आपने एकदम सही कहा, इस कहानी में जैसे सावन में कोई रच रच में मेंहदी लगाए, और इन्सेस्ट के इलाके में तो कैसे कोई खूब भीगे, गीले, काई लगे आंगन में सम्हल के सम्हल के कदम रखे, हलकी सी साड़ी उठा के, नीचे देखते हुए, अब फिसले, तब फिसले,
कमेन्ट्स की कमी , खास तौर पर इस कहानी में बहुत खलती है और मैं बार बार अपने मन का दुःख कहती भी हूँ। बहुत से दयावान आते हैं , पढ़ते हैं, बादलों की तरह एक नजर डाल के मुंह बिचका के, बिना कमेंट की एक दो बूँद टपकाये, कही और चले जाते हैं।
और ऐसे सूखा ग्रस्त क्षेत्र में यह कृपा, आपका एक एक कमेंट, एक एक शब्द स्वाति की बूंदो की तरह है, पानी नहीं अमृत ।
इस प्रसंग में सास बहू के सम्बन्धो पर मैंने कुछ लिखने और उससे ज्यादा कहने की कोशिश की है, आपको अच्छा लगा, इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। सास निश्चित रूप से ज्यादा अनुभवी है और अपने अनुभव की गठरी बहू के सामने खोल रही है, एकदम सखी वत, वैसे भी मेरा निजी अनुभव है, देह संबंधो और देह सुख के बारे में जितना औरते खुल के बात करती हैं, विशेष रूप से ग्राम्या, बिना किसी अपराधबोध के कभी मजाक में कभी चिढ़ाने में तो कभी बस ऐसे ही, वो पुरुष नहीं करते।
सास बहू की ये बात चीत रिश्तों की नयी खुलती परतें, अगली दो तीन पोस्टों में भी आती रहेंगी। बस यही विनम्र निवेदन है की स्नेह की यह बारिश इसी तरह उन पोस्टों पर भी जरूर करियेगा।
अगली पोस्ट भी जल्द ही।