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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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और लंड मलाई से सराबोर...aapke munh men ghee shakaar
प्लान को एक्जीक्यूट करके साकार करने का समय ननद भौजाई की इसी रेसलिंग में...vaise load hongi ya nahi pata nahi lekin thoda bahoot plan maine part 21 men bana chui thi
भाग २१
छुटकी पर चढ़ाई -page 99
jas ka tas quote kar rahi hun
मैंने एक पल ननद जी की और उनके भैया की ओर देखा, और मुझे लगा की अगर आज सबके सामने , अपनी माँ के सामने ये खुल के मेरी बहन की चुदाई करेंगे तो इनकी जो भी झिझक है और ननद जी की भी वो सब निकल जायेगी, फिर एक दो दिन में मैं इनकी बहन के ऊपर इसी घर में अपने सामने चढ़ाउंगी, तब आएगा असली मज़ा. जो मजा ननद के ऊपर भौजाई को अपने सामने ननद के सगे भाई को चढ़ाने में आता है न उसके आगे कोई भी मजा फेल है।
Mission already planned and added बाई कोमल रानी but request for execution...Wahi mei bhi bol raha hu , planning aapki hi hai hum bas ek aur mission add karwa rahe hain![]()
नीचे मिट्टी, ऊपर आसमान,भाग ५२
गन्ने के खेत में भैया के संग
पर छुटकी तो अभी फास्ट फारवर्ड के मूड में थी उसने एक्सीलेटर पर दबाया, गीता को बाग़ से बाहर निकालने के लिए, और गीता ने अगले दिनों की बात बताई,...
गीता की माँ, वो तो गीता के भाई अरविन्द से भी एक हाथ आगे बढ़ की गीता के पीछे,...
होता ये था की गीता के स्कूल की तो दो ढाई बजे छुट्टी हो जाती थी , दस मिनट में वो घर,भाई उसका अरविन्द भी दोपहर में बाहर का काम कामधाम करके वापस,...
लेकिन दोपहर के खाने के बाद ही माँ की गप्प गोष्ठी शुरू होती थी, सब पडोसिने, कभी और कोई नहीं तो ग्वालिन भौजी माँ की तेल मालिश करने या कभी ब्लाक से कोई आ गया, कोई मिलने वाले,... तो वो भी चाहती थीं की उस समय दोनों भाई बहन बाहर रहें,..
फिर अब धीरे धीरे जो इत्ते सालो से वो घर की खेत की बाग बगीचे की जिम्मेदारी अकेले देख रही थीं अब धीरे धीरे पूरी तरीके से अपने बेटे के कंधे पर डाल रही थीं,... लेकिन साथ साथ वो बेटी को भी इस बात में शामिल करना चाहती थीं, आखिर इतने दिनों से वो सब काम देख रही थी तो गीता को भी अंदाज तो होना चाहिए,...भाई का हाथ बटाये साथ दे, और उन से बढ़ के गाँव वालियों को काम करने वालियों को भी मालूम हो की ये खाली स्कूल और घर वाली नहीं है, तो उसे भी वो हाँक देती थीं भाई के साथ, बाहर,...
गीता की भी मन तो करता ही था,
रात भर तो माँ और भैया मिल के उस की चटनी बनाते ही थे,...
लेकिन इस उमर में मन कहाँ भरता है,... उस की बाकी सहेलियां किसी के दो तीन से कम आशिक नहीं थे, कई तो शाम को किसी से सिवान में मिलती थीं तो स्कूल से लौटते हुए किसी और के सामने गन्ने के खेत में स्कर्ट पसारती थीं,... दिन भर क्लास में पढाई से ज्यादा तो कल किस ने किस से,... बस यही बातें,... और सुन सुन के जब लौटती गीता तो इतनी गर्मायी रहती की मन करता की कब भैया से अकेले में मिल के,.. बस अरविन्द भैया कब उसकी चोदे,...
और सिर्फ सहेलियां ही नहीं, गाँव की भौजाइयां, काम करने वालियां, सब,..अब सब को तो मालूम ही था की वो अरविंदवा से चुदती है तो एकदम खुल के चिढ़ाती थीं,...
और उसका भाई भी, एक बार बहन की चूत का स्वाद लगने के बाद कौन भाई,... और अरविन्द तो अपनी चाची का ट्रेंड किया,...
तो वो भी अक्सर चक्कर काटता रहता, .... जहाँ जहाँ गीता जाती,... और स्कूल भी गाँव का, हफ्ते में दो तीन दिन तो कभी छुट्टी तो कभी जल्दी छुट्टी,..
