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भाग ९६
ननद की सास, और सास का प्लान
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ननद की सास, और सास का प्लान
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You are right...You have a very good writing skill unique of its kind.
You create very erotic plots like you know man better than us.
Have read joru k gulam and Aur holi k rang multiple times.
Gonna start reading another series now.
Keep this good work, thank you for giving us something so creative and so erotic.
Thanks sooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooo much and nowYou are right...
और हर बार पढ़ कर एक नया रस मिलता है...
लगता है जैसे पहले कुछ छूट गया था....
Ye kichad me devar bhabhi ki zora zori wala toh bilkul brand new idea bhar diya tumne Komal didi, story me. Awesome updateभाग २४
देवर भाभी की होली
और हाथों में रंग ले के वो मेरे पीछे, मैंने भागने की बचने की कोशिश की लेकिन बस इतनी की, वो थोड़ी देर में ही मुझे पीछे से दबोच ले और उसके दोनों हाथ मेरे रसमलाई ऐसे गालों पर, देवर उसी लिए तो होली का इन्तजार करते हैं , इस बहाने कम से कम छूने का भाभी के गाल मलने का मौका मिल जाता है,... और देवर थोड़ा हिम्मती हो,..
मेरा देवर हिम्मती तो था लेकिन झिझकता भी था, और हाथ अगर छुड़ाने के बहाने मैंने सरका के नीचे न किया होता तो वो वहीँ गालों पे उलझा होता, खैर मेरे चिकने गोरे गोरे गाल इतने रसीले हैं ही, और हाथ उसके वहीँ आके जहाँ वो भी चाहता था , मैं भी चाहती थी,
और मैं अकेली थोड़ी थी,
अगर कोई भौजाई ये कहे की वो नहीं चाहती की उसके देवर चोली में हाथ डाल के उसके जोबन पे रंग लगाएं , जुबना का रस लूटें तो इसका मतलब वो सरासर झुठ बोल रही है और उसे कौवा जरूर काटेगा,...
अब वो हाथ हटाना चाहता भी तो , उसका हाथ रोकने के बहाने, उसके हाथ के ऊपर से उसका हाथ पकड़ के मैं उसका हाथ अपने उभारों पर दबा रही थी,..
. और इस धींगामुश्ती में ब्लाउज तो मेरी ननद ने ही फाड़ दिया था, किसी तरह लपेट के बाँध के मैंने अपने जोबन को छिपाया था, बस ब्लाउज सरक के खुल के अखाड़े में गिर गया, और उस के रंग लगे हाथ मेरे उभारों पे,
अब देवर भाभी की देवर भाभी वाली होली शुरू होगयी थी, ताकत तो बहुत थी उसमें और मेरे पहाड़ ऐसे पत्थर से कड़े जोबन तो हरदम वो ललचा के देखता था,आज मौका मिल गया था ,
मैंने अपने हाथ उसके हाथों से हटा लिया पर अब भी वो रंग लगे हाथों से कस के मेरी दोनों चूँचियों को रगड़ रगड़ के मसल मसल के, और उसी को क्यों दोष दूँ मैं तो चाहती थी उससे मिजवाना, मसलवाना,
पर अखाड़े के बगल में ही एक क्यारी में पानी पड़ा हुआ था एकदम कीचड़, वहीँ नाली भी थी कीच से भरी, कुछ मैं फिसली, कुछ जान बूझ के गिरी
तो साथ में देवर को भी लेके, और वो एक तो इतना सीधा , मुझे बचाने के लिए वो नीचे गिरा मैं उसके ऊपर, .. पूरी तरह लेटी, ...
