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भाग ९६
ननद की सास, और सास का प्लान
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ननद की सास, और सास का प्लान
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Sandarr" भौजी"
फागुन के सब रंग मेरे हाथों में उतर आये थे और रस मेरे देवर के गालो में, आज कली भौंरा बन गयी थी, रस लुटाने वाला रस लूट रहा था, ... एकदम मीठे पूवे जैसा, वो भी ऐसा वैसा पूआ नहीं, दूध में महुआ डाल के जो पूवा बनता है वो वाला, मुलायम भी रसीला भी नशीला भी, दोनों गाल उसके, मेरे हाथों के नीले काही रंग, और इतना रगड़ रगड़ कर,... मेरे हाथों की सारी लकीरें मेरे देवर के गालों पर जैसे उस कुंवारे लजीले देवर के गालों पर उतर जाएँ,... और उस के बाद आँचल में खोंसी कड़ाही से उतारी कालिख की पुड़िया, रच रच कर उन गोरे गोरे गालों पर, इत्ते चिकने, गोरे मुलायम मक्खन ऐसे गाल तो मेरी किसी ननद के भी नहीं थे,...
" भौजी"
अब उसके बोल फूटे और मुंह खुलते ही, मेरी उँगलियों में लीपी पुती कालिख, देवर के मुंह और और उसके बत्तीसों दूध से चमकते दांत अच्छी तरह काले ,... उसने मुंह बंद करने की कोशिश की पर मेरे देवर की हालत उसकी उन बहनों की तरह जो ख़ुशी ख़ुशी , चूत में सुपाड़ा घुसवा लें और उसके बाद जांघ सिकोड़ने की कोशिश करें चूतड़ पटकें, न बिना चोदे उनकी चूत कोई लंड निकलता है न देवर के दांतों को कई कोट रंग लगाए मेरी उँगलियाँ निकलने वाली थीं.
रंगों कालिख के बाद पेण्ट की ट्यूब की बारी थी, उसने मेरे हाथ रोकने की भी कोशिश की, पर जब मेरे हाथ उसके गाल से चिपक गए थे, और नीला, काही कालिख के बाद वार्निश का पेण्ट, हाथों के पकड़ने से देवर कभी बचता है, जो वो बचे,...
और वो तो सीधा इतना जो लग कहते हैं न लड़कियों औरतों पर हाथ नहीं उठाना चाहिए , मानती हूँ। लेकिन टांग उठाने की तो मनाही नहीं हैं न।
चार पांच कोट के बाद मेरे हाथ चिकने गालों से सरक कर चौड़े ५६ इंच वाले सीने पर और वहां भी उसके मेल टिट्स ( आखिर सारे देवर ननदोई भी चोली के अंदर के फूलों के लिए ही ललचाते रहते हैं )
रंग का बाकी खजाना मैंने पास के चबूतरे पर रख दिया था, ... लेकिन मेरा मन उसे रंग से नहलाने का भी हो रहा था, एक बाल्टी दिखी, पानी भी था,... बस चार पुड़िया लाल रंग उसमें घोलने के लिए ,...
मेरे देवर की निगाहें बार बार उन्ही रंगों की ओर पड़ रही थीं,..सच में होली में रंग लगाने से ज्यादा मजा लगवाने में है और अगर लगाने वाला ऐसा लजीला नशीला देवर हो तो , मेरी आँखों ने उसे उन रंगो की ओर इशारा भी कर दिया , उकसा दिया,.. और इजाजत भी दे दी,... बस जब तक मैं रंग घोल रही थी वो दोनों हाथों में मेरे ही लाये गाढ़े लाल रंग को पोत के तैयार,...
मैंने भी देवर को पूरा मौका दिया और जब वो खड़ा हुआ, तो मैंने पूरी बाल्टी का रंग सीधे, एकदम वहीँ , जो लंगोटे के अंदर बंद, पूरी ताकत से,... इरादा मेरा अगर देवर को अब तक नहीं मालूम हुआ होगा तो अब मालूम हो गया होगा, ...
