शानदार अपडेट कोमल जी
कहानी में सांझ
गुरुआइन,
" बोल स्साले, अपनी माई के भतार, पेलेगा न बुच्ची को आज तो वो खुदे हाँ कर के गयी है "
हलके हलके मुठियाते इमरतिया बोली। अब सूरजु की झिझक थोड़ी कम हो रही थीं, कस कस के इमरतिया की चूँची मसलते बोला,
" लेकिन भौजी बुच्चिया बोली थीं की पहले, ////और आप भी हाँ की थीं "
" तो चलो तुंही दोनों लोगों की बात रहेगी , उसके बाद तो नंबर लगाओगे न अपनी छुटकी बहिनिया पे, तो चलो सोचो बुच्चिया की बुरिया में पेल रहे हो, अरे जैसे उसकी कसी, टाइट है, वैसे तोहरे दुलहिनिया की भी कसी होगी और दरवजा बंद होने के घंटे भर के अंदर, फाड़ फूड़ के चिथड़ा करनी होगी, नहीं तो तोहार तो नाक कटी ही हमार और तोहरी माई की भी नाक कटेगी। तो समझो बुच्ची की बुरिया में पेलना है, लगाओ नीचे से धक्का कस के "
और सच में सूरजु ने नीचे से कस के धक्का मारा।
इमरतिया ने पकड़ बढ़ा दी, और कसी कर दी, सूरजु ने और जोर लगाया / कभी इमरतिया कस के मुठियाती और कभी मुठियाना बंद कर के सूरजु को बोलती,
" पेल स्साले बुचिया की बुर में "
और सुरजू आँखे बंद कर के पूरी ताकत से चूतड़ के जोर से धक्का मारता लेकिन इमरतिया की पकड़, एकदम रगड़ते, घिसते
पांच दस मिनट में वो बोलने लगा,
" अरे भौजी छोड़ दो, गिर जाएगा, भौजी, मोर भौजी,.... रुकेगा नहीं "
इमरतिया सोच रही थीं स्साला और कितनी देर रुकेगा। हाथ कल्ला रहा था , दस पंद्रह मिनट से ऊपर हो गए थे पूरी ताकत से मुट्ठ मारते एक से एक कड़ियल जवान भी चुदाई में सात आठ मिनट के ऊपर नहीं रुकता और ये,
" तो झड़ जाने दे न, अरे हमरे देवर क लंड है। झड़ जाएगा तो फिर पानी भर उठेगा। आँख बंद कर के सोच बुच्ची क बुर में आपन पानी छोड़ रहा है " वो बोली और अपनी एक चूँची उसने सीधे सुरजू के मुंह में डाल दी और दूसरे को उसकी हाथ में पकड़ा के जोर जोर से बोलने लगी
" पेल न, और कस के चोद दे, झाड़ दे, झड़ जा बुच्ची की बुरिया में हाँ हाँ "
लग रहा था अब निकला तब निकला, इमरतिया तैयार थीं लेकिन तब भी चार पांच मिनट और मुठियाने के बाद, जैसे कोई फव्वारा छूटा हो,
लेकिन इमरतिया पहले से तैयार थीं, मिटटी के सकोरे को लेकर और एक एक बूँद उसमे रोप लिया।
पर वो जानती थीं अभी बहुत मलाई बची है अंदर, तो सुपाड़े को हलके से दबा दबा के, फिर से जो बूँद बूँद निकला वो भी उसी में और फिर सुपाड़े और आसपास जो लगा था उसे हाथ से काँछ के उसी सकोरे में, और वो गाढ़ी सफ़ेद बूंदे लुढ़क के सकोरे के अंदर,
यही समय होता है सम्हालने का, और एक अनुभवी खिलाड़ी की तरह बिना कुछ बोले, बस हलके हलके सहलाते पुचकारते शेर को छोड़ दिया।
यह समय मरद का होता है चार पांच मिनट सुस्ताने के, उन पलों का मजा लेना का और उस समय वो सिर्फ हल्का स्पर्श सुख चाहता है तो बस इमरतिया सुरजू को पकडे रही और फिर पांच मिनट बाद, बिन बोले, बुकवा का कटोरा उठाया और पैर के पंजे के पास बस हलके हलके पंजो में पहले बुकवा लगाना शुरू किया फिर पैरों में और बात शुरू की, पहले अखाड़े के बारे में, सुरजू के दंगल जीतने के बारे में, सेक्स के बारे में एकदम नहीं, जिससे वो सहज हो जाए, और फिर बात धीरे धीरे मोड़ दी।
' देवर कभी किसी का पेटीकोट का नाडा खोले हो "?