मैंने अपना पूरा वजन उसके ऊपर डाल के दबा लिया , साडी भी मेरी सरक के सिर्फ पतले छल्ले की तरह कमर पे, मेरी जाँघे पैर पूरी तरह खुले, बस दोनों जाँघे फैला के उसकी कमर के दोनों ओर मैं एकदम चढ़ी, और जो डरते सहमते रंग उसने मेरे उभारो में लगाया था वो सब अपने जोबन को उसकी चौड़ी छाती पर रगड़ रगड़ कर,
लेकिन गाँव की होली खाली रंग की थोड़ी होती है, और बस बगल की नाली से कीच निकाल निकाल के , मैंने ... हम दोनों एकदम एक दूसरे में धंसे, वो कीचड़ में धंसा, मुस्कराता, ... और मै नाली से कीच निकाल के उसकी छाती पर लोंदे का लोंदा, उसके ऊपर बैठी,... वो मेरे रंगे पुते गदराये उभारों को देख के ललचा रहा था , और अबकी खुद मैंने अनावृत्त उरोजों को पकड़ के क्या मस्त रगड़ना मसलना शुरू किया, उसके हाथ मेरे जोबन में उलझे और मैं दोनों हाथों से कीच उसके पहले तो सीने पर, फिर कंधे और गालों पर , बालों पर,...
बदमाश वो,
अब अपनी सारी शराफत अपनी महतारी की गाँड़ में पेल के उसने बस मुझे पकड़ के अपनी ओर खींच लिया और अपने सीने से रगड़ रगड़ कर,... और अब वो ऊपर था , मैं कीचड में और उसकी देह में जो रच रच के मैंने कीच लगाई थी वो सब उसकी देह से मेरी देह पर, मैं भी कस के उसको पकड़ के अपने बड़े बड़े गदराये उभार उसके चौड़े सीने पर रगड़ रही थी, उसने मुझे कस के पकड़ रखा था, मैंने भी उसे कस के भींच रखा था, और उसे पकडे दबोचे मैंने पलटा मारा,.... और एक बार फिर वो नीचे मैं ऊपर,
मैंने अबतक अपनी कितनी ननदों की शलवार और साया का नाड़ा खोला था तो गाँठ खोलने में मैं भी, और जब तक वो सम्हलता, उसकी लंगोट की गाँठ,...
नहीं नहीं पूरी गाँठ नहीं खुली, दुष्ट ने बहुत कस के बांधा था, लेकिन ढीली इतनी हो गयी थी, की कीचड़ से भरा मेरा हाथ,
और भौजाई की होली असली वाली शुरू हो गयी थी,...
लंगोट में हाथ डाल के मैंने उसे पकड़ लिया जिसके बारे में सुना इतना था लेकिन अबतक न देखा था न छुआ था, देख तो अभी भी नहीं पा रही थी ,
लेकिन छूने पकड़ने से ही अहसास हो गया की देवर की माँ भी मेरी सास की तरह , गदहे घोड़े से चुदवाने के बाद बियाई होंगी इसको,... कड़ा तो लोहे का रॉड, पर अभी तो होली होनी थी
तो पहले तो कीचड़, और हाथ फैला के बगल में रखी पेण्ट और रंग की टूयब तो देवर के बाकी देह पर चार पांच कोट रंग पेण्ट वार्निश का चढ़ा था तो यही क्यों बच जाता,
और कीचड़ से निकल एक बार फिर हम दोनों अखाड़े में थे लेकिन मैंने झुक के कान में उसके बोल दिया था ,
मैं बड़ी हूँ , डालूंगी मैं जैसे तेरी बहने चुपचाप डलवाती है वैसे तू भी डलवा आज,
बेचारा देवर,... और देह की होली शुरू हो गयी।
और क्या होली हुयी देवर भाभी के बीच, कुछ देर तक तो देवर हिचका, झिझका,... लेकिन फिर भौजाई की बैंड बजा दी,...
Super duper updateदेह की होली
उसकी लंगोट की गाँठ,...
नहीं नहीं पूरी गाँठ नहीं खुली, दुष्ट ने बहुत कस के बांधा था,
लेकिन ढीली इतनी हो गयी थी, की कीचड़ से भरा मेरा हाथ, और भौजाई की होली असली वाली शुरू हो गयी थी,... लंगोट में हाथ डाल के मैंने उसे पकड़ लिया जिसके बारे में सुना इतना था लेकिन अबतक न देखा था न छुआ था, देख तो अभी भी नहीं पा रही थी , लेकिन छूने पकड़ने से ही अहसास हो गया की देवर की माँ भी मेरी सास की तरह , गदहे घोड़े से चुदवाने के बाद बियाई होंगी इसको,...
