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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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ekdam aur Bhaiya ne behanna ki faad ke rakh di


lekin jimmedar aap hi ho, aap ki incest vaali kahani padh ke meri himmat badhi INCEST likhne ki varana meri kya,.... to Arvind ki himmat aur Gita ki halat ke liya Doctor sahiba aap hi jimmedar ho🙏🙏
और क्या जबरदस्त हिम्मत की है... एकदम लाजवाब....
 
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motaalund

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Vaise bhee T-20 World cup me Ek छक्के से काम थोड़े चलता है 😎
चरण स्पर्श दीदी 🙏🙏
सारे छक्के स्टेडियम में जाके गिरेंगे..
 
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motaalund

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हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा।


" शायद, नारी जीवन के सारे सुःख, दर्द की पोटली में बंधे आते हैं. यौवन का प्रथम कदम , जब वह कन्या से नारी बनने की दिशा में पहला कदम उठाती है , चमेली से जवाकुसुम, पहला रक्तस्त्राव, घबड़ाहट भी पीड़ा भी,... लेकिन उसके यौवन की सीढ़ी का वह प्रथम सोपान भी तो होता है, ...

और पिया से मिलन, प्रथम समागम, मधुर चुम्बन, मिलन की अकुलाहट और फिर वो तीव्र पीड़ा, और फिर रक्तस्त्राव,... लेकिन तब तक वह सीख चुंकी होती है , दर्द के कपाट के पीछे ही सुख का आगार छिपा है,...

और चेहरे की सारी पीड़ा, दुखते बदन का दर्द मीठी मुस्कान में घोल के पिया से बिन बोले बोलती है, ' कुछ भी तो नहीं'. आंसू तिरती दिए सी बड़ी बड़ी आँखों में ख़ुशी की बाती जलाती है,... और शायद जीवन का सबसे बड़ा सुख,नारी जीवन की परणिति, सृष्टि के क्रम को आगे चलाने में उसका योगदान, ...

कितनी पीड़ा,... प्रसव पीड़ा से शायद बड़ी कोई पीड़ा नहीं और नए जन्में बच्चे का मुंह देखने से बड़ा कोई सुख नहीं स्त्री के लिए,


और उसके बदलाव के हर क्रम का साक्ष्य रहती हैं रक्त की बूंदे , यौवन के कपाट खुलने की पहली आहट, प्रथम मिलन,... और स्त्री से माँ बनना,... "


आपने मुझे निःशब्द कर दिया। जब मैंने उपरोक्त पंक्तियाँ लिखी थीं, मन के अंदर किसी भी लालची लिखने वाले की तरह ये ये आशा और लालसा दोनों थीं की कोई कम से कम इन पंक्तियों को कम से कम पढ़े, और हो सके तो सराहे भी. लेकिन उम्मीद बिलकुल नहीं थी. पर आप ने, जब पहली बार आप के दोनों कमेंट्स पढ़े तो मैं सोच नहीं पा रही थी कैसे धन्यवाद ज्ञापन करूँ, उसे जो खुद शब्दों की जादूगर है, और जिसकी कवितायें जो इस बार मेरी प्रेरणादायी लेखिका, इस समय फोरम पर सबसे पॉपुलर, उनकी रचना में श्रीवृद्धि करती हैं , तो उनकी तो उपस्थित मात्र ही मुझ जैसी कलम घसीट लेखिका की रचना पर (जिसके पाठक भी विरले हैं और सराहने वाले, मात्र मेरे मित्र, जो मित्रता का मन रखते कुछ अच्छा अच्छा बोलते हैं) आभार का कारण बनती। लेकिन इन पंक्तियों को उद्धृत कर आपने मुझे अपनी पंखी बना लिया।

और मुझे दुस्साहस भी दिया दो बातें शेयर करने की मेरे लिखने के बारे में।


पहली बात मैं मानती हूँ की हम जो यहाँ अवैतनिक, निज सुख के लिए लिखते हैं, कलम के सिपाही या मजदूर भले न हो लेकिन कलम के सौदागर भी नहीं है। इसलिए मेरी पहली प्रतिबध्दिता मेरी कलम के साथ है. मैं उसी तरह से लिखना चाहती हूँ जिसे अगर मैं फिर से पढूं ( तो सौ डेढ़ सौ वर्तनी की गलतियों के अलावा ) मुझे खुद अच्छा लगे.