सुरुजू अभी भी शरमाते झिझकते थे लेकिन इमरतिया से धीरे धीरे खुल रहे थे, बोले,
" का भौजी, आप भी न। गुरु जी लंगोटे की, अखाड़े की कसम धराये थे, माई के अलावा कउनो औरत की परछाई से भी दूर रहना, मतलब छूना भी नहीं, तो जब बियाह तय हुआ तो माई बोलीं की पहले अपने गुरु जी से बोल के आवा तो वो हंस के बोले,
' माई का हुकुम, गुरु से भी ऊपर। मेरे लिए भी माई ही हैं तोहार माई। तो चलो आज से अपने कसम से तोहें आजाद किये और तिलक के एक दिन पहले आना, माई से बता देना वो समझ जाएंगी।"
तो तिलक के एक दिन पहले जो हम गए तो आखिर बार अखाड़े में उतरे, ओहि मिटटी से हमारा तिलक किये और एक लुंगी दिए, बोले
"अब लंगोट खोल के ये लुंगी पहन लो। आज से लंगोट से आजाद हो, लंगोट की शर्त से आजाद हो। लेकिन अब अखाड़े की ये मिटटी में उतर के दंगल नहीं लड़ सकते हो, हाँ तोहार घर है, आओ कुश्ती देखो, नए नए लौंडो को दांव पेंच समझाओ, पर लंगोट की कसम से आजाद हो। लेकिन हमारा आशीर्वाद है की जिस तरह इस अखाड़े में हर दंगल जीते हो, तुम्हारी माई की कृपा से जिंदगी के अखाड़े में भी हर दंगल जीतो, हाँ वहां के लिए तुन्हे अलग गुरु चाहिए होगा। "
" तो मिली कउनो गुरुआइन " आँखों से चिढ़ाते, उकसाते इमरतिया ने पुछा और अब बुकवा लगाते हाथ जाँघों तक पहुँच गए थे ,
"भौजाई से बड़ी कौन गुरुआइन, ऊपर से माई क हुकुम, भौजी क कुल बात मानना "
हँसते हुए सूरजु ने मजाक किया। और इमरतिया फिर बात पेटीकोट के नाड़े पे ले आयी और बोली
" अइसन नौसिखिया अनाड़ी देवर, अब सिखाना तो पड़ेगा ही, तो ये समझ लो की कोहबर में सलहज कुल पहले यही जांचेगी की नन्दोई उन्हें पेटीकोट का नाड़ा खोल पाते हैं की नहीं। तो पहला काम तोहें ये देंगे की आँख बंद करके बाएं हाथ से एक गाँठ खोलो, नहीं खोलोगे तो बहिन महतारी कुल गरियाई जाएंगी "
लेकिन ये बाएं हाथ से काहें भौजी " सूरजु को भी अब मजा आ रहा था, थे वो क्विक लर्नर लेकिन इस सब बातों से अभी पाला नहीं पड़ा था वरना समझाने की जरूररत नहीं पड़ती।
" अरे हमार बुद्धू देवर कभी लौंडिया चोदे होते तो पूछते नहीं, अच्छा ये बताओ, हमार चोली कौन हाथे से खोले थे दाएं की बाएं "
" दाएं हाथ से भौजी " सूरजु बोले।
" बस तो पहली रात में तो दायें हाथ से तो दूल्हा दुल्हिन की चोली खोलने के चक्कर में रहता है और दुल्हन उसे खोलने नहीं देती। अपने दोनों हाथों से उसका दाए हाथ पकड़ के हटाती है। तो बस सोचो दूल्हा का करेगा ? "
" बाएं हाथ से पेटीकोट क नाड़ा " हँसते हुए सुरजू देवर भौजी से बोले, और अब भौजी का हाथ क बुकवा हलके हलके खूंटा पे
" एकदम, चलो कुछ तो समझे, और दुल्हन का महतारी, भौजाई, तोहार सलहज कुल उसको सीखा के भेजेंगी की सात गाँठ लगा के पेटीकोट का नाड़ा बांधना, और वो भी न खाली बाएं हाथ से खोलना होगा बल्कि अँधेरे में। रौशनी में तोहार दुलहिनिया पास नहीं आने देगी। पहले बोलेगी की रौशनी एकदम बंद करो। इसलिए अँधेरे में बाएं हाथ से तो वही जांचने के लिए सलहज सब गाँठ बाँध के देंगी आँख बंद कर के बाये हाथ से खोलने के लिए "
इमरतिया एक एक दांव पेंच सूरजु देवर को समझा रही थी, पहले थ्योरी फिर प्रैक्टिकल, तभी तो देवर पक्का होगा, बिआइह के पहले नंबरी चोदू बनाना है इसको
" तो कैसे हो पायेगा " सुरजू के समझ में नहीं आया।
