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भाग ९६
ननद की सास, और सास का प्लान
Page 1005,
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ननद की सास, और सास का प्लान
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Thanks bhai saabवाह .... क्या खूब लिखा है...
सारे अंगों की विशेषता बखान कर दी...
लगता है तस्वीर सामने उतार दी...
Thanks for gracing the thread, and nice compliments and please do read my other story, Joru Ka GullamBeautiful story
मेरे ख्याल से दोनों सही है, मैंने दोनों को सुना है लेकिन अलग अलग प्रसंग में,...एक बात पूछनी थी.....
ये 'हबड़ हबड़' सही है या 'हबड़ दबड़'
Thanks so muchAakhir bhaujai ne khandan ke liye ang dan kr hi diya..
Itni ragad ke choda he... hmari pd kr ye halat he.. jisne jhela...
Us pr kya gujri hogi..
❤
VOWChandu to bhabhi ji
Teri chut ki gahraiya..
Teri gand ki golaiya..
Tere boobs ki uchaiya..
Nhi bhulunga mai.. jab tk hai jaan
Jab tk hai jaan
Wo kichad me tera balkhana..
Wo thoda mera sharmana..
Wo tera khud pr itrana..
aur mera ji lalcha jana..
nhi bhulunga mai.. jab tk hai jaan
jab tk hai jaan..
Teri galo ka wo rang gulabi..
Teri aankho ke wo jaam sharabi...
Teri kamar pr aate bal...
Tere Hontho ki wo surikhiya..
nhi bhulunga mai.. jab tk hai jaan
jab tk hai jaan..
ओ... तो एक जाने के संदर्भ में है और एक खाने के संदर्भ में...मेरे ख्याल से दोनों सही है, मैंने दोनों को सुना है लेकिन अलग अलग प्रसंग में,...
हबड़ दबड़ जा के बुला के ले आओ या हबड़ दबड़ का काम अच्छी नहीं होता.
और,
क्या हबड़ हबड़ खा रहे हो,...
जैसा मैंने पहले ही कहा था, गाँव गाँव पे पानी बदले और चार गाँव में बानी,...
और इनका, लोकोक्तियों का, लोकगीतों का रीत रिवाजों का प्रयोग मैं ग्रामीण आंचलिक परीवेश की पृष्ठभूमि को, और अधिक रेखांकित करने के लिए करती हूँ. और भाषा भी पात्रानुकूल ही करने का प्रयास करती हूँ,... और समय चरित्र की स्थिति के अनुसार,
जैसे मोहे रंग में सुहागरात, मिलन यामिनी की पहली रात के अलग अलग पोस्टों में एक मधुर गीत की कड़ियाँ शीर्षक के तौर पे प्रयुक्त की हैं,
रात पिया के संग जागी रे सखी ( पृष्ठ ३ -४ )
चैन पड़ा जो अंग लागी रे सखी ( पृष्ठ ४ )
गजरा सुहाना टूटा , ( पृष्ठ ४ )
आज सुहाग की रात , सुरज जिन उगिहौं ( एक प्रसिद्ध लोकगीत-सुहाग का - पृष्ठ ७ )
बीती विभावरी जाग रे ( जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कविता - पृष्ठ ७ )
तो बस,... ऐसे लिखने में मुझे लिखने का भी मजा आता है और रससिद्ध पढ़नेवालों को पढ़ने का भी,... इरोटिका या श्रृंगार के साहित्य का प्रयोजन ही उद्दीपन करना है,...
न तो मुझे लिखना आता है न मैं भाषाविद हूँ, बस आप सब का स्नेह आर्शीवाद है
मेरा भी यही मानना है कि डाय्लोग्स जिस तरह बोले गए हों(stammering or else) या जिस परिवेश(ग्रामीण, शहरी) या क्षेत्र(उदाहरण - मुम्बईया या हरियाणवी, भोजपुरी या पंजाबी)मेरे ख्याल से दोनों सही है, मैंने दोनों को सुना है लेकिन अलग अलग प्रसंग में,...
हबड़ दबड़ जा के बुला के ले आओ या हबड़ दबड़ का काम अच्छी नहीं होता.
और,
क्या हबड़ हबड़ खा रहे हो,...
जैसा मैंने पहले ही कहा था, गाँव गाँव पे पानी बदले और चार गाँव में बानी,...
और इनका, लोकोक्तियों का, लोकगीतों का रीत रिवाजों का प्रयोग मैं ग्रामीण आंचलिक परीवेश की पृष्ठभूमि को, और अधिक रेखांकित करने के लिए करती हूँ. और भाषा भी पात्रानुकूल ही करने का प्रयास करती हूँ,... और समय चरित्र की स्थिति के अनुसार,
जैसे मोहे रंग में सुहागरात, मिलन यामिनी की पहली रात के अलग अलग पोस्टों में एक मधुर गीत की कड़ियाँ शीर्षक के तौर पे प्रयुक्त की हैं,
रात पिया के संग जागी रे सखी ( पृष्ठ ३ -४ )
चैन पड़ा जो अंग लागी रे सखी ( पृष्ठ ४ )
गजरा सुहाना टूटा , ( पृष्ठ ४ )
आज सुहाग की रात , सुरज जिन उगिहौं ( एक प्रसिद्ध लोकगीत-सुहाग का - पृष्ठ ७ )
बीती विभावरी जाग रे ( जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कविता - पृष्ठ ७ )
तो बस,... ऐसे लिखने में मुझे लिखने का भी मजा आता है और रससिद्ध पढ़नेवालों को पढ़ने का भी,... इरोटिका या श्रृंगार के साहित्य का प्रयोजन ही उद्दीपन करना है,...
न तो मुझे लिखना आता है न मैं भाषाविद हूँ, बस आप सब का स्नेह आर्शीवाद है