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Kadve tel se malish toh achi ki hai Imratia neचार बूँद कडुवा तेल
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लेकिन इमरतिया, इमरतिया थी। चाशनी में डूबी, रस में पगी।
और देवर को तड़पाना जानती भी थी और चाहती भी थी, स्साला खुद अपने मुंह से मांगे, बुर बुर करे, तो बस अंगूठे और तर्जनी को तेल में चुपड़ के खूंटे के बेस पे, और सोच के मुस्कराने लगी, अभी थोड़ी देर पहले बुच्ची के हाथ में जो पकड़ाया था दोनों कैसे घबड़ा रहे थे,
यही शरम लाज झिझक तो खतम करवा के पक्का चोदू बना देना है इसे बरात जाने के पहले,
मरद की देह के एक एक नस का, एक एक बटन का पता था इमरतिया को।
कहाँ दबाने से झट्ट खड़ा होता है, कहाँ तेल लगाने से लोहे का खम्भा हो जाता है, और बस वहीँ वो तेल लगा रही थी, दबा रही थी और खूंटा एकदम कुतुबमीनार हो रहा था। लेकिन देवर था एकदम आज्ञाकारी, कल उसने सुपाड़ा खोल के जो हुकुम दिया था, 'एकदम खुला रखना उसको' तो एकदम खुला ही था, चोदने के लिए तैयार। बस गप्प से इमरतिया ने मोटे लाल सुपाड़ा को दबाया, उसने मुंह चियार दिया, और
टप्प, टप्प, टप्प, टप्प, चार बूँद कडुवा तेल की सीधे उसी खुले छेद में, और लुढ़कते पुढ़कते अंदर तक।
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लंड फड़फड़ाने लगा।
और फिर दोनों हथेलियों में तेल लगा के जैसे कोई ग्वालिन मथानी चलाये, उसी तरह और सीधे इमरतिया की मुस्कराती उकसाती आँखे सीधे सूरजु की आँखों में, उसे छेड रही थीं, चिढ़ा रही थी।
सूरजु की आँखें इमरतिया के भारी भारी ३६ साइज के जोबन से चिपकी थीं जो आधे से ज्यादा चोली से छलके पड़ रहे थे
" चाही का, अरे तोहरी महतारी का और बड़ा है, बहुते जोरदार, आज ललचा रहे थे न देख देख के, अरे मांग लो, पिलाय देंगी दूध "
इमरतिया ने सूरजु की माई का नाम लगा के चिढ़ाया लेकिन बातें दोनों सही थीं। सूरजु की माई का ३८ था, लेकिन था एकदम टनक कितनी बार इमरतिया और सूरजु की माई के बीच में दंगल होता था लेकिन जोबन की लड़ाई में सूरजु की माई हरदम बीस पड़ती थीं , अपनी बड़ी बड़ी चूँची से इमरतिया को कुचल देती थीं।
" बल्कि मांगने की बात भी नहीं, ले लेना चाहिए " इमरतिया ने और आग लगायी और सूरजु के दोनों हाथ पकड़ के अपनी चोली पे
और पहलवान के हाथ के बाद चुटपुटिया बटन कहाँ टिकती, चुटपुट चुटपुट चटक के खुल गयी।
ब्लाउज उसी खूंटी पे जहां सुरुजू का तौलिया और इमरतिया की साडी टंगी थीं, और दोनों बड़े बड़े कड़े जोबना सूरजु के हाथ में
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कुंवारे जवान मरद का हाथ पड़ते ही इमरतिया पिघलने लगी , लेकिन ये चाहती भी थी। अब सूरजु का दोनों हाथ लड्डू में फंसा था इमरतिया कोई बदमाशी करती, वो हाथ लगा के रोक नहीं पाता। लेकिन वो साथ साथ सूरजु को सिखा भी रही थीं की नयकी दुलहिनिया को कैसे कचरे।कैसे उसके चोली के अनार को पहली रात में ही मिस मिस के पिसान (आटा ) कर दे,
" अरे ऐसे हलके हलके नहीं , ये कउनो बुच्ची क टिकोरा नहीं है और उस की भी कस के रगड़ना। मेहरारू के मरद के हाथ में सख्ती पसंद है कैसे पहलवान हो ? कहीं तोहार महतारी तो कुल ताकत नहीं निचोड़ ली ?