" अरे कैसी नहीं हो पायेगा, हमर देवर हो, मजाक है। चोद चोद के पहली रात को रख देगा उनकी ननद को। देखो एक तरीका तो यही है दाएं से चोली और बाएं से पेटीकोट लेकिन जब वो पेटीकोट का हाथ रोकने लगे तो बस पेटीकोट छोड़ के दोनों हाथ से चोली खोल दो।
फिर दस पन्दरह मिनट पे दोनों जुबना का रस लो, छू के सहला के चूम के , जब थोड़ी गरमा जाए तो एक साथ ही दोनों हाथ एक हाथ से पकड़ लो और कुछ देर तक और कुछ नहीं , वो छुड़ाने की कोशिश कर के थक जायेगी , फिर दूसरे हाथ से , बाएं हाथ पेटीकोट क नाड़ा, और नाड़ा खोलना नहीं सीधे निकाल के दूर फेंक दो। जिससे दुबारा पकड़ के चढ़ा के बाँध न ले।"
सुरजू बहुत ध्यान से बिस्तर के अखाड़े के दांव पेंच समझ रहा था, और इस खेल की जबरदस्त खिलाड़न इमरतिया उसको सब गुर सिखा रही थी।
" लेकिन ये मत समझो की भरतपुर इतनी आसानी से लूट लोगे। उसको भी उसकी भौजाई, घर की नाउन, माई मौसी सिखा रही होंगी। दोनों गोड़ में गोड़ फंसा के बाँध लेगी जिससे भले नाड़ा खुल जाए, लेकिन पेटीकोट उतर न पाए। फिर शहर वाली है तो पेटीकोट के नीचे भी का पता चड्ढी पहनती हो, या उस दिन जानबूझ के पहने। दूसरी बात, पेटीकोट की गाँठ, एक गाँठ नहीं भौजाई सब सिखा के भेजेंगी, सात सात गाँठ, और न खोल पाए, तो अगले दिन जब तोहार बहिनिया सब हाल चाल पूछेंगी न तो न हंस के वही चिढ़ाएगी,
' तोहार भाई तो पूरी रात लगा दिए, मुर्गा बोलने लगा, गाँठ खोलने में तो का कर पाते बेचारे। तुम सब कुछ सिखाये पढ़ाये नहीं थीं का।"
और उससे ज्यादा तोहार सास अपनी समधन का, तोहरी माई क चिढ़ाएँगी,
' बेटवा जिन्नगी भर पहलवानी करता रह गया और हमार बिटिया जाए के,... रात भर,.... नाड़ा क गाँठ ढूंढे में लग गयी, "
अब भौजी सीने पे हाथ पे बुकवा लगी रही थीं फिर ढेर सारा बुकवा लेके जो थोड़ा सोया थोड़ा जाएगा मूसल था उसके ऊपर, और बस हलके हलके लें भौजाई की उँगलियों की छुअन लेकिन इतना काफी था, वो फिर से फुफकारने लगा।
सुरजू भौजी के गदराये जोबना को निहार रहा था, लालटेन की हलकी हलकी पीली रौशनी, जमीन पर छितरायी थी। गोरा चम्पई मुखा, छोटी सी नथ, बड़ी सी बिंदी, लाल लाल खूब भरे रसीले होंठ,
" क्यों खोलना है नाड़ा " भौजी एकदम उसके सीने पे चढ़ी, अपने पेटीकोट का नाड़ा दिखा रही थीं,
शानदार अपडेट कोमल मैम
गुरुआइन,
" बोल स्साले, अपनी माई के भतार, पेलेगा न बुच्ची को आज तो वो खुदे हाँ कर के गयी है "
हलके हलके मुठियाते इमरतिया बोली। अब सूरजु की झिझक थोड़ी कम हो रही थीं, कस कस के इमरतिया की चूँची मसलते बोला,
" लेकिन भौजी बुच्चिया बोली थीं की पहले, ////और आप भी हाँ की थीं "
" तो चलो तुंही दोनों लोगों की बात रहेगी , उसके बाद तो नंबर लगाओगे न अपनी छुटकी बहिनिया पे, तो चलो सोचो बुच्चिया की बुरिया में पेल रहे हो, अरे जैसे उसकी कसी, टाइट है, वैसे तोहरे दुलहिनिया की भी कसी होगी और दरवजा बंद होने के घंटे भर के अंदर, फाड़ फूड़ के चिथड़ा करनी होगी, नहीं तो तोहार तो नाक कटी ही हमार और तोहरी माई की भी नाक कटेगी। तो समझो बुच्ची की बुरिया में पेलना है, लगाओ नीचे से धक्का कस के "
और सच में सूरजु ने नीचे से कस के धक्का मारा।
इमरतिया ने पकड़ बढ़ा दी, और कसी कर दी, सूरजु ने और जोर लगाया / कभी इमरतिया कस के मुठियाती और कभी मुठियाना बंद कर के सूरजु को बोलती,
" पेल स्साले बुचिया की बुर में "
और सुरजू आँखे बंद कर के पूरी ताकत से चूतड़ के जोर से धक्का मारता लेकिन इमरतिया की पकड़, एकदम रगड़ते, घिसते
