तो माई का असर, और माई के ऊपर इतना स्नेह है, नहीं तो कौन मिल पाता है उनसे, माई उनका गोड़ पकड़ ली, गुरु जी, जिंदगी भर आपका गोड़ धोऊंगी, जो कहिएगा वो, पूरा परिवार, बस हमारा बंस चले, बेटा, बिटिया कुछ भी, "
अरे कोमलजी. कलेजा निकल कर हाथ मे रख दिया. वैसे तो ये टॉपिक पुराना है. फिल्मो मे टीवी सीरियलों मेंकई बार ऐसे किस्से देखे. मगर एक औरत की नजरों से देखो तब ये वेदना पता चले. की क्या बीत ती है. नदिया अपने मायके मे आकर हस खेल रही है. मगर एक बार भी उसने अपनी ये तकलीफे किसी को नहीं बताई. गांव की चाची ने अपने बहु की गोद भराई मे नांदिया को लाने से मना कर दिया. कहती है की बानझन की पड़छाई ना पड़े. सही कहा. तेरी सास होती तो जलता कोयला उसके मुँह मे भर देती.ननद मेरी,…. बाँझिन !
और नन्दोई चुप हो गए, मैं भी कुछ नहीं बोली, मैंने उनको बोल लेने देना चाहती थी,
" माई का करे, वो तो पहले दिन से ही कह रही थी, हमको पोती पोता चाहिए, लेकिन आजकल तो साल भर हम भी बोल दिए, साल क डेढ़ साल लेकिन, और गली मोहल्ला, पास पड़ोस, किसका मुंह बंद कराएंगी,
हमरे रिश्ते के चाची, उनके लड़के की शादी हुयी थी, दुल्हिन देखने क बुलौवा था, तो सब जगह सास बहू सब, लेकिन चाची खुदे आयीं और हलके से बोलीं, की आप अकेले आइये बहुरिया को मत लाइयेगा साथ, फिर कभी वो,
तो माई पूछीं की का बात है।
चाची पहले तो चुप रही, फिर बोलीं हम तो घर के हैं लेकिन पास पड़ोसिन बोली हैं की बाँझिन को जिन बुलाइयेगा, आपकी दुल्हिन भी,... और हम जिद्द किये तो बोलीं की फिर हम सब लोग वो जैसे आएगी बाँझिनिया….उठ के चले जाएंगे। "
मेरे तो सांप सूंघ गया, हमारी सास होतीं तो जलता चेला ले के दाग देतीं,
जैसे कोई गरम चिमटे से जांघ पे दाग दे, जिंदगी भर के लिए
गोली मार दे लेकिन ऐसी गाली न दे, कोख की गाली। जैसे कोई लहलहाते धान के खेत को शाप दे दे, ऊसर होने का।
मैं सन्न रह गयी। बेचारी मेरी ननद, कैसा लगा होगा उन्हें
बड़ी हिम्मत कर के मैंने पूछा तो माई गयीं ?
नन्दोई धीरे से बोले,
" बुरा तो मुझे भी बहुत लगा, माई को भी लेकिन माई बोलीं की का करी। केकर केकर मुंह बंद करबा फिर हमरो एक बिटिया है, कल ओकर बियाह ठानब तो ओकरे हल्दी, चुमावन में कौन आएगा। तो अब हर जगह अकेले, … उनकी भी मज़बूरी। "
ये बाँझिन वाली बात ननद ने मुझे भी नहीं बतायी, कितना कठिन गरल वो पी गयीं हँसते खेलते, और होली में आयीं तो सबसे ज्यादा मजाक मस्ती में वही,… औरत माँ की बाप की भाई की गाली बर्दास्त कर लेगी, मजाक में सब औरतें एक दूसरे को भाईचोदी बोलती हैं लेकिन बाँझिन तो शाप है, मैं चुप थी अपने गुस्से को घोंट रही थी,
फिर ननदोई जी ने एक और बात बताई, एक कामवाली की बेटी, तो गाँव वाली के रिश्ते से इनकी बहन और मेरी ननद की ननद,
और सबसे खुल के मजाक तो काम वाली ही करती हैं, ननद जी से दोस्ती भी थी खूब खुल के हंसी मजाक भी, लेकिन एक दिन उसने बोल दिया