और सावन का महीना, तो लड़कियां सब ( जिनको यारों के पास नहीं जाना होता था ) झरर मार के झूले पे भौजाइयों के साथ झूला झूलने, कजरी गाने,... और झूले से ज्यादा मजा झूले पे होने वाली छेड़छाड़ से, और अब तो गीता भी गाँव में साड़ी ही पहन के निकलती थी, बस झूला शुरू होते ही छेड़छाड़ शुरू, उसके पीछे बैठी कोई भौजाई, साड़ी उलट देती थी और सोन चिरैया में ऊँगली डाल के पूछती,
" अरविंदवा के मलाई हो न "
और बुर में ऊँगली शुरू, कोई न कोई भौजी चोली में बंद जोबन भी खोल देती,... और उसके भाई का नाम ले ले के,
अरे देवर अरविन्द ऐसे दबाते हैं ना,... "
भाई का नाम सुन के और उसकी चूत गरमा जाती थी, ... एक तो रोपनी के दिन उसने खुद कबूल कर लिया था
फिर अमराई में तो चुदते ही,... दो लड़कियों ने साफ़ साफ़ देखा था ,
लेकिन गीता को कुछ भी बुरा नहीं लगता था बल्कि वो इसी छेड़छाड़ का इन्तजार करती थी पर सबसे मजा आता था कजरी ख़त्म होते जब वह भौजाइयों सहेलियों के साथ घर की ओर लौटती तो आस पास उसका भाई अरविन्द बाइक पे चक्कर काटता रहा, और उसे खींच के पीछे बैठा लेता, सब सहेलियां अरविन्द को खुद चिढ़ातीं,
" अरे कभी हमारे भी साथ,... "
लेकिन छुटकी चाहती थी सीधे मुद्दे पर कब खुले आसमान के नीचे गीता अपने भाई अरविन्द से कब कहाँ कैसे चुदी।
" गन्ने के खेत में, आम की बाग़ में चोदने के दो दिन बाद ही अरविन्द भैया ने गन्ने के खेत में नंबर लगा दिया , दोपहर में " गीता ने कबूला
अब छुटकी हाल खुलासा चाहती थी और गीता ने सब किस्सा गन्ने के खेत का बताया।
गितवा के क्लास वाली शायद ही कोई बची हो जिसने गन्ने के खेत में मोटा गन्ना न खाया हो, और वो सब ऐसे ऐसे किस्से गन्ने के खेत के सुनाती थी की गितवा का भी मन बौरा जाता था. कैसे सरसराते गन्ने के खेतों के बीच में हाथ पकड़ के खींच के ले गया,इतने ऊँचे गन्ने की दो हाथ दूर भी कोई हो पता न चले की कोई लड़की चोदी जा रही है, नीचे मिट्टी, ऊपर आसमान, ... चूतड़ से रगड़ रगड़ के मिटटी का ढेला चूर चूर हो जाता है,...
गीता का बहुत मन करता था किसी दिन अरविन्द के साथ, गन्ने के खेत में, दिन दहाड़े,...
वैसे तो पहले भी फुलवा के साथ...भैया के मोटे गन्ने का मज़ा
बहुत मन करता था किसी दिन अरविन्द के साथ, गन्ने के खेत में, दिन दहाड़े,...
लेकिन सब ज्यादा किस्से सुनाती थीं चमेलिया और उसके टोले वाली वाली।
रोपनी के बाद से चमेलिया से गितवा की पक्की दोस्ती हो गयी थी, आखिर दोनों की झिल्ली अरविन्द ने फाड़ी थी,.. और उस टोली में फुलवा की ननदिया,... कुछ चमेलिया की साथ की,... और वो सब तो ऐसे ऐसे किस्से रोज सुनाती थीं की गीता की बुर लासा हो जाती थी कई तो इसमें दिन में दो तीन बार गन्ने के खेत में टांग फैला के, दिन में खेत काम करने जातीं तो कोई बबउआने वाला गन्ने के खेत में खींच लेता,
और शाम को किसी यार से मिलना होता तो, वो भी गन्ने के खेत में बुलाता और फिर दो बार से कम खूब रगड़ रगड़ के,...
और वो सब गीता को खूब उकसाती भी थीं,..
अरे जब तक दिन दहाड़े यार से गन्ने के खेत में न चुदवाया,... फिर तोहार तो यार भी है सगा भाई भी है तू तो एकदमे,...
और ये सब सुन के गीता की बिल में ऐसे मोटे मोटे चींटे काटते,... और जब से उसके भाई अरविन्द ने उसे आम की बाग़ में जबरदस्त खड़े खड़े चोदा था, तब से तो और,...
बस दो दिन बाद ही मौका मिल गया। माँ ने ही भेजा उसे,... गन्ने के खेत में और दस बार निहोरा भी किया, जल्दी कोई नहीं है लौटने की, आज बहुत दिन बाद थोड़ी धूप निकली है,... दो ढाई घंटे के बाद ही आना, थोड़ा घूम टहल के,... मैं भी तोहरे ग्वालिन भौजी के साथ बाजार जा रही हूँ, ढाई घंटे के बाद ही लौटूंगी।
बात ये थी की भाई उसका अरविन्द, सुबह मुंह अँधेरे निकल गया था खेत में कुछ काम था,... बिना कुछ खाये और तिझहरिया को ही लौटता,
तो माँ ने अरविन्द के के लिए ही खाना भेजा था, वैसे भी गाँव में काम के समय औरतें काम करने वालों के लिए दोपहर में कुछ कुछ ले कर जाती थीं। माँ ने गीता से दस बार कहा
तेरा भाई पागल है, उसे खाना देकर लौट आएगी तो वो काम के चक्कर में खाना भूल जाएगा और शाम को बर्तन लाना भी,... तो तू उसे अपने सामने, अपने हाथ से खिलाना,... और जब खा ले तो उसके बाद ही,... वैसे भी ढाई घंटे तक तो मैं भी नहीं हूँ।
बस गीता चल दी.
और अरविन्द वहीँ गन्ने के खेत में सामने ही मिल गया, धान के खेत से सटा जहाँ गीता दो दिन रोपनी के लिए गयी थी उसी खेत के पास, वही गन्ने का खेत जहाँ उसने फुलवा की ननदिया की फाड़ी थी,...
वही कुछ काम करने वालों को समझा रहा था,... और जो वो खेत में आता तो बस एक बनियान और छोटा सा लोवर पहन के, बस वही पहने,... सारी अखाड़े की कसरती मसल्स साफ़ साफ़ दिख रही थीं और गीता तो अपने मन की आँखों से लोवर के अंदर की मसल्स भी देख रही थी , पनिया रही थी.
