छुटकी -होली दीदी की ससुराल में
भाग १०९ - नाच गाना, मस्ती और सुरजू
२७,६४,297
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रतजगे की मस्ती,
इमरतिया को मालूम था मरद असली चोदू तब होता है जब हर औरत हो या लड़की, उस में उस को चूत नजर आती है और वो चोदने के लिए तैयार माल, सूरजु के देह में ताकत बहुत थी, और औजार भी गजब था, बस थोड़ी बहुत झिझक थी और उसकी सोच बदलने की जरूरत थी,
तो उसके लिए इमरतिया थी न।
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और जहाँ ज्यादतर बबुआने के लौंडो के सामने परेशानी रहती है की जितना जल्दी गर्माता है उससे ज्यादा जल्दी ठंडा होता है,
वहां सूरजबली सिंह की परेशानी दूसरी थी, न उनके औजार में कोई कमी, अबतक इमरतिया ने वैसा औजार घोंटना तो कौन कहे उसके बारे में सुना भी नहीं था और न कोई जल्दी बाजी, तीन चार बार खूब खेली खायी औरत का भी पानी निकाल के झड़ें, गोर सुन्दर देह, कसरत और अखाड़े क सधी, देख के लगता है दस हाथी क जोर होगा, लेकिन परेशानी दूसरी थी।
गाँव क कुल लौंडन का सिखाई पढ़ाई, घर में गाँव में हो जाती है, कउनो भौजाई, काम करने वाली, नहीं तो खेत में कटाई बुवाई वाली, मुर्गा के फड़फड़ाने के पहले नाडा खोल के स्वाद दे देती थीं, उसके बाद तो लौंडा खुद जहाँ बुर की महक सूंघा,... पीछे पीछे,
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लेकिन सूरजु के लिए गाँव क कुल औरत लड़कियां सब कोई बहन कोई काकी, यहाँ तक की भौजाई सब भी, पठान टोला की सैयदायिन भौजी एतना खुल के मजाक के करती हैं,बिना बहन महतारी की गारी के बात नहीं, लेकिन बस मुस्किया के रह जाते हैं, और गाँव का भौजाई भी, छेड़ेंगी तो इनकी निगाह गोड़े से ऊपर नहीं, हाँ खाली इमरतिया को चोरी चोरी सुरु से और ये बात न खाली इमरतिया को मालूम थी बलि सूरजु सिंह की माई को भी,
तो बस वही सूरजु की धड़क खोलने का इंतजाम कर रही थी इमरतिया,
ससुर कौन लौंडा होगा जो रतजगा में औरतों क नाच गाना सुनने देखने के लिए नहीं परेशान होगा,
लेकिन असली रतजगा तो बरात के जाने के बाद होता था, जब एकदम खुल के मस्ती, बियाह से लेकर बच्चा पैदा होने तक सब होता था, पर मरद लौंडे तो बरात में, नहीं तो कहीं गारी वारि शुरू हुयी और ससुर भसुर मंडराने लगे तो लम्बा घूंघट, तो केकर पेटीकोट उलटा जाएगा, और असली मजा तो मुंह दिखाई साफ़ साफ़ बोले तो बुर दिखाई का होता था,
लेकिन बड़की ठकुराइन का इंतजाम,
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बोलीं की जितना मस्ती बरात जाने के बाद रतजगा में होती है, उससे दस गुना रोज होगी