पांच दस मिनट में वो बोलने लगा,
" अरे भौजी छोड़ दो, गिर जाएगा, भौजी, मोर भौजी,.... रुकेगा नहीं "
इमरतिया सोच रही थीं स्साला और कितनी देर रुकेगा। हाथ कल्ला रहा था , दस पंद्रह मिनट से ऊपर हो गए थे पूरी ताकत से मुट्ठ मारते एक से एक कड़ियल जवान भी चुदाई में सात आठ मिनट के ऊपर नहीं रुकता और ये,
" तो झड़ जाने दे न, अरे हमरे देवर क लंड है। झड़ जाएगा तो फिर पानी भर उठेगा। आँख बंद कर के सोच बुच्ची क बुर में आपन पानी छोड़ रहा है " वो बोली और अपनी एक चूँची उसने सीधे सुरजू के मुंह में डाल दी और दूसरे को उसकी हाथ में पकड़ा के जोर जोर से बोलने लगी
" पेल न, और कस के चोद दे, झाड़ दे, झड़ जा बुच्ची की बुरिया में हाँ हाँ "
लग रहा था अब निकला तब निकला, इमरतिया तैयार थीं लेकिन तब भी चार पांच मिनट और मुठियाने के बाद, जैसे कोई फव्वारा छूटा हो,
लेकिन इमरतिया पहले से तैयार थीं, मिटटी के सकोरे को लेकर और एक एक बूँद उसमे रोप लिया।
पर वो जानती थीं अभी बहुत मलाई बची है अंदर, तो सुपाड़े को हलके से दबा दबा के, फिर से जो बूँद बूँद निकला वो भी उसी में और फिर सुपाड़े और आसपास जो लगा था उसे हाथ से काँछ के उसी सकोरे में, और वो गाढ़ी सफ़ेद बूंदे लुढ़क के सकोरे के अंदर,
यही समय होता है सम्हालने का, और एक अनुभवी खिलाड़ी की तरह बिना कुछ बोले, बस हलके हलके सहलाते पुचकारते शेर को छोड़ दिया।
यह समय मरद का होता है चार पांच मिनट सुस्ताने के, उन पलों का मजा लेना का और उस समय वो सिर्फ हल्का स्पर्श सुख चाहता है तो बस इमरतिया सुरजू को पकडे रही और फिर पांच मिनट बाद, बिन बोले, बुकवा का कटोरा उठाया और पैर के पंजे के पास बस हलके हलके पंजो में पहले बुकवा लगाना शुरू किया फिर पैरों में और बात शुरू की, पहले अखाड़े के बारे में, सुरजू के दंगल जीतने के बारे में, सेक्स के बारे में एकदम नहीं, जिससे वो सहज हो जाए, और फिर बात धीरे धीरे मोड़ दी।
' देवर कभी किसी का पेटीकोट का नाडा खोले हो "?
सुरुजू अभी भी शरमाते झिझकते थे लेकिन इमरतिया से धीरे धीरे खुल रहे थे, बोले,
" का भौजी, आप भी न। गुरु जी लंगोटे की, अखाड़े की कसम धराये थे, माई के अलावा कउनो औरत की परछाई से भी दूर रहना, मतलब छूना भी नहीं, तो जब बियाह तय हुआ तो माई बोलीं की पहले अपने गुरु जी से बोल के आवा तो वो हंस के बोले,
' माई का हुकुम, गुरु से भी ऊपर। मेरे लिए भी माई ही हैं तोहार माई। तो चलो आज से अपने कसम से तोहें आजाद किये और तिलक के एक दिन पहले आना, माई से बता देना वो समझ जाएंगी।"
तो तिलक के एक दिन पहले जो हम गए तो आखिर बार अखाड़े में उतरे, ओहि मिटटी से हमारा तिलक किये और एक लुंगी दिए, बोले
"अब लंगोट खोल के ये लुंगी पहन लो। आज से लंगोट से आजाद हो, लंगोट की शर्त से आजाद हो। लेकिन अब अखाड़े की ये मिटटी में उतर के दंगल नहीं लड़ सकते हो, हाँ तोहार घर है, आओ कुश्ती देखो, नए नए लौंडो को दांव पेंच समझाओ, पर लंगोट की कसम से आजाद हो। लेकिन हमारा आशीर्वाद है की जिस तरह इस अखाड़े में हर दंगल जीते हो, तुम्हारी माई की कृपा से जिंदगी के अखाड़े में भी हर दंगल जीतो, हाँ वहां के लिए तुन्हे अलग गुरु चाहिए होगा। "
" तो मिली कउनो गुरुआइन " आँखों से चिढ़ाते, उकसाते इमरतिया ने पुछा और अब बुकवा लगाते हाथ जाँघों तक पहुँच गए थे ,
"भौजाई से बड़ी कौन गुरुआइन, ऊपर से माई क हुकुम, भौजी क कुल बात मानना "
