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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Shetan

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भाग ९४

मस्ती सास और सलहज के साथ - मजा जुबना का

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बेचारे नन्दोई जी, आँखे बंद, हाथ बंधे और मुंह उनके सास के जोबन के नीचे दबा, कुछ कर भी नहीं सकते और जवान सलहज उनके पिछवाड़े के पीछे,

चुम्मा तो शुरआत थी, मैंने लम्बी सी जीभ निकाली और सीधे पिछवाड़े की दरार पे, आगे पीछे, ऊपर नीचे, जैसे इनके उस स्साले के साथ करती थी जो अभी ननदोई जी की बीबी चोद रहा था।

नन्दोई जी बोल तो नहीं सकते थे लेकिन तड़पते हुए चूतड़ उछाल रहे थे,

थोड़ी देर तक रिम्मिंग करने के बाद मेरे जोबन मैदान में आ गए,

और अब वो दोनों कभी नन्दोई जी की चूतड़ पे रगड़ते कभी उस दरार और मैंने जब अपने खड़े निपल उनकी दरार में रगड़ना शरू कर दिया तो अब लगा की मारे जोश के वो दोनों हाथों में बंधे सास और सलहज के पेटीकोट के नाड़े को तोड़ देंगे,

सास ने मुझे इशारा किया, बहुत हो गया अब मजा देने का टाइम आ गया और मैंने बदमाशी बंद कर दी,

और जैसे ही सासू जी ने निपल उनके मुंह से बाहर निकाला


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वो बोले,


" सासु माँ कुछ करिये, न "

सासु ने उनके मुंह पे एक जबरदस्त चुम्मा लिया और बोलीं मादरचोद,

और उन्होंने मेरी जगह ले ली नीचे खूंटे के पास, मैं नन्दोई जी के सर के पास, और क्या जबरदस्त चुदाई की सास ने मेरी अपनी चूँचियों से नन्दोई जी की।

इसका मतलब ये नहीं मैंने कभी चूँची से चोदा नहीं था या देखा नहीं था, इनके मोबाइल में कितनी फ़िल्में थी, और मैं भी हफ्ते में एक दो दिन तो इन्हे ललचाने तड़पाने के लिए,



लेकिन जिस तरह से मेरी सास मेरे नन्दोई की रगड़ाई अपनी बड़ी बड़ी चूँचियों से कर रही थीं, वैसा मैंने कभी सोचा भी नहीं था,

बेचारे नन्दोई तड़प रहे थे, हाथ बंधे आँख बंद और सासु माँ, सिर्फ अपनी भारी भारी ३८ + साइज के जोबन से उनके ऊपर से नन्दोई जी के सीने से सहलाते हुए, फिर पेट और पूरा जोबन भी नहीं बस खड़े गरमाये निपल,
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और जब मामला खूंटे का आया, वो एकदम खड़ा फनफनाया, उनकी बड़ी बड़ी चूँचियों से दबा कुचला रहा जा, और जब वो उठीं तो दोनों हाथों से अपनी चूँची पकड़ के मेरे नन्दोई का मोटा बांस अपनी चूँची के बीच कस कस के रगड़ने लगी।

" उफ़, ओह्ह्ह, सासू माँ, क्या कर रही हैं, " नन्दोई मेरे तड़प रहे थे, चूतड़ उठा रहे थे लेकिन मैंने और मेरी सास ने हाथ दोनों उनके कस के बांधे थे,

" जो बहुत पहले करना चाहिए, बोल अपनी माँ के भंडुए, मेरे जोबन देख के ललचाता था की नहीं, "

सास ने दोनों उभारों के बीच में कस के नन्दोई जी के मोटे बांस को रगड़ते बोला,'
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" हाँ हाँ, कोहबर से ही "


नन्दोई जी ने सच उगल ही दिया, और मेरी सास के जोबन सच में ऐसे ही थी की कोई मचल जाए, फिर एकदम टाइट लो कट चोली और आँचल उनका गिरता ज्यादा था सम्भलता कम था।

" तो आज से पहले बोले क्यों नहीं, तीन साल से बेचारा मेरा दामाद तड़प रहा था "


सास ने प्यार से उनके उभारों से झांकते हुए सुपाड़े को कस के चूमते हुए प्यार से पूछा,

उनकी सहलहज थी न जवाब देने के लिए उनकी ओर से, मैं अब नन्दोई की के सर की ओर बैठी थी, प्यार से उनके गाल को सहलाते मैं बोली

" अरे तब उनकी ये वाली छोटी सलहज नहीं आयी थीं न "

और नन्दोई जी के मेल टिट्स को कस के नाख़ून से नोंचते नन्दोई जी से बोली

" अरे ननद रानी से तो कबड्डी अपने मायके में रोज बिना नगा खेलते हैं, आगे से सुसराल आइयेगा न तो बस सास और सलहज, हाँ की ना "


" हाँ, हाँ दस बार हाँ "

मस्ती में नन्दोई जी बोले, यही तो मैं चाहती थी की जब मेरी ननद मायके आये तो उनके मैदान में मेरे मरद का झंडा गड़े जैसे अभी वो गाड़ रहे होंगे और वो बिना नन्दोई जी को पटाये हो नहीं सकता था।