और एक और मेरी कमजोरी है,महिला पात्र में जिसकी दृष्टि से कहानी को देखना चाहती हूँ और साथ में उसके अंतर्जगत की उथल पुथल, हलचल को भी इंगित करना, अपनी सीमाभर चाहती हूँ. में मानती हूँ की अक्सर न सिर्फ इस फोरम में बल्कि अन्य फोरमों में भी फीमेल सेंसुअसनेस, के पहलू बिन उजागर हुए रह जाते हैं. वह रमण करने योग्य है इसलिए रमणी है , उसकी कामना करते हैं , इसलिए काम्या है, पर देह की जरूरत या स्मर का असर, उसपर भी कम नहीं होता। उसी के साथ मुझे एक और चीज नहीं अच्छी लगाती है, नारी का, लड़की हो, महिला हो , उस का आब्जेक्टिफिकेशन या कामोडिफिकेशन। मेरे लेखे सबसे सुन्दर ' इरोटिक ' या श्रृंगार साहित्य है तो वो संस्कृत में, और महिलाओं की सेंसुअसनेस, जब देह सुख को हम पाप से जोड़ के नहीं देखते थे और इसके बाद रीति काल में ( इसलिए मैंने बिहारी के दोहे लाउंज में शुरू किया था पर किसी रससिद्ध मॉडरेटर की उसपर 'कृपा' हो गयी। )

मैं मानती हूँ की सेक्स, पुरुष के लिए शायद पांच सात मिनट का मामला रहे, पर महिला के लिए तो वो जीवन में मील का पत्थर होता है , जिससे वो अपनी जिंदगी के सोपान नापती है।

काफी कुछ अनर्गल शायद मैंने कह सुन दिया, ...

पर, एक बार पुन: कोटिश आभार, वंदन, नमन आपकी पंक्तियों के लिए , बस हो सके तो कभी कभार आती रहिये,
आप इतना कुछ इतने कम शब्दों में बयान कर जाती हैं...
लगता है आप पर देवी की कृपा है....
 

motaalund

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Ekdam sahi kaha aapane,...samjhdaar to hai hi vo hana thoda slow start hai,...lekin ek baar start hogaya to
एक बार स्टार्ट हो गया तो रेलमपेल मचा देगा...
 
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motaalund

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भाग ३१


इन्सेस्ट कथा उर्फ़ किस्सा भैया और बहिनी का ( अरविन्द -गीता )



रात बाकी बात बाकी




और जब वो तीसरी बार झड़ी तो साथ में उसका भाई भी, ... लेकिन उसे लगा कहीं उसका भाई कुछ डर के सोच के बाहर न निकाल ले झड़ने के पहले,... उसने खुद कस के पानी बाहों में पकड़ के उसे अपनी ओर खींचा, अपनी टांगो को कस के भाई के कमर पर बाँध लिया , उसके अंदर भैया का सिकुड़ , फ़ैल रहा था ,... और फिर जब फव्वारा छूटना शुरू हुआ तो बड़ी देर तक,... कटोरी भर से ज्यादा रबड़ी मलाई, और उसकी प्रेम गली से निकल के ,... बाहर उसकी जाँघों पे ,... लेकिन उसका उठने का मन नहीं कर रहा था और उसने कस के अपने भाई को अपनी बाँहों में बाँध रखा था

बाहर बारिश रुक गयी थी, लेकिन अभी भी घर की छत की ओरी से, पेड़ों की पत्तियों से पानी की बड़ी बड़ी बूंदे चू रहीं थीं

टप टप टप



आधे घंटे के बाद बांहपाश से दोनों अलग हुए और एक दूसरे को देख के कस कर मुस्कराये फिर छोटी बहिनिया लजा गयी और अपना सर भाई के सीने में छुपा लिया।

आधे पौन घंटे के बाद मन तो भैया का भी कर और छुटकी बहिनिया का भी लेकिन पहल कौन करे?

