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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Nick107

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देवर की देवरानी




जहाँ वह लड़कियों के नाम से घबड़ाता, गाँव की औरतों की परछाई देख के दूर हो जाता, आज वहीँ एकदम खुले में , ट्यूबवेल के नीचे, अमराई में , अखाड़े में./


करीब पौने तीन घंटे मैं रही और तीन बार,... कुछ भीगी, कुछ सूखी साडी मैंने देह में लपेट ली , चोली भी जस तस बाँध ली , लेकिन चलने के पहले मैंने उसे एक बार हड़काया,... और चूमा भी,...

" सांझ को फिर आउंगी देवर जी, समझ लो, इन्तजार करना,... और एक बार फिर से,... "

मैं बोल ही रही थी की उसने बोलने की कोशिश की, बस कस के चूम के मैंने उसका मुंह बंद कर दिया और हड़का भी लिया, गरिया भी दिया,...

" तो कहाँ जाओगे, तोहरी महतारी कउनो बयाना दी हैं, उनके भोंसड़ा चोदने का मन कर रहा है, अरे मुझे मालूम है गाँव का रिवाज, एक पहर रात होने से पहले तो तुम गाँव में कदम भी नहीं रख सकते,... मज़ा आया न , तो शाम को फिर से,... "




असल में मुझे यह डर था की यह ब्रम्हचारी कहीं फिर से अपनी उस ब्रम्हचारी वाली खोल में न घुस जाए, इसलिए उसे चूत का चस्का ठीक से लग जाने के लिए दुबारा, तिबारा, चार पांच दिन में तो ये खुद चूत ढूंढता फिरेगा, और पूरे गाँव में नयकी भौजी ने जो बीड़ा उठाया था , उसे पूरा कर दिया ये भी मशहूर हो जायेगा,...

एकदम उसी तरह जिस तरह जेठानियाँ अपनी नयी देवरानी के मन से डर, हिचक दूर करने के लिए, पहली रात को अपने देवर को समझा बुझा के भेजती हैं,




" दुलहिन चाहे जितना नखड़ा करे, बहाना बनाये, ... मैंने चेक कर लिया है उसकी पांच दिन वाली छुट्टी अभी पांच दिन पहले ख़तम हुयी है,... टाँगे सिकोड़े, जाँघे भींचे , लहंगे के नाड़े पर हाथ न रखने दे,...छोड़ना मत उसको,... फटेगी तो उसकी आज ही रात,... और कोई मुर्रवत नहीं, चीखने देना, खूब खून खच्चर होगा तो होगा , दूसरे कम से कम तीन बार,... और हर बार मलाई पूरी की पूरी अंदर,... "





और अगले दिन, फिर दिन में कुछ न कुछ बहाना बना के अपनी देवरानी को देवर के पास छोड़ आतीं हैं , जिससे एक दो बार दिन दहाड़े भी , बस दो चार दिन में नई दुल्हिन के खुद खुजली मचने लगती है , खुद ही लंड का इन्तजार करती है... और यही हालत इस की भी होने वाली है , दो चार दिन, दोनों जून ,... उसके बाद तो ये खुद,...

और एक बात मैंने उससे कही चलने के पहले, पहले तो उसे बिस्वास नहीं हुआ , फिर खुस हुआ फिर लजा गया,...



लेकिन उसके पहले उससे अपना रिश्ता समझा देती हूँ,...


मेरे ससुर के दो बेटे, एक तो जेठ जी, जो अक्सर बाहर रहते हैं,... ससुर जी का बंबई में काफी कारोबार था वो देखते हैं,...

और छोटे ये मेरे साजन, उसी तरह मेरे अजिया ससुर के भी दो बेटे बड़े मेरे ससुर जी और छोटे मेरे चचिया ससुर, जो अब नहीं है , मिलेट्री में बड़े अफसर थे,... लड़ाई में,... ये मेरा देवर उन्ही का एकलौता लड़का, ...


मेरे अजिया ससुर बड़े जमींदार थे , पन्दरह बीस गाँव की जमींदारी, और अपने रहते ही उन्होंने सब कुछ दोनों बेटों में , मेरे ससुर और मेरे चचिया ससुर में बाँट दिया था, पचासो बीघे तो गन्ने के खेत, बाग़ ,



और भी बहुत,... लेकिन रिश्ता अभी भी एकदम घर का, गलती से भी कभी मैं या कोई भी चचिया नहीं बोलती थी,... और एक बात, मेरी जेठानी के कुछ बच्चेदानी में प्रॉब्लम थी इसलिए उनके लिए बच्चा होना मुश्किल था,... और मेरे इस देवर ने ब्रम्हचारी होने का फैसला कर लिया था और जिद्दी बचपन का,...

तो एक दिन मेरे देवर की माँ, मेरी चचिया सास, मेरी सास के पास, मैं भी थी वहां,... इतनी उदास मेरी सास से बोलने लगी, अब हमार बंस नहीं चलेगा, बात मेरी सास और हम दोनों समझते थे, उनका एकलौता लड़का , मेरा देवर और उसने तय कर लिया था शादी नहीं करेगा, इतनी जमीन जायदाद,... बस आंसू नहीं गिर रहे थे ,




मुझे भी बहुत खराब लग रहा था, लेकिन बात और माहौल बदलने में मेरी सास का कोई मुकाबला नहीं था,... एक बार उन्होंने मुस्करा के मेरी ओर देखा , फिर मेरी चचिया सास को,... और उनकी ठुड्डी पकड़ के बोलीं,...
" तोहें कौन लाया था देवर के लिए,... "




इस उम्र में भी मेरी चचिया सास लजा गयीं, आँखे झुक गयीं , उदास चेहरे पर वो बात याद कर के मुस्कान आ गयी और वो बोलीं,...

" और कौन , आप लायी थीं , उस जमाने में लड़की देखने का कौन रेवाज थोड़े ही था,... "

मेरी ओर इशारा कर के , मेरी सास उनसे बोलीं,

" बस, तो ये हमार तोहार चिंता क बात थोड़े है , हैं न जेठानी,... ये लाएंगी अपने लिए देवरानी काहें को परेशान हो रही हैं, इसका काम है , ये जाने,... "

बस मेरे लिए इशारा काफी था, मैं उनसे हँसते हुए बोली,...


"एकदम, घबड़ाइये मत मेरी जिम्मेदारी है आप काहे को परेशान हो रही हैं, देवरानी मेरी मैं लाऊंगी न,... और सिर्फ लाऊंगी नहीं , जिस दिन देवरानी आएगी न उसके ठीक नौ महीने बाद सोहर होगा , ... अभी से तैयारी कर लीजिये, देवरानी उतारने के लिए चुनरी लूंगी और पोता होने क पियरी , और उसकी दोनों दादी लोगन क सोहर के साथे जम के गारी सुनाऊँगी। "




वो इतनी खुश,... उनसे बोला नहीं जा रहा था, मुश्किल से बोलीं,...

" अरे बहू तोहरे मुंह में घी गुड़,... देवरानी लाने क जिम्मेदारी तो सच में तोहरे हैं "



तो बस, मैंने देवर से वही कहा था, ...