आज गीता ने साड़ी एकदम कूल्हे के नीचे से और बहुत कस कस के बाँधी थी, जिससे उसके मटकते छोटे छोटे चूतड़ एकदम साफ़ दिख रहे थे, चोली तो दर्जिन भौजी ने सब ऐसी सिली थी की दोनों जोबना छलक के बाहर ही कूदते रहते थे, और ऊपर से गीता ने आँचल की बस एक रस्सी सी दोनों पहाड़ों के बीच , देख के ही अरविन्द की हालत खराब,... रोज ही तो अपनी बहना की चूँचियों को रगड़ता मसलता था, चूसता था, काटता था, फिर भी जब भी उन्हें चोली में बंद देखता था उसका हाथ खुजलाने लगता था,...
और आज तो रोज से भी ज्यादा मन कर रहा था बहन को पेलने का,...
ऊपर से गीता ने साफ़ साफ बोल दिया, ' मा ने बोला है की अपने सामने खिला के बर्तन ले आना और दो घंटे से पहले नहीं, वो भौजी के साथ बजार गयी हैं। "
बस, अरविन्द ने गीता का हाथ पकड़ा और बोला, चलो खेत में बैठ के खाते हैं और बहन का हाथ पकड़ के गन्ने के ऊँचे से खेत में धंस गया. गन्ने इतने ऊँचे की उनमें हाथी छुप जाए,...
अरविन्द ने अपनी बहन गीता का हाथ कस के पकड़ रखा था, और उसके हाथ को छूते ही गीता के बदन में एक सरसराहट सी दौड़ गयी, और बीस पच्चीस कदम भी वो अंदर नहीं घुसी होगी, उसने पीछे मुड़ के देखा,... और जहाँ से वो और अरविन्द अंदर घुसे थे, .. कुछ भी नहीं दिख रहा था सिर्फ गन्ने ऊँचे ऊँचे, अगल बगल भी कुछ नहीं, उनकी पत्तियां उसकी देह को सहरा रही थीं,रगड़ रही थी,
उसको चमेलिया की बात याद आ रही थी, गन्ने के खेतवा में घुसते खुदे मन करता है नाड़ा खोल दें, ढेरो किस्से जो गीता ने सुने थे अपनी सहेलियों से सब याद आ रहे थे, सोच सोच के उसकी बुर पनिया रही थी, बस,यही मन कर रहा था आज उसका भाई अरविन्द इसी खेत में उसे पटक कर चोद दे तो कल वो भी अपनी सहेलियों को किस्से सुनाएगी,...
और सौ डेढ़ सौ कदम अंदर घुसने के बाद, एक जगह दिखी जहाँ से लगता है २०-२५ गन्ने किसी ने तोड़ लिए हों,... थोड़ी सी खुली जगह, ... वहां पर गन्ने की सूखी पत्तियां, और मिट्टी,... अरविन्द कुछ सोचता, गीता ने झट पेटीकोट में खोंसी अपनी साड़ी खींच के उतार दी और वहीँ मिट्टी पे बिछाती हुयी बोली,
"ऐसे भैया बैठ और चल पहले चुप चाप खाना खा, आज मैंने बनाया है जैसा भी हो चुप चाप खा लेना और तारीफ़ भी करना। "
गीता अपनी सहेली की भौजी की बात कभी नहीं भूलती थी की पहल हमेशा लड़कियों को ही करनी पड़ती है वरना लड़के तो यही सोचते रहते हैं की बात की शुरआत कैसे करें,... और साड़ी इसलिए उसने खुद उतार दी।
पर उसका भाई अरविन्द भी कम खिलाड़ी नहीं था और उस दिन आम की बाग़ में चोदने में के बाद उस की धड़क खुल गयी थी, और इस गन्ने के खेत में उसने गाँव की दर्जनों लड़कियों की चोद के झिल्ली फाड़ी थी,...
उसने खींच के अपनी बहन को गोद में बिठा लिया। और गीता के नरम नरम चूतड़ों का टच पा के उसका खूंटा फनफनाने लगा,... और गीता भी कम बदमाश नहीं थी, वो अपने चूतड़ रगड़ रगड़ के और अरविन्द के मूसल को जगा रही थी। जैसे कुछ वो शरारत कर ही नहीं रही हो इस तरह से उसने खाने का डब्बा खोला और अपने हाथ से कौर बना के भाई के मुंह में और बोली,
" चुपचाप मेरे हाथ से खा लो, अपने हाथ से खा के हाथ गन्दा करोगे और फिर उसी हाथ से मुझे यहाँ वहां छुओगे। "
और जब गितवा ने खुद ही कह दिया, 'यहाँ वहां छुओगे' तो अरविन्द काहे रुकता।
गीता कभी अपने हाथ से कभी होंठों से उसे कौर खिलाती और अरविन्द के दोनों हाथ पहले तो चोली के ऊपर से बहन के जोबन का हाल चाल लेते रहते, फिर चोली उतर के जमीन पर बिखरी पसरी साड़ी के पास पहुंच गयी,... और बहन के दोनों उभार भाई के हाथों में,... क्या कस के रगड़ता मसलता था वो, कोई भी औरत पानी फेंक देती और गीता तो,...
उसकी भी बुर पनिया रही थी लेकिन वो अपने ढंग से बदला ले रही थी, चूतड़ों से कस कस के भाई के पगलाते मूसल को रगड़ रगड़ के,...
और भाई ने अगर उसकी चोली उतारी तो,... सावन से भादों दूबर,... उसने भी अरविन्द की बनियान उतार के फेंक दी, और अब भाई बहन दोनों टॉपलेस।
और अपनी छुटकी बहिनिया के छोटे जोबना देख के अरविन्द तो बौरा गया,... खाना तो कब का ख़त्म हो गया था अब तो ये रसमलाई खानी थी, और अरविन्द से ज्यादा उसका मोटा मूसल पागल हो गया, गन्ने के खेत में कुंवारी चढ़ती जवानी वाली बहन की कच्ची अमिया देख के कौन भाई काबू में रहता और अरविन्द तो अब तक पंचायती सांड़ हो चुका था.
