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पूछना इ था कि --भाग ९९
ननद की रात -ननदोई के संग
२३,२४,८२५'
ननदोई के चहेरे पे मुस्कान आ गयी।
मैं भी मुस्करायी और बोली,
“ ननदोई बाबू, जैसे खेत तैयार करते हैं न बीज डालने के पहले, तो जो आप लड्डू खाये हैं वो खेत तैयार करने के लिए,
और जब ननद हमार मूत के आएँगी न तो वो एक लड्डू और दी हैं, मैं यही रख दे रही हूँ, वो मेरी ननद अपने हाथ से आपको खिलाएंगी, और उसके दो फायदे हैं। एक तो पहले वाले का सफाई वाला असर ख़त्म हो जाएगा, दूसरे बीज का असर जबरदस्त होगा । उन्होंने कुछ और बतया है लेकिन वो सब तब बताना है, जब इन दोनों लड्डुओं का असर हो जाएगा। आज कल चेक करने वाली पट्टी आती हैं न,...
मेरी बात काट के नन्दोई जी बोले, " हमे मालूम है, केतना हम लाये थे। जब जब डाक्टर के यहां से आते थे, रोज सबेरे मूतवा के चेक करवाते थे, लेकिन वही एक लाइन। दो लाइन देखने को तरस गए। "
" अरे तो अबकी सलहज हैं न आपके साथ, कल दिखाउंगी दो लाइन आपको, अभी भेजती हूँ ननद रानी को , आज ज़रा उन्हें गौने की रात याद दिलाइएगा, हचक हचक के, कल दो लाइन होगी तो नेग तो लूंगी ही मेरी दो शर्त है, "
मैं बोल ही रही थी की नन्दोई जी काट के बोले
" एडवांस में मंजूर "
" और भी कुछ बात है लेकिन वो सब दो लाइन दिखने के बाद " और मैं बाहर निकल गयी।
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ननद को मैंने आज खूब ढंग से तैयार किया कोहनी तक चूड़ी, पैर में रच रच के महावर, हजार घुंघरू वाली पायल
और सबसे अंत में जो नन्दोई जी से बात हुयी थी उसमे से दो बात बतायी,
एक तो पहले राउंड के बाद मूतने के लिए जरूर निकले,
दो लोटा पानी पी के जाएँ सेज पे और दूसरी जब मूत के आएं तो मैंने एक लड्डू रखा है वो खिला दें अपने साजन को, और उन्हें उकसा उकसा के चुदवाये। हाँ सुबह मैं आउंगी आज की तरह, एकदम भोरे और फिर वही चेक करुँगी ननदोई के सामने स्ट्रिप दिखा के, बाकी का मेरे जिम्मे "
और रात भर खूब घमकच, घमकच, हुमच हुमच के ननद की, उनकी चीखें, सिसकियाँ, पायल के छनकने की, कंगना के खनकने की आवाज, बगल के कमरे में बहन हचक हचक के चुद रही हो तो कोई भी भाई जोश में आ जाएगा, और मैं भी उनसे पांच दिन से दूर तो मैं तो उनसे भी ज्यादा बौराई थी, हाँ पहले राउंड के बाद करीब, एक डेढ़ घंटे के बाद, ननद के कमरे से आवाजें आना बंद हुयी, बस दरवाजा खुलने की हलकी सी आवाज हुयी और मैं भी बाहर।
यहाँ भी इंटरवल चल रहा था, कच्चे आंगन में नाली के पास बैठी ननद, मैं समझ गयी तीर चल गया।
वो एक लड्डू, दूबे भाभी के दिए शिलाजीत से बना, उसने लौंडो को इतना पागल कर दिया था की सब ने ढूंढ ढूंढ कर के अपनी सगी चचेरी बहनो को चोदा, दिन भर चोदा ऐसी ताकत थी उस लड्डू में, और ननदोई जी ने तो दो दो खाये थे।
इन्हे आज फिर गेंहू के खेतो पे जाना था, एकदम मुंह अँधेरे, भोर अभी हुयी भी नहीं थी ठीक से। और आज दिन भर बाहर ही रहना था उन्हें, पहले गेंहूं की कटाई का इंतजाम करना था, फिर मंडी समिति, कुछ शहर में काम था।
बल्कि बहुत रात बाकी थी, लेकिन खेती किसानी का काम, कई बार तो हाड़ कंपाने वाले जाड़े में माघ पूस में रजाई में से निकल के गेंहू में पानी पटाने, कभी जब भी लाइट आये तब भी, लेकिन मुझे अब आदत पड़ गयी थी। और उधार न ये रखते थे न मैं , बचा खुचा राउंड दिन दहाड़े तो आज भी मैं जानती थी कल जब एक बार मेरी ननद विदा हो जाएंगी तो मेरी खैर नहीं,
खैर अभी तो मैं ननद रानी की खैर देखने उनके कमरे के बाहर झाँकने पहुंची। चीख पुकार की आवाज तो मेरे कमरे में भी आ रही थी लेकिन सामने से देखने का मजा और ही है, और अगर नन्द हचक के चोदी जा रही है, रगड़ी जा रही है और उसमे कुल हाथ भौजाई का हो तो देखने का तो बनता है न , और अभी जो हो रहा था वो तो सिर्फ ट्रेलर था। जो दो लड्डू मैंने उन्हें दिए थे उस का असर था, पहला वाला तो तब भी गनीमत था, और उसी में मेरी ननद थेथर हो रही थी।
असल सवाल ये था की नन्दोई को कुछ तो लगना चाहिए था की कुछ अलग हो रहा है जिससे वो मेरी ननद को गाभिन करने में सफल हो रहे हैं ,
चोदू तो वो थे ही औजार भी जबरदस्त था और चोदने का तरीका भी उन्हें मालूम था।
आज सुबह से मेरी सास की गांड चिल्ख रही थी, और उन्हें देख के मैं और नन्दोई मुस्करा रहे थे ।
तो वो जो दोनों लड्डू थे, बस जो दूबे भाभी ने शिलाजीत के लड्डू देवरों के लिए तो बस उसी की डबल डोज और साथ में वीर्य वर्धक भी, लेकिन उस के साथ मैंने कुछ कामोत्तेजक द्रव की बूंदे भी मिला दी थी की
और असर साफ़ था, खुली खड़की से मैं खुला खेल देख रही थी, मरद तो मेरा खेती किसानी के चक्कर में और मैं अपने ननद नन्दोई का हाल,
ननद ने मुझे देखते हुए देख लिया और मुस्करा के ऊँगली से इशारा किया दो राउंड
लेकिन दो राउंड में ही वो थेथर हो गयी थीं और यही मैं चाहती भी थी, लेकिन नन्दोई जी पे थकान का कोई असर नहीं था, उनका मूसल वैसे ही तना खड़ा था और खिलाड़ी तो वो पक्के थे ये मैं कई बार देख चुकी थी।
जानबूझ के वो ननद को गरमा रहे थे,
कभी अपना खुला सुपाड़ा ननद के दोनों निचले होंठो पे रगड़ते, ऊपर दाने पे मसलते तो कभी कस कस के ननद के जोबन को चूसते, कुछ देर में ही वो तड़पने लगीं,
" करो न " चूतड़ उठा के वो बोलीं
" क्या करूँ बोल न मेरी छम्कछल्लो " उन्हें छेड़ते नन्दोई जी बोले और कस कस के मेरी ननद की दोनों चूँची मसल दी,
उईईईईई ओह्ह्ह्ह जोर से वो चीखीं और अपने पति की चूम के बोलीं
" मेरे राजा, पेल न अंदर, काहें बाहर से रगड़ रहे हो "
" कहाँ पेलू , क्या पेलू साफ साफ़ बोल न " मुस्करा के बोले और झुक के मेरी ननद की क्लिट कस कस के चूस ली। बस ननद ने क्या चूतड़ उछाले उनका बस चलता तो खुद पकड़ के घोंट लेती अपने अंदर और लगी गरियाने
" स्साले तेरी छिनार माँ तो यहाँ है नहीं न वो कटखनी मेरी ननद है, किसके अंदर पेलोगे, अरे पेलो अपना लंड आग लगी है मेरी बुर में :
