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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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Besabari Be-asar Haiभाग ३७ -
इन्सेस्ट कथा - और माँ आ गयीं
Jabardast socking erotic. Full zanzod dene vala update. Shandar. Jitna bolu itna kam he. Ufff........ I hv no wards..माँ की सीख
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,... और भैया ने जब घबड़ा के उठने की कोशिश की तो उसे और जोर से हड़का लिया,...
" तू तो हिल मत , जैसे है वैसे पड़ा रह, नहीं तो अभी कपडे धुलने वाली मुंगरी लाती हूँ उसी से तेरी खातिर करुँगी, पड़ा रह चुप चाप, जैसे आँख बंद थीं वैसे बंद कर लें ,... "
और भैया ने मारे डर के आँख बंद कर ली, ...
फिर मेरी पीठ पे दो जबरदस्त चांटे , जैसे किसी ने तेज़ाब छिड़क दिया हो,... मेरी आँखों में आंसू नाच के रह गए ,... मैं जान रही थी , अगर हिली कुछ बोलने की कोशिश की तो उसी मुंगरी से मेरी धुलाई होगी,...
फिर पेटीकोट अपना घुटने तक मोड़ के वो मेरी बगल में बैठ गयीं ,
और जबरदस्त मेरे कान का पान बना दिया, उनका रेडियो फिर चालू हो गया लेकिन अबकी स्टेशन बदल गया था.
धुन और स्वर भी बदल गया था, और बातें भी, हालांकि डांट अभी भी पड़ रही थी , लेकिन अब समझ में आने लगा की क्यों पड़ रही थी...
" मैं दस मिनट से दरवाजे पर खड़ी देख रही हूँ तुझे, सिर्फ मुंह में लेकर इतनी देर से चुसूर चुसूर कर रही हो,... अरे ऐसे चूसा जाता है , वो भी भैया का,... चल निकाल मुंह से मैं बताती हूँ,... "
अब मुझे ध्यान आया की माँ की डांट पड़ रही थी, दो हाथ भी पड़े लेकिन मैं भैया का लॉलीपॉप मुंह में ही लिए,...
और फिर माँ ने सिखाना शुरू किया,...
देख पहले तड़पा थोड़ी देर,ललचा, तंग कर उसे और सीधे ये नहीं की गप्प कर लिया , अरे भागा कहाँ जा रहा है। वो तू उसकी छोटी सगी बहन है, तू मुंह में नहीं लोगी तो कौन लेगा, .. लेकिन पहले जाँघों के ऊपरी हिस्से शुरू कर,... और वो भी सिर्फ जीभ की टिप से, और हाँ साथ साथ उसे देखती भी रह, तेरी आँखे उसे चिढ़ाती उकसाती रहें,... और हाँ हाथ , ... तो अभी शुरू में छूने पकड़ने की जरूरत नहीं,... जैसी गलती से लग गया हो, छू गया हो, बस ऊँगली से हलके से कभी सहला दो , कभी पकड़ के छोड़ दो, ... चल पहले जीभ बाहर निकाल,...
और उन्होंने खुद बड़ी सी जीभ बाहर निकाल के दिखाया, ... और मैंने भी वैसी ही जीभ पूरी की पूरी बाहर निकाली, और जैसा माँ ने कहा था, एकदम उसी तरह से,...
माँ बहुत दुलार से मेरी पीठ सहला रही थीं और मेरे कानों में इंस्ट्रक्शन दे रही थीं , फुसफुसा के जैसे भैया न सुने, ..
मेरी बेटी ठीक कर रही है, जल्द सीख लेगी, हाँ हाँ , बस होंठ न लगने दे , सिर्फ जीभ की टिप ,... होंठों का नंबर बाद में आएगा,...
माँ के कहने पर जीभ की टिप जांघ और डंडे की बीच वाली जगह पर बार बार, ...