" भौजी लगता है मायके में दो चार बार गरभ गिरवाई हैं, इसलिए अब बच्चा वच्चा होने की कोई उम्मीद नहीं है "
ननदोई जी बोले, तोहार ननद अब उसकी बात का बुरा मान गयी, उससे तो कुछ नहीं बोलीं, लेकिन फिर उसके मजाक का जवाब देना बंद कर दिया, अब बच्चा नहीं हो रहा तो आप किस किस का मुंह, …..और एक दिन मेरी छोटी बहन उससे गुस्सा,
वो तो मेरे सामने वो बोल मुझसे रही थी,
" भैया अब ये भौजी हमको बुआ नहीं बना रही है नेग न देना पड़े इस लालच में,... तो आप दूसरी भौजी लाइए जो हमको बुआ बना दे, "
बस ये पलट के बोल दी तो ठीक है वो नयकी दुसरकी भौजी से अपना काम करवाना। बस अब वो नाराज, हमने बहुत समझाया, उसको अभी छोटी है,… कितने दिन बाद मानी "
नन्दोई जी एक बार फिर चुप हो गए थे, मैं भी चुप थी,
अपनी ननद के बारे में सोच रही थी, पल पल तिल तिल कितना दुःख और कोई दुःख बांटने वाला नहीं,
Nandoi ji to guruji ke kitne bakhan kar rahe hai. Unhe pata nahi hai na ki guruji ke asram me hota kya hai. 4 din chhod kar jao. Aur 4 din me kya hoga nandoi ji ko ye nahi malum. Ha nandoi ji. Tumhari maa to thodi juban ki kadvi hai. Are puri jahrili nagin hai nagin. Lekin man gae konaliya ko fir bhi kya bat boli. Esi maa ke to hath god dho kar pine chahiye.गुरु जी - आश्रम
फिर ननदोई बोले
" देखिये ये सब किसी से कहता नहीं, आपकी ननद की भी कोई गलती नहीं, लेकिन घर ससुराल दोनों जगह आप ही ऐसी हैं जो मेरा मन समझती हैं, जिनसे मैं खुल के बोल सकता हूँ। अब माई भी वो तो अपनी ओर से, नन्दोई का दर्द से बहुत मिनती की तो गुरु जी मान गए, उनकी कुछ प्रमुख सेविका हैं, माई की उनसे अच्छी पटती है, तो एक बार आपकी ननद माई के साथ गयीं भी आश्रम, वहां एक थीं उन्होंने देखा भी, फिर गुरु जी ने माई से कहा की बहू को दो चार दिन के लिए आश्रम छोड़ दो, "
" फिर ननद जी गयीं क्या " जानते हुए भी मैंने पूछा।
" नहीं, माई ने लाख कहा, ले
किन ननद आपकी बस एक जिद मैं अकेले कभी कहीं नहीं रही, जबतक सास जी रहेंगी तक लेकिन उन्ही के साथ लौट आएँगी,
आपकी ननद में सब बात अच्छी है लेकिन, ...अब माई, ठीक है मानता हूँ जबान की कड़वी हैं लेकिन शुरू से हैं और हम सबके साथ है और उनकी बात कहने से पहले पूरी हो जाए ये उनकी आदत है, और आज से थोड़ी। लेकिन चाहती तो भला ही हैं न, पाल के बड़ा किया,
गुरु जी को बोल के आयी थीं मैं अपनी बहू को खुद ले के आउंगी और छोड़ के जाउंगी, फिर जब तक इलाज न हो जाए दो दिन चार दिन सात दिन रखिये,
अब ये जाने को तैयार नहीं और माँ की बात खाली जाना उनको भी अच्छा नहीं लग रहा, "
" गुरु जी के आशीर्वाद से वहां के इलाज से किसी औरत को बच्चा हुआ, " मैंने जानना चाहा,
" एकदम, कितनो को,... लोग तो लाइन लगा के अपनी बहू को,... बेटी को आश्रम के बाहर, हफ़्तों इन्तजार करते हैं,
हमारे गाँव में ही तीन को तो मैं जानता हूँ , एकदम बाँझिन, सबेरे मुंह देख लो तो दिन में खाना न मिले. जिनको डाक्टर हकीम सब मना कर दिए,ओझा सोखा फेल, हजारों लाखों खर्च किये लेकिन कुछ नहीं