और सास ने भी अपनी दोनों चूँचियों से कस कस के नन्दोई को चोदना शुरू कर दिया,


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सास की कड़ी कड़ी चूँचियों की रगड़, नन्दोई जी की हालत खराब हो रही थी, बीच बीच में सास कभी कभी उनका खुला मोटा सुपाड़ा चूसना शुरू कर देती थीं तो कभी अपनी समधन को गरियाना शुरू कर देतीं,

"अब कभी सास, सलहज से लजाये न तो तोहार गांड तो बाद में मारूंगी तोहरे महतारी क गांड पहले मारूंगी,"

मैं क्यों पीछे रहती मैं नन्द की ननद के पीछे,

" एकदम सासू माँ आप इनकी महतारी क मारिएगा, मैं इनकी बहन की मारूंगी, क्यों ननदोई जी कैसा है माल, है न लेने के लायक "
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बेचारे क्या बोलते लेकिन बिना उनकी मुंह से उनके बहन के बारे में अच्छी अच्छी बात सुने जो छोड़ दे वैसी सलहज मैं नहीं थी,

" इसका मतलब, आपको सास, सलहज की नहीं चाहिए " मुंह फुलाकर मैं बोली,

" नहीं नहीं एकदम नहीं, " जल्दी से वो बोले, तो मैंने तुरंत रगड़ा

"तो फिर बोलिये न की बहन आपकी पेलने लायक है की न हाँ की ना"


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" हाँ "

किसी तरह कबूला उन्होंने और सास ने विजयी भाव से मेरी ओर देखा यही तो वो भी सुनना चाहती थी और अब ननदोई जी ने सास की चिरौरी शुरू कर दी,

" सासू जी करिये न बहुत मन कर रहा है "

" का मन कर रहा है, अपनी माई के भतार, बोलने में तो गांड फट रही है करोगे का "


सास ने और उकसाया और मैंने नन्दोई के कान में बोल दिया,

" अरे साफ़ साफ़ बोलिये, सास को ऐसे ही सुनना अच्छा लगता है "

" चोदने का मन कर रहा है , "

नन्दोई जी ने बोल दिया, और अब मैं एकदम सलहज, मैंने सास की ओर से शर्त रख दिया,

" नन्दोई जी तुंही कह रहे हो की बहन तोहार पेलने लायक हो गयी है, ....तो अब तोहरी ससुराल में पेली जायेगी, ....हां की ना "
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Man gae kya erotic khel khela hai. Sahalaj ne nandoi ka pichhvada nahi chhoda to sasumaa ne apna joban thus takha tha.

Aur jab sasu ne apne 38 size se apna kamal dikhaya. Jiban methuen karke apne damad ko maja diya to vo bhi bilkul manna ki tarah mangne lage.
Sasumaa kuchh karo na.
Bol na maa ke bhhadue kya karu??

Aur to aur sab kuchh bulva liya. Apni mahtari aur baheniya ka bhi.

Lo sasumaa ne to chun bhi liya. Vo samdhan ki legi to sahlaj bhi kam nahi. To me uski baheniya ki lungi.

Maja aa gaya.

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Shetan

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सास चढ़ी दामाद पे,


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" इसका मतलब, आपको सास, सलहज की नहीं चाहिए " मुंह फुलाकर मैं बोली,

" नहीं नहीं एकदम नहीं, " जल्दी से वो बोले, तो मैंने तुरंत रगड़ा

"तो फिर बोलिये न की बहन आपकी पेलने लायक है की न हाँ की ना"

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" हाँ "

किसी तरह कबूला उन्होंने और सास ने विजयी भाव से मेरी ओर देखा यही तो वो भी सुनना चाहती थी और अब ननदोई जी ने सास की चिरौरी शुरू कर दी,

" सासू जी करिये न बहुत मन कर रहा है "


" का मन कर रहा है, अपनी माई के भतार, बोलने में तो गांड फट रही है करोगे का " सास ने और उकसाया और मैंने नन्दोई के कान में बोल दिया,

" अरे साफ़ साफ़ बोलिये, सास को ऐसे ही सुनना अच्छा लगता है "
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" चोदने का मन कर रहा है , " नन्दोई जी ने बोल दिया, और अब मैं एकदम सलहज,

मैंने सास की ओर से शर्त रख दिया,

" नन्दोई जी तुंही कह रहे हो की बहन तोहार पेलने लायक हो गयी है, तो अब तोहरी ससुराल में पेली जायेगी, हां की,... ना "

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" हाँ, हाँ दस बार हाँ,... लेकिन, "

वो बेचारे बोले और सास जी से दामाद का दुःख देखा नहीं गया और वो दामाद के ऊपर चढ़ गयीं और उन्होंने तड़पाया नहीं सीधे एक बार में ही

क्या कोई मर्द बेरहमी से कुचल कुचल कर गौने की रात चोदेगा अपनी दुल्हन को जिस तरह से सासू जी नन्दोई के ऊपर चढ़ी थी।

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मैं चकित होकर सास जी को देख रही थी और सीख रही थी।

असल में जिस दिन मैं गौने उतरी थी,

उसी दिन से, मेरी सास, मेरी सास होने के साथ साथ, मेरी गुरु और सहेली भी थी।

गौने के एक दो दिन बाद, मैं इनके पास से आयी थी, और सास, उनकी कुछ सहेलियां, मेरी गाँव की जेठानियाँ बैठी थी, मैं पाँव छूने के लिए झुकी तो इनकी मलाई का एक कतरा, मेरी जाँघों से सरक के मेरे महावर लगे पैर, गौने की नयी नयी दुल्हिन का गाँव की सासो और जेठानियों से कुछ बचता तो है नहीं, एक दो वो देख के मुस्कराने लगी, मेरी सास ने ही बात सम्हाली, मैं एकदम लजा गयी, घबड़ा भी गयी,