पहल बहन ने ही की,



उसे लगने लगा की कहीं भैया को ये न लग रहा हो की उनसे कुछ गलत हो गया या उन्होंने छुटकी को चोट लगा दी ये सोच के उन्हें बुरा लग रहा हो , दर्द तो उसे अभी भी बहुत हो रहा था, जाँघे फटी पड़ रही थीं, ' वहां' भी रुक रुक के चिलख उठ रही थी,... पैर उठाने या फ़ैलाने का वो सोच भी नहीं सकती थी , और भैया का था भी कितना लम्बा मोटा,... काला नाग,... जो भैया के मोबाइल में वो देखती थी, उससे भी जबरदस्त,...
लेकिन, उससे रहा नहीं गया, उसने डरते डरते उसे छू लिया,... सो रहा था,...भैया का ' वो ' अभी डरने की कोई बात नहीं थी,...
और पहले वही बोली, ' उसे' हलके से छूते हुए उसने भैया को चिढ़ाया,...

" भैया, सो रहा है , थक गया लगता है ,... "

अब भैया के भी बोल खुले , वो कैसे चुप रहता,... छेड़ते हुए उसके गाल पे एक खूब मीठी वाली चुम्मी ली और बहन से बोला,... "

" तो जगा दे न, ... काहें डर रही है छूने से ,.. "

और बहना क्यों भैया से पीछे रहती, बस पहले छुआ, और अभी तो सो रहा था, तो मुट्ठी में ले भी लिया और पकड़ के हलके से दबा भी दिया।
कित्ता अच्छा लग रहा था छूने में,... पर थोड़ी देर में ही वो चौंक गयी, ' वो ' तो जगने लगा था, फूलने लगा था,... उसके मुंह से निकल गया,...



" भैय्या,... "

" अरे पगली घबड़ा क्यों रही है , वो ख़ुशी से फूल रहा है की इत्ती प्यारी से गुड़िया ने उसे हाथ में ले लिया है , ... अभी इत्ता बोल रही थी , अब डर रही है न , डरपोक " भैया ने उसे चिढ़ाया ,...


और अब उसने और कस के न सिर्फ दबोच लिया , बल्कि भैया जैसे उसकी ब्रा पकड़ के इसे सहलाते थे , .... उस समय भी उस का मन करता था , एक बार बस पकड़ ले , मुट्ठी में ले ले ,... तो बस , अब उसी तरह से वो सहला रही थी , मुठिया रही थी,...


थोड़ी ही देर में वो खूब कड़ा हो हो गया,...वो जान रही थी जाग गया तो वो उसकी फिर ऐसी की तैसी करेगा , करेगा तो कर दे , ... और साथ साथ अपन छोटे छोटे जुबना भी अपने भैया के सीने पे रगड़ रही थी , और आग को हवा दे रही थी,...



भैया अब कैसे चुप रहता , उसके भी हाथ चालू हो गए , और जो छोटे छोटे उभार उसकी नींद उड़ाते थे, थोड़ी देर पहले ही सपने में आ के तंग कर रहे थे , बस सके दोनों हाथों में लड्डू और कस के मसलने रगड़ने लगा , उसके होंठ बहना के होंठ चूमने लगे,...



