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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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तोते के चक्कर मे कबूतर पर कब्जा हो गएभाग ५१
भैया के संग अमराई में
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" दी कभी अपने भैया के साथ खुले में ,मतलब बाग़ बगीचे में, गन्ने के खेत में , खलिहान में नदी के किनारे,.. "
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गीता ने कुछ देर तक छुटकी को घूर के देखा और फिर हंस के बोली
" अरी बुद्धू जब गांव भर की लड़कियां , सब लौंडो के आगे आम के बाग़ में , गन्ने के खेत में स्कर्ट पसारती रहती हैं, नाड़ा लड़के का हाथ लगने के पहले खुद खोल देती हैं,... अपने अपने यार के संग मजा लेती हैं,नीले गगन के तले तो जोबन तो मेरे उपर भी आये थे मैं अपने यार के साथ बाग़ बगीचे का मजा क्यूँ न लूँ ?
फिर खुद ही खोल के बताया की एक दिन शाम को आम के बगीचे में,... जहाँ भैया ने फुलवा की , सबसे पहली बार किसी भी लड़की की झिल्ली फाड़ी थी,... उसी बगीचे में सांझ को , अंधेरिया पाख लग गया था, ... निहुरा के ली।
आम के बाग़ में,...
" भैया न अभी भी बहुत, घर से बाहर ऐसे लजाते झिझकते थे, मेरे साथ,... उन्हें का मालूम की उ रोपनी वाले दिन के बाद से तो आस पास के गाँव जवार, सब जगह,... लेकिन वो ,... " गीता ने आगे का किस्सा बताना शुरू किया,
और छुटकी ध्यान से कान रोप के सुन रही थी।
" घर में तो भैया पूरे सांड़ थे , दिन दुपहरिया कुछ नहीं देखते थे और माँ उनको और चढाती रहती थीं, ...
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लेकिन जहाँ घर से बाहर निकले,..सूनसान में तो कुछ नहीं,... हाथ कंधे से सरककर सीधे जोबन पे, और मैं भी माँ ने पक्का बोल दिया था, दर्जिन भौजी ने आधे दर्जन ब्लाउज सी दिए थे थे और साड़ी क कौन कमी, माँ की थी ही, दो चार माँ ने मेरे लिए भी खरीद दी थीं,... तो स्कूल जाना हो स्कर्ट टॉप , जो स्कूल की ड्रेस और बाहर गाँव में साड़ी ब्लाउज, चड्ढी पहनने का सवाल नहीं था, ब्रा भी अक्सर नहीं ही,... हां तो मैं भैया के बारे में बोल रही थी,... "
एक पल सुस्ता के गीता ने फिर बताया,
" वैसे तो एकदम चपका के, भैया के दोनों हाथ सीधे दुनो उभार पे,... लेकिन कहीं मेरी सहेलियां दिख गयी दूर से ही तो,... छिटक के एकदम दूर अच्छे बच्चे की तरह एकदम भोले, जब की मेरी सारी सहेलियों को उनकी हाल चाल मालूम थी,..
पर मैं भी न खुद जाके उनसे सट जाती थी, कभी एक दो बार तो सहेलियों के सामने ही उनकी छोटी सी चुम्मी भी ले ली,... बेचारे नई दुल्हन से लजा जाते थे,... और मुझे बहुत मजा आता , सहेलियां खिलखिलाने लगतीं,...
पर धीरे धीरे उनकी हिम्मत बाहर भी थोड़ी सी बढ़ती जा रही थी, काम करने वालियां तो हम दोनों को साथ देख के जरूर मजाक करती और एक दो जिनसे भौजाई का रिश्ता लगता मैं जवाब भी देती,... "
छुटकी चुपचाप सुन रही थी, बीच बीच में मुस्करा रही थी और गीता ने उस दिन का हाल सुनाया जब पहली बार खुले में उसके भाई ने उसकी ली.
