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भाग ८४ -इन्सेस्ट कथा - ननद के भैया बने उनके सैंया
मेरी ननद, मेरा मरद
16,88,707
जिस दिन भौजाई गौने उतरती है और उसकी नजर अपनी ननद पर पड़ती है, वो मन ही मन अपने भाई का टांका उससे भिड़वाने का सोचने लगती है,
कैसे ननद के ऊपर अपने भाई को चढ़ाये, चाहे कुंवारी हो या बियहता, बस उस भौजाई के मन में एक ही शकल बार बार घूमती है, की ननदिया लेटी है टाँगे ऊपर किये, जाँघे फैलाये और उसका भाई गपागप, गपागप, ननद रानी की ओखली में अपना मूसल चला रहा है,
पर गौने की रात में जब भौजाई की फटती है,
रात भर ननद का भाई उसके ऊपर चढ़ता है, सुबह तक जाँघे फटी पड़ी रहती हैं, जमींन पर पैर नहीं रखा जाता, दो ननदें टांग कर बिस्तर से उठा कर ले जाती है, दीवार के सहारे से चलना पड़ता है तभी भी बार बार चिल्ख उठती है, और नंदों के झुरमुट में वैसी ननदें भी जिनकी झांटे भी ठीक से नहीं आयी होती, पूछती हैं,
" भौजी केतना मोट था, बहुत दर्द हुआ का,"
और गाँव देहात में तो कई बार दो चार बरजोर तगड़ी ननद मिल के औचक भौजी का दोनों हाथ पीछे से पकड़ लेती हैं, छुड़ाने का तो दूर, भौजाई हिल नहीं पाती, घूंघट ऊपर से, फिर बाकी सब ननदें धीरे धीरे आराम से भौजी का लहंगा ऊपर सरकाती जाती हैं, और जहाँ जांघ तक पहुंचा तो एक झटके में कमर तक, और दो चार ननदें तैयार रहती हैं पहले से, कमर पे उसे पकड़ने को,
और बुलबुल दिख जाती है, रात भर का धक्का खा खा के एकदम लाल, और बजबजाती मलाई, अभी भी बूँद बूँद रिसती,
जेठानियाँ, और सास लोग, जहाँ ये सब शुरू हुआ खुद सरक लेती हैं, दरवाजा उठँगा देती है हाँ काम करने वाली जो रिश्ते में ननद ही लगती है, कुँवारी, ब्याहता वो सब जरूर और सब को उकसाती है, अरे ऊपर वाल मुंह तो सास जेठानी देखती हैं, ननदें तो नीचे वाला ही देखती हैं,
फिर छेड़ने वाले सवाल जवाब, "भैया ने कितनी बार किया, देख यार एकदम लाल हो गया है बुलबुल का मुंह बहुत जोर के धक्के पड़े होंगे"
और फिर नयी नयी भौजाई के मन में यही आता है, कोई कोई तो ननद को चिढ़ाते अपनी जेठानी से बोल भी देती हैं
" दीदी आज रात को इन्ही को भेज दीजिये अपने देवर के पास, पता चला जाएगा, धक्का कितनी जोर का पड़ता है, मोटा कितना है "
और उसी समय से भौजाई सोचती है किसी दिन मौका पड़ने पे इसके भैया को इसके ऊपर न चढ़ाया तो,
तो बस मैंने भी सोच रखा था गौने के अगले ही दिन, ननद पे इनके भैया को चढाने की बात, ज़रा इनको भी पता चल जाए,
और अब वो मौका आ गया था।
हम तीनों की, मेरी चमेलिया और गुलबिया की चाल चल गयी, ननद रानी हदस गयी. समझ नहीं पायीं तीन तीन भौजाई की चाल,.. खुद ही उन्होंने कबूल कर लिया , मैं कुछ भी कहूं उन्हें कबूल होगा, लेकिन दो दो मुट्ठी से बचा लूँ,