बस कभी उसके दोनों हाथ कस कस के बहन की छोटी छोटी चूँचियों को रगड़ते मसलते तो कभी उन्हें वो पागल हो के काटता चूसता।
बहन, गीता अरविन्द से भी समझदार थी, तभी तो न उसने सिर्फ अपने हाथ और होंठ से खाना खिलाया उसे बल्कि साफ़ साफ़ बता भी दिया।
" अपने हाथ से खिला रही हूँ , इसलिए की तुम पहले तो अपना हाथ गन्दा करोगे, फिर उसी हाथ से जगह जगह छुओगे " और उन्ही साफ़ हाथों से उसका भइआ अरविन्द अपनी बहन पे हाथ साफ़ कर रहा था.
जोबन पे हाथ लगने से तो कोई भी लड़की पिघल जाती, और अगर भाई का हाथ बहन के जोबन पे पड़ जाए तो वो खुद नाड़ा खोल देगी, ... और वही हुआ, गीता ने न सिर्फ अपने पेटीकोट का नाड़ा खोला बल्कि भाई का भी लोवर सरका दिया और जिस मस्ती से भाई उसके जोबन को पकड़ रहा था उसी तरह बहन ने भैया के एकम तन्नाए खूंटे को पकड़ लिया और प्यार से दबाने मसलने लगी, कभी अंगूठे से सुपाड़े के बेस पे रगड़ती तो कभी हलके हलके मुठियाती,...
और अब भैया से नहीं रहा गया, इस गन्ने के खेत में उसने कितनी कुंवारियों की झिल्ली फाड़ी थी, हर दूसरे तीसरे किसी न की किसी को अपना मोटा गन्ना खिलाता था, लेकिन उससे अब रहा नहीं जा रहा था , पहली बार उसकी सगी बहन उसके नीचे,...
गप्प से उसने पहले एक ऊँगली बहन की बुर में पेल दी,... बुर एकदम मस्ती से लसलसा रही थी,... वो समझ गया जमीन जुताई के लिए तैयार है, इतनी नमी आ गयी है इसमें,... फिर भी घचाघच अरविन्द बहन की कसी बुर में ऊँगली पेल रहा था, थोड़ी देर में मस्ती से बहन पागल हो गयी खुद ही लंड के लिए चूतड़ उछालने लगी,
बहन की बुर भाई का लंड मांग रही थी, सिसक रही थी तड़प रही थी,...
और अरविन्द ने अबकी दूसरी ऊँगली भी पेल दी,
और गीता चीख उठी, उईईईईई ओह्ह्ह्ह नहीं,... कुछ मजे से ज्यादा दर्द से,... महीने भर से उसकी बुर भाई का लंड खा रही थी लेकिन तब भी एक दम कसी टाइट थी, लेकिन अरविन्द जानता था की उसका लंड तो इतना मोटा है, गितवा की कलाई से भी ज्यादा, चार चार बच्चों की माँ, पक्की भोंसड़ी वालियां जो सैकड़ों लंड खा चुकी थी होती हैं वो भी पसीना छोड़ देती हैं और ये बेचारी तो अभी जवानी की चौखट डांक ही रही है,... इसलिए पूरी दो ऊँगली अंदर तक और देर तक गोल गोल,...
उसकी बहन की बुर अब एकदम गीली हो गयी थी, बुरी तरह पनिया रही थी, बीच बीच में बुर में घुसी ऊँगली की नक्लस से वो प्रेम गली के अंदर की नर्व्स को रगड़ के छेड़ छेड़ के बहन को पागल कर रहा था,...
आज गीता पहली बार गन्ने के खेत का मजा ले रही थी,... बस उसका यही मन कर रहा था की बस अब भैया पेल दे, टांग उठा के,
और जब एक बार हल का फाल घुस गया ..घुस गया, धंस गया अंड़स गया --- गन्ने के खेत में
उसकी बहन की बुर अब एकदम गीली हो गयी थी, बुरी तरह पनिया रही थी, बीच बीच में बुर में घुसी ऊँगली की नक्लस से वो प्रेम गली के अंदर की नर्व्स को रगड़ के छेड़ छेड़ के बहन को पागल कर रहा था,...
आज गीता पहली बार गन्ने के खेत का मजा ले रही थी,... बस उसका यही मन कर रहा था की बस अब भैया पेल दे, टांग उठा के,
बहन के मन की बात अगर भाई नहीं समझेगा तो कौन समझेगा, वो भी एकलौती छोटी सगी बहन, कच्ची कली,.... अब तक उसने न जाने कितनी कच्ची कलियों को, लड़कियों को, भौजाइयों को चोदा होगा, लेकिन अपनी बहिनिया गितवा को देख के वो एकदम पागल हो जाता था, मन करता था बस पकड़ के चाप दे ,...
तो बस, लेकिन गीता ने खुद ही अपनी गोरी गोरी लम्बी लम्बी टाँगे उठा के अपने भैया के कंधे पर रख दी, अपनी केले के तने की तरह की चिकनी, मांसल जाँघे फैला दी,
जमीन खुद हल के फाल का इन्तजार कर रही थी,... बेताबी से.
