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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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Wah bhabhi ho to esi. Nandiya ka uske bhiya kam shaiya se rat ka thanka pakka. Mano gambhin karva ke hi manegi.

Shas ke tano se chhuti. Lekin ye guruji ka kya chakkar hai. Jo shradha bhakti ke badle ashirvad me pet de deta hai. Amezing.


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camp corral
ननद की सास का मुँह बंद भी तो करना था...
अपनी ननद का नीचे का मुँह खुलवा के...
 

motaalund

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Are wah vese to nandiya apne bhiya ki dewani hai. Use bhiya ka bhi hath bhar ka mil hi gaya. Gambhin hone ki to guarantee hai hi. Magar nandiya ki sasu maa ne dhanki bhi de rakhi hai. Paheli holi hai. Isi lie jane de rahi hu. Aur sasumaa bhi to guruji ki pure 2 sal se cheli hai. Matlab to vo bhi..

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To ab nandiya rani bhi to bahu ban gai. Vo bhi to nadoi aur dewaro ko sambhalegi. Aur ashram me nandiya ki saheli ne bahot kuchh to bata diya. Baba ke ashirwad ko pane ki bhi vidhi hai. Use achhe se vese hi pura karna hoga. Jese nadiya ki saheliyon ne kiya. Amezing erotic update.


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और सास भी इकट्ठे नानी भी दादी भी...
 

motaalund

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Wah guruji ka to bahot bada scandal hai. Sanjna ka to itihaas khol diya. Uska bhai aur uske mayke valo ke sath sab kuchh. Ab to vo man hi jaegi. Guruji ke sisyo ka grup sab sambhal lega. Amezing erotic update. Aabhi to khud guruji baki hai.,

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ननद रानी झोंटा पकड़ के ले जाने से बचने का पूरा उपाय कर रही है...
 

motaalund

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आपके कमेंट्स के लिए कितना भी आभार व्यक्त करूँ कम ही होगा।

लेकिन यह कुछ बातें मेरी दो पोस्टों बम्बई सहर और उसके बाद की पोस्ट जेठ जेठानी के बारें और उस पर आपके कमेंट के बारे में

आपने एक बात एकदम सही कही, वेदना के बारे में। और जो बात आप ने कही, " उस वेदना को समझना मुश्किल है और सहना और मुश्किल है "
लेकिन उसे कहे बिना रहा भी जाता। पूर्वांचल की माटी की महक मेरी कहानियों में अक्सर आती रहती है इसलिए कभी कभार दुःख, छुप हुए आंसू जो आँखों से ढलकने के पहले ही नैन पी जाते हैं, वो दुःख भी छलक जाता है।

मैं मानती हूँ कहानी तब ही कहना चाहिए जब पास में कुछ कहने को हो। और कहानी एक माध्यम भी हो मन का दुःख बांटने का। फंतासी, वो सुख जो हम चाहते हैं, वो अतीत जो कभी रहा नहीं पर कल्पना की दुनिया में हम उसे कहानी में रचते हैं या और भी फंतासियां, लेकिन मैं मानती हूँ कहानी को हमें कॉमोडिटी नहीं बनने देना चाहिए, वयस्क कहानियों की दुनिया में भी नहीं। यह बात सही है किसी लिखने वाले को कुछ नहीं मिलता, लेकिन अगर हम कहानी को सिर्फ इस तरह से पेश करें की देखने वाले ज्यादा हों, व्यूज और लाइक्स ज्यादा हो तो शायद ये काम आर्टिफिशल इंटेलीजेन्स भी कर सकता है।
इस मामले में आप सब से अलग हैं, हॉरर ऐसी विधा आपने चुनी जिसमे व्यूज और लाइक शायद काफी कम हैं आपने तब भी उसमे एक मुकाम हासिल किया, इसलिए आप इस को समझती हैं

और यह प्रंसग भी माइग्रेशन के दर्द को कहने की कोशिश करता है और इसे एक नारी अपने जीवन के हर पड़ाव पे झेलती है, जब पति कमाने जाता है, पूर्वी उत्तरप्रदेश के कई जिलों में, जौनपुर, आजमगढ़, देवरिया ऐसे जिलों में महिलायें पुरुषों से ज्यादा हैं और कारण यही है खेती किसानी से अब काम नहीं चलता तो माइग्रेशन, यु पी के अंदर ही, नोयडा गाजियाबाद ऐसे इलाकों में पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में बहुत ज्यादा है। और बाहर देश के अंदर, मुंबई, सूरत और पंजाब से लेकर बाहर भी।