हुआ ये था की गीता की माँ अब धीरे धीरे खेत खलिहान की सब जिम्मेदारी गीता के भाई अरविन्द पर देती जा रही थीं, सब फैसले भी उन्होंने एक एक करके अरविन्द के जिम्मे कर दिए थे और घर का बहुत कुछ गीता के , लेकिन वो सिर्फ घर का ही नहीं बाहर का काम भी गीता को समझातीं , उसे बोलतीं की तू भी अपने भाई के साथ बाग़, खेत , कहाँ क्या बोया गया है, किस फसल में पानी लगा कहाँ खाद चाहिए, ... .
और जब गीता बोलती की माँ भैया देख तो तो रहा है तो समझा के उसे वो बोलतीं
देख तेरे बाउ जी तीन साल से नहीं आये गाँवतो तो मैं अकेले देख रही हूँ न सब। अब तुम दोनों बड़े हो गए हो , जिम्मेदार हो गए हो ,... तो ये कहना की खाली मर्द ही खेत खलिहान देख सकते हैं एकदम गलत है, ... फिर भैया केतना, कभी उसको शहर जाना पड़ा,... एक दो दिन के लिए ,... कभी किसी और काम में फंसा है तो ,... तुमको मालूम तो होना चाहिए न की कौन खेत तुम्हारा है , कौन बाग़ है ,... काम करने वाले तो बहुत हैं , लेकिन ,...
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और गाँव का स्कूल महीने में दस दिन तो बंद ही रहता था , नहीं तो छुट्टी भी तीन बजे हो जाती थी, फिर घर में अक्सर दिन में तिझरिया में घर का काम काज निपटा के आयी माँ की सहेलियां, पडोसीने,...
तो गीता भी भाई के साथ निकल जाती थी , अपना साड़ी ब्लाउज पहन के गाँव में,...
बस उस दिन भी , और शाम थोड़ी जल्दी हो गयी थी, जल्दी सिर्फ इसलिए की बादल छा गए थे बरसने वाले नहीं , जी डरवाने वाले, घने घने काले बादल,... और गीता और उसका भाई अरविन्द उस दिन आम की बाग़ में थे, उसी बाग़ में जहाँ पहली बार अरविन्द ने किसी कच्ची कली को पेला था, फुलवा को,... उसकी झिल्ली फाड़ी थी ,... और गीता उसे चिढ़ा रही थी,... अक्सर सावन में उसी बाग़ में झूला भी पड़ता था लेकिन अभी शाम हो रही थी तो कोई नहीं था, और आज गीता गर्मायी भी बहुत थी,
पांच दिन का उपवास उस का आज ही ख़तम हुआ था,....
पांच दिन के खून खच्चर के बाद वो आज नहायी थी बाल धो के,...और भाई अब इतना समझदार गया थी की जिस दिन वो बाल धोती थी वो समझ जाता था की बस आज लाइन क्लियर, आज मिलेगी पूड़ी बखीर खाने को।
लेकिन इतना समझदार भी नहीं था , होते हैं सब लड़के ऐसे ही बुद्धू होते हैं की जिस दिन लड़की की 'छुट्टी ' ख़त्म होती है उस दिन चुनमुनिया में कैसी आग लगती है कोई लड़की ही जान सकती है, ... पर लड़कों को ये बात नहीं मालूम होती। हाँ इन पांच दिनों में अरविन्द भैया का भी ' उपवास' था। तो उनका भी कस के टनटना रहा था और ऊपर से गितवा कबि चूतड़ मटका के कभी झुक के चूँची दिखा दिखा के उसको उकसा भी रही थी.
और आज ब्लाउज भी उसने चोली कट,... दर्जिन भौजी ने वैसे भी सब बिलाउज एकदम झलकौवा सिले थे लेकिन ये वाला तो आग लगाउ ,...