और हाथों में रंग ले के वो मेरे पीछे, मैंने भागने की बचने की कोशिश की लेकिन बस इतनी की, वो थोड़ी देर में ही मुझे पीछे से दबोच ले और उसके दोनों हाथ मेरे रसमलाई ऐसे गालों पर, देवर उसी लिए तो होली का इन्तजार करते हैं , इस बहाने कम से कम छूने का भाभी के गाल मलने का मौका मिल जाता है,... और देवर थोड़ा हिम्मती हो,..
मेरा देवर हिम्मती तो था लेकिन झिझकता भी था, और हाथ अगर छुड़ाने के बहाने मैंने सरका के नीचे न किया होता तो वो वहीँ गालों पे उलझा होता, खैर मेरे चिकने गोरे गोरे गाल इतने रसीले हैं ही, और हाथ उसके वहीँ आके जहाँ वो भी चाहता था , मैं भी चाहती थी,
और मैं अकेली थोड़ी थी, अगर कोई भौजाई ये कहे की वो नहीं चाहती की उसके देवर चोली में हाथ डाल के उसके जोबन पे रंग लगाएं , जुबना का रस लूटें तो इसका मतलब वो सरासर झुठ बोल रही है और उसे कौवा जरूर काटेगा,...
अब वो हाथ हटाना चाहता भी तो , उसका हाथ रोकने के बहाने, उसके हाथ के ऊपर से उसका हाथ पकड़ के मैं उसका हाथ अपने उभारों पर दबा रही थी,... और इस धींगामुश्ती में ब्लाउज तो मेरी ननद ने ही फाड़ दिया था, किसी तरह लपेट के बाँध के मैंने अपने जोबन को छिपाया था, बस ब्लाउज सरक के खुल के अखाड़े में गिर गया, और उस के रंग लगे हाथ मेरे उभारों पे,
अब देवर भाभी की देवर भाभी वाली होली शुरू होगयी थी, ताकत तो बहुत थी उसमें और मेरे पहाड़ ऐसे पत्थर से कड़े जोबन तो हरदम वो ललचा के देखता था,आज मौका मिल गया था , मैंने अपने हाथ उसके हाथों से हटा लिया पर अब भी वो रंग लगे हाथों से कस के मेरी दोनों चूँचियों को रगड़ रगड़ के मसल मसल के, और उसी को क्यों दोष दूँ मैं तो चाहती थी उससे मिजवाना, मसलवाना,
Didi kya update likhi hai tum ne ,na to khud sans li hai na padhne walo ko lene di hai,pata nahi kis kis ko kaha kaha.Umda updates.Kamukta shuru se lekar akhir tak kut kut kar bhar di hai story me.Awesome writing." भौजी"
फागुन के सब रंग मेरे हाथों में उतर आये थे और रस मेरे देवर के गालो में,
आज कली भौंरा बन गयी थी, रस लुटाने वाला रस लूट रहा था, ...
एकदम मीठे पूवे जैसा, वो भी ऐसा वैसा पूआ नहीं, दूध में महुआ डाल के जो पूवा बनता है वो वाला, मुलायम भी रसीला भी नशीला भी, दोनों गाल उसके, मेरे हाथों के नीले काही रंग, और इतना रगड़ रगड़ कर,... मेरे हाथों की सारी लकीरें मेरे देवर के गालों पर जैसे उस कुंवारे लजीले देवर के गालों पर उतर जाएँ,... और उस के बाद आँचल में खोंसी कड़ाही से उतारी कालिख की पुड़िया, रच रच कर उन गोरे गोरे गालों पर, इत्ते चिकने, गोरे मुलायम मक्खन ऐसे गाल तो मेरी किसी ननद के भी नहीं थे,...