और ननदोई ने दुहरा कर के ननद को क्या जबरदस्त पेला, बंद कमरे में भी उन्हें तारे नजर आ गए होंगे। एक धक्के में ही आधा मूसल अंदर था
" उययी ओह्ह्ह नहीं अरे ऐसे नहीं ओह्ह रुक स्साले तेरी माँ की, ओह्ह्ह "
ननद चीख रही थीं चिल्ला रही थीं अपनी सास ननद को गरिया रही थीं लेकिन गाली सुन के तो सब मरद और जोस में आ जाते हैं और जब पूरा लंड अंदर घुस गया तो बस लंड के बेस से उनकी क्लिट रगड़ते हुए कभी कचकचा के उनके गाल काटते तो कभी चूँची पे दांत गड़ाते
ब्याहता मरद औरत की चुदाई का यही तो फायदा है, बुर में पानी डालने के पहले मरद कभी नहीं सोचता कहाँ गिराऊं और मन आने पर कस के गाल, और जोबन दोनों को काटता भी है और नोचता भी है। और औरत भी न लजाती है न शर्माती है न उन निशानों को छिपाती है ,
मैं खुद गौने की रात के अगले दिन सबेरे बड़ी कोशिश की उन निशानों को छुपाने की लेकिन दो तीन दिन में समझ गयी,
फिर मेरी सास ने भी मुझे समझाया, और मैं खूब लो कट चोली पहन के जिससे उनके दांत के नीचाँ साफ़ साफ़ मेरे जोबना पे, होंठ एकदम सूजे सूजे, दोनों गालों पे दांतो के निशान,
मैं समझ गयी थी यह सब तो नयी सुहागन के निशान है,
दिन में ठीक से चला न जाए, जाँघों में बार चिलख हो, बार बार जम्हाई आये, आँखे बारे बारे चोरी छुपे दरवाजे तक दौड़ी दौड़ी जाए की कहीं देवरों नन्दोईयों के झुरमुट में ये दिख जाएँ, बार बार सिकोड़ने पर भी रात की मलाई का कतरा सरक के नीचे,
यही सब तो निशान है रात को मरद ने नयी दुल्हन को कचकचा के प्यार किया है,
और थोड़ी देर में ननद भी अपने मरद का साथ दे रही थी, खुद अपने जोबन उभार के उनकी छाती में रगड़ रही थीं चूतड़ उछाल रही थीं
लेकिन एक चीज मैं देख रही थी, जो बात मैं अपने मरद से बार बार कहती थी,
जो मुझे दूबे भाभी और आशा बहू ने बार बार सिखाई थी की अगर औरत को पक्का गाभिन करना है चूतड़ उठे रहने चाहिए, जिससे लंड का टोपा सीधे बच्चेदानी के सीध में रहे और गिरे भी तो सब बच्चेदानी में जाए।
चूतड़ उठे रहने पे जैसे नाली में लुढ़कते पुढ़कते पानी जाता है, उसी तरह मरद का पानी भी औरत की बच्चेदानी में जाए और झड़ने के बाद भी कम से कम पांच दस मिनट तक इसी तरह एकदम चिपका के रखो, एक बूँद बीज भी बाहर न आये
और बीस पच्चीस मिनट की चुदाई के बाद जब ननदोई झड़े तो एकदम उसी तरह जैसे कुत्ते की गाँठ अटक जाती है
एकदम उसी तरह से अपनी मेहरारू को चिपकाए रहे
मतलब उन्हें बिस्वास था की आज वो मेरी ननद को गाभिन कर के ही छोड़ेंगे
और अगर छिनारों का कोई कम्टीशन हो तो मेरी ननद दस पांच जिले में टॉप करेंगी।
वैसे तो सब ननदें छिनार होती है लेकिन मेरी ये ननद खानदानी, और ऊपर से मैंने जो सिखा पढ़ा के अपने नन्दोई के पास भेजा था, एकदम वैसे ही, पक्की छिनार की तरह,
" हटो न " उन्हें धक्का देते हुए वो बोलीं,
" क्यों क्या हो गया " और कस के बाहों में भींचते मेरे ननदोई बोले।
" आ रही है " वो छिनार की तरह लजाते शर्माते बोलीं " जाने दो न बस आती हूँ "
और सिखाया पढ़ाया तो मैंने नन्दोई को भी था,
मेरी ननद के बच्चेदानी में सुई धंसी है, सचमुच की नहीं टोना टोटका वाली, इसलिए बच्चा रुकता नहीं बच्चेदानी में, बनने से पहले सुई काट देती है। और इलाज भी मैंने बताया था, ये पहला लड्डू, खा के हचक हचक के चोदिये, आपके बीज में ऐसी ताकत आएगी जो बच्चेदानी में जा के उस सुई को पिघला देगी, फिर ननद को कस के मूतवास लगेगी। अगर दो तीन बार चुदने के बाद उन्हें जोर की मुतवास लगे तो समझिये काम हो गया। और घलघल मूतने के साथ ही वो सुई एकदम पिघल के बाहर आ जाएगी, थोड़ा मूतने में जलन होगी, लेकिन थोड़ी देर बाद ठीक हो जायेगी और उनके लौटने के पहले दूसरा लड्डू खा लीजियेगा, उसमे आशीरबाद है, बस उसके बाद हचक के पेलिएगा और बीज सीधे बच्चेदानी में, सुबह तक पक्की गाभिन।
तो वो भी सोच रहे थे की उनके पेलने का और उस लड्डू का असर हो गया लेकिन आज वो भी चिढ़ा रहे थे, उनका मन भी खुश था की क्या पता बाप बन ही जाएँ
" अरे का आ रही है हमरे सास की बिटिया को " कस के गाल काट के वो बोले,
" हटो न बहुत मोहा रहे हो, अरे मूतवास आ रही है, ओह्ह बहुत जोर से लगी है "
"अरे तो जाके मूतो न, पूछ का रही हो " उठते हुए वो बोले, लेकिन उनके चेहरे से ख़ुशी साफ़ साफ़ लग रही थी
थोड़ी देर में हम ननद भौजाई साथ साथ आँगन में बैठे छुल छुल
एक सवाल और जब नन्दोई इतना ही जोशीला थे तो 3 साल का इंतजार काहे --ननद नन्दोई की जोड़ी
और लौट के, जैसा मैंने ननद को सिखाया था एकदम वही छिनरपन, मैं खुली खिड़की से नजारा देख रही थी
" उई एक तो इतना ढेर सारा हुआ और फिर जलन हो रही है कस के " ननद ने मुंह बना के कहा,
और नन्दोई के चेहरे की ख़ुशी देखते बनते थी, मतलब टोना टोटका वाली बात एकदम सही थी, और प्रसाद के लड्डू का असर भी हुआ।
स्साली सुई घुल के निकल गयी और अब उनको बाप बनने से कोई रोक नहीं सकता, इसलिए तेज़ाब का असर,… जलन इसी से हो रही है।
बस ख़ुशी से ननद को धक्का देके पलंग पे गिराते बोले,
" अरे चल अभी फूंक देता हूँ, सब जलन ठंडी हो जायेगी " और दोनों जाँघों को कस के फैला के
और कुछ देर में ही वो कस के सपड़ सपड़ अपनी बीबी की बुर चाट रहे थे
" हे हटो न, अभी वो कर के आ रही हूँ, सब लगा होगा, "
ननद ने झूठ मूठ हटाते हुए कहा
" तभी तो बड़ा खारा खारा स्वाद आ रहा है, अरे अच्छा लग रहा है चाटने दे न " और कस के अपने मुंह को मेरी ननद की बुर पे रगड़ते वो बोले और जीभ अंदर धकेल दी।
मैं भी देख के मुस्करा रही थी, खारे के साथ ननदोई की मलाई भी तो भरी थी उसमे सच में मजेदार स्वाद लग रहा होगा।
और उसी समय मैंने तय कर लिया, लौट के आने दो मेरी ननद को अपनी ससुरार से, ननदोई भी तो पीछे पीछे आएंगे।
बस ननद की इसी बिलिया में अपने मरद की मलाई दो तीन बार भर के, बजबजाती छलछलाती रहे,....
