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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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Pehli baar hi shayad apne index diya h first page pr kisi story me. Vese index dene se reader bich ke comments ka maja nhi le payenge. Thodi bahut mehnat to krne do achhi story padhni hai to.
कमेंट भी काम मजेदार नहीं होते...
उसमें भी अच्छी क्रिएटिविटी होती है...
और खास के आरुषि दयाल जी की कविताएं आग लगा देती है...
उनसे महरूम होने का खतरा कौन मोल ले...
 

motaalund

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You are absolutely right but my answer is both yes and no. Yes this is the first story where i have provided Index. NO, index was provided in the early days of story but after part 32 i have not updated it, sheer lethargy and was rightly berated by a well-wisher and friend our Doctor Shahiba who needs no introduction. and it led me to update it and post an info about it here.

I used to give page number of last post so if anybody has missed out he can connect. That i still do and will keep on doing. One reason for not giving index was surely sloth. But my earlier stories were either too small or to large. Like the story of which this one is sequel came out in two parts, first part finished in 10-12 pages and second too was not very long.

and story like Joru ka Gullam is now running into 182 parts so it will deter me.

I have still not given the hyperlinks which is now demanded, and a common practice and reason is simple, my being tech wise ignoramus.

Thanks so much for noticing it.

At any given time rarely people who comment on my story crosses double figure, but i always hope against hope that may be some reader may wander to my story and with a dogged determination try to go through it , Indix will certainly help that illusive but most awaited reader.
My entire comments .. more than 3000 (in four figures).. are on your stories only...
I enjoy not only story and comments but also your replies on those comments and sometimes clarifications too.
If you were not here, I may be a silent reader.
 
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motaalund

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क्या बात कही आपने

अरविंदा की तो नींद उड़ गई जब से गीतवा हुई जवान

पूरी रात भैया का खूंटा लपक लपक के घोंटे

भैया भी जी भर के चुसे जोबन छोटे छोटे

नई सिली चोली से अपने जोबन खूब दिखलाये


कमर से नीचे बांध घाघरा अरविंद को ललचाये

और ये बात हर जवान होती बहन के लिए सही है, वो चाहती है ललचाती है, दिखाती है,...

इसी कहानी में मैंने पहले भी एक पार्ट की हेडिंग दी थी,...



समझदार बहन,... हैं

( https://exforum.live/threads/छुटकी-होली-दीदी-की-ससुराल-में.77508/page-152

Post number 1514 page 152)


और वो बात आपने इतनी खूबसूरत लाइनों में कह दी की कोई ना समझ से नासमझ भाई भी समझ जाये

सुपर्ब आपका जवाब नहीं
समझदार , बिंदास, दिलेर और निडर.. गितवा...
इतने दिनों से इशारे कर रही है.. कि खिलती जवानी का रस लूट लो...
लेकिन अरविदवा जैसन बुरबक..

और आरुषि जी ने भावनाओं को उचित शब्दों में ढाल दिया है...
जैसे कोई दीया जगमगा रहा हो...
 
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motaalund

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कोमल जी बिल्कुल सही कहा आपने. हर जवान होती बहन चाहती है ललचाती है, दिखाती है,...और दिल में यही सोचती है..
चाहा है तुमने जिस बावरी को
वो भी सजनवा चाहे तुम्हीं को,
नैना उठाये, तो प्यार समझो
पलके झुका दे, तो इकरार समझो,


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कविताओं के साथ साथ चित्रों का तालमेल भी खूबसूरत है...
 

motaalund

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भैया के मोटे गन्ने का मज़ा



बहुत मन करता था किसी दिन अरविन्द के साथ, गन्ने के खेत में, दिन दहाड़े,...

लेकिन सब ज्यादा किस्से सुनाती थीं चमेलिया और उसके टोले वाली वाली।

रोपनी के बाद से चमेलिया से गितवा की पक्की दोस्ती हो गयी थी, आखिर दोनों की झिल्ली अरविन्द ने फाड़ी थी,.. और उस टोली में फुलवा की ननदिया,... कुछ चमेलिया की साथ की,... और वो सब तो ऐसे ऐसे किस्से रोज सुनाती थीं की गीता की बुर लासा हो जाती थी कई तो इसमें दिन में दो तीन बार गन्ने के खेत में टांग फैला के, दिन में खेत काम करने जातीं तो कोई बबउआने वाला गन्ने के खेत में खींच लेता,






और शाम को किसी यार से मिलना होता तो, वो भी गन्ने के खेत में बुलाता और फिर दो बार से कम खूब रगड़ रगड़ के,...