" भौजी"
अब उसके बोल फूटे और मुंह खुलते ही, मेरी उँगलियों में लीपी पुती कालिख, देवर के मुंह और और उसके बत्तीसों दूध से चमकते दांत अच्छी तरह काले ,... उसने मुंह बंद करने की कोशिश की पर मेरे देवर की हालत उसकी उन बहनों की तरह जो ख़ुशी ख़ुशी , चूत में सुपाड़ा घुसवा लें और उसके बाद जांघ सिकोड़ने की कोशिश करें चूतड़ पटकें, न बिना चोदे उनकी चूत कोई लंड निकलता है न देवर के दांतों को कई कोट रंग लगाए मेरी उँगलियाँ निकलने वाली थीं.
रंगों कालिख के बाद पेण्ट की ट्यूब की बारी थी, उसने मेरे हाथ रोकने की भी कोशिश की, पर जब मेरे हाथ उसके गाल से चिपक गए थे, और नीला, काही कालिख के बाद वार्निश का पेण्ट, हाथों के पकड़ने से देवर कभी बचता है, जो वो बचे,...
और वो तो सीधा इतना जो कहते हैं न लड़कियों औरतों पर हाथ नहीं उठाना चाहिए , मानती हूँ। लेकिन टांग उठाने की तो मनाही नहीं हैं न।
चार पांच कोट के बाद मेरे हाथ चिकने गालों से सरक कर चौड़े ५६ इंच वाले सीने पर और वहां भी उसके मेल टिट्स ( आखिर सारे देवर ननदोई भी चोली के अंदर के फूलों के लिए ही ललचाते रहते हैं )
रंग का बाकी खजाना मैंने पास के चबूतरे पर रख दिया था, ... लेकिन मेरा मन उसे रंग से नहलाने का भी हो रहा था, एक बाल्टी दिखी, पानी भी था,... बस चार पुड़िया लाल रंग उसमें घोलने के लिए ,...
मेरे देवर की निगाहें बार बार उन्ही रंगों की ओर पड़ रही थीं,..सच में होली में रंग लगाने से ज्यादा मजा लगवाने में है और अगर लगाने वाला ऐसा लजीला नशीला देवर हो तो , मेरी आँखों ने उसे उन रंगो की ओर इशारा भी कर दिया , उकसा दिया,.. और इजाजत भी दे दी,... बस जब तक मैं रंग घोल रही थी वो दोनों हाथों में मेरे ही लाये गाढ़े लाल रंग को पोत के तैयार,...
मैंने भी देवर को पूरा मौका दिया और जब वो खड़ा हुआ, तो मैंने पूरी बाल्टी का रंग सीधे, एकदम वहीँ , जो लंगोटे के अंदर बंद, पूरी ताकत से,... इरादा मेरा अगर देवर को अब तक नहीं मालूम हुआ होगा तो अब मालूम हो गया होगा, ...
और हाथों में रंग ले के वो मेरे पीछे, मैंने भागने की बचने की कोशिश की लेकिन बस इतनी की, वो थोड़ी देर में ही मुझे पीछे से दबोच ले और उसके दोनों हाथ मेरे रसमलाई ऐसे गालों पर, देवर उसी लिए तो होली का इन्तजार करते हैं , इस बहाने कम से कम छूने का भाभी के गाल मलने का मौका मिल जाता है,... और देवर थोड़ा हिम्मती हो,..
मेरा देवर हिम्मती तो था लेकिन झिझकता भी था, और हाथ अगर छुड़ाने के बहाने मैंने सरका के नीचे न किया होता तो वो वहीँ गालों पे उलझा होता, खैर मेरे चिकने गोरे गोरे गाल इतने रसीले हैं ही, और हाथ उसके वहीँ आके जहाँ वो भी चाहता था , मैं भी चाहती थी,
और मैं अकेली थोड़ी थी,
अगर कोई भौजाई ये कहे की वो नहीं चाहती की उसके देवर चोली में हाथ डाल के उसके जोबन पे रंग लगाएं , जुबना का रस लूटें तो इसका मतलब वो सरासर झुठ बोल रही है और उसे कौवा जरूर काटेगा,...