कड़ा तो लोहे का रॉड,
पर अभी तो होली होनी थी तो पहले तो कीचड़, और हाथ फैला के बगल में रखी पेण्ट और रंग की टूयब तो देवर के बाकी देह पर चार पांच कोट रंग पेण्ट वार्निश का चढ़ा था तो यही क्यों बच जाता,
और कीचड़ से निकल एक बार फिर हम दोनों अखाड़े में थे लेकिन मैंने झुक के कान में उसके बोल दिया था ,
मैं बड़ी हूँ , डालूंगी मैं जैसे तेरी बहने चुपचाप डलवाती है वैसे तू भी डलवा आज,
बेचारा देवर,... और देह की होली शुरू हो गयी।
और क्या होली हुयी देवर भाभी के बीच, कुछ देर तक तो देवर हिचका, झिझका,... लेकिन फिर भौजाई की बैंड बजा दी,...
शुरुआत तो मैंने ही की और उसे आँख से भी बरज दिया , मुंह से बोल के भी साफ़ साफ़ मना कर दिया और हाथ से भी पकड़ के रोक दिया, की मैं बड़ी हूँ, भौजाई हूँ, जो करुँगी मैं करुँगी , डालूंगी मैं वो अपनी बहनों की तरह चुपचाप डलवा ले,
और अखाड़े में उसे पटक के अखाड़े की मिटटी में ही गिरा दिया, और चढ़ गयी ऊपर,...
लंगोट रंग और कीच लगाने के लिए तो मैंने पहले ही ढीला कर दिया था, अबकी खोल के दूर फेंक दिया, भौजी देवर के बीच में लंगोट का क्या काम,... साड़ी मेरी छल्ले की तरह बस कमर से फंसी,
और फटा पोस्टर निकला हीरो,... और क्या हीरो था,
सच में जबरदस्त, लम्बाई तो मैंने पहले ही नाप ली थी, मेरे बीत्ते से भी एकाध इंच बड़ा ही रहा होगा, लेकिन जो देख के दिल दहल गया, वो था सुपाड़ा खूब मोटा तो था ही एकदम कड़ा, धूसर, बस पेशाब वाला छेद हलका सा दिखता था, लाल गुलाबी,
और अब मैं समझी मेरी एक से एक छिनार ननदों की भी मेरे इस देवर के आगे क्यों फटती थी, इस मोटे कड़े सुपाड़े को लीलने में भी भोंसड़ी वालियों की फूंक सरक जाती होगी,... पर मैं तो भौजाई थी, ...
अखाड़े में का देसी कडुआ तेल उठा के,... नहीं सुपाड़े पे नहीं पोता मैंने , ... सुपाड़ा दबा के छेद खोल के, जैसे मेरी देवर की माँ बचपन में लगाती होंगी, ... बस उसी तरह टप टप, बूँद बूँद सरसों का तेल,... मुझे मालूम था खूब छरछरा रहा होगा, छरछराये , मेरी भी तो परपरायेगी जब ये पेलेगा,... और फिर बाकी का तेल अपनी हथेली में लगा के बाकी के शिश्न पे,एकदम जड़ से लेकर,... जैसे पहलवान अखाड़े में कुश्ती लड़ने से पहले ढेर सारा तेल चुपड़ते हैं,
और मैंने अपनी गुलबिया में भी दो ऊँगली में ढेर सारा तेल चुपड़ के, एकदम अंदर तक, ...
असल में जो लौंडिया चुदने में चिल्लाती हैं एक तो छिनरपना और नौटंकी, स्साली शुद्ध नौटंकी और दूसरे, तैयारी नहीं करतीं चुदवाने के लिए जैसे सादी बियाह खाली मरद के चोदने के लिए होता है, लड़की को तो कुछ चहिये ही नहीं, मेरी तो जिस दिन से से इन लोगों ने लड़की देख के हाँ कहा था, बस तिलक बरीक्षा तो दूर, बस उसी दिन से, भाभियाँ तो छोड़िये, माँ मेरी उन से भी ज्यादा, गुलबिया को तेल पिलाया की नहीं, चिक्कन मुककन किया की नहीं,...
हाँ, देवर के सुपाड़े के लिए मेरी जीभ, होंठ, मुंह थे न,...
