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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Shetan

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उईईईईई नहीं ओह्ह्ह्हह्ह भैयाआ उईईईई जान गईइइइइइइइ,

फ़ट गयी





बहन अपनी सारी सीख , सहेलियों की बातें , और उस से बढ़ के गाँव के भौजाइयों की बातें,... ढीली रखना, देह खूब ढीली रखना , उधर से ध्यान हटा के एक बार मूसल चलना शुरू हो गया उसके बाद उसके बारे में,...लेकिन फटते समय सब ज्ञान भूल जाता है, सिर्फ दर्द, और,... दर्द, चीख और चिलख

और अचानक,.... बादल जोर से कड़के ,... गड़ गड़ गड़ गड़ जैसे इंद्र के हाथी आपस में भिड़ गये हों , खूब तक गर्जन, उसने कस के पलंग को थाम रखा था,... कनखियों से उसने देखा,


बहुत जोर से बिजली चमकी , कमरे के अंदर तक कौंध गयी,...




और फिर बादलों की गड़गड़ , उसकी चीख बहुत रोकने के बाद भी निकल गयी, लगा की गरम भाला उसकी जाँघों के बीच घुस गया है ,... बिजली बाहर नहीं उसकी जाँघों के बीच गिरी है , ... उसने तय किया था वो नहीं चीखेगी पर फिर भी ,... पर उस गड़गड़ाहट और बिजली की चमक के बीच...

सुपाड़ा अभी भी पूरी तरह नहीं घुस पाया था , हाँ अच्छी तरह फंस गया था , धंस गया था , एक पल रुक के ,... उसके भैया ने गहरी साँस ली, हलका सा बाहर खींचा,...




और कैसे कोई कुशल धनुर्धर बाण संधान के पहले प्रत्यंचा को अपने कंधे तक पूरी ताकत से खींचता और फिर बाण छोड़ता है , एकदम उसी तरह , पूरी ताकत से , उसके भैया ने पुश किया , वो ठेलते गए , धकलते गए,

बाण बांकी हिरणिया को लग चुका था , एकदम अंदर तक , वो सारंग नयनी , जीवन का प्रथम पुरुष संसर्ग का सुख, दर्द के सम्पुट में बंधा,... उसे मिल चुका था


, सुपाड़ा पूरी तरह अंदर पैबस्त हो गया था।


शायद, नारी जीवन के सारे सुःख, दर्द की पोटली में बंधे आते हैं. यौवन का प्रथम कदम , जब वह कन्या से नारी बनने की दिशा में पहला कदम उठाती है , चमेली से जवाकुसुम, पहला रक्तस्त्राव, घबड़ाहट भी पीड़ा भी,... लेकिन उसके यौवन की सीढ़ी का वह प्रथम सोपान भी तो होता है, ...

और पिया से मिलन, प्रथम समागम, मधुर चुम्बन, मिलन की अकुलाहट और फिर वो तीव्र पीड़ा, और फिर रक्तस्त्राव,... लेकिन तब तक वह सीख चुंकी होती है , दर्द के कपाट के पीछे ही सुख का आगार छिपा है,...

और चेहरे की सारी पीड़ा, दुखते बदन का दर्द मीठी मुस्कान में घोल के पिया से बिन बोले बोलती है, ' कुछ भी तो नहीं'. आंसू तिरती दिए सी बड़ी बड़ी आँखों में ख़ुशी की बाती जलाती है,... और शायद जीवन का सबसे बड़ा सुख,नारी जीवन की परणिति, सृष्टि के क्रम को आगे चलाने में उसका योगदान, ...


कितनी पीड़ा,... प्रसव पीड़ा से शायद बड़ी कोई पीड़ा नहीं और नए जन्में बच्चे का मुंह देखने से बड़ा कोई सुख नहीं स्त्री के लिए,

और उसके बदलाव के हर क्रम का साक्ष्य रहती हैं रक्त की बूंदे , यौवन के कपाट खुलने की पहली आहट, प्रथम मिलन,... और स्त्री से माँ बनना,... लेकिन लड़कियों के लिए ख़ास तौर से गाँव की लड़कियों के लिए ये कोई अचरज नहीं है ,

वो हुंडाती बछिया पर सांड़ को चढ़ते हुए , कातिक में कुत्ते और कुतिया को , गाय को बछड़ा जनते,...

और सबसे बढ़कर जब हलधर धरती में हल गड़ाते हैं , चीर कर बीज आरोपित करते हैं तो धरती के दर्द को नारी ही समझती है , और जब कुछ दिनों बाद धानी चूनर पहन , धरती शष्य श्यामला हो गाने गुनगुनाने लगती है तो उसके सुख की सहेली भी नारी होती है,...



और यह हलधर, अनुभवी था , कोई पहली बार खेत नहीं जोत रहा था , उसे मालूम था कैसे खेत में कैसे हल चलाना चाहिए, कब कितनी फाल अंदर तक,...


कब रुकना चाहिए और कब पूरी ताकत के साथ,...


और वह रुक गया, उसे मालूम था न सिर्फ सुपाड़ा बल्कि एक दो इंच और अंदर चला गया है , और इतना तेल लगाने के बाद भी कितनी जलन चुभन हो रही होगी,... और असली दर्द तो अभी बाकी थी,... बस वह रुक गया, ... नहीं , निकाला नहीं उसने ,

बस झुक के बहुत हलके से अपनी छोटी बहन के दर्द से भरी बड़ी बड़ी बंद आँखों को बस हलके से चूम लिया,...

और फिर तो जैसे कोई भौरां कली से छुआ छुववल खेले, उसके होंठ , कभी गालों को हलके से ,.. तो कभी होंठों को सील कर देते और धीरे धीरे उन गुलाबी कलियों का रस लेते,...


और जिसका वो दीवाना था , वो उरोज, आज उसके सामने उसकी छोटी बहन ने खुद परोस दिए थे, ...




कभी उरोजों के बेस पर तो कभी जस्ट आ रहे, स्तनाग्रों पर बस हलकी सी चुम्मी , कच्चे टिकोरों पर आज पहली बार किसी तोते की ठोर लग रही थी, हलके हलके कुतरने में वो मजा आ रहा था , एकदम गूंगे का गुड़, जिसने कच्ची अमिया कभी कुतरी होंगी , वही उनका स्वाद समझ सकता है,...

कुतरवाने वाली को भी मज़ा आ रहा था, झप्प से उसने आँखें खोल दी , उसे लगा तीर पूरा धंस गया , दर्द का अध्याय खत्म हो गया है ,


उस बेचारी को क्या मालूम था , अभी तो तीर की पूरी नोंक भी नहीं ठीक से घुसी थी।

भैया के चेहरे को अपने सामने देख वो शर्मीली शर्मा गयी और झट्ट से आँखों के दरवाजे बंद कर दिए, ... और भैया के सिर्फ होंठ ही नहीं , उनके हाथ भी, पूरी देह सुख ले रही थी दे रही थी , जब होंठ भैया के बहना के गालों का रस लेते तो हाथ जुबना को मसलते रगड़ते और जब होंठ निप्प्स पर आके जीभ से फ्लिक करते तो, भैया के हाथ रेशमी मख़मली जाँघों पर फिसलते, सिर्फ सुपाड़ा धंसा अपनी बारी का इन्तजार कर रहा था और वो जल्द आ गया.

