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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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एकदम आखिर इन्ही भौजी की चलते उसके भाई ने दिन दहाड़े उसके पिछवाड़े का बाजा बजाया, उसका डर गायब किया और पक्की दोस्ती करवाई की अब कभी नहीं हदसेगी, पिछवाड़े के नाम पर तो उसने सोचा की, भौजी को भी, लेकिन भौजी तो भौजी होती है
भौजी अपने अनुभव को ननदों के काम में लाएगी..
 

motaalund

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अरे नहीं ३६५ दिन भी बहिन भी लुगाई भी, रिश्ता तो बहन का और काम लुगाई का, उस समय भी भैया भैया ही कहेगी, जब चीखेगी, सिसकेगी
ओह्ह्ह... राखी लगे दमकते हाथों से बहिन की मींजते हुए..
सटम सट्टा .. धकम धक्का...
 

motaalund

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यहाँ भी तीन ही रहेंगे,

दो महिलायें एक पुरुष, हर मरद की फैंटेसी, और खाली ननद के साथ ननद के भैया रहेंगे तो फिर तो जंगल में मोर नाचा वाली बात हो जायेगी और बाद में चिढ़ाने, छेड़ने का मौका भी नहीं मिलेगा
सबूत के लिए वीडियोग्राफी भी...
 

Shetan

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सावन की मस्ती, ननद संग
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मेरी ननद और मैंने खूब मस्ती की, सास तो इनके मामा के पास, ये भी छोड़ने गए तो इनकी मामी ने रोक लिया पांच दसदिन के लिए,

कोई मेला न बचा होगा जहाँ मैं और ननद न गए हों , मैं तो पहली बार गाँव का मेला देख रही थी ननद जी का सब देखा सुना

--- काले उमड़ते, घुमड़ते बादल, बारिश से भीगी मिट्टी की सोंधी-सोंधी महक, चारों ओर फैली हरी-हरी चुनरी की तरह धान के खेत,

हल्की-हल्की बहती ठंडी हवा,
हरी, लाल, पीली, चुनरिया, पहने अठखेलियां करती, कजरी और मेले के गाने के तान छेड़ती, लड़कियों और औरतों के झुंड मस्त, मेले की ओर जा रहे थे, लग रहा था कि ढेर सारे इंद्रधनुष जमीन पर उतर आयें हो।

और उनको छेड़ते, गाते, मस्ती करते, लम्बे, खूब तगड़े गठीले बदन के मर्द भी… नजर ही नहीं हटती थी।

ननद मेरी गाँव की सब ननदों की लीडर, कुँवारी,शादी शुदा,


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और साथ में गाँव की भौजाइयां, गुलबिया, चमेलिया, चुम्मन भौजी,

मैंने बताया था न, मैं और मेरी ननद रंग रूप जोबन सब एक, हाँ सिर्फ मेरी ठुड्डी पे तिल था और ननद के गाल पे और मैंने गाल पे एकदम उसी तरह के तिल का गुदना गुदा लिया और ननद ने मेरी ठुड्डी वाले तिल की तरह, बस अब तो एक बार ये भी देख के न पहचान पाएं,

उन्हें चिढ़ाती भी थी की ननद रानी कभी मुझे समझ के आपके भैया आपके ऊपर चढ़ गए तो,


और मेले की तैयारी भी मेरी ननद ने सिखायी, " अरे भौजी ऐसे कपडे नहीं, मेले में ऐसे चलो की आग लग जाए "

अपने हाथ से खूब चटक लाल साडी और खूब लो काट चोली की तरह का ब्लाउज, निकाल के, फिर तो कोहनी तक चूड़ी,


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बड़े बड़े झुमके, आँख भर काजल, खूब गाढ़ी लाल लिपस्टिक, मेंहदी, पैरों में चटक लाल महावर,

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चौड़ी हजार घंघरू वाली पायल, बड़ी सी लाल बिंदी और तैयार भी हम दोनों एकदम एक जैसे होते, जैसी साडी वो वैसी मेरी लिए, खाली रंग नहीं, पल्लू, डिजाइन, जिस दिन मेरी ननद लाल चूड़ी पहनती मैं भी लाल चूड़ी और जिस दिन मैं हरी चूड़ी पहनती वो सब उतार के फिर से हरी चूड़ी,

