Shetan
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Bahot tadpa diya aapne to. Par maza bhi bahot aaya. Kash esa seen chhutki ke lie bhi likhte.उईईईईई नहीं ओह्ह्ह्हह्ह भैयाआ उईईईई जान गईइइइइइइइ,
फ़ट गयी
बहन अपनी सारी सीख , सहेलियों की बातें , और उस से बढ़ के गाँव के भौजाइयों की बातें,... ढीली रखना, देह खूब ढीली रखना , उधर से ध्यान हटा के एक बार मूसल चलना शुरू हो गया उसके बाद उसके बारे में,...लेकिन फटते समय सब ज्ञान भूल जाता है, सिर्फ दर्द, और,... दर्द, चीख और चिलख
और अचानक,.... बादल जोर से कड़के ,... गड़ गड़ गड़ गड़ जैसे इंद्र के हाथी आपस में भिड़ गये हों , खूब तक गर्जन, उसने कस के पलंग को थाम रखा था,... कनखियों से उसने देखा,
बहुत जोर से बिजली चमकी , कमरे के अंदर तक कौंध गयी,...
और फिर बादलों की गड़गड़ , उसकी चीख बहुत रोकने के बाद भी निकल गयी, लगा की गरम भाला उसकी जाँघों के बीच घुस गया है ,... बिजली बाहर नहीं उसकी जाँघों के बीच गिरी है , ... उसने तय किया था वो नहीं चीखेगी पर फिर भी ,... पर उस गड़गड़ाहट और बिजली की चमक के बीच...
सुपाड़ा अभी भी पूरी तरह नहीं घुस पाया था , हाँ अच्छी तरह फंस गया था , धंस गया था , एक पल रुक के ,... उसके भैया ने गहरी साँस ली, हलका सा बाहर खींचा,...
और कैसे कोई कुशल धनुर्धर बाण संधान के पहले प्रत्यंचा को अपने कंधे तक पूरी ताकत से खींचता और फिर बाण छोड़ता है , एकदम उसी तरह , पूरी ताकत से , उसके भैया ने पुश किया , वो ठेलते गए , धकलते गए,
बाण बांकी हिरणिया को लग चुका था , एकदम अंदर तक , वो सारंग नयनी , जीवन का प्रथम पुरुष संसर्ग का सुख, दर्द के सम्पुट में बंधा,... उसे मिल चुका था
, सुपाड़ा पूरी तरह अंदर पैबस्त हो गया था।
शायद, नारी जीवन के सारे सुःख, दर्द की पोटली में बंधे आते हैं. यौवन का प्रथम कदम , जब वह कन्या से नारी बनने की दिशा में पहला कदम उठाती है , चमेली से जवाकुसुम, पहला रक्तस्त्राव, घबड़ाहट भी पीड़ा भी,... लेकिन उसके यौवन की सीढ़ी का वह प्रथम सोपान भी तो होता है, ...
और पिया से मिलन, प्रथम समागम, मधुर चुम्बन, मिलन की अकुलाहट और फिर वो तीव्र पीड़ा, और फिर रक्तस्त्राव,... लेकिन तब तक वह सीख चुंकी होती है , दर्द के कपाट के पीछे ही सुख का आगार छिपा है,...
और चेहरे की सारी पीड़ा, दुखते बदन का दर्द मीठी मुस्कान में घोल के पिया से बिन बोले बोलती है, ' कुछ भी तो नहीं'. आंसू तिरती दिए सी बड़ी बड़ी आँखों में ख़ुशी की बाती जलाती है,... और शायद जीवन का सबसे बड़ा सुख,नारी जीवन की परणिति, सृष्टि के क्रम को आगे चलाने में उसका योगदान, ...
कितनी पीड़ा,... प्रसव पीड़ा से शायद बड़ी कोई पीड़ा नहीं और नए जन्में बच्चे का मुंह देखने से बड़ा कोई सुख नहीं स्त्री के लिए,
और उसके बदलाव के हर क्रम का साक्ष्य रहती हैं रक्त की बूंदे , यौवन के कपाट खुलने की पहली आहट, प्रथम मिलन,... और स्त्री से माँ बनना,... लेकिन लड़कियों के लिए ख़ास तौर से गाँव की लड़कियों के लिए ये कोई अचरज नहीं है ,
वो हुंडाती बछिया पर सांड़ को चढ़ते हुए , कातिक में कुत्ते और कुतिया को , गाय को बछड़ा जनते,...
