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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग ९५ - सास का पिछवाड़ा

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मैं नहीं चाहती थी वो देखें मुझे देखते हुए, …लेकिन मेरे हटने के पहले ननद ने इशारे से बता दिया, तीन ऊँगली दिखा के तीसरा राउंड शुरू हो रहा है,



और मैं खिड़की से हट गयी,

और इनकी एक बात से मैं खुश थी, इनको कोई बात समझ में आये न आये, लेकिन आँख बंद कर के मान लेते थे और मैंने इनसे दस बार कहा था की इस बार सिर्फ जैसे पहले दिन किया था एकदम उसी तरह उसी उसी तरीके से जिससे हर बूँद सीधे बच्चेदानी में जाए, जैसे बोआई के समय बीज नहीं बरबाद होना चाहिए एकदम उसी तरह,

मन इनका बहुत ननद जी की गांड मारने का कर रहा था, ऐसे मस्त चूतड़ और जैसे मटका के चलती हैं वो किसी भी मर्द का देख के टनटना जाए, मेरे मरद की कौन गलती। लेकिन मैंने इनको समझा दिया था,

"खबरदार, अभी पिछवाड़े की ओर मुंह भी मत करना, सब की सब बूँद चूत रानी के अंदर और वो भी ऐसे की सब बच्चेदानी में जाए, "
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मेरे मन में बार बार होलिका माई की बात गूंजती थी, ननद को पांच दिन के अंदर गाभिन होना था लेकिन वो दिन पांच दिन के अंदर कोई भी दिन हो सकता था।


मैंने समझा भी दिया था,

" घबड़ा मत एक बार बस किसी तरह से गाभिन कर दो, फिर तो लौटेंगी न मायके, अरे गाभिन होने पे चूतड़ और चौड़ा हो जाता है, गांड और मारने लायक, मारना मन भर, अपने हाथ से पकड़ के तोहार खूंटा अपनी नन्द के पिछवाड़े लगवाउंगी, खुद तोहरे गोद में बैठ के अपनी गांड में तोहार मूसल घोटेंगी, लेकिन अभी बस, "
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और जिस तरह से वो ननद के चूतड़ के नीचे तकिया पर तकिया लगा रहे थे गाभिन करने के लिए सबसे अच्छा था, दूबे भाभी और आशा बहू दोनों लोगो ने समझाया था, चूतड़ जितना उठा रहे उतना अच्छा, चूत का मुंह और बच्चेदानी का मुंह एक सीध में रहेगा और ढलान भी तो एक एक बूँद ढलक कर सीधे बच्चेदानी में, बाहर बीज नहीं आएगा।



और मैं ननद की बात के बारे में सोच रही थी मुस्का रही थी, जिस तरह से वो बतिया रही थीं,

" बरही की रात में तोहरे सामने, देख लेना कैसा मोट मूसर है, जैसे सुन ही रही हो। लेकिन क्या पता अभिमन्यु भी तो सुभद्रा के पेट में और सुभद्रा भी तो अर्जुन क ममेरी बहन ही तो थी , और सुभद्रा सो गयीं तो अभिमन्यु आखिरी दरवाजे का किस्सा नहीं सुन पाया, पर हमार ननद सोने वाली नहीं, एक एक बात अरथा अरथा की समझा रही थी, सच्ची में बेटी कुल गुन आगर हो के निकलेगी, महतारी के पेट से। पहिलावे से सीखी पढ़ी।



और तभी मुझे याद आया निकली किस लिए थी, सरसो का तेल लेने, वहां बेचारी हमारी सास निहुरि फैलाये अपने दामाद क खूंटा क इंतजार कर रही होंगी।



झट से रसोई से कडुवा तेल क डिब्बा ले के मैं वापस पहुंची,



कौन बहू नहीं चाहेगी की उसकी सास की चौड़ी मोटी गाँड़ उसके सामने मारी जाए, और जिंदगी भर के लिए सास को चिढ़ाने का एक मौका मिले। और मारने वाला उसका अपना ननदोई हो तो उससे अच्छा क्या होगा,

कडुआ तेल ले के मैं पहुँच गयी पर सोच रही थी की अपनी ननद और अपने मरद के खेला देखने के चक्कर में कही उसकी सास का मन न बदल गया है, कहीं नन्दोई जी ने सूखे तो नहीं सास की गाँड़ तो नहीं मार ली और सास की चीख सुनने का सुख उससे रहा गया हो,

लेकिन नहीं,

मेरी सास वो,

वो सच में मेरी सास थीं, खूब मस्ती ले रही थीं। जो काम कभी उनकी बिटिया न करा पायी वो अपने दामाद से करा रही थीं, दरवाजे पर एक हाथ में सरसों के तेल की बोतल लेके मै मुस्कराते हुए देख रही थी,

दामाद उनके, उनका खुला पिछवाड़ा चाट रहे थे,
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सास ने खुद अपने हाथ से अपने दोनों बड़े बड़े नितम्बो को फैला रखा था, जीभ उनकी उस गोल छेद की कुण्डी खटका रही थी, पर इतने दिनों से बंद दरवाजा, कहाँ बिना तेल लगाए खुलने वाला था। पर मैं सास की शैतानी देख रही थी

" अरे ऐसे नहीं जाएगा, जिभिया अंदर तक डाल के नहीं तो बाहर बाहर से काम नहीं चलेगा, " उन्होंने अपने दामाद को उकसाया,

और दामाद, मेरे ननदोई ने भी अपने दोनों अंगूठों का जोर लगाया, दरार थोड़ी सी बहुत थोड़ी सी फैली और थूक का एक बड़ा सा गोला बना के उन्होंने अपनी सास के गांड के छेद पर, और फिर अपनी जीभ की टिप,


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सास ने भी नितम्बों को फ़ैलाने का जोर बढ़ाया और खुद भी पीछे की ओर जोर बढ़ाया, और जीभ की टिप अंदर थी,

" हाँ ऐसे ही, ऐसे ही, चलो कुछ तो हमार समधन सिखायीं तोहें, खूब गांड मारे होंगे न उनकी, बहिन तो तोहार अभिन बारी उमरिया वाली "

सास बोल रही थी, लेकिन ननद का मामला आ जाए तो कौन भौजाई चुप रहती है, भले ननद की ननद का ही मामला क्यों न हो "

" अरे अइसन बारी कुँवारी भी नहीं हैं, बस एक बार हमरे पकड़ में आ जाय न, गदहा घोडा कुल घोंट लेहिये और जो तोहरे दामाद नहीं घुसा पा रहे हैं न इन्ही का खूंटा, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर इन्ही का घोंटेंगी,… खुद फैला के लेगी "

मैं तेल ले के अंदर पहुँच गयी और नन्दोई को चिढ़ा भी रही थी और भविष्य भी बांच रही थी।
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सच है जो अभी मेरे ननद पर चढ़ा हुआ था, हचक हचक के मेरी ननद की मार रहा था,
वही मेरा मरद, मेरी ननद की बारी कुँवारी ननद की,.... कटखनी कुतिया मात जिसके आगे,


