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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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ये सौवां भाग ( ननद की बिदाई- बाँझिन का सोहर पृष्ठ १०३५) जैसा बन पड़ा आप लोगों की सेवा में हाजिर है और इन पोस्टों के लिखने के बाद कम से कम मैं ज्यादा कुछ कहने, बोलने की हालत में नहीं हूँ। हाँ बस कह सकती हूँ, जैसा कुछ आप लोगों को लगे, मन में महसूस हो तो हो सके तो दो चार लाइन लिख जरूर दीजियेगा।
 
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motaalund

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Bas Komalji aap ki lekhni ka hi kamal hai. Aap hamare dill par raj karti ho.

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न केवल दिल.. बल्कि तार्किक कहानी दिमाग को भी संतुष्टि प्रदान करती है...
 
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motaalund

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एकदम सही कहा आपने सौ नागिन मरती होंगी तो ऐसी जहरीली सास पैदा होती होगी, बस उसको एक चिंता है मेरी ननद गाभिन हो, चाहे बेटा जने या बेटी, लेकिन बस वंश चले। और उसे लगता है की ननद मेरी बाँझ है और आश्रम वाले गुरु जी ही उसे ठीक कर के उसे गाभिन कर सकते हैं।

गुरु जी की भक्ति भी इसलिए है

बस जैसे ही ननद लौटेंगी, अबकी वो उन्हें आश्रम भेज के ही मानेगी। और ननदोई के बस का नहीं है माँ से जुबान लड़ाना

देखिये अगले अपडेट में अगर ननद गाभिन हो गईं तो शायद बच जाए वरना मुश्किल है
आश्रम के गुरु भी अपने डंडे से हीं इलाज करेंगे...
और भाई-भौजाई के रहते ननद का कोई बाल भी बांका नहीं कर पाएगा...
ऊपर से भौजाई को होलिका माई ने आशीर्वाद भी दे दिया है...
 
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motaalund

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एकदम नेता, अफसर, पैसे वाले सब बाबा के आगे झुकते हैं और गाँव में तो अंधविश्वास है ही। कई एकड़ में फैला आश्रम है, अंदर खेत, बाग़, लेकिन बाहर खूब ऊँची चहारदीवारी उसपर कटीले तार, एक बार आश्रम में कोई घुस जाए तो बिना इजाजत बाहर जाना हो ही नहीं सकता। और जहाँ नई लड़कियां रहती हैं, उन्हें वासना का शिकार बनाया जाता है, वो और अलग, कड़े पहरे में।
अगर ननद एक बार उस झांगड़ में बैठ गयी तो फिर दस बीस मरद रोज अपने ऊपर उतारे चारा नहीं है
सत्ता के गलियारों से ये भी अछूते नहीं...
गाँव का हो या नहीं... इससे कोई फर्क नहीं पड़ता...
आज से चार-पांच दशक पहले दिल्ली दरबार (अच्छे खासे पढ़े लिखे) में इनकी गूंज सुनाई देती थी..
और शासन के फैसले पर असर भी...
 
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motaalund

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आपने एक लाइन में सारा अपडेट समेट दिया

नागिन जैसी महतारी से नन्दोई जी की गाँड़ फट रही थी।

बस अब अगले अपडेट का इन्तजार है, आज आखिरी दिन है। होलिका माई बोली थीं पांच दिन में गाभीन हो जाएंगी तो देखिये प्रेग्नेंसी टेस्ट में क्या आता है।
टेस्ट में पॉजिटिव हीं आएगा...
मतलब दो लाइनें..
 
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Ekdam shi kaha aapne bas ek baar meri Nanad ki jaan bach jaaye fir dekhiye meri Nanand aur main mil ke Nanad ki saas ur us saas ki beti ka kya kya karti hun
ऐसा गोता लगवाना होगा कि अब तक किए गए सारे पाप कर्म धुल जाएं...
 
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motaalund

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Paheli bar esa huaa ki aap ki story me koi villain aaya ho. Bhale vo kirdar bad me kesa bhi aap dikhao. Par is samay to nandiya ki sasu nagin ki tarah hi hai. Amezing is bar to bahot maza aaya.

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बिना विलेन के कहानी अधूरी रहती है...
आखिर तिर्यक रेखा हीं जीवन की निशानी है...
 