दूर से क्या पास से भी देख के कोई ननद भौजाई में अंतर् नहीं बता सकता था,



राजा इंदर की परियों के झुण्ड ऐसे, और कभी मैं गाना छेड़ती कभी मेरी ननद

" पांच रुपया दे दो बालम मेला देखन जाउंगी, "

और सब ननद भौजाई भी साथ, साथ, जहां गाँव क सिवान डका, कोई ससुर जेठ पहचान वाले नहीं होने का डर तो बस भौजियों का भी घूघंट हट जाता था, बस माथा ढका रहता था,
और मेला में अगर ठेला न हो तो मेले का मजा क्या, पहले मेले में ही एक पतला सा रस्ता था, एक संकरी गली सी, नीलू ने मेरी ननद से पूछा

" नयकी भौजी को उधर से ले चले "
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" एकदम, अरे मेले में जबतक ठेले का मजा न मिले, रेलम पेल न हो, "


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और वो दोनों मेरे हाथ पकड़ के उस संकरी गली में धस गयीं मैं भी निश्चिंत थी की मेरी दो दो ननदों ने हाथ पकड़ रखा है क्या होगा, लेकिन पहले धक्के में ही दोनों का हाथ छूटा, उसके बाद तो इतने मर्द, दो चार आगे चल रहे बस रुक जाते, और पीछे वाले धक्का मारते, फिर किसी का हाथ ऊपर से, किसी का चोली के अंदर भी, और खूब हल्ला , मर्दों से ज्यादा लड़कियों औरतों का, मैंने इधर उधर देखा, मेरी ननद दिखी और उनके साथ तो चार चार मर्द, दो ने तो सीधे चोली में हाथ डाल रखा था, एक ने ऊपर से एक ने नीचे से, एक चूतड़ की नाप जोख कर रहा था, एक जांघ सहला रहा था,

ननद मुझे देख के खूब जोर से मुस्करायीं और मैं भी,

गाँव में मेला घूमने आयीं हूँ तो मेले का पूरा मजा ले लूँ।

दो मिनट का रास्ता बीस मिनट में पार हुआ, लेकिन हम सब हंस रही थीं, खिलखिला रही थी, आधी से ज्यादा के तो चोली के एक दो बटन टूट भी गए थे, जो ज्यादा समझदार थीं, उन्होंने पहले से अपने ऊपर के दो बटन खोल दिए थे,

कभी गुड़ की जलेबी की दूकान पे तो कभी चूड़ी वाली के सामने, पूरा मेला हम ननद भौजाई मिल के नापते रहते थे। एक ऊंचा झूला था ,


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जिसपर ज्यादातर औरतें अपने मर्दों के साथ, कुछ ज्यादा हिम्मती अपने यारों के साथ, झूला जब ऊपर से नीचे आता तो खूब जोर से हल्ला होता



मैंने ननद को चिढ़ाया, " का सोच रही हैं ननदोई जी होते तो साथ साथ झूला क मजा लेतीं"

" अरे तो हमार भौजाई कौन ननदोई से कम हैं "

हंसती हुयी वो बोली और हम दोनों झूले पे बैठे बाकी लोगो की तरह हो हो करते, जैसे ही झूला ऊपर गया, मेरी बदमाश ननद मेरे कंधे पे हाथ रख के कस के पकडे थी, चोली ऊपर से दबाते बोली, " काहो भौजी, भैया ऐसे दबाते हैं, "

" नहीं ऐसे " खिलखिलाते हुए मैं बोली और मेरा हाथ ननद की चोली के अंदर,

दो बटन उनके उस गली में यारों ने मसल मसल के तोड़ दिए थे , एक मैंने खोल दिया और सीधे मेरा हाथ ननद के मस्त जोबन का रस लेते कस कस के दबा रहा था, फिर पूरे झूले पर हम दोनोके हाथ एक दुसरे के जुबना का हाल चाल लेते रहे,

बीस तीस कोस में कोई मेला नहीं बचा था, जहाँ हम ननद भौजाई, न गए हों दो चार जगह तो ट्रैक्टर की ट्राली में भी बैठ के गए,
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पूरे गाँव की औरतें हंसती, कहतीं आस पास के गाँव जवार में भी येह ननद भौजाई अस, मेलाघुमनी न होगी,

