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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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बहुत बहुत धन्यवाद एकदम कहानी में एक तगड़ा टर्न आया, नन्दोई जी हॉस्पिटल में अपने दोस्त के साथ और देखिये कहानी आगे कहाँ, किधर मुड़ती है अगले अपडेट्स पर भी आपके कमेंट्स चाहूंगी
क्या पता नंदोई की बहन हीं अपने भाई को देखने हॉस्पिटल पहुँच जाए...
और फिर मामला वहीं पर फिनिश...
 

motaalund

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Congrats 🎉 🎉 🎉 Komal didi.Aapki story jald hi two million, twenty lakh,2000000 views complete ✅ karne ja rahi hai.Congrats from your Raji sis in advance.Best of luck didi.
Self Help Community GIF by INTO ACTION
बीस अक्षौहिणी...
हार्दिक बधाइयाँ और नमन....
 

motaalund

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भाग ९१

नया दिन नयी सुबह -सास बहू
19,57,274
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सुबह नींद खुली तो अच्छी खासी धूप निकल आयी थी, गाँव में सुबह सुबह बहुत काम होते हैं, लेकिन मेरी सास ने वो सब काम बिना मुझे जगाये खुद अकेले निपटा दिया था, लेकिन मैं तो भोर का सपना देख रही थी की कैसे मेरा मरद मेरी सास को अपनी महतारी को गपागप, गपागप, और वो चूतड़ उचका उचका के और मैं दोनों को लुहा रही थी। सपना एक बार टूटा भी, नींद भी खुली तो मैंने आँखे बंद कर ली और वहीँ से फिर शुरू। और जब उठी तो धूप खिड़की से घुस के मेरे बिस्तर तक पसर आयी थी।



मैं जब रसोई में पहुंचीं तो वो चाय भी बना चुकी थीं और एक ग्लास में लेके सुड़ुक रही थी, मुझे देख के वही ग्लास उन्होंने बढ़ा दिया मेरी ओर, और मैंने भी जिस जगह उन्होंने होंठ लगाए थे उसी जगह होंठ लगा के उन्हें दिखा के मैं भी पीने लगीं।

मेरी सास गाँव में सगुन बिचारने में, सपने का मतलब बताने में और कोई लक्षण हो तो उसका मतलब समझने, समझाने में सबसे आगे थीं, तो मैंने उनसे मुस्कराते हुए बोला,

" आज सबेरे, एकदम भोर एक बड़ा अच्छा सपना देखा, खूब मीठा मीठा,... उसमें "


सास ने महकती आँखों से मुझे देखा और तुरंत बरज दिया,

" चुप, एकदम चुप, ....भोर का सपना एकदम सच होता है, लेकिन अगर बता दिया तो असर गायब, सबेरे की ओस की तरह थोड़ी देर में उड़ जाता है। "

मैंने आधी पी हुयी चाय का ग्लास पी के उन्हें बढ़ा दिया, सुड़कते हुए उन्होंने पूछा,

" लेकिन सपना रुक के, फिर दुबारा आंख लगने पे वहीँ से तो नहीं शुरू हुआ था ? "

" हाँ एकदम, मैंने सकारा तो वो हंस के बोलीं,

' फिर तो एकदम सच्चा, होनी को कोई रोक नहीं सकता है और ज्यादा दिन नहीं बस हफ्ते दस दिन के अंदर ही, एकदम वैसे ही "

वो बड़ी जोर से मुस्करायीं,


फिर अचानक उनका चेहरा उदास हो गया एकदम झाँवा। आँखे डबडबा आयीं।


मैं समझ सकती थी उनका दुःख। दुःख बांटने से ही कम होता है, लेकिन अगर वो खुद कहें तो ज्यादा अच्छा होगा मन का दुःख आँख से बहने की जगह जुबान से निकल आएगा।

मैं उछल के उनके एकदम बगल में बैठ गयी और उनके गले में हाथ डाल के उनकी ग्लास से एक बार चाय सुड़ुक के उन्हें पकड़ा दिया, और बची खुची चाय उन्होंने एक बार में ख़तम कर दी। लेकिन एक बार फिर वो उसी तरह मुझे देख रही थीं, थोड़ा उदास तो थोड़ा दुलार से, फिर मेरी ठुड्डी पकड़ के बोलीं,


" तू न होतू तो, ...न आती तो, ..."

