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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग ८४ -इन्सेस्ट कथा - ननद के भैया बने उनके सैंया


मेरी ननद, मेरा मरद
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जिस दिन भौजाई गौने उतरती है और उसकी नजर अपनी ननद पर पड़ती है, वो मन ही मन अपने भाई का टांका उससे भिड़वाने का सोचने लगती है,

कैसे ननद के ऊपर अपने भाई को चढ़ाये, चाहे कुंवारी हो या बियहता, बस उस भौजाई के मन में एक ही शकल बार बार घूमती है, की ननदिया लेटी है टाँगे ऊपर किये, जाँघे फैलाये और उसका भाई गपागप, गपागप, ननद रानी की ओखली में अपना मूसल चला रहा है,


पर गौने की रात में जब भौजाई की फटती है,
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रात भर ननद का भाई उसके ऊपर चढ़ता है, सुबह तक जाँघे फटी पड़ी रहती हैं, जमींन पर पैर नहीं रखा जाता, दो ननदें टांग कर बिस्तर से उठा कर ले जाती है, दीवार के सहारे से चलना पड़ता है तभी भी बार बार चिल्ख उठती है, और नंदों के झुरमुट में वैसी ननदें भी जिनकी झांटे भी ठीक से नहीं आयी होती, पूछती हैं,

" भौजी केतना मोट था, बहुत दर्द हुआ का,"
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और गाँव देहात में तो कई बार दो चार बरजोर तगड़ी ननद मिल के औचक भौजी का दोनों हाथ पीछे से पकड़ लेती हैं, छुड़ाने का तो दूर, भौजाई हिल नहीं पाती, घूंघट ऊपर से, फिर बाकी सब ननदें धीरे धीरे आराम से भौजी का लहंगा ऊपर सरकाती जाती हैं, और जहाँ जांघ तक पहुंचा तो एक झटके में कमर तक, और दो चार ननदें तैयार रहती हैं पहले से, कमर पे उसे पकड़ने को,

और बुलबुल दिख जाती है, रात भर का धक्का खा खा के एकदम लाल, और बजबजाती मलाई, अभी भी बूँद बूँद रिसती,


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जेठानियाँ, और सास लोग, जहाँ ये सब शुरू हुआ खुद सरक लेती हैं, दरवाजा उठँगा देती है हाँ काम करने वाली जो रिश्ते में ननद ही लगती है, कुँवारी, ब्याहता वो सब जरूर और सब को उकसाती है, अरे ऊपर वाल मुंह तो सास जेठानी देखती हैं, ननदें तो नीचे वाला ही देखती हैं,



फिर छेड़ने वाले सवाल जवाब, "भैया ने कितनी बार किया, देख यार एकदम लाल हो गया है बुलबुल का मुंह बहुत जोर के धक्के पड़े होंगे"

और फिर नयी नयी भौजाई के मन में यही आता है, कोई कोई तो ननद को चिढ़ाते अपनी जेठानी से बोल भी देती हैं

" दीदी आज रात को इन्ही को भेज दीजिये अपने देवर के पास, पता चला जाएगा, धक्का कितनी जोर का पड़ता है, मोटा कितना है "
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और उसी समय से भौजाई सोचती है किसी दिन मौका पड़ने पे इसके भैया को इसके ऊपर न चढ़ाया तो,


तो बस मैंने भी सोच रखा था गौने के अगले ही दिन, ननद पे इनके भैया को चढाने की बात, ज़रा इनको भी पता चल जाए,




और अब वो मौका आ गया था।



हम तीनों की, मेरी चमेलिया और गुलबिया की चाल चल गयी, ननद रानी हदस गयी. समझ नहीं पायीं तीन तीन भौजाई की चाल,.. खुद ही उन्होंने कबूल कर लिया , मैं कुछ भी कहूं उन्हें कबूल होगा, लेकिन दो दो मुट्ठी से बचा लूँ,


यही तो मैं चाहती थी और सबके सामने उनसे कबूल करा लिया,... मेरे मरद के साथ, मेरे सामने,... और सिर्फ आज नहीं, जब भी मैं कहूं, जहाँ कहूं जिसके सामने, खुद टांग फैलाएंगी, चूसेंगी और उनके खूंटे पर चढ़ेंगी, ... अगवाड़ा पिछवाड़ा,... सब और एक बार नहीं तीन तिरबाचा भरवाया। चमेलिया गुलबिया तो गवाह थीं ही, दूबे भाभी भी सुन रही थीं।


बस. रात में तो हम तीनो को ही घर में रहना था, मैं मेरी ननद और मेरा मरद

कब्बडी के बाद सास सब गाँव के बाहर चली जाती थीं वहीँ से, और चौबीस घंटे के बाद लौटती थीं. अगले दिन जब देवर ननद भौजाई की होली होती थी तो कोई ननद, देवर, की महतारी गाँव में नहीं होती थी, तो सास को मेरे होना नहीं था,... और इनको भी रात में लौटना था, खाना हम सब को घर में, इसलिए मैंने ननद को बोल रखा था की वो पूड़ी बखीर बना के रखेंगी। तो जब मैं कमल की माई से मिल के लौटी तो ननद मेरी नहा धो के खाना बना के एकदम तैयार, और घर में घुसते ही मैंने उन्हें अँकवार में भर लिया।



मैंने तो अँकवार में ही भरा था ननदिया को, उन्होंने जबरदस्त चुम्मा ले लिया। सीधे जीभ मेरे मुंह में छल कब्बड्डी खेलने लगी. एकदम उसके भैया वाला स्वाद। मैंने सीधे साड़ी पे हाथ मारा और जोबन पकड़ के दबाने लगी,.... खूब कड़े कड़े, एकदम मुट्ठी में भरने लायक,.. और सोचने लगी ननद के बारे में, सास के बारे में, सावन में जब सिर्फ मैं और ननद थे और क्या मस्ती हम ननद भौजाई ने की
 
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ननद मेरी, चम्पे का फूल

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ननद मेरी एकदम मेरी नकल,... मैं अपनी सास की चिढ़ाती भी थी

" लगता है कभी हमारे बाऊ जी आये थे इधर, वरना हमारी और आपकी बेटी की शकल एकदम मिलती कैसे है "

कभी वो प्यार दुलार से मुझे पकड़ के दबा लेती,... और नम आँखों से कहतीं,

" पागल है तू अरे मेरी असली बेटी तो तू ही है, हरदम रहेगी मेरे पास। बाकी सब तो नीम की चिरैया हैं, आज यहाँ कल उड़ के कहीं और अपना घोंसला बनाने लगेंगी, तिनके तिनके जोड़ कर"

लेकिन थीं तो मेरी सास ही. वो छोड़ दें मैं उन्हें छेड़ने का मौका नहीं छोड़ने वाली थी. मैंने चिढ़ाया,

" फिर तो आपका बेटा पक्का बहन चोद है,... "

" वो अकेला थोड़े ही होगा और न पहला, अरे इस गाँव के सब मरद, बहनचोद पहले हैं,... " सास मेरी हंस के जवाब देतीं ,
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और बात उनकी सही थी, बात ये थी की पहले दिन से मेरी और मेरे सास की दोस्ती पक्की हो गयी थी, आखिर हम दोनों ही तो इस गाँव की बहू थे,... उनका डोला बाइस चौबीस साल पहले उतरा था, मेरा साल भर हुए लेकिन थे तो हम दोनों ही बहू हैं और इस गाँव की लड़कियां हमारी ननदें।

तो आज उनका बेटा असली बहनचोद बनने जा रहा, वो भी मेरे सामने। और पक्का बहनचोद, एकदम खुल्ल्म खुल्ला वाला, सिर्फ एक दिन के बाद मैं थोड़ी छोड़ने वाली थी अपनी ननद को अपने मरद के नीचे लिटा के,...



लेकिन मैं भी न बात कहाँ से शुरू करती हूँ कहाँ पहुंचा देती हूँ इसलिए तो ऐसी कहानियों को न कोई पढता है न कमेंट करता है,



बात हो रही थी ननद के रूप की जोबन की,... मैंने कहा था न एकदम मेरी नक़ल, लम्बाई में एकदम मेरे बराबर, ५-५ से आधा सूत कम, वो भी मैं भी,...