बाहर बीच बीच में से चांदनी बादलों का घूंघट उठा उठा के भैया बहिन की मस्ती देख रही थी, खिड़की पूरी खुली थी , तूफ़ान के बाद ठंडी ठंडी हवा आ रही थी,... और गीता भी चांदनी में नहाये अपने भाई अरविन्द के बदन को निहार रही थी, एकटक।

और अबकी बहना के होंठ भी चुम्मी का जवाब दे रहे थे, जब भैया की जीभ उसके मुंह में घुसती तो उसकी जीभ भी कबड्डी खेलती, ..

और सबसे मज़ा आ रहा था, उसे भैया के,... नहीं नहीं अब तो ये खिलौना उसका था,.... कित्ते दिन से उसकी सहेलियां ललचाती थीं,
मेरे जीजू का इत्ता लम्बा है, मेरे कज़िन का इत्ता मोटा है, जब घुसता है तो जान निकाल लेता है, गितवा स्साली एक बार ले के देख अंदर,...

और अब तो उसके पास, वो सब साली कमीनी देख लेंगी तो चूत और गाँड़ दोनों फट जाएंगी, ... लम्बा मोटा तो है कितना कड़ा भी है

और प्यारा भी, हाथ में पड्कने में कित्ता अच्छा लग रहा है,

मन तो उसका तभी ललचा गया था जब उसके जुबना को निहारते भैया के शार्ट में खूंटे की तरह तना था,



लेकिन जो छेद भैया ने बाथरूम में उसे देखने के लिए किया था, ... उससे असली फायदा तो उसी का होगया,... और छेद बड़ा तो गितवा ने ही किया था की बाथरूम का हर कोना साफ़ साफ़ दिख जाए, आवाज भी सुनाई दे,... और जो पहली बार उसने भैया का हथियार देखा,
कलेजा मुंह को आ गया,



इत्ता,... इत्ता बड़ा,... कैसे फनफनाया हुआ था ,... और उसे अपने जुबना पे अभिमान भी हुआ की भैया की तो उसके कच्चे टिकोरों ने ही की,...

पर दोनों जाँघों के बीच कितनी लिस लिस हुयी थी, सहेली उसकी फुदक रही थी, बजाय डरने के,



और आज छू के पकड़ के इत्ता मजा आ रहा था ,... हाँ अब वो खूब मोटा हो गया था, उसकी मुट्ठी में ठीक से पकड़ में नहीं आ रहा था, पर,... कभी ऊँगली सी फूले फूले लीची से सुपाड़े को बस हलके से छू लेती, तो कभी मूसल के बेस पे नाख़ून से शरारत से खरोंच लेती और भैया गिनगीना जाता,...

लेकिन उसका सारा बदला भैया उन कच्ची अमियो पे उतार रहा था कभी प्यार से चूसते चूसते कस के कुतर देता तो कभी हलके हलके सहलाते सहलाते, पूरी ताकत से रगड़ देता और मसल देता,



गरमा दोनों गए थे,...

और भैया ने पूछ लिया,
बाह्य वातावरण के साथ अंदर के तूफान का संगम ..
क्या शमां बनाया है....
ऐसा लगता है कि पाठकों को शब्दों के जादुई मोहपाश में बाँध लिया गया हो....
 
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motaalund

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आधा -तिहा नहीं,... पूरा, जड़ तक




और भैया ने पूछ लिया,

" गीता, तुझे दर्द तो नहीं हुआ, ज्यादा "

गीता क्या बोले क्या न बोले कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कुछ लोग न हरदम बुद्धू रहते हैं, ये भी कोई पूछने की बात थी. बस दर्द के मारे जान नहीं निकली थी. अब तक जाँघे फटी पड़ रही हैं, 'वहां' ऐसी छरछराहट मची, परपरा रहा है कस कस के,...