" अरे नयी नयी दुल्हिन के तो मांग में सिन्दूर दमकता रहे, और बिल से मलाई छलकती रहे तभी तो पता चलेगा की गौने क दुल्हिन है "

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और एक दो दिन बाद, मजाक में उन्होंने मेरे साये में हाथ डाला, बिल बजबजा रही थी,


उनके लड़के की मलाई से, एक पोर ऊँगली उन्होंने अंदर की और एक सीख दी जो जिंदगी भर की थी,

" मरद का तो काम ही है चढ़ना और औरत क काम है चढ़वाना, आखिर तोहार महतारी भेजी है और हम लाये हैं इसलिए, लेकिन एक काम करो, जैसे कभी मूतवास लगती है और जगह नहीं है मौक़ा नहीं है तो का करोगी, "

" कस के भींच लूंगी" मैंने सास को बता दिया।
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" बस उसी तरह से दिन में पांच दस बार कर के खूब धीरे धीरे, ...अच्छा तुम मेरे तो अंदर, ...तो मैं सिखाती हूँ "

मैंने सास की बिल में ऊँगली डाली,

मैं सोच रही थी एकदम चौड़ी होगी, असली भोंसड़ा, उम्र में मुझसे दूनी तो थी ही, मेरे मरद के आलावा भी तीन बच्चे निकल चुके थे वहां से, मेरे जेठ, दो ननदें, लेकिन मैं चौंक गयी, एकदम टाइट। मेरी जैसी तो नहीं लेकिन कोई भी नहीं कह सकता था की यहाँ से चार चार बच्चे निकल चुके हैं एकदम लड़कोर नहीं लग रही थीं,

बड़ी मुश्किल से दो पोर घुसी और सास ने बुर अपनी भींच ली और मुझसे हंस के बोली,

"चल बहु निकाल, देखीं तोहार महतारी का सीखा के हमरे बहू को भेजी है "

इतना कस के उन्होंने सिकोड़ी थी की मेरी ऊँगली बाहर निकलने के कौन कहे, हिल नहीं सकती थी। ऊपर से बोलीं अभी तो आधा जोर लगाई हूँ,

मैं तुरंत चिरौरी करने लगी मुझे भी सीखना है, पहले तो उन्होंने चिढ़ाया,

" तोहार मंहतारी गिरवी रखवाउंगी, " फिर दुलार से बोली
" अरे पगली तोहें नहीं सिखाऊंगी तो किसको सिखाऊंगी, अरे आधा दर्जन हमरे पोती पोता होंगे तो उसके बाद भी तेरी वैसे टाइट रहेगी, जैसी आज है "
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और सास ने सब ट्रिक सिखायी, अब मैं भी करीब करीब उतना ही कस के, और बिल के टाइट रहने की गारंटी,

लेकिन जो आज मैं देख रही थी, सीख रही थी वो तो एकदम ही अलग, सास के बेटे के ऊपर चढ़ कर कितनी बार,

लेकिन आज सास जी मेरे नन्दोई की जैसे ली,

उफ्फ्फ,

पहले तो बहुत प्यार से दुलार से, धीरे धीरे, झुक के कभी नन्दोई जी के गाल चूम लेती कभी होंठ, (ननदोई जी की आँख तो हम सास बहू ने बाँध दी थी उनके सास और सलहज की चोली से, तो वो देख तो सकते नहीं थे, )

और कभी झूमते हुए वो होंठ, नन्दोई जी की छाती पर चुंबन की बारिश कर देतीं, सास के बड़े बड़े जोबन भी बस हलके से नन्दोई जी के सीने पे, धक्के भी बस हलके हलके और साथ में नन्दोई जी भी नीचे से अपने चूतड़ उठा उठा के, कभी सास जी रुक भी जाती बस नन्दोई जी नीचे से,

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और दो चार मिनट में ननदोई मेरे जब एकदम गरमा जाते तो सास फिर ऐसी रगड़ाई करतीं उनकी, क्या कोई खेला खाया प्रौढ़ मरद एकदम कच्ची कली की करेगा, सास जी के होंठ अब नन्दोई जी के होंठ चूमते नहीं, कस के चूसते, कभी कभी वो होंठों को मुंह में ले के काट लेती, उनके नाख़ून कभी कंधे पर, कभी पीठ पर सिर्फ धंसते, चुभते ही नहीं थे, लकीर भी खिंच दे रहे थे और सबसे बुरी हालत ननदोई जी के मेल टिट्स की थी, कभी जीभ से हलके हलके फ्लिक कर के उसे खड़ा कर देती और फिर दांतों से कचकचा के काट लेतीं, और नन्दोई जी को चीखने की इज्जाजत नहीं थी, सिसकी भी निकली तो गालियों की बारिश,

" चुदवा चुप चाप, जरा भी आवाज निकली न तो तेरी माँ चोद दूंगी, दोनों हाथों की मुट्ठी से उसकी गांड मारूंगी, माँ चुदवाने का मन हो तो स आवाज निकाल, जरा भी हिला न तो, "