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मरजी से नहीं तो जबरदस्ती फाड़ेगा, आगे वाली भी पीछे वाले भी, उसके बाद पूरे गाँव को ननद की ननद का लंगर जिमाउंगी, और उसके बाद मेरे ननदोई जी का भी नंबर आएगा, वो भी उनकी सलहज और दुल्हन के सामने

लेकिन वो तो आगे की बात थी, बहुत आगे की बात नहीं लेकिन अभी तो मुझे अपनी सास का पिछवाड़ा फड़वाना था। इसलिए सरसों का तेल ले के आयी थी

नन्दोई सोच रहे थे शायद मैं तेल की बोतल खोल के तेल उनके मोटे सुपाड़े पर चुपडूँगी, पर मैंने उनसे कहा की जितने तकिये हों सास के पेट के नीचे लगा दें और कमर उनकी पकड़ के चूतड़ खूब ऊपर उठा ले

जीभ से चाट चाट के उन्होंने छेद कुछ तो खोल दिया ही था, मैंने सरसो के तेल की बोतल खोली, ढक्कन की जगह अंगूठा लगाया और सीधे बोतल सास की गांड के छेद पे



दामाद उनके समझ गए थे खेल अब वो भी पूरी ताकत से अपनी सास की गांड का छेद खोलने में लगे थे और बोतल की मुंह हम दोनों ने मिल के फंसा दिया, वो एकदम अंड़स गया, और अब धीरे धीरे कर के बूँद बूँद तेल अंदर रिस रहा था।

मैं उन बहुओं में नहीं थी जिन्हे सास का ख्याल नहीं हो, असली धक्का तो गांड के छल्ले पर लगता और वो छिल जाता और मारे दर्द के वो सिकोड़ लेतीं, तो बेचारे दामाद के मूसल का क्या होता,



और सिर्फ एक बार नहीं, एक कलछुल तेल चला गया होगा, तो मैंने सम्हाल के शीशी बाहर निकाल ली और सास जी ने कस के अपने पिछवाड़े को भींच लिया, वो बार बार भींच रही थी, फैला रही थी और तेल एकदम अंदर तक, मतलब सास की गाँड़ में भी मोटे मोटे चींटे काट रहे थे, गाँड़ मरवाने को और खुद वो तेल पानी पिछवाड़े कर रही थीं

फिर दुबारा शीशी का मुंह उनके पिछवाड़े का छेद जब थोड़ा आसानी से घुस गया और अबकी और ज्यादा,

ये ट्रिक मैंने ससुराल में ही आके सीखी थी,


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गौने की रात इनके पास जाने के करीब घंटे भर पहले, मेरी जेठानी आयी, नन्दो को गरिया के बाहर किया, दरवाजा बंद किया और मुझसे बोलीं

" जल्दी से साया साडी खोल के टांग ऊपर कर लो ,"

बात तो मैंने उनकी मान ली, टाँगे भी ऊपर कर ली, जाँघे भी फैला ली, जेठानी देवरानी में कौन शरम, लेकिन उन्हें छेड़ते हुए बोली

" क्या दीदी देवर से पहले आप ही नंबर लगा रही हैं, "

" सबेरे पूछूँगी, की तोहार केतना भलाई किये, “ और दोनों फांक फैला के करीब दो छटांक तेल ( १०० ग्राम से ज्यादा ) धीरे धीरे कर के अंदर और उस के बाद ऊपर से अच्छी तरह से पोंछ दी, रगड़ रगड़ के और बोली, “

“कस कस के भींच लो, कहीं वो अइसन मिठाई देख के कूद पड़े,… आपन सावधानी खुद करनी चाहिए, "
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बस तो एकदम उसी तरह, मेरी सास भी अपने पिछवाड़े में जो उनकी बहू ने तेल डाला था, उसे भींच भींच कर अपने कसे सिकुड़े पिछवाड़े को अपने दामाद के लिए तैयार कर रह थी।



फिर मेरे नदोई ने भी अपनी दो ऊँगली में तेल चुपड़ के अपनी सास की गांड में तेल पानी किया और मैं हथेली में तेल लेके, नन्दोई के सुपाड़े पे।


मैं तो कितनी बार ले चुकी थी अपने पिछवाड़े, नन्दोई का मोटा खूंटा।

ससुराल में आते हैं मैं समझ गयी थी की जितना हक़ साजन का है उतना ही देवर और ननदोई का भी। अब कोई देवर सगा तो था नहीं, जिसे मिठाई दिखा दिखा के ललचाती, बस यही एक नन्दोई थे तो सब हक उनका। अब जिसने स्साले की बहन को नहीं छोड़ा तो उसी बीबी को छोड़ेगा।

जबसे गौने आयी थी अगले दिन ही मुझे अंदाज लग गया था की ननदोई हमारे, हमरे पिछवाड़े के पीछे लहालोट हैं। बस क्या था, जब भी मैंने उन्हें देखती, पायल झनकाते, बिछुए बजाते, पिछवाड़ा मटकाते, उन्हें ललचाते चलती,
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और अपने हाथ से ही पकड़ के ननदोई का खूंटा सास जी के पिछवाड़े सेट किया, मैं अपने दोनों अंगूठों से कस के सास की गांड फैलाये थी


बस क्या करारा धक्का मारा उन्होंने, अपनी सास की कमर पकड़ के,



गप्प,
 
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गप्प,


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कडुवे तेल का फायदा हुआ, सास मेरी, एक धक्के में ही पहाड़ी आलू ऐसा मेरे नन्दोई का मोटा सुपाड़ा उनके पिछवाड़े ने घोंट लिया

लेकिन धंस तो गया, पर फिर अंड़स गया,

एक बात एकदम साफ़ थी दसो साल से मेरी सास का यह पिछवाड़े का दरवाजा नहीं खुला था ।

मैंने तय कर लिया था, एक बार मेरे ननद नदोई चले जाएँ तो कम से कम हर हफ्ते एक दो बार, उनके बेटे से,आखिर उनका भी तो पिछवाड़े का दीवाना था . ठीक है जिस भोंसडे से उनका बेटा निकला है, उस भोंसडे में पहला मौका मिलते ही उनके बेटे को घुसवाऊँगी, मेरा मरद अपनी बहन चोद रहा है, बेटी भी चोदेगा तो महतारी किसके लिए छोड़ेगा, लेकिन उसके बाद पिछवाड़े का भी नंबर लगेगा

पर पहले अभी दामाद का नंबर था

कोशिश ननदोई जी कर रहे थे, सास भी कर रही थीं, बल्कि नन्दोई से ज्यादा, जैसे कहते न जो एक बार साइकिल चलना सीख लेता है फिर भूलता नहीं एकदम उसी तरह गांड मारने वाले, और मरवाने वाली ( या मरवाने वाले ) न ट्रिक भूलते हैं न उस मजे को।

