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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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चंदू






मुझे देख के खुद साइकिल से उतर के नमस्ते करता, लेकिन मैं भी क्या करती, रिश्ते से भौजाई थी, बिना मज़ाक किये देवर से छोड़ दूँ,... और मज़ाक भी एकदम खुल्ल्म खुल्ला,... वो जवाब तो नहीं देता था,... लेकिन उसके गाल इतने शरम से लाल हो जाते थे की बस यही मन करता था की कचकचा के काट लूँ , सच्ची इतनी तो इस गाँव की कोई लड़की भी नहीं शरमाती,...

मेरी ननदें मुझे चिढ़ाती भीं, चढाती भी , एक बोलती की कउनो उर्वशी मेनका आएगी तभी चंदू भैया का ब्रम्हचर्य भंग होगा,... तो दूसरी बोलती, हमार नयकी भौजी कउन उर्वशी मेनका से कम है, भउजी अबकी फागुन में देवर क,...

पहले मैंने गुलबिया से फिर रमजनिया से, और चंदू के अड्डे का पता कर के,... बता तो चुकी हूँ सब पहले,...



फागुन के पहले दिन ही मैंने उससे साफ साफ दिया था की,...

असो होली में पटक के चोदूंगी, तोहें,....और तुमसे पूछूँगी भी नहीं, ...

और कहीं छिपो, अपनी माँ के भोंसडे में भी तो वहां से भी हाथ डाल के खींच के निकाल लूंगीं, समझते क्या हो,जब तक मेरी देवरानी नहीं आ जाती, इस पर मेरा पूरा हक है, और देवरानी लाऊंगी मैं अपनी पसंद से, भाभी हूँ तेरी,...

तो बस वहीँ,




वही अपने देवर जो है सांड़ लेकिन डेढ़ दो साल से पूरा ब्रम्हचारी बना है, मैंने अपनी जेठानियों और ननदों का चैलेन्ज कबूल कर लिया था और उन्हें बता दिया था की इस चंदू को इसी होली में पक्का चोदू न बना दिया तो कहना, और कुँवारी ननदों से तो और,.. अभी से तेल लगाना शुरू कर दो, ... सिर्फ अपने देवर चंदू को चोदू ही नहीं बनाउंगी , तुम सबको चुदवाउंगी भी उससे,...

सिर्फ साड़ी लपटे और अपने फटे ब्लाउज को बस किसी तरह बांधे,




मैं चली जा रही थी, खेतों के बीच, पगडंडी से, और आज वैसे भी गाँव में कोई मरद तो था नहीं तो रस्ते में किसी के देखने, रोकने, रुकने का मतलब नहीं,

औरतें, लड़कियां भी अपने घरों में होली खेल रही होंगी या होली की तैयारी कर रही होंगी,


एक पल मैंने झुक के देखा और खुद,... नहीं नहीं मैं की साज सिंगार कर के नहीं, पर जब जोबन एक बार गदरा जाते हैं, चोली फाड़ के यारों को ललचाने लगते है तो फिर किसी साज सिंगार की जरूरत नहीं और मेरी बस उभारों को किसी तरह ढंके आधे ब्लाउज से बाहर छलकते उभारों पर जो साजन के दांतों की निशान थे वो किसी नौलखे हार से कम नहीं थे,...

चंदू के अड़ड़े पर मैं कई बार जा चुकी थी, जिस दिन फागुन शुरू हुआ था उस दिन भी, गाँव के बाहर उस का खेत है, एक ट्यूबवेल, छोटी सी बगिया, एक बँसवाड़ी, उसी के पीछे एक कोठरी, वहीँ छोटा सा अखाडा बना रखा है, ... सिर्फ वही जाता है वहां पे, बगल से गुजर जाओ तो भी पता नहीं चलेगा, इतनी गझिन बाग़ और बँसवाड़ी है, वो तो रमजनिया ने मुझे बता दिया था,...





और आज मैं होली के तैयारी से पूरी थी, मुझे मालूम था गुस्सा होगा जबरदस्त वो, गुस्सा होने की बात ही थी,... मैंने होली की बात की थी,... होली के दिन तो इतना हुड़दंग, ननद जेठानी नन्दोई घर से बाहर निकल ही नहीं पायी , और निकली भी तो दोपहर हो गयी थी,...




उसी शाम इनकी ससुराल,... दो दिन वहां अपने मायके माँ के पास,...