उमर में मुझसे डेढ़ दो साल बरस बड़ी थीं, ... शादी हमारी शादी के दो साल पहले हो गयी थी,

गोरी चम्पई भी मेरी तरह, और जोबन भी एकदम चोली फाड़, थे तो ३४ के लेकिन २८ की कमर पर अच्छे खासे बड़े लगते थे और चोली भी एकदम टाइट पहनती थीं,...
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बस फरक दो था, एक तो वो हंसती थी तो गाल में जबरदस्त गड्ढे पड़ते थे, ... सगाई में आयी थीं तो माँ ने ये गाल का गड्ढा देखकर बोला,

" छिनार क निशानी "

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और दूसरा फरक था तिल. मेरी ठुड्डी पर एक जबरदस्त तिल था और ननद के गाल पर. लेकिन गौने आने के तीन चार महीने बाद हम ननद भौजाई एक मेले में गए, गुदना गुद रहा था। उन्होंने एकदम मेरे तिल की तरह अपनी ठुड्डी पर गुदवा लिया,... और मैं काहें पीछे रहती तो मैंने भी उनके गाल की तरह अपने गाल ओर ठीक उसी जगह, उतना ही बड़ा।

बहुत मजा आया मेले में, और मेले में क्या पूरे सावन में,

सावन में सब लड़कियां अपने मायके जाती हैं, तो मेरी ननद भी आने वाली थीं, और मेरी सास मेरे पीछे पड़ी थीं की मैं मायके जाऊं, और मैंने साफ़ मना कर दिया सास से

" मैं नहीं जाउंगी, मेरी ननद आएँगी, "

मेरी सास कभी हँसे कभी गुस्सा हों, कहने लगी,


" मैं भी न तेरी सकल सूरत देख के ले आयी, थोड़ा सर पर ठक ठक कर के देख लेती अंदर कुछ दिमाग विमाग भी है की नहीं। सब बहुये, मायके जाने के नाम पे बिना सास से बोले सामान बाँध के बैठी रहती हैं और ये लड़की है, चार महीने हो गए, गौने आये, आज तक मायके जाने की बात नहीं और सास बोल भी रही हैं तो साफ़ मना कर रही है, वो भी सावन में "

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उस समय, घर में खाली सास ही थीं,

जेठानी मेरी तो,... एक पैर उनका बंबई में, जेठ जी तो बंबई में ही रहते थे, कुछ काम धंधा था, मेरी शादी और गौने में आये थे, उसके बाद एक दो दिन के लिए एक दो बार, तो जेठानी पंद्रह बीस दिन के लिए जेठ जी के पास गयी थीं साथ में मेरी छोटी ननद भी, तो बस मैं सास और ये,

और मैंने भी सास को साफ़ साफ़ समझाया,


" देखिये मायके में एक तो ज्यादा झूला उला होता नहीं, बहुत हुआ तो बरामदे में एक रस्सी टांग के, यहाँ बाग़ में खुले में झूला झूलने का मजा वो भी ननदों के साथ,


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दूसरे हम सुने हैं की गाँव में मेला, और शहर में कौन मेला, और तीज की तो बात मत करियेगा, हमारे यहां भादो की तीज होती है, अपने बेटे को बोल दीजियेगा, तीज के एक दिन पहले मुझे ले जायँ और अगले दिन वापस ले आएं, बस वो भी आप इतना कह रही हैं नहीं तो क्या ससुराल में तीज नहीं कर सकते ?

लेकिन मेरी सास भी एकदम पीछे पड़ी थीं, पहला सावन, अंत में मैंने उन्हें बोल ही दिया,

" आप बार बार कह रही थीं न सावन में मायके जाने को, कितने साल हो गए आपको इनके मामा के यहाँ गए, तो हो आइये और पन्दरह दिन के पहले लौटीं न तो दरवाजा नहीं खुलेगा, बस मेरी ननद के आने के अगले दिन, और अपने बेटे को भी साथ ले जाइयेगा, आप इनके मामा के साथ झूला झुलियेगा और ये अपनी ममेरी बहनो के साथ, मेरी ननदो के साथ, साथ जाइये साथ आइये, तब तक हम ननद भौजाई यहाँ "
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एक दिन मजाक मजाक में है मैंने असली कारण भी बता दिया,

" देखिये हमारी जेठानी जी आ जाये, दो चार दिन बंबई की थकान मिटा लें, फिर देखा जाएगा, आपको अकेली छोड़ के मैं नहीं जाने वली धक्का देके भी भेजेंगी तो भी नहीं, आपके सर में दर्द होगा तो तेल कौन लगाएगा, फिर मैं मायके में, और लौटी तो देखा की मेरी सास को कोई उठा ले गया, तो दूसरी सास कहाँ से लाऊंगी, आठ दस रूपया देके भी मंगल वाली बजार में नहीं मिलेंगी "
 
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सावन की मस्ती, ननद संग
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मेरी ननद और मैंने खूब मस्ती की, सास तो इनके मामा के पास, ये भी छोड़ने गए तो इनकी मामी ने रोक लिया पांच दसदिन के लिए,

कोई मेला न बचा होगा जहाँ मैं और ननद न गए हों , मैं तो पहली बार गाँव का मेला देख रही थी ननद जी का सब देखा सुना

--- काले उमड़ते, घुमड़ते बादल, बारिश से भीगी मिट्टी की सोंधी-सोंधी महक, चारों ओर फैली हरी-हरी चुनरी की तरह धान के खेत,

हल्की-हल्की बहती ठंडी हवा,
हरी, लाल, पीली, चुनरिया, पहने अठखेलियां करती, कजरी और मेले के गाने के तान छेड़ती, लड़कियों और औरतों के झुंड मस्त, मेले की ओर जा रहे थे, लग रहा था कि ढेर सारे इंद्रधनुष जमीन पर उतर आयें हो।

और उनको छेड़ते, गाते, मस्ती करते, लम्बे, खूब तगड़े गठीले बदन के मर्द भी… नजर ही नहीं हटती थी।

ननद मेरी गाँव की सब ननदों की लीडर, कुँवारी,शादी शुदा,


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और साथ में गाँव की भौजाइयां, गुलबिया, चमेलिया, चुम्मन भौजी,

मैंने बताया था न, मैं और मेरी ननद रंग रूप जोबन सब एक, हाँ सिर्फ मेरी ठुड्डी पे तिल था और ननद के गाल पे और मैंने गाल पे एकदम उसी तरह के तिल का गुदना गुदा लिया और ननद ने मेरी ठुड्डी वाले तिल की तरह, बस अब तो एक बार ये भी देख के न पहचान पाएं,

उन्हें चिढ़ाती भी थी की ननद रानी कभी मुझे समझ के आपके भैया आपके ऊपर चढ़ गए तो,


और मेले की तैयारी भी मेरी ननद ने सिखायी, " अरे भौजी ऐसे कपडे नहीं, मेले में ऐसे चलो की आग लग जाए "

अपने हाथ से खूब चटक लाल साडी और खूब लो काट चोली की तरह का ब्लाउज, निकाल के, फिर तो कोहनी तक चूड़ी,


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बड़े बड़े झुमके, आँख भर काजल, खूब गाढ़ी लाल लिपस्टिक, मेंहदी, पैरों में चटक लाल महावर,

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चौड़ी हजार घंघरू वाली पायल, बड़ी सी लाल बिंदी और तैयार भी हम दोनों एकदम एक जैसे होते, जैसी साडी वो वैसी मेरी लिए, खाली रंग नहीं, पल्लू, डिजाइन, जिस दिन मेरी ननद लाल चूड़ी पहनती मैं भी लाल चूड़ी और जिस दिन मैं हरी चूड़ी पहनती वो सब उतार के फिर से हरी चूड़ी,

दूर से क्या पास से भी देख के कोई ननद भौजाई में अंतर् नहीं बता सकता था,



राजा इंदर की परियों के झुण्ड ऐसे, और कभी मैं गाना छेड़ती कभी मेरी ननद

" पांच रुपया दे दो बालम मेला देखन जाउंगी, "

और सब ननद भौजाई भी साथ, साथ, जहां गाँव क सिवान डका, कोई ससुर जेठ पहचान वाले नहीं होने का डर तो बस भौजियों का भी घूघंट हट जाता था, बस माथा ढका रहता था,
और मेला में अगर ठेला न हो तो मेले का मजा क्या, पहले मेले में ही एक पतला सा रस्ता था, एक संकरी गली सी, नीलू ने मेरी ननद से पूछा

" नयकी भौजी को उधर से ले चले "
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" एकदम, अरे मेले में जबतक ठेले का मजा न मिले, रेलम पेल न हो, "


