गितवा अपने भाई से सुनकर गरमा रही थी तो...भाग ३६ -
इन्सेस्ट किस्सा- मस्ती भैया बहिनी उर्फ़ गीता -अरविन्द की
फुलवा और अपने सगे भाई अरविन्द का किस्सा सुन के, गितवा गरमा रही थी , चिपक रही थी बार बार अपने भाई से ,... कैसे अमराई में अरविन्द ने उसकी फाड़ी,.. और फिर बिना नागा,... और दिन दहाड़े गन्ने के खेत में अरविन्द ने चढ़ के फुलवा की टांग उठा उठा के,
और बार बार गितवा खींच के उसे , बस यही सोच रही थी बहुत हुआ किस्सा कहानी,... अब सीधे भैया चढ़ के उसे ,...
मुझे मालूम है आप सब बार बार गीता और अरविन्द का किस्सा सुनने के लिए बेताब हो रहे है,... आखिर किस्सा भी भैया बहिनी का है, इन्सेस्ट का है और मैं सुनाने के लिए ,
लेकिन बस थोड़ा सा फुलवा की बात बची हुयी है, वो बात,... और उसके बाद कैसे रात भर गीता ने अपने भैया के साथ मस्ती की,... और इस कामना के साथ जैसे उन दोनों सगे भाई बहिन की मन की मुराद पूरी हुयी , उसी तरह इस कहानी को मन लगा के ध्यान से पढ़ने वाले सभी भाई बहनों की मन की मुराद पूरी हो,
पर थोड़ी सी बात फुलवा की, बस थोड़ी सी,...
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फुलवा हुयी,...
पहली बार गन्ने के खेत में , ऐसे खुले में,... बहुत मजा आया उसको ,
हाँ चलने के पहले फुलवा बोल गयी थी , आज आउंगी रात में , और अकेले टाइम पे आ जाना,...
और रात में तो आज फुलवा इतनी खुश इतनी जोस में की दूसरी बार , ...
खुद उसके ऊपर चढ़ के चोदने की उसने कोशिश की ,.... और जब तक पूरा एक बार घोंट नहीं लिया चढ़ी रही,...
हालांकि उसके बाद वही ऊपर हो गया,...
लेकिन तीसरी बार के बाद अचानक उसको याद आया और फुलवा के जोबन हलके हलके काटते उसने पूछा की
" अरे, तू तो कह रही थी की आज से तेरी वो,... पांच दिन वाली छुट्टी,.... "
अब फुलवा पे जो हंसने का बुखार चढ़ा, तो बहुत देर तक,
" बाबू तू न एकदम बुरबक,.. अरे गन्ने के खेत में आज दिन में हम ,... तू समझे नहीं,... "
वो सच में कुछ नहीं समझा था,...
फिर बड़ी मुश्किल से हंसी रोक के वो बोली,
" अरे बुद्धू हो गयी न छुट्टी,... पांच दिन वाली नहीं पूरे नौ महीने की छुट्टी,... नहीं समझे तो कोई बात नहीं , हम परसाद माने थे कल जाके चढ़ा आना और सवा पाँव मिठाई ले के आना ,... और टिकोरे का मन ललचा रहा है ,... तो तीन चार दिन बाद उहो मिल जायेगी,... जउने दिन चमेलिया क छुट्टी ख़तम होइ ओहि दिन , और जउने दिन लौंडिया क छुट्टी खतम होती न अस गरमाई रहती है , ठोंकना कस के,... लेकिन हमरे छुट्टी क तो पूरे नौ महीने क छुट्टी। "
और फिर पागल हो के जैसे,वो चूमते हुए झुक के 'उसको' भी चूम लिया।
हाँ एक बात जो उसने अपनी बहन, गीता को नहीं बताई थी लेकिन मैं आप सब से चुपके से शेयर कर दे रही हूँ ,...
कुछ कुछ तो उसे अन्दाजा लग गया था , लेकिन फिर भी उसने ग्वालिन भौजी से अगले दिन साफ़ साफ़ पूछ लिया,
वो फुलवा से भी ज्यादा जोर से हंसी , मुश्किल से बोलीं देवर तो तो एकदमै,.... और फिर हंसना शुरू , और रुकीं तो उसको पकड़ के समझाते बोलीं,...
" अरे देवर बबुआ, जब कोई लड़का की किसी लौंडिया के अंदर दही डालता है तो बस नौ महीने के अंदर वो लौंडिया दूध देने लगती है , बस। "
लेकिन उसका चेहरा उतर गया ,
" ये तो बड़ा गड़बड़ हो गया भौजी , दस दिन के बाद उसका गौना है। "
"तुम तो सच में का का सिखाना पडेगा तुमको , हड़काया भौजी ने फिर पूछा अच्छा ये बताओ वो परेशान थी की खुश" उसकी ठुड्डी पकड़ के उसकी आँखों में आँखे डाल के झांकती मुस्कराती ग्वालिन भौजी ने पूछा।
"बहुत खुश भौजी , ख़ुशी में पागल, बोली की परसाद मानी थी, जाके चढ़ा आना और सवा पाव मिठाई ले आना हम दोनों खाएंगे,... ' वो बोला।
" तब लल्ला तुम काहें परेशान हो रहे मजे लो खुल के , अरे सवा पाव नहीं सवा किलो,... ले जाना,... देख वो तोहसे ज्यादा समझदार है,... गौना में जायेगी , पहली रात में ही मरद चढ़ेगा,... फिर क्या आठ दस दिन बाद सास ननद को बोल देगी की ,... महीना नहीं हुआ इस बार,
सास गौने से उतरने के पहले दिन ही बहू से पूछती है की तेरा महीना कब होता है , अरे वो पांच दिन रसोई में नहीं जायेगी न , इसलिए ,...