तब उसके मर्द से,... अपने नन्दोई से जरूर चटवाउंगी,
बहन की बुर से भाई की मलाई, क्या मस्त स्वाद होगा। चाटे मेरा ननदोई,
अरे अपनी मलाई तो सबकी बीबी कुछ न कुछ जतन कर के अपने मरद को चटा देती हैं, लेकिन कुप्पी में अपने सगे भाई की मलाई भर के अपने मरद से सपड़ सपड़ उसके सगे साले की मलाई चटवाये, तब तो असली बात, आने दो ननद को अगली बार मायके पक्का
मेरी निगाह लड्डू वाले डिब्बे पे पड़ी, दूसरा लड्डू उन्होंने खा लिया था और उसका असर भी दिख रहा था। उसमें तो पहले से ज्यादा कामोत्तेजक औषधि थी और असर भी पड़ गया था
नन्दोई का खूंटा खड़ा हो रहा था और बुर चुसाई से ननद भी गीली हो गयी थीं , बस अगला राउंड शुरू हो गया था, चौथी बार और अबकी ननद को कुतिया बना के पहले से भी जोर से नन्दोई जी चोद रहे थे।
और इस बार तो नन्दोई जी एकदम तूफ़ान मेल हो गए थे,
मैंने भी बहुत तूफानी चुदाई झेली थी। चंदू, जिससे सहमकर चार बच्चों की माँ भी पगडण्डी बदल देती थी,
कमल जिसके खूंटे से सहमकर उसकी बहन ने शलवार का नाडा न खोलने की कसम खा ली थी
और उन सबसे २० मेरा अपना मरद, और ननदोई जी खुद मेरे ऊपर कितनी बार, कल ही,
मैंने तो गिनना ही छोड़ दिया था, सगा देवर तो कोई था नहीं, बहनों में भी सबसे बड़ी मैं तो कोई जीजा भी नहीं, तो ले दे के सगे के नाम यही नन्दोई तो, और सलहज अगर नन्दोई के आगे कितनी बार टाँगे फैलाई ये गिनना शुरू कर दे तो सलहज नन्दोई का रिश्ता न बदनाम हो जाए,
और मैं जानती असली खेल दूबे भाभी का था, वो भी तो सलहज ही लगेंगी।
अपनी बैदकी का ज्ञान और जादू टोने का गुन ढंग सब उन्होंने लगा दिया था, शिलाजीत, शतावर, अश्वगंधा और न जाने क्या क्या डालने के साथ पता नहीं कहाँ के सीखे मंतर और जड़ी बूटी भी, इस लड्डू में थे। मुझे उन्होंने समझाया भी,
" सुन कोमलिया, मर्द के चोदू होने के लिए मूसल तो तगड़ा होना चाहिए ही, लम्बा मोटा कड़क होने के साथ कितनी देर टिकता है लेकिन उतना ही जरुरी है उसके चूतड़ और कमर में ताकत की धक्के पे धक्के मारता जाए, और सांस न ले, और इन दोनों के साथ उसका मन दिमाग, एकदम पागल हो जाए, औरत रोये चिल्लाये हाथ गोड़ जोड़े लेकिन जैसे इंजन का पिस्टन बिना रुके अंदर बाहर, अंदर बाहर,
और सच में नन्दोई जी का मोटा पिस्टन ननद की बुर में ऐसे ही बार बार लगातार, न उनके धक्को की ताकत कम हो रही थी न स्पीड धीमी हो रही थी। ननद मेरी झुकी हुयी, निहुरी, दोनों मोटे मोटे चूतड़ जिसे देख के मेरा मरद ललचाता था, हवा में उठे , दोनों पैरों को नन्द ने खूब फैला के जाँघों को खोल के रखा था। साफ़ था इसी गाँव के गन्ने के, अरहर केखेत में ऐसी ही निहुर के घोंट के जवान हुयी थीं, लेकिन आज
एक मिनट बस एक मिनट रुक जाओ, का हो गया है तुमको, कोई, ओह्ह्ह नहीं नहीं बार बार ननद चीख रही थी,
और ननदोई कभी दोनों चूची निचोड़ते हुए, कभी ननद की कमर पकडे हचक के चोद रहे थे, कभी झुक के ननद की पीठ चाट लेते कभी गाल काट लेते और दस पांच धक्के के बाद ननद के रोने चीखने पे रुकते भी तो खूंटा अंदर घुसा
और मैंने जानबूझ के ये वाला लड्डू ऐसे, नन्दोई आज ऐसी चुदाई करें जैसे कभी न की हो और उन्हें पक्का विश्वास जो जाएगा की ननद गाभिन उन्ही के बीज से हुयी हैं
और दर्द के बावजूद ननद पूरी कोशिश करके उनका साथ दे रही थी , मौका मिलते ही उन्हें बहन की महतारी की गारी दे रही थीं, चूतड़ मटका के धक्के का जवाब धक्के से दे रही थीं,
ननद आज सुबह से ही, ख़ुशी के मारे पागल थी जैसे ही हम दोनों ने टेस्ट स्ट्रिप पे दो लाइन देखीं तभी से, बस पक्का हो गया की अब वो गाभिन हो गयी हैं
औरत सब से ज्यादा दो बार खुश होती है,
एक तो गौने की रात को नहीं,…
गौने की रात को जब उसके मना करने पर सौ नखड़ा दिखाने पे भी,… मरद पेटीकोट का नाडा खोलता नहीं,… तोड़ देता है,
और रात भर कचरता है, जैसे आटा गुंथा जाता है वैसे ही उस नयी नयी दुल्हन की देह गूंथता है, रात भर टाँगे उठी रहती हैं, जाँघे फैली रहती हैं, ....