" जब तक देवरानी नहीं आती, ... "

मेरी बात पूरी होने के पहले ही उसके मुंह से कौन निकल गया,


और मैंने जोर से हड़का लिया,

" देवरानी मेरी है की तुम्हारी, ... तुमसे मतलब कौन होगी मेरी देवरानी, तेरी आँख में पट्टी बाँध के ले जाउंगी, बियाह के अपनी देवरानी ले आउंगी, ... हाँ उसके बाद तोहरे हवाले ,... फिर कर लेना अपने मन की,... लेकिन ले मैं ही आउंगी और जल्द ही , समझ लो "....




और उसके बाद मैं मंजू भाभी की ओर मुड़ चली , वहां भी एक किशोर देवर, एक कच्चा केला इन्तजार कर रहा था।







---------



Please do read, enjoy, like and must share your comments,...
Aakhir bhaujai ne khandan ke liye ang dan kr hi diya..
Itni ragad ke choda he... hmari pd kr ye halat he.. jisne jhela...
Us pr kya gujri hogi..
👅💋😘
 

Nick107

Ishq kr..❤
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Chandu to bhabhi ji
Teri chut ki gahraiya..
Teri gand🍑 ki golaiya..
Tere boobs ki uchaiya..
Nhi bhulunga mai.. jab tk hai jaan

Jab tk hai jaan


Wo kichad me tera balkhana..
Wo thoda mera sharmana..
Wo tera khud pr itrana..
aur mera ji lalcha jana..
nhi bhulunga mai.. jab tk hai jaan
jab tk hai jaan..


Teri galo ka wo rang gulabi..
Teri aankho ke wo jaam sharabi...
Teri kamar pr aate bal...
Tere Hontho💋 ki wo surikhiya..
nhi bhulunga mai.. jab tk hai jaan
jab tk hai jaan..
💋
 

Luckyloda

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बहुत ही शानदार अपडेट भाभी जी पढ़कर मजा ही आ गया
 

Luckyloda

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भाग २४

देवर भाभी की होली




और हाथों में रंग ले के वो मेरे पीछे, मैंने भागने की बचने की कोशिश की लेकिन बस इतनी की, वो थोड़ी देर में ही मुझे पीछे से दबोच ले और उसके दोनों हाथ मेरे रसमलाई ऐसे गालों पर, देवर उसी लिए तो होली का इन्तजार करते हैं , इस बहाने कम से कम छूने का भाभी के गाल मलने का मौका मिल जाता है,... और देवर थोड़ा हिम्मती हो,..


मेरा देवर हिम्मती तो था लेकिन झिझकता भी था, और हाथ अगर छुड़ाने के बहाने मैंने सरका के नीचे न किया होता तो वो वहीँ गालों पे उलझा होता, खैर मेरे चिकने गोरे गोरे गाल इतने रसीले हैं ही, और हाथ उसके वहीँ आके जहाँ वो भी चाहता था , मैं भी चाहती थी,


और मैं अकेली थोड़ी थी,

अगर कोई भौजाई ये कहे की वो नहीं चाहती की उसके देवर चोली में हाथ डाल के उसके जोबन पे रंग लगाएं , जुबना का रस लूटें तो इसका मतलब वो सरासर झुठ बोल रही है और उसे कौवा जरूर काटेगा,...




अब वो हाथ हटाना चाहता भी तो , उसका हाथ रोकने के बहाने, उसके हाथ के ऊपर से उसका हाथ पकड़ के मैं उसका हाथ अपने उभारों पर दबा रही थी,..

. और इस धींगामुश्ती में ब्लाउज तो मेरी ननद ने ही फाड़ दिया था, किसी तरह लपेट के बाँध के मैंने अपने जोबन को छिपाया था, बस ब्लाउज सरक के खुल के अखाड़े में गिर गया, और उस के रंग लगे हाथ मेरे उभारों पे,




अब देवर भाभी की देवर भाभी वाली होली शुरू होगयी थी, ताकत तो बहुत थी उसमें और मेरे पहाड़ ऐसे पत्थर से कड़े जोबन तो हरदम वो ललचा के देखता था,आज मौका मिल गया था ,

मैंने अपने हाथ उसके हाथों से हटा लिया पर अब भी वो रंग लगे हाथों से कस के मेरी दोनों चूँचियों को रगड़ रगड़ के मसल मसल के, और उसी को क्यों दोष दूँ मैं तो चाहती थी उससे मिजवाना, मसलवाना,


पर अखाड़े के बगल में ही एक क्यारी में पानी पड़ा हुआ था एकदम कीचड़, वहीँ नाली भी थी कीच से भरी, कुछ मैं फिसली, कुछ जान बूझ के गिरी




तो साथ में देवर को भी लेके, और वो एक तो इतना सीधा , मुझे बचाने के लिए वो नीचे गिरा मैं उसके ऊपर, .. पूरी तरह लेटी, ...

मैंने अपना पूरा वजन उसके ऊपर डाल के दबा लिया , साडी भी मेरी सरक के सिर्फ पतले छल्ले की तरह कमर पे, मेरी जाँघे पैर पूरी तरह खुले, बस दोनों जाँघे फैला के उसकी कमर के दोनों ओर मैं एकदम चढ़ी, और जो डरते सहमते रंग उसने मेरे उभारो में लगाया था वो सब अपने जोबन को उसकी चौड़ी छाती पर रगड़ रगड़ कर,

लेकिन गाँव की होली खाली रंग की थोड़ी होती है, और बस बगल की नाली से कीच निकाल निकाल के , मैंने ... हम दोनों एकदम एक दूसरे में धंसे, वो कीचड़ में धंसा, मुस्कराता, ... और मै नाली से कीच निकाल के उसकी छाती पर लोंदे का लोंदा, उसके ऊपर बैठी,... वो मेरे रंगे पुते गदराये उभारों को देख के ललचा रहा था , और अबकी खुद मैंने अनावृत्त उरोजों को पकड़ के क्या मस्त रगड़ना मसलना शुरू किया, उसके हाथ मेरे जोबन में उलझे और मैं दोनों हाथों से कीच उसके पहले तो सीने पर, फिर कंधे और गालों पर , बालों पर,...




बदमाश वो,

अब अपनी सारी शराफत अपनी महतारी की गाँड़ में पेल के उसने बस मुझे पकड़ के अपनी ओर खींच लिया और अपने सीने से रगड़ रगड़ कर,... और अब वो ऊपर था , मैं कीचड में और उसकी देह में जो रच रच के मैंने कीच लगाई थी वो सब उसकी देह से मेरी देह पर, मैं भी कस के उसको पकड़ के अपने बड़े बड़े गदराये उभार उसके चौड़े सीने पर रगड़ रही थी, उसने मुझे कस के पकड़ रखा था, मैंने भी उसे कस के भींच रखा था, और उसे पकडे दबोचे मैंने पलटा मारा,.... और एक बार फिर वो नीचे मैं ऊपर,




मैंने अबतक अपनी कितनी ननदों की शलवार और साया का नाड़ा खोला था तो गाँठ खोलने में मैं भी, और जब तक वो सम्हलता, उसकी लंगोट की गाँठ,...