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गीता के बित्ते के बराबर, बस नीचे से कस के दबोचे रहता था जैसे लगता था उसका भाई अरविंदवा दबोचे है, और उभार के रखता था, जोबन से चिपक के कड़ाव उभार कटाव सब सामने , छोटा इतना की बस निपल के ठीक ऊपर ख़तम , उभारों का ऊपरी हिस्सा, गहराई तो दिखती ही थी, जरा सा झुकने पे कबूतर की दोनों चोंचे भी,... और हुक नहीं सिर्फ एक पतली सी डोरी पीठ पे बंधी, बाकी गोरी चिकनी पीठ भी खुली,... और उसपर गीता की मोटी सी चोटी लहराती, ...
साड़ी बस कूल्हे के सहारे तो नाभि तो दिखती ही थी उसस्के नीचे भी कम से कम बित्ते भर,...
और अब वो दोनों भाई बहिन बाग़ के सबसे गझिन हिस्से में पहुँच गए थे जहाँ आम के साथ पाकुड़, महुवा और ढेर सारे बड़े पुराने पेड़, ... और वहां दिन में धूप की नन्ही सी किरण भी नहीं घुस पाती थी और अब तो शाम गहरा रही थी, ऊपर से काले बादलों ने तम्बू तान रखे थे, ...
बस एक दूसरे को पकडे गीता और अरविन्द,... एक बड़े से चौड़े मोटे पेड़ के सामने गीता को खड़ी कर के उसका भाई अरविन्द उसके पीछे से बोला,...
"बहना, इस पेड़ को कस के दोनों हाथों से पकड़ ले "
गीता तो समझ रही अरविंद किसी शरारत के मूड में हैं, लेकिन गरमा तो वो भी रही थी, पांच दिन के उपवास के बाद उसकी चुनमुनिया में भी जोर के चींटे काट रहे थे, आज दिन भर स्कूल में यही सोच रही थी , बस आज घर पहुँच के भैया ने जरा भी चूं चपड़ की न ,... तो वो उनके ऊपर चढ़ के उन्हें रेप कर देगी,... लेकिन चोदेगी जरूर,... पर घर में इत्ती ढेर सारी पडोसने, माँ की सहेलियां, ज़रा सा भी मौका नहीं मिल रहा था , इसलिए वो भी भैया के साथ,...
गीता ने चपक कर पेड़ को कस के दबोच लिया, दोनों हाथ पेड़ के तने के चारों ओर,...
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" कुछ भी हो जाए, तुझे ये पेड़ छोड़ना नहीं है, कुछ भी मतलब कुछ भी,... पीछे से उसे कस के चिपकाते अरविन्द बोला।
पेड़ से और जोर से चिपकती, गीता बोली, एकदम भैया मैं नहीं छोडूंगी, ... और अब उसके दोनों उभार, गोरा खुला पेट पेड़ की छाल से रगड़ खा रहे थे, आगे से वो पेड़ को दबा रही थी और पीछे से उसका भैया उसे,
गीता ने तो साड़ी और चोलीनुमा छोटा सा जोबन से चिपका बैकलेस ब्लाउज पहन रखा था और उसका भाई भी बनयान नुमा बिना बांह की टी और एक छोटा सा शार्ट बस, ... वो भी खूब टाइट, देह से चिपका,...
और अरविंद ने पीछे से उसके कान में फुसफुसाया, हे गितवा, तनी पेड़ के ऊपर देख , दो तोता,...