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और वो दोनों मेरे हाथ पकड़ के उस संकरी गली में धस गयीं मैं भी निश्चिंत थी की मेरी दो दो ननदों ने हाथ पकड़ रखा है क्या होगा, लेकिन पहले धक्के में ही दोनों का हाथ छूटा, उसके बाद तो इतने मर्द, दो चार आगे चल रहे बस रुक जाते, और पीछे वाले धक्का मारते, फिर किसी का हाथ ऊपर से, किसी का चोली के अंदर भी, और खूब हल्ला , मर्दों से ज्यादा लड़कियों औरतों का, मैंने इधर उधर देखा, मेरी ननद दिखी और उनके साथ तो चार चार मर्द, दो ने तो सीधे चोली में हाथ डाल रखा था, एक ने ऊपर से एक ने नीचे से, एक चूतड़ की नाप जोख कर रहा था, एक जांघ सहला रहा था,

ननद मुझे देख के खूब जोर से मुस्करायीं और मैं भी,

गाँव में मेला घूमने आयीं हूँ तो मेले का पूरा मजा ले लूँ।

दो मिनट का रास्ता बीस मिनट में पार हुआ, लेकिन हम सब हंस रही थीं, खिलखिला रही थी, आधी से ज्यादा के तो चोली के एक दो बटन टूट भी गए थे, जो ज्यादा समझदार थीं, उन्होंने पहले से अपने ऊपर के दो बटन खोल दिए थे,

कभी गुड़ की जलेबी की दूकान पे तो कभी चूड़ी वाली के सामने, पूरा मेला हम ननद भौजाई मिल के नापते रहते थे। एक ऊंचा झूला था ,


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जिसपर ज्यादातर औरतें अपने मर्दों के साथ, कुछ ज्यादा हिम्मती अपने यारों के साथ, झूला जब ऊपर से नीचे आता तो खूब जोर से हल्ला होता



मैंने ननद को चिढ़ाया, " का सोच रही हैं ननदोई जी होते तो साथ साथ झूला क मजा लेतीं"

" अरे तो हमार भौजाई कौन ननदोई से कम हैं "

हंसती हुयी वो बोली और हम दोनों झूले पे बैठे बाकी लोगो की तरह हो हो करते, जैसे ही झूला ऊपर गया, मेरी बदमाश ननद मेरे कंधे पे हाथ रख के कस के पकडे थी, चोली ऊपर से दबाते बोली, " काहो भौजी, भैया ऐसे दबाते हैं, "

" नहीं ऐसे " खिलखिलाते हुए मैं बोली और मेरा हाथ ननद की चोली के अंदर,

दो बटन उनके उस गली में यारों ने मसल मसल के तोड़ दिए थे , एक मैंने खोल दिया और सीधे मेरा हाथ ननद के मस्त जोबन का रस लेते कस कस के दबा रहा था, फिर पूरे झूले पर हम दोनोके हाथ एक दुसरे के जुबना का हाल चाल लेते रहे,

बीस तीस कोस में कोई मेला नहीं बचा था, जहाँ हम ननद भौजाई, न गए हों दो चार जगह तो ट्रैक्टर की ट्राली में भी बैठ के गए,
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पूरे गाँव की औरतें हंसती, कहतीं आस पास के गाँव जवार में भी येह ननद भौजाई अस, मेलाघुमनी न होगी,

रात में भी कभी मैं नन्दोई बनती तो कभी वो अपने भैया की जगह लेती, एकदम पक्की दोस्ती, कुछ भी बचा छिपा नहीं था।

लेकिन जब ननद भौजाई बहनों से बढ़ कर, सहेली झूठ ऐसा रिश्ता हो, सुख के साथ ननद अपने दुःख की गठरी पोटरी भी अपने भौजाई के आगे ही खोलती है,



कुछ बातें तो माँ से भी नहीं कही जाती, उनका दुःख ही बढ़ता है, पति से तो सपने में भी नहीं, बहुत अच्छा हुआ तो बोलेगा नहीं वरना कौन मरद अपनी माँ बहन की बुराई सुनता है,


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ननद की ननद
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मैंने ही एक दिन कुरेदा उन्हें, " हे ननद कैसी हैं तोहार "

मुझे मालूम था ग्यारहवें में पढ़ती थी, देखने में भी नाक नक्श अच्छा था, लेकिन थोड़ी नकचढ़ी,

ननद थोड़ी देर चुप रहीं फिर बोली एकदम गुस्से में,... "कंटाइन"

" अरे सब हमरे अइसन किस्मत वाली थोड़े ही होती हैं की मेरी ननद ऐसी ननद मिले, गुड़ की डली। "

उनका गुस्सा कम करने के लिए मैंने बोला और होंठों पर कस के चूम लिया,
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वो मुस्करायीं और फिर दिल का पूरा राज उगल दिया,

" अकेली बहन इनकी तो इन्होने और इनसे ज्यादा इनकी महतारी ने अकेली बेटी और छोटी होने का, दिमाग खराब कर दिया है उसका और कुछ गड़बड़ इन लोगों के सामने भी कर देगी तो बस एक राग, अभी बच्ची है, अभी बहुत छोटी है "

" ग्यारहवें में पढ़ने वाली बच्ची होती है, पावे तो दो दो खूंटा एक साथ घोंट ले "
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मैंने भी ननद के सुर में सुर मिलाया,

ननद थोड़ा मुस्करायीं फिर बोलीं " भौजी एकदम सही लेकिन हमरे सास को और तोहरे ननदोई को कौन समझावे , हरदम गलचौर सहेलियां आती हैं तो महरानी जी कमरे में बैठे बैठे, हुकुम चलाती है, भाभी जरा पकौड़ी, जरा बैगनी, चटनी ताज़ी पीस दीजिये, और नुकूस ऊपर से,
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और होली में तो और छरछंद, हम यहां मायके में देखे थे ननद भौजाई क होली तो सबसे मस्त,



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और हमारी एकलौती ननद, उस समय नौवें में पढ़ती थी, खूब पिलानिंग किये, लेकिन होली के दो दिन पहले से गोड़े मुड़े चादर ओढ़ के, हलका बुखार, और अंदर से दरवाजा बंद, खाना वाना भी ले जाऊं तो बस बाहर रख दीजिये, होली के दिन भी किवाड़ नहीं खुला, सास भी बोलीं जाने दो तबीयत नहीं ठीक है अगले साल, मेरी होली की तो,

और चार दिन बाद उसकी सहेलियों का जमावड़ा,



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मैं गुझिया दहीबड़ा ले कर कमरे में गयी तो वो अपनी सहेलियों से हंस हंस के बतिया रही थी,

भाभी हमारी अपने को बहुत चालाक समझती हैं लेकिन ये नहीं जानती की कैसी ननद है उनकी, उनसे दस गुना होशियार, झूटमूठ का चादर ओढ़ के लेट गयी, उनका सब शौक ननद के साथ, होली खेलने का मट्टी में,


सुन के मैं जलभुन गयी, लेकिन,

" और अगली मतलब पिछले साल की होली में " मैंने पूछा।
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इस साल की होली तो उन्होंने मायके में मनाई थी मेरे साथ, ननदोई जो भी नयी नयी सलहज के साथ होली खेलने का लालच देके लायी थीं साथ

" उस साल मैंने सच में प्लान बनाया, साल भर से ऊपर हो गया था ससुराल में, हमारी जेठान देवरान, दर्जन भर गाँव क भौजाई के साथ, उस साल भी उसका कमरा बंद और अबकी बहाना पढ़ाई का दस बारह दिन बाद बोर्ड का इम्तहान शुरू हो रहा है , हाईस्कूल का। होली के दिन सब भौजाइयां आयीं हम लोगों ने होली खेली आँगन में, सास भी बाहर गयी थीं, ये दोस्तों के साथ बस हम लोगों ने बाहर जाने का नाटक किया और मैं दरवाजा उठँगाते बोली, हम लोग बाहर जा रहे हैं घंटे दो घंटे में आएंगे, रसोई में ताजे दहीबड़े रखे हैं, दरवाजा बंद कर लेना।


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लेकिन मैं और मेरी एक देवरानी हम लोग उसके के कमरे के बगल में ही छिपे, और जैसे ही ननद रानी बाहर आयीं हम दोनों ने छाप लिया, मेरा हाथ सीधे ननद के टॉप के ऊपर से उनके जोबन पे और मेरी देवरानी ने नाड़े को पकड़ने की कोशिश की,

" ये तो बहुत गड़बड़ किया आपने, ननद के कपडे के ऊपर से छूना तो पाप होता है, सीधे अंदर हाथ डालना चाहिए था "

