सूरजु की ननिहाल की शादी और रतजगा
तो उनके एक चचेरे मामा की शादी थी।
सूरजु की उमर, बस यही समझिये, जो लड़कियों की चूँचियाँ उठान में होती है, घर वाले सोचते हैं अभी तो गुड्डे गुड़िया खेलने की उमर है और बाहर के लौंडे सीटी मार मार के उठती चूँची पे नजर गड़ाना, लाइन मारना शरू कर देते हैं की देखे कौन इस तालाब में पहले डुबकी मारता है.
तो बस वही, ....अभी उन्होंने लंगोटा नहीं बाँधा था, बस पांच छह महीने बाद अखाड़े में जाना शुरू किया, हाँ मुर्गे ने फड़फड़ाना शरू कर दिया था , एक दो दोस्तों ने हाथ के इस्तेमाल की तरकीब भी बताने की कोशिश की, पर बचपन के लजाधुर, बरात में वो नहीं गए, थोड़ी तबियत खराब थी, तो बस,
जाड़े का समय, मरद तो सारे बरात गए, गाँव में तो वैसे ही रात जल्दी होती है, लालटेन लैम्प का जमाना था, तो बस आंगन में औरतों का जमावड़ा और बगल के एक कमरे में एक कोने में रजाई ओढ़ा के सूरजु को रजाई ओढ़ा के उनकी माई ने लिटा दिया था, दरवाजा खोल के की आहट लगती रहे,
सूरजु थोड़ी देर तक तो औंघाते रहे, सो भी गए, लेकिन जब उनका नाम कान में पड़ा तो उनकी नींद खुल गयी, और रजाई में लेटे जरा सा आँख खोल के देखा उन्होंने,
गाँव में चाहे बुलाना हो या गरियाना हो, तो बहिन महतारी को भाई, बेटे के नाम से ही तो सुरुजू का नाम लिया जा रहा थी, उनकी एक रिश्ते की ममेरी बहन को गरियाने के लिए, गाँव की भौजाइयां पीछे पड़ी थीं, उनकी बड़ी मामी की बेटी, उन्ही की उम्र की रही होगी,या थोड़ी बहुत छोटी,हाँ दो ढाई साल छोटी ही थी, लेकिन कच्ची अमिया जबरदस्त आ गयी थीं, पिछवाड़ा भी गोल गोल होना शुरू हो गया था, खूनखच्चर भी पिछले साल होना शुरू हो गया था,
एक तो लड़कियों पे जवानी जल्दी आती भी है और दूसरे गाँव में और जल्दी चूँचिया उठान हो जाता है और उससे भी बड़ी बात की रतजगे में, खोइए में, ननद की उमर नहीं देखी जाती, झांट आयी है की नहीं यह भी नहीं, ननद तो ननद, फ्राक तो उठायी ही जाएगी, नाड़ा तो खुलेगा ही।
और गाँव में मजाक भी एकदम खुले आम खास तौर से काम करने वालियां, जो रिश्ते में भाभी लगती हैं, वो तो एकदम।
एक कहारिन थीं, बड़ी मामी के यहाँ घर जैसी है, वो तो सूरजु के एकदम पीछे ही, और उस ममेरी बहन को जोड़ के,
" अरे भैया आये हो तो अबकी बबुनी का नेवान कर के जाओ, अरे कौन सगी बहिन तोहरे हैं नहीं, और नहीं तो हम कह रहे हैं जल्दी ही कउनो सुग्गा ठोर मार देगा, अइसन टिकोरा आया है जबरदस्त "
और ये कहकर सूरजु को दिखा के ही उनकी उस ममेरी बहन के टिकोरे मीस देती, और साथ देती थीं तो घर की नाउन वो दो साल पहले बियाह के आयी थी तो और गर्मायी और सूरजु के एकदम पीछे,
" हे भैया, तू ना नाडा खोलबा तो हमरे नाऊ टोला का कउनो लौंडा का बुलाये के, .....बेचारी कब तक बैगन मूली से काम चलाएगी। "
उनकी ममेरी बहन से ज्यादा सूरजु झेंप जाते, बचपन के लजाधुर।
दो चार भौजाइयां सूरजु की ममेरी बहन के पीछे पड़ी थीं, गा रही थीं, सुरुजू का नाम ले ले कर,
' झमकोईया मेरे लाल, अरे झमकोईया मेरे लाल, हमरे पिछवाड़े बड़का है ताल, अरे झमकोईया मेरे लाल
ओहमे सूरजु क बहिनी करें अस्नान,
फिर वो कहारिन भौजी भी उस सूरजु की ममेरी बहन के पीछे पड़ गयीं और नाम तो लेते नहीं और उसका कोई सगा भाई था नहीं, तो सूरजु का ही नाम लगा के
सूरजु की बहिनी के दो दो दुआर, सूरजु क बहिनी पक्की छिनार
अरे सुरज्जु क बहिनिया पक्की छिनार, एक जाए आगे एक जाए पीछे
एक जाए आगे, एक जाए पीछे, बचा नहीं कउनो नउवा, कहार, अरे सूरजु क बहिनी क दस दस भतार।
और उन्ही की पट्टी की कोई भौजाई कहारिन भौजी को उकसा के पूछती, "अरे तो हमरे देवरे क बहिन, पिछवाड़े भी,.... तो का गाँड़ भी मरावत हैं,?"
