• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Erotica मोहे रंग दे

komaalrani

Well-Known Member
22,209
57,763
259
ट्रेलर या अंश हीं इतना शानदार है कि पूरी सीरिज तो कमाल की होगी...

और सचमुच आपने तो इतने में भी पूरा फाड़ कर रख दिया है...
बहुत बहुत धन्यवाद , कुछ अंश अभी और पोस्ट करुँगी, फिर रिस्पांस देखकर,...
 

Ritz

Member
182
521
93
Mam.. Flawless writing and innovative approach of romance and having a fearless attitude towards taboo... Just speechless. And I must admit I 'm a big fan of yours.
 
  • Like
Reactions: komaalrani

komaalrani

Well-Known Member
22,209
57,763
259
प्रतीक्षा रहेगी...
बस अभी
 

komaalrani

Well-Known Member
22,209
57,763
259
मज़े बनारस के







काम -काम्या, रम्या, प्रमदा


काम का चरम रूप स्त्री -पुरुष, देह मन मस्तिष्क तीनो का संगम और रस की पराकाष्ठा,... मैं कुछ सायास सोच नहीं रहा था, गंगा की लहरें देखते हुए अपने आप मन में विचारों की भावों की लहरे बह रही थीं,...


रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। रस आनंद रूप है । यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है।


कमनीया का एक कटाक्ष, सभी दृष्टि के सुखों से ऊपर होता है, बिना कहे सुख की कितनी पिचकारियां, उस कटाक्ष के साथ लजाने से छूट पड़ती हैं,... छेड़छाड़ की बातें कभी आधी कही, बातें सब वाग सुखों का निचोड़ हो जाता है, और मिलन में तो सब रस एक साथ,... दृश्य का वाग का स्पर्श का गंध का,...


पुजारी जी जैसे जैसे प्रसाद का पान करा रहे थे, ... सब कुछ भूल कर,... जैसे शैवाल से भरा ताल भले ऊपर से जैसा लगे पर उसके नीचे प्यास बुझाने वाला निर्मल जल ,... नीति -अनीति, नाते रिश्ते भौतिक सम्बन्ध जैसे कटते जा रहे थे , जैसे काई हटती जा रही हो और अंदर का सुंदर स्वादिष्ट जल प्यास बुझाने के लिए ,... कामना, उसको पूरा करने के लिए शक्ति और सबसे बढ़कर रस, छक कर रस पान,...

रमणी,... जिसके साथ रमण किया जाये, रम्या,... कामिनी, काम्या,... जिसकी कामना की जाये,... और स्त्री में ही पुरुष की पूर्ण आहुति होती है, वहीँ पुरुष स्थान पाता है ,धात्री धरती बीज को धारण करती है और शष्य श्यामला धान्य से भर जाती है, स्त्री यज्ञ की समिधा की तरह है , जिसमे पुरुष घृत की तरह,... दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, और सृष्टि का निर्माण भले ही हो गया है , लेकिन यह काम की भावना ही चाहे पेड़ पौधे हों, अलग योनियों के जीव जंतु हो,उनकी वृद्धि के लिए जिम्मेदार है , और काम की पूर्ती के साथ जो स्त्री पुरुष दोनों को आनंद मिलता है, वह शब्दातीत है, लेकिन उस आनंद को देना और लेना दोनों ही, कर्म है,...

तभी तो उन्होंने कहा था,... ये तो कर्म है,... और एक पल के लिए वो छवि उभरी,... वो कमनीया किशोरी मेरे ऊपर, और छलकता बिखरता मधु उसके ऊपर से ,... मेरे प्यासे होंठों को तृप्त करती,... काम्या के देह से निकला,बहा, छलका सब कुछ कमनीय है,... सब कुछ,... उन क्षणों की अनभूति ,जब सिर्फ रस बरस रहा हो, रस के सागर में डुबकी, देह तो बस सीढ़ी है उस आनंद के कूप में उतरने के लिए, सुख के पहाड़ों पर चढ़ने के लिए,

और शक्ति, ऊर्जा सुख का स्रोत वही है , जो सृष्टि का स्त्रोत है, काम्या, रम्या, प्रमदा

जैसे गंगा की लहरों की तरह मेरे मन में विचार हिलोरे ले रहे थे थिर हुयी लहरों की तरह धीरे धीरे रुक गए. अबतक चाँद आसमान में अच्छी तरह से निकल आया था,, होली के अगले दिन का चाँद, कभी मैं छिटकी चांदनी को देखता कभी गंगा में चाँद की परछाईं को,