मैं अब अपने नन्दोई के पीछे खड़ी थी, उनके मुसल के बेस पे हाथ लगाए, आखिर सास तो हम दोनों की थी, इसलिए मैं भी धक्के मारने में सहयोग कर रही थी, जिसमे सास का सुख हो,

सास मेरी थीं तो नन्दोई भी मेरे थे, उन्हें भी तंग करना मेरा काम था, बस अपने बड़े बड़े गोल गोल जोबन उनकी पीठ पे रगड़ रही थी, उनके चूतड़ों को सहला रही थी, उनकी दरार में ऊँगली रंगड़ रही थी। लेकिन मुझसे नहीं रहा गया, अभी भी दो इंच बाहर था, ये तो बेईमानी हुयी



" अरे नन्दोई जी ये बाकी का किसके लिए बचा रखा है, मेरी ननद के सास के लिए, वो गदहों घोड़ो वाली, उनका इससे क्या, पूरा डालिये नहीं तो मैं डालती हूँ "
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मैंने उन्हें उकसाया और डाल भी दिया अपनी दो ऊँगली उनके पिछवाड़े,

बस क्या गांड मारी उन्होंने हम दोनों की सास की .
मेरी सास खुश,... मैं खुश, उसी समय मैंने अपनी ननद की ननद नन्दोई जी के नाम लिख दी।


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नन्दोई से ज्यादा जोश में मेरी सास थीं , अपनी समधन को गरिया रही थी अपने दामद को उकसा रही थी और हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी,

लेकिन आठ दस मिनट के बाद मुझे भी लगा, नन्दोई जी को भी की सास की पीठ कहीं निहुरे निहुरे दुखने न लगी हो, बस सास जी बिस्तर पे लेटी जैसे कुछ देर पहले अपने दामाद से चुद रही थी बस फरक ये था की वो मोटा मूसल उनके बजाय आगे के छेद के पीछे की छेद में धंसा

मैंने सुन रखा था की भरी भरी देह वाली, खूब खेली खायी, थोड़ी बड़ी उमर वाली औरतों की गाँड़ मारने में मरदों को बहुत मजा आता है लेकिन आज देख रही थी सामने। नन्दोई जी के चेहरे की चमक खुसी और जोस। लेकिन मेरी और उनकी सास कम गर्मायी नहीं थी, जब ननदोई जोर का धक्का मारते, तो सास मेरी और उनकी, सिसक पड़ती थीं, लेकिन दर्द के साथ ख़ुशी भी छलक जाती। जोर से वो मुट्ठी भींच लेती, सिसक पड़ती और जब नन्दोई जी आराम आराम से सरका सरका के अपना मोटा खूंटा मेरी मरद की महतारी की गाँड़ में धीमे धीमे धकलते तो वो मजे से सिसकने लगाती और मेरे नन्दोई को गरियाती,

" अबे स्साले, भोंसड़ी के, खाली अपने महतारी क, हमरे समधन क गाँड़ मार मार के पक्का हुए हो की अपनी बूआ, चाची, मौसी क गाँड़ भी मारे हो , सब के सब खूब चूतड़ मटकाती हैं "


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और मैंने तय कर लिया की अपने सास के बेटे से,... न खाली उसकी महतारी की बल्कि बूआ, चाची, मौसी सब की गाँड़ मरवाउंगी

महतारी क गारी सुनने के बाद जो हाल किसी भी मरद का होता है मेरे नन्दोई का हुआ और क्या क्या हचक हचक के उन्होंने अपनी सास की गाँड़ मारी।
कभी दोनों चूँची पकड़ के दबा के निचोड़ के तो कभी सास को दुहरा करके, हर धक्का पूरा अंदर तक और सास हर धक्के के साथ कभी सिसकतीं कभी चीखतीं कभी गरियाती

" स्साले, तेरी बहिन की, तेरी महतारी क, अरे तेरी महतारी क भोंसडे की तरह ताल, पोखरा नहीं है, दसो साल बाद पिछवाड़े कुदाल चल रही है , तनी आराम आराम से "


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" अरे घबड़ा काहे रहीं, अब तो जब आऊंगा तब मारूंगा आपकी गाँड़. एकदम अपने बिटिया से पूछ लीजियेगा, अगवाड़े क नागा हो जाता है, पिछवाड़े क नहीं होता है "

दामाद उनके ख़ुशी से सास क जुबना चूम के बोले लेकिन सास की ओर से जवाब मैंने दिया,


" अरे चलो मैं नहीं थी जब आपका बियाह हुआ वरना कोहबर में कुल खेल सिखाय देती.

लेकिन तोहार महतारी ससुरार आते समय सिखाई नहीं थी ? ससुरारी में खाली मेहरारू नहीं मिलती। सास, साली सलहज सब पे पूरा हक़ है और अगर कहीं गलती से भी पूछ लिए सास, सलहज से तो समझ जाएंगी की हौ पूरा बुरबक। सास हमार का पिछवाड़े बोर्ड टांग के घूमतीं? अरे चलो देर हुआ, लेकिन।

अब आगे से अपनी मेहरारू, हमरी ननद के साथ मौज मस्ती,.. अपने मायके और उनकी ससुरारी में और अपनी ससुरारी में,... सिर्फ सास और सलहज।"
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अब मेरी सास के पिछवाड़े को इतने दिन बाद मोटे लंड का मजा फिर से मिल रहा था और वो चूतड़ उछाल के घोंट रही थीं।

लेकिन मुझसे नहीं रहा गया, सास मजे ले और बहु सूखे



मैं सास के ऊपर चढ़ के बैठ गयी और अपनी बुर उनके मुंह पे रगड़ने लगी, सास मेरी बहुत अच्छी । कस के चूस रही थीं चाट रही थीं


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मैंने आगे बढ़ के उनके दामाद को सास, मेरी उनकी सास की गांड मारने का इनाम भी दे दिया, उन्हें कस कस के चूम के।

और उनके दामाद का भी तो फायदा था, कभी सास की चूँची दबाते तो कभी सलहज की , एक साथ सास सलहज दोनों का मजा और इसी लिए तो हर दामाद ससुराल जाना चाहता है।


हचक के गांड मारी जा रही थी,


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मैं भी कभी सास की एक चूँची पकड़ के दबाती तो दूसरे हाथ से उनके बुर में ऊँगली करती, एक छेद मजा ले रहा है तो दूसरा क्यों प्यासा रहे,



सास मेरी भी कम नहीं थीं, उन्होंने खींच के मेरे मुंह को अपनी बुर पे, अब हम दोनों एक दूसरे की प्रेम गली में जीभ से सेंध लगा रहे थे, कस कस के चूस रहे थे, चाट रहे थे और दामाद उनका पिछवाड़े की ड्यूटी पर, एक साथ सास जी को अगवाड़े पिछवाड़े का मजा मिला रहा था