मैं मुस्कराते बोली,


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और अपनी ननद की चोली के अंदर हाथ डाल के उनके मीठे गुलगुले दबाने लगी।

" अरे उसी में उतनी रोई रोहट, चीखना चिल्लाना, ये गँवारू तरीका मुझे पंसद नहीं है, बहुत हुआ तो गुलाल का टीका, आपके मायके में होता होगा ये सब, छोड़िये मुझे, वहां क्यों हाथ लगा रही हैं, मेरी देवरानी ने तो इशारा किया चिल्लाने दो स्साली को, एक बार नंगी पुंगी कर देंगे तो फिर, लेकिन मैं जानती थी, मैंने छोड़ दिया फिर भी उसका चिल्लाना कम नहीं हुआ।

और थोड़ी देर में सास आयीं तो वो भी मेरे ऊपर, नहीं पसंद है लड़की को तो क्यों जबरदस्ती,


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पूरे डेढ़ महीने वो मुझसे नहीं बोली, मैं बार बार, मनाने की कोशिश करती, दस बार हर तरह से लेकिन,
और तोहरे नन्दोई भी, अरे ननद का काम रूठना है, बच्ची है अभी "

मैं ननद की और ननद की ननद की परेशानी समझ गयी थी और उसका हल भी, मैंने पूछ लिया, " आपके ननद का कमरा आपके कमरे से एकदम सटा है का, "

" एकदम बहुत पतली सी दीवाल है, कोई छींके भी तो आर पार सुनाई पड़ता है " ननद ने बताया।

" और नन्दोई चुप्पी चुदाई वाले तो हैं नहीं और नागा भी नहीं करते होंगे "मैंने पूछ लिया
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अब मेरी ननद बहुत देर बाद खिलखिलायीं,


" तोहरे ननदोई, उनका बस चले तो लंड में घुंघरू बाँध के चुदाई करें, जितना आवाज हो , मैं चीखूँ सिसकी भरु, चिल्लाऊं, उन्हें उतना ही मजा आता है और वो भी खूब बोल बोल कर, और नागा की बात भली कही, और औरतों को तो कम से कम महीने में पांच दिन की छुट्टी मिलती है, तोहरे ननद को वो भी नहीं । अगवाड़े की दूकान बंद तो पिछवाड़े की चालू।

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और ओहमें तो और जोश, एक बार में तो उनका मन भरता नहीं "

मैंने कस के ननद के चूतड़ दबाते मसलते बोला, " हे हमरे ननदोई के जिन कुछ दोस धरा, हमरे ननद क चूतड़ अस मस्त की गांड न मारने पे पाप लगेगा लेकिन मैं समझ गयी तोहरी ननद क बीमारी और उसका इलाज "

ननद अब सीरियस हो के मेरा मुंह देख रही थीं,

" तोहरी ननद को चाहिए खूब मोटा तगड़ा लंड जो रुलाये रुलाये के उसकी झिल्ली फाड़े। उसके मन में जलन है, हदस है। रोज रात रात भर भैया भौजी को मस्ती करते हुए सुनती है, शलवार के ऊपर से रगड़ती होगी। और सोच सोच के जलती होगी। फिर अकेली बहन, अकेली बेटी, बियाह के पहले तोहरे मर्द, बहिनी बहिनी, और अब सांझ होते ही भौजी के चक्कर में, इसलिए सुबह से वो काँटा बोतीहै कंटाइन, "मैंने राज खोला
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" तो का करें, " ननद ने परेशान हो कर पूछा।

" हमको काहें बियाह के लायी थीं " उलटे हमने पूछ लिया, और उन्हें चूमते बोली,

" जबतक तोहार भौजी है तो कौन परेशानी, अरे अगले होली के पहले, ओकरे ऊपर चढ़वाऊंगी न, तोहरे भैया से जबरदस्त खूंटा कहाँ मिले, पंचायत क सांड लजा जाएँ उनका देख कर, बस उन्ही को चढ़ाउंगी, जो भौजी का मायका बोलती है न तो वही भौजी क भैया फाड़ेंगे उसकी, अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों, और अगली होली में वो यहीं आएगी और हम दोनों मिल के उसके कपडे फाड़ेंगे, और इसी आंगन में नंगे नचाएंगे,"


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बस तो सावन से हम ननद भौजाई क पक्की दोस्ती, और मस्ती भी, और मिलते भेंटते तो हाल चाल बाद में एक दूसरे का हाथ चोली के अंदर पहले जाता था जोबन क हाल चाल लेने के लिए।
 
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ननद भौजाई
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मैं यादो के सफर से वापस आयी .

बड़ी देर तक हम दोनों का चुम्मा चलता रहा और मैं साड़ी के अंदर हाथ डाल के उनका जोबन मसलती रही. जब मेरी ननद ने मेरे मुंह से जीभ निकाली तो मैंने हँसते हुए उनके निपल को खींच के चिढ़ाते हुए कहा

" अब नौ महीने बाद जब एहमें से दूध बहेगा तो एक से मुन्ना पियेगा चुसूर चुसूर, दुसरे से मुन्ने के मामा '

ननद का चेहरा एकदम खुस, दमकने लगा, मेरी ठुड्डी पकड़ के बोली,

" भौजी तोहरे मुंह में गुड़ घी, सात रंग चुनर तोहें "


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तीन साल उनकी शादी के हो रहे थे पहले दो ढाई साल तो सास ने बर्दास्त कर लिया फिर अब किसी न किसी बहाने टोकना शुरू कर दिया था,... मैंने साफ़ साफ़ पूछ लिया, ...

" लेकिन कहीं गोली ओली तो नहीं खा रही हैं ननद रानी "

" एकदम नहीं सब बंद है " हँसते हुए उन्होंने कबूला और फिर जोड़ा की वो का कहते हैं स्ट्रिप दर्जन भर से ऊपर का के रखी हूँ, कितनी बार चेक की लेकिन,... "

" अरे तो का पता है हो गया हो, एक बार आज चेक कर लीजिये '

" एकदम लेकिन तुम भी " ननद बोली,



और थोड़ी देर में अंदर के कच्चे आंगन में नाली के पास बैठे,...



" अरे मूत न भौजी, ... और बस जैसे धार निकलनी शुरू हो ये पट्टी लगा देना, थोड़ी देर धार सीधे,... " ननद ने समझाया,...

बस सीटी की आवाज निकलनी शुरू हुयी की ननद ने एक स्ट्रिप में धार पे,... और मैं समझ गयी, मैंने अपने हाथ की स्ट्रिप ननद की बुर से एकदम सटा के,...


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और जब हम लोग उठे तो,..दोनों में सिर्फ एक लाइन दिख रही थी, मेरे कुछ समझ में नहीं आया लेकिन ननद रानी हंसती बोलीं

" देख यार, जउने दिन दो लाइन दिखी, तोहार मिठाई पक्की "


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" अरे आज आसीर्बाद मिला है पांच दिन में हो जाएगा दो लाइन,.. पांच दिन बाद भिन्सारे मैं ही चेक करुँगी, जबरदस्त दो लाइन होगी,... और मिठाई तो लूंगी ही लेकिन तबतक थोड़ा खारी नमकीन चिखा दूँ,... "

और वहीँ उन्हें धक्का देकर गिरा के उनके ऊपर चढ़ के अपनी खारे शरबत से अच्छी तरह गीली बुर उनके मुंह पे रगड़ने लगी. कुछ देर तक नखड़ा करने के बाद ननद चूस रही थीं, चूत चटोरी तो वो गजब की थीं।

" पांच दिन बाद तोहार पक्का दो लाइन हो जायेगी, लेकिन बियाओगी कहाँ " मैंने ननद को उकसाया। पल भर के लिए मुंह हटा के बोलीं वो,...

" और कहाँ यही, भौजी हैं न सौरी रखाने को, करोगी न। वहां तो नेग के नाम पे सास ननद लूट लेंगी। "

" एकदम पक्का, ... कुल इंतजाम हमरे जिम्मे, लेकिन एक नेग मैं भी नेग लूंगी। पहली धार मुन्ने के बाद मुन्ने के मामा के मुंह में जायेगी। "


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" मंजूर, लेकिन होलिका माई वो दिन दिखावें " ननद बोली,... और मैंने बाजी पलट दी, और अब मैं ननद की जाँघों के बीच में मैं चूस रही थी।


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थोड़ी देर में इसी बुर में मेरे मर्द का मोटा लंड घुसेगा।

थोड़ी देर में ही ननद रानी की बिल पनिया गयी. वैसे ही वो गर्मायी हुयी थीं, कुछ होलिका माई के भभूत का असर जो उन्होंने अपने हाथ से मेरी ननद के जोबन और बिल दोनों पर मला था, दूसरे ये आसिरबाद की पांच दिन के अंदर वो गाभिन हो जाएंगी,... और कबड्डी और उसके बाद की मस्ती के बाद सब औरतें एकदम माती थीं,...