और मर्दों लौंडो का इंतजाम भी पक्का, जितने लौंडे हैं, सब आँगन के उधर पक्के वाले हिस्से में जो दालान है, चार पांच बड़े बड़े कमरे है उसमे उनके सोने का इंतजाम, खाना आठ बजे के पहले, और साढ़े आठ बजे दोनों आंगन के बीच में दरवाजा बंद, ताला बंद, और नौ बजे के पहले घर क कुल लड़की मेहरारू, छते पे, और मंजू भाभी क जिम्मेदारी छत पे भी ताला बंद, तो बस आस पास भी कउनो मर्द क परछाई भी नहीं पड़ेंगी, करा मस्ती खुल के सब जने, ननद भौजाई, सास पतोह, .....बड़की ठकुराइन के बेटवा क बियाह याद रही
एक बार सब लोग आ जाए तो, और छत में बड़का बरामदा में तिरपाल लगा था कउनो आंगन से भी बड़ा, ये कमरा कोहबर सब जोड़ के,
और गाने के लिए सूरजु क माई बोलीं थीं मुन्ना बहू से जो सबसे चटक खुल के गाने वाली हो, तगड़ी हो देह की, मस्ती करने में एकदम आगे
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अहिरौटी, भरौटी, कहारौटी, कउनो टोला बचना नहीं चाहिए, पहले से बता देना की रतजगा से ज्यादा मस्ती होगी लेकिन नौ बजे के पहले सब पहुँच जाएँ
तो बस अगर आज सूरजु अपनी बहनियों की रगड़ाई देखेंगे, और वैसे भी दूल्हे की बहन महतारी सब से ज्यादा गरियाई जाती हैं तो जो बात इमरतिया चाहती थी, की सूरजु कउनो लौंडिया को देखें औरत को देखे तो बस ये सोचे की स्साली चोदने में केतना मजा देगी और जब औरतों को लड़कियों को खुल के मस्ती करते देखंगे तो खुद उनकी झिझक चली जायेगी।
तो बस मोटा सूजा लेकर इमरतिया ने खिड़की में दस पांच छेद कर दिए थे,
दूल्हे की कोठरी में तो अंधियार रहेगा तो बाहर से कुछ पता नहीं चलेगा और अंदर से सूरजु अपनी माई बहिन की रगड़ाई खुल्ले आम देखेंगे।
तो बस खूंटा फड़फड़ायेगा, झिझक ख़तम होगी और इमरतिया सोचती थी की सूरजु को बारात जाने के पहले कम से कम आठ दस पे, आठ दस बार नहीं, आठ दस लड़कियों औरतों पे चढ़ा दे तो तरह तरह क बुर क मजा लेना सीख जायेंगे तो एक तो दुलहिनिया के साथ कउनो हिचक नहीं होगी, रगड़ के पेलेंगे, दूसरे एक बार बियाहे के पहले जो मरद को दस बारह बुर का स्वाद लग गया, वो बियाहे के बाद भी किसी एक के पेटीकोट के नाड़े से नहीं बंधा रहेगा, सांड की तरह सबका खेत चरेगा।
तो बस रात भर नाच गाना देखने का इंतजाम इमरतिया ने कर दिया।
इमरतिया का काम ख़तम हो गया था, ऊपर से कोहबर से मंजू भाभी और बुच्ची दोनों ने साथ साथ गोहार लगाई थी की खाना ठंडा हो रहा है तो इमरतिया ने इशारे से सुरुजू को अपनी ओर बुलाया, और धीरे से बोली,
" अभिन थोड़ी देर में बगल में गाना नाच शुरू होगा "
सुरुजू सिंह से जैसे इमरतिया ने बोला, की रतजगा का गौनही देखने का इंतजाम कर दिया है, बस आधे पौन घंटे में खेल शुरू होगा, बस चुप्पे मार के पड़े रहें, बत्ती बंद, और जो जो छेद बनाई थी भौजी बस, कागजवा हटा के, पूरा बरमदा दिखेगा।