थोड़ी देर में हम तीनो साथ साथ झड़े, पहले मैं,

जब मैं झड़ रही थी तो मेरे ननदोई ने सासु माँ की गाँड़ मारना रोक दी और वो मजे से देख रहे थे की सास कैसे अपनी बहू की बुरिया चूस रही है। और सच में मेरी सास बहुत मस्त चूसती थीं, अपनी ससुराल में तो मैं सबसे चुसवा चुकी, थी, जेठानी, दोनों ननदें लेकिन सास सच में सास थीं, चूसना, चाटना और जीभ से बुर चोदना तीनो में नंबर वन, और मुझे एक बार झाड़ने के बाद भी छोड़ती नहीं थीं, जब तक मैं झड़ झड़ के थेथर न हो जाऊं, और आज तो स्साली छिनार एकदम गर्मायी थी, गाँड़ में अपनी बेटी के मरद का मोटा लंड जो घुसवाये थी


चार बार झड़ी मैं तब उन्होंने चूसना बंद किया और मैं जल्दी से किसी तरह से नन्दोई के पीछे जा के खड़ी हो गयी और अपनी चूँचियों से ननदोई की पीठ रगड़ते उनके कान को हलके से काट के बोली,

" अबे स्साले, मेरे मरद के स्साले, पेल पूरी ताकत से, देखूं महतारी ने तुझको दूध पिलाया की खाली तोहरे मामा को पिलाती थी जिसके जाए हो तुम "

मेरे दोनों जोबन उनकी पीठ रगड़ रहे थे और हाथ नन्दोई के नितम्ब और एक झटके से मैंने ऊँगली उनके पिछवाड़े पेल दी,

पता नहीं गारी का असर था या मेरी ननद के भतार के गाँड़ में घुसी मेरी ऊँगली का



हचक के अपना मोटा खूंटा मेरी सास की गाँड़ में पेला



" उई ओह का करते हो स्साले, नहीं नहीं " मेरी सास जोर से जोर चीखीं। मुझे पक्का यकीन था की मेरी सास की ये दर्द और मजे की चीख पक्का मेरी सास की बेटी चोद रहे उनके बेटे के पास भी जरूर पहुंची होगी।

लेकिन अब नन्दोई सलहज एक ओर, मैं ननदोई को उकसा रही थी और मजे ले ले कर पूरी ताकत से हम दोनों की सास की मार रहे थे।


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लेकिन तभी मुझे एक और बदमाशी सूझी

" अरे नन्दोई जी, जिस भोंसडे से इतनी सुन्दर हमार ननद निकली है जिसकी बुर का मजा रोज बिना नागा लेते हो, जरा उस भोंसडे का भी तो ख्याल करो, पेल दो पूरी मुट्ठी।



सच में मेरी सास का फुदकता, फूलता पिचकता भोंसड़ा बहुत मस्त लग रहा था, उस में से उनकी बेटी के मरद की मलाई अभी भी धीरे धीरे बह रही थी।



मुट्ठी तो नहीं लेकिन एक साथ उन्होंने तीन उँगलियाँ अपनी सास की बुर में पेल दी और डबल चुदाई का असर हुआ थोड़ी देर में

सास और साथ में उनके दामाद, झड़ रहे थे।
 
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अब सलहज की बारी
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थोड़ी देर बाद ननदोई ने अपना मोटा खूंटा सास के पिछवाड़े से निकाला और साथ में मलाई की धार, खूब गाढ़ी थक्केदार, अंदर तक बुचोबुच भरी हुयी, छलक रही थी।


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और उनकी बुर में पहले से ही नन्दोई जी मलाई अभी तक लगी थी, इत्ता सुन्दर लग रहा था, बस मैं यही सोच रही थी, नन्दोई की जगह मेरे मरद की मलाई ऐसी ही रोज इनके अगवाड़े पिछवाड़े छलकती रहे,


" अरे छिनार काहें ललचा रही है, नजर लगा रही है। तेरे नन्दोई का ही तो है, सलहज का तो हक़ ननदोई पे सबसे पहले और अब तो तेरे अलावा और कोई नहीं न साली न दूसरी सलहज, ले ले चाट ले "

हँसते हुए मेरी सास ने खींच के मेरे मुंह को,


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मैंने थोड़ा बचने की कोशिश की, मलाई के साथ सास के पिछवाड़े से ' और भी बहुत कुछ;'

लेकिन मेरी सास की पकड़ उनके पूत से भी तेज थी, सँडसी मात थी,

और मेरा मुंह, बस वहीं चिपक गया।

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नन्दोई की मलाई का स्वाद, सपड़ सपड़, जीभ निकाल के मैं चाट रही थी, कभी दोनों होंठों से सास को पकड़ के कस के चूस लेती तो सास सिसक जातीं, कस के मेरा सर पकड़ के अपनी ओर खींच लेतीं, अपने दामाद के मलाई में सनी गांड पे रगड़ने लगतीं, और अब मेरी उँगलियाँ ने गोल छेद को थोड़ा सा फैलाया और जीभ अंदर,



नन्दोई एकदम नदीदे की तरह देख रहे थे और सास मेरी छिनाल उन्हें और उकसा रही थे, " देख ले अपनी छिनाल सलहज को तोहरे मलाई के लिए कैसे पागल है, कैसे लपर लपर चाट रही है "

कनखियों से मुस्करा के मैंने ननदोई की ओर देखा, स्साले की निगाह सिर्फ मेरे होंठों पर नहीं, मेरे पिछवाड़े भी थी। सास के बाद अब एक फिर से बहू के पिछवाड़े के स्वाद के चक्कर में था बेचारा। मैंने हाथ बढ़ा के खूंटे का बेस पकड़ लिया, सिर्फ बेस ही और हलके हलके दबाने लगी, और एक बार फिर से सास की सेवा में लग गयी, उनके पिछवाड़े से मलाई चाटने के चक्कर में और मेरी सास अब अपने दामाद की ओर से बोल रही थीं, मुझे उकसा रही थीं



" अरे यही मलाई तोहरे नन्दोई के खूंटे पर भी लगी है ओहु क स्वाद ले लो "

सास की आँखों में चमक थी, वो और ननदोई एक दूसरे को देख के मुस्करा रहे थे और मैं समझ भी रही थी क्यों। नन्दोई जी के मोटे खूंटे पे मलाई के अलावा मेरी सास के पिछवाड़े की,



लेकिन ननदोई नन्दोई होता है, कौन सलहज नन्दोई को मना करती है। फिर कौन ये पहली बार था, हफ्ते दस दिन पहले ही तो ऐन होली के दिन, मेरी छिनाल ननद जो अपने सगे भैया से अभी कुटवा रही है, गाभिन होने के लिए, इन्ही नन्दोई से मिल के, ,,, मेरे सामने ननदोई नन्द का पिछवाड़ा मार रहे थे और मैं अपने नन्दोई को चढ़ा रही थी,