और वो सब गीता को खूब उकसाती भी थीं,..

अरे जब तक दिन दहाड़े यार से गन्ने के खेत में न चुदवाया,... फिर तोहार तो यार भी है सगा भाई भी है तू तो एकदमे,...

और ये सब सुन के गीता की बिल में ऐसे मोटे मोटे चींटे काटते,... और जब से उसके भाई अरविन्द ने उसे आम की बाग़ में जबरदस्त खड़े खड़े चोदा था, तब से तो और,...

बस दो दिन बाद ही मौका मिल गया। माँ ने ही भेजा उसे,... गन्ने के खेत में और दस बार निहोरा भी किया, जल्दी कोई नहीं है लौटने की, आज बहुत दिन बाद थोड़ी धूप निकली है,... दो ढाई घंटे के बाद ही आना, थोड़ा घूम टहल के,... मैं भी तोहरे ग्वालिन भौजी के साथ बाजार जा रही हूँ, ढाई घंटे के बाद ही लौटूंगी।



बात ये थी की भाई उसका अरविन्द, सुबह मुंह अँधेरे निकल गया था खेत में कुछ काम था,... बिना कुछ खाये और तिझहरिया को ही लौटता,

तो माँ ने अरविन्द के के लिए ही खाना भेजा था, वैसे भी गाँव में काम के समय औरतें काम करने वालों के लिए दोपहर में कुछ कुछ ले कर जाती थीं। माँ ने गीता से दस बार कहा

तेरा भाई पागल है, उसे खाना देकर लौट आएगी तो वो काम के चक्कर में खाना भूल जाएगा और शाम को बर्तन लाना भी,... तो तू उसे अपने सामने, अपने हाथ से खिलाना,... और जब खा ले तो उसके बाद ही,... वैसे भी ढाई घंटे तक तो मैं भी नहीं हूँ।

बस गीता चल दी.

और अरविन्द वहीँ गन्ने के खेत में सामने ही मिल गया, धान के खेत से सटा जहाँ गीता दो दिन रोपनी के लिए गयी थी उसी खेत के पास, वही गन्ने का खेत जहाँ उसने फुलवा की ननदिया की फाड़ी थी,...



वही कुछ काम करने वालों को समझा रहा था,... और जो वो खेत में आता तो बस एक बनियान और छोटा सा लोवर पहन के, बस वही पहने,... सारी अखाड़े की कसरती मसल्स साफ़ साफ़ दिख रही थीं और गीता तो अपने मन की आँखों से लोवर के अंदर की मसल्स भी देख रही थी , पनिया रही थी.

आज गीता ने साड़ी एकदम कूल्हे के नीचे से और बहुत कस कस के बाँधी थी, जिससे उसके मटकते छोटे छोटे चूतड़ एकदम साफ़ दिख रहे थे, चोली तो दर्जिन भौजी ने सब ऐसी सिली थी की दोनों जोबना छलक के बाहर ही कूदते रहते थे, और ऊपर से गीता ने आँचल की बस एक रस्सी सी दोनों पहाड़ों के बीच , देख के ही अरविन्द की हालत खराब,... रोज ही तो अपनी बहना की चूँचियों को रगड़ता मसलता था, चूसता था, काटता था, फिर भी जब भी उन्हें चोली में बंद देखता था उसका हाथ खुजलाने लगता था,...



और आज तो रोज से भी ज्यादा मन कर रहा था बहन को पेलने का,...

ऊपर से गीता ने साफ़ साफ बोल दिया, ' मा ने बोला है की अपने सामने खिला के बर्तन ले आना और दो घंटे से पहले नहीं, वो भौजी के साथ बजार गयी हैं। "

बस, अरविन्द ने गीता का हाथ पकड़ा और बोला, चलो खेत में बैठ के खाते हैं और बहन का हाथ पकड़ के गन्ने के ऊँचे से खेत में धंस गया. गन्ने इतने ऊँचे की उनमें हाथी छुप जाए,...