नहीं नहीं पूरी गाँठ नहीं खुली, दुष्ट ने बहुत कस के बांधा था, लेकिन ढीली इतनी हो गयी थी, की कीचड़ से भरा मेरा हाथ,

और भौजाई की होली असली वाली शुरू हो गयी थी,...

लंगोट में हाथ डाल के मैंने उसे पकड़ लिया जिसके बारे में सुना इतना था लेकिन अबतक न देखा था न छुआ था, देख तो अभी भी नहीं पा रही थी ,

लेकिन छूने पकड़ने से ही अहसास हो गया की देवर की माँ भी मेरी सास की तरह , गदहे घोड़े से चुदवाने के बाद बियाई होंगी इसको,... कड़ा तो लोहे का रॉड, पर अभी तो होली होनी थी




तो पहले तो कीचड़, और हाथ फैला के बगल में रखी पेण्ट और रंग की टूयब तो देवर के बाकी देह पर चार पांच कोट रंग पेण्ट वार्निश का चढ़ा था तो यही क्यों बच जाता,



और कीचड़ से निकल एक बार फिर हम दोनों अखाड़े में थे लेकिन मैंने झुक के कान में उसके बोल दिया था ,

मैं बड़ी हूँ , डालूंगी मैं जैसे तेरी बहने चुपचाप डलवाती है वैसे तू भी डलवा आज,




बेचारा देवर,... और देह की होली शुरू हो गयी।



और क्या होली हुयी देवर भाभी के बीच, कुछ देर तक तो देवर हिचका, झिझका,... लेकिन फिर भौजाई की बैंड बजा दी,...
और दो पहलवान जी की बल्ले बल्ले हो गई


आ जाएगा असल में कुश्ती लड़ने का मजा
 

Luckyloda

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देवर की बारी,

उसकी पिचकारी




और मेरी बुर को भी अब उस सुपाड़े की आदत पड़ गयी थी, एक दो बार मैंने अपनी बुर को टाइट, ढीला किया , फिर देवर की कमर पकड़ के, नहीं धक्के नहीं मारे बस सरकना,... जैसे नटिनी की जवान लड़की सरसर सरसर बांस पर सरकती है न मेले में, बस उसी तरह, फिर अच्छी तरह से सरसों के तेल से पोत पोत के मैंने चिकना कर दिया था, ... पूरी ताकत मैं लगा रही थी, लेकिन मैं भी,... किसी आदमी का जितना होता है उतना तो मैं घोंट गयी थी , छह सात इंच, पर उसका तो बांस था,...



कुछ देर के लिए मैं फिर रुक गयी, लेकिन देवर से अब नहीं रहा गया, मैं भी गोल गोल कमर घुमा के , कभी आगे पीछे हो के , क्या कोई मरद चोदेगा जिस तरह से मैं ऊपर चढ़ के,... वो भी अब नीचे से धक्का लगा के साथ दे रहा था, पर जब उससे नहीं रहा गया तो मेरी पतली कमरिया पकड़ के, उसने मुझे अपनी ओर खींचा और नीचे से भी धक्का मारा, पांच छह धक्के और अब मैंने पूरा घोंट लिया था,

और उसकी छाती पे लेट के अपने जोबन कभी उसकी छाती पर रगड़ती कभी उठ के उसके होंठों पर रगड़ देती, और भौजी हो और होली न हो , तो हाथ फैला के बगल की नाली से कीच निकाल के एक बार फिर से उसके मुंह पे , सीने पे,





कुछ देर की मस्ती के बाद, कमान देवर ने अपने हाथ में ले ली , मैं अब नीचे थी वो ऊपर , लेकिन मैंने इत्ते कस के मूसल भींच रखा था , ज़रा भी सरक के बाहर नहीं आया,... और उसके बाद तो क्या उसने धुनाई की, हर धक्का बच्चेदानी पर लगता था, ...


मुझे अब समझ में आ रहा था , चार चार बच्चो वाली माँ, काम करने वाली सब क्यों हार मान जाती थी, साइज के साथ ये जो तूफान मेल चलाता था,... एक पल के लिए भी सांस नहीं लेने देता था, पर मैं पूरा साथ दे रही थी,नीचे से चूतड़ उछालती , उसकी पीठ पे अपने नाख़ून धंसाती , और ज़रा भी सुस्ताता वो तो उसकी माँ भीं सब गरिया देती, ... मैं कितनी बार झड़ी पता नहीं, तीन चार बार तो कम से कम , और मुझे झाड़ना आसान नहीं था, तब भी,




मुझे समझ में आ गयी थी इसकी परेशानी, जैसे कोई भुक्खड़ हो , लगता हो कहीं सामने से थाली न छीन जाए,... हबड़ हबड़, जल्दी जल्दी, बस जो दो चार बार औरतों ने उसे मना कर दिया, बस उसे लगा की वो मना करें उसके पहले अपने मन की कर ले,...

और टाइम भी उसे बहुत लगता था , ताकत भी बहुत थी और औजार भी पूरा बुलडोजर था ,... बस अगर यही काम वो धीमे धीमे करता , कुछ देर तक लड़की को उसके लंड की आदत लग जाती फिर , थोड़ा और , फिर थोड़ा और,...

और एक बार अगर चीख पुकार ज्यादा हो तो रुक के थोड़ा चुम्मा चाटी, थोड़ा चूँची चूसता, क्लिट सहलाता, और उसे इतना गरम कर देता की वो खुद चुदवाने के लिए चिल्लाने लगती,



जो लग जल्दी झड़ते है उन्हें हड़बड़ी होती है, पर इसको तो आराम आराम से,



तलवार जबरदस्त थी, तलवार चलाने की ताकत भी बहुत थी, बस तलवार के पैंतरे सीखने बाकी थे,...

और आखिर भौजाइयां क्यों होती हैं तो बस ये जिम्मेदारी मेरे ऊपर, चंदू का आज ब्रह्मचर्य तो मैंने तुड़वा ही दिया, अब उसे नंबरी चुदक्क्ड़ बनाना था, गाँव की जितनी कुँवारी लड़कियां उसकी बहनें लगती हैं, चुदी, बिनचुदी, सब पर उसे चढ़ाउंगी,..




पर अभी मैं उसे रोक नहीं रही थी, अब मैं उसके इन तूफानी धक्को का मजा ले रही थी, गाँव में इस तरह खुले में, मस्त चुदने का और वो भी ऐसे मूसल छाप से, पहला मौक़ा था मेरा,...

पूरे आधे घंटे की नॉन स्टाप चुदाई के बाद झड़ा वो और पांच दस मिनट मैं उसे कस के अपनी बांहों में रही, मेरी कल कल मेरे इस देवर ने ढीली कर दी थी... और जब वो निकला बाहर तो मेरी आँखे फैली की फैली रह गयीं, एक तो इतनी ज्यादा मलाई, उसके गाँव की सब कुँवारी गाभिन हो जातीं,...

