कोमल जी
पता नहीं क्यों कमेंट्स करने में भी आप की लेखनी से होड़ करने लग जाते है और फिर वही होता है जो अपेक्षित है यानि कि पूर्ण पराजय।
मुझ जैसे पाठकों की भी शायद यही मानसिक स्थिति रहती होगी कि कमेंट्स में आपके स्तर तक पहुंचना तो दूर आसपास भी आ जाए तो गनीमत है तो चुप रहने मे ही भलाई है।
मात्र शानदार, जोरदार जैसे शब्द कमेंट्स में लिख देना तो चलताऊ सा लगता हैं। आप निश्चित तौर पर इससे कहीं ज्यादा की हकदार हैं लेकिन समस्या फिर वही मुझ जैसे पाठकों का सीमित ज्ञान।
कृपया कहानी को विराम ना दे और ऐसा तो सोचे भी नहीं। हमारी स्थिति पर भी दया का भाव रखें।
पता नहीं अपनी बात समझा भी पाया हूं या नहीं।
सादर
एकदम ऐसी बात नहीं है विजय पराजय का सवाल ही नहीं है, मैं तो हमेशा नतमस्तक हूँ, मित्रों के आगे।
कमेंट मेरे लिए सिर्फ कहानी को आगे बढ़ाने का सहारा ही नहीं हैं, मतलब वो तो हैं ही, लकिन उसके साथ बतकही का एक मौका भी देते है इसलिए जिन कमेंट्स में लोग कुछ कहते हैं उनसे मैं भी दो चार बात कर लेती हूँ
लेकिन जो दो शब्दों में भी कह देते हैं उनका भी मैं आभार करती हूँ और कहानी को आगे बढ़ाने में वो भी मदद करते हैं, हुंकारी का काम तो करते ही हैं वो