और जैसे गीता का ध्यान पेड़ के ऊपर की ओर गया उसके भाई अरविन्द का एक हाथ गीता और पेड़ के तने के बीच, और कस कस के बहन के उभार को भींचने लगा, दूसरे हाथ ने चोली की डोर खोल दी और सरक कर चोली नीचे,... गीता की आँखे तो तोते की तलाश में थीं पर उसके दोनों कबूतर कस के उसके भाई अरविन्द के हाथों में थे और जोबन का रस लेने में तो वो पक्का खिलाड़ी था , जोबन पे उसका हाथ पड़ते ही बड़ी से बड़ी नखड़ीली लड़कियां खुद अपने हाथों से शलवार का नाड़ा खोलने लगती थीं, और गीता तो उसकी असली एकलौती सगी, सहोदर बहन थी. कभी अरविन्द दोनों चूँचिया हलके हलके सहलाता , बस छू छू के जैसे छोड़ देगा, हवा के झोंके की तरह, ... तो कभी ऐसे रगड़ता की जैसे पीस पीस के पिसान ( आटा ) बना देगा,... कभी दो उँगलियों में निप्स को दबा के मसल देता
। बोरोलीन का एकदम सही उपयोगअमराई में-भाई बहन की मस्ती
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और अरविंद ने पीछे से उसके कान में फुसफुसाया, हे गितवा, तनी पेड़ के ऊपर देख , दो तोता,...
और जैसे गीता का ध्यान पेड़ के ऊपर की ओर गया उसके भाई अरविन्द का एक हाथ गीता और पेड़ के तने के बीच, और कस कस के बहन के उभार को भींचने लगा, दूसरे हाथ ने चोली की डोर खोल दी और सरक कर चोली नीचे,...
गीता की आँखे तो तोते की तलाश में थीं पर उसके दोनों कबूतर कस के उसके भाई अरविन्द के हाथों में थे और जोबन का रस लेने में तो वो पक्का खिलाड़ी था , जोबन पे उसका हाथ पड़ते ही बड़ी से बड़ी नखड़ीली लड़कियां खुद अपने हाथों से शलवार का नाड़ा खोलने लगती थीं, और गीता तो उसकी असली एकलौती सगी, सहोदर बहन थी.
कभी अरविन्द दोनों चूँचिया हलके हलके सहलाता , बस छू छू के जैसे छोड़ देगा, हवा के झोंके की तरह, ... तो कभी ऐसे रगड़ता की जैसे पीस पीस के पिसान ( आटा ) बना देगा,... कभी दो उँगलियों में निप्स को दबा के मसल देता
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और उसका असर अरविन्द के मूसल पे भी हो रहा था, वो सोते से जग गया था, थोड़ा थोड़ा टनटना रहा था,...
और बदमाशी का ठेका सिर्फ अरविन्द के पास थोड़े ही था, उसी पेट से तो उसकी बहन गीता भी निकली थी और अब जो लाज शरम का परदा हट गया था देह का रस उसके ऊपर भी हावी था तो गीता ने भी एक हाथ से, ... तम्बू बने शार्ट से , भैया के खूंटे को पकड़ लिया, दबोच लिया और कस के मसलने लगी,
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एक जवान होती, कच्ची उमर वाली टीनेजर, बहन अगर किसी भी सगे भाई के तने लंड को पकड़ ले , मसलने लगे तो लंड की क्या हालत होगी,...
वही हालत अरविन्द के लंड की हुयी , एकदम बेकाबू, बिना लगाम का घोड़ा सरपट दौड़ने को बेताब,...
कभी दबाती कभी मसलती और जब उसे मालूम हो गया की अरविन्द का लंड अब बिन चोदे नहीं छोड़ने वाला है , तो बस अगला काम भी उसने अरविन्द का खुद कर दिया,
बहन हो तो ऐसी,...
अपने हाथ से भाई का शार्ट खींच के जमीन पे, ... और खूंटा बाहर,
" हे तुझे बोला था न दोनों हाथों से कस के पकड़ना " अरविन्द ने उसे झूठ मूठ का हड़काया,
" अरे भैया पकडे तो हूँ ,... " अपने बाएं हाथ से वो पेड़ को अभी पकडे थी उसी ओर इशारा किया लेकिन साथ में कस के अपने हाथ से भैया के लंड को भी दबोच के समझा दिया की वो भी समझ रही है क्या पकड़ना है, और पकड़ने के साथ वो मुठिया भी रही थी, लेकिन एक झटका और सुपाड़ा खुल गया भैया का ,
ऐसी प्यारी दुलारी बहना सब को मिले,...