मेरी कटोरी ऊपर तक बजबजा रही थी और साथ में बह बह के मेरी जाँघों पर ,



देवर भाभी की असली होली तो यही सफ़ेद रंग वाली होली है, पिचकारी तो मेरे इस देवर की जबरदस्त है ही, रंग भी खूब गाढ़ा और ढेर सारा,..दूसरी बात अच्छी तरह झड़ने के बाद भी , अभी भी ६-७ इंच का और जितना सोया उससे ज्यादा जागा।


और ऊपर से मेरे देवर के ब्रम्हचारी बनने का चक्कर,... मैं अलसा रही थी , और सोच रही थी,

गाँव का टेलीग्राफ, आज शाम नहीं तो कल तक पूरे गाँव की मेरी सारी जेठानियों, ननदों को मालूम पड़ जाएगा, ... उर्वशी मेनका की तरह, नयकी भौजी ने भी,... मैं अपने देवर को देख के मुस्करा रही थी, देखने में भी एकदम कामदेव का अंश, और तीर भी उसका,...




और वो भी मुस्करा रहा था, पहली बार वो किसी पर चढ़ा था और वो चीख चिल्ला नहीं रही थी, उसे गरिया नहीं रही थी,..



उसे अपनी ओर खींच लिया मैंने और बाँहों में भर के देर तक चूमती रही, होंठों पर मुंह में जीभ डाल के सीने पर अपने उभार रगड़ रगड़ के,... पता नहीं क्या खाते हैं इस गाँव के लौंडे, मरद,... झंडा खड़ा होना शुरू हो गया, अब वो खूंटा तो मेरा था तो बस मैंने अपने मुट्ठी में, नहीं नहीं मुठिया नहीं रही थी, बस हलके से पकड़ के महसूस कर रही थी, उसका कड़ापन, मुटाई,... इत्ता अच्छा लग रहा था बता नहीं सकती,...

आज तो कोमल की बहुत अच्छी तरीके से बजाई है पहलवान ने आज दिखाए हैं कि कौन-कौन से आसन पहलवानी में होते हैं Jin Se gand faadi Ja sakti hai
 

Luckyloda

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मज़ा देवर की पिचकारी का -होली में






,... झंडा खड़ा होना शुरू हो गया, अब वो खूंटा तो मेरा था तो बस मैंने अपने मुट्ठी में, नहीं नहीं मुठिया नहीं रही थी, बस हलके से पकड़ के महसूस कर रही थी, उसका कड़ापन, मुटाई,... इत्ता अच्छा लग रहा था बता नहीं सकती,...



और अब वो चालू हो गया, मैंने ब्रेक तो नहीं लगाया, लेकिन कुछ इशारे से कुछ बोल के कुछ उसके हाथों को खिंच के, ... फोरप्ले, एक लड़की के कितने काम केंद्र होते हैं धीरे, धीरे , कन्धों को, पीठ के ऊपरी हिस्से को जाँघों के अंदरूनी भाग को कैसे हलके हलके सहला के, उँगलियों की टिप का कब इस्तेमाल करना है कब पूरी हथेली का लेकिन हलकी हवा की तरह, और कैसे पता चलेगा लड़की अब गरमा रही है , उसकी जाँघे अपने आप खुलने लगे, आंख्ने बंद होने लगे , मुट्ठी बार बार खोलने भींचने लगे,...



लेकिन बहुत देर मैंने इन्तजार नहीं कराया देवर को, मन तो मेरा भी कर रहा था, और अबकी मैंने कुछ किया भी नहीं, न मुख मैथुन , न मुठियाना,...




और ताकत का अंदाज तो मुझे पहली बार ही होगया था , लेकिन इस तरह से भी चोदा जा सकता है , चुदवाया जा सकता है, ... मैंने स्कूल की किताबों से ज्यादा , माँ की अलमारी से निकाल के चुपके चुपके हाईस्कूल के पहले आठ दस बार तो सचित्र कोकशास्त्र , ८४ आसन, असली, (बड़ा ) पढ़ चुकी थी पर उसमें भी ये सब नहीं था,


चार पांच तरीकों से तो खड़े खड़े,...




एक तो उसकी जाँघों के साथ उसकी हाथों में ताकत बहुत थी, हम दोनों आमने सामने, और एक हाथ से उसने मेरी एक जांघ उठा के , मेरी जांघ खुद फ़ैल गयी, दूसरा उसका हाथ मेरी पीठ पर थी, और मेरा पूरा वजन उसके दोनों हाथों पर, पहले तो धीरे धीरे , फिर इतने कस के धक्के मारे उसने ,

और फिर, मान गयी उसकी ताकत, दोनों हाथों से उसने मुझे उठा के और मैं अपनी दोनों लम्बी लम्बी टाँगे उसकी कमर में लपेट के, और मजाल है जो लंड सूत भर भी बाहर सरका हो, मेरे दोनों हाथ उसके गले के चारों ओर कंधे पर, मैं उससे चिपकी और वो मुझे गोद में उठाये खड़े खड़े चोद रहा था,...




लेकिन उसकी असली ताकत पता चली, जब उसने मुझे हवा में ही लिटाकर,... मैंने दोनों पैरों से कस के उसकी कमर को बाँध रखा था, उसके दोनों हाथ मेरे नितम्बों पर ,... और क्या धक्के मेरे मारे, मेरी ननदों के यार, उस बहनचोद देवर ने, हर धक्का एकदम अंदर तक बुर को फाड़ता, फैलाता रौंदता , सीधे बच्चेदानी तक, हर बार मैं झड़ने की कगार पर पहुँच जाती ,


लेकिन खड़े खड़े चुदने में मुझे सबसे ज्यादा मजा आया और सबसे कस के रगड़ाई हुयी, आम के पेड़ के नीचे, खूब पुराना, चौड़े तने वाला आम का पेड़ था, एकदम गझिन,...




बस उसी से सटा के, मेरी पीठ आम के पेड़ के तने से चिपकी,और मेरी एक टांग लता की तरह देवर की कमर से लिपटी, मैंने दोनों हाथों से उसकी पीठ को जकड़ रखा था,... और वो, मेरी ननदों का यार, अपनी बहनों का भतार, मेरा देवर,... पूरी तरह से मेरे अंदर धंसा, एकदम मुझसे चिपका, ... उसके हर धक्के पर मेरी सांस रुक जाती, मेरे बड़े बड़े उभार उसकी चौड़ी मजबूत छाती के नीचे दब कर पिस जाती, जो उन्होंने अपने बड़े खड़े होने का इतना गुमान था, मेरे जोबन को , आज मिला था उनके गर्व को चूर करने वाला, ...

और साथ में जिस तरह से मेरी पीठ, मेरे चूतड़ आम के पेड़ की छाल से रगड़ जाते, मैंने सोचा भी नहीं था की खुले आसमान के नीचे चुदने में इत्ता मज़ा आएगा,..



मैं कित्ती बार झड़ी, न वो धीमा हुआ , न मैंने गिना, बस चोद चोद के झाड़ झाड़ के मेरे देवर ने मुझे थेथर कर दिया था, ...




