एक बार स्टार्ट करने पर गाड़ी अंत में हीं रुकेगीFir sayad mujse galti hui. Me kuchh aur samaz kar najar andaz kar rahi thi. Chalo start karti hu.
एक बार स्टार्ट करने पर गाड़ी अंत में हीं रुकेगीFir sayad mujse galti hui. Me kuchh aur samaz kar najar andaz kar rahi thi. Chalo start karti hu.
गरम लौंडिया के लिए गरमा गरम अपडेटUfff ekdam garm
क्या संगीता का कविता पाठ किया है...हमको चैन से सोने नहीं दिया
सपनो में हमको खोने नहीं दिया
भैया ने रात भर जम को चोदा
दर्द हुआ लेकिन रोने नहीं दिया : गीता रानी![]()
Ek bar me sirf pet bhar ke khana kha sakte he. Sal bhar ya mahina bhar ka nahi. Apna apna tarika he.एक बार स्टार्ट करने पर गाड़ी अंत में हीं रुकेगी
Mayke me aag lagvadi. Sasural me kya hogaपूर्वाभास ११ -
साली चली - जीजू के गाँव
पेज ३५ पोस्ट ३४४ -३४५
कुछ देर हम लोग और काम में लगे रहे, तब तक मिश्रायिन भाभी आ गईं।
मिश्रायिन भाभी, सब भौजाइयों की लीडर थीं।
मम्मी से दो चार साल ही छोटी, 32-33 साल के आस-पास और मम्मी की तरह की फिगर वाली, दीर्घ नितम्बा, भरे-भरे चोली फाड़ उरोजों वाली थीं, मिश्रायिन भाभी।
रिश्ते में भले ही बहू लगें, लेकिन थीं वो मम्मी की पक्की सहेली।
किचेन के काम में उन्होंने हम लोगों का हाथ बटाना शुरू कर दिया, और छुटकी के बारे में पूछा।
जवाब उन्हें सामने से मिल गया, जहाँ सीढ़ी से छुटकी उतर रही थी।
और उसे देखकर कोई नौसिखिया भी समझ लेती, की हचक के चुदी है बिचारी।
एक भी कदम उसका सीधे नहीं पड़ रहा था।
एक ओर से रीतू भाभी और दूसरी ओर से ये उसे कसकर पकड़े हुए थे।
हर कदम पर कहर रही थी। उसके गालों पे दाँतों के निशान साफ दिख रहे थे।
टाप के ऊपर के दो बटन दिख रहे थे, और किशोर जस्ट उभरती उठती गोलाइयां न सिर्फ झाँक रही थीं, बल्की खुलकर दिख रही थीं और उनपर लगे दांत और नाखून के निशान भी।
लेकिन यहाँ तो मिश्रायिन भौजी ऐसी खेली खायी, घाट-घाट का पानी पी हुई, अनुभवी महिला थीं।
उन्होंने ऊपर से नीचे तक अपनी छुटकी ननद को देखा, जो अब उनकी बिरादरी में आ गई थी।
जिसकी सोन चिरैया फुर्र-फुर्र कर उड़ चुकी थी, बुलबुल ने चारा गटक लिया था।
और उनकी निगाह ने जैसे सहला दुलरा दिया हो, अपनी प्यारी दुलारी कुँवारी छोटी ननद को।
छुटकी शर्मा गई।
उसके गुलाबी लाजवन्ती गाल पे मिश्रायिन भाभी ने जोर से चिकोटी काटी, और पूछा-
“क्यों जा रही हो आज, अपने जीजा के साथ…”
वो और शर्मा गई, जैसे वो समझ गई हो उसकी दीदी की ससुराल में क्या होना है?