लेकिन अरविंद ने गीता की कसी चूत में लंड नहीं पेला, वो अपने लोहे की रॉड से कड़े लंड को अपने हाथ में पकड़ के, खुले सुपाड़े से थोड़ी देर तक बहन की फांकों को रगड़ता रहा , तो कभी मजे में खुल गयी, मटर के दाने ऐसी क्लिट पे रगड़ने लगा,... और क्लिट पे सुपाड़े की रगड़,... कित्ती छटी छिनार पागल हो जाती थीं, ये तो अभी नई बछिया थी,
लेकिन बहन को चोदने का मजा तो उसे पागल कर के ही था,... और अरविन्द ने गीता की लसलसाती पनियाई बुर की फांको को फैला के अपना पहाड़ी आलू ऐसा मोटा सुपाड़ा फंसा दिया,
गीता की चूत परपरा रही थी, फटी जा रही थी लेकिन वो सोच रही थी, भैया अब पेलेगा, अब पेलेगा, ... लेकिन उसने नहीं पेला।
उसने बहन के होंठों पर अपने होठ जमा दिए और हलके हलके चूसने लगा, और जैसे ही गीता ने मुंह खोला, उसने अपनी जीभ अपनी बहन के मुंह में ठेल दी , जैसे थोड़ी ही देर में वो अपना मोटा मूसल बहन की बिल में ठेलने वाला था,... और साथ में कस के अरविन्द ने अपने होंठों से गीता के होंठों को बंद कर दिया ,
अब उसकी चीख नहीं निकल सकती थी,...
वैसे गन्ने के खेत में लड़कियों, औरतों की चीख आम बात थी, बगल के खेत में काम करनेवालियां मुस्कराने लगती, अगल बगल देखतीं कौन इस समय नहीं नजर आ रही है,... और जब थोड़ी देर बाद वो लड़की टांग छितराये कहरती, चिलखती बाहर निकलती तो हंसी और चिढ़ाना शुरू हो जाता, मजा आया गन्ना खाने में, खाली घोंटी हो की चुसवाया भी गन्ना
पर ये उसकी बहन थी, सगी बहन, सहोदर,
और अरविन्द ने दोनों हाथों से गीता की कलाइयों को कस के पकड़ लिया, अब वो लाख चूतड़ पटके, छटक नहीं सकती थी, बिना पूरा लंड खाये,...
और बहन की बुर में फंसे सुपाड़े को पूरी ताकत से पेल दिया, फिर धक्के पर धक्के,.. दो चार धक्के में सुपाड़ा बहन की बुर में घुस गया था, और अटक गया था,... अरविन्द थोड़ी देर के लिए रुका, बहन की जाँघों को फिर फैलाया, उसकी फैली टांगों को अपने कंधे पे फिर से सेट किया,..
गीता ने कस के दोनों हाथों से गन्ने के खेत में घास पकड़ लिया, आँखे बंद कर लीं,...
धक्के, पर धक्के , अरविन्द अपनी पूरी ताकत से बहन की कलाई कस के पकड़ के पूरी ताकत से ठेल रहा था, पेल रहा था, धकेल रहा था, धक्के रुक नहीं रहे थे , रगड़ते, दरेरते, फैलाते, मोटा मूसल अंदर धंस रहा था, था भी तो था उसका बांस बित्ते भर का,
गीता कहर रही थी, तड़प रही थी, उसकी मुट्ठी में घास उखड के आ गयी,
गीता के चूतड़ के नीचे के गन्ने के खेत के बड़े बड़े ढेले, मिट्टी धूल हो गए ,
वो करवटें बदल रही थी, छटकने की कोशिश कर रही थी, किसी मर्द के नीचे आयी लड़की अगर एक बार सुपाड़ा घुस जाए तो बच पाती है,... क्या तो गीता कैसे अरविन्द से बच पाती,... और अरविन्द ने कस के दोनों हाथों से अपनी बहन की मुलायम कलाई जकड़ रखी थी, लंड अंदर घुसा था,
जैसे सांड़ दोनों अगले पैर से बछिया को दबोच लेता था, बस उसी तरह,
दस बीस धक्के और अबकी जो सुपाड़े तक निकाल के अरविन्द ने पेला पूरी ताकत से तो लंड पूरा अंदर और सुपाड़े ने बहन की बच्चेदानी पे वो जबरदस्त ठोकर मारी की गीता की देह तूफ़ान में पत्ते की तरह कांपने लगी, वो गहरी गहरी साँसे ले रही थी, ... जोबन दोनों पथरा गए थे,
भाई और बहन दोनों समझ रहे थे,
गीता झड़ रही थी, बार बार,...रूकती,... फिर झड़ना शुरू हो जाता,...
अरविन्द रुका हुआ था,...पर कुछ देर बाद उसने धक्के तो नहीं शुरू किये पर प्यार से दुलार से अपनी बहन के गुलाबी , गुलाब की पंखुड़ियों से होंठ हलके हलके किस करना शुरू कर दिया, भाई के हाथ बहन के उभारों को सहलाने लगे, कभी बीच बीच में वो उसके छोटे छोटे बस आ रहे निप्स भी हिला देता, पकड़ के दबा देता और चार पांच मिनट में गीता इतनी गरमा गयी की अपनी बाहों में अरविन्द को भींच के हलके से बोली,
" भैया करो न,... "
कुछ देर तक तो अरविन्द उसके निप्स चूसता रहा, फिर सर उठा के बोला,
'बोल न बहना क्या करूँ,... "
धत्त,एक पल के लिए शरमा गयी, लेकिन चूत की आग,... नहीं रहा गया तो उसकी पीठ पे हलके हलके मुक्के से मारती बोली,
" जो अभी तक कर रहे थे "
" क्या कर रहा था ?" अरविन्द ने छेड़ा, लेकिन साथ साथ बहन की बर में जड़ तक घुसे लंड के बेस से बहना की क्लिट को हलके हलके रगड़ना घिस्से मारना शुरू कर दिया, ... और थोड़ी देर में ही गीता पागल हो गयी वो समझ गयी जब तक बोलेगी नहीं भाई करेगा नहीं।
" चोद न भैया, चोद बहनचोद अपनी बहना को,... स्साले तेरी एकलौती बहन हूँ, ये मोटा घोड़े ऐसा लंड किसके लिए बचा के रखा है, पेल स्साले बहनचोद "
गीता मस्ती में पागल हो रही थी, उसे इसकी भी चिंता नहीं थी की उसकी आवाज कहीं खेत के बाहर काम करने वालियों तक न पहुंचे,...