और जब वो झड़ा, वही आम का पेड़, उसी तने को पकड़ के मैं निहुरी हुयी थी, साथ भी दे रही थी उसका, बीच बीच में कभी धक्के मार के अपने चूतड़ से , कभी उसके मोटू को अपनी बुर में निचोड़ के तो कभी उसकी महतारी, अपनी चचिया सास को गरिया के,


" मादरचोद, लगता है अपनी महतारी क भोसड़े को चोद चोद के चोदना सीखे हो,... अरे ई तोहरे महतारी क भोंसड़ा अस ताल पोखरा नहीं है जहाँ हमरे मायके वाले डुबकी मारते हैं, हाथी ऊंट सब डूब आते हैं, ज़रा आराम से,... "



और महतारी का नाम लेने पे तो बस जैसे कोई घोड़े की ऐड मार दे , उसकी रफ़्तार दूनी हो जाती थी,...


लेकिन जब तक वो झड़ा मैं एकदम थेथर हो चुकी थी,... पर एक एक बूँद मैंने निचोड़ के, .. एक बूँद भी बाहर बहने नहीं दिया,




और जब मेरी हालत थोड़ी ठीक हुयी तो मैं समझी की देवर ने, खड़े खड़े या गोद में ले के,... वो नहीं चाहता था की मेरी देह में या साड़ी पर कीचड़ , अखाड़े की मट्टी न लगे,


लेकिन साड़ी पर तो पूरी की पूरी कीच लग ही चुकी थी, बस मैंने उतार के वहीँ लगे ट्यूबवेल पर धुल के,... और वो पास आता तो पानी उछाल के ,... साड़ी जब मैंने सूखने के लिए फैला दी, तो एक बार फिर से ट्यूबवेल के नीचे हम दोनों,




अबकी बदमाशी की शुरुआत मैंने की,.. और पहली बार ट्यूबवेल की मोटी धार के नीचे चुदी,


अब उसे जल्दी नहीं थी, न मुझे कभी वो पानी की धार के ठीक नीचे मेरे मोटे मोटे जोबन कर देता, तो कभी मेरी चूत, और पीछे से गपागप अपना लंड पेलता,



जहाँ वह लड़कियों के नाम से घबड़ाता, गाँव की औरतों की परछाई देख के दूर हो जाता, आज वहीँ एकदम खुले में , ट्यूबवेल के नीचे, अमराई में , अखाड़े में./
भाभी को आज सही में ऐसा हुआ है कि गांव में खेतों का ट्वेल्थ का आम के पेड़ का सही प्रयोग क्या है और कैसे किया जाता है
 

Luckyloda

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देवर की देवरानी




जहाँ वह लड़कियों के नाम से घबड़ाता, गाँव की औरतों की परछाई देख के दूर हो जाता, आज वहीँ एकदम खुले में , ट्यूबवेल के नीचे, अमराई में , अखाड़े में./


करीब पौने तीन घंटे मैं रही और तीन बार,... कुछ भीगी, कुछ सूखी साडी मैंने देह में लपेट ली , चोली भी जस तस बाँध ली , लेकिन चलने के पहले मैंने उसे एक बार हड़काया,... और चूमा भी,...

" सांझ को फिर आउंगी देवर जी, समझ लो, इन्तजार करना,... और एक बार फिर से,... "

मैं बोल ही रही थी की उसने बोलने की कोशिश की, बस कस के चूम के मैंने उसका मुंह बंद कर दिया और हड़का भी लिया, गरिया भी दिया,...

" तो कहाँ जाओगे, तोहरी महतारी कउनो बयाना दी हैं, उनके भोंसड़ा चोदने का मन कर रहा है, अरे मुझे मालूम है गाँव का रिवाज, एक पहर रात होने से पहले तो तुम गाँव में कदम भी नहीं रख सकते,... मज़ा आया न , तो शाम को फिर से,... "




असल में मुझे यह डर था की यह ब्रम्हचारी कहीं फिर से अपनी उस ब्रम्हचारी वाली खोल में न घुस जाए, इसलिए उसे चूत का चस्का ठीक से लग जाने के लिए दुबारा, तिबारा, चार पांच दिन में तो ये खुद चूत ढूंढता फिरेगा, और पूरे गाँव में नयकी भौजी ने जो बीड़ा उठाया था , उसे पूरा कर दिया ये भी मशहूर हो जायेगा,...

एकदम उसी तरह जिस तरह जेठानियाँ अपनी नयी देवरानी के मन से डर, हिचक दूर करने के लिए, पहली रात को अपने देवर को समझा बुझा के भेजती हैं,




" दुलहिन चाहे जितना नखड़ा करे, बहाना बनाये, ... मैंने चेक कर लिया है उसकी पांच दिन वाली छुट्टी अभी पांच दिन पहले ख़तम हुयी है,... टाँगे सिकोड़े, जाँघे भींचे , लहंगे के नाड़े पर हाथ न रखने दे,...छोड़ना मत उसको,... फटेगी तो उसकी आज ही रात,... और कोई मुर्रवत नहीं, चीखने देना, खूब खून खच्चर होगा तो होगा , दूसरे कम से कम तीन बार,... और हर बार मलाई पूरी की पूरी अंदर,... "





और अगले दिन, फिर दिन में कुछ न कुछ बहाना बना के अपनी देवरानी को देवर के पास छोड़ आतीं हैं , जिससे एक दो बार दिन दहाड़े भी , बस दो चार दिन में नई दुल्हिन के खुद खुजली मचने लगती है , खुद ही लंड का इन्तजार करती है... और यही हालत इस की भी होने वाली है , दो चार दिन, दोनों जून ,... उसके बाद तो ये खुद,...

और एक बात मैंने उससे कही चलने के पहले, पहले तो उसे बिस्वास नहीं हुआ , फिर खुस हुआ फिर लजा गया,...



लेकिन उसके पहले उससे अपना रिश्ता समझा देती हूँ,...


मेरे ससुर के दो बेटे, एक तो जेठ जी, जो अक्सर बाहर रहते हैं,... ससुर जी का बंबई में काफी कारोबार था वो देखते हैं,...

और छोटे ये मेरे साजन, उसी तरह मेरे अजिया ससुर के भी दो बेटे बड़े मेरे ससुर जी और छोटे मेरे चचिया ससुर, जो अब नहीं है , मिलेट्री में बड़े अफसर थे,... लड़ाई में,... ये मेरा देवर उन्ही का एकलौता लड़का, ...


मेरे अजिया ससुर बड़े जमींदार थे , पन्दरह बीस गाँव की जमींदारी, और अपने रहते ही उन्होंने सब कुछ दोनों बेटों में , मेरे ससुर और मेरे चचिया ससुर में बाँट दिया था, पचासो बीघे तो गन्ने के खेत, बाग़ ,



और भी बहुत,... लेकिन रिश्ता अभी भी एकदम घर का, गलती से भी कभी मैं या कोई भी चचिया नहीं बोलती थी,... और एक बात, मेरी जेठानी के कुछ बच्चेदानी में प्रॉब्लम थी इसलिए उनके लिए बच्चा होना मुश्किल था,... और मेरे इस देवर ने ब्रम्हचारी होने का फैसला कर लिया था और जिद्दी बचपन का,...