और उस के बाद गीता ने फिर दोनों हाथों से कस के पेड़ को पकड़ लिया,... इधर भाई का शार्ट नीचे गिरा तो उसने बहन की साड़ी साया उठा के सीधे कमर तक, और कमर में कस के लपेट दिया, कित्ते भी धक्के लगें वो खुले नहीं, और एक बार फिर बहन के दोनों हाथों पेड़ से लिपटे और भाई के दोनों हाथ बहना के जोबन से लिपटे, ... और भाई का लंड बहना के छोटे चूतड़ों पे टक्कर मारता,
जैसे दरवाजे कोई प्यार से दस्तक दे
और दरवाजा खुल गया , गीता ने अपनी दोनों टाँगे अच्छी तरह फैला दी. अरविन्द के हाथों में तो वो जादू था कि, बस एक बार उसका हाथ जोबन पे लग जाए फिर तो लाख मना करने वाली भी भी खुद पिघलने लगती थी, अपनी टाँगे फैलाती थी पर वो भी जब तक वो लड़की मस्ती के मारे पागल न हो जाए दस बार खुल के न बोले खूंटा अंदर नहीं पेलता था,
और गीता तो उसकी सगी बहन, ... गीता की हालत ख़राब हो रही थी, दोनों हाथों से वो अब पेड़ को पकडे थी, साड़ी उसकी कमर तक उलटी, प्रेम गली और नितम्ब दोनों एकदम खुले,... अब वो खुद भैया के खड़े लोहे से कड़े खूंटे पे अपने छोटे छोटे चूतड़ रगड़ रही थी मसल रही थी, ... बस सोच रही थी भैया कब उसे चोदना शुरू करें , बुर उसकी लिसलिसा रही थी,
इसी पेड़ के सहारे खड़ी कर के अरविन्द ने गाँव की कितनी लड़कियों को चोदा था, ज्यादातर तो गीता की समौरिया, और इसी पेड़ के सहारे खड़ा करके चमेलिया फुलवा की बहन को तो कितनी बार चोदा था और वो तो गितवा से साल भर से ऊपर छोटी थी, ... और कोई लड़की होती तो अबतक कब का अरविन्द ने चोदना शुरू कर दिया होता हाँ ये बात जरूर है की उसका सुपाड़ा घुसते ही दर्द के मारे बेचारी ऐसे चिल्लाती की पूरे बाग़ में, लेकिन बाग़ इतनी गझिन और बड़ी थी की बाहर तक कुछ भी पता नहीं चलता था,... और जितना वो चिल्लाती रोती कहरती उतना ही अरविन्द का जोश बढ़ता, ...
और खूब कस के दरेरते, रगड़ते पेलता, की चूत का चमड़ा छिल जाए और एक बार लंड पूरी तरह घुस के हर धक्का बच्चेदानी पर,.. लेकिन साथ साथ छोटी छोटी चूँचियाँ वो ऐसे रगड़ता की थोड़ी देर में वो ये भूल जाती की चूत में दर्द ज्यादा हो रहा है की चूँची में,...
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पर गीता की बात और थी,
वह उसे पहले खूब गीली करना चाहता था,... और उसका खूंटा जिस तरह से प्रेमगली के बाहर धक्के मार रहा था गीता की बुर पानी बहा रही थी, ... लेकिन अभी भी महीने के आस पास हो गए थे अरविन्द को अपनी बहन गीता को चोदते, लेकिन अभी भी हर बार दो ढक्क्न घर का कडुवा तेल जरूर अपनी बहन की फांकों को फैला के अंदर टपकाता था और अपने मूसल को भी तेल पानी करने के बाद ही , भले ही उसकी बुर उसकी मलाई से बजबजा रही हो,...