लेकिन जवाब भौजी के नंदोई ने दिया, वो भी उदास स्वर में-
“अरे क्या भाभी, जा रही है लेकिन 15-20 दिन के बाद वापस आ जाएगी…”
“जबकी उसके दो हफ्ते बाद, गर्मी की दो महीने की छुट्टियां शुरू हो जाएँगी…”
छुटकी ने भी अपना दुःख जाहिर किया।
“अरे गरमी की छुट्टी का मजा तो गाँव में ही, हमारी अपनी इतनी बड़ी आम की बाग है, खूब गझिन,
जहाँ दिन में रात हो जाय, लंगड़ा, दसहरी, सब कुछ, लेकिन अब इसको तो लौटना ही है…” '
भौजी के नंदोई का उदास स्वर चालू था।
“लेकिन काहे को लौटोगी, नंदोई जी सही तो कह रहे हैं,
अबकी गर्मी छुट्टी का मजा दीदी की ससुराल में ही लो न, दीदी का भी तुम्हारे मन लगा रहेगा…”
मिश्रायिन भाभी ने कहा।
“मन तो मेरा भी यही कर रहा है, लेकिन…”
छुटकी उदास मन से बोली।
और बात पूरी की, मम्मी ने- “
अरे आना तो पड़ेगा ही बिचारी को, आखिर सालाना इम्तहान है…”
मिश्रायिन भाभी मुश्कुराईं और फिर, प्यार से छुटकी का गाल सहला के पूछीं-
“तेरा क्या मन कर रहा है, जीजू के साथ गर्मी छुट्टी बिताने का, या फिर लौटकर आने का…”
छुटकी को तो अभी इतना मस्त जो नया-नया मजा मिला था, वो यहाँ लौट कर आने पर कहाँ मिलने वाला था, उसके मुँह से दिल की बात निकल ही गई-
“वहीं गर्मी की छुट्टी बिताने का…”
“तो रहो न, क्यों लौट रही है 10 दिन के लिए…” मुश्कुराहट रोकती हुई, मिश्रायिन भाभी बोलीं।
“अरे तो इम्तहान कौन देगा मेरा?” झुंझलाते हुए छुटकी बोली।
“तो मत देना ना…”
मिश्रायिन भाभी बोलीं। फिर हँसकर उसे गले लगाते बोली-
“अरे बुद्धू, मैं किस दिन काम आऊँगी। तेरे छमाही में बहुत अच्छे नंबर थे, मुझे मालूम हैं, बस उसी के बेसिस पर, सप्लीमेंट्री आ जायेगी। मेरी गारंटी…”
मिश्रायिन भाभी छुटकी के स्कूल की वाइस प्रिंसिपल थी और उनके ‘वो’ मैंनेजिंग कमेटी के सेक्रेटरी भी थे, किसकी हिम्मत थी उनकी बात टालती।
मारे खुशी छुटकी उनसे चिपक गई।
और उससे भी ज्यादा खुश हो रहे थे, ‘वो’ उसके जीजू।
और साथ में मैं, जिसमें उनकी खुशी, उसमें मेरी खुशी।
और तभी मंझली भी आ गई।
उसका बोर्ड का इम्तहान कल ही था।
तय ये हुआ की बोर्ड का इम्तहान खत्म करके, वो भी मेरे पास आ जायेगी, और फिर पूरी गर्मी की छुट्टी, दोनों बहने वहीं गाँव में बिताएंगी, मेरे साथ।
मैं मम्मी के साथ किचेन में लग गई।
बस दो घंटे बचे थे, हमें निकलने में।
आधे पौन घंटे में हम लोगों ने खाने का काम आलमोस्ट कर लिया।
मिश्रायिन भाभी और रीतू भाभी, नयी बछेड़ी, छुटकी को कबड्डी के दांव पेंच सिखा रही थीं।
आखिर भाभियां थीं- “नाम मत डुबोना हमारा…”
रीतू भाभी उसके टिकोरे मसलते बोलीं।
“अरे भाभी निचोड़ के रख दूंगी…” हँसते हुए छुटकी बोली।
और फिर मिश्रायिन भाभी पिछवाड़े के दरवाजे के गुर सिखाने में जुट गईं।
मम्मी मुझसे बोलीं-
“जरा मैं छुटकी के कपड़े सामान चेक कर लूँ…”
और मैं ऊपर छुटकी के कमरे की ओर चल दी।
उसके कपड़ों में से मैंने उसकी ब्रा और पैंटी निकाल के वापस बाहर कर दी।
सिवाय एक सेट के।
ये उन्हीं का इंस्ट्रकशन था की, मैं उसकी ब्रा पैंटी निकाल दूँ।
बात सही थी, गाँव में ये सब कौन पहनता है।
फिर उनका और नंदोई जी का फायदा,
जब चाहा, पकड़ा, निहुराया, सटाया
और चोद दिया।
कुछ शरारत और की मैंने, उसके टाप की ऊपर की दो बटनें मैंने तोड़ दी,
अरे जब तक बहन के खुले-खुले जोबन, पूरे गाँव में आग न लगाएं, तो मजा क्या?