ननद की प्रेम सुरंग की दोनों फांको को फैला के मैं उसी से बोली,..

" हे बुर महरानी तोहार जय हो, जो देख देख के झांट आने पहले से पनिया रही थी, ... वो अब नूनी नहीं रहा मस्त लौंड़ा हो गया, गदहा घोडा मात उसके आगे. तो आज वही मिलेगा, ओके घोंटा, ओकर मलाई घोंटा और ठीक नौ महीने बाद अँजोरिया अस बिटिया उगला एही मुंह से,.... "


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ननद मेरी खूब खुश, खिलखिला रही थी,... मेरी बात सुन के,

और मैंने फिर अपनी हथेली ननद की बिल पे रगड़ना शुरू किया और दूसरे हाथ से उनके जोबन को हलके हलके सहलाना, और छेड़ना,...
" अरे जब कच्ची अमिया था तब से मेरा मरद ललचा रहा था आज कुतरेगा कस कस के,,,,”

और मैंने पलटी मारी, ऐसी मस्त चूँचियाँ मसली, ... अरे मेरा मरद मसलेगा रगड़ेगा, लेकिन अभी तो मैं मज़ा ले लूँ, दोनों मेरी मुट्ठी में आ गयीं, और मैं सरक कर ऊपर, मेरे होंठ ननद के होंठों के ऊपर,... कस कस के मैंने चूसना शुरू कर दिया,.. और जैसे कुछ देर में उसका भाई मेरा मरद चढ़ेगा रगड़ेगा अपनी बहन बस एकदम उसी तरह, खुली टांगों के बीच मैं,...

और अपनी चूत से ननद जी की चूत रगड़नी शुरू कर दी.


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झांटे उनकी भी सफाचट्ट थीं, मेरी भी मक्खन मलाई चिकनी चमेली। जैसे दर्जा दस वाली कोई दो सहेलियां पहली बार आपस में चूत रगड़घिस्स कर के झड़ने, झाड़ने की कोशिश कर रही हों एकदम वैसे ही. ननद भी मेरी उसी तरह जोश में नीचे से चूतड़ उठा उठा के, गोल गोल घुमा के अपनी बुर मेरी बुर पे रगड़ रही थी, दोनों की बिल से एक तार की चासनी निकलने लगी.

लेकिन उस चासनी का फायदा का, जब तक कोई चटोरी चाटने वाली न हो, और ननद की चूत सबसे पहले तो भाभी ही चाटती है,... तो मैं एक बार फिर से सरक के नीचे, और उस शहद के छत्ते में मुंह लगा दिया, चुसूर चुसूर,...



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और जैसे दही बिलोड़ने के लिए कोई मथानी डालें, अपनी तर्जनी ननद की बिल में लेकिन मैं चौंक गयी. स्साली छिनार की कितनी टाइट थी. पता नहीं कब से चुद रही थी, ब्याह के पहले से,... और ननदोई भी नंबरी चोदू, फिर ससुराल में इनके देवर, नन्दोई भी तो नंबर लगाते ही होंगे, लेकिन अभी भी गौने की रात की तरह,... मैं गोल गोल ऊँगली घुमा रही थी, और चाशनी और निकलने लगी, मस्ती से नन्द चूतड़ उछाल रही थी, सिसक रही थी,



" हाँ, भौजी हाँ, हाँ ऐस , ओह्ह्ह बहुत अच्छा लग रहा है "



जो ननद को अच्छा लगता है वो भौजाई को कभी अच्छा लग सकता है, सूरज उस दिन पच्छिम से निकलेगा।



मैंने ऊँगली निकाल ली और ननद बेचारी तड़प उठी, जैसी बिना झाड़े, बिना झड़े कोई मरद खाली तंग करने के लिए मस्तायी औरत की बिल से खूंटा बाहर खींच ले.

लेकिन मेरे तरकश में एक ही हथियार थोड़े ही थे और इसी ननद के बीरन से सीखा था खेल तमासा,

दोनों फांको को जोड़ के मैं दोनों उँगलियों से आपस में रगड़ने लगी , ... जीभ मेरी क्लिट पर पतुरिया की तरह नाच रही थी.
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और चासनी और जोर से निकलने लगी, और ननद झड़ने के करीब,.. मैंने फिर उँगलियाँ हटा ली और अब ऊँगली की जगह मेरी जीभ उसकी बुर में और मैं कस कस के चाट रही थी, उँगलियाँ अब क्लिट को रगड़ रही थीं, चासनी सब मेरे होंठों पर लिथड़ रही थी, ...

" ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ हां भाभी, भौजी ओह्ह्ह भौजी झाड़ दो , तोहार गोड़ पड़ रही हूँ " ननद सिसक रही थी.

पहले बोल आज किससे चुदाई होगी ननद की

" ननद के भाई से " वो बोली।

" अरे नहीं कस के जोर से बाहर तक सुनाई पड़े,... तभी ये बुर झड़ेगी " मैंने शर्त रख दी।
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" अरे भाभी, आज अपने भैया से तोहरे सैंया से चुदवाउंगी, अपने भैया का मोटा लंड लूंगी चूत में ऐसी आग लगी पता नहीं भैया कहाँ रह गए आने दो। वो नहीं चढ़ेंगे तो मैं चढ़ के चोद दूंगी अपने भैया को "

वो जोर जोर से चिल्ला रही थी।

मैं समझ रही थी की बस अभी कुण्डी खटकेगी, वो आ गए हैं और अपनी बहन की एक एक बात सुन रहे होंगे, मैं और कस के चूसने लगी, ढेर सारी चूत की चाशनी मेरे होंठों पर,...

तभी कुण्डी खटकी

" आगया तुझे झाड़ने वाला " मैं हंस के बोली और हम दोनों ने जल्दी से साड़ी बस लपेट ली।
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न ब्लाउज न साया, चड्ढी बनयाइन का तो सवाल ही नहीं था, न मैं पहनती थी न वो न गाँव में कोई और. बस उभारों पर कस के बाँध लिया, हम दोनों के जोबन जोर से छलक रहे थे। और वो बस झड़ते झड़ते रह गयी थी थीं, तो चेहरे से भी खूब गरम एकदम चुदवासी, लग रही थीं, निप भी टनाटन, चूँची भी एकदम पथराई,...
 
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आ गए ननद के भइया
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वो आये तो कभी मुझे देखते कभी अपनी गर्मायी मस्तायी बहिनिया को, खूंटा बस टनटनाने लगा, मैंने अपनी ननद को देखा उनकी निगाह भी चोरी छुपे वहीं खड़े होते,


मैंने कस के उन्हें बाँहों में बाँध लिया और अपने जोबन को अपने मरद के चौड़े सीने पे रगडते कस के चुम्मी ले ली, और एक दो नहीं दसों बीसो, अपने होंठ रगड़ती रही उनके मुंह पे,... और उनकी बहन की चूत की जो चासनी मेरे मुंह में लगी थी सब उनके होंठों पे लिथेड़ दी, और उन्होंने भी जीभ निकाल के मेरे होंठ से चाट लिया,...

कौन मर्द होगा जो चूत रस न पहचानता होगा, उसका स्वाद महक न जानता हो. और मेरा मरद तो जबरदस्त चुदक्क्ड़,

मुझे तो इसी काम के लिए मेरी माँ ने उनके साथ भेजा था, लेकिन मेरी माँ बहन भाई किसी को भी नहीं छोड़ा, न अगवाड़ा, न पिछवाड़ा ( न बिस्वास हो तो मेरी इसी कहानी की प्रीक्वेल पढ़ लीजिये, मजा पहली होली का ससुराल में ) और अब मैं उसे उसकी माँ बहन पर चढ़वाने वाली थी, वो भी अपने सामने आज बहन का नंबर कल उनकी माँ का।


चुम्मा चुम्मी के साथ साथ मैं उनका खड़ा होता खूंटा भी खूब कस के रगड़ रही थी, और उन्हें चिढ़ाते बोली,


" रसमलाई की चासनी अच्छी लगी, अरे रसमलाई, अच्छी लगी हो जो सामने खड़ी मुस्करा रही हैं उन्ही की है मांग लीजिये दे देंगी। मेरी ननद बड़ी अच्छी हैं जब से झांटे आयीं किसी को मना नहीं किया तो अपने भैया को काहें मना करेंगी। और मांगने की का जरूरत है आज उनके सैंया भी नहीं है, बस सीधे से ले लीजिये, अच्छा चलिए गले तो मिल लीजिये वरना कहेंगी की भाई बहन के बीच ये बाहर वाली भौजाई आ गयी.


