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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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Thanks so much,.... lekin main koshish karungi speed thodi badhane ki kam se kam do hafte men teen agar ho skae aur bhale hi post ki size me thodi kami karni pade, aur jitani hunkari bharne vaale hote hain sunanane vaale ki hiimat vaise hi badhti hai
It should not be on the compromise of creativity and originality...
 
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motaalund

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तबतक आप मेरी नॉन- इन्सेस्ट स्टोरीज पढ़ें ना ,

मैं उन नॉन इन्सेस्ट स्टोरीज का नाम और लिंक दे रही हूँ,...

प्लीज पढ़िएगा जरूर और कमेंट भी दीजियेगा,... तभी तो लगेगा आप पढ़ रहे हैं

1. होली है - होली के किस्से , कोमल के हिस्से


2. मोहे रंग दे ,


3. जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी


4. मजा पहली होली का, ससुराल में


5. It’s a hard rain


इस कहानी में ज़रा सा भी इन्सेस्ट नहीं है पर अब तक इत्ते संस्कारी लोगों के बावजूद मुश्किल से चार हजार लोगों ने तीन साल में पढ़ा है आप जरूर पढियेगा और कहानी पर कमेंट भी करियेगा तीन साल में चार लोगों ने इस नॉन इन्सेस्ट कहानी पे कमेंट किया है आप पांचवे होंगे

इन्तजार रहेगा

और आप को अगर नान फिक्शन पसंद हो तो मैं अपने कुछ और थ्रेड और लिंक्स बता दे रही हूँ


1. मेरे चंद पसंदीदा शायर

2. दोहे -रसभरे


3.
Tribute to Satyajit Ray- Birth Centenary


तो मेरे बहुत से ' नॉन -इन्सेस्ट' थ्रेड हैं आप का वहां स्वागत है नए वर्ष के पहले दिन वहीँ से शुरुआत करिये और जैसे ही इन्सेस्ट का किस्सा यहाँ ख़तम हो जाएगा आप वापस आ सकते हैं,

नए वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं
नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ....
 
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motaalund

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भाग ३९ -

माँ, बेटा, बेटी

और बरसात की रात



" दी, रात का हाल बता न , माँ और भैया के साथ। "



और गीता सीधे मुद्दे पे आ आगयी लेकिन उसने रात में खाना बनाते समय, रसोई में वो और माँ थी उस समय का भी हाल बताया की माँ और उस में कैसे सहेलियों से भी बढ़ के पक्की दोस्ती हो गयी,... उसने अपनी गुलाबो के बारे में कुछ बोला तो माँ ने हड़काया, और बेलन दिखाते मजे ले ले कर बोलीं,...

" स्साली भाईचोद, चूत में भाई का लंड घोंटने में शरम नहीं, माँ के सामने और,... आज से मेरे सामने, इस घर में और बाहर भी कभी तेरे मुंह से चूत, बुर, लंड.गाँड़ और चुदाई के अलावा कुछ इधर उधर का सुना न तो ये बेलन देख रही है,... तेरे भैया के लंड से भी बड़ा है , तेरी गाँड़ में घुसा के फाड़ दूंगी। "





और गीता भी खिलखिलाते बोली, ...

" अरे माँ मेरे भाई को समझती क्या हो, अभी तो बहनचोद ही बना है, जल्द ही मादरचोद बन जाएगा, वो भी बहन के सामने , बोल चुदवायेगी, बेटा चोद "

माँ भी हँसते बोली

,' स्साली रंडी की, पक्की छिनार है। अरे जिसके बाप से चुदवा के उसे पैदा किया, उसके लौंड़े से डरूंगी, उसके बाप से नहीं डरी तो,... बोल देना बहनचोद को,... "

जल्द खाना बना के तीनों खा के,.... माँ ने कहा था,... आज हम तीनो जैसे जब तुम दोनों छोटे थे, मेरे साथ सोते थे , उसी तरह, मेरे कमरे में वहां बिस्तर भी बड़ा है,...

और माँ की ये बात सही थी की आज रात पानी जल्दी आएगा , और रात भर तेज बारिश,...




गाँव में वैसे भी सोता जल्दी हो हो जाता , बारिश में तो और,.. आठ बजे के पहले पहले हम तीनों माँ के बिस्तर में,... और कपडे जमीन पर,...