अरविन्द ने अपनी बहन गीता का हाथ कस के पकड़ रखा था, और उसके हाथ को छूते ही गीता के बदन में एक सरसराहट सी दौड़ गयी, और बीस पच्चीस कदम भी वो अंदर नहीं घुसी होगी, उसने पीछे मुड़ के देखा,... और जहाँ से वो और अरविन्द अंदर घुसे थे, .. कुछ भी नहीं दिख रहा था सिर्फ गन्ने ऊँचे ऊँचे, अगल बगल भी कुछ नहीं, उनकी पत्तियां उसकी देह को सहरा रही थीं,रगड़ रही थी,


उसको चमेलिया की बात याद आ रही थी, गन्ने के खेतवा में घुसते खुदे मन करता है नाड़ा खोल दें, ढेरो किस्से जो गीता ने सुने थे अपनी सहेलियों से सब याद आ रहे थे, सोच सोच के उसकी बुर पनिया रही थी, बस,यही मन कर रहा था आज उसका भाई अरविन्द इसी खेत में उसे पटक कर चोद दे तो कल वो भी अपनी सहेलियों को किस्से सुनाएगी,...

और सौ डेढ़ सौ कदम अंदर घुसने के बाद, एक जगह दिखी जहाँ से लगता है २०-२५ गन्ने किसी ने तोड़ लिए हों,... थोड़ी सी खुली जगह, ... वहां पर गन्ने की सूखी पत्तियां, और मिट्टी,... अरविन्द कुछ सोचता, गीता ने झट पेटीकोट में खोंसी अपनी साड़ी खींच के उतार दी और वहीँ मिट्टी पे बिछाती हुयी बोली,

"ऐसे भैया बैठ और चल पहले चुप चाप खाना खा, आज मैंने बनाया है जैसा भी हो चुप चाप खा लेना और तारीफ़ भी करना। "

गीता अपनी सहेली की भौजी की बात कभी नहीं भूलती थी की पहल हमेशा लड़कियों को ही करनी पड़ती है वरना लड़के तो यही सोचते रहते हैं की बात की शुरआत कैसे करें,... और साड़ी इसलिए उसने खुद उतार दी।

पर उसका भाई अरविन्द भी कम खिलाड़ी नहीं था और उस दिन आम की बाग़ में चोदने में के बाद उस की धड़क खुल गयी थी, और इस गन्ने के खेत में उसने गाँव की दर्जनों लड़कियों की चोद के झिल्ली फाड़ी थी,...


उसने खींच के अपनी बहन को गोद में बिठा लिया। और गीता के नरम नरम चूतड़ों का टच पा के उसका खूंटा फनफनाने लगा,... और गीता भी कम बदमाश नहीं थी, वो अपने चूतड़ रगड़ रगड़ के और अरविन्द के मूसल को जगा रही थी। जैसे कुछ वो शरारत कर ही नहीं रही हो इस तरह से उसने खाने का डब्बा खोला और अपने हाथ से कौर बना के भाई के मुंह में और बोली,

" चुपचाप मेरे हाथ से खा लो, अपने हाथ से खा के हाथ गन्दा करोगे और फिर उसी हाथ से मुझे यहाँ वहां छुओगे। "

और जब गितवा ने खुद ही कह दिया, 'यहाँ वहां छुओगे' तो अरविन्द काहे रुकता।

गीता कभी अपने हाथ से कभी होंठों से उसे कौर खिलाती और अरविन्द के दोनों हाथ पहले तो चोली के ऊपर से बहन के जोबन का हाल चाल लेते रहते, फिर चोली उतर के जमीन पर बिखरी पसरी साड़ी के पास पहुंच गयी,... और बहन के दोनों उभार भाई के हाथों में,... क्या कस के रगड़ता मसलता था वो, कोई भी औरत पानी फेंक देती और गीता तो,...

उसकी भी बुर पनिया रही थी लेकिन वो अपने ढंग से बदला ले रही थी, चूतड़ों से कस कस के भाई के पगलाते मूसल को रगड़ रगड़ के,...

और भाई ने अगर उसकी चोली उतारी तो,... सावन से भादों दूबर,... उसने भी अरविन्द की बनियान उतार के फेंक दी, और अब भाई बहन दोनों टॉपलेस।

और अपनी छुटकी बहिनिया के छोटे जोबना देख के अरविन्द तो बौरा गया,... खाना तो कब का ख़त्म हो गया था अब तो ये रसमलाई खानी थी, और अरविन्द से ज्यादा उसका मोटा मूसल पागल हो गया, गन्ने के खेत में कुंवारी चढ़ती जवानी वाली बहन की कच्ची अमिया देख के कौन भाई काबू में रहता और अरविन्द तो अब तक पंचायती सांड़ हो चुका था.