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और अब सूरजु ने थोड़ा जोर लगा के चूँची मसलना शुरू किया और इमरतिया ने लंड को मुठियाना शुरू किया, लेकिन थोड़ी देर में ही सूरजु बाबू उचकने लगे,
" नहीं भौजी, मोर भौजी, छोड़ दा, छोड़ दा "
खूंटे पे हथेली का दबाव बढ़ाते इमरतिया ने चिढ़ाया, " क्या छोड़ दूँ ? स्साले मादरचोद, नाम लेने में तो तोहार गाँड़ फट रही है का दुलहिनिया को चोदोगे? बोल, का छोडूं, "
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अब सूरजु भी समझ गए थे और सुबह से तो गाँव की औरतें तो खुल के बोल रही थीं और सबसे बढ़ के उनकी माँ और बुआ और उन्ही का नाम ले के और माँ कभी बूआ की गारी का जवाब नहीं देती तो बूआ छेड़तीं,
" का सूरजु क माई,... मुंह में दुलहा क लंड भरा है का जो बोल नहीं निकल रहा है "
तो झिझकते हुए बोल दिया, " भौजी, लंड, हमार लंड, "
" तोहार न हो, हमार हो, तोहरी भौजी के कब्जे में है जहाँ जहाँ भौजी कहिये, वहां वहां घुसी, जेकरे जेकरे बिलिया में जैसे भौजी कहिये, बोलै मंजूर "
" एकदम भौजी " कस कस के चूँची मसलते सुरुजू बाबू बोले और अब वो भी मूड में आ रहे थे और जोड़ा, " लेकिन पहले, ...."
इमरतिया खुश नहीं महा खुस, सूरजु तैयार हैं लेकिन ऐसा इमरतिया के जोबन का जादू पहले यही मिठाई चाहिए देवर को, तो मिलेगी आज ही मिलेगी, दो इंच की चीज के लिए देवर को मना नहीं करेगी, बल्कि वो नहीं कहते खुद ऊपर चढ़ के पेल देती वो
बिन बोले इमरतिया के चेहरे की ओर देख के अपने मन की बात कह दी उन्होंने, और इमरतिया ने मुस्करा के हामी भर दी और खूंटा छोड़ भी दिया, वो डर समझ रही थीं, जो हर कुंवारे लड़के के मन में होता है, ' कहीं जल्दी न झड़ जाऊं " और वो जानती थीं की ये लम्बी रेस का घोडा है लेकिन उसे अभी खुद अपनी ताकत का अहसास नहीं है, किस स्पीड से दौड़ेगा, कितनी देर तक दौड़ेगा, दो चार पर इसे चढ़ाना जरूरी है ,
फिर भी खूंटा उसने छोड़ दिया लेकिन इमरतिया के तरकश में बहुत तीर थे।
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खूंटा छोड़ के उसने रसगुल्लों में तेल लगाना शुरू किया, मलाई का कारखाना यही तो थे, यही तो दुलहिनिया को पहली रात को गाभिन करेंगे और सबेरे चादर पर खून के साथ इसी की मलाई बहती मिलेगी, जब छोटी कुँवारी ननदें जाएंगी उठाने। और फिर हथेली से सुपाड़ी पे
असली खेल था सुपाड़े को एकदम तगड़ा, पत्थर ऐसा करना, भाला कितना लम्बा हो लेकिन अगर उसका फल भोथरा हो तो शिकार कैसे करेगा। और सूरजु देवर का सुपाड़ा तो एकदम ही मोटा, एकदम मुट्ठी ऐसा, बुच्चीया यही तो सोच के घबड़ा रही थीं, भैया क इतना मोत कैसे घुसी, और एक बार सुपाड़ा घुस जाए तो फिर लंड तो घुस ही जाता है।
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सूरजु सिसक रहे थे और इमरतिया ने बुच्ची की बात चलाई, " हे तोर बहिनिया, बुच्ची पकडे थीं तो कैसा लग रहा था ?
" अरे भौजी, आप जबरे उसकी मुट्ठी में पकड़ा दी थीं " हँसते हुए सूरजु बोले।
और एक बार फिर से हथेली में तेल चुपड़ के कस के खूंटा दबोच लिया, इमरतिया ने।
वास्तव में बहुत मोटा था, जब इमरतिया की मुट्ठी में नहीं समा रहा था तो नयकी दुलहिनिया की कोरी कच्ची बिलिया में कैसे धँसेगा ? इमरतिया मुस्करायी। चाहे जितनी रोई रोहट हो, चिल्ल पों करे, घोंटना तो पड़ेगा ही और वो भी जड़ तक। और ओकरे पहले बुच्ची ननदिया को।