भौजी तो वो जो बिना कहे देवर क मन क बात जान ले और पूरा कर दे, ओह मामले में तो इमरतिया भौजी असल भौजी थीं, अच्छा हुआ माई उन्ही के जिम्मे की, कैसे कैसे उनका मन कर रहा था, लेकिन हिम्मत नहीं पड़ रही थी, वही झिझक, लाज, कहूं भौजी कुछ, लेकिन इमरतिया भौजी खुदे उनके खूंटा पे चढ़ के, वो सोच रहे थे कैसे सटायेंगे, कैसे धसाएंगे, कहीं फिसल के बाहर, फिर अंदाज से छेद क अंदाज कैसे लगेगा, आज तक मेहरारुन से तो दस हाथ दूर रहते थे, लेकिन खड़ा तो अपने आप हो गया, भौजी के हाथ का असर, और कैसे भौजी चढ़ के गप्प से ले लीं,
और जब वो घबड़ा रहे थे की झड़ न जाएँ तो कैसे खुल के बहिन महतारी कुल गरियाया, भौजी ने और हटने नहीं दिया, ओकरे कितने देर बाद तक, और जब पानी निकरा तो
ओह्ह अइसन मजा तो बड़ी बड़ी से कुश्ती जीते थे तो भी नहीं आया, और बोल के गयी हैं, कल फिर, और अबकी सुरुजू ऊपर रहेंगे, जैसे बुच्चीको पेलेंगे एकदम वैसे,
बुच्चियो खूब मस्त है, और कैसे भौजी ओके, सूरजु क मलाई खीर में मिलाई के खिलाई दी और वो भी सूरजु को देख के, दिखा के गटक कर गयी, एक एक बूँद जैसे अपने बिलियों में वैसे ही कुल मलाई घोंटेंगी, एक बूँद भी बाहर नहीं निकलने देगी,
और अब बस थोड़ी देर में गाँव में कउनो लौंडा,मरद ऐसा नहीं था जो छुप छुप के गाना ये औरतों का खेला नहीं देखना चाहता था, लेकिन कभी हो नहीं पाता था, अक्सर रतजगा बरात के जाने के बाद ही होता था, तीन दिन की बरात, दो रात घर, गाँव से दूर, तो घर के मरद लौंडे तो सब बरात में, एकाध बूढ़ पुरनिया कोई बचते तो उनकी खटिया वैसे ही घर के बाहर, और उन की भी जो भौजाइयां लगती, जा के नाक वाक् पकड़ के चूड़ी खनका के चेक कर लेतीं, और एक बार तो एक बुजुर्ग बाहर खटिया पड़ी, कंबल वंबल ओढ़े, लेकिन एक दो औरतों को शक हुआ की बुढऊ बहाना बना के मजे ले रहे हैं, और चार पांच जवनको को इशारा किया की ससुर के अपने, और वो सब उनकी बँसखटिया पकड़ के उठा के गाँव के बाहर घूर के पास रख आयीं,
लेकिन सूरजु को याद आया,
याद आया क्या हरदम याद आता था, एक बार उन्होंने कुछ कुछ देखा था खोइया का मजा, अपने ननिहाल में,
माई उनकी साल में चार पांच बार तो मायके का चक्कर लगा के आती थीं और साथ में सूरजु भी, न सगा मामा, न मौसी, और साथ में सूरजु भी। लेकिन गाँव में सगे तो सभी हो जाते है, चचेरे मामा लोगों की, पट्टीदारी में ही कमी नहीं थी, और वो सगे से बढ़कर और सूरजु का खूब लाड दुलार, आधा टाइम तो उन्ही मामा मामी के यहाँ,
सूरजु की ननिहाल की शादी और रतजगा
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तो उनके एक चचेरे मामा की शादी थी।
सूरजु की उमर, बस यही समझिये, जो लड़कियों की चूँचियाँ उठान में होती है, घर वाले सोचते हैं अभी तो गुड्डे गुड़िया खेलने की उमर है और बाहर के लौंडे सीटी मार मार के उठती चूँची पे नजर गड़ाना, लाइन मारना शरू कर देते हैं की देखे कौन इस तालाब में पहले डुबकी मारता है.