बस कभी उसके दोनों हाथ कस कस के बहन की छोटी छोटी चूँचियों को रगड़ते मसलते तो कभी उन्हें वो पागल हो के काटता चूसता।

बहन, गीता अरविन्द से भी समझदार थी, तभी तो न उसने सिर्फ अपने हाथ और होंठ से खाना खिलाया उसे बल्कि साफ़ साफ़ बता भी दिया।

" अपने हाथ से खिला रही हूँ , इसलिए की तुम पहले तो अपना हाथ गन्दा करोगे, फिर उसी हाथ से जगह जगह छुओगे " और उन्ही साफ़ हाथों से उसका भइआ अरविन्द अपनी बहन पे हाथ साफ़ कर रहा था.

जोबन पे हाथ लगने से तो कोई भी लड़की पिघल जाती, और अगर भाई का हाथ बहन के जोबन पे पड़ जाए तो वो खुद नाड़ा खोल देगी, ... और वही हुआ, गीता ने न सिर्फ अपने पेटीकोट का नाड़ा खोला बल्कि भाई का भी लोवर सरका दिया और जिस मस्ती से भाई उसके जोबन को पकड़ रहा था उसी तरह बहन ने भैया के एकम तन्नाए खूंटे को पकड़ लिया और प्यार से दबाने मसलने लगी, कभी अंगूठे से सुपाड़े के बेस पे रगड़ती तो कभी हलके हलके मुठियाती,...

और अब भैया से नहीं रहा गया, इस गन्ने के खेत में उसने कितनी कुंवारियों की झिल्ली फाड़ी थी, हर दूसरे तीसरे किसी न की किसी को अपना मोटा गन्ना खिलाता था, लेकिन उससे अब रहा नहीं जा रहा था , पहली बार उसकी सगी बहन उसके नीचे,...

गप्प से उसने पहले एक ऊँगली बहन की बुर में पेल दी,... बुर एकदम मस्ती से लसलसा रही थी,... वो समझ गया जमीन जुताई के लिए तैयार है, इतनी नमी आ गयी है इसमें,... फिर भी घचाघच अरविन्द बहन की कसी बुर में ऊँगली पेल रहा था, थोड़ी देर में मस्ती से बहन पागल हो गयी खुद ही लंड के लिए चूतड़ उछालने लगी,

बहन की बुर भाई का लंड मांग रही थी, सिसक रही थी तड़प रही थी,...

और अरविन्द ने अबकी दूसरी ऊँगली भी पेल दी,

और गीता चीख उठी, उईईईईई ओह्ह्ह्ह नहीं,... कुछ मजे से ज्यादा दर्द से,... महीने भर से उसकी बुर भाई का लंड खा रही थी लेकिन तब भी एक दम कसी टाइट थी, लेकिन अरविन्द जानता था की उसका लंड तो इतना मोटा है, गितवा की कलाई से भी ज्यादा, चार चार बच्चों की माँ, पक्की भोंसड़ी वालियां जो सैकड़ों लंड खा चुकी थी होती हैं वो भी पसीना छोड़ देती हैं और ये बेचारी तो अभी जवानी की चौखट डांक ही रही है,... इसलिए पूरी दो ऊँगली अंदर तक और देर तक गोल गोल,...

उसकी बहन की बुर अब एकदम गीली हो गयी थी, बुरी तरह पनिया रही थी, बीच बीच में बुर में घुसी ऊँगली की नक्लस से वो प्रेम गली के अंदर की नर्व्स को रगड़ के छेड़ छेड़ के बहन को पागल कर रहा था,...

आज गीता पहली बार गन्ने के खेत का मजा ले रही थी,... बस उसका यही मन कर रहा था की बस अब भैया पेल दे, टांग उठा के,
अरे जब तक दिन दहाड़े यार से गन्ने के खेत में न चुदवाया,... फिर तोहार तो यार भी है सगा भाई भी है तू तो एकदमे,...

और ये सब सुन के गीता की बिल में ऐसे मोटे मोटे चींटे काटते,... और जब से उसके भाई अरविन्द ने उसे आम की बाग़ में जबरदस्त खड़े खड़े चोदा था, तब से तो और,...