मिश्रायिन भाभी चली गई थीं और रीतू भाभी, मम्मी के साथ मिलकर टेबल लगा रही थीं।
;;;;
छुटकी तैयार हो रही थी, ट्रेन के टाइम में एक घण्टा बचा था।
मंझली और रीतू भाभी हम लोगों को स्टेशन तक छोड़ने आये।
और हम सब जब ट्रेन में बैठ गए तो उन दोनों ने आँख नचाकर, मुश्कुराकर पूछा-
“क्यों जीजू, मजा आया ससुराल में पहली होली का…”
गाड़ी चलने के पहले टीटी आया, वही जो परसों रात में ट्रेन में था, और उसने वही बात बोली-
“फर्स्ट क्लास में आज कोई और पैसेंजर नहीं है, आप लोगों के सिवाय। आप डिब्बे का ही दरवाजा अंदर से बंद कर लीजिये,
मुझे और डिब्बे भी चेक करने हैं…”
मुश्कुराते हुए उन्होंने हामी भरी।
कनखियों से मैंने देखा, ₹100 के दो नोट इनके हाथ से उनके हाथ पास हुए, आते हुए से दुगुने…
और क्यों नहीं माल भी तो दुगुने थे।
कच्चे टिकोरों वाली साली,
रात भर रेल गाड़ी में सटासट-सटासट, गपागप-गपागप।
बस, यह थी ‘इनके’ ससुराल में पहली होली के दो दिनों की कहानी।
Hi ful gendva na maro lagat karejva me chot. Re komal ji aap ne to jaan hi nikal liछुटकी - होली, दीदी की ससुराल में
छुटकी,
स्टेशन पर सब लोग छोड़ने आये थे , उनकी सलहज , रीतू भाभी , ... उनकी मंझली साली , दसवीं वाली ... बेचारी अभी भी सम्हल सम्हल कर चल रही थी , पिछवाड़े तेज चिलख उठ रही थी उसको , और रीतू भाभी अपनी ननद की ये हालत देख कर , मुश्किल से अपनी हंसी दबा पा रही थीं , पता उन्हें भी था और मुझे भी , मैं तो जब छत पर के कमरे से छुटकी का सामान लाने गयी थी तो मैंने हल्के से देखा भी था , मंझली निहुरी हुयी थी , कुतिया बनी दुछत्ती पर , और ये पीछे से चढ़े हुए ,
" नहीं जीजू उधर नहीं , पीछे नहीं , प्लीज आगे कर लीजिये न बहुत दर्द हो रहा है "
मैं समझ गयी , अगर लड़के दर्द का ख्याल करें न तो न तो किसी लड़की की गाँड़ मारी जाय न किसी चिकने लौंडे की गाँड़ ,... और ऊपर से वहां न तो कडुआ तेल था न वैसलीन , सिर्फ थूक लगा के ये अपनी मंझली साली की गाँड़ मारने के चक्कर में पड़े थे , दसवें में पढ़ने वाली लड़की ,कितनी कसी होगी आप सोच सकते हैं , ...
बस मैं दबे पाँव बिना कुछ भी आवाज किये नीचे छुटकी का समान ले कर आ गयी ,
मिश्राइन भाभी ने बल्कि पूछा भी पाहुन नहीं दिख रहे हैं मैंने बहाना बना दिया , बस तैयार हो रहे हैं , आ ही रहे हैं।
हम लोगो के एकदम चलने का टाइम हो गया तब पहले सहारा लेकर धीरे धीरे मंझली ऊपर से उतरी , और पीछे पीछे वो ,...