और सबसे बढ़कर जब हलधर धरती में हल गड़ाते हैं , चीर कर बीज आरोपित करते हैं तो धरती के दर्द को नारी ही समझती है , और जब कुछ दिनों बाद धानी चूनर पहन , धरती शष्य श्यामला हो गाने गुनगुनाने लगती है तो उसके सुख की सहेली भी नारी होती है,...
और यह हलधर, अनुभवी था , कोई पहली बार खेत नहीं जोत रहा था , उसे मालूम था कैसे खेत में कैसे हल चलाना चाहिए, कब कितनी फाल अंदर तक,...
कब रुकना चाहिए और कब पूरी ताकत के साथ,...
और वह रुक गया, उसे मालूम था न सिर्फ सुपाड़ा बल्कि एक दो इंच और अंदर चला गया है , और इतना तेल लगाने के बाद भी कितनी जलन चुभन हो रही होगी,... और असली दर्द तो अभी बाकी थी,... बस वह रुक गया, ... नहीं , निकाला नहीं उसने ,
बस झुक के बहुत हलके से अपनी छोटी बहन के दर्द से भरी बड़ी बड़ी बंद आँखों को बस हलके से चूम लिया,...
और फिर तो जैसे कोई भौरां कली से छुआ छुववल खेले, उसके होंठ , कभी गालों को हलके से ,.. तो कभी होंठों को सील कर देते और धीरे धीरे उन गुलाबी कलियों का रस लेते,...
और जिसका वो दीवाना था , वो उरोज, आज उसके सामने उसकी छोटी बहन ने खुद परोस दिए थे, ...
कभी उरोजों के बेस पर तो कभी जस्ट आ रहे, स्तनाग्रों पर बस हलकी सी चुम्मी , कच्चे टिकोरों पर आज पहली बार किसी तोते की ठोर लग रही थी, हलके हलके कुतरने में वो मजा आ रहा था , एकदम गूंगे का गुड़, जिसने कच्ची अमिया कभी कुतरी होंगी , वही उनका स्वाद समझ सकता है,...
कुतरवाने वाली को भी मज़ा आ रहा था, झप्प से उसने आँखें खोल दी , उसे लगा तीर पूरा धंस गया , दर्द का अध्याय खत्म हो गया है ,
उस बेचारी को क्या मालूम था , अभी तो तीर की पूरी नोंक भी नहीं ठीक से घुसी थी।
भैया के चेहरे को अपने सामने देख वो शर्मीली शर्मा गयी और झट्ट से आँखों के दरवाजे बंद कर दिए, ... और भैया के सिर्फ होंठ ही नहीं , उनके हाथ भी, पूरी देह सुख ले रही थी दे रही थी , जब होंठ भैया के बहना के गालों का रस लेते तो हाथ जुबना को मसलते रगड़ते और जब होंठ निप्प्स पर आके जीभ से फ्लिक करते तो, भैया के हाथ रेशमी मख़मली जाँघों पर फिसलते, सिर्फ सुपाड़ा धंसा अपनी बारी का इन्तजार कर रहा था और वो जल्द आ गया.
एक बार फिर उस हलधर ने अपने हल की फाल को ठीक किया, नीचे लेटी भले ही पहली बार,
लेकिन वो नया खिलाड़ी नहीं थी, ... हर उमर वाली के साथ, उसकी माँ की उमर वाली काम वालियों के साथ भी और,... जिनका गौना नहीं हुआ वैसी, ... झिल्लियां भी कितनी की फाड़ी थी उसने लेकिन ऐसी कच्ची कोरी, और वो भी सगी छोटी बहन,...
एक बार फिर से उसने उन छोटे छोटे मस्त चूतड़ों के नीचे तकिये को ठीक से लगाया और अबकी दोनों टांगों को मोड़ के दुहरा कर दिया , ... हल एकदम अंदर तक धँसाना पड़ता है , ऐसी जमीन जहाँ पहली बार खेती हो रही हो, बीज डालना हो खूब अंदर,... और बगल में रखी तेल की बोतल के ढक्क्न को खोल के , बाहर बचे मोटे मूसल को तेल से नहला दिया,... और अबकी बहन की दोनों मेंहदी लगी हथेलियों को कस के दबोच के,... अपनी पूरी ताकत से ठेल दिया, ...
