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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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हल्दी की रसम डाक्टर भौजी

" भौजी हँसते हुए बोलीं

“अरे मैं अपने लिए पूछ रही थी, हल्दी चुमावन सब रस्म होगी न, तो भौजाई हूँ तो जब हल्दी लगाउंगी, बिना ननद की चुनमुनिया में अच्छी तरह हल्दी पोते कहीं भौजाई की हल्दी की रस्म होती है। “



माँ को लग रहा था की डाकटर भौजी ऐसे ही, …जो इतनी बिजी हैं, सुबह से लेकर रात तक, दस दिन का अप्वाइंटमेंट मिलता है वो कहाँ गाँव वाली रस्म में

लेकिन डाक्टर भौजी आयीं न सिर्फ हल्दी और चुमावन में बल्कि माटी कोड़ने और बाकी रस्म में और रात में गाने में भी कई दिन सीधे क्लिनिक से,

हल्दी की रसम में भी मैं एक पियरी सिर्फ पहन के, कस के पकड़ के बैठी थी, पीछे नाउन की नयी नयी बहुरिया, मुझे पकड़ के, और सब भौजाई कोशिश तो कर ही रही थीं की हाथ पैर और गाल पे हल्दी लगाने क बाद साडी के अंदर हाथ डालने की, लेकिन मैं खूब कस के दबोच के बैठी थी, लेकिन डाक्टर भौजी तो,

गाल पर हल्दी लगाते हुए, मुझसे बोलीं, वो देख ऊपर कौन सी चिड़िया बैठी है, और जैसे ही मेरी नजर ऊपर, उनके हाथ साड़ी के अंदर दोनों जोबन पे और पूरी आधी कटोरी दोनों उभारों पर मलती बोलीं,

" छिनार, ननदोई से तो खूब हंस हंस के मिजवायेगी और हम भौजाइयों से छिपा रही है, यहाँ तो हल्दी लगाना सबसे जरूरी है।"


हल्दी के कुछ वीडियो मैंने प्रस्तुत किये ऊपर की दो पोस्टों में सिर्फ इस बात को बताने के लिए वो पुरानी परम्पराएं आंशिक रूप से ही सही जीवित है और रीत रिवाज निभाए भी जाते हैं

पहले जो रसम होती थी यानि करने का तरीका एक सामजिक मान्यता और परम्परा अब वह इवेंट में तब्दील हो गयी है और जो काम नाउन करती थी, घर की बुजुर्ग औरतें, बुआ और दादी करती थीं, भाभियाँ करती थी अब वह इवेंट मैनेजर करते हैं।

बस एक बात और इन वीडियों में एक बात और हम देख सकते हैं करीब करीब महिलाये ही हैं और असली बात है हल्दी पूरी देह पर लगनी चाहिए, और कुछ जगहों पर कैमरा भी थोड़ा सा लिहाज करता है यह दिखाते हुए की ये वॉयरिस्टिक डिलाइट नहीं है बल्कि रीत रिवाजों को जिन्दा रखने की एक भरपूर कोशिश है

हाँ लेकिन उसी में मजा भी छेड़छाड़ भी है, चिढ़ाना भी है और थोड़ा बहुत देह सुख भी, और फिर ननद भाभियाँ होगीं, ननद की हल्दी होगी तो भाभियाँ बिना छेड़े छोड़ेंगी थोड़े
 
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भाभी तो molestation कर रही है
एकदम सही कहा आपने, जो भाभी ननद के मोलेस्टेशन का मौका छोड़ दे, वो भौजी नहीं 😂 😂


और ये व्लाग का वीडियो विशेष रूप से आपके कमेंट के संदर्भ में

विशेष रूप से २ मिनट ३० सेकेण्ड के बाद पूरा या कम से कम उसके बाद ३ मिनट के बाद,
लेकिन तीन बातें गौर करने की हैं, पहली पूरी रस्म में सिर्फ महिलायें या लड़कियां ही हैं, दूसरी बात व्लॉगर ने पूरी रसम रिकार्ड करने की कोशिश की है और सबसे बड़ी बात ३ मिनट के बाद जब पेट पे हल्दी लगाते हुए गाँव की कोई बुजुर्ग महिला, शायद रिश्ते में भाभी ही रही हों, नाड़ा खोलती है तो दुल्हन/लड़की कोई प्रतिरोध नहीं करती न किसी को कुछ अटपटा लगता है लेकिन सब औरते उसे छाप लेती हैं और कैमरे को कुछ नहीं दिखता, बस रसम का रस और परम्परा की गति नजर आती है।

मेरा अपना मानना है की इसके शायद दो कारण हो, पहली बात जो देह संबंध पहले एक लड़की के लिए वर्जना का विषय था, वही देह संबंध शादी का मूल उद्देश्य है, और वह देह संबध एक प्रयास है न सिर्फ वंश को बल्कि मानव जाती को अक्षुण रखने के लिए, परागण केसमय जो काम वनस्पतियां भी करती हैं, हर जीव करता है तो कैसे गलत हो सकता है

तो यह जो संक्रमण है कन्या से दुल्हन और फिर पत्नी बनने का, उसमें ये रीत रिवाज उसके मन के विशवास के सोच के, बदलाव के मील के पत्थर होते हैं। जिसे मारग्रेट मीड ने Rites of Passage कहा, पारम्परिक समाज के संदर्भ में

दूसरी बात, विशेष रूप से गाँव में या जहाँ अभी भी परम्पराये हैं पुरानी, लड़कियां उन की कोई भी उम्र क्यों न हो ये सारे रीत रिवाज अटेंड करती हैं, रतजगा हो, शादी ब्याह हो, इस व्लाग में भी देख सकती हैं और अवचेतन में वो परम्पराये उन के मन में रचती बसती हैं

मैं कोई जजमेंट नहीं पास करती आज कल की शादियों में जो इवेंट ज्यादा है सैक्रामेंट कम, हल्दी की रस्म, मात्र स्त्रियों की नहीं होती एक ड्रेस कोड होता है उसका टाइम, लंच का मेनू, वीडियोग्राफी और ये शायद नयी परम्परा है

परम्परा टूटती भी है बदलती भी है

लेकिन कई बार जब गाँव की यादें आती है तो वो कहीं कहीं से मेरी कहानियों में रिस जाती हैं और ये वीडियों दस्तावेज के लिए

एक बार फिर से आभार कमेंट के लिए कथा यात्रा का साथ देने के लिए
 

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Rites of passage are much less important in those societies that emphasize the "individual" as the most pivotal social unit, in contrast to the family, clan or some other association, which rely upon knowledge-based exclusively upon empiricism and rationalism. That probably explains the withering away of most of the customs, added by nuclear families, fast urbanization, migration and the glitz of Bollywood, which became the role model for fat Indian weddings. But that is just my opinion.
 

komaalrani

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भाग ८७ - इन्सेस्ट कथा -इंटरवल और थोड़ा सा फ्लैश बैक

The last update is on page 897.
 

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Completed 900 pages

Thanks Friends
 
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