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motaalund

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भाग ९७
आज की रात


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अगले जन्म मोहे बेटी ही कीजो


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ये और ननद, मेरे कमरे में, कभी हंसने बिहँसने की आवाज आ रही थी, कभी चूड़ियों के चुरमुर की तो कभी पायल की रुनझुन की,

इन्हे तो नहीं मालूम था पर ननद को तो मालूम था और मुझे भी, ...

कल अगर, अगर कल सुबह, भोर, तक कुछ नहीं हुआ, तो ससुराल लौटने पर सास उसकी, उस आश्रम में भेज के ही दम लेंगी, कोई नहीं बचा पायेगा उनको,



बस कल सुबह,



और मैंने तो फोन पर जिस तरह ननद की सास की बातें सुनी थी, नन्दोई को हफ्ते भर के लिए बाहर भेजने का,… और ननद को उन मुस्टंडीयो के साथ, यमदूतों का स्त्री रूप,

और नन्दोई की हिम्मत भी नहीं पड़ी चूं करने की, एक बार कुछ आवाज निकाली उन्होंने तो उनकी मा की सिसकी, और फिर,…

बस मुझे मुग़ले आजम का वो आखिरी सीन बारबार याद आता था, जब अनारकली को सलीम के साथ एक रात बिताने की इज्जात दी गयी थी और अगले ही दिन उसे दीवाल में चुनवा दिया जाना था । उसे सलीम को फूल सुंघा के बेहोश कर देना था जिससे जब सिपाही उसे जिन्दा दीवाल में चुनने के लिए ले जाएँ तो सलीम को पता न चले ।



आज की रात,


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आज की रात कट नहीं रही थी , न मुझसे,... न मेरी सास से।


ननद ने उनसे कुछ नहीं बताया था, लेकिन माँ जो नौ महीने बेटी को कोख में रखती है, पैदा करती है, पाल पोस कर बड़ा करती है, बिन बोले ही,… बेटी भले उसकी चेहरे से मुस्कराये, खुश रहे लेकिन आँखों की खिड़की से झाँक के मन का हाल पता कर लेती है।


लोग कहते हैं दुःख बांटने से कम होता है लेकिन वो दुःख, वो डर जो मैं न उनसे कह सकती थी, …न बाँट सकती थी,

बस इतना विश्वास था मेरी माँ की तरह उन्होंने जो मुझे शक्ति दी थी, मैंने अपनी ननद के आगे ढाल बन कर खड़ी होउंगी, उनपर आयी किसी विपदा को पहले मुझसे टकराना होगा।


मेरी माँ भी, बचपन से यही एक बात सिखाती थीं, कोई किसी के बारे में कहे की उनका जीवन दुःख सहने में बीता तो तुरंत बात काट देतीं बोलती, दुःख सहने में नहीं उससे लड़ने में, उसका सामना करने में बीता।



एक दिन कोई सीरियल आ रहा था, या कोई प्रोग्राम, अगले जन्म मोहे बेटी न कीजो, माँ ने तुरंत बंद कर दिया, और बोलीं एकदम गलत अगले जन्म में ही बेटी का जन्म मिले


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माँ ने अकेले हम तीनो बहनों को पाला था, कभी उनके चेहरे पर मैंने उदासी नहीं देखी थी,

बहुत दिनों तक हम तीनो बहने उनके पास ही सोती थी, सिर्फ इस लालच में की वो रात में कहानी बहुत बढ़िया सुनाती थी, अक्सर देवी माई की, एक राक्षस सब देवताओं को तंग करने लगा और सब लोग देवी माई के पास आये और बस, एक कहानी हम लोगो को बहुत अच्छी लगती की एक राक्षस ऐसा भी था की उसके हर बूँद से एक राक्षस, और देवी माई ने, उसका भी,...


और माँ बोलती भी थी, देखो आते है सब लोग देवी माई के पास तो कैसे कह सकते हैं की लड़की, औरत कमजोर होती है,


सुबह मैं उठती थी, माँ को देखती थी तो,... बस देवी माई याद आती
क्या खूब प्रतीक प्रयोग किया है...
सलीम अनारकली...
लेकिन वहाँ बिछड़ना था यहाँ अंत में खुशियां...
औरत शारीरिक तौर भले कमजोर हो.. लेकिन भावनात्मक और दिमागी स्तर पर पुरुषों से बलशाली होती है...
 