लेकिन फिर एक बात मन में उठी, अपनी कोई बात मैंने नहीं कही थी, लेकिन मेरे बिना कहे उन्होंने सुन भी लिया, समझ भी लिया और और मुझे आशीष भी, और उनके भी होंठ नहीं हिल रहे थे, लेकिन मैं साफ़ साफ़ सुन रहा था, जैसे आवाजों को देख रहा होऊं,...
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,209
57,763
259
मज़े बनारस के











पश्यन्ती,



एक बार फिर मन में वही उथल पुथल,... वाक् भले ही होंठो, जिह्वा तालू और कंठ के संयोजन से निकलता हो, समझी जाने वाली ध्वनियों, शब्दों का रूप लेता हो , अर्थ के साथ हम तक पहुंचता हो, लेकिन उपजता तो वह विचार के रूप में है , हमारे चैतन्य होने का प्रमाण भी है और सम्प्रेषण का साधन भी, ... और वह जन्म लेता है मूलाधार चक्र से, ध्वनि के चार रूप हैं , जो हम सुनते हैं , जिसके जरिये बातचीत करते हैं, वह है वैखरी, ध्वनि का भौतिक और सबसे स्थूल रूप, लेकिन जो विचार या चेतना के रूप में, सबसे बीज रूप में जब यह जन्म लेती है तो उसका रूप परा है, पर वह अति सूक्ष्म होती है , उसके बाद है पश्यन्ती। यदि यह जागृत है, शब्द रूप लेने से पहले ही हम उसे देख सकते हैं , और यह नाभि के स्तर पर जब विचार पहुंचता है उस समय, यानी क्या कहना है उसका मन में तो जन्म होगया पर अभी वह शब्दों का रूप अभी नहीं ले पाया है.

और शब्दों की एक सीमा है, वह विचारों को अभिव्यक्त तो करते हैं पर उसे सीमित भी करते हैं और कई बार अर्थ और विचार में अंतर् भी हो जाता है।

पश्यन्ति और वाक् के बीच मध्यमा का स्थान है, हृदय स्थल पर।

पश्यन्ती की स्थिति में शब्द और उसके अर्थ में कोई अंतर् नहीं होता और विचार का आशय, तत्वर और सहज होता है। इसमें क्या कहने योग्य है, क्या नैतिकता के आवरण में छिपा लें , ऐसा कुछ भी नहीं होता वह शुद्ध रूप में मन की बात होती है, यह वाक् स्फोट का एक सीधा साक्षात्कार होता है, जो कोई कहना चाहता है वह सब सुनाई पड़ता है। और उस स्तर तक विचारों में बुद्धि का हस्तक्षेप, सही गलत का अवरोध नहीं होता है , कामना सीधे सीधे अभिव्यक्त होती है,

और मैं भी उनकी बात सुन पा रहा था , इसका सीधा अर्थ है , ... पश्यन्ति का गुण उनके अंदर तो था ही,वाक् की इस स्थिति को सुनने, समझने की शक्ति उनके आशीष से मेरे अंदर भी बिन कहे सुनने की, सीधे मन से मेरे मन तक पल बना के पहुंचने का रास्ता बन गया था।

दूर किसी घाट से गंगा आरती की हलकी हलकी आवाज गूँज रही थी, नाव नदी के बीचोबीच बस मध्धम गति से चल रही थी, रात हो चली थी इसलिए और कोई नाव भी आसपास नहीं दिख रही थी, हाँ किसी घाट पर जरूर कुछ कुछ लोग नज़र आ रहे थे, मंदिरों के शिखर, घंटो की आवाजें, चढ़ती हुयी रात के धुँधलके में दिख रहे थे. आज आसमान एकदम साफ़ था और चाँद भी पूरे जोबन पर,... कभी मैं आसमान में छिटके तारों को देखता कभी नदी में नहाती चांदनी को , मस्त फगुनहाटी बयार चल रही थी, हवा में फगुनाहट घुली थी, और मेरे मन तन पर भी, ...
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,209
57,763
259
Mam.. Flawless writing and innovative approach of romance and having a fearless attitude towards taboo... Just speechless. And I must admit I 'm a big fan of yours.
Thanks for gracing the thread and nice words,
 

klauacami

Member
113
76
43
काम -काम्या, रम्या, प्रमदा


काम का चरम रूप स्त्री -पुरुष, देह मन मस्तिष्क तीनो का संगम और रस की पराकाष्ठा,... मैं कुछ सायास सोच नहीं रहा था, गंगा की लहरें देखते हुए अपने आप मन में विचारों की भावों की लहरे बह रही थीं,...


रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। रस आनंद रूप है । यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है।


कमनीया का एक कटाक्ष, सभी दृष्टि के सुखों से ऊपर होता है, बिना कहे सुख की कितनी पिचकारियां, उस कटाक्ष के साथ लजाने से छूट पड़ती हैं,... छेड़छाड़ की बातें कभी आधी कही, बातें सब वाग सुखों का निचोड़ हो जाता है, और मिलन में तो सब रस एक साथ,... दृश्य का वाग का स्पर्श का गंध का,...


पुजारी जी जैसे जैसे प्रसाद का पान करा रहे थे, ... सब कुछ भूल कर,... जैसे शैवाल से भरा ताल भले ऊपर से जैसा लगे पर उसके नीचे प्यास बुझाने वाला निर्मल जल ,... नीति -अनीति, नाते रिश्ते भौतिक सम्बन्ध जैसे कटते जा रहे थे , जैसे काई हटती जा रही हो और अंदर का सुंदर स्वादिष्ट जल प्यास बुझाने के लिए ,... कामना, उसको पूरा करने के लिए शक्ति और सबसे बढ़कर रस, छक कर रस पान,...

रमणी,... जिसके साथ रमण किया जाये, रम्या,... कामिनी, काम्या,... जिसकी कामना की जाये,... और स्त्री में ही पुरुष की पूर्ण आहुति होती है, वहीँ पुरुष स्थान पाता है ,धात्री धरती बीज को धारण करती है और शष्य श्यामला धान्य से भर जाती है, स्त्री यज्ञ की समिधा की तरह है , जिसमे पुरुष घृत की तरह,... दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, और सृष्टि का निर्माण भले ही हो गया है , लेकिन यह काम की भावना ही चाहे पेड़ पौधे हों, अलग योनियों के जीव जंतु हो,उनकी वृद्धि के लिए जिम्मेदार है , और काम की पूर्ती के साथ जो स्त्री पुरुष दोनों को आनंद मिलता है, वह शब्दातीत है, लेकिन उस आनंद को देना और लेना दोनों ही, कर्म है,...

तभी तो उन्होंने कहा था,... ये तो कर्म है,... और एक पल के लिए वो छवि उभरी,... वो कमनीया किशोरी मेरे ऊपर, और छलकता बिखरता मधु उसके ऊपर से ,... मेरे प्यासे होंठों को तृप्त करती,... काम्या के देह से निकला,बहा, छलका सब कुछ कमनीय है,... सब कुछ,... उन क्षणों की अनभूति ,जब सिर्फ रस बरस रहा हो, रस के सागर में डुबकी, देह तो बस सीढ़ी है उस आनंद के कूप में उतरने के लिए, सुख के पहाड़ों पर चढ़ने के लिए,

और शक्ति, ऊर्जा सुख का स्रोत वही है , जो सृष्टि का स्त्रोत है, काम्या, रम्या, प्रमदा

जैसे गंगा की लहरों की तरह मेरे मन में विचार हिलोरे ले रहे थे थिर हुयी लहरों की तरह धीरे धीरे रुक गए. अबतक चाँद आसमान में अच्छी तरह से निकल आया था,, होली के अगले दिन का चाँद, कभी मैं छिटकी चांदनी को देखता कभी गंगा में चाँद की परछाईं को,



लेकिन फिर एक बात मन में उठी, अपनी कोई बात मैंने नहीं कही थी, लेकिन मेरे बिना कहे उन्होंने सुन भी लिया, समझ भी लिया और और मुझे आशीष भी, और उनके भी होंठ नहीं हिल रहे थे, लेकिन मैं साफ़ साफ़ सुन रहा था, जैसे आवाजों को देख रहा होऊं,...
kya sabado ka istemaal kiya h kya khub varan kiya h
 
  • Like
Reactions: komaalrani

komaalrani

Well-Known Member
22,209
57,763
259
आज मैंने एक नयी कहानी की शुरुआत की है

छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

आप सबकी सम्मति की प्रतीक्षा रहेगी


https://xforum.live/threads/छुटकी-होली-दीदी-की-ससुराल-में.77508/



holi23.jpg
 
Top