नंदोई ने कट-पीस का मजा अब तक लिया..सास चढ़ी दामाद पे,
" इसका मतलब, आपको सास, सलहज की नहीं चाहिए " मुंह फुलाकर मैं बोली,
" नहीं नहीं एकदम नहीं, " जल्दी से वो बोले, तो मैंने तुरंत रगड़ा
"तो फिर बोलिये न की बहन आपकी पेलने लायक है की न हाँ की ना"
" हाँ "
किसी तरह कबूला उन्होंने और सास ने विजयी भाव से मेरी ओर देखा यही तो वो भी सुनना चाहती थी और अब ननदोई जी ने सास की चिरौरी शुरू कर दी,
" सासू जी करिये न बहुत मन कर रहा है "
" का मन कर रहा है, अपनी माई के भतार, बोलने में तो गांड फट रही है करोगे का " सास ने और उकसाया और मैंने नन्दोई के कान में बोल दिया,
" अरे साफ़ साफ़ बोलिये, सास को ऐसे ही सुनना अच्छा लगता है "
" चोदने का मन कर रहा है , " नन्दोई जी ने बोल दिया, और अब मैं एकदम सलहज,
मैंने सास की ओर से शर्त रख दिया,
" नन्दोई जी तुंही कह रहे हो की बहन तोहार पेलने लायक हो गयी है, तो अब तोहरी ससुराल में पेली जायेगी, हां की,... ना "
" हाँ, हाँ दस बार हाँ,... लेकिन, "
वो बेचारे बोले और सास जी से दामाद का दुःख देखा नहीं गया और वो दामाद के ऊपर चढ़ गयीं और उन्होंने तड़पाया नहीं सीधे एक बार में ही
क्या कोई मर्द बेरहमी से कुचल कुचल कर गौने की रात चोदेगा अपनी दुल्हन को जिस तरह से सासू जी नन्दोई के ऊपर चढ़ी थी।
मैं चकित होकर सास जी को देख रही थी और सीख रही थी।
असल में जिस दिन मैं गौने उतरी थी,
उसी दिन से, मेरी सास, मेरी सास होने के साथ साथ, मेरी गुरु और सहेली भी थी।
गौने के एक दो दिन बाद, मैं इनके पास से आयी थी, और सास, उनकी कुछ सहेलियां, मेरी गाँव की जेठानियाँ बैठी थी, मैं पाँव छूने के लिए झुकी तो इनकी मलाई का एक कतरा, मेरी जाँघों से सरक के मेरे महावर लगे पैर, गौने की नयी नयी दुल्हिन का गाँव की सासो और जेठानियों से कुछ बचता तो है नहीं, एक दो वो देख के मुस्कराने लगी, मेरी सास ने ही बात सम्हाली, मैं एकदम लजा गयी, घबड़ा भी गयी,
" अरे नयी नयी दुल्हिन के तो मांग में सिन्दूर दमकता रहे, और बिल से मलाई छलकती रहे तभी तो पता चलेगा की गौने क दुल्हिन है "
और एक दो दिन बाद, मजाक में उन्होंने मेरे साये में हाथ डाला, बिल बजबजा रही थी,
उनके लड़के की मलाई से, एक पोर ऊँगली उन्होंने अंदर की और एक सीख दी जो जिंदगी भर की थी,
" मरद का तो काम ही है चढ़ना और औरत क काम है चढ़वाना, आखिर तोहार महतारी भेजी है और हम लाये हैं इसलिए, लेकिन एक काम करो, जैसे कभी मूतवास लगती है और जगह नहीं है मौक़ा नहीं है तो का करोगी, "
" कस के भींच लूंगी" मैंने सास को बता दिया।
" बस उसी तरह से दिन में पांच दस बार कर के खूब धीरे धीरे, ...अच्छा तुम मेरे तो अंदर, ...तो मैं सिखाती हूँ "
मैंने सास की बिल में ऊँगली डाली,
मैं सोच रही थी एकदम चौड़ी होगी, असली भोंसड़ा, उम्र में मुझसे दूनी तो थी ही, मेरे मरद के आलावा भी तीन बच्चे निकल चुके थे वहां से, मेरे जेठ, दो ननदें, लेकिन मैं चौंक गयी, एकदम टाइट। मेरी जैसी तो नहीं लेकिन कोई भी नहीं कह सकता था की यहाँ से चार चार बच्चे निकल चुके हैं एकदम लड़कोर नहीं लग रही थीं,
बड़ी मुश्किल से दो पोर घुसी और सास ने बुर अपनी भींच ली और मुझसे हंस के बोली,
"चल बहु निकाल, देखीं तोहार महतारी का सीखा के हमरे बहू को भेजी है "
इतना कस के उन्होंने सिकोड़ी थी की मेरी ऊँगली बाहर निकलने के कौन कहे, हिल नहीं सकती थी। ऊपर से बोलीं अभी तो आधा जोर लगाई हूँ,
मैं तुरंत चिरौरी करने लगी मुझे भी सीखना है, पहले तो उन्होंने चिढ़ाया,