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motaalund

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मेरी सास
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और ससुरे आयी तो मेरी सास माँ से भी दो हाथ आगे,

इंटर का रिजल्ट भी नहीं आया था गौने आ गयी, मुझे शादी, गौने के लिए डर नहीं था, लेकिन, और माँ ने बिन कहे मेरा डर समझ लिया

" बोलीं तू घबड़ा मत, तेरी सास से मैंने कह दिया है की तीन साल तक बच्चे के लिए बात नहीं करेंगी " और माँ ने मुझे गोली दिलवा दी थी।

लेकिन मेरी सास, उन्होंने जोर से हड़का लिया, गौने उतरे दो दिन ही हुआ था, अचानक मेरी सास बोलीं,



" मेरी समधन ने कहा था, तीन साल तक,… "

मुझे लगा मेरी सास अब हड़काएंगी तो मैंने तुरंत बहाना बनाया, " वो मैं ही, ऐसा कुछ नहीं, बस, " मैं जानती थी सब सास बहू के पीछे पहले दिन से पड़ी रहती हैं, " पोते का मुंह देखना है पोते का मुंह देखना है तो ये भी कुछ उसी तरह से सोच रही होंगी।



उन्होंने मेरी बात सुनी ही नहीं बस हड़का दिया " एक बात कान खोल के सुन ले दुल्हिन, कोख किसकी है तेरी, नौ महीने पेट में किसे रखना है तुझे, पैदा होते समय दर्द किसे होंगे तुझे, तो बस ये पक्का है , ये फैसला न तेरे मरद की सास करेंगी न तेरी सास, जब तेरी मर्जी हो "
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और अगले दिन खुद ले के गयीं आसा बहु के पास और ताम्बे का ताला लगवा दिया, रोज रोज गोली के झंझट से छुट्टी।

रस्ते में लौटे हुए मैंने उनसे पूछा की मान लीजिये किसी पास पड़ोसिन ने, ,,,,

एकदम रूप बदल गया उनका और बोलीं, " बस मुझे बता देना, मुंह न झौंस दूँ उसका तो कहना "

लेकिन आज उन हिम्मती सास की भी,


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हम दोनों बहुत देर तक बिना बोले बतियाये, खिड़की से बाहर धीरे धीरे सरकती रात देखते और मन में दोनों के बस यही सवाल था,

' होलिका माई की पांच दिन वाली बात ठीक होगी न, .....कल सुबह नन्द जी का टेस्ट, '

विश्वास मुझे पूरा था मैं तो चार पांच प्रिग्नेंसी किट बगल में रख के लेतऔर मुझसे ज्यादा मेरी सास को, लेकिन दांव पर इतना कुछ था

लेकिन कुछ तो बात करनी ही थी, मन बहलाने को, चिंता को टालने को, अब जो कल सुबह जो होगा, होगा,

कभी मेरी नजर बाहर खिड़की से बाहर पड़ती, काली चादर आसमान ने तान रखी थी जैसे रात गहरी नींद सो रही हो, बड़े बड़े पेड़ भी अलसाये नींद में, बस उनकी छाया, पूरे गाँव में शायद मैं और मेरी सास इस तरह जग रहे थे, मन की चिंता पलकों के किवाड़ को बंद ही नहीं होने दे रही थी।



मैंने सास को उनकी मायके की बात को लेकर छेड़ा, उनके एक ही भाई था, छोटा यहां से थोड़ी दूर पर ही गाँव था लेकिन इस सावन में कई बरस बाद गयी थीं जब मैंने धक्के लगा के उन्हें भेजा था। और बात सीधे मेरी ननदो पर चली गयी।
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इनकी दो ममेरी बहने थी, चुन्नी और टुन्नी

दोनों से मैं अपने गौने में ही मिली थी, छुटकी की उम्र के आसपास की, थोड़ी छोटी।

जब मैं गौने आयी तो दोनों छोटी ही थीं, लेकिन जब बाकी ननदें मुझे छेड़ती, गौने की रात के बाद सब ननदों ने घेर कर मुझसे ' रात की बात ' पूछी, लहंगा पलट के ;नीचे वाले मुंह की मुंह दिखाई' की, वो दोनों सबसे आगे बैठीं, कान पारे सब सुन रही थीं, खिलखिला रही थीं।

और जो ननदें थोड़ी लजाती हैं, झिझकती हैं नई आयी भौजाइयां सबसे पहले उन्ही को छेड़ती हैं, तो मैंने भी उन दोनों को खूब रगड़ा।