एक बार फिर उस हलधर ने अपने हल की फाल को ठीक किया, नीचे लेटी भले ही पहली बार,



लेकिन वो नया खिलाड़ी नहीं थी, ... हर उमर वाली के साथ, उसकी माँ की उमर वाली काम वालियों के साथ भी और,... जिनका गौना नहीं हुआ वैसी, ... झिल्लियां भी कितनी की फाड़ी थी उसने लेकिन ऐसी कच्ची कोरी, और वो भी सगी छोटी बहन,...

एक बार फिर से उसने उन छोटे छोटे मस्त चूतड़ों के नीचे तकिये को ठीक से लगाया और अबकी दोनों टांगों को मोड़ के दुहरा कर दिया , ... हल एकदम अंदर तक धँसाना पड़ता है , ऐसी जमीन जहाँ पहली बार खेती हो रही हो, बीज डालना हो खूब अंदर,... और बगल में रखी तेल की बोतल के ढक्क्न को खोल के , बाहर बचे मोटे मूसल को तेल से नहला दिया,... और अबकी बहन की दोनों मेंहदी लगी हथेलियों को कस के दबोच के,... अपनी पूरी ताकत से ठेल दिया, ...




मोटा लिंग , सूत सूत करके , धीमे धीमे रगड़ते दरेरते, फाड़ते अंदर जा रहा था ,

वो छटपटा रही थी , किसी तरह दांतों से काट के अपने होंठों को , चीखें निकलने से रोक रही थी , फिर चेहरे पर दर्द के भाव एक बार फिर से उभरने लगे थे,...

लेकिन वो हलधर अबकी रुकने वाला नहीं था,... उसकी कमर में , उसके नितम्बों में बहुत जोर था , जिस जिस पे वो चढ़ा था सब उसे 'सांड़ ' कहती थीं,... अपनी दोनों जाँघों के बीच कसके उसने अपनी बछिया को दबोच रखा था,...

इधर उधर हिलने को वो लाख कोशिश करे, चूतड़ पटके पर ज़रा भी अब उसके नीचे से सरक नहीं सकती थी , उस कोरी के दोनों नरम मुलायम हाथ उसके हाथों में जकड़े थे, उसकी पूरी देह का बोझ उसके ऊपर था और अपनी तगड़ी कसरती जाँघों से नीचे दबी उस गुड़िया की जाँघों को उसने पूरी ताकत से दबा रखा था, और मोटा लंड आधा तो घुस ही गया था,



बाहर बारिश एक बार फिर तेज हो गयी थी, बादल भी फिर से गरज रहे थे और घने घुप्प अँधेरे में भी बीच बीच में चमकती दामिनी उसे , उसके नीचे बहन की दबी देह, उसके छोटे छोटे मस्त जुबना और गोरे प्यारे चेहरे को दिखा दे रहे थे , उसका जोश एकदम दूना हो जाता था , लेकिन




लेकिन उसका अंदर घुसना अब रुक गया था , थोड़ा सा अवरोध बहुत हल्का सा, एक पतला सा पर्दा , लेकिन बिना उसे परदे के खुले, लड़की जवान नहीं हो सकती, ... और बहुत कम लोग होते हैं जिन्हे यह सुख मिलता है की खुद अपनी सगी बहन को उस चौखट के पार ले जा सकें,... वो समझ गया था की अब जो दर्द होगा उसे वह पी नहीं पाएगी, ... चीखेगी चिल्लायेगी, पर उस दर्द का इन्तजार और बाद में उस दर्द की याद, हर लड़की को तड़पाती है,...


भाई ने एक बार फिर से बहन के होंठों को चूमना शुरू किया लेकिन अब लक्ष्य कुछ और था , थोड़ी देर में बहन के गुलाबी मखमली अधरों के सम्पुट अलग अलग करके अपनी जीभ अंदर तक घुसा दी और उसकी जीभ के साथ छल कबड्डी खेलना शुरू कर दिया और साथ ही अपने दोनों होंठों के बीच उस किशोरी के होंठों को कस के भींच लिया, ....




एक बार फिर से कस के उसके हाथों को पकड़ के, अपनी तगड़ी मस्क्युलर जाँघों को बहन की खुली फैली जाँघों के बीच ,


और,.. और पूरी ताकत से उसने पेल दिया,... पेलता रहा ठेलता रहा धकेलता रहा,... बिना इस बात की परवाह किये की जो उसके नीचे है , कितना तड़प रही है , छटपटा रही है , पर न अपने हाथों की पकड़ उसने ढीली की न होंठों की जकड़ , न धक्कों की ताकत,... हाँ बस, ... दस बार जोरदार धक्कों के बाद , थोड़ा सा उसने अपने मोटू को बाहर खींचा,... पल भर के लिए गहरी साँस ली, और अबकी दूनी ताकत से ठेल दिया, ...

शुरू में तो बस दो चार बूंदे, लेकिन थोड़ी देर में उसके लिंग के मुंड पर रक्त का अहसास,...

बस अब काम हो गया था , नहीं बल्कि शुरू हुआ था, ...


झिल्ली फट तो चुकी थी लेकिन उसकी चुभन , चिलख ,... और दर्द का इलाज और दर्द होता है , ये खिलाड़ी चुदक्कड़ के अलावा और किस को मालूम होगा, ... बस एक बार लिंग हलके से बाहर निकल के , फिर वहीँ रगड़ते हुए , ... अंदर तक और फिर बाहर ,.. और फिर दरेरते , घिसटते हुए अंदर , चुदाई का असल मजा तो यही अंदर बाहर है और जब कुँवारी चूत मिले फाड़ने को तो ये मज़ा न लेना गुनाह है,...


बाहर बादल तेजी से गरज रहे थे बीच बीच में बिजली भी तेजी से चमक रही थी कभी कभी पानी की एकाध बौछार दोनों को भीगा भी देती थी,...




वो तड़प रही थी , पानी से बाहर निकली मछली से भी ज्यादा, जहां झिल्ली फटी थी वहां जब भी भैया का लंड रगड़ता ,... जैसे घाव पर कोई नमक छिड़क दे,... और होंठ अपने छुड़ा के , जोर की चीख,...

उईईईईई नहीं ओह्ह्ह्हह्ह भैयाआ उईईईई जान गईइइइइइइइ

पर अब बिना उस चीख की परवाह किये उसका सगा भाई अरविन्द चोदता रहा,


उईईईईई उईईईईई ओह्ह्ह्ह रुको , ओह्ह उफ्फफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ नहीं जान गईइइइइइइइइ




बादलो की जोरदार गरज के बीच भी वो चीख सुनाई दे रही थी,....



उह्ह्ह उह्ह नहीं बहुत दर्द हो रहा है ,....



और धीरे धीरे वो चीख हलके हलके बिसूरने में बदल गयी,... थक के तड़पन भी थोड़ी कम हो गयी ,... तो वो रुका,... दो इंच के करीब और बाकी था , था भी तो उसका मोटा लम्बा बांस,...

लेकिन अब दर्द के बाद सहलाने का टाइम था और उस खिलाडी के पास बहुत से हथियार थे , होंठ, जीभ, उँगलियाँ , ....