और मंझली के चलने के अंदाज से सभी समझ गए पिछवाड़े कुदाल कस के चली है।
छुटकी बहुत खुश थी ,
आखिर उसे अपने जीजू के साथ चलने का मौका मिल गया , और फिर उससे बढ़कर उसे आठ दस दिन के बाद आना नहीं पड़ेगा , मिश्राइन भाभी ने अपने सलहज होने का हक पूरी तरह अदा कर दिया , नन्दोई का फायदा करा कर ,... इनका मुंह उतरा था छुटकी चल तो रही थी , लेकिन उसे आठ दस दिन बाद आना पड़ता , नौवीं का सालाना का इम्तहान बाकी था ,
बस उन्होंने अपने नन्दोई की परेशानी समझ भी ली , सुलझा भी दी। वो छुटकी के स्कूल की वाइसप्रिंसिपल थी और मिश्राजी मैनेजर , बस। उन्होंने फैसला सुना दिया , छुटकी को।
" ... तो मत आओ न , अरे ऐसे जीजू के पास जाने का मौक़ा थोड़े मिलता है , अरे तेरा छमाही में अच्छे नंबर थे बस उसी के ऊपर , ... कम्पार्टमेंटल ,... अब जुलाई में स्कूल खुलेगा तभी , तीन चार महीने दीदी जीजा के पास रहो ,... "
ये बताना मुश्किल था की छुटकी ज्यादा खुश थी या छुटकी के जीजू।
और अब वो अपने जीजू के पास चिपकी लिबरा रही थी,इतरा रही थी , मंझली को चिढ़ा रही थी , एकदम भूल कर की अभी चार पांच घंटे पहले इन्ही इसके जीजू ने कितनी बेरहमी से फाड़ी थी ,... और कितना जोर जोर से वो चीख चिल्ला रही थी।
" जीजू आपने आज बहुत तंग किया अभी तक ,... " वो अपने जीजू से शिकायत कर रही थी की उसके जीजू की सलहज ने अपनी ननद का छुटकी का गाल कस के चिकोटी काटी ,
" अरे जीजू ने तंग किया की ढीली किया , अभी तो जा रही हो न आज रात में ट्रेन में तेरी बची खुची भी ढीली कर देंगे , ... प्यार से करवाना , ... "
स्टेशन पर ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी , अभी तो होली की छुट्टिया हीं चल रही थी , कौन होली के बीच में जाता , और जब ट्रेन आयी तो वो भी आलमोस्ट खाली , फर्स्ट क्लास के चार बर्थ वाले में हम लोगों का रिजर्वेशन था , हम लोगों का स्टेशन छोटा सा था तो दो मिनट में ही ट्रेन चलने लगी।
लेकिन तभी उसके पहले टीटी आया , वही जो हम लोगों के आते समय था और जिसको उन्होंने १०० रुपये की टिप दी थी
उनको देखते ही जोर से मुस्कराया , बोला लगता है होली जबरदस्त हुयी है।
सच में १० -१२ कोट तक तो मैंने गिना था उसके बाद मैंने भी छोड़ दिया , सबसे तगड़ी तो मोहल्ले की भाभियाँ , इनकी सलहजें , ... महीने भर की कालिख इकट्ठा की थी और एक इंच भी इनके देह की बची नहीं होगी , जहाँ वो कालिख नहीं पोती गयी होगी , बल्कि मिश्राइन औरदूबे भाभी ने पिछवाड़े दो पोर तक अंदर ऊँगली कर के भी , उसके बाद आज उनकी सालियों ने लीला , रीमा छुटकी और रीतू भाभी ने ,... पिछवाड़े के गड़हे में , वार्निश पेण्ट , पके रंग लाल नीला बैगनी और रीतू भाभी ने तो इनकी सालियों से , छुटकी की दोनों सहेलियों से , सीधे उनके चर्म दंड पर सुनहला पेण्ट ,...
" अरे ससुराल में आये थे ऐसे बच के चले जाते , ... महीने भर तक तो लगेगा रंग छुड़ाने में , " उनके बगल में बैठी हंसती खिलखलाती छुटकी बोली।
उसका भी तो चेहरा क्या पूरी देह पर अभी भी रंगों के निशान,.... जीजा के साथ भौजाइयों ने भी
लेकिन ये तो सीधे मुद्दे पर आये ,
" रास्ते में कोई और पैंसेजर तो नहीं आएगा ,... " उन्होंने पूछा।
" नहीं नहीं अभी तो होली की ,... आप के कोच में आप ही लोग है और आप का स्टेशन भी सुबह आठ बजे आएगा , और आज ट्रेन में कोई और टीटी नहीं है , मुझे ही सारे डिब्बे चेक करने है , एक ओर का डिब्बा मैंने बंद कर दिया है , आप दूसरी ओर का बंद कर दें "
इतनी जोर से इनकी मुस्कराहट फैली और बाहर निकलने के साथ ही अबकी २०० का नोट इनके हाथ से टीटी के जेब में चला गया।
मुझे मंझली और छुटकी का स्टेशन पर , एक दूसरे को चिढ़ाना याद आ रहा था, पहले तो छुटकी खूब मंझली को चिढ़ा रही थी,
"देख जीजू मुझे ज्यादा चाहते हैं तभी तो मुझे अपने साथ ले जा रहे हैं, तू यहाँ बैठ के किताबों से कुश्ती लड़ना और मैं वाहन जीजा के साथ गाँव में खूब मस्ती,... और अब तो इम्तहान देने भी नहीं लौटना है, मुझे बस वहीँ दीदी के गाँव, जीजू के साथ रोज मस्ती,... "
लेकिन मंझली भी तो मेरी बहन थी, वो चढ़ गयी, बोली,...