हँसते हुए सूरजु ने मजाक किया। और इमरतिया फिर बात पेटीकोट के नाड़े पे ले आयी और बोली
" अइसन नौसिखिया अनाड़ी देवर, अब सिखाना तो पड़ेगा ही, तो ये समझ लो की कोहबर में सलहज कुल पहले यही जांचेगी की नन्दोई उन्हें पेटीकोट का नाड़ा खोल पाते हैं की नहीं। तो पहला काम तोहें ये देंगे की आँख बंद करके बाएं हाथ से एक गाँठ खोलो, नहीं खोलोगे तो बहिन महतारी कुल गरियाई जाएंगी "
लेकिन ये बाएं हाथ से काहें भौजी " सूरजु को भी अब मजा आ रहा था, थे वो क्विक लर्नर लेकिन इस सब बातों से अभी पाला नहीं पड़ा था वरना समझाने की जरूररत नहीं पड़ती।
" अरे हमार बुद्धू देवर कभी लौंडिया चोदे होते तो पूछते नहीं, अच्छा ये बताओ, हमार चोली कौन हाथे से खोले थे दाएं की बाएं "
" दाएं हाथ से भौजी " सूरजु बोले।
" बस तो पहली रात में तो दायें हाथ से तो दूल्हा दुल्हिन की चोली खोलने के चक्कर में रहता है और दुल्हन उसे खोलने नहीं देती। अपने दोनों हाथों से उसका दाए हाथ पकड़ के हटाती है। तो बस सोचो दूल्हा का करेगा ? "
" बाएं हाथ से पेटीकोट क नाड़ा " हँसते हुए सुरजू देवर भौजी से बोले, और अब भौजी का हाथ क बुकवा हलके हलके खूंटा पे
" एकदम, चलो कुछ तो समझे, और दुल्हन का महतारी, भौजाई, तोहार सलहज कुल उसको सीखा के भेजेंगी की सात गाँठ लगा के पेटीकोट का नाड़ा बांधना, और वो भी न खाली बाएं हाथ से खोलना होगा बल्कि अँधेरे में। रौशनी में तोहार दुलहिनिया पास नहीं आने देगी। पहले बोलेगी की रौशनी एकदम बंद करो। इसलिए अँधेरे में बाएं हाथ से तो वही जांचने के लिए सलहज सब गाँठ बाँध के देंगी आँख बंद कर के बाये हाथ से खोलने के लिए "
इमरतिया एक एक दांव पेंच सूरजु देवर को समझा रही थी, पहले थ्योरी फिर प्रैक्टिकल, तभी तो देवर पक्का होगा, बिआइह के पहले नंबरी चोदू बनाना है इसको
" तो कैसे हो पायेगा " सुरजू के समझ में नहीं आया।
" अरे कैसी नहीं हो पायेगा, हमर देवर हो, मजाक है। चोद चोद के पहली रात को रख देगा उनकी ननद को। देखो एक तरीका तो यही है दाएं से चोली और बाएं से पेटीकोट लेकिन जब वो पेटीकोट का हाथ रोकने लगे तो बस पेटीकोट छोड़ के दोनों हाथ से चोली खोल दो।
फिर दस पन्दरह मिनट पे दोनों जुबना का रस लो, छू के सहला के चूम के , जब थोड़ी गरमा जाए तो एक साथ ही दोनों हाथ एक हाथ से पकड़ लो और कुछ देर तक और कुछ नहीं , वो छुड़ाने की कोशिश कर के थक जायेगी , फिर दूसरे हाथ से , बाएं हाथ पेटीकोट क नाड़ा, और नाड़ा खोलना नहीं सीधे निकाल के दूर फेंक दो। जिससे दुबारा पकड़ के चढ़ा के बाँध न ले।"
सुरजू बहुत ध्यान से बिस्तर के अखाड़े के दांव पेंच समझ रहा था, और इस खेल की जबरदस्त खिलाड़न इमरतिया उसको सब गुर सिखा रही थी।
" लेकिन ये मत समझो की भरतपुर इतनी आसानी से लूट लोगे। उसको भी उसकी भौजाई, घर की नाउन, माई मौसी सिखा रही होंगी। दोनों गोड़ में गोड़ फंसा के बाँध लेगी जिससे भले नाड़ा खुल जाए, लेकिन पेटीकोट उतर न पाए। फिर शहर वाली है तो पेटीकोट के नीचे भी का पता चड्ढी पहनती हो, या उस दिन जानबूझ के पहने। दूसरी बात, पेटीकोट की गाँठ, एक गाँठ नहीं भौजाई सब सिखा के भेजेंगी, सात सात गाँठ, और न खोल पाए, तो अगले दिन जब तोहार बहिनिया सब हाल चाल पूछेंगी न तो न हंस के वही चिढ़ाएगी,
' तोहार भाई तो पूरी रात लगा दिए, मुर्गा बोलने लगा, गाँठ खोलने में तो का कर पाते बेचारे। तुम सब कुछ सिखाये पढ़ाये नहीं थीं का।"