तो एक दिन मेरे देवर की माँ, मेरी चचिया सास, मेरी सास के पास, मैं भी थी वहां,... इतनी उदास मेरी सास से बोलने लगी, अब हमार बंस नहीं चलेगा, बात मेरी सास और हम दोनों समझते थे, उनका एकलौता लड़का , मेरा देवर और उसने तय कर लिया था शादी नहीं करेगा, इतनी जमीन जायदाद,... बस आंसू नहीं गिर रहे थे ,




मुझे भी बहुत खराब लग रहा था, लेकिन बात और माहौल बदलने में मेरी सास का कोई मुकाबला नहीं था,... एक बार उन्होंने मुस्करा के मेरी ओर देखा , फिर मेरी चचिया सास को,... और उनकी ठुड्डी पकड़ के बोलीं,...
" तोहें कौन लाया था देवर के लिए,... "




इस उम्र में भी मेरी चचिया सास लजा गयीं, आँखे झुक गयीं , उदास चेहरे पर वो बात याद कर के मुस्कान आ गयी और वो बोलीं,...

" और कौन , आप लायी थीं , उस जमाने में लड़की देखने का कौन रेवाज थोड़े ही था,... "

मेरी ओर इशारा कर के , मेरी सास उनसे बोलीं,

" बस, तो ये हमार तोहार चिंता क बात थोड़े है , हैं न जेठानी,... ये लाएंगी अपने लिए देवरानी काहें को परेशान हो रही हैं, इसका काम है , ये जाने,... "

बस मेरे लिए इशारा काफी था, मैं उनसे हँसते हुए बोली,...


"एकदम, घबड़ाइये मत मेरी जिम्मेदारी है आप काहे को परेशान हो रही हैं, देवरानी मेरी मैं लाऊंगी न,... और सिर्फ लाऊंगी नहीं , जिस दिन देवरानी आएगी न उसके ठीक नौ महीने बाद सोहर होगा , ... अभी से तैयारी कर लीजिये, देवरानी उतारने के लिए चुनरी लूंगी और पोता होने क पियरी , और उसकी दोनों दादी लोगन क सोहर के साथे जम के गारी सुनाऊँगी। "




वो इतनी खुश,... उनसे बोला नहीं जा रहा था, मुश्किल से बोलीं,...

" अरे बहू तोहरे मुंह में घी गुड़,... देवरानी लाने क जिम्मेदारी तो सच में तोहरे हैं "



तो बस, मैंने देवर से वही कहा था, ...

" जब तक देवरानी नहीं आती, ... "

मेरी बात पूरी होने के पहले ही उसके मुंह से कौन निकल गया,


और मैंने जोर से हड़का लिया,

" देवरानी मेरी है की तुम्हारी, ... तुमसे मतलब कौन होगी मेरी देवरानी, तेरी आँख में पट्टी बाँध के ले जाउंगी, बियाह के अपनी देवरानी ले आउंगी, ... हाँ उसके बाद तोहरे हवाले ,... फिर कर लेना अपने मन की,... लेकिन ले मैं ही आउंगी और जल्द ही , समझ लो "....




और उसके बाद मैं मंजू भाभी की ओर मुड़ चली , वहां भी एक किशोर देवर, एक कच्चा केला इन्तजार कर रहा था।







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Yah sahi hai Pahle to pahalvan ko पहलवानी की जगह जुदाई में लगा रही हो और उसके बाद जब उसके लंगोट के बल खुद नहीं खेल पाई तो किसी कच्ची कली को उसके नीचे खून खच्चर के लिए लेकर आ रही हो अरे जब तुम्हारे जैसी एक नंबर की छिनाल भाभी उसको नहीं झेल पाई तो कोई नई नवेली कच्ची कली तो आकर खून खराब है और दहशत से ही मर जाएगी
 

Luckyloda

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बहुत बेसब्री से कच्चे केले की नथ उतरने का इंतजार है


देखते हैं कि कैसे उस नए नवेले लड़के की गांड पहलवान से छूटने के बाद भाभी मार पाती है



वैसे यहां पर एक कहावत याद आ रही है की " गधे पर तो पार बसाई नहीं गधिया के कान जा ऐठे""🤣🤣🤣🤣🤣
 

motaalund

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भाग २४

देवर भाभी की होली




और हाथों में रंग ले के वो मेरे पीछे, मैंने भागने की बचने की कोशिश की लेकिन बस इतनी की, वो थोड़ी देर में ही मुझे पीछे से दबोच ले और उसके दोनों हाथ मेरे रसमलाई ऐसे गालों पर, देवर उसी लिए तो होली का इन्तजार करते हैं , इस बहाने कम से कम छूने का भाभी के गाल मलने का मौका मिल जाता है,... और देवर थोड़ा हिम्मती हो,..


मेरा देवर हिम्मती तो था लेकिन झिझकता भी था, और हाथ अगर छुड़ाने के बहाने मैंने सरका के नीचे न किया होता तो वो वहीँ गालों पे उलझा होता, खैर मेरे चिकने गोरे गोरे गाल इतने रसीले हैं ही, और हाथ उसके वहीँ आके जहाँ वो भी चाहता था , मैं भी चाहती थी,


और मैं अकेली थोड़ी थी,

अगर कोई भौजाई ये कहे की वो नहीं चाहती की उसके देवर चोली में हाथ डाल के उसके जोबन पे रंग लगाएं , जुबना का रस लूटें तो इसका मतलब वो सरासर झुठ बोल रही है और उसे कौवा जरूर काटेगा,...




अब वो हाथ हटाना चाहता भी तो , उसका हाथ रोकने के बहाने, उसके हाथ के ऊपर से उसका हाथ पकड़ के मैं उसका हाथ अपने उभारों पर दबा रही थी,..

. और इस धींगामुश्ती में ब्लाउज तो मेरी ननद ने ही फाड़ दिया था, किसी तरह लपेट के बाँध के मैंने अपने जोबन को छिपाया था, बस ब्लाउज सरक के खुल के अखाड़े में गिर गया, और उस के रंग लगे हाथ मेरे उभारों पे,




अब देवर भाभी की देवर भाभी वाली होली शुरू होगयी थी, ताकत तो बहुत थी उसमें और मेरे पहाड़ ऐसे पत्थर से कड़े जोबन तो हरदम वो ललचा के देखता था,आज मौका मिल गया था ,

मैंने अपने हाथ उसके हाथों से हटा लिया पर अब भी वो रंग लगे हाथों से कस के मेरी दोनों चूँचियों को रगड़ रगड़ के मसल मसल के, और उसी को क्यों दोष दूँ मैं तो चाहती थी उससे मिजवाना, मसलवाना,


पर अखाड़े के बगल में ही एक क्यारी में पानी पड़ा हुआ था एकदम कीचड़, वहीँ नाली भी थी कीच से भरी, कुछ मैं फिसली, कुछ जान बूझ के गिरी




तो साथ में देवर को भी लेके, और वो एक तो इतना सीधा , मुझे बचाने के लिए वो नीचे गिरा मैं उसके ऊपर, .. पूरी तरह लेटी, ...