रात में भी कभी मैं नन्दोई बनती तो कभी वो अपने भैया की जगह लेती, एकदम पक्की दोस्ती, कुछ भी बचा छिपा नहीं था।

लेकिन जब ननद भौजाई बहनों से बढ़ कर, सहेली झूठ ऐसा रिश्ता हो, सुख के साथ ननद अपने दुःख की गठरी पोटरी भी अपने भौजाई के आगे ही खोलती है,



कुछ बातें तो माँ से भी नहीं कही जाती, उनका दुःख ही बढ़ता है, पति से तो सपने में भी नहीं, बहुत अच्छा हुआ तो बोलेगा नहीं वरना कौन मरद अपनी माँ बहन की बुराई सुनता है,


--
कहानी मे मस्ती होंगी शारारत होंगी. त्यौहार होगा शादी वाला माहोल होगा. लेकिन एक चीज कोमल रनी की कहानियो मे पक्का होंगी. खुशियाँ.

ननद भाभी की जुगलबंधी मन मोह लिया. इस ननंद भोजाई जोड़ी के लिए तो सखी शब्द इस्तमाल करना बनता है.

क्या मेले की रंगत दिखाई हे. ननंद भोजाई का टिल एक्सचेंज वाला आईडिया तो जबरदस्त था.

छिनार नांदिया को मालूम है की कहा डबवाने है. माशालवाने है. तभी तो सकडी गली. और 4 मर्दो से घिए. क्या जोबन और क्या पीछवाडा सब का स्वाद ले लिया ननद रनी ने.

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Shetan

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ननद की ननद
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मैंने ही एक दिन कुरेदा उन्हें, " हे ननद कैसी हैं तोहार "

मुझे मालूम था ग्यारहवें में पढ़ती थी, देखने में भी नाक नक्श अच्छा था, लेकिन थोड़ी नकचढ़ी,

ननद थोड़ी देर चुप रहीं फिर बोली एकदम गुस्से में,... "कंटाइन"

" अरे सब हमरे अइसन किस्मत वाली थोड़े ही होती हैं की मेरी ननद ऐसी ननद मिले, गुड़ की डली। "

उनका गुस्सा कम करने के लिए मैंने बोला और होंठों पर कस के चूम लिया,
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वो मुस्करायीं और फिर दिल का पूरा राज उगल दिया,

" अकेली बहन इनकी तो इन्होने और इनसे ज्यादा इनकी महतारी ने अकेली बेटी और छोटी होने का, दिमाग खराब कर दिया है उसका और कुछ गड़बड़ इन लोगों के सामने भी कर देगी तो बस एक राग, अभी बच्ची है, अभी बहुत छोटी है "

" ग्यारहवें में पढ़ने वाली बच्ची होती है, पावे तो दो दो खूंटा एक साथ घोंट ले "
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मैंने भी ननद के सुर में सुर मिलाया,

ननद थोड़ा मुस्करायीं फिर बोलीं " भौजी एकदम सही लेकिन हमरे सास को और तोहरे ननदोई को कौन समझावे , हरदम गलचौर सहेलियां आती हैं तो महरानी जी कमरे में बैठे बैठे, हुकुम चलाती है, भाभी जरा पकौड़ी, जरा बैगनी, चटनी ताज़ी पीस दीजिये, और नुकूस ऊपर से,
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और होली में तो और छरछंद, हम यहां मायके में देखे थे ननद भौजाई क होली तो सबसे मस्त,



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और हमारी एकलौती ननद, उस समय नौवें में पढ़ती थी, खूब पिलानिंग किये, लेकिन होली के दो दिन पहले से गोड़े मुड़े चादर ओढ़ के, हलका बुखार, और अंदर से दरवाजा बंद, खाना वाना भी ले जाऊं तो बस बाहर रख दीजिये, होली के दिन भी किवाड़ नहीं खुला, सास भी बोलीं जाने दो तबीयत नहीं ठीक है अगले साल, मेरी होली की तो,

और चार दिन बाद उसकी सहेलियों का जमावड़ा,



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मैं गुझिया दहीबड़ा ले कर कमरे में गयी तो वो अपनी सहेलियों से हंस हंस के बतिया रही थी,