" अरे जीजू ने तो तेरे सिर्फ आगे, मेरे तो आगे पीछे दोनों ओर, अभी शाम को खूब दर्द हुआ लेकिन साली कौन जो जीजू के लिए थोड़ा बहुत दर्द न बर्दास्त करे, ...तो सोच ले,... मैं बड़ी हूँ , इसलिए मेरे आगे पीछे दोनों , और तेरे तो सिर्फ एक ओर "
गनीमत था उसी समय ट्रेन के आने की सीटी सुनाई दी लेकिन मैं जानती थी छुटकी को , अब उसके मन में भी,....
और उसे क्या मालूम था, उसके पिछवाड़े पर तो उसके जीजू के जीजू का नाम लिखा था, जो पिछवाड़े के मामले में अपने साले से भी दो हाथ आगे थे, और किंकी भी नम्बरी, मैं भूल नहीं सकती की होली के दिन दहाड़े कैसे उन्होंने मेरे पिछवाड़े चढ़ाई की, वो भी अपनी पत्नी और मेरी ननद के सामने, साथ में उनका एक दोस्त भी था,
ये अभी भी केबिन के बाहर थे , सब दरवाजे कोच के अच्छी तरह बंद करने, और कपडे चेंज करने, और मैं एक बार फिर से यादों में खो गयी, नन्दोई जी ने रगड़ाई तो मेरी बहुत की पर मजा भी बहुत आया,
फ्लैश बैक
Aapke sath humari bhi gujarish jor dijiye baki komalji jaane……अगर इसकी भी झलक मिल जाए तो....
Bhut lajawab tarike se chudayi k baad ki jhijhak dikhayi hai ki ...sala pahale ab kon kare???भाग ३१
इन्सेस्ट कथा उर्फ़ किस्सा भैया और बहिनी का ( अरविन्द -गीता )
रात बाकी बात बाकी
और जब वो तीसरी बार झड़ी तो साथ में उसका भाई भी, ... लेकिन उसे लगा कहीं उसका भाई कुछ डर के सोच के बाहर न निकाल ले झड़ने के पहले,... उसने खुद कस के पानी बाहों में पकड़ के उसे अपनी ओर खींचा, अपनी टांगो को कस के भाई के कमर पर बाँध लिया , उसके अंदर भैया का सिकुड़ , फ़ैल रहा था ,... और फिर जब फव्वारा छूटना शुरू हुआ तो बड़ी देर तक,... कटोरी भर से ज्यादा रबड़ी मलाई, और उसकी प्रेम गली से निकल के ,... बाहर उसकी जाँघों पे ,... लेकिन उसका उठने का मन नहीं कर रहा था और उसने कस के अपने भाई को अपनी बाँहों में बाँध रखा था
बाहर बारिश रुक गयी थी, लेकिन अभी भी घर की छत की ओरी से, पेड़ों की पत्तियों से पानी की बड़ी बड़ी बूंदे चू रहीं थीं
टप टप टप
आधे घंटे के बाद बांहपाश से दोनों अलग हुए और एक दूसरे को देख के कस कर मुस्कराये फिर छोटी बहिनिया लजा गयी और अपना सर भाई के सीने में छुपा लिया।
आधे पौन घंटे के बाद मन तो भैया का भी कर और छुटकी बहिनिया का भी लेकिन पहल कौन करे?
पहल बहन ने ही की,
उसे लगने लगा की कहीं भैया को ये न लग रहा हो की उनसे कुछ गलत हो गया या उन्होंने छुटकी को चोट लगा दी ये सोच के उन्हें बुरा लग रहा हो , दर्द तो उसे अभी भी बहुत हो रहा था, जाँघे फटी पड़ रही थीं, ' वहां' भी रुक रुक के चिलख उठ रही थी,... पैर उठाने या फ़ैलाने का वो सोच भी नहीं सकती थी , और भैया का था भी कितना लम्बा मोटा,... काला नाग,... जो भैया के मोबाइल में वो देखती थी, उससे भी जबरदस्त,...
लेकिन, उससे रहा नहीं गया, उसने डरते डरते उसे छू लिया,... सो रहा था,...भैया का ' वो ' अभी डरने की कोई बात नहीं थी,...
और पहले वही बोली, ' उसे' हलके से छूते हुए उसने भैया को चिढ़ाया,...