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और सास के धक्के भी एकदम तूफानी और उस समय ननदोई जी को हिलने की भी इजाजत नहीं थी। खुद उछल उछल कर और मैं पक्का श्योर थी की बीच बीच में नन्दोई जी का मोटा मूसल वो कस के निचोड़ भी रही थीं, लेकिन नन्दोई मेरे लम्बी रेस के घोड़े थे और पक्के चुदक्कड़

जब पूरा खूंटा अंदर घोंट लेतीं तो बस कई बार धक्के बंद और रगड़ रगड़ के घिस्से लगाती अपनी बुर के बेस से अपने दामाद के लंड के बेस पे और गरियाती साथ में



" बहुत चोदा है न मेरी बेटी को, आज उसकी माँ चोद रही है तुझे, क्यों पता चल रहा है चुदवाने का मजा, "

" हाँ सासु माँ , हाँ " सिसकते वो नीचे से अपने चूतड़ उठाते धक्के मारते बोलते, " बहुत मजा आ रहा है "

और मैं भी अपने नन्दोई को छेड़ती,

" बहुत कम लोग होते होंगे जिन्हे माँ बेटी दोनों को चोदने का मजा मिला हो, ये तो मेरी सास ननद हैं "



और सोचती की मेरे मरद को भी मिलेगा ये मजा, माँ बेटी दोनों को चोदने का मजा, ननदोई जी ने तो पहले बेटी का मजा लिया और अब उनकी माँ चोद रहे हैं लेकिन मेरा मरद, मेरी ननद को चोद चोद कर माँ बना रहा है, फिर उन की बेटी को भी, एडवांस बुकिंग,


" ये मजा स्साले अपनी माँ के भंडुए तुझे तीन साल पहले ही मिल जाता, ये तो तेरी सलहज, मेरी बहू है जिसने तुझे ये मजा दिलवाया " ऊपर से धक्के मारते मेरी सास बोलतीं,



लेकिन अब वो थोड़ी तक रही थीं और उनके दामाद भी मेरी बार बार फुसफुसा के मिन्नत कर रहे थे, " सलहज जी बस एक बार हाथ खोल दीजिये "
Wah pahele to kabul karwao. Chahiye ki nahi chahiye. Fir kya chohiye. Bechare nandoi ji badi mushkil se bole. Chodna hai. Par pahele to apne maa bahen ki gadiya suno. Fir apni maa bahen ki chudai karwane ka kabul karvao. Vo sasural bahot khus hota hai jab damad apni maa bahen apne sasural chudvane ka vada kare. Aur khud chodne ka vada kare. Maza hi la diya.

Lekin sasumaa ko damad pe kuchh jyada hi pyar aa raha hai. Jaldi chadh gai mushal khute par.

Ab sasumaa ki kya tarif karu. 4,5 jan ne ke bad bhi tait. Aur khud bhinch ke boli ki abhi to pura jor nahi lagaya. Sasumaa to bhinch kar akhroot aur subari tod de. Sahi guru banaya hai.

Nashib vale to hai. Pahele beti jam ke peli. Ab uski mahtari. Par komaliya ka marad to 2 kadam aage rahega. Pahele maa chod kar beti janvaega. Aur fir beti pelega. Maza aa gaya.

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Shetan

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मां-बेटी दोनों का मजा


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" बहुत चोदा है न मेरी बेटी को, आज उसकी माँ चोद रही है तुझे, क्यों पता चल रहा है चुदवाने का मजा, "

" हाँ सासु माँ , हाँ " सिसकते वो नीचे से अपने चूतड़ उठाते धक्के मारते बोलते, " बहुत मजा आ रहा है "



और मैं भी अपने नन्दोई को छेड़ती,


" बहुत कम लोग होते होंगे जिन्हे माँ बेटी दोनों को चोदने का मजा मिला हो, ये तो मेरी सास, ननद हैं,.... "

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और सोचती की मेरे मरद को भी मिलेगा ये मजा, माँ बेटी दोनों को चोदने का मजा,

ननदोई जी ने तो पहले बेटी का मजा लिया और अब उनकी माँ चोद रहे हैं

लेकिन मेरा मरद, मेरी ननद को चोद चोद कर माँ बना रहा है, फिर उन की बेटी को भी, एडवांस बुकिंग,...गाँव देहात में तो वैसे ही लौंडिया जल्दी जवान हो जाती हैं और वो तो मेरी ननद ऐसी महा छिनार के कोख से जनी, बचपन से ही देख देख के, जयादा इन्तजार नहीं करना पड़ेगा मेरे मर्द को,


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टिकोरे कुतरने का, और मेरी ननद ने तो बोला है वो खुद ही अपने हाथ से और फिर माँ बेटी दोनों एक साथ मेरे मरद के आगे



" ये मजा स्साले अपनी माँ के भंडुए तुझे तीन साल पहले ही मिल जाता, ये तो तेरी सलहज, मेरी बहू है जिसने तुझे ये मजा दिलवाया "

ऊपर से धक्के मारते मेरी सास बोलतीं,

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लेकिन अब वो थोड़ी थक रही थीं और उनके दामाद भी मेरी बार बार फुसफुसा के मिन्नत कर रहे थे, "


"सलहज जी बस एक बार हाथ खोल दीजिये "

अब मैं उनकी बीबी को अपने मरद से चुदवा रही थी, गाभिन करवा रही थी तो मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है और मैंने दोनों हाथ खोल दिए बस क्या था