मोटा लिंग , सूत सूत करके , धीमे धीमे रगड़ते दरेरते, फाड़ते अंदर जा रहा था ,
वो छटपटा रही थी , किसी तरह दांतों से काट के अपने होंठों को , चीखें निकलने से रोक रही थी , फिर चेहरे पर दर्द के भाव एक बार फिर से उभरने लगे थे,...
लेकिन वो हलधर अबकी रुकने वाला नहीं था,... उसकी कमर में , उसके नितम्बों में बहुत जोर था , जिस जिस पे वो चढ़ा था सब उसे 'सांड़ ' कहती थीं,... अपनी दोनों जाँघों के बीच कसके उसने अपनी बछिया को दबोच रखा था,...
इधर उधर हिलने को वो लाख कोशिश करे, चूतड़ पटके पर ज़रा भी अब उसके नीचे से सरक नहीं सकती थी , उस कोरी के दोनों नरम मुलायम हाथ उसके हाथों में जकड़े थे, उसकी पूरी देह का बोझ उसके ऊपर था और अपनी तगड़ी कसरती जाँघों से नीचे दबी उस गुड़िया की जाँघों को उसने पूरी ताकत से दबा रखा था, और मोटा लंड आधा तो घुस ही गया था,
बाहर बारिश एक बार फिर तेज हो गयी थी, बादल भी फिर से गरज रहे थे और घने घुप्प अँधेरे में भी बीच बीच में चमकती दामिनी उसे , उसके नीचे बहन की दबी देह, उसके छोटे छोटे मस्त जुबना और गोरे प्यारे चेहरे को दिखा दे रहे थे , उसका जोश एकदम दूना हो जाता था , लेकिन
लेकिन उसका अंदर घुसना अब रुक गया था , थोड़ा सा अवरोध बहुत हल्का सा, एक पतला सा पर्दा , लेकिन बिना उसे परदे के खुले, लड़की जवान नहीं हो सकती, ... और बहुत कम लोग होते हैं जिन्हे यह सुख मिलता है की खुद अपनी सगी बहन को उस चौखट के पार ले जा सकें,... वो समझ गया था की अब जो दर्द होगा उसे वह पी नहीं पाएगी, ... चीखेगी चिल्लायेगी, पर उस दर्द का इन्तजार और बाद में उस दर्द की याद, हर लड़की को तड़पाती है,...
भाई ने एक बार फिर से बहन के होंठों को चूमना शुरू किया लेकिन अब लक्ष्य कुछ और था , थोड़ी देर में बहन के गुलाबी मखमली अधरों के सम्पुट अलग अलग करके अपनी जीभ अंदर तक घुसा दी और उसकी जीभ के साथ छल कबड्डी खेलना शुरू कर दिया और साथ ही अपने दोनों होंठों के बीच उस किशोरी के होंठों को कस के भींच लिया, ....
एक बार फिर से कस के उसके हाथों को पकड़ के, अपनी तगड़ी मस्क्युलर जाँघों को बहन की खुली फैली जाँघों के बीच ,
और,.. और पूरी ताकत से उसने पेल दिया,... पेलता रहा ठेलता रहा धकेलता रहा,... बिना इस बात की परवाह किये की जो उसके नीचे है , कितना तड़प रही है , छटपटा रही है , पर न अपने हाथों की पकड़ उसने ढीली की न होंठों की जकड़ , न धक्कों की ताकत,... हाँ बस, ... दस बार जोरदार धक्कों के बाद , थोड़ा सा उसने अपने मोटू को बाहर खींचा,... पल भर के लिए गहरी साँस ली, और अबकी दूनी ताकत से ठेल दिया, ...
शुरू में तो बस दो चार बूंदे, लेकिन थोड़ी देर में उसके लिंग के मुंड पर रक्त का अहसास,...
बस अब काम हो गया था , नहीं बल्कि शुरू हुआ था, ...
झिल्ली फट तो चुकी थी लेकिन उसकी चुभन , चिलख ,... और दर्द का इलाज और दर्द होता है , ये खिलाड़ी चुदक्कड़ के अलावा और किस को मालूम होगा, ... बस एक बार लिंग हलके से बाहर निकल के , फिर वहीँ रगड़ते हुए , ... अंदर तक और फिर बाहर ,.. और फिर दरेरते , घिसटते हुए अंदर , चुदाई का असल मजा तो यही अंदर बाहर है और जब कुँवारी चूत मिले फाड़ने को तो ये मज़ा न लेना गुनाह है,...