माँ ने मेरे कान में कुछ बुदबुदाया,... बस मैंने भैया को कुछ समझा बुझा के , कुछ बहला फुसला के,...

बगल में पड़ी कुर्सी पे, और फिर माँ का ब्लाउज, अपने टॉप से उसके दोनों हाथ कुर्सी के हत्थे से बाँध दिए, ...




और माँ की साड़ी से उसके पैर,...

माँ खिलखिला रही थी, उससे बोली,

" अरे थोड़ी देर मैं अपनी बेटी को प्यार दुलार करुँगी तुम चुप चाप देखना, मत ललचाना, "


और मुझे उकसाया,...


"हे तेरे भाई के जाँघों के बीच में क्या छोटा छोटा,... "



और मैं उखड़ गयी, मैं अपने भाई को चाहे जो कहूं, लेकिन अगर कोई भी कुछ और बोले , तो मैं भाई की ओर से उसका मुंह नोच लेती थी, भले ही वो माँ न क्यों हो,... मैंने बिन रुके जवाब दिया "

" अरे अभी सो रहा है माँ, जब जागेगा न ,तो तेरी फाड़ के रख देगा, मेरी ननिहाल में जो लंड खायी हो न सब भूल जाओगी, एक बार मेरे भाई से चुदवा के देख लो ,... "



" अरे बड़ी तारीफ़ कर रही है, भैया क बहनी , तो जगा दो न देख लूँ की एक इंच का है का दो इंच,... "
वो हँसते हुए बोलीं।

बस मैं काम पे जुट गयी, माँ ने शाम को जो सब सिखाया था, बस वैसे, कभी उसके बॉल्स चूमती तो कभी जीभ से बस लिक कर लेती, फिर होंठों से बस सुपाड़ा, खोल के माँ को दिखा दिखा के चाट रही थी, ... और माँ को ललचा रही थी,

" माँ देख केतना बड़ा लॉलीपॉप है है मेरे मेरा भैया का लेगी,... "



और उस के बाद पूरा सुपाड़ा मुंह में ले के गप्प और कभी चुभलाती तो कभी कस कस के चूसती, ... बस दो चार मिनट में शेर जग गया था , और भैया का खूंटा बेस पे पकड़ के माँ को दिखाते ललचाते,... कभी माँ को ललचाती कभी भाई को उकसाती।

" देख माँ, मेरे बित्ते से भी बड़ा है,.. और मेरी मुट्ठी में तो आता नहीं, मेरी कलाई से मोटा भी है , तेरी भी मुट्ठी में नहीं आएगा,... "



और भाई से भी बोलती,

" भैया, माँ बहुत बोल रही है न , अरे यार अपनी नहीं तो अपनी बहन की इज्जत का ख्याल कर, हर साल राखी बांधती हूँ, पैसा भी नहीं देते,... आज इसको चोद के बता दो मेरा भैया चीज़ क्या है, जिस भोंसडे से निकले हो न उसी में, पक्का, बहुत मजा आएगा,.. "




और साथ में मैं चूस भी रही थी, चाट भी रही थी, मुठिया भी रही थी, आठ दस मिनट तक,... बेचारे की हालत खराब हो रही थी,...
अभी भी अरविंदवा चूतियम सल्फेट हीं है क्या....
अब तो पटक के.... सटा के....
 
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motaalund

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लिप सर्विस



" भैया, माँ बहुत बोल रही है न , अरे यार अपनी नहीं तो अपनी बहन की इज्जत का ख्याल कर, हर साल राखी बांधती हूँ, पैसा भी नहीं देते,... आज इसको चोद के बता दो मेरा भैया चीज़ क्या है, जिस भोंसडे से निकले हो न उसी में, पक्का, बहुत मजा आएगा,.."



और साथ में मैं चूस भी रही थी, चाट भी रही थी, मुठिया भी रही थी, आठ दस मिनट तक,... बेचारे की हालत खराब हो रही थी,...

लेकिन मैंने भी तय कर लिया था की आज इस बाबू जी को तड़पाना है,...


स्साले ने मुझे कित्ते दिन तड़पाया था,... चाची ने बोला, घर में सगी बहन बैठी है,...