लेकिन कोई चार दिन. कोई हफ्ता दस दिन आश्रम में रही और सब के सब, नौ महीना के अंदर, एक के तो जुड़वां बिटिया,…वही बात माई भी कह रही है अब जो सिस्टम है गुरु जी का, आश्रम का, कुछ दिन तो आश्रम में रहना ही पड़ेगा न और सब सुख सुविधा है वहां, लेकिन पूजा पाठ में टाइम तो लगेगा, लेकिन,आपकी ननद, दो चार दिन भी आश्रम में रहने को तैयार नहीं। आखिर माँ है मेरी कोई दुश्मन तो नहीं, अपनी एकलौती बहू का बुरा तो नहीं चाहेंगी न "
अब ननदोई जी चुप भी हो गए, उदास भी।
उनको सपोर्ट में मैं भी आ गयी, ठंडी सास ले के मैं बोली,
"ननद ने मेरी पिछले जनम में कुछ अच्छे करम किये होंगे तो ऐसी सास मिली। ऐसी सास का तो रोज गोड़ धोके पीना चाहिए, फिर सास भी अपने बेटा बहू का ख्याल रखती हैं, सास की बात तो भगवान क आदेश,"
Man gae ri komaliya. Kya patti padhai hai nandoi ji ko. Garbh me sui ki nok hai jo bacha nahi hone de rahi. Ab sadhvi ne jo laddu vala prasad diya hai. Uska asar. Garbh me to ling ke raste hi dava dalegi. Bechare nadoi ji ko pata hi nahi ki garbh to pahele hi bhar chuka hai. Maza aa gaya komalji.उपाय - साध्वी
फिर हम दोनों थोड़ी देर चुप रहे, फिर मैंने अपनी बात शुरू की,
" एही बारे में एक बात मैं कहना चाहती थी,
लेकिन दो बात है, पहली ये बात ननदोई सलहज की अपनी बात है, किसी को मालूम नहीं होना चाहिए, खास कर मेरी ननद या सास को," और मैं नन्दोई का रिएक्शन देखने के लिए चुप हो गयी।
" एकदम, हमारी आप की बात, इस कमरे के बाहर नहीं जायेगी, माई कसम " और नन्दोई जी उत्सुक थे अगली बात सुनने के लिए,
" अगली बात, सलहज की बात सुननी ही नहीं पड़ेगी, माननी भी पड़ेगी, और सहलज की बात मानने का हरदम फायदा ही होता है, " मुस्कराते हुए मैं बोली और वो इशारा समझ गए, और मुस्कराते बोले,
" मुझसे कह रही हैं, अरे मेरी हिम्मत है सलहज का हुकुम टालूँ, बोलिये न "
और मैं एक बार फिर चुप हो गयी फिर एकदम गुरु गंभीर आवाज में बोली,
" हमको भी यही चिंता था, आपकी और ननद की, तो हम ननद को ले गए थे एक साध्वी हैं, बगल के गाँव में, ननद को बताया नहीं था, किस काम के लिए जा रहे हैं, बस यही की चलो देख के आते हैं। सबसे मिलती भी नहीं, कोई खास ठिकाना भी नही। सब लोग कहते हैं की हिमालय में रहती हैं, कभी कभार, मेरी सास बोलती हैं की जिस साल वो गौने उतरी थीं तो उस साल आयी थीं, एकदम सफ़ेद, बाल क्या जटा जूट एकदम पैर तक, एक बरगद का पुराना पेड़ है, सैकड़ों सालपुराना , मिलना होता है तो उसी के पास, ....और किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं होती,
मन की बात जान लेती हैं और बोलना होता है तो वही खुद, लेकिन बहुत कम,
नन्दोई जी के मन में उनकी माँ की तरह साधू साध्वी में बहुत आस्था थी, उनके आंख्ने आधी बंद हो चुकी थीं, श्रद्धा से उन्होंने हाथ जोड़ लिए
फिर धीरे से वो बोले, मिलीं क्या ?