" हाँ ननदोई जी और कस के गाँड़ मारिये, स्साली छिनार बहुत चूतड़ मटका मटका के चलती है "



और बजाय बुरा मानने के मेरी ननद खिलखिला रही थीं। बाद में पता चला की मेरी ननद और नन्दोई की मिलीभगत, थोड़ी देर गुदा मंथन करने के बाद मेरी ननद के पिछवाड़े से ननदोई ने खूंटा अपना मेरे मुंह में ठोंक दिया। ननद कस के मेरे सर को पकडे थी, जब तक मैंने खुल के चूसना नहीं शुरू किया और चिढ़ा रही थी



" कहो भौजी, मिल गया ननद का स्वाद, "

मैं क्या बोलती, मेरे मुंह में तो डाट लगी थी। और अभी सास और नन्दोई की मिली भगत तो मैंने नन्दोई का खूंटा पकड़ा, अभी भी थोड़ा सोया सा, दो बार रगड़ रगड़ के मेरी सास को चोदा था, अगवाड़ा भी पिछवाड़ा। लेकिन मेरे होंठ तो किसी के भी खूंटे को जगा सकते थे, थोड़ा सा सुपाड़े को चाटने के बाद सीधे अंदर और कस के चूसने लगी। ननदोई ने कस के मेरा सर पकड़ रखा था और ठेल रहे थे और सास मुझे चिढ़ा रही थीं


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" :कैसे चूसती है मेरी बहुरिया। मस्त न। एकदम अपनी माँ पर गयी है। इसकी शादी में इसकी माँ ने पूछा था,

" बरातियों का स्वागत कैसे करुँगी ? "


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तो मैं बोली,

" अरे जितने तोहार समधी हैं सबका चूस चूस के समधिन द्वारपूजे पे ही झाड़ देना, लड़का के चचा, फूफा, मौसा दर्जन भर से ऊपर समधी होंगे तोहार। लेकिन एकर महतारी, जब बरात लौटी तो सब बहुत खुश की अइसन स्वागत कउनो बरात मन ना हुआ, लड़की क महतारी खुदे तो पता चला की समधी के साथे साथे, जउन बजनिया, कहार नाऊ सबका समधिन चूस चूस के और झड़ने के बाद १०१ रूपए देकर तीसरी टांग छू छू के, तो ओकर जनि तो चूसने में तो तेज होगी ही "


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और ये सुन के नन्दोई एकदम पागल, मेरे दोनों कंधे पकड़ के कस के ठोंक दिया, मैं गों गो करती रही, खूंटा उनका खड़ा हो गया था।

कुछ देर चूसने चाटने के बाद मैंने छोड़ दिया सास जी का इशारा उन्होंने बोतल खोल ली थी।



खूंटा एकदम साफ चिक्क्न और तन्नाया

हम तीनो थक गए थे, आधे घंटे के इंटरवल और दारू की आधी बोतल के बाद उन्होंने सास की तरह फैसला सुना दिया नन्दोई जी को



अबकी तोहरे सलहज का नंबर है



और बताया तो था की मेरे पिछवाड़े के रसिया तो बस मेरे पिछवाड़े का नंबर लगा, लेकिन सास और दामाद ने मिल के यहाँ भी चाल खेल दी मेरे साथ।

" चढ़ जा बहू मेरे दामाद के ऊपर " सास ने मुझे चढ़ाया और मैंने देखा नहीं की उन्होंने नन्दोई जी को कैसे जबरदस्त आँख मारी।

" अरे चढूँगी इस स्साले के ऊपर और मारूंगी, इस की भी, इस की बहन महतारी की भी , वो भी बिना तेल लगाए " हँसते हुए मैं बोली।


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ऊपर चढ़ कर चोदने में मुझे बहुत मजा आता था अपने मर्द को तो अक्सर ही, अपनी ननद के इस मरद को भी कई बार खुद ऊपर चढ़ के पेल चुकी थी लेकिन,


" हे छूना मत, चुप चाप लेट के चुद "

मैं नन्दोई को चिढ़ाते हुए ऊपर चढ़ी और उनके दोनों हाथों को अपने हाथों से जकड़ लिया और जैसे ही अपनी बिल उनके तन्नाए खड़े लंड के ऊपर,

सास ने अपने हाथ से अपने दामाद का खूंटा पकड़ के मेरे गोल दरवाजे पे, "

"नहीं नहीं उधर नहीं " मैं चीखी



" क्यों, जब मेरी गाँड़ मारी जा रही थी तो बहुत खिलखिला रही थी, तेरी छिनार की जनी की मखमल की है मेरी टाट की "

हँसते हुए मेरी सास बोलीं और मेरे पिछले दरवाजे में अपने दामाद के खूंटे को फंसा के कस के मेरे कंधे को पकड़ के दबा दिया, उधर नीचे से उनके दामाद ने मेरी कमर पकड़ के उछाल के पूरी ताकत से क्या धक्का मारा, सुपाड़ा पूरा अंदर तो नहीं लेकिन घुस तो गया ही और दोनों ने कस के पकड़ा था इसलिए मैं निकाल भी नहीं सकती थी।

मैं क्या बोलती सास को की उनकी गाँड़ में तो एक पसेरी सरसों का तेल मैंने पिलाया था और उस स्साले नन्दोई के भी खूंटे में खुद मैंने अपने हाथ से तेल मल मल के चिकना किया था और यहाँ सूखे ही नन्दोई पेलने पे तुले थे। लेकिन अब कोई चारा भी नहीं था और मैंने भी एक जबरदस्त बदमाशी सोची और ननदोई के कंधे को पकड़ के अपनी ओर से भी कस के धक्का मारा।

गप्प


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दरेररता, रगड़ता, फिसलता मोटू अंदर।

लग रहा था गाँड़ में किसी ने पाव भर सूखा लाल मिरचा डाल के कूट दिया हो। किसी तरह मैंने दांतों से होंठों को काट के दर्द पी लिया, और धीरे धीरे अपनी पूरी ताकत से पुश किया और धीरे धीरे कर के गाँड़ का छल्ला पार हो गया, लेकिन मैंने अब अपनी शरारत शुरू कर दी। ।



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आखिर मैं भी तो अपनी सास की बहू थी, और बहुत कुछ गुन ढंग उनसे ही सीखा था और अगवाड़े के साथ पिछवाड़े को भी उन्होंने टाइट करना सिखा दिया था, और ऐसी टाइट की मोटा लंड तो दूर ऊँगली भी कोई अंदर बाहर नहीं कर सकता,



बेचारे नन्दोई जी, मुश्किल से आधा धसा होगा, बेचारे हचक हचक के पेलना चाहते थे और आँख नचाते हुए ऑप्शन दे दिया



" हे अपनी बहिनी के भतार, पेलना है तो मेरी एक बात मानना है , वरना लाख कोशिश कर लो न अंदर घुसा पाओगे, न बाहर निकाल पाओगे "