बाहर मेघ की झड़ी लगी थी और अंदर भैया के चुंबनों की कभी बहन के गाल पे तो कभी होंठो पे तो कभी उभरते उरोजों पे,... और साथ में संगत करतीं उँगलियाँ,...

भैया के होंठों ने जैसे दो चार मिनटों में ही बहन का सारा दर्द पी लिया और दर्द की जगह उन शबनमी होंठों पर हल्की सी मुस्कान फ़ैल गयी,... और यही तो वो चाहता था ,

अब उसकी उँगलियों ने बहन की जाँघों पर , निचले फैले होंठों के ऊपर जादुई बटन को, क्लिट को छूना सहलाना शुरू कर दिया,



और एक निपल अगर होंठों की गिरफ्त में तो दूसरे को भैया की उँगलियाँ तंग करती, साथ में अंदर आलमोस्ट जड़ तक पैबस्त , भैया का मोटा खूंटा,... बस दो चार मिनट में ही तूफ़ान में पत्ते की तरह वो कांपने लगी,... भैया ने उसके देह के सितार के तार अब द्रुत में छेड़ने शुरू दिए

उह्ह्ह ओह्ह्ह उफ़ रुको न ,...

आह से आहा तक


चीखें अब मजे की सिसकियों में बदल गयी थीं दर्द का द्वार पर कर उस आनंद में वो गोते लगा रही थी जिसके बारे में वो सिर्फ सोचती थी ,


कभी अपनी हथेली को जाँघों के बीच घिसती, भैया के मोटे मूसल को सोचते वो झड़ी थी , कभी उसकी सहेली की भाभी की जबरदस्त उँगलियाँ,.... उनकी गारंटी थी किसी ही ननद को वो चार मिनट में झाड़ सकती थीं,..

लेकिन आज ऐसा पहले कभी नहीं हुआ,...

जैसे दिवाली में अनार फुटते हैं , ख़ुशी के मजे के अनार ,... एक लहर ख़तम भी नहीं होती थी की दूसरी चालू हो जाती थी , कभी मन करता की भैया रुक जाएँ , कभी मन करता नहीं करते रहें


वो झड़ती रही , झड़ती रही , और भैया के हाथ, होंठ रुक गए और बिल में घुसा मोटा डंडा चालू हो गया जैसे ट्रेन के इंजन का पिस्टन , स्टेशन से गाड़ी चलते समय पिस्टन जैसे पहले धीरे धीरे ,..... फिर तेजी से , सट सट
Bahot tadpa diya aapne to. Par maza bhi bahot aaya. Kash esa seen chhutki ke lie bhi likhte.
 

Shetan

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Shetan

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Itni kutai ke baad bhi Guddi ka man nahi bhara, or na hi guddi ke Jija ka.
Nice idea. Sath nandoi bhi??
 

Shetan

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आधा -तिहा नहीं,... पूरा, जड़ तक




और भैया ने पूछ लिया,

" गीता, तुझे दर्द तो नहीं हुआ, ज्यादा "

गीता क्या बोले क्या न बोले कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कुछ लोग न हरदम बुद्धू रहते हैं, ये भी कोई पूछने की बात थी. बस दर्द के मारे जान नहीं निकली थी. अब तक जाँघे फटी पड़ रही हैं, 'वहां' ऐसी छरछराहट मची, परपरा रहा है कस कस के,...

बचपन में जब कान माँ ने अपनी गोद में बिठाकर छिदाया था, क्या चीख चिल्लाहट मचाई थी, उसने। वो तो माँ ने झट से एक बड़ा सा लड्डू उसके मुंह में ठूंस दिया और उसकी आवाज बंद हो गयी, फिर सौ रुपये देने का लालच भी दिया था, जो आज तक नहीं दिया। झुमके भी बोला था, लेकिन नीम की सींक पहना दी, हाँ भैया ने मेले में बाली जरूर खरीदवा दी थी। लेकिन वो दर्द कुछ भी नहीं था, कुछ भी नहीं,जो अभी हुआ,... उसके आगे



उस समय वो चीखना नहीं चाहती थी, उसे मालूम था की उसका दर्द भैया से देखा नहीं जाता, उ

सने कस के दांतों से अपने होंठों को दबोच रखा था, पर इत्ती जोर की टीस उठी, की रोकते रोकते भी चीख निकल गयी, वो तो बादलों की गड़गड़ाहट इत्ती जोर की थी और भैया इत्ते जोश में थे की उसकी चीख,



वो चीखती रही,

वो पेलते रहे, ठेलते रहे, धकेलते रहे, चोदते रहे,...





और वो,...वो भी तो कब से यही चाहती थी, भाभी ने भी तो उसे यही सिखाया था, बस किसी तरह भाई को पटा ले , फिर तो जब चाहे तब, गपागप घोंट लेगी, बस एक बार भाई की मोटी बुध्दि में घुस जाए ये बात, घर का माल घर में,...

तो वो कैसे कबूल कर लेती की दर्द के मारे जान निकल गयी थी,... हाँ बस खिस्स से मुस्का दी,


पर बचपन से वो भाई की टांग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी तो आज कैसे छोड़ती, भले रिश्तों में एक हसीन बदलाव आ गया हो,... तो मुस्करा के हलके से उसके मोटे मूसल को सहलाते बोली,...

" लेकिन भैया, एक बार में इस मोटू को पूरा अंदर ढकेलना जरूरी था,... क्या। मैं कहाँ भागी जा रही थी, जब चाहते, जितनी बार चाहते,.... जहाँ चाहते, मैंने न तो पहले मना किया था न, न आगे. "

लेकिन जो उसके भइया ने, अरविन्द ने जवाब दिया वो सुन के तो वो और आग बबूला हो गयी.

" अरे बुद्धू मैंने तो आधा, से बस थोड़ा सा ज्यादा डाला होगा," और अपने खड़े तने लंड पे उसने निशान सा लगा के बताया।



गीता को अंक गणित और रेखा गणित दोनों में अच्छे नंबर मिलते थे उसने अंदाज लगा लिया, ७ इंच के करीब यानी दो इंच से ज्यादा बाहर था. मुठियाते हुए ही उसने बित्ता फैला के नापने की कोशिश चुपके से की थी, पूरा फैला हुआ बित्ता भी उसका वो लीची की तरह रसीला मोटा सुपाड़ा जहाँ शुरू होता है वहां तक मुश्किल से पहुंचा,



और सब जानते हैं की बित्ता नौ इंच का होता है तो भैया का भी उससे कम तो कत्तई नहीं,... तो जहाँ तक वो बता रहे हैं वो भी सात इंच के आसपास,

पर अगर कोई लड़की पल में रत्ती पल में माशा न हो तो वो लड़की नहीं, अगर अंदाज हो जाय की वो कब किस बात से खुश होगी,किस बात से नाराज तो स्कर्ट, साया उठा के झांक लेना चाहिए, कत्तई लड़की नहीं निकलेगी।


बस वो गुस्से में अलफ़, और मारे गुस्से के बोल नहीं निकल रही थे,चेहरा तमतमा गया, बड़ी मुश्किल से बोली,...



" तुम्हारी मेरे अलावा और कितनी बहिन हैं ? "




" कोई नहीं, "

लेकिन अरविन्द समझ गया की उसकी छुटकी बहिनिया उसकी किसी बात पे जोर से गुस्सा है, तो ५०० ग्राम मक्खन एक साथ लगाते हुए फुसलाया,...