गाँव में लड़कियां, शादी ब्याह, रतजगा में जा जा के बहुत जल्द जवान हो जाती हैं, बाकी कसर कामवालियां छेड़ छेड़ के एकदम खुली बात कर के ,

तो सास से मैंने चुन्नी टुन्नी की बात चलायी,

' अब तो बड़ी हो गयी होंगी, बहुत दिन से देखा नहीं उनको, गौने में बस मिली थी "
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तो मेरी सास भी खुल गयी,

" हाँ वो दोनों भी जिद कर रही थीं, आने के लिए, लेकिन अभी तो उनका इम्तहान चल रहा होगा, और यहाँ आके उनका मन भी बहल जाएगा, मैंने छेड़ा भी बुआ से मिलने का मन कर रहा है की,.. तो वो सब साफ़ बोली, ...भाभी से। "
बस इतनी ओपनिंग काफी थी मेरी लिए

" अरे इम्तहान चल रहा है तो हफ्ते दस दिन में ख़त्म हो जाएगा, फिर दो महीने की गर्मी छुट्टी, बुलवा लीजिये न "

" किसके साथ आएँगी दोनों, तेरे मरद के मामा को तो छुट्टी नहीं मिलती इतना काम धंधा फैला दिया है, मुश्किल से दो घंटे को राखी के दिन आ पाता है " सास ने एक और परेशानी खड़ी की लेकिन मेरी ऐसी बहु क्यों लायी थीं उनकी परेशानी सुलझाने के लिए ही न।

" अरे ये छह फुट का लौंडा मेरी सास ने काहें पैदा किया है, भेज दीजियेगा उनको, सबेरे जाएंगे, सांझ को फटफटिया पे दोनों को बैठा के ले आयंगे। मैं भी कल उन दोनों को बोल दूंगी, इम्तहान के अगले दिन ही डोली कहांर भेज रही हूँ, आज जाएँ गौने। “
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मेरी सास खिलखिलाने लगी, बोली चल मैं भी बोल दूंगी, और करवट मोड़ के सोने की कोशिश करने लगी। पता नहीं मायके की याद थी या फिर वही चिंता लेकिन उन्होंने भी बात बदलने के लिए एक नयी बात चलाई


छुटकी कब तक रहेगी,
एक आपकी सास और एक आपके ननद की सास.
क्या कॉन्ट्रास्ट है..
लेकिन दुनिया सब तरह के लोगों से मिलकर बनी है...
एक वैराइटी आपके ननद की सास भी है...
 
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motaalund

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छुटकी


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मेरी सास खिलखिलाने लगी, बोली चल मैं भी बोल दूंगी, और करवट मोड़ के सोने की कोशिश करने लगी। पता नहीं मायके की याद थी या फिर वही चिंता लेकिन उन्होंने भी बात बदलने के लिए एक नयी बात चलाई


छुटकी कब तक रहेगी,


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बनावटी गुस्से से मैंने अपनी सास को पकड़ लिया और बोली,


" अब आप उसको धक्के दे के भगाने पे तुली हैं, सावन में मुझे धक्के दे रही थी, मायके जाओ, मायके जाओ और मैंने आपको मायके भेज दिया और दनदनाते अपनी ननद के साथ खूब सावन के मजे लिए,... उसी तरह मेरी बहन भी कहीं नहीं जाने वाली। "

उनका दुःख मैं समझ सकती थी,

मेरे मायके से आने से पहले ही जेठानी जी मेरी छोटी ननद को, छुटकी से थोड़ी ही बड़ी, अपने साथ ले के बंबई चली गयीं, ये बोल के की वहीँ उसका नाम लिखवाएंगी, यहाँ गाँव में,

तो छुटकी के आने से एकदम से घर में चहल पहल, मैं तो तब भी घर की बहू थी, वो तो अपने जीजा की साली।


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और सास से उसकी मिलते ही दोस्ती हो गयी, पक्की वाली, दोनों लोग झगड़ा भी करतीं,... बतियाती भीं मिल के सहेली की तरह, देह सुख तो था, मेरी सास को सब बड़ी उम्र की औरतों की तरह कच्ची अमिया कुतरने का शौक था,

