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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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और उसकी भौजाई भी तो कौन

फुलवा,... जिसने इसी अमराई में अरविन्द बाबू की धड़क खोली, उन्हें कच्ची कलियों का शौक लगाया, अपनी छोटी बहन चमेलिया को अपनी आँख के सामने अरविन्द बाबू के सामने, और उसी बहाने उनके घर में ही मौजूद संभावनाएं, गितवा की ओर,... जैसे गितवा की सहेली के भौजी ने गितवा को समझाया था की कैसे अपने सगे भाई को पटाये, ललचाये और उस के बाद रोज बिना नागा, उसी तरह अरविन्द को पहले तो चाची ने फिर सबसे बढ़ के फुलवा ने

और अपनी ननद को रोपनी के समय अपने मायके भेज दिया

और फुलवा से बढ़ के कोई था तो फुलवा की माई जो उसे रोपनी में साथ लाइ और गन्ने के खेत में उसकी रोपनी गाँव के सांड़ से करा दी,
फुलवा की माई को अपने सच्चे दामाद की इच्छाओं को आदर करना था...
 
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motaalund

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क्या कहूं,

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गितवा की माँ का किस्सा और बाऊ जी का क्या हुआ अगले पोस्ट में आएगा


और आपके सुझाव का ध्यान रखूंगी,...
निःशब्द.....
 
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motaalund

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एक बार तो मुझे लगा की इस पोस्ट के बाद इस फोरम का जो कहानीकारों का गिल्ड है और खासतौर से इन्सेस्ट राइटर्स असोशिएशन मुझे कान पकड़ के बाहर निकाल देगा,

वैसे भी इन्सेस्ट राइटर्स असोशिएशन के तो मैं बस चौखट पे खड़ी हूँ, कभी अंदर झांकती हूँ कभी दरवाजे पर दस्तक देती हूँ ,...

और ऐसी पोस्ट लेकिन आदत, मजबूरी और जो देखती हूँ उसे रोकते रोकते भी कभी लिख देने की मजबूरी, फूटबाल वर्ड कप में तमाम चमक दमक के बाद, बार बार अखबारों में छपी उन लोगो की फोटुओं पर ध्यान जा रहा था और इतिहास के पन्ने मन की यादें पलटती गयीं,

यहीं के लोग चाहे फिजी सूरीनाम हो या गुयाना, काले कोस जहाज पर लाद के भेज दिए गए,

फिर अपने देश में देह तोड़ मेहनत के लिए और अभी भी

रोज बम्बई जाने वाली ट्रेनों में जनरल डिब्बे में खचाखच,... और पढ़ लिख के भी जो अमेरिका गया नहीं लौटा, पहले पढ़ाई फिर नौकरी फिर कार्ड का लालच, कितने मध्यमवर्गीय मोहल्लों में सिर्फ बुजुर्ग दीखते हैं, व्हाट्सऐप पे आयी पुरानी विदेश की फोटुओं को, पुराने किस्सों के सहारे जिंदगी काटते,

पूर्वांचल के तमाम जिलों में औरतों की तादाद पुरुषों से ज्यादा आती है जनगणना में लेकिन ये नहीं हुआ है औरतों ने बेटी के होने पे सोहर गाना या बरही मनाना शुरू कर दिया है, मरद सब बाहर और वही साल में एक बार दो बार,...

कोरोना में तो पैदल ही, जो शहर उनके भरोसे चलते थे, दूध वाले टैक्सी वाले उन शहरों ने दरवाजे बंद कर लिए उनके लिए,



चिठिया हो तो हर कोई बांचे भाग न बाँचा जाए
कोरोना एक ऐसी भयानक त्रासदी थी कि लोगों का इंसानियत से भरोसा टूटा भी और कई अवसरों पर इंसानियत पर भरोसा मजबूत हुआ...

सजनवा बैरी हो गए हमार...

फणीश्वर नाथ रेणु के लिखे उपन्यास "मारे गए गुलफाम" पर बनी फ़िल्म "तीसरी कसम" का ये गाना बाखूबी उस क्षेत्र का दुःख दर्द बयां करता है...
 
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motaalund

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Its a roller coaster and twist by fantastic.. no.. no.. funtastic writer..
Human emotions are correctly represented and felt ..
this connect with readers touching sentiments are rarely found in writer...
and Komal is one of that GEM...
 

motaalund

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Lajab komal ji. Apki stories me sab variety mil jayegi jisko jo pasanad aa jaye. Bura mt manna but mujhe yeh sunheri sharbat or besan ka halwa yeh jyada achhe nhi lgte. Pta nahi kyun. Shayad yeh jyada commin nhi h isliye. Baki padhte to fir bhi hai chhodte kuchh nhi
सभी रंगों का सम्मिश्रण....
 

motaalund

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Bahut badhiya komal ji. Fulwa ki nanad ko yeh safar yaad rahega. Lekin is baar bhi fulwa ke dwara baatin ki kami khal rhi hai. Sab baaten geeta or chamoli kr rahe hai
ता उम्र याद रहेगी...
आखिर पहला प्यार और पहली चुदाई...
जीवन पर्यंत...
 
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