बचपन में जब कान माँ ने अपनी गोद में बिठाकर छिदाया था, क्या चीख चिल्लाहट मचाई थी, उसने। वो तो माँ ने झट से एक बड़ा सा लड्डू उसके मुंह में ठूंस दिया और उसकी आवाज बंद हो गयी, फिर सौ रुपये देने का लालच भी दिया था, जो आज तक नहीं दिया। झुमके भी बोला था, लेकिन नीम की सींक पहना दी, हाँ भैया ने मेले में बाली जरूर खरीदवा दी थी। लेकिन वो दर्द कुछ भी नहीं था, कुछ भी नहीं,जो अभी हुआ,... उसके आगे



उस समय वो चीखना नहीं चाहती थी, उसे मालूम था की उसका दर्द भैया से देखा नहीं जाता, उ

सने कस के दांतों से अपने होंठों को दबोच रखा था, पर इत्ती जोर की टीस उठी, की रोकते रोकते भी चीख निकल गयी, वो तो बादलों की गड़गड़ाहट इत्ती जोर की थी और भैया इत्ते जोश में थे की उसकी चीख,



वो चीखती रही,

वो पेलते रहे, ठेलते रहे, धकेलते रहे, चोदते रहे,...





और वो,...वो भी तो कब से यही चाहती थी, भाभी ने भी तो उसे यही सिखाया था, बस किसी तरह भाई को पटा ले , फिर तो जब चाहे तब, गपागप घोंट लेगी, बस एक बार भाई की मोटी बुध्दि में घुस जाए ये बात, घर का माल घर में,...

तो वो कैसे कबूल कर लेती की दर्द के मारे जान निकल गयी थी,... हाँ बस खिस्स से मुस्का दी,


पर बचपन से वो भाई की टांग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी तो आज कैसे छोड़ती, भले रिश्तों में एक हसीन बदलाव आ गया हो,... तो मुस्करा के हलके से उसके मोटे मूसल को सहलाते बोली,...

" लेकिन भैया, एक बार में इस मोटू को पूरा अंदर ढकेलना जरूरी था,... क्या। मैं कहाँ भागी जा रही थी, जब चाहते, जितनी बार चाहते,.... जहाँ चाहते, मैंने न तो पहले मना किया था न, न आगे. "

लेकिन जो उसके भइया ने, अरविन्द ने जवाब दिया वो सुन के तो वो और आग बबूला हो गयी.

" अरे बुद्धू मैंने तो आधा, से बस थोड़ा सा ज्यादा डाला होगा," और अपने खड़े तने लंड पे उसने निशान सा लगा के बताया।



गीता को अंक गणित और रेखा गणित दोनों में अच्छे नंबर मिलते थे उसने अंदाज लगा लिया, ७ इंच के करीब यानी दो इंच से ज्यादा बाहर था. मुठियाते हुए ही उसने बित्ता फैला के नापने की कोशिश चुपके से की थी, पूरा फैला हुआ बित्ता भी उसका वो लीची की तरह रसीला मोटा सुपाड़ा जहाँ शुरू होता है वहां तक मुश्किल से पहुंचा,



और सब जानते हैं की बित्ता नौ इंच का होता है तो भैया का भी उससे कम तो कत्तई नहीं,... तो जहाँ तक वो बता रहे हैं वो भी सात इंच के आसपास,

पर अगर कोई लड़की पल में रत्ती पल में माशा न हो तो वो लड़की नहीं, अगर अंदाज हो जाय की वो कब किस बात से खुश होगी,किस बात से नाराज तो स्कर्ट, साया उठा के झांक लेना चाहिए, कत्तई लड़की नहीं निकलेगी।


बस वो गुस्से में अलफ़, और मारे गुस्से के बोल नहीं निकल रही थे,चेहरा तमतमा गया, बड़ी मुश्किल से बोली,...



" तुम्हारी मेरे अलावा और कितनी बहिन हैं ? "




" कोई नहीं, "

लेकिन अरविन्द समझ गया की उसकी छुटकी बहिनिया उसकी किसी बात पे जोर से गुस्सा है, तो ५०० ग्राम मक्खन एक साथ लगाते हुए फुसलाया,...

" तू मेरी प्यारी प्यारी सेक्सी सेक्सी , एकलौती बहिन है, खूब मीठी " और उसकी नाक पकड़ के चूम लिया,...

