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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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“भाग ५२
गन्ने के खेत में भैया के संग
पर छुटकी तो अभी फास्ट फारवर्ड के मूड में थी उसने एक्सीलेटर पर दबाया, गीता को बाग़ से बाहर निकालने के लिए, और गीता ने अगले दिनों की बात बताई,...
गीता की माँ, वो तो गीता के भाई अरविन्द से भी एक हाथ आगे बढ़ की गीता के पीछे,...
होता ये था की गीता के स्कूल की तो दो ढाई बजे छुट्टी हो जाती थी , दस मिनट में वो घर,भाई उसका अरविन्द भी दोपहर में बाहर का काम कामधाम करके वापस,...
लेकिन दोपहर के खाने के बाद ही माँ की गप्प गोष्ठी शुरू होती थी, सब पडोसिने, कभी और कोई नहीं तो ग्वालिन भौजी माँ की तेल मालिश करने या कभी ब्लाक से कोई आ गया, कोई मिलने वाले,... तो वो भी चाहती थीं की उस समय दोनों भाई बहन बाहर रहें,..
फिर अब धीरे धीरे जो इत्ते सालो से वो घर की खेत की बाग बगीचे की जिम्मेदारी अकेले देख रही थीं अब धीरे धीरे पूरी तरीके से अपने बेटे के कंधे पर डाल रही थीं,... लेकिन साथ साथ वो बेटी को भी इस बात में शामिल करना चाहती थीं, आखिर इतने दिनों से वो सब काम देख रही थी तो गीता को भी अंदाज तो होना चाहिए,...भाई का हाथ बटाये साथ दे, और उन से बढ़ के गाँव वालियों को काम करने वालियों को भी मालूम हो की ये खाली स्कूल और घर वाली नहीं है, तो उसे भी वो हाँक देती थीं भाई के साथ, बाहर,...
गीता की भी मन तो करता ही था,
रात भर तो माँ और भैया मिल के उस की चटनी बनाते ही थे,...
लेकिन इस उमर में मन कहाँ भरता है,... उस की बाकी सहेलियां किसी के दो तीन से कम आशिक नहीं थे, कई तो शाम को किसी से सिवान में मिलती थीं तो स्कूल से लौटते हुए किसी और के सामने गन्ने के खेत में स्कर्ट पसारती थीं,... दिन भर क्लास में पढाई से ज्यादा तो कल किस ने किस से,... बस यही बातें,... और सुन सुन के जब लौटती गीता तो इतनी गर्मायी रहती की मन करता की कब भैया से अकेले में मिल के,.. बस अरविन्द भैया कब उसकी चोदे,...
और सिर्फ सहेलियां ही नहीं, गाँव की भौजाइयां, काम करने वालियां, सब,..अब सब को तो मालूम ही था की वो अरविंदवा से चुदती है तो एकदम खुल के चिढ़ाती थीं,...
और उसका भाई भी, एक बार बहन की चूत का स्वाद लगने के बाद कौन भाई,... और अरविन्द तो अपनी चाची का ट्रेंड किया,...
तो वो भी अक्सर चक्कर काटता रहता, .... जहाँ जहाँ गीता जाती,... और स्कूल भी गाँव का, हफ्ते में दो तीन दिन तो कभी छुट्टी तो कभी जल्दी छुट्टी,..
