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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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ग्वालिन भौजी का तो बड़ा रोल है , अरविन्द के ' विकास' में, रास्ता तो उन्होंने ही साफ़ किया,.. पहले चाची के साथ जाने के लिए,...गितवा अपने भाई से सुनकर गरमा रही थी तो...
छुटकी गितवा से सुनकर तो...
सोझका आदमी तो सीधे बच्चेदानी में भरकर फुलवा को वो खुशी दिया कि सवा किलो मिठाई का परसाद तो बनता हीं था....
और ग्वालिन भौजी का अरविंदवा ट्रेनिंग देने में भी कोई रोल था या सिर्फ....
Haan, post badi ho rahi thi phir usi post men Gita vaala prsang aage badhaana tha aur maa ke aane ka twist bhi,...फुलवा तो जबरदस्त बात बता गई...
खाली लटकाने वाली और मूतने वाली चीज नहीं है....
दावत का पूरा इंतजाम...
हर तरह के पकवान का अपने सामने भोग लगाने का मौका और बीच-बीच में ससुराल से आने का वादा..
शायद बच्चा होने के बाद फुलवा के पिछवाड़े का मौका भी मिल जाए...
चमेलिया तो आगे का भी सोच ली...
लेकिन चमेलिया का किस्सा छोटे में निपटा दिया...
कुछ तो खून-खच्चर और चिल्लाने, रोआ-रोहट का वर्णन...
ab ye to agali post men hi pata chalega ki pitaayi Gita ki kyon huyi,.. tab tak guess kariyeहाँ ... सही गेस किया कि पहले उकसा कर क्यों नहीं किया ये सब... इसलिए देरी की सजा मिली पिटाई के रूप में....
एकदम सही कहा आपने काव्य का उद्देश्य ही रस का सृजन करना है और रौद्र रस जिससे भय उत्पन होता है वो भी साहित्य कर्म का ही अंग है , मेरी, हम सब की मित्र, ' चुड़ैल ' ( निश्चित रूप से पेन नेम ) इस में दक्ष है और मैं उनकी नियमित पाठिका भी हूँ और इस जाड़े के मौसम में भी पंखी हूँ।मानवीय भावनाओं में एक भय भी है... जिसमें आप अपनी जादुई लेखनी की छटा बिखेरती हैं...
भरत ने अपने नाट्य शास्त्र में रसिक लोगों के महत्व पर प्रकाश डाला है, अगर काव्य, संगीत या नाट्य रस का सृजन करता करता है तो उस रस का अवगाहन करने वाला भी तो चाहिए,... और किसी क्लासिकल म्यूजिक के कंसर्ट में या हम ऐसे रसिक श्रोताओं को देख सकते हैं हो एक एक मुरकी, मींड, तान और आलाप का आनंद लेते है,... तो आप उन्ही रसिक, रस सिद्ध पाठको में हैं जिन्हे पा कर कोई भी कलम धन्य हो जाए,... मेरा मानना लिखना कठिन है लेकिन उसके मनोभावों को समझना, उसकी गहराई में डूबना और जीवन की इस आपाधापी में भी समय निकाल के नियमित रूप से कमेंट देना और दुष्कर,आप सबसे प्रेरणा पा कर कुछ लिखने की चेष्टा की...
लेकिन दो-तीन पृष्ठ के बाद मुझे लगा कि ये मेरे वश की बात नहीं...
आखिर तोता चाहे कितना भी नकल कर ले... मनुष्य की बराबरी नहीं कर सकता ...
इसलिए तोते की तरह नकल करने के बजाय.. दूसरों के अच्छे लिखे पर हीं कमेंट कर मुझे संतुष्टि का अनुभव होता है...
एकदम सही कहा आपने, कविता की भाषा मेंदंड पेलने से जो शरीर बना है ।उसी से तो लौंडा अपनी बहन सही तरीके से पेल पा रहा है।
बस दो- तीन दिन और , माँ क्या करेगीमां आ गई जल्दी ???? अब क्या होगा , मां भी सामिल हो गई या नहीं ।
अगले अपडेट की प्रतीक्षा में ।
तभी तो बहन ने भी हड़काया,...इस चपडगंजू को चाची ने इतना समझाया सिखाया फिर भी इतनी देर से दिमाग में बात घुसी
बहुते स्वागत बा आप का यह थ्रेड पे,अपडेट कहिया मिली हो कोमल रानी जी....
खेत के पलिहर में अब इंतजार हमसे होई नाही.
सब किरदार के जिवंत कर देत बालू अपने कला से
Apki aadesh ke me kaise mana kar sakta hoon. Bilkul JKG bhi padhenge abIsiliye to kah rahi hun aa jaaiye ek baar JKG pe aur chitron ke saath additional posts ke saath, ....![]()