लेकिन उनका अकेलापन भी ख़तम हो गया था, जैसे बंद कमरे में कच्ची धूप पसर गयी हो,



वो भी समझ रही थीं, मेरी बदमाशी से उनके दुःख की चादर पल भर के लिए उतर गयी, खिलखिलाते, मुझे दुलराते पकड़ के बोलीं

" अरे मैं भगा नहीं रही हूँ, मेरा बस चले तो तो तुम दोनों को मोटी रस्सी से बाँध के अपने पास रखूं, उसका इम्तहान,... "

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" अरे नहीं, सालाना इम्तहान नहीं देगी, उसकी भौजाई ने कर दिया है इंतजाम वो वाइस प्रिंसिपल हैं, छमाही में अच्छे नंबर थे बस उसी पे, नौवा हैं कौन बोर्ड का, तो जून तक तो गर्मी की छुट्टी भर, अभी कच्ची अमिया का मजा लेगी, फिर पेड़ पे चढ़ के बाग़ में आम खायेगी, " मैंने सास को कस के दुबका के समझाया


" तो,.. जुलाई में स्कूल खुलेगा फिर तो " मेरा सास कुछ जोड़ते हुए बोलीं


" नहीं " मैंने एकदम साफ़ साफ़ बोल दिया,

कौन दस बीस दिन में इतनी पढ़ाई हो जाएगी, सावन का झूला झूल के,


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अब तो गाँव में उसकी इतनी सहेलियां हो गयी हैं, मुझसे ज्यादा मेरी नंदों की उससे दोस्ती है और सावन के बाद अभी से सुन लीजिये मैं मायके वायके नहीं जाउंगी आपके पास रहूंगी, उसके जीजा छोड़ आएंगे, वही लाये थे, वही जाएंगे छोड़ने "

उन्होंने चैन की सांस ली और बोला,

"तुम कल अपनी ननदो से, चुन्नी टुन्नी से बोल देना, मैं भी तेरे मरद के मामी से बात कर लुंगी, छुटकी और वो दोनों रहेंगी तो थोड़ा, "

लेकिन मैं समझ रही थी वो असल में क्या पूछना चाहती थी , " छुटकी, वापस कब लौटेगी "


" बस दो तीन दिन में आ जायेगी आपकी लाड़ली, लेकिन एक बात साफ़ बोल रही हूँ अभी से सोयेगी आप के ही साथ। अभी भी वो अकेली नहीं सो पाती। असल में कबड्डी में "

मैंने समझाया की क्यों मैंने समझ बूझ के अभी छुटकी को घर से दूर रखा है।

सास की नजर बहुत तेज थी, कबड्डी में अम्पायर भी थी और वो नहीं होती तो हम मैच कभी नहीं जीतते,

हँसते हुए बोलीं, मैं समझ गयी थी तभी जब गितवा खुदे गिर गयी और इतना जल्दी हार मान गयी,

" एकदम, तो बस गितवा बोली थी की दो तीन दिन छुटकी उसके साथ, उसका भाई जमाने बाद किसी पे मोहाया था, तो मैं भी मान गयी। छुटकी से गितवा की दोस्ती भी खूब है, तो कल मिली थी छुटकी गीता दोनों, दोनों बोली दो तीन दिन और,... तो मैं मान गयी तो बस परसो नर्सो



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सास ने चैन की सांस ली और करवट बदल के सो गयी,



लेकिन असली बात मैंने उन्हें बताई नहीं, क्यों मैं छुटकी को घर से बाहर रखना चाहती थी।
इन पांच दिनों में तो मैं छुटकी की छाया भी इस घर पर नहीं पड़ने देना चाहती थी और जब गितवा बोली, तीन दिन के लिए छुटकी, उस के साथ, और मैंने छुटकी का मुंह देखा तो उस का भी मुंह चमक रहा था, गितवा से उसकी पक्की दोस्ती हो गयी थी।

और मैंने हाँ कर दिया, हाँ बस ये बात मैं, गीता और छुटकी जानते थे, फिर जब अम्पायरों ने गीता के साथ छुटकी को भी फाउल करने के लिए आउट कर दिया, तो बस उन दोनों की चांदी हो गयी।

मैच ख़तम होने का इन्तजार किये बिना दोनों फुर्र, गितवा छुटकी को लेकर चम्पत हो गयी, अपने भाई से मिलवाने।

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मैं इस लिए कबड्डी के बाद से ही नहीं चाहती थी की छुटकी घर आये,

और गीता के कहने से मेरा एक पंथ दो काज हो गया, हम कबड्डी मैच भी जीत गए जो बिना गितवा के साथ के मुश्किल था और दूसरी बात कबड्डी के बाद जो मस्ती हुयी उसी में तो मैंने ननद से कबुलवाया की मेरे मर्द के नीचे वो आएँगी, उसी शाम को होलिका माई ने ननद के पांच दिन के अंदर गाभिन होने का आशीर्वाद दिया और उसी रात से मेरे मरद ने अपनी सगी बहन को,...