और कल लौटी तो कल इस गाँव में रंग नहीं होता, खैर अभी तीन दिन हैं न होली की मस्ती के,... वैसे तो होली मैं देह की खेलने वाली थी उसके साथ, देवर भाभी की असली होली तो वही,... और गाँव में वैसे भी आज कल की होली में रंग से ज्यादा कीचड़ मट्टी,... पर मैं पूरी तैयारी के साथ, गाढ़े पक्के रंग महीने भर न छूटें छूटें, पेण्ट की ट्यूब, और सबसे बढ़कर कड़ाही के पेंदे की कालिख, हफ्ते भर से इकट्ठा कर रही थी, थोड़ा सा तेल के साथ मिला के रंग का भी बाप हो जाता है ये,... देह को कोई हिस्सा नहीं बचेगा जहाँ पांच छह कोट,...

फिर कीचड़ मट्टी वाली होली भी होगी, मेरे देवर ने कितना मन मसोस के बोला था , कितने साल हो गए उसे होली खेले उसे याद नहीं,...

भौजी के रहते देवर सूखा बच जाए,.... ये ना इंसाफ़ी मेरे रहते,...



और दबे पाँव बँसवाड़ी के बीच से मैं उसे देख रही थी,... अभी अभी दंड पेल कर, ...

पूरी गोरी देह, एकदम पसीने में लथपथ, जैसे तेल से चिकनी हो गयी हो, एक एक मसल्स दिख रही थी, सिवाय उस के जिसे उसने जमाने से लंगोट में कस के बाँध रखा था, और आज उसके आजाद होने का दिन था,ताकत उस की देह से छलक रही थी पर चेहरा थोड़ा उदास था,...

जैसे किसी का इन्तजार कर कर के थक चुका हो, आज उदासी की मुझे ऐसी की तैसी करनी थी,...

मैंने पक्का काही रंग नीले रंग में मिला के अपनी दोनों गोरी हथेलियों में चार पांच कोट,...



और एकदम दबे पांव , क्या अमावस की रात कोई चोर घुसेगा,... पत्ती भी न हिले और पीछे से देवर को दबोच लिया और मेरी हथेली के रंग उसके गालों पे
भौजी हो तो ऐसी...
एकदम पटक के चढ़ जाने वाली....
ऐसे शर्मीले और सांड देवर पर तो पूरे अधिकार से....... उसका खूंटा अंदर तक...
बस एक झटके में बिलबिलाते हुए लेकिन जबरदस्ती....
 
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motaalund

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" भौजी"










फागुन के सब रंग मेरे हाथों में उतर आये थे और रस मेरे देवर के गालो में,

आज कली भौंरा बन गयी थी, रस लुटाने वाला रस लूट रहा था, ...

एकदम मीठे पूवे जैसा, वो भी ऐसा वैसा पूआ नहीं, दूध में महुआ डाल के जो पूवा बनता है वो वाला, मुलायम भी रसीला भी नशीला भी, दोनों गाल उसके, मेरे हाथों के नीले काही रंग, और इतना रगड़ रगड़ कर,... मेरे हाथों की सारी लकीरें मेरे देवर के गालों पर जैसे उस कुंवारे लजीले देवर के गालों पर उतर जाएँ,... और उस के बाद आँचल में खोंसी कड़ाही से उतारी कालिख की पुड़िया, रच रच कर उन गोरे गोरे गालों पर, इत्ते चिकने, गोरे मुलायम मक्खन ऐसे गाल तो मेरी किसी ननद के भी नहीं थे,...

" भौजी"

अब उसके बोल फूटे और मुंह खुलते ही, मेरी उँगलियों में लीपी पुती कालिख, देवर के मुंह और और उसके बत्तीसों दूध से चमकते दांत अच्छी तरह काले ,... उसने मुंह बंद करने की कोशिश की पर मेरे देवर की हालत उसकी उन बहनों की तरह जो ख़ुशी ख़ुशी , चूत में सुपाड़ा घुसवा लें और उसके बाद जांघ सिकोड़ने की कोशिश करें चूतड़ पटकें, न बिना चोदे उनकी चूत कोई लंड निकलता है न देवर के दांतों को कई कोट रंग लगाए मेरी उँगलियाँ निकलने वाली थीं.




रंगों कालिख के बाद पेण्ट की ट्यूब की बारी थी, उसने मेरे हाथ रोकने की भी कोशिश की, पर जब मेरे हाथ उसके गाल से चिपक गए थे, और नीला, काही कालिख के बाद वार्निश का पेण्ट, हाथों के पकड़ने से देवर कभी बचता है, जो वो बचे,...