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फुलवा बोली,.... मस्त माल घर में है,


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मुझसे बारी चमेलिया, फुलवा की छुटकी बहिनिया की खुले आम, आम की बाग़ में फाड़ दिया , गन्ने के खेत में टांग उठा के पेल दिया

और मैं बेचारी, ऊपर से मुझे देख के फनफनाता था, मेरे बारे में सोच सोच के बेचारा बाथरूम में मुट्ठ मारता था, सगी बहन की चूँची देखने के लिए बाथरूम के दरवाजे में स्साले ने छेद कर दिया था, ... और मैं भी उसे दिखा के ठीक छेद के सामने अपना जोबन मसलती थी,

तड़प स्साले , तेरी किस्मत में तड़पना लिखा है,...


वो तो सहेली की भौजी ने मुझे इत्ता सिखाया पढ़ाया,... और मैं ही,... तो आज तू भी तड़प,...

मैं थोड़ी देर चूस के उस गदहे छाप लंड को छोड़ देती थी, एकदम कुतुबमीनार, ...

बस कभी ऊँगली से सहलाती रहती तो फिर बस छोटे छोटे चुम्मे खूंटे के बेस से सुपाड़े तक, बहुत छोटे छोटे और चुम्मी में उसे ४४० वोल्ट के करेंट का झटका लगता,...



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बेचारा जब दस बार कहता हे गितवा मुंह में ले

तो ले लेती लेकिन

उस मोटे खूंटे को नहीं,... नीचे लटक रहे दोनों रसगुल्लों को,... कभी हलके हलके चूसती तो कभी जोर से ,..


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माँ ने आज कुछ ट्रिक तो भैया के सामने सिखाई थी और उससे दस गुना ज्यादा चाची के यहाँ आते जाते ,... चूसने के चाटने के , .. और न लड़की की देह में कुछ गन्दा होता है न लड़के के देह में ,

मैंने हिचकते हुए पूछा माँ लड़के के पिछवाड़े , तो वो खिलखिलाने लगीं बोलीं अरे बेटी असली खेल तो वहीँ है,... तीन चार बार चोद के मरद थक के चूर हो गया हो , बस ज़रा सा जीभ दरार में घुमा दो,... बस फनफनाने लगेगा,... शरारत करनी हो पिछवाड़े ऊँगली पेल दो,... जो मरद एकदम सांड़ हो,


" भैया ऐसा न माँ " मैं हंस के बोली , एकदम माँ ने हामी भरी लेकिन बात अपनी जारी रखी


"जल्दी न झड़ रहा हो बस उसकी गाँड़ में ऊँगली डाल दो, अक्सर जल्दी से घुसती नहीं है , लेकिन थूक लगा के चिकनी कर लो,... बस कोहनी के जोर से और गोल गोल घुमाते हुए ,... ये खेल जल्दी बाजी का नहीं है अंदाज लगाना होत, है कहाँ है , जहाँ पेल्हड़ ख़तम होता है उसी के ऊपर,... मैं सिखा दूंगी प्रैक्टिस करा के , अखरोट के साइज की होती है वो बस गाँड़ में ऊँगली डाल के ज़रा सा खुरचो, हलके हलके दबाओ , दो मिनट में खेल ख़तम,.. तेरे भैया को हो सकता है छह सात मिनट लगे, लेकिन पक्का शर्तिया तरीका है,... "



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तो गीता बॉल्स चूसते चूसते माँ की बातें सोचते सोचते भाई के पिछवाड़े की दरार में कभी ऊँगली से सहलाती तो कभी जीभ से ही दो चार बार लम्बा लम्बा चाट लेती ,...

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एक दो बार तो उसे कुछ ऐसा ऐसा,...

बेचारा भाई कुछ कर भी नहीं सकता था ,

खूंटा खड़ा तन्नाया,...

माँ भी अपने बेटे बेटी का ये खेल अपनी आँखों के सामने देख के खुश हो रही थी अब धीरे धीरे बेटी की हिचक ख़तम हो रही थी,...

