महुआ के नशे में मदमाते दो यौवन ..इस पोस्ट के साथ आप ही न्याय कर सकती थीं, इस पोस्ट में मैंने एक अलग वातावरण, बँसवाड़ी, महुआ और आम के पेड़, चूता हुआ महुआ महुआ और आम के बौर की महक, और एक नशीला सा माहौल बनाने की कोशिश की थी, लेकिन जो बात शायद मेरी पोस्ट नहीं कह पायी, वो आपकी इन पंक्तियों ने कह दिया
महुआ की शराब सा नशा भाभी के योवन रस में
दौर रहा है बन के लहू कमल की हर एक नस में
सेज बनी है फूलों की और महक आम के बौर से
महक रही है फिजा सारी मदमस्त हवा के शोर से
देह संबंधो के वर्णन में कई बार दुहराव सा आ जाता है, आखिर क्रिया तो एक ही है, पर मन के आँगन में जो स्मृतियाँ रहती हैं वो ऐसे ही
पलों की रहती हैं, कभी आंगन में बारिश में नहाते हुए, कभी चांदनी में डूब कर, और उस समय युगल दम्पति नहीं बोलते यही माहौल बोलता है
जो अनकहा रह गया, सिर्फ मह्सूस किया गया उसे शब्दों का रूप देने की कोशिश इस पोस्ट ने की थी, जिसे आपने पूरा किया, बहुत बहुत आभार
शाम के धुंधलके में दो जिस्म एक जान...
और ऊपर से रेनुआ साली कमीनी....