" भैया, सो रहा है , थक गया लगता है ,... "
अब भैया के भी बोल खुले , वो कैसे चुप रहता,... छेड़ते हुए उसके गाल पे एक खूब मीठी वाली चुम्मी ली और बहन से बोला,... "
" तो जगा दे न, ... काहें डर रही है छूने से ,.. "
और बहना क्यों भैया से पीछे रहती, बस पहले छुआ, और अभी तो सो रहा था, तो मुट्ठी में ले भी लिया और पकड़ के हलके से दबा भी दिया।
कित्ता अच्छा लग रहा था छूने में,... पर थोड़ी देर में ही वो चौंक गयी, ' वो ' तो जगने लगा था, फूलने लगा था,... उसके मुंह से निकल गया,...
" भैय्या,... "
" अरे पगली घबड़ा क्यों रही है , वो ख़ुशी से फूल रहा है की इत्ती प्यारी से गुड़िया ने उसे हाथ में ले लिया है , ... अभी इत्ता बोल रही थी , अब डर रही है न , डरपोक " भैया ने उसे चिढ़ाया ,...
और अब उसने और कस के न सिर्फ दबोच लिया , बल्कि भैया जैसे उसकी ब्रा पकड़ के इसे सहलाते थे , .... उस समय भी उस का मन करता था , एक बार बस पकड़ ले , मुट्ठी में ले ले ,... तो बस , अब उसी तरह से वो सहला रही थी , मुठिया रही थी,...
थोड़ी ही देर में वो खूब कड़ा हो हो गया,...वो जान रही थी जाग गया तो वो उसकी फिर ऐसी की तैसी करेगा , करेगा तो कर दे , ... और साथ साथ अपन छोटे छोटे जुबना भी अपने भैया के सीने पे रगड़ रही थी , और आग को हवा दे रही थी,...
भैया अब कैसे चुप रहता , उसके भी हाथ चालू हो गए , और जो छोटे छोटे उभार उसकी नींद उड़ाते थे, थोड़ी देर पहले ही सपने में आ के तंग कर रहे थे , बस सके दोनों हाथों में लड्डू और कस के मसलने रगड़ने लगा , उसके होंठ बहना के होंठ चूमने लगे,...
बाहर बीच बीच में से चांदनी बादलों का घूंघट उठा उठा के भैया बहिन की मस्ती देख रही थी, खिड़की पूरी खुली थी , तूफ़ान के बाद ठंडी ठंडी हवा आ रही थी,... और गीता भी चांदनी में नहाये अपने भाई अरविन्द के बदन को निहार रही थी, एकटक।
और अबकी बहना के होंठ भी चुम्मी का जवाब दे रहे थे, जब भैया की जीभ उसके मुंह में घुसती तो उसकी जीभ भी कबड्डी खेलती, ..
और सबसे मज़ा आ रहा था, उसे भैया के,... नहीं नहीं अब तो ये खिलौना उसका था,.... कित्ते दिन से उसकी सहेलियां ललचाती थीं,
मेरे जीजू का इत्ता लम्बा है, मेरे कज़िन का इत्ता मोटा है, जब घुसता है तो जान निकाल लेता है, गितवा स्साली एक बार ले के देख अंदर,...
और अब तो उसके पास, वो सब साली कमीनी देख लेंगी तो चूत और गाँड़ दोनों फट जाएंगी, ... लम्बा मोटा तो है कितना कड़ा भी है
और प्यारा भी, हाथ में पड्कने में कित्ता अच्छा लग रहा है,
मन तो उसका तभी ललचा गया था जब उसके जुबना को निहारते भैया के शार्ट में खूंटे की तरह तना था,
लेकिन जो छेद भैया ने बाथरूम में उसे देखने के लिए किया था, ... उससे असली फायदा तो उसी का होगया,... और छेद बड़ा तो गितवा ने ही किया था की बाथरूम का हर कोना साफ़ साफ़ दिख जाए, आवाज भी सुनाई दे,... और जो पहली बार उसने भैया का हथियार देखा,
कलेजा मुंह को आ गया,
इत्ता,... इत्ता बड़ा,... कैसे फनफनाया हुआ था ,... और उसे अपने जुबना पे अभिमान भी हुआ की भैया की तो उसके कच्चे टिकोरों ने ही की,...
पर दोनों जाँघों के बीच कितनी लिस लिस हुयी थी, सहेली उसकी फुदक रही थी, बजाय डरने के,
और आज छू के पकड़ के इत्ता मजा आ रहा था ,... हाँ अब वो खूब मोटा हो गया था, उसकी मुट्ठी में ठीक से पकड़ में नहीं आ रहा था, पर,... कभी ऊँगली सी फूले फूले लीची से सुपाड़े को बस हलके से छू लेती, तो कभी मूसल के बेस पे नाख़ून से शरारत से खरोंच लेती और भैया गिनगीना जाता,...