" तू मेरी प्यारी प्यारी सेक्सी सेक्सी , एकलौती बहिन है, खूब मीठी " और उसकी नाक पकड़ के चूम लिया,...

पर गीता ने अपने भाई अरविन्द को झिड़क के दूर हटा दिया,...

" तो अरविन्द जी , ये बाकी का आपने अपनी किस दूसरी बहन या महबूबा के लिए रख छोड़ा था "

झट से अरविन्द ने अपने दोनों कानों पे हाथ रख के गलती कबूल कर लिया और गीता ने अपनी डिमांड रख दी,



" चल माफ़ करती हूँ, लेकिन आगे से मुझे ये पूरा चाहिए , पूरा मतलब एकदम पूरा, यहाँ तक " और लंड के बेस पर ऊँगली रख गीता ने अपना इरादा और डिमांड दोनों बता दी.





उसके भाई अरविंद ने हाथ जोड़ा कान पकड़ा झुक के माफ़ी मांगी, तो वो मानी और बोली,


" देख मैं तेरी इकलौती बहन हूँ, अगर तूने एक सूत के बराबर भी बेईमानी की न तो हरदम के लिए कुट्टी,... और कुछ रुक के संगीता ने अपना इरादा साफ़ कर दिया ,


" सुन लो कान खोल के ये सब बहाना नहीं चलेगा की तुझे दर्द होगा, तुझे मेरी कसम, तेरी एकलौती बहन की कसम, चाहे मैं जितना चीखूँ, चिल्लाऊं, रोऊँ , तेरी दुहाई दूँ, हाथ पैर जोड़ूँ, खून खच्चर हो जाए, मैं दर्द से बेहोश हो जाऊं , तू भी तू रुकेगा नहीं, अगर रुका, स्साले तूने पूरा लंड नहीं ठेला तो बस एकदम कुट्टी, पक्की वाली, बात भी नहीं करुँगी। "




और भाई ने फिर हाथ जोड़ के कान पकड़ के अपनी सहमति जताई , लेकिन गीता अरविन्द को इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी , बोली,

" और ये बहाना नहीं चलेगा की अच्छा कल, अगली बार , आगे से ,... अभी और अभी का मतलब तुरंत, पूरा जड़ तक चाहिए मुझे, मैं चाहे जितना भी चिल्लाऊं , रोऊँ,... मेरी बात मानोगे तो तेरी हर बात मानेगी ये बहना,... जब चाहोगे, जहाँ चाहोगे, जैसे चाहोगे, जितनी बार चाहोगे,... अभी से हाँ एडवांस में , आगे से पूछने की जरूरत नहीं, लेकिन अगर जरा भी बाहर रह गया तो कोई बहाना नहीं चलेगा , फिर तो कुट्टी। "



और गीता जान बूझ के अपने भाई अरविन्द को चढ़ा रही थी, उसे भौजी की सीख याद आ रही थी,
Badi himat vali he nandiya
 

Shetan

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भैया बहिनी




जमीन पर बिखरे दोनों के कपड़ों की तरह शरम भी अब कहीं फर्श पर बिखरी थी, खुली खिड़की से ठंडी ठंडी हवा आ रही थी, थोड़े बहुत बादल कभी चाँद को घेर कर अँधेरा कर देते तो कभी चांदनी उन्हें बिखरा के गीता और उसके भाई अरविन्द की काम क्रीड़ा देखने कमरे में घुस के पसर जाती।


बात गीता ने ही शुरू की, ... बिन बोले, कभी छोटे छोटे चुम्मी से तो कभी अपनी उँगलियों से भाई अरविन्द के चौड़े सीने पे कुछ लिख के,... और फिर फुसफुसाहटों में, ...

" भैया तेरा मन बहुत दिन से कर रहा था न "



हाँ "

बहुत हलके से बोला अरविन्द लेकिन कस के अपने चौड़े सीने से बहन के छोटे छोटे जोबन को दबा देकर और जोर से बहन की बात में हामी भरी। बहन ज्यादा बोल्ड थी, वो खुल के बोली,...

" भैया, मेरा मन भी बहुत दिन से कर रहा था,... तेरे साथ करवाने को,... तेरा मन कर रहा था तो किया कयों नहीं ?"

" अब करूँगा अपनी बहना से प्यार रोज करूंगा, बिना नागा, दिन रात,... " और अरविन्द ने कस के अपनी बहन को चूम लिया





और जैसे उसके इरादे की हामी भरते, उसका खूंटा भी अब खड़ा होने लगा था।

गीता ने भी अपने सगे भाई को कस के चूम लिया,... और उसका एक हाथ खींच के अपने उत्तेजना से पथराये जोबन पे रख दिया , मन तो उसका यही कर रहा था, भैया कस के दबाएं मसलें कुचले,... मीज मीज के इसे, ... और जैसे बिन उसके बोले भैया ने इरादा समझ लिया और अब वो कस कस के अपनी छोटी बहन की चूँचियाँ मसल रगड़ रहे थे,

गीता और कस के भैया से चिपक गयी, बस मन कर रहा था ये रात कभी ख़तम न हो। अपनी देह वो भैया की देह से रगड़ने लगी, मन तो उसका बस यही मन कर रहा था की भैया कस के पेल दें, लेकिन उनकी बाहों से वो अलग भी नहीं होना चाहती थी, और अब चांदनी पूरी तरह दोनों की देह को नहला रही थी , गीता खुल के सब देख रही थी,


बात गीता के मन की ही हुयी , वो भले ही अनाड़ी थी पर भैया उसका पूरा खिलाडी था,

हाँ भाई बहन के रिश्ते के नाते कुछ बहन की कच्ची कोरी उमर के नाते लेकिन अब दो बार कस कस के चोद लेने के बाद, ...


खूंटा अब पूरा खड़ा हो चुका था,, उसने साइड में लेटे लेटे ही,...



साइड में बहन की जाँघों को पूरा फैलाया, एक हाथ से पकड़ के अपनी टांग के ऊपर, अब खूंटा सीधे बिल के पास, ... एक हाथ में तेल लेके एक बार फिर से कस के अपने लंड को मुठियाते हुए उसे तेल से चुपड़ दिया,... दो बार की हचक की चुदाई के बाद चूत का मुंह थोड़ा खुल गया था पर फिर भी एक हाथ की ऊँगली से दोनों फांको को फैला के , सुपाड़ा सटा दिया,...




और बस एक करारा धक्का और आधे से ज्यादा मोटा सुपाड़ा बहन की बुर के अंदर,... और बहन की बुर ने उसे भींच लिया कस के .