भाभी हमारी अपने को बहुत चालाक समझती हैं लेकिन ये नहीं जानती की कैसी ननद है उनकी, उनसे दस गुना होशियार, झूटमूठ का चादर ओढ़ के लेट गयी, उनका सब शौक ननद के साथ, होली खेलने का मट्टी में,


सुन के मैं जलभुन गयी, लेकिन,

" और अगली मतलब पिछले साल की होली में " मैंने पूछा।
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इस साल की होली तो उन्होंने मायके में मनाई थी मेरे साथ, ननदोई जो भी नयी नयी सलहज के साथ होली खेलने का लालच देके लायी थीं साथ

" उस साल मैंने सच में प्लान बनाया, साल भर से ऊपर हो गया था ससुराल में, हमारी जेठान देवरान, दर्जन भर गाँव क भौजाई के साथ, उस साल भी उसका कमरा बंद और अबकी बहाना पढ़ाई का दस बारह दिन बाद बोर्ड का इम्तहान शुरू हो रहा है , हाईस्कूल का। होली के दिन सब भौजाइयां आयीं हम लोगों ने होली खेली आँगन में, सास भी बाहर गयी थीं, ये दोस्तों के साथ बस हम लोगों ने बाहर जाने का नाटक किया और मैं दरवाजा उठँगाते बोली, हम लोग बाहर जा रहे हैं घंटे दो घंटे में आएंगे, रसोई में ताजे दहीबड़े रखे हैं, दरवाजा बंद कर लेना।


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लेकिन मैं और मेरी एक देवरानी हम लोग उसके के कमरे के बगल में ही छिपे, और जैसे ही ननद रानी बाहर आयीं हम दोनों ने छाप लिया, मेरा हाथ सीधे ननद के टॉप के ऊपर से उनके जोबन पे और मेरी देवरानी ने नाड़े को पकड़ने की कोशिश की,

" ये तो बहुत गड़बड़ किया आपने, ननद के कपडे के ऊपर से छूना तो पाप होता है, सीधे अंदर हाथ डालना चाहिए था "

मैं मुस्कराते बोली,


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और अपनी ननद की चोली के अंदर हाथ डाल के उनके मीठे गुलगुले दबाने लगी।

" अरे उसी में उतनी रोई रोहट, चीखना चिल्लाना, ये गँवारू तरीका मुझे पंसद नहीं है, बहुत हुआ तो गुलाल का टीका, आपके मायके में होता होगा ये सब, छोड़िये मुझे, वहां क्यों हाथ लगा रही हैं, मेरी देवरानी ने तो इशारा किया चिल्लाने दो स्साली को, एक बार नंगी पुंगी कर देंगे तो फिर, लेकिन मैं जानती थी, मैंने छोड़ दिया फिर भी उसका चिल्लाना कम नहीं हुआ।

और थोड़ी देर में सास आयीं तो वो भी मेरे ऊपर, नहीं पसंद है लड़की को तो क्यों जबरदस्ती,


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पूरे डेढ़ महीने वो मुझसे नहीं बोली, मैं बार बार, मनाने की कोशिश करती, दस बार हर तरह से लेकिन,
और तोहरे नन्दोई भी, अरे ननद का काम रूठना है, बच्ची है अभी "

मैं ननद की और ननद की ननद की परेशानी समझ गयी थी और उसका हल भी, मैंने पूछ लिया, " आपके ननद का कमरा आपके कमरे से एकदम सटा है का, "

" एकदम बहुत पतली सी दीवाल है, कोई छींके भी तो आर पार सुनाई पड़ता है " ननद ने बताया।

" और नन्दोई चुप्पी चुदाई वाले तो हैं नहीं और नागा भी नहीं करते होंगे "मैंने पूछ लिया
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अब मेरी ननद बहुत देर बाद खिलखिलायीं,


" तोहरे ननदोई, उनका बस चले तो लंड में घुंघरू बाँध के चुदाई करें, जितना आवाज हो , मैं चीखूँ सिसकी भरु, चिल्लाऊं, उन्हें उतना ही मजा आता है और वो भी खूब बोल बोल कर, और नागा की बात भली कही, और औरतों को तो कम से कम महीने में पांच दिन की छुट्टी मिलती है, तोहरे ननद को वो भी नहीं । अगवाड़े की दूकान बंद तो पिछवाड़े की चालू।