लेकिन उसका सारा बदला भैया उन कच्ची अमियो पे उतार रहा था कभी प्यार से चूसते चूसते कस के कुतर देता तो कभी हलके हलके सहलाते सहलाते, पूरी ताकत से रगड़ देता और मसल देता,
गरमा दोनों गए थे,...
और भैया ने पूछ लिया,
Bahanchod geeta to puri syani nikli.... apni chij par kaise Haq jamaya jata hai... pahli baar m hi arvind ki gaand Faad k rakh di... wo to bechara Geeta ki bhalayi hi dekh rha tha ki KACCHI KALI hai Dard hoga....आधा -तिहा नहीं,... पूरा, जड़ तक
और भैया ने पूछ लिया,
" गीता, तुझे दर्द तो नहीं हुआ, ज्यादा "
गीता क्या बोले क्या न बोले कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कुछ लोग न हरदम बुद्धू रहते हैं, ये भी कोई पूछने की बात थी. बस दर्द के मारे जान नहीं निकली थी. अब तक जाँघे फटी पड़ रही हैं, 'वहां' ऐसी छरछराहट मची, परपरा रहा है कस कस के,...
बचपन में जब कान माँ ने अपनी गोद में बिठाकर छिदाया था, क्या चीख चिल्लाहट मचाई थी, उसने। वो तो माँ ने झट से एक बड़ा सा लड्डू उसके मुंह में ठूंस दिया और उसकी आवाज बंद हो गयी, फिर सौ रुपये देने का लालच भी दिया था, जो आज तक नहीं दिया। झुमके भी बोला था, लेकिन नीम की सींक पहना दी, हाँ भैया ने मेले में बाली जरूर खरीदवा दी थी। लेकिन वो दर्द कुछ भी नहीं था, कुछ भी नहीं,जो अभी हुआ,... उसके आगे
उस समय वो चीखना नहीं चाहती थी, उसे मालूम था की उसका दर्द भैया से देखा नहीं जाता, उ
सने कस के दांतों से अपने होंठों को दबोच रखा था, पर इत्ती जोर की टीस उठी, की रोकते रोकते भी चीख निकल गयी, वो तो बादलों की गड़गड़ाहट इत्ती जोर की थी और भैया इत्ते जोश में थे की उसकी चीख,
वो चीखती रही,
वो पेलते रहे, ठेलते रहे, धकेलते रहे, चोदते रहे,...
और वो,...वो भी तो कब से यही चाहती थी, भाभी ने भी तो उसे यही सिखाया था, बस किसी तरह भाई को पटा ले , फिर तो जब चाहे तब, गपागप घोंट लेगी, बस एक बार भाई की मोटी बुध्दि में घुस जाए ये बात, घर का माल घर में,...
तो वो कैसे कबूल कर लेती की दर्द के मारे जान निकल गयी थी,... हाँ बस खिस्स से मुस्का दी,
पर बचपन से वो भाई की टांग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी तो आज कैसे छोड़ती, भले रिश्तों में एक हसीन बदलाव आ गया हो,... तो मुस्करा के हलके से उसके मोटे मूसल को सहलाते बोली,...
" लेकिन भैया, एक बार में इस मोटू को पूरा अंदर ढकेलना जरूरी था,... क्या। मैं कहाँ भागी जा रही थी, जब चाहते, जितनी बार चाहते,.... जहाँ चाहते, मैंने न तो पहले मना किया था न, न आगे. "
लेकिन जो उसके भइया ने, अरविन्द ने जवाब दिया वो सुन के तो वो और आग बबूला हो गयी.