दो बार की मलाई और कडुआ तेल से गीता की बुर चप चप कर रही थी।




इसलिए सुपाड़े को घुसने में उत्ती दिक्क्त नहीं हुयी, दो तीन धक्के और पूरा सुपाड़ा अंदर पैबस्त हो गया, गीता की बिल में लेकिन एक बार फिर से तेजी से दर्द की लहर उठी और वो उसे पी गयी लेकिन उसे इसका इलाज मालूम था और उसने अपने होंठ भैया के होंठों पे रख दिए , अरविन्द को और इशारा करने की जरूरत नहीं थी , जीभ की नोक से उसने बहिना के रसीले गुलाबी होंठों को खोल दिया और अपनी जीभ बहन के मुंह में पूरी अंदर तक घुसेड़ दिया।




यही स्वाद तो हर बहन चाहती ,है नीचे वाले मुंह में भैया का खूंटा धंसा हो और ऊपर वाले मुंह में भैया की जीभ। अरविन्द ने अपने होंठों से उसके होंठों को एकदम सील करदिया था , कभी बहन के होंठों को चूस चूस के उसका रस लूटता तो कभी हलके से दांत गड़ा देता,

बेचारी गीता सिसक भी नहीं पाती पर इसी बेबसी के लिए तो हर बहन तरसती है, और वो चाहती भी यही थी की भैया के जीभ का रस उसे मुंह के अंदर मिले।


उसे कस के दबोच के उसके भाई अरविंद ने चार खूब करारे धक्के लगाए , अब तो बहन चाह के भी चीख नहीं सकती थी , लंड आधे से ज्यादा घुस गया, और उसने धक्का लगाना रोक दिया , एक हाथ कस के बहन के जोबन का रस ले रहा था तो दूसरा क्लिट की हाल चाल,

गीता गरमा रही थी, और वो समझ गयी थी उसे क्या करना है , भैया क्या चाहता है उससे,



वो भी भाई को कस के पकडे थी, और गाँव की लड़की ताकत में किसी से कम नहीं , बस कस के उसने भी भाई पर अपनी बाँहों की पकड़ बढ़ाई और कस के धक्का मारा, पहली बार तो कुछ नहीं हुआ लेकिन दो चार धक्के के बाद लंड इंच इंच कर के उसकी बुर में सरक सरक के अंदर जाने लगा,... बुर उसकी दर्द से फटी जा रही थी लेकिन पहली बार वो खुद धक्के मार मार के इस बदमाश मोटू को घोंट रही थी।

लेकिन आठ दस धक्के के बाद उसकी कमर थकने लगी,...

कुछ देर दोनों रुके रहे पर अब भाई ने नंबर लगाया लेकिन बजाय अंदर पेलने के वो धीरे धीरे सरका के बाहर निकाल रहा था , गीता से नहीं रहा गया,... और अब एक बार उसने धक्को की जिम्मेदारी सम्हाल लिया और जितना बाहर निकला था वो एक बार फिर से अंदर,...


बारिश तेज हो गयी थी , और हवा का रुख बदल गया था।




खुली खिड़की से तेज बौछार अब पलंग पे आ रही थी और दोनों भाई बहन भीग रहे थे, लेकिन जोश में कोई कमी नहीं थी। जैसे बारिश में भी सहेलियां , ननद भौजाई , सावन में भीगते हुए भी झूले का मजा लेती रहती हैं, ... उसी तरह दोनों बारी बारी से झूले की पेंग की तरह धक्के लगा रहे थे, जल्दी किसी को नहीं थी , भाई दो बार बहन की बुर में झड़ चुका था वैसे भी वो लम्बी रेस का घोडा था , बीस पच्चीस मिनट के पहले और अबकी तो तीसरा राउंड था,...

और बहन भी अब दर्द की दरिया पार कर सिर्फ खुल के मजे ले रही थी और समझ रही थी की नयी नयी आयी भौजाइयों को क्यों रात होते ही नींद आने लगती है , जम्हाई भरने लगती हैं पिया के पास जाने को।

आठ दस मिनट के बाद ही अबकी पूरा मोटू गीता के अंदर घुसा , लेकिन एक बार जैसे ही बच्चेदानी पे धक्का लगा , गीता कापने लगी, झड़ने लगी , पर भाई अबकी रुका नहीं , दोनों हाथों से उसने कस के बहन की चूँची पकड़ के , पहले तो कुछ देर तक मसला और जैसे ही बहन का कांपना रुका , एकदम तूफानी धक्के ,...



हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे , आलमोस्ट पूरा लंड बाहर और फिर रगड़ते दरेरते चूत फाड़ते पूरी ताकत से बहन की बच्चेदानी पे जबरदस्त चोट मारता और बहन काँप जाती, कुछ दर्द से लेकिन ज्यादा मजे से,... दस पंद्रह मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद जब गीता झड़ी तो साथ साथ उसका भाई अरविन्द भी उसकी चूत में


दोनों थोड़ी देर में ही नींद में गोते लगा रहा थे, देस दुनिया से बेखबर। भाई बहन तीन बार के मिलन के बाद खूब गहरी नींद,..

Dono bhai bahen ke pure kisse dusri bar padhe he. Maza aa gaya.
 

komaalrani

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Komal ji please mohe rang de ki bhi link sare kar dijiye. Muje start karni he.
मोहे रंग दे ,पिछले फोरम के बंद हो जाने के बाद का मेरा पहला कथा प्रयास था,...

एक छोटी सी कहानी जो थोड़ी बड़ी हो गयी लेकिन एक धीमी आंच वाली कहानी,... पति पत्नी , शादी के पहले आँखे चार जरूर हुयी, बिन बोले आँखों से ही कहा सुनी भी हुयी,... और बस शादी हो गयी,... एक गांव और उससे बढ़ के छोटे से कस्बाई शहर की कहानी , और रोमांस भी सेंसुअलिटी भी , लेकिन सॉफ्ट सॉफ्ट,... कुछ भी इंस्टेंट टू मिनट वाला नहीं ,

परिवार की छेड़छाड़, कोई भी वैम्प या विलेन नहीं,

न जेठानी न सास,... सब की सब साथ देने वाली,... तो ऐसे में घटनाओं का, टेंशन और कांफ्लिक्ट का अभाव होना स्वाभाविक था और कहानी इस लिए पूरी तरह देह और मन दोनों के स्तर पर चली कई बार तो मन के स्तर पर ज्यादा,...

आप जरूर जरूर पढ़िए,... कीमत सिर्फ अगर पोस्ट पसंद आये तो लाइक का हस्ताक्षर कर दीजियेगा,... पता चल जाएगा आप वहां थीं,...


और हाँ उसी कहानी के अंत में ( पेज २५८ और २५९ पर ) मैंने बनारस से जुडी एक कहानी ( जो मोहे रंग दे से ही निकली थी ) के कुछ अंश भी दिए है , और क्योंकि आप तंत्र और मानवेतर विश्व की कहानियां लिखने में लब्ध प्रवीण है , इसलिए और ,... उस कहानी में मैंने कुछ तंत्र का एक छोटा सा टुकड़ा नेपथ्य में डालने की कोशिश की थी ,... पर मुझे लगा की वो शायद मेरे बस का नहीं है , फिर इस कहानी का भी प्रेशर था ,... इस लिए वो अभी ठंडे बस्ते में हैं ,... ओर आप २५८ और २५९ पढ़ के उस पर सम्मति दे सकती हैं , एक विशेषज्ञ की तरह



https://exforum.live/threads/मोहे-रंग-दे.1601/
 
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Shetan

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मोहे रंग दे ,पिछले फोरम के बंद हो जाने के बाद का मेरा पहला कथा प्रयास था,...