पर यह कहाँ तेल,...
लेकिन घर से निकलने के पहले उसने अपनी शार्ट की जेब में बोरोलीन की एक ट्यूब रख ली थी की क्या पता लग जाए मौका,...
तो बस पहले तो अरविन्द ने बोरोलीन,... बुर में लीलने के लिए, अपने लोहे की मोटी रॉड पे , सुपाड़ा तो उसकी बहन ने अपने हाथ से खोल दिया था , तो पहले ट्यूब पिचका के थोड़ा सा वहां और बाकी मुठिया के आगे के आधे हिस्से पे,... साथ में रुक रुक के वो पहले एक फिर दो उँगलियाँ गीता की बुर में कभी आगे पीछे कभी गोल गोल घुमा रहा था,
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उसकी बहन की बुर तो पानी फेंक रही थी, फुदफुदा रही थी , सगे भाई के लंड के लिए पागल हो रही थी और गीता के मुंह से सिर्फ गालियां निकल रही थीं, अरविन्द के लिए,
" स्साले बहनचोद, चोदता काहे नहीं,... तेरी बहन को तेरी माँ को अपने भाई से चुदवाउ,... पेल न भैया, बहुत चुदवास लगी है, चूत में आग लगी है ,... "
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लेकिन अरविन्द उसे और गीली कर रहा था साथ में अपने खूंटे पे बोरोलीन लगा के मुठिया रहा था,...
गीता पागल हो के अपने चूतड़ भाई के खूंटे पे रगड़ रही थी,... खूंटा और तन्ना रहा था,... फिर अरविंद ने उस बोरोलीन की ट्यूब का नोजल सीधे बहन की बुर की फ़ांको को फैला के उसके बीच लगा दिया और पूरी ताकत से टूयब दबा दी जबतक सारी की सारी क्रीम उसकी बहन गीता की फडफ़ड़ाती गीली बुर में पैबस्त नहीं हो गयी.
और उसेक बाद बस कहर बरपा हो गया,... अरविन्द ने अपनी बहन की दोनों गुलाबी रेशमी मखमल सी मुलायम फांको को फैला के अपना सुपाड़ा सेट किया और मार दिया करारा धक्का,
उईईईईई उईईई ओह्ह उफ्फफ्फ्फ़ उईईई ,.. गीता की जोरदार चीख निकली, ...
अमराई में चढ़ा भैया
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गीता जब दूसरी बार झड़ी तो भैया भी उसके अंदर देर तक मलाई छोड़ता रहा,...
कौन बहनचोद बहन को एक बार चोदने के बाद छोड़ता है , अरविन्द ने भी नहीं छोड़ा,
हाँ कुछ रुक के और बाग़ में जमीन पे लिटा के,..
और अब एकदम गाँव की स्टाइल में खुले में दोनों की प्रेम लीला शुरू हो गयी थी और इससे अरविन्द से ज्यादा गीता खुश थी,...
" दीदी, अरविन्द भैया ने फिर कभी,... बाग़ में या कहीं घर के बाहर, आप पे चढ़ाई की। "
गीता बहुत देर तक खिलखिलाती रही, फिर छुटकी के गाल पे कस के चिकोटी काट के बोली,...
" पगली तू बड़ी भोली है, इस गाँव में नयी नयी आयी है न,... यहाँ तो सब खुल्ल्म खुल्ला,... ये पूछ किस दिन नहीं, नौवें दसवें में पढ़ने वाली बहिन को कोई भाई छोड़ता है, तू ही सोच, छोटी छोटी कच्ची अमिया, ... चिकने चिकने गाल, बस आ रही नयी नयी छोटी छोटी झांटे,... और अरविंदवा तो नंबरी चोदू, लोग लंड खड़ा करने के लिए सोचते हैं उसका तो बैठाना मुश्किल था,... "
फिर गीता ने ने अपना और अपने भाई अरविन्द का किस्सा आगे बढ़ाया,...