पर गीता ने अपने भाई अरविन्द को झिड़क के दूर हटा दिया,...

" तो अरविन्द जी , ये बाकी का आपने अपनी किस दूसरी बहन या महबूबा के लिए रख छोड़ा था "

झट से अरविन्द ने अपने दोनों कानों पे हाथ रख के गलती कबूल कर लिया और गीता ने अपनी डिमांड रख दी,



" चल माफ़ करती हूँ, लेकिन आगे से मुझे ये पूरा चाहिए , पूरा मतलब एकदम पूरा, यहाँ तक " और लंड के बेस पर ऊँगली रख गीता ने अपना इरादा और डिमांड दोनों बता दी.





उसके भाई अरविंद ने हाथ जोड़ा कान पकड़ा झुक के माफ़ी मांगी, तो वो मानी और बोली,


" देख मैं तेरी इकलौती बहन हूँ, अगर तूने एक सूत के बराबर भी बेईमानी की न तो हरदम के लिए कुट्टी,... और कुछ रुक के संगीता ने अपना इरादा साफ़ कर दिया ,


" सुन लो कान खोल के ये सब बहाना नहीं चलेगा की तुझे दर्द होगा, तुझे मेरी कसम, तेरी एकलौती बहन की कसम, चाहे मैं जितना चीखूँ, चिल्लाऊं, रोऊँ , तेरी दुहाई दूँ, हाथ पैर जोड़ूँ, खून खच्चर हो जाए, मैं दर्द से बेहोश हो जाऊं , तू भी तू रुकेगा नहीं, अगर रुका, स्साले तूने पूरा लंड नहीं ठेला तो बस एकदम कुट्टी, पक्की वाली, बात भी नहीं करुँगी। "




और भाई ने फिर हाथ जोड़ के कान पकड़ के अपनी सहमति जताई , लेकिन गीता अरविन्द को इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी , बोली,

" और ये बहाना नहीं चलेगा की अच्छा कल, अगली बार , आगे से ,... अभी और अभी का मतलब तुरंत, पूरा जड़ तक चाहिए मुझे, मैं चाहे जितना भी चिल्लाऊं , रोऊँ,... मेरी बात मानोगे तो तेरी हर बात मानेगी ये बहना,... जब चाहोगे, जहाँ चाहोगे, जैसे चाहोगे, जितनी बार चाहोगे,... अभी से हाँ एडवांस में , आगे से पूछने की जरूरत नहीं, लेकिन अगर जरा भी बाहर रह गया तो कोई बहाना नहीं चलेगा , फिर तो कुट्टी। "



और गीता जान बूझ के अपने भाई अरविन्द को चढ़ा रही थी, उसे भौजी की सीख याद आ रही थी,
अब मक्खन के साथ साथ क्रीम भी लगाना पड़ेगा...
भईया का क्रीम
वो भी पूरे अंदर तक...
आखिर कब से वो अपनी चूत हथेली में लिए फिर रही थी...
 
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motaalund

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रिश्तों में हसीन बदलाव




और गीता जान बूझ के अपने भाई अरविन्द को चढ़ा रही थी, उसे भौजी की सीख याद आ रही थी,...


" ये स्साले लौंडे, घासवालियों के पीछे, खूब चुदी चुदाई काम करनेवालियों के चक्कर में कुत्ते की तरह दुम हिलाते जीभ लपलपाते घुमते हैं एक बार चोदने को मिल जाए, और घर में बिन चुदी कसी कोरी चूत है, मस्त माल है एकदम जिल्ला टॉप, गोरी चिकनी, उस की चूत में आग लगी है, स्साले उस बहन को चोदने के नाम पे स्सालों की गाँड़ फटती है,...