मैंने अपना पूरा वजन उसके ऊपर डाल के दबा लिया , साडी भी मेरी सरक के सिर्फ पतले छल्ले की तरह कमर पे, मेरी जाँघे पैर पूरी तरह खुले, बस दोनों जाँघे फैला के उसकी कमर के दोनों ओर मैं एकदम चढ़ी, और जो डरते सहमते रंग उसने मेरे उभारो में लगाया था वो सब अपने जोबन को उसकी चौड़ी छाती पर रगड़ रगड़ कर,

लेकिन गाँव की होली खाली रंग की थोड़ी होती है, और बस बगल की नाली से कीच निकाल निकाल के , मैंने ... हम दोनों एकदम एक दूसरे में धंसे, वो कीचड़ में धंसा, मुस्कराता, ... और मै नाली से कीच निकाल के उसकी छाती पर लोंदे का लोंदा, उसके ऊपर बैठी,... वो मेरे रंगे पुते गदराये उभारों को देख के ललचा रहा था , और अबकी खुद मैंने अनावृत्त उरोजों को पकड़ के क्या मस्त रगड़ना मसलना शुरू किया, उसके हाथ मेरे जोबन में उलझे और मैं दोनों हाथों से कीच उसके पहले तो सीने पर, फिर कंधे और गालों पर , बालों पर,...




बदमाश वो,

अब अपनी सारी शराफत अपनी महतारी की गाँड़ में पेल के उसने बस मुझे पकड़ के अपनी ओर खींच लिया और अपने सीने से रगड़ रगड़ कर,... और अब वो ऊपर था , मैं कीचड में और उसकी देह में जो रच रच के मैंने कीच लगाई थी वो सब उसकी देह से मेरी देह पर, मैं भी कस के उसको पकड़ के अपने बड़े बड़े गदराये उभार उसके चौड़े सीने पर रगड़ रही थी, उसने मुझे कस के पकड़ रखा था, मैंने भी उसे कस के भींच रखा था, और उसे पकडे दबोचे मैंने पलटा मारा,.... और एक बार फिर वो नीचे मैं ऊपर,




मैंने अबतक अपनी कितनी ननदों की शलवार और साया का नाड़ा खोला था तो गाँठ खोलने में मैं भी, और जब तक वो सम्हलता, उसकी लंगोट की गाँठ,...



नहीं नहीं पूरी गाँठ नहीं खुली, दुष्ट ने बहुत कस के बांधा था, लेकिन ढीली इतनी हो गयी थी, की कीचड़ से भरा मेरा हाथ,

और भौजाई की होली असली वाली शुरू हो गयी थी,...

लंगोट में हाथ डाल के मैंने उसे पकड़ लिया जिसके बारे में सुना इतना था लेकिन अबतक न देखा था न छुआ था, देख तो अभी भी नहीं पा रही थी ,

लेकिन छूने पकड़ने से ही अहसास हो गया की देवर की माँ भी मेरी सास की तरह , गदहे घोड़े से चुदवाने के बाद बियाई होंगी इसको,... कड़ा तो लोहे का रॉड, पर अभी तो होली होनी थी




तो पहले तो कीचड़, और हाथ फैला के बगल में रखी पेण्ट और रंग की टूयब तो देवर के बाकी देह पर चार पांच कोट रंग पेण्ट वार्निश का चढ़ा था तो यही क्यों बच जाता,



और कीचड़ से निकल एक बार फिर हम दोनों अखाड़े में थे लेकिन मैंने झुक के कान में उसके बोल दिया था ,

मैं बड़ी हूँ , डालूंगी मैं जैसे तेरी बहने चुपचाप डलवाती है वैसे तू भी डलवा आज,




बेचारा देवर,... और देह की होली शुरू हो गयी।



और क्या होली हुयी देवर भाभी के बीच, कुछ देर तक तो देवर हिचका, झिझका,... लेकिन फिर भौजाई की बैंड बजा दी,...
जोरा-जोरी हुई ... कीचड़ के अखाड़े में..

PIcs के साथ ये तो और रंगीन लगने लगी...
शरारत, छेड़छाड़, खिजाना, सताना सब कुछ एक साथ...
यही तो जीवन के अनमोल रंग हैं....
जो अन्य कहानियों में missing है....
 
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motaalund

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देह की होली



उसकी लंगोट की गाँठ,...



नहीं नहीं पूरी गाँठ नहीं खुली, दुष्ट ने बहुत कस के बांधा था,





लेकिन ढीली इतनी हो गयी थी, की कीचड़ से भरा मेरा हाथ, और भौजाई की होली असली वाली शुरू हो गयी थी,... लंगोट में हाथ डाल के मैंने उसे पकड़ लिया जिसके बारे में सुना इतना था लेकिन अबतक न देखा था न छुआ था, देख तो अभी भी नहीं पा रही थी , लेकिन छूने पकड़ने से ही अहसास हो गया की देवर की माँ भी मेरी सास की तरह , गदहे घोड़े से चुदवाने के बाद बियाई होंगी इसको,...


कड़ा तो लोहे का रॉड,




पर अभी तो होली होनी थी तो पहले तो कीचड़, और हाथ फैला के बगल में रखी पेण्ट और रंग की टूयब तो देवर के बाकी देह पर चार पांच कोट रंग पेण्ट वार्निश का चढ़ा था तो यही क्यों बच जाता,



और कीचड़ से निकल एक बार फिर हम दोनों अखाड़े में थे लेकिन मैंने झुक के कान में उसके बोल दिया था ,



मैं बड़ी हूँ , डालूंगी मैं जैसे तेरी बहने चुपचाप डलवाती है वैसे तू भी डलवा आज,



बेचारा देवर,... और देह की होली शुरू हो गयी।



और क्या होली हुयी देवर भाभी के बीच, कुछ देर तक तो देवर हिचका, झिझका,... लेकिन फिर भौजाई की बैंड बजा दी,...



शुरुआत तो मैंने ही की और उसे आँख से भी बरज दिया , मुंह से बोल के भी साफ़ साफ़ मना कर दिया और हाथ से भी पकड़ के रोक दिया, की मैं बड़ी हूँ, भौजाई हूँ, जो करुँगी मैं करुँगी , डालूंगी मैं वो अपनी बहनों की तरह चुपचाप डलवा ले,

और अखाड़े में उसे पटक के अखाड़े की मिटटी में ही गिरा दिया, और चढ़ गयी ऊपर,...



लंगोट रंग और कीच लगाने के लिए तो मैंने पहले ही ढीला कर दिया था, अबकी खोल के दूर फेंक दिया, भौजी देवर के बीच में लंगोट का क्या काम,... साड़ी मेरी छल्ले की तरह बस कमर से फंसी,


और फटा पोस्टर निकला हीरो,... और क्या हीरो था,


सच में जबरदस्त, लम्बाई तो मैंने पहले ही नाप ली थी, मेरे बीत्ते से भी एकाध इंच बड़ा ही रहा होगा, लेकिन जो देख के दिल दहल गया, वो था सुपाड़ा खूब मोटा तो था ही एकदम कड़ा, धूसर, बस पेशाब वाला छेद हलका सा दिखता था, लाल गुलाबी,




और अब मैं समझी मेरी एक से एक छिनार ननदों की भी मेरे इस देवर के आगे क्यों फटती थी, इस मोटे कड़े सुपाड़े को लीलने में भी भोंसड़ी वालियों की फूंक सरक जाती होगी,... पर मैं तो भौजाई थी, ...