उनकी ओर से उनकी सास बोलीं " अरे मान जाएगा, मेरे दामाद को समझती क्या हो, एक नहीं दस बात मानेगा लेकिन आज तेरे पिछवाड़े का भुरता बना देगा। "

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बस मैंने शर्त सुना दी, मैं पांच बाते बोलूंगी और उन्हें सिर्फ हाँ बोलना होगा , और उनके हाँ बोलते ही ढीला करके मैं एक धक्का मारूंगी और वो भी नीचे से, सिर्फ पांच बार,



इस राउंड में दामद सास की जुगलबंदी थी, दोनों मेरे खिलाफ मिल गए थे। दोनों साथ साथ बोले, मंजूर।

और मैंने नन्दोई की आँख में झाकते हुए मुस्करा के पूछा,

" आप की सास पक्की छिनार हैं, हैं ना "

और जैसे ही उन्होंने हाँ बोलै मैंने पकड़ ढीली की और ऊपर से क्या जबरदस्त धक्का मारा और नीचे से उन्होंने भी और मेरी सास ने कम से कम दर्जन भर गाली मेरी महतारी अपनी समधन को सुनाई , लेकिन उनकी चमकती आँख से लग रहा था वो बड़ी खुश हैं

___अगला नंबर ननद की ननद का था,

" तोहार छोट बहिनिया खूब चुदवाने लायक हो गयी हैं न, गपागप लंड घोंटने लायक "


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ननद की ननद तो ग्यारहवें में पहुँच गयी थी , होली के अगले दिन तो हिना और उसकी सहेलियां आठवे नौवें वाली, गपा गप घोंट रही थीं,

" हाँ " नन्दोई जी तुरंत बोले और मैंने एक धक्का और मारा और अगला सवाल पूछ लिया,


" तोहरे कोरी कुँवारी बहन की बुर हमार मर्द और तोहरी बहनिया की भौजी क भैया फाड़ेंगे "



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हिचकिचाए वो, लेकिन हाँ बोलने के अलावा कोई चारा भी नहीं था। उन पांच सवालों में उनकी माँ बहन सब चुद गयीं लेकिन नन्दोई जी का खूंटा मेरे पिछवाड़े जड़ तक



उसके बाद तो क्या जबरदस्त पोज बदल बदल कर उन्होंने मेरी मारी,


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तीसरी बार पानी गिर रहा था तो टाइम लगना ही था।

रात भर में पांच बार, दो बार मेरा , तीन बार मेरी सास का,
 
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अगली सुबह
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जब मेरे नन्दोई सास के पिछवाड़े दुबारा झड़ रहे थे, पौ फ़ट रही थी, ग्वालिन चाची, भैंस दुहने आ गयी थीं।


मेरे अंदर तो ताकत नहीं बची थी बस नन्दोई को पकडे पकडे सो गयी,

घंटे भर बाद जब नींद खुली तो सास की रसोई से आवाज आ रही थी, ग्वालिन चाची की आवाज आ रही थी।

कपडे सम्हाल के मैं ननद के कमरे की ओर गयी, दरवाजा उठँगा था, वो बेसुध सो रही थी, करीब करीब निसूती, बस लगता है उनके भैया ने चलते चलते चादर ओढ़ा दिया था, वो भी जोबना पर से सरक गया था और दोनों जाँघों के बीच अभी भी मेरे मरद की, उनके सगे भैया की मलाई छलकी पड़ रही थी।


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ये चले गए थे, गाँव में बहुत सा काम सुबह ही होता है खेती किसानी का।

लेकिन मेरी ननद एकदम थेथर,

लौट के मैं रसोई में आयी तो सास ग्लास में चाय पी रही थीं वही उन्होंने मेरी ओर बढ़ाई और मैं सुड़कने लगी
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उनकी आखों का सवाल मैं समझ गयी थी, मैंने बता दिया दोनों सो रहे हैं, बेसुध, नन्दोई सासु जी के कमरे में और ननद, मेरे कमरे में

हँसते हुए सास बोलीं , " ठीक है जगाना भी मत, दो तीन घंटे सो लेने दो, नाश्ता बन जाएगा तो उठाना। "

मैं और सास रसोई में काम कर रहे थे, घर में दामाद है तो नाश्ता भी अच्छा होना चाहिए और जिस तरह से हम सास बहु ने मिल के उन की मलाई निकाली नाश्ता हैवी भी होना चाहिए था।

लेकिन दिमाग में हम दोनों के एक ही बात दौड़ रही थी, ...एक दिन और।

कल तो हम सास बहु ने मिल के ननद को ननदोई से बचा लिया और मैं तो और खुश थी की मैंने अपने मरद को उनके ऊपर बहाना बना के चढ़ा भी दिया,

और उस के साथ ननदोई जी ने जो मस्ती की, अब उनका भी एक पैर ससुराल में रहेगा और जल्दी वो मेरी बात भी नहीं टालेंगे।



लेकिन काठ की हांड़ी दो बार तो चढ़ती नहीं इसलिए आज ननद को ननदोई के पास तो जाना ही होगा, कैसे, क्या करूँ, इसी उधेड़बुन में मैं कचौड़ी तल रही थी। लेकिन मुझे विश्वास था कोई न कोई रास्ता निकल आएगा।
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बस कल सुबह भोर होने के पहले, सूरज की पहली किरन भी न निकली हो, एकदम मुंह अँधेरे, ...और चेक करने का काम भी भौजाई के जिम्मे

और जब से ननद ने अपनी सास की बात बतायी, कैसे वो उस गुरु के आश्रम भेजने के पीछे पड़ी थी, किस तरह से उन्हें ताने सहने पड़ते थे, और अब वो लाख कोशिश करें, वहां उस साधु के यहाँ जाने से बच नहीं सकती थी,

बस सब कुछ होगा कल भोर के टाइम, बस सब ठीक हो जाए, मैं यही सोच रही थी।

पांच रातें और पांच में से चार रातें बीत गयीं। पहली रात नन्द अपने भैया के साथ दूसरी रात अपने सहेलियों के साथ और चांस की बात थी की नन्दोई जी उसी दिन हस्पताल में अपने दोस्त के साथ और तीसरी रात भी वो हस्पताल में ही रहे, और तीसरी रात एक बार फिर ननद मेरे मरद के साथ सोयीं। कल की रात बस किसी तरह रस्ता निकल ही गया, ननद ने माइग्रेन का बहाना बनाया और नन्दोई भी अपने सास पे, असल में सास के पिछवाड़े तो चौथी रात भी ननद और मेरा मरद,



लेकिन कल रात वाली ट्रिक आज नहीं चल सकती थी, और आज की रात ननद को नन्दोई से बचाना जरूरी था।

और कैसे ये समझ में नहीं आ रहा था और ननदोई जी ननद को अपने साथ आज ले चलने की जिद करने लगे तो सब बेडा गर्क। सब किया धरा बेकार।

