बहन भाई की मस्ती
उसके भैया ने कैसे पहली बार चुदाई का पाठ पढ़ा था , वो अपनी चाची के साथ,...ये सुन के गीता भी गरमा गयी , भैया से चिपक के बोली,...
" भैया, कर न ,...
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कस के उसे दुबका के , गालों पर मीठा सा चुम्मा लेते हुए चिढ़ाते हुए अरविन्द बोला,
" क्या करूँ मेरे बहना, बोल न। "
वो तुनक गयी, और समझ गयी उसका भइया उससे क्या सुनना चाहता है, और अब वो भी अपने भैया से कम नहीं थी, झिड़क के गीता बोली,
" मादरचोद, चल अपनी बहिन को चोद, बहिनचोद। "
बस यही तो वो सुनना चाहता था , अगले ही पल गीता की दोनों टाँगे उसके कंधे पर उसके दोनों छोटे छोटे जोबन उसके हाथों में और वो करारा धक्का मारा की,...
" उईईईईई , उईईईईई ओह्ह्ह्हह उफ्फफ्फ्फ़ " गीता जोर से चीखी , और कस के भाई को दबोच लिया, और गरियाते बोली,...
" साले, एक बार में पूरा पेलना जरूरी था क्या,... "
" अरे मेरी बहना, अभी तो आधा भी नहीं गया है , आज तो सारी रात चुदेगी,... और इसी तरह,... "
दूसरा धक्का पहले से भी करारा,... २४ घण्टे भी नहीं हुए थे उसकी नथ उतरे, झिल्ली फटे और ये मोटा मूसल,...
उफ्फ्फ्फ़ उईईईईई , ... गीता जोर जोर से चीख रही थी , लेकिन जितना उसे दर्द हो रहा था , उतना ही उसे मज़ा आ रहा था,
और जैसे ही सुपाड़े ने बच्चेदानी पे चोट मारी,... गीता दो फीट उछली, दर्द से नहीं मजे से,... और कस के भाई को भींच लिया,...
" भैया तू दुनिया का बेस्ट भाई है बल्कि बेस्टेस्ट,... कोई भाई अपनी बहन को ऐसे प्यार नहीं करता होगा, जैसे तू करता है , एकदम मस्त "
थोड़ी देर दोनों ऐसे ही पड़े रहे , कपडे तो कब के जमीन पर पहुँच चुके थे,...
और आज बादल भी नहीं था चाँद को रोकने वाला , तो चटक चांदनी पूरी तरह से कमरे में फैली वो दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह देख रहे थे , कमरे का दरवाजा भी फटाक खुला था , माँ दस दिन बाद ही आने वाली थी,
सावन के झूले की तरह बारी बारी से दोनों पेंग मारते प्रेम के झूले पे झूल रहे थे , पर पहले गीता ही
उसका भाई था ही इतना खिलाड़ी सिर्फ औजार उसका सबसे २२ नहीं था , उसका इस्तेमाल करने का तरीका , और उसके साथ साथ होंठों , उंगलिया , ...
पहली बार जब गीता झड़ी , तो वो धक्के मार , पूरा लंड बहन की बुर में पेल के रुक गया था, एकदम ठूंसा हुआ , मुश्किल से जैसे अंदर समाया हो और लंड की जड़ से क्लिट को रगड़ रगड़ के , रगड़ के,... और साथ में एक निप उसके होंठों के बीच दूसरा उँगलियों के बीच,
वो झड़ती रही , वो रुका नहीं ,...
पर जैसे ही बहन का झड़ना रुका,...
चल घोड़ी बन,...
बहन अब तक इतना सीख गयी थी , तुरंत निहुर के ,...
और अबकी तो धक्के सिर्फ बिस्तर को नहीं कमरे को हिला रहे थे,... थोड़ी देर में दोनों साथ गिरे,... और थके बिस्तर पर पड़े रहे
एक दूसरे की बाँहों में पसीने से लथ पथ, थके,...
लेकिन थोड़ी देर में गीता ने धीमे से उसके कान में बोला,..
" भैया,.. "
" बोल न,... "
" चल चाची की सबसे पहले तूने ली , दो साल पहले,... लेकिन किसी ऐसे के साथ जिसके साथ किसी ने न किया है ,... मतलब ,... मतलब झिल्ली पहले , सबसे पहले कब, किसकी फाड़ी "
" तू भी न चल बता देता हूँ , साल भर से ज्यादा , वो ,... " और उसने हाल खुलासा सुनाना शुरू कर दिया।
अरे तू जानती होगी, फूलवा, जो अपने यहाँ,.... उसकी बात पूरी भी नहीं हुयी थी की गीता बीच में बोल पड़ी,...
" हाँ, हाँ अच्छी तरह,... खूब गोरी सी थी, मुस्कराती रहती थी, डेढ़ साल तो हो गया उसको गौने गए,... घासवाली न, अपने यहाँ भी तो आती थी, घास काटने,... वही क्या,... "
" हाँ, लेकिन अब बीच में मत बोलना,... " और भाई ने पहली कुँवारी पर चढ़ाई का किस्सा शुरू कर दिया,...
और यह दोनों, गीता और अरविन्द, बहन भाई तो थे ही, सहोदर, सगे, एक माँ के जन्मे,... देह के स्तर पर अब एक दुसरे के आनंद के कारक, सम्पूरक, स्त्री और पुरुष, सब बंधनों से ऊपर,... और उस के साथ ही साथ विश्वास का एक नया सेतु भी,... दोनों ही काम को किसी गिल्ट या अपराध बोध से जोड़ कर नहीं देख रहे थे , वह कृत्य जो न सिर्फ मानव जाति में बल्कि, सभी जीवों में जिनमे पादप भी शामिल है, अपनी अपनी जींस को, जाती को बनाये रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कृत्य है, वह गलत कैसे हो सकता है, पाप से कैसे जुड़ सकता है? पौधों में भी फूल खिलते हैं, परागण के लिए ही, अपने अंदर उस परिमल को संजोये जो एक फूल से हजार फूल जन्मने की इच्छा और क्षमता दोनों रखता है।
यह विश्वास ही था की बिना किसी सेन्स ऑफ़ गिल्ट के अरविन्द ने चाची का पूरा किस्सा गीता को सुनाया, ... और गीता ने भी बिना कुछ बुरा माने, मन ही मन अपने भाई के बारे में कोई राय बनाये, कोई फैसला लिए, उससे बड़े ही भोलेपन से उसके उस अनुभव के बारे में भी पूछ लिया की कैसे किसी कन्या का कौमार्य भंग कर उसके भाई ने उस कन्या को सहारा देकर युवा होने की चोखट पार कराई। और उसके भाई अरविन्द ने उसी भाव से उसे बताया, न तो रस ले ले कर , न ही किसी विजय के अहम से,... बल्कि एकदम मैटर ऑफ़ फैक्ट की तरह,...
अब उनके संबध शायद संबंधो की परिभाषा के आगे निकल गए थे पर वह उस विश्वास पर टिके थे, जिसकी अक्सर हम सिर्फ कामना कर सकते हैं,
संगीतवा का एक-एक डायलोग ... नौ-लखे से बढ़ कर...
क्या मस्त ... गारी दे-देकर ... उकसा-उकसा कर...
और लास्ट के दो पैराग्राफ ... सृष्टि के नियम ... जो सामाजिक नियमों से भिन्न हैं... और जो सभी प्राणी जगत में विद्यमान है...
यही प्रसंग और विविधता इस कहानी को एक अलग जमात में खड़ा कर देते हैं...