" हाँ " मैं बोली। फिर आगे का किस्सा बताया,
" ननद जी को तो खूब दुलार किया, कोख पे हाथ फैरा, फिर पाँव उठा के बायां पैर देखा, फिर इशारे ननद जी को बाहर जाने को कहा और मुझसे वो बोलीं,
" मुझे मालूम है तेरी परेशानी, तेरे ननद को, खूब डाक्टर हकीम दिखाया होगा, झाड़ फूँक भी, लेकिन असली बात है बिना रोग पता किये इलाज नहीं हो सकता और रोग पता चल जाये तो सही डाक्टर और सही इलाज। देह में कुछ होगा तो डाक्टर हकीम करेंगे और कुछ बुरी आत्मा हो नजर हो तो झाड़ फूँक, लेकिन न उनकी देह में कोई परेशानी है न कोई साया न बुरी आत्मा है, इसलिए पहले सही रोग का, क्यों ये हाल है पता करना जरूरी है। "
और मैं चुप हो गयी, ननदोई उम्मीद भरी निगाह से मेरी ओर देख रहे थे। उन्हें देख के मैं बोली
" गलती आपके यहाँ की, ननद के ससुराल की नहीं है, ननद की है, यही की उनके मायके की। लेकिन ननद का भी क्या दोष, लड़कपन की उमर, पैर हवा में चलते है। बियाह के कुछ महीने पहले, वो अपनी सहेली के यहाँ गयी थीं , बाइस पुरवा में नहीं बगल के गाँव में, बस ध्यान नहीं था, गाँव के घूर के पास, उस उमर में तो पैर यहाँ रखो वहां पड़ता है। तो कोई टोनहिन थी, उतारा की थी, शायद कोई बाँझिन का, या चलावा था, एक निम्बू में सुई गाड़ के, उसी को लांघ गयी। लांघने पे तो असर उतना नहीं पड़ता, लेकिन पैर पड़ गया उनका और वो सुई बाएं पैर में धंस गयी। बस वही सुई। "
और मैं एक बार फिर चुप हो गयी, सर झुकाये उदास और नन्दोई भी चुप। फिर मैंने उसी तरह ननदोई को देखा और आगे की बात शुरू की
" कुछ देर बाद जब ननद को चुभा, पहले तो उन्हें लगा की कोई काँटा होगा, फिर थोड़ा आगे चलने के बाद उन्होंने उस सुई को निकाल दिया ।
मैं फिर चुप हो गयी और फिर बहुत धीमे धीमे बोली,
" वही सूई है रोग। सूई सीधे कोख में पहुँच गयी और वहीँ अटक गयी। सूई की नोक हैं वहां पे और इतनी महीन की किसी मशीन में पकड़ में नहीं आ सकती। बस बीज जैसे कोख में पहुँचने की कोशिश करता है वो बीज के सर में चुभ के काट देती है, और कहीं एकाध टुकड़ा अंदर तो वहां गर्भ बनने के पहले। दूसरे कोख में लोहे का असर हो गया है तो बच्चे के लिए जो मुलायमियत होनी चाहिए जो पेट फुलाती है, वो भी उसी सूई के असर से, तो जब तक सूई की वो नोक और लोहे का असर कोख से नहीं निकलेगा, तब तक, और वो इलाज बड़ा, मुश्किल है "
ये कह के मैं चुप भी हो गई और उदास।
और ननदोई जी भी चुप और उदास, उसी तरह हाथ जोड़े, बड़ी मुश्किल से उसी तरह हाथ जोड़े बोले बहुत धीमे से
" तो कुछ इलाज बतायीं "
" बतायीं, लेकिन आधा। बोलीं इलाज तो मैं बता रही हूँ लेकिन डाक्टर तुमको ढूंढना पडेगा। असली परेशानी है कोख में कोई दवा पहुँच नहीं सकती, सब पेट में फिर वहां से खून में, तो इसलिए कोख में सिर्फ एक चीज ही सीधे पहुँचती है और सबसे ज्यादा
" मरद का बीज " नन्दोई जी खुद बोले।
और अब मैं मुस्करायी, और ननदोई से बोली, " अच्छा अब मुंह खोलिये तो आगे की बात बताती हूँ "
उन्होंने मुंह खोला और मैंने गप्प से एक लड्डू डाल दिया और बोली,