बस दो दिन बाद ही मौका मिल गया। माँ ने ही भेजा उसे,... गन्ने के खेत में और दस बार निहोरा भी किया, जल्दी कोई नहीं है लौटने की, आज बहुत दिन बाद थोड़ी धूप निकली है,... दो ढाई घंटे के बाद ही आना, थोड़ा घूम टहल के,... मैं भी तोहरे ग्वालिन भौजी के साथ बाजार जा रही हूँ, ढाई घंटे के बाद ही लौटूंगी।


जब दिल में अरमान हों तो सारी कायनात मिल जाती है...
दो दिलों (बिलों) को मिलाने के लिए...
 

motaalund

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किस्सा अमराई का ---------------- फुलवा की ननदिया का




"गीता दी, आपने कभी खेत में अमराई में या कहीं और खुले में, अपनी किसी सहेली के साथ, अरविन्द भैया के साथ मस्ती की है " अपनी बड़ी बड़ी गोल गोल आँखे नचा के छुटकी ने गितवा से पूछा।

" तू न बड़ी बदमाश है, चल तेरे साथ करुँगी न मैं तू और तेरा अरविन्द भैया, " दुलराते हुए गितवा ने छुटकी को भींच लिया और उसके बस आते हुए टिकोरे कस के दबा दिए।

" नहीं नहीं बताइये न, आप मेरी बहन हो, बहन से क्या छुपाना,... "

गितवा जिस तरह से मुस्करा रही थी, छुटकी समझ रही थी कुछ तो है बात और गितवा ने बताना शुरू कर दिया,

" मेरी स्कूल वाली सहेलियां, ... वो तो बहुत लिबराती थीं की भैया को एक बार, बस एक बाद दिलवा दूँ, अच्छा कुछ तो नहीं पकड़वा दूँ उनके हाथ में,... लेकिन उन सबों के साथ नहीं, हाँ तभी मेरी क्लास वाली नदीदी, मेरी बिल से निकाल के ऊँगली डाल के भैया की मलाई रोज चखती थीं और मैं भी मना नहीं करती थी, मैं भी तो चाहती थी जलें स्साली सब कमीनी, सब जब अपने भैया बहनोई नाते रिश्तेदारों से चुदवा के आती थीं तो रोज मुझे जलाती थीं, चिढ़ाती थीं,... और अब मैं बिना नागा तो सालियों की झांटे सुलगती थीं ,... "

" तो किसके साथ " एक अच्छे एंकर की तरह छुट्टी बात को सीधे पटरी पर ले आती थी,



" मेरी सबसे पक्की सहेली, रोपनी के बाद फुलवा की छुटकी बहिनिया, चमेलिया बन गयी थी, उमर में मुझसे थोड़ी छोटी क्या समौरिया समझो, और मस्ती में दो हाथ आगे,... और फुलवा की ननद भी, मैं और चमेलिया मिल के उसे चिढ़ाते थे, छेड़ते थे आखिर हम दोनों की भी ननद ही लगती थी उमर में भी हमारी जैसी,... चमेलिया ने तो उसे चमरौटी, भरौटी अहिरौटी, पठान टोला सब घुमा दिया था, कहीं के लौंडे बचे नहीं थे , जो फुलवा की ननद पे चढ़े ना हों। कोई दिन नागा नहीं जाता था जब चमलिया उस के ऊपर चार पांच लौंडो को न चढ़ाये।

चमेलिया मुझे भी बाहर एक एक जगह दिखाती थी जहाँ उस के टोले की लड़कियां, खाली गन्ने के खेत नहीं, बँसवाड़ी के पीछे, नदी के किनारे, सरपत के जुटे के पीछे, बीसों जगह तो गाँव के आसपास ही और फिर मैं अरविन्द भैया के साथ,...

लेकिन छुटकी तो मामला अरविन्द भैया पे लाना चाहती थी उसने फिर स्टोरी को वापस ट्रैक पे किया

" दी मेरा मतलब,... तो क्या आपने कभी चमेलिया के साथ और अरविन्द भैया के साथ गन्ने के खेत या अमराई में मस्ती,... "



" तू स्साली न पिटेगी मेरे हाथ से बल्कि चुदेगी अपने अरविन्द भैया के साथ गन्ने के खेत में अमराई में , ... तुझे सब मालूम करने का शौक है न,... " गितवा झूठ मूठ का गुस्सा करते बोली , फिर हंस के उसे चूम के बोली