यही तो मैं चाहती थी और सबके सामने उनसे कबूल करा लिया,... मेरे मरद के साथ, मेरे सामने,... और सिर्फ आज नहीं, जब भी मैं कहूं, जहाँ कहूं जिसके सामने, खुद टांग फैलाएंगी, चूसेंगी और उनके खूंटे पर चढ़ेंगी, ... अगवाड़ा पिछवाड़ा,... सब और एक बार नहीं तीन तिरबाचा भरवाया। चमेलिया गुलबिया तो गवाह थीं ही, दूबे भाभी भी सुन रही थीं।
बस. रात में तो हम तीनो को ही घर में रहना था, मैं मेरी ननद और मेरा मरद
कब्बडी के बाद सास सब गाँव के बाहर चली जाती थीं वहीँ से, और चौबीस घंटे के बाद लौटती थीं. अगले दिन जब देवर ननद भौजाई की होली होती थी तो कोई ननद, देवर, की महतारी गाँव में नहीं होती थी, तो सास को मेरे होना नहीं था,... और इनको भी रात में लौटना था, खाना हम सब को घर में, इसलिए मैंने ननद को बोल रखा था की वो पूड़ी बखीर बना के रखेंगी। तो जब मैं कमल की माई से मिल के लौटी तो ननद मेरी नहा धो के खाना बना के एकदम तैयार, और घर में घुसते ही मैंने उन्हें अँकवार में भर लिया।
मैंने तो अँकवार में ही भरा था ननदिया को, उन्होंने जबरदस्त चुम्मा ले लिया। सीधे जीभ मेरे मुंह में छल कब्बड्डी खेलने लगी. एकदम उसके भैया वाला स्वाद। मैंने सीधे साड़ी पे हाथ मारा और जोबन पकड़ के दबाने लगी,.... खूब कड़े कड़े, एकदम मुट्ठी में भरने लायक,.. और सोचने लगी ननद के बारे में, सास के बारे में, सावन में जब सिर्फ मैं और ननद थे और क्या मस्ती हम ननद भौजाई ने की
मेरी ननद, मेरा मरद
16,88,707
जिस दिन भौजाई गौने उतरती है और उसकी नजर अपनी ननद पर पड़ती है, वो मन ही मन अपने भाई का टांका उससे भिड़वाने का सोचने लगती है,
कैसे ननद के ऊपर अपने भाई को चढ़ाये, चाहे कुंवारी हो या बियहता, बस उस भौजाई के मन में एक ही शकल बार बार घूमती है, की ननदिया लेटी है टाँगे ऊपर किये, जाँघे फैलाये और उसका भाई गपागप, गपागप, ननद रानी की ओखली में अपना मूसल चला रहा है,
पर गौने की रात में जब भौजाई की फटती है,
रात भर ननद का भाई उसके ऊपर चढ़ता है, सुबह तक जाँघे फटी पड़ी रहती हैं, जमींन पर पैर नहीं रखा जाता, दो ननदें टांग कर बिस्तर से उठा कर ले जाती है, दीवार के सहारे से चलना पड़ता है तभी भी बार बार चिल्ख उठती है, और नंदों के झुरमुट में वैसी ननदें भी जिनकी झांटे भी ठीक से नहीं आयी होती, पूछती हैं,
" भौजी केतना मोट था, बहुत दर्द हुआ का,"
और गाँव देहात में तो कई बार दो चार बरजोर तगड़ी ननद मिल के औचक भौजी का दोनों हाथ पीछे से पकड़ लेती हैं, छुड़ाने का तो दूर, भौजाई हिल नहीं पाती, घूंघट ऊपर से, फिर बाकी सब ननदें धीरे धीरे आराम से भौजी का लहंगा ऊपर सरकाती जाती हैं, और जहाँ जांघ तक पहुंचा तो एक झटके में कमर तक, और दो चार ननदें तैयार रहती हैं पहले से, कमर पे उसे पकड़ने को,
और बुलबुल दिख जाती है, रात भर का धक्का खा खा के एकदम लाल, और बजबजाती मलाई, अभी भी बूँद बूँद रिसती,