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और ओहमें तो और जोश, एक बार में तो उनका मन भरता नहीं "

मैंने कस के ननद के चूतड़ दबाते मसलते बोला, " हे हमरे ननदोई के जिन कुछ दोस धरा, हमरे ननद क चूतड़ अस मस्त की गांड न मारने पे पाप लगेगा लेकिन मैं समझ गयी तोहरी ननद क बीमारी और उसका इलाज "

ननद अब सीरियस हो के मेरा मुंह देख रही थीं,

" तोहरी ननद को चाहिए खूब मोटा तगड़ा लंड जो रुलाये रुलाये के उसकी झिल्ली फाड़े। उसके मन में जलन है, हदस है। रोज रात रात भर भैया भौजी को मस्ती करते हुए सुनती है, शलवार के ऊपर से रगड़ती होगी। और सोच सोच के जलती होगी। फिर अकेली बहन, अकेली बेटी, बियाह के पहले तोहरे मर्द, बहिनी बहिनी, और अब सांझ होते ही भौजी के चक्कर में, इसलिए सुबह से वो काँटा बोतीहै कंटाइन, "मैंने राज खोला
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" तो का करें, " ननद ने परेशान हो कर पूछा।

" हमको काहें बियाह के लायी थीं " उलटे हमने पूछ लिया, और उन्हें चूमते बोली,

" जबतक तोहार भौजी है तो कौन परेशानी, अरे अगले होली के पहले, ओकरे ऊपर चढ़वाऊंगी न, तोहरे भैया से जबरदस्त खूंटा कहाँ मिले, पंचायत क सांड लजा जाएँ उनका देख कर, बस उन्ही को चढ़ाउंगी, जो भौजी का मायका बोलती है न तो वही भौजी क भैया फाड़ेंगे उसकी, अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों, और अगली होली में वो यहीं आएगी और हम दोनों मिल के उसके कपडे फाड़ेंगे, और इसी आंगन में नंगे नचाएंगे,"


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बस तो सावन से हम ननद भौजाई क पक्की दोस्ती, और मस्ती भी, और मिलते भेंटते तो हाल चाल बाद में एक दूसरे का हाथ चोली के अंदर पहले जाता था जोबन क हाल चाल लेने के लिए।
छिछोरी नंदियाओ को मात देने का माझा कुछ और ही है. वो जितनी चालक बनेगी. उतना ज्यादा रगड़े जाएगी. अब सीधा बहार नहीं आए तो भौजी कैसे बक्श दे. मौका मिलते ही मस्ती की वो सीमा. माझा ला दिया.

आप लास्ट लाइन मे पंच मरती हो. दोस्ती पक्की हो गई. मै एक एक मीनिंग को फील करती हु.

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Shetan

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ननद भौजाई
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मैं यादो के सफर से वापस आयी .

बड़ी देर तक हम दोनों का चुम्मा चलता रहा और मैं साड़ी के अंदर हाथ डाल के उनका जोबन मसलती रही. जब मेरी ननद ने मेरे मुंह से जीभ निकाली तो मैंने हँसते हुए उनके निपल को खींच के चिढ़ाते हुए कहा

" अब नौ महीने बाद जब एहमें से दूध बहेगा तो एक से मुन्ना पियेगा चुसूर चुसूर, दुसरे से मुन्ने के मामा '

ननद का चेहरा एकदम खुस, दमकने लगा, मेरी ठुड्डी पकड़ के बोली,

" भौजी तोहरे मुंह में गुड़ घी, सात रंग चुनर तोहें "


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तीन साल उनकी शादी के हो रहे थे पहले दो ढाई साल तो सास ने बर्दास्त कर लिया फिर अब किसी न किसी बहाने टोकना शुरू कर दिया था,... मैंने साफ़ साफ़ पूछ लिया, ...

" लेकिन कहीं गोली ओली तो नहीं खा रही हैं ननद रानी "

" एकदम नहीं सब बंद है " हँसते हुए उन्होंने कबूला और फिर जोड़ा की वो का कहते हैं स्ट्रिप दर्जन भर से ऊपर का के रखी हूँ, कितनी बार चेक की लेकिन,... "

" अरे तो का पता है हो गया हो, एक बार आज चेक कर लीजिये '

" एकदम लेकिन तुम भी " ननद बोली,



और थोड़ी देर में अंदर के कच्चे आंगन में नाली के पास बैठे,...