बस अरविन्द तड़प रहा था मन तो यही कर रहा था की पटक के गितवा को चोद दे,... लेकिन ऐसा बंधा छना, बस एक बार खुल जाय किसी तरह तो आज ऐसा चोदेगा उसे की तीन दिन तक चल नहीं पाएगी स्साली, अब तक बहन समझ के,... उसके दर्द की परवाह करता था,... लेकिन आज स्साली कित्ता भी रोये कूदे, चूतड़ पटके, अभी तक उसने उसकी ताकत देखी नहीं थी, हर बार वो बहुत सम्हल सम्हल के,...

पर गीता को आज कुछ परवाह नहीं थी जितना देर उसने चूसा था उससे ज्यादा तड़पाया और फिर सिर्फ सुपाड़ा मुंह में ले के चुभलाने लगी,.... कभी जीभ से सिर्फ पेशाब वाले छेद को छेड़ती,



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अरविन्द का हाथ खुला होता,... तो सर पकड़ के बहन के मुंह पूरा बित्ते भर का ९ इंच का लंड हलक तक पेल देता लेकिन

पर बहन कौन जो भाई के मन की बात न समझे तो गीता ने खुद ही धीरे धीरे कर के इंच इंच, ... गाल में दर्द हो रहा था , हलक फटा पड़ रहा था लेकिन घोंट लिया पूरा, फिर गीता के होंठ हलके हल्के बस चर्म दंड को सहला रहे थे, नीचे से जीभ भी सुरसुरा रही थी और सबसे बढ़ के गीता की दीये की तरह की बड़ी बड़ी आँखे भाई की आँखों को छेड़ रही थीं , उकसा रही थीं , बता रही थीं उसे कितना मज़ा आ रहा है, ...


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भाई का गन्ना चूसने में

गीता ने छुटकी से आगे का हवाल बयान किया,...
अरे राखी के अलावा.... माँ के दूध की ताकत भी....
 
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motaalund

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माँ बेटी



गीता ने छुटकी से आगे का हवाल बयान किया,...

और जब वो एकदम बौरा गया तो मैं उसे छोड़ के उछल के माँ की गोद में,...


हाँ छोड़ने के पहले थोड़ी देर तक उसकी गोद में बैठ के अपने छोटे छोटे चूतड़ उसके खड़े खूंटे पर रगड़ती रही,... सीधे पिछवाड़े के छेद में,....


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वो रोज दस बार इसी के लिए हाथ पैर जोड़ता था, पर मैं डरती थी, बहुत दर्द होगा , इसलिए मैंने साफ़ साफ़ बोल दिया , मेरे पीछे के पीछे पड़ोगे न तो आगे वाला भी नहीं मिलेगा।

और हाँ उसकी सारी गांठे भी चेक कर ली,... मैं स्कूल में प्रेजिडेंट गाइड थी , नॉट में पहला नंबर,... लाख कोशिश करे , छुड़ाने को तो छोड़ दीजिये,.. हिल भी नहीं सकता था।

और माँ की गोद में पहुँचते ही माँ चालू हो गयी।

मुझे दुलारते गोद में बिठा लिया अपने,एकदम छोटी बच्ची की तरह, और भैया को ललचाते मेरे छोट छोट जोबना दिखाते उभारते, कभी हलके हलके दबाते तो कभी नीचे से पकड़ के और उभार के पूछती,...

" हे बहनचोद,... कैसे हैं मेरी बेटी के छोट छोट जोबना, लोगे, दबाओगे, बहुत रस है इनमे,"



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और कभी झुक के चुसूर चुसूर चूसने लगती,... एक हाथ से मेरी चूँची मसली जाती और दूसरी माँ के होंठों के बीच,...भैया से भी ज्यादा कस के और मस्त चूसती थी,


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छोटे छोटे निपल एकदम खड़े, आँखे मेरी मस्ती से बंद, धड़कन तेजी से चलने लगती,...

और उधर मेरे ही हाथों ने माँ के ब्लाउज साड़ी में बंधा भैया छनछनाता रहता, उचकता रहता,...

लेकिन मैं भी तो उसी माँ की बेटी थी, पलटी मार के,..

अब माँ की खूब बड़ी बड़ी गदरायी, लेकिन एकदम कड़ी कड़ी चूँचियाँ मेरे हाथों में,,...