और अगले दिन ननदें सहारा देके पलंग से उठाती हैं, तो अगले दिन, गौने की रात के बारे में सोच सोच के, जितना ननदें चिढ़ाती हैं, रात का हाल पूछती हैं , सास और जेठानी अपने दिन सोच सोच के मुस्कराती हैं, वो दिन दुल्हन के लिए सबसे ख़ुशी का दिन होता है
और दूसरा ख़ुशी का दिन होता है जब उसे पता चलता है की वो पेट से है,
तो आज ननद के पाँव सुबह से जमीन पर नहीं पड़ रहे थे और ऊपर से ये ताबतोड़ चुदाई,
पूरे आधे घंटे के बाद, कम से कम तीन चार बार ननद मेरी झड़ी होंगी, उसके बाद नन्दोई जी और दूबे भाभी की बूटी जबरदस्त वीर्यवर्धक, सच में कटोरे भर माल उगला होगा और एक बार नहीं एकदम मरद की तरह, असली दुनाली।
नन्दोई के चेहरे से लग रहा था की अब उन्हें पक्का विश्वास हो गया की अपने साले की बहिनिया को उन्होंने पेट से कर दिया है
और यही तो मैं चाहती थी , ननद मेरी एक बार नहीं,.... बार बार गाभिन अपने सगे भैया से,...हर बार बिटिया जने, जिसपर मेरा मरद चढ़े, उसकी महतारी के सामने और उसका मर्द सोचे की उसके माल की निशानी है।
कोमल दीदी --नयी सुबह
नंनद नदोई दोनों थक गए थे और वही जमीन पर ही पड़ गए और मैं भी अपने कमरे पर नींद की चादर ओढ़ कर लम्बी हो गयी। मैं अपने कमरे में बिस्तर पर और रात भी थोड़ी देर में अपना बोरिया बिस्तर समेट के जानेवाली थी।
चुचुहिया बोल रही थी, भोर आँख मींज के अभी बिस्तर छोड़ने की कोशिश कर रही थी . और मैं भी आँख मींजती उठ खड़ी हुयी। बस यही टाइम था नन्दोई के मन में पक्का करने का, और अंगड़ाई लेती मैं उन लोगो के कमरे में पहुंची,
आंगन में अभी भी अँधेरा था, रात की कालिख थोड़ी धुंधली हो रही थी।
पांचवा राउंड लगता है थोड़ी देर पहले ख़तम हुआ था।
ननद एकदम थेथर पड़ी थी और नन्दोई जी भी थोड़े थके कुनमुना रहे थे।
ननद की जाँघों पर उनके मरद की थक्केदार मलाई जमी थी, बुरिया से छलछला रही थी।
वो प्रेग्नेंसी वाली स्ट्रिप मैंने नन्दोई जी को उठा के दिखाई और बोली आप की बीबी को ले जा रही हूँ, लेकिन अगर ये एक लाइन से दो लाइन हो गयी, तो सोच लीजिये मनमर्जी का नेग लूंगी और मेरी दो शर्तें माननी होगी,
" दो क्या जितनी कहियेगा, उतनी शर्तें मानूंगा, बस, " अभी भी उनके चेहरे पे अभी भी हलकी सी चिंता थी,
मैं और ननद फिर बाहर की ओर,
और वो स्ट्रिप चेक की, और वो तो होना ही थी।
उसे मुट्ठी में बंद कर के मैं ले आयी और एकदम उदास सा मुंह बना के नन्दोई जी के सामने, बेचारे वो चिंता के मारे परेशान, मुंह लटक गया। बड़ी मुश्किल से बोले,
' क्या हुआ, कुछ,"
अब मुझसे बेचारे की चिंता नहीं देखी गयी और मैं खुद भी अपने को रोक नहीं पायी, बस जाके उनसे चिपक गयी, कस के बाहों में भर लिया और एक जबरदस्त चुम्मी,
और वो भी टिपिकल सलहज वाली, जीभ ननदोई के मुंह के अंदर, मेरे होंठ उनके होठ का रस चूसते, और ननदोई जी का ' वो ' थोड़ा सोया थोड़ा जागा, उसे ऊपर से हलके हलके तंग करते मैंने चिढ़ाया,
" सब इसी की बदमाशी है, …बेचारी मेरी ननद का पेट फुला दिया"
नन्दोई मेरे जोबन के दीवाने, मैं कस कस के उनके सीने पे रगड़ते बोली,
" तैयार हो जाइये लुटने के लिए, नेग भी लुंगी और सब शर्तें भी मनवाउंगी, आसानी से बिटिया नहीं मिलेगी "
और उन्हें वो स्ट्रिप पकड़ा दी,
दो लाइने जिसे देखने के लिए उनकी आँखे तरस रही थीं, वो खुश नहीं महा खुश और अबकी वो मुझे चूम के बोले,
" सब मंजूर "
ननद भी खुश, खिलखिला रही थीं, मेरी और अपने पति की मस्ती देखकर।
कौन औरत होगी जो पति के खुश चेहरे को देख के न खिल उठे , लेकिन कौन भौजाई होगी जो ननद को बिना गरियाये, बिना चिढ़ाए छोड़ दे, तो एक बार ननदोई का खूंटा नन्द को दिखाते हुए मैंने पकड़ के उन्हें छेड़ा,
" जलिये जलिये, …आप तो पेट फुलाये घूमेंगी, ....बेचारे इसका क्या होगा, उपवास करेगा क्या ? अरे इसका ख्याल मैं नहीं रखूंगी तो कौन रखेगा "
"एकदम भाभी, अब आपके हवाले ये " हँसते हुए वो बोलीं,
पर ननदोई जी ने मुझसे कहा नेग और वो शर्त जो, आज आप जो मांग लीजिये,
नेग तो बहाना है, असली उद्देशय तो नन्दोई के मायके वालों को अपने अंगना में नचाना हैनेग और शर्तें
" देखिये एक नेग से तो काम चलेगा नहीं, अभी तो मैं अकेली सहलज हूँ और पहिलौठी की बिटिया तो पहला नेग तो यही खूंटा है/
हाँ मेरी शर्त क्या अरज है, मुझसे ज्यादा आपकी होने वाली बिटिया के लिए, तो पहली अर्ज ये है की ननद की सौरी यहीं हो, और सौरी मैं रखाउंगी।दो बाते हैं, ससुरार में इनकी,…
आपकी बहन अभी छोटी है, पढ़ने वाली, ...उस बिचारी को अभी ये सब जिम्मेदारी कहाँ मालुम होगी
और रही बात आपकी माई की तो अकेले उनके बस का,… और यहाँ मैं हूँ आप की सास हैं, चाची हैं, और सब लोग,..."
" माई मानेगीं ? " थोड़ा बहुत ननदोई परेशान हो गए।
" एकदम मानेंगी, अरे पोती क मुंह देखेंगी, आ जाएंगी वो भी यहीं जब होनेवाली होगी, सबसे पहले मुंह तो उन्ही को दिखाउंगी और आप को बिना नेग लिए फटकने नहीं दूंगी। हाँ आपकी बहन, इनकी ननद, उसका नेग नहीं मारा जाएगा, तो उसको पंद्रह बीस दिन पहले भेज दीजियेगा, रहेगी अपनी भाभी के पास,… हम लोगों के पास। "
मैंने उन्हें समझाया।
" बात तो आप सही कह रही हैं, यहाँ ज्यादा आराम होगा और माई की वैसे भी ज्यादा भाग दौड़ में परेशानी हो जाती है। चलिए मैं मना लूंगा माई को "
तबतक नन्द बोलीं, " माँ को बताएं, वो जग गयी हैं "
और मैंने मना कर दिया और उनसे बोला, " सबसे पहले खबर आपकी सास को मिलनी चाहिए, दादी हैं और इतना पूजा पाठ की, सब उन्ही के आसीर्बाद का फल है। "
नन्दोई का मुंह दमक उठा, " एकदम सही कह रही हैं आप, पहला हक उनका है, अभी फोन लगाता हूँ, " वो चमक उठे ,
" नहीं, नहीं फोन नहीं, अरे अभी तो आप लोगों को जाना ही है, बस मैं बिदाई का इंतजाम जल्दी करती हूँ, बस पहुँच के सामने सामने वो ज्यादा खुश होंगी और मेरी सास को खबर देना होगा तो वही देंगी, हम सब चुप रहेंगे "
मैंने नन्दोई जी से कहा और वो कुछ बोलते उनसे पहले मेरी ननद,
" भौजी एकदम सही कह रही हैं, अभी मैं चल के सब सामान समेटती हूँ , बस घंटे दो घंटे में निकल लेंगे, कितनी उनकी चाह है पोते पोती का मुंह देखने की, आप सामने कहेंगे तो एकदम ठीक "
और वो निकल गयीं, लेकिन उनके निकलने के पहले मैंने उन्हें समझा दिया,
बाहर रमुआ बहु होगी, गोबरकढ़ीन उन्ही को बोल दीजियेगा की आसा बहू को बुला दें बस बोले की भौजी बुलाई हैं और तुरंत आ जाए।
ननद बाहर निकल गयी और मैंने नन्दोई जी को दूसरी शर्त सुना दी।