और सावन का महीना, तो लड़कियां सब ( जिनको यारों के पास नहीं जाना होता था ) झरर मार के झूले पे भौजाइयों के साथ झूला झूलने, कजरी गाने,... और झूले से ज्यादा मजा झूले पे होने वाली छेड़छाड़ से, और अब तो गीता भी गाँव में साड़ी ही पहन के निकलती थी, बस झूला शुरू होते ही छेड़छाड़ शुरू, उसके पीछे बैठी कोई भौजाई, साड़ी उलट देती थी और सोन चिरैया में ऊँगली डाल के पूछती, " अरविंदवा के मलाई हो न " और बुर में ऊँगली शुरू, कोई न कोई भौजी चोली में बंद जोबन भी खोल देती,... और उसके भाई का नाम ले ले के, अरे देवर अरविन्द ऐसे दबाते हैं ना,... "
भाई का नाम सुन के और उसकी चूत गरमा जाती थी, ... एक तो रोपनी के दिन उसने खुद कबूल कर लिया था फिर अमराई में तो चुदते ही,... दो लड़कियों ने साफ़ साफ़ देखा था , लेकिन गीता को कुछ भी बुरा नहीं लगता था बल्कि वो इसी छेड़छाड़ का इन्तजार करती थी पर सबसे मजा आता था कजरी ख़त्म होते जब वह भौजाइयों सहेलियों के साथ घर की ओर लौटती तो आस पास उसका भाई अरविन्द बाइक पे चक्कर काटता रहा, और उसे खींच के पीछे बैठा लेता, सब सहेलियां अरविन्द को खुद चिढ़ातीं,
" अरे कभी हमारे भी साथ,... "
लेकिन छुटकी चाहती थी सीधे मुद्दे पर कब खुले आसमान के नीचे गीता अपने भाई अरविन्द से कब कहाँ कैसे चुदी।
" गन्ने के खेत में, आम की बाग़ में चोदने के दो दिन बाद ही अरविन्द भैया ने गन्ने के खेत में नंबर लगा दिया , दोपहर में " गीता ने कबूला
अब छुटकी हाल खुलासा चाहती थी और गीता ने सब किस्सा गन्ने के खेत का बताया।
गितवा के क्लास वाली शायद ही कोई बची हो जिसने गन्ने के खेत में मोटा गन्ना न खाया हो, और वो सब ऐसे ऐसे किस्से गन्ने के खेत के सुनाती थी की गितवा का भी मन बौरा जाता था. कैसे सरसराते गन्ने के खेतों के बीच में हाथ पकड़ के खींच के ले गया,इतने ऊँचे गन्ने की दो हाथ दूर भी कोई हो पता न चले की कोई लड़की चोदी जा रही है, नीचे मिट्टी, ऊपर आसमान, ... चूतड़ से रगड़ रगड़ के मिटटी का ढेला चूर चूर हो जाता है,... गीता का बहुत मन करता था किसी दिन अरविन्द के साथ, गन्ने के खेत में, दिन दहाड़े,...
Wow gitva bhi bin bhyahe patni dharam nibha rahi he. Bhaiya ko sajan bana kar chadhava chadha rahi he. Kache tikoro ka hi nahi kaliyo ke pichhvado ka. Amezing. Maza aa gaya Komalji. Pitare me abhi bahot kisse baki he.किस्सा अमराई का ---------------- फुलवा की ननदिया का
"गीता दी, आपने कभी खेत में अमराई में या कहीं और खुले में, अपनी किसी सहेली के साथ, अरविन्द भैया के साथ मस्ती की है " अपनी बड़ी बड़ी गोल गोल आँखे नचा के छुटकी ने गितवा से पूछा।
" तू न बड़ी बदमाश है, चल तेरे साथ करुँगी न मैं तू और तेरा अरविन्द भैया, " दुलराते हुए गितवा ने छुटकी को भींच लिया और उसके बस आते हुए टिकोरे कस के दबा दिए।
" नहीं नहीं बताइये न, आप मेरी बहन हो, बहन से क्या छुपाना,... "