अब वो हाथ हटाना चाहता भी तो , उसका हाथ रोकने के बहाने, उसके हाथ के ऊपर से उसका हाथ पकड़ के मैं उसका हाथ अपने उभारों पर दबा रही थी,... और इस धींगामुश्ती में ब्लाउज तो मेरी ननद ने ही फाड़ दिया था, किसी तरह लपेट के बाँध के मैंने अपने जोबन को छिपाया था, बस ब्लाउज सरक के खुल के अखाड़े में गिर गया, और उस के रंग लगे हाथ मेरे उभारों पे,
अब देवर भाभी की देवर भाभी वाली होली शुरू होगयी थी, ताकत तो बहुत थी उसमें और मेरे पहाड़ ऐसे पत्थर से कड़े जोबन तो हरदम वो ललचा के देखता था,आज मौका मिल गया था , मैंने अपने हाथ उसके हाथों से हटा लिया पर अब भी वो रंग लगे हाथों से कस के मेरी दोनों चूँचियों को रगड़ रगड़ के मसल मसल के, और उसी को क्यों दोष दूँ मैं तो चाहती थी उससे मिजवाना, मसलवाना,
सासू जी लपेटे में...भाग २३
नई सुबह
उसी समय ननदोई जी ने दरवाजा खटखटाया,... नहीं नहीं बिना बिना झड़े नहीं गए , मैं तो बिदा कर भी देती उनको खड़े लंड के साथ पर उनकी छोटी स्साली , उससे नहीं रहा गया,...
और बाहर नन्दोई जी खटखट कर रहे थे और वो मेरी बहन पर चढ़े हुए थे,... जब मैंने दरवाजा खोला उस समय भी उनका खूंटा अंदर धंसा अपनी साली के निचले मुंह को रबड़ी मलाई खिला रहा था,
थोड़ी देर में वो और नन्दोई जी निकल गए , मैं छुटकी को दुबका के सो गयी , घंटे आध घंटे की जो नींद मिल जाए,...
आधी नींद में मैं सोच रही थी पहले दिन मेरी सास, जेठानी और नंदों ने मिल के,... क्या क्या नहीं ,...
और इन्ही ननद ने साफ़ साफ़ बोला था की भौजी ये तो ट्रेलर है, असली तो उस दिन होगा जब आप मायके से लौट आइयेगा, जिस दिन गाँव में सिर्फ औरतें होती है, पर उस दिन भी,...
खटखट ननद जी ने की और बाहर सिर्फ मेरी सास नहीं , चचिया सास बुआ सास , और गाँव की और सास लगने वाली ,
कुछ जेठानिया भी ( मेरी सगी जेठानी तो जेठ जी के पास चली गयीं थी मेरी छोटी ननद के साथ, वहीँ उसका एडमिशन कराना था,... ) और होली की मस्ती चालू हो गयी ,
(और होली वाले दिन तो कुछ नहीं था आज के आगे,)
होली वाले दिन की तरह,
रस्म है की नयी बहू सबसे पहले सास को रंग लगाती है,
फिर सास
और वो, गाँव की रिश्ते की सब सास. और जेठानियाँ नयी बहू की हेल्प करती हैं तो ननदें तो कभी किसी जनम में भौजी का साथ नहीं देतीं , दुनिया के किसी कोने में नहीं तो वो हाथ धोकर, भौजाई के पीछे, और सास भी बहू की माँ को ( आखिर उनकी समधन लगती हैं तो गरियाने का रिश्ता है ही ) न सिर्फ एक से एक गन्दी गालियां देती हैं, बल्कि बहू से भी दिलवाती हैं उसकी माँ को, ( या सिद्ध करने के लिए की वह अब अपने ससुराल की हो गयी है, मायके की नहीं ),
सासू जी के पैरों में गुलाल लगाने के साथ मैंने इनकी मातृभूमि का दर्शन करने के लिए सासू की साड़ी कमर तक उठा दी, और सासू जी ने भी कोई रेजिस्ट नहीं किया,...