और मैं उन्हें दबाते मसलते, भैया को ललचाते, उसे चिढ़ाती उकसाती, बोलती,



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" अरे बहनचोद बन गए तो अब मादरचोद बनने की बारी है, बनोगे न. कितनी मस्त मस्त चूँचिया हैं , बहुत मजा आएगा दबाने,... "

तो माँ सीधे मेरी भरतपुर पे हमला करतीं, अपनी दो ऊँगली एक साथ पेल के हचक हचक के, ... और सब कुछ भैया को दिखाते,...

" क्यों स्साले, है न मस्त माल मेरी बेटी, अरे इसे मैंने पैदा इसीलिए किया था सोच के की बड़ी होके अपने भैया से पेलवायेगी,.... स्साले इत्ता देर काहें लगाए, इसकी झिल्ली फाड़ने में, ये तो कबसे गरमाई थी,... अब रोज पेलना इसको,... बिना नागा,... "



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और मैं भी माँ को तुरंत जवाब देती,...


" एकदम मेरा भैया है , इत्ता प्यारा सुन्दर, इत्ता मस्त है इसका हथियार, एकदम चुदवाउंगी,... और ये स्साला जरा भी ना नुकुर करेगा न तो खुद चढ़ के चोद दूंगी, मैं बहन हूँ,मेरा हक है, लेकिन भैया , माँ भी तो मस्त है, अब इनकी भी चढ़ाई कर ही दो,... इत्ता मस्त खड़ा किया हो ."


सच में हम दोनों की मस्ती सुन के तो किसी का भी,...

पर भैया का तो मैंने बांधते छानते ही चूस चूस के एकदम खड़ा कर दिया था , अब तो खूंटा एकदम पगला रहा था,...


वो तो गाँठ कस के मैंने बाँधी थी, लाख कोशिश कर ले छुड़ा नहीं सकता था,... आप सोच सकते हैं की एक जवानी की दहलीज पर खड़ी किशोरी, और दूसरी रस में डूबी एक प्रौढ़ा, २८ और ३८ के उभारों का जबरदस्त मुकाबला था , देख के किसी की भी हालत ख़राब हो जाती,


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पर माँ ने गाडी का गियर भी चेंज कर दिया और एक्सप्रेसवे वाली स्पीड,.. मैं नीचे वो ऊपर,...

लेकिन ये ध्यान रख रही थीं,... की उनके बेटा को सब कुछ देखने को मिले,... इसके पहले भी के बार मैंने कन्या रस वाला खेल खेला था लेकिन माँ खिलाड़िन नहीं अर्जुन अवार्ड वाली ओलिम्पिक चैम्पियन थी,...


और ताकत भी गजब की थी, भैया से कम नहीं ज्यादा ही होगी,.. जिस तरह ताकत से उन्होंने मेरी दोनों जाँघों को फैलाया, क्या कोई मरद फैलाता,... और फिर जीभ से चपर चपर, सिर्फ दोनों फांको पे, फिर जीभ अंदर जैसे भैया मस्त चोदता था,...



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उसी तरह, पूरी ताकत से पेला उन्होंने और साथ में दोनों हाथ मेरे छोट छोट जोबना पे, मसलना रगड़ना,...

और बेटा उनका देख रहा था तड़प रहा था,... ललचा रहा था,...

लेकिन माँ की ताल तलैया भी तो बेटी की जीभ के लिए लपलपा रही थी तो खुद उन्होंने,... वरना मेरी क्या बिसात थी की उनकी धृतराष्ट्र के सदृश पकड़ से छूट जाऊं,...

और मेरी जीभ माँ की ताल तलैया में डुबकी लगा रही थी, कुछ तो मैं नेचुरल थी कुछ माँ की उँगलियाँ , हाथ गाइड कर रहे थे और कुछ माँ की हरकतों से मैं सीख गयी थी,... और माँ भी कुछ देर में सिसकियाँ भरने लगी,..



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लेकिन एक तो वो इतनी जल्दी झड़ती नहीं थी, दूसरे झड़ना चाहती भी नहीं थी, उसका पहला टारगेट नयी नयी बस जवान हो रही बेटी थी , उसकी सब लाज सरम छुड़ा के उसे मजे लेना सिखाना,...