गितवा जिस तरह से मुस्करा रही थी, छुटकी समझ रही थी कुछ तो है बात और गितवा ने बताना शुरू कर दिया,
" मेरी स्कूल वाली सहेलियां, ... वो तो बहुत लिबराती थीं की भैया को एक बार, बस एक बाद दिलवा दूँ, अच्छा कुछ तो नहीं पकड़वा दूँ उनके हाथ में,... लेकिन उन सबों के साथ नहीं, हाँ तभी मेरी क्लास वाली नदीदी, मेरी बिल से निकाल के ऊँगली डाल के भैया की मलाई रोज चखती थीं और मैं भी मना नहीं करती थी, मैं भी तो चाहती थी जलें स्साली सब कमीनी, सब जब अपने भैया बहनोई नाते रिश्तेदारों से चुदवा के आती थीं तो रोज मुझे जलाती थीं, चिढ़ाती थीं,... और अब मैं बिना नागा तो सालियों की झांटे सुलगती थीं ,... "
" तो किसके साथ " एक अच्छे एंकर की तरह छुट्टी बात को सीधे पटरी पर ले आती थी,
" मेरी सबसे पक्की सहेली, रोपनी के बाद फुलवा की छुटकी बहिनिया, चमेलिया बन गयी थी, उमर में मुझसे थोड़ी छोटी क्या समौरिया समझो, और मस्ती में दो हाथ आगे,... और फुलवा की ननद भी, मैं और चमेलिया मिल के उसे चिढ़ाते थे, छेड़ते थे आखिर हम दोनों की भी ननद ही लगती थी उमर में भी हमारी जैसी,... चमेलिया ने तो उसे चमरौटी, भरौटी अहिरौटी, पठान टोला सब घुमा दिया था, कहीं के लौंडे बचे नहीं थे , जो फुलवा की ननद पे चढ़े ना हों। कोई दिन नागा नहीं जाता था जब चमलिया उस के ऊपर चार पांच लौंडो को न चढ़ाये।
चमेलिया मुझे भी बाहर एक एक जगह दिखाती थी जहाँ उस के टोले की लड़कियां, खाली गन्ने के खेत नहीं, बँसवाड़ी के पीछे, नदी के किनारे, सरपत के जुटे के पीछे, बीसों जगह तो गाँव के आसपास ही और फिर मैं अरविन्द भैया के साथ,...
लेकिन छुटकी तो मामला अरविन्द भैया पे लाना चाहती थी उसने फिर स्टोरी को वापस ट्रैक पे किया
" दी मेरा मतलब,... तो क्या आपने कभी चमेलिया के साथ और अरविन्द भैया के साथ गन्ने के खेत या अमराई में मस्ती,... "
" तू स्साली न पिटेगी मेरे हाथ से बल्कि चुदेगी अपने अरविन्द भैया के साथ गन्ने के खेत में अमराई में , ... तुझे सब मालूम करने का शौक है न,... " गितवा झूठ मूठ का गुस्सा करते बोली , फिर हंस के उसे चूम के बोली
" एक बार, फुलवा की ननदिया के साथ मैं और चमेलिया मस्ती कर रही थीं उसी अमराई में जिसमे भैया ने मुझे पेड़ के साथ खड़ा कर के पेला था,... खूब गझिन हम लोगों का बड़ा सा बाग़ डेढ़ दो सौ आम के पेड़ ,... अगले दिन भिन्सारे फुलवा की ननदिया को अपने मायके वापस जाना था, हम दोनों, मैं और चमेलिया उसे छेड़ रहे। आज स्कूल की भी मेरी छुट्टी थी, माँ भी बुआ के यहाँ गयी थीं देर रात को ही आतीं, छुट्टी ही छुट्टी।
" स्साली बिना गाँड़ मरवाये जा रही है ये बड़ी बेईमानी है " चमेलिया ने फुलवा की ननद को गुदगुदाते हुए छेड़ा
और फिर मैंने जोड़ा ' बुर तो हमरे भैया से तो फड़वायी हो गाँड़ का अपने भैया के लिए बचा के ले जारही हो "
छुटकी से नहीं रहा गया वो उछल गयी