और फिर जीभ से अब एक बार फिर से खड़ा तना लिंग, बेस से ऊपर तक नदीदी की तरह ,... लेकिन तबतक चमड़ा एक बार खुल के सुपाडे के ऊपर आ गया,...
और माँ ने झटक के मुझे अलग कर दिया और मेरे कान में कुछ सिखाया ,
और अबकी मेरे होंठ मैदान में थे , जैसे माँ ने कहा था और सिर्फ होंठों के जोर से धीरे धीरे, जैसे कोई सुहागरात के दिन दुलहन का घूंघट उतारे मैंने भैया का सुपाड़ा , फिर सिर्फ होंठों से हलके से दबाव से खोल दिया, ...
" शाबस अब लग रही है तू मेरी बेटी चल घोंट,... लेकिन पहले जीभ से,... "
और मुझे डांट भी पड़ गयी,... मैं असल में पेशाब वाले छेद से थोड़ा हट के,... लेकिन उसी के लिए डांट पड़ी,...
"स्साली, चूत मरानो चाट इसे , ... जीभ की टिप अंदर डाल के, अरे इसी से अमृत निकलता है जिससे लड़कियां गाभिन होती हैं , चाट,... "
हिम्मत थी मेरी बात न मानने की,... और थोड़ी देर में मैंने पूरा सुपाड़ा गप्प कर लिया,... हाँ जैसे माँ ने सिखाया था,... लेकिन उससे ज्यादा मैं घोंट नहीं पाती थी , पर माँ ने न सिर्फ डांटा बल्कि मेरा सर पकड़ के जबरन लंड पे दबा दिया, मैं गों गों करती रही , पर आधे से ज्यादा लंड वो घुटवा के मानी और हँसते हुए बोली की चल अब चूस।
अब मैं मस्त हो के चूस रही थी , सुपाड़ा सीधे हलक पे बार बार ठोकर मार रहा था,... खूब कड़ा, एक नया मज़ा,... इत्ता ज्यादा मैंने आज तक नहीं घोंटा था,.. लेकिन गाल फूले फूले थक रहे थे , आंखे उबल रहीं थी, लेकिन मैं मुस्करा रही थी, और मेरी उँगलियाँ कभी लंड को सहला देतीं, कभी दबा देतीं,... भैया की आँखे मस्ती से भरी थीं, उसकी हालत खराब थी , और उसकी ख़ुशी देख के मैं और जोर जोर से,
माँ बीच बीच में मेरे कान में समझा भी रही थीं, होंठों से रगड़, नीचे जीभ से चाट, और कस के चूस,...
अब तक मैं समझती थी, सिर्फ मुंह में लेके चुभलाओ, लेकिन माँ एक एक चीज़ समझा रही थीं,...
पर थोड़ी देर में मेरा मुंह एकदम थक गया, गाल फटे पड़ रहे थे, ... अच्छा तो लग रहा था भैया का मूसल मुंह में लेकिन बस मन कर रहा था बस थोड़ी देर के लिए मुंह हटा लूँ,
मैंने माँ की ओर देखा तो वो मुस्करा रही थीं, हल्के से बोलीं, मेरी रानी बेटी का मुंह इत्ती जल्दी थक गया, ... लेकिन चल अभी कुछ दिन में,... निकाल ले,...
लेकिन कान में उन्होंने कुछ और सिखाया, और मेरी आँखे चमक गयीं , ये तो उन फिल्मों में भी नहीं देखा था, वो बोलीं , मुंह से तो निकाल ले , थोड़ी देर के लिए लेकिन कोई न कोई हिस्सा चेहरे का, और इशारे से समझाया चाट तो सकती है बाहर से,...
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अब तक मैं समझती थी, सिर्फ मुंह में लेके चुभलाओ, लेकिन माँ एक एक चीज़ समझा रही थीं,...