और असली टारगेट बेटा था, मस्त तगड़ा जवान,... उसे ललचाना,इतना पागल कर देना की जवानी की की अंधी आंधी में सब रिश्ते नाते भूल के सिर्फ

इसलिए थोड़ी देर में वो फिर मेरी जाँघों के बीच में और अबकी शुरू से ही फुल स्पीड, ट्रिपल अटैक, ... जोबन पर, जांघों के बीच मेरे रसकूप पे और साथ में जादू की बटन, मेरी क्लिट पे,...

थोड़ी देर में ही मेरी देह में तूफ़ान मचा हुआ था, तूफ़ान का केंद्र भले ही जाँघों के बीच में था,... पर कुछ ही देर में ज्वार भाटा पूरी देह में, ज्वालामुखी फूट रहे थे ,... मैं मचल रही थी उछल रही थी, सिसक रही थी , चीख रही थी,... और कुछ देर में कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,



जैसे बेटा वैसी माँ,
" क्यों स्साले, है न मस्त माल मेरी बेटी, अरे इसे मैंने पैदा इसीलिए किया था सोच के की बड़ी होके अपने भैया से पेलवायेगी,.... स्साले इत्ता देर काहें लगाए, इसकी झिल्ली फाड़ने में, ये तो कबसे गरमाई थी,... अब रोज पेलना इसको,... बिना नागा,... "

अरे अब तो बहन की जब तक शादी ना हो जाए... बीवी की तरह दिन-रात चढ़ा रहेगा....
 
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फीट मसाज़


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थोड़ी देर में ही मेरी देह में तूफ़ान मचा हुआ था, तूफ़ान का केंद्र भले ही जाँघों के बीच में था,... पर कुछ ही देर में ज्वार भाटा पूरी देह में, ज्वालामुखी फूट रहे थे ,... मैं मचल रही थी उछल रही थी, सिसक रही थी , चीख रही थी,... और कुछ देर में कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,

जैसे बेटा वैसी माँ,

जैसे उनका बेटा मेरे झड़ने पर भी नहीं रुकता उसी तरह हचक हचक के चोदता रहता,... पेलता रहता,... एकदम उसी तरह,.. अब मैं समझ गयी , बेटे का दोष नहीं अपनी माँ पे गया है,...


हम दोनों माँ बेटी 69 की तरह थे,



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माँ मेरे ऊपर चढ़ी कचर के,... चूस चूस के,... क्या स्साला कोई लंड पेलेगा जिस तरह माँ जीभ ठेल रही थीं,... और जीभ गोल गोल अंदर घूम रही थी अंदर की दीवारों में भी अगन लगा रही थी,... चासनी चाटती

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तभी मेरे दोनों पैर भैया के खूंटे से टकराये,...

बस मैंने पैरों के अंगूठे से उस खुले सुपाड़े को छेड़ना शुरू किया , फिर शैतान का दिमाग और फिर आज चाची के यहाँ आते जाते और रसोई में माँ से ऐसी गरम गरम बातें हुयी थीं,...

बस मैंने दोनों पैरों से भैया के खूंटे को पकड़ लिया और हलके हलके दबाने मसलने लगी,...



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मैंने भैया को बाथरूम के छेद से मुट्ठ मारते देखा था तो बस एकदम उसी तरह से

बस मेरे गोरे गोरे मुलायम पैर थे हाथ की जगह और उन दोनों पैरों के बीच में फंसा था बेचारा मोटू,... मुझे उस पे जरा भी दया नहीं आ रही थी ,

उसे आयी थी दया जब मेरी गुलाबो चार चार आंसू बहाती थी,.... तब तो सब माल मलाई नाली में , इसी लिए मैंने अगले दिन से अपनी ब्रा बाथरूम में छोड़नी शुरू कर दी... तो भैया ने उसी में और मैं शैतान वही मलाई लगी ब्रा उस के सामने अपने छोटे छोटे जुबना पे जिसे देख के ही उसका फनफनाना लगता था,...