" वो माई जिनके आसीर्बाद से,…. वो ननद को एक काला धागा बांधे हैं, और वो जब तक बरही न हो जाए तब तक उतरना नहीं है समझिये सुरक्षा चक्र है, लेकिन वो बार बार सकारे थीं की कहीं बाहर न निकलें, या तो मायके या ससुरे, रस्ते की बात और है, देवी देवता, मंदिर, साधु संत,… दूर से प्रणाम कर लें, और सबसे बड़ी बात सांझ होने के पहले घरे के अंदर, और चौबीसो घंटा घर क कउनो परानी आस पास, ….और बाहर तो अकेले एकदम नहीं छोड़ना है "
ननदोई जी की आँखे एक बार फिर भक्ति भाव से बंद थी, बोले,
" सच में बिना उनके आसीर्बाद के, और माई के गुरु जी के आश्रम में जाने की बात थी जरूर लेकिन जिस लिए जाने की बात थी, वो काम तो हो ही गया और ये खतरा है तो माई चली जायेगीं, गुरु जी का दर्शन कर लेंगी "
मैंने चैन की साँस ली, मुझे ननद को साधू के आश्रम में जाने से किसी भी कीमत पे बचाना था।
आसा बहू
तबतक आसा बहू आ गयीं, साथ में ननद भी। आशा बहू मुझे छेड़ते बोलीं, " कउनो खुसखबरी "
" अरे जउन तोहार ननद खड़ी हैं पीछे मुस्की मारत, पतुरिया अस, उनकी जांच करनी है " खिलखिलाते मैं बोली।
" साडी उठाएंगी की मैं उठाऊं, …ननद की जांच तो सीधे ऊँगली डाल के मैं करती हूँ "
हँसते हुए आसा बहू बोली , और गाँव के रिश्ते से मेरी ननद उनकी ननद।
" जांच इन लोगो ने कर लिया है दो लाइन " स्ट्रिप दिखाते हुए ख़ुशी से फूले नन्दोई बोले।
" अरे मैं अपनी ननद को नहीं जानती, बचपन की छिनार "
ननद की ओर देखती आसा बहू बोलीं, गाँव के रिश्ते से भौजी, तो क्यों छोड़ती, फिर ननदोई जी से बोली,
" कहीं ननद भौजाई, मिल के कही से दो लाइन वाली पट्टी लायी हों और आप को दिखा के, ऐसे नहीं होता। मैं जो पट्टी लाइ हूँ एक लाइन वाली ये आप देखिये और इस पर कोई निशान बना दीजिये और इसी पे ननद को मुतवा के देखूंगी की कहीं मेरे सीधे साधे नन्दोई को , … हाँ अगर दो लाइन हुयी तो पहले नेग कबुलावूँगी फिर बताउंगी।
दो लाइन तो होनी ही थी।
और आसा बहू ने नेग भी कबुलवा लिया,
सतरंग चुनरी, वो भी एक नहीं,.. जोड़ा। वही पहन के बच्चा पैदा करवायेंगी वो खुद,
लेकिन आगे जो उन्होंने बातें बोली उससे मैं और मुझसे ज्यादा ननद बहुत खुश हुईं,
" पहली बात, ज्यादा चलना फिरना, ज्यादा काम एकदम बंद, और गाँव घर के बाहर तो कहीं ले मत जाएगा। कहीं ऊंच खाल, न अपनी फटफटिया पे न चौपहिया में, बस घर में और पहले तीन महीने थोड़ा सबुर रखियेगा, अगर बहुत मन करे तो सम्हाल सम्हाल कर के,… अंदर बच्चेदानी पे कोई जोर न पड़े "
" अरे तो बहुत फड़फाये तो आ जाइएगा ससुराल,… दो दो सलहज तो सामने खड़ी हैं "
खिलखिलाते हुए ननद बोलीं।
" तो और क्या, दो इंच की चीज के लिए ननदोई से निहोरा करवाउंगी ? लेकिन जब तोहरो बुरिया लसलसाई न तो खुद ऊपर चढ़ के "
आशा बहू ने नन्द को पलट के जवाब दिया और दूसरी काम की बात ननदोई जी से बोली,
" और उस से भी जरूरी बात, दस पन्दरह के दिन अंदर कउनो अच्छी लेडी डाक्टर को दिखा लीजियेगा, वो अल्ट्रा साउंड भी करवा देंगी और बाकी औरतों वाली जांच भी कर लेंगी, "
" कौन लेडी डाक्टर अच्छी हैं, आप ही बता दीजिये, जो सबसे अच्छी हों उन्ही को दिखाएंगे, कोई रिस्क नहीं लेना है " नन्दोई जी सीरियसली बोले,
क्या डॉक्टर साहिबा इतनी खतरनाक सच मे है या आप दोनों देवरान जेठानी मिल कर झूठ मूठ का ही डरा रही हैलेडी डाक्टर
" देखिये सबसे अच्छी तो डाक्टर मीता हैं, उसके बाद तो दर्जनों हैं शहर में लेकिन डाक्टर मीता के साथ दो परेशानी हैं एक तो पैसा बहुत लेती हैं दूसरे कम से कम दस पन्दरह दिन का टाइम लगता है, उनसे मिलने में। लेकिन डाक्टरनी नहीं जादूगरनी हैं, एक बात पेट देख के जो वो बता देंगी, बिना जांचे वही बात दस जगह जांच करवाइयेगा तो पता चलेगा, अरे जो पुलिस कप्तान हैं उनकी मेहरारू के पहलौठी का बच्चा, सब डाक्टर जवाब दे दिए, लखनऊ, बनारस, मेडकल कालेज, सब जगह। नाल गले में फंसी थी, अब तब हुआ था।
बच्चा तो छोड़िये उनकी मेहरारू का जान बचना मुश्किल, लेकिन वही डाकटर मीता, ऐसा आपरेशन कीं, की जच्चा बच्चा दोनों सेफ। और कोई परेशानी नहीं। अगल बगल के आठ दस जिलों के लोग लाइन लगाए रहते हैं, इसलिए कह रही हूँ की अभी तो, खाली पहली जांच है "
लेकिन ननदोई जी ने बात काट दिया, उनके चेहरे से लग रहा था अपनी पत्नी के लिए वो सबसे अच्छी से कम कुछ नहीं करेंगे,
" अभी से टाइम ले लें, तो आठ दस दिन में, और आखिर कितनी फ़ीस होगी लेडी डाक्टर की, "
" सच में बहुत पैसा लेंगी आप से ननदोई जी "
मैं बोली, लेकिन जिस तरह से मैं बड़ी मुश्किल से मुस्कराहट दबा रही थी, आसा बहू समझ गयीं , पूछीं,
" तोहरे मायके क कउनो जान पहचान है का "
अब मेरे लिए रोकना बड़ा मुश्किल था,
" डाक्टर मीता हमार भौजी हैं, हम उनकी ननद, ...और जब हमसे बिना गरियाये बात नहीं करतीं, कहती हैं की ननद के नाम के आगे छिनार न लगाओ तो ननद नहीं लगती, तो ये तो मेरे भी ननदोई,... ननद के नन्दोई, इसलिए कह रही हूँ की मिलने के बाद ननद की डाकटरी तो बाद में होगी पहले आपको निचोड़ लेंगी,... ननद के नन्दोई हैं। और कहीं गलती से पैसे वैसे की बात कर दिए न,... तो बहन महतारी सब गरियाई जाएंगी।
और जहाँ तक मिलने के टाइम का सवाल है ये बात सही है, अब तो हफ्ते में दो दिन बाहर भी जाती हैं, लेकिन मेरे लिए कोई रोक टोक नहीं है, जब चाहे तब। इसलिए मेरी बात मानिये हफ्ते दस दिन बाद ननद को छोड़ दीजियेगा, दो तीन दिन के लिए। मैं जा के डाक्टर भौजी को दिखा लाऊंगी, बहुत बड़ा नर्सिंग होम है उनका जांच वांच सब हो जायेगी।
आप ने अपना काम कर दिया, ननद का पेट फुला दिया आगे का मैं देख लूंगी "
आसा बहू भी मेरे साथ खड़ी हो गयीं, बोलीं,
" बस मेरी एक बात और सुन लीजिये, अगर ऐसी जान पहचान हैं डाक्टर साहेब से तो डिलीवरी यहीं कराइये, यहाँ से शहर नजदीक है, पक्की सड़क, और एक नयी जो बन रही है उससे तो बस बीस मिनट, पांच छः महीने में बन जायेगी, तो कोई बात होगी तो सीधे उनके यहाँ, देखिये ये मायके ससुराल की बात नहीं, जच्चा बच्चा ठीक रहें, अब पुराना जमाना नहीं रहा। और यहाँ से जांच वांच में, बल्कि सातवां महीने लगने के बाद ही, आखिरी के तीन महीने में बहुत ख्याल रखना पडेगा। अब फैसला कर लीजिये "
यही तो मैं भी चाहती थी, मैंने कहा भी था, ननद भी यही चाहती थीं,और आसा बहू के कहने के बाद,
अब यह तय हो गया था की डिलीवरी यहीं होगी, नन्दोई तो मान गए लेकिन उनकी माँ मान जाएँ बस,
थोड़ी देर बार ननद की बिदाई हो गयीं,
नन्दोई ने बोला की दस दिन बाद वो ननद को ले के आएंगे, लेकिन गेंहू की कटनी शुरू हो जायेगी तो उनका रुकना तो मुश्किल है। हाँ दो चार दिन बाद आ के ननद को ले जाएंगे।
पूरा गउवे ही कंटाइन हउये का,ननद की सास ननद-
जांच पड़ताल -
थोड़ा आगे की बात अभी, ....