पहले वही पेशाब वाले छेद पर, जीभ की टिप डाल के जो सुरसुरी की मेरे देवर की महतारी की फट गयी,
उसके बाद जीभ से लपड़ सपड़ सुपाडे को चाट चाट के अपने थूक गीला कर दिया, और साथ में मेरे तेल लगे हाथ, देवर के लंड को मुठिया मुठिया के , बहुत मोटा बांस था, पूरी तरह से मुट्ठी में नहीं आ पा रहा था,...
और फिर भौजाई चढ़ गयी देवर की बांस की पिचकारी के ऊपर, मोटा मूसल,... लेकिन देवर पहलवान था तो भौजाई भी उस अखाड़े के जबरदस्त खिलाड़न,...
मैंने पहले दो ऊँगली डाल के अपनी बुर की फांको को फैला दिया, एकदम कैंची की खुली फाल की तरह, पूरी ताकत से,जाँघे भी पूरी तरह खुलीं,... और मेरी रसीली फांकों के बीच बस मैंने सुपाड़े को फंसा दिया, पहाड़ी आलू ऐसा मोटा सुपाड़ा, ... बस एक तिहाई फंसा होगा, पर इतना काफी था मेरे लिए, ...
अरे गन्ने अरहर के खेत में कुँवारी नयी उमर वाली जब जांघ के नीचे आती है तो गाँव के लौंडे बस , इतना भी सुपाड़ा भी घुस जाए तो फिर तो लड़की चाहे जितना रोये गरियाये , दुहाई दे, कोर्ट पुलिस का , बाप महतारी का नाम ले , बिन चोदे नहीं छोड़ते
तो मैं इत्ते मस्त देवर को क्यों छोड़ती,
तो मैंने भी नहीं छोड़ा,
बस गहरी सांस ले के, देवर के दोनों हाथ पकड़ के, ये मान के की आज इज्जत की बात है अगर मैंने इसकी इज्जत आज न लूटी , ... और पूरी ताकत से धक्का मार दिया,
चुदाई में जैसे लंड की लम्बाई मोटाई के साथ कमर का जोर और चूतड़ की ताकत लगती है वही बात जब औरत ऊपर होती है , तो मेरी कमर की ताकत किसी मर्द से कम नहीं थी, ...
गप्पांक, दो तीन धक्के और सुपाड़ा पूरा अंदर,... लेकिन उतने में ही मेरी माँ बहन सब चुद गयीं। लग रहा था मेरी बुर की एक एक मांसपेशियां फट के अलग अलग हो जाएंगी, जैसे किसी ने एक नहीं दो दो मुट्ठियां एक साथ मेरी बुर में जबरदस्ती पूरी ताकत से ठेल दी हों,... दर्द जाँघों तक फ़ैल गया था, लेकिन मैं जानती थी अगर इस समय मैं ज़रा भी चीखी, दर्द मेरे चेहरे पर आया तो मेरा ये देवर,... फिर कभी किसी लड़की की ओर मुंह भी नहीं करेगा,
दर्द मैं पी गयी, घूँट घूँट, औरत का जनम ही दर्द पीने के लिए होता है,
और फिर मेरे तरकश में सिर्फ एक ही तीर थोड़े ही थे , इस मर्द के लिए,... मेरे जोबन पर तो जान देता था वो, बस उसके दोनों हाथ अपने हाथों से खींच के मैंने अपनी भरी भरी छातियों पर रख दिया, और जिस तरह से उसे मुस्करा के देखा, कोयी भी पागल हो जाता,... और मेरा देवर तो पहले ही पागल था भाभी के जुबना पर, पहले तो झिझकते हुए उसने पकड़ा कुछ देर सहलाया, फिर पूरी ताकत से, सच्च में असली मर्द, जिस लड़की के हिस्से आएगा न उसकी जवानी धन्य हो जायेगी, ...
और मेरी बुर को भी अब उस सुपाड़े की आदत पड़ गयी थी, एक दो बार मैंने अपनी बुर को टाइट, ढीला किया , फिर देवर की कमर पकड़ के, नहीं धक्के नहीं मारे बस सरकना,... जैसे नटिनी की जवान लड़की सरसर सरसर बांस पर सरकती है न मेले में, बस उसी तरह, फिर अच्छी तरह से सरसों के तेल से पोत पोत के मैंने चिकना कर दिया था, ... पूरी ताकत मैं लगा रही थी, लेकिन मैं भी,... किसी आदमी का जितना होता है उतना तो मैं घोंट गयी थी , छह सात इंच, पर उसका तो बांस था,...