तो बस गौने में उतरते ही सास के पूछने पर कउनो आठ दस दिन बाद की तारीख बता देगी,... और जो वो तारीख आएगी तो ,... बस चार पांच दिन में अगर कुछ नहीं हुआ , उलटी शुरू हुयी ,
तो बस सास खुश की पोता होगा, ननद खुश की नेग मिलेगा , मरद खुश की कमाने जाने के पहले गाभिन कर के जा रहा है ,... तो जो सब खुश है तो तोहिं काहे परेशान हो रहे हो, मजे लो जम के "
ग्वालिन भौजी ने समझाया भी और उसके सर का बोझ भी उतार दिया, बौरहा देवर अब धीरे धीरे समझदार हो रहा था।
गौने में जाने के पहले अपनी छोटी बहन के टिकोरे तो चखाए ही, दो चार और की उसने झिल्ली फाड़ी , दिन में भी गन्ने और अरहर के खेत में मजे लेने शुरू कर दिए।
गीता ने पूछा, ' चमेलिया की भी, कब, फुलवा के सामने "
और अरविन्द ने हाल खुलासा बताया। और ये भी की उस रात फुलवा ने गीता का नाम ले ले के उसे खूब चिढ़ाया, छेड़ा और रात भर,...
ग्वालिन भौजी ने जैसा कहा, समझाया था, सवा किलो लड्डू न उसने सिर्फ चढ़ाया बल्कि साथ ले कर आम की बाग़ में,...
और अब उसे माँ से पूछना भी नहीं पड़ता था. कुछ तो बात थी ग्वालिन भौजी में अब वो शाम ढलने के पहले ही आ जाती थीं और माँ अब अरविन्द के पीछे पड़ जाती थी, कब जा रहे हो, अरे देर मत करो, अँधेरा हो जाएगा,... और शाम को ही बनी पूड़ी सब्जी हलवा का डब्बा उसे पकड़ा देती थीं,...
और उसके घर से बाहर निकलते ही ग्वालिन भौजी, घर का दरवाजा बंद कर देती थी, लेकिन रिश्ता तो देवर का था, इसलिए आँख मार के और चुदाई का इंटरेशनल सिंबल, अंगूठे को गोल कर केऊँगली अंदर बाहर,... और वो भी सर हिला के हामी में जवाब देता और बाग़ की ओर,...
जहाँ फुलवा उसका इन्तजार करती रहती।
कभी किसी पेड़ के पीछे छिपी, कभी आम के पेड़ के ऊपर चढ़ी धप्प से उसके ऊपर कूद के हंसती खिलखिलाती,... और लड्डू देख के खुस, लेकिन उसके हाथ से छीन के बोली,
" बाबू, पहले मैं खिलाऊंगी, आखिर तोहरी मेहनत का नतीजा है, लेकिन बौरहा चल, तू समझ तो गया,... " और पूरा लड्डू उसके मुंह में ठूंस दिया। "
मुंह बंद बोलती बंद और फुलवा का हाथ चालू, अरविंदवा के सब कपडे बाग़ में जमीन पे जहाँ फुलवा अपनी साड़ी पहले से ही बिछा देती। और उचक के अरविन्द की गोद में , पेटीकोट कभी सरक के कमर तक तो कभी सरसरा कर उतर जाता,... और अरविंद का फनफनाता खूंटा फुलवा के गोल गोल चूतड़ों पे रगड़ता, कभी फुलवा उसे पकड़ के अपनी प्रेमगली से सटा लेती,...
पांच दिनों से वो चुद रही थी रात भर और आज तो दिन में भी गन्ने के खेत में तो उसे जल्दी नहीं होती थी और पूरी रात उनकी थी,
पहले तो फुलवा को पांच दिन की छुट्टी का डर सताता था लेकिन जिसे वो बौरहा समझती थी और उसके टोले मोहल्ले की सब लड़कियां औरतें, बबुवाने क सबसे सोझ समझती थी, उसी ने फुलवा को गौने से पहले ही गाभिन कर दिया था,...
और उसके पाजामे का नाग अगर वो लड़कियां एक बार देख लें न तो बस दीवानी हो जाएँ लेकिन वो तो फुलवा की किस्मत में था,...
पर फुलवा जानती थी,
कि ये बौरहा सच में बौरहा था और अगर फुलवा ने उसकी आदत न सुधारी तो बस दस दिन बाद वो गौने चली जाएगी और ये बाबू फिर ऐसे वैसे खाली देखता ललचाता रहेगा ,...
तो ये काम उसे दस दिन के अंदर ही करना पडेगा,... और चमेलिया, उसकी छोटी बहन के साथ,...
छुटकी गितवा से सुनकर तो...
सोझका आदमी तो सीधे बच्चेदानी में भरकर फुलवा को वो खुशी दिया कि सवा किलो मिठाई का परसाद तो बनता हीं था....
और ग्वालिन भौजी का अरविंदवा ट्रेनिंग देने में भी कोई रोल था या सिर्फ....