तो बस वही, ....अभी उन्होंने लंगोटा नहीं बाँधा था, बस पांच छह महीने बाद अखाड़े में जाना शुरू किया, हाँ मुर्गे ने फड़फड़ाना शरू कर दिया था , एक दो दोस्तों ने हाथ के इस्तेमाल की तरकीब भी बताने की कोशिश की, पर बचपन के लजाधुर, बरात में वो नहीं गए, थोड़ी तबियत खराब थी, तो बस,
जाड़े का समय, मरद तो सारे बरात गए, गाँव में तो वैसे ही रात जल्दी होती है, लालटेन लैम्प का जमाना था, तो बस आंगन में औरतों का जमावड़ा और बगल के एक कमरे में एक कोने में रजाई ओढ़ा के सूरजु को रजाई ओढ़ा के उनकी माई ने लिटा दिया था, दरवाजा खोल के की आहट लगती रहे,
सूरजु थोड़ी देर तक तो औंघाते रहे, सो भी गए, लेकिन जब उनका नाम कान में पड़ा तो उनकी नींद खुल गयी, और रजाई में लेटे जरा सा आँख खोल के देखा उन्होंने,
गाँव में चाहे बुलाना हो या गरियाना हो, तो बहिन महतारी को भाई, बेटे के नाम से ही तो सुरुजू का नाम लिया जा रहा थी, उनकी एक रिश्ते की ममेरी बहन को गरियाने के लिए, गाँव की भौजाइयां पीछे पड़ी थीं, उनकी बड़ी मामी की बेटी, उन्ही की उम्र की रही होगी,या थोड़ी बहुत छोटी,हाँ दो ढाई साल छोटी ही थी, लेकिन कच्ची अमिया जबरदस्त आ गयी थीं, पिछवाड़ा भी गोल गोल होना शुरू हो गया था, खूनखच्चर भी पिछले साल होना शुरू हो गया था,
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एक तो लड़कियों पे जवानी जल्दी आती भी है और दूसरे गाँव में और जल्दी चूँचिया उठान हो जाता है और उससे भी बड़ी बात की रतजगे में, खोइए में, ननद की उमर नहीं देखी जाती, झांट आयी है की नहीं यह भी नहीं, ननद तो ननद, फ्राक तो उठायी ही जाएगी, नाड़ा तो खुलेगा ही।
और गाँव में मजाक भी एकदम खुले आम खास तौर से काम करने वालियां, जो रिश्ते में भाभी लगती हैं, वो तो एकदम।
एक कहारिन थीं, बड़ी मामी के यहाँ घर जैसी है, वो तो सूरजु के एकदम पीछे ही, और उस ममेरी बहन को जोड़ के,
" अरे भैया आये हो तो अबकी बबुनी का नेवान कर के जाओ, अरे कौन सगी बहिन तोहरे हैं नहीं, और नहीं तो हम कह रहे हैं जल्दी ही कउनो सुग्गा ठोर मार देगा, अइसन टिकोरा आया है जबरदस्त "
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और ये कहकर सूरजु को दिखा के ही उनकी उस ममेरी बहन के टिकोरे मीस देती, और साथ देती थीं तो घर की नाउन वो दो साल पहले बियाह के आयी थी तो और गर्मायी और सूरजु के एकदम पीछे,
" हे भैया, तू ना नाडा खोलबा तो हमरे नाऊ टोला का कउनो लौंडा का बुलाये के, .....बेचारी कब तक बैगन मूली से काम चलाएगी। "
उनकी ममेरी बहन से ज्यादा सूरजु झेंप जाते, बचपन के लजाधुर।
दो चार भौजाइयां सूरजु की ममेरी बहन के पीछे पड़ी थीं, गा रही थीं, सुरुजू का नाम ले ले कर,
' झमकोईया मेरे लाल, अरे झमकोईया मेरे लाल, हमरे पिछवाड़े बड़का है ताल, अरे झमकोईया मेरे लाल
ओहमे सूरजु क बहिनी करें अस्नान,
फिर वो कहारिन भौजी भी उस सूरजु की ममेरी बहन के पीछे पड़ गयीं और नाम तो लेते नहीं और उसका कोई सगा भाई था नहीं, तो सूरजु का ही नाम लगा के
सूरजु की बहिनी के दो दो दुआर, सूरजु क बहिनी पक्की छिनार
अरे सुरज्जु क बहिनिया पक्की छिनार, एक जाए आगे एक जाए पीछे
एक जाए आगे, एक जाए पीछे, बचा नहीं कउनो नउवा, कहार, अरे सूरजु क बहिनी क दस दस भतार।
और उन्ही की पट्टी की कोई भौजाई कहारिन भौजी को उकसा के पूछती, "अरे तो हमरे देवरे क बहिन, पिछवाड़े भी,.... तो का गाँड़ भी मरावत हैं,?"