मैं छमक के हट गयी, उनके सामने बैठ गयी और धमक के बोली,


" काहें न आती, ऊपर से लिखवा के आयी थी। ये जो आप समझती हैं की न आप और आप की बिटिया गयी, देखी, आपका बेटवा गया, बियाह के ले आया, ये सब तो ऐसे ही है, असली खेल तो और है। आपको बता देती हूँ सच सच।


मैंने ऊपर से देखा था, आपके बेटवा को नहीं माँगा था, वहीँ से दिखा के बोला था, वो जिसका हाथ भर का खूंटा है, हाँ वो उन्ही की महतारी, ...बस उन्ही की बहू बनना है। और मेरी जिद्द तो आप जानती है कितनी, ...बिधाता भी हार गए, बोले लिख दो और भेज दो इसको,... वरना जबतक यहां रहेगी, यही रार किये रहेगी, तो बस भेज दिया नीचे. मैं तो पैदा ही इसलिए हुयी। समझ लीजिये। "
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सास मेरी सुबह की धूप की तरह मुस्करायी और मेरा दिल खिल गया लेकिन मैं रुकी नहीं, फिर बोलना शुरू कर दिया,

" और अब आ ही गयी हूँ तो खूंटा गाड़ के बैठ जाउंगी, लाख ताकत लगा लीजिये अब मेरा खूंटा उखड़ने वाला नहीं है। बस यही आपके साथ रहूंगी और जिस दरवाजे से सुहागिन आयी थी, उसी दरवाजे से,... जो गाँठ जोड़ कर लाया था, वही कंधे पे, ....सुहागिन आयी थी इस घर में, सुहागिन,... "

मेरी आँखे भर आयी थी और मेरी सास ने मुंह बंद करा दिया,


" चुप, चुप अब एक अक्षर आगे मत बोलना, " अपना हाथ मेरे मुंह पर रख दिया उन्होंने और फिर हड़काया,

" सुबह सुबह अच्छी अच्छी बात बोलो,"



एक बार वो फिर उदास हो गयीं, लेकिन मैं चुप होने वाली नहीं थी, फिर से चालू हो गयी,


" अच्छा बताइये, मैं न आती तो रोज कौन आपके सर में तेल लगाता, गोड़ दबाता, वो तो चलिए कोई नाउन कहाईन कर लेती, ...लेकिन कौन आपके गोद में सर रख के गप्प मारता। मैं बता रही हूँ, अब मैं हिलने वाली नहीं, आप धक्का भी लगा ले, रोज सुबह उठूंगी तो आप का मुंह देख के और सोने जाउंगी तो आप का मुंह देख के और दिन भर तंग करुँगी। "

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" तुम बहू नहीं मेरी बेटी हो " उनकी आँखे डबडबा आयी थीं,



अब उन्हें कौन समझाए, की बेटियां भी, एक बार ससुरार गयीं, तो मायके आती भी हैं तो ढेर सारा ससुरार साथ में ले आती हैं, वही बातें, वही यादें और एक दो बच्चे हो गए, तो फिर, उस का टेस्ट छूट जाएगा, बेटी की म्यूजिक की क्लास है, आने के पहले लौटने का रिजर्वेशन हो जाता है।
' फिर तो एकदम सच्चा, होनी को कोई रोक नहीं सकता है और ज्यादा दिन नहीं बस हफ्ते दस दिन के अंदर ही, एकदम वैसे ही "
दुबारा झपकी लेते हीं सपना वहीं से शुरू...
आगामी हफ्ते-दस दिन की झलकी...
मतलब सास की तो पक्के से....
और साथ में दोनों को लुहाते हुए कोमल...
" और अब आ ही गयी हूँ तो खूंटा गाड़ के बैठ जाउंगी, लाख ताकत लगा लीजिये अब मेरा खूंटा उखड़ने वाला नहीं है।
खूंटे का इंतजाम तो सास ने कर दिया है...
अब सिर्फ बैठने का काम बचा है...
 
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