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क्या कोई ग्वालिन मथानी मथेगी अपने हाथ में लेके जिस तरह से मेरे दोनों पैरों के बीच में, ... बहुत मजा आ रहा था,... माँ भी मेरी शरारत देख के खूब खुश हो रही थी,



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मैं भैया को देख तो नहीं पा रही थी लेकिन समझ रही थी बेचारे की कितनी बुरी हालत होगी,,... पर जब मेरी बुर की बुरी हालत थी तो इसने कुछ नहीं किया था ,... तड़पे


और मैं और जोर जोर से मथानी मथने लगती,.. और मैं जानती थी यहाँ मठ्ठा इतने जल्दी निकलने वाली थी,... इसलिए बिना डरे मैं जोर जोर से से दोनों पैर चला रही थी, जिस तेजी से साइकल पे पैडल मारती,... मेरे पैरों में ताकत बहुत थी, जल्दी मैं थकने वाली नहीं थी,... कभी कभी कस के दबोच भी लेती



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पर मेरी भी हालत खराब हो रही थी माँ ने चूस चूस के मुझे झाड़ दिया और एकदम जैसे सारी ताकत निकाल दी और मेरे पैर रुक गए

मैं एक बार झड़ी, दो बार झड़ी,... तीनबार, पांच बार,...



थोड़ी देर में एक बार झड़ना रुकता नहीं की मैं दूसरी बार झड़ना शुरू कर देती,.. मेरी देह अब मेरे बस में नहीं थी, ... अब माँ खाली छू भर देती और मैं कांपने लगती ,...

एकदम थक गयी थी, निढाल पड़ी थी , लेकिन

माँ तब भी चूस रही थी ,




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अपनी दो दो ऊँगली से पेल रही थी ,मेरी बुर से निकल रही चासनी, मेरी पूरी जांघ पे फैली चासनी अपनी ऊँगली में लपेट के अपने बेटे को चटा देती,... और फिर और कस के,...

मैं देख रही थी, लेकिन समझ कुछ पा नहीं रही थी, जैसे सुहाग रात की सुबह दुल्हन की देह, सुहाग के सेज पर कुचले गए फूलों से भी ज्यादा कुचली हो जाए, जिसे दूल्हे ने रात भर रगड़ा हो , और सुबह दो दो ननदें पकड़ के किसी तरह सहारा देकर उठायें,...

आधे पौन घंटे में में वो हालत हो गयी थी, एकदम थेथर,... हिल भी नहीं पा रही थी,...
माँ की संगति और ट्रेनिंग जोरदार है...
 
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और



मैं देख रही थी, लेकिन समझ कुछ पा नहीं रही थी, जैसे सुहाग रात की सुबह दुल्हन की देह, सुहाग के सेज पर कुचले गए फूलों से भी ज्यादा कुचली हो जाए, जिसे दूल्हे ने रात भर रगड़ा हो , और सुबह दो दो ननदें पकड़ के किसी तरह सहारा देकर उठायें,...

आधे पौन घंटे में में वो हालत हो गयी थी, एकदम थेथर,... हिल भी नहीं पा रही थी,...

लगभग संज्ञा शून्य,...

तब तक माँ ने कुछ देखा और एकदम अलफ़, और मुझसे ज्यादा भैया पे, ...

वो तो बाद में समझ आया मेरी बुर से बहती चासनी को कुछ उन्होंने अपनी ऊँगली से फैला के,मेरे पिछवाड़े के छेद पे,



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और उनकी अनुभवी आँखों ने भांप लिया, अभी वो छेद इतना टाइट है,... मेरी चासनी से गीली अपनी ऊँगली को उन्होंने पूरी ताकत से उस छेद में ठेलने की कोशिश की ,
और वो नहीं घुसी,... एकदम टाइट, ..

दरार पर रगड़ा, उन्होने, दोनों अंगूठों से फैलाया,


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एकदम टाइट,...

और गुस्से से अपने बेटे की ओर देखा उन्होंने,..




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उस बेचारे ने सर झुका लिया,

गलती उसकी ज़रा भी नहीं थी , वो तो पहले दिन से पिछवाड़े के पीछे पड़ा था, लेकिन मैं ही उसे डपट देती थी, ...किसी गाँव की भौजी ने ही बोला था बहुत दर्द होता है,...