अरे उनकी बहन क्या बिना चुदे बचती है , जिस जिस को वो चोदते हैं, वो भी तो किसी की बहनिया ही हैं,... अरे ये सोच , दुनिया में शुरू में अगर दो ही थे एक आदमी एक औरत,... तो वो स्साला अगर अपनी बहन नहीं चोदता तो दुनिया आगे कैसे बढ़ती लेकिन नहीं , अरे हम सब उसी बहनचोद की औलाद हैं, लेकिन नहीं कहीं पढ़ लिया इन्सेस्ट , इंसेक्ट क्या कहते हैं खराब है, बहनचोद,...

अरे बहन चोदने से बढ़ कर समझदारी कुछ नहीं है , लेकिन क्या करेगी, पहल तुझे ही करनी पड़ेगी, संगीता रानी। तेरा भाई स्साला अरविंदवा नंबरी चोदू है , उसकी शकल देख के लगता है एक बार अगर वो चोदने पे उतर आया न तो ऐसा चोदू तुझे कहीं मिलेगा नहीं , लेकिन उसे चढ़ाना तुझे ही पड़ेगा। "



और गीता वही कर रही थी और उसका भाई अरविन्द अब एकदम से,...

अरविन्द के मुट्ठी में दुनिया का सबसे बड़ा धन, छुटकी बहिनिया के जोबन थे और उन्हें पकड़ के वो कस कस के रगड़ मसल रहा था, अब वो भूल चूका था की उसकी बहिनिया की बारी उमरिया क्या है, ये रुई के फाहे ऐसे २८ नंबर वाले उभार बस अभी उभर ही रहे हैं, कभी हथेली से कस कस के दबाता, तो कभी मूंगफली के दाने के तरह के छोटे छोटे निपल को अंगूठे और तर्जनी के बीच पकड़ के मसल देता,...

और अरविन्द की सगी छोटी बहन गीता सिसक उठती मचल जाती, ... कभी कभी उसे दर्द भी हो रहा था, भैया उसकी चूँची इतनी जोर से रगड़ रहे थे, लेकिन वो मस्ता रही थी, सिसक रही थी ,जाँघों के बीच जोर जोर से लसलसी हो रही थी, थकी थकी जाँघे भी अपने आप फ़ैल रही थीं, चूत में जोर के कीड़े काट रहे थे , ... और उसे सबसे बड़ी ख़ुशी इस बात की हो रही थी कि,

रिश्तों में हसीन बदलाव अब हो चुका था,

उसका सगा भाई अब उसे एक मस्त माल समझ रहा था, चुदवाने के लिए तैयार, चोदने के लिए गर्मागर्म लौंडिया,...



और सहेली की भाभी ने यही बात बार बार सिखाई थी, उसे सिखाया पढ़ाया था की तेरे घर में ही इत्ता मस्त मूसल है, तेरा सगा भाई अरविन्द, और तेरी ओखली अभी तक कोरी है,...

उन्होंने ही बोला था की देखो गरमी में आके कोई भी मरद एक बार तो चोद देगा, पानी भी झाड़ देगा , लेकिन थोड़ी देर बाद ठंडा होने पे भी , उसके मन में कोई बदलाव न हो और उसी समय कुछ देर बाद अगर उसका फिर से तन्ना जाए ,... और वो दुबारा चोद दे तो समझो रिश्ते में बदलाव पूरा ,

अब तुम उसकी माल हो, उसकी सजनी, वो तेरा साजन , अब सिर्फ मरद औरत का रिश्ता , सबसे मस्त रिश्ता,.... और फिर तेरी रोज चुदाई का इंतजाम पक्का ,




इसलिए गीता ने पक्का कर लिया था की कुछ भी करके अपने भाई अरविन्द से उसे दुबारा चुदवाना है,... और उसका भाई खुद चोदने के लिए पागल हो रहा था , यही तो वो चाहती थी , रिश्तों में हसीन बदलाव अब पूरा हो चुका था।
दुबारा क्यों...
बार-बार चुदवाना पड़ेगा....
तभी रिश्तों में हसीन बदलाव अब पूरा होगा
 
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