आपने सारा निचोड़ इस पोस्ट में डाल दिया है..एकदम सही कहा आपने, जो भाभी ननद के मोलेस्टेशन का मौका छोड़ दे, वो भौजी नहीं
और ये व्लाग का वीडियो विशेष रूप से आपके कमेंट के संदर्भ में
विशेष रूप से २ मिनट ३० सेकेण्ड के बाद पूरा या कम से कम उसके बाद ३ मिनट के बाद,
लेकिन तीन बातें गौर करने की हैं, पहली पूरी रस्म में सिर्फ महिलायें या लड़कियां ही हैं, दूसरी बात व्लॉगर ने पूरी रसम रिकार्ड करने की कोशिश की है और सबसे बड़ी बात ३ मिनट के बाद जब पेट पे हल्दी लगाते हुए गाँव की कोई बुजुर्ग महिला, शायद रिश्ते में भाभी ही रही हों, नाड़ा खोलती है तो दुल्हन/लड़की कोई प्रतिरोध नहीं करती न किसी को कुछ अटपटा लगता है लेकिन सब औरते उसे छाप लेती हैं और कैमरे को कुछ नहीं दिखता, बस रसम का रस और परम्परा की गति नजर आती है।
मेरा अपना मानना है की इसके शायद दो कारण हो, पहली बात जो देह संबंध पहले एक लड़की के लिए वर्जना का विषय था, वही देह संबंध शादी का मूल उद्देश्य है, और वह देह संबध एक प्रयास है न सिर्फ वंश को बल्कि मानव जाती को अक्षुण रखने के लिए, परागण केसमय जो काम वनस्पतियां भी करती हैं, हर जीव करता है तो कैसे गलत हो सकता है
तो यह जो संक्रमण है कन्या से दुल्हन और फिर पत्नी बनने का, उसमें ये रीत रिवाज उसके मन के विशवास के सोच के, बदलाव के मील के पत्थर होते हैं। जिसे मारग्रेट मीड ने Rites of Passage कहा, पारम्परिक समाज के संदर्भ में
दूसरी बात, विशेष रूप से गाँव में या जहाँ अभी भी परम्पराये हैं पुरानी, लड़कियां उन की कोई भी उम्र क्यों न हो ये सारे रीत रिवाज अटेंड करती हैं, रतजगा हो, शादी ब्याह हो, इस व्लाग में भी देख सकती हैं और अवचेतन में वो परम्पराये उन के मन में रचती बसती हैं
मैं कोई जजमेंट नहीं पास करती आज कल की शादियों में जो इवेंट ज्यादा है सैक्रामेंट कम, हल्दी की रस्म, मात्र स्त्रियों की नहीं होती एक ड्रेस कोड होता है उसका टाइम, लंच का मेनू, वीडियोग्राफी और ये शायद नयी परम्परा है
परम्परा टूटती भी है बदलती भी है
लेकिन कई बार जब गाँव की यादें आती है तो वो कहीं कहीं से मेरी कहानियों में रिस जाती हैं और ये वीडियों दस्तावेज के लिए
एक बार फिर से आभार कमेंट के लिए कथा यात्रा का साथ देने के लिए
बहुत बहुत धन्यवाद....