" सच में ये तो बहुत नाइंसाफी है क्या अरविन्द भैया ने उसकी गाँड़ नहीं मारी थी , आप कह रही थी चुदवाती तो भैया से खूब चूतड़ मटका मटका के तो पिछवाड़े के मामले "
एक बार फिर फिर उसके रसीले होंठों को चूम के गितवा बोली,
" एक बात समझ ले की ननद का मतलब छिनार, और फुलवा की ननद तो हम सब की पूरे गाँव की लड़कियों की गाँव की लड़कियों की ननद, छिनार नहीं जब्बर छिनार। स्साली नौटंकी करती थी, लेकिन गलती वो स्साले तेरे भाई की अरविन्द की भी कम नहीं। लंड उसका जितना सख्त है दिल उतना मुलायम है और बहनचोद बुद्धू भी बहुत है कोई भी लड़की उसे चरा देगी। मैंने भैया से पूछा भी कई बार , कहा भी तो वो बोला की अरे वो बहुत चिल्लाती है , नौ नौ टसुए बहाने लगती है। जैसे ही मैं पिछवाड़े छुआता भी भी हूँ एकदम उछल जाती है, और टाइट है भी उसकी बहुत। अब वहां खेत में कहाँ तेल "
छुटकी वैसे तो बड़ी बहन की बात कभी नहीं काटती थी लेकिन अब उससे नहीं रहा गया, उफनती हुयी बोली,
" स्साली छिनार, अरे पटक के सूखे पेलना चाहिए था,... "
" यही तो , मैं भी भैया से बार बार कहती थी लेकिन वो सुने तब ना गीता ने अपना दुख सुनाया।
" तो क्या फुलवा की ननद अपना पिछवाड़ा कोरा लेकर चली गयी। " छुटकी उदास हो के बोली।
" अरे नहीं यार तेरी बड़ी बहन किस लिए हैं हम लड़कियों की नाक कट जाती अगर उसकी फटती नहीं और फिर मेरी पक्की सहेली चमेलिया थी न ,... लेकिन तू अब बीच में मत बोलना , वरना नहीं सुनाऊँगी अमराई का किस्सा। "
छुटकी ने दोनों कान पकडे और होंठ पे ऊँगली लगा के चुप रहने का इशारा किया और गितवा ने अमराई का किस्सा आगे बढ़ाया।
congratulations didi for your" thread selection for admin sticky program."Thread selected for admin sticky program
P.s - sticky valid till may 2nd 2023
awesome super duper gazab updates as always, very eroticभाग ५२
गन्ने के खेत में भैया के संग
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भाग ४७ पृष्ठ ३७५ रोपनी
भाग ४८ - पृष्ठ 394 रोपनी -फुलवा की ननद
भाग ४९ पृष्ठ ४२० मस्ती -माँ, अरविन्द और गीता की
भाग ५० पृष्ठ ४३५ माँ का नाइट स्कूल
भाग ५१ पृष्ठ ४५६ भैया के संग अमराई में
Jab plan bana hi liya hai to execute bhi to karna hoga. Asli maja to isme hi ayega jab komal ji ke samne hogavaise load hongi ya nahi pata nahi lekin thoda bahoot plan maine part 21 men bana chui thi
भाग २१
छुटकी पर चढ़ाई -page 99
jas ka tas quote kar rahi hun
मैंने एक पल ननद जी की और उनके भैया की ओर देखा, और मुझे लगा की अगर आज सबके सामने , अपनी माँ के सामने ये खुल के मेरी बहन की चुदाई करेंगे तो इनकी जो भी झिझक है और ननद जी की भी वो सब निकल जायेगी, फिर एक दो दिन में मैं इनकी बहन के ऊपर इसी घर में अपने सामने चढ़ाउंगी, तब आएगा असली मज़ा. जो मजा ननद के ऊपर भौजाई को अपने सामने ननद के सगे भाई को चढ़ाने में आता है न उसके आगे कोई भी मजा फेल है।