और वो तो सीधा इतना जो कहते हैं न लड़कियों औरतों पर हाथ नहीं उठाना चाहिए , मानती हूँ। लेकिन टांग उठाने की तो मनाही नहीं हैं न।


चार पांच कोट के बाद मेरे हाथ चिकने गालों से सरक कर चौड़े ५६ इंच वाले सीने पर और वहां भी उसके मेल टिट्स ( आखिर सारे देवर ननदोई भी चोली के अंदर के फूलों के लिए ही ललचाते रहते हैं )





रंग का बाकी खजाना मैंने पास के चबूतरे पर रख दिया था, ... लेकिन मेरा मन उसे रंग से नहलाने का भी हो रहा था, एक बाल्टी दिखी, पानी भी था,... बस चार पुड़िया लाल रंग उसमें घोलने के लिए ,...


मेरे देवर की निगाहें बार बार उन्ही रंगों की ओर पड़ रही थीं,..सच में होली में रंग लगाने से ज्यादा मजा लगवाने में है और अगर लगाने वाला ऐसा लजीला नशीला देवर हो तो , मेरी आँखों ने उसे उन रंगो की ओर इशारा भी कर दिया , उकसा दिया,.. और इजाजत भी दे दी,... बस जब तक मैं रंग घोल रही थी वो दोनों हाथों में मेरे ही लाये गाढ़े लाल रंग को पोत के तैयार,...


मैंने भी देवर को पूरा मौका दिया और जब वो खड़ा हुआ, तो मैंने पूरी बाल्टी का रंग सीधे, एकदम वहीँ , जो लंगोटे के अंदर बंद, पूरी ताकत से,... इरादा मेरा अगर देवर को अब तक नहीं मालूम हुआ होगा तो अब मालूम हो गया होगा, ...


और हाथों में रंग ले के वो मेरे पीछे, मैंने भागने की बचने की कोशिश की लेकिन बस इतनी की, वो थोड़ी देर में ही मुझे पीछे से दबोच ले और उसके दोनों हाथ मेरे रसमलाई ऐसे गालों पर, देवर उसी लिए तो होली का इन्तजार करते हैं , इस बहाने कम से कम छूने का भाभी के गाल मलने का मौका मिल जाता है,... और देवर थोड़ा हिम्मती हो,..

मेरा देवर हिम्मती तो था लेकिन झिझकता भी था, और हाथ अगर छुड़ाने के बहाने मैंने सरका के नीचे न किया होता तो वो वहीँ गालों पे उलझा होता, खैर मेरे चिकने गोरे गोरे गाल इतने रसीले हैं ही, और हाथ उसके वहीँ आके जहाँ वो भी चाहता था , मैं भी चाहती थी,



और मैं अकेली थोड़ी थी,

अगर कोई भौजाई ये कहे की वो नहीं चाहती की उसके देवर चोली में हाथ डाल के उसके जोबन पे रंग लगाएं , जुबना का रस लूटें तो इसका मतलब वो सरासर झुठ बोल रही है और उसे कौवा जरूर काटेगा,...




अब वो हाथ हटाना चाहता भी तो , उसका हाथ रोकने के बहाने, उसके हाथ के ऊपर से उसका हाथ पकड़ के मैं उसका हाथ अपने उभारों पर दबा रही थी,... और इस धींगामुश्ती में ब्लाउज तो मेरी ननद ने ही फाड़ दिया था, किसी तरह लपेट के बाँध के मैंने अपने जोबन को छिपाया था, बस ब्लाउज सरक के खुल के अखाड़े में गिर गया, और उस के रंग लगे हाथ मेरे उभारों पे,



अब देवर भाभी की देवर भाभी वाली होली शुरू होगयी थी, ताकत तो बहुत थी उसमें और मेरे पहाड़ ऐसे पत्थर से कड़े जोबन तो हरदम वो ललचा के देखता था,आज मौका मिल गया था , मैंने अपने हाथ उसके हाथों से हटा लिया पर अब भी वो रंग लगे हाथों से कस के मेरी दोनों चूँचियों को रगड़ रगड़ के मसल मसल के, और उसी को क्यों दोष दूँ मैं तो चाहती थी उससे मिजवाना, मसलवाना,
क्या खूब रंगीली होली हुई...
शर्मीले देवर के साथ नटखट भौजी...
एकदम समां बाँध दिया....