So hot,kamuk ,madak update & filled with appropriate gifs.Master mega update, soooooooooo hottttttttttt nd niceदेवर की देवरानी
जहाँ वह लड़कियों के नाम से घबड़ाता, गाँव की औरतों की परछाई देख के दूर हो जाता, आज वहीँ एकदम खुले में , ट्यूबवेल के नीचे, अमराई में , अखाड़े में./
करीब पौने तीन घंटे मैं रही और तीन बार,... कुछ भीगी, कुछ सूखी साडी मैंने देह में लपेट ली , चोली भी जस तस बाँध ली , लेकिन चलने के पहले मैंने उसे एक बार हड़काया,... और चूमा भी,...
" सांझ को फिर आउंगी देवर जी, समझ लो, इन्तजार करना,... और एक बार फिर से,... "
मैं बोल ही रही थी की उसने बोलने की कोशिश की, बस कस के चूम के मैंने उसका मुंह बंद कर दिया और हड़का भी लिया, गरिया भी दिया,...
" तो कहाँ जाओगे, तोहरी महतारी कउनो बयाना दी हैं, उनके भोंसड़ा चोदने का मन कर रहा है, अरे मुझे मालूम है गाँव का रिवाज, एक पहर रात होने से पहले तो तुम गाँव में कदम भी नहीं रख सकते,... मज़ा आया न , तो शाम को फिर से,... "
असल में मुझे यह डर था की यह ब्रम्हचारी कहीं फिर से अपनी उस ब्रम्हचारी वाली खोल में न घुस जाए, इसलिए उसे चूत का चस्का ठीक से लग जाने के लिए दुबारा, तिबारा, चार पांच दिन में तो ये खुद चूत ढूंढता फिरेगा, और पूरे गाँव में नयकी भौजी ने जो बीड़ा उठाया था , उसे पूरा कर दिया ये भी मशहूर हो जायेगा,...
एकदम उसी तरह जिस तरह जेठानियाँ अपनी नयी देवरानी के मन से डर, हिचक दूर करने के लिए, पहली रात को अपने देवर को समझा बुझा के भेजती हैं,
" दुलहिन चाहे जितना नखड़ा करे, बहाना बनाये, ... मैंने चेक कर लिया है उसकी पांच दिन वाली छुट्टी अभी पांच दिन पहले ख़तम हुयी है,... टाँगे सिकोड़े, जाँघे भींचे , लहंगे के नाड़े पर हाथ न रखने दे,...छोड़ना मत उसको,... फटेगी तो उसकी आज ही रात,... और कोई मुर्रवत नहीं, चीखने देना, खूब खून खच्चर होगा तो होगा , दूसरे कम से कम तीन बार,... और हर बार मलाई पूरी की पूरी अंदर,... "
और अगले दिन, फिर दिन में कुछ न कुछ बहाना बना के अपनी देवरानी को देवर के पास छोड़ आतीं हैं , जिससे एक दो बार दिन दहाड़े भी , बस दो चार दिन में नई दुल्हिन के खुद खुजली मचने लगती है , खुद ही लंड का इन्तजार करती है... और यही हालत इस की भी होने वाली है , दो चार दिन, दोनों जून ,... उसके बाद तो ये खुद,...
और एक बात मैंने उससे कही चलने के पहले, पहले तो उसे बिस्वास नहीं हुआ , फिर खुस हुआ फिर लजा गया,...
लेकिन उसके पहले उससे अपना रिश्ता समझा देती हूँ,...
मेरे ससुर के दो बेटे, एक तो जेठ जी, जो अक्सर बाहर रहते हैं,... ससुर जी का बंबई में काफी कारोबार था वो देखते हैं,...
और छोटे ये मेरे साजन, उसी तरह मेरे अजिया ससुर के भी दो बेटे बड़े मेरे ससुर जी और छोटे मेरे चचिया ससुर, जो अब नहीं है , मिलेट्री में बड़े अफसर थे,... लड़ाई में,... ये मेरा देवर उन्ही का एकलौता लड़का, ...