और छुटकी होती घर में तो उससे ये सब बात छिपानी मुश्किल थी।


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मेरा मरद मेरा मरद है, चाहे जो करे, लेकिन छुटकी अभी बच्ची है, कहीं उसका मुंह खुल गया, कभी कहीं मजाक में तो, ...मेरी ससुराल की बात मैं नहीं चाहती थी मेरे मायके तक पहुंचे या गाँव में दस मुंह हो, फिर तो जिस घर की इज्जत को तोप ढांक के रखने का काम मेरा था, वो सब गड़बड़ हो जाता। सास से ज्यादा मेरी जिम्मेदारी घर की इज्जत की, और छुटकी बडंबोली, अभी बच्ची ही तो है, कहीं मजाक मजाक में ही तो सब गड़बड़

मेरे ननद और मेरे मरद की बात खाली हम तीनो के बात थी, मैं, मेरी ननद और मेरा मरद,


उस रात तो सास भी घर में नहीं थी, फिर छुटकी कही मेरे मायके में जा के गलती से ही उसकी मुंह से ये बात निकल जाती की उसके जीजू.////

मजाक की बात और है सब लोग मर्दों को उनकी बहन से जोड़ के चिढ़ाते हैं लेकिन,... घर की इज्जत कच्ची मिटटी का घड़ा है और बहू का पहला काम है घर की इज्जत, घर का नाम
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तो बस एक बार ननद चली जाए उसके बाद एक दो दिन के अंदर मैं जाके छुटकी को ले आउंगी।

और छुटकी के घर में रहने से एक और दिक्कत थी बल्कि सबसे बड़ी दिक्क्त, मेरे ननदोई जी।

गुड़ से चींटे को दूर कर सकते हैं लेकिन कच्ची अमिया से किसी मरद को दूर रखना वो भी मेरे ननदोई ऐसे, बहुत मुश्किल होता, और पांच दिन तो मुझे ननदोई जी की छाया से भी नन्द पर पड़ने भी नहीं देनी थी, बड़ी मुश्किल से कभी हस्पताल की नर्स तो कभी, और छुटकी घर में रहती तो उसके आगे कौन हस्पताल की नर्स को पूछता, और वो घर में गुड़ पे मक्खी की तरह भिनकते रहते और मेरा ननद को गाभिन कराने का सब प्लान बेकार हो जाता

तो बस अब दो चार दिन और



बस एक बार ननद हंसी खुसी विदा हो जाए तो उसके बाद छुटकी को ले आउंगी, मन मेरा भी नहीं लगता लेकिन ये पांच दिन, बस अब कल सुबह,



मेरी भी आँख लग गयी, एक घडी मैं सोई होउंगी मुश्किल से और जब नींद खुली तो रात ने अपने कदम समेटने शुरू कर दिए थे। आसमान जो गाढ़ी नीली स्याही से पुता लगता था अब स्लेटी हो गया था, पेड़ जो सिर्फ छाया लग रहे थे वो थोड़ा बहुत दिखने लगे थे, लेकिन भोर होने में अभी भी टाइम था, तभी कुछ आहट सी हुयी, दरवाजा खुलने बंद होने की, और मुझे याद आया आज भोर होने के पहले करीब चार बजे ही इन्हे खेत पे जाना था, गेंहू की कटनी की तैयारी के लिए अभी हफ्ता दस दिन बाकी था कटनी शुरू होने में और कटनी तो एक पहर रात रहते शुरू हो जाती,



मैंने निकल के दरवाजा बंद किया और सीधे ननद के कमरे में।
माँ को बेटी से बिछड़ने का गम हीं तो उसे अन्य कई बातों में उलझा देता ही...
लेकिन छुटकी के आने से कुछ सहारा मिल गया...
अब ननद के रिजल्ट का दिन... बल्कि भोर आ गई...
 
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