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कुछ मेरी जोबन की रगड़ाई का असर, कुछ मेरी ननद के जोबन का असर,... थोड़ा वो बढे, ज्यादा वो बढ़ीं, और दोनों एक दूसरे की बांहो में,

खूंटा तो कुछ पहले से देख के खड़ा था, बाकी मैंने रगड़ रगड़ के खड़ा कर दिया था,


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और ननद मेरी पैदायशी छिनार, उसने अपना इरादा साफ़ कर दिया अपनी जाँघों के बीच से खूंटा रगड़ के,


" अरे एक चुम्मा तो ले लो " मैंने चिढ़ाया और किचेन में,... और मुड़ते मुड़ते मैंने देखा पहल ननद ने ही की चुम्मा लेने की, लेकिन हर बार होता शुरू तो औरत करती है लेकिन अंजाम पर मरद पहुंचाता है, और क्या जबरदस्त चुम्मी ली उनके भैया ने और खुल के बहना के जोबन भी दबाना शुरू कर दिया,...

खाना निकालते समय मैंने थोड़ी बेईमानी कर दी,..

दूबे भाभी को मैंने थोड़ा इशारा कर दिया था, और उन्हें तो अंदाजा था ही की आज क्या होना है।

दूबे भाभी के इशारे पर उन्ही के सपोर्ट से मैंने ननद से तीन तिरबाचा भरवाया था की आज और सिर्फ आज नहीं जब कहूँगी तब, मेरे सामने मेरे मरद का उन्हें घोंटना है,.. और दूबे भाभी ने पांच पुड़िया हरे रंग की और पांच लाल रंग की मुझे दे दी थीं अपने जड़ी बूटी के खजाने से निकाल कर,

हरे रंग वाली ननद के लिए,


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ननद क्या किसी भी औरत के लिए, बस आधे घंटे में ऐसी मस्ती चढ़ती थी की भाई, बेटा, सगा पराया कुछ नहीं देखती, खुद ही बिल फैला के चढ़ जाती,... और दस बारह घंटे तक तो चुदवाने के अलावा कुछ सूझता नहीं और बाद में भी बस वही,


लाल पुड़िया मर्द के लिए,

और पहला असर तो वहीं बहन महतारी कुछ नहीं सूझती थी, बस बुर नजर आती थी. वो मना भी करे, टाँगे भी सिकोड़े तो जबरदस्ती बिन पेले नहीं छोड़ने वाला था,...

और दूसरी अगर उसमें एक सांड़ की ताकत हो तो दस सांड़ की, मैंने हंस के पूछा दूबे भौजी से, आपके देवर में तो पहले से ही दस सांड़ की ताकत है,... वो क्यों छोड़तीं, बोलीं तो अच्छा है न आज तोहरी ननद पर रात भर रोलर चलेगा,...


लेकिन असली बात उन्होंने अंत में बताई,...


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वीर्यवर्धक, वीर्य को शक्तिवान बनाने की,... जिसका दो बूँद निकलता है वो भी कटोरी भर मलाई छोड़ेगा,... लेकिन उससे भी बढ़ के, ... अगर उस वीर्य की दो बूँद भी किसी सालों से सूखे पेड़ पर पड़े तो वो हरहरा उठे,... औरत की कोख में तो तुरंत,...


ननद को जो आशिर्बाद मिला था, पांच दिन के अंदर गाभिन होने का वो उन्होंने भी सुना था,...

तो बस हरी वाली ननद की खीर में और लाल वाली पुड़िया ननद के यार और अपने भतार की खीर में,..


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"हे चुम्मा चाटी हो गयी हो तो खाना खा लीजिये, आज हमारी ननद ने जबरदस्त खीर बनायी है, "

मैंने आवाज दी


और खाने के समय भी नजरों के तीर और ननद के साथ अच्छे वाले मजाक चालू रहे,

बेचारे उनकी हालत खराब थी कभी साड़ी में टाइट बंधे मेरे उभार पर निगाह लुढ़कती तो कभी अपनी बहन को कड़े कड़े गदराये जोबन पे फिसलती जिसे उन्होंने कच्ची अमिया से गदराते देखा था


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" अरे इत्ता ललचा रहे हो तो खोल के दिखा देती हूँ,... "

और मैंने उनकी बहन के जोबन पर से साड़ी हटा दी,... दो पूनो के चाँद एक साथ आसमान में निकल आये, गोरी तो मेरी ननद थीं ही खूब जोबन भी गद्दर भी कड़े भी, और मस्ती से निपल टनटनाये भी,...


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" बस थोड़ी देर इन्तजार करो, मिलेगा, हम दोनों रसोई समेट के आ रहे हैं " मैं बोली और धक्का देकर उन्हें उनके बिस्तर पर,



और हम ननद भौजाई रसोई में, बरतन पोंछा,... जो काम पौन घण्टे में होता था रोज आज बीस मिनट में मुझसे ज्यादा मेरी ननद को जल्दी थी।



और हम दोनों उनके पास कमरे में
 
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komaalrani

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खेला शुरू

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वो सिर्फ शार्ट में तम्बू तना हुआ,... कभी मुझे अपनी बहन को,...

मैंने उनकी बहन को उन्हें दिखा के कस के चूम लिया, और चिढ़ाया,



" मन कर रहा है, अरे दिलवा दूंगी। "
वो ना में सर हिलाते मना करते उसके पहले मैंने हड़का लिया,

" अबे स्साले, तुझे आम खाने से मतलब है या ये जानने से किस पेड़ का आम है. बोला न मिलेगा, बस मुंह मत खोलना "


मेरी ननद भी मूड में थीं, मेरी तरफ से बोली,... " अरे भाभी, मैं बचपन से जानती हूँ इसे नंबरी बदमाश, इसकी आँख बंद करनी पड़ेगी वरना ये ऐसे ही ललचाता रहेगा। "
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" एकदम सही कहा और आँख बंद करने के लिए इनकी बहन की साड़ी से बढ़िया क्या होगा" और मैंने झट से ननद की साड़ी खोल दी, और उसी साड़ी से मैंने और उनकी बहन ने मिल के आँखे कस के बंद कर दी, अब लाख कोशिश करें कुछ नहीं दिखाई पड़ने वाला था,

" तो आपकी साड़ी बचेगी क्या " ननद हंस के बोली,

और बचाना भी कौन चाहता था, ननद भौजाई एक ही हालत में, तो फिर ननद के भाई को मैं काहें छोड़ देती, एक झटके में मैंने शार्ट खींच लिया और ननद की आँखे फैली रही गयीं, जैसे कह रही हों वाह कितना मस्त, कितना मोटा और कितना कड़ा,

मैंने ननद की टनटनायी घुंडी घुमाते कान में चिढ़ाया, ...

" अभी बिल में अंदर घुसेगा तब पता चलेगा,... और चढ़ के लेना होगा "



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उनकी आँखों ने कह दिया की वो एकदम तैयार है, ...

लेकिन मुझे अपने मर्द को और तैयार करना था एकदम पागल, आखिर पहली बार अपनी बहन को मेरे सामने चोदने वाले थे वो, मेरी नाक का सवाल था, जब तक फाड़ के चीथड़े न कर दे मेरी सगी ननद की मेरा साजन,...

तैयार तो वो थे लेकिन बिना तड़पाये कौन लड़की देती है और आज ये मोटू मेरी ननद की बिल में मेरे सामने घुसने वाला था,...

मैंने पहले छोटे छोटे चुम्मे लिए सुपाड़े से लेकर खूंटे के बेस तक, फिर सिर्फ जीभ निकाल के नीचे से ऊपर तक लिक कर के, कभी जीभ की नोक उनके सुपाड़े के मूत वाले छेद पे बस छेड़ देती


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और फिर सपड़ सपड़ जीभ से सुपाड़े को,... बार बार,... बस सिर्फ जीभ, होठ भी नहीं,...

