लेखनी सच में जादुई है.. सबका मन मोह लेती है....जबरदस्त.. आप की लेखनी का दिवाना
लेखनी सच में जादुई है.. सबका मन मोह लेती है....जबरदस्त.. आप की लेखनी का दिवाना
बहुत खूब...स्वागत है आपका बहुत बहुत धन्यवाद
और अगर आप से कुछ पोस्ट्स छूट गयी हों इस कहानी की , तो पृष्ठ १ पर पूरा इंडेक्स है पृष्ठ संख्या और हेडिंग के साथ मैं लिंक भी दे रही हूँ
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Adultery - छुटकी - होली दीदी की ससुराल में
छुटकी - होली दीदी की ससुराल मेंयह कहानी सीक्वेल है, मेरी एक छोटी सी लेकिन खूब मज़ेदार और गरमागरम होली की कहानी, मज़ा पहली होली का ससुराल में, जी अभी उसकी लिंक भी दूंगी , उसके पहले पेज को रिपोस्ट भी करुँगी, लेकिन उसके पहले इस कहानी की हलकी सी रूपरेखा, जिस कहानी से जुडी है ये कहानी दो चार...exforum.live
आभार
एकरा में कोई शक नइखे...यह्य कहानी कै जेतनी बड़ाई करी जाय कम हय । कहानी के माद्धम से गाँव देहात कय जौन ब्यौरा लिखथू । अइसा लागत हय कि एकदम सही घटना होय ।
अंदर की गर्मी.. चोकरबे करेगी....एक सुझाव हय हमरी ओर से । कभी एक औरत का ऐसा वर्णन करें । जैसे गाय नौ महीना गाभिन रहने के बाद ब्याती है, उसके तीन साढ़े तीन महीने बाद उसकी बुर की सिकुड़न और कई महीने बिनचुदाए रहने की वजह से जो गर्मी उठती है तो बिना सही सांड से भैंसाये नहीं मानती । दिन रात चोंकरती है खूंटा रस्सी पगहा तोर के हर सरिया में जाती है ।
अरे फोरम एक बंद होगा तो दस खुलेंगे...अरे नहीं । हम कहानी नहीं लिख पाएंगे वह भी आप जैसी । और हाँ कहानी मैंने पूरी पढी है । आपकी और भी कहानियां पढी हैं । बस कमेंट इसलिए नहीं कर पाता कि जादातर लॉग इन किए बिना पढता हूँ ताकि गोपनीयता बनी रहे, ad ज्यादा आएं, xforum को लाभ हो और xforum जैसा ठीहा बरक़रार रहे । और जब लॉग इन करके पढता हूँ तो तारीफ़ के लिए सब्द नहीं मिलते । कहानी का कोई ऐसा अंश भी नहीं मिलता कि जिसे quote करके श्रेष्ठ लिख दूं । कहानी का एक एक पैराग्राफ लाजवाब होता है । सच कह रहा हूँ । xforum पर कई कहानियां पढी लेकिन अब केवल आपकी ही कहानियों की वजह से xforum विजिट करता हूँ। अन्य कहानिया जो हैं भी वह भी लोग अधूरी छोड़ गए हैं । आपका लेखन और नियमित अपडेट पाठकों को जोड़े हुए है ।
आखिर फुलवा की बहन है....Chameli to badi chalaak hai,
Chameli to badi chalak hai, yad rakhegi uski nanad
बहुत हीं खूबसूरती से पात्रों के मनोभावों प्रेषित किया है...मैंने उन लोगों की मानसिक स्थिति को करीब से देखा और महसूस किया है जो अपने परिवारों को अकेला छोड़कर नौकरी की तलाश में विदेश जाते हैं. दिन-ब-दिन परिवार की बढ़ती जिम्मेदारियां और बच्चों के सुरक्षित भविष्य की उम्मीद से इतने सारे लोग परिवारों को अकेला छोड़कर खाड़ी देशों में चले जाते हैं।महिलाओं को बच्चों को पालने और बुजुर्गों की देखभाल करने के सभी संघर्षों से गुजरना पड़ता है और एक कठोर तथ्य यह है कि उन्हें खुद को उन लोगों की बुरी नजर से बचाना होता है जो सोचते हैं कि वह अब आसानी से उपलब्ध है या वह सेक्स के लिए तरस रही होगी। चूंकि उसका पति बाहर है.यह एक दुष्चक्र है जिसके कभी-कभी बहुत बुरे परिणाम होते हैं। कुल मिलाकर आपके अपडेट ने मुझे उन सभी लोगों और परिवारों की याद दिला दी है जो इससे गुजरते हैं।बहुत ही मार्मिक किंतु तथ्यपरक वर्णन
हर बार की तरह प्रासंगिक तथ्यों पर कविता का सृजन...खो गई है ख़ुशियाँ
मुस्कान क़ायम है
दर्द दफ़्न हैं सीने में
कतरा कतरा ख़त्म
हो रहा है सब कुछ
मर चुकी है ज़िंदगी
साँसें क़ायम है
आँसू जो बहा नहीं आँखों से
चीख जो निकली नहीं ज़बान से
नील पड़े हैं मन की देह पर
डरे सहमे हैं ख़्वाब झूठे
यथार्थ का सच क़ायम है
अति उत्तम...Super se uper update![]()
ये करेजवा में पीर ... ये पेट की आग हर दिन बारहों महीने लगती है...आपके इस कमेंट ने फागुन के दिन चार के अंत में तीन शहरों की कहानी में बनारस का जो जिक्र आया था और पूर्वांचल का वो याद दिला दी, बस उसे जस का तस दुहरा दे रही हूँ।
लेकिन ये दर्द सिर्फ एक शहर का नहीं, शायद पूरे पूर्वांचल का है, और जमाने से है। मारीशस, फिजी, गुयाना, पूर्वांचल के लोग गए, और शूगर केन प्लांटेशन से लेकर अनेक चीजें, उनकी मेहनत का नतीजा है। वहां फैली क्रियोल, भोजपुरी, चटनी संगीत यह सब उन्हीं दिनों के चिन्ह है।
और उसके बाद अपने देश में भी, चाहे वह बंगाल की चटकल मिलें हो।
बम्बई (अब मुम्बई) और अहमदाबाद की टेक्सटाइल मिल्स पंजाब के खेत, काम के लिए। और सिर्फ काम की तलाश में ही नहीं, इलाज के लिए बनारस, लखनऊ, दिल्ली जाते हैं। पढ़ने के लिए इलाहबाद, दिल्ली जाते हैं।
लेकिन कौन अपनी मर्जी से घर छोड़कर काले कोस जाना चाहता है? उसी के चलते लोकगीतों में रेलिया बैरन हो गई, और अभी भी हवाओं में ये आवाज गूँजती रहती है-
भूख के मारे बिरहा बिसरिगै, बिसरिगै कजरी, कबीर।
अब देख-देख गोरी के जुबना, उठै न करेजवा में पीर।