" अरे बुद्धू मैंने तो आधा, से बस थोड़ा सा ज्यादा डाला होगा," और अपने खड़े तने लंड पे उसने निशान सा लगा के बताया।
गीता को अंक गणित और रेखा गणित दोनों में अच्छे नंबर मिलते थे उसने अंदाज लगा लिया, ७ इंच के करीब यानी दो इंच से ज्यादा बाहर था. मुठियाते हुए ही उसने बित्ता फैला के नापने की कोशिश चुपके से की थी, पूरा फैला हुआ बित्ता भी उसका वो लीची की तरह रसीला मोटा सुपाड़ा जहाँ शुरू होता है वहां तक मुश्किल से पहुंचा,
और सब जानते हैं की बित्ता नौ इंच का होता है तो भैया का भी उससे कम तो कत्तई नहीं,... तो जहाँ तक वो बता रहे हैं वो भी सात इंच के आसपास,
पर अगर कोई लड़की पल में रत्ती पल में माशा न हो तो वो लड़की नहीं, अगर अंदाज हो जाय की वो कब किस बात से खुश होगी,किस बात से नाराज तो स्कर्ट, साया उठा के झांक लेना चाहिए, कत्तई लड़की नहीं निकलेगी।
बस वो गुस्से में अलफ़, और मारे गुस्से के बोल नहीं निकल रही थे,चेहरा तमतमा गया, बड़ी मुश्किल से बोली,...
" तुम्हारी मेरे अलावा और कितनी बहिन हैं ? "
" कोई नहीं, "
लेकिन अरविन्द समझ गया की उसकी छुटकी बहिनिया उसकी किसी बात पे जोर से गुस्सा है, तो ५०० ग्राम मक्खन एक साथ लगाते हुए फुसलाया,...
" तू मेरी प्यारी प्यारी सेक्सी सेक्सी , एकलौती बहिन है, खूब मीठी " और उसकी नाक पकड़ के चूम लिया,...
पर गीता ने अपने भाई अरविन्द को झिड़क के दूर हटा दिया,...
" तो अरविन्द जी , ये बाकी का आपने अपनी किस दूसरी बहन या महबूबा के लिए रख छोड़ा था "
झट से अरविन्द ने अपने दोनों कानों पे हाथ रख के गलती कबूल कर लिया और गीता ने अपनी डिमांड रख दी,
" चल माफ़ करती हूँ, लेकिन आगे से मुझे ये पूरा चाहिए , पूरा मतलब एकदम पूरा, यहाँ तक " और लंड के बेस पर ऊँगली रख गीता ने अपना इरादा और डिमांड दोनों बता दी.
उसके भाई अरविंद ने हाथ जोड़ा कान पकड़ा झुक के माफ़ी मांगी, तो वो मानी और बोली,
" देख मैं तेरी इकलौती बहन हूँ, अगर तूने एक सूत के बराबर भी बेईमानी की न तो हरदम के लिए कुट्टी,... और कुछ रुक के संगीता ने अपना इरादा साफ़ कर दिया ,
" सुन लो कान खोल के ये सब बहाना नहीं चलेगा की तुझे दर्द होगा, तुझे मेरी कसम, तेरी एकलौती बहन की कसम, चाहे मैं जितना चीखूँ, चिल्लाऊं, रोऊँ , तेरी दुहाई दूँ, हाथ पैर जोड़ूँ, खून खच्चर हो जाए, मैं दर्द से बेहोश हो जाऊं , तू भी तू रुकेगा नहीं, अगर रुका, स्साले तूने पूरा लंड नहीं ठेला तो बस एकदम कुट्टी, पक्की वाली, बात भी नहीं करुँगी। "
और भाई ने फिर हाथ जोड़ के कान पकड़ के अपनी सहमति जताई , लेकिन गीता अरविन्द को इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी , बोली,
" और ये बहाना नहीं चलेगा की अच्छा कल, अगली बार , आगे से ,... अभी और अभी का मतलब तुरंत, पूरा जड़ तक चाहिए मुझे, मैं चाहे जितना भी चिल्लाऊं , रोऊँ,... मेरी बात मानोगे तो तेरी हर बात मानेगी ये बहना,... जब चाहोगे, जहाँ चाहोगे, जैसे चाहोगे, जितनी बार चाहोगे,... अभी से हाँ एडवांस में , आगे से पूछने की जरूरत नहीं, लेकिन अगर जरा भी बाहर रह गया तो कोई बहाना नहीं चलेगा , फिर तो कुट्टी। "
और गीता जान बूझ के अपने भाई अरविन्द को चढ़ा रही थी, उसे भौजी की सीख याद आ रही थी,
aisa hi hoga, aur huaBahanchod geeta to puri syani nikli.... apni chij par kaise Haq jamaya jata hai... pahli baar m hi arvind ki gaand Faad k rakh di... wo to bechara Geeta ki bhalayi hi dekh rha tha ki KACCHI KALI hai Dard hoga....
Magar nahi Ladki ko kon samjhe.... dikha di apni ladki wali jid.... aur samjh....
Abhi baar jad tak hi pal dena.... chahe jitna roye chillaye ya bhage..... bas pakad ke pal de jad tak.....
![]()