अब तो सफेद रंग की होली का इन्तजार है....
काही, नीला, लाल बैंगनी बहुत हुआ...
अबकी मोटे पिचकारी का रंग एकदम गहराई तक......
बूंद-बूंद...
 
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motaalund

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Didi kya update likhi hai tum ne ,na to khud sans li hai na padhne walo ko lene di hai,pata nahi kis kis ko kaha kaha.Umda updates.Kamukta shuru se lekar akhir tak kut kut kar bhar di hai story me.Awesome writing.👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥💯💯💯💯💯💯💯💯💯💯💯💯💯
आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ...
सचमुच क्या गजब का लिखती हैं...
सारे अंगों में खलबली मचा देती हैं....
अति उत्तम ................
 
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motaalund

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भाग २३

नई सुबह


उसी समय ननदोई जी ने दरवाजा खटखटाया,... नहीं नहीं बिना बिना झड़े नहीं गए , मैं तो बिदा कर भी देती उनको खड़े लंड के साथ पर उनकी छोटी स्साली , उससे नहीं रहा गया,...

और बाहर नन्दोई जी खटखट कर रहे थे और वो मेरी बहन पर चढ़े हुए थे,... जब मैंने दरवाजा खोला उस समय भी उनका खूंटा अंदर धंसा अपनी साली के निचले मुंह को रबड़ी मलाई खिला रहा था,

थोड़ी देर में वो और नन्दोई जी निकल गए , मैं छुटकी को दुबका के सो गयी , घंटे आध घंटे की जो नींद मिल जाए,...

आधी नींद में मैं सोच रही थी पहले दिन मेरी सास, जेठानी और नंदों ने मिल के,... क्या क्या नहीं ,...


और इन्ही ननद ने साफ़ साफ़ बोला था की भौजी ये तो ट्रेलर है, असली तो उस दिन होगा जब आप मायके से लौट आइयेगा, जिस दिन गाँव में सिर्फ औरतें होती है, पर उस दिन भी,...








खटखट ननद जी ने की और बाहर सिर्फ मेरी सास नहीं , चचिया सास बुआ सास , और गाँव की और सास लगने वाली ,


कुछ जेठानिया भी ( मेरी सगी जेठानी तो जेठ जी के पास चली गयीं थी मेरी छोटी ननद के साथ, वहीँ उसका एडमिशन कराना था,... ) और होली की मस्ती चालू हो गयी ,

(और होली वाले दिन तो कुछ नहीं था आज के आगे,)

होली वाले दिन की तरह,

रस्म है की नयी बहू सबसे पहले सास को रंग लगाती है,




फिर सास



और वो, गाँव की रिश्ते की सब सास. और जेठानियाँ नयी बहू की हेल्प करती हैं तो ननदें तो कभी किसी जनम में भौजी का साथ नहीं देतीं , दुनिया के किसी कोने में नहीं तो वो हाथ धोकर, भौजाई के पीछे, और सास भी बहू की माँ को ( आखिर उनकी समधन लगती हैं तो गरियाने का रिश्ता है ही ) न सिर्फ एक से एक गन्दी गालियां देती हैं, बल्कि बहू से भी दिलवाती हैं उसकी माँ को, ( या सिद्ध करने के लिए की वह अब अपने ससुराल की हो गयी है, मायके की नहीं ),

सासू जी के पैरों में गुलाल लगाने के साथ मैंने इनकी मातृभूमि का दर्शन करने के लिए सासू की साड़ी कमर तक उठा दी, और सासू जी ने भी कोई रेजिस्ट नहीं किया,...




पर मेरी ननद ने और एक चचिया सास ने मिल के मेरा मुंह सीधे ' वहीं' इनकी 'मातृभूमि',... पर और एक जेठानी ने चिढ़ाया भी,

" यहीं से देवर जी निकले थे जो रोज कबड्डी खेलते हैं तोहरे साथ, तनी आज इसको चख लो, "


सासू जी ने भी अपनी जाँघे खुद फैला दी और आज उन्होंने अपनी झांटे अच्छी तरह साफ़ कर ली थीं ( बाद में मुझे पता चला की ये साफ़ सफाई मेरी छुटकी बहिनिया के लिए की गयी थी ), चूत चटोरी तो मैं मायके से थी, और सास की चूत चाटने में , जिस चूत ने मोटे मोटे लंड घोंट के, इनका बीज रोपा गाभिन हुयी और नौ महीने बाद बियाइं,...