असल में ननद के ससुराल जाने के बाद से भी चिंता कम नहीं हुयी थी।
ननदोई तो मान गए थे नन्द के पेट वाला उन्ही का है, लेकिन ननद की सास और ननद,
फिर सबसे बड़ी बात उस दुष्ट के आश्रम में जाने से ननद को बचाने वाली बात, मुझे अपने ऊपर विश्वास था फिर भी,
और ये सब बादल कटे, ननद के फोन आने के बाद, उस समय घर में वो अकेली थीं, ननद स्कूल चली गयी थी, मरद अपनी महतारी को लेकर कहीं मंदिर तो हम नन्द भौजाई खुल के बतियाये,... गरियाये,
ननद बोलीं की
जब वो लोग घर पहुंची तो सास उनकी थोड़ी अल्फ और साथ में उनकी ननद भी थी और घर में काम करने वाली उनके सास की मुंहलगी, हाथ गोड़ दबाने वाली कहाईन भी मुंह से आग उगलती थी।
लेकिन जैसे नन्दोई ने खुस खबरी सुनाई, सास ने एकदम मानने से मना करदिया और ननद ऊपर से,
" हमरे सोझ भैया के इनकी चालक भौजाई बेवकूफ बना दी, पहले से दो पट्टी वाली रखी होंगी, "
और जब नन्दोई ने आशा बहू की बात की,... तो कहाईन जो बात बात में ननद को बाँझिन बोलती थी, बोली,
" तोहरे सामने मूतवाये रही का, ….अरे ओहि गाँव की, कुछ ले दे के, …तोहरे ससुराल वाले जब्बर चालाक, एक तो बाँझिन बाँध दिए हमरे खूंटा पे और ऊपर से ये नौटंकी। ....हम तो इतने दिन से घर में हैं, तीन साल से इन्तजार कर रहे हैं एक दिन तोहार मेहरारू खट्टा मांगे, …उलटी करे,… "
" अच्छा तुम आशा बहू कह रहे हो तो अपने गाँव वाली आशा बहू को बुलाय के बोल देते हैं, लेकिन अगर झूठ निकला न तो इहे झोंटा पकड़ के एकर, जलते लुआठा बुरिया में पेल देबे, अभिये झांगड़ बुलवा के आश्रम में और जब तक बियाय नहीं जायेगी वहीँ गुरु जी के पास "
ननद की सास भी अपनी उस मुंहलगी कहारिन के साथ बोलने लगीं
ननद बिचारी नीचे देख रही थीं, ...आँख में गंगा जमुना उमड़ रही थी।
नन्दोई आज तक अपनी महतारी के आगे आपन मुंह नहीं खोले थे, बल्कि ननद की ओर देखते भी नहीं थे, कुछ भी हो तो ' जउन माई कहे '
वो भी इस समय भकुरा गए थे , किसी तरह अपने को रोके थे, चेहरा एकदम तना, मुट्ठी कसी भिंची
और कहाईन सीधे गयी आसा बहू के पास।
और आते ही सास ने हुकुम सूना दिया, गाभिन होने की जांच वाली,... पर जब आशा बहू ननद को लेकर जाने लगी तो सास गरज उठी,
" कहीं नहीं जाना है यहीं आँगन में मुतवाओ इसको सबके सामने, हम लोगो भी देखे की मायके में का जादू मंतर हो गया। " सास गरजी।
" अरे हमरे भैया के सोझ जाने के इनकी सलहज सब, नहीं जानते की यहाँ सब चालाकी निकल जाएगी, अभी पता चल जाएगा सच का सच " ननद ने तेज़ाब मूता।
" अरे पहले ससुरे क पानी पियावा अपने भौजी क नहीं तो कहेंगी मूता नहीं जा रहा है "
हँसते हुए वो कहाईन ननद से बोली और ननद ने पूरा लोटा भर पानी खुद ननद का सर पकड़ के… और कहाईन ने जबरदस्ती, घटर घटर,
और वो जब आंगन में बैठीं, आशा बहू ने सबको स्ट्रिप दिखाई एक लाइन वाली तो वो कहाईन फिर,
" अरे ऐसे नहीं पेटीकोट साडी उठा के कमर तक करो, ....सबके सामने "
हसंते हुए वो बोली और पिच्च से वहीँ पान थूक दिया।
" सही कह रही है ये, कमर तक उठा के हम सब के सामने,.. और जो तोहार मरद, जिनको इतना झूठ सच पढ़ा के ले आयी हो न मायके से,… उहो देखे की कइसन चालाक बियाह के ले आये हैं की तीन साल में, "
सास गुस्से से पागल हो रही थीं और वो कहाईन और डाइन बनी थी, बोली,
" अरे हमरे सब में होतीं न, ...ये तो बबुआन क, बड़मनई क बात,… तीन चार महीने में अगर पेट नहीं फूलता तो चूतड़ पे लात मारके, महतारी के लगे …और तनिको लाज शर्म होता तो खुदे कहीं कूंवा, पोखरा … बाँझिन क कौन जगह क कमी.