एक छोटी सी कहानी जो थोड़ी बड़ी हो गयी लेकिन एक धीमी आंच वाली कहानी,... पति पत्नी , शादी के पहले आँखे चार जरूर हुयी, बिन बोले आँखों से ही कहा सुनी भी हुयी,... और बस शादी हो गयी,... एक गांव और उससे बढ़ के छोटे से कस्बाई शहर की कहानी , और रोमांस भी सेंसुअलिटी भी , लेकिन सॉफ्ट सॉफ्ट,... कुछ भी इंस्टेंट टू मिनट वाला नहीं ,

परिवार की छेड़छाड़, कोई भी वैम्प या विलेन नहीं,

न जेठानी न सास,... सब की सब साथ देने वाली,... तो ऐसे में घटनाओं का, टेंशन और कांफ्लिक्ट का अभाव होना स्वाभाविक था और कहानी इस लिए पूरी तरह देह और मन दोनों के स्तर पर चली कई बार तो मन के स्तर पर ज्यादा,...

आप जरूर जरूर पढ़िए,... कीमत सिर्फ अगर पोस्ट पसंद आये तो लाइक का हस्ताक्षर कर दीजियेगा,... पता चल जाएगा आप वहां थीं,...


और हाँ उसी कहानी के अंत में ( पेज २५८ और २५९ पर ) मैंने बनारस से जुडी एक कहानी ( जो मोहे रंग दे से ही निकली थी ) के कुछ अंश भी दिए है , और क्योंकि आप तंत्र और मानवेतर विश्व की कहानियां लिखने में लब्ध प्रवीण है , इसलिए और ,... उस कहानी में मैंने कुछ तंत्र का एक छोटा सा टुकड़ा नेपथ्य में डालने की कोशिश की थी ,... पर मुझे लगा की वो शायद मेरे बस का नहीं है , फिर इस कहानी का भी प्रेशर था ,... इस लिए वो अभी ठंडे बस्ते में हैं ,... ओर आप २५८ और २५९ पढ़ के उस पर सम्मति दे सकती हैं , एक विशेषज्ञ की तरह



https://exforum.live/threads/मोहे-रंग-दे.1601/
Me bhi bas ab yahi start karungi. Piya se pyar padhne ka maza hi kuchh aur he
 
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komaalrani

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मज़े बनारस के

काम -काम्या, रम्या, प्रमदा


काम का चरम रूप स्त्री -पुरुष, देह मन मस्तिष्क तीनो का संगम और रस की पराकाष्ठा,... मैं कुछ सायास सोच नहीं रहा था, गंगा की लहरें देखते हुए अपने आप मन में विचारों की भावों की लहरे बह रही थीं,...


रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। रस आनंद रूप है । यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है।


कमनीया का एक कटाक्ष, सभी दृष्टि के सुखों से ऊपर होता है, बिना कहे सुख की कितनी पिचकारियां, उस कटाक्ष के साथ लजाने से छूट पड़ती हैं,... छेड़छाड़ की बातें कभी आधी कही, बातें सब वाग सुखों का निचोड़ हो जाता है, और मिलन में तो सब रस एक साथ,... दृश्य का वाग का स्पर्श का गंध का,...

....
पश्यन्ती,



एक बार फिर मन में वही उथल पुथल,... वाक् भले ही होंठो, जिह्वा तालू और कंठ के संयोजन से निकलता हो, समझी जाने वाली ध्वनियों, शब्दों का रूप लेता हो , अर्थ के साथ हम तक पहुंचता हो, लेकिन उपजता तो वह विचार के रूप में है , हमारे चैतन्य होने का प्रमाण भी है और सम्प्रेषण का साधन भी, ... और वह जन्म लेता है मूलाधार चक्र से, ध्वनि के चार रूप हैं , जो हम सुनते हैं , जिसके जरिये बातचीत करते हैं, वह है वैखरी, ध्वनि का भौतिक और सबसे स्थूल रूप, लेकिन जो विचार या चेतना के रूप में, सबसे बीज रूप में जब यह जन्म लेती है तो उसका रूप परा है, पर वह अति सूक्ष्म होती है , उसके बाद है पश्यन्ती। यदि यह जागृत है, शब्द रूप लेने से पहले ही हम उसे देख सकते हैं , और यह नाभि के स्तर पर जब विचार पहुंचता है उस समय, यानी क्या कहना है उसका मन में तो जन्म होगया पर अभी वह शब्दों का रूप अभी नहीं ले पाया है.

और शब्दों की एक सीमा है, वह विचारों को अभिव्यक्त तो करते हैं पर उसे सीमित भी करते हैं और कई बार अर्थ और विचार में अंतर् भी हो जाता है।

पश्यन्ति और वाक् के बीच मध्यमा का स्थान है, हृदय स्थल पर।

पश्यन्ती की स्थिति में शब्द और उसके अर्थ में कोई अंतर् नहीं होता और विचार का आशय, तत्वर और सहज होता है। इसमें क्या कहने योग्य है, क्या नैतिकता के आवरण में छिपा लें , ऐसा कुछ भी नहीं होता वह शुद्ध रूप में मन की बात होती है, यह वाक् स्फोट का एक सीधा साक्षात्कार होता है, जो कोई कहना चाहता है वह सब सुनाई पड़ता है। और उस स्तर तक विचारों में बुद्धि का हस्तक्षेप, सही गलत का अवरोध नहीं होता है , कामना सीधे सीधे अभिव्यक्त होती है,


 

Shetan

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नया दिन, नयी बात, नए रिश्ते


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लेकिन गाँव में सुबह सुबह काम भी फैला रहता है, माँ भी नहीं थी,... तब तक बाहर खट खट हुयी बस समीज सीधी कर के वो बाहर आ गयी , समझ रही थी , ग्वालिन भौजी होंगी, बहुत चिढ़ाती थीं , भौजी का रिश्ता,.. और माँ की मुंह लगी भी,... उन्होंने उसे दूध पकड़ाया,... अभी भैसों को दुह के ,... लेकिन दूध लेते समय, ... उसकी जाँघों पर फिसल के ,..

रात की मलाई का एक थक्का,... और उन्होंने जबरदस्त चिढ़ाया

" हे दूध मैंने दुहा, मलाई ननद रानी को बह रही है "

लेकिन रिश्ता ग्वालिन भौजी से ननद भौजाई का था तो कौन भौजाई ननद को छेड़ने का मौका छोड़ती है , रात भर जिस जुबना को गीता के भैया अरविन्द ने मसला था, उसे खुल के कस के रगड़ते मसलते ग्वालिन भौजी ने चिढ़ाया,

" हे ननद रानी, लेकिन दूध देना है तो मलाई तो घोंटना ही पड़ेगा। और अब दूध देने लायक तो ये हो गए हैं। "




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और भैया को भी निकलना था, ... रात में आंधी तूफ़ान में क्या नुक्सान हुआ,...और भी खेती किसानी,...
गीता भी किचेन में धंस गयी,.. और दो तीन घण्टे बाद जब भाई लौटा तो नाश्ता लेकर,...




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एक बार फिर वो गोद में थी

और अबकी खुद चढ़ के बैठ गयी थी और कभी अपने हाथ से कभी होने मुंह में ले के खिला रही थी, ... अच्चानक भैया को कुछ याद आया,... बोल पड़े,

' रात में कुछ गड़बड़ हुआ हो तो मैंने सब अंदर ही,... "

वो पहले तो बड़ी देर तक खिलखिलाती रही , ... फिर भैया को हड़का लिया,...