" अरे मूत न भौजी, ... और बस जैसे धार निकलनी शुरू हो ये पट्टी लगा देना, थोड़ी देर धार सीधे,... " ननद ने समझाया,...

बस सीटी की आवाज निकलनी शुरू हुयी की ननद ने एक स्ट्रिप में धार पे,... और मैं समझ गयी, मैंने अपने हाथ की स्ट्रिप ननद की बुर से एकदम सटा के,...


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और जब हम लोग उठे तो,..दोनों में सिर्फ एक लाइन दिख रही थी, मेरे कुछ समझ में नहीं आया लेकिन ननद रानी हंसती बोलीं

" देख यार, जउने दिन दो लाइन दिखी, तोहार मिठाई पक्की "


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" अरे आज आसीर्बाद मिला है पांच दिन में हो जाएगा दो लाइन,.. पांच दिन बाद भिन्सारे मैं ही चेक करुँगी, जबरदस्त दो लाइन होगी,... और मिठाई तो लूंगी ही लेकिन तबतक थोड़ा खारी नमकीन चिखा दूँ,... "

और वहीँ उन्हें धक्का देकर गिरा के उनके ऊपर चढ़ के अपनी खारे शरबत से अच्छी तरह गीली बुर उनके मुंह पे रगड़ने लगी. कुछ देर तक नखड़ा करने के बाद ननद चूस रही थीं, चूत चटोरी तो वो गजब की थीं।

" पांच दिन बाद तोहार पक्का दो लाइन हो जायेगी, लेकिन बियाओगी कहाँ " मैंने ननद को उकसाया। पल भर के लिए मुंह हटा के बोलीं वो,...

" और कहाँ यही, भौजी हैं न सौरी रखाने को, करोगी न। वहां तो नेग के नाम पे सास ननद लूट लेंगी। "

" एकदम पक्का, ... कुल इंतजाम हमरे जिम्मे, लेकिन एक नेग मैं भी नेग लूंगी। पहली धार मुन्ने के बाद मुन्ने के मामा के मुंह में जायेगी। "


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" मंजूर, लेकिन होलिका माई वो दिन दिखावें " ननद बोली,... और मैंने बाजी पलट दी, और अब मैं ननद की जाँघों के बीच में मैं चूस रही थी।


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थोड़ी देर में इसी बुर में मेरे मर्द का मोटा लंड घुसेगा।

थोड़ी देर में ही ननद रानी की बिल पनिया गयी. वैसे ही वो गर्मायी हुयी थीं, कुछ होलिका माई के भभूत का असर जो उन्होंने अपने हाथ से मेरी ननद के जोबन और बिल दोनों पर मला था, दूसरे ये आसिरबाद की पांच दिन के अंदर वो गाभिन हो जाएंगी,... और कबड्डी और उसके बाद की मस्ती के बाद सब औरतें एकदम माती थीं,...

ननद की प्रेम सुरंग की दोनों फांको को फैला के मैं उसी से बोली,..

" हे बुर महरानी तोहार जय हो, जो देख देख के झांट आने पहले से पनिया रही थी, ... वो अब नूनी नहीं रहा मस्त लौंड़ा हो गया, गदहा घोडा मात उसके आगे. तो आज वही मिलेगा, ओके घोंटा, ओकर मलाई घोंटा और ठीक नौ महीने बाद अँजोरिया अस बिटिया उगला एही मुंह से,.... "


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ननद मेरी खूब खुश, खिलखिला रही थी,... मेरी बात सुन के,

और मैंने फिर अपनी हथेली ननद की बिल पे रगड़ना शुरू किया और दूसरे हाथ से उनके जोबन को हलके हलके सहलाना, और छेड़ना,...
" अरे जब कच्ची अमिया था तब से मेरा मरद ललचा रहा था आज कुतरेगा कस कस के,,,,”

और मैंने पलटी मारी, ऐसी मस्त चूँचियाँ मसली, ... अरे मेरा मरद मसलेगा रगड़ेगा, लेकिन अभी तो मैं मज़ा ले लूँ, दोनों मेरी मुट्ठी में आ गयीं, और मैं सरक कर ऊपर, मेरे होंठ ननद के होंठों के ऊपर,... कस कस के मैंने चूसना शुरू कर दिया,.. और जैसे कुछ देर में उसका भाई मेरा मरद चढ़ेगा रगड़ेगा अपनी बहन बस एकदम उसी तरह, खुली टांगों के बीच मैं,...