गाडी नाव पर और मैं अपने नन्दोई के साथ खुलकर

सास नीचे लेटी,

उनकी दोनों टाँगे मेरे ननदोई के कंधे पर, जाँघे एकदम खुली,

और सास को नन्दोई और सलहज ने आपस में बाँट लिया।

नीचे का हिस्सा नन्दोई का ऊपर का सलहज का।

जोबन दोनों मेरे हिस्से में आये और मैंने कस के मसलना चूसना रगड़ना शुरू कर दिया,



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सासू की प्रेम गली नन्दोई के हिस्से में आयी थी और उनका हर धक्का हथौड़ा छाप था।

बहुत दिनों बाद मेरी सास चुद रही थीं, और वो भी अपने दामाद से बहू के सामने। और मजे से चीख रही थीं, सिसक रही थीं

" बेटी को बहुत चोदा मेरी आज माँ को भी चोद लो, हाँ ऐसे धक्के मारो, और जोर से, ओह्ह उफ्फ्फ "


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और मैं एक अच्छी बहू की तरह सास की तकलीफ और बढ़ा रही थी, उस चुदती बुर के क्लिट को उनकी बहू की उँगलियाँ पहले सहलाती रही फिर कस के दबा दिया,

सास वैसे भी खूब गरमाई थीं, अब दामाद के इन तूफानी धक्कों ने और बहू की बदमाशी ने उन्हें झड़ने के करीब ला दिया,

" हाँ ऐसे ही करो, रुको नहीं , बहू तो भी न, ओह्ह क्या करती है छिनार, .....तेरी माँ की, "

सास चूतड़ पटक रही थीं, चीख रही थी

और जब मेरे नन्दोई ने पूरा बांस निकाल के एक जोर के धक्के से सीधे बच्चेदानी पे चोट मारी तो सास ऐसे काँप रही थी जैसे बिजली के झटके लग रहे हो, आँखे उलट सी गयी, मारे मस्ती के दोनों हाथो से उन्होंने बिस्तर की चादर पकड़ ली

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वो झड़ रही थीं लेकिन न उनका दामाद रुका न उनकी बहू,

मैं यही सोच रही थी की सास के मन में क्या चल रहा होगा, यही की ऐसी बहू और दामाद हर सास को मिले,

मेरे ननदोई के धक्के जारी थे,

मैंने उनके आँख पर बंधा ब्लाइंडफोल्ड भी खोल दिया था, मैं भी क्लिट को रुक रुक के रगड़ मसल रही थी,


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सास मेरी बार बार झड़ रही थीं, सास की प्रेम गली बार बार सिकुड़ रही थी, फ़ैल रही थी लेकिन उन्होंने ऐसा ट्रेन कर रखा था अपनी मसल्स को उस सिकुड़ने, फैलने से मेरे ननदोई का मूसल वो इतने जोर से निचोड़ रही थी की थोड़ी देर में ननदोई भी उनके साथ और कस के उन्हें भींच के अपनी सास के अंदर झड़ते रहे, आठ दस मिनट दोनों जोड़े से पड़े रहे
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बस मेरे दिमाग में एक ही बात आ रही थी बार, बार जैसे आज मेरी सास खुल के मेरे सामने अपने दामाद से चुद रही थीं,

वैसे जल्द, बल्कि बहुत जल्द अपने बेटे से चुदे, मेरे सामने



और जब नन्दोई जी हटे, तो बूँद बूँद कर उनकी मलाई उनकी सास की बिल से, जहाँ से उनकी पत्नी निकली थीं, वहीँ से रिस रिस कर उनकी जाँघों पर,



बहुत कम लोग हैं जिन्हे माँ बेटी दोनों को लेने का सुख मिलता है

दोनों लोग एकदम थक कर चूर थे और मैं भी साथ में लेटी रही,

अभी नन्दोईजी को कम से कम आधा घंटा तो लगेगा ही फिर से चार्ज में लेकिन तभी मुझे याद आयी दारु की वो बोतल जो मैं नन्दोई जी के कमरे से ले आयी थी, उसकी एक एक चुस्की और थकान थोड़ी कम हुयी

सास मेरी, सच में,

मुझे चिढ़ाते छेड़ते उकसाते बोलीं ,

" तोहरे नन्दोई की मलाई है "

और ननदोई जी को दिखाते हुए, सास की कटोरी पे मैं टूट पड़ी पहले दोनों हाथों से जाँघों को खूब फैलाया और जाँघों पर गिरी हुयी फैली हुई मलाई को नन्दोई जी को दिखाते हुए जीभ निकाल के उसकी टिप से चाट लिया,

नन्दोई जी की हालत खराब, हो तो हो, जिस तरह से मेरी सास को कुचला था उन्होंने मेरी तबियत खुश कर दी थी उन्होंने।

और फिर दोनों होंठ सास जी की कुप्पी पे, हलके से फांक को फैला के चुसूर चुसूर, अपने नन्दोई की मलाई और मन में सोच रही थी बस दो तीन दिन और, एक बार ननद नन्दोई जी चले जाएँ, फिर तो इसी कुप्पी में से अपने मर्द की मलाई भी खाउंगी, मेरी जीभ अंदर घुस के कुप्पी की दीवालों को चाट चूस के मलाई की एक एक बूँद चाट रही थी,