" हे खबरदार , जो कभी सोचा भी,.... बाहर एक बूँद भी गिराने को,.... बहन काहें को है,... घर में ,... "



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फिर चिढ़ाते हुए बोली,

" अरे तेरे बच्चे की माँ बन जाउंगी और क्या,... "


लेकिन उसे लगा की मज़ाक भाई को समझ में नहीं आया,... तो हंस के बोली,

" अरे घबड़ा मत,यार,...अभी तीन दिन पहले ही तो मेरी वो पांच दिन वाली लाल लाल सहेली गयीं है अपने घर ,... तो मैं बड़ी हो गयीं हूँ ,... मुझे भी मालूम है,... उनके जाने के बाद वो बोल के जातीं हैं , चल मैं जा रही हूँ , पांच छह दिन खुल के मस्ती कर, कोई खतरा नहीं ,... तो कोई डर नहीं ,... "



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अब भैया भी मुस्कराया और ऊपर से ही उसके जुबना दबाते बोला,..."मुझे मालूम है की मेरी बहन बड़ी हो गयी है ,... लेकिन अभी देख मैं इसे कित्ता और बड़ा करता हूँ , दबा दबा के,... पर सुन ,... अभी मुझे बाजार जाना है ,... तीन चार घंटे में लौटूंगा , वहां एक डाक्टर की दूकान है मेरी जान पहचान के वहां से गोली ,... "

अब एक फिर गीता खिलखिलाते हुए बोली,...

" ठीक है ठीक है , ले आना मुझे भी मालूम है उन गोलियों के बारे में , इस्तेमाल के बाद ले लो , २४ घंटे तक,... या फिर रोज वाली,... मेरे क्लास की आधी से ज्यादा लड़कियां लेती हैं ,कुछ तो बस्ते में भी रखती हैं ,... ले आना लेकिन गिरेगा अंदर ही औरवो रबड़,… रबड़ वो तो एकदम नहीं "

लेकिन कौन लड़का ऐसा मौका छोड़ देता है, वो गीता को पकड़ के अपनी गोद में दबोचता बोला,

" सुन बहना, तू ही कह रही है की पांच छह दिन तक तो कोई खतरा नहीं है , तो एक बार और हो जाये,... "



गीता ना नुकुर करती रही, घर का काम पडा है , खाना बनाना है , थोड़ी देर में ग्वालिन भौजी फिर आ जाएंगी,... लेकिन मन तो उसका भी कर रहा था , एक बार दिन दहाड़े भी ,

और दिन दहाड़े अरविन्द ने अपनी बहन चोद दी, वहीँ बरामदे में पड़ी बसखटिया पे लिटा के, ...


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उसकी दोनों टांगों को ऊपर किया और कुछ तकिया लगा के चूतड़ों को खूब ऊपर,... फिर खुद खड़े खड़े अपना लंड बहिन की बुर पे सटा के कस के धक्का मार दिया, रात भर की मलाई का असर , अबकी बिना तेल के भी आराम से तो नहीं लेकिन रगड़ता दरेरता अंदर घुस गया ,

बस सुपाड़ा घुसने की देर थी उसके बाद भले बहन लाख चूतड़ पटके गाली दे , कौन भाई बिन चोदे छोड़ता है तो अरविन्द ने भी नहीं छोड़ा ,

और गीता ने भी अपनी समीज सरका के ऊपर कर ली , जिससे उसके दोनों जोबन खुल गए



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और भाई ने एक हाथ बहन के चूतड़ पे और दूसरा बहन की चूँची पे,... दिन की रौशनी में दोनों एक दूसरे को देख रहे थे, मजे ले रहे थे,...

जल्दी अरविन्द को भी थी बहुत काम था उसे लेकिन बिना रुके हर धक्का पूरी ताकत से मारने के बाद भी ,



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१५-२० मिनट उसे लगा और गीता उस बीच दो बार झड़ गयी। हाँ जब भाई ने मलाई छोड़ी तो इस बार फिर बहन ने चूत को भींच के एक एक बूँद अंदर रोप ली और देर तक भींचे रही। उसके जाने के बाद किसी तरह पहले वो पलंग का फिर दीवाल का सहारा लेकर दरवाजे तक आयी दरवाजा बंद किया , फिर वापस किचेन में।



रोज माँ का हाथ तो वो रसोई में बटाती थी पर आज पहली बार अकेले इस तरह,.. और बार बार वो दरवाजे की ओर भी देखती भैया कब आएगा।
Devarji bhi pahele to ghabrate rahe or ab lage rahe
 
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Shetan

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बारिश में भैया प्यारा लगे,





तीन घंटे बाद, गीता बार बार आसमान की ओर देख रही थी। बादल एक बार फिर अच्छी तरह घिर आये थे , लग रहा था पानी अब बरसेगा तो दो तीन दिन रुकेगा नहीं,... और भैया अभी तक,... उसने भैया की पंसद की दालभरी पूड़ी , सब्जी और बखीर बनायी थी ,

खुद रगड़ के नहा के आज साड़ी चोली पहनी थी, हाँ चोली के नीचे कुछ नहीं , होंठलाली खूब जबरदस्त, नेलापलिश भी,.... और दर्जन भर चूड़ियां दोनों हाथों में ,... लेकिन जिसके लिए सब सिंगार वो अभी भी बाहर,... और बारिश कभी भी हो सकती थी,...




……………………

और बादल जैसे फट गए , मूसलाधार बारिश,... पट पट , सिक्के के बराबर बूँदें आंगन में पड़ रही थीं, कच्चा आंगन , बड़ा सा नीम का पेड़ , जिस पर जिद करके भैया से उसने झूला टंगवाया था,...




और तभी फट फट की आवाज हुयी, भैया की फटफटिया ,




ख़ुशी से भाग कर उसने दरवाजा खोला,.. अच्छी तरह भीगा पानी कपड़ों से चू रहा था,
उसका भाई अरविन्द एकदम अच्छी तरह भीग गया था, सारे कपडे उसकी देह से चिपके, एकदम गीला, भीगी बिल्ली, ...नहीं नहीं बिल्ला

और उसे देख के एक बार वो फिर गीली हो रही थी थी, अरविन्द को इस हालत में देख के उसकी चूत रानी फुदकने लगी थीं, रात में चार बार चुदवा के , और एक बार सुबह सुबह भी भाई अरविंद का लंड खा के गीता का मन नहीं भरा था,

किस बहन का मन भाई के लंड से भरता है, बस यही मन करता है , और , ...और

पहले इतनी परेशान अब मारे हंसी के,... उसकी हालत खराब, दरवाजा बाद में बंद किया , पहले भइया को पकड़ के खूब कस के वो चिपट गयी।



" हे चल पहले अपनी दवा खा " ... अरविन्द अपनी छुटकी बहिनिया गीता से बोला,

भीगे कपड़ों के बीच प्लास्टिक में लिपटी उसने दवा निकाली ,

माना उसकी बहन के पीरियड्स अभी ख़तम हुए थे , सेफ पिरीअड था लेकिन फिर भी और वो पूरे महीने की दवा ले आया था, जिससे अरविन्द अपनी बहिनिया को जब चाहे, जितना चाहे चोदे,..घर का माल , कौन उसे खेत खेताडी में जगह ढूंढनी है , गन्ने का खेत या बँसवाड़ी,.. माँ भी नहीं है, अब तो जब मन किया पटक के चोद देगा,...