" यही इलाज था और आप ही डाक्टर हैं। इस का असर पंद्रह बीस मिनट में हो जाएगा और दो घंटे तक रहेगा। इस में जो प्रसाद है उससे बीज में तेज़ाब का असर आ जाएगा और जब आपका पानी ननद के अंदर जाएगा, धीरे धीरे उनकी कोख सोखेगी, तो उसी तेज़ाब के असर से वो सूई घुल जायेगी और कोख का लोहा भी।
और असर पता करने का भी तरीका है। अगर सूई घुलेगी तो ननद को आपका पानी घोंटने के दस मिनट के अंदर बहुत जोर की मुतवास लगेगी। उनको रोकियेगा मत।
बस मूत के साथ वो सुई की नोक और कोख का लोहा घुल के,... गल के निकल जाएगा।
और डाक्टर आप इसलिए हैं की वो बोली थीं की मरद ऐसा होना चाहिए की जिसका घोड़े ऐसा तगड़ा लिंग हो, ढेर सारा वीर्य निकलता हो और सबसे बढ़कर लिंग के बाएं ओर तिल हो। बस मैं समझ गयी आप से बढ़िया कौन होगा, सब चीज मैं देख चुकी हूँ और वो तिल भी ।
हाँ एक बात और वो आपके पहले पानी में वो ताकत रहेगी की बच्चेदानी को अच्छी तरह से साफ़ कर देगी, कोई बिमारी रोग दोष, कुछ भी नहीं,जैसे कुँवारी कन्या ऐसा "
ननदोई के चहेरे पे मुस्कान आ गयी।
मैं भी मुस्करायी और बोली ननदोई बाबू, जैसे खेत तैयार करते हैं न बीज डालने के पहले, तो जो आप लड्डू खाये हैं वो खेत तैयार करने के लिए, और जब ननद हमार मूत के आएँगी न तो वो एक लड्डू और दी हैं, मैं यही रख दे रही हूँ, वो मेरी ननद अपने हाथ से आपको खिलाएंगी, और उसके दो फायदे हैं। एक तो पहले वाले का सफाई वाला असर ख़त्म हो जाएगा, दूसरे बीज का असर जबरदस्त होगा । उन्होंने कुछ और बतया है लेकिन वो सब तब बताना है, जब इन दोनों लड्डुओं का असर हो जाएगा। आज कल चेक करने वाली पट्टी आती हैं न,
मेरी बात काट के नन्दोई जी बोले,
" हमे मालूम है, केतना हम लाये थे। जब जब डाक्टर के यहां से आते थे, रोज सबेरे मूतवा के चेक करवाते थे, लेकिन वही एक लाइन। दो लाइन देखने को तरस गए। "
" अरे तो अबकी सलहज हैं न आपके साथ, ....कल दिखाउंगी दो लाइन आपको, अभी भेजती हूँ ननद रानी को , आज ज़रा उन्हें गौने की रात याद दिलाइएगा, हचक हचक के, कल दो लाइन होगी तो नेग तो लूंगी ही मेरी दो शर्त है, " मैं बोल ही रही थी की नन्दोई जी काट के बोले
" एडवांस में मंजूर "
" और भी कुछ बात है लेकिन वो सब दो लाइन दिखने के बाद "
और मैं बाहर निकल गयी।
agale update men pata chalegaNandoi Aur Nanad Ruk To Gaye Lekin Maahol Dekh kar lag raha hai ki Kal Jaane Layak Halaat me Rahenge ki nahi ..
.. itni Masti me Doobne ke baad nadan ko chalne me dard hoga aur Raat bhar ki mehnat ke baad Nandoi bheee Shayad Thak Jaye .. who knows ..![]()
Are Marad ka Dosh Hua Hai Aaj Tak .. .. This Line Wins Heart🩷
🩵
Jyada Kuch Bolunga To Vivaad Ho Jayega![]()
isase accha aur kya Neg ho skaata haiNadad Ki Nadad Ki Takleef Bhee Door Hone wali Hai Ki "Bhauji Ko Bachcha hone me deri se Usko Nek Nahi Mil Raha rha tha" Ab to khub mota wala nek Milne wala hai .... vo Bhee Apne Bhaiya Ke Sasuraal Se
Thanks so muchYe Kis Line me Aa Gayi Komal Di Aap In Future Aasaram Kholana hai Kya Nandoi Ke Amma ke Guru Ghantaal Type ka .. Aap us Business / Sector me Bhee Rock kar dogi .
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