और अब अरविन्द भी मस्ती में पागल हो रहा था कितनों को उसने चोदा था इसी गन्ने के खेत में, लेकिन सगी छोटी बहन को खुले में गन्ने के खेत में चोदने का मजा ही अलग है और अपनी बहन के मुंह से सुनने का रस भी
कचकचा के अरविन्द ने गितवा के निपल्स काटे और छेड़ा, बोल न बहिनिया जोर से खूब जोर से पूरी ताकत से जो बोल रही थी और गितवा जोर से खूब जोर से बोली, ऐसी चुदवासी हो रही थी की बस,... कुछ भी कर सकती थी भाई के मूसल के लिए, जोर से बोली, बिना इस बात की परवाह किये की बगल के खेत में काम करने वाली हैं,
" चोद न भैया, चोद बहनचोद अपनी बहना को,... स्साले पेल दे लंड अपना अरविन्द भैया चोद न पूरी ताकत से अपनी गितवा को "
जवाब में कचकचा के उसके फूले फूले गोरे गुलाबी गाल , अरविन्द ने काट लिए, बहन की टांगों को मोड़ के उसे दोहरा कर दिया, जिसे अब हर धक्का सीधे बहन की बच्चेदानी पे लगे,... लंड आधा बाहर निकाल के पूरी ताकत से पेल दिया , और बोला,
" ले भाईचोद ले, ले घोंट अपने भाई का लंड , ले आज तेरी चूत न फाड़ी तो कहना,... "
अरविन्द की ये बात सुन के गीता क्यों चुप रही थी उसको भी मज़ा आ रहा था, उसने भी नीचे से धक्के के जवाब में धक्का लगाते हुए जवाब दिया,
" तो पेल न तेरी बहन हूँ सगी, पीछे नहीं हटने वाली, चोद कस कस के," अपने छोटे छोटे उभार भाई की छाती में रगड़ते गीता ने और उकसाया।
और अबकी जवाब में भाई ने जो धक्का मारा तो सीधे बहन की बच्चेदानी में, वो हिल गयी, लेकिन अभी अभी झड़ी थी उसे थोड़ा टाइम तो लगना था।
और उसकी चूँचियो को कस कस रगड़ते मसलते अरविंद के मन की बात मुंह पे आ गयी,...
" जो मज़ा स्साली बहन चोदने में वो किसी और मैं नहीं,... "
गीता खुश हो गयी और भाई को नीचे से चूमते बोली,...
" भैया, तू स्साला समझता तो है, लेकिन देर से,... मैं तो साल भर से तैयार थी, लेकिन तू ही,... "
पर उसकी बात आगे की बात मुंह की मुंह में रह गयी , भाई ने चोदने की रफ़्तार बढ़ा दी थी और धक्कों की ताकत भी। जो ताकत वो अच्छी तरह चुदी चुदाइ खूब खुली, फैली भोंसड़ी वालियों के साथ करता था वो अब मारे जोश के अपनी छोटी टीनेजर बहन के साथ गन्ने के खेत में कर रहा था, धक्कों के जोर से गीता के नीचे की फैली साड़ी तो कब की सिकुड़ मुकुड़ गयी थी और अब वो सीधे मट्टी पर लेटी, पड़ी थी , भाई के धक्कों से उसके चूतड़ों से रगड़ रगड़ कर ढेले धूल हो रहे थे,... पर गीता को भी फरक नहीं पड़ रहा था और वो भाई के साथ गन्ने के खेत में चुदाई का मजा ले रही थी। "
धक्के मारते हुए अरविन्द ने उसकी बात का जवाब दिया,... " स्साली देर से ही सही चल अब सूद के साथ उस देरी को चुकता कर दूंगा , किसी दिन बचेगी नहीं तू मेरे लंड के धक्के से,... "
खिलखिलाते हुए नीचे से धक्के लगाती गीता बोली, " भैया बचना कौन चाहती है , और तेरे बस में है क्या नागा करना, आएगा तो घर में ही न मैं खुद न तुझे चढ़ के चोद दूंगी,... "
वैसे तो अरविन्द को आसन बदल बदल के चोदने में मजा आता था लेकिन आज पहली बार बहन के साथ गन्ने के खेत में तो वो जोश से पागल हो गया था और बस बहन को दुहरा कर के , खेत में लिटा के हचक हचक के पूरी ताकत से,...
गीता चीख रही थी , सिसक रही थी अपने नाख़ून भाई की पीठ में गड़ा रही थी और,...
आधे घंटे बाद जब गीता झड़ी तो उसके अंदर उसका भाई भी, साथ साथ,... देर तक दोनों चिपके रहे और जब झड़ना रुका भी तो भी गीता ने अरविन्द को अपने ऊपर से उठने नहीं दिया, न ही बाहर निकालने दिया, बूँद बूँद करके मलाई बाहर रिस रही थी ,
"कहीं खेत में भहराय गयी थी का जउन इतना माटी,... " गीता की साड़ी में चूतड़ों पर लगी मिट्टी झाड़ते वो बोलीं और लगे हाथ पिछवाड़े की दरार में एक ऊँगली कस के घुसेड़ते उसके कान में बोलीं,अरविन्द भैया के साथ
आधे घंटे बाद जब गीता झड़ी तो उसके अंदर उसका भाई भी, साथ साथ,... देर तक दोनों चिपके रहे और जब झड़ना रुका भी तो भी गीता ने अरविन्द को अपने ऊपर से उठने नहीं दिया, न ही बाहर निकालने दिया, बूँद बूँद करके मलाई बाहर रिस रही थी ,
और जब दोनों अलग भी हुए तो अरविंद ने गीता को अपनी गोद में बैठा लिया, और कुछ देर तक तो दोनों बतियाते रहे फिर चुम्मा चाटी और बहन चूतड़ों से दब दब के खूंटा फिर खड़ा हो गया था , ... और बैठे बैठे ही थोड़ा सा उचका के अपने मोटे खूंटे पे बिठा लिया , बिल में मलाई भरी थी लबालब, तो बस थोड़े ही जोर से मूसल अंदर, कुछ देर तक तो ऐसे ही
लेकिन गन्ने के खेत में वो भी सगी बहन हो तो कौन एक बार छोड़ देगा, ... तो अरविन्द ने गीता को खेत में लिटा के फिर दुबारा पहले से भी कस कस के,...