पर थोड़ी देर में मेरा मुंह एकदम थक गया, गाल फटे पड़ रहे थे, ... अच्छा तो लग रहा था भैया का मूसल मुंह में लेकिन बस मन कर रहा था बस थोड़ी देर के लिए मुंह हटा लूँ,
मैंने माँ की ओर देखा तो वो मुस्करा रही थीं, हल्के से बोलीं,
"मेरी रानी बेटी का मुंह इत्ती जल्दी थक गया, ... लेकिन चल अभी कुछ दिन में,... निकाल ले,..."
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लेकिन कान में उन्होंने कुछ और सिखाया, और मेरी आँखे चमक गयीं , ये तो उन फिल्मों में भी नहीं देखा था, वो बोलीं , मुंह से तो निकाल ले , थोड़ी देर के लिए लेकिन कोई न कोई हिस्सा चेहरे का, और इशारे से समझाया चाट तो सकती है बाहर से,...
बस मैंने धीरे धीरे निकाला बाहर लेकिन, अपने किशोर गुलाबी गोरे गोरे गालों पर, जिस पर गाँव में न जाने कितने फिसलते थे, भैया के तन्नाए खूंटे से रगड़ती रही, फिर कभी जीभ निकाल के बाहर से चाटती, तो कभी हाथों से मुठियाती हुयी छोटे छोटे सैकड़ों चुम्मी, ...
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पर माँ का इशारा जिधर था , मेरी न हिम्मत पड़ रही थी , न मन कर रहा था,...
पर माँ ने जब आँख तरेरी, ... तो मुझे उसके चांटे और मुंगरी याद आ गयी, तो बड़े बेमन से,... पहले जीभ से फिर मुंह खोल के एक,..
माँ भैया के बॉल्स, जिसको ग्वालिन भौजी पेल्हड़ कहती थीं,... की ओर इशारा कर रही थीं,...
और जब मैंने पूरा एक मुंह में ले लिया, चुभलाने लगी, साथ साथ में मेरी पतली पतली कलाइयां भैया के पगलाए लंड को मुठिया, रही थी, तो हंस के बोलीं वो,...
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" अरे पगली , यही तो रसगुल्ला है,... जिसमें सारा असली रस है, यहीं से तो रबड़ी मलाई बन के निकलती है "
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लेकिन जो अगली बात का जो उन्होंने इशारा किया वो मेरे बस नहीं था, मेरे एकदम समझ में नहीं आ रहा था,
भैया का मस्त मोटा एक बित्ते का झंडा हवा में लहरा रहा था , मोटा तन्नाया, माँ की नजरें भी वहीँ अटकी थीं,...
वो सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट में, ब्रा तो घर में पहनती नहीं थी , कई बार बाहर भी , ... तो एक पल के लिए सोचा उन्होंने,.. फिर एक झटके में अपना ब्लाउज उतार के वहीँ फेंक दिया , जहां फर्श पे मेरे और भैया के कपडे छितरे पड़े थे,...
और उनकी मोटी मोटी चूँचिया, खूब गोरी,... मैं एकदम उन्ही पे पड़ी थी, ... और फिर मेरी ओर देखा, जैसे कह रही हों , देख सीख, बार बार न समझाउंगी,...
और उन्ही दोनों चूँचियों के बीच भैया का खूंटा, लेकिन उसके पहले अपने लम्बे खड़े निपल को भैया के सुपाड़े में कभी लगाती,तो कभी पेशाब वाले छेद में
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और जब दोनों चूँचियों के बीच दबा के उन्होंने मसलना शुरू किया तो मेरा और भैया दोनों का मुंह खुला रह गया।
इतनी कस के तो मैं अपनी मुट्ठी में नहीं पकड़ पाती थीं , जिस तरह से माँ ने अपने दोनों जोबन के बीच भैया का मूसल दबोच लिया था, ... आज भैया लाख चूतड़ पटकता उस पकड़ से नहीं निकाल सकता था, ...
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मैं बहुत खुश और मुस्करा के चिढ़ाते हुए भैया को देख रही थी और साथ में माँ को भी,
सच में बहुत सीखना था माँ से,...