इस्तेमाल के बाद वाली भी और रोज खाने वाली भी,...

गीता झट से इस्तेमाल के बाद वाली गटक गयी,..

और फिर भैया के कपडे उतारने पर जुट गयी,... हे बनिआन भी निकाल , अंदर तक गीले हो गए हो , और पैंट भी ,... सिर्फ चड्ढी बची थी ,...और गीता को देख के चड्ढी में खूंटा अपने आप तन गया था





अब भाई गीता की बदमाशी समझ गया था ,

उसे खींच के वो आंगन में ले गया,



चल तू भी थोड़ी सी भीज , बहुत चिढ़ा रही है न मुझे , अच्छा चल तेरी साडी उतार देता हूँ , ..

अब वो पेटीकोट और चोली में ,...


और भाई सिर्फ चड्ढी में दोनों बारिश का मजा ले रहे थे जैसे छोटे बच्चे , ...


देह से एकदम चिपके कपडे, भाई बहन की चोली में से झांकते जोबन देखके ललचा रहा था , चोली भी आलमोस्ट ट्रांसपेरेंट हो गयी थी पानी में भीग के , ब्रा तो उसने पहना नहीं था और निपल और जुबना से चोली एकदम चिपकी ,



और भइया से नहीं रहा गया , तो पहले तो हलके से ऊपर से मसलता रहा , फिर एक झटके में चोली खींच के बरसते पानी में जमीन पर फेंक दिया , और उससे हँसते हुए पूछा,

हे झूला झुलेगी,...

लेकिन बहन को पहले तो भाई से बदला लेना चोली उतारने का और भैया की देह पे बस एक जांघिया थी , उसकी जाँघों से चिपकी और मोटू सर उठाये बौरा रहा था ,

बस एक झटका और बहन ने जांघिया खींच के जहाँ उसकी चोली भैया ने फेंकी थी ठीक वहीँ, और भाई का खड़ा मोटा मूसल , बित्ते से भी बड़ा उसके सामने,...लेकिन अब वो डरती नहीं थी , पांच बार तो कल से घोंट चुकी थी , एक बार आधा तिहा लेकिन उसके बाद हर बार अपनी कसम खिला के पूरा का पूरा



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और हँस के झूले की ओर बढ़ती बोली,



" एकदम भैया बहुत दिन से तूने मुझे झूला नहीं झुलाया खाली गाँव भर की भाभियों के साथ झूलते हो, पेंग मार मार के "






" अरे तो चल आज तुझे भी झुलाता हूँ , ... "

और गीता के पहुंचने से पहले वो झूले पे बैठ गया था और एक झटके में खींच के अपनी गोद में, पर उसके पहले भैया ने उसके पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया और सरकता हुआ, सरसराता ,वो बरसते आंगन में कच्ची गीली मिटटी पर, दोनों टांगों से सरक कर, और बहन भाई एक जैसे , ...

भाई का खूंटा खड़ा बहन की बिल बारिश में भीगे आंगन से भी ज्यादा गीली,


और भाई ने बहना की दोनों टाँगे फैलायीं , अपनी टांगों से , खींच के उसे झूले पर अपनी गोद में,... और गच्च से खूंटा बिल में धंस गया।

पूरा नहीं, थोड़ा सा , और पेंग मार मार के भाई ने बहना को झूला झुलाना शुरू कर दिया , बारिश मूसलाधार हो रही थी, लग रहा था आज दिन रात नहीं रुकेगी,... झूले की रफ्तार बढ़ती गयी , खूंटा अंदर धंसता गया। और अब बहना भी पेंग मार रही थी,...गीता को बड़ा मज़ा आ रहा था,अपने अरविन्द भैया के लम्बे मोटे खड़े लंड पे इस तरह से बैठने का, गपागप गपागप, गीता अपने भैया का लंड बरसते पानी में घोंट रही थी, दिन दहाड़े अपने ही घर के आंगन में झूले पे बैठी




लेकिन थोड़ी देर बाद ही भाई ने झूले को रोका और पोजीशन थोड़ी सी बदली, बहुत ताकत थी उसके खूंटे में भी और हाथों में , ..

. एक झटके में गुड़िया की तरह बहन को खूंटे पर से उठाया , और अब बहन का मुंह भाई की तरफ,...

वो भी अब समझदार हो गयी थी , खुद उसने अपनी टाँगे फैला दी , जितना हो सकता था उससे भी ज्यादा, मुंह उसका अब भाई की ओर था , ..और सर सर सरकते हए , भाई का खूंटा अंदर,...

चूत ने खुद मुंह फैला दिया था लंड घोंटने के लिए



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उसके सगे भाई का मस्त मोटा लंड था , बहन नहीं घोंटेंगी तो कौन घोंटेंगा,...




अब दोनों पेंग मार रहे थे , झूला झूल रहे थे दोनों के हाथ तो झूले की रस्सी को कस के पकडे तो गीता खुद ही अपने उभार भाई के सीने पे रगड़ रही थी,


पर आज भैया से ज्यादा गीता मस्ती कर रही थी ,खूब चुहुल।

बचपन से ही भैया को छेड़ने में उसे मज़ा आता था और आज फिर वही,...

उसे वो चिढ़ा रही थी , कभी चूम लेती कभी होनी छोटी छोटी बस आ रही चूँचियाँ बार बार भैया के सीने पे रगड़ देती, टाँगे उसकी खुली खूंटा अंदर धंसा, लेकिन जा भैया पेंग मारता कस के तो उसी ताकत से खूंटा बिल में धंस जाता , पर जब बहना का नंबर आता तो पेंग मारते हुए वो बाहर की ओर अपनी कमर कर लेती , और खूंटा थोड़ा बाहर हो जाता,...

१०-१५ मिनट तक झूले पे मस्ती , गीता की छेड़छाड़ चलती रही, पर अब भाई बहन की हचक हचक कर , पटक पटक कर चुदाई करना चाहता था , जित्त वो छेड़ रही थी उसकी आग उतनी ही भड़क रही थी,

झूले में पहली बार किसी को अरविन्द अपनी गोद में बिठा के चोद रहा था, लेकिन उसका मन ललचा रहा था कच्चे आंगन में लिटा के बरसते पानी में रगड़ रगड़ के इस कच्ची कली को, अपनी छुटकी बहिनिया को चोदने का,... वो बड़ी चुदवासी हो रही थी न बहन उसकी तो आज उसे पता चल जाए की उसका भैया भी कितना बड़ा चुदककड़ है,

फिर अपने ही आंगन में , वो भी दिन में अपनी सगी बहिनिया को चोदने का मजा ही अलग है लेकिन ऐसी मस्त बहिनिया को उसका भाई नहीं चोदेगा तो कौन चोदेगा,

यही बात अरविन्द भी सोच रहा था और गीता भी
Me bhi kuchh photos le rahi hu. Kitna ajib he. Ham dono ka ek hi tashwir ko dekhne ka najriya alag alag he.
 
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