बाहर बादल तेजी से गरज रहे थे बीच बीच में बिजली भी तेजी से चमक रही थी कभी कभी पानी की एकाध बौछार दोनों को भीगा भी देती थी,...
वो तड़प रही थी , पानी से बाहर निकली मछली से भी ज्यादा, जहां झिल्ली फटी थी वहां जब भी भैया का लंड रगड़ता ,... जैसे घाव पर कोई नमक छिड़क दे,... और होंठ अपने छुड़ा के , जोर की चीख,...
उईईईईई नहीं ओह्ह्ह्हह्ह भैयाआ उईईईई जान गईइइइइइइइ
पर अब बिना उस चीख की परवाह किये उसका सगा भाई अरविन्द चोदता रहा,
उईईईईई उईईईईई ओह्ह्ह्ह रुको , ओह्ह उफ्फफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ नहीं जान गईइइइइइइइइ
बादलो की जोरदार गरज के बीच भी वो चीख सुनाई दे रही थी,....
उह्ह्ह उह्ह नहीं बहुत दर्द हो रहा है ,....
और धीरे धीरे वो चीख हलके हलके बिसूरने में बदल गयी,... थक के तड़पन भी थोड़ी कम हो गयी ,... तो वो रुका,... दो इंच के करीब और बाकी था , था भी तो उसका मोटा लम्बा बांस,...
लेकिन अब दर्द के बाद सहलाने का टाइम था और उस खिलाडी के पास बहुत से हथियार थे , होंठ, जीभ, उँगलियाँ , ....
बाहर मेघ की झड़ी लगी थी और अंदर भैया के चुंबनों की कभी बहन के गाल पे तो कभी होंठो पे तो कभी उभरते उरोजों पे,... और साथ में संगत करतीं उँगलियाँ,...
भैया के होंठों ने जैसे दो चार मिनटों में ही बहन का सारा दर्द पी लिया और दर्द की जगह उन शबनमी होंठों पर हल्की सी मुस्कान फ़ैल गयी,... और यही तो वो चाहता था ,
अब उसकी उँगलियों ने बहन की जाँघों पर , निचले फैले होंठों के ऊपर जादुई बटन को, क्लिट को छूना सहलाना शुरू कर दिया,
और एक निपल अगर होंठों की गिरफ्त में तो दूसरे को भैया की उँगलियाँ तंग करती, साथ में अंदर आलमोस्ट जड़ तक पैबस्त , भैया का मोटा खूंटा,... बस दो चार मिनट में ही तूफ़ान में पत्ते की तरह वो कांपने लगी,... भैया ने उसके देह के सितार के तार अब द्रुत में छेड़ने शुरू दिए
उह्ह्ह ओह्ह्ह उफ़ रुको न ,...
आह से आहा तक
चीखें अब मजे की सिसकियों में बदल गयी थीं दर्द का द्वार पर कर उस आनंद में वो गोते लगा रही थी जिसके बारे में वो सिर्फ सोचती थी ,
कभी अपनी हथेली को जाँघों के बीच घिसती, भैया के मोटे मूसल को सोचते वो झड़ी थी , कभी उसकी सहेली की भाभी की जबरदस्त उँगलियाँ,.... उनकी गारंटी थी किसी ही ननद को वो चार मिनट में झाड़ सकती थीं,..
लेकिन आज ऐसा पहले कभी नहीं हुआ,...
जैसे दिवाली में अनार फुटते हैं , ख़ुशी के मजे के अनार ,... एक लहर ख़तम भी नहीं होती थी की दूसरी चालू हो जाती थी , कभी मन करता की भैया रुक जाएँ , कभी मन करता नहीं करते रहें
वो झड़ती रही , झड़ती रही , और भैया के हाथ, होंठ रुक गए और बिल में घुसा मोटा डंडा चालू हो गया जैसे ट्रेन के इंजन का पिस्टन , स्टेशन से गाड़ी चलते समय पिस्टन जैसे पहले धीरे धीरे ,..... फिर तेजी से , सट सट