और महीने भर के भीतर कड़ा छडा झनकावत नयी बहुरिया,… महीना भर में पेट फुलाय के, अब तक दो तीन लड़का निकार दी होती ओहि बुरिया से "
उसकी बात सुन के सास और दहक रही थीं, ननद सकुचा रही थीं सब के सामने लेकिन सास ने इशारा किया और कहाईन ने जबरदस्ती ननद का पेटीकोट पकड़ के कमर तक उठा के लपेट दिया और बोली,
" केसे लजात हाउ, अपने मरद से,… ? गवने क रात से तो रोज देख रहे हैं वो,... और बाकी हम सब के पास भी तो वही है। कौन तोहार नोखे क बुर , हीरा मोती जड़ी है, एक ठो बेटा बिटिया अबतक तो निकाल नहीं पायी, …चल मूत"
आसा बहू ने एक बार फिर से वो एक लाइन वाली पट्टी दिखाई और सीधे धार में,…. और जैसे लाइन बदली, पट्टी मुट्ठी में बंद कर के हंस के बोली
" अब तो नेग लगेगा, ....ऐसे नहीं "
सास के मुंह पे थोड़ी ख़ुशी छायी लेकिन ननद की ननद ने उस कहाईन को उकसाया, "
अरे कभी कभी ऐसे,... भौजी तू अपने हाथे से "
" एकदम,… हम झांसा में पड़ने वाले नहीं है "
वो कहाईन बोली और एक स्ट्रिप उठा के खुद अबकी ननद के बिल पे सीधे लगा दिया
और वो भी दो लाइन
कहाईन का मुंह झाँवा हो गया।
और भौजी तोहरे नन्दोई क मुंह खुल गया, ननद बिहँसते हुए बोली और जोड़ा,
" भौजी कौन मंतर पढ़ दी थीं अपने नन्दोई के ऊपर, एकदम बदल गए, आज तक हम सुने नहीं थे उनके महतारी के आगे उनकी बोली "
और आगे का हाल फिर ननद ने हँसते हुए बताया,
अच्छा है, सभी को बाबा चेला बना के मुर्ख बनाए हुए है, और सभी पात्र भी है उसी के
जोरु का गुलामसाजन के बोल
नन्दोई का मुंह खुला तो फिर रुका नहीं, जो कहना था, जो जो मैंने सिखाया पढ़ाया था सुग्गे की तरह वो सब तो मेरे मिट्ठू ने बोला ही और उससे भी ज्यादा।
" अरे हमर सलहज, ....अँजोरिया में दीया ले के ढूंढने पे न मिले "
और फिर अपनी कटखनी बहन को हड़काया,
" और तू का सोच रही हो तुंही के बूआ बने के शौक है उन्हें मामी बनने का नहीं है "
फिर बताया, देवी का किस्सा, कैसे उनकी सलहज ने ब्रत तपस्या की एक पैर पे खड़े हो के घाम में बारिश में तब जाके, सब परेशानी दूर हुयी, और दिन घडी सब बतायीं, समझिये शेरनी का दूध निकाल के ले आयीं , ऐसे मुश्किल से प्रसाद मिला तो जाके, "
और फिर ननद के हाथ में बंधे काले धागे को दिखा के जो मैंने आखिरी दांव खेला था वो बोल दिया
" ये धागा ये भी परसाद का, ....जब तक बिटिया तीन महीने क न हो जाए ये तोहरे पोती क रच्छा करेगी, लेकिन तक तब कहीं आना जाना नहीं, सिर्फ घर में या मायके या डाकटर को दिखाने "
सास के बोलने के पहले नन्दोई समझ गए की बात अब आश्रम की आएगी।
जब मरद अपनी पत्नी के लिए महतारी के सामने महतारी से झूठ पे पे झूठ बोलने लगे तो समझ लीजिये की अब मरद माई की जगह मेहरारू का होगया , उसके पेटीकोट के नाड़े से बंध गया, ,,,,उसने पाला डाक लिया और अब वही हुआ,,,,, स्साला पूरी नौटंकी।
नन्दोई ने जिधर गुरु का आश्रम था, उधर मुंह किया, श्रद्धा से हाथ जोड़ लिया और आँख बंद कर लिया,
सास भी श्रद्धा की डुबकी लगाती हुयी उधर की ओर मुंह कर के आँख बंद कर के हाथ जोड़ के, और नन्दोई जी एकदम गंभीर वाणी में
" गुरु जी, बाबा,… सपने में आये थे। दिव्य एकदम रौशनी के घेरे में, बोले,
‘ हमरे बहुत चेला चेली हैं लेकिन तोहरे माई अस, जेतना भक्ति, श्रद्धा विश्वास उनमे हैं, जेतना आश्रम के लिए वो करती हैं प्रमुख सेविका से भी ज्यादा। लेकिन वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को नहीं मिलता। हम उनको बोले थे की तोहरी बहुरिया की कोख भरी जायेगी, तो बस यही मौका है भोर होये के पहले, और हमर ध्यान लगाए के, नौवे महीने लक्ष्मी होगी, हमार अंश, और जबतक बिटिया साल भर क न हो जाए, बस वहीँ से हमरे आश्रम की ओर देख के गोड़ जोड़ लिया। बरसो बाद ये संजोग आया है, यह लिए हम खुद,
तोहार महतारी और तुम आ जाना बस, ....उसकी भी कोई जल्दी नहीं है। “
और जैसे बाबा गए हमार नींद खुल गयी,.... फिर हम दोनों जनी बाबा का ध्यान कर के, और भोर होने के बाद हमार सलहज आसा बहू को बुलाये के जांच करा के, ...बाबा क आसीर्बाद "
ननद मान गयी की अब ये मरद उनके गोड़ का धोवन पियेगा
और वह इसी घर के आंगन में अपनी सास ननद को झोंटा पकड़ के नंगे नचाएंगी तो भी उन्ही की ओर से बोलेगा,
बस किसी तरह अपने लिए झूठ पे झूठ बोलते मरद का मुंह देख रही थीं प्यार से, किसी तरह मुस्कराहट रोके थीं,
सास ने आँख खोली और अपनी मुंहलगी , पैर दबाने वाली कहाईन से बोली
" तभी, .....बिना बाबा के आसीर्बाद के ये चमत्कार हो ही नहीं सकता था. ठीक है जब बाबा खुदे बोल दिए और जो हम चाहते थे, बाबा खुद आ के झोली में दे दिए तो, ..."
अब असली सवाल था बेटी पैदा मायके में हो, और ननदोई ये बात छेड़ते उसके पहले आशा बहू बोलीं
" हमरे ख्याल से दस पंद्रह दिन के अंदर कउनो लेडी डाक्टर को दिखा लेना चाहिए "
और अब सास एकदम अपनी होनेवाली पोती की चिंता में उससे पूछीं, " तोहरे जानकारी में कउनो कउनो लेडी डाक्टर अच्छा है शहर में "
" हम नाम बहुत सुने हैं, लेकिन एक तो पैसा बहुत, पर पैसा वैसा का आप लोगो का क्या, दूसरी बात मुंह बहुत टेढ़ा है "
आशा बहू बोलीं और कहाईन जो बहुत देर से चुप थी बोल पड़ी
" तो कउनो रोग दोष हैं उनमे, जो मुंह टेढ़ा हो गया "
और आशा बहू खिलखिला के हंस पड़ी
" अरे नहीं सुन्दर तो इतनी है की हेमामालिनी का नंबर डका देतीं अगर, बमबई जातीं, वैसे ही गोर चिक्कन, लम्बी चौड़ी, देह खूब भरी भरी, देख के नजर नहीं टिकती, अस रूप, अस जोबन। लेकिन टेढ़ा मुंह मतलब भाव नहीं देतीं, कलेकटर कपतान सबेरे से लाइन लगा के बैठते हैं तो सांझ के कहीं नंबर आता है, मिलना मुश्किल है, ...दस पंद्रह दिन का वेट रहता है, "
अब ननदोई जी का बोलने का टाइम आ गया था, " डाकटर मीता क बात कर रही हो का " मुस्करा के वो बोले
" हाँ वही, आप ने भी नाम सुना होगा न, जानते हैं का, अरे थोड़ा जान पहचान कहीं से निकाल लीजिये तो नंबर में थोड़ा आसानी " आशा बहू बोलीं।