और एक झटके में जीभ एकदम नीचे दोनों बॉल्स, रसगुल्लों पर, ... उन दोनों की चमचागिरी करना तो बहुत जरूरी था, वहीँ तो वो अमृत बनता है जो मेरी ननद को गाभिन करेगा,...
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उनसे नहीं रहा जा रहा था, वो तड़प रहे थे, कभी चूतड़ पटकते थे कभी सिसकते थे, कसमसा रहे थे,

लेकिन मजा तो मुझे उनकी यही हालत देख कर होती थी, पर अब मुझसे भी बिना चूसे नहीं रहा जा रहा था, मैंने दोनों बॉल्स एक साथ मुंह में भर ली और लगी चूसने,



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और मेरी तर्जनी बस एक लाइन सी खींच रही थी लम्बे नाख़ून से सैयां के लंड पे नीचे से ऊपर तक,... कभी उसी तर्जनी से सुपाड़े को रगड़ दे रही थी और मना रही थी, उस बांस को,

"आज मेरी ननद के चिथड़े चिथड़े कर देना,... अगर कल ननद बिस्तर से उठने के लायक न रही न तो बस तुझे तेरी महतारी, ... तेरे मायके वाली सब औरतों लड़कियों की दिलवाऊंगी। कुँवारी भोंसडे वाली बच्चों वाली सब की बिल में घुसवाऊँगी अगर आज मेरी ननद की,"


मेरी ननद की हालत भी बहुत खराब थी. बेचारी की बुर रानी नौ नौ आंसू रो रही थीं, इत्ता मस्त खूंटा सामने और मिल नहीं रहा था,...

अब ननद का ख्याल भौजाई नहीं रखेगी तो कौन रखेगा, उसकी खराब हालत को और खराब करने की जिम्मेदारी तो भौजाई की है, बस मैं ननद की दोनों गीली फांकों को एक हाथ से पकड़ा कर कस कस के रगड़ने लगी, थोड़ी देर में एक तार की चासनी निकलने लगी.

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मुड़ के मैंने ननद का एक खूब गीला चुम्मा लिया और उसी भीगे होंठ से सीधे ननद के भैया के खुले सुपाड़े को चूम लिया,... और गप्पांक एक झटके में पूरा नहीं आधा सुपाड़ा गप्प, ननद को दिखा दिखा के चूस रही थी और थूक के सहारे, गीले होंठों के सहारे पूरा सुपाड़ा गप,
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और इशारे में ननद से पूछा चाहिए, उसने जोर से सर हाँ में हिलाया,...

बस मैं हट गयी और उनकी बहन अपनी गीली बुर की दोनों फांको को फैला के अपने भैया के मोटे सुपाड़े के ऊपर, बस किसी तरह फंसा दिया,...


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नीचे से बहन के भैया ने धक्का मारा,

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Sutradhar

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ननद मेरी, चम्पे का फूल

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ननद मेरी एकदम मेरी नकल,... मैं अपनी सास की चिढ़ाती भी थी

" लगता है कभी हमारे बाऊ जी आये थे इधर, वरना हमारी और आपकी बेटी की शकल एकदम मिलती कैसे है "

कभी वो प्यार दुलार से मुझे पकड़ के दबा लेती,... और नम आँखों से कहतीं,

" पागल है तू अरे मेरी असली बेटी तो तू ही है, हरदम रहेगी मेरे पास। बाकी सब तो नीम की चिरैया हैं, आज यहाँ कल उड़ के कहीं और अपना घोंसला बनाने लगेंगी, तिनके तिनके जोड़ कर"

लेकिन थीं तो मेरी सास ही. वो छोड़ दें मैं उन्हें छेड़ने का मौका नहीं छोड़ने वाली थी. मैंने चिढ़ाया,

" फिर तो आपका बेटा पक्का बहन चोद है,... "

" वो अकेला थोड़े ही होगा और न पहला, अरे इस गाँव के सब मरद, बहनचोद पहले हैं,... " सास मेरी हंस के जवाब देतीं ,
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और बात उनकी सही थी, बात ये थी की पहले दिन से मेरी और मेरे सास की दोस्ती पक्की हो गयी थी, आखिर हम दोनों ही तो इस गाँव की बहू थे,... उनका डोला बाइस चौबीस साल पहले उतरा था, मेरा साल भर हुए लेकिन थे तो हम दोनों ही बहू हैं और इस गाँव की लड़कियां हमारी ननदें।

तो आज उनका बेटा असली बहनचोद बनने जा रहा, वो भी मेरे सामने। और पक्का बहनचोद, एकदम खुल्ल्म खुल्ला वाला, सिर्फ एक दिन के बाद मैं थोड़ी छोड़ने वाली थी अपनी ननद को अपने मरद के नीचे लिटा के,...



लेकिन मैं भी न बात कहाँ से शुरू करती हूँ कहाँ पहुंचा देती हूँ इसलिए तो ऐसी कहानियों को न कोई पढता है न कमेंट करता है,



बात हो रही थी ननद के रूप की जोबन की,... मैंने कहा था न एकदम मेरी नक़ल, लम्बाई में एकदम मेरे बराबर, ५-५ से आधा सूत कम, वो भी मैं भी,...



उमर में मुझसे डेढ़ दो साल बरस बड़ी थीं, ... शादी हमारी शादी के दो साल पहले हो गयी थी,

गोरी चम्पई भी मेरी तरह, और जोबन भी एकदम चोली फाड़, थे तो ३४ के लेकिन २८ की कमर पर अच्छे खासे बड़े लगते थे और चोली भी एकदम टाइट पहनती थीं,...
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बस फरक दो था, एक तो वो हंसती थी तो गाल में जबरदस्त गड्ढे पड़ते थे, ... सगाई में आयी थीं तो माँ ने ये गाल का गड्ढा देखकर बोला,

" छिनार क निशानी "

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और दूसरा फरक था तिल. मेरी ठुड्डी पर एक जबरदस्त तिल था और ननद के गाल पर. लेकिन गौने आने के तीन चार महीने बाद हम ननद भौजाई एक मेले में गए, गुदना गुद रहा था। उन्होंने एकदम मेरे तिल की तरह अपनी ठुड्डी पर गुदवा लिया,... और मैं काहें पीछे रहती तो मैंने भी उनके गाल की तरह अपने गाल ओर ठीक उसी जगह, उतना ही बड़ा।

बहुत मजा आया मेले में, और मेले में क्या पूरे सावन में,

सावन में सब लड़कियां अपने मायके जाती हैं, तो मेरी ननद भी आने वाली थीं, और मेरी सास मेरे पीछे पड़ी थीं की मैं मायके जाऊं, और मैंने साफ़ मना कर दिया सास से

" मैं नहीं जाउंगी, मेरी ननद आएँगी, "

मेरी सास कभी हँसे कभी गुस्सा हों, कहने लगी,


" मैं भी न तेरी सकल सूरत देख के ले आयी, थोड़ा सर पर ठक ठक कर के देख लेती अंदर कुछ दिमाग विमाग भी है की नहीं। सब बहुये, मायके जाने के नाम पे बिना सास से बोले सामान बाँध के बैठी रहती हैं और ये लड़की है, चार महीने हो गए, गौने आये, आज तक मायके जाने की बात नहीं और सास बोल भी रही हैं तो साफ़ मना कर रही है, वो भी सावन में "

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उस समय, घर में खाली सास ही थीं,

जेठानी मेरी तो,... एक पैर उनका बंबई में, जेठ जी तो बंबई में ही रहते थे, कुछ काम धंधा था, मेरी शादी और गौने में आये थे, उसके बाद एक दो दिन के लिए एक दो बार, तो जेठानी पंद्रह बीस दिन के लिए जेठ जी के पास गयी थीं साथ में मेरी छोटी ननद भी, तो बस मैं सास और ये,

और मैंने भी सास को साफ़ साफ़ समझाया,


" देखिये मायके में एक तो ज्यादा झूला उला होता नहीं, बहुत हुआ तो बरामदे में एक रस्सी टांग के, यहाँ बाग़ में खुले में झूला झूलने का मजा वो भी ननदों के साथ,


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दूसरे हम सुने हैं की गाँव में मेला, और शहर में कौन मेला, और तीज की तो बात मत करियेगा, हमारे यहां भादो की तीज होती है, अपने बेटे को बोल दीजियेगा, तीज के एक दिन पहले मुझे ले जायँ और अगले दिन वापस ले आएं, बस वो भी आप इतना कह रही हैं नहीं तो क्या ससुराल में तीज नहीं कर सकते ?