लेकिन यह दर्द सिर्फ गाँवों का नहीं हैं नगरों और महानगरों में भी पैरेंट्स का दर्द, जब बच्चे अमेरिका, कनाडा और दूर दूर, बढ़ते वृद्धाश्रम, ताला लटके घर, जीवन की साँझ में जब अँधेरा होने का इन्तजार कर रहे, बुढ़ाते पैरेंट बच्चों के पॅकेज का बात कर मन बहलाते हैं लेकिन मन के पीछे यह डर रहता है की कहीं अचानक किसी दिन

इस भाग की पोस्टो में वह डर है सास के मन में की कही अगर बड़ी बहु की तरह छोटी बहु भी तो बस वो उम्र के आखिरी पल सूने आंगन को तकते गुजारेंगी

और यह कई संवादों में आया है और बात में इस कहानी में


" और अब आ ही गयी हूँ तो खूंटा गाड़ के बैठ जाउंगी, लाख ताकत लगा लीजिये अब मेरा खूंटा उखड़ने वाला नहीं है। बस यही आपके साथ रहूंगी और जिस दरवाजे से सुहागिन आयी थी, उसी दरवाजे से,... जो गाँठ जोड़ कर लाया था, वही कंधे पे, ....सुहागिन आयी थी इस घर में, सुहागिन,... "

मेरी आँखे भर आयी थी और मेरी सास ने मुंह बंद करा दिया,

" चुप, चुप अब एक अक्षर आगे मत बोलना, " अपना हाथ मेरे मुंह पर रख दिया उन्होंने और फिर हड़काया,

" सुबह सुबह अच्छी अच्छी बात बोलो,"



एक बार वो फिर उदास हो गयीं,

जीवन के उस पक्ष की ओर इशारा करता है जिसके बारे में कोई बोलना नहीं चाहता

----


मैं उन का दुःख अब समझ सकती थी।

बात इस जेठ की नहीं थी।

अब हरदम के लिए थी, उन्हें लग रहा था इतना बड़ा घर अब सूना लगेगा।
सास-बहु सब सुख-दुःख मिल के बाँट लेंगी...
 

motaalund

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फागुन के दिन चार भाग २५ रंग पृष्ठ ३०८
एक मेगा अपडेट पोस्टेड
कृपया, पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें


अपडेट की कुछ बानगी

पलक झपकते मैंने चेन भी उठा ली। ये आर्डिनरी चेन नहीं थी, चेन का एक फेस बहुत पतला, शार्प लेकिन मजबूत था। गिटार के तार की तरह,.... ये चेन गैरोटिंग के लिए भी डिजाइन थी। दूर से चेन की तरह और नजदीक आ जाए तो गर्दन पे लगाकर। गैरोटिंग का तरीका माफिया ने बहुत चर्चित किया लेकिन पिंडारी ठग वही काम रुमाल से करते थे।

प्रैक्टिस, सही जगह तार का लगना और बहुत फास्ट रिएक्शन तीनों जरूरी थे।


पनद्रह बीस सेकंड के अन्दर ही वो अपने पैरों पे था

और बिजली की तेजी से अपने वेस्ट बैंड होल्स्टर से उसने स्मिथ एंड वेसन निकाली, माडल 640।

मैं जानता था की इसका निशाना इस दूरी पे बहुत एक्युरेट।

इसमें 5 शाट्स थे। लेकिन एक ही काफी था। उसने पहले मुझे सामने खोजा, फिर गुड्डी की ओर।

तब तक तार उसके गले पे।

पहले ही लूप बनाकर मैंने एक मुट्ठी में पकड़ लिया था और तार का दूसरा सिरा दूसरे हाथ में, तार सीधे उसके ट्रैकिया के नीचे।

छुड़ाने के लिए जितना उसने जोर लगाया तार हल्का सा उसके गले में धंस गया। वो इस पेशे में इतना पुराना था की समझ गया था की जरा सा जोर और,...