लेकिन इस बुर चटाई और चुसाई का असर ये था की सास एक बार फिर से सिसकी भरने लगी, गरमा गयी


यही तो मैं चाहती थी, और अब ननदोई जी को दिखा दिखा के मैं सास की चंपा कली चूस रही थी, दोनों फांको को फैला के कभी दो ऊँगली अंदर करती और जैसे ननदोई जी का लंड मजे ले रहा अपनी सास की बुर में, मेरी उँगलियाँ मजे ले रही थीं अपनी सास की बुर में। होंठ भी खाली नहीं थे वो क्लिट की चुसम चुसाई कर रहे थे।



और अब यह देख के नन्दोई जी का औजार फुदकने लगा था, दो कन्यायों की प्रेम लीला से बड़ा उत्तेजक कुछ नहीं है मरद के लिए।
Are man gae. Jabardast. Ankho ke samne nadoi se sas ko chudvate dekhne ka maza. Hath khol diye aur nanad sahlaj ne bat liya. Konaliya ne sas ke joban na mathe hote to sas kabu me na aati.

Sasumaa ki prem gali se nandoi ji ki chasni chati. Wah wah erotic mazedar.

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Shetan

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सास बहू की मस्ती


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सास मेरी, सच में,



मुझे चिढ़ाते छेड़ते उकसाते बोलीं , " तोहरे नन्दोई की मलाई है "

और ननदोई जी को दिखाते हुए, सास की कटोरी पे मैं टूट पड़ी

पहले दोनों हाथों से जाँघों को खूब फैलाया और जाँघों पर गिरी हुयी फैली हुई मलाई को नन्दोई जी को दिखाते हुए जीभ निकाल के उसकी टिप से चाट लिया,



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नन्दोई जी की हालत खराब, हो तो हो, जिस तरह से मेरी सास को कुचला था उन्होंने मेरी तबियत खुश कर दी थी उन्होंने।


और फिर दोनों होंठ सास जी की कुप्पी पे, हलके से फांक को फैला के चुसूर चुसूर, अपने नन्दोई की मलाई और मन में सोच रही थी बस दो तीन दिन और, एक बार ननद नन्दोई जी चले जाएँ,

फिर तो इसी कुप्पी में से अपने मर्द की मलाई भी खाउंगी, मेरी जीभ अंदर घुस के कुप्पी की दीवालों को चाट चूस के मलाई की एक एक बूँद चाट रही थी,

लेकिन इस बुर चटाई और चुसाई का असर ये था की सास एक बार फिर से सिसकी भरने लगी, गरमा गयी

यही तो मैं चाहती थी,

और अब ननदोई जी को दिखा दिखा के मैं सास की चंपा कली चूस रही थी, दोनों फांको को फैला के कभी दो ऊँगली अंदर करती और जैसे ननदोई जी का लंड मजे ले रहा अपनी सास की बुर में, मेरी उँगलियाँ मजे ले रही थीं अपनी सास की बुर में।

होंठ भी खाली नहीं थे वो क्लिट की चुसम चुसाई कर रहे थे।
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और अब यह देख के नन्दोई जी का औजार फुदकने लगा था, दो कन्यायों की प्रेम लीला से बड़ा उत्तेजक कुछ नहीं है मरद के लिए।

" हे अकेले अकेले बुर रानी क मजा लेबी छिनार क जनी"

मेरी सास मुझे चिढ़ाते अपनी समधिन को गरियाते बोलीं,


और थोड़ी देर में सास बहू 69 की पोज में थे,
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इससे पहले कितनी बार हम सास बहू ने ये मजे लिए थे,

लेकिन आज असली खेल तो नन्दोई जी को तड़पाने के लिए हो रहा था, ये रात वो कभी न भूले और जब भी ससुराल आएं सीधे सास, सलहज के साथ, ( मतलब ननद मेरे मरद के साथ )।



मेरी सास भी पक्की चूत चटोरी, कटोरी के अंदर जीभ डाल के करोच करोच के चाटना मैंने उन्ही से सीखा था, हम दोनों साइड में एक दूसरे को पकडे, लेकिन मेरी सास खूब चालाक, वो जानती थी उनके बहू के बड़े बड़े कसे कसे चूतड़, उनके दामाद को कैसे पागल करते हैं तो बस, उन्होंने मुझे इस तरह दबोच रखा था की मेरे चूतड़ उनके दामाद को दिख तो रहे थे एकदम पास में भी, चाहें तो हाथ बढ़ा के छू ले,

जैसे वो नीली पीली फिल्मो में करते हैं न, खूंटा कभी भी अंदर पूरा नहीं धंसता, कैमरे के लिए थोड़ा सा बाहर, और दया तो मुझे उन लड़कियों पे आती हैं, कितनी बुरी तरह से टाँगे फैला के रखना पड़ता है, इसलिए नहीं की मूसल अंदर घुस जाए, इस लिए की कैमरे की निगाह में, क्लोज अप में वो साफ़ साफ़ दिखे, ऊपर चढ़ के भी चोद रही है तो झुकना मुश्किल है, जिससे अंदर बाहर जाता मूसल दिखे,



तो बस एकदम उसी तरह से मेरी सास भी, चाट मेरी चाट रही थीं, लेकिन पत्ता और सब मसाला अपने दामाद को दिखा रही थीं मेरा,
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और वो तो अपने सलहज के दीवाने,