" अरे उस दिन आम के बाग़ में खुले आम में दो बार चोदने के बाद,... अरविन्द भैया की जो थोड़ी बहुत झिझक हिचक थी वो भी खतम हो गयी थी, ..
और वो तो मुझे बाद में पता चला, दो लड़कियां, चमेलिया, अरे वही फुलवा की बहिनिया और उस की एक सहेली उन दोनों ने भैया को मेरे ऊपर चढ़े हुए देख लिया था,... वो दोनों भी बाग़ में आयी थीं,... मैं तो , उस समय दूसरी बार भैया चोद रहा था मुझे बाग़ में लिटा के,...
मैंने ही उसे सहला के चूस के पहली चुदाई के बाद खड़ा कर दिया था वो वो क्यों छोड़ता,...
लेकिन उसने मुझे पेट के बल लिटा के,..एक आसन में तो कभी चुदाई उसकी आज तक ख़तम नहीं हुयी कम से तीन चार तरीके से , लेकिन हर बार बड़ी बेरहमी से,...
तो मैं पेट के बल लेटी थी , चूतड़ दोनों उठा के उसके धक्के खा रही थी, तो मुझे तो कुछ दिखता नहीं,... हाँ भैया ने जरूर दोनों शैतानों को देख लिया था, .. और मुस्करा के वो दोनों चली गयीं, चमेलिया तो खैर रोपनी वाली दिन से मेरी सहेली बन गयी थी लेकिन दूसरी वाली उस ने जरूर गाँव भर बाँट दिया , और अगले दिन ही स्कूल में मेरी दो सहेलियों ने खूब चिढ़ाया,... "
पर छुटकी तो अभी फास्ट फारवर्ड के मूड में थी उसने एक्सीलेटर पर दबाया, गीता को बाग़ से बाहर निकालने के लिए, और गीता ने अगले दिनों की बात बताई,...
गीता की माँ, वो तो गीता के भाई अरविन्द से भी एक हाथ आगे बढ़ की गीता के पीछे,... होता ये था की गीता के स्कूल की तो दो ढाई बजे छुट्टी हो जाती थी , दस मिनट में वो घर,भाई उसका अरविन्द भी दोपहर में बाहर का काम कामधाम करके वापस,...
लेकिन दोपहर के खाने के बाद ही माँ की गप्प गोष्ठी शुरू होती थी, सब पडोसिने, कभी और कोई नहीं तो ग्वालिन भौजी माँ की तेल मालिश करने या कभी ब्लाक से कोई आ गया, कोई मिलने वाले,...
तो वो भी चाहती थीं की उस समय दोनों भाई बहन बाहर रहें,.. फिर अब धीरे धीरे जो इत्ते सालो से वो घर की खेत की बाग बगीचे की जिम्मेदारी अकेले देख रही थीं अब धीरे धीरे पूरी तरीके से अपने बेटे के कंधे पर डाल रही थीं,... लेकिन साथ साथ वो बेटी को भी इस बात में शामिल करना चाहती थीं, आखिर इतने दिनों से वो सब काम देख रही थी तो गीता को भी अंदाज तो होना चाहिए,...भाई का हाथ बटाये साथ दे, और उन से बढ़ के गाँव वालियों को काम करने वालियों को भी मालूम हो की ये खाली स्कूल और घर वाली नहीं है,
तो उसे भी वो हाँक देती थीं भाई के साथ, बाहर,...
गीता की भी मन तो करता ही था,
रात भर तो माँ और भैया मिल के उस की चटनी बनाते ही थे,... लेकिन इस उमर में मन कहाँ भरता है,...