मेरे अजिया ससुर बड़े जमींदार थे , पन्दरह बीस गाँव की जमींदारी, और अपने रहते ही उन्होंने सब कुछ दोनों बेटों में , मेरे ससुर और मेरे चचिया ससुर में बाँट दिया था, पचासो बीघे तो गन्ने के खेत, बाग़ ,
और भी बहुत,... लेकिन रिश्ता अभी भी एकदम घर का, गलती से भी कभी मैं या कोई भी चचिया नहीं बोलती थी,... और एक बात, मेरी जेठानी के कुछ बच्चेदानी में प्रॉब्लम थी इसलिए उनके लिए बच्चा होना मुश्किल था,... और मेरे इस देवर ने ब्रम्हचारी होने का फैसला कर लिया था और जिद्दी बचपन का,...
तो एक दिन मेरे देवर की माँ, मेरी चचिया सास, मेरी सास के पास, मैं भी थी वहां,... इतनी उदास मेरी सास से बोलने लगी, अब हमार बंस नहीं चलेगा, बात मेरी सास और हम दोनों समझते थे, उनका एकलौता लड़का , मेरा देवर और उसने तय कर लिया था शादी नहीं करेगा, इतनी जमीन जायदाद,... बस आंसू नहीं गिर रहे थे ,
मुझे भी बहुत खराब लग रहा था, लेकिन बात और माहौल बदलने में मेरी सास का कोई मुकाबला नहीं था,... एक बार उन्होंने मुस्करा के मेरी ओर देखा , फिर मेरी चचिया सास को,... और उनकी ठुड्डी पकड़ के बोलीं,...
" तोहें कौन लाया था देवर के लिए,... "
इस उम्र में भी मेरी चचिया सास लजा गयीं, आँखे झुक गयीं , उदास चेहरे पर वो बात याद कर के मुस्कान आ गयी और वो बोलीं,...
" और कौन , आप लायी थीं , उस जमाने में लड़की देखने का कौन रेवाज थोड़े ही था,... "
मेरी ओर इशारा कर के , मेरी सास उनसे बोलीं,
" बस, तो ये हमार तोहार चिंता क बात थोड़े है , हैं न जेठानी,... ये लाएंगी अपने लिए देवरानी काहें को परेशान हो रही हैं, इसका काम है , ये जाने,... "
बस मेरे लिए इशारा काफी था, मैं उनसे हँसते हुए बोली,...
"एकदम, घबड़ाइये मत मेरी जिम्मेदारी है आप काहे को परेशान हो रही हैं, देवरानी मेरी मैं लाऊंगी न,... और सिर्फ लाऊंगी नहीं , जिस दिन देवरानी आएगी न उसके ठीक नौ महीने बाद सोहर होगा , ... अभी से तैयारी कर लीजिये, देवरानी उतारने के लिए चुनरी लूंगी और पोता होने क पियरी , और उसकी दोनों दादी लोगन क सोहर के साथे जम के गारी सुनाऊँगी। "
वो इतनी खुश,... उनसे बोला नहीं जा रहा था, मुश्किल से बोलीं,...
" अरे बहू तोहरे मुंह में घी गुड़,... देवरानी लाने क जिम्मेदारी तो सच में तोहरे हैं "
तो बस, मैंने देवर से वही कहा था, ...
" जब तक देवरानी नहीं आती, ... "
मेरी बात पूरी होने के पहले ही उसके मुंह से कौन निकल गया,
और मैंने जोर से हड़का लिया,
" देवरानी मेरी है की तुम्हारी, ... तुमसे मतलब कौन होगी मेरी देवरानी, तेरी आँख में पट्टी बाँध के ले जाउंगी, बियाह के अपनी देवरानी ले आउंगी, ... हाँ उसके बाद तोहरे हवाले ,... फिर कर लेना अपने मन की,... लेकिन ले मैं ही आउंगी और जल्द ही , समझ लो "....
और उसके बाद मैं मंजू भाभी की ओर मुड़ चली , वहां भी एक किशोर देवर, एक कच्चा केला इन्तजार कर रहा था।
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