आज होली के दिन,... थोड़ी देर में ही सास जी के पैर डगमगाने लगे, लेकिन पकड़ उनकी जाँघों की एकदम सँड़सी की तरह, ताकत में अपने बेटे से उन्नीस नहीं थीं वो , मैं लाख कोशिश कर के भी उनकी जाँघों के बीच से अपना सर नहीं छुड़ा पा रही थी, पता नहीं मायके से ससुराल तक कितने मर्दों को अपनी जाँघों के बीच दबोचा होगा,...

और मौके का फायदा उनकी बेटी, मेरी ननद ने उठाया, पहले तो मेरी साड़ी आराम से धीमे धीमे खोली, फिर पेटीकोट का नाड़ा न सिर्फ खोला बल्कि मेरे पेटीकोट से निकाल के दूर फेंक दिया और अब मैं कोशिश कर के भी पेटीकोट नहीं पहन सकती थी, ... एक पड़ोस की ननद ने ब्लाउज के दो टुकड़े कर दिए ,...

पर मैं पूरी ताकत से इन सबसे बेखबर अपनी सासू माता का भोंसड़ा चूस रही थी,




और अपने से वादा कर रही थी, हफ्ते भर के अंदर इस छिनार के इसी भोसड़े के अंदर अपने सामने इसके बेटे का लंड न घुसवाया, फिर इनके समधियाने के, अपने मायके के सब मरदों का हरवाह, घोसी, धोबी, मोची, कोई नहीं बचेगा जो इस पोखर में डुबकी न लगाएगा,...
मातृभूमि की सेवा संतोषजनक और कुशलतापूर्वक हो रही है....
 
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UPDATE on last page ( page 109 ) please do read, like and share comments
 

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Thanks sooooooo much
 

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Didi kya update likhi hai tum ne ,na to khud sans li hai na padhne walo ko lene di hai,pata nahi kis kis ko kaha kaha.Umda updates.Kamukta shuru se lekar akhir tak kut kut kar bhar di hai story me.Awesome writing.👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥💯💯💯💯💯💯💯💯💯💯💯💯💯
Ab is tarif ke liye kya kahun,... aise to main kahaani bhi nahi likh skati jiatana aacha aap comment men likh deti ho, ekdm nichod,... aur ek secret,... kamukata ka,... jab main do tin baar RISHTON MEN HASIN BADLAAV padhti hun na , bas usi ka ansh,... in shabdon men utar aata hai , lekin kisi ko bataauyegaa mat,... hamari aapki baat
 

komaalrani

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सासू जी लपेटे में...

क्या खूब कन्या रस का वर्णन किया है...
छोटी से लेकर बड़ी तक....
सास से लेकर ननद तक...

लेकिन छुटकी के साथ पूरा विस्तार से वर्णन की कमी खलती है...
उम्मीद है सासों की जमात ने छुटकी को कैसे पारंगत किया इसका चित्रण बाखूबी होगा....
एकदम होगा, और पूरे विस्तार से होगा, समस्या व्याकरण की थी,

असली मस्ती तब शुरू हुयी जब मैं बहन से चुपके से अपने देवर की ओर सरक ली थी, अब परेशानी की बात ये है की यह कहानी मैं ' फर्स्ट परसन ' में कह रही हूँ , सूत्रधार की तरह,... और कोई आचार्य व्याकरण दोष कह के खड़ा हो जाता,... तो अब कहानी का कुछ हिस्सा थर्ड परसन में , भी आएगा,... जहाँ मैं नहीं रहूंगी ,... तो कुछ देर इन्तजार के बाद छुटकी के साथ मेरी सास लोगों ने

और सिर्फ सास क्यों ननदें भी तो जिस दिन से छुटकी मेरे साथ आयी है गाँव में , सब की सब उस के आते जोबन को देख के बौराई थीं , तो सब हाल चाल मिलेगा , बिना किसी सेंसर के,...
 

komaalrani

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वाह .... भाभी तो अपने वादे की पक्की निकली...

अब होगा देवर की तपस्या भंग...
आखिर मेनका उर्वशी से बढ़कर जो है दुलारी भौजी ...
सांड तो दिन-रात कभी तारे दिखा देगा...
एक बार जब कहर जाएगी तो फिर तो सटासट गपागप होगा...
होली का असली मजा...

और ये जो "छूंछियाई" लिखा है दिल गदगद हो गया...
ऐसे देसज शब्दों की कोई तारीफ़ करता है न तो एकदम बस लगता है , पैसा वसूल. मेरा दिल गदगद हो जाता है।
 
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