" और का,,,, तब तो चूतड़ अस चाकर हो रहा है " नउनिया क बहु हंस के सूरजु के बहिनी के गाल पे चिकोटी काट के जवाब देती और अगली गारी शरू कर देती,
लेकिन बरात जाने के बाद गाना तक तो बात नहीं रहती और जब ननद भौजाई का मामला हो, बस पीछे से दो अहिरौटी की तगड़ी नयी बयाह के आयी भौजाई, ग्वालिनों ने सूरजु की बहिनी का हाथ पकड़ लिया, और उनकी पकड़ तो छुड़ाने का सवाल ही नहीं,
लाख सूरजु की वो ममेरी बहिनिया कसमसाती रही, फिर आराम से उन्ही की पट्टीदारी की एक भौजाई ने आराम से उस बेचारी का फ्राक उठा दिया और बोली,
"अरे तनी बुलबुल को हवा धूप तो दिखाओ, कब तक पिजड़े में रखोगी "
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वो बेचारी छटपटाती रही, लेकिन उसी के यहाँ काम करने वाली कहारिन क बहु, चार महीने पहले गौने उतरी थी, उस ने सूरजु क बहिनी का चड्ढी का नाड़ा पहले खोला, फिर खींच के पहले तो नाड़ा पूरा निकाल लिया और फिर चड्ढी सरका के घुटने के नीचे, और चिढ़ाते हुए बोली,
"अरे हम भौजी लोगन का रहते, ननद लोग काहें आपन हाथ लगाएंगी, लेकिन ये बतावा की ये बिलुक्का में अबतक केकर केकर गया है, सूरजु देवर क घोटलु की ना। घोंटने लायक तो हो गया है "
सूरजु टुकुर टुकुर देख रहे थे, नींद पूरी खुल गयी थी,
उनकी ममेरी बहन की खुली जाँघे और हलकी हलकी झांटें और एकदम चिपकी बुर,
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नेकर में तूफ़ान मचने लगा, अंगड़ाई शुरू हो गयी।
वो अपनी जाँघे सटा भी नहीं सकती थी, हाथ तो दो भौजाई ने पकड़ा ही था और पैर भी दो ने, और वो कौन पहले रतजगे में थी, उसे मालूम था आज कोई ननद बचेगी नहीं, लेकिन तब भी उसने अपनी माँ, बड़ी मामी की ओर देखा लेकिन तक तब एक भौजाई ने उस की बुरिया को सहलाते हुए पूछ लिया,
"हे बुर रानी, तोहें रोज नया नया लम्बा लम्बा मोट मोट लंड मिले,… ये बतावा अब तक कितने भाई लोगन क लंड घोंटा है ? ”
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बेचारी लड़की, अपनी माँ की ओर,सूरजु की मामी की ओर देख रही थी, की शायद भौजाइयों से बचाएं,
लेकिन बचाने के बजाय सूरजु की मामी ने आग में पेट्रोल डाल दिया, और बोलीं,
"अरे ये कोई पूछने की बात है, यह गाँव की तो रीत है, कुछ हवा पानी में है,…. कौन लड़की है यह गाँव की, जो बिना अपने भाई क लंड घोंटे, जवान हुयी हो, चाहे बुर हो चाहे चूँची जबतक भाई क हाथ न लगे, …"
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