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उसने बहुत समझाया था मुझे , खूब तेल लगा लेगा, ... ज़रा भी दर्द होगा तो बाहर निकाल लेगा , फिर दुबारा बोलेगा भी नहीं पिछवाड़े के बारे में,.. सुने कई लड़कियों की मारी है , मेरी समौरियों की भी,

लेकिन मुड़ के मैंने गुस्से भर के कहा,...

"अगर उधर देखा भी न तो मैं पास भी नहीं फटकने दूंगी,..."



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बेचारा,... सर झुका लिया , ये भी न समझ पाया की मेरा गुस्सा कितना असली, कितना नकली है. और मैं दूसरी ओर मुंह कर के मुस्कराने लगी. शायद जबरदस्ती करता जो उसने दूसरी लड़कियों के साथ की होगी, पर

परेशानी ये थी की वो मुझे चाहता भी बहुत था, जितना मज़े लेना चाहता था, उससे ज्यादा, ... मुझे हल्की सी ठेस भी लग जाए,... तो मुझसे ज्यादा दर्द उसे होता था जब तक मैं नहीं मुस्कराती थी वो भी गुमसुम मुंह बना के,...

तो बस मेरा झूठा गुस्सा भी,....

लेकिन माँ सब समझती थी और उस का गुस्सा भी सच्चा होता था, हम दोनों डरते थे , बिना मारे उसकी ठंडी आवाज ही,...

और उसी आवाज में वो मुझसे बोली,


चल निहुर, चूतड़ खूब ऊपर उठा के,....


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और जा के अपने बेटे की सब गांठे खोल दीं.

मैं चुपचाप निहुरी, पिछवाड़ा ऊपर किये,..


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माँ ने झाड़ झाड़ के मुझे इत्ता थेथर कर दिया था की मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, बस मैं देख रही थी, उन्होंने अपने बेटे की गांठे खोल दी, उसे बहुत धीरे धीरे से कुछ समझाया और बेटे का खूंटा तो वैसे ही खड़ा था, माँ की बातें सुन के,... लगता है और,...

बस मैं गुटुर गुटुर देख रही, धीरे धीरे कुछ ताकत लौट रही थी मेरी, कुछ सोचने समझने की शक्ति,...


तबतक माँ मेरे पास आ गयीं,शायद उन्हें लगा की उन्होंने कुछ ज्यादा ही जोर से हड़का दिया,...

बड़े प्यार से मेरे उठे पेट के नीचे ढेर सारे मोटे मोटे तकिये कुशन यहाँ वहां से लाकर लगा दिए, लेकिन सब मेरी नाभि के आस पास या ऊपर ही, अपने हाथ से ही मेरी टांगों को और फैला दिया,..

बहुत दुलार से मेरे गोरे गोरे मुलायम छोटे छोटे चूतड़ों को सहलाया और एक बहुत हलकी सी दुलार वाली चपत लगा दी,....




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मैं निहाल की माँ अब गुस्से में नहीं है,... और दूसरे अब मेरी कमर का प्रेशर थोड़ा तो कम हो गया, तकियों से बहुत सहारा मिल गया,

तब तक मुझे नहीं अंदाजा था की क्या होने वाला है,



" हे मेरी दुलारी रानी बेटी, अपनी रानी बेटी को बहुत दिन से दुद्धू नहीं पिलाया, ... मुंह खोल खूब बड़ा सा , हाँ और बड़ा जैसे लड्डू खाने के लिए खोलती है न हाँ, खोले रहना,.. "




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उफ्फ क्या पिछवाड़ा... हचक के फाड़ने लायक....
और जब माँ हो चढ़ाने वाली और फड़वाने में सहयोग देने वाली तो कहना हीं क्या....

फिर तो गितवा का भी चांस बन जाएगा भईया को उकसा के मातृभूमि की सेवा करवाने को...
 

motaalund

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Dono maa beti ke khel me bechara tadap raha hai
इस तड़पाने का कसर अगले झटके में निकाल लेगा...
 

motaalund

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Ab lagata hai maa ke khel me ladki fash gai .Aaj bahut hachak ke gand ki chudayi hogi
अब तक माँ-बेटी की जुगलबंदी चल रही थी... अब माँ-बेटे की जुगलबंदी चलेगी...
फिर बेटी-बेटे मैदान में उतर आएंगे... और मिलकर भोग लगाएंगे....
 
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