" तोहार मंहतारी गिरवी रखवाउंगी, " फिर दुलार से बोली
" अरे पगली तोहें नहीं सिखाऊंगी तो किसको सिखाऊंगी, अरे आधा दर्जन हमरे पोती पोता होंगे तो उसके बाद भी तेरी वैसे टाइट रहेगी, जैसी आज है "
और सास ने सब ट्रिक सिखायी, अब मैं भी करीब करीब उतना ही कस के, और बिल के टाइट रहने की गारंटी,
लेकिन जो आज मैं देख रही थी, सीख रही थी वो तो एकदम ही अलग, सास के बेटे के ऊपर चढ़ कर कितनी बार,
लेकिन आज सास जी मेरे नन्दोई की जैसे ली,
उफ्फ्फ,
पहले तो बहुत प्यार से दुलार से, धीरे धीरे, झुक के कभी नन्दोई जी के गाल चूम लेती कभी होंठ, (ननदोई जी की आँख तो हम सास बहू ने बाँध दी थी उनके सास और सलहज की चोली से, तो वो देख तो सकते नहीं थे, )
और कभी झूमते हुए वो होंठ, नन्दोई जी की छाती पर चुंबन की बारिश कर देतीं, सास के बड़े बड़े जोबन भी बस हलके से नन्दोई जी के सीने पे, धक्के भी बस हलके हलके और साथ में नन्दोई जी भी नीचे से अपने चूतड़ उठा उठा के, कभी सास जी रुक भी जाती बस नन्दोई जी नीचे से,
और दो चार मिनट में ननदोई मेरे जब एकदम गरमा जाते तो सास फिर ऐसी रगड़ाई करतीं उनकी, क्या कोई खेला खाया प्रौढ़ मरद एकदम कच्ची कली की करेगा, सास जी के होंठ अब नन्दोई जी के होंठ चूमते नहीं, कस के चूसते, कभी कभी वो होंठों को मुंह में ले के काट लेती, उनके नाख़ून कभी कंधे पर, कभी पीठ पर सिर्फ धंसते, चुभते ही नहीं थे, लकीर भी खिंच दे रहे थे और सबसे बुरी हालत ननदोई जी के मेल टिट्स की थी, कभी जीभ से हलके हलके फ्लिक कर के उसे खड़ा कर देती और फिर दांतों से कचकचा के काट लेतीं, और नन्दोई जी को चीखने की इज्जाजत नहीं थी, सिसकी भी निकली तो गालियों की बारिश,
" चुदवा चुप चाप, जरा भी आवाज निकली न तो तेरी माँ चोद दूंगी, दोनों हाथों की मुट्ठी से उसकी गांड मारूंगी, माँ चुदवाने का मन हो तो स आवाज निकाल, जरा भी हिला न तो, "
और सास के धक्के भी एकदम तूफानी और उस समय ननदोई जी को हिलने की भी इजाजत नहीं थी। खुद उछल उछल कर और मैं पक्का श्योर थी की बीच बीच में नन्दोई जी का मोटा मूसल वो कस के निचोड़ भी रही थीं, लेकिन नन्दोई मेरे लम्बी रेस के घोड़े थे और पक्के चुदक्कड़
जब पूरा खूंटा अंदर घोंट लेतीं तो बस कई बार धक्के बंद और रगड़ रगड़ के घिस्से लगाती अपनी बुर के बेस से अपने दामाद के लंड के बेस पे और गरियाती साथ में
" बहुत चोदा है न मेरी बेटी को, आज उसकी माँ चोद रही है तुझे, क्यों पता चल रहा है चुदवाने का मजा, "
" हाँ सासु माँ , हाँ " सिसकते वो नीचे से अपने चूतड़ उठाते धक्के मारते बोलते, " बहुत मजा आ रहा है "
और मैं भी अपने नन्दोई को छेड़ती,
" बहुत कम लोग होते होंगे जिन्हे माँ बेटी दोनों को चोदने का मजा मिला हो, ये तो मेरी सास ननद हैं "
और सोचती की मेरे मरद को भी मिलेगा ये मजा, माँ बेटी दोनों को चोदने का मजा, ननदोई जी ने तो पहले बेटी का मजा लिया और अब उनकी माँ चोद रहे हैं लेकिन मेरा मरद, मेरी ननद को चोद चोद कर माँ बना रहा है, फिर उन की बेटी को भी, एडवांस बुकिंग,
" ये मजा स्साले अपनी माँ के भंडुए तुझे तीन साल पहले ही मिल जाता, ये तो तेरी सलहज, मेरी बहू है जिसने तुझे ये मजा दिलवाया " ऊपर से धक्के मारते मेरी सास बोलतीं,
लेकिन अब वो थोड़ी तक रही थीं और उनके दामाद भी मेरी बार बार फुसफुसा के मिन्नत कर रहे थे, " सलहज जी बस एक बार हाथ खोल दीजिये "
अब थान का मजा...
वो भी एक्सरसाइज करके इतनी टाईट की बहु अपनी उंगली तक नहीं निकाल पा रही..
नंदोई की पांचों उंगलियां घी में.. सिर कड़ाही में... और लंड चूत में...