उस की बाकी सहेलियां किसी के दो तीन से कम आशिक नहीं थे, कई तो शाम को किसी से सिवान में मिलती थीं तो स्कूल से लौटते हुए किसी के और के सामने गन्ने के खेत में स्कर्ट पसारती थीं,... दिन भर क्लास में पढाई से ज्यादा तो कल किस ने किस से,... बस यही बातें,... और सुन सुन के जब लौटती गीता तो इतनी गर्मायी रहती की मन करता की कब भैया से अकेले में मिल के,.. बस अरविन्द भैया कब उसकी चोदे,... और सिर्फ सहेलियां ही नहीं, गाँव की भौजाइयां, काम करने वालियां, सब,..अब सब को तो मालूम ही था की वो अरविंदवा से चुदती है तो एकदम खुल के चिढ़ाती थीं,...
और उसका भाई भी, एक बार बहन की चूत का स्वाद लगने के बाद कौन भाई,...
और अरविन्द तो अपनी चाची का ट्रेंड किया,... तो वो भी अक्सर चक्कर काटता रहता, .... जहाँ जहाँ गीता जाती,... और स्कूल भी गाँव का, हफ्ते में दो तीन दिन तो कभी छुट्टी तो कभी जल्दी छुट्टी,.. और सावन का महीना, तो लड़कियां सब ( जिनको यारों के पास नहीं जाना होता था ) झरर मार के झूले पे भौजाइयों के साथ झूला झूलने, कजरी गाने,... और झूले से ज्यादा मजा झूले पे होने वाली छेड़छाड़ से, और अब तो गीता भी गाँव में साड़ी ही पहन के निकलती थी,
बस झूला शुरू होते ही छेड़छाड़ शुरू, उसके पीछे बैठी कोई भौजाई, साड़ी उलट देती थी और सोन चिरैया में ऊँगली डाल के पूछती, " अरविंदवा के मलाई हो न "
और बुर में ऊँगली शुरू, कोई न कोई भौजी चोली में बंद जोबन भी खोल देती,... और उसके भाई का नाम ले ले के, अरे देवर अरविन्द ऐसे दबाते हैं ना,... "
भाई का नाम सुन के और उसकी चूत गरमा जाती थी, ...
एक तो रोपनी के दिन उसने खुद कबूल कर लिया था फिर अमराई में तो चुदते ही,... दो लड़कियों ने साफ़ साफ़ देखा था , लेकिन गीता को कुछ भी बुरा नहीं लगता था बल्कि वो इसी छेड़छाड़ का इन्तजार करती थी पर सबसे मजा आता था कजरी ख़त्म होते जब वह भौजाइयों सहेलियों के साथ घर की ओर लौटती तो आस पास उसका भाई अरविन्द बाइक पे चक्कर काटता रहा, और उसे खींच के पीछे बैठा लेता, सब सहेलियां अरविन्द को खुद चिढ़ातीं,
" अरे कभी हमारे भी साथ,... "
लेकिन छुटकी फास्ट फारवर्ड चाहती थी सीधे मुद्दे पर कब खुले आसमान के नीचे गीता अपने भाई अरविन्द से कब कहाँ कैसे चुदी।
" गन्ने के खेत में, आम की बाग़ में चोदने के दो दिन बाद ही अरविन्द भैया ने गन्ने के खेत में नंबर लगा दिया , दोपहर में " गीता ने कबूला
लेकिन अब छुटकी हाल खुलासा चाहती थी और गीता ने सब किस्सा गन्ने के खेत का बताया।
JaldKomalji update kab tak aaega????
haan lekin jiatna detail men Geeta, Arvind ka kissa bayan hua utana nahi ho skata tha,Komal ji ki nanad to hai incest ke liye, chutki ke jiju ke sath
एकदम सही कहा आपने सफ़ेद कबूतर दोनों पकडे गएतोते के चक्कर मे कबूतर पर कब्जा हो गए
Ye to maine dyan hi nahi diyakya pata dpno maa beti ki chhutti saath saath chal rahi ho aur aapne to ARVIND ki hi pic post kar di![]()