होलिका माई ने पांच दिन कहा था तो वो पांच दिन, पांचवा दिन भी हो सकता था। मैं मानती हूँ की बात होलिक माई की सही ही होगी, लेकिन लाटरी निकलने के लिए भी लाटरी का टिकट तो खरीदना पड़ेगा न। तो आज के दिन भी बस किसी रह ननद मेरे मर्द के साथ



और कल सुबह हम ननद भौजाई मिल के वो स्ट्रिप चेक करतीं, मुझे होलिका माई पर भी भरोसा था और अपने मरद पर भी


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पक्का उनकी बहिनिया गाभिन होतीं, बस आज की रात का कुछ जुगाड़ हो जाये



मेरा परेशान चेहरा देखकर मेरे मन की किताब पढ़ने वाले दो ही लोग थे, मेरी माँ और शादी के बाद मेरी सास।


उन्होंने कुछ बोला नहीं, बस जबरदस्ती मुस्करायीं और धीरे से बोलीं, ' होलिका माई रक्षा करीहे'।


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मेरी आँख के सामने वो दृश्य फिर से नाच उठा,

होलिका माई



पिछली होली के बाद रजस्वला हुयी ननदो के बाद बियाहिता नन्दो का नंबर आया और सबसे पहले उन्होंने इशारे से मेरी ननद को बुलाया, सर पर हाथ फेरा, फिर कोख पर,

मेरी सास बहुत खुश

फिर होलिका माई ने गोद में गिरे आम के बौरों को उठाया और मेरी ननद की कोख पर मसल दिया, और दाएं हाथ से पांच उंगलिया,


हिम्मत कर के मेरी सास ने जमीन की ओर देखते हुए पूछा," दिन "


और होलिका माई ने मुस्करा के हाँ में सर हिलाया, थोड़ा सा होलिका की राख मेरी ननद के कोख पर मली, कुछ जोबन पर मला, और दुलार से

उनका सर, गाल सहला दिया,


मेरी सास की आँखों में आंसू थे, खुशी के आंसू। मारे ख़ुशी के बोल नहीं पा रही थीं।

कितने दिनों से वो इन्तजार कर रही थीं, नानी बनने का, तीन साल होली में पूरे हो गए थे ननद के गौना के, यहाँ तो गाँव की बिटिया गौने जाती हैं, साल भर बाद बिदा हो के मायके आती हैं तो एक गोद में, और अगले सास, गोद वाला ऊँगली पकडे और दूसरा गोद में। और यहाँ तीन साल पूरा हो गया था, ननद जी को झूंठे भी उलटी नहीं आयी थी,


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मैं भी समझ रही थी कोख पर और जोबन पर आशीष का मतलब, पांच दिन में कोख भरेगी, इसी जोबन में दूध छलछलायेगा, गोद में बच्चा आयेगा,



इसी लिए तो देवी को माई कहते हैं, माँ से ज्यादा बेटी का दर्द कौन समझेगा।

लेकिन नाश्ते के लिए नन्दोई को जगाने जब मैं गयी तो जो बात उन्होंने बोली तो मेरा दिल दहल गया।

" सोचता हूँ की आज शाम तक निकल लूँ " वो अंगड़ाई लेते बोले।

" क्यों कल रात सास और सलहज के साथ मजा नहीं आया, की महतारी की याद सताने लगी ? " चिढ़ाते हुए मैंने पूछा।


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" मजा तो बहुत आया, और वो भी आपके चक्कर में सास जी का पिछवाड़ा, ..इतने दिनों से .देख देख के ललचाता था, "हँसते हुए वो बोले, फिर सीरियस हो गए


" अरे माँ मेरी, ....पक्का आज उनका फोन आएगा "



" लेकिन आपके दोस्त वो डिस्चार्ज "

मैंने किसी तरह से बात मोड़ने की कोशिश की तो वो बोले की आज उसे डिस्चार्ज हो जाना है, बस वो नाश्ते के बाद निकल जाएंगे, जैसे ही वो वहां से डिस्चार्ज हुआ, वो यहाँ आ जाएंगे और शाम के पहले ननद के साथ अपने मायके "

और यह कह के वो बाथरूम में घुस गए और मेरी आँखों के आगे अँधेरा, आज पांचवी रात और कल सब चेक होना है , सब किया धरा


लेकिन मेरी माँ ने सब सवाल का जवाब एक दिया था न मुझे।मेरा मरद, परेशान होने का काम इनका। मैं बस अपनी परेशानी इन्हे बता के अपना मन हल्का कर लेती थी बस आगे ये जाने, खाली मेरी ननद और बहन चोदने के लिए ये मरद है , परेशानी कौन सुलझाएगा


ये खेत से लौट आये थे और मैं इन्हे कमरे में खींच के ले गयी और बोली, " कैसे भी करके, तोहार बहनोई आज वापस ना जाने पाएं , और आज,... "
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मेरी बात काट के वो बोले ठीक है, बस अभी,



उन्होंने क्या बात किया पता नहीं,.... लेकिन रसोई से ननद मुझे बुला रही थीं तो मैं सीधे रसोई में।
 
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ननद भौजाई
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नाश्ता करते समय नन्दोई जी न ननद से पुछा तबियत कैसी है अब,

"बस अब एकदम ठीक है, कल रात भर खूब आराम से,... अभी उठी हूँ ," मुस्करा के वो बोलीं।



लेकिन तभी ननदोई जी का फोन बजा, उन्होंने बोला एक मिनट हस्पताल से है ,

मैंने चिढ़ाया,
"उसी नर्स का होगा, ...रात में कल इंजेक्शन नहीं लगा होगा, ...क्यों नन्दोई जी आप भी तो उसको सिस्टर बोलते होंगे,"
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" आप भी न, अच्छा चलिए आप नहीं मानती तो स्पीकर फोन आन कर देता हूँ "वो बोले


हस्पताल से मेसेज था की उनके दोस्त जो आज डिस्चार्ज होने वाले थे, वो आज नहीं डिस्चार्ज हो पाएंगे, एक कंसल्टेंट आये थे, उन्होंने कुछ और टेस्ट के लिए बोला है और कल तक ऑब्जर्वेशन में रखने को कहा है। शाम को फिर से स्कैन होगा, तब उनकी जरूरत पड़ेगी। तो वो चार बजे तक आ जाएँ .