लेकिन मेरी सास भी एकदम पीछे पड़ी थीं, पहला सावन, अंत में मैंने उन्हें बोल ही दिया,

" आप बार बार कह रही थीं न सावन में मायके जाने को, कितने साल हो गए आपको इनके मामा के यहाँ गए, तो हो आइये और पन्दरह दिन के पहले लौटीं न तो दरवाजा नहीं खुलेगा, बस मेरी ननद के आने के अगले दिन, और अपने बेटे को भी साथ ले जाइयेगा, आप इनके मामा के साथ झूला झुलियेगा और ये अपनी ममेरी बहनो के साथ, मेरी ननदो के साथ, साथ जाइये साथ आइये, तब तक हम ननद भौजाई यहाँ "
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एक दिन मजाक मजाक में है मैंने असली कारण भी बता दिया,

" देखिये हमारी जेठानी जी आ जाये, दो चार दिन बंबई की थकान मिटा लें, फिर देखा जाएगा, आपको अकेली छोड़ के मैं नहीं जाने वली धक्का देके भी भेजेंगी तो भी नहीं, आपके सर में दर्द होगा तो तेल कौन लगाएगा, फिर मैं मायके में, और लौटी तो देखा की मेरी सास को कोई उठा ले गया, तो दूसरी सास कहाँ से लाऊंगी, आठ दस रूपया देके भी मंगल वाली बजार में नहीं मिलेंगी "

कोमल मैम

" लेकिन मैं भी न बात कहाँ से शुरू करती हूँ कहाँ पहुंचा देती हूँ इसलिए तो ऐसी कहानियों को न कोई पढता है न कमेंट करता है,"

अब ये तो इमोशनल ब्लैकमेलिंग है। यहां हम अपडेट का इंतजार करते - करते थेथर हुए पड़े रहते ओर आप है कि छेड़े बिना मानती नहीं है।

बिलकुल नशेड़ियों जैसी हालत कर दी है आपने। आपकी पुड़िया जैसा माल किसी थ्रेड पर नहीं मिलता, कसम से।

सादर
 

Shetan

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भाग ८४ -इन्सेस्ट कथा - ननद के भैया बने उनके सैंया


मेरी ननद, मेरा मरद
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जिस दिन भौजाई गौने उतरती है और उसकी नजर अपनी ननद पर पड़ती है, वो मन ही मन अपने भाई का टांका उससे भिड़वाने का सोचने लगती है,

कैसे ननद के ऊपर अपने भाई को चढ़ाये, चाहे कुंवारी हो या बियहता, बस उस भौजाई के मन में एक ही शकल बार बार घूमती है, की ननदिया लेटी है टाँगे ऊपर किये, जाँघे फैलाये और उसका भाई गपागप, गपागप, ननद रानी की ओखली में अपना मूसल चला रहा है,


पर गौने की रात में जब भौजाई की फटती है,
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रात भर ननद का भाई उसके ऊपर चढ़ता है, सुबह तक जाँघे फटी पड़ी रहती हैं, जमींन पर पैर नहीं रखा जाता, दो ननदें टांग कर बिस्तर से उठा कर ले जाती है, दीवार के सहारे से चलना पड़ता है तभी भी बार बार चिल्ख उठती है, और नंदों के झुरमुट में वैसी ननदें भी जिनकी झांटे भी ठीक से नहीं आयी होती, पूछती हैं,

" भौजी केतना मोट था, बहुत दर्द हुआ का,"
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और गाँव देहात में तो कई बार दो चार बरजोर तगड़ी ननद मिल के औचक भौजी का दोनों हाथ पीछे से पकड़ लेती हैं, छुड़ाने का तो दूर, भौजाई हिल नहीं पाती, घूंघट ऊपर से, फिर बाकी सब ननदें धीरे धीरे आराम से भौजी का लहंगा ऊपर सरकाती जाती हैं, और जहाँ जांघ तक पहुंचा तो एक झटके में कमर तक, और दो चार ननदें तैयार रहती हैं पहले से, कमर पे उसे पकड़ने को,

और बुलबुल दिख जाती है, रात भर का धक्का खा खा के एकदम लाल, और बजबजाती मलाई, अभी भी बूँद बूँद रिसती,


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जेठानियाँ, और सास लोग, जहाँ ये सब शुरू हुआ खुद सरक लेती हैं, दरवाजा उठँगा देती है हाँ काम करने वाली जो रिश्ते में ननद ही लगती है, कुँवारी, ब्याहता वो सब जरूर और सब को उकसाती है, अरे ऊपर वाल मुंह तो सास जेठानी देखती हैं, ननदें तो नीचे वाला ही देखती हैं,



फिर छेड़ने वाले सवाल जवाब, "भैया ने कितनी बार किया, देख यार एकदम लाल हो गया है बुलबुल का मुंह बहुत जोर के धक्के पड़े होंगे"

और फिर नयी नयी भौजाई के मन में यही आता है, कोई कोई तो ननद को चिढ़ाते अपनी जेठानी से बोल भी देती हैं

" दीदी आज रात को इन्ही को भेज दीजिये अपने देवर के पास, पता चला जाएगा, धक्का कितनी जोर का पड़ता है, मोटा कितना है "
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और उसी समय से भौजाई सोचती है किसी दिन मौका पड़ने पे इसके भैया को इसके ऊपर न चढ़ाया तो,


तो बस मैंने भी सोच रखा था गौने के अगले ही दिन, ननद पे इनके भैया को चढाने की बात, ज़रा इनको भी पता चल जाए,




और अब वो मौका आ गया था।



हम तीनों की, मेरी चमेलिया और गुलबिया की चाल चल गयी, ननद रानी हदस गयी. समझ नहीं पायीं तीन तीन भौजाई की चाल,.. खुद ही उन्होंने कबूल कर लिया , मैं कुछ भी कहूं उन्हें कबूल होगा, लेकिन दो दो मुट्ठी से बचा लूँ,


यही तो मैं चाहती थी और सबके सामने उनसे कबूल करा लिया,... मेरे मरद के साथ, मेरे सामने,... और सिर्फ आज नहीं, जब भी मैं कहूं, जहाँ कहूं जिसके सामने, खुद टांग फैलाएंगी, चूसेंगी और उनके खूंटे पर चढ़ेंगी, ... अगवाड़ा पिछवाड़ा,... सब और एक बार नहीं तीन तिरबाचा भरवाया। चमेलिया गुलबिया तो गवाह थीं ही, दूबे भाभी भी सुन रही थीं।


बस. रात में तो हम तीनो को ही घर में रहना था, मैं मेरी ननद और मेरा मरद

कब्बडी के बाद सास सब गाँव के बाहर चली जाती थीं वहीँ से, और चौबीस घंटे के बाद लौटती थीं. अगले दिन जब देवर ननद भौजाई की होली होती थी तो कोई ननद, देवर, की महतारी गाँव में नहीं होती थी, तो सास को मेरे होना नहीं था,... और इनको भी रात में लौटना था, खाना हम सब को घर में, इसलिए मैंने ननद को बोल रखा था की वो पूड़ी बखीर बना के रखेंगी। तो जब मैं कमल की माई से मिल के लौटी तो ननद मेरी नहा धो के खाना बना के एकदम तैयार, और घर में घुसते ही मैंने उन्हें अँकवार में भर लिया।



मैंने तो अँकवार में ही भरा था ननदिया को, उन्होंने जबरदस्त चुम्मा ले लिया। सीधे जीभ मेरे मुंह में छल कब्बड्डी खेलने लगी. एकदम उसके भैया वाला स्वाद। मैंने सीधे साड़ी पे हाथ मारा और जोबन पकड़ के दबाने लगी,.... खूब कड़े कड़े, एकदम मुट्ठी में भरने लायक,.. और सोचने लगी ननद के बारे में, सास के बारे में, सावन में जब सिर्फ मैं और ननद थे और क्या मस्ती हम ननद भौजाई ने की
ये तो सच ही है. अब भाभियाँ अपनी छिनार नांदिया की नथ नहीं उतारेगी तो कौन उतरेगा. और वो भी भौजी के भाइयो से. पर उसके भैया को भी क्यों छोड़ना साजन हो या देवर चढ़ेंगे अपनी बहेनिया पे. अरे ये तो भौजी का दिया हुआ आशीर्वाद होता है. छिनार नंदियाओ के लिए. सदा फाड़वाती रहो. अपने और भौजी के भाइयो के खुटे पर दोनों टांगे फैलाकार कुढ़ती रहो. जिला टॉप बनो.

और ये नांदिया छिनारे भौजी का साया उठाकर देकती है की भईया की मोटाई कितनी है. डाया नापति है बेचारी.

खास साजनजी के निचे उनकी बहेनिया को देखने का माझा कुछ और ही है. माझा आ गया.
 
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