जेठानियाँ, और सास लोग, जहाँ ये सब शुरू हुआ खुद सरक लेती हैं, दरवाजा उठँगा देती है हाँ काम करने वाली जो रिश्ते में ननद ही लगती है, कुँवारी, ब्याहता वो सब जरूर और सब को उकसाती है, अरे ऊपर वाल मुंह तो सास जेठानी देखती हैं, ननदें तो नीचे वाला ही देखती हैं,
फिर छेड़ने वाले सवाल जवाब, "भैया ने कितनी बार किया, देख यार एकदम लाल हो गया है बुलबुल का मुंह बहुत जोर के धक्के पड़े होंगे"
और फिर नयी नयी भौजाई के मन में यही आता है, कोई कोई तो ननद को चिढ़ाते अपनी जेठानी से बोल भी देती हैं
" दीदी आज रात को इन्ही को भेज दीजिये अपने देवर के पास, पता चला जाएगा, धक्का कितनी जोर का पड़ता है, मोटा कितना है "
और उसी समय से भौजाई सोचती है किसी दिन मौका पड़ने पे इसके भैया को इसके ऊपर न चढ़ाया तो,
तो बस मैंने भी सोच रखा था गौने के अगले ही दिन, ननद पे इनके भैया को चढाने की बात, ज़रा इनको भी पता चल जाए,
और अब वो मौका आ गया था।
हम तीनों की, मेरी चमेलिया और गुलबिया की चाल चल गयी, ननद रानी हदस गयी. समझ नहीं पायीं तीन तीन भौजाई की चाल,.. खुद ही उन्होंने कबूल कर लिया , मैं कुछ भी कहूं उन्हें कबूल होगा, लेकिन दो दो मुट्ठी से बचा लूँ,
यही तो मैं चाहती थी और सबके सामने उनसे कबूल करा लिया,... मेरे मरद के साथ, मेरे सामने,... और सिर्फ आज नहीं, जब भी मैं कहूं, जहाँ कहूं जिसके सामने, खुद टांग फैलाएंगी, चूसेंगी और उनके खूंटे पर चढ़ेंगी, ... अगवाड़ा पिछवाड़ा,... सब और एक बार नहीं तीन तिरबाचा भरवाया। चमेलिया गुलबिया तो गवाह थीं ही, दूबे भाभी भी सुन रही थीं।
बस. रात में तो हम तीनो को ही घर में रहना था, मैं मेरी ननद और मेरा मरद
कब्बडी के बाद सास सब गाँव के बाहर चली जाती थीं वहीँ से, और चौबीस घंटे के बाद लौटती थीं. अगले दिन जब देवर ननद भौजाई की होली होती थी तो कोई ननद, देवर, की महतारी गाँव में नहीं होती थी, तो सास को मेरे होना नहीं था,... और इनको भी रात में लौटना था, खाना हम सब को घर में, इसलिए मैंने ननद को बोल रखा था की वो पूड़ी बखीर बना के रखेंगी। तो जब मैं कमल की माई से मिल के लौटी तो ननद मेरी नहा धो के खाना बना के एकदम तैयार, और घर में घुसते ही मैंने उन्हें अँकवार में भर लिया।
मैंने तो अँकवार में ही भरा था ननदिया को, उन्होंने जबरदस्त चुम्मा ले लिया। सीधे जीभ मेरे मुंह में छल कब्बड्डी खेलने लगी. एकदम उसके भैया वाला स्वाद। मैंने सीधे साड़ी पे हाथ मारा और जोबन पकड़ के दबाने लगी,.... खूब कड़े कड़े, एकदम मुट्ठी में भरने लायक,.. और सोचने लगी ननद के बारे में, सास के बारे में, सावन में जब सिर्फ मैं और ननद थे और क्या मस्ती हम ननद भौजाई ने की
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