" एक बार, फुलवा की ननदिया के साथ मैं और चमेलिया मस्ती कर रही थीं उसी अमराई में जिसमे भैया ने मुझे पेड़ के साथ खड़ा कर के पेला था,... खूब गझिन हम लोगों का बड़ा सा बाग़ डेढ़ दो सौ आम के पेड़ ,... अगले दिन भिन्सारे फुलवा की ननदिया को अपने मायके वापस जाना था, हम दोनों, मैं और चमेलिया उसे छेड़ रहे। आज स्कूल की भी मेरी छुट्टी थी, माँ भी बुआ के यहाँ गयी थीं देर रात को ही आतीं, छुट्टी ही छुट्टी।

" स्साली बिना गाँड़ मरवाये जा रही है ये बड़ी बेईमानी है " चमेलिया ने फुलवा की ननद को गुदगुदाते हुए छेड़ा

और फिर मैंने जोड़ा ' बुर तो हमरे भैया से तो फड़वायी हो गाँड़ का अपने भैया के लिए बचा के ले जारही हो "


छुटकी से नहीं रहा गया वो उछल गयी

" सच में ये तो बहुत नाइंसाफी है क्या अरविन्द भैया ने उसकी गाँड़ नहीं मारी थी , आप कह रही थी चुदवाती तो भैया से खूब चूतड़ मटका मटका के तो पिछवाड़े के मामले "

एक बार फिर फिर उसके रसीले होंठों को चूम के गितवा बोली,

" एक बात समझ ले की ननद का मतलब छिनार, और फुलवा की ननद तो हम सब की पूरे गाँव की लड़कियों की गाँव की लड़कियों की ननद, छिनार नहीं जब्बर छिनार। स्साली नौटंकी करती थी, लेकिन गलती वो स्साले तेरे भाई की अरविन्द की भी कम नहीं। लंड उसका जितना सख्त है दिल उतना मुलायम है और बहनचोद बुद्धू भी बहुत है कोई भी लड़की उसे चरा देगी। मैंने भैया से पूछा भी कई बार , कहा भी तो वो बोला की अरे वो बहुत चिल्लाती है , नौ नौ टसुए बहाने लगती है। जैसे ही मैं पिछवाड़े छुआता भी भी हूँ एकदम उछल जाती है, और टाइट है भी उसकी बहुत। अब वहां खेत में कहाँ तेल "

छुटकी वैसे तो बड़ी बहन की बात कभी नहीं काटती थी लेकिन अब उससे नहीं रहा गया, उफनती हुयी बोली,

" स्साली छिनार, अरे पटक के सूखे पेलना चाहिए था,... "

" यही तो , मैं भी भैया से बार बार कहती थी लेकिन वो सुने तब ना गीता ने अपना दुख सुनाया।

" तो क्या फुलवा की ननद अपना पिछवाड़ा कोरा लेकर चली गयी। " छुटकी उदास हो के बोली।

" अरे नहीं यार तेरी बड़ी बहन किस लिए हैं हम लड़कियों की नाक कट जाती अगर उसकी फटती नहीं और फिर मेरी पक्की सहेली चमेलिया थी न ,... लेकिन तू अब बीच में मत बोलना , वरना नहीं सुनाऊँगी अमराई का किस्सा। "

छुटकी ने दोनों कान पकडे और होंठ पे ऊँगली लगा के चुप रहने का इशारा किया और गितवा ने अमराई का किस्सा आगे बढ़ाया।
" एक बात समझ ले की ननद का मतलब छिनार, और फुलवा की ननद तो हम सब की पूरे गाँव की लड़कियों की गाँव की लड़कियों की ननद, छिनार नहीं जब्बर छिनार। स्साली नौटंकी करती थी, लेकिन गलती वो स्साले तेरे भाई की अरविन्द की भी कम नहीं। लंड उसका जितना सख्त है दिल उतना मुलायम है और बहनचोद बुद्धू भी बहुत है कोई भी लड़की उसे चरा देगी। मैंने भैया से पूछा भी कई बार , कहा भी तो वो बोला की अरे वो बहुत चिल्लाती है , नौ नौ टसुए बहाने लगती है। जैसे ही मैं पिछवाड़े छुआता भी भी हूँ एकदम उछल जाती है, और टाइट है भी उसकी बहुत। अब वहां खेत में कहाँ तेल "

क्यों बोरोलीन तो था हीं...
और बिना चिल्लाए... टसुए बहाए आज तक किसी की गांड़ मारी गई है...
 
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