और उससे ज्यादा तोहार सास अपनी समधन का, तोहरी माई क चिढ़ाएँगी,
' बेटवा जिन्नगी भर पहलवानी करता रह गया और हमार बिटिया जाए के,... रात भर,.... नाड़ा क गाँठ ढूंढे में लग गयी, "
अब भौजी सीने पे हाथ पे बुकवा लगी रही थीं फिर ढेर सारा बुकवा लेके जो थोड़ा सोया थोड़ा जाएगा मूसल था उसके ऊपर, और बस हलके हलके लें भौजाई की उँगलियों की छुअन लेकिन इतना काफी था, वो फिर से फुफकारने लगा।
सुरजू भौजी के गदराये जोबना को निहार रहा था, लालटेन की हलकी हलकी पीली रौशनी, जमीन पर छितरायी थी। गोरा चम्पई मुखा, छोटी सी नथ, बड़ी सी बिंदी, लाल लाल खूब भरे रसीले होंठ,
" क्यों खोलना है नाड़ा " भौजी एकदम उसके सीने पे चढ़ी, अपने पेटीकोट का नाड़ा दिखा रही थीं,
शानदार अपडेट कोमल मैम
आपके सांझ के गीतों शेयर किए गए वीडियो देखे और सुने भी। विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले ये गीत अन्य गीतों से थोड़े अलग है।
जहां विवाह के अन्य गीत तेज और भड़कीले होते हैं वहीं सांझ गीत थोड़े धीमे होते हैं बिल्कुल धीमी आंच की तरह जो देर तक बनी रहती हैं, क्षमा करें ये मेरा आंकलन है।
लेकिन सांझ गीत माहौल बना देते हैं कि घर में मंगल कार्य हो रहा है।
रही कहानी के इस अपडेट की तो आपकी वही भौजी जैसी शरारत, बस ऐसी जगह रोको की व्यक्ति छनछनाता रहे।
सादर
गुरुआइन,
" बोल स्साले, अपनी माई के भतार, पेलेगा न बुच्ची को आज तो वो खुदे हाँ कर के गयी है "
हलके हलके मुठियाते इमरतिया बोली। अब सूरजु की झिझक थोड़ी कम हो रही थीं, कस कस के इमरतिया की चूँची मसलते बोला,
" लेकिन भौजी बुच्चिया बोली थीं की पहले, ////और आप भी हाँ की थीं "
" तो चलो तुंही दोनों लोगों की बात रहेगी , उसके बाद तो नंबर लगाओगे न अपनी छुटकी बहिनिया पे, तो चलो सोचो बुच्चिया की बुरिया में पेल रहे हो, अरे जैसे उसकी कसी, टाइट है, वैसे तोहरे दुलहिनिया की भी कसी होगी और दरवजा बंद होने के घंटे भर के अंदर, फाड़ फूड़ के चिथड़ा करनी होगी, नहीं तो तोहार तो नाक कटी ही हमार और तोहरी माई की भी नाक कटेगी। तो समझो बुच्ची की बुरिया में पेलना है, लगाओ नीचे से धक्का कस के "
और सच में सूरजु ने नीचे से कस के धक्का मारा।
इमरतिया ने पकड़ बढ़ा दी, और कसी कर दी, सूरजु ने और जोर लगाया / कभी इमरतिया कस के मुठियाती और कभी मुठियाना बंद कर के सूरजु को बोलती,
" पेल स्साले बुचिया की बुर में "
और सुरजू आँखे बंद कर के पूरी ताकत से चूतड़ के जोर से धक्का मारता लेकिन इमरतिया की पकड़, एकदम रगड़ते, घिसते
पांच दस मिनट में वो बोलने लगा,
" अरे भौजी छोड़ दो, गिर जाएगा, भौजी, मोर भौजी,.... रुकेगा नहीं "
इमरतिया सोच रही थीं स्साला और कितनी देर रुकेगा। हाथ कल्ला रहा था , दस पंद्रह मिनट से ऊपर हो गए थे पूरी ताकत से मुट्ठ मारते एक से एक कड़ियल जवान भी चुदाई में सात आठ मिनट के ऊपर नहीं रुकता और ये,
" तो झड़ जाने दे न, अरे हमरे देवर क लंड है। झड़ जाएगा तो फिर पानी भर उठेगा। आँख बंद कर के सोच बुच्ची क बुर में आपन पानी छोड़ रहा है " वो बोली और अपनी एक चूँची उसने सीधे सुरजू के मुंह में डाल दी और दूसरे को उसकी हाथ में पकड़ा के जोर जोर से बोलने लगी
" पेल न, और कस के चोद दे, झाड़ दे, झड़ जा बुच्ची की बुरिया में हाँ हाँ "