" तो आज भी रात को शायद आप को हॉस्पिटल में रहना पडेगा, "

ननद ने बड़े उदास हो के पूछा और जोड़ा, कल मेरी भी तबियत खराबहो गयी थी और,.... आज फिर "
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छिनालपने में मेरी ननद से पार पाना मुश्किल था। सारी रात अपने सगे भैया के आगे टाँगे फैलाये रही, चूतड़ उठा उठा के घोंट रही थी भैया का और अब, लेकिन कभी कभी छिनलपना जरूरी हो जाता है। नन्दोई को कतई पता नहीं चलना चाहिए था हम ननद भौजाई का प्लान की हम दोनों चाहते थे की आज की रात भी नन्दोई की हॉस्पिटल में ही बीते। आज की रात पांचवी रात थी और पांच दिन में ही होलिका माई का आसीर्बाद पूरा हो जाना था।

" एक दिन बिना भतार के नहीं रहा जाता, ससुराल में नन्दोई पे पहला हक़ सलहज का है ,... जाइयेगा उनके मायके तो वहां तो वैसे दिन रात कबड्डी होगी, घबड़ाइये मत, मेरे ननदोई सूद समेत वसूल लेंगे। "

मैंने ननद जी के गाल पे चिकोटी काटते कहा।
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" नहीं नहीं हो सकता है लौट आऊं , बल्कि आ ही जाऊँगा, कल सुबह हम लोग निकल चलेंगे, माँ का कल भी फोन आया था "

नन्दोई जी ने जब ये बोला तो मेरा तो चेहरा एकदम राख, कल सुबह, कल सुबह ही तो असली।

लेकिन एक और फोन आया पुलिस थाने से,

नन्दोई जी को शाम को बुलाया था। केस तो बंद हो गया था लेकिन कुछ कागजों पे उनकी साइन चाहिए थी और फिर उनकी मोटरसाइकल जो अबतक केस प्रापर्टी में थी वो भी रिलीज होना था और उनका, उनके दोस्त का ड्राइविंग लायसन्स भी। अब पक्का था ननदोई जी रात को हॉस्पिटल में ही रुकेंगे, देर शाम तक उनको मोटरसाकिल छुड़ाने में, फिर वो नर्सिया उनको रोकने का कोई जुगाड़ लाएगी और उनके दोस्त, तो आज रात की परेशानी तो सुलझ गयी

मैं बहुत जोर से मुस्करायी। नन्दोई जी की आदत थी स्पीकर फोन ऑन कर के बात करने की और मुझे दोनों ओर की बात सुनाई भी पड़ रही थी समझ में आ रही थी।


मैं समझ गयी, ये उस स्साले पक्के बहनचोद, जल्द ही होने वाले मादरचोद मेरे मरद का काम है।

मैं उनको ढूंढते अपने कमरे में गयी, लेकिन वो नहीं थे। बस पलंग पर बैठ के सोच रही थी, अब तो दोनों चीजें पक्की, मेरी ननद चोदी भी जाएंगी आज रात फिर से इसी पलंग पे और आज पांचवी रात है तो होलिका माई की बात पक्की, कल मेरी ननद गाभिन।

तब तक मेरी ननद दिख गयीं, हंसती बिहसंती, उछलती कूदती, लग रहा था नन्दोई जी के कमरे से आ रही थी और उन्हें भी पता चल गया था आज भी नन्दोई जो को रुकना पड़ेगा और वो भी शहर में, तो आज की परेशानी खतम, मायके में आके लड़की की जो भी उमर हो, वापस वो गुड़िया खेलने वाली, धींगामुश्ती करने वाली लड़की हो जाती है, धींगा मुश्ती करने वाले किशोरी, तो बस ननद एकदम उसी तरह, उमर की सीढियाँ वापस लांघकर अपने कैशोर्य में,


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और मुझे देख के मुस्कराती मेरे कमरे में आ गयीं।

न वो कुछ बोलीं, न कुछ मैं हम दोनों समझ रहे थे हम दोनों खुश थे और ख़ुशी में भौजाई ननद के साथ जो कराती है वही मैंने किया, पहले तो नन्द को चुम्मा लिया, मेरे मरद का स्वाद अभी भी वहां लगा था


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और हलके से धक्के से पलंग पे और उसी के साथ ननद का पेटीकोट ऊपर, चुनमुनिया खुल गयी। मेरे मरद की मलाई की दो बूँद बाहर छलक गयी। मैंने उस ओर मुंह लगाने की कोशिश की तो ननद ने मजाक में मुझे धक्का देके हटाते हुए कहा

" हट भौजी, ....रात भर इनका मर्द चढ़ा रहता है और दिन में भौजाई " और मुझे बाहों में भर के चूम लिया।


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लेकिन जैसे पूनम के चाँद पर अचानक बादल घिर आये, वो एकदम से उदास, चेहरा ख़ाक हो गया मेरी ननद का। उन्होंने कस के मुझे भींच लिया और जैसे डरे सहमे बच्चे माँ के आँचल में सर छिपा लेते हैं की बड़ी से बड़ी परेशानी अब उनको नहीं छू सकती, एकदम से उसी तरह मेरे पेट में सर घुसा के डर से सहमते हुए धीरे से करीब करीब सुबकते हुए बोलीं,

" भौजी, हमको आश्रम नहीं जाना है, कुछ भी हो जाय, मैं उस साधू के यहाँ पैर भी नहीं रखूंगी , अगर गयी तो फिर, "



मैंने झट से उनके मुंह पे हाथ रख दिया, घर की बिटिया, कहीं मुंह से उलटा सीधा, अशकुन और सर सहलाती रही।

हम दोनों चुप चाप बैठे रहे, धीमे से मेरी ननद बोलीं " हम सुने थे की मायका माई से होता है लेकिन हमार मायका तो भौजी से है "

मुझे देख रही थीं और उनकी बड़ी बड़ी आँखे डबडबा रही थीं, मैंने चूम के उन पलकों को बंद कर दिया। बोलना मैं भी बहुत कुछ चाहती थी बहुत कुछ वो भी पर कई बादल उमड़ घुमड़ के रह जाते हैं बिना बरसे,

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तबतक मेरी सास की आवाज आई रसोई में से ननद को बुलाती, किसी काम में हेल्प के लिए। ननद रसोई में चली गयी और मैं भी निकली तो ननदोई जी के कमरे के बाहर

ननद अपनी माँ के पास रसोई में और मैं भी ,

तभी ननदोई जी के कमरे से फोन की आवाज आयी।नन्दोई जी और ननद की सास की बात, बात तो टेलीफोन पे हो रही थी, वही स्पीकर फोन आन था और दोनों ओर की बात सुनाई पड़ रही थी



मैं ठिठक गयी, कान पार के सुनने लगी।

मेरे पैरों के नीचे से जमीन सरक गयी। आँखों के आगे अँधेरा छा गया, किसी तरह दीवाल पकड़ के खड़ी हो गयी।


उधर से ननद की सास की चीखने, चिल्लाने की आवाज आ रही थी। मैं सुन सब रही थी, बस समझ नहीं पा रही थी, बार बार मेरे सामने मेरी ननद की सूरत आ रही थी। अभी पल भर पहले कितनी खुश आ रही थी,.... और यहाँ उनकी सास, क्या क्या प्लान,




बेचारी मेरी ननद।

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भाग ९५ सास का पिछवाड़ा -पृष्ठ ९९५

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