जब ढाई घंटे बाद गीता खेत से निकली तो दो बार चुदने के बाद चला नहीं जा रहा था , पीठ में दर्द हो रहा था हल्का हलका , लेकिन वही दर्द जो हर लड़की चाहती है, और हो,.. और हो,...
घर पहुंची तो बाहर ग्वालिन भाभी मिलीं, उनकी तेज आँख ने पहचान तो लिया ये खेत जुतवा के आ रही है लेकिन भौजी कौन जो ननद को न छेड़े,...
"कहीं खेत में भहराय गयी थी का जउन इतना माटी,... " गीता की साड़ी में चूतड़ों पर लगी मिट्टी झाड़ते वो बोलीं और लगे हाथ पिछवाड़े की दरार में एक ऊँगली कस के घुसेड़ते उसके कान में बोलीं,
" अकेले गिरी थीं या ऊपर कउनो और चढ़ा था,... "
गीता मुस्कराती खिलखिलाती घर में,..
गन्ने के खेत का किस्सा सुनते छुटकी भी दीदी के गाँव का हाल चाल भी समझ रही थी लेकिन गीता से वो सब हाल खुलासा पूछ लेना चाहती थी,
तो दी फिर किस और दिन अरविन्द भैया के साथ गन्ने के खेत में,
गीता फिर हंसती रही रही खिलखिलाती रही और उसकी छोटी छोटी चूँचियों को मसलती बोली,... अभी तुमको गाँव में आये २४ घण्टे भी तो नहीं हुए, दो चार दिन में सीख जाओगी, कुल राह डगर। अरे यहाँ के लौंडे, और यहाँ के खेत एक दिन भी नहीं छोड़ेंगे भौजी की बहिनी तुमको बिना खेत में घसीटे,... "
छुटकी मुस्करायी लेकिन बात खींच के फिर गीता पे ले आयी,
" दी , अपना बताओ,... फिर किसी दिन और,... "
" ये पूछो किस दिन नहीं,... अब अरविन्द को भी मजा मिल गया था तो, कभी कभी तो वो स्कूल के बाहर ही मेरे बाइक लेके खड़ा रहता और स्कूल की छुट्टी होते ही उठा लेता, और सीधे कभी खेत,कभी बाग़,... गाँव में यही तो फायदा है जगह की कोई कमी नहीं।
खेत बाग़ के अलावा नदी के किनारे जहाँ कटाव है , सरपत के जुट्टे, बांस बँसवाड़ी,... रात में तो छोड़ने का सवाल नहीं था माँ खुद उसे उकसा के , सुबह स्कूल जाने से पहले तो जरूर, ... जब सहेलियां बाहर आ जाती थीं तब,... और कुछ नहीं तो मुंह में मलाई खिला के भेजता था,... और दिन में एक दिन तो ट्यूबवेल पे , स्कूल की छुट्टी जल्दी हो गयी थी और वो स्कूल के बाहर ही, बस सीधे, ट्यूबवेल के कमरे में,... और नहाये भी हम दोनों साथ साथ ट्यूबवेल पे "
अरे ये तो पूरे बेइज्जती है..किस्सा अमराई का ---------------- फुलवा की ननदिया का
"गीता दी, आपने कभी खेत में अमराई में या कहीं और खुले में, अपनी किसी सहेली के साथ, अरविन्द भैया के साथ मस्ती की है " अपनी बड़ी बड़ी गोल गोल आँखे नचा के छुटकी ने गितवा से पूछा।
" तू न बड़ी बदमाश है, चल तेरे साथ करुँगी न मैं तू और तेरा अरविन्द भैया, " दुलराते हुए गितवा ने छुटकी को भींच लिया और उसके बस आते हुए टिकोरे कस के दबा दिए।
" नहीं नहीं बताइये न, आप मेरी बहन हो, बहन से क्या छुपाना,... "
गितवा जिस तरह से मुस्करा रही थी, छुटकी समझ रही थी कुछ तो है बात और गितवा ने बताना शुरू कर दिया,
" मेरी स्कूल वाली सहेलियां, ... वो तो बहुत लिबराती थीं की भैया को एक बार, बस एक बाद दिलवा दूँ, अच्छा कुछ तो नहीं पकड़वा दूँ उनके हाथ में,... लेकिन उन सबों के साथ नहीं, हाँ तभी मेरी क्लास वाली नदीदी, मेरी बिल से निकाल के ऊँगली डाल के भैया की मलाई रोज चखती थीं और मैं भी मना नहीं करती थी, मैं भी तो चाहती थी जलें स्साली सब कमीनी, सब जब अपने भैया बहनोई नाते रिश्तेदारों से चुदवा के आती थीं तो रोज मुझे जलाती थीं, चिढ़ाती थीं,... और अब मैं बिना नागा तो सालियों की झांटे सुलगती थीं ,... "
" तो किसके साथ " एक अच्छे एंकर की तरह छुट्टी बात को सीधे पटरी पर ले आती थी,
" मेरी सबसे पक्की सहेली, रोपनी के बाद फुलवा की छुटकी बहिनिया, चमेलिया बन गयी थी, उमर में मुझसे थोड़ी छोटी क्या समौरिया समझो, और मस्ती में दो हाथ आगे,... और फुलवा की ननद भी, मैं और चमेलिया मिल के उसे चिढ़ाते थे, छेड़ते थे आखिर हम दोनों की भी ननद ही लगती थी उमर में भी हमारी जैसी,... चमेलिया ने तो उसे चमरौटी, भरौटी अहिरौटी, पठान टोला सब घुमा दिया था, कहीं के लौंडे बचे नहीं थे , जो फुलवा की ननद पे चढ़े ना हों। कोई दिन नागा नहीं जाता था जब चमलिया उस के ऊपर चार पांच लौंडो को न चढ़ाये।
चमेलिया मुझे भी बाहर एक एक जगह दिखाती थी जहाँ उस के टोले की लड़कियां, खाली गन्ने के खेत नहीं, बँसवाड़ी के पीछे, नदी के किनारे, सरपत के जुटे के पीछे, बीसों जगह तो गाँव के आसपास ही और फिर मैं अरविन्द भैया के साथ,...