और अपनी चूत से ननद जी की चूत रगड़नी शुरू कर दी.


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झांटे उनकी भी सफाचट्ट थीं, मेरी भी मक्खन मलाई चिकनी चमेली। जैसे दर्जा दस वाली कोई दो सहेलियां पहली बार आपस में चूत रगड़घिस्स कर के झड़ने, झाड़ने की कोशिश कर रही हों एकदम वैसे ही. ननद भी मेरी उसी तरह जोश में नीचे से चूतड़ उठा उठा के, गोल गोल घुमा के अपनी बुर मेरी बुर पे रगड़ रही थी, दोनों की बिल से एक तार की चासनी निकलने लगी.

लेकिन उस चासनी का फायदा का, जब तक कोई चटोरी चाटने वाली न हो, और ननद की चूत सबसे पहले तो भाभी ही चाटती है,... तो मैं एक बार फिर से सरक के नीचे, और उस शहद के छत्ते में मुंह लगा दिया, चुसूर चुसूर,...



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और जैसे दही बिलोड़ने के लिए कोई मथानी डालें, अपनी तर्जनी ननद की बिल में लेकिन मैं चौंक गयी. स्साली छिनार की कितनी टाइट थी. पता नहीं कब से चुद रही थी, ब्याह के पहले से,... और ननदोई भी नंबरी चोदू, फिर ससुराल में इनके देवर, नन्दोई भी तो नंबर लगाते ही होंगे, लेकिन अभी भी गौने की रात की तरह,... मैं गोल गोल ऊँगली घुमा रही थी, और चाशनी और निकलने लगी, मस्ती से नन्द चूतड़ उछाल रही थी, सिसक रही थी,



" हाँ, भौजी हाँ, हाँ ऐस , ओह्ह्ह बहुत अच्छा लग रहा है "



जो ननद को अच्छा लगता है वो भौजाई को कभी अच्छा लग सकता है, सूरज उस दिन पच्छिम से निकलेगा।



मैंने ऊँगली निकाल ली और ननद बेचारी तड़प उठी, जैसी बिना झाड़े, बिना झड़े कोई मरद खाली तंग करने के लिए मस्तायी औरत की बिल से खूंटा बाहर खींच ले.

लेकिन मेरे तरकश में एक ही हथियार थोड़े ही थे और इसी ननद के बीरन से सीखा था खेल तमासा,

दोनों फांको को जोड़ के मैं दोनों उँगलियों से आपस में रगड़ने लगी , ... जीभ मेरी क्लिट पर पतुरिया की तरह नाच रही थी.
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और चासनी और जोर से निकलने लगी, और ननद झड़ने के करीब,.. मैंने फिर उँगलियाँ हटा ली और अब ऊँगली की जगह मेरी जीभ उसकी बुर में और मैं कस कस के चाट रही थी, उँगलियाँ अब क्लिट को रगड़ रही थीं, चासनी सब मेरे होंठों पर लिथड़ रही थी, ...

" ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ हां भाभी, भौजी ओह्ह्ह भौजी झाड़ दो , तोहार गोड़ पड़ रही हूँ " ननद सिसक रही थी.

पहले बोल आज किससे चुदाई होगी ननद की

" ननद के भाई से " वो बोली।

" अरे नहीं कस के जोर से बाहर तक सुनाई पड़े,... तभी ये बुर झड़ेगी " मैंने शर्त रख दी।
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" अरे भाभी, आज अपने भैया से तोहरे सैंया से चुदवाउंगी, अपने भैया का मोटा लंड लूंगी चूत में ऐसी आग लगी पता नहीं भैया कहाँ रह गए आने दो। वो नहीं चढ़ेंगे तो मैं चढ़ के चोद दूंगी अपने भैया को "

वो जोर जोर से चिल्ला रही थी।

मैं समझ रही थी की बस अभी कुण्डी खटकेगी, वो आ गए हैं और अपनी बहन की एक एक बात सुन रहे होंगे, मैं और कस के चूसने लगी, ढेर सारी चूत की चाशनी मेरे होंठों पर,...