पर मेरी ननद ने और एक चचिया सास ने मिल के मेरा मुंह सीधे ' वहीं' इनकी 'मातृभूमि',... पर और एक जेठानी ने चिढ़ाया भी,
" यहीं से देवर जी निकले थे जो रोज कबड्डी खेलते हैं तोहरे साथ, तनी आज इसको चख लो, "
सासू जी ने भी अपनी जाँघे खुद फैला दी और आज उन्होंने अपनी झांटे अच्छी तरह साफ़ कर ली थीं ( बाद में मुझे पता चला की ये साफ़ सफाई मेरी छुटकी बहिनिया के लिए की गयी थी ), चूत चटोरी तो मैं मायके से थी, और सास की चूत चाटने में , जिस चूत ने मोटे मोटे लंड घोंट के, इनका बीज रोपा गाभिन हुयी और नौ महीने बाद बियाइं,...
आज होली के दिन,... थोड़ी देर में ही सास जी के पैर डगमगाने लगे, लेकिन पकड़ उनकी जाँघों की एकदम सँड़सी की तरह, ताकत में अपने बेटे से उन्नीस नहीं थीं वो , मैं लाख कोशिश कर के भी उनकी जाँघों के बीच से अपना सर नहीं छुड़ा पा रही थी, पता नहीं मायके से ससुराल तक कितने मर्दों को अपनी जाँघों के बीच दबोचा होगा,...
और मौके का फायदा उनकी बेटी, मेरी ननद ने उठाया, पहले तो मेरी साड़ी आराम से धीमे धीमे खोली, फिर पेटीकोट का नाड़ा न सिर्फ खोला बल्कि मेरे पेटीकोट से निकाल के दूर फेंक दिया और अब मैं कोशिश कर के भी पेटीकोट नहीं पहन सकती थी, ... एक पड़ोस की ननद ने ब्लाउज के दो टुकड़े कर दिए ,...
पर मैं पूरी ताकत से इन सबसे बेखबर अपनी सासू माता का भोंसड़ा चूस रही थी,
और अपने से वादा कर रही थी, हफ्ते भर के अंदर इस छिनार के इसी भोसड़े के अंदर अपने सामने इसके बेटे का लंड न घुसवाया, फिर इनके समधियाने के, अपने मायके के सब मरदों का हरवाह, घोसी, धोबी, मोची, कोई नहीं बचेगा जो इस पोखर में डुबकी न लगाएगा,...
वाह .... भाभी तो अपने वादे की पक्की निकली...छुटकी की होली
और भौजी चली देवर को
ननद ने सही कहा था, भाभी लौट के आइयेगा सीधे कुप्पी से पीने को मिलेगी,
यहाँ तक की मेरी सास की समधन, मेरी माँ ने अपनी समधन को दस मोटी मोटी गारियाँ सुनाई थीं, बड़ी सीधी हैं सास तेरी नयी बहू को तो सीधे कुप्पी से ,
और वही हो रहा था,... वो भी खड़े खड़े, वो खड़ी थी, मैं बैठी,...
और मैंने कनखियों से देखा तो छुटकी को एक गोयतिन सास, अरे वहीँ नैना की माँ,... मेरी तरह उसको भी , सीधे कुप्पी से,.. और मेरी सास ने मेरा सर भी अपने दो हाथों से जकड़ रखा था,.. तब तक पिछवाड़े मेरी एक नहीं दो उँगलियाँ घुसीं, और कौन मेरी भाइचॉद ननद,... और जब सास ने छोड़ा तो ननद ने पिछवाड़े से निकली ऊँगली मेरे मुंह में,... ज़रा भाभी को मंजन तो करा दूँ,...