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वो सिर्फ अपनी चूँचियों से अपने बेटे को नहीं चोद रही थीं, बल्कि उनकी देह का कोई हिस्सा नहीं बचा था , जो उस खेल तमाशे में नहीं शामिल था, उनके हाथों की उँगलियाँ कभी भैया के बॉल्स को सहला देतीं, कभी जाँघों पर चिकोटी काट लेतीं,... तो कभी,... मैं तो चौंक गयी,... भैया के पिछवाड़े की दरार,... सीधे वहीँ रगड़ देतीं कस के,... होंठ उनके बीच बीच में भैया की छाती पे,... और यहाँ तक की पैर भी उसके पैरों पे रगड़ रहे थे,...
और चूँचिया भी कभी खूब कस के जैसे चक्की के दोनों पाटों के बीच, वैसे भैया का खूंटा रगड़ा जा रहा था,...
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तो कभी एकदम धीमे धीमे जैसे हवा सहला के निकल जाए,... और फिर अचानक दबोच लेती, ... जैसे कोई एक्सपर्ट स्विंग बॉलर पहले दिन सुबह सुबह , तीन चार बोलने जबरदस्त आउटस्विंगर फेंकने के बाद, एक बाल एकदम से इनस्विंग करा दे,... और ओपनर बोल्ड,... बस वैसे ही,...
मैं तो बस एक एक चीज सीखने के लिए देख रही थी,
( शाम को रसोई में जब माँ आंटा गूंथ रही थी और मैं बगल में बैठी, सब्जी काट रही थी, मैंने माँ से कहा भी, माँ, तेरे जैसा तो मैं कभी भी नहीं सीख पाउंगी,... तो हंस के दुलार से एक हाथ हलके से मारते वो बोली, अरे तीन दिन में सिखा दूंगी, तुझे सब गुन ढंग,... भूलती क्यों है,... मेरी बेटी है, और कसम से, हफ्ते भर के अंदर तू मेरा नंबर डकायेगी, पक्का )
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और जब मेरी बारी आयी तो अपनी छोटी छोटी चूँची से, कहाँ २८ कहाँ ३८ पर थोड़ा बहुत तो,
लेकिन अब भैया की हालत खराब थी,...
और भैया और मुझे भी लग रहा था , माँ को भी लगने लगा, बहुत चोर सिपाही हो गया , अब असली खेल घुस्सम घुसाई वाला होना चाहिए ,...
मैं माँ का इशारा समझ के पलंग पे पीठ के बल लेट गयी, और टाँगे उठाने लगी,... लेकिन तभी माँ की डांट पड़ी,...
ऐसे नहीं, चल पेट के बल लेट, टाँगे नीची,...
और मैं पेट के बल, ...
मेरी दोनों टाँगे फर्श पे बस छू रहीं थी,...
माँ ने पलंग पे जितनी तकिया रखी थीं, सब मेर पेट के नीचे लगा के मेरा पिछवाड़ा ऊंचा कर दिया था, जिससे मेरे पैर फर्श पे बस,... मान गयी मैं माँ को,अब जो भैया धक्के मारेगा, सब तकिये पे जोर पडेगा, ... वो मारता भी था कस कस के बहुत, बस जान नहीं निकलती थी,...
माँ सिरहाने आके मेरे सर के पास बैठ गयी, दोनों अपनी टाँगे फैला के, वो अब बस पेटीकोट पहनी थी वो भी घुटने के बहुत ऊपर सरका, समझो कमर के पास सरका, सिमटा, हम दोनों के कपडे तो पहले से ही उतरे,...
माँ बहुत दुलार से मेरा सर सहला रही थी, ऊँगली मेरे बालों में घुमा रही थी, और मेरे मुंह को अपनी गोद में दुबका के,...
Congratulations komaalrani jiThanks Friends for supporting this story, gracing it with your presence and adorning it with your comments and ensuring,
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