तभी कुण्डी खटकी

" आगया तुझे झाड़ने वाला " मैं हंस के बोली और हम दोनों ने जल्दी से साड़ी बस लपेट ली।
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न ब्लाउज न साया, चड्ढी बनयाइन का तो सवाल ही नहीं था, न मैं पहनती थी न वो न गाँव में कोई और. बस उभारों पर कस के बाँध लिया, हम दोनों के जोबन जोर से छलक रहे थे। और वो बस झड़ते झड़ते रह गयी थी थीं, तो चेहरे से भी खूब गरम एकदम चुदवासी, लग रही थीं, निप भी टनाटन, चूँची भी एकदम पथराई,...
उफ्फ्फ. दोस्ती पक्की और मेने जो सखी वर्ड कहा गलत नहीं था. सच मुच. दोनों के बिच कन्या नारी रस का जो संगम बनाया है. क्या ही कहना.

और नांदिया ने तो कबूलत पे dastakhat भी कर दिये. तुम्हारे सैया मेरे भैया से.... माझा सा गया.

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motaalund

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मैंने कहा था न एक बार में एक ही घटनास्थल पर और उस से जुडी घटनाओं पर फोकस रहेगा, और बाकी घटनाएं बाद में

अरविन्द, गीता, छुटकी, गीता की सहेलियां इन सबके किस्से भी आएंगे बाद में, कबड्डी से ही गीता छुटकी गीता के साथ चली गयी थी और ये बता के की तीन चार दिन के लिए, वो उसे अपने भाई से मिलवाने के लिए तो क्या हुआ ये सब विस्तार से आएगा


अभी पहले साजन ने क्या किया अपनी सगी बहन मेरी ननद के साथ, घर की कहानी

फिर सुगना भौजी और उनके ससुर की दास्तान,

पठानटोली वालियां

फिर छुटकी और

अभी इसमें कुछ काटने बेराने ऐसा नहीं लग रहा है।
मेरा कहने का मतलब था कि अरविंदवा भी तो देवर है...
फिर इस समारोह में शामिल होने से क्यूँ बचा रह गया...
गाँव में नहीं था ... यानि बाहर किसी काम से गया हुआ था...
 

motaalund

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उन के घर में सुख शान्ति के लिए भी जरूरी था, जिस तरह से कमल की माँ ने कहा था ,

ललिया ने कैसे रेनू और कमल के बीच अम्बुजा सीमेंट वाली दीवाल खड़ी की थी फेविकोल का जोड़ लगा के जिसे खली भी न तोड़ सके ( पोस्ट ६९२३, दीवाल भाई बहिन के बीच में भाग ७१, पृष्ठ ६९३ ),

और जिस तरह से वो बोलीं,

" लेकिन एक बार फिर वो उदास हो गयी थीं, बहुत धीमी आवाज में बोली

लेकिन तोहरे देवर की किस्मत तो बिगड़ी गयी न, अइसन सोना अस देह सांड़ अस ताकत,.. और महीना दो महीना में कउनो काम वाली, घास वाली , कभी वो भी नहीं, .... हरदम उदास रहता या गुस्से में,.... बहुत चिंता है।

रेनू की चाची ने बताया फिर एकदम चुप, चेहरा झांवा,... बस रो नहीं रही थीं।फिर बहुत धीरे धीरे बोलीं, रेनुआ वो अब एकदम चुप्प, कतो गाना रतजगा होता है तो वहां भी नहीं जाती, मैं सोचती हूँ सादी बियाह होगा गौना होगा तो वहां भी कैसे, ऐसी हदसी डरी घबड़ायी रहेगी तो कैसे और कमल की भी हालात, अइसन सोना अस देह, जांगर ताकत लेकिन हम लोगन तो तो पूरे घर पे जैसे गरहन ,


तो उस पोस्ट के संदर्भ में तो अब पूरा परिवार खुश रहेगा
और आप अईसन भौजी के सहयोग से वो ग्रहण मिट गया....
 
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