लेकिन मैं उसे गैरोट नहीं करना चाहता था।

मेरे पैर के पंजे का अगला हिस्सा सीधे उसके घुटने के पिछले हिस्से पे पूरी तेजी से, और घुटना मुड़ गया। और दूसरी किक दूसरे घुटने पे। वो घुटनों के बल हो गया। लेकिन रिवालवर पर अब भी उसकी ग्रिप थी, और तार गले में फँसा हुआ था।

मैंने उसके कान में बोला- “मैं पांच तक गिनूंगा गिनती और अगर तब तक रिवाल्वर ना फेंकी…”

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धड़धड़ाती हुई जीप की आवाज सुनाई पड़ी। सबके चेहरे अन्दर खिल पड़े सिवाय मेरे और गुड्डी के। दनदनाते हुए चार सिपाही पहले घुसे। ब्राउन जूते और जोरदार गालियों के साथ-

“कौन साल्ला है। गाण्ड में डंडा डालकर मुँह से निकाल लेंगे, झोंटा पकड़कर खींच साली को डाल दे गाड़ी में पीछे…”

गुड्डी की ओर देखकर वो बोला।

और पीछे से थानेदार साहब।

पहले थोड़ी सी उनकी तोंद फिर वो बाकी खुद। सबसे पहले उन्होंने ‘छोटा चेतन’ साहब की मिजाज पुरसी की, फिर एक बार खुद उस डाक्टर को फोन घुमाया जिनके पास उसे जाना था और फिर मेरी और गुड्डी की ओर।

“साल्ला मच्छर…”

बोलकर उसने वहीं दुकान के एक कोने में पिच्च से पान की पीक मार दी और अब उसने फिर एक पूरी निगाह गुड्डी के ऊपर डाली, बल्की सही बोलूं तो दृष्टिपात किया। धीरे-धीरे, ऊपर से नीचे तक रीति कालीन जमाने के कवि जैसे नख शिख वर्णन लिखने के पहले नायिका को देखते होंगे एकदम वैसे। और कहा-

“माल तो अच्छा है। ले चलो दोनों को,... लेकिन पहले साहब चले जाएं। डायरी में इस लड़की के फोन का तो नहीं कुछ…” उन्होंने पहले आये पुलिस वाले से पूछा।

“नहीं साहब। बिना आपकी इजाजत के। अब इस साले को ले चलेंगे तो किडनैपिंग और लड़की को नाबालिग करके। ये उससे धंधा करवाता था। तो वो…”

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तभी दरवाजा खुला लेकिन धड़ाके से।



क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुई होगी? सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस।

सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मारकर दरवाजा खोला। उसी तरह से 10 नंबर का जूता और 6’4…” इंच का आदमी, और उसी तरह से सबको सांप सूंघ गया।

खास तौर से छोटा चेतन को, अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की और यहीं गलती हो गई।



एक झापड़। जिसकी गूँज फिल्म होती,... तो 10-12 सेकंड तक रहती और वो फर्श पे लेट गया।


सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चुका है, तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा और फिर बाकी दोनों मोहरों को। टूटे घुटने और हाथ को और फिर अब उसकी आवाज गूंजी-

“साले मादरचोद। बहुत चक्कर कटवाया था। अब चल…” और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी।



Please do read latest action filled update of Phagun ke din chaar
लेकिन आपके आगे फिल्मों के धांसू राइटर्स भी फेल...
 

motaalund

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Har ghar ki ek hi kahani. Sas bhi kabhi bahu thi.

Nandiya ki sas ko surf bacha chahiye. Bhale kese bhi. Vo to guriji ki bhakt hai. Apni bahu ka chadhava chadhane ke chakkar me hai. Aur gadiya Nandiya ki fat rahi hai. Lekin nandiya ko bhabhi devi ka ashirwad mil gaya hai. Uske baiya bahen chod fir beti chod. Vese bhi sas beta beti me to fark rakhti nahi. Bhabhi ne bata diya aur unko bhi bol di hai. Gand mat marvauyega. Maza aa gaya. Lagta hai nandiya chhinar ka pet ful kar hi rahega.


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गुरु जी को चढ़ावा देने के बजाय भाई को हीं चढ़वा ली..
 

motaalund

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Thanks aur ek trah se accha hi hai,

Jiski behan pe vo roj haath saaf karte hain, unki behan pe vo haath karega yaani ' inka' number lagvaaungi, Nanad ki Nanad pe

pahla swad inko aur fir langar poora gaaon khaayega. Inter ka course kar rahi Nanad ki Nanad, yahan se Intercourse men Ph.D. kar ke jaayegi.
किसका गाँव...
आपके मरद का या नंदोई का...
 

motaalund

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और मजा तो तब आएगा जब वो मेरी सास की ननद और मेरी ननद,

मतलब बूआ और उनकी गुड़ की जलेबी बेटी के ऊपर एक साथ चढ़ेंगे, वो भी मेरे सामने

बताउंगी, वो भी किस्सा बताउंगी और खूब दिल खोल के बताउंगी
वाह... ये सीन तो कमाल का होगा...
 
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