लेकिन छुटकी तो मामला अरविन्द भैया पे लाना चाहती थी उसने फिर स्टोरी को वापस ट्रैक पे किया
" दी मेरा मतलब,... तो क्या आपने कभी चमेलिया के साथ और अरविन्द भैया के साथ गन्ने के खेत या अमराई में मस्ती,... "
" तू स्साली न पिटेगी मेरे हाथ से बल्कि चुदेगी अपने अरविन्द भैया के साथ गन्ने के खेत में अमराई में , ... तुझे सब मालूम करने का शौक है न,... " गितवा झूठ मूठ का गुस्सा करते बोली , फिर हंस के उसे चूम के बोली
" एक बार, फुलवा की ननदिया के साथ मैं और चमेलिया मस्ती कर रही थीं उसी अमराई में जिसमे भैया ने मुझे पेड़ के साथ खड़ा कर के पेला था,... खूब गझिन हम लोगों का बड़ा सा बाग़ डेढ़ दो सौ आम के पेड़ ,... अगले दिन भिन्सारे फुलवा की ननदिया को अपने मायके वापस जाना था, हम दोनों, मैं और चमेलिया उसे छेड़ रहे। आज स्कूल की भी मेरी छुट्टी थी, माँ भी बुआ के यहाँ गयी थीं देर रात को ही आतीं, छुट्टी ही छुट्टी।
" स्साली बिना गाँड़ मरवाये जा रही है ये बड़ी बेईमानी है " चमेलिया ने फुलवा की ननद को गुदगुदाते हुए छेड़ा
और फिर मैंने जोड़ा ' बुर तो हमरे भैया से तो फड़वायी हो गाँड़ का अपने भैया के लिए बचा के ले जारही हो "
छुटकी से नहीं रहा गया वो उछल गयी
" सच में ये तो बहुत नाइंसाफी है क्या अरविन्द भैया ने उसकी गाँड़ नहीं मारी थी , आप कह रही थी चुदवाती तो भैया से खूब चूतड़ मटका मटका के तो पिछवाड़े के मामले "
एक बार फिर फिर उसके रसीले होंठों को चूम के गितवा बोली,
" एक बात समझ ले की ननद का मतलब छिनार, और फुलवा की ननद तो हम सब की पूरे गाँव की लड़कियों की गाँव की लड़कियों की ननद, छिनार नहीं जब्बर छिनार। स्साली नौटंकी करती थी, लेकिन गलती वो स्साले तेरे भाई की अरविन्द की भी कम नहीं। लंड उसका जितना सख्त है दिल उतना मुलायम है और बहनचोद बुद्धू भी बहुत है कोई भी लड़की उसे चरा देगी। मैंने भैया से पूछा भी कई बार , कहा भी तो वो बोला की अरे वो बहुत चिल्लाती है , नौ नौ टसुए बहाने लगती है। जैसे ही मैं पिछवाड़े छुआता भी भी हूँ एकदम उछल जाती है, और टाइट है भी उसकी बहुत। अब वहां खेत में कहाँ तेल "
छुटकी वैसे तो बड़ी बहन की बात कभी नहीं काटती थी लेकिन अब उससे नहीं रहा गया, उफनती हुयी बोली,
" स्साली छिनार, अरे पटक के सूखे पेलना चाहिए था,... "
" यही तो , मैं भी भैया से बार बार कहती थी लेकिन वो सुने तब ना गीता ने अपना दुख सुनाया।
" तो क्या फुलवा की ननद अपना पिछवाड़ा कोरा लेकर चली गयी। " छुटकी उदास हो के बोली।
" अरे नहीं यार तेरी बड़ी बहन किस लिए हैं हम लड़कियों की नाक कट जाती अगर उसकी फटती नहीं और फिर मेरी पक्की सहेली चमेलिया थी न ,... लेकिन तू अब बीच में मत बोलना , वरना नहीं सुनाऊँगी अमराई का किस्सा। "
छुटकी ने दोनों कान पकडे और होंठ पे ऊँगली लगा के चुप रहने का इशारा किया और गितवा ने अमराई का किस्सा आगे बढ़ाया।
तभी गितवा की पीठ दर्द कर रही है...“
गन्ने की दो हाथ दूर भी कोई हो पता न चले की कोई लड़की चोदी जा रही है, नीचे मिट्टी, ऊपर आसमान, ... चूतड़ से रगड़ रगड़ के मिटटी का ढेला चूर चूर हो जाता है,...
“
Waaaah kya likha hai komaalrani ji bahut khoob
नहीं बहिन का धर्म...Wow gitva bhi bin bhyahe patni dharam nibha rahi he. Bhaiya ko sajan bana kar chadhava chadha rahi he. Kache tikoro ka hi nahi kaliyo ke pichhvado ka. Amezing. Maza aa gaya Komalji. Pitare me abhi bahot kisse baki he.