लेकिन मुझसे ज्यादा दुर्गत छुटकी की हो रही थी, सब सासें उसी पर ज्यादा मेहरबान, ... कच्चे टिकोरों को देख के सब का मन ललचाता है चाहे मरद हों या औरतें , खास तौर से बड़ी उम्र की औरतें,...
और छुटकी के ऊपर सबसे पहले चढ़ीं मेरी चचिया सास, ऐसी लिबरा रही थीं , मेरी सास की देवरानी भी सहेली भी, और सास ने पहले ही उन्ही से कच्ची अमिया वाली का भोग लगवाया,
छुटकी ने तो होली में अपने यहाँ भी मिसराइन भौजी, ( जो स्कूल में उसकी वाइस प्रिंसिपल भी थीं और इन्ही चचिया सास की उमर की रही होंगी तो होली में अपनी सबसे छोटी ननदिया को क्यों छोड़तीं, और रीतू भौजी, होली में ननदें गिन पाती हैं क्या ? और चूत चूसना तो वो अच्छी तरह सीख गयी थी,...
तो पांच छह मिनट में वो जब मेरी चचिया सास को झाड़ने के करीब ले गयी, तभी खड़े खड़े सास ने बहुओं को और बेटियों को इशारा किया बस क्या जाल में गौरैया जकड़ती है , ..और उस का सर मेरी सगी ननद ने पकड़ के मेरी चचिया सास की बिल में जबरदस्त चिपका रखा था, और हड़का भी रही थीं,...
उधर मेरी सास मेरे ,
और चचिया सास मेरी छुटकी बहिनिया के ,
मुझे सिर्फ ननद की आवाज सुनाई दे रही थी हड़काते , पुचकारते,... मुंह बंद करने की कोशिश भी मत करना,... अरे भौजी की बहिनिया,... हाँ शाबास , दो चार बूँद ,... अब तो देख बस तू खाली मुंह खोल के रख, ... एक बूँद भी बाहर नहीं जाना चाहिए, ... वरना मार मार के तेरे चूतड़,... शाबास,... अरे तेरी बड़की बहिनिया ने तो खाली दो चार गिलास पिया था , तुझे तो आज आधी बाल्टी पिलाऊंगी , सीधे कुप्पी से ,
आधी दर्जन से तो ऊपर सास थीं , फिर ननदें
मुझे याद आ रहा था मेरी जेठानी ने कैसे कजरी को , नउनिया की बिटिया छुटकी के उम्र की ही होगी , पटक के यहीं , घल घल ,... और मैंने भी तो अपनी सगी छोटी ननद के ऊपर चढ़ के, मेरी सब जेठानियाँ ललकार रही थी और मैंने सुनहला शरबत,... वही इनकी छोटी बहन जिसकी मेरे ममेरे भाई ने हचक के फाड़ी थी,...
और जब मुंह में,...
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तो एक दो सासें कच्चे टिकोरों का मजा ले रही थींतो कोई सास अगवाड़े ऊँगली कर रही थी दूसरी गाँड़ की गहराई नाप रही थी ,
ननदें भी छुटकी के साथ ही,
और उसे गरिया भी रही थीं
" अरे ऊँगली से उचक रही हो , कल से गाँव भर के हमारे भाई सब एही तोहरी गाँड़ि में गोता लगाएंगे, एक निकालेगा दूसरा डालेगा, दीदी के गाँव आयी हो न सही मौसम में लंड का कोई कमी न होगी , न अगवाड़े , न पिछवाड़े,...