लग रहा था अब निकला तब निकला, इमरतिया तैयार थीं लेकिन तब भी चार पांच मिनट और मुठियाने के बाद, जैसे कोई फव्वारा छूटा हो,
लेकिन इमरतिया पहले से तैयार थीं, मिटटी के सकोरे को लेकर और एक एक बूँद उसमे रोप लिया।
पर वो जानती थीं अभी बहुत मलाई बची है अंदर, तो सुपाड़े को हलके से दबा दबा के, फिर से जो बूँद बूँद निकला वो भी उसी में और फिर सुपाड़े और आसपास जो लगा था उसे हाथ से काँछ के उसी सकोरे में, और वो गाढ़ी सफ़ेद बूंदे लुढ़क के सकोरे के अंदर,
यही समय होता है सम्हालने का, और एक अनुभवी खिलाड़ी की तरह बिना कुछ बोले, बस हलके हलके सहलाते पुचकारते शेर को छोड़ दिया।
यह समय मरद का होता है चार पांच मिनट सुस्ताने के, उन पलों का मजा लेना का और उस समय वो सिर्फ हल्का स्पर्श सुख चाहता है तो बस इमरतिया सुरजू को पकडे रही और फिर पांच मिनट बाद, बिन बोले, बुकवा का कटोरा उठाया और पैर के पंजे के पास बस हलके हलके पंजो में पहले बुकवा लगाना शुरू किया फिर पैरों में और बात शुरू की, पहले अखाड़े के बारे में, सुरजू के दंगल जीतने के बारे में, सेक्स के बारे में एकदम नहीं, जिससे वो सहज हो जाए, और फिर बात धीरे धीरे मोड़ दी।
' देवर कभी किसी का पेटीकोट का नाडा खोले हो "?
सुरुजू अभी भी शरमाते झिझकते थे लेकिन इमरतिया से धीरे धीरे खुल रहे थे, बोले,
" का भौजी, आप भी न। गुरु जी लंगोटे की, अखाड़े की कसम धराये थे, माई के अलावा कउनो औरत की परछाई से भी दूर रहना, मतलब छूना भी नहीं, तो जब बियाह तय हुआ तो माई बोलीं की पहले अपने गुरु जी से बोल के आवा तो वो हंस के बोले,
' माई का हुकुम, गुरु से भी ऊपर। मेरे लिए भी माई ही हैं तोहार माई। तो चलो आज से अपने कसम से तोहें आजाद किये और तिलक के एक दिन पहले आना, माई से बता देना वो समझ जाएंगी।"
तो तिलक के एक दिन पहले जो हम गए तो आखिर बार अखाड़े में उतरे, ओहि मिटटी से हमारा तिलक किये और एक लुंगी दिए, बोले
"अब लंगोट खोल के ये लुंगी पहन लो। आज से लंगोट से आजाद हो, लंगोट की शर्त से आजाद हो। लेकिन अब अखाड़े की ये मिटटी में उतर के दंगल नहीं लड़ सकते हो, हाँ तोहार घर है, आओ कुश्ती देखो, नए नए लौंडो को दांव पेंच समझाओ, पर लंगोट की कसम से आजाद हो। लेकिन हमारा आशीर्वाद है की जिस तरह इस अखाड़े में हर दंगल जीते हो, तुम्हारी माई की कृपा से जिंदगी के अखाड़े में भी हर दंगल जीतो, हाँ वहां के लिए तुन्हे अलग गुरु चाहिए होगा। "
" तो मिली कउनो गुरुआइन " आँखों से चिढ़ाते, उकसाते इमरतिया ने पुछा और अब बुकवा लगाते हाथ जाँघों तक पहुँच गए थे ,
"भौजाई से बड़ी कौन गुरुआइन, ऊपर से माई क हुकुम, भौजी क कुल बात मानना "
हँसते हुए सूरजु ने मजाक किया। और इमरतिया फिर बात पेटीकोट के नाड़े पे ले आयी और बोली
" अइसन नौसिखिया अनाड़ी देवर, अब सिखाना तो पड़ेगा ही, तो ये समझ लो की कोहबर में सलहज कुल पहले यही जांचेगी की नन्दोई उन्हें पेटीकोट का नाड़ा खोल पाते हैं की नहीं। तो पहला काम तोहें ये देंगे की आँख बंद करके बाएं हाथ से एक गाँठ खोलो, नहीं खोलोगे तो बहिन महतारी कुल गरियाई जाएंगी "
लेकिन ये बाएं हाथ से काहें भौजी " सूरजु को भी अब मजा आ रहा था, थे वो क्विक लर्नर लेकिन इस सब बातों से अभी पाला नहीं पड़ा था वरना समझाने की जरूररत नहीं पड़ती।
" अरे हमार बुद्धू देवर कभी लौंडिया चोदे होते तो पूछते नहीं, अच्छा ये बताओ, हमार चोली कौन हाथे से खोले थे दाएं की बाएं "
