आपके कमेंट पर कमेंट देने में थोड़ा विलम्ब हुआ
लेकिन यह सायास था, ऐसे कमेंट बहुत बिरले ही मिलते हैं और ख़ास तौर पर ऐसी पोस्टों के लिखे जाने पर जब मन चाहे की कोई तो आके उन शब्दों की, वाक्यों की कीमत समझे, माटी से उठा के उसके पीछे के दर्द को भी देखे
और फिर जब मिलते हैं ऐसे कमेंट तो एक दो बार पढ़ने से मन नहीं भरता, लगता है चलिए हफ़्तों कमेंट नहीं आते, पढ़ने वाले भी नहीं रहे ज्यादा और जो रेगुलर कमेंट वाले मित्र थे वो भी जिंदगी की उलझनों को सुलझाने में लगे हैं या कही मेले में भटके हैं तो बस उसी कमेंट की थाती को पढ़ के सहेज के,
इसलिए थोड़ा वक्त लगा और सच में कहानी में कभी कभी दुःख की बात भी कहने का मन करता है। सुख के पल तो दुःख की गुदड़ी में लपेटे रहते हैं कभी उनकी चाहत में कभी उनके बारे में सोच के जाड़ा कट जाता है
आप ने अपने थ्रेड में लिखा था की आप व्यस्त हैं तो भी अगर कभी टाइम मिला तो जोरू के गुलाम की आज की और उस के पहले की दो तीन पोस्टों पर कभी नजर डाल लीजियेगा। कहानी जहाँ पिछले फोरम में छूटी थी अब उससे आगे बढ़ चुकी है और उससे भी बड़ी बात उस पक्ष के बारे में है जहाँ मैंने कभी नजर नहीं डाली और इस फोरम में भी उस पृष्ठभूमि पर कम ही लिखा गया होगा।
एक बार फिर से आभार