तो कोई मेरी गाँव की सासों को ललकार रही थीं , " हाँ चाची तनी ठीक से नाप जोख कर लीजिये,... कल से आपके बेटवा लोग, अरे इनकी बहिनिया को हमरे गाँव का मोट मस्त लंड पसंद आ गया तो अपनी छुटकी बहिनिया को भी ले आयीं। "
और बस थोड़ी देर बाद उस मौके का फायदा उठा के बस अपनी साड़ी मैंने लपेटी और निकल ली,... किसी से मैंने वायदा किया था,...
……..
चंदू से मैंने वायदा किया था,मेरा रिश्ते से देवर,... गाँव की सब औरतें, ननदें, जेठानियाँ, कामवालियां,... सब उसे सांड़ कहती थीं और ब्रम्हचारी भी,
एक दिन मिश्राइन भाभी ने उसका पूरा किस्सा बताया, गाँव में लौंडो को,.. रेख आयी, टनटनाना शुरू हुआ, दूध मलाई बहनी शुरू हुयी,
सबसे पहले तो कोई कामवाली, घर में खेत में, नेवान कर लेती
उसके बाद भौजाइयां, कितनों के तो मरद परदेस कमाने जाते थे तो आधे समय छूंछियाई रहती थीं, तो कच्ची उमर का देवर,... और एक बार मूसल राज को भोग मिल गया, प्रेम गली में आना जाना शुरू होगया तो, मेरे ससुराल की लड़कियां, ननदें , सब की सब मायके की छटी छिनार,...
मैं तो कहती थी ननद और छिनार पर्यायवाची हैं,... झांटे आने के पहले ही लंड ढूँढ़ना शुरू कर देती थी,...
लेकिन चंदू मेरा देवर सच में सांड़ था, मिश्राइन भौजी बोलीं की जो चार चार बच्चो की माँ, गाँव जवार में जिससे कोई मर्द बचा न हो, ... जब रेख आ रही थी, उस उमर में भी, वो सब भोंसड़ी वाली भी, जितना गौने की रात में न चीखी होंगी उससे ज्यादा,..
कुछ दिन में सब उससे कतराने लगीं, सिर्फ वही कामवालियां , .. उसमें से भी कोई एक नयी लड़की थी, ... कुँवारी तो नहीं,.. लेकिन शादी हो गयी थी, गौना नहीं हुआ था गाँव के दो चार बाबू साहेब चढ़ चुके थे और थी भी शौक़ीन,... बहुत चिल्लाई वो और क्या नहीं कहा, ... चंदू को,...
बस उसी के बाद,...
सिर्फ रमजानिया जो उसके यहाँ काम करती थी उसी से उसकी पटती थी,... उसने बहुत समझाया भी की भैया , चुदवाने से आज तक कोई लौंडियाँ नहीं मरी, स्साली छिनरपना कर रही थी,...
डेढ़ साल से ऊपर हो गए, तब से चंदू लंगोट का पक्का, एकदम ब्रम्हचारी,... लड़कियों औरतों के देख के आँखे नीची कर लेता, कोई भौजाई कुछ बोलती भी , तो बस रास्ता काट के निकल जाता,...
हाँ मेरी बात अलग थी, मुझे देख के खुद साइकिल से उतर के नमस्ते करता, लेकिन मैं भी क्या करती, रिश्ते से भौजाई थी, बिना मज़ाक किये देवर से छोड़ दूँ,... और मज़ाक भी एकदम खुल्ल्म खुल्ला,... वो जवाब तो नहीं देता था,... लेकिन उसके गाल इतने शरम से लाल हो जाते थे की बस यही मन करता था की कचकचा के काट लूँ , सच्ची इतनी तो इस गाँव की कोई लड़की भी नहीं शरमाती,...
मेरी ननदें मुझे चिढ़ाती भीं, चढाती भी ,
एक बोलती की कउनो उर्वशी मेनका आएगी तभी चंदू भैया का ब्रम्हचर्य भंग होगा,... तो दूसरी बोलती, हमार नयकी भौजी कउन उर्वशी मेनका से कम है, भउजी अबकी फागुन में देवर क,...