" अरे जान पहचान," सीना फुला के नन्दोई जी बोले और जोड़ा,
" सलहज हैं हमारी,… हमरे सलहज क भौजाई, इनके भैया की सलहज तो हमरो तो सलहज ही हुईं न "
और जब मरद न सिर्फ अपनी बीबी के लिए बल्कि ससुराल वालों के लिए अपनी महतारी से सबके सामने झूठ पे झूठ बोले तो समझिये अब वो महतारी का नहीं रहा,.... बीबी और उसके मायके का हो गया। हम सब चाहते थे की ननद अपने मायके में बियाये ,चार पांच महीना मायके में रहें तो ननदोई जी ने ऐसा जबरदस्त झूठ बोला अपनी महतारी से, मौके का फायदा उठा के,
वो बोले
" जैसे आसा बहू ने खुशखबरी सुनाई इनकी भौजाई ने अपनी भौजाई को फोन लगाया बस वो वही डागदरनी एकदम अल्फ और स्पीकर ऑन था, हमरे सलहज को हड़का के बोलीं
' स्साली, अकेले अकेले नन्दोई का मजा ले रही हो, भौजी को भुलाय गयी। जांच तो करुँगी लेकिन तोहरे नन्द के पहले नन्दोई का जांच करुँगी, ओनके औजार की लम्बाई मोटाई,… जउन हमरे ननद के ननद को गाभिन कर दिया, "
ननद की सास और कहाईन दोनों खुल के हंसी, ऐसे मजाक दोनों को अच्छे लगते थे, कहाईन बोलीं
" असली सलहज है डगडराइन "
और नन्दोई ने मौका देख के असली बात कह दी,
" तो हमर डाकटरिन सलहज बोलीं हैं की बच्चा घर में ही हो, तोहरी बहू के मायके में हो, वो खुद बोलीं की वैसे तो पोती क दादी के ऊपर है का फैसला लें, लेकिन वहां से उनका क्लिनिक बहुत नजदीक है। कउनो सड़किया बन रही है एक्सप्रेस कउनो, तो समझिये पन्दरह मिनट में उनके अस्पताल, एकदम पक्की सड़क, तो डिलीवरी कराने वो खुद आएँगी और कहीं हस्पताल में जाना भी पड़ा तो उनकी एम्बुलेंस से दस मिनट में हस्पताल के अंदर। यहाँ तो आना उनका मुश्किल है फिर कोई हैबी देबी पड़ी तो हस्पताल ले जाने में भी, इसलिए बाकी फैसला आपका "
उनकी महतारी अभी भी सोच में थीं और नन्दोई जी ने दूसरा तीर निकाला, आश्रम का और अपनी माँ को मक्खन लगाने का
" देखिये माई, डागदरनी चाहे जो कहें लेकिन फैसला आपका। लेकिन हम एक बात ये सोच रहे थे की ये सब आपकी मेहनत का नतीजा है, बाबा खुदे कह रहे थे, आप की भक्ति और बाबा का आशीर्वाद, तो मुझे लगता है, की बाबा ने ये एकदम समझिये जादू किया है तो आपको थोड़ा अब आश्रम में, बाबा की सहायता के लिए, .....और फिर वो औरतों का हस्पताल और लड़कियों का स्कूल, उसमे भी,
सास का चेहरा थोड़ा बदला, अपनी सहेली कम चमची उस कहाईन से उन्होंने पूछा, " तनी जोड़ तो नौ महीना "
ग्यारहवीं में पढ़ने वाली ननद उचक के बोली, दिसंबर या जनवरी,
" सही कह रहे हो, उसी समय तो स्कूल और हस्पताल दोनों का काम, " ननद की सास बोलीं और नन्दोई आज बड़की कैंची से अपनी माई के पर कुतरने में लगे थे, बोले
" माई, जिस तरह से बाबा सपने में बोल रहे थे, आपकी तारीफ़ कर रहे थे, हमको तो लगता है दोनों काम की जिम्मेदारी, हस्पताल की भी और स्कूल की भी आपको ही मिलेगी तो उस समय तो आपको हिलने का भी, " ननद की सास हिचकिचाते हुए मान गयीं और पहली बार प्यार से अपनी बहु को देखते बोलीं,
" दुल्हन क महतारी सम्हाल लेंगी ?"
अब नन्दोई जी ने डील सील कर दी।
" अरे एकदम बिटिया क नानी ऐसे बनेंगी, फिर हमार सलहज हैं और आजकल तो उनकी छुटकी बहिनिया भी, फिर वो डाक्टरनी सलहज, एकदम वो तो खुश हो जाएँगी, "
वो बोले और ननद की सास ने अपनी समधन को फोन लगाया लेकिन रुक गयीं।
" दुल्हन की महतारी को तो मालूम होगा "
अब मेरी ननद को मौका मिला गया, बोलने का,
" अरे नहीं ये कह रहे थे लेकिन इनकी सलहज ने साफ़ मना कर दिया, बोलीं की पहला हक़ इस खुशबरी को सुनने का, पोती की दादी और बूआ को है। आप तुरंत निकल जाइये, तो वहां खाली हमरी भौजी और वही आसा बहु को और दोनों किसी को कुछ नहीं बताएंगी। "
लेकिन तब तक वो ननद की ननद कुकुरिया की तरह भूंक पड़ी,
" अरे भौजी, मायके जाय के ननद क नेग क कंजूसी जिन करियेगा "
और ननद की ओर से ननद की सास अपनी बिटिया से बोलीं,
" अरे तो तुम भी चली जाना, अपनी भौजी के साथ, बिना बूआ के काजर कौन पारेगा ? और दिसंबर जनवरी तो हम बोल देंगे तोहरे मास्टर से हाजरी बन जायेगी और कौन बोर्ड का इम्तहान, ....ग्यारहवीं में कौन अइसन, महीना भर पहले जाना कम से कम। ऐसे सस्ते में बूआ बन जाओगी ?"
बस अब ननद को मौका मिल गया और अपनी ननद को दबोच के, उसकी शलवार में हाथ डाल के बोलीं,
" अरे नेग नहीं दुहरा नेग मिलेगा,... एक आगे एक पीछे, उहो साथ साथ, एक ओर से हमार भैया, एक ओर से तोहार भैया, लम्बा लम्बा मोट मोट "
ननद थोड़ी चिहुंकी मेरी ननद की, लेकिन फिर वो कहाईन भी गरमा गयी थी, बोली,
" ठीक कह रही हैं तोहार भौजी, और जब बिटिया यहाँ आयी, सोहर होई तो तोहरे भौजी का तो गाँठ खुली नेग के लिए तोहार शलवार क नाडा। अरे बुआ तो जब तक जोबना न लुटाएं तो कौन भतीजा भतीजी क सोहर "
वो कहाईन भी तो गाँव के रिश्ते से भौजी ही थी।
और ननद की सास मुस्कराते हुए बोली " देखो यह ख़ुशी के मौके पे मैं तो अपनी दुल्हिन क ही साथ दूंगी, ननद भौजाई के बीच वैसे भी मैं नहीं बोलूंगी। और मेरी ननद की सास ने मेरी ननद से बोला,
" तनी अपने महतारी को फोन लगाओ,... उनहु को खुशखबरी सुना दूँ। '
बस, तो सब ठीक हो गया।
नन्दोई जी तो पहले ही मान गए थे की उनकी पत्नी की कोख में आयी बेटी उनके बीज से है।
अब मेरी ननद की सास और ननद भी मान गयीं ।
उनका आश्रम जाना भी बच गया।
सौरी भी यहीं होगी और सबसे बड़ी बात, ननद की वो ग्यारहवीं में पढ़ने वाली ननद भी आएगी महीने भर पहले तो बस उसके आने के हफ्ते भर के अंदर अपने मरद को चढ़ाउंगी उसके ऊपर, उसकी कोरी गागर में अपनी दही भरेगा वो।
वैसे भी बहन की ननद पे तो पहला हक़ बहन के भाई का ही ही होता है।
जैसे मेरी ननद की दिन बहुरे, वैसे इस गाँव की मेरी सब ननदों के दिन बहुरें।
नहीं नहीं, यह प्रकरण अभी ख़तम नहीं हुआ, थोड़ा और कहना सुनना है
वो सब अगले भाग में, १००वें भाग में और वो एक खूब बड़ा सा मेगा अपडेट होगा।