" दाएं हाथ से भौजी " सूरजु बोले।
" बस तो पहली रात में तो दायें हाथ से तो दूल्हा दुल्हिन की चोली खोलने के चक्कर में रहता है और दुल्हन उसे खोलने नहीं देती। अपने दोनों हाथों से उसका दाए हाथ पकड़ के हटाती है। तो बस सोचो दूल्हा का करेगा ? "
" बाएं हाथ से पेटीकोट क नाड़ा " हँसते हुए सुरजू देवर भौजी से बोले, और अब भौजी का हाथ क बुकवा हलके हलके खूंटा पे
" एकदम, चलो कुछ तो समझे, और दुल्हन का महतारी, भौजाई, तोहार सलहज कुल उसको सीखा के भेजेंगी की सात गाँठ लगा के पेटीकोट का नाड़ा बांधना, और वो भी न खाली बाएं हाथ से खोलना होगा बल्कि अँधेरे में। रौशनी में तोहार दुलहिनिया पास नहीं आने देगी। पहले बोलेगी की रौशनी एकदम बंद करो। इसलिए अँधेरे में बाएं हाथ से तो वही जांचने के लिए सलहज सब गाँठ बाँध के देंगी आँख बंद कर के बाये हाथ से खोलने के लिए "
इमरतिया एक एक दांव पेंच सूरजु देवर को समझा रही थी, पहले थ्योरी फिर प्रैक्टिकल, तभी तो देवर पक्का होगा, बिआइह के पहले नंबरी चोदू बनाना है इसको
" तो कैसे हो पायेगा " सुरजू के समझ में नहीं आया।
" अरे कैसी नहीं हो पायेगा, हमर देवर हो, मजाक है। चोद चोद के पहली रात को रख देगा उनकी ननद को। देखो एक तरीका तो यही है दाएं से चोली और बाएं से पेटीकोट लेकिन जब वो पेटीकोट का हाथ रोकने लगे तो बस पेटीकोट छोड़ के दोनों हाथ से चोली खोल दो।
फिर दस पन्दरह मिनट पे दोनों जुबना का रस लो, छू के सहला के चूम के , जब थोड़ी गरमा जाए तो एक साथ ही दोनों हाथ एक हाथ से पकड़ लो और कुछ देर तक और कुछ नहीं , वो छुड़ाने की कोशिश कर के थक जायेगी , फिर दूसरे हाथ से , बाएं हाथ पेटीकोट क नाड़ा, और नाड़ा खोलना नहीं सीधे निकाल के दूर फेंक दो। जिससे दुबारा पकड़ के चढ़ा के बाँध न ले।"
सुरजू बहुत ध्यान से बिस्तर के अखाड़े के दांव पेंच समझ रहा था, और इस खेल की जबरदस्त खिलाड़न इमरतिया उसको सब गुर सिखा रही थी।
" लेकिन ये मत समझो की भरतपुर इतनी आसानी से लूट लोगे। उसको भी उसकी भौजाई, घर की नाउन, माई मौसी सिखा रही होंगी। दोनों गोड़ में गोड़ फंसा के बाँध लेगी जिससे भले नाड़ा खुल जाए, लेकिन पेटीकोट उतर न पाए। फिर शहर वाली है तो पेटीकोट के नीचे भी का पता चड्ढी पहनती हो, या उस दिन जानबूझ के पहने। दूसरी बात, पेटीकोट की गाँठ, एक गाँठ नहीं भौजाई सब सिखा के भेजेंगी, सात सात गाँठ, और न खोल पाए, तो अगले दिन जब तोहार बहिनिया सब हाल चाल पूछेंगी न तो न हंस के वही चिढ़ाएगी,
' तोहार भाई तो पूरी रात लगा दिए, मुर्गा बोलने लगा, गाँठ खोलने में तो का कर पाते बेचारे। तुम सब कुछ सिखाये पढ़ाये नहीं थीं का।"
और उससे ज्यादा तोहार सास अपनी समधन का, तोहरी माई क चिढ़ाएँगी,
' बेटवा जिन्नगी भर पहलवानी करता रह गया और हमार बिटिया जाए के,... रात भर,.... नाड़ा क गाँठ ढूंढे में लग गयी, "
अब भौजी सीने पे हाथ पे बुकवा लगी रही थीं फिर ढेर सारा बुकवा लेके जो थोड़ा सोया थोड़ा जाएगा मूसल था उसके ऊपर, और बस हलके हलके लें भौजाई की उँगलियों की छुअन लेकिन इतना काफी था, वो फिर से फुफकारने लगा।
सुरजू भौजी के गदराये जोबना को निहार रहा था, लालटेन की हलकी हलकी पीली रौशनी, जमीन पर छितरायी थी। गोरा चम्पई मुखा, छोटी सी नथ, बड़ी सी बिंदी, लाल लाल खूब भरे रसीले होंठ,
" क्यों खोलना है नाड़ा " भौजी एकदम उसके सीने पे चढ़ी, अपने पेटीकोट का नाड़ा दिखा रही थीं,