" और का,,,, तब तो चूतड़ अस चाकर हो रहा है " नउनिया क बहु हंस के सूरजु के बहिनी के गाल पे चिकोटी काट के जवाब देती और अगली गारी शरू कर देती,
लेकिन बरात जाने के बाद गाना तक तो बात नहीं रहती और जब ननद भौजाई का मामला हो, बस पीछे से दो अहिरौटी की तगड़ी नयी बयाह के आयी भौजाई, ग्वालिनों ने सूरजु की बहिनी का हाथ पकड़ लिया, और उनकी पकड़ तो छुड़ाने का सवाल ही नहीं,
लाख सूरजु की वो ममेरी बहिनिया कसमसाती रही, फिर आराम से उन्ही की पट्टीदारी की एक भौजाई ने आराम से उस बेचारी का फ्राक उठा दिया और बोली,
"अरे तनी बुलबुल को हवा धूप तो दिखाओ, कब तक पिजड़े में रखोगी "
वो बेचारी छटपटाती रही, लेकिन उसी के यहाँ काम करने वाली कहारिन क बहु, चार महीने पहले गौने उतरी थी, उस ने सूरजु क बहिनी का चड्ढी का नाड़ा पहले खोला, फिर खींच के पहले तो नाड़ा पूरा निकाल लिया और फिर चड्ढी सरका के घुटने के नीचे, और चिढ़ाते हुए बोली,
"अरे हम भौजी लोगन का रहते, ननद लोग काहें आपन हाथ लगाएंगी, लेकिन ये बतावा की ये बिलुक्का में अबतक केकर केकर गया है, सूरजु देवर क घोटलु की ना। घोंटने लायक तो हो गया है "
सूरजु टुकुर टुकुर देख रहे थे, नींद पूरी खुल गयी थी,
उनकी ममेरी बहन की खुली जाँघे और हलकी हलकी झांटें और एकदम चिपकी बुर,
नेकर में तूफ़ान मचने लगा, अंगड़ाई शुरू हो गयी।
वो अपनी जाँघे सटा भी नहीं सकती थी, हाथ तो दो भौजाई ने पकड़ा ही था और पैर भी दो ने, और वो कौन पहले रतजगे में थी, उसे मालूम था आज कोई ननद बचेगी नहीं, लेकिन तब भी उसने अपनी माँ, बड़ी मामी की ओर देखा लेकिन तक तब एक भौजाई ने उस की बुरिया को सहलाते हुए पूछ लिया,
"हे बुर रानी, तोहें रोज नया नया लम्बा लम्बा मोट मोट लंड मिले,… ये बतावा अब तक कितने भाई लोगन क लंड घोंटा है ? ”
बेचारी लड़की, अपनी माँ की ओर,सूरजु की मामी की ओर देख रही थी, की शायद भौजाइयों से बचाएं,
लेकिन बचाने के बजाय सूरजु की मामी ने आग में पेट्रोल डाल दिया, और बोलीं,
"अरे ये कोई पूछने की बात है, यह गाँव की तो रीत है, कुछ हवा पानी में है,…. कौन लड़की है यह गाँव की, जो बिना अपने भाई क लंड घोंटे, जवान हुयी हो, चाहे बुर हो चाहे चूँची जबतक भाई क हाथ न लगे, …"
गाँव में चाहे बुलाना हो या गरियाना हो, तो बहिन महतारी को भाई, बेटे के नाम से ही तो सुरुजू का नाम लिया जा रहा थी, उनकी एक रिश्ते की ममेरी बहन को गरियाने के लिए, गाँव की भौजाइयां पीछे पड़ी थीं, उनकी बड़ी मामी की बेटी, उन्ही की उम्र की रही होगी,या थोड़ी बहुत छोटी,हाँ दो ढाई साल छोटी ही थी, लेकिन कच्ची अमिया जबरदस्त आ गयी थीं, पिछवाड़ा भी गोल गोल होना शुरू हो गया था, खूनखच्चर भी पिछले साल होना शुरू हो गया था
Tab to sadi main ye bhi ayegi.