बस थोड़ी देर में ही खूंटा उनका एकदम तैयार खड़ा,

लेकिन आज हम सास बहू की बदमाशियां भी परवान चढ़ी थी, न मेरी सास ने मुझे झड़ने दिया न मैंने सास को, हाँ सास बोलीं,


" देख ये अपनी महतारी क भंडुआ ललचा रह है सास, सलहज को देख के एक बार फिर से इसकी आँख बंद कर "



" अरे नहीं, ललचाने दीजिये न ससुराल में सास सलहज को देख के नहीं ललचाएगा तो किसको देख के, एक छोटी साली थी वो भी अपने बड़े भैया से मरवाने मुम्बई चली गयी। हाँ हाथ पैर बाँध देते हैं , हम लोगो को हाथ नहीं लगाएगा, जब तक हम लोग नहीं चाहेंगे "

मैं नन्दोई जी को देख के चिढ़ाते बोली


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सास और सलहज के पेटीकोट के नाड़े से नन्दोई जी मिनट भर में बंध गए, देखें ललचाये लेकिन और मेरी सास ने एक और पाबंदी लगा दी



" रंडी के जने, अगर एक आवाज निकली न तो तोहरी महतारी को नंगे नचाउंगी इसी अँगने में "



" वो भी इन्ही के सामने, " मैंने सास की बात में बात जोड़ी अच्छी बहू की तरह,


और हम दोनों सास बहू फिर चालु हो गए, लेकिन आपस में नहीं नन्दोई जी के साथ।

खूंटा उनका जबरदस्त खड़ा था, और सास ने मुझे खा देख तेरे नन्दोई का खूंटा, महतारी के नंगे नाचने के नाम से कैसा खड़ा हो गया, "

और साथ में मेरा सर उन्होंने जबरदस्ती नन्दोई के खड़े लंड पर
Kya ward use karte ho. Aap jadugar ho jadugar. Sas ki katori me nandoi ki malai. Wah wah.

Sas ; chat le. Tere nandoi ki malai hai.

Are unki biwi ko apne marad se chudva rahi hai. Mana kaha karegi. Jan kar.

Is bar to nandoi ji ko nari ras dikha dikha kar pagal hi kar diya. Man gae. Khuta fir khada ho gaya.

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Shetan

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सलहज के होंठ नन्दोई का खूंटा

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और हम दोनों सास बहू फिर चालु हो गए, लेकिन आपस में नहीं नन्दोई जी के साथ। खूंटा उनका जबरदस्त खड़ा था, और सास ने मुझे खा देख तेरे नन्दोई का खूंटा, महतारी के नंगे नाचने के नाम से कैसा खड़ा हो गया, " और साथ में मेरा सर उन्होंने जबरदस्ती नन्दोई के खड़े लंड पर

कौन सलहज होगी जो अपने नन्दोई का खड़ा मूसल ऐसे छोड़ देगी, ऊपर से जब उसकी सास खुद कह रही हो,

गप्प

पहाड़ी आलू ऐसा बड़ा सा मोटा सुपाड़ा मेरे मुंह में और बहुत धीरे धीरे मैं चूस रही थी, होंठों से रगड़ रही थी, जीभ से सुरसुरा रही थी

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और मेरी सास के होंठ भी हलके हलके अपने दामाद की टांगों पे तितली की तरह उड़ते हुए कभी यहाँ छूते कभी वहां और धीरे धीरे जांघों पर



ननदोई कसमसा रहे थे अपने बंधन छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मेरे पेटीकोट का नाडा था बिना मेरे चाहे नहीं खुलने वाला।

मैं अपनी सास को देख रही थी उनका मन भी वही कुल्फी खाने का कर रहा था जिसे मैं मजे ले ले कर चूस रही थी, और जैसे स्कूल की सहेलियां, आपस में लॉलीपॉप बाँट लेती हैं

" ले कमीनी एक बाइट तू भी ले ले, नजर लगा रही है "

बस मैंने उसे सास जी को ऑफर कर दिया।

एक ओर से चाटती वो दूसरी ओर से मैं,



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फिर हम दोनों ने बाँट लिया, गन्ना मेरे हिस्से में रसगुल्ला मेरी सास के हिस्से, और क्या मस्त दोनों बॉल्स वो चूस रही थी, मेरी भी जीभ लिक करती हुए गन्ने के बेस से शुरू होकर छतरी तक, लम्बी लम्बी चटाई, एक तरुणी, एक प्रौढ़ा,

एक साल भर पहले कि ब्याही, एक पत्नी की माँ,

असर होना ही था,

नन्दोई जी का खूंटा खड़ा होगया, खड़ा क्या ऐसा तन्नाया था कि अगर हम सास बहू ने ननदोई के हाथ पैर कि जगह उनके मूसल को बाँधा होता अपने पेटीकोट के नाड़े से तो कबका वो तोड़ चूका होगा,

अब मैं कस कस के चूस रही थी और बीच बीच में तिरछी निगाहों से नन्दोई को देख रही थी, हालत खराब और उनकी निगाहें सिर्फ एक बात और फिर वो अरज भी करने लगे

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" सलहज जी खोल दीजिये, बहुत मन कर रहा है, बस एक बार, "

" मेरी सब बातें माननी पड़ेंगी नन्दोई जी सोच लीजिये "