अखाड़े में का देसी कडुआ तेल उठा के,... नहीं सुपाड़े पे नहीं पोता मैंने , ... सुपाड़ा दबा के छेद खोल के, जैसे मेरी देवर की माँ बचपन में लगाती होंगी, ... बस उसी तरह टप टप, बूँद बूँद सरसों का तेल,... मुझे मालूम था खूब छरछरा रहा होगा, छरछराये , मेरी भी तो परपरायेगी जब ये पेलेगा,... और फिर बाकी का तेल अपनी हथेली में लगा के बाकी के शिश्न पे,एकदम जड़ से लेकर,... जैसे पहलवान अखाड़े में कुश्ती लड़ने से पहले ढेर सारा तेल चुपड़ते हैं,




और मैंने अपनी गुलबिया में भी दो ऊँगली में ढेर सारा तेल चुपड़ के, एकदम अंदर तक, ...

असल में जो लौंडिया चुदने में चिल्लाती हैं एक तो छिनरपना और नौटंकी, स्साली शुद्ध नौटंकी और दूसरे, तैयारी नहीं करतीं चुदवाने के लिए जैसे सादी बियाह खाली मरद के चोदने के लिए होता है, लड़की को तो कुछ चहिये ही नहीं, मेरी तो जिस दिन से से इन लोगों ने लड़की देख के हाँ कहा था, बस तिलक बरीक्षा तो दूर, बस उसी दिन से, भाभियाँ तो छोड़िये, माँ मेरी उन से भी ज्यादा, गुलबिया को तेल पिलाया की नहीं, चिक्कन मुककन किया की नहीं,...



हाँ, देवर के सुपाड़े के लिए मेरी जीभ, होंठ, मुंह थे न,...


पहले वही पेशाब वाले छेद पर, जीभ की टिप डाल के जो सुरसुरी की मेरे देवर की महतारी की फट गयी,




उसके बाद जीभ से लपड़ सपड़ सुपाडे को चाट चाट के अपने थूक गीला कर दिया, और साथ में मेरे तेल लगे हाथ, देवर के लंड को मुठिया मुठिया के , बहुत मोटा बांस था, पूरी तरह से मुट्ठी में नहीं आ पा रहा था,...





और फिर भौजाई चढ़ गयी देवर की बांस की पिचकारी के ऊपर, मोटा मूसल,... लेकिन देवर पहलवान था तो भौजाई भी उस अखाड़े के जबरदस्त खिलाड़न,...

मैंने पहले दो ऊँगली डाल के अपनी बुर की फांको को फैला दिया, एकदम कैंची की खुली फाल की तरह, पूरी ताकत से,जाँघे भी पूरी तरह खुलीं,... और मेरी रसीली फांकों के बीच बस मैंने सुपाड़े को फंसा दिया, पहाड़ी आलू ऐसा मोटा सुपाड़ा, ... बस एक तिहाई फंसा होगा, पर इतना काफी था मेरे लिए, ...

अरे गन्ने अरहर के खेत में कुँवारी नयी उमर वाली जब जांघ के नीचे आती है तो गाँव के लौंडे बस , इतना भी सुपाड़ा भी घुस जाए तो फिर तो लड़की चाहे जितना रोये गरियाये , दुहाई दे, कोर्ट पुलिस का , बाप महतारी का नाम ले , बिन चोदे नहीं छोड़ते

तो मैं इत्ते मस्त देवर को क्यों छोड़ती,


तो मैंने भी नहीं छोड़ा,

बस गहरी सांस ले के, देवर के दोनों हाथ पकड़ के, ये मान के की आज इज्जत की बात है अगर मैंने इसकी इज्जत आज न लूटी , ... और पूरी ताकत से धक्का मार दिया,




चुदाई में जैसे लंड की लम्बाई मोटाई के साथ कमर का जोर और चूतड़ की ताकत लगती है वही बात जब औरत ऊपर होती है , तो मेरी कमर की ताकत किसी मर्द से कम नहीं थी, ...

गप्पांक, दो तीन धक्के और सुपाड़ा पूरा अंदर,... लेकिन उतने में ही मेरी माँ बहन सब चुद गयीं। लग रहा था मेरी बुर की एक एक मांसपेशियां फट के अलग अलग हो जाएंगी, जैसे किसी ने एक नहीं दो दो मुट्ठियां एक साथ मेरी बुर में जबरदस्ती पूरी ताकत से ठेल दी हों,... दर्द जाँघों तक फ़ैल गया था, लेकिन मैं जानती थी अगर इस समय मैं ज़रा भी चीखी, दर्द मेरे चेहरे पर आया तो मेरा ये देवर,... फिर कभी किसी लड़की की ओर मुंह भी नहीं करेगा,


दर्द मैं पी गयी, घूँट घूँट, औरत का जनम ही दर्द पीने के लिए होता है,


और फिर मेरे तरकश में सिर्फ एक ही तीर थोड़े ही थे , इस मर्द के लिए,... मेरे जोबन पर तो जान देता था वो, बस उसके दोनों हाथ अपने हाथों से खींच के मैंने अपनी भरी भरी छातियों पर रख दिया, और जिस तरह से उसे मुस्करा के देखा, कोयी भी पागल हो जाता,... और मेरा देवर तो पहले ही पागल था भाभी के जुबना पर, पहले तो झिझकते हुए उसने पकड़ा कुछ देर सहलाया, फिर पूरी ताकत से, सच्च में असली मर्द, जिस लड़की के हिस्से आएगा न उसकी जवानी धन्य हो जायेगी, ...




और मेरी बुर को भी अब उस सुपाड़े की आदत पड़ गयी थी, एक दो बार मैंने अपनी बुर को टाइट, ढीला किया , फिर देवर की कमर पकड़ के, नहीं धक्के नहीं मारे बस सरकना,... जैसे नटिनी की जवान लड़की सरसर सरसर बांस पर सरकती है न मेले में, बस उसी तरह, फिर अच्छी तरह से सरसों के तेल से पोत पोत के मैंने चिकना कर दिया था, ... पूरी ताकत मैं लगा रही थी, लेकिन मैं भी,... किसी आदमी का जितना होता है उतना तो मैं घोंट गयी थी , छह सात इंच, पर उसका तो बांस था,...
सही में देह की होली...
नेह की होली....
तगड़ी पिचकारी के साथ...
बांस पर चढ़ने उतरने की माहिर खिलाड़ी का संगम...
अच्छी ट्रेनिंग हो रही है देवर की....
अब तो देवर की भी शंका, भय, झिझक सब दूर हो जाएगी...

और गाँव की ननदें, देवरानी, जेठानी सब आपके जिंदगी भर गुण गाएंगी

और ये तो सर्वविदित है कि लडकियां लड़कों से ज्यादा मजा लेती हैं सेक्स में....
लेकिन नखरे ऐसे दिखाएंगी कि सारा मजा सिर्फ लड़कों को आता है....
 
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