बड़ी अदा से मैंने उनसे कहा, तीन तीर्बाचा भरवाया और बोलै

" जोरू के गुलाम तो सब होते हैं, सलहज और सास का गुलाम होना मंजूर पहले बोलिये "

मैंने फिर पूछा

और मेरी सास ने बीच में टोक दिया,

" अरे ये अपनी महतारी क भतार,... बहू पूछ ले इससे कि तू कुछ कहेगी ये जाके अपनी महतारी के पेटीकोट में घुस जाएगा,.... फिर बोलेगा मैं का करूँ माँ कह रही है "


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नन्दोई जी ने फिर तीन बार कसम खायी और अबकी मैंने एक बार फिर पाला बदला, पलटू कुमारी बनते हुए

नन्दोई सलहज एक तरफ, न सिर्फ नन्दोई जी के हाथ पैर खुले बल्कि हम दोनों ने मिल के सास को निहुरा दिया,

नन्दोई ने जिस छेद का मजा लिया था एकबार फिर उसी में नंबर लगाया, लेकिन मैंने मना कर दिया

" नहीं नहीं उस का मजा तो एक बार ले लिया अबकी इस वाले छेद का "

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नन्दोई तो वैसे ही पिछवाड़े के छेद के रसिया

और मैंने सास के गोल छेद को फ़ैलाने कि कोशिश की, एकदम टाइट, साफ़ लग रहा था दसों साल से सींक भी अंदर नहीं गयी है। पूरी ताकत से फ़ैलाने पर भी बस हल्की सी दरार,
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लेकिन जिस तरह से सास मेरी झुकी थी सर एकदम बिस्तर से चुपके और दोनों बड़े बड़े चूतड़ हवा में उठे, इससे दो बातें तो साफ़ थीं

एक तो वो खूब गांड मरवा चुकी थीं

और दूसरे, उनका भी बहुत मन कर रहा था पिछवाड़े का मजा लेने का, लेकिन ननदोई जी का सुपाड़ा बहुत मोटा था, चिकनाई लगाने पर भी खून खच्चर करने वाला, बिना तेल के तो घुसना ही पॉसिबल नहीं लग रहा था

"बस मैं जरा सा कडुवा तेल ले आती हूँ और मेरे आने के पहले खेल शुरू मत करियेगा ,"



ये कहके मैं बाहर निकल आयी।
Jabardast kanukhta ki hade par. Jis tarah bandhe nandoi ji kasmasha rahe hai. Hath khulvane bol rahe hai. Kya line dali. Joru ke gumami to bahot kiye. Sas bahu ki gulami karo. Sasumaa ne bhi sahi kaha. Rahene de. Apni maa ke saye me ghus jaega. Aur fir bolega me kya karu. Maa ne mana kiya. Aur ek sath dono ne kya liquid kiya. Amezing.

Ab to sasumaa ka bahu ne chheda badlava diya. Pichhvada manthan.

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motaalund

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एकदम सही कहा आपने

साली, सलहज और सास, सहयोग की भावना से भरपूर हों तो ससुराल का मजा

और इसका एक पक्का नुस्खा है इस कहानी को पढ़ें, साली, सलहज और सास को भी पढ़ाएं

और पढ़ें एक बार, कमेंट कम से कम दस बार करें
क्या खूब सलाह दिया है आपने...
साली सलहज का मूड भांपना भी कम कला नहीं है...
और सही वक्त पर हथौड़ा भी...
 

motaalund

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एकदम ननद की ननद भी आएगी और सीओ अपनी ननद के भैया के साथ वही काम करवाएगी जो उसके भैया करते हैं, और सोच सोच के उसकी चम्पाकली में आग लगती हैं

एक बार भौजाई के सामने ननद का नीचे का मुंह खुल जाए, न ख़ास तौर पे भौजी के मायके वाले के साथ तो बस

ननद का ड्रैगन टाइप ऊपर वाला मुंह बंद हो जाता है और तानो की अग्नि वर्षा भी
और चंपाकली की सिंचाई होते हीं चंपा की कली खिल उठेगी...
 

motaalund

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सुगना और उनके ससुर का किस्सा,

और क्या पता कोई नया रंग भी आ जाये, बहुत से लोग ककोल्ड की फरमाइश भी करते रहते हैं तो किसी नए पुराने पात्र के साथ कहीं वो भी

या हिना के साथ तो बहुत कुछ हो सकता है
सही याद दिलाया..
सुगना को तो भूल हीं गए थे...
और पठानटोले वालियां भी तो ननदें हुईं...
तो कबड्डी जीतने का इनाम आपके मरद (वो भी तो भाई हुए) को आपकी ननद के अलावा... भी तो चाहिए...
और वो ननदें बचनी भी नहीं चाहिए...
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने, अगर तीन ऑप्शन हों, सास, सलहज और साली तो तीनो ही करेक्ट होंगे। किसी को भी छोड़ना उसके साथ नाइंसाफी होगी
और नाइंसाफी की आपसे कोई उम्मीद भी नहीं..
सबको मौका मिलेगा... सबका कल्याण होगा...
 

motaalund

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और सास और सलहज के चक्कर में बीबी की ओर ध्यान भी नहीं जाएगा जो माइग्रेन का बहाना करके और अपने भैया को आनेवाली कच्ची कली का लालच देके अगले नौ महीने का इंतजाम कर रही है, अपने भैया के साथ